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#Great_Prophecies_2024
इजरायल के प्रो. हरार के अनुसार
भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई. से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रांति की जड़े मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा।
भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा, पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा।
जो एक धामिक संगठन के आश्रित होंगे।
यही हैं वो महापुरुष
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धरती पर अवतार संत रामपाल जी महाराज
इजरायल के प्रो. हरार के अनुसार भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई. से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रांति की जड़ें मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा। भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा, पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा। जो एक धार्मिक संगठन के आश्रित होगें।
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#SaviorOfTheWorldSantRampalJi
#SantRampalJiMaharaj #trending
धरती पर अवतार संत रामपाल जी महाराज
���जरायल के प्रो. हरार के अनुसार भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई. से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रांति की जड़ें मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा। भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा, पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा। जो एक धार्मिक संगठन के आश्रित होगें।
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धरती पर अवतार संत रामपाल जी महाराज
इजरायल के प्रो. हरार के अनुसार भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई. से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रांति की जड़ें मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा। भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा, पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा। जो एक धार्मिक संगठन के आश्रित होगें।
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#SaviorOfTheWorldSantRampalJi
धरती पर अवतार संत रामपाल जी महाराज
इजरायल के प्रो. हरार के अनुसार भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई. से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रांति की जड़ें मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा। भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा, पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा। जो एक धार्मिक संगठन के आश्रित होगें।
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Military Coup in Syria and Bangladesh
Introduction
Coup in Syria and Bangladesh: साल 2024 खत्म होने वाला है. इस साल कई देशों में राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई. बांग्लादेश से लेकर सीरिया और बुर्किना फासो तक मौजूदा सरकारों को सेना और विरोधियों की ओर से हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने की कोशिशें की गई. हालांकि, इनमें से कुछ लोकतांत्रिक देश भी हैं, जहां लोकतंत्र को समान विकास और सद्भाव सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है.
इन तख्तापलट की घटनाओं ने उन देशों के समाज को हाशिये पर धकेल दिया और उन राष्ट्रों को नियंत्रित करने वाली राजनीतिक प्रणालियों की नाजुकता को भी उजागर किया. साल 2024 में पहली बार सैन्य तख्तापलट की कोशिश 26 जून को बोलीविया में हुई थी. इस दौरान सैनिकों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोला और ला पाज के मुख्य चौक पर कब्जा कर लिया. राष्ट्रपति को हटाने के लिए जनरल जुआन जोस जुनिगा ने सैनिकों और टैंकों का सहारा लिया. हालांकि, बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया है.
Table Of Content
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का पतन
5 अगस्त को देश छोड़कर भागीं शेख हसीना
सीरिया ��ें बशर अल-असद के शासन का अंत
अरब स्प्रिंग ने कैसे बदला सीरिया का नक्शा?
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का पतन
साल 1971 बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वालों स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के सदस्यों को सिविल सेवा नौकरियों में दिए गए आरक्षण को लेकर 1 जुलाई को पहली बार प्रदर्शन देखने को मिला. लाखों की संख्या में छात्र सड़कों पर उतर आए. छात्र के प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने अधिकांश कोटा वापस ले लिया. फिर भी छात्रों ने प्रदर्शन जारी रखा. वह चाहते थे कि बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना पद से इस्तीफा सौंप दें.
यह भी पढ़ें: Syrian Civil War: सीरिया में गृह युद्ध की क्या है वजह और पूरी कहानी
5 अगस्त को देश छोड़कर भागीं शेख हसीना
इसके बाद 4 अगस्त को अचानक से छात्रों ने राजधानी ढाका कूच किया. बढ़ती हिंसा और अशांति के बीच हजारों प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास गणभवन पर हमला कर दिया. इस बीच सेना ने व्यवस्था बहाल करने के प्रयास में कर्फ्यू लगा दिया. अगले दिन ही खबर आई कि शेख हसीना ने 5 अगस्त को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और अपनी बहन शेख रेहाना के साथ देश छोड़ दिया. इस बीच खबर सामने आई कि उनका इरादा राष्ट्र को संबोधित करने का था. हालांकि, वह ऐसा करने में सफल नहीं हो पाई. इस दौरान करीब 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जिसमें प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी भी शामिल थे.
इसके बाद बांग्लादेश की सेना चीफ वकर-उज-जमान ने शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की. नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार प्रमुख बनाया गया. हरनेट फाउंडेशन और हरनेट टीवी की संस्थापक ने बांग्लादेशी ढाका ट्रिब्यून में लिखे अपने लेख में इस प्रदर्शन को अरब स्प्रिंग के समान बताया था. उन्होंने दावा किया था कि बांग्लादेश उन देशों के रास्ते पर न चले जो छात्र आंदोलनों के बाद बिखर गए या अरब स्प्रिंग जैसी विफल क्रांतियों में फंस गए. हालांकि, देश में तनाव अभी भी बना हुआ है. दरअसल, इस्लामी कट्टरपंथी और शेख हसीना के विरोधी अल्पसंख्यकों पर हमले कर रहे हैं.
सीरिया में बशर अल-असद के शासन का अंत
7 दिसंबर को विद्रोहियों ने बशर अल-असद के शासन को उखाड़ फेंक दिया. देश की सत्ता विद्रोही ताकतों के हाथों में चली गई है. विद्रोहियों ने दावा किया कि सीरिया में असद परिवार के क्रूर शासन को खत्म कर वह नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर चुके हैं. उन्होंने दमिश्क में सार्वजनिक इमारतों के बाहर मोर्चा संभाल लिया. अभी यह तय नहीं है कि नई सरकार का नेतृत्व कौन करेगा. हालांकि, यह तय माना जा रहा है कि HTS यानी हयात तहरीर का लीडर मोहम्मद अल-जुलानी नेतृत्व कर सकता है.
बता दें कि 27 नवंबर को HTS ने अलेप्पो, दारा और हमा शहर पर अचानक हमला कर कब्जा कर लिया. इसके बाद सिर्फ एक हफ्ते में ही सीरिया की राजधानी दमिश्क में घुस गए और बिना किसी लड़ाई के शहर पर कब्जा कर लिया. सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को लेकर दावा किया जा रहा है कि वह रूस भाग गए हैं. रूसी सरकारी मीडिया और दो ईरानी अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा है रूस बशर अल-असद के ठिकाने का खुलासा नहीं करेगा.
यह भी पढ़ें: 6 घंटे तक सड़कों पर राइफल ताने खड़े रहे सैनिक, डरे-सहमे लोग! साउथ कोरिया में जानें क्या हुआ
अरब स्प्रिंग ने कैसे बदला सीरिया का नक्शा
बशर अल-असद ने इन्हें कुचलने के लिए घातक बल का इस्तेमाल किया, तो पूरे देश में विरोध प्रदर्शन भड़क गए और क्रूर युद्ध में बदल गया. इस संघर्ष में कई समूह शामिल हो गए और सभी गुट अलग-अलग हितों के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने लगे. इसमें हिज्बुल्लाह, ISIS यानी इस्लामिक स्टेट, फ्री सीरियन आर्मी (FSA), कुर्द विद्रोही लड़ाके, सीरियाई राष्ट्रीय सेना (JWS), जबात फतह अल-शाम, सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (SDF) और हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के लड़ाके बड़े पैमाने पर शामिल हैं.
इस संघर्ष में रूस और ईरान ने बशर अल-असद का साथ दिया था. वहीं, वहीं विपक्षी गुटों को तुर्की, कई पश्चिमी ताकतों और कुछ खाड़ी अरब देशों का समर्थन मिला. सीरिया के कुर्द लड़ाके सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्से�� के बैनर तले सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में संयुक्त राज्य अमेरिका की मुख्य भागीदार हैं. गृहयुद्ध की शुरुआत के बाद से तुर्की की सेना ने HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम को समर्थन दिया है. अब सीरिया में सरकार बदल चुकी है. ऐसे में देश के शासन, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को लेकर कई अहम सवाल खड़े होते हैं.
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Conclusion
बांग्लादेश में तख्तापटल की ताजा घटना वास्तव में पूरे क्षेत्र के लिए चिंताजनक है. भारत के पड़ोस में इससे पहले साल 2022 में श्रीलंका में भी इस तरह की घटना देखने को मिली थी. अब राजनीतिक अस्थिरता में फंसे बांग्लादेश की हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं. धार्मिक कट्टरता हावी होती जा रही है और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं. इसके साथ ही यह तय माना जा रहा है कि बांग्लादेश में साल 2026 से पहले अगले संसदीय चुनाव नहीं होंगे. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार ने यह साफ कर दिया है कि जब तक सिस्टम सही नहीं होता, तब तक कोई चुनाव नहीं होगा.
दूसरी ओर से सीरिया के भविष्य को लेकर भी कई तरह से सवाल खड़े हो रहे हैं. हालांकि यह तय है कि विद्रोही राजधानी को सुरक्षित करने और अराजक सत्ता शून्यता को रोकने की कोशिश करेंगे, लेकिन इस बीच यह भी अहम है कि वह पूरे देश पर अपना नियंत्रण कितनी दूर और कितनी तेजी से बढ़ाएंगे और क्या विद्रोही एकजुट हो पाएंगे. पिछले हफ्ते एक साक्षात्कार में अल-जोलानी ने कहा था कि HTS अपना आक्रमण शुरू करने से पहले ही समूह अपने अगले कदमों के बारे में सोच चुका है. इसके साथ ही साल 2011 में शुरू हुए गृह युद्ध ने आधुनिक युग के सबसे बड़े शरणार्थी संकटों में से एक को जन्म दिया है. सीरिया में युद्ध के कारण लाखों लोग मारे गए हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं. ऐसे में उन्हें फिर से देश में वापस लाना बहुत बड़ी चुनौती है. वैश्विक प्रतिबंधों के बोझ तले सीरिया की अर्थव्यवस्था भी तबाह हो चुकी है.
श्रीलंका, बांग्लादेश और अब सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए विरोध प्रदर्शनों की श्रृंखला एक ही पैटर्न को दिखाती है, जहां जनता के बढ़ते असंतोष आंदोलनों में बदल गए. साथ ही लंबे समय से चली आ रही सरकारों को गिराने में सक्षम है. ऐसे में मीडिल-ईस्ट में ईरान की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं. सीरिया में बशर अल-असद के शासन के पतन के बाद और हिज्बुल्लाह के कमजोर होने से ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ईरान में आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है आर्थिक तंगी और शासन की कथित कमजोरी. हिज्बुल्लाह को लंबे समय से ईरान का सबसे शक्तिशाली गैर-राज्य सहयोगी माना जाता रहा है. हिज्बुल्लाह को ��ीरिया और इजराइल के खिलाफ भारी नुकसान उठाना पड़ा है. सीरिया में ईरान के बड़े पैमाने पर निवेश, तेल निकालने के संयंत्र गायब हो गए हैं.
बता दें कि लोकतंत्र को समान विकास और सद्भाव सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है. हालांकि, लोकतंत्र का पालन करने वाले देशों के बीच अभी भी असमानताएं मौजूद हैं. साथ ही लोकतांत्रिक सरकारों के खिलाफ जिस देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उन सरकारों में तर्क, धैर्य, आपसी समझ और जवाबदेही की कमी है. इन सबके बीच माना जा रहा है कि आने वाले वर्षों में बढ़ते सैन्य तख्तापलट लोकतंत्र के लिए चुनौती बन सकते हैं. ऐसे में मानवीय एजेंसियों को सशस्त्र बलों और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच सामंजस्य के लिए एक आदर्श स्थिति बनाने पर विचार करना अब बेहद जरूरी हो गया है.
साथ ही लोकतांत्रिक विकास के साथ जुड़ी अखंडता और ईमानदारी को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक संरचनाओं की नींव को मजबूत करने की भी सख्त से सख्त जरूरत है. इसके साथ ही लोकतांत्रिक देश की सरकारों को नौकरियां, शिक्षा और नस्लवाद और हिंसा के खिलाफ सुरक्षा को समान रूप से बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए, जिससे नागरिक विकल्प के रूप में सेना का समर्थन करने के लिए प्रवृत्ति न पनप सके, क्योंकि लगातार हो रहे तख्तापलट अक्सर लोकतांत्रिक पतन की ओर ले जाते हैं.
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CIN /पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के घमंड के कारण 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की परंपरा टूटी : डॉ. संजय जायसवाल
पटना, 21 दिसंबर। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह सांसद डॉ. संजय जायसवाल ने आज ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को देश के लिये सबसे बड़ा परिवर्तनशील फैसला बताते हुए कहा कि पहले भी देश मे एक ही बार चुनाव होते थे।उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि कांग्रेस की प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के अहंकार के कारण एक देश एक चुनाव ��ी परंपरा टूट गई। उन्होंने कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगवा दिया।…
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Vishwakhabram: Middle-East में नया Power Struggle शुरू हुआ, Israel और Türkiye की भिड़ंत से दुनिया हैरान
सीरिया में बशर अल-असद के शासन का अंत होने के बाद पश्चिमी एशिया के पुराने दो दुश्मनों के बीच एक बार फिर से कटु प्रतिद्वंद्विता उभर रही है। सीरिया में ईरान और रूस की सबसे प्रभावशाली भूमिका के बजाय इजराइल और तुर्किये अपने परस्पर विरोधी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने का अवसर तलाश रहे हैं। हम आपको बता दें कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और तुर्किये के राष्ट्रपति रजब…
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एक राष्ट्र एक चुनाव - एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक की व्याख्या: विशेष बहुमत, राज्य अनुसमर्थन, जेपीसी की भूमिका
संविधान (129वा��) संशोधन विधेयक, 2024 एक ऐतिहासिक प्रस्ताव है जिसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर, विधेयक का उद्देश्य चुनावी कैलेंडर को सुव्यवस्थित करना, बार-बार होने वाले चुनावों के वित्तीय और प्रशासनिक बोझ को कम करना और शासन में सुधार करना है। इसे प्राप्त करने के…
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Syria Civil War LIVE: असद को रूस में शरण, अमेरिका ने उठाई जवाबदेही की मांग
Syria Civil War में हाल ही में महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आए हैं। सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद और उनके परिवार को रूस ने शरण दी है, जबकि इस्लामिक विद्रोही गठबंधन ने सीरिया पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है। अमेरिका ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए असद को न्याय के कटघरे में लाने की मांग की है। इस लेख में सीरिया के ताजा हालात, विद्रोहियों की जीत, और इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों का विश्लेषण किया जाएगा।
सीरिया का गृहयुद्ध: शुरुआत और वर्तमान स्थिति
2011 में सीरिया में असद के शासन के खिलाफ हुए लोकतांत्रिक प्रदर्शनों से Syria Civil War शुरू हुआ। असद शासन की दमनकारी नीतियों ने विद्रोह को भड़काया और देश को गृहयुद्ध की आग में धकेल दिया। इस संघर्ष ने अब तक 5,00,000 से अधिक लोगों की जान ले ली है और लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं।
विद्रोहि���ों का बढ़ता प्रभाव: प्रमुख शहरों पर नियंत्रण
27 नवंबर, 2024 को विद्रोही गठबंधन, जिसका नेतृत्व हयात तहरीर अल-शाम (HTS) कर रहा है, ने सीरिया के प्रमुख शहरों पर हमले शुरू किए। उन्होंने अल्लेपो और होम्स जैसे प्रमुख शहरों पर कब्जा कर लिया है। Syria Civil War के तहत विद्रोहियों ने हाल ही में राजधानी दमिश्क पर भी नियंत्रण कर लिया, जो इस संघर्ष का एक अहम मोड़ है।
असद को रूस में शरण: अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
विद्रोहियों द्वारा सीरिया के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा करने के बाद, बशर अल-असद और उनका परिवार रूस भाग गए। Syria Civil War की इस बड़ी घटना पर रूस ने असद को शरण दी है, जो उनके लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को दर्शाता है। रूस ने लंबे समय तक असद शासन का समर्थन किया था, और अब यह कदम अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक नई बहस का विषय बन गया है।
अमेरिका की प्रतिक्रिया: असद को न्याय के कटघरे में लाने की मांग
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बशर अल-असद को उनके किए गए अत्याचारों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। बाइडन ने इसे सीरिया के लिए एक “ऐतिहासिक अवसर” बताया, जिससे सीरियाई जनता अपने देश का पुनर्निर्माण कर सकती है। Syria Civil War के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर अमेरिका और रूस के बीच तनाव और बढ़ने की संभावना है।
सीरिया का भविष्य: विद्रोहियों के सामने चुनौतियां
हालांकि विद्रोहियों ने सैन्य जीत हा��िल कर ली है, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती स्थिरता और शांति बहाल करने की है। हयात तहरीर अल-शाम (HTS) को कई देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है, और उनकी राजनीतिक क्षमता पर गंभीर सवाल उठते हैं। Syria Civil War के मद्देनजर, यह देखना होगा कि विद्रोही गुट एकजुट होकर सीरिया के पुनर्निर्माण की दिशा में काम कर पाते हैं या नहीं।
रूस की भूमिका और वैश्विक कूटनीति
असद को शरण देकर रूस ने यह साफ कर दिया है कि वह सीरिया के भविष्य में अहम भूमिका निभाएगा। पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका, रूस के इस कदम को चुनौती दे सकते हैं। Syria Civil War से जुड़े घटनाक्रमों के बाद यह साफ है कि संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को सीरिया के भविष्य के बारे में नई रणनीतियां बनानी होंगी।
मानवाधिकार और शरणार्थियों की स्थिति
सिरिया सिविल वार लाइव में लड़ाई के कारण 3.7 लाख से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं, और उनके लिए मानवीय सहायता की सख्त जरूरत है। सीरिया की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचा पूरी तरह से नष्ट हो चुका है, जिसके पुनर्निर्माण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष:
Syria Civil War से यह साफ हो गया है कि सीरिया का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। असद का देश छोड़कर रूस में शरण लेना विद्रोहियों की जीत है, लेकिन देश में स्थिरता बहाल करना अब एक बड़ी चुनौती होगी। अमेरिका और रूस के बीच कूटनीतिक संघर्ष और सीरिया के पुनर्निर्माण की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण साबित होगी।
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डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय को नैक ने दिया ए प्लस ग्रेड, यूनिवर्सिटी कैंपस में मनाया जश्न
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) ने पांच साल के लिए ए प्लस ग्रेड प्रदान किया है। नैक की ओर से शनिवार को ईमेल के माध्यम से विश्वविद्यालय प्रशासन को यह सूचना दी गई। विश्वविद्यालय ने सात प्रमुख मापदंडों के आधार पर 4 में से 3.33 संचयी ग्रेड बिंदु औसत (सीजीपीए) हासिल किया है, जिससे यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अधिक अनुदान के योग्य हो गया है। इससे पहले 2017 में विश्वविद्यालय को बी डबल प्लस ग्रेड दिया गया था। शनिवार को दोपहर करीब एक बजे यह खबर मिलते ही विश्वविद्यालय परिसर में खुशी की लहर दौड़ गई। कुलपति प्रो. आशु रानी ने खंदारी परिसर में ढोल-नगाड़े बजवाकर इस सफलता का जश्न मनाया। शिक्षकों और कर्मचारियों ने एक-दूसरे का मुंह मीठा कर खुशी का इजहार किया। प्रो. आशु रानी ने बताया कि नैक की सात सदस्यीय टीम ने 24 से 26 अक्टूबर तक विश्वविद्यालय का निरीक्षण किया था। टीम ने न केवल शोध कार्यों का आकलन किया बल्कि शैक्षणिक गुणवत्ता, विवि के रखरखाव और सांस्कृतिक गतिविधियों को भी जांचा। इन सात मानकों पर हुआ मूल्यांकन नैक ने जिन सात बिंदुओं के आधार पर मूल्यांकन किया उनमें शामिल हैं: - पाठ्यक्रम पहलू - शिक्षण अध्ययन और मूल्यांकन - अनुसंधान परामर्श - संसाधन - छात्र समर्थ और प्रगति - शासन और नेतृत्व - नवीनता और श्रेष्ठ प्रणाली ए प्लस ग्रेड मिलने का लाभ छात्र कल्याण अधिकारी प्रो. मोहम्मद अरशद ने बताया कि ए प्लस ग्रेड मिलने से विश्वविद्यालय का एकेडमिक स्तर बेहतर हुआ है। इसके चलते विश्वविद्यालय अब केंद्रीय और राज्य सरकार से अधिक अनुदान प्राप्त कर सकेगा। इससे शिक्षकों के पास नए प्रोजेक्ट्स आएंगे और विद्यार्थियों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इसके अलावा, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षिक आदान-प्रदान के समझौतों में भी सहूलियत मिलेगी, जिससे शोध कार्यों का स्तर उन्नत होगा। टीम में शामिल थे ये सदस्य नैक टीम का नेतृत्व इस्लामिक इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के पूर्व कुलपति प्रो. मुश्ताक अहमद सिद्दीकी ने किया। अन्य सदस्य थे जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रो. रवींद्र कुमार, महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा के प्रो. ईश्वरचंद्र पंडित, वीर सुरेंद्र साई यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के डॉ. देवदत्त मिश्र, श्री शंकराचार्य यूनिवर्सिटी ऑफ संस्कृत के प्रो. वीजी गोपालकृष्णन, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के प्रो. नरेश गायकवाड और डॉ. एमजीआर शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थान के प्रो. वेल्लनकन्नी सिरिल राज। 20 साल में बी से ए प्लस तक का सफर डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय का पहला नैक मूल्यांकन 2004 में हुआ था, जिसमें इसे बी प्लस ��्रेड मिला था। 2017 में इसे बी डबल प्लस ग्रेड मिला और अब 2024 में ए प्लस ग्रेड मिलने से विश्वविद्यालय शीर्ष संस्थानों की सूची में शामिल हो गया है। प्रो. आशु रानी ने इस उपलब्धि का श्रेय शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के सहयोग को दिया और कहा कि विश्वविद्यालय का लक्ष्य अब ए डबल प्लस ग्रेड प्राप्त करना है। टॉप-10 विश्वविद्यालयों में शामिल आईक्यूएसी निदेशक प्रो. संजीव कुमार के अनुसार, यूपी के 28 राज्य विश्वविद्यालयों में से अब केवल 5 के पास ए डबल प्लस और 5 के पास ए प्लस ग्रेड है। इस ग्रेड के साथ ही डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय प्रदेश के टॉप-10 विश्वविद्यालयों में अपनी जगह बना चुका है। विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की स्थापना 1 जुलाई 1927 को हुई थी और इसका मूल अधिकार क्षेत्र आगरा, मध्य भारत और राजपूताना में था। अब यह विश्वविद्यालय आगरा मंडल के चार जिलों तक सीमित है और 649 कॉलेज इसके अंतर्गत आते हैं। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, रामनाथ कोविंद और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व भी इसके छात्र रह चुके हैं। राज्यपाल का ए डबल प्लस का लक्ष्य राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने विश्वविद्यालय को ए डबल प्लस ग्रेड प्राप्त करने का लक्ष्य दिया था और हाल ही में हुए दीक्षांत समारोह में इसकी ओर ध्यान देने का निर्देश भी दिया था। सिविल सोसाइटी ने उठाये सवाल विश्वविद्यालय के ए प्लस ग्रेड मिलने पर सिविल सोसाइटी के सचिव अनिल शर्मा ने छात्रों से जुड़े कई अहम सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “क्या ए प्लस ग्रेड मिलने से सत्र समय पर चलेंगे? मार्कशीट और डिग्री छात्रों को समय पर मिलेंगी? क्या शिक्षा का स्तर उस ऊंचाई तक पहुंचेगा, जिसके लिए यह विश्वविद्यालय प्रसिद्ध था? बिना स्थायी शिक्षकों के क्या शिक्षा का स्तर सुधर पाएगा?" अनिल शर्मा ने कहा कि आज प्रकाशित एक बयान में स्पष्ट किया गया है कि विश्वविद्यालय को अधिक अनुदान प्राप्त होगा, लेकिन यह किसके लिए होगा? उन्होंने कहा, "कम छात्र संख्या वाले पाठ्यक्रमों को बंद करने की योजना है। ओएमआर शीट पर परीक्षा कराने का विरोध ऑटा (ऑल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन) कर रही है। छात्रों के हितों के लिए हमारे कई प्रश्न और चिंताएं हैं।" शर्मा ने विश्वविद्यालय प्रशासन से आग्रह किया कि वह न केवल वित्तीय सहायता प्राप्त करने पर ध्यान दें, बल्कि शिक्षकों की नियुक्ति, शैक्षणिक सत्र को समय पर रखने, और छात्रों के प्रमाणपत्र एवं डिग्रियों को सही समय पर वितरित करने जैसे बुनियादी मुद्दों को भी प्राथमिकता दें। Read the full article
#academicstandards#AnilSharma#civilsociety#Dr.BhimraoAmbedkarUniversity#NAACA+grade#permanentfaculty#studentwelfare#universityfunding#universityreforms
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राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप की पांच सूत्री रणनीति
एलोन मस्क ने शनिवार को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का एक पुराना वीडियो साझा किया, जिसमें बहाली की एक विस्तृत योजना की रूपरेखा बताई गई है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खत्म करो”वामपंथी सेंसरशिप शासन, “कार्यभार ग्रहण करने पर तत्काल कार्रवाई का वादा किया। दिसंबर 2022 के वीडियो में ट्र��प ने कहा था, ”जब मैं राष्ट्रपति बनूंगा, तो सेंसरशिप और सूचना नियंत्रण की इस पूरी सड़ी हुई प्रणाली को बड़े…
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जम्मू कश्मीर में छह साल बाद हटाया गया राष्ट्रपति शासन, सरकार के गठन की तैयारियां हुई तेज
जम्मू कश्मीर में छह साल बाद हटाया गया राष्ट्रपति शासन, सरकार के गठन की तैयारियां हुई तेज #JammuKashmir #Government
Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर से रविवार को राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया, जिससे केंद्र शासित प्रदेश में नयी सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक राजपत्र अधिसूचना जारी की। तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद जून 2017 से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन जारी हुआ था। रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा हस्ताक्षरित अधिसूचना में कहा गया…
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हाई कोर्ट की नस्ली सफाए वाली टिप्पणी के बाद हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लग जाना चाहिए- शाहनवाज़ आलम
लखनऊ, 8 अगस्त 2023। अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा है कि हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट द्वारा नूह और गुरुग्राम में बिना नोटिस के मुस्लिमों के घरों को तोड़ जाने को राज्य द्वारा ‘नस्लीय सफाये’ के समान बताने के बाद हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि जस्टिस जीएस संधावालिया और हरप्रीत कौर जीवन की बेंच ने कल इस आशय की टिप्पणी की थी। कांग्रेस मुख्यालय से…
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Manipur Mein Hinsa ki Nayi Lahar
पिछले साल मई महीने से मणिपुर अशांत है। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच बढ़ चुके संघर्ष में कम से कम 2 सौ लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हुए हैं। अशांति और हिंसा के इस माहौल में सामान्य जनजीवन पूरी तरह बर्बाद हो गया है और महिलाओं, बच्चों की जो दुर्दशा हुई है, वह कल्पना से परे है। अगर देश में मजबूत इरादों वाली सरकार होती तो अब तक मणिपुर में हालात संभालने के ठोस उपाय किए जा चुके होते। इन उपायों में राष्ट्रपति शासन से लेकर मुख्यमंत्री का इस्तीफा, सरकार की बर्खास्ती या खुद प्रधानमंत्री का मणिपुर जाकर स्थिति समझने की पहल करना शामिल हो सकता था।
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History Of Syrian Civil War: Causes, Effects and Current Situation
Introduction Of Syrian Civil War
सीरिया एक प्राचीन भूमि है जिसने पूरे विश्व के इतिहास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है. आज वही प्राचीन शहर गृह युद्ध (Syrian Civil War) की आंच में तेजी से जल रहा है. सीरिया में साल 2011 में गृह युद्ध (Syrian Civil War) छिड़ने के बाद से लेकर अब तक पांच लाख से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. सीरियाई सेना (Syrian Civil War) 7 दिसंबर को दक्षिणी सीरिया के अधिकांश भाग से हट गई, जिसके कारण सीरिया की दो प्रांतीय राजधानी समेत सहित देश के अधिकांश बड़े शहर विद्रोहियों (Syrian Civil War) के कब्जे में आ गए.
Table Of Content
क्या है सीरिया का इतिहास?
सीरिया में कब हुई तख्तापलट की शुरूआत?
UAR के विघटन के बाद कैसे बदली सीरिया की सियासत?
साल 2011 में कैसे हुई सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत?
क्या है सीरिया में गृह युद्ध की पूरी टाइमलाइन?
अब 7 दिसंबर को विद्रोहियों ने बशर अल-असद के शासन को उखाड़ फेंक दिया है. इसमें सबसे बड़ा हाथ है HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम का और उसके कमांडर मोहम्मद अल-जोलानी का. मोहम्मद अल-जोलानी ने ही 50 सालों से चल रहे सीरिया में अल-असद के परिवार की सत्ता और सीरियाई बाथ पार्टी के शासन को कुचल दिया है. दावा यह भी किया जा रहा है कि बशर अल-असद देश छोड़ कर भाग खड़े हुए हैं. सीरियाई सेना और विपक्षी युद्ध निगरानी ने इस बात की पुष्टि कर दी है. ऐसे में हम जानते हैं कि क्या है सीरिया में गृह युद्ध की कहानी और इतिहास.
क्या है सीरिया का इतिहास?
सीरिया के गृह युद्ध (Syrian Civil War) को जानने से पहले जरूरी है सीरिया का इतिहास जानना. सीरियन लॉ जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया पर सीरिया पर कई शासकों ने शासन किया है. इसमें मिस्र, असीरियन, यूनानी, रोमन, बीजान्टिन, उमय्यद खलीफा, अब्बासी खिलाफत, फातिमिद, सेल्जुक तुर्क, जेंगिड, अय्यूबी राजवंश, मामलुक, ओटोमन (उस्मानी साम्राज्य) और अंत में फ्रांसीसी शामिल हैं. इस कारण सीरिया (Syrian Civil War) में कई धर्मों और जातियों का प्रभुत्व देखने को मिलता रहा है. सीरिया 17 अप्रैल 1946 को स्वतंत्र हुआ था.
लेकिन इससे पहले ही 1918 में ब्रिटिश सेना ने ओटोमन साम्राज्य को हराने के बाद सीरिया में राजशाही स्थापित की. इसके बाद 1920 में मेसालौन की लड़ाई ब्रिटिशों ने अपना शासनादेश लागू कर दिया. उन्होंने सीरिया (Syrian Civil War) को कई राज्यों में विभाजित किया. फिर सीरियाई राज्य का गठन 1932 में शुरू हुआ और अली अबेद देश के पहले राष्ट्रपति बने. हालांकि, इस दौरान अंग्रेज सीरिया में हावी रहे और जनता और सेना की शत्रुता की यह स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक जारी रही. बाद में अंतरराष्ट्रीय समझौते तके तहत फ्रांस ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया और परिणामस्वरूप सीरियाई राष्ट्रपति शुकरी कुवतली ने 17 अप्रैल, 1946 को सीरिया (Syrian Civil War) की आधिकारिक स्वतंत्रता की घोषणा की.
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सीरिया में कब हुई तख्तापलट की शुरूआत?
साल 1948 में पहली बार अरब-इजराइल के बीच युद्ध (Syrian Civil War) छिड़ गया. इसमें सीरिया ने अरब देशों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बाद में इसी भूमिका ने सरकार और सेना के बीच अंदरूनी कलह (Syrian Civil War) को जन्म दिया. पहली बार सेना में असंतोष देखने को मिला. सीरियन लॉ जर्नल के मुताबिक मार्च 1949 में सेना प्रमुख जनरल हुस्नी जैम के नेतृत्व में पहली बार सीरिया में तख्तापलट (Syrian Civil War) पलट हुआ. राष्ट्रपति पद संभालने के बाद भी जनरल हुस्नी जैम ने सिर्फ 138 दिन तक ही शासन किया. जनरल हुस्नी जैम के शासन में पहली बार देश में यूरोपीय मॉडल की झलक देखने को मिली. हुस्नी जैम को सत्ता से अगले सैन्य नेता अदीब शिशकली ने 1951 में सत्ता से उखाड़ फेंका (Syrian Civil War) और राष्ट्रपति गणराज्य की स्थापना की.
इस दौरान सीरिया में समाजवादी विचारधारा के समर्थक भी बढ़ते रहे. सेना में विभाजन और लोकप्रिय अशांति के कारण अदीब शिशकली इस्तीफा देने पर मजबूर हो गए. साल 1954 में हाशिम अतासी और साल 1955 में शुकरी कुवतली जैसे अनुभवी राजनेताओं ने भी सीरिया (Syrian Civil War) की कमान संभाली. तत्कालीन मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल-नासिर के सा�� हाशिम अतासी और शुकरी कुवतली ने अच्छे रिश्ते स्थापित किए. इसके बाद सीरिया (Syrian Civil War) और मिस्र दोनों ने दोनों देशों के बीच एक संघ पर गंभीरता से विचार किया और 1958 में UAR यानी संयुक्त अरब गणराज्य की स्थापना की. राष्ट्रपति गमाल अब्देल-नासिर ने UAR के राष्ट्रपति के रूप में पद संभाला.
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UAR के विघटन के बाद कैसे बदली सीरिया की सियासत?
सीरिया (Syrian Civil War) को UAR में जूनियर पार्टनर बनाने से गमाल अब्देल-नासिर के खिलाफ सैनाओं के भीतर नाराजगी बढ़ने लगी. सितंबर 1961 में सेना के सब्र का बांध टूट गया और तख्तापलट (Syrian Civil War) ने UAR को हमेशा के लिए दफ्न कर दिया. इसके साथ एक बार फिर से सीरिया (Syrian Civil War) में स्वतंत्र सरकार बहाल कर दी गई. दिसंबर 1961 में राष्ट्रपति नाजिम कुदसी प्रशासन ने UAR शासन के कई योजनाओं को जड़ से खत्म कर दिया. हालांकि, वह इससे सफल नहीं हो पाए और दो साल के भीतर साल 1963 में समाजवादी वामपंथी बाथ पार्टी (Syrian Civil War) ने अरबवाद के समर्थन से सत्ता में आई और गमाल अब्देल-नासिर की UAR शासन की कई योजनाओं को फिर से लागू कर दिया.
बाद में अमेरिका की सहायता से विघटन संधि ने गोलान हाइट्स के मुख्य शहर कुनेत्रा को सीरियाई नियंत्रण में वापस ला दिया. सीरिया में कुछ समय के लिए शांति थी, लेकिन तेल की कीमतों में गिरावट ने 1986 में सबसे बड़े राजनीतिक संकट (Syrian Civil War) को जन्म दिया. हालांकि, इससे बचते हुए सीरिया (Syrian Civil War) ने 1990 के दशक में अमेरिका से संबंध बेहतर किए. कुवैत से इराकी सेना को बाहर निकालने के लिए अमेरिकी सेना का साथ दिया.
इसके बाद जुलाई 2000 में हाफिज अल-असद के बेटे बशर अल-असद सीरिया (Syrian Civil War) के राष्ट्रपति बने. हालांकि, तेल भंडार में गिरावट ने उन्हें कमजोर कर दिया. राष्ट्रपति बशर अल-असद (Syrian Civil War) के पदभार संभालने के साथ ही फिलिस्तीनी विद्रोह भड़क उठा और अमेरिका में 9/11 के हमले हुए. इससे अमेरिका ने अरब देशों के दूरी बना ली. साल 2003 में इराक पर आक्रमण और साल 2005 के लेबनान संकट ने अमेरिका और सीरिया (Syrian Civil War) के बीच के रिश्तों को कमजोर कर दिया. हालांकि, साल 2011 में बराक ओबामा के अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही यह संबंध पहले से बेहतर हुए. लेकिन तब तक सीरिया (Syrian Civil War) में पूरी तरह से अशांति फैल चुकी थी. अल-असद की सत्ता के दौरान विद्रोहों को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर तोप और भारी हथियारों का इस्तेमाल किया गया.
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साल 2011 में कैसे हुई सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत?
हाफिज अल-असद के मौत के बाद साल 2000 में उनके बेटे बशर अल-असद सीरिया के राष्ट्रपति बने. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन साल 2011 में अरब स्प्रिंग यानी अरब क्रांति की चिंगारी ने सीरिया (Syrian Civil War) को पूरी तरह से बदल दिया. अरब स्प्रिंग एक लोकतंत्र समर्थक विद्रोहों (Syrian Civil War) की एक श्रृंखला थी. हालांकि, इसमें शांतिपूर्ण और सशस्त्र दोनों ही पक्ष शामिल थे. इनमें से कई को सरकार ने कुचल दिया, जिससे यह चिंगारी (Syrian Civil War) भड़कती ही चली गई.
इसमें कई लोग बढ़ते बेरोजगारी दर, भ्रष्टाचार और राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी से नाखुश (Syrian Civil War) थे. जब सरकार ने इन्हें (Syrian Civil War) कुचलने के लिए घातक बल का इस्तेमाल किया, तो पूरे देश में विरोध प्रदर्शन (Syrian Civil War) भड़क उठे और क्रूर युद्ध का रूप ले लिया. इस संघर्ष में कई समूह लड़ाई (Syrian Civil War) में शामिल हो गए और वह कई गुट अलग-अलग हितों के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ (Syrian Civil War) रहे हैं.
उत्तर-पश्चिम में तुर्की समर्थित सेनाएं इस बात पर अड़ी हुई थी कि किसी भी शांति समझौते में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को दूर रखा जाए. वहीं, इस गृहयुद्ध (Syrian Civil War) में आतंकी संगठन ISIS की भी भागीदारी देखी गई है, जिसके नियंत्रण में कई हिस्से थे. हालांकि अब ISIS के पास कोई वास्तविक अधिकार या कोई क्षेत्र नहीं है. इसमें (Syrian Civil War) सबसे ज्यादा सक्रिय हैं कुर्द लड़ाके, जो सुन्नी मुसलमान हैं. इसमें कुछ यजीदी, ईसाई, शिया लड़ाके भी भाग ले रहे हैं.
बता दें कि कुर्दों के लिए साल 1920 में सेव्रेस की संधि के तहत एक अलग देश देने का वादा किया गया था, लेकिन लौसाने क�� संधि ने इस वादे को रद्द कर दिया. ऐसे में कुर्द लड़ाके (Syrian Civil War) अपनी मांगों के लिए लड़ रहे हैं. साल 2014 में उन्होंने उत्तरी सीरिया (Syrian Civil War) के रोजावा में अपने नियंत्रण वाले इलाकों को स्वायत्त सरकार घोषित कर दिया. कुर्दों के हितों के लिए SDF की राजनीतिक शाखा सीरियन डेमोक्रेटिक काउंसिल का गठन किया गया था. अब सबसे अहम है HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम, जिसने बशर अल-असद की सत्ता को उखाड़ फेंक दिया है.
क्या है सीरिया में गृह युद्ध की पूरी टाइमलाइन?
साल 2011 में मार्च के महीने में सीरिया (Syrian Civil War) के दक्षिणी शहर डेरा में पहली बार हिंसा की जानकारी सामने आई. इस दौरान पुलिस ने राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ राजनीतिक नारे लिखने के आरोप में कुछ लड़कों को गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद हिंसा (Syrian Civil War) भड़कती ही चली और कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि अगस्त तक पांच महीनों में सीरियाई सुरक्षा बलों (Syrian Civil War) की ओर से 2 हजार से अधिक लोग मारे गए थे. इस मामले में इस्तांबुल में सीरियाई राष्ट्रीय परिषद का गठन किया गया. साथ ही अरब लीग के शांति प्रस्ताव को खारिज करने के बाद सीरिया (Syrian Civil War) को अरब लीग से निलंबित कर दिया गया.
वहीं, फ्री सीरियन आर्मी ने दमिश्क और अलेप्पो शहर में हमले शुरू कर दिए. अगले साल 2012 में होम्स शहर में सीरियाई सेना (Syrian Civil War) ने मोर्चा संभाला और कुछ ही दिनों में सैकड़ों लोगों को मार डाला. यह लड़ाई करीब तीन साल तक चली. फिर भी क्रांति की राजधानी कहे जाने वाले होम्स शहर पर सेना नियंत्रण हासिल नहीं कर पाई. बाद में साल 2012 में सीरियाई सरकार (Syrian Civil War) ने संयुक्त राष्ट्र के शांति योजना को स्वीकार करते हुए भारी हथियारों और सैनिकों को वापस बुलाया. साथ ही कैद किए गए लोगों को रिहा करने की भी बात कही.
संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान विभाग के प्रमुख हर्वे लैडसौस इस दौरान इसे पहली बार गृह युद्ध (Syrian Civil War) बताया. इसी बीच सीरियाई राष्ट्रीय गठबंधन का उदय हुआ. साल 2013 के मार्च महीने में ईरान समर्थित लेबनानी आतंकी समूह हिज्बुल्लाह के हजारों की संख्या में लड़ाके सीरियाई सरकार (Syrian Civil War) का समर्थन करने के लिए युद्ध (Syrian Civil War) में शामिल हो गए. इसके कारण सीरिया (Syrian Civil War) में जमकर खून बहा.
साल 2017 में अमेरिका समर्थित कुर्द समूह सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज ने भी ISIS को कुचल कर रक्का शहर को आजाद करा लिया. 2018 सीरियाई सेना ने डेरा और अल कुनेत्रा प्रांतों पर भी सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया. इस दौरान रूस और तुर्की ने इदलिब प्रांत में सेना रखने का फैसला किया. साल 2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जैसे ही घोषणा की कि अमेरिका उत्तर-पूर्वी सीरिया छोड़ देगा, वैसे ही तुर्की ने उत्तर-पूर्वी सीरिया (Syrian Civil War) के कुर्द क्षेत्र में आक्रमण शुरू कर दिया. हालांकि, साल 2020 में तुर्की और रूसी सेना ने सीरिया के आखिरी विपक्षी इलाके इदलिब में युद्ध विराम की घोषणा की और सुरक्षा गलियारा स्थापित करने पर सहमति जताई. कोविड-19 का भी ��सर इस युद्ध पर पड़ा और संघर्ष कमजोर हो गया.
साल 2021 में बशर अल-असद सीरिया (Syrian Civil War) के फिर से राष्ट्रपति बने और रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस की सहायता कम हो गई. हालांकि, अब एक बार फिर से 27 नवंबर को चरमपंथी समूह HTS यानी हयात तहरीर अल शाम ने सीरिया (Syrian Civil War) के अलेप्पो, दारा और हमा शहर पर अचानक हमला कर कब्जा कर लिया. HTS का नेतृत्व अबू मोहम्मद अल-जुलानी कर रहा है. वह राष्ट्रपति बशर अल-असद के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है. अब बशर अल-असद की सरकार गिर गई है.
Concussion
बता दें कि हाल के दिनों में ईरान और इजराइल के बीच की लड़ाई ने हिज्बुल्लाह को काफी नुकसान पहुंचाया है. यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा रूस भी खुद पर ध्यान दे रहा है. दोनों ही सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद की मदद साल 2011 से ही करते आए हैं. ऐसे में उनकी मदद कमजोर होते ही साल 2015 और 2016 की तरह विद्रोह को कुचलने के लिए इस्तेमाल की गई सेना की संख्या हाल में सीरिया के पास नहीं थी. इसका फायदा उठाते हुए HTS ने बशर अल-असद की सत्ता का पलट दिया.
अब उम्मीद की जा सकती है कि सीरिया में यह गृह युद्ध रुक जाएगा. हालांकि, इस युद्ध (Syrian Civil War) में साल 2011 से लेकर 2024 तक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पांच लाख से अधिक लोग मारे गए हैं. हजारों लोग पलायन कर रहे हैं. वहीं, लाखों लोग पूरी तरह से मानवीय सहायता पर निर्भर हैं. 1 करोड़ 20 लाख से अधिक लोग अपने घर छोड़ कर इराक, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका, लेबनान, जॉर्डन और तुर्की में शरणार्थी की तरह रह रहे हैं. युद्ध के कारण यूरोप में को सबसे बड़ा शरणार्थी संकट पैदा हो गया है. इसके अलावा ग्लोबल पीस इंडेक्स ने 2016 से 2018 तक सीरिया को सबसे नीचे रखा था. अब यह नीचे से 8वें नंबर पर है.
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