#मौसम की जानकी
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उत्तराखंड के इन जिलों में बर्फबारी का ऑरेंज अलर्ट, निचले इलाकों में बारिश, मौसम में आ रहा बड़ा बदलाव
रश्मि खत्री, देहरादून: उत्तराखंड के मौसम में बड़ा बदलाव आ रहा है। पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी और निचले इलाकों में बारिश ने प्रदेश के मौसम को एक बार फिर बदला है। फरवरी- मार्च में ही गर्मी का अहसास शुरू हो गया था। अब मौसम में आ रहे बदलाव से लोगों को राहत मिलती दिख रही है। उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले में 3200 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में आज भारी बर्फबारी का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। पर्वतीय जिलों में मार्च के महीने में हो रही बर्फबारी से ठंड का एहसास होने लगा है। मौसम विभाग के अनुसार शनिवार और रविवार को पर्वतीय जिलों में भारी बर्फबारी होगी। देहरादून, हरिद्वार, टिहरी और नैनीताल जिले के कुछ इलाकों में भारी बारिश का येलो अलर्ट भी जारी किया गया है। इसके साथ ही 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से झोंकेदार हवाएं भी चलेंगी। मौसम विज्ञानियों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन और मौसम के बदलते चक्र के कारण मार्च में भी मौसम में बदलाव आया है और मार्च के महीने में जनवरी के जैसा मौसम बना हुआ है। इसका मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ का सक्रिय होना है। पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने की वजह से बारिश और भारी हिमपात की संभावनाएं बन रही हैं। 4 मार्च के बाद मौसम साफ हो जाएगा। हालांकि पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश और बर्फबारी होने के बावजूद तापमान पर इसका कोई खास असर नहीं दिखाई दे रहा है। शुक्रवार को देहरादून का अधिकतम तापमान 25.7 और न्यूनतम तापमान 12.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। पंतनगर का अधिकतम तापमान 27.5 और न्यूनतम तापमान 8.0 डिग्री सेल्सियस रहा। मुक्तेश्वर का अधिकतम तापमान 19.5 और न्यूनतम तापमान 6.8 डिग्री सेल्सियस रहा न्यू। नई टिहरी का तापमान 14.4 और न्यूनतम तापमान 7.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। शुक्रवार को यमुनोत्री धाम सहित आसपास के इलाकों में दोपहर बाद से ही बारिश शुरू हो गई थी। वही हहर्षिल और मां गंगा की शीतकालीन धाम मुखबा में भी काफी बर्फबारी हुई है। यहां पर अभी तक 6 इंच से ज्यादा बार जम चुकी है। भारी बर्फबारी के कारण यमुनोत्री क्षेत्र में ठंड में भी बढ़ोतरी हुई है। जानकी चट्टी, खरसाली, नारायणपुरी, फूल चट्टी क्षेत्र में भी काफी बर्फबारी हुई है। बद्रीनाथ, केदारनाथ धाम, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी गोरसों बुग्याल आदि क्षेत्रों में भी बर्फबारी हुई है। http://dlvr.it/T3VQmc
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'फाल्गुन आयो रे...', जानिए कब है होली? फाल्गुन महीने में महाशिवरात्रि भी पड़ती है तो वहीं इस माह में एकादशी और संकष्टी भी आती है और इस माह का समापन होली से होता है।
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
🌻🛕 *ऊँ गं गणपतये नमः*🛕🌻
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे राधे*🌹
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फाल्गुन का महीना मस्ती का महीना कहलाता है, कड़कड़ाती सर्दी के बाद धूप की गर्मी ना केवल इंसान को ऊर्जा से भर देती है बल्कि वो मन में चंचलता भी पैदा करती है, जिसकी वजह से ही इंसान का मन इस मौसम में काफी मस्ती भरा होता है। इस महीने का प्रारंभ आज से हो गया है और इसका समापन होली के त्योहार के साथ 7-8 मार्च को होगा, इसी महीने में महाशिवरात्रि भी पड़ती है तो वहीं इस माह में एकादशी और संकष्टी भी आती है। इस महीने की शुरुआत होते ही ब्रजवासियों के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है क्योंकि फाल्गुन शुरू होते ही फगुआ जो शुरू हो जाता है, इस महीने कभी वो फूलों से , कभी रंग से तो कभी दूध-दही और बांस से होली खेला करते हैं। चलिए आपको विस्तार से बताते हैं इस महीने के त्योहारों और व्रत की लिस्ट जिसे देखकर आप अपने पूरे महीने की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं।
फाल्गुन माह के व्रत-त्योहार
9 फरवरी- संकष्टी चतुर्थी व्रत
12 फरवरी- यशोदा जयंती
13 फरवरी- शबरी जयंती
14 फरवरी- जानकी ��यंती
16 फरवरी- विजया एकादशी
18 फरवरी- महाशिवरात्रि,
18 फरवरी- प्रदोष व्रत
19 फरवरी- पंचक प्रारंभ
20 फरवरी- सोमवती अमावस्या
22 फरवरी- फुलैरा दूज
23 फरवरी- विनायक चतुर्थी
24 फरवरी- पंचक समाप्त, 24 फरवरी- माता शबरी जयंती
27 फरवरी- होलाष्टक प्रारंभ
3 मार्च- आमलकी एकादशी
3 मार्च- रंगभरी एकादशी
4 मार्च- प्रदोष व्रत 4 मार्च- गोविंद द्वादशी
7 मार्च- होलिका दहन
8 मार्च- होलाष्टक समाप्त, होली, फाल्गुन मास समाप्त
क्यों मनाते हैं होली?
होली प्रेम, हंसी, दुलार और बुराई पर अच्छाई का पर्व है, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाले इस पर्व से जुड़ी तो कई कहानियां है लेकिन सबसे प्रचलित कहानी भक्त प्रहलाद और हिरण्याकश्यप असुर की है। प्रहलाद बहुत बड़ा विष्णु भक्त था लेकिन हिरण्याकश्यप को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, वो खुद को ही ईश्वर मानता था इसलिए सोचता था कि उसका बेटा प्रहलाद उसकी पूजा करे लेकिन ऐसा हुआ नहीं, वो अपने ही बेटे को काफी प्रताड़ित करता था। उसकी एक बहन थी होलिका, जिसे कि वरदान मिला था कि वो अग्नि से नहीं जलेगी इसलिए हिरण्याकश्यप ने कहा कि वो प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाए लेकिन हुआ ठीक उल्टा, होलिका आग में जल गई और प्रहलाद सकुशल आग से वापस आ गया। इसी वजह से होलिका दहन किया जाता है और इसके दूसरे दिन रंग वाली होली खेली जाती है। माना जाता है होलिका दहन के साथ बुराईयों का नाश होता है और प्रहलाद यानी खुशी का संचार होता है।
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"समय जानि गुरू आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोऊ भाई॥" इधर राम जी वाटिका में पहुँचे, उधर से सीता जी भी आई हैं। सीता जी से एक सखी ने निवेदन किया कि जानकी जी, आप यहीं रहें, मैं कुछ पुष्प ले आऊँ। वह इधर आई तो उसे भगवान का दर्शन हो गया, वापिस जाकर सीता जी को बताया। सीता जी कहती हैं कि सखी हमें भी दर्शन करा दो। सखी ने कहा, क्यों नहीं, आएँ मेरे संग। सीता जी सखी के पीछे पीछे चलीं और राम जी का दर्शन पा लिया। देखो, संत ही सखी है, जो भगवान को पाना चाहे वह संत का संग करे, संत के पीछे पीछे चले। वो मार्ग जानते हैं, उन्हें दर्शन प्राप्त है, वही करा भी सकते हैं। यह घटना अघहन माह की है। अघ माने पाप, हन माने नाश, पाप का नाश हो तो भगवान का दर्शन हो। सीता जी यहाँ पलक नहीं झपकतीं, चरणों में वृत्ति टिक गई। इधर राम जी सुमन तोड़ रहे हैं, सर्दी का मौसम है, सुबह का समय है, पर माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही हैं। कोई कहने लगी, इन्हें तो सुमन तोड़ने में ही पसीना आ रहा है, ये धनुष क्या तोड़ेंगे? लक्ष्मण जी ने सुना तो राम जी की ओर देखा, राम जी की आँखें भीग आईं। कहते हैं, लक्ष्मण! ये सुमन मुझसे कहते हैं कि भगवान हमें अपने हाथों से तोड़ लो, हमारा खिलना सफल हो जाएगा। नहीं तो वैसे भी हमें मुरझाकर गिरना ही है। मुझे सुमन तोड़ने में पसीना आ गया, क्योंकि ये सुमन हैं ना! सु-मन, सुंदर मन। सुंदर मन तोड़ने में संकोच तो होगा ही। लोकेशानन्द कहता है कि आप भी अपना मन सुमन बना कर भगवान के चरणों में समर्पित कर दें। टूटना तो उसे वैसे भी है, पर टूटकर मिट्टी में मिलने से अच्छा है कि भगवान ही उसे तोड़कर, अपने हाथ पर रखे दोना में रख लें। दोना, माने दो ना। तब वहाँ द्वैत नहीं होगा, दुख नहीं होगा। अब विडियो देखें- पुष्प वाटिका https://youtu.be/MgQfwCprRCU http://shashwatatripti.wordpress.com #ramrajyamission #ramcharitmanas https://www.instagram.com/p/CUXSY8ihwCn/?utm_medium=tumblr
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अगली पीढ़ी का टेनिस बिग थ्री से आगे कब निकलेगा?
अगली पीढ़ी का टेनिस बिग थ्री से आगे कब निकलेगा?
पुरुषों की टेनिस की अगली पीढ़ी अवास्तविक क्षमता की गड़बड़ी बनी हुई है। नोवाक जोकोविच, राफेल नडाल और रोजर फेडरर ने मियामी ओपन को छोड़ दिया, इस टूर्नामेंट से खेल के नए चेहरों को तेज फोकस में लाने की उम्मीद थी। इसके बजाय, मिट्टी का मौसम शुरू होते ही आउटलुक फीका रहता है। संडे को 37 वें नंबर के ह्यूबर्ट हर्कज और 31 वें नंबर के खिलाड़ी जानकी सिनर के बीच पहला एटीपी मास्टर्स 1000 फाइनल था, जिसमें 2003 के…
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#जननिक सिनर#जननिक सिनर बनाम चित्रण हर्कज#नोवाक जोकोविच#बड़े तीन अनुपस्थित मिआमी खुले#मिआमी ओपन फाइनल#राफेल नडाल#रोजर फ़ेडरर#ह्यूबर्ट हर्कज
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स्पीड रिपोर्ट:-राजकोट यहा भगवान को भी लगती हे ठंड। राजकोट के राम मंदिर मे रोज हजारो भक्त ठंड के माहोल मे गर्म कपडे पहनकर भगवान के दर्शन करने आते हे। एसे मे भगवान राम लक्ष्मण जानकी, राधा कृष्ण ओर मां अंबे को गर्म कपडे पहनाये जाते हे ताकी भगवान को भी ठंड ना लगे। ठंड के मौसम मे राजकोट के अलग अलग मंदिरों मे बिराजमान भगवान को गर्म कपडे पहनाकर सजाया जाता हे। सर पर गर्म टोपी, शरीर पर सोल, पेरो मे मोजे जेसे गर्म कपडे पहनार कर भगवान को भी ठंड से बचाया जाता हे। भक्तों का मानना हे की अगर इंसान को ठंड लगती हे तो सृष्टि का सर्जन करने वाले ओर हमारी हंमेशा रक्षा करने वाले भगवान को भी ठंड लगती हे इसी लीये यहा भगवान को गर्म कपडे पहनाकर ठंड से बचाया जाता हे। देखे पुरी रिपोर्ट https://youtu.be/I8nJyXtsnis सब्सक्राईब करें हमारी यूट्यूब चैनल को। #rajkot #Gujarat #Bhagwan #Rammandir #Winter https://www.instagram.com/p/BsF-FKVhwh3/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=opcwt9ect2bx
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जानवरों की दुनिया में ज्यादा आम है समलैंगिकता पक्षियों और पशुओं की 500 से ज्यादा प्रजातियों में समलैंगिकता के ढेरों उदाहरण देखे जा सकते हैं। मानव सभ्यता की शुरूआत से लगभग हर संस्कृति में समलैंगिकता की मौजूदगी देखी गई है। अगर सेक्स का मकसद वंश वृद्धि है तो जैव विकास की प्रक्रिया में यह गैर उत्पादक किस्म का सेक्स समाप्त क्यों नहीं हो गया? समुद्री पक्षी लायसन एल्बाट्रॉस उम्र भर एक ही साथी के साथ रहने के लिए मशहूर हैं। लेकिन जीवविज्ञानियों ने पाया कि हवाई में इन पक्षियों की जनसंख्या में लगभग 60 प्रतिशत पक्षी मादा हैं। इसलिए प्रजनन के मौसम में 30 प्रतिशत जोड़े मादा-मादा पक्षियों के होते हैं। नर पक्षियों की कमी की वजह से बहुत से मादा पक्षियों को प्रजनन का मौका नहीं मिल पाता। एक मादा एल्बाट्रॉस पक्षी साल में एक ही बार अंडा देती है और इसे सेने के लिए कम से कम दो पक्षियों की जरूरत पड़ती है। इसलिए कुछ मादा पक्षी एक वैकल्पिक रणनीति का इस्तेमाल करते हैं। वे चुपचाप उन नर पक्षियों से मिलन कर लेते हैं जिनकी पहले से मादा पक्षियों के साथ जोड़ी बनी होती है। मिलन करने के बाद ये मादा पक्षी अपनी मादा जोड़ीदार के साथ मिलकर अंडे सेने का काम करती हैं। एल्बाट्रॉस के ये समलैंगिक जोड़े ठीक नर-मादा जोड़ों जैसी प्रणयलीला करते हैं: एक-दूसरे की गर्दन रगड़ना, एक-दूसरे की चोंच को चूमना यहां तक कि एक-दूसरे पर सवार होना भी। 2007 में ब्रेंडा जुआन नाम की एक जीवविज्ञानी ने एल्बाट्रॉस की एक ऐसी समलैंगिक जोड़ी का उल्लेख किया था जिनका साथ 19 साल तक चला। तब क्या समलैंगिक बर्ताव महज विपरीत लिंग वाले साथी की कमी की पूर्ति के लिए होता है? यह भी देखें: क्या जानवर भी इंसानों की तरह रेप करते हैं? जीवविज्ञानियों का अनुमान है कि जब एल्बाट्रॉस पक्षियों में नर-मादा का अनुपात बराबर का होता है तब भी उनमें समलैंगिक जोड़ियां पाई जाती हैं। अपनी ख्याति के मुताबिक ये जीवन भर एक ही जोड़ी बनाते हैं भले ही वह समलैंगिक क्यों न हो। नर डॉलफिन भी इसी तरह के स��लैंगिक संबंधों वाले समूह बनाते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है इससे उनके आपसी संबंध और मजबूत होते हैं और मादा डॉलफिनों तक उनकी पहुंच आसान हो जाती है। भेड़ पालने वाले बताते हैं कि उनके करीब 8 फीसदी नर भेड़ समलैंगिक होते हैं और मादा भेड़ों के साथ संबंध बनाने से इनकार तक कर देते हैं। जीवशास्त्रीय नजरिए से देखा गया तो पाया गया कि इन नर भेड़ों के दिमाग का एक हिस्सा हाइपोथैलेमस छोटा होता है। उनके दिमाग का यही हिस्सा सेक्स संबंधी उनकी इच्छाओं को नियंत्रित करता है। यह भी देखें: चूहे पकड़ने की कला और उसमें माहिर ये आदिवासी शिकारी हालांकि फल मक्खी में समलैंगिकता आनुवंशिक प्रतीत होती है, लेकिन अभी तक स्तनपायी जीवों में समलैंगिकता को निर्धारित करने वाला कोई जीन नहीं मिला है। दिलचस्प तौर पर इंसानों के जुड़वां बच्चों में जेनेटिक मैटीरियल तो समान होता है इसके बावजूद यह जरूरी नहीं है कि सेक्स के बारे में उनकी मान्यताएं भी समान हों। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है चूंकि समलैंगिकता पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाई जाती है इसलिए निश्चित तौर पर इसका कोई आनुवंशिक आधार होना चाहिए। विषमलिंगी पुरुषों की तुलना में समलैंगिक पुरुषों के कई पुरुष रिश्तेदार भी समलैंगिक होते हैं। हालांकि, महिला समलैंगिकों के मामले में यह बात सही नहीं बैठती। इटली में हुए एक अध्ययन के मुताबिक समलैंगिक पुरुषों की माओं, चाचियों और दादी-नानियों की अधिक संतानें होती हैं। सामोआ द्वीप के फाफाफाइन परिवारों में भी यही देखा गया। ऐसा लगता है कि जिस कारक की वजह से महिलाओं ने ज्यादा संतानों को जन्म दिया उसी ने उनके कुछ बेटों की सेक्स के मामले में पसंद को बदल दिया। यह भी देखें: आखिर तेंदुए क्यों बन जाते हैं आदमखोर? दिसंबर 2012 में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के विकासवादी जीवविज्ञानी विलियम राइस ने एक थ्योरी पेश की। इसके मुताबिक, हमारे आनुवंशिक पदार्थ में डीएनए के अलावा कुछ ऐसे ऑन-ऑफ स्विच होते हैं जो समलैंगिकता के लिए जिम्मेदार हैं। इन्हें एपीजिनेटिक मार्कर कहते हैं। ये जिंदगी भर तय करते हैं कि कैसे, कब और कौन से जीन्स वातावरण से प्रभावित होकर सक्रिय हो जाएं। गर्भ में यही मार्कर बालक शिशुओं को पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन की कमी और कन्या शिशुओं को टेस्टोस्टेरॉन की अधिकता से बचाते हैं। आमतौर पर ये मार्कर आनुवंशिक नहीं होते लेकिन कभी-कभी ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंच जाते हैं। ��सी स्थिति में लड़कियों में उनके पिताओं के गुण आ जाते हैं और वे मर्दाना हो जाती हैं वहीं लड़कों में उनकी माओं के गुण आ जाते हैँ और उनमें स्त्रियों सरीखे लक्षण आ जाते हैं। कुछ वैज्ञानिक इस सोच में पड़ जाते हैं कि क्या समलैंगिकता किसी मकसद को पूरा करती है। हो सकता है कि यह किसी फायदेमंद अनुकूलन के साथ जुड़कर बार-बार पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती जाती हो। इस तरह यह तो पता चलता है कि समलैंगिकता विभिन्न जीवों में पाई जाती है लेकिन इसकी कोई एक वजह है यह दावे से नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि यह कुछ लोगों के लिए साथी की कमी की भरपाई का साधन हो, या पुरुषों के बीच दोस्ताना बर्ताव हो या फिर किसी जेनेटिक साइड इफेक्ट का नतीजा हो। यह भी देखें: "जब सभी सांप चूहे खाते हैं तो कुछ सांप जहरीले क्यों होते हैं?" समलैंगिकता से जुड़े सवालों को जवाब देने के हमारे प्रयास मुख्यत: समान लैंगिक संबंधों की निरर्थकता में ही उलझ कर रह जाते हैं। लेकिन यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि जरूरी नहीं सभी सेक्स क्रियाएं बच्चे पैदा करने के लिए ही की जाएं। चूंकि सेक्स भी सुख का एक जरिया है इस लिहाज से समलैंगिकता विषमलैंगिकता से किसी मायने में अलग नहीं है। मेरे ख्याल से यही इसका जवाब भी है। जानकी लेनिन एक लेखक, फिल्ममेकर और पर्यावरण प्रेमी हैं। इस कॉलम में वह अपने पति मशहूर सर्प-विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटकर और जीव जंतुओं के बहाने पर्यावरण के अनोखे पहलुओं की चर्चा करेंगी। Source https://www.gaonconnection.com/samvad/janaki-lenin-column-homosexuality-is-more-common-in-animal-kingdom-41865
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यमुनोत्री में बादल फटा,पांच दुकाने,धर्मशाला और पुल बहा यमुनोत्री। मानसून आने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तबाही रुकने का नाम नहीं ले रही है। नदियों का जल स्तर वॉर्निंग लेवल से ऊपर हो चुका है। यमुनोत्री धाम में बादल फटने से यमुना नदी उफान पर आ गई। इस दौरान पांच दुकानें, एक धर्मशाला के साथ ही यमुनोत्री मंदिर को जोड़ने वाला पुल बह गया। मौसम विभाग ने अभी उत्तराखंड में और तेज बारिश की चेतावनी दी है। वहीं, भूस्खलन से चलते चारधाम यात्रा मार्ग विभिन्न स्थानों पर बंद हैं। मानसून आते ही प्रदेश की नदियां उफान पर बादल फटने के बाद यमुना नदी के उफान पर होने से यमुनोत्री धाम में पांच दुकानें, एक धर्मशाला के साथ ही यमुनोत्री मंदिर को जोड़ने वाला पुल बह गया। भूस्खलन से चलते चारधाम यात्रा मार्ग विभिन्न स्थानों पर बंद हैं। सोमवार रात से हो रही भारी बारिश के बाद यमुनोत्री धाम में भारी तबाही हुई है। यहां कई भवनों सहित गर्म कुंड और पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया है। कई क्षेत्रों में मार्ग छतिग्रस्त,आवाजाही प्रभावित ��मुना नदी का जलस्तर बढ़ने से जानकी चट्टी के तटीय इलाकों पर मौजूद कुछ भवन बह गए हैं और कुछ क्षतिग्रस्त हो गए हैं। किसी जन हानी की सूचना नहीं है। चमोली में रुक-रुक कर हो रही बारिश से अलकनंदा नदी का जल स्तर बढ़ गया है। यहां सोमवार को मध्य रात्रि से हो रही बारिश मंगलवार सुबह 7 बजे थमी। पुलिस प्रशासन ने तीर्थ यात्रियों और सैलानियों को नदी किनारे न जाने की दी हिदायत दी है। श्रीनगर में धारी देवी मंदिर के पास स्थित दुकानों तक नदी का जल आ गया है। नदियों का जलस्तर वॉर्निंग लेवल से ऊपर वहीं रुद्रप्रयाग जिले में नदियों का जलस्तर वॉर्निंग लेवल से ऊपर हो चुका है। नदियों के बढ़े जल स्तर को ध्यान में रखते हुए उपजिलाधिकारी रुद्रप्रयाग व ऊखीमठ, नगर पालिका रुद्रप्रयाग, नगर पंचायत तिलवाड़ा, अगस्त्यमुनि, ऊखीमठ को डीएम द्वारा संवेदनशील स्थानों पर रहने वाले लोगों को तत्काल सुरक्षित स्थानों पर जाने को कहने के निर्देश दिए हैं। बदरीनाथ हाईवे लामबगड़ में मलबा आने से अवरुद्ध हो गया। गोविंदघाट थानाध्यक्ष हेमदत्त भारद्वाज ने बताया कि बदरीनाथ जाने वाले करीब 400 यात्री हाईवे खुलने का इंतजार हैं। केदारनाथ हाईवे फाटा के पास मंगलवार सुबह से बंद पड़ा था। यमुनोत्री हाईवे डबरकोट मे खोल दिया गया है। अलकनंदा नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया है, वहीं गौचर के भट्टनगर गांव में भारी मात्रा में बरसाती मलबा घुस गया। इसमें एक भैंस दबकर मर गई। मलबे के कारण भट्टनगर-रानौ मोटर मार्ग बंद पड़ा हुआ है।
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चारधाम यात्रा का रोडमैप
हिमालय स्थित 11वें ज्योतिर्लिंग भगवान केदार और बैकुण्ठ धाम बद्रीनाथ सहित गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए खुल गए हैं। 21 अप्रैल को अक्षय तृतीया के मौके पर शुरू हुई चार धाम यात्रा इस बार पूरे देश में जिज्ञासा की वजह बनी हुई है। दरअसल 2013 में केदारनाथ में आए जलप्रलय के बाद इस यात्रा पर ब्रेक लग गया था। 2 साल बाद अब राज्य सरकार इस तबाह क्षेत्र में यात्रा को फिर से चलने लायक बना पई है।कैसे पहुंचे केदारनाथ उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में पड़ने वाले केदारनाथधाम के लिए हरिद्वार से 165 किलोमीटर तक पहले रुद्रप्रयाग या ऋषिकेश आना पड़ता है जो कि चारधाम यात्रा का बेसकैम्प है। इसके बाद ऋषिकेश से गौरीकुण्ड की दूरी 76 किलोमीटर है। यहां से 18 किलोमीटर की दूरी तय करके केदारनाथ के धाम पहुंच सकते हैं। गौरीकुण्ड से जंगलचट्टी 4 किलोमीटर है। उसके बाद रामबाड़ा नामक जगह पड़ती है और फिर अगला पड़ाव पड़ता है लिनचैली। गौरीकुण्ड से यह जगह 11 किलोमीटर दूर है। लिंचैली से लगभग 7 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करके केदारनाधाम पहुंचा जाता है। केदारनाथ धाम और लिंचैली के बीच नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने 4 मीटर चौड़ा सीमेंटेड रास्ता बना दिया है, ऐसे में श्रद्धालु अब आसानी से केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं। कैसे पहुंचे बद्रीनाथ बद्रीनाथ हाईवे पर कई स्लाइडिंग जोन बाधा बनते रहे हैं। इसमें से जहां सिरोहबगड़ नामक स्लाइडिंग जोन का ट्रीटमेंट सरकार करा रही है और इसके बाधित होने पर इसका बाईपास तैयार किया जा रहा है। वहीं लामबगड़ में टनल के जरिए यात्रा का बाईपास बना��े की बात सरकार कर रही है। इस बार सरकार ने इस स्लाइडिंग जोन के दोनों तरफ सप्लाई के लिए मशीनें तैनात करी हैं। पूरे चारधाम यात्रा में 271 संवेदनशील क्षेत्रों पर भी प्रशासन सावधानी बरतने की बात कह रहा है। बद्रीनाथ तक गाड़ियां जाती हैं, इसलिए यहां मौसम अनुकूल होने पर पैदल नहीं जाना पड़ता। बद्रीनाथधाम को बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है। बैकुण्ठधाम जाने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली, गोविन्दघाट होते हुए पहुंचा जाता है। बीच के मंदिर भी खूबसूरत इन दो धामों की यात्रा के बीच कई अन्य मंदिर भी तीर्थयात्रियों को सुकून देते हैं। इनमें योगबद्री पांडकेश्वर, भविष्यबद्री मंदिर, नृसिंह मंदिर, बासुदेव मंदिर, जोशीमठ, ध्यानबद्री, उरगम जैसे मंदिर बद्रीनाथ यात्रा मार्ग के आसपास पड़ते है। जबकि केदारनाथ यात्रा मार्ग पर विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, मदमहेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर कालीमठ, नारायण मंदिर, त्रिगुणी नारायण, तुंगनाथ मंदिर, काली शिला पड़ते हैं। इसके अलावा पांच प्रयागों में से रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग केदार मार्ग पर और तीन प्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर क्रमशः कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग पड़ते हैं। इसके अलावा धारी देवी सिद्धपीठ बद्रीनाथ-केदारनाथ जाने वाले मार्ग के आसपास पड़ता है। जबकि अनुसूइया मंदिर बद्रीनाथ मार्ग से कुछ दूरी पर गोपेश्वर में तो रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग दोनों धामों के मार्ग पर पड़ जाता है। इसलिए चारधाम के श्रद्धालु यहां भी आते हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा गंगोत्री गौमुख ग्लेशियर को गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है जो यहां से 18 किलोमीटर की पैदल दूरी पर है। गंगोत्री के कपाट अक्षय तृतीया के मंगलयोग में इस बार 21 अप्रैल को खुले तो चारधाम यात्रा शुरू मान ली गई। समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति गंगोत्री का मंदिर उत्तरकाशी जिले में पड़ता है। गंगोत्री का मुख्य पड़ाव चिन्याली सौड़ से शुरू होता है। गंगोत्री तक जाने के लिए पैदल नहीं जाना होता। गंगोत्री मंदिर का निर्माण 1807 में नेपाली सेना प्रमुख अमर सिंह थापा ने करवाया था। इसके बाद गंगोत्री का मौजूदा मंदिर जयपुर नरेश माधौ सिंह ने बनवाया। इस गंगा तीर्थ के लिए ऋषिकेश से टिहरी जिले के चम्बा होते हुए टिहरी धरासू, उत्तरकाशी भटबाड़ी और हर्षिल होते हुए गंगोत्री तक अपने वाहन या गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। यमुनोत्री यमुनोत्री मंदिर भी उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत यमुनाघाटी में पड़ता है। यमुना का उद्गम समुद्र तल से 4421 मीटर ऊंचाई पर कालिंदी पर्वत से माना जाता है। यमुनोत्री मंदिर समुद्र तल से 3323 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां जाने के लिए 6 किलोमीटर की यात्रा पैदल करनी होती है। यमुनोत्री मंदिर में मां यमुना की पूजा अर्चना होती है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने 1855 के आसपास करवाया था और इसके बाद यहां मूर्ति स्थापित की। यमुनोत्री पहुंचने के लिए धरासू तक का मार्ग वही है जो गंगोत्री का है। इसके बाद धरासू से यमुनोत्री की तर�� बड़कोट फिर जानकी चट्टी तक बस द्वारा यात्रा होती है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर चलकर यमुनोत्री पहुंचा जाता है।
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श्रीनिवास रामानुजन् अयँगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) - "ईश्वरीय रुप की गणितीय संगणना"
कुछ लोग तस्वीर में कहानी ब्यान कर सकते हैं, कुछ कविता से तस्वीर पैदा कर सकते हैं, कुछ ऐसे हैं जो अपनी तरंगो से, खूंखार जानवरो को शांत कर सकते हैं परंतु एक भारतीय को जन्मजात ऐसा उपहार मिला था जो अपूर्व था…. अनन्त काल से, अनन्त प्राणी….. अनन्त की खोज में लगे हैं…… परन्तु कोई नहीं जान पाया कि, ये अनन्त आखिरकार है क्या? सिवाय, नामक्कल की नामागिरी माता प्रसाद-पुत्र एक अनन्त प्रतिभा युक्त श्रीनिवास रामानुजन के…… ऐसा महानतम गणितज्ञ, जिसने ये स्वीकार किया की, उसकी जो भी खोज है वो उसे उसकी कुलदेवी ने स्वप्न में स्वयं प्रदान की है “श्रीनिवास रामानुजन अयँगर” जो अंको को पूरी दुनिया से अलग तरह से देखता था वह उनमे विशिष्ट प्रतिरुप देख सकता था और उन प्रतिरुपों को उच्च गणितीय परिकल्पनाओं में बदल सकता था…. ऐसी परिकल्पनाऐं…… ऐसे प्रतिरूप…… जो आज तलक भी अद्भुत हैं, अबूझ हैं, विस्मयकारी हैं…….
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हो जाये जो देव कृपा, होता प्राप्त अगम्य सोये हुए मनुष्य में हो पैदा अद्भुत ज्ञानत्व रामानुजन के बारे में था यही अटल सत्य अति निर्धनता में हुआ,उन्हें प्राप्त बुद्धत्वा
अज्ञात से स्थान में, हुआ था इनका जन्म अज्ञातवास में किया, स्व गणित अध्ययन गणितज्ञ बन उभरे, करते हुए सबको दंग 32 वर्ष की अल्पायु में, थे रचे सूत्र प्रचंड
क्षणभंगुर से जीवन में, इतना किया काम हुए मृत्यु के सैंकड़ो साल,गूंजे उनका नाम बाद तेरे आज तक,अबूझ अनेक परिणाम कार्य को तेरे सुलझाने में, लगे हुए तमाम
कोमलताम्मल माँ थी, मंदिर में गायिका खास साडी की दुकान में क्लर्क,पिताजी श्रीनिवास 22 दिसम्बर 1887, कोयंबटूर, ईरोड, मद्रास ब्राह्मण के घर में जन्मे, रामानुजन श्रीनिवास
विपरीत परिस्थितियों में, जन्म हुआ बेचारा पर था, पौराणिक गाथाओं के जैसा न्यारा माता को स्वप्न में,आदिशक्ति ने था ये अघारा गर्भ से तेरे ईश्वर लेंगे, अवतार फिर से दोबारा
माता थी पीहर में, था सर्द काल अयनांत उ��्तिरातदी तारे के पास, चंद्र बङा सम्भ्रांत मिथुन राशि उदियमान, अन्य सब ग्रह शांत शुभ नक्षत्र स्वस्तिश्री और 22 का जन्मांक
विलक्षणता की कुंडली, थी बोल रही जुबान जीवन चाहे हो अत्यल्प,पर होगा बङा महान विपदाओ से भरा रहेगा, पर हरदम ये इंसान अद्भुत रुप से होगा सफल,कहता सारा ज्ञान
रामानुजन डेढ़ साल के, आया भाई सदगोपन तीन महीनो भीतर देहांत, बंद कर गया लोचन दिसंबर 1889,रामानुजन पर भी चेचक आया मां का सुनकर के क्रंदन, माता ने पुत्र लौटाया
अपनी माँ से रामानुजन ने, सीखे सभी पुराण गणित नहीं था जब उतरा,भजनों से पाया ज्ञान कंगयां स्कूल में सीखा, तमिल, गणित, विज्ञान 1897 में जिले में , रामानुजन का प्रथम स्थान
अब रामानुजन पहुंचे, उच्च माध्यमिक स्कूल पहली बार यहां इन्होंने, गणित समझा माकूल मन में भरे बारुद को, मिली चिंगारी अनुकूल और अब लगे उतरने अनखोजे गणितीय फूल
हाई स्कूल में लिखा, त्रिकोणमितीय फलन लगा इन्हें, बस अब तो हो गया जन्म सफल पता लगा, यूलर 150 साल पहले लिख गये हुऐ इतने खफा, कि घर में जाकर के रो दिये
जीवन के शुरुआत में,थे अति विनम्र व शांत माँ नामागिरी ने स्वप्न में दर्शन किया प्रारम्भ किये प्रदान सूत्र वे जिनसे जगत हुआ निहाल माँ ने जिव्हा पर लिखा “नक्किल इझूतिनाल"
स्वभाव से था जिज्ञासू, उस पर मां से संवाद किसी ओर जहाँ के सिम्बल आने लगे थे याद अब खुद की थ्योरमस को शुरू किया बनाना उम्र बहुत थी थोङी, बहुत दूर तलक था जाना
नोट बुक्स अब केवल, गणित लगीं थी भरने अन्य विषय छूट गये, स्कॉलरशिप लगी मरने हाय गरीबी, बिना शुल्क विद्यालय गया छूट ऐसी प्रतिभा कहां परखते, अनपढ निरे ठूंठ
पढाई छूटने के बाद, हुए 5 वर्ष बहुत हताश अंग्रेजो का क्रूर शासन, नहीं था कहीं प्रकाश ऐसे में बिन नौकरी,भूखा मरता फिरा ये ज्ञान ना सरकार ही सूने, ना सूनता कोई संस्थान
बस माता पर आस्था और गणित का प्यार ये दोनों ही रह गये, रामानुजन का सब संसार नामागिरी की श्रद्धा, कदम न रुकने देती थी पेट चाहे भले ना भरे,गणित न मिटने देती थी
ट्यूशन के 5 रुपये,मासिक आय गुजारा था सड़े हुए सिस्टम में सब को उसने पुकारा था रामा का यह समय, आंखो को नम करता है जो न झुके वक़्त के आगे, पार वही उतरता है
1908 में मां ने जानकी का हाथ पकङा दिया और शोध के संग,अन्य खर्चों में जकङा दिया ढूंढने को नौकरी अब रामा मद्रास चला आया स्वास्थ्य रहा छोङ साथ,काम कहीं नहीं पाया
समय रहा था तेज गुजर, रामा भी भटक रहा हर ज्ञानी को दिखलाने, शोध को भी पटक रहा इसी तलाश में वी. रामास्वामी से जा टकराया देख रजिस्टर डिप्टी कलेक्टर का सर चकराया
थे रामास्वामी खुद गणित के प्रकांड विद्वान पर उससे भी पहले एक अच्छे व सच्चे इंसान आखिरकार हीरा जौहरी से जा टकराया था उन्होंने 25 रु मासिक छात्रवृत्ति दिलवाया था
अब रामा जी के प्रथम शोधपत्र ने कदम धरा "बरनौली संख्याओं के गुण”, इसका नाम पङा इंडियन मैथ्स सोसायटी की भी अंगङाई टूटी मिली क्लर्क की नौकरी,दो रोटी की चिंता छूटी
आइन्सटाइन और रामानुजन रातों को जागे थे दोनों ही छोटे क्लर्क बन कर यहां वहां भागे थे थ्योरी आॅफ रिलेटिविटी काम के साथ उभरी थी ये गणित भी नौकरी की रद्दी पर ही निखरी थी
मद्रास पोर्ट का ये क्लर्क, पूरे दिन भाग रहा था सीलन भरी रद्दी के साथ रातों को जाग रहा था ईश्वर के गणितीय चेहरे से नकाब पिघल रहा था रात ढल रही थी, ज्ञान का चिराग जल रहा था
रामा जी के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू जी ने समझे और ये, विश्व प्रसिध्द प्रोफेसर हार्डी तक पहूंचे अब रामा ने प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिख डाला लगे हाथ उनका अबूझा शोध भी सुलझा डाला
और अब एक नये युग का सूत्रपात हो चूका था रामा का शोध, हार्डी की सूधबूध खो चूका था पारखी जौहरी ने अनमोल हीरे को उठवा लिया हार्डी सर ने रामानुजन को कैंब्रिज बुलवा लिया
पहले पहल जब रामा ने अपना शोध दिखलाया तो स्वयं प्रोफेसर हार्डी भी उसे नहीं समझ पाया हार्डी ने, सारी दूनिया के गणितज्ञों को मापा था खुद को 25 व रामा को 100 अंकों पर नापा था
इंग्लैंड में रामा अत्यंत लोकप्रिय पर परेशान था क्योंकि शुद्ध सात्विक जीवन उनकी पहचान था 3000 से अधिक नवीन सूत्रों को जीवन दे डारा पर ठंडी रातों में मेहनत ने क्षयरोग पैदा कर मारा
हमवतन ने जिसे हाई स्कूल के काबिल न जाना राॅयल सोसायटी ने उसे प्रथम अश्वेत फैलो माना राॅयल के पूरे इतिहास में रामा सबसे कम उम्र है इस फैलोशिप पर खूद कैम्ब्रिज तक को फक्र है
अब जब सब क��छ ठीक जगह पर लग रहा था पर कुंडलीनुसार रामा का स्वास्थ्य गिर रहा था अन्ततः डाक्टरों की सलाह पर वतन को लौटा आते ही मद्रास युनिवर्सिटी ने प्राचार्य पद सौंपा
रेत घङी में रेत समाप्ति की और चल पङी थी अब जब जीवन में शेष कुछ अंतिम ही घङी थी तो भी रामा ने माॅक थीटा पर शोध लिख डाला आने वाले कल में कैंसर इलाज सरल कर डाला
नगण्य शिक्षित पर सदियों का गणित उघाङ गया रामा को नामागिरी प्रदत्त ज्ञान सबको पछाड़ गया तेरी ही वजह से पुरातन गणित ने सम्मान पाया हो गई ये धरा पावन जो तूं भारत भूमि पर आया
गणितीय सूत्रों को लिखते लिखते ही चला गया 32 वर्षों में दुनिया में, सिक्का अपना चला गया तूं शंकराचार्य था और उन जितनी ही उम्र लाया 26 अप्रैल 1920 को आपने परम निर्वाण पाया
कुम्भकोणम गाँव, सारंगपाणी में है इनका घर मौसम की मार झेल-झेल, हो चुका है जर्जर इस घर में बीता बचपन, नामागिरी नाम लेकर घर है बना म्यूजियम, गणितज्ञ टेकें माथा इस पर उत्तम भी टेके माथा इस दर पर……. उत्तम भी टेके माथा इस दर पर…….
रामानुजन जी के अनुसार, “मेरे लिए किसी भी उस समीकरण का कोई महत्व नहीं है जो ईश्वरीय विचार का द्योतक ना हो।”
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