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धन्ना भक्त की कथा
धन्ना भक्त के खेत में कंकर से ज्वार पैदा हुई
राजस्थान प्रान्त में एक जाट जाति में धन्ना नाम का भक्त था।गाँव में बारिश हुई।सब गाँव वाले ज्वार का बीज लेकर अपने-अपने खेतों में बोने के लिए चले। भक्त धन्ना जाट भी ज्वार का बीज लेकर खेत में बोने चला।
रास्ते में चार साधु आ रहे थे। भक्त ने साधुओं को देखकर बैल रोक लिए। खड़ा हो गया। राम-राम क��, साधुओं के चरण छूए। साधुओं ने बताया कि भक्त ! दो दिन से कुछ खाने को नहीं मिला है। प्राण जाने वाले हैं। धन्ना भक्त ने कहा कि यह बीज की ज्वार है। आप इसे खाकर अपनी भूख शांत करो।
भूखे साधु उस ज्वार के बीज पर ही लिपट गए। सब ज्वार खा गए।भक्त का धन्यवाद किया और चले गए। धन्ना भक्त की पत्नी गर्म स्वभाव की थी। भक्त ने विचार किया कि पत्नी को पता चलेगा तो झगड़ा करेगी। इसलिए कंकर इकट्ठी करके थैले में डाल ली जिसमें ज्वार डाल रखी थी। भक्त ने ज्वार के स्थान पर कंकर बीज दी। लग रहा था कि जैसे ज्वार बीज रहा हो। धन्ना जी भी सब किसानों के साथ घर आ गया।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj Youtube चैनल पर Visit करें।
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( #MuktiBodh_Part52 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part53
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर (93)
वाणी नं. 110 का सरलार्थ :-
‘‘धन्ना भक्त के खेत में कंकर से ज्वार पैदा हुई’’
राजस्थान प्रान्त में एक जाट जाति में धन्ना नामक भक्त था। गाँव में बारिश हुई। सब गाँव वाले ज्वार का बीज लेकर अपने-अपने खेतों में बोने के लिए चले। भक्त धन्ना जाट भी ज्वार का बीज लेकर खेत में बोने चला। रास्ते में चार साधु आ रहे थे। भक्त ने साधुओं को देखकर बैल रोक लिए। खड़ा हो गया। राम-राम की, साधुओं के चरण छूए। साधुओं ने बताया कि भक्त! दो दिन से कुछ खाने को नहीं मिला है। प्राण जाने वाले हैं। धना भक्त
ने कहा कि यह बीज की ज्वार है। आप इसे खाकर अपनी भूख शांत करो। भूखे साधु उस ज्वार के बीज पर ही लिपट गए। सब ज्वार खा गए। भक्त का धन्यवाद किया और चले गए। धन्ना भक्त की पत्नी गर्म स्वभाव की थी। भक्त ने विचार किया कि पत्नी को पता
चलेगा तो झगड़ा करेगी। इसलिए कंकर इकट्ठी करके थैले में डाल ली जिसमें ज्वार डाल रखी थी। भक्त ने ज्वार के स्थान पर कंकर बीज दी। लग रहा था कि जैसे ज्वार बीज रहा हो। धन्ना जी भी सब किसानों के साथ घर आ गया। दो महीने के पश्चात् सब किसानों के खेतों में ज्वार उगी और धन्ना जी के खेत में तूम्बे की बेल अत्यधिक मात्रा में उगी और
मोटे-मोटे तूम्बे लगे। खेत तूम्बों से भर गया। पड़ोसी खेत वाले ने धन्ना की पत्नी से कहा कि आपने खेत में ज्वार नहीं बोई क्या? आपके खेत में तूम्बों की बेल उगी हैं? अनगिनत मोटे-मोटे तूम्बे लगे हैं। धन्ना जी की पत्नी खेत में गई। जाकर देखा कि सबके खेतों में ज्वार उगी थी, परंतु बारिश न होने के कारण मुरझाई हुई थी। धन्ना जी के खेत में तूम्बों की बेल अत्यधिक मात्रा में उगी थी। तूम्बे भी विशेष मोटे-मोटे थे। धन्ना जी की पत्नी ने एक तूम्बा
तोड़ा और सिर पर रखकर घर की ओर चल पड़ी। धन्ना जी के पास कुछ भक्त बैठे थे। धन्ना जी ने देखा कि भक्तमति तूम्बा लिए आ रही है। खेत में गई थी। भक्तों से कहा कि आप शीघ्र चले जाओ। वे चले गए। भक्तमति ने आकर तूम्बा भक्त के सिर पर दे मारा और बोली कि बालक तेरे को खाऐंगे। बीज कहाँ गया? धन्ना जी कुछ नहीं बोले। अपने सिर का बचाव किया। तूम्बा पृथ्वी पर लगते ही दो भाग हो गया। उसके अंदर से बीज जैसी स्वच्छ मोटी-मोटी ज्वार निकली। धन्ना जी की धर्मपत्नी को आश्चर्य हुआ। ज्वार देखकर खुशी हुई। विचार किया कि अन्य तूम्बों में भी ज्वार हो सकती है। भक्त को साथ लेकर उस तूम्बे वाली ज्वार को घर में रखकर खेत में पहुँची। चद्दर बिछाकर तूम्बे फोड़ने लगी। धड़ी-धड़ी (पाँच-पाँच किलो) ज्वार एक तूम्बे से निकली। ढ़ेर लग गया।
अन्य किसानों की फसल बारिश न होने से सूख गई। एक दाना भी हाथ नहीं लगा। धन्ना भक्त ने सब गाँव वालों को लगभग दस-दस मन यानि चार-चार क्विंटल ज्वार बाँट दी। उनके बच्चे भी भूखे थे। अपने घर भी शेष ज्वार ले गए। पत्नी भी भक्ति पर लग गई। दोनों का उद्धार हो गया।
वाणी नं. 110 का सरलार्थ यही है कि धन्ना भक्त की परमात्मा में तथा धर्म-कर्म में ऐसी धुन (लगन) लगी कि ज्वार का बीज ही दान कर दिया। देते को हर देत है। इसी कारण से परमात्���ा जी ने सूखा खेत हरा कर दिया जिसमें कंकर बोई थी।
उस सूखे खेत (क्षेत्र) को तूम्बों की बेलों से हरा-भरा कर दिया।(110)
क्रमशः_____
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 93
’’त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी का प्रकट होना‘‘
प्रश्न:- धर्मदास जी ने पूछा हे बन्दी छोड़ आप त्रेता युग में मुनिन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित हुए थे। कृप्या उस युग में किन-2 पुण्यात्माओं ने आप की शरण ग्रहण की?
उत्तरः- हे धर्मदास! त्रेता युग में मैं मुनिन्द्र ऋषि के नाम से प्रकट हुआ। त्रेता युग में भी मैं एक शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुआ था। एक वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उसकी साधवी पत्नी थी। वे प्रतिदिन सरोवर पर स्नान करने जाते थे। उनकी आयु आधी से अधिक हो चुकी थी। वह निःसन्तान दम्पति मुझे अपने साथ ले गए तथा सन्तान रूप में पालन किया। प्रत्येक युग में जिस समय मैं एक पूरे जीवन रहने की लीला करने आता हूँ। मेरी परवरिश कंवारी गायों से होती है। बाल्यकाल से ही मैं तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करता हूँ। जिस कारण से मुझे प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त होती है। परन्तु ज्ञानहीन ऋषियों द्वारा भ्रमि�� जनता मुझे न पहचान कर एक कवि की उपाधि प्रदान कर देती है। केवल मुझ से परिचित श्रद्धालु ही मुझे समझ पाते हैं तथा वे अपना कल्याण करवा लेते हैं। त्रेता युग में कविर्देव का ऋषि मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य’’ लेखक के शब्दों में निम्न पढ़ें:-
”त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य“
”नल तथा नील को शरण में लेना“
त्रेतायुग में स्वयंभु कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्रभावित होकर ऋषि मुनिन्द्र जी से नाम (दीक्षा) ले लिया मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले ऋषियों व संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत हो गई थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास साफ कर देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। दोनों भक्त प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में कब डूब जाती उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। अब ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ डूब जाती। भक्तजनों ने मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृप्या आप नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते हैं और कहते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। बर्तन व वस्त्र धोते समय वे दोनों भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार नल-नील को समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डूबेगी।
‘‘समुन्द्र पर रामचन्द्र के पुल के लिए पत्थर तैराना’’
एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन् सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु वसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या है? ब्राह्मण रूप में खडे़ समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? तो नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी नहीं डूबंेगे। तो श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति ��हीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर समुद्र के जल में डाला तो वह पत्थर डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे थे। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। कृप्या अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर परमेश्वर) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से कभी तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय। ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के बाद नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति पड़ी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु! मुझ पर भी कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब जी ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी करते रहने के लिए राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा देते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जो ऊपर लिखी है।
(सत कबीर की साखी - पृष्ठ 179 से 182 तक)
-ः पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुम��रो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर - गिरवर धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।
कबीर - काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम।।28।।
कबीर - कह कबीर चित चेतहंू, शब्द करौ निरूवार।
श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29।।
कबीर - जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार।।30।।
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प्यार में पड़ौस का होना, जानें रामचरण और दूर पड़ोस में प्यार करने के लिए
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मित्रा में प्यार करने के लिए,… Source link
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दीपावली - बदलते आयाम
दिनांक - ३०/अक्तूबर/२०१९
दीपावली - दीपों का त्यौहार, खुशियों का त्यौहार, उत्साह और प्रकाश का पर्व ।
हमारे धर्म में हर पर्व, हर रीति और हर आवश्यकता को बड़े ही सहज और सरल तरीके से धार्मिक पर्व से जोड़ दिया गया ताकि उसका लाभ और ��नंद समाज का हर वर्ग लेे सके ।
बात जब दीपावली की हो तो मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की अधर्म पर विजय के पश्चात गृहनगर आगमन पर कार्तिक मास की अमावस्या को दिए जलाकर, अच्छे मन से मिठाईयां बनाकर और बांटकर, हर बुराई और अधर्म से प्रभु से सीख लेकर धर्म की सीमा में रहते हुए विजय पाने की प्रेरणा लेकर मनाया गया और शायद यही परंपरा आगे भी बढ़ चली । हर एक छोटी से छोटी बात और रीति के पीछे एक भावना, एक समर्पण और एक विश्वास था ।
आज शांति से बैठे हुए जब वर्णित युग और आज की दीपावली की तुलना की तो पाया कि ना आज कोई आनंद है, ना विश्वास है ना समर्पण है तो फिर त्यौहार क्यों ? और चिंतन किया तो मन बड़ा विचलित हो चला ये पाकर कि दीपावली तो अंग्रेजी और अपभ्रंश का शिकार होकर दिवाली हो गई है और वाकई दिवाला ही निकलेगी ।
घरों में जलाए जाने वाले तेल / घी के दिए, जो प्रकाश के साथ वैज्ञानिक तौर पर वातावरण को शुद्ध भी करते हैं ( छोटे छोटे विषाणुओं को मारते हैं), बल्बों की झालर ( छोटे छोटे उड़ने वाले कीड़ों को आकर्षित करती है) से बदल गए हैं । घर की गृहिणियां पूरी शुद्धता के साथ नाना प्रकार के नमकीन, मीठे पकवान बनाती थीं और उसी प्रेम और सम्मान के साथ बांटकर और खिलाकर खाती थीं। नहा धोकर, शुद्धता और विश्वास के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश जी, विष्णु पत्नी माता लक्ष्मी जी और विद्यादायिनी मां सरस्वती का पूजन किया जाता था , पूजन के बाद हर छोटा अपने बड़े के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता और बड़े हर छोटे को आशीर्वाद के साथ साथ कोई भी भेंट, धनराशि, उपहार ( त्यौहार के उत्साह को बढ़ाने के लिए) दिया करते थे । इसके बाद घर के बने व्यंजन संयुक्त परिवार के सभी सदस्य मिलकर ( परिवार के वरिष्ठों को खिलाने के पश्चात - छोटे बच्चों के लिए इस तरह की कोई पाबंदी नहीं मानी गई है) खाते थे । साथ ही साथ इन पकवानों को परिवार और समाज से जुड़े हर व्यक्ति / वर्ग जैसे की ब्राह्मण ( अर्थात मंदिर के पुजारी), धोबी, जमादार इत्यादि को भी बांटा जाता था ताकि सारा समाज इस पर्व में साथ और आनंदित हो ।
त्यौहार के बदलते आयामों ने इस विरासत, इस संस्कृति में उथल पुथल मचा दी है, मिट्टी के दिये, बल्ब की झालरों ( अब ये चीनी झालरें हो गईं हैं, और एक कदम आगे) से बदल गए । घर में प्रेम और भाव से बनने वाले स्वादिष्ट पकवान अब प्रगतिवादी नारियों को एक उबाऊ और निरर्थक कार्य लगने लगा है और इन्हें बाज़ार की मिठाईयां ने बड़ी सफलता से बदल दिया है और बदला भी ऐसा कि जिससे काम है उसे काजू की बढ़िया मिठाई, घर के वो रिश्तेदार जो बड़प्पन को अपनाते हुए, धीर गंभीर रहते हुए संबंध को निभा�� रहते हैं उन्हें मजबूरी वाली ज़्यादा एम आर पी लेकिन बड़े डिस्काउंट वाली नाम की मिठाई, परिवार के अदृश्य किन्तु अभिन्न अंग जैसे धोबी, जमादार इत्यादि को यहां वहां से आई हुई हल्की मिठाई ( जैसे कि गठबंधन की मिली जुली मजबूरी वाले सरकार) जिसे घर में कोई ना खाना पसंद करे और वो भी ३-४ दिन घर में रखकर खराब हो जाने से ठीक पहले ( ईश्वर जाने जिन्हें मिलती है, उनके दिल पर क्या बीतती होगी, क्या उनके बच्चे खुश होते होंगे ?)। और ऊपर से नया खेल मिठाई के साथ या अलावा उपहारों का विनिमय । उफ्फ लगता है कि त्यौहार के प्रेम को बाजारवाद ने बदल दिया है । डिब्बा बड़े से बड़ा होना चाहिए चाहे अंदर माल कैसा भी हो, MRP ज़्यादा से ज़्यादा चाहिए, अगर हमने किसी को दिया है तो उसके पास से भी आना चाहिए और किसी करोड़पति छोटे भाई ने अपने हजारपती भाई को १००० रू का गिफ्ट दिया और बदले में हज़ारपती भाई ने अपनी हैसियत ना होते हुए भी संबंध और लोकलाज के लिए ५०० रू का गिफ्ट दिया, तो बस ...संबंध खतरे में है जनाब । इतने मुह बुराइयां, मुंह फूलना और तानेबाजी होगी कि हज़ारपती भाई अपने हज़ारपति होने पर कई वर्ष या आजीवन पछताएगा । त्यौहार पर हैसियत से बढ़ कर या किन्हीं खर्चों में समझौता करके दिलवाए नए कपड़ों में अब परिवार को पिता या पति का परिवार प्रेम नजर नहीं आता, पिता या पति खुद कुछ ना लेे तो ये नजर नहीं आता कि उनकी अब और खर्च की गुंजाइश नहीं है बल्कि ये सोचा जाता है कि इनके पास काफी कपड़े हैं, इन्हें कहां है इस समय ज़रूरत। श्री गणेश जी, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती के पूजन को नासमझों और लालची लोगों की फौज ने मां लक्ष्मी जी के पूजन पर केंद्रित कर दिया है , इन अतिशिक्षित किन्तु विक्षिप्त सज्जनों को कौन समझाए कि भाई तीनों देवी देवता पूज्यनीय हैं और तीनों साथ ही कृपा करेंगे, एक साथ पूजन यही संदेश देता है । पूजन के बाद बड़ों के चरण स्पर्श अब छोटों की शान के खिलाफ है और दकियानूसी है । पूजन के बाद बड़ों द्वारा छोटों को दी जाने वाली भेंट अब बड़ों का प्रेम नहीं, हैसियत और उनकी नियत दिखती है, कैसा लाल��� है ये ? बिगड़े या गलतफहमी के शिकार संबंध इस दिन फिर जुड़ जाते थे, धनतेरस के बहाने, दीपावली मिलन के बहाने, गोवर्धन पूजा के बहाने, भाई दूज के बहाने किन्तु ये बाजारवाद, उपहारवाद क्या ये होने दे रहे है ? और अंत में जेठानी देवरानी ये कह कर विदा लेती हैं कि अगली बार माताजी पिताजी को तुम लेे जाना, हम भी वहीं आ जाएंगे, बच्चों का ज़रा मन भी बदल जाएगा ।
क्या यही त्यौहार है जिसका हमारे ग्रंथों में उल्लेख है, जो हमारी वसुधैव कुटुंबकम् की संस्कृति का परिचायक है ।
विचार अवश्य कीजिएगा कि क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं ?
आपका अपना
दिव्यांश रस्तोगी
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*कबीर बड़ा या कृष्ण*
*’’त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी का प्रकट होना‘‘*
प्रश्न:- धर्मदास जी ने पूछा हे बन्दी छोड़ आप त्रेता युग में मुनिन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित हुए थे। कृप्या उस युग में किन-2 पुण्यात्माओं ने आप की शरण ग्रहण की?
उत्तरः- हे धर्मदास! त्रेता युग में मैं मुनिन्द्र ऋषि के नाम से प्रकट हुआ। त्रेता युग में भी मैं एक शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुआ था। एक वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उसकी साधवी पत्नी थी। वे प्रतिदिन सरोवर पर स्नान करने जाते थे। उनकी आयु आधी से अधिक हो चुकी थी। वह निःसन्तान दम्पति मुझे अपने साथ ले गए तथा सन्तान रूप में पालन किया। प्रत्येक युग में जिस समय मैं एक पूरे जीवन रहने की लीला करने आता हूँ। मेरी परवरिश कंवारी गायों से होती है। बाल्यकाल से ही मैं तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करता हूँ। जिस कारण से मुझे प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त होती है। परन्तु ज्ञानहीन ऋषियों द्वारा भ्रमित जनता मुझे न पहचान कर एक कवि की उपाधि प्रदान कर देती है। केवल मुझ से परिचित श्रद्धालु ही मुझे समझ पाते हैं तथा वे अपना कल्याण करवा लेते हैं। त्रेता युग में कविर्देव का ऋषि मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य’’ लेखक के शब्दों में निम्न पढ़ें:-
”त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य“
”नल तथा नील को शरण में लेना“
त्रेतायुग में स्वयंभु कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्रभावित होकर ऋषि मुनिन्द्र जी से नाम (दीक्षा) ले लिया मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले ऋषियों व संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत हो गई थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास साफ कर देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। दोनों भक्त प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में कब डूब जाती उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। अब ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ डूब जाती। भक्तजनों ने मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृप्या आप नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते हैं और कहते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। बर्तन व वस्त्र धोते समय वे दोनों भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार नल-नील को समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डूबेगी।
‘‘समुन्द्र पर रामचन्द्र के पुल के लिए पत्थर तैराना’’
एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन् सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु वसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या है? ब्राह्मण रूप में खडे़ समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? तो नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी नहीं डूबंेगे। तो श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर समुद्र के जल में डाला तो वह पत्थर डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे थे। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। कृप्या अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर परमेश्वर) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से कभी तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय। ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के बाद नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति पड़ी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु! मुझ पर भी कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब जी ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी करते रहने के लिए राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा देते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जो ऊपर लिखी है।
(सत कबीर की साखी - पृष्ठ 179 से 182 तक)
-ः पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर - गिरवर धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।
कबीर - काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम।।28।।
कबीर - कह कबीर चित चेतहंू, शब्द करौ निरूवार।
श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29।।
कबीर - जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार।।30।।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part93
’’त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी का प्रकट होना‘‘
प्रश्न:- धर्मदास जी ने पूछा हे बन्दी छोड़ आप त्रेता युग में मुनिन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित हुए थे। कृप्या उस युग में किन-2 पुण्यात्माओं ने आप की शरण ग्रहण की?
उत्तरः- हे धर्मदास! त्रेता युग में मैं मुनिन्द्र ऋषि के नाम से प्रकट हुआ। त्रेता युग में भी मैं एक शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुआ था। एक वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उसकी साधवी पत्नी थी। वे प्रतिदिन सरोवर पर स्नान करने जाते थे। उनकी आयु आधी से अधिक हो चुकी थी। वह निःसन्तान दम्पति मुझे अपने साथ ले गए तथा सन्तान रूप में पालन किया। प्रत्येक युग में जिस समय मैं एक पूरे जीवन रहने की लीला करने आता हूँ। मेरी परवरिश कंवारी गायों से होती है। बाल्यकाल से ही मैं तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करता हूँ। जिस कारण से मुझे प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त होती है। परन्तु ज्ञानहीन ऋषियों द्वारा भ्रमित जनता मुझे न पहचान कर एक कवि की उपाधि प्रदान कर देती है। केवल मुझ से परिचित श्रद्धालु ही मुझे समझ पाते हैं तथा वे अपना कल्याण करवा लेते हैं। त्रेता युग में कविर्देव का ऋषि मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य’’ लेखक के शब्दों में निम्न पढ़ें:-
”त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य“
”नल तथा नील को शरण में लेना“
त्रेतायुग में स्वयंभु कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्रभावित होकर ऋषि मुनिन्द्र जी से नाम (दीक्षा) ले लिया मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले ऋषियों व संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत हो गई थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास साफ कर देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। दोनों भक्त प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में कब डूब जाती उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। अब ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ डूब जाती। भक्तजनों ने मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृप्या आप नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते हैं और कहते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। बर्तन व वस्त्र धोते समय वे दोनों भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार नल-नील को समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डूबेगी।
‘‘समुन्द्र पर रामचन्द्र के पुल के लिए पत्थर तैराना’’
एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन् सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु वसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा क��म करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या है? ब्राह्मण रूप में खडे़ समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? तो नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी नहीं डूबंेगे। तो श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर समुद्र के जल में डाला तो वह पत्थर डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे थे। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। कृप्या अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर परमेश्वर) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से कभी तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय। ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के बाद नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति पड़ी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु! मुझ पर भी कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब जी ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी करते रहने के लिए राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा देते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जो ऊपर लिखी है।
(सत कबीर की साखी - पृष्ठ 179 से 182 तक)
-ः पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर - गिरवर धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।
कबीर - काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम।।28।।
कबीर - कह कबीर चित चेतहंू, शब्द करौ निरूवार।
श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29।।
कबीर - जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार।।30।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part93
’’त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी का प्रकट होना‘‘
प्रश्न:- धर्मदास जी ने पूछा हे बन्दी छोड़ आप त्रेता युग में मुनिन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित हुए थे। कृप्या उस युग में किन-2 पुण्यात्माओं ने आप की शरण ग्रहण की?
उत्तरः- हे धर्मदास! त्रेता युग में मैं मुनिन्द्र ऋषि के नाम से प्रकट हुआ। त्रेता युग में भी मैं एक शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुआ था। एक वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उसकी साधवी पत्नी थी। वे प्रतिदिन सरोवर पर स्नान करने जाते थे। उनकी आयु आधी से अधिक हो चुकी थी। वह निःसन्तान दम्पति मुझे अपने साथ ले गए तथा सन्तान रूप में पालन किया। प्रत्येक युग में जिस समय मैं एक पूरे जीवन रहने की लीला करने आता हूँ। मेरी परवरिश कंवारी गायों से होती है। बाल्यकाल से ही मैं तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करता हूँ। जिस कारण से मुझे प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त होती है। परन्तु ज्ञानहीन ऋषियों द्वारा भ्रमित जनता मुझे न पहचान कर एक कवि की उपाधि प्रदान कर देती है। केवल मुझ से परिचित श्रद्धालु ही मुझे समझ पाते हैं तथा वे अपना कल्याण करवा लेते हैं। त्रेता युग में कविर्देव का ऋषि मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य’’ लेखक के शब्दों में निम्न पढ़ें:-
”त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य“
”नल तथा नील को शरण में लेना“
त्रेतायुग में स्वयंभु कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्रभावित होकर ऋषि मुनिन्द्र जी से नाम (दीक्षा) ले लिया मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले ऋषियों व संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत हो गई थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास साफ कर देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। दोनों भक्त प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में कब डूब जाती उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। अब ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ डूब जाती। भक्तजनों ने मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृप्या आप नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते हैं और कहते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। बर्तन व वस्त्र धोते समय वे दोनों भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार नल-नील को समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डूबेगी।
‘‘समुन्द्र पर रामचन्द्र के पुल के लिए पत्थर तैराना’’
एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन् सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु वसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या है? ब्राह्मण रूप में खडे़ समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? तो नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी नहीं डूबंेगे। तो श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) क�� यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर समुद्र के जल में डाला तो वह पत्थर डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे थे। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। कृप्या अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर परमेश्वर) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से कभी तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय। ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के बाद नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति पड़ी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु! मुझ पर भी कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब जी ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी करते रहने के लिए राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा देते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जो ऊपर लिखी है।
(सत कबीर की साखी - पृष्ठ 179 से 182 तक)
-ः पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर - गिरवर धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।
कबीर - काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम।।28।।
कबीर - कह कबीर चित चेतहंू, शब्द करौ निरूवार।
श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29।।
कबीर - जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार।।30।।
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राम चरण की पत्नी उपासना ने 2 शेर शावकों को गोद लिया, नाम रखे विक्की, लक्ष्मी
राम चरण की पत्नी उपासना ने 2 शेर शावकों को गोद लिया, नाम रखे विक्की, लक्ष्मी
उसने हैदराबाद के नेहरू जूलॉजिकल पार्क में एशियाई शेर के दो शावकों को गोद लिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रुपये का चेक। नेहरू जूलॉजिकल पार्क के क्यूरेटर एस. राजशेखर को 2 लाख रुपये दिए गए। तेलुगु सुपरस्टार राम चरण की पत्नी उपासना कामिनेनी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं। उपासना सामुदायिक सेवा में गहराई से शामिल होने के अलावा पशु प्रेमी के रूप में भी जानी जाती हैं। हाल ही में, उसने हैदराबाद के…
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( #MuktiBodh_Part25 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part26
अब हम पढ़ेंगे मुक्तिबोध पेज नंबर (50-51)
‘‘अजामेल की शेष कथा’’
एक दिन नारद जी काशी में आए तथा किसी से पूछा कि मुझे अच्छे भक्त का घर
बताओ। मैंने रात्रि में रूकना है। मेरा भजन बने, उसको सेवा का लाभ मिले। उस व्यक्ति
ने मजाक सूझा और कहा कि आप सामने कच्चे रास्ते जंगल की ओर जाओ। वहाँ एक बहुत अच्छा भक्त रहता है। भक्त तो एकान्त में ही रहते हैं ना। आप कृपा जाओ। लगभग एक मील (आधा कोस) दूर उसकी कुटी है। गर्मी का मौसम था। सूर्य अस्त होने में 1) घंटा शेष था। नारद जी को द्वार पर देखकर मैनका अति प्रसन्न हुई क्योंकि प्रथम बार कोई मनुष्य उनके घर आया था, वह भी ऋषि। पूर्व जन्म के भक्ति-संस्कार अंदर जमा थे, उन पर जैसे बारिश का जल गिर गया हो, ऐसे एकदम अंकुरित हो गए। मैनका ने ऋषि जी का अत्यधिक सत्कार किया। कहा कि न जाने कौन-से जन्म के शुभ कर्म आगे आए हैं जो हम पापियों के घर भगवान स्वरूप ऋषि जी आए हैं। ऋषि जी के बैठने के लिए एक वृक्ष के नीचे चटाई बिछा दी। उसके ऊपर मृगछाला बिछाकर बैठने को क��ा। नारद जी को पूर्ण विश्वास ��ो गया कि वास्तव में ये पक्के भक्त हैं। बहुत अच्छा समय बीतेगा। कुछ देर में अजामेल आया और जो तीतर-खरगोश मारकर लाया था, वह लाठी में टाँगकर आँगन में प्रवेश हुआ। अपनी पत्नी से कहा कि ले रसोई तैयार कर। सामने ऋषि जी को बैठे देखकर दण्डवत् प्रणाम किया और अपने भाग्य को सराहने लगा। कहा कि ऋषि जी! मैं स्नान करके आता हूँ, तब आपके चरण चम्पी करूँगा। यह कहकर अजामेल निकट के तालाब पर चला गया। नारद जी ने मैनका से पूछा कि देवी! यह कौन है? उत्तर मिला कि यह मेरा पति अजामेल है। नारद जी को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह क्या चक्रव्यूह है? विचार तो भक्तों से भी ऊपर, परंतु कर्म कैसे? नारद जी ने कहा कि देवी! सच-सच बता, माजरा क्या है? शहर में मैंने पूछा था कि किसी अच्छे भक्त का घर बताओ तो आपका एकांत स्थान वाला घर बताया था। आपके व्यवहार से मुझे पूर्ण संतोष हुआ कि सच में भक्तों के घर आ गया हूँ। यह माँसाहारी आपका पति है तो आप भी माँसाहारी हैं। मेरे साथ मजाक हुआ है। ऋषि नारद उठकर चलने लगा। मैनका ने चरण पकड़ लिये। तब तक अजामेल भी आ गया। अजामेल भी समझ गया कि ऋषि जी गलती से आये हैं। अब जा रहे हैं। पूर्व के भक्ति संस्कार के कारण ऋषि जी के दोनों ने चरण पकड़ लिए और कहा कि हमारे घर से ऋषि भूखा जाएगा तो हमारा नरक में वास होगा। ऋषि जी! आपको हमें मारकर हमारे शव के ऊपर पैर रखकर जाना होगा। नारद जी ने कहा कि आप तो अपराधी हैं। तुम्हारा दर्शन भी अशुभ है। अजामेल ने कहा कि हे स्वामी जी! आप तो पतितों का उद्धार करने वाले हो। हम पतितों का उद्धार करें। हमें कुछ ज्ञान सुनाओ। हम आपको कुछ खाए बिना नहीं जाने देंगे। नारद जी ने सोचा कि कहीं ये मलेच्छ यहीं काम-तमाम न कर दें यानि मार न दें, ये तो बेरहम होते हैं, बड़ी संकट में जान आई। कुछ विचार करके नारद जी ने कहा कि यदि कुछ खिलाना चाहते हो तो प्रतिज्ञा लो कि कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे। माँस-शराब का सेवन नहीं करेंगे। दोनों ने एक सुर में हाँ कर दी। सौगंद है गुरूदेव! कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे, कभी शराब-माँस का सेवन नहीं करेंगे। नारद जी ने कहा कि पहले यह माँस दूर डालकर आओ और शाकाहारी भोजन पकाओ। तुरंत अजामेल ने वह माँस दूर जंगल में डाला। मैनका ने कुटी की सफाई की। फिर पानी छिड़का। चूल्हा लीपा। अजामेल बोला कि मैं शहर से आटा लाता हूँ। मैनका तुम सब्जी बनाओ। नारद जी की जान में जान आई। भोजन खाया। गर्मी का मौसम था। एक वृक्ष के नीचे नारद जी की चटाई बिछा दी। स्वयं दोनों बारी-बारी सारी रात पंखे से हवा चलाते रहे। नारद जी बैठकर भजन करने लगे। फिर कुछ देर निकली, तब देखा कि दोनों अडिग सेवा कर रहे हैं। ��ारद जी ने कहा कि आप दोनों भक्ति करो।
राम का नाम जाप करो। दोनों ने कहा कि ऋषि जी! भक्ति नहीं कर सकते। रूचि ही नहीं
बनती। और सेवा बताओ।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना सुहावै। कै ऊँघै कै उठ चलै, कै औरे बात चलावै।।
तुलसी, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना भावै। जैसे ज्वर के वेग से, भूख विदा हो जावै।।
भावार्थ :- जैसे ज्वर यानि बुखार के कारण रोगी को भूख नहीं लगती। वैसे ही पापों
के प्रभाव से व्यक्ति को परमात्मा की चर्चा में रूचि नहीं होती। या तो सत्संग में ऊँघने लगेगा या कोई अन्य चर्चा करने लगेगा। उसको श्रोता बोलने से मना करेगा तो उठकर चला जाएगा।
यही दशा अजामेल तथा मैनका की थी। नारद जी ने कहा कि हे अजामेल! एक आज्ञा का पालन अवश्य करना। आपकी पत्नी को लड़का उत्पन्न होगा। उसका नाम ‘नारायण’
रखना। ऋषि जी चले गए। अजामेल को पुत्र प्राप्त हुआ। उसका नाम नारायण रखा।
इकलौते पुत्र में अत्यधिक मोह हो गया। जरा भी इधर-उधर हो जाए तो अजामेल अरे
नारायण आजा बेटा करने लगा। ऋषि जी का उद्देश्य था कि यह कर्महीन दंपति इसी बहाने परमात्मा को याद कर लेगा तो कल्याण हो जाएगा। नारद जी ने कहा था कि अंत समय में यदि यम के दूत जीव को लेने आ जाऐं तो नारायण कहने से छोड़कर चले जाते हैं। भगवान के दूत आकर ले जाते हैं। एक दिन अचानक अजामेल की मृत्यु हो गई। यम के दूत आ गए। उनको देखकर कहा कि कहाँ गया नारायण बेटा, आजा।
{पौराणिक लोग कहते हैं कि ऐसा कहते ही भगवान विष्णु के दूत आए और यमदूतों
से कहा कि इसकी आत्मा को हम लेकर जाऐंगे। इसने नारायण को पुकारा है। यमदूतों ने
कहा कि धर्मराज का हमारे को आदेश है पेश करने का। इसी बात पर दोनों का युद्ध हुआ। भगवान के दूत अजामेल को ले गए।}
वास्तव में यमदूत धर्मराज के पास लेकर गए। धर्मराज ने अजामेल का खाता खोला
तो उसकी चार वर्ष की आयु शेष थी। फिर देखा कि इसी काशी शहर में दूसरा अजामेल
है। उसके पिता का अन्य नाम है। उसको लाना था। उसे लाओ। इसको तुरंत छोड़कर आओ। अजामेल की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी रो-रोकर विलाप कर रही थी। विचार कर
रही थी कि अब इस जंगल में कैसे रह पाऊँगी। बच्चे का पालन कैसे करूंगी? यह क्या बनी भगवान? वह रोती-रोती लकडि़याँ इकट्ठी कर रही थी। कुटी के पास में शव को खींचकर ले गई। इतने में अजामेल उठकर बैठ गया। कुछ देर तो शरीर ने कार्य ही नहीं किया। कुछ समय के बाद अपनी पत्नी से कहा कि यह क्या कर रही हो? पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। कहा कि आपकी मृत्यु हो गई थी। अजामेल ने बताया कि यम के दूत
मुझे धर्मराज के पास लेकर गए। मेरा खाता (Account) देखा तो मेरी चार वर्ष आयु शेष
थी। मुझे छोड़ दिया और काशी शहर से एक अन्य अजामेल को लेकर जाऐंगे, उसकी मृत्यु
होगी। अगले दिन अजामेल शहर गया तो अजामेल के शव को शमशान घाट ले जा रहे थे,
तुरंत वापिस आया। अपनी पत्नी से बताया कि वह अजामेल मर गया है, उसका अंतिम
संस्कार करने जा रहे हैं। अब अजामेल को भय हुआ कि भक्ति नहीं की तो ऊपर बुरी तरह पिटाई हो रही थी, नरक में हाहाकार मचा था। नारद जी आए त�� अजामेल ने कहा कि गुरू जी! मेरे साथ ऐसा हुआ। मेरी आयु चार वर्ष की बताई थी। एक वर्ष कम हो चुका है। बच्चा छोटा है, मेरी आयु बढ़ा दो। नारद जी ने कहा कि नारायण-नारायण जपने से किसी की आयु नहीं बढ़ती। जो समय धर्मराज ने लिखा है, उससे एक श्वांस भी घट-बढ़ नहीं सकता।
क्रमशः..........
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🚩🏹🚩जय जय श्रीराम🚩🏹🚩 14 वर्ष के वनवास में श्रीराम प्रमुख रूप से 17 जगह रुके, देखिए यात्रा का नक्शा प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन���हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है। जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के नाम.. 1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की। 2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है। 3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे। 4.प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। 5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं। 6.सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था। 7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर https://www.instagram.com/p/B-omCdyJ7Dg/?igshid=1hh4no4m82ss8
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'बाहुबली' फेम भल्लालदेव यानी राणा दग्गुबती ने मिहिका बजाज से शादी कर ली है। शनिवार को उनकी शादी की रस्में हैदराबाद के रामानायडू स्टूडियो में पूरी हुईं। इस क्लोज सेरेमनी में कपल के फैमिली मेंबर्स, चुनिंदा रिश्तेदार, द��स्त और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोग शामिल हुए थे। समांथा अक्किनेनी नागा चैतन्य, राम चरण और अलु अर्जुन ने शादी में पहुंचकर राणा और मिहिका को बधाई दी।
राम चरण ने इंस्टाग्राम पर राणा को बधाई देते हुए लिखा था, "फाइनली मेरे हल्क (जो वे राणा को प्यार से बुलाते हैं) ने शादी कर ली। राणा दग्गुबती और मिहिका बजाज का शादीशुदा जीवन हमेशा खुशहाल रहे।"
कोविड-19 के प्रोटोकॉल का रखा गया ध्यान
शादी के दौरान कोविड-19 के प्रोटोकॉल का ध्यान रखते हुए वेन्यू पर सैनिटाइजर स्टैंड और डिस-इन्फेक्टेंट टनल्स लगाए गए थे। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी किया गया था। बताया जा रहा है कि शादी में 30 से कम लोग शामिल हुए थे और सभी का यहां पहुंचने से पहले कोविड-19 टेस्ट कराया गया था।
ऐसा था कपल का आउटफिट
शादी के लिए राणा दग्गुबती ने व्हाइट धोती कुर्ता पहना था। वहीं, मिहिका बजाज अनामिका खन्ना द्वारा डिजाइन किए गए लहंगे में नजर आईं। लहंगे के साथ उन्होंने लेयर्ड ज्वेलरी पहनी थी।
कई प्री-वेडिंग फंक्शन्स हुए
शादी से पहले कपल के कई प्री-वेडिंग फंक्शन्स हुए। इसमें मेहंदी, पैलिकोडुकू, गणेश पूजन और माता की चौकी शामिल है। राणा और मिहिका की रोका सेरेमनी मई में हुई थी। वहीं, जून में लग्न पत्रिकालू रिवाज किया गया, जिसके तहत दुल्हन के घर वाले दूल्हे के घर पहुंचे और फिर शादी कार्ड्स बांटना शुरू किया।
इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की फाउंडर हैं मिहिका
राणा दग्गुबती साउथ इंडियन सिनेमा और बॉलीवुड के पॉपुलर एक्टर्स में शामिल हैं। वहीं, उनकी पत्नी मिहिका ड्यू ड्राप डिजाइन स्टूडियो नाम की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की फाउंडर हैं। वे एक पॉपुलर ऑनलाइन इंटीरियर और आर्किटेक्ट मैगजीन में आर्टिकल भी लिखती हैं। उनकी मां बंटी बजाज का ज्वेलरी स्टोर है, जो काफी पॉपुलर है। ज्वेलरी बिजनेस इंडस्ट्री में उनका बड़ा नाम है।
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बताया जा रहा है कि राणा दग्गुबती और मिहिका बजाज की शादी में राम चरण और उनकी पत्नी समेत 30 से कम लोग शामिल हुए थे।
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1997 मे शादी 1999 मे तलाक, 2009 मे दूसरी शादी 2012 मे फिर तलाक, अब विदेशी लड़की का है पति!
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1997 मे शादी 1999 मे तलाक, 2009 मे दूसरी शादी 2012 मे फिर तलाक, अब विदेशी लड़की का है पति!
दोस्तों बॉलीवुड फिल्म जगत में कई सितारों ने दूसरी शादी की है। लेकिन साउथ फिल्म जगत के के पॉपुलर अभिनेता है जिन्होंने एक दो नही बल्कि तीन शादियां की है। बता दे की साउथ के मशहूर अभिनेता का नाम पवन कल्याण है जिन्होंने तीन-तीन शादियां की है।
बता दे की साउथ के मेगा स्टार चिरंजीवी के छोट�� भाई पवन कल्याण साउथ के बहुत बड़े सितारे है उनकी एक्शन फिल्मे है। बता दे की अभिनेता कल्याण की शादीशुदा लाइफ भी हमेशा चर्चा मे रही है। क्योंकि वर्तमान मे पवन जिस लड़की के साथ खुशी-खुशी शादीशुदा जिंदगी बिता रहें है। वह कोई हिंदुस्तानी नही बल्कि एक विदेशी लड़की है जिनका नाम ‘एना’ है। एना, पवन की तीसरी पत्नी है।
बता दे की पवन कल्याण ने पहली शादी 1997 मे नंदिनी से की और 1999 मे तलाक हो गया और उन्होंने दूसरी बार एक्ट्रेस रेनू देसाई से 2009 मे विवाह किया और 2012 मे इनका फिर तलाक हो गया। और फिर पवण की मुलाकात एना से एक फिल्म के सेट पर हुई वही से उनकी लवस्टोरी शुरू हुई और 2013 मे पवन और एना ने शादी कर ली।
ऐसा बहुत कम दिखता है जब पवन कल्याण और एना एक साथ नजर आएं। हाल फिलहाल मे पवन को एना के साथ हैदराबाद एयरपोर्ट पर देखा गया। इन तस्वीरों मे देख सकते है पवन का वजन काफी बढ़ चुका है। और वही उनकी विदेशी पत्नी भी काफी स्टाइलिश अवतार मे दिख रही है। आपको बता दे कि पवन साउथ के मेगास्टार चिरंजीवी के भाई है। और राम चरण, पवन के भतीजे है पवन ने फिल्मों की बदौलत तो अपनी पहचान पूरे हिंदुस्तान मे बनाई है।
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#अजामेल_के_उद्धार_की_कथा🌻
अजामेल काशी शहर में रहता था। ब्राह्मण कुल में जन्मा था परंतु शराब पीता था। वैश्या गमन करता था। वैश्या का नाम मैनका था, बहुत सुंदर थी। परिवार तथा समाज के समझाने पर भी अजामेल नहीं माना तो उन दोनों को नगर से निकाल दिया। वे उसी शहर से एक मील (1.7 किमी.) दूर वन में कुटिया बनाकर रहने लगे। दोनों ने विवाह कर लिया। अजामेल स्वयं शराब तैयार करता था। जंगल से जानवर मारकर लाता और मौज-मस्ती करता था।
🔥#नारद_जी_का_आगमन।
: एक दिन नारद जी काशी में आए तथा किसी से पूछा कि मुझे अच्छे भक्त का घर बताओ। मैंने रात्रि में रूकना है। मेरा भजन बने, उसको सेवा का लाभ मिले। उस व्यक्ति को मज़ाक सूझा और कहा कि आप सामने कच्चे रास्ते जंगल की ओर जाओ। वहाँ एक बहुत अच्छा भक्त रहता है। भक्त तो एकान्त में ही रहते हैं ना। लगभग एक मील (आधा कोस) दूर उसकी कुटी है। गर्मी का मौसम था। सूर्य अस्त होने में डेढ़ घंटा शेष था। नारद जी को द्वार पर देखकर मैनका अति प्रसन्न हुई क्योंकि प्रथम बार कोई मनुष्य उनके घर आया था, वह भी ऋषि। पूर्व जन्म के भक्ति-संस्कार अंदर जमा थे, उन पर जैसे बारिश का जल गिर गया हो, ऐसे एकदम अंकुरित हो गए। मैनका ने ऋषि जी का अत्यधिक सत्कार किया। कहा कि न जाने कौन-से जन्म के शुभ कर्म आगे आए हैं जो हम पापियों के घर भगवान स्वरूप ऋषि जी आए हैं। ऋषि जी के बैठने के लिए एक वृक्ष के नीचे चटाई बिछा दी। उसके ऊपर मृगछाला बिछाकर बैठने को कहा। नारद जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वास्तव में ये पक्के भक्त हैं। बहुत अच्छा समय बीतेगा।
🔥#नारद_जी_का_रुष्ट_होना
कुछ देर में अजामेल आया और जो तीतर-खरगोश मारकर लाया था, वह लाठी में टाँगकर आँगन में प्रवेश हुआ। अपनी पत्नी से कहा कि ले रसोई तैयार कर। सामने ऋषि जी को बैठे देखकर दण्डवत् प्रणाम किया और अपने भाग्य को सराहने लगा। कहा कि ऋषि जी! मैं स्नान करके आता हूँ, तब आपके चरण की सेवा करूँगा। यह कहकर अजामेल निकट के तालाब पर चला गया। नारद जी ने मैनका से पूछा कि देवी! यह कौन है? उत्तर मिला कि यह मेरा पति अजामेल है। नारद जी को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह क्या चक्रव्यूह है? विचार तो भक्तों से भी ऊपर, परंतु कर्म कैसे? नारद जी ने कहा कि देवी! सच-सच बता, माजरा क्या है? शहर में मैंने पूछा था कि किसी अच्छे भक्त का घर बताओ तो आपका एकांत स्थान वाला घर बताया था।
आपके व्यवहार से मुझे पूर्ण संतोष हुआ कि सच में भक्तों के घर आ गया हूँ। यह माँसाहारी आपका पति है तो आप भी माँसाहारी हैं। मेरे साथ मजाक हुआ है। ऋषि नारद उठकर चलने लगे। मैनका ने चरण पकड़ लिये। तब तक अजामेल भी आ गया। अजामेल भी समझ गया कि ऋषि जी गलती से आए हैं। अब जा रहे हैं। पूर्व के भक्ति संस्कार होने के कारण ऋषि जी के, दोनों ने चरण पकड़ लिए और कहा कि हमारे घर से ऋषि भूखा जाएगा तो हमारा नरक में वास होगा। ऋषि जी! आपको हमें मारकर हमारे शव के ऊपर पैर रखकर जाना होगा। नारद जी ने कहा कि आप तो अपराधी हैं। तुम्हारा दर्शन भी अशुभ है।
🔥#नारद_जी_की_अजामेल_को_सीख
अजामेल ने कहा कि हे स्वामी जी! आप तो पतितों का उद्धार करने वाले हो। हम पतितों का उद्धार करें। हमें कुछ ज्ञान सुनाओ। हम आपको कुछ खाए बिना नहीं जाने देंगे। नारद जी ने सोचा कि कहीं ये मलेच्छ यहीं काम-तमाम न कर दें यानि मार न दें, ये तो बेरहम होते हैं, बड़ी संकट में जान आई। कुछ विचार करके नारद जी ने कहा कि यदि कुछ खिलाना चाहते हो तो प्रतिज्ञा लो कि कभी जीव हिंसा नहीं करोगे। माँस-शराब का सेवन नहीं करेंगे। दोनों ने एक सुर में हाँ कर दी। सौगंद है गुरूदेव! कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे, कभी शराब-माँस का सेवन नहीं करेंगे।
नारद जी ने कहा कि पहले यह माँस दूर डालकर आओ और शाकाहारी भोजन पकाओ। तुरंत अजामेल ने वह माँस दूर जंगल में डाला। मैनका ने कुटी की सफाई की। फिर पानी छिड़का। चूल्हा लीपा। अजामेल बोला कि मैं शहर से आटा लाता हूँ। मैनका तुम सब्जी बनाओ। नारद जी की जान में जान आई। भोजन खाया। गर्मी का मौसम था। एक वृक्ष के नीचे नारद जी की चटाई बिछा दी। स्वयं दोनों बारी-बारी सारी रात पंखे से हवा चलाते रहे। नारद जी बैठकर भजन करने लगे। फिर कुछ देर निकली, तब देखा कि दोनों अडिग सेवा कर रहे हैं। नारद जी ने कहा कि आप दोनों भक्ति करो। राम का नाम जाप करो। दोनों ने कहा कि ऋषि जी! भक्ति नहीं कर सकते। रूचि ही नहीं बनती। और सेवा बताओ।
🌹🍄परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना सुहावै।
कै ऊँघै कै उठ चलै, कै औरे बात चलावै।।
तुलसी, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना भावै।
जैसे ज्वर के वेग से, भूख विदा हो जावै।।
भावार्थ :– जैसे ज्वर यानि बुखार के कारण रोगी को भूख नहीं लगती। वैसे ही पापों के प्रभाव से व्यक्ति को परमात्मा की चर्चा में रूचि नहीं होती। या तो सत्संग में ऊँघने लगेगा या कोई अन्य चर्चा करने लगेगा। उसको श्रोता बोलने से मना करेगा तो उठकर चला जाएगा। यही दशा अजामेल तथा मैनका की थी। नारद जी ने कहा कि हे अजामेल! एक आज्ञा का पालन अवश्य करना। आपकी पत्नी को लड़का उत्पन्न होगा। उसका नाम ‘नारायण’ रखना। ऋषि जी चले गए। अजामेल को पुत्र प्राप्त हुआ। उसका नाम नारायण रखा। इकल��ते पुत्र में अत्यधिक मोह हो गया। ज़रा भी इधर-उधर हो जाता तो अजामेल कहने लगता अरे! नारायण, आजा बेटा। ऋषि जी का उद्देश्य था कि यह कर्महीन दंपति इसी बहाने परमात्मा को याद कर लेगा तो कल्याण हो जाएगा। नारद जी ने कहा था कि अंत समय में यदि यम के दूत जीव को लेने आ जाएं तो नारायण कहने से छोड़कर चले जाते हैं। भगवान के दूत आकर ले जाते हैं।
अजामेल की यमदूतो से मुलाकात
एक दिन अचानक अजामेल की मृत्यु हो गई। यम के दूत आ गए। उनको देखकर कहा कि कहाँ गया नारायण बेटा, आजा। {पौराणिक लोग कहते हैं कि ऐसा कहते ही भगवान विष्णु के दूत आए और यमदूतों से कहा कि इसकी आत्मा को हम लेकर जाऐंगे। इसने नारायण को पुकारा है। यमदूतों ने कहा कि धर्मराज का हमारे को आदेश है इसे पेश करने का। इसी बात पर विष्णु जी के दूतों और धर्मराज के यमदूतों में युद्ध हुआ। भगवान के दूत अजामेल को ले गए।}
वास्तव में यमदूत धर्मराज के पास लेकर गए। धर्मराज ने अजामेल का खाता खोला तो उसकी चार वर्ष की आयु शेष थी। फिर देखा कि इसी काशी शहर में दूसरा अजामेल है। उसके पिता का अन्य नाम है। उसको लाना था। उसे लाओ। इसको तुरंत छोड़कर आओ। अजामेल की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी रो-रोकर विलाप कर रही थी। विचार कर रही थी कि अब इस जंगल में अकेले कैसे रह पाऊँगी। बच्चे का पालन कैसे करूंगी? यह क्या बनी भगवान? वह रोती-रोती लकडियाँ इकट्ठी कर रही थी। कुटी के पास में शव को खींचकर ले गई। इतने में अजामेल उठकर बैठ गया। कुछ देर तो शरीर ने कार्य ही नहीं किया। कुछ समय के बाद अपनी पत्नी से कहा कि यह क्या कर रही हो? पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। कहा कि आपकी मृत्यु हो गई थी। अजामेल ने बताया कि यम के दूत मुझे धर्मराज के पास लेकर गए। मेरा खाता (अकाउंट) देखा तो मेरी चार वर्ष आयु शेष थी। मुझे छोड़ दिया और काशी शहर से एक अन्य अजामेल को लेकर जाऐंगे, उसकी मृत्यु होगी। अगले दिन अजामेल शहर गया तो अजामेल के शव को शमशान घाट ले जा रहे थे, तुरंत वापिस आया।
अपनी पत्नी से बताया कि वह अजामेल मर गया है, उसका अंतिम संस्कार करने जा रहे हैं। अब अजामेल को भय हुआ कि भक्ति नहीं की तो ऊपर बुरी तरह पिटाई हो रही थी, नरक में हाहाकार मचा था। नारद जी आए तो अजामेल ने कहा कि गुरू जी! मेरे साथ ऐसा हुआ। मेरी आयु चार वर्ष की बताई थी। एक वर्ष कम हो चुका है। बच्चा छोटा है, मेरी आयु बढ़ा दो। नारद जी ने कहा कि जो समय धर्मराज ने लिखा है, उससे एक श्वांस भी घट-बढ़ नहीं सकता। नारद जी ने कहा कि इस बचे हुए समय में खूब नारायण-नारायण करले। नारद जी चले गए। अजामेल की चिंता ओर बढ़ गई कि भक्ति का लाभ क्या हुआ? दो वर्ष जीवन शेष था।
🔥#परमेश्वर_कबीर_जी_का_अजामेल_को_नाम_दीक्षा_देना
परमेश्वर कबीर जी एक ऋषि वेश में अजामेल के घर प्रकट हुए। अजामेल ने श्रद्धा से ऋषि का सम्मान किया। अपनी समस्या बताई। ऋषि रूप में सतपुरूष जी ने कहा कि आप मेरे से दीक्षा लो। आपकी आयु बढ़ा दूँगा। लेकिन अजामेल ने नारद जी से कथा सुनी थी कि जो आयु लिखी है, वह बढ़-घट नहीं सकती। विचार किया कि दीक्षा लेकर देख लेते हैं। दोनों पति-पत्नी ने कबीर जी से दीक्षा ली। नारायण नाम का जाप त्याग दिया। नए गुरू जी द्वारा दिया नाम जाप किया। मृत्यु वाले वर्ष का अंतिम महीना आया तो खाना कम हो गया, परंतु मंत्र का जाप निरंतर किया। अंतिम दिन भोजन भी नहीं खाया, मंत्र जाप दृढ़ता से करता रहा। वर्ष पूरा हो गया। एक महीना ऊपर हो गया, परंतु भय फिर भी बरकरार था। ऋषि वेश में परमेश्वर आए। दोनों पति-पत्नी देखते ही दौड़े-दौड़े आए। चरणों में गिर गए। गुरूदेव आपकी कृपा से जीवन मिला है। आप तो स्वयं परमेश्वर हैं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा-
मासा घटे ना तिल बढ़े, विधना लिखे जो लेख।
साच्चा सतगुरू मेट कर, ऊपर मारे मेख।।
अब आपकी आयु के लेख मिटाकर कील गाड़ दी है। जब मैं चाहूँगा, तब तेरी मृत्यु होगी। दोनों मिलकर भक्ति करो। अपने पुत्र को भी उपदेश दिलाओ। पुत्र को उपदेश दिलाया। भक्ति करके मोक्ष के अधिकारी हुए।
गरीब, गगन मंडल में रहत है, अविनाशी आप अलेख।
जुगन जुगन सतसंग है, धरि धरि खेले भेख।।
भावार्थ :- जैसा कि ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 86 मंत्र 26,27, मण्डल नं. 9 सूक्त 82 मंत्र 1,2, मण्डल नं. 9 सूक्त 54 मंत्र 3, मण्डल नं. 9 सूक्त 96 मंत्र 16,20, मण्डल नं. 9 सूक्त 94 मंत्र 2, मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्र 1, मण्डल नं. 9 सूक्त 20 मंत्र 1 में कहा है कि परमेश्वर आकाश में सर्व भुवनों (लोकों) के ऊपर के लोक में तीसरे भाग में विराजमान है। वहाँ से चलकर पृथ्वी पर आता है। अपने रूप को सरल करके यानि अन्य वेश में हल्के तेजयुक्त शरीर में पृथ्वी पर प्रकट होता है। अच्छी आत्माओं को यथार्थ आध्यात्म ज्ञान देने के लिए आता है। अपनी वाक (वाणी) द्वारा ज्ञान बताकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है।
कवियों की तरह आचरण करता हुआ विचरण करता है। अपनी महिमा के ज्ञान को कवित्व से यानि दोहों, शब्दों, चौपाईयों के माध्यम से बोलता है। जिस कारण से प्रसिद्ध कवि की उपाधि भी प्राप्त करता है। यही प्रमाण संत गरीबदास जी ने इस अमृतवाणी में दिया है कि परमेश्वर गगन मण्डल यानि आकाश खण्ड (सच्चखण्ड) में रहता है। वह अविनाशी है, अलेख जिसको सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। सामान्य व्यक्ति उनकी महिमा का उल्लेख नहीं कर सकता। वह वहाँ से चलकर आता है। प्रत्येक युग में प्रकट होता है। भिन्न-भिन्न वेश बनाकर सत्संग करता है यानि तत्वज्ञान के प्रवचन सुनाता है।
तत्वदर्शी संत द्वारा प्राप्त भक्ति करने से ही जीव का मोक्ष संभव है। पृथ्वी पर इस समय कबीर परमेश्वर संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में विद्यमान हैं। अजामेल, मैनका और उनके पुत्र नारायण की तरह आप भी मोक्ष के अधिकारी बन सकते हैं। अतिशीघ्र संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें।
■ संत रामपाल जी महाराज जी से दीक्षा कैसे प्राप्त कर सकते हैं इसके लिए प्रतिदिन आप भी सत्संग सुनिए साधना चैनल पर शाम 7.30-8.30 बजे।
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part93
’’त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी का प्रकट होना‘‘
प्रश्न:- धर्मदास जी ने पूछा हे बन्दी छोड़ आप त्रेता युग में मुनिन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित हुए थे। कृप्या उस युग में किन-2 पुण्यात्माओं ने आप की शरण ग्रहण की?
उत्तरः- हे धर्मदास! त्रेता युग में मैं मुनिन्द्र ऋषि के नाम से प्रकट हुआ। त्रेता युग में भी मैं एक शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुआ था। एक वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उसकी साधवी पत्नी थी। वे प्रतिदिन सरोवर पर स्नान करने जाते थे। उनकी आयु आधी से अधिक हो चुकी थी। वह निःसन्तान दम्पति मुझे अपने साथ ले गए तथा सन्तान रूप में पालन किया। प्रत्येक युग में जिस समय मैं एक पूरे जीवन रहने की लीला करने आता हूँ। मेरी परवरिश कंवारी गायों से होती है। बाल्यकाल से ही मैं तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करता हूँ। जिस कारण से मुझे प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त होती है। परन्तु ज्ञानहीन ऋषियों द्वारा भ्रमित जनता मुझे न पहचान कर एक कवि की उपाधि प्रदान कर देती है। केवल मुझ से परिचित श्रद्धालु ही मुझे समझ पाते हैं तथा वे अपना कल्याण करवा लेते हैं। त्रेता युग में कविर्देव का ऋषि मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य’’ लेखक के शब्दों में निम्न पढ़ें:-
”त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य“
”नल तथा नील को शरण में लेना“
त्रेतायुग में स्वयंभु कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्रभावित होकर ऋषि मुनिन्द्र जी से नाम (दीक्षा) ले लिया मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले ऋषियों व संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत हो गई थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास साफ कर देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। दोनों भक्त प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में कब डूब जाती उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। अब ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ डूब जाती। भक्तजनों ने मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृप्या आप नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते हैं और कहते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। बर्तन व वस्त्र धोते समय वे दोनों भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार नल-नील को समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डूबेगी।
‘‘समुन्द्र पर रामचन्द्र के पुल के लिए पत्थर तैराना’’
एक समय की बात है कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं। हनुमान जी ने खोज करके बताया कि सीता माता लंकापति रावण की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के पास शान्ति दूत भेजे तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि रास्ता दे। परन्तु समुद्र टस से मस न हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और कहा कि भगवन् सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु वसे हैं। अगर आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा, जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते।
समुद्र ने कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र से पूछा कि वह क्या है? ब्राह्मण रूप में खडे़ समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी तैर जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है। श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास ���ोई ऐसी शक्ति है? तो नल तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर भी नहीं डूबंेगे। तो श्रीराम ने कहा कि परीक्षण करवाओ।
उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन उन्होंने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी (कबीर परमेश्वर जी) को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर समुद्र के जल में डाला तो वह पत्थर डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की, परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप तो झूठ बोल रहे थे। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद नहीं किया। कृप्या अपने गुरुदेव को याद करो। वे दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु मुनिन्द्र (कबीर परमेश्वर) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है कि आपके सेवकों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं। मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से कभी तैरेंगे भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय। ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।
उस दिन के बाद नल तथा नील की वह शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत आपत्ति पड़ी हुई है। दया करो किसी प्रकार सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु! मुझ पर भी कुछ रजा करो। मुनिन्द्र साहेब जी ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़ है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी करते रहने के लिए राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में लगा देते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जो ऊपर लिखी है।
(सत कबीर की साखी - पृष्ठ 179 से 182 तक)
-ः पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर - गिरवर धारयो कृष्ण जी, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।
कबीर - काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चिन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बड़ो की राम।।28।।
कबीर - कह कबीर चित चेतहंू, शब्द करौ निरूवार।
श्रीरामहि कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।29।।
कबीर - जिन राम कृष्ण व निरंजन कियो, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर विचार।।30।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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teacher or student jokes
टीचर – संजू यमुना नदी कहॉं बहती है ? संजू – जमीन पर टीचर – नक्शे में बताओं कहॉं बहती है ? संजू – नक्शे में कैसे बह सकती है, नक्शा गल नहीं जाएगा टीचर : तुम परिंदो के बारे में सब जानते हो ?? संजू : हाँ टीचर : अच्छा ये बताओ कौन सा परिंदा उड़ नहीं सकता ?? संजू : मरा हुआ परिंदा भाग पागल कहीं का टीचर (स्टूडेंट से) : सेमेस्टर सिस्टम से क्या फायदा है, बताओ? स्टूडेंट : फायदा तो पता नहीं, पर बेइज्जती साल में दो बार हो जाती है टीचर : वाक्य को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करो ‘वसंत ने मुझे मुक्का मारा’ संजू : वसन्तपंचमी टीचर: नालायक पढ़ ले कभी तुने अपनी कोई बुक खोल के देखी है? संजू : हाँ मैं रोज़ खोलता हूँ एक बुक! टीचर : कौन सी? संजू : फेसबुक टीचर : मैं 2 वाक्य दूंगा आपको उसमें अंतर बताना है 1. उसने बर्तन धोये 2. उसे बर्तन धोने पड़े संजू : पहले वाक्य में कर्ता अविवाहित है और दुसरे वाक्य में कर्ता विवाहित है। टीचर अभी तक बेहोश है। इंजीनियरिंग के स्टूडेन्ट – Sir, हमने कॉलेज में एक ऐसी चीज बनाई है…जिसकी सहायता से आप दीवार के आर-पार देख सकते हैं… सर (खुश होते हुए) – वाह ! क्या बात है…क्या चीज है वह ? स्टुडेन्ट – छेद… सर – दे थप्पड़… दे थप्पड़… टीचर – बेटा कबूतर (Kabutar) पर एक वाक्य बनाओ… स्टूडेंट – शाम को पी हुई दारु, साली Kab Utar जाती है… पता ही नहीं चलता… टीचर अभी तक बेहोश है पूरी जवानी निकली जा रही है, इसी इंतजार में…मिलेंगे अगर स्कूल के टीचर तो पूछुँगा जरूर… ये साईन थी��ा, कोस थीटा और टेन थीटा का उपयोग कब करना है… टीचर : एक टोकरी में 10 आम है , उसमें से २ आम सड़ गए , बताओ कितने आम बचे ? संजू : सर , 10 आम टीचर : वो कैसे ? संजू : सड़ने के बाद भी आम तो आम ही रहेगा ना , केले तो बन नहीं जायेंगे आज संजू एक वकील है टीचर: तुम पढ़ने में ध���यान क्यों नहीं देते हो? स्टूडेंट : क्योंकि पढाई सिर्फ दो वजहों से की जाती है….. पहला कारण :डर से दूसरा कारण : शौख़ से और,बिना वजह के शौख हम रखते नहीं और डरते तो किसी के बाप से नहीं। टीचर:- “क्लास में लड़ाई क्यों नही करनी चाहिए..?” संजू:-“क्योंकि पता नही एग्जाम में कब किसके पीछे बैठना पड़ जाये..!” स्कूल मे एक दिन टीचर संजू से :- तुम बड़े होकर क्या बनोगे? संजू :- मेम मै बड़ा होकर सी. ए (CA) बनूँगा, सभी महानगरों मे मेरा बिजनेस चलेगा, हमेशा हवाई यात्रा करूँगा, हमेशा 5 स्टार होटल मे ठहरूँगा, हमेशा 10 नौकर मेरे आसपास रहेंगे, मेरे पास सबसे महंगी कार होगी, मेरे पास सबसे महंगे… टीचर :- बस संजू बस!! बच्चों आप सब को इतना लम्बा जवाब देने की आवश्यकता नही है, सिर्फ एक लाइन मे जवाब देना… … अच्छा पिंकी तुम बताओ तुम बड़ी होकर क्या बनोगी ? पिंकी :- संजू की पत्नी.. टीचर : मैं जो पूछूँ उसका जवाब फटाफट देना संजू : जी सर , टीचर : भारत की राजधानी बताओ ? संजू : फटाफट टीचर अभी तक संजू को पीट रहा है टीचर –1 अक्टूबर, 2 अक्टूबर ओर 15 अक्टूबर को क्या हुआ था जिसे हर साल याद करके उत्सव के रूप में मनाया जाता हे विद्यार्थी –सर 1अक्टूबर को गांधी जी की माँ को भर्ती किया गया था ……. 2अक्टूबर को गांधी जी का जन्म हुआ था जिससे हम 2 अक्टूबर को ग़ांधी जयंती मानते हे टीचर …ओर 15 अक्टूबर क्या हुआ था ??????????????? विद्यार्थी-15 अक्टूबर को गांधी जी की पंजीरी आई थी ।।। …..टीचर आज तक कोमा में हे ……. टीचर : भारत से विदेश जाने वाली पहली महिला कौन थी? चंटू : सीता, श्रीलंका गई थी. टीचर अभी भी बेहोश है. अध्यापक -छात्र से -बताओ तुम इतिहास पुरूष में सब से ज्यादा किससे नफरत करते हो ? बच्चा : राजा राम मोहन राय से अध्यापक – क्यू ?? बच्चा – उसी नें बाल विवाह बँद करवाया था वरना आज हम भी बीवी बच्चे वाले होते ! अध्यापक: बच्चों को महाभारत पढाते हुए………..”कंस ने सुना कि देवकी का आठवां पुत्र उसे मार देगा तो उसने देवकी और वसुदेव को जेल में डाल दिया” पहला बच्चा हुआ, कंस ने मार दिया. दूसरा…….. हुआ, कंस ने मार दिया, तीसरा भी, चौथा भी……….आठवां एक शिष्य: गुरु जी एक मिन्ट.. गुरु: क्या बात है? शिष्य : अगर कंस को पता था कि देवकी और वसुदेव का आठवां बच्चा उसे मार देगा तो उसने दोनों को एक ही कोठरी में बंद क्यों किया? अध्यापक बेहोश! टीचर बच्चों से : कोई ऐसा वाक्य सुनाओ जिसमे हिंदी , उर्दू , पंजाबी और अंग्रेजी का प्रयोग हो संजू : इश्क़ दी गली विच no Entry टीचर बेहोश। ….. टीचर संजू से : तुम्हारे पापा क्या करते हैं ? संजू : जी , वो रोज़ गालियां कहते हैं। टीचर : क्या मतलब ? संजू : सर , वो customer care executive हैं. . अध्यापक : अगर तुम्हारा best friend और Girlfriend दोनों डूब रहे हो तो तुम किसे बचाओगे ? स्टूडेंट : डूब जाने दो सालों को ……….आखिर वो दोनों एक साथ कर क्या रहे थे ? अध्यापक ने गधे के सामने एक बोतल दारु राखी और एक बाल्टी पानी की …. गधा सारा पानी पी गया। अध्यापक ने बच्चों से पूछा तो तुमने क्या सीखा ? बच्चे : जो दारु नहीं पीता वो गधा है तीसरी क्लास का बच्चा (टीचर से) :- मैडम मै आपको कैसा लगता हूँ ?? मैडम :- सो स्वीट… बच्चो :- तो मै अपने मम्मी पापा को कब भेजूं आपके घर ?? मैडम :- क्यों ?? बच्चा :- बात आगे बढाने के लिये…….! मैडम :- ये क्या बकवास है ?? बच्चा :- ट्युशन के लिए……! क्या मैडम आप भी ना… कसम से व्हाट्सएप पढ-पढ कर बिगड. गई हो… टीचर: हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा का मतलब बताओ? संजू: जो अपनी बीवी के सामने मर्द बनने की कोशिश करता है उसकी मदद फिर खुदा ही कर सकता है। टीचर- अगर रात में मच्छर काटे तो क्या करना चाहिए? लड़का-चुपचाप खुजा कर सो जाना चाहिए। क्योंकि आप कोई रजनीकांत तो हो नहीं कि मच्छर से सॉरी बुलवा लोगे। टीचर-संजू एक स्टोरी सूनाओ विद मॉरल संजू -मैने उसको फोन किया वो सो रही थी…. फिर उसने मुझे फोन किया मैं सो रहा था …. . मॉरल – जैसी करनी वैसी भरनी टीचर:- एक तरफ पैसा,दुसरी तरफ अक्कल, क्या चुनोगे ? विद्यार्थीः पैसा. टीचर:- गलत, मै अक्कल चुनती विद्यार्थीः- आप सही कह रही हो मेडम,जिसके पास जिस चीज की कमी होती है वो वही चुनता है …………… दे थप्पड़ दे थप्पड़ एक टीचर ने बच्चे से पूछा : स्कूल क्या है ….?? बच्चे ने जवाब दिया : स्कूल वो जगह है ..जहाँ पर हमारे पापा को लूटा जाता है और हमें कूटा जाता है .. मास्टर ने पूछा- कविता और निबंध में क्या अंतर है?? स्टूडेंट- प्रेमिका के मुंह से निकला एक शब्द भी कविता होता है और पत्नी का एक ही शब्द निबंध के समान होता है.. मास्टर के आंख में आंसू आ गए, गला भर आया.. उन्होने उस लड़के को क्लास का मानीटर बनाया । टीचर : किसी ऐसे द्रव्य का नाम बताओं जिसे जमा नहीं सकते ? स्टुडेन्ट : गरम पानी ! टीचर : कौन से महिने में 28 दिन होते है ? स्टुडेन्ट : Sir, वो तो हर महिने में होते है… ! टीचर (गुस्से में) : जा.. बाहर जाकर लाईन में सबसे आखीर में खड़े हो जा… थोड़ी देर बाद… टीचर (गुस्से में) : तुझे मैंने कहा था न सबसे आखीर में खड़ा हो जा.. स्टुडेन्ट : Sir, पर उस जगह पर पहेले से ही कोई ख़ड़ा है !! शिक्षक ने Black Board पर एक वाक्य लिखा और पूछा… “पोलिस वाला, ट्रक ड्राईवर को धमका रहा है” इस वाक्य का नकारात्मक वाक्य बनाइए… तभी तुरंत चंदु उठा और बोला – “सर, ट्रक ड्राईवर ने पोलिस वाले को हफ्ता दिया नहीं है” सर ने क्लास में पूछा : एक महान वैज्ञानिक का नाम बताओ? लड़का: आलिया भट्ट ! सर: छड़ी हाथ में लेकर…..यह सीखे हो? दूसरा: ये तोतला है सर, आर्यभट्ट बोल रहा है…. बायोलॉजी के टीचर- सेल मतलब शरीर की कोशिकाएं… फिजिक्स केे टीचर- सेल मतलब बैटरी… इकॉनॉमिक के टिचर- सेल मतलब बिक्री…. हिस्ट्री के टीचर- सेल मतलब जेल…. अंग्रेजी के टीचर- सेल मतलब मोबाइल मैने तो भाई पढ़ाई ही छोड दी,जिस स्कूल में पाँच शिक्षक…एक शब्द पर एकमत नहीं हैं…उस स्कूल में पढ़ कर हमें क्या मिलेगा? टीचर- कल स्कूल क्यों नहीं आया था? लड़का- क्यों… कल जो आये थे वो कलेक्टर बन गए क्या ??? शिक्षक: बच्चों क्या तुम जानते हो क़यामत कब आएगी? छात्र: हाँ सर,जब वैलेंटाइन डे और रक्षाबंधन एक ही दिन होगा…. टीचर :- न्यूटन का नियम बताओ.. लड़का:- सर पूरी लाइन तो याद नहीं,, लास्ट का याद है. टीचर :- चलो लास्ट का ही सुनाओ लड़का : …और इसे ही न्यूटन का नियम कहते है.. एक पाकिस्तानी लड़के ने भारत के स्कूल में एडमिशन लिया। टीचर- तुम्हारा नाम क्या है? लड़का- रहीम टीचर- अब तुम भारत में हो,इसलिए आज से तुम्हारा नाम हम ” राम ” रखते है। लड़का घर पहुंचा… मां- पहला दिन कैसा रहा रहीम? लड़का- मैं अब भारतीय हूं और आगे से मुझे राम कहकर पुकारना। मां और पापा ने यह सुनते ही उसकी जमकर धुनाई कर दी। शरीर पर चोट के निशान लिए अगले दिन वह स्कूल पहुंचा। टीचर- क्या हुआ राम ? लड़का- मेरे भारतीय बनने के 4 घंटे बाद ही मुझपर 2 पाकिस्तानियों ने हमला कर दिया टीचर छात्र से : – आयात और निर्यात का एक अच्छा सा उदाहरण बताओ. छात्र :- सोनिया और सानिया .. टीचर :- आपके चरण कहाँ हैं भगवान्। पप्पु एकदम जिन्दा आदमी जैसी तस्वीर बनाता था, स्कूल के मास्टर- भाईसाहब, आपका बेटा बड़ा शरारती है, कल फर्श पे 500 का नोट बना दिया, उसे उठाने के चक्कर में मेरे नाख़ून ही टूट गए। पप्पु पिता :- मास्टर जी मैं खुद अस्पताल में हूँ, साले ने बिजली के सॉकेट पे करीना की फोटो बना दी, सारे होंठ जल गए टीचर – बेटा तुम्हारे घर में सबसे छोटा कौन है? बच्चा – मेरे पापा, टीचर हैरान होकर बोला – बेटा वो कैसे? बच्चा – क्यूंकि वो अभी तक मम्मी के साथ सोते हैं … टीचर बेहोश टीचर: अगर कोई स्कूल के सामने bomb रख जाए , तो तुम क्या करोगे ? स्टूडेंट : 1 – 2 घंटे देखेंगे अगर कोई ले जाता है तो ठीक है , वरना Staff Room में रख देंगे
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