#लालन-पालन
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maakavita · 8 months ago
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बेटी का लालन-पालन (beti ka lalan-palan ) : महत्वपूर्ण फ़र्ज़
बेटी का लालन-पालन (beti ka lalan-palan ) करते हैं, माता-पिता मिट्टी की घाघर के जैसे, बेटी की इज्जत होती है, एक सफेद चादर के जैसे, *      *       *        * बेटी की परवरिश पर माता-पिता, कुछ ज्यादा ही ध्यान देते हैं, सबसे ज्यादा बेटी को घर में सम्मान देते हैं, सर से पाँव तक ढककर रखतें हैं, बेटी के होश संभालते ही, अपने संस्कारों का रंग भरते हैं, बेटी के होश संभालते ही, बेटी है रेशम की डोर, प्यार की…
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ऐसे कथा वाचको का लोगों ने मज़ाक बना दिया है ऊपर से रामपाल महराज ने भी खू...
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मानव जन्म पूर्ण गुरु की शरण में सतभक्ति करने के लिए होता है। ताकि बच्चों के लालन-पालन, घर-गाड़ी के लिए काम-धंधा करते हुए मोक्ष के लिए सतभक्ति भी करते रहें। अन्त में जम-जंजाल को तोड़ कर अपने निज घर सतलोक पहुंचे।
ज्योति निरंजन काल ब्रह्म उर्फ सदाशिव ने पांच-पच्चीस यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और इन्द्रियों के भोग लगा कर मनुष्य को भक्ति शुन्य कर दिया है। भ्रष्टाचार मनुष्य की रग-रग में रच गया है। धार्मिक भ्रष्टाचार के कारण मनुष्य परमात्मा प्राप्ति के लिए दर-दर भटक रहा है। अध्यात्मिक ज्ञान न होने से ब्राह्मण समाज श्रद्धालुओं को एक भगवान ��ेने में असमर्थ है। संलग्न वीडियो इसी तथ्य को उघाड़ने का प्रयास है।
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nageshchandramishra · 1 month ago
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विश्व-स्तरीय तकनीकी शिक्षा लेल मातृभाषा मे पढ़ाई- लिखाई’क अनिवार्यता
(*लेखक: नागेश चन्द्र मिश्र,पूर्व अभियंता प्रमुख,झारखंड बिहार)
(Abstract : The author has emphasised the immediate need of promoting world class quality education through the medium of every individual’s own native languages included in the Eighth Schedule of Indian Constitution without too much dependence on English. He has cited some notable engineers’ own experiences quoting the book, “The English Medium Myth : Dismantling Barriers to India’s Growth” by Sankrant Sanu,an IIT luminary.
All the State Centres of Institution of Engineers ( India ) have been requested to come forward for active cooperation, consultation & participation in preparing appropriate courses of study needed from pre - nursery education to lower,medium, higher education in Engineering curriculum as needed by every individual in their own mother tongues for which Sustainable Development Forum,IEI should coordinate with all state centres , States & Central Government’s New Education Policy Initiatives.
At the end of this essay, the author has quoted the perception of Sustainable Development through the spectrum of two Shlokas of Veda and Upanishad . )
मैथिली मे एकटा कहबी छैक,”ऊपर सँ फ़िट फाट,त’र मे मोकामा घाट”,
अर्थात्, बाहर सँ देखबा’ मे तँ खूब नीक,किंतु भीतर मे फोंक - जेकरा अंग्रेज़ी मे “भैक्विटी” कहैत छैक।सरकार भले आई.आई.टी.; एम्स, इंजीनियरिंग - मेडिकल कॉलेज’क जाल पूरा देश मे बिछा दौ’क , मुदा आजुक पढ़निहार विद्यार्थी आ पढ़ौनिहार शिक्षक कें यदि ठीक से कोनो विषय बुझबा’ आ बुझेबा’ मे दिक़्क़त हेतैन्ह ,तँ “थ्री इडियट्स” सिनेमा वला उपहासजन्य रटन्त विद्या सैह भेटैत रहतैक - ओहेन पढ़ाई- लिखाई सँ देश कें कोन लाभ ? भारत मे, जतेक इंजीनियर सभ विभिन्न संस्थान सँ डिग्री प्राप्त क’ रहल छथि , ओहि मे,लगभग मात्र 20% डिग्रीधारी कें ओहि तरहक योग्यता रहैत छन्हिं जिनका कत्तौ नीक नोकरी-चाकरी भेटैन्ह ।
एतय, प्रसिद्ध शिक्षाविद श्री संक्रांत सानू जे गरूड़ प्रकाशनक सर्वे-सर्वा छथि, हुनक पुस्तक, “द इंगलिश मिडियम मिथ : डिसमैंटलिंग बैरियर्स टू इंडियाज ग्रोथ”क संस्मरण मोन पड़ि रहल अछि । हुनक एक संक्षिप्त विडियोक लिंक अनुलग्न अछि https://youtu.be/Fm6ZjnFsZuY?si=NYjVsnp6Y3AXOAsn , जेकरा अवश्य सुनल जाय । संक्रांत सानू जी , आई.आई.टी. कानपुर सँ कंप्यूटर साइंस मे डिग्री प्राप्त कय लगभग एक दशक माइक्रोसॉफ़्ट कॉरपोरेशन मे नोकरी कयलन्हिं । यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस,ऑस्टिन सँ छह गोट टेक्नॉलजी पेटेंट हुनक नामे छन्हिं । एक बेर , ओ अपन ‘अल्मा मेटर’ आई.आई. टी. कानपुर’क फोर्थ ईयर कम्प्यूटर साइंस क्लास’क विद्यार्थी सभक बीच आबि हुनका लोकनिक प्रमुख दिक़्क़त सँ अवगत होअए चाहलाह । हुनका ई देखि-सुनि अपार दुख भेलन्हिं जे अधिकांश विद्यार्थी’क सभसँ पैघ अवरोधक, अंग्रेज़ी भाषा छलैक । तहिये से , श्री संक्रांत सानू , अपन देश वापस आबि, भारतीय भाषाक माध्यम सँ स्कूल - कॉलेज मे पढ़ाई-लिखाई होइक - अइ महायज्ञ मे तत्पर छथि ।
वर्तमान सरकार’क “नव शिक्षा नीति” (न्यू एजुकेशन पॉलिसी) मे , सभ क्षेत्रीय भाषाक माध्यम सँ प्राथमिक,माध्यमिक आ उच्च शिक्षा’क पढ़ाई-लिखाई होइक - ई प्रावधान प्रमुखता सँ कयल गेल अछि जेकर हम क़ायल छी ।
वाल्यावस्थे सँ, शिक्षा -साहित्यक सान्निध्य में लालन-पालन भेला सँ मातृभाषा मैथिली सहित हिन्दी-अंग्रेज़ी- संस्कृत आ अन्य सभ क्षेत्रीय भाषा सँ प्रेम अछि । प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स’क उक्ति, “व्हाट इज मॉस्ट पर्सनल इज मॉस्ट जेनरल”क अनुभव सँ हमरा ई मानबा मे कोनो संकोच नहिँ अछि जे जहिया सँ होश भेल - तहिये सँ जे कोनो विचार मोन मे पहिने अबैए - ओ मातृभाषा मैथिलीए मे अबैत अछि ; क्रमिक रूप सँ , हिन्दी आ अंग्रेज़ी भाषा में ओकरा रूपान्तरित करबाक अभ्यास भेल गेल । एहेन कतेको ब्रिलियंट सहपाठी कें देखलयैन्ह जे कोनो विषयक पूर्ण ज्ञान रहलाक बादो, अंग्रेज़ी भाषा मे ओकरा पढ़बा- लिखबा मे स्ट्रगल करैत रहलाह ।
हमरा अपनहुँ, अंग्रेज़ी उच्चारण आ ऐक्सेंट बुझबा’ मे स्कूली शिक्षाक दौरान हरदम दिक़्क़त होइते रहल; इंजीनियरिंग कॉलेज मे जहिया पढ़ैत रही आ सिनेमा हॉल मे अंग्रेज़ी सिनेमा देखी - बहुत कम्मे बुझियैक जे कोन पात्र की बजलैक - हॉल मे देखनहार दर्शक सब कोनो सीन कें देखि-सुनि हँसय, तँ बिना बुझनहुँ, हमहूँ हँसय लागी - जे कमज़ोरी अइ बुढ़ारी धरि एखनो विद्यमान अछि - बिना सब-टाइटिल देखने पढ़ने एखनो बहुतो रास डायलॉग ठीक सँ बुझबा मे दिक़्क़त होइते अछि ।
अइ सँ, ई सद्यः अनुभूति कयल जा सकैत अछि जे कोनो मौलिक विषय ठीक सँ बुझबाक लेल जेना हमरा अपन मातृभाषा मैथिलीक कोरा-कंधा’क आवश्यकता पड़ैत अछि - ओहने आवश्यकता कोनो तेलुगू भाषा-भाषी कें सेहो धीया-पूता सँ होइते हेतैन्हि; तेलुगू मे पढ़ाई-लिखाई’क माध्यम सँ प्राथमिक, माध्यमिक आ उच्च - उच्चतर शिक्षा भेटैत रहला पर हुनका कतेक उपयोगी सिद्ध होइत हेतैन्हिं- से स्वत: अनुमान कय सकैत छी ।एहने आवश्यकता विभिन्न क्षेत्रीय भाषा-भाषी कें होइत हेतन्हिं ।
तैं, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया)क सस्टेनेबल डेवलपमेंट फोरम सँ हम आग्रह करबन्हिं जे प्रत्येक स्टेट सेंटर सँ कॉर्डिनेट कय संप्रति संविधानक अष्टम सूची में शामिल 22 भाषा : Assamese, Bengali, Bodo, Dogri, Gujarati, Hindi, Kannada, Kashmiri, Konkani, Maithili, Malayalam, Manipuri, Marathi, Nepali, Oriya, Punjabi,Santhali, Sanskrit, Sindhi, Tamil, Telugu, Urdu
मे प्राथमिक, माध्यमिक आ उच्च शिक्षा, साइंस टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग वग़ैरह कोर्सक पढाई -लिखाई मे गुणवत्तापूर्ण शिक्षाक उन्नति आ विकास मे सक्रिय योगदान कोना दय सकैत छथि, ताहि पर गंभीरता सँ विचार करबाक कृपा करथि ।
ई. अजय कुमार सिन्हा, चेयरमैन,सस्टेनेबल डेवलपमेंट फोरम,इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) सँ ई जानि परम आनंदित भेलहुँ जे इंस्टीट्यूशनक पत्रिका “अभियंता- बंधु”क आगामी विशेष अंक मे विभिन्न क्षेत्रीय भाषाक उपयुक्त लेख प्रकाशित हेतैक जाहि हेतु , हमरो नोत भेटल जे मैथिली मे एक लेख लिखि पठाबी - प्रिय अजय बाबूक प्रति हम आभार प्रगट करैत छी ( इंस्टिट्यूशन सँ एकटा विशेष अनुरोध जे ‘अभियंता बहीन’ लोकनिक सम्मान आ ‘जेण्डर मेनस्ट्रिमिंग’क ख़ातिर, अइ पत्रिका’क नाम “अभियंता बंधु_बांधवी” जँ राखल जा’ सकय - तँ, अपने लोकनि कृपया विचार करियैक )।
अंत मे , ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट’क जे स्वरूप हमर मोन मे अभरैत अछि, ओहि वेद-उपनिषद्’क निम्नांकित दू गोट श्लोक कें उद्धरित कए , अपन लेख कें समेट रहल छी :-
पश्येम शरद: शतम्
जीवेम शरद: शतम्
बुद्ध्येम शरद: शतम्
रोहेम शरद: शतम्
पूषेम शरद: शतम्
भवेम शरद: शतम्
भूयेम शरद: शतम्
भूयसी शरद: शतात्
( अथर्व वेद , काण्ड 19 , सूक्त 67 )
यानि ,  – सौ बर्ष धरि देखी; सौ बर्ष धरि जीबी ; सौ बर्ष धरि बुद्धि सक्षम रहए; सौ वर्ष धरि वृद्धि होइत रहए ; सौ वर्ष पुष्टि-पोषण होइत रहए ; सौ वर्ष धरि आभामंडल बनल रहए ;सौ वर्ष धरि पवित्रता बनल रहए;सौ वर्षक आगुओ, ई सब कल्याणकारी योग बनल रहए ।
���ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्ण��त्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥”
( बृहदकारण्य उपनिषद् )
( ओ पूर्ण छल /सृष्टि उत्पत्ति से पहिनहुँ सँ , उत्पत्ति के बादो ई पूर्ण अछि , माने जे एक पूर्ण सँ दोसर पूर्ण उत्पन्न भेल ओहो पूर्ण अछि। पूर्ण से पूर्ण निकालि दियौ, तैयो, बाद मे जे बचल अछि - ओहो पूर्ण अछि ! ओम्! शांति! शांति! शांति! )
🇮🇳जय हिन्द🇮🇳
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*Nagesh Chandra Mishra, Former Engineer-In-Chief, Drinking Water & Sanitation Department ( P.H.E.D. ) & Executive Director, ( PMU ) HRD/IEC , Jharkhand & Bihar is the Life Member of Institution of Engineers since 1970s . He is Founder Chairman, Indian Water Works Association, Bihar as well that of Jharkhand. He Founded Visvesvaraya Sanitation & Water Academy ( ViSWA ) at Ranchi with the active support of State & Central Govt. along with UNICEF.
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jyotis-things · 3 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart87 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart88
"पूर्ण परमात्मा कबीर जी का द्वापर युग में प्रकट होना"
प्रश्न 54 :- हे परमेश्वर ! अपने दास धर्मदास पर कृपा करके द्वापर युग में प्रकट होने की कथा सुनाऐं जिस से तत्त्वज्ञान प्राप्त हो?
उत्तर :- कबीर परमेश्वर (कबिर्देव) ने कहा हे धर्मदास! द्वापर युग में भी मैं रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुआ। एक निःसन्तान वाल्मिकी (कालू तथा गोदावरी) दम्पति अपने घर ले गया। एक ऋषि से मेरा नामकरण करवाया। उसने भगवान विष्णु की कृपा से प्राप्त होने के आधार से मेरा नाम करूणामय रखा। मैंने 25 दिन तक कोई आहार नहीं किया मेरी पालक माता अति दुःखी हुई। पिता जी भी कई साधु सन्तों के पास गए मेरे ऊपर झाड़-फूंक भी कराई। वे विष्णु के पुजारी थे। उनको अति दुःखी देखकर मैंने विष्णु को प्रेरणा दी। विष्णु भगवान एक ऋषि रूप में वहाँ आए तथा पिता कालू से कुशल मंगल पूछा। पिता कालू तथा माता गोदावरी (कलयुग में सम्मन तथा नेकी रूप में दिल्ली में जन्में थे) ने अपना दुःख ऋषि जी को बताया कि हमें वृद्ध अवस्था में एक पुत्र रत्न भगवान विष्णु की कृपा से सरोवर में कमल के फूल पर प्राप्त हुआ है। यह बच्चा 25 दिन से भूखा है कुछ भी नहीं खाया है। अब इसका अन्त निकट है। परमात्मा विष्णु ने हमें अपार खुशी प्रदान की है। अब उसे छीन रहे हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि हे विष्णु भगवान यह खिलौना दे कर मत छीनों। हम अपराधियों से ऐसा क्या अपराध हो गया? इस बच्चे में हमारा इतना मोह हो गया है कि यदि इसकी मृत्यु हो गई तो हम दोनों उसी सरोवर में डूब कर मरेंगे जहाँ पर यह बालक रत्न हमें मिला था।
हे धर्मदास ! ऋषि रूप में उपस्थित विष्णु भगवान ने मेरी ओर देखा। मैं पालने में झूल रहा था। मेरे अति ��्वस्थ शरीर को देखकर विष्णु भगवान आश्चर्य चकित हुए तथा बोले हे कालू भक्त! यह बच्चा तो पूर्ण रूप से स्वस्थ है। आप कह रहे हो यह कुछ भी आहार नहीं करता। यह बालक तो ऐसा स्वस्थ है जैसे एक सेर दूध प्रतिदिन पीता हो। यह नहीं मरने वाला। इतना कह कर विष्णु मेरे पास आया। मैंने विष्णु से बात की तथा कहा हे विष्णु भगवान! आप मेरे माता पिता से कहो एक कुँवारी गाय लाऐं उस गाय को आप आशीर्वाद देना व कंवारी गाय दूध देने लगेगी उस गाय का दूध मैं पीऊंगा। मेरे द्वारा अपना परिचय जान कर विष्णु भगवान समझ गए यह कोई सिद्ध आत्मा है जिसने मुझे पहचान लिया है। मुझे ऋषि के साथ बातें करते हुए मेरे पालक माता-पिता हैरान रह गए। अन्दर ही अन्दर खुशी की लहर दौड़ गई। ऋषि ने कहा कालू एक कुंवारी गाय लाओ। वह दूध देगी उस दूध को यह होनहार बच्चा पीएगा। कालू पिता तुरन्त एक गाय ले आया। भगवान विष्णु ने मेरी प्रार्थना पर उस कुंवारी गाय की कमर पर हाथ रख दिया।
उसी समय उस गाय की बछिया के थनों से दूध की धार बहने लगी तथा वह तीन सेर का पात्र भरने के पश्चात् रूक गई। वह दूध मैंने पीया।
मेरी तथा विष्णु जी की वार्ता की भाषा को कालू व गोदावरी समझ नही सके। वे मुझ पच्चीस दिन के बालक को बोलते देखकर उस ऋषि रूप विष्णु का ही चमत्कार मान रहे थे तथा कुंवारी गाय द्वारा दूध देना भी उस ऋषि की कृपा जानकर दोनों ऋषि के चरणों में लिपट गए। मेरी पालक माता ने मुझे पालने से उठाया तथा उस ऋषि रूप में विराजमान विष्णु के चरणों में डालना चाहा लेकिन मैं जमीन पर नहीं गिरा। माता के हाथों से निकल कर जमीन से चार फुट ऊपर हवा में पालने की तरह स्थित हो गया। जब गोदावरी ने मुझे ऋषि के चरणों की ओर किया भगवान विष्णु तीन कदम पीछे हट गए तथा बोले माई! यह बालक परम शक्ति युक्त है, बड़ा होकर जनता का उपकार करेगा। इतना कह कर ऋषि रूप धारी विष्णु अपने लोक को चल दिए। मैं पुनः पालने में विराजमान हो गया।
उस वाल्मीकि दम्पति (कालू तथा गोदावरी) ने मेरा हवा में स्थित होना भी ऋषि का ही करिश्मा जाना इस कारण से मुझे कोई अवतारी पुरूष नहीं समझ सके मैं भी यही चाहता था, कि ये मुझे एक साधारण बालक ही समझें जिससे इनकी वृद्ध अवस्था का समय मेरे लालन-पालन में बीत जाए। मैं शिशु काल में ही तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करने लगा। उस नगरी में अकाल गिर गया। मेरे माता पिता मुझे लेकर बनारस (काशी) आए तथा वहाँ रहने लगे। कलयुग में कालू का जन्म सम्मन रूप में तथा गोदावरी का जन्म नेकी रूप में दिल्ली में हुआ जो कबीर जी की शरण में आए। उनका एक पुत्र सेऊ (शिव) भी परमात्मा की शरण में आया था।
काशी नगर में एक सुदर्शन नाम का वाल्मिीकि जाति का पुण्यात्मा मेरी वाणी सुनकर बहुत प्रभावित ह��आ। मैंने सुदर्शन भक्त को सृष्टि रचना सुनाई। सुदर्शन मेरी हम उमर था। उस समय मेरी लीलामय आयु 12 वर्ष थी। जब काशी के विद्वानों से ज्ञान चर्चा होती थी, सुदर्शन भी मेरे साथ जाता था। एक दिन सुदर्शन ने कहा हे करूणामय! आप जो ज्ञान सुनाते हो इसका समर्थन कोई भी ऋषि नहीं करता। आप के ज्ञान पर कैसे विश्वास हो? हे करूणामय! आप ऐसी कृपा करो जिससे मेरा भ्रम दूर हो जाए। हे धर्मदास मैंने उस प्यासी आत्मा सुदर्शन को सत्यलोक के दर्शन कराए आप की तरह उसको भी तीन दिन तक ऊपर के सर्व लोकों में ले गया। सुदर्शन का पंच भौतिक शरीर अचेत हो गया। सुदर्शन भी अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। अपने इकलौते पुत्र को मृत तुल्य देखकर उसके माता-पिता विलाप करने लगे तथा हमारे घर आकर मेरे मात-पिता से झगड़ा करने लगे। कहा कि तुम्हारे करूण ने हमारे बच्चे को जादू-जन्त्र कर दिया। वह सेवड़ा है। हमारा पुत्र मर गया तो हम आप के विरूद्ध राजा को शिकायत करेगें। मेरे माता-पिता ने मेरे से उन्ही के सामने पूछा हे करूण ! सच बता तूने क्या कर दिया उस सुदर्शन को। मैंने कहा वह सतलोक देखना चाहता था। इसलिए उसे सतलोक दर्शन के लिए भेजा है। शीघ्र ही लौट आएगा। कई वैद्य बुलाएं कई झाड़-फूंक करने वाले बुलाए कोई लाभ नहीं हुआ। तीसरे दिन सुदर्शन के मात-पिता रोते हुए मेरे पास आए बोले बेटा करूण ! हमारे पुत्र को ठीक कर दे हम तेरे आगे हाथ जोड़ते हैं। मैंने कहा माई तुम्हारा पुत्र नहीं मरेगा।
मेरे (परमेश्वर कबीर साहेब) को अपने साथ अपने घर ले गए। मेरे माता-पिता भी साथ गए आस-पास के व्यक्ति भी वहाँ उपस्थित थे। मैंने सुदर्शन के शीश को पकड़ कर हिलाया तथा कहा हे सुदर्शन ! वापिस आ जा तेरे माता-पिता बहुत व्याकुल हैं। इतना कहते ही सुदर्शन ने आँखें खोली चारों ओर देखा, अपने सिर की ओर मुझे नहीं देख सका। उठ-बैठकर बोला परमेश्वर करूणामय कहाँ हैं? रोने लगा-कहाँ गए परमेश्वर करूणामय। उपस्थित व्यक्तियों ने पूछा, क्या करूण को ढूँढ़ रहा है? देख यह बैठा ���ेरे पीछे। मुझे देखते ही चरणों में शीश रख कर विलाप करने लगा तथा रोता हुआ बोला हे काशी के रहने वालों। यह पूर्ण परमात्मा है। यह सर्व सृष्टि रचनहार अपने शहर में विराजमान है। आप इसे नहीं पहचान सके। यह मेरे साथ ऊपर के लोक में गया। ऊपर के लोक में यह पूर्ण परमात्मा के रूप में एक सफेद गुबन्द में विराजमान है। यही दोनों रूपों में लीला कर रहा है। सर्व व्यक्ति कहने लगे इस कालू के पुत्र ने भीखू के पुत्र पर जादू जन्त्र किया है। जिस कारण से इसका दिमाग चल गया है। इस करूण को ही परमात्मा कह रहा है। भला हो भगवान का भीखू का बेटा जीवित हो गया नहीं तो बेचारों का कोई और बूढ़ापे का सहारा भी नहीं था। यह कह कर सर्व अपने-2 घर चले गए।
भीखू तथा उस���ी पत्नी सुखी (सुखवन्ती) अपने पुत्र को जीवित देखकर अति प्रसन्न हुए भगवान विष्णु का प्रसाद बनाया पूरे मौहल्ले (कॉलोनी) में प्रसाद बांटा। सुदर्शन ने मुझसे उपदेश लिया। अपने माता-पिता भीखू तथा सुखी को भी मेरे से उपदेश लेने को कहा। दोनों ने बहुत विरोध किया तथा कहा यह कालू का पुत्र पूर्ण परमात्मा नहीं है बेटा! इसने तेरे ऊपर जादू-जन्त्र करके मूर्ख बनाया हुआ है। भगवान विष्णु से बड़ा कोई नहीं है। सुदर्शन ने मुझ से कहा हे प्रभु! कृप्या मुझे अपनी शरण में रखना। मेरे माता-पिता का कोई दोष नहीं है सर्व मानव समाज इसी ज्ञान पर अटका है। जिस पर आपकी कृपा होगी केवल वही आप को जान व मान सकता है। इस काल-ब्रह्म ने तो पूरे विश्व (ब्रह्मा-विष्णु-शिव सहित) को भ्रमित किया हुआ है। हे धर्मदास ! सुदर्शन भक्त ने काल के जाल को समझ कर सच्चे मन से मेरी भक्ति की तथा मेरा साक्षी बना कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव से भिन्न तथा अधिक शक्तिशाली है। हे धर्मदास ! पाण्डवों की अश्वमेघ यज्ञ को जिस सुदर्शन द्वारा सम्पूर्ण की गई आप सुनते हो यह वही सुदर्शन वाल्मिीकि मेरा शिष्य था। द्वापर युग में मैं 404 वर्ष तक करूणामय शरीर में लीला करता रहा तथा सशरीर सतलोक चला गया।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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pradeepdasblog · 3 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart87 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart88
"पूर्ण परमात्मा कबीर जी का द्वापर युग में प्रकट होना"
प्रश्न 54 :- हे परमेश्वर ! अपने दास धर्मदास पर कृपा करके द्वापर युग में प्रकट होने की कथा सुनाऐं जिस से तत्त्वज्ञान प्राप्त हो?
उत्तर :- कबीर परमेश्वर (कबिर्देव) ने कहा हे धर्मदास! द्वापर युग में भी मैं रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुआ। एक निःसन्तान वाल्मिकी (कालू तथा गोदावरी) दम्पति अपने घर ले गया। एक ऋषि से मेरा नामकरण करवाया। उसने भगवान विष्णु की कृपा से प्राप्त होने के आधार से मेरा नाम करूणामय रखा। मैंने 25 दिन तक कोई आहार नहीं किया मेरी पालक माता अति दुःखी हुई। पिता जी भी कई साधु सन्तों के पास गए मेरे ऊपर झाड़-फूंक भी कराई। वे विष्णु के पुजारी थे। उनको अति दुःखी देखकर मैंने विष्णु को प्रेरणा दी। विष्णु भगवान एक ऋषि रूप में वहाँ आए तथा पिता कालू से कुशल मंगल पूछा। पिता कालू तथा माता गोदावरी (कलयुग में सम्मन तथा नेकी रूप में दिल्ली में जन्में थे) ने अपना दुःख ऋषि जी को बताया कि हमें वृद्ध अवस्था में एक पुत्र रत्न भगवान विष्णु की कृपा से सरोवर में कमल के फूल पर प्राप्त हुआ है। यह बच्चा 25 दिन से भूखा है कुछ भी नहीं खाया है। अब इसका अन्त निकट है। परमात्मा विष्णु ने हमें अपार खुशी प्रदान की है। अब उसे छीन रहे हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि हे विष्णु भगवान यह खिलौना दे कर मत छीनों। हम अपराधियों से ऐसा क्या अपराध हो गया? इस बच्चे में हमारा इतना मोह हो गया है कि यदि इसकी मृत्यु हो गई तो हम दोनों उसी सरोवर में डूब कर मरेंगे जहाँ पर यह बालक रत्न हमें मिला था।
हे धर्मदास ! ऋषि रूप में उपस्थित विष्णु भगवान ने मेरी ओर देखा। मैं पालने में झूल रहा था। मेरे अति स्वस्थ शरीर को देखकर विष्णु भगवान आश्चर्य चकित हुए तथा बोले हे कालू भक्त! यह बच्चा तो पूर्ण रूप से स्वस्थ है। आप कह रहे हो यह कुछ भी आहार नहीं करता। यह बालक तो ऐसा स्वस्थ है जैसे एक सेर दूध प्रतिदिन पीता हो। यह नहीं मरने वाला। इतना कह कर विष्णु मेरे पास आया। मैंने विष्णु से बात की तथा कहा हे विष्णु भगवान! आप मेरे माता पिता से कहो एक कुँवारी गाय लाऐं उस गाय को आप आशीर्वाद देना व कंवारी गाय दूध देने लगेगी उस गाय का दूध मैं पीऊंगा। मेरे द्वारा अपना परिचय जान कर विष्णु भगवान समझ गए यह कोई सिद्ध आत्मा है जिसने मुझे पहचान लिया है। मुझे ऋषि के साथ बातें करते हुए मेरे पालक माता-पिता हैरान रह गए। अन्दर ही अन्दर खुशी की लहर दौड़ गई। ऋषि ने कहा कालू एक कुंवारी गाय लाओ। वह दूध देगी उस दूध को यह होनहार बच्चा पीएगा। कालू पिता तुरन्त एक गाय ले आया। भगवान विष्णु ने मेरी प्रार्थना पर उस कुंवारी गाय की कमर पर हाथ रख दिया।
उसी समय उस गाय की बछिया के थनों से दूध की धार बहने लगी तथा वह तीन सेर का पात्र भरने के पश्चात् रूक गई। वह दूध मैंने पीया।
मेरी तथा विष्णु जी की वार्ता की भाषा को कालू व गोदावरी समझ नही सके। वे मुझ पच्चीस दिन के बालक को बोलते देखकर उस ऋषि रूप विष्णु का ही चमत्कार मान रहे थे तथा कुंवारी गाय द्वारा दूध देना भी उस ऋषि की कृपा जानकर दोनों ऋषि के चरणों में लिपट गए। मेरी पालक माता ने मुझे पालने से उठाया तथा उस ऋषि रूप में विराजमान विष्णु के चरणों में डालना चाहा लेकिन मैं जमीन पर नहीं गिरा। माता के हाथों से निकल कर जमीन से चार फुट ऊपर हवा में पालने की तरह स्थित हो गया। जब गोदावरी ने मुझे ऋषि के चरणों की ओर किया भगवान विष्णु तीन कदम पीछे हट गए तथा बोले माई! यह बालक परम शक्ति युक्त है, बड़ा होकर जनता का उपकार करेगा। इतना कह कर ऋषि रूप धारी विष्णु अपने लोक को चल दिए। मैं पुनः पालने में विराजमान हो गया।
उस वाल्मीकि दम्पति (कालू तथा गोदावरी) ने मेरा हवा में स्थित होना भी ऋषि का ही करिश्मा जाना इस कारण से मुझे कोई अवतारी पुरूष नहीं समझ सके मैं भी यही चाहता था, कि ये मुझे एक साधारण बालक ही समझें जिससे इनकी वृद्ध अवस्था का समय मेरे लालन-पालन में बीत जाए। मैं शिशु काल में ही तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करने लगा। उस नगरी में अकाल गिर गया। मेरे माता पिता मुझे लेकर बनारस (काशी) आए तथा वहाँ रहने लगे। कलयुग में कालू का जन्म सम्मन रूप में तथा गोदावरी का जन्म नेकी रूप में दिल्ली में हुआ जो कबीर जी की शरण में आए। उनका एक पुत्र सेऊ (शिव) भी परमात्मा की शरण में आया था।
काशी नगर में एक सुदर्शन नाम का वाल्मिीकि जाति का पुण्यात्मा मेरी वाणी सुनकर बहुत प्रभावित हुआ। मैंने सुदर्शन भक्त को सृष्टि रचना सुनाई। सुदर्शन मेरी हम उमर था। उस समय मेरी लीलामय आयु 12 वर्ष थी। जब काशी के विद्वानों से ज्ञान चर्चा होती थी, सुदर्शन भी मेरे साथ जाता था। एक दिन सुदर्शन ने कहा हे करूणामय! आप जो ज्ञान सुनाते हो इसका समर्थन कोई भी ऋषि नहीं करता। आप के ज्ञान पर कैसे विश्वास हो? हे करूणामय! आप ऐसी कृपा करो जिससे मेरा भ्रम दूर हो जाए। हे धर्मदास मैंने उस प्यासी आत्मा सुदर्शन को सत्यलोक के दर्शन कराए आप की तरह उसको भी तीन दिन तक ऊपर के सर्व लोकों में ले गया। सुदर्शन का पंच भौतिक शरीर अचेत हो गया। सुदर्शन भी अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। अपने इकलौते पुत्र को मृत तुल्य देखकर उसके माता-पिता विलाप करने लगे तथा हमारे घर आकर मेरे मात-पिता से झगड़ा करने लगे। कहा कि तुम्हारे करूण ने हमारे बच्चे को जादू-जन्त्र कर दिया। वह सेवड़ा है। हमारा पुत्र मर गया तो हम आप के विरूद्ध राजा को शिकायत करेगें। मेरे माता-पिता ने मेरे से उन्ही के सामने पूछा हे करूण ! सच बता तूने क्या कर दिया उस सुदर्शन को। मैंने कहा वह सतलोक देखना चाहता था। इसलिए उसे सतलोक दर्शन के लिए भेजा है। शीघ्र ही लौट आएगा। कई वैद्य बुलाएं कई झाड़-फूंक करने वाले बुलाए कोई लाभ नहीं हुआ। तीसरे दिन सुदर्शन के मात-पिता रोते हुए मेरे पास आए बोले बेटा करूण ! हमारे पुत्र को ठीक कर दे हम तेरे आगे हाथ जोड़ते हैं। मैंने कहा माई तुम्हारा पुत्र नहीं मरेगा।
मेरे (परमेश्वर कबीर साहेब) को अपने साथ अपने घर ले गए। मेरे माता-पिता भी साथ गए आस-पास के व्यक्ति भी वहाँ उपस्थित थे। मैंने सुदर्शन के शीश को पकड़ कर हिलाया तथा कहा हे सुदर्शन ! वापिस आ जा तेरे माता-पिता बहुत व्याकुल हैं। इतना कहते ही सुदर्शन ने आँखें खोली चारों ओर देखा, अपने सिर की ओर मुझे नहीं देख सका। उठ-बैठकर बोला परमेश्वर करूणामय कहाँ हैं? रोने लगा-कहाँ गए परमेश्वर करूणामय। उपस्थित व्यक्तियों ने पूछा, क्या करूण को ढूँढ़ रहा है? देख यह बैठा तेरे पीछे। मुझे देखते ही चरणों में शीश रख कर विलाप करने लगा तथा रोता हुआ बोला हे काशी के रहने वालों। यह पूर्ण परमात्मा है। यह सर्व सृष्टि रचनहार अपने शहर में विराजमान है। आप इसे नहीं पहचान सके। यह मेरे साथ ऊपर के लोक में गया। ऊपर के लोक में यह पूर्ण परमात्मा के रूप में एक सफेद गुबन्द में विराजमान है। यही दोनों रूपों में लीला कर रहा है। सर्व व्यक्ति कहने लगे इस कालू के पुत्र ने भीखू के पुत्र पर जादू जन्त्र किया है। जिस कारण से इसका दिमाग चल गया है। इस करूण को ही परमात्मा कह रहा है। भला हो भगवान का भीखू का बेटा जीवित हो गया नहीं तो बेचारों का कोई और बूढ़ापे का सहारा भी नहीं था। यह कह कर सर्व अपने-2 घर चले गए।
भीखू तथा उसकी पत्नी सुखी (सुखवन्ती) अपने पुत्र को जीवित देखकर अति प्रसन्न हुए भगवान विष्णु का प्रसाद बनाया पूरे मौहल्ले (कॉलोनी) में प्रसाद बांटा। सुदर्शन ने मुझसे उपदेश लिया। अपने माता-पिता भीखू तथा सुखी को भी मेरे से उपदेश लेने को कहा। दोनों ने बहुत विरोध किया तथा कहा यह कालू का पुत्र पूर्ण परमात्मा नहीं है बेटा! इसने तेरे ऊपर जादू-जन्त्र करके मूर्ख बनाया हुआ है। भगवान विष्णु से बड़ा कोई नहीं है। सुदर्शन ने मुझ से कहा हे प्रभु! कृप्या मुझे अपनी शरण में रखना। मेरे माता-पिता का कोई दोष नहीं है सर्व मानव समाज इसी ज्ञान पर अटका है। जिस पर आपकी कृपा होगी केवल वही आप को जान व मान सकता है। इस काल-ब्रह्म ने तो पूरे विश्व (ब्रह्मा-विष्णु-शिव सहित) को भ्रमित किया हुआ है। हे धर्मदास ! सुदर्शन भक्त ने काल के जाल को समझ कर सच्चे मन से मेरी भक्ति की तथा मेरा साक्षी बना कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव से भिन्न तथा अधिक शक्तिशाली है। हे धर्मदास ! पाण्डवों की अश्वमेघ यज्ञ को जिस सुदर्शन द्वारा सम्पूर्ण की गई आप सुनते हो यह वही सुदर्शन वाल्मिीकि मेरा शिष्य था। द्वापर युग में मैं 404 वर्ष तक करूणामय शरीर में लीला करता रहा तथा सशरीर सतलोक चला गया।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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manjeetsworld · 3 months ago
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जानिए श्री कृष्ण जी के जीवन से जुड़ी अनसुनी सच्चाई | SA News Chhattisgarh
लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित श्री कृष्ण जिनकी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में खासी लोकप्रियता है उनके विषय मे आज वे जानकारियां लेकर आये हैं जो अब तक न आपने सुनी और न पढ़ी होंगी। जानें 16 कलाओं के स्वामी श्री कृष्ण की लीलाओं का विषय में अद्भुत जानकारियां।
श्री कृष्ण का जन्म कब हुआ?
कृष्ण जी का जन्म द्वापर युग में, मथुरा के कारागार में हुआ था। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व के आसपास आधी रात को हुआ था। उस रात चंद्रमा का आठवां चरण था, जिसे अष्टमी तिथि के रूप में जाना जाता है। जन्माष्टमी का आयोजन इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के जश्न के रूप में भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने के अंधेरे पखवाड़े की अष्टमी के दिन किया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ, देवता होने के कारण उनमें प्रबल शक्ति थी। राक्षस कंस को ये आकाशवाणी के माध्यम से ज्ञात हो चुका था कि देवकी की आठवीं सन्तान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इस कारण अनेको नवजात बच्चों की हत्या कंस ने कराई। किन्तु जिसका विनाश निश्चित है उसे नहीं रोका जा सकता। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उसी रात उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यशोदा के पास पहुंचाया। श्रीकृष्ण का लालन पालन माता यशोदा ने किया जबकि उनकी जन्मदात्री देवकी थीं। भक्तों के रक्षा के लि�� भगवान विष्णु ने कृष्ण का अवतार लिया। जगत की रीत है कोई ऐतिहासिक कार्य होता है तो वे प्रतिवर्ष उसे महोत्सव रूप में मनाने लगते हैं। कृष्णजन्माष्टमी का अर्थ है आज ही के दिन कृष्ण जी का जन्म हुआ किन्तु उसे दोबारा मनाने का कोई महत्व धर्मग्रन्थों में नहीं बताया गया है। आइए इस जन्माष्टमी जानें
संक्षेप में दृष्टिपात करने पर हम पाते हैं कि कृष्ण जी, देवकी-वासुदेव की आठवीं सन्तान थे। चूंकि उस समय देवकी और वासुदेव, राक्षस प्रवृत्ति के राजा कंस के कारावास में थे अतः कृष्ण जी को वासुदेव जी उसी रात यशोदा के पास छोड़कर आये। इस प्रकार कृष्ण जी का लालन-पालन यशोदा और नन्द जी की देखरेख में हुआ।
भगवान कृष्ण का अधिकांश जीवन राक्षसों से लड़ने और प्रजा की रक्षा करने में बीता। श्री कृष्ण आज जितने पूजनीय हैं उतने उस समय नहीं थे। उन्हें मारने की साज़िशों के तहत अनेको राक्षस उनके बाल्यकाल से ही भेजे जाने लगे थे। सुकून और सुख से इतर जीवन में अनियमितता थी। अंत मे श्री कृष्ण जी ने रहने के लिए द्वारका नगरी चुनी जहां एक ही द्वार था। दुर्वासा ऋषि के श्रापवश 56 करोड़ यादव आपस में लड़कर कटकर मर गए। और उसी श्रापवश त्रेतायुग की बाली वाली आत्मा जो द्वापरयुग में शिकारी थी उसके तीर मारने से श्री कृष्ण की मृत्यु हो गई। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जीवन में बचते और बचाते रहे किन्तु सुकून से नहीं रह पाए अंततः श्रापवश मृत्यु को प्राप्त हुए।
हिंदू धर्म में लोग मुख्यतः 3 पुरुषों/देवों की भक्ति करते है। जो हैं रजगुण प्रधान भगवान ब्रह्मा, सतगुण प्रधान भगवान विष्णु, तमगुण प्रधान भगवान शिव। भगवान श्री कृष्ण को भगवान श्री विष्णु जी का ही आठवां अवतार कहा जाता है। श्री कृष्ण जी भगवान का अवतार होने के वजह से जन्म से ही लीला करने लगे थे। भगवान श्री कृष्ण का जीवन चरित्र देखें विष्णु जी के अवतार होने के कारण चमत्कारी शक्तियों से युक्त थे। लीला और चमत्कार की वजह से लोग उन्हें जानने लगे और अपना ईष्ट समझकर उनकी पूजा करने लगे। गीता के अध्याय 7 के श्लोक 14 और 15 में त्रिगुण साधना व्यर्थ बताई गई और इसे करने वाले मनुष्य नीच, मूढ़ और दूषित कर्म करने वाले बताए गए हैं।
इस जन्माष्टमी आइए जानें कि भगवान कृष्ण की भक्ति कैसी करना चाहिए? पूर्ण परमात्मा कौन है? कृष्ण जी जो कि त्रिदेवों में से एक विष्णु जी के अवतार हैं, इनकी भक्ति करने से न तो पाप कटेंगे और न ही मुक्ति हो सकती है। स्वयं कृष्ण जी भी अपने कर्मो का फल भोगने के लिए बाध्य हैं। त्रेतायुग में विष्णु जी ने श्री राम के रूप में सुग्रीव के भाई बाली को पेड़ की ओट से मारा था। द्वापरयुग में वही बाली वाली आत्मा ने शिकारी रूप में कृष्ण जी को विषाक्त तीर मारा। कर्मफल तो ये देवता अपने ��ी नहीं समाप्त कर पाते तो हमारे कैसे करेंगे? यदि आप सर्व पापों से मुक्ति चाहते हैं तो वेदों में वर्णित साधना करनी होगी, पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेनी होगी। क्योंकि वेदों में वर्णित है कि पूर्ण परमात्मा साधक के सभी पापों को नष्ट करता है (यजुर्वेद, अध्याय 8, मन्त्र 13)।
कृष्ण जन्माष्टमी 2024 पर जानिए वास्तविक में गीता ज्ञानदाता कौन?
हमें सदा से ही बताया जा रहा है कि गीता का ज्ञान देने वाला भगवान श्रीकृष्ण है परंतु वास्तव में गीता का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने नहीं बल्कि उनके पिता ब्रह्म ने दिया है, इसे ही ज्योतिनिरंजन या क्षर पुरुष भी कहते हैं। अभी तक जिन्होंने गीता का अर्थ निकाला है उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को ही गीता का ज्ञान दाता कहा है परंतु गीता जी में ही गीता ज्ञान दाता ने अपना परिचय दिया और कहा है कि मैं काल ब्रह्म हूं।
इसका प्रमाण गीता अध्याय 11 के श्लोक 32 और 47 में है। जब कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया तब अर्जुन ने डर से कांपते हुए पूछा भगवान आप कौन हैं। तब कृष्ण जी ने गीता अध्याय 11 के श्लोक 32 में कहा कि “अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।” गीता अध्याय 11 के श्लोक 46 में कहा है कि “हे हजार भुजाओं वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए।” इस पर गीता अध्याय 11 के श्लोक 47 में कृष्ण रूप में कालब्रह्म ने कहा कि:
अर्जुन मैंने प्रसन्न होकर तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप तुझे दिखाया है जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने भी नहीं देखा। अधिक जानकारी के लिए visit करें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube channel
#SANewsCG #SANewsChannel #Krishna #जन्माष्टमी #krishnajanmashtami
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narmadanchal · 5 months ago
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शांति धाम को 51 फलदार पौधे प्रदान किए गए
इटारसी। साईं फाच्र्यून निवासी संजय राय चौधरी ने अपने पूर्वजों की स्मृति में एवं इटारसी शहर में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पूरे शहर के लिए ढाई सौ से अधिक फलदार पौधे लाये हैं। उन्होंने 51 फलदार पौधे जामुन, आम, अमरूद, आंवला शांति धाम शमशान घाट जन भागीदारी समिति को शांति धाम में पौध रोपण के लिए दिए हैं। अगले 48 घंटे में शांति धाम में 51 पौधे रोपित कर दिए जाएंगे। उनके लालन पालन की जवाबदारी…
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suroy1974 · 6 months ago
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🌼 *माँ की वाणी* 🌼 🍀 *शिष्य – मैं सिर्फ इतना ही जानना चाहता हूँ कि मेरे अपने कोई हैं या नहीं?* *श्रीमाँ - हैं क्यों नहीं, अवश्य हैं। ... वे ही माँ-बाप - के रूप से पालन करते हैं। वे ही देखभाल करते हैं। नहीं तो तुम कहाँ थे और कहाँ आ गए! उन लो��ों ने लालन-पालन किया और अन��त में देखा कि यह अपना नहीं है।* 🌸
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sharpbharat · 8 months ago
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west singhbhum sarhul- खद्दी फग्गू सरहुल चाईबासा उरांव समाज के सातों अखाड़ा ने परंपरा को निभाया, चाला मंडप मां सरना स्थल में किया पूजा-पाठ
रामगोपाल जेना,चाईबासा: बुधवार को बान टोला अखाडा मे होली के पावन अवसर पर प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी खद्दी फग्गू सरहुल चाईबासा उरांव समाज के सातों अखाड़ा में परिवार की सुख समृद्धि,पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, काम धाम,लालन-पालन एवं प्रत्येक घर मे सभी तरह प्रकोप,दुख -तकलीफ को दुर करने के लिए चाला मंडप मां सरना स्थल में पूजा-पाठ किया गया.(नीचे भी पढ़��) साथ ही मुहल्ले के प्रत्येक घर दिन भर घूम-घूमकर लाल व…
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astrovastukosh · 10 months ago
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MANAN KARNE YOGY KATHA अजामिल की:
*🍁 अजामिल की कथा 🍁*
भगवान की शरण में रहने वाले विरले भक्तों के पाप श्री भगवान के नामोच्चारण से ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्य उदय होने पर कोहरा नष्ट हो जाता है। जिन्होंने अपने भगवद गुण अनुरागी मन मधुकर को भगवान श्री कृष्ण के चरणारविन्द मकरन्द का एक बार पान करा दिया; उन्होंने सारे प्रायश्चित कर लिए। वे स्वप्न में भी यमराज और उनके पाशधारी दूतों को नहीं देखते।
इसी सन्दर्भ में कन्नौज के दासीपति ब्राह्मण अजामिल की कथा आती है। अजामिल बड़ा ही शास्त्रज्ञ शीलवान, सदाचारी व सदगुणों का खजाना था। ब्रह्मचारी, विनयी, जितेन्द्रिय, सत्यनिष्ठ, मंत्रवेत्ता और पवित्र भी था। इसने गुरु, अग्नि, अतिथि और वृद्ध पुरुषों की सेवा की थी। अहंकार तो इसमें था ही नहीं। यह समस्त प्राणियों का हित चाहता, उपकार करता, आवश्यकता के अनुसार ही बोलता और किसी के गुणों में दोष नहीं ढूँढ़ता था।
एक दिन वन से फल-फूल, समिधा व कुश लाते समय अजामिल ने एक कामी व निर्लज्ज भ्रष्ट शूद्र को शराब पीकर एक वेश्या के साथ विहार करते हुए देखा। वेश्या भी शराब पीकर अर्द्धनग्न अवस्था में मतवाली हो रही थी। अजामिल उन्हें इस अवस्था में देखकर सहसा मोहित व काम के वश हो गया। उसने अपने धैर्य व ज्ञान के अनुसार अपने काम वेग से विचलित मन को रोकने की बहुत कोशिश की परन्तु उस वेश्या को निमित्त बना कर काम पिशाच ने अजामिल के मन को ग्रस लिया। वह मन ही मन उस वेश्या का चिंतन करने लगा और अपने धर्म से विमु�� हो गया। उस कुलटा को प्रसन्न करने के लिए अजामिल ने अपने पिता की सारी सम्पत्ति भी दे डाली व अपनी कुलीन नवविवाहिता पत्नी तक का त्याग कर दिया। धन पाने की चेष्टा में वह पतित कभी बटोहियों को बाँध कर उन्हें लूट लेता, कभी लोगों को जुए के छल से हरा देता, किसी का धन धोखा-धड़ी से ले लेता तो किसी का चुरा लेता। इस प्रकार उसकी आयु का एक बहुत बड़ा भाग, 88 वर्ष बीत गये और वह वेश्या के 10 पुत्रों का लालन-पालन करता रहा।
अजामिल ने किसी सत्पुरुष के कहने पर अपने सबसे छोटे पुत्र का नाम ‘नारायण’ रखा। वृद्ध अजामिल ने पुत्र मोह में अपना सम्पूर्ण ह्रदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था। उसकी तोतली बोली सुनकर अजामिल फूला न समाता, उसे अपने साथ ही खिलाता-पिलाता व उसी के मोहपाश में बंधा रहता। वह मूढ़ इस बात को जान ही ना पाया कि काल उसके सर पर आ पहुँचा है।
अजामिल की मृत्यु का समय आ पहुँचा। उसने देखा कि उसे ले जाने के लिए अत्यंत भयावने तीन यमदूत आये हैं, जिनके हाथों में फाँसी की रस्सी है, मुँह टेढ़े-मेढे हैं और शरीर के रोएँ खड़े हुए हैं। उस समय बालक नारायण वहाँ से कुछ दूरी पर खेल रहा था। यमदूतों की भयावह छवि से व्याकुल अजामिल ने बहुत ऊँचे स्वर से पुकारा- ‘नारायण’ ‘नारायण’। भगवान के पार्षदों ने देखा कि यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान नारायण का नाम ले रहा है अतः वे झटपट वहाँ आ पँहुचे। उस समय यमदूत अजामिल के शरीर में से उसके सूक्ष्म शरीर को खींच रहे थे। चारों विष्णु दूतों ने उन्हें बलपूर्वक रोका।
यमदूतों ने कहा कि इस पापी अजामिल ने शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करके स्वच्छंद आचरण किया है। इसने अनेकों वर्षों तक वेश्या के मल-समान अपवित्र अन्न से अपना जीवन व्यतीत किया है। इसका सारा जीवन पापमय है और इस पापी के पापों का प्रायश्चित दंडपाणि भगवान यमराज के पास नरक यातनायें भोगकर ही होगा।
भगवान के पार्षदों ने कहा- यमदूतों! इसने कोटि जन्म की पाप राशि का पूरा-पूरा प्रायश्चित कर लिया है क्योंकि इसने विवश हो कर ही सही, भगवान के परम कल्याणमय (मोक्षप्रद) नाम का उच्चारण किया है। जिस समय इसने ‘नारायण’ इन चार अक्षरों का उच्चारण किया, उसी समय इस पापी के समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया। भगवन्नाम उच्चारण बड़े से बड़े पाप को काटने की सामर्थ्य रखता है क्योंकि भगवान के नाम के उच्चारण से मनुष्य की बुद्धि भगवान के गुण, लीला और स्वरुप में रम जाती है और स्वयं भगवान की भी उसके प्रति आत्मीय बुद्धि हो जाती है।
��ंकेत में, परिहास में, तान अलापने में अथवा किसी की अवहेलना करने में भी यदि कोई ‘नाम’ उच्चारण करे तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य गिरते समय, पैर फिसलते समय, अंग भंग होते समय, साँप के डसते समय, आग में जलते समय व चोट लगते समय भी विवशता से ‘हरि-हरि’ कहकर भगवान के नाम का उच्चारण कर लेता है, वह यम यातना का पात्र नहीं रह जाता।
यमदूतों! जैसे जाने या अनजाने में ईंधन से अग्नि का स्पर्श हो जाए तो वह भस्म हो ही जाता है, वैसे ही जान बूझकर या अनजाने में, भगवान के नामों का संकीर्तन करने से मनुष्य के सारे पाप भस्म हो जाते हैं। जैसे कोई परम शक्तिशाली अमृत को उसका गुण न जान कर अनजाने में पी ले, तो भी अमृत उसे अमर बना ही देता है वैसे ही अनजाने में उच्चारण करने पर भी भगवान का नाम अपना फल देकर ही रहता है। अजामिल ने श्री भगवान का नाम नारायण का उच्चारण किया है अतः यमदूतों तुम अजामिल को मत ले जाओ।
भगवान के पार्षदों ने भागवत धर्म का पूरा-पूरा निर्णय सुना दिया व अजामिल को यमदूतों के पाश से बचा कर मृत्यु के मुख से छुड़ा लिया।
अजामिल ने यमदूतों व विष्णुदूतों के सारे संवाद को देखा व सुना। वह यमदूतों के फंदे से छुटकर निर्भय व स्वस्थ हो गया। सर्व पापहारी भगवान की महिमा सुनने से अजामिल के ह्रदय में शीघ्र ही भक्ति का उदय हो गया। उसे अपने जीवन पर बहुत पश्चाताप होने लगा। उसके ह्रदय में संसार के प्रति तीव्र वैराग्य होने लगा। अजामिल सबके संबंध और मोह को छोड़कर हरिद्वार चला गया। योगमार्ग व आत्म चिंतन का आश्रय लेकर अजामिल ने इन्द्रियों, मन व बुद्धि को विषयों से पृथक कर भगवान में लीन कर दिया। तब उसने देखा कि उसके सामने वही चारों विष्णुदूत खड़े हैं, जिन्हें उसने पहले देखा था। अजामिल ने सर झुका कर उन्हें नमस्कार किया। उनका दर्शन पाने के बाद अजामिल ने उसी तीर्थ हरिद्वार में गंगा के तट पर अपना शरीर त्याग दिया और तत्काल भगवान के पार्षदों के साथ स्वर्णमय विमान पर आरूढ़ होकर आकाशमार्ग से भगवान लक्ष्मीपति के निवास स्थान बैंकुठ को चला गया।
शिक्षा:- 1. भगवान के नाम में इतने पापों को काटने की शक्ति है, जितने पाप मनुष्य कर भी नहीं सकता।
2. जो मनुष्य मोहग्रस्त होकर घर गृहस्थी का ही बोझा ढोते रहते हैं व भगवन्नाम के दिव्य रस से विमुख हैं, वे ही बार-बार नरक यातनाओं व जन्म-मरण के चक्र में फंसने के लिए धर्माधिकरी यमराज के सम्मुख लाए जाते हैं।
3. बड़े से बड़े पापों का सर्वोत्तम, अंतिम और पाप वासनाओं को भी निर्मूल कर डालने वाला प्रायश्चित यही है कि केवल श्री भगवान के गुणों, लीलाओं और नामों ��ा कीर्तन किया जाए। भगवान के आश्रित भक्तों की ओर यमदूत आँख उठा कर भी नहीं देखते।
*कलियुग केवल नाम आधारा।*
*सिमर सिमर नर उतरहिं पारा।।*
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hindinewsmanch · 11 months ago
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क्या है यह DINK : DINK आजकल सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड कर रहा है। इस फ्रेज का मतलब है Dual Income No Kids यानी दोहरी आय, कोई संतान नहीं । आजकल कई जोड़े दोहरी आय और कोई बच्चा नहीं का विकल्प को चुन रहे हैं।
यह शादी के लिए एक ऐसी शर्त या समझौता है जिसमें यह जोड़े बच्चे मुक्त जीवन चाहते हैं, जिसमें यह बच्चों के लालन पालन की जिम्मेदारियां से मुक्त होकर अपना समय और पैसा अपनी खुद के लग्जरी लाइफ, घूमने फिरने और जीवन के हर ऐशो आराम को भोगने में लगाना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर अब DINK प्लेटफार्म भी उपलब्ध है जहां इस तरह की सोच रखने वाले लोग एक दूसरे को तलाश रहे हैं।
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satyam-mathematics · 1 year ago
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1.अभिभावकों द्वारा बच्चों के लालन-पालन की 5 टिप्स (5 Tips for Parents to Raise Children),बच्चों के लालन-पालन की 5 टिप्स (5 Tips for Raising Children):
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अभिभावकों द्वारा बच्चों के लालन-पालन की 5 टिप्स (5 Tips for Parents to Raise Children) के आधार पर बच्चों की अच्छी तरह से परवरिश की जा सकती है।बच्चों का सही-समुचित लालन-पालन पारिवारिक दायित्व होने के साथ महत्त्वपूर्ण सामाजिक जिम्मेदारी भी है।विगत वर्षों में घर-परिवार की परिस्थितियाँ रिश्तो का ताना-बाना कुछ ऐसा बन पड़ा है कि यह एक अहम सामाजिक मुद्दा बन गया है,क्योंकि यदि बच्चों को प्यार-दुलार व सुधार की मीठी-खट्टी घुट्टी नहीं पिलाई गई तो उनके व्यक्तित्व व जीवन दोनों की नींव कमजोर हो जाती है।
Read More:5 Tips for Parents to Raise Children
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nageshchandramishra · 1 month ago
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विश्व-स्तरीय तकनीकी शिक्षा लेल मातृभाषा मे पढ़ाई- लिखाई’क अनिवार्यता
(*लेखक: नागेश चन्द्र मिश्र,पूर्व अभियंता प्रमुख,झारखंड बिहार)
(Abstract : The author has emphasised the immediate need of promoting world class quality education through the medium of every individual’s own native languages included in the Eighth Schedule of Indian Constitution without too much dependence on English. He has cited some notable engineers’ own experiences quoting the book, “The English Medium Myth : Dismantling Barriers to India’s Growth” by Sankrant Sanu,an IIT luminary.
All the State Centres of Institution of Engineers ( India ) have been requested to come forward for active cooperation, consultation & participation in preparing appropriate courses of study needed from pre - nursery education to lower,medium, higher education in Engineering curriculum as needed by every individual in their own mother tongues for which Sustainable Development Forum,IEI should coordinate with all state centres , States & Central Government’s New Education Policy Initiatives.
At the end of this essay, the author has quoted the perception of Sustainable Development through the spectrum of two Shlokas of Veda and Upanishad . )
मैथिली मे एकटा कहबी छैक,”ऊपर सँ फ़िट फाट,त’र मे मोकामा घाट”,
अर्थात्, बाहर सँ देखबा’ मे तँ खूब नीक,किंतु भीतर मे फोंक - जेकरा अंग्रेज़ी मे “भैक्विटी” कहैत छैक।सरकार भले आई.आई.टी.; एम्स, इंजीनियरिंग - मेडिकल कॉलेज’क जाल पूरा देश मे बिछा दौ’क , मुदा आजुक पढ़निहार विद्यार्थी आ पढ़ौनिहार शिक्षक कें यदि ठीक से कोनो विषय बुझबा’ आ बुझेबा’ मे दिक़्क़त हेतैन्ह ,तँ “थ्री इडियट्स” सिनेमा वला उपहासजन्य रटन्त विद्या सैह भेटैत रहतैक - ओहेन पढ़ाई- लिखाई सँ देश कें कोन लाभ ? भारत मे, जतेक इंजीनियर सभ विभिन्न संस्थान सँ डिग्री प्राप्त क’ रहल छथि , ओहि मे,लगभग मात्र 20% डिग्रीधारी कें ओहि तरहक योग्यता रहैत छन्हिं जिनका कत्तौ नीक नोकरी-चाकरी भेटैन्ह ।
एतय, प्रसिद्ध शिक्षाविद श्री संक्रांत सानू जे गरूड़ प्रकाशनक सर्वे-सर्वा छथि, हुनक पुस्तक, “द इंगलिश मिडियम मिथ : डिसमैंटलिंग बैरियर्स टू इंडियाज ग्रोथ”क संस्मरण मोन पड़ि रहल अछि । हुनक एक संक्षिप्त विडियोक लिंक अनुलग्न अछि https://youtu.be/Fm6ZjnFsZuY?si=NYjVsnp6Y3AXOAsn , जेकरा अवश्य सुनल जाय । संक्रांत सानू जी , आई.आई.टी. कानपुर सँ कंप्यूटर साइंस मे डिग्री प्राप्त कय लगभग एक दशक माइक्रोसॉफ़्ट कॉरपोरेशन मे नोकरी कयलन्हिं । यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस,ऑस्टिन सँ छह गोट टेक्नॉलजी पेटेंट हुनक नामे छन्हिं । एक बेर , ओ अपन ‘अल्मा मेटर’ आई.आई. टी. कानपुर’क फोर्थ ईयर कम्प्यूटर साइंस क्लास’क विद्यार्थी सभक बीच आबि हुनका लोकनिक प्रमुख दिक़्क़त सँ अवगत होअए चाहलाह । हुनका ई देखि-सुनि अपार दुख भेलन्हिं जे अधिकांश विद्यार्थी’क सभसँ पैघ अवरोधक, अंग्रेज़ी भाषा छलैक । तहिये से , श्री संक्रांत सानू , अपन देश वापस आबि, भारतीय भाषाक माध्यम सँ स्कूल - कॉलेज मे पढ़ाई-लिखाई होइक - अइ महायज्ञ मे तत्पर छथि ।
वर्तमान सरकार’क “नव शिक्षा नीति” (न्यू एजुकेशन पॉलिसी) मे , सभ क्षेत्रीय भाषाक माध्यम सँ प्राथमिक,माध्यमिक आ उच्च शिक्षा’क पढ़ाई-लिखाई होइक - ई प्रावधान प्रमुखता सँ कयल गेल अछि जेकर हम क़ायल छी ।
वाल्यावस्थे सँ, शिक्षा -साहित्यक सान्निध्य में लालन-पालन भेला सँ मातृभाषा मैथिली सहित हिन्दी-अंग्रेज़ी- संस्कृत आ अन्य सभ क्षेत्रीय भाषा सँ प्रेम अछि । प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स’क उक्ति, “व्हाट इज मॉस्ट पर्सनल इज मॉस्ट जेनरल”क अनुभव सँ हमरा ई मानबा मे कोनो संकोच नहिँ अछि जे जहिया सँ होश भेल - तहिये सँ जे कोनो विचार मोन मे पहिने अबैए - ओ मातृभाषा मैथिलीए मे अबैत अछि ; क्रमिक रूप सँ , हिन्दी आ अंग्रेज़ी भाषा में ओकरा रूपान्तरित करबाक अभ्यास भेल गेल । एहेन कतेको ब्रिलियंट सहपाठी कें देखलयैन्ह जे कोनो विषयक पूर्ण ज्ञान रहलाक बादो, अंग्रेज़ी भाषा मे ओकरा पढ़बा- लिखबा मे स्ट्रगल करैत रहलाह ।
हमरा अपनहुँ, अंग्रेज़ी उच्चारण आ ऐक्सेंट बुझबा’ मे स्कूली शिक्षाक दौरान हरदम दिक़्क़त होइते रहल; इंजीनियरिंग कॉलेज मे जहिया पढ़ैत रही आ सिनेमा हॉल मे अंग्रेज़ी सिनेमा देखी - बहुत कम्मे बुझियैक जे कोन पात्र की बजलैक - हॉल मे देखनहार दर्शक सब कोनो सीन कें देखि-सुनि हँसय, तँ बिना बुझनहुँ, हमहूँ हँसय लागी - जे कमज़ोरी अइ बुढ़ारी धरि एखनो विद्यमान अछि - बिना सब-टाइटिल देखने पढ़ने एखनो बहुतो रास डायलॉग ठीक सँ बुझबा मे दिक़्क़त होइते अछि ।
अइ सँ, ई सद्यः अनुभूति कयल जा सकैत अछि जे कोनो मौलिक विषय ठीक सँ बुझबाक लेल जेना हमरा अपन मातृभाषा मैथिलीक कोरा-कंधा’क आवश्यकता पड़ैत अछि - ओहने आवश्यकता कोनो तेलुगू भाषा-भाषी कें सेहो धीया-पूता सँ होइते हेतैन्हि; तेलुगू मे पढ़ाई-लिखाई’क माध्यम सँ प्राथमिक, माध्यमिक आ उच्च - उच्चतर शिक्षा भेटैत रहला पर हुनका कतेक उपयोगी सिद्ध होइत हेतैन्हिं- से स्वत: अनुमान कय सकैत छी ।एहने आवश्यकता विभिन्न क्षेत्रीय भाषा-भाषी कें होइत हेतन्हिं ।
तैं, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया)क सस्टेनेबल डेवलपमेंट फोरम सँ हम आग्रह करबन्हिं जे प्रत्येक स्टेट सेंटर सँ कॉर्डिनेट कय संप्रति संविधानक अष्टम सूची में शामिल 22 भाषा : Assamese, Bengali, Bodo, Dogri, Gujarati, Hindi, Kannada, Kashmiri, Konkani, Maithili, Malayalam, Manipuri, Marathi, Nepali, Oriya, Punjabi,Santhali, Sanskrit, Sindhi, Tamil, Telugu, Urdu
मे प्राथमिक, माध्यमिक आ उच्च शिक्षा, साइंस टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग वग़ैरह कोर्सक पढाई -लिखाई मे गुणवत्तापूर्ण शिक्षाक उन्नति आ विकास मे सक्रिय योगदान कोना दय सकैत छथि, ताहि पर गंभीरता सँ विचार करबाक कृपा करथि ।
ई. अजय कुमार सिन्हा, चेयरमैन,सस्टेनेबल डेवलपमेंट फोरम,इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) सँ ई जानि परम आनंदित भेलहुँ जे इंस्टीट्यूशनक पत्रिका “अभियंता- बंधु”क आगामी विशेष अंक मे विभिन्न क्षेत्रीय भाषाक उपयुक्त लेख प्रकाशित हेतैक जाहि हेतु , हमरो नोत भेटल जे मैथिली मे एक लेख लिखि पठाबी - प्रिय अजय बाबूक प्रति हम आभार प्रगट करैत छी ( इंस्टिट्यूशन सँ एकटा विशेष अनुरोध जे ‘अभियंता बहीन’ लोकनिक सम्मान आ ‘जेण्डर मेनस्ट्रिमिंग’क ख़ातिर, अइ पत्रिका’क नाम “अभियंता बंधु_बांधवी” जँ राखल जा’ सकय - तँ, अपने लोकनि कृपया विचार करियैक )।
अंत मे , ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट’क जे स्वरूप हमर मोन मे अभरैत अछि, ओहि वेद-उपनिषद्’क निम्नांकित दू गोट श्लोक कें उद्धरित कए , अपन लेख कें समेट रहल छी :-
पश्येम शरद: शतम्
जीवेम शरद: शतम्
बुद्ध्येम शरद: शतम्
रोहेम शरद: शतम्
पूषेम शरद: शतम्
भवेम शरद: शतम्
भूयेम शरद: शतम्
भूयसी शरद: शतात्
( अथर्व वेद , काण्ड 19 , सूक्त 67 )
यानि ,  – सौ बर्ष धरि देखी; सौ बर्ष धरि जीबी ; सौ बर्ष धरि बुद्धि सक्षम रहए; सौ वर्ष धरि वृद्धि होइत रहए ; सौ वर्ष पुष्टि-पोषण होइत रहए ; सौ वर्ष धरि आभामंडल बनल रहए ;सौ वर्ष धरि पवित्रता बन�� रहए;सौ वर्षक आगुओ, ई सब कल्याणकारी योग बनल रहए ।
“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥”
( बृहदकारण्य उपनिषद् )
( ओ पूर्ण छल /सृष्टि उत्पत्ति से पहिनहुँ सँ , उत्पत्ति के बादो ई पूर्ण अछि , माने जे एक पूर्ण सँ दोसर पूर्ण उत्पन्न भेल ओहो पूर्ण अछि। पूर्ण से पूर्ण निकालि दियौ, तैयो, बाद मे जे बचल अछि - ओहो पूर्ण अछि ! ओम्! शांति! शांति! शांति! )
🇮🇳जय हिन्द🇮🇳
————————————————————————————————
*Nagesh Chandra Mishra, Former Engineer-In-Chief, Drinking Water & Sanitation Department ( P.H.E.D. ) & Executive Director, ( PMU ) HRD/IEC , Jharkhand & Bihar is the Life Member of Institution of Engineers since 1970s . He is Founder Chairman, Indian Water Works Association, Bihar as well that of Jharkhand. He Founded Visvesvaraya Sanitation & Water Academy ( ViSWA ) at Ranchi with the active support of State & Central Govt. along with UNICEF.
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jyotis-things · 1 year ago
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( #Muktibodh_part143 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part144
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 278-279
‘‘ऋषि रामानन्द, सेऊ, सम्मन तथा नेकी व कमाली के पूर्व जन्मों का ज्ञान’’
ऋषि रामानन्द जी का जीव सत्ययुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सत्य सुकृत नाम से मिले थे। त्रेता युग में वह वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनिन्द्र नाम से शिशु रूप में प्राप्त हुए थे तथा कमाली वाली आत्मा सत्य युग में विद्याधर की पत्नी दीपिका थी। त्रेता युग में सूर्या नाम की वेदविज्ञ ऋषि की पत्नी थी। उस समय इन्होनें परमेश्वर को पुत्रवत् पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण ये आत्माएँ परमात्मा को चाहने वाली थी।
कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था। ऋषि रामानन्द व कमाली वाली आत्माएँ ही सत्ययुग में ब्राह्मण विद्याधर तथा ब्राह्मणी दीपीका वाली आत्माएँ थी जिन्हें ससुराल
से आते समय कबीर परमेश्वर एक तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप में मिले थे। यही आत्माएँ त्रेता युग में (वेदविज्ञ तथा सूर्या) ऋषि दम्पति थे। जिन्हें परमेश्वर शिशु रूप में प्राप्त
हुए थे। सम्मन तथा नेकी वाली आत्माएँ द्वापर युग में कालू वाल्मीकि तथा उसकी पत्नी गोदावरी थी। जिन्होंने द्वापर युग में परमेश्वर कबीर जी का शिशु रूप में लालन-पालन किया था। उसी पुण्य के फल स्वरूप परमेश्वर ने उन्हें अपनी शरण में लिया था। सेऊ (शिव) वाली आत्मा द्वापर में ही एक गंगेश्वर नामक ब्राह्मण का पुत्र गणेश था। जिसने अपने पिता के घोर
विरोध के पश्चात् भी मेरे उपदेश को नहीं त्यागा था तथा गंगेश्वर ब्राह्मण वाली आत्मा कलयुग में शेख तकी बना। वह द्वापर युग से ही परमेश्वर का विरोधी था। गंगेश्वर वाली आत्मा शेख
तकी को काल ब्रह्म ने फिर से प्रेरित किया। जिस कारण से शेख तकी (गंगेश्वर) परमेश्वर कबीर जी का शत्रु बना। भक्त श्री कालू तथा गोदावरी का गणेश माता-पिता तुल्य सम्मान करता
था। रो-2 कर कहता था काश आज मेरा जन्म आप (वाल्मीकि) के घर होता। मेरे (पालक) माता-पिता (कालू तथा गोदावरी) भी गणेश से पुत्रवत् प्यार करते थे। उनका मोह भी उस
बालक में अत्यधिक हो गया था। इसी कारण से वे फिर से उसी गणेश वाली आत्मा अर्थात् सेऊ के माता-पिता (नेकी तथा सम्मन) बने। सम्मन की आत्मा ही नौशेरवाँ शहर में नौशेरखाँ राजा बना। फिर बलख बुखारे का बादशाह अब्राहिम अधम सुलतान हुआ तब उसको पुनः भक्ति पर
लगाया।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 428-455, 461-464, 473-477 :-
महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन।
दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।428।।
मैं अबिगत गति सें परै, च्यारि बेद सें दूर।
दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।429।।
सकल सिंध भरपूर हूं, खालिक हमरा नाम।
दासगरीब अजाति हूं, तैं जूं कह्या बलि जांव।।430।।
जाति पाति मेरै नहीं, बस्ती है बिन थाम।
दासगरीब अनिन गति, तन मेरा बिन चाम।।431।।
नाद बिंद मेरे नहीं, नहीं गुदा नहीं गात। दासगरीब शब्द सजा, नहीं किसी का साथ।।432।।
सब संगी बिछरू नहीं, आदि अंत बहु जांहि।
दासगरीब सकल बसूं, बाहर भीतर मांहि।।433।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अबिगत सत्य कबीर।।434।।
अनंत कोटि सलिता बहैं, अनंत कोटि गिरि ऊंच।
दास गरीब सदा रहूं, नहीं हमारै कूंच।।435।।
पौहमी धरणि आकाश में, मैं व्यापक सब ठौर।
दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।436।।
मैं सतगुरु मैं दास हूँ, मैं हंसा मैं बंस। दास गरीब दयाल मैं, मैं ही करूं पाप बिध्वंस।।437।।
ममता माया हम रची, काल जाल सब जीव।
दास गरीब प्राणपद, हम दासातन पीव।।438।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम।
दासगरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।439।।
सुनि रामानंद राम मैं, मैं बावन नरसिंह। दास गरीब सर्व कला, मैं ही व्यापक सरबंग।।440।।
हमसे लक्ष्मण हनुमंत हैं, हमसे रावण राम।
दास गरीब सती कला, सबै हमारे काम।।441।।
हम मौला सब मुलक में, मुलक हमारै मांहि।
दास गरीब दयाल हम, हम दूसर कछु नांहि।।442।।
ताना बाना बीनहूं, पूरण पेटै सूत।
दास गरीब नली फिरै, दम खोजैं अनभूत।।443।।
दम खोजैं देही तजैं, श्वास उश्वास गुंजार।
दास गरीब समोयले, उलटि अपूठा तार।।444।।
हम चरखा हम कातनी, हमहीं कातनहार।
दास गरीब तीजंन पर्या, हम ताकू ततसार।।445।।
हमहीं बाड़ी बंनि बंनैं, हमैं बिनौला जाति।
दास गरीब चंद सूर हम, हमहीं दिबस अरु रा��।।446।।
हम से हीं इंद्र कुबेर हैं, ब्रह्मा बिष्णु महेश।
दास गरीब धरम ध्वजा, धरणि रसातल शेष।।447।।
हम से हीं बरन बिनांन हैं, हम से हीं जम कुबेर।
दास गरीब हरि होत हम, हम कंचन सुमेर।।448।।
हम मोती मुक्ताहलं, हम दरिया दरबेश। दास गरीब हम नित रहैं, हम उठि जात हमेश।।449।।
हमहीं लाल गुलाल हैं, हम पारस पद सार।
दास गरीब अदालतं, हम राजा संसार।।450।।
हम से ही पानी हम पवन हैं, हम से हीं धरणि अकाश।
दास गरीब तत्त्व पंच में, हमहीं शब्द निबास।।451।।
हम पारिंग हम सुरति हैं, हम नलकी हम नाद।
दास गरीब नगन मगन, हम बिरक्त हम साध।।452।।
सुनि स्वामी सति भाखहूं, झूठ न हमरै रिंच।
दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।453।।
हम मुक्ता हम नहीं बंध में, हम ख्याली खुसाल।
दास गरीब सब सृष्टि में, टोहत हैं हंस लाल।। 454।।
हम रोवत हैं सृष्टि कूं, सृष्टि रोवती मोहि।
दासगरीब बिजोग कूं, बूझै और न कोय।।455।।
सतगुण रजगुण तमगुणं, रज बीरज हम कीन।
गरीबदास सब सकल शिर, हमैं दुनी हम दीन।।461।।
हम भिक्षुक कंगाल कुल, हम दाता अबदाल।
गरीब दास मैं मागिहूं, मैं देऊं नघ माल।।462।।
माल ताल सरबर भरे, संख असंखौं गंज।
गरीब दास एक रती बिन, लेन न देऊं अंज।।463।।
जेता अंजन आंजिये, चिसम्यौं में चमकंत।
गरीब दास हरि भक्ति बिन, माल बाल ज्यूं जंत।।464।।
गगन सुंन गुप्त रहूं, हम प्रगट प्रवाह। गरीबदास घट घट बसूं, बिकट हमारी राह।।473।।
आवत जात न दीखहूं, रहता सकल समीप।
गरीबदास जल तरंग हूं, हमही सायर सीप।।474।।
मैं मुरजीवा आदि का, नघ माणिक ल्यावंत।
गरीबदास सर समंद में, गोता गैब लगंत।।475।।
गोता लाऊं स्वर्ग सैं, फिरि पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।476।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव।
गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नांव।।477।।
क्रमशः________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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pradeepdasblog · 1 year ago
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 278-279
‘‘ऋषि रामानन्द, सेऊ, सम्मन तथा नेकी व कमाली के पूर्व जन्मों का ज्ञान’’
ऋषि रामानन्द जी का जीव सत्ययुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सत्य सुकृत नाम से मिले थे। त्रेता युग में वह वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनिन्द्र नाम से शिशु रूप में प्राप्त हुए थे तथा कमाली वाली आत्मा सत्य युग में विद्याधर की पत्नी दीपिका थी। त्रेता युग में सूर्या नाम की वेदविज्ञ ऋषि की पत्नी थी। उस समय इन्होनें परमेश्वर को पुत्रवत् पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण ये आत्माएँ परमात्मा को चाहने वाली थी।
कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था। ऋषि रामानन्द व कमाली वाली आत्माएँ ही सत्ययुग में ब्राह्मण विद्याधर तथा ब्राह्मणी दीपीका वाली आत्माएँ थी जिन्हें ससुराल
से आते समय कबीर परमेश्वर एक तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप में मिले थे। यही आत्माएँ त्रेता युग में (वेदविज्ञ तथा सूर्या) ऋषि दम्पति थे। जिन्हें परमेश्वर शिशु रूप में प्राप्त
हुए थे। सम्मन तथा नेकी वाली आत्माएँ द्वापर युग में कालू वाल्मीकि तथा उसकी पत्नी गोदावरी थी। जिन्होंने द्वापर युग में परमेश्वर कबीर जी का शिशु रूप में लालन-पालन किया था। उसी पुण्य के फल स्वरूप परमेश्वर ने उन्हें अपनी शरण में लिया था। सेऊ (शिव) वाली आत्मा द्वापर में ही एक गंगेश्वर नामक ब्राह्मण का पुत्र गणेश था। जिसने अपने पिता के घोर
विरोध के पश्चात् भी मेरे उपदेश को नहीं त्यागा था तथा गंगेश्वर ब्राह्मण वाली आत्मा कलयुग में शेख तकी बना। वह द्वापर युग से ही परमेश्वर का विरोधी था। गंगेश्वर वाली आत्मा शेख
तकी को काल ब्रह्म ने फिर से प्रेरित किया। जिस कारण से शेख तकी (गंगेश्वर) परमेश्वर कबीर जी का शत्रु बना। भक्त श्री कालू तथा गोदावरी का गणेश माता-पिता तुल्य सम्मान करता
था। रो-2 कर कहता था काश आज मेरा जन्म आप (वाल्मीकि) के घर होता। मेरे (पालक) माता-पिता (कालू तथा गोदावरी) भी गणेश से पुत्रवत् प्यार करते थे। उनका मोह भी उस
बालक में अत्यधिक हो गया था। इसी कारण से वे फिर से उसी गणेश वाली आत्मा अर्थात् सेऊ के माता-पिता (नेकी तथा सम्मन) बने। सम्मन की आत्मा ही नौशेरवाँ शहर में नौशेरखाँ राजा बना। फिर बलख बुखारे का बादशाह अब्राहिम अधम सुलतान हुआ तब उसको पुनः भक्ति पर
लगाया।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 428-455, 461-464, 473-477 :-
महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन।
दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।428।।
मैं अबिगत गति सें परै, च्यारि बेद सें दूर।
दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।429।।
सकल सिंध भरपूर हूं, खालिक हमरा नाम।
दासगरीब अजाति हूं, तैं जूं कह्या बलि जांव।।430।।
जाति पाति मेरै नहीं, बस्ती है बिन थाम।
दासगरीब अनिन गति, तन मेरा बिन चाम।।431।।
नाद बिंद मेरे नहीं, नहीं गुदा नहीं गात। दासगरीब शब्द सजा, नहीं किसी का साथ।।432।।
सब संगी बिछरू नहीं, आदि अंत बहु जांहि।
दासगरीब सकल बसूं, बाहर भीतर मांहि।।433।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अबिगत सत्य कबीर।।434।।
अनंत कोटि सलिता बहैं, अनंत कोटि गिरि ऊंच।
दास गरीब सदा रहूं, नहीं हमारै कूंच।।435।।
पौहमी धरणि आकाश में, मैं व्यापक सब ठौर।
दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।436।।
मैं सतगुरु मैं दास हूँ, मैं हंसा मैं बंस। दास गरीब दयाल मैं, मैं ही करूं पाप बिध्वंस।।437।।
ममता माया हम रची, काल जाल सब जीव।
दास गरीब प्राणपद, हम दासातन पीव।।438।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम।
दासगरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।439।।
सुनि रामानंद राम मैं, मैं बावन नरसिंह। दास गरीब सर्व कला, मैं ही व्यापक सरबंग।।440।।
हमसे लक्ष्मण हनुमंत हैं, हमसे रावण राम।
दास गरीब सती कला, सबै हमारे काम।।441।।
हम मौला सब मुलक में, मुलक हमारै मांहि।
दास गरीब दयाल हम, हम दूसर कछु नांहि।।442।।
ताना बाना बीनहूं, पूरण पेटै सूत।
दास गरीब नली फिरै, दम खोजैं अनभूत।।443।।
दम खोजैं देही तजैं, श्वास उश्वास गुंजार।
दास गरीब समोयले, उलटि अपूठा तार।।444।।
हम चरखा हम कातनी, हमहीं कातनहार।
दास गरीब तीजंन पर्या, हम ताकू ततसार।।445।।
हमहीं बाड़ी बंनि बंनैं, हमैं बिनौला जाति।
दास गरीब चंद सूर हम, हमहीं दिबस अरु रात।।446।।
हम से हीं इंद्र कुबेर हैं, ब्रह्मा बिष्णु महेश।
दास गरीब धरम ध्वजा, धरणि रसातल शेष।।447।।
हम से हीं बरन बिनांन हैं, हम से हीं जम कुबेर।
दास गरीब हरि होत हम, हम कंचन सुमेर।।448।।
हम मोती मुक्ताहलं, हम दरिया दरबेश। दास गरीब हम नित रहैं, हम उठि जात हमेश।।449।।
हमहीं लाल गुलाल हैं, हम पारस पद सार।
दास गरीब अदालतं, हम राजा संसार।।450।।
हम से ही पानी हम पवन हैं, हम से हीं धरणि अकाश।
दास गरीब तत्त्व पंच में, हमहीं शब्द निबास।।451।।
हम पारिंग हम सुरति हैं, हम नलकी हम नाद।
दास गरीब नगन मगन, हम बिरक्त हम साध।।452।।
सुनि स्वामी सति भाखहूं, झूठ न हमरै रिंच।
दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।453।।
हम मुक्ता हम नहीं बंध में, हम ख्याली खुसाल।
दास गरीब सब सृष्टि में, टोहत हैं हंस लाल।। 454।।
हम रोवत हैं सृष्टि कूं, सृष्टि रोवती मोहि।
दासगरीब बिजोग कूं, बूझै और न कोय।।455।।
सतगुण रजगुण तमगुणं, रज बीरज हम कीन।
गरीबदास सब सकल शिर, हमैं दुनी हम दीन।।461।।
हम भिक्षुक कंगाल कुल, हम दाता अबदाल।
गरीब दास मैं मागिहूं, मैं देऊं नघ माल।।462।।
माल ताल सरबर भरे, संख असंखौं गंज।
गरीब दास एक रती बिन, लेन न देऊं अंज।।463।।
जेता अंजन आंजिये, चिसम्यौं में चमकंत।
गरीब दास हरि भक्ति बिन, माल बाल ज्यूं जंत।।464।।
गगन सुंन गुप्त रहूं, हम प्रगट प्रवाह। गरीबदास घट घट बसूं, बिकट हमारी राह।।473।।
आवत जात न दीखहूं, रहता सकल समीप।
गरीबदास जल तरंग हूं, हमही सायर सीप।।474।।
मैं मुरजीवा आदि का, नघ माणिक ल्यावंत।
गरीबदास सर समंद में, गोता गैब लगंत।।475।।
गोता लाऊं स्वर्ग सैं, फिरि पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।476।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव।
गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नांव।।477।।
क्रमशः________________
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krishnadas22 · 1 year ago
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पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी: सभी आत्माओं के जनक - Jagat Guru Rampal Ji
"परमात्मा कबीर साहेब का लालन पालन
नीरू नीमा शिशु रूप में कबीर परमात्मा को घर ले आये। परमेश्वर कबीर बहुत सुंदर थे और पूरी काशी उस सुंदर मुखड़े वाले परमेश्वर के अवतार को देखने के लिए चली आयी। किसी ने भी इतना सुंदर बालक पहले कभी नहीं देखा था। काशीवासी स्वयं कह रहे थे कि इतना सुंदर बालक कभी नहीं देखा। काशी के स्त्री पुरुष कह रहे थे कि किसी ब्रह्मा-विष्णु-महेश में से किसी का अवतरण हुआ है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने कहा कि यह कोई अन्य परम् शक्ति है। कबीर परमेश्वर का सुंदर मुखड़ा देखकर सभी पूछना भूल गए कि इस बालक को आप कहाँ से लाये हैं?
 
25 दिनों तक कबीर साहेब ने कुछ भी ग्रहण नहीं किया। इस बात से नीरू और नीमा अत्यंत दुखी हुए। दुखी होकर नीरू-नीमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की क्योंकि वे भगवान शिवजी के अनुयायी थे। तब शिवजी एक साधु का वेश बनाकर आये तथा नीमा ने अपनी सारी व्यथा शिवजी को सुनाई। शिवजी ने परमेश्वर कबीर साहेब को गोद में लिया, तब परमेश्वर कबीर ने शिवजी से संवाद किया एवं उन्हें प्रेरणा दी। तब कबीर जी के बताए अनुसार शिवजी ने नीरू को कुंवारी गाय लाने का आदेश दिया। ��ुंवारी गाय पर हाथ रखते ही गाय ने दूध देना प्रारंभ कर दिया और वह दूध कबीर साहेब ने पिया। परमात्मा की इस लीला का ज़िक्र वेदों में भी है। (ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9)
 
जब काजी मुल्ला कबीर साहेब के नामकरण के लिए आये तब उन्होंने कुरान खोली लेकिन पुस्तक के सभी अक्षर कबीर-कबीर हो गए। उन्होंने पुनः प्रयत्न किया लेकिन तब भी सभी अक्षर कबीर में तब्दील हो गए। तन उनका नाम कबीर रखकर ही चल पड़े। इस तरह कबीर परमात्मा ने अपना नाम स्वयं रखा।
कुछ समय बाद कुछ काजी कबीर साहेब की सुन्नत करने के उद्देश्य से आये तथा कबीर साहेब ने उन्हें एक लिंग के स्थान पर ढेरों लिंग दिखाए जिससे डर कर वे वापस लौट गए। परमात्मा की इस लीला का वर्णन पवित्र कबीर सागर में भी है।
आइए जानें कबीर साहेब ही परमात्मा हैं इसका धर्मग्रंथों में प्रमाण"
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