Tumgik
#योग और मैडिटेशन
aghora · 11 months
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nirmal80907373 · 2 days
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#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
#TattvadarshiSantRampalJi #scripture #vedas #hindugods
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तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए और गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है।
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indrabalakhanna · 2 days
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*🙏🍂🌼🍂बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🍂🌼🍂🙏*
*♦🥀सत साहेब जी🥀♦
#GodMorningFriday
#FridayMotivation
#FridayThoughts
♦🥀♦🥀♦🥀♦🥀♦
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5♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
6♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं!
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है!
7♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है!
क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है! जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है!
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
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h1an2s3 · 3 days
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: पवित्र कुरान शरीफ में लिखा है कि एक अल्लाह के सिवा किसी और की पूजा नहीं करनी चाहिए। लेकिन पूरा मुस्लिम समाज पीर पैगंबरों की पूजा में लगा है और दुर्भाग्यवश उस एक कादिर अल्लाह के नाम से भी परिचित नहीं है।
पवित्र कुरआन में वर्णित कादिर अल्लाह को पाने की शास्त्र अनुकूल साधना जानने के लिए देखिये Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: गीता अध्याय 3 श्लोक 6 व गीता अध्याय 17 श्लोक 5, 6 में मेडिटेशन, हठयोग (तपस्या) के लिए मना किया गया है और कुछ पंथों की मुख्य भक्ति साधना ही मेडिटेशन है जोकि शास्त्र विरुद्ध साधना है जिससे गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार लाभ नहीं होगा।
पवित्र सद्ग्रंथों में वर्णित पूर्ण परमात्मा को पाने की शास्त्र अनुकूल साधना जानने के लिए देखिये Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र अनुकूल vs शास्त्र विरुद्ध साधना
शास्त्रानुकूल साधना में पूर्ण परमात्मा की भक्ति के ॐ तत् सत् सांकेतिक मंत्र हैं। - गीता अध्याय 17 श्लोक 23
शास्त्रविरुद्ध साधना में मनमाने मंत्र जाप किए जाते हैं, जैसे- राम-राम, राधे-राधे, हरे राम हरे कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, ॐ भगवते वासुदेवाय नम: आदि। जिनका गीता व वेदों में प्रमाण नहीं होने से व्यर्थ हैं।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
माता के जागरण, कीर्तन और नवरात्रे इनका कहीं प्रमाण नहीं है जिससे यह एक शास्त्र विरुद्ध साधना है।
जबकि गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8-10 के अनुसार शास्त्रों के अनुकूल साधना एक पूर्ण परमात्मा की पूजा है। जिसका प्रमाण सहित ज्ञान संत रामपाल जी महाराज ने दिया है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
अनेक देवी-देवताओ की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है।
शास्त्रों के अनुसार, एक सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति पूर्ण संत द्वारा नाम उपदेश लेकर करना शास्त्र अनुकूल साधना है। वर्तमान में पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी हैं। उनसे नाम उपदेश लेकर अपना कल्याण कराएं।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है। जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनु6कूल साधना
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 में कहा गया है कि जो लोग शास्त्र विरुद्ध साधना अर्थात अविद्या (देवी-देवताओं की पूजा) में लगे रहते हैं, वे अंधकार में जाते हैं।
जबकि वेदों के संक्षिप्त रूप गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 1 में कहा है कि तत्वदर्शी संत मिलने के पश्चात् परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक की खोज करनी चाहिए जहाँ गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात उनका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। जोकि शास्त्र अनुकूल साधना से संभव है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
व्रत करना शास्त्र विरुद्ध साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत करने के लिए मना किया गया है।
सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
गरीब, प्रथम अन्न जल संयम राखै, योग युक्त सब सतगुरू भाखै।
अर्थात अन्न तथा जल को सीमित खावै, न अधिक और न ही कम, यह शास्त्र अनुकूल भक्ति साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
गीता अध्याय 7 श्लोक 20-23 में स्पष्ट कहा है कि जो लोग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, वे अल्पबुद्धि हैं और उन्हें केवल क्षणिक फल प्राप्त होते हैं।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 4 �� अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की भक्ति से परम शांति और सनातन परम धाम सतलोक की प्राप्ति होती है। जहाँ जाने के बाद दोबारा संसार में नहीं आना पड़ता।
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जब हम sunrise से पहले उठ जाते है तो हमें एक अलग ही experience होता है और ऐसा लगता है मानों yeh nature एक नया दिन लिए हमारा स्वागत कर रही है| Sunrise से कुछ समय pehle, आसमान का नजारा अद्भुत होता है और ऐसा लगता है जैसे हमारे अन्दर एक नई energy aa rhi hai. यह मेरा personal experience है, जिस दिन हम सुबह जल्दी उठते है – उस दिन हम ज्यादा खुश और ज्यादा आत्मविश्वास से भरे रहते है| Sunrise से पहले उठने के कई फायदे है :-
1. Creativity बढती है|
2. मैडिटेशन, योग और exercise के लिए अच्छा समय मिल जाता है|
3. एक positive and अच्छी शुरुआत होती है
4. आयुर्वेद के according इससे हमारे शरीर में एक नई उर्जा का संचार होता है|
5. Nature के अद्भुत नज़ारे का बेहतरीन experience होता है|
6. पूरे दिन के kaamo के लिए mentally तैयार होना|
*RAJAN CHAUDHARY* (Motivational Speaker)
#hindiquotes #bestmotivationalspeakerinindia #topmotivationalspeakerinindia #rajan 🌈☀️🌤️⛅☃️💧
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bhoomikakalam · 8 months
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Astrologer और Numerologist भूमिका कलम जी।
ज्योतिष एक ऐसी विधा है जो रहस्य के साथ जिज्ञासा भी जगाती है। वेबदुनिया के इस एपिसोड में हमारे साथ हैं Astrologer और Numerologist भूमिका कलम जी। इस एपिसोड में हमने उनसे ज्योतिष, तंत्र और पूर्व जन्म से जुडी कई जिज्ञासाओं पर प्रश्न किये। अगर आप इस विषय को और अधिक गहराई से समझना चाहते हैं तो यह एपिसोड ज़रूर देखें. #Prediction2024 #Jyotish2024 #Horoscope2024 #Tantra #Zodiac #AnnualHoroscope #yearlyprediction #Astrology #JyotishShastra #Astrologer #numerology #Numerology2024 #pastLife #FuturePrediction #Podcast 00:00 Coming up on the podcast 2:16 Introduction 3:27 ज्योतिष क्या है? 5:10 एक ही दिन, समय और स्थान पर जन्मे बच्चों के भाग्य क्यों होते हैं अलग? 6:42 कुण्डली मिलान के बाद भी क्यों होती है शादियां असफल? 9:01 क्या हर व्यक्ति को कुण्डली दिखवानी चाहिए? 10:38 किस उम्र में दिखाना चाहिए कुण्डली? 11:36 भविष्यवाणियाँ क्यों हो जाती हैं गलत? 15:37 प्रेम विवाह का योग क्या कुण्डली से पता चलता है? 16:00 प्रेम विवाह क्यों होते हैं असफल? 19:35 सरकारी नौकरी का योग बताती है कुण्डली? 21:29 मांगलिक दोष 24:45 शनि की साढ़े साती 28:43 राहु की महादशा 30:50 रातों-रात कैसे बदलती है ज़िन्दगी? 32:40 क्या ज्योतिष अन्धविश्वास नहीं है? 33:31 तिथियों का हेर-फेर? 36:23 कालसर्प दोष और पित्रदोष के उपाय 40:07 मैडिटेशन करने से क्या बदलाव आते हैं? 41:48 क्या सच में ‘नज़र’ लगती है? 47:05 क्या लड़कियाँ नहीं पढ़ सकतीं हनुमान चालीसा? 48:31 क्या बागेश्वर धाम धीरेन्द्र शास्त्री के पास सिद्धि है? 50:15 राज योग और गज केसरी योग 53:28 क्या Life Style से बदलता है भाग्य? 56:37 तंत्र क्या है? 58:48 अघोरी कौन हैं? 1:00:00 शव साधना क्या है? 01:02:08 तंत्र और भैरव साधना 01:04:55 तंत्र में स्त्री का योगिनी स्वरुप 01:07:22 पूर्व जन्म के रहस्य 01:07:55 Past Life Regression 01:11:56 पूर्वजन्म में छुपी बीमारी की जड़ 01:13:51 सबसे बड़ा रामबाण उपाय 01:15:50 वर्ष 2024 की सबसे बड़ी भविष्यवाणी 01:17:28 क्या 2024 विनाशकारी साल है? अपने काम की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें- https://hindi.webdunia.com/utility सिनेमा जगत (बॉलीवुड) की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक
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jyotis-things · 9 months
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( #Muktibodh_part153 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part154
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 296-297
एक परम शक्ति सतपुरूष है। उसकी शरण में जो सतलोक में है, वह प्रलय में कभी नष्ट नहीं होता। उस शक्ति पर बार-बार कुर्बान। सतलोक में करोड़ों कृष्ण यानि विष्णु, करोड़ों शंकर, करोड़ों ब्रह्मा, करोड़ों इन्द्र हैं यानि इन देवताओं जैसी शक्ति वाले सब हंस हैं। शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा की आत्मा उसी सतपुरूष ने उत्पन्न की है। सतपुरूष मेरे स्वरूप जैसा है।
उसका शरीर तेजपुंज का है। हे स्वामी जी! मैं ही सतपुरूष हूँ, बाकी झूठा शोर है। मैं शंख स्वर्गों से उत्तम धाम सतलोक में निवास करता हूँ।
स्वामी रामानंद जी ने कहा कि हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं समाधिस्थ होकर आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी!
आप समाधिस्थ होइए।
वाणी नं. 529-541 में कमलों को हठयोग से खोलने की विधि बताई है। कहीं रामानंद को भ्रम न रह जाए कि कबीर जी को योगियों वाली क्रियाओं का ज्ञान नहीं है। सारा कुछ बताकर
वाणी नं. 542 में कह दिया कि इस हठयोग से सतलोक नहीं जाया जा सकता। ज्यों का त्यों ही बैठे रहो। सामान्य तरीके से बैठे रहो। सब योग आसन त्याग दो। सच्चे नामों का जाप करो।
सर्व सुख तथा मोक्ष मिलेगा।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान (मैडिटेशन) करना नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधि दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी
पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बायां रास्ता धर्मराज ��े लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाल��� रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग
जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाएँ रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है। वह धर्मराय के पास जाकर अपना लेखा (।बबवनदज) करवाकर इसी रास्ते से आगे चलता है। उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है। वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। उस लोक में समय पूरा होने के पश्चात् पुनः उसी मार्ग से धर्मराज के पास आकर कर्मों के अनुसार अन्य जीवन प्राप्त करता है।
धर्मराय का लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का
आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कूएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा।
यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्त्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्र जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का
होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्रा तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर
कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए।
पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। प्राणियों को धोखा देने के लिए उस महास्वर्ग में नकली (क्नचसपबंजम) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा
अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (आद्यमाया) से करवा रखी है। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वार वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वहाँ तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्रा है। जिसमें काल ब्रह्म पाँच मुखी ब्रह्मा रूप बनाकर तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी सावित्रा रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु
रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) महाविष्णु तथा महालक्ष्मी रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में रहकर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) महाशिव तथा महादेवी रूप बनाकर पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण
प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न
तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया जो ग्यारहवां द्वार है।
इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते हैं। बाईं ओर फिर नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्राविरूद्ध ज्ञान पर आधारित करवाता है।
सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है जो इक्कीसवें ब्रह्माण्ड की ओर जाता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है जो बारहवां द्वार है।
फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं।
वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुएँ तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिलेजुले प्रकाश से भी अधिक है।
क्रमशः_____________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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pradeepdasblog · 9 months
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( #Muktibodh_part153 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part154
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 296-297
एक परम शक्ति सतपुरूष है। उसकी शरण में जो सतलोक में है, वह प्रलय में कभी नष्ट नहीं होता। उस शक्ति पर बार-बार कुर्बान। सतलोक में करोड़ों कृष्ण यानि विष्णु, करोड़ों शंकर, करोड़ों ब्रह्मा, करोड़ों इन्द्र हैं यानि इन देवताओं जैसी शक्ति वाले सब हंस हैं। शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा की आत्मा उसी सतपुरूष ने उत्पन्न की है। सतपुरूष मेरे स्वरूप जैसा है।
उसका शरीर तेजपुंज का है। हे स्वामी जी! मैं ही सतपुरूष हूँ, बाकी झूठा शोर है। मैं शंख स्वर्गों से उत्तम धाम सतलोक में निवास करता हूँ।
स्वामी रामानंद जी ने कहा कि हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं समाधिस्थ होकर आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी!
आप समाधिस्थ होइए।
वाणी नं. 529-541 में कमलों को हठयोग से खोलने की विधि बताई है। कहीं रामानंद को भ्रम न रह जाए कि कबीर जी को योगियों वाली क्रियाओं का ज्ञान नहीं है। सारा कुछ बताकर
वाणी नं. 542 में कह दिया कि इस हठयोग से सतलोक नहीं जाया जा सकता। ज्यों का त्यों ही बैठे रहो। सामान्य तरीके से बैठे रहो। सब योग आसन त्याग दो। सच्चे नामों का जाप करो।
सर्व सुख तथा मोक्ष मिलेगा।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान (मैडिटेशन) करना नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधि दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी
पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बायां रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग
जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाएँ रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है। वह धर्मराय के पास जाकर अपना लेखा (।बबवनदज) करवाकर इसी रास्ते से आगे चलता है। उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है। वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। उस लोक में समय पूरा होने के पश्चात् पुनः उसी मार्ग से धर्मराज के पास आकर कर्मों के अनुसार अन्य जीवन प्राप्त करता है।
धर्मराय का लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का
आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कूएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा।
यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्त्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्र जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का
होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्रा तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर
कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए।
पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। प्राणियों को धोखा देने के लिए उस महास्वर्ग में नकली (क्नचसपबंजम) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा
अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (आद्यमाया) से करवा रखी है। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वार वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वहाँ तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्रा है। जिसमें काल ब्रह्म पाँच मुखी ब्रह्मा रूप बनाकर तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी सावित्रा रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु
रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) महाविष्णु तथा महालक्ष्मी रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में रहकर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) महाशिव तथा महादेवी रूप बनाकर पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण
प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न
तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया जो ग्यारहवां द्वार है।
इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते हैं। बाईं ओर फिर नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्राविरूद्ध ज्ञान पर आधारित करवाता है।
सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है जो इक्कीसवें ब्रह्माण्ड की ओर जाता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है जो बारहवां द्वार है।
फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं।
वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुएँ तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम (शरी��� के बाल) का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिलेजुले प्रकाश से भी अधिक है।
क्रमशः_____________
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sawaalkejawaab · 1 year
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मोटापे से परेशान? कुछ ही दिनों में वजन कम करने के लिए जानें ये उपाय
मोटापा आजकल एक आम समस्या बन गया है। लोग अपनी खुराक और जीवनशैली में बदलाव के बिना बढ़ते वजन से परेशान हैं। मोटापा न केवल आपको निराश करता है बल्कि आपकी सेहत पर भी बुरा असर डालता है। इसलिए, आपको अपने वजन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। यहाँ हम आपको मोटापा कम करने के कुछ आसान तरीके बताएंगे।
उपयुक्त खुराक लें। मोटापे की समस्या खुराक में असंतुलितता से होती है। खुराक में आवश्यक तत्वों की कमी से भी मोटापा हो सकता है। इसलिए, आपको अपनी खुराक में स्वस्थ और पौष्टिक तत्वों को शामिल करना चाहिए। फल, सब्जियां, अनाज, दूध, योगराज और फिश खाने से आपका शरीर स्वस्थ रहेगा।
रोजाना व्यायाम करें। दैनिक व्यायाम से मोटापा कम किया जा सकता है। यदि आप नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते हैं तो आप अपने वजन को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। रोजाना 30 मिनट से 1 घंटे तक व्यायाम करें। जैसे चलना, जोगिंग, साइकिल चलाना, स्क्वॉश खेलना आदि। आप योग या अन्य व्यायाम भी कर सकते हैं।
तंदुरुस्त खानपान अपनाएं। मोटापे से निजात पाने के लिए आपको तंदुरुस्त खानपान अपनाना चाहिए। आपको अपने खाने में प्रॉटीन, विटामिन और मिनरल्स की सम्पूर्णता को रखना चाहिए। आपको प्रोसेस्ड और जंक फूड से दूर रहना चाहिए। आपको सुबह का नाश्ता करना चाहिए और रात का खाना कम करना चाहिए।
पानी की अधिक मात्रा में पेय पिएं। अधिक पानी पीने से आपका शरीर स्वस्थ रहेगा और मोटापा भी कम होगा। अपने दैनिक जीवन में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीने की आवश्यकता होती है।
नींद की अधिक मात्रा लें। नींद की अधिक मात्रा लेने से आपका शरीर ठीक से रिकवर होता है और मोटापा भी कम होता है। आपको रोजाना कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए।
स्ट्रेस कम करें। स्ट्रेस भी मोटापा की वजह बन सकता है। स्ट्रेस कम करने के लिए आप ध्यान, योग या मैडिटेशन कर सकते हैं। स्ट्रेस को कम करने के लिए आप नींद लें, मसाज करें, साथ ही खुश रहने की कोशिश करें।
अपने रोजाना के कामों में शामिल हों। अपने रोजाना के कामों में शामिल होने से आपका शरीर अधिक गतिशील होगा और आप अधिक कैलोरी जला सकते हैं। आप चारों ओर चलें, सीढ़ियां चढ़ें और नीचे उतरें और अपनी चाल को तेज करें।
सेहत शिविरों में शामिल हों। सेहत शिविरों में शामिल होने से आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं और अपनी शारीरिक गतिविधियों को स्वस्थ बनाए रख सकते हैं।
मोटापा कम करने के लिए आप अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करने से आसानी से मोटापे से निजात पा सकते हैं। लेकिन याद रखें, ये सब बदलाव आपके दृढ़ता और अधिकतम प्रयास की आवश्यकता होगी। इसलिए, निरंतर अपने लक्ष्य पर काम करते रहें और स्वस्थ और सुखी जीवन जीते रहें।
Original Source: https://sawaal-ke-jawaab.blogspot.com/2023/05/motapa-.html
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fitnessaddaoffcial · 2 years
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Importance of मैडिटेशन- meditation benefits in hindi
योग के बारे मे कुछ बाते: योग करने विमारियो के साथ साथ मानसिक तनाव से भी निजाद मिलता है जैसे -
ध्यान लगाने को योगा शास्त्र मैं बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, सुबह उठकर रोजाना सही अभ्यास आपकी सेहत और शरीर को मजबूत बनाए रखने में विशेष read more
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learningexampur · 2 years
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ग्रुप डी परीक्षा में उत्तीर्ण होने हेतु अंतिम एक महीने की रणनीति
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नमस्कार दोस्तों, चिंता न करें अगर आपने अभी तक ग्रुप डी परीक्षा के लिए खुद को तैयार नहीं किया है। इसमें कोई शक नहीं कि पहले तैयारी करना परीक्षा के लिए फायदेमंद होता है लेकिन आप अपनी तैयारी अभी से शुरू कर सकते हैं। बशर्ते आपको ध्यान और एकाग्रता की आवश्यकता है। 
सबसे पहले, परीक्षा 17 अगस्त 2022 को आयोजित होने जा रही है जिसके माध्यम से रेलवे भर्ती बोर्ड में ग्रुप डी के अंतर्गत आने वाले कई पदों पर भर्ती होने जा रही है। यदि आप भी आरआरबी ग्रुप डी परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले हैं, तो आपको अपने स्कोर में सुधार करने के लिए इस लेख पर अवश्य एक नज़र डालनी चाहिए।
परीक्षा पैटर्न को समझें:- परीक्षा पैटर्न को समझना और पाठ्यक्रम से परिचित होना बहुत ही बुनियादी तथ्य है, जिसे आप किसी भी कीमत पर छोड़ नही सकते। इससे आपको परीक्षा के दौरान समय का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी। यहां परीक्षा पैटर्न की एक झलक दी गई है। परीक्षा में कुल 100 प्रश्न पूछे जायेंगे जिसके लिए 100 अंक दिए जायेंगे। उम्मीदवारों को सभी सवालों के जवाब 90 मिनट में देने होंगे। विषयों के बीच स्पष्ट वितरण जानने के लिए, उम्मीदवारों को Exampur पर जाना चाहिए क्योंकि वे स्पष्ट दृश्य के लिए संपूर्ण परीक्षा विवरण प्रदान कर रहे हैं।
अद्ययन सामग्री इकट्ठा करें:- परीक्षा पैटर्न और सिलेबस को जानने के बाद आप सिलेबस के हिसाब से अद्ययन सामग्री इकट्ठा करें। बहुत सारी किताबें इकट्ठा न करें। बस एक विषय के लिए एक किताब लें और उसे ठीक से पढ़ें। तैयारी के लिए आपको Exampur पर Free RRB Group D Study Material मिलेगा।
आत्मनिरीक्षण: - अब, आपको आरआरबी ग्रुप डी पिछले वर्ष के प्रश्न पत्र का अभ्यास करके अपना आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इससे आपको अपने कमजोर और मजबूत वर्गों को खोजने में मदद मिलेगी। आपको हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रत्येक प्रश्न के उचित समाधान के साथ  Exampur पर RRB Group D Previous Year Question Paper परीक्षा प्रारूप में मिलेगा।
शेड्यूल सेट करें:- आत्मनिरीक्षण के बाद आपको एक शेड्यूल सेट करना चाहिए जिस��ें आपको अपने मजबूत या कमजोर क्षेत्रों के बीच अपना समय बाँटना है। आपको अपनी तैयारी कमजोर क्षेत्रों से शुरू करनी चाहिए और धीरे-धीरे मजबूत क्षेत्रों की ओर बढ़ना चाहिए। 
बुनियादी बातों पर काम करें:- आपको सबसे पहले बेसिक्स पर ध्यान देना चाहिए, इसके लिए आप छोटे और तथ्यात्मक नोट्स तैयार कर सकते हैं जो आखिरी मिनटों में भी आपकी मदद करेंगे।
एक परीक्षा का दिन निर्धारित करें: - आपको सप्ताह में एक बार एक परीक्षा का दिन निर्धारित करना चाहिए ताकि आप अपनी तैयारी को और भी बेहतर कर सके। इसके लिए, आप Exampur में RRB Group D Mock Tests का प्रयास कर सकते हैं जो परीक्षा के नवीनतम पैटर्न पर आधारित हैं और विषय विशेषज्ञों द्वारा डिजाइन किए गए हैं। 
सेहत का ध्यान रखें:- संतुलित आहार खाकर और 6 से 7 घंटे की उचित नींद लेकर आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। परीक्षा के डर को कम करने के लिए आपको योग और मैडिटेशन  करना चाहिए। 
उम्मीद है कि यह लेख तैयारी के दौरान आपकी मदद करेगा। उन सभी को शुभकामनाएं जो आरआरबी ग्रुप डी परीक्षा के लिए उपस्थित होने जा रहे हैं। 
https://exampur.com/test-series/14/rrb-group-d/
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prabhasinha · 2 years
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कबीर परमात्मा जी की लीलाएं भाग 19
रामानन्द जी ने फिर अपनी अन्य शंकाओं का निवारण कराया।
शंका:- हे कविदेर्व! मैं राम-राम कोई मन्त्र शिष्यों को जाप करने को नहीं देता। यदि आपने मुझसे दीक्षा ली है तो वह मन्त्रा बताईए जो मैं शिष्य को जाप करने को देता हूँ। उत्तर कबीर देव का:- हे स्वामी जी! आप ओम् नाम जाप करने को देते हो तथा ओ3म् नमों भगवते वासुदेवाय का जाप तथा विष्णु सतोत्र की आर्वती की भी आज्ञा देते हो। शंका:- आपने जो मन्त्र बताया यह तो सही है। एक शंका और है उसका भी निवारण कीजिए। मैं जिसे शिष्य बनाता हूँ उसे एक चिन्ह देता हूँ। वह आप के पास नहीं है।
उत्तर:- बन्दी छोड़ कबीर देव बोले हे गुरुदेव! आप एक रूद्राक्ष की कण्ठी
(माला) देते हो गले में पहनने के लिए। यह देखो गुरु जी उसी दिन आपने अपनी कण्ठी गले से निकाल कर मेरे गले में पहनाई थी। यह कहते हुए कविदेर्व ने अपने कुतेर् के नीचे गले में पहनी वही कण्ठी (माला) सावर्जनिक कर दी। रामानन्द जी समझ गए यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। यह प्रभु का भेजा हुआ कोई तत्वदशीर् आत्मा है। इस से ज्ञान चर्चा करनी चाहिए। चर्चा के विषय को आगे बढाते हुए स्वामी रामानन्द जी बोले हे बालक कबीर! आप अपने आप को परमेश्वर कहते हो परमात्मा ऐसा अथार्त् मनुष्य जैसा थोड़े ही है। हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अथार्त् हठयोग करता हूँ। मैं आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी! आप समाधिस्थ होइए। स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान करना (मैडिटेशन करना) नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधी दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बाँया रास्ता धमर्राज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वगर् लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग जाता था।
बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाऐं रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है वह धमर्राय के पास जाकर इसी रास्ते से आगे चलता है उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है।
वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। धमर्राय लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सवर् प्रथम है। उस धमर्राज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कुएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा। यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्रा जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्र तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए। पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। उस महास्वर्ग में नकली (duplicate ) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुगार् से करा रखी है। प्राणियों को धोखा देने के लिए। उन सवर् नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वारा वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वह तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्रा है। जिसमें काल ब्रह्म तथा दुगार् (प्रकृति) देवी पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्रा का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्रा बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) पति-पत्नी रूप में रह कर अन्य पुत्रा सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा ���ोने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्रा बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण प्रधान पुत्रा उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति ( द ) द्वारा उत्पन्न तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है। परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते है बाई ओर फिर नकली सतलोक अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्रा विस्द्ध ज्ञान पर आधारित कराता है। सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सुक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। उस काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है। फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूणर् परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ सत्यलोक की सवर् वस्तुऐं तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश एक लाख सूयोर्ं तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिले जुले प्रकाश से भी अधिक है।
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indrabalakhanna · 2 days
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*🙏🍂🌼🍂बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🍂🌼🍂🙏*
*♦🥀सत साहेब जी🥀♦
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5♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
6♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं!
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है!
7♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है!
क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है! जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है!
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
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5♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
6♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं!
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है!
7♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है!
क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है! जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है!
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
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self-careness · 3 years
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फाइव लोटस इंडो जर्मन नेचर केयर केन्द्र:- जाने आयुर्वेद का महत्व:
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आयुर्वेद हमें हजारों वर्षो से स्वास्थ्य जीवन का मार्ग दिखा रहा है | प्राचीन भारत में आयुर्वेद को रोगों के उपचार और स्वस्थ जीवन शैली व्यतीत करने का सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता था। अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्व के कारण, हमने आधुनिक विश्व में भी आयुर्वेद के सिद्धांतों और अवधारणाओं का उपयोग करना नहीं छोड़ा - यह है आयुर्वेद का महत्व।
आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रणाली भारत में 5000 साल पहले उत्पन्न हुई थी। शब्द आयुर्वेद दो संस्कृत शब्दों 'आयुष' जिसका अर्थ जीवन है तथा 'वेद' जिसका अर्थ 'विज्ञान' है, से मिलकर बना है' अतः इसका शाब्दिक अर्थ है “जीवन का विज्ञान”।
प्राचीन काल से चले आ रहे इस आयुर्वेद में लोगो को बहुत विश्वास है माना की किसी भी बीमारी का आयुर्वेद से उसका इलाज करने में थोडा समय लगता है किन्तु बड़ी से बड़ी बीमारी का स्थाई रूप से उपचार हो जाता है | 
कोरोना काल में जब अस्पतालों में न बेड मिल रहे थे और न ही ऑक्सीजन, तब देश के लाखों लोगों की दिलचस्पी आयुर्वेद के देशी  नुस्खों में काफी बढ़ रही है। इन दिनों तमाम लोग आयुर्वेद के जरिए ही घर में रहकर अपना इम्यून सिस्टम मजबूत कर रहे हैं। आयुर्वेद चिकित्सा का उपयोग विभिन्न स्थितियों के इलाज के लिए सदियों से किया जाता रहा है। आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा है जो हमारे मन और शरीर दोनों को ठीक करने में कारगर है। यह कई पीढ़ियों से हमारे घर का हिस्सा रहा है लेकिन महामारी की शुरुआत के बाद से यह काफी चर्चा में ��ुमार हुआ है। इसी बीच जा��रूकता और ज्ञान की कमी ने कई आयुर्वेदिक मिथकों को भी जन्म दे दिया है। 
 हमारे छत्तीसगढ़ में आयुर्वेद ट्रीटमेंट लेकर आये है फाइव लोटस इंडो जर्मन नेचर केयर सेंटर 
१ - इलाज (ट्रीटमेंट ) 
मोटापा ट्रीटमेंट
मधुमेह ट्रीटमेंट
वात रोग ट्रीटमेंट
दर्द प्रबंधन ट्रीटमेंट
डेटॉक्सफिकेशन ट्रीटमेंट
सोरायसिस एवं वरिकोस ट्रीटमेंट
कब्ज ट्रीटमेंट
हाइपोथायरायडिज्म ट्रीटमेंट
लीवर ट्रीटमेंट
अस्थमा एवं साइनोसाइटिस ट्रीटमेंट
सरदर्द ट्रीटमेंट
पाचन विकार ट्रीटमेंट
२- उपचार ( थेरपीस )
प्राकृतिक चिकित्सा थेरपी
आयुर्वेद एवं योग थेरपी
मैडिटेशन थेरपी
औस्पुन्क्टुरे एवं एक्यूप्रेशर थेरपी
सुजोक थेरपी
फिजियोथेरेपी थेरपी
हाइड्रो थेरपी
ये सारी सुविधायें यहाँ उपलव्ध है, फाइव लोटस इंडो जर्मन केयर सेंटर नए तौर - तरीके से आयुर्वेद के साथ लोगो के स्वस्थ को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे है | यह सेंटर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शहर के (अटल नगर) में स्थित है|
आप अगर किसी भी प्रकार से अस्वस्थ है या आप लम्बे समय से किसी बीमारी से लड़ रहे है, तो आप आयुर्वेद की सहायता ले सकते है | हमारी भारतीय संस्कृति में आयुर्वेद का बहुत महत्व बताया गया है | फाइव लोटस में शुद्ध आयुर्वेदिक रूप से इलाज होता हैं | 
आयुर्वेद के लाभ :- 
एक स्वस्थ आहार और आयुर्वेद इलाज के माध्यम से जीवन शैली में संशोधन करके हमारी शरीर का मोटापा कम किया जा सकता है आयुर्वेद से खान-पान में सुधर लाकर हम अपने वजन को संतुलित कर सकते है आर्गेनिक और प्राकृतिक तरीको से आप एक चमकदार और कोमल त्वचा पा  सकते है और एक अच्छी दिनचरिया और अच्छा खान-पान होने से आपका मन भी प्रसन्न रहेगा |
शरीर का शुद्धिकारण:- 
आयुर्वेद में पंचकर्म में एनीमा, तेल मालिश, रक्त देना, शुद्धिकरण और अन्य मौखिक प्रशासन के माध्यम से शारीरिक विषाक्त पदार्थों को समाप्त करने का अभ्यास है। आयुर्वेदिक हर्बल दवाओं जैसे :- हल्दी, तुलसी, नीम, इलायची, अदरक, जीरा, का उपयोग करके आपके शरीर को स्वस्थ बनता है |
आयु्र्वेद के जरिए हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ा सकते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता के बढ़ने से ना केवल कोरोना वायरस जैसी महामारी से खुद को बचाया जा सकता है, बल्कि कई अन्य तरह के घातक वायरस से भी बचाव होता है। बेशक हम इस वायरस से खुद को बचाने के लिए हर तरीके अपना रहे हों, लेकिन कई अध्ययनों में पता चला है कि अब ये हवा में भी मौजूद है। ऐसे में अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर ही हम इससे जीत सकते हैं। इसके लिए कई तरह की जड़ी बूटियां और वनस्पति हमारे काम आएंगी।
गिलोय - जिसे आयुर्वेद में अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि के नाम से भी जाना जाता है | गिलोय आजकल दवा और जूस के रूप में उपलब्ध है। इसे पानी में उबालकर भी पिया जा सकता है। इसे दैनिक आहार में शामिल कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ाई जा सकती है |
आंवला - इसे अमलता के नाम से भी जाना जाता है। आंवले की चटनी या रस का भी सेवन किया जा सकता है। यह चयवनप्राश का प्रमुख घटक है। इसमें बड़ी मात्रा में विटामिन-सी (Vitamin-C) भी मिलता है।
तुलसी - इसके सेवन से ऊपरी और निचले श्वसनतंत्र की बीमारियां जैसे खांसी, सर्दी या श्वास संबंधित कष्ट को दूर कर सकते हैं। तुलसी के पत्तों का भी सेवन किया जा सकता है। या फिर इसे हर्बल टी के तौर पर पी सकते हैं।
हल्दी - आयुर्वेद में हल्दी को काफी गुणकारी माना जाता है। यह हमारी रसोई में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है। इससे सूजन, कर्करोग, अल्जाइमर या ह्रदय रोग में मदद मिलती है। रोज खाने में डालने के अलावा हल्दी का पाउडर दूध में डालकर उसका सेवन किया जा सकता है। या फिर हल्दी की गोलियां भी खा सकते हैं।
काली मिर्च - इसे भी आयुर्वेद में एक अहम स्थान दिया गया है। काली मिर्च को हल्दी  के साथ मिलाकर खा सकते हैं। ये सर्दी को जड़ से खत्म करने में काफी गुणकारी है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और आजकल गोलियों के रूप में भी उपलब्ध है।
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taajmindpower · 3 years
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Meditation and Yoga change your life:- मैं लंबे समय समय से Meditation and Yoga कर रहा हूँ । आज मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव को यहाँ Share कर रहा हूँ । मैं ये अच्छे से जानता हूँ कि Meditation and Yoga ने किस प्रकार मेरे जीवन को बदला है । यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में Meditation and Yoga को अपनाता है तो उसके जीवन में भी बदलाव अवश्य ही होगा । आज मैं आपको “ मैडिटेशन और योग “ के बारे में विस्तार से बताऊँगा । मैडिटेशन वो प्रक्रिया है जिसमे व्यक्ति अपने दिमाग और मन को एकाग्रचित करता है। दोस्तों कई परम्पराओं और मान्याताओं से यह सिद्ध हुआ है कि ध्यान लगाने की प्रक्रिया प्राचीन काल से अभ्यास की जा रही है। मैडिटेशन एक ऐसी अवस्था जिसमे व्यक्ति अपने मन को शांत करके अपने मन में आ रहे विचारों से छुटकारा पा सकता है। https://www.taajmindpower.com/2020/08/How-can-meditation-and-yoga-change-your-life.html #happy #fitness #reikihealing #motivational #happy #yoga #Positivity #meditation https://www.instagram.com/p/CRN7WTul2jq/?utm_medium=tumblr
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avinashgiri · 4 years
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त्राटक क्रिया क्या है?
त्राटक मेडिटेशन क्या है और कितने प्रकार के होते है, इसके क्या लाभ है?
आप सभी को मेरा ओम नमो नारायण आज जिस त्राटक साधना कि हम बात कर रहे हैं यह बहुत ही समझने का विषय है
त्राटक योगा की प्रमुख टेकनीक या कहे की क्रिया या साधना है
सर्वप्रथम त्राटक शब्द का अर्थ – त्राटक शब्द का अर्थ होता है किसी एक विशेष वस्तु पर अपनी नजरो से लगातार देखते रहना
त्राटक क्रिया हठ योगा का एक प्रकार है
यह हठ के सात अंगो में से एक अंग षटकर्म की एक क्रिया है
हठयोग में इस क्रिया का वर्णन दृष्टि को जाग्रत करने की शक्ति के रूप में किया गया है
आँखों को आत्मा का प्रवेशद्वार माना जाता है
त्राटक साधना द्वारा आँखों को और मन के बीच संपर्क स्थापित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है
त्राटक मेडिटेशन को शक्ति और शुद्धी प्रदान करने के लिए की जाती है.
अब हम बात करेंगे आज के जमाने में त्राटक क्रिया का महत्व
आधुनिकीकरण के इस जमाने में मानव के जीवन में तनाव, अवसाद, अशांति, नकारात्मक विचार भी शामिल हो गए है
जिनसे पता चला है की मानव कई सारी उर्जा और समय अनावश्यक विचारो को सोचने में लगा देता है
ऐसी स्थिति में त्राटक साधना द्वारा वह अपने विचारो और उर्जा को सही दिशा प्रदान कर सकता है
इस मेडिटेशन से आप अनचाहे और नकारत्मक विचारो को अपने जीवन से बाहर फेंक पायेंगे
त्राटक क्रिया से आपका फोकस बढेगा, अशांति दूर होगी और आप तनावमुक्त जीवन जी पाओगे
त्राटक मेडिटेशन के क्या लाभ होते है. BENEFITS OF TRATAK MEDITATION
त्राटक का प्रयोग वैसे तो ज्यादातर आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है लेकिन इसके अलावा भी इस योग के कई लाभ होते है जिनका मन बहुत चंचल होता है, मन में हर समय तरह तरह के विचार आते है, जो मन को एकाग्रचित नहीं रख पाते उनके लिए त्राटक साधना बहुत उत्तम होती है
त्राटक साधना से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है त्राटक मेडिटेशन का इस्तेमाल अपनी याददाश्त और फोकस ��ॉवर बढ़ाने के लिए किया जाता है
यह योग आँखों के लिए भी बहुत अच्छा होता है और इससे आँखों की रौशनी बढती है
नेत्र संबंधी रोगों को ठीक करता है मन को शांत रखता है जिन लोगो का मन अशांत रहता है उनके लिए ये बहुत लाभदायक होता है
.त्राटक साधना के प्रकार KINDS OF TRATAK MEDITATION
त्राटक साधना के तीन प्रकार होते है THREE TYPES OF TRATAK SADHNA
1- INNER TRATAK (इनर त्राटक)
यह साधना आँखों को बंद करके की जाती है इस मेडिटेशन में आपको अपने अन्दर ही ध्यान एकाग्र करना होता है
इसमें पीठ को सीधा रखते हुए बैठ जाए और अपनी तीसरी आँख (दोनों आँखों के बीच का हिस्सा) पर फोकस करना होता है
इससे आपको तीसरी आँख में थोडा अनुभव होगा जो की समय के साथ धीरे धीरे गायब होता जायेगा
यह मैडिटेशन नकारात्मक विचारो को दूर करने, बुधिमत्ता बढ़ाने में उपयोगी होता है.
2- MIDDLE TRATAK (मिडिल त्राटक)
त्राटक मेडिटेशन में आपको अपनी आँखों को खुला रखना होता है
इसमें आपको किसी मोमबत्ती या लैंप फ्लेम या किसी बिंदु पर बिना पलके झपकाए ध्यान केन्द्रित करना होता है इससे आपकी आँखों को थोडा जलन का अनुभव हो सकता है
इसमें बाधा पहुचने पर आप इसे बंद करके दोबारा ध्यान चालु कर सकते है इसके नियमित अभ्यास से आँखों में कम जलन होना शुरू हो जाता है
इससे आपकी आँखों की रोशनी बढती है और स्मरण शक्ति तेज होती है
यह साधना ध्यान लगाने वाली वस्तु को अपनी आँखों से लगभग बीस बाईस इंच की दुरी पर रखकर की जानी चाहिए.
3- OUTER TRATAK (आउटर त्राटक)
इस साधना में चाँद सूरज या सित��रों को देखकर ध्यान केन्द्रित किया जाता है
यह दोपहर या रात के समय किया जा सकता है
यह मन को शांत रखता है, एकाग्रता बढ़ाता है मानसिक विकारो को दूर करता है
त्राटक मेडिटेशन को करने की विधि TRATAK MEDITATION VIDHI
त्राटक के लिए किसी अँधेरे या शांत कमरे का चुनाव कीजिये,
अपनी रीढ़ की हड्डी और शरीर को सीधा करते हुए बैठ जाइये, इनर त्राटक के लिए अपनी आँखों को बंद कीजिये और अपनी तीसरी आँख पर ध्यान केन्द्रित कीजिये और मिडिल त्राटक के लिए किसी वस्तु जैसे की मोमबत्ती या लैंप फ्लेम को 25 या 30 इंच की दुरी पर अपने आँखों के समानांतर ही रखिये और इस पर ध्यान केन्द्रित कीजिये यानी की लगातार देखना है
त्राटक मेडिटेशन मे इन बातो का रखे ध्यान
त्राटक के निरंतर अभ्यास से आपकी बिना आँख झपकाए देखने की अवधि बढ़ेगी
ये अभ्यास आप ज्यादा से ज्यादा दस मिनट तक कर सकते है
जो की निरंतर अभ्यास से ही संभव है शुरुआत में आँखों में जलन या आंसू निकल सकते है
पर समय के साथ धीरे धीरे आप अनुभव करेंगे की आप ज्यादा देर तक बिना पलक झपकाए अपना ध्यान केन्द्रित कर पा रहे है
दस मिनट से ज्यादा त्राटक का अभ्यास आँखों को नुकसान भी पंहुचा सकता है
त्राटक के परिणाम लाभदायक होते है और लम्बे समय तक अनुभव किये जाते है
हतोत्साहित होने पर धीरज बांधकर रखिये
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