#योग और मैडिटेशन
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aghora · 1 year ago
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indrabalakhanna · 2 months ago
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*🙏🍂🌼🍂बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🍂🌼🍂🙏*
*♦🥀सत साहेब जी🥀♦
#GodMorningFriday
#FridayMotivation
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♦🥀♦🥀♦🥀♦🥀♦
#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
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5♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। ज��कि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
6♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं!
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है!
7♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है!
क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है! जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है!
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
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[10/12, 6:11 PM] +91 88177 68927: आदि राम कबीर
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
अनेक देवी-देवताओ की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है।
शास्त्रों के अनुसार, एक सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति पूर्ण संत द्वारा नाम उपदेश लेकर करना शास्त्र अनुकूल साधना है। वर्तमान में पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी हैं। उनसे नाम उपदेश लेकर अपना कल्याण कराएं।
Tattvadarshi Sant Rampal Ji
[10/12, 6:11 PM] +91 88177 68927: आदि राम कबीर
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है। जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है।
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
Tattvadarshi Sant Rampal Ji
[10/12, 6:11 PM] +91 88177 68927: आदि राम कबीर
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है।
Tattvadarshi Sant Rampal Ji
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jyotis-things · 1 month ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart104 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart105
कबीर देव द्वारा ऋषि रामानन्द के आश्रम में दो रूप धारण करना
स्वामी रामानन्द जी ने परमेश्वर कबीर जी से कहा कि ‘‘आपने झूठ क्यों बोला?’’ कबीर परमेश्वर जी बोले! कैसा झूठ स्वामी जी? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप कह रहे थे कि आपने मेरे से नाम ले रखा है। आपने मेरे से उपदेश कब लिया? बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी बोले एक समय आप स्नान करने के लिए पँचगंगा घाट पर गए थे। मैं वहाँ लेटा हुआ था। आपके पैरों की खड़ाऊ मेरे सिर में लगी थी! आपने कहा था कि बेटा राम नाम बोलो।
रामानन्द जी बोले-हाँ, अब कुछ याद आया। परन्तु वह तो बहुत छोटा बच्चा था (क्योंकि उस समय पाँच वर्ष की आयु ��े बच्चे बहुत बड़े हो जाया करते थे तथा पाँच वर्ष के बच्चे के शरीर तथा ढ़ाई वर्ष के बच्चे के शरीर में दुगुना अन्तर हो जाता है)। कबीर परमेश्वर जी ने कहा स्वामी जी देखो, मैं ऐसा था। स्वामी रामानन्द जी के सामने भी खड़े हैं और एक ढाई वर्षीय बच्चे का दूसरा रूप बना कर किसी सेवक की वहाँ पर चारपाई बिछी थी उसके ऊपर विराजमान हो गए।
रामानन्द जी ने छः बार तो इधर देखा और छः बार उधर देखा। फिर आँखें मलमल कर देखा कि कहीं तेरी आँखें धोखा तो नहीं खा रही हैं। इस प्रकार देख ही रहे थे कि इतने में कबीर परमेश्वर जी का छोटे वाला रूप हवा में उड़ा और कबीर परमेश्वर जी के बड़े पाँच वर्ष वाले स्वरूप में समा गया। पाँच वर्ष वाले स्वरूप में कबीर परमेश्वर जी रह गए।
मन की पूजा तुम लखी, मुकुट माल प्रवेश। गरीबदास गति को लखै, कौन वर्ण क्या भेष।।
यह तो तुम शिक्षा दई, मानि लई मन मोर। गरीबदास कोमल पुरूष, हमरा बदन कठोर।।
(परमेश्वर कबीर जी द्वारा स्वामी रामानंद जी के आश्रम में दो रूप धारण करना)
रामानन्द जी बोले कि मेरा संशय मिट गया कि आप ही पूर्ण ब्रह्म हो। हे
परमेश्वर! आप को कैसे पहचान सकते हैं। आप किस जाति में उत्पन्न तथा कैसी वेश भूषा में खड़े हो। हम नादान प्राणी आप के साथ वाद-विवाद करके दोषी हो गए, क्षमा करना परमेश्वर कविर्देव, मैं आप का अनजान बच्चा हूँ।
रामानन्द जी ने फिर अपनी अन्य शंकाओं का निवारण कराया। शंका:- हे कविर्देव! मैं राम-राम कोई मन्त्र शिष्यों को जाप करने को नहीं देता। यदि आपने मुझसे दीक्षा ली है तो वह मन्त्र बताईए जो मैं शिष्य को जाप करने को देता हूँ।
उत्तर कबीर देव का:- हे स्वामी जी! आप ओम् नाम जाप करने को देते हो तथा ओ3म् नमों भगवते वासुदेवाय का जाप तथा विष्णु स्तोत्र की आवर्ती की भी आज्ञा देते हो।
शंका:- आपने जो मन्त्र बताया यह तो सही है। एक शंका और है उसका भी निवारण कीजिए। मैं जिसे शिष्य बनाता हूँ उसे एक चिन्ह देता हूँ। वह आप के पास नहीं है।
उत्तर:- बन्दी छोड़ कबीर देव बोले हे गुरुदेव! आप एक रूद्राक्ष की कण्ठी (माला) देते हो गले में पहनने के लिए। यह देखो गुरु जी उसी दिन आपने अपनी कण्ठी गले से निकाल कर मेरे गले में पहनाई थी। यह कहते हुए कविर्देव ने अपने कुर्ते के नीचे गले में पहनी वही कण्ठी (माला) सार्वजनिक कर दी। रामानन्द जी समझ गए यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। यह प्रभु का भेजा हुआ कोई तत्वदर्शी आत्मा है। इस से ज्ञान चर्चा करनी चाहिए। चर्चा के विषय को आगे बढाते हुए स्वामी रामानन्द जी बोले हे बालक कबीर! आप अपने आप को परमेश्वर कहते हो परमात्मा ऐसा अर्थात् मन��ष्य जैसा थोड़े ही है।
हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शांत हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी! आप समाधिस्थ हो जाइए।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान करना (मैडिटेशन करना) नित्य का अभ्यास था, तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधी दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बाँया रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाऐं रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है वह धर्मराय के पास जाकर इसी रास्ते से आगे चलता है उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता।
धर्मराय लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कुएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा। यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्र जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का होता है एक ¬ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्र तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए। पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। उस महास्वर्ग में नकली (duplicate) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा से करा रखी है। प्राणियों को धोखा देने के लिए। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वारा वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वह तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्र है। जिसमें काल ब्रह्म तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया ��ै। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) पति-पत्नी रूप में रह कर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते है बाई ओर फिर नकली सतलोक अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्रा विस्द्ध ज्ञान पर आधारित कराता है। सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सुक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। उस काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है। फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुम्बद (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुऐं तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिले जुले प्रकाश से भी अधिक है।
परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को साथ लेकर सत्यलोक में गए। वहाँ सर्व आत्माओं का भी मानव सदृश शरीर ��ै। उनके शरीर का भी सफेद प्रकाश है। परन्तु सत्यलोक निवासियों के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। बालक रूपधारी कविर्देव ने अपने ही अन्य स्वरूप पर चंवर किया। जो स्वरूप अत्यधिक तेजोमय था तथा सिंहासन पर एक सफेद गुम्बद में विराज मान था। स्वामी रामानन्द जी ने सोचा कि पूर्ण परमात्मा तो यह है जो तेजोमय शरीर युक्त है। यह बाल रूपधारी आत्मा कबीर यहाँ का अनुचर अर्थात् सेवक होगा। स्वामी रामानन्द जी ने इतना विचार ही किया था। उसी समय सिंहासन पर विराजमान तेजोमय शरीर युक्त परमात्मा सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया तथा बालक कबीर जी को सिंहासन पर बैठने के लिए प्रार्थना की नीचे से रामानन्द जी के साथ गया बालक कबीर जी उस सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा वह तेजोमय शरीर धारी प्रभु बालक के सिर पर श्रद्धा से चंवर करने लगा। रामानन्द जी ने सोचा यह परमात्मा इस बच्चे पर चंवर करने लगा। यह बालक यहां का नौकर (सेवक) नहीं हो सकता। इतने में तेजोमय शरीर वाला परमात्मा उस बालक कबीर जी के शरीर में समा गया। बालक कबीर जी का शरीर उसी ��्रकार उतने ही प्रकाश युक्त हो गया जितना पहले सिंहासन पर बैठे पुरूष (परमेश्वर) का था।
इतनी लीला करके स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया। महर्षि रामानन्द जी ने आँखे खोल कर देखा तो बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी को सामने भी बैठा पाया। महर्षि रामानन्द जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह बालक कबीर जी ही परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् वासुदेव (कुल का मालिक) है। दोनों स्थानों (ऊपर सत्यलोक में तथा नीचे पृथ्वी लोक में) पर स्वयं ही लीला
कर रहा है। यही परम दिव्य पुरूष अर्थात् आदि पुरूष है। सत्यलोक में जहाँ पर यह परमात्मा मूल रूप में निवास करता है वह सनातन परमधाम है। परमेश्वर कबीर जी ने इसी प्रकार सन्त गरीबदास जी महाराज छुड़ानी (हरियाणा) वाले को सर्व ब्रह्मण्डों को प्रत्यक्ष दिखाया था। उनका ज्ञान योग खोल दिया था तथा परमेश्वर ने गरीबदास जी महाराज को स्वामी रामानन्द जी के विषय में बताया था कि किस प्रकार मैंने स्वामी जी को शरण में लिया था। महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में उल्लेख किया है।
तहाँ वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार। गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।
बोलत रामानन्द जी सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में तुम ही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भ्रम कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
सुन बे सुन से तुम परे, ऊरै से हमरे तीर। गरीबदास सरबंग में, अबिगत पुरूष कबीर।।
कोटि-2 सिजदा किए, कोटि-2 प्रणाम। गरीबदास अनहद अधर, हम परसे तुम धाम।।
बोले रामानन्द जी, सुनों कबीर सुभान। गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिण्ड अरू प्राण।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ:- सत्यलोक में तथा काशी नगर में पृथ्वी पर दोनों स्थानों पर परमात्मा कबीर जी को देख कर स्वामी रामानन्द जी ने कहा है कबीर परमात्मा आप दोनों स्थानों पर लीला कर रहे हो। आप ही निज ब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् वास्तविक परमेश्वर तो क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष (परब्रह्म) से अन्य ही है। वही परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है वह परम अक्षर ब्रह्म आप ही हैं। आप ही की शक्ति से सर्व प्राणी गति कर रहे हैं। मैंने आप का वह सनातन परम धाम आँखों देखा है तथा वास्तविक अनहद धुन तो ऊपर सत्यलोक में है। ऐसा कह कर स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर के चरणों में कोटि-2 प्रणाम किया तथा कहा आप परमेश्वर हो, आप ही सतगुरु तथा आप ही तत्वदर्शी सन्त हो आप ही हंस अर्थात् नीर-क्षीर को भिन्न-2 करने वाले सच्चे भक्त के गुणों युक्त हो। कबीर भक्त नाम से यहाँ पर प्रसिद्ध हो वास्तव में आप परमात्मा हो। मैं आप का भक्त आप मेरे गुरु जी। परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे स्वामी जी ! गुरु जी तो आप ही रहो। मैं आप का शिष्य हुँ। यह गुरु परम्परा बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। यदि आप मेरे गुरु जी रूप में नहीं रहोगे तो भविष्य में सन्त व भक्त कहा करेंगे कि गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। सीधा ही परमात्मा से ही सम्पर्क करो। ‘‘कबीर’’ ने भी गुरु नहीं बनाया था।
हे स्वामी जी! काल प्रेरित व्यक्ति ऐसी-2 बातें बना कर श्रद्धालुओं को भक्ति की दिशा से भ्रष्ट किया करेंगे तथा काल के जाल में फाँसे रखेंगे। इसलिए संसार की दृष्टि में आप मेरे गुरु जी की भूमिका कीजिये तथा वास्तव में जो साधना की विधि मैं बताऊँ आप वैसे भक्ति कीजिए। स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की बात को स्वीकार किया। कबीर परमेश्वर जी एक रूप में स्वामी रामानन्द जी को तत्वज्ञान सुना रहे थे तथा अन्य रूप धारण करके कुछ ही समय उपरान्त अपने घर पर आ गए। क्योंकि वहाँ नीरू तथा नीमा अति चिन्तित थे। बच्चे को सकुशल घर लौट आने पर नीरू तथा नीमा ने परमेश्वर का शुक्रिया किया। अपने बच्चे कबीर को सीने से लगा कर नीमा रोने लगी तथा बच्चे को अपने पति नीरू के पास ले गई। नीरू ने भी बच्चे कबीर स��� प्यार किया। नीरू ने पूछा बेटा! आप को उन ब्राह्मणों ने मारा तो नहीं? कबीर जी बोले नहीं पिता जी! स्वामी रामानन्द जी बहुत अच्छे हैं। मैंने उनको गुरु बना लिया है। उन्होंने मुझको सर्व ब्राह्मण समाज के समक्ष सीने से लगा कर कहा यह मेरा शिष्य है। आज से मैं सर्व हिन्दु समाज के सर्व जातियों के व्यक्तियों को शिष्य बनाया करूँगा। माता-पिता (नीरू तथा नीमा) अति प्रसन्न हुए तथा घर के कार्य में व्यस्त हो गए।
स्वामी रामानन्द जी ने कहा, हे कबीर जी! हम सर्व की बुद्धि पर पत्थर पड़े थे आपने ही अज्ञान रूपी पत्थरों को हटाया है। बड़ें पुण्यकर्मों से आपका दर्शन सुलभ हुआ है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के ��ंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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subeshivrain · 2 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart105
कबीर देव द्वारा ऋषि रामानन्द के आश्रम में दो रूप धारण करना
स्वामी रामानन्द जी ने परमेश्वर कबीर जी से कहा कि ‘‘आपने झूठ क्यों बोला?’’ कबीर परमेश्वर जी बोले! कैसा झूठ स्वामी जी? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप कह रहे थे कि आपने मेरे से नाम ले रखा है। आपने मेरे से उपदेश कब लिया? बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी बोले एक समय आप स्नान करने के लिए पँचगंगा घाट पर गए थे। मैं वहाँ लेटा हुआ था। आपके पैरों की खड़ाऊ मेरे सिर में लगी थी! आपने कहा था कि बेटा राम नाम बोलो।
रामानन्द जी बोले-हाँ, अब कुछ याद आया। परन्तु वह तो बहुत छोटा बच्चा था (क्योंकि उस समय पाँच वर्ष की आयु के बच्चे बहुत बड़े हो जाया करते थे तथा पाँच वर्ष के बच्चे के शरीर तथा ढ़ाई वर्ष के बच्चे के शरीर में दुगुना अन्तर हो जाता है)। कबीर परमेश्वर जी ने कहा स्वामी जी देखो, मैं ऐसा था। स्वामी रामानन्द जी के सामने भी खड़े हैं और एक ढाई वर्षीय बच्चे का दूसरा रूप बना कर किसी सेवक की वहाँ पर चारपाई बिछी थी उसके ऊपर विराजमान हो गए।
रामानन्द जी ने छः बार तो इधर देखा और छः बार उधर देखा। फिर आँखें मलमल कर देखा कि कहीं तेरी आँखें धोखा तो नहीं खा रही हैं। इस प्रकार देख ही रहे थे कि इतने में कबीर परमेश्वर जी का छोटे वाला रूप हवा में उड़ा और कबीर परमेश्वर जी के बड़े पाँच वर्ष वाले स्वरूप में समा गया। पाँच वर्ष वाले स्वरूप में कबीर परमेश्वर जी रह गए।
मन की पूजा तुम लखी, मुकुट माल प्रवेश। गरीबदास गति को लखै, कौन वर्ण क्या भेष।।
यह तो तुम शिक्षा दई, मानि लई मन मोर। गरीबदास कोमल पुरूष, हमरा बदन कठोर।।
(परमेश्वर कबीर जी द्वारा स्वामी रामानंद जी के आश्रम में दो रूप धारण करना)
रामानन्द जी बोले कि मेरा संशय मिट गया कि आप ही पूर्ण ब्रह्म हो। हे
परमेश्वर! आप को कैसे पहचान सकते हैं। आप किस जाति में उत्पन्न तथा कैसी वेश भूषा में खड़े हो। हम नादान प्राणी आप के साथ वाद-विवाद करके दोषी हो गए, क्षमा करना परमेश्वर कविर्देव, मैं आप का अनजान बच्चा हूँ।
रामानन्द जी ने फिर अपनी अन्य शंकाओं का निवारण कराया। शंका:- हे कविर्देव! मैं राम-राम कोई मन्त्र शिष्यों को जाप करने को नहीं देता। यदि आपने मुझसे दीक्षा ली है तो वह मन्त्र बताईए जो मैं शिष्य को जाप करने को देता हूँ।
उत्तर कबीर देव का:- हे स्वामी जी! आप ओम् नाम जाप करने को देते हो तथा ओ3म् नमों भगवते वासुदेवाय का जाप तथा विष्णु स्तोत्र की आवर्ती की भी आज्ञा देते हो।
शंका:- आपने जो मन्त्र बताया यह तो सही है। एक शंका और है उसका भी निवारण कीजिए। मैं जिसे शिष्य बनाता हूँ उसे एक चिन्ह देता हूँ। वह आप के पास नहीं है।
उत्तर:- बन्दी छोड़ कबीर देव बोले हे गुरुदेव! आप एक रूद्राक्ष की कण्ठी (माला) देते हो गले में पहनने के लिए। यह देखो गुरु जी उसी दिन आपने अपनी कण्ठी गले से निकाल कर मेरे गले में पहनाई थी। यह कहते हुए कविर्देव ने अपने कुर्ते के नीचे गले में पहनी वही कण्ठी (माला) सार्वजनिक कर दी। रामानन्द जी समझ गए यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। यह प्रभु का भेजा हुआ कोई तत्वदर्शी आत्मा है। इस से ज्ञान चर्चा करनी चाहिए। चर्चा के विषय को आगे बढाते हुए स्वामी रामानन्द जी बोले हे बालक कबीर! आप अपने आप को परमेश्वर कहते हो परमात्मा ऐसा अर्थात् मनुष्य जैसा थोड़े ही है।
हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शांत हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं आकाश में बहुत ऊ���र तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी! आप समाधिस्थ हो जाइए।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान करना (मैडिटेशन करना) नित्य का अभ्यास था, तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधी दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बाँया रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाऐं रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है वह धर्मराय के पास जाकर इसी रास्ते से आगे चलता है उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता।
धर्मराय लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कुएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा। यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्र जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का होता है एक ¬ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्र तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए। पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। उस महास्वर्ग में नकली (duplicate) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा से करा रखी है। प्राणियों को धोखा देने के लिए। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वारा वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वह तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्र है। जिसमें काल ब्रह्म तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) पति-पत्नी रूप में रह कर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते है बाई ओर फिर नकली सतलोक अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्रा विस्द्ध ज्ञान पर आधारित कराता है। सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सुक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। उस काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है। फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुम्बद (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुऐं तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिले जुले प्रकाश से भी अधिक है।
परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को साथ लेकर सत्यलोक में गए। वहाँ सर्व आत्माओं का भी मानव सदृश शरीर है। उनके शरीर का भी सफेद प्रकाश है। परन्तु सत्यलोक निवासियों के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। बालक रूपधारी कविर्देव ने अपने ही अन्य स्वरूप पर चंवर किया। जो स्वरूप अत्यधिक तेजोमय था तथा सिंहासन पर एक सफेद गुम्बद में विराज मान था। स्वामी रामानन्द जी ने सोचा कि पूर्ण परमात्मा तो यह है जो तेजोमय शरीर युक्त है। यह बाल रूपधारी आत्मा कबीर यहाँ का अनुचर अर्थात् सेवक होगा। स्वामी रामानन्द जी ने इतना विचार ही किया था। उसी समय सिंहासन पर विराजमान तेजोमय शरीर युक्त परमात्मा सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया तथा बालक कबीर जी को सिंहासन पर बैठने के लिए प्रार्थना की नीचे से रामानन्द जी के साथ गया बालक कबीर जी उस सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा वह तेजोमय शरीर धारी प्रभु बालक के सिर पर श्रद्धा से चंवर करने लगा। रामानन्द जी ने सोचा यह परमात्मा इस बच्चे पर चंवर करने लगा। यह बालक यहां का नौकर (सेवक) नहीं हो सकता। इतने में तेजोमय शरीर वाला परमात्मा उस बालक कबीर जी के शरीर में समा गया। बालक कबीर जी का शरीर उसी प्रकार उतने ही प्रकाश युक्त हो गया जितना पहले सिंहासन पर बैठे पुरूष (परमेश्वर) का था।
इतनी लीला करके स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया। महर्षि रामानन्द जी ने आँखे खोल कर देखा तो बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी को सामने भी बैठा पाया। महर्षि रामानन्द जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह बालक कबीर जी ही परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् वासुदेव (कुल का मालिक) है। दोनों स्थानों (ऊपर सत्यलोक में तथा नीचे पृथ्वी लोक में) पर स्वयं ही लीला
कर रहा है। यही परम दिव्य पुरूष अर्थात् आदि पुरूष है। सत्यलोक में जहाँ पर यह परमात्मा मूल रूप में निवास करता है वह सनातन परमधाम है। परमेश्वर कबीर जी ने इसी प्रकार सन्त गरीबदास जी महाराज छुड़ानी (हरियाणा) वाले को सर्व ब्रह्मण्डों को प्रत्यक्ष दिखाया था। उनका ज्ञान योग खोल दिया था तथा परमेश्वर ने गरीबदास जी महाराज को स्वामी रामानन्द जी के विषय में बताया था कि किस प्रकार मैंने स्वामी जी को शरण में लिया था। महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में उल्लेख किया है।
तहाँ वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार। गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।
बोलत रामानन्द जी सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में तुम ही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भ्रम कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
सुन बे सुन से तुम परे, ऊरै से हमरे तीर। गरीबदास सरबंग में, अबिगत पुरूष कबीर।।
कोटि-2 सिजदा किए, कोटि-2 प्रणाम। गरीबदास अनहद अधर, हम परसे तुम धाम।।
बोले रामानन्द जी, सुनों कबीर सुभान। गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिण्ड अरू प्राण।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ:- सत्यलोक में तथा काशी नगर में पृथ्वी पर दोनों स्थानों पर परमात्मा कबीर जी को देख कर स्वामी रामानन्द जी ने कहा है कबीर परमात्मा आप दोनों स्थानों पर लीला कर रहे हो। आप ही निज ब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् वास्तविक परमेश्वर तो क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष (परब्रह्म) से अन्य ही है। वही परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है वह परम अक्षर ब्रह्म आप ही हैं। आप ही की शक्ति से सर्व प्राणी गति कर रहे हैं। मैंने आप का वह सनातन परम धाम आँखों देखा है तथा वास्तविक अनहद धुन तो ऊपर सत्यलोक में है। ऐसा कह कर स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर के चरणों में कोटि-2 प्रणाम किया तथा कहा आप परमेश्वर हो, आप ही सतगुरु तथा आप ही तत्वदर्शी सन्त हो आप ही हंस अर्थात् नीर-क्षीर को भिन्न-2 करने वाले सच्चे भक्त के गुणों युक्त हो। कबीर भक्त नाम से यहाँ पर प्रसिद्ध हो वास्तव में आप परमात्मा हो। मैं आप का भक्त आप मेरे गुरु जी। परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे स्वामी जी ! गुरु जी तो आप ही रहो। मैं आप का शिष्य हुँ। यह गुरु परम्परा बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। यदि आप मेरे गुरु जी रूप में नहीं रहोगे तो भविष्य में सन्त व भक्त कहा करेंगे कि गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। सीधा ही परमात्मा से ही सम्पर्क करो। ‘‘कबीर’’ ने भी गुरु नहीं बनाया था।
हे स्वामी जी! काल प्रेरित व्यक्ति ऐसी-2 बातें बना कर श्रद्धालुओं को भक्ति की दिशा से भ्रष्ट किया करेंगे तथा काल के जाल में फाँसे रखेंगे। इसलिए संसार की दृष्टि में आप मेरे गुरु जी की भूमिका कीजिये तथा वास्तव में जो साधना की विधि मैं बताऊँ आप वैसे भक्ति कीजिए। स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की बात को स्वीकार किया। कबीर परमेश्वर जी एक रूप में स्वामी रामानन्द जी को तत्वज्ञान सुना रहे थे तथा अन्य रूप धारण करके कुछ ही समय उपरान्त अपने घर पर आ गए। क्योंकि वहाँ नीरू तथा नीमा अति चिन्तित थे। बच्चे को सकुशल घर लौट आने पर नीरू तथा नीमा ने परमेश्वर का शुक्रिया किया। अपने बच्चे कबीर को सीने से लगा कर नीमा रोने लगी तथा बच्चे को अपने पति नीरू के पास ले गई। नीरू ने भी बच्चे कबीर से प्यार किया। नीरू ने पूछा बेटा! आप को उन ब्राह्मणों ने मारा तो नहीं? कबीर जी बोले नहीं पिता जी! स्वामी रामानन्द जी बहुत अच्छे हैं। मैंने उनको गुरु बना लिया है। उन्होंने मुझको सर्व ब्राह्मण समाज के समक्ष सीने से लगा कर कहा यह मेरा शिष्य है। आज से मैं सर्व हिन्दु समाज के सर्व जातियों के व्यक्तियों को शिष्य बनाया करूँगा। माता-पिता (नीरू तथा नीमा) अति प्रसन्न हुए तथा घर के कार्य में व्यस्त हो गए।
स्वामी रामानन्द जी ने कहा, हे कबीर जी! हम सर्व की बुद्धि पर पत्थर पड़े थे आपने ही अज्ञान रूपी पत्थरों को हटाया है। बड़ें पुण्यकर्मों से आपका दर्शन सुलभ हुआ है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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nirmal80907373 · 2 months ago
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तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए और गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है।
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h1an2s3 · 2 months ago
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: पवित्र कुरान शरीफ में लिखा है कि एक अल्लाह के सिवा किसी और की पूजा नहीं करनी चाहिए। लेकिन पूरा मुस्लिम समाज पीर पैगंबरों की पूजा में लगा है और दुर्भाग्यवश उस एक कादिर अल्लाह के नाम से भी परिचित नहीं है।
पवित्र कुरआन में वर्णित कादिर अल्लाह को पाने की शास्त्र अनुकूल साधना जानने के लिए देखिये Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: गीता अध्याय 3 श्लोक 6 व गीता अध्याय 17 श्लोक 5, 6 में मेडिटेशन, हठयोग (तपस्या) के लिए मना किया गया है और कुछ पंथों की मुख्य भक्ति साधना ही मेडिटेशन है जोकि शास्त्र विरुद्ध साधना है जिससे गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार लाभ नहीं होगा।
पवित्र सद्ग्रंथों में वर्णित पूर्ण परमात्मा को पाने की शास्त्र अनुकूल साधना जानने के लिए देखिये Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र अनुकूल vs शास्त्र विरुद्ध साधना
शास्त्रानुकूल साधना में पूर्ण परमात्मा की भक्ति के ॐ तत् सत् सांकेतिक मंत्र हैं। - गीता अध्याय 17 श्लोक 23
शास्त्रविरुद्ध साधना में मनमाने मंत्र जाप किए जाते हैं, जैसे- राम-राम, राधे-राधे, हरे राम हरे कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, ॐ भगवते वासुदेवाय नम: आदि। जिनका गीता व वेदों में प्रमाण नहीं होने से व्यर्थ हैं।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
माता के जागरण, कीर्तन और नवरात्रे इनका कहीं प्रमाण नहीं है जिससे यह एक शास्त्र विरुद्ध साधना है।
जबकि गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8-10 के अनुसार शास्त्रों के अनुकूल साधना एक पूर्ण परमात्मा की पूजा है। जिसका प्रमाण सहित ज्ञान संत रामपाल जी महाराज ने दिया है।
अधिक जानकारी के लिए देखिये
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
अनेक देवी-देवताओ की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है।
शास्त्रों के अनुसार, एक सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति पूर्ण संत द्वारा नाम उपदेश लेकर करना शास्त्र अनुकूल साधना है। वर्तमान में पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी हैं। उनसे नाम उपदेश लेकर अपना कल्याण कराएं।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है। जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है।
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनु6कूल साधना
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 में कहा गया है कि जो लोग शास्त्र विरुद्ध साधना अर्थात अविद्या (देवी-देवताओं की पूजा) में लगे रहते हैं, वे अंधकार में जाते हैं।
जबकि वेदों के संक्षिप्त रूप गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 1 में कहा है कि तत्वदर्शी संत मिलने के पश्चात् परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक की खोज करनी चाहिए जहाँ गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात उनका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। जोकि शास्त्र अनुकूल साधना से संभव है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
व्रत करना शास्त्र विरुद्ध साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत करने के लिए मना किया गया है।
सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
गरीब, प्रथम अन्न जल संयम राखै, योग युक्त सब सतगुरू भाखै।
अर्थात अन्न तथा जल को सीमित खावै, न अधिक और न ही कम, यह शास्त्र अनुकूल भक्ति साधना है।
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[20/09, 7:17 am] +91 83078 98929: शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
गीता अध्याय 7 श्लोक 20-23 में स्पष्ट कहा है कि जो लोग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, वे अल्पबुद्धि हैं और उन्हें केवल क्षणिक फल प्राप्त होते हैं।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 4 व अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की भक्ति से परम शांति और सनातन परम धाम सतलोक की प्राप्ति होती है। जहाँ जाने के बाद दोबारा संसार में नहीं आना पड़ता।
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rajanchaudharymotivation · 6 months ago
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जब हम sunrise से पहले उठ जाते है तो हमें एक अलग ही experience होता है और ऐसा लगता है मानों yeh nature एक नया दिन लिए हमारा स्वागत कर रही है| Sunrise से कुछ समय pehle, आसमान का नजारा अद्भुत होता है और ऐसा लगता है जैसे हमारे अन्दर एक नई energy aa rhi hai. यह मेरा personal experience है, जिस दिन हम सुबह जल्दी उठते है – उस दिन हम ज्यादा खुश और ज्यादा आत्मविश्वास से भरे रहते है| Sunrise से पहले उठने के कई फायदे है :-
1. Creativity बढती है|
2. मैडिटेशन, योग और exercise के लिए अच्छा समय मिल जाता है|
3. एक positive and अच्छी शुरुआत होती है
4. आयुर्वेद के according इससे हमारे शरीर में एक नई उर्जा का संचार होता है|
5. Nature के अद्भुत नज़ारे का बेहतरीन experience होता है|
6. पूरे दिन के kaamo के लिए mentally तैयार होना|
*RAJAN CHAUDHARY* (Motivational Speaker)
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bhoomikakalam · 11 months ago
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Astrologer और Numerologist भूमिका कलम जी।
ज्योतिष एक ऐसी विधा है जो रहस्य के साथ जिज्ञासा भी जगाती है। वेबदुनिया के इस एपिसोड में हमारे साथ हैं Astrologer और Numerologist भूमिका कलम जी। इस एपिसोड में हमने उनसे ज्योतिष, तंत्र और पूर्व जन्म से जुडी ��ई जिज्ञासाओं पर प्रश्न किये। अगर आप इस विषय को और अधिक गहराई से समझना चाहते हैं तो यह एपिसोड ज़रूर देखें. #Prediction2024 #Jyotish2024 #Horoscope2024 #Tantra #Zodiac #AnnualHoroscope #yearlyprediction #Astrology #JyotishShastra #Astrologer #numerology #Numerology2024 #pastLife #FuturePrediction #Podcast 00:00 Coming up on the podcast 2:16 Introduction 3:27 ज्योतिष क्या है? 5:10 एक ही दिन, समय और स्थान पर जन्मे बच्चों के भाग्य क्यों होते हैं अलग? 6:42 कुण्डली मिलान के बाद भी क्यों होती है शादियां असफल? 9:01 क्या हर व्यक्ति को कुण्डली दिखवानी चाहिए? 10:38 किस उम्र में दिखाना चाहिए कुण्डली? 11:36 भविष्यवाणियाँ क्यों हो जाती हैं गलत? 15:37 प्रेम विवाह का योग क्या कुण्डली से पता चलता है? 16:00 प्रेम विवाह क्यों होते हैं असफल? 19:35 सरकारी नौकरी का योग बताती है कुण्डली? 21:29 मांगलिक दोष 24:45 शनि की साढ़े साती 28:43 राहु की महादशा 30:50 रातों-रात कैसे बदलती है ज़िन्दगी? 32:40 क्या ज्योतिष अन्��विश्वास नहीं है? 33:31 तिथियों का हेर-फेर? 36:23 कालसर्प दोष और पित्रदोष के उपाय 40:07 मैडिटेशन करने से क्या बदलाव आते हैं? 41:48 क्या सच में ‘नज़र’ लगती है? 47:05 क्या लड़कियाँ नहीं पढ़ सकतीं हनुमान चालीसा? 48:31 क्या बागेश्वर धाम धीरेन्द्र शास्त्री के पास सिद्धि है? 50:15 राज योग और गज केसरी योग 53:28 क्या Life Style से बदलता है भाग्य? 56:37 तंत्र क्या है? 58:48 अघोरी कौन हैं? 1:00:00 शव साधना क्या है? 01:02:08 तंत्र और भैरव साधना 01:04:55 तंत्र में स्त्री का योगिनी स्वरुप 01:07:22 पूर्व जन्म के रहस्य 01:07:55 Past Life Regression 01:11:56 पूर्वजन्म में छुपी बीमारी की जड़ 01:13:51 सबसे बड़ा रामबाण उपाय 01:15:50 वर्ष 2024 की सबसे बड़ी भविष्यवाणी 01:17:28 क्या 2024 विनाशकारी साल है? अपने काम की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें- https://hindi.webdunia.com/utility सिनेमा जगत (बॉलीवुड) की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक
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pradeepdasblog · 11 months ago
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( #Muktibodh_part153 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part154
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 296-297
एक परम शक्ति सतपुरूष है। उसकी शरण में जो सतलोक में है, वह प्रलय में कभी नष्ट नहीं होता। उस शक्ति पर बार-बार कुर्बान। सतलोक में करोड़ों कृष्ण यानि विष्णु, करोड़ों शंकर, करोड़ों ब्रह्मा, करोड़ों इन्द्र हैं यानि इन देवताओं जैसी शक्ति वाले सब हंस हैं। शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा की आत्मा उसी सतपुरूष ने उत्पन्न की है। सतपुरूष मेरे स्वरूप जैसा है।
उसका शरीर तेजपुंज का है। हे स्वामी जी! मैं ही सतपुरूष हूँ, बाकी झूठा शोर है। मैं शंख स्वर्गों से उत्तम धाम सतलोक में निवास करता हूँ।
स्वामी रामानंद जी ने कहा कि हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं समाधिस्थ होकर आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी!
आप समाधिस्थ होइए।
वाणी नं. 529-541 में कमलों को हठयोग से खोलने की विधि बताई है। कहीं रामानंद को भ्रम न रह जाए कि कबीर जी को योगियों वाली क्रियाओं का ज्ञान नहीं है। सारा कुछ बताकर
वाणी नं. 542 में कह दिया कि इस हठयोग से सतलोक नहीं जाया जा सकता। ज्यों का त्यों ही बैठे रहो। सामान्य तरीके से बैठे रहो। सब योग आसन त्याग दो। सच्चे नामों का जाप करो।
सर्व सुख तथा मोक्ष मिलेगा।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान (मैडिटेशन) करना नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधि दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी
पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बायां रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग
जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाएँ रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है। वह धर्मराय के पास जाकर अपना लेखा (।बबवनदज) करवाकर इसी रास्ते से आगे चलता है। उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है। वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। उस लोक में समय पूरा होने के पश्चात् पुनः उसी मार्ग से धर्मराज के पास आकर कर्मों के अनुसार अन्य जीवन प्राप्त करता है।
धर्मराय का लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का
आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कूएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा।
यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्त्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्र जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का
होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्रा तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर
कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए।
पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। प्राणियों को धोखा देने के लिए उस महास्वर्ग में नकली (क्नचसपबंजम) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा
अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (आद्यमाया) से करवा रखी है। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वार वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वहाँ तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्रा है। जिसमें काल ब्रह्म पाँच मुखी ब्रह्मा रूप बनाकर तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी सावित्रा रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु
रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) महाविष्णु तथा महालक्ष्मी रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में रहकर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) महाशिव तथा महादेवी रूप बनाकर पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण
प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न
तीनों लड़किय���ं से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया जो ग्यारहवां द्वार है।
इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते हैं। बाईं ओर फिर नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्राविरूद्ध ज्ञान पर आधारित करवाता है।
सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है जो इक्कीसवें ब्रह्माण्ड की ओर जाता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है जो बारहवां द्वार है।
फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं।
वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुएँ तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिलेजुले प्रकाश से भी अधिक है।
क्रमशः_____________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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sawaalkejawaab · 2 years ago
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मोटापे से परेशान? कुछ ही दिनों में वजन कम करने के लिए जानें ये उपाय
मोटापा आजकल एक आम समस्या बन गया है। लोग अपनी खुराक और जीवनशैली में बदलाव के बिना बढ़ते वजन से परेशान हैं। मोटापा न केवल आपको निराश करता है बल्कि आपकी सेहत पर भी बुरा असर डालता है। इसलिए, आपको अपने वजन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। यहाँ हम आपको मोटापा कम करने के कुछ आसान तरीके बताएंगे।
उपयुक्त खुराक लें। मोटापे की समस्या खुराक में असंतुलितता से होती है। खुराक में आवश्यक तत्वों की कमी से भी मोटापा हो सकता है। इसलिए, आपको अपनी खुराक में स्वस्थ और पौष्टिक तत्वों को शामिल करना चाहिए। फल, सब्जियां, अनाज, दूध, योगराज और फिश खाने से आपका शरीर स्वस्थ रहेगा।
रोजाना व्यायाम करें। दैनिक व्यायाम से मोटापा कम किया जा सकता है। यदि आप नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते हैं तो आप अपने वजन को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। रोजाना 30 मिनट से 1 घंटे तक व्यायाम करें। जैसे चलना, जोगिंग, साइकिल चलाना, स्क्वॉश खेलना आदि। आप योग या अन्य व्यायाम भी कर सकते हैं।
तंदुरुस्त खानपान अपनाएं। मोटापे से निजात पाने के लिए आपको तंदुरुस्त खानपान अपनाना चाहिए। आपको अपने खाने में प्रॉटीन, विटामिन और मिनरल्स की सम्पूर्णता को रखना चाहिए। आपको प्रोसेस्ड और जंक फूड से दूर रहना चाहिए। आपको सुबह ��ा नाश्ता करना चाहिए और रात का खाना कम करना चाहिए।
पानी की अधिक मात्रा में पेय पिएं। अधिक पानी पीने से आपका शरीर स्वस्थ रहेगा और मोटापा भी कम होगा। अपने दैनिक जीवन में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीने की आवश्यकता होती है।
नींद की अधिक मात्रा लें। नींद की अधिक मात्रा लेने से आपका शरीर ठीक से रिकवर होता है और मोटापा भी कम होता है। आपको रोजाना कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए।
स्ट्रेस कम करें। स्ट्रेस भी मोटापा की वजह बन सकता है। स्ट्रेस कम करने के लिए आप ध्यान, योग या मैडिटेशन कर सकते हैं। स्ट्रेस को कम करने के लिए आप नींद लें, मसाज करें, साथ ही खुश रहने की कोशिश करें।
अपने रोजाना के कामों में शामिल हों। अपने रोजाना के कामों में शामिल होने से आपका शरीर अधिक गतिशील होगा और आप अधिक कैलोरी जला सकते हैं। आप चारों ओर चलें, सीढ़ियां चढ़ें और नीचे उतरें और अपनी चाल को तेज करें।
सेहत शिविरों में शामिल हों। सेहत शिविरों में शामिल होने से आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं और अपनी शारीरिक गतिविधियों को स्वस्थ बनाए रख सकते हैं।
मोटापा कम करने के लिए आप अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करने से आसानी से मोटापे से निजात पा सकते हैं। लेकिन याद रखें, ये सब बदलाव आपके दृढ़ता और अधिकतम प्रयास की आवश्यकता होगी। इसलिए, निरंतर अपने लक्ष्य पर काम करते रहें और स्वस्थ और सुखी जीवन जीते रहें।
Original Source: https://sawaal-ke-jawaab.blogspot.com/2023/05/motapa-.html
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indrabalakhanna · 2 months ago
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*🙏🍂🌼🍂बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🍂🌼🍂🙏*
*♦🥀सत साहेब जी🥀♦
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#FridayThoughts
♦🥀♦🥀♦🥀♦🥀♦
#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
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5♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
6♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं!
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है!
7♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है!
क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है! जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है!
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
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5♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 व अध्याय 13 श्लोक 22 के अनुसार उत्तम पुरुष अर्थात परमात्मा तो वह है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उसी एक परमात्मा की हमें भक्ति करनी चाहिए, जो गीता अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना है।
6♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं!
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है!
7♦शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है!
क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है! जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है!
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fitnessaddaoffcial · 2 years ago
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Importance of मैडिटेशन- meditation benefits in hindi
योग के बारे मे कुछ बाते: योग करने विमारियो के साथ साथ मानसिक तनाव से भी निजाद मिलता है जैसे -
ध्यान लगाने को योगा शास्त्र मैं बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, सुबह उठकर रोजाना सही अभ्यास आपकी सेहत और शरीर को मजबूत बनाए रखने में विशेष read more
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jyotis-things · 11 months ago
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( #Muktibodh_part153 के आगे पढिए.....)
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 296-297
एक परम शक्ति सतपुरूष है। उसकी शरण में जो सतलोक में है, वह प्रलय में कभी नष्ट नहीं होता। उस शक्ति पर बार-बार कुर्बान। सतलोक में करोड़ों कृष्ण यानि विष्णु, करोड़ों शंकर, करोड़ों ब्रह्मा, करोड़ों इन्द्र हैं यानि इन देवताओं जैसी शक्ति वाले सब हंस हैं। शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा की आत्मा उसी सतपुरूष ने उत्पन्न की है। सतपुरूष मेरे स्वरूप जैसा है।
उसका शरीर तेजपुंज का है। हे स्वामी जी! मैं ही सतपुरूष हूँ, बाकी झूठा शोर है। मैं शंख स्वर्गों से उत्तम धाम सतलोक में निवास करता हूँ।
स्वामी रामानंद जी ने कहा कि हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं समाधिस्थ होकर आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी!
आप समाधिस्थ होइए।
वाणी नं. 529-541 में कमलों को हठयोग से खोलने की विधि बताई है। कहीं रामानंद को भ्रम न रह जाए कि कबीर जी को योगियों वाली क्रियाओं का ज्ञान नहीं है। सारा कुछ बताकर
वाणी नं. 542 में कह दिया कि इस हठयोग से सतलोक नहीं जाया जा सकता। ज्यों का त्यों ही बैठे रहो। सामान्य तरीके से बैठे रहो। सब योग आसन त्याग दो। सच्चे नामों का जाप करो।
सर्व सुख तथा मोक्ष मिलेगा।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान (मैडिटेशन) करना नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधि दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी
पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बायां रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मो�� से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग
जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाएँ रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है। वह धर्मराय के पास जाकर अपना लेखा (।बबवनदज) करवाकर इसी रास्ते से आगे चलता है। उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है। वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। उस लोक में समय पूरा होने के पश्चात् पुनः उसी मार्ग से धर्मराज के पास आकर कर्मों के अनुसार अन्य जीवन प्राप्त करता है।
धर्मराय का लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का
आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कूएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा।
यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्त्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्र जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का
होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्रा तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर
कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए।
पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। प्राणियों को धोखा देने के लिए उस महास्वर्ग में नकली (क्नचसपबंजम) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा
अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (आद्यमाया) से करवा रखी है। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वार वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वहाँ तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्रा है। जिसमें काल ब्रह्म पाँच मुखी ब्रह्मा रूप बनाकर तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी सावित्रा रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु
रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) महाविष्णु तथा महालक्ष्मी रूप बनाकर पति-पत्नी रूप में रहकर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) महाशिव तथा महादेवी रूप बनाकर पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण
प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न
तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया जो ग्यारहवां द्वार है।
इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते हैं। बाईं ओर फिर नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्राविरूद्ध ज्ञान पर आधारित करवाता है।
सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है जो इक्कीसवें ब्रह्माण्ड की ओर जाता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है जो बारहवां द्वार है।
फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं।
वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुएँ तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिलेजुले प्रकाश से भी अधिक है।
क्रमशः_____________
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learningexampur · 2 years ago
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ग्रुप डी परीक्षा में उत्तीर्ण होने हेतु अंतिम एक महीने की रणनीति
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नमस्कार दोस्तों, चिंता न करें अगर आपने अभी तक ग्रुप डी परीक्षा के लिए खुद को तैयार नहीं किया है। इसमें कोई शक नहीं कि पहले तैयारी करना परीक्षा के लिए फायदेमंद होता है लेकिन आप अपनी तैयारी अभी से शुरू कर सकते हैं। बशर्ते आपको ध्यान और एकाग्रता की आवश्यकता है। 
सबसे पहले, परीक्षा 17 अगस्त 2022 को आयोजित होने जा रही है जिसके माध्यम से रेलवे भर्ती बोर्ड में ग्रुप डी के अंतर्गत आने वाले कई पदों पर भर्ती होने जा रही है। यदि आप भी आरआरबी ग्रुप डी परीक्षा के लिए उपस्थित होने ��ाले हैं, तो आपको अपने स्कोर में सुधार करने के लिए इस लेख पर अवश्य एक नज़र डालनी चाहिए।
परीक्षा पैटर्न को समझें:- परीक्षा पैटर्न को समझना और पाठ्यक्रम से परिचित होना बहुत ही बुनियादी तथ्य है, जिसे आप किसी भी कीमत पर छोड़ नही सकते। इससे आपको परीक्षा के दौरान समय का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी। यहां परीक्षा पैटर्न की एक झलक दी गई है। परीक्षा में कुल 100 प्रश्न पूछे जायेंगे जिसके लिए 100 अंक दिए जायेंगे। उम्मीदवारों को सभी सवालों के जवाब 90 मिनट में देने होंगे। विषयों के बीच स्पष्ट वितरण जानने के लिए, उम्मीदवारों को Exampur पर जाना चाहिए क्योंकि वे स्पष्ट दृश्य के लिए संपूर्ण परीक्षा विवरण प्रदान कर रहे हैं।
अद्ययन सामग्री इकट्ठा करें:- परीक्षा पैटर्न और सिलेबस को जानने के बाद आप सिलेबस के हिसाब से अद्ययन सामग्री इकट्ठा करें। बहुत सारी किताबें इकट्ठा न करें। बस एक विषय के लिए एक किताब लें और उसे ठीक से पढ़ें। तैयारी के लिए आपको Exampur पर Free RRB Group D Study Material मिलेगा।
आत्मनिरीक्षण: - अब, आपको आरआरबी ग्रुप डी पिछले वर्ष के प्रश्न पत्र का अभ्यास करके अपना आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इससे आपको अपने कमजोर और मजबूत वर्गों को खोजने में मदद मिलेगी। आपको हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रत्येक प्रश्न के उचित समाधान के साथ  Exampur पर RRB Group D Previous Year Question Paper परीक्षा प्रारूप में मिलेगा।
शेड्यूल सेट करें:- आत्मनिरीक्षण के बाद आपको एक शेड्यूल सेट करना चाहिए जिसमें आपको अपने मजबूत या कमजोर क्षेत्रों के बीच अपना समय बाँटना है। आपको अपनी तैयारी कमजोर क्षेत्रों से शुरू करनी चाहिए और धीरे-धीरे मजबूत क्षेत्रों की ओर बढ़ना चाहिए। 
बुनियादी बातों पर काम करें:- आपको सबसे पहले बेसिक्स पर ध्यान देना चाहिए, इसके लिए आप छोटे और तथ्यात्मक नोट्स तैयार कर सकते हैं जो आखिरी मिनटों में भी आपकी मदद करेंगे।
एक परीक्षा का दिन निर्धारित करें: - आपको सप्ताह में एक बार एक परीक्षा का दिन निर्धारित करना चाहिए ताकि आप अपनी तैयारी को और भी बेहतर कर सके। इसके लिए, आप Exampur में RRB Group D Mock Tests का प्रयास कर सकते हैं जो परीक्षा के नवीनतम पैटर्न पर आधारित हैं और विषय विशेषज्ञों द्वारा डि��ाइन किए गए हैं। 
सेहत का ध्यान रखें:- संतुलित आहार खाकर और 6 से 7 घंटे की उचित नींद लेकर आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। परीक्षा के डर को कम करने के लिए आपको योग और मैडिटेशन  करना चाहिए। 
उम्मीद है कि यह लेख तैयारी के दौरान आपकी मदद करेगा। उन सभी को शुभकामनाएं जो आरआरबी ग्रुप डी परीक्षा के लिए उपस्थित होने जा रहे हैं। 
https://exampur.com/test-series/14/rrb-group-d/
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prabhasinha · 2 years ago
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कबीर परमात्मा जी की लीलाएं भाग 19
रामानन्द जी ने फिर अपनी अन्य शंकाओं का निवारण कराया।
शंका:- हे कविदेर्व! मैं राम-राम कोई मन्त्र शिष्यों को जाप करने को नहीं देता। यदि आपने मुझसे दीक्षा ली है तो वह मन्त्रा बताईए जो मैं शिष्य को जाप करने को देता हूँ। उत्तर कबीर देव का:- हे स्वामी जी! आप ओम् नाम जाप करने को देते हो तथा ओ3म् नमों भगवते वासुदेवाय का जाप तथा विष्णु सतोत्र की आर्वती की भी आज्ञा देते हो। शंका:- आपने जो मन्त्र बताया यह तो सही है। एक शंका और है उसका भी निवारण कीजिए। मैं जिसे शिष्य बनाता हूँ उसे एक चिन्ह देता हूँ। वह आप के पास नहीं है।
उत्तर:- बन्दी छोड़ कबीर देव बोले हे गुरुदेव! आप एक रूद्राक्ष की कण्ठी
(माला) देते हो गले में पहनने के लिए। यह देखो गुरु जी उसी दिन आपने अपनी कण्ठी गले से निकाल कर मेरे गले में पहनाई थी। यह कहते हुए कविदेर्व ने अपने कुतेर् के नीचे गले में पहनी वही कण्ठी (माला) सावर्जनिक कर दी। रामानन्द जी समझ गए यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। यह प्रभु का भेजा हुआ कोई तत्वदशीर् आत्मा है। इस से ज्ञान चर्चा करनी चाहिए। चर्चा के विषय को आगे बढाते हुए स्वामी रामानन्द जी बोले हे बालक कबीर! आप अपने आप को परमेश्वर कहते हो परमात्मा ऐसा अथार्त् मनुष्य जैसा थोड़े ही है। हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अथार्त् हठयोग करता हूँ। मैं आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी! आप समाधिस्थ होइए। स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान करना (मैडिटेशन करना) नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधी दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बाँया रास्ता धमर्राज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वगर् लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग जाता था।
बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाऐं रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है वह धमर्राय के पास जाकर इसी रास्ते से आगे चलता है उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है।
वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। धमर्राय लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सवर् प्रथम है। उस धमर्राज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कुएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा। यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्रा जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्र का होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्र तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए। पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। उस महास्वर्ग में नकली (duplicate ) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुगार् से करा रखी है। प्राणियों को धोखा देने के लिए। उन सवर् नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वारा वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वह तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्रा है। जिसमें काल ब्रह्म तथा दुगार् (प्रकृति) देवी पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्रा का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्रा बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) पति-पत्नी रूप में रह कर अन्य पुत्रा सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्रा बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण प्रधान पुत्रा उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति ( द ) द्वारा उत्पन्न तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है। परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते है बाई ओर फिर नकली सतलोक अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्रा विस्द्ध ज्ञान पर आधारित कराता है। सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सुक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। उस काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात संख ब्रह्मण्डों में खुलता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है। फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूणर् परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ सत्यलोक की सवर् वस्तुऐं तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश एक लाख सूयोर्ं तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिले जुले प्रकाश से भी अधिक है।
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