बिहार का मोक्षद्वार जहाँ एक साथ श्रीहरि और महादेव का दर्शन दिलाता है मोक...
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मुक्ति भवन- काशीनगरी मोक्षम:
दिल्ली/02.01.2021
चोला ओढ़ लिया मैंने ..अब क्या देह देखूँ - आया आया.. रे काशी!
काशी-लाभ ; मुक्ति भवन में देश-विदेश से वृद्ध एक बक्सा में जरूरी सामान को भरकर कुछ बर्ष पहले तक अंतिम स्वांस लेने के लिए पहुंच जाया करते थे । छोटे छोटे कमरे - कीर्तन-भजन करती हुई मंडली , सुबह-शाम आरती और गंगाजल पान के साथ अंतिम पहर में कैसे भी करके गौ-दान के उपरांत आये हुए वृद्ध प्रविष्ट कर ही जाया करते थे !
लेकिन अब इस मुक्ति भवन में कोई नही आता - लोगों से जीने का मोह छूट ही नही रहा । कुंजी पर से हाथ हट नही पा रहे - भला कैसे कोई काशी पहुँचे । अब ना कोई भक्ति भाव बची न कोई जीवन के बारे में रहस्य ! सबकुछ साफ है - कोई आत्मा नही होती । सब एक ढोंग के सिवाय कुछ भी ना था । बर्षों तक लोगों को पोंगा पंडितों ने जमकर ठगा है पर अब और नही ।
यह मुक्ति भवन आजकल वीरान है । एक दो लोग भूले भटके कभी कभार मरने के लिए पहुंच जाते हैं अन्यथा अब तो सभी कमरे खाली ही पड़े रहते हैं ।
जिनको अभी भी आत्मा में अटूट विश्वास है और हृदय में काशीधाम पहुँच कर मरने की अभिलाषा जागृत है - वे तो मोक्ष के लिए काशी पहुँच ही जाते हैं । अंतिम पड़ाव काशी में - अंतिम विदाई काशी में ।
जैसे किसी होटल में कमरे के लिए रिसेप्शन पर नाम और पता की खानापूर्ति की जाती है वैसे ही मुक्ति भवन में ठहरने के लिए पूरा पता लिखबाने के बाद ही ठहरने दिया जाता है । बड़े बड़े ..पुराने रजिस्टरों में इस भवन के माध्यम से मोक्ष पा चुके आत्माओं के स्थूल शरीरों के नाम पता-ठिकानों के साथ दर्ज हैं - एकदम सुरक्षित ।
अब तो लोग अमृत खोज चुके हैं - मरना किसे है ! सभी जीवित रहेंगे , फिर कैसा मोक्ष और कौन सा मोक्षद्वार !! मृत्यु और मोक्ष पुरानी बात है। वर्तमान में सभी अचल हैं , धुरी पर घूमते रहेंगे - जीवन अगम्य है तभी तो बेईमानी , धोखाधड़ी करने में मस्त हैं । पूँजी को बढ़ा रहे हैं । जानते हैं एक एक ढेला को फोड़ेंगे - सम्पूर्ण भोग विलास और अनंत जीवन जीने के लिए आवश्यकता से कईं गुना अधिक संपत्ति पास में होना जरूरी है - अन्यथा जीवन जिया कैसे जाएगा ! काशीधाम में अब तो दीन-हीन के चिता जलते हैं - भ्र्ष्टाचार में जो लिप्त हैं उन्हें मरने की फुर्सत कहाँ ।
बात ठिक भी है , घर पे मरो - अंतिम कौर खाकर मरने में निश्चित ही संतोष है तभी तो काशी में लोग अब मरने नही जाते । या फिर एक कारण और भी हो सकता है - इतना जो धन कमाकर रख छोड़ा है वह कब काम आवेंगे । पुत्र/पुत्रियों को तो सेवा देना ही होगा - काशी क्यों!
जो भी हो - इस लेख से मेरा तात्पर्य बस इतना है कि काशी मुक्तिधाम में जानेवाले अक्सर एक महीने में मोक्ष पा लेते थे - ये मैं नही मुक्ति भवन के रेकॉर्ड कहते हैं । मरनेवाले को अंतिम समय का बोध कैसे हो जाया करता था ये अभ भी एक रहस्य है । मुक्तिबोध की इतनी प्रगाढ़ता एवं सघनता शायद ही अब कभी किसी मनुष्य में जागृत हो । मैं भी हैरान हूँ - सोच रहा हूँ - क्या मुझे पता चलेगा । मैं तो लोभी नही ! क्या अंतिम समय मे मैं मोक्ष के लिए काशी जाने का निर्णय ले सकूँगा । मुझे जीवन भी पलपल याद है और मृत्य भी - लेकिन बात काशी जाने की है । कब ? पता नही ।
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गोदावरीधाममा कैवल्यनाथ मन्दिरमा प्राण प्रतिष्ठा
गोदावरीधाममा कैवल्यनाथ मन्दिरमा प्राण प्रतिष्ठा
गोदावरी, २६ जेठ । कैलालीको गोदावरीधाममा नवनिर्मित कैवल्यनाथ मन्दिर (मोक्षद्वार)को आज शुभारम्भ गरिएको छ । मन्दिरमा स्थापना गरिएको पञ्चमुखी शिवलिङ्गको एक विशेष समारोहकाबीच १००८ स्वामी लोकानन्द माहाराजजीले प्राण प्रतिष्ठा गर्नुभयो ।
सो मन्दिरको पुरानो कलात्मक शैलीमा निर्माण गरिएको छ । सङ्घीय सरकारको सहरी विकास कार्यक्रमको सहयोगमा उपभोक्तामार्फत मन्दिर निर्माण गरिएको हो । झण्डै रु डेढ करोड बढीको…
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