#मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट
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rnewsworld · 5 years ago
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8 जून से खुलेंगे मैकडोनाल्ड समेत ये रेस्टोरेंट! अब एक टेबल छोड़कर बैठेंगे ग्राहक, बदल जाएंगी ये सभी चीज़े
8 जून से खुलेंगे मैकडोनाल्ड समेत ये रेस्टोरेंट! अब एक टेबल छोड़कर बैठेंगे ग्राहक, बदल जाएंगी ये सभी चीज़े
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8 जून से रेस्टोरेंट्स खोलने (Restaurants Open Soon) की इज़ाजत मिल गई है. Restaurants Change after Lockdown-जब आप खाना खाने बाहर जाएंगे ��ो आपको सबकुछ अलग दिखेगा. बैठने की जगह से लेकर किचन तक. इसके लिए बड़े रेस्टोरेंट अपनी तैयारी पूरी कर भी चुके हैं.
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newsaryavart · 5 years ago
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8 जून से खुलेंगे मैकडोनाल्ड समेत ये रेस्टोरेंट! अब एक टेबल छोड़कर बैठेंगे ग्राहक, बदल जाएंगी ये सभी चीज़े
8 जून से खुलेंगे मैकडोनाल्ड समेत ये रेस्टोरेंट! अब एक टेबल छोड़कर बैठेंगे ग्राहक, बदल जाएंगी ये सभी चीज़े
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8 जून से रेस्टोरेंट्स खोलने (Restaurants Open Soon) की इज़ाजत मिल गई है. Restaurants Change after Lockdown-जब आप खाना खाने बाहर जाएंगे तो आपको सबकुछ अलग दिखेगा. बैठने की जगह से लेकर किचन तक. इसके लिए बड़े…
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vilaspatelvlogs · 4 years ago
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इतिहास में आज: मैकडोनाल्ड ने आज ही के दिन खोली थी अपने रेस्टोरेंट की पहली ब्रांच, अब 100 से ज्यादा देशों में 36 हजार से भी ज्यादा आउटलेट
इतिहास में आज: मैकडोनाल्ड ने आज ही के दिन खोली थी अपने रेस्टोरेंट की पहली ब्रांच, अब 100 से ज्यादा देशों में 36 हजार से भी ज्यादा आउटलेट
Hindi News National Today History 15 April: Aaj Ka Itihas Facts Update | McDonald First Restaurant And Leonardo Da Vinci Birth Date And Place Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप 10 मिनट पहले कॉपी लिंक बात 1940 की है। कैलिफोर्निया में 2 भाइयों, रिक और मेक मैकडोनाल्ड ने एक छोटा सा रेस्टोरेंट खोला। इसकी खासियत ये थी कि यहां के मेन्यू में खाने के 2-4 आइटम ही थे।…
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jmyusuf · 4 years ago
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सरकारी नौकरी क्यों जरूरी है?
निजीकरण की तमाम बहस के बावजूद सरकारी नौकरी का मोह  नही जाता ,क्यों?वजह ये है कि सरकारी नौकरी एक तिलिस्मी चाभी है जो एक निम्नवर्गीय व्यक्ति को भी समाज के इलीट क्लास में पहुचने का रास्ता दिखाता है,सदियों से जो दबे कुचले वंचित गरीब रहे है, जिनके बाप बड़े व्यवसायी, किसान, प्रोपर्टी होल्डर नही है, जो बेटे को बड़ी विरासत दे जाएं, और कहें बेटा डर मत मैं हूं न तुम्हारा भविष्य सिक्योर है,सरकारी नौकरी उन लोगो की लाइफलाइन और जीवन को बेहतर बनाने का मौका है,, जो जानते है कि उनके पास इतनी पूंजी नही की बडा व्यवसाय खड़ा कर सके, 4 दुकान किराए पर लगाकर बिना मेहनत कमा खा सके,,और इज्जत के साथ जी सके,,वो आम आदमी ये ��ानता है, की अपना अतीत और माता पिता वो बदल नही सकता, पर उसकी ��ेहनत और सरकारी नौकरी उसकी किस्मत बदल सकती है,इसलिए वो हाड़तोड़ परिश्रम करता है, जिस युवा दौर में उसके साथी, महंगी बाइक कार में सड़क के चौराहों रेस्टोरेंट में लड़कियां घुमा रहे होते है, वो इलाहाबाद के 1500 से 2000 के कमरे में रात 2 बजे तक अपनी आँखें खराब कर रहा होता है, मैकडोनाल्ड डोमिनोज़ कौन कहे, सड़क के ढाबे पर खाने के पहले भी दो बार सोचता है कि उसके पिता कैसे ये सब खर्च मैनेज कर रहे होंगे,वो जिंदगी का सबसे बड़ा दाव खेलता है, जो बड़े बड़े दिग्गजों के बस की नही होती, 18 साल से 30 साल की गोल्डन age बन्द कमरों की किताबों पर कुर्बान कर देता है, बिना यह सोचे कि जॉब नही मिली तो वो क्या करेगा,, साहब जिंदगी के 18 -20 साल सिर्फ एक उम्मीद पर झोंक देना मज़ाक नही होता,,ऐसा भी नही होता कि सब सफल हो,, दहाई और सैकड़ो की संख्या में सीट होती है, और लाखों की संख्या में फॉर्म होते है,जनरल sc st और घपले रिश्वत कोर्ट का रिस्क होता है, फिर भी वो लड़ता है, सिर्फ एक उम्मीद पर, की जॉब मिल जाएगी और लाइफ संवार जाएगी,इसलिए सरकारी नौकरी वालो को दी जाने वाली सैलरी उनके 15- 20 साल के तप का फल हैउनकी जॉब उनके इलीट क्लास में घुसने का रास्ता है, क्योंकि जॉब मिलते ही, वो दोस्त जो नजरें चुरा कर निकल जाते थे, वो गर्व से बताते है कि मेरा दोस्त आईएएस बन गया, यार काम करवा दो,जिन घरों की दहलीज पर घुस नही सकते थे, वहाँ से शादी के रिश्ते आने लगते है,जिन्होंने कभी आपके बाप से भी तू कह कर बात की हो,, वो आप कहने लगते है,,जिन घरों में खाने को ठीक से अनाज नही होता था, वो भी एयरपोर्ट पर 135/- की चाय पिते है,,साहब,अमीरों को फर्क नही पड़ता, उनकी लाइफ को बेहतर बनाने के 100 रास्ते वो खुद बना सकते है, या सरकार या जुगाड़ बना देती हैपर गरीब का क्या वो तो ले देकर सरकारी नौकरी को ही अपनी सबसे बड़ी सीढी समझता है,,निजीकरण अच्छा हो सकता है,, पर क्या वो गरीब को ये सम्मान दे पाएगा,,क्या निजीकरण के बाद एक गरीब का बच्चा महंगे कॉलेज से mbbs md इंजीनियर अफसर बन पाएगा,,अगर नही, तो सरकारी संस्थानों के निजीकरण को रोकिए,,इसलिए नही क्योंकि आप गरीब है,,इसलिए भी क्योंकि आप मिडिल क्लास है, और ये निजीकरण एक ऐसे व्यवस्था बनाता है, जिसमे अमीर और ताकतवर होते जाते है, और बाकी कमजोर,,भरोसा न हो तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फी पता कर लीजियेगा,,और अपनी जेब टटोलकर देखिएगा की बच्चे को एडमिशन दिला पाएंगे क्या???जवाब अपने आप मिल जाएगा कि सरकारी संस्थान क्यों जरूरी है,,
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jodhpurnews24 · 6 years ago
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कर्मचारियों को गिफ्ट में कार देने वाले हीरा कारोबारी सावजी ढोलकिया बेटे को दे चुके हैं ‘वनवास’
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नई दिल्ली। सूरत के हीरा कारोबारी सालवजी ढोलकिया ने एक बार फिर दिवाली बोनस के रूप में अपने कर्मचारियों को कार और फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) गिफ्ट के रूप में दिए हैं। इस बार ढोलकिया ने 600 कर्मचारियों को गिफ्ट के तौर पर कारें दी हैं। इसमें से चार कारें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी हैं। इसके अलावा 900 कर्मचारियों को गिफ्ट के रूप में एफडी दी है। इन कर्मचारियों ने कार के बदले एफजी की मांग की थी। इस कारनामे के बाद सावजी ढोलकिया एक बार फिर सुर्खियों में बने हुए हैं। ढोलकिया इससे पहले दिवाली बोनस के रूप में अपने कर्मचारियों को मकान, कार और मोटरसाइकिल दे चुके हैं। ढोलकिया ने हाल ही में कंपनी में 25 साल पूरे करने वाले तीन कर्मचारियों को एक करोड़ की कीमत वाली मर्सिडीज कार उपहार में दी थी। लेकिन शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि अपने कर्मचारियों को दिवाली बोनस के रूप में अपने इकलौते बेटे को एक माह के ‘वनवास’ दे चुके हैं। आइए आपके बताते हैं कि ढोलकिया ने एेसा क्यों किया…
इसलिए दिया ‘वनवास’
6 हजार करोड़ के सालाना टर्नओवर की कंपनी के मालिक सावजी ढोलकिया ने शून्य से शिखर का मुकाम पाया है। वह अपने बेटे द्रव्य को भी पैसे की चकाचौंध से दूर रखकर जीवन के मूल्यों का खान देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने बेटे को एक खास प्रकार की ट्रेनिंग दी। इस ट्रेनिंग के तहत जब द्रव्य अमरीका से एमबीए की पढ़ाई करके सूरत लौटे तो उन्हें पारिवारिक कारोबार में शामिल करने के बजाए एक फ्रेशर की तरह नौकरी करने की सलाह दी। दरअसल ढोलकिया परिवार की परंपरा के अनुसार, प्रत्येक बच्चे को पारिवारिक कारोबार में शामिल करने से पहले उसे जीवन और नौकरी से जुड़ी समस्याओं के समझने और उनसे जूझने के लिए बाहर भेजा जाता है। इसमें बाहरी लोगों के सामने आम आदमी और परिवार की पहचान छुपाकर रहने की शर्त भी शामिल है।
चॉल में बिताए तीन हफ्ते
सावजी ढोलकिया ने अपनी पारिवारिक परंपरा अपने बेटे के साथ भी निभाई। सावजी ने अपने बेटे को सस्ती जगह पर रहने खाने की शर्त के साथ एक महीने में तीन नौकरी तलाश करने के लिए परिवार से दूर भेजा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, द्रव्य नौकरी की तलाश में कोच्चि पहुंचे। यहां द्रव्य को पहली नौकरी ��क बीपीओ कंपनी में मिली। लेकिन परिवार की शर्त के अनुसार उन्होंने एक हफ्ते बाद ही बिना सैलरी लिए यह नौकरी छोड़ दी। दूसरी नौकरी तलाशने में द्रव्य को काफी समय लगा। इस दौरान वे भूखे तक रहे। द्रव्य को दूसरी नौकरी एक बेकरी और तीसरी नौकरी एक रेस्टोरेंट में मिली। इन सभी नौकरियों को छोड़कर चौथी नौकरी उन्हें मैकडोनाल्ड में मिली। हालांकि, द्रव्य ने यह नौकरी ज्वाइन नहीं की। इस दौरान द्रव्य करीब तीम हफ्ते तक कोच्चि में रहे और एक चॉल में जीवन गुजारा। इस चॉल में रहने के लिए द्रव्य ने एक महीने के लिए 250 रुपए का किराया दिया।
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source http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/business-news/38414/
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newshut24-blog · 7 years ago
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इस वजह से होंगे मैकडोनाल्ड के 169 रेस्टोरेंट बंद
इस वजह से होंगे मैकडोनाल्ड के 169 रेस्टोरेंट बंद
नई दिल्ली : आज से देश में मैकडोनाल्ड के 169 रेस्टोरेंट बंद हो रहे हैं। दरअसल कनाट प्लाजा रेस्तरां के साथ मैकडोनाल्ड्स इंडिया का समझोता कल ही खत्म हो चुका है। कनाट प्लाजा रेस्तरां के निदेशक मंडल की एक और बैठक होनी है। जिसमें इन 169 रेस्तरां को बचाने की एक आखिरी कोशिश की जाएगी।
अगर इस बैठक के बाद भी यह कनाट प्लाजा रेस्तरां के साथ मैकडोनाल्ड्स इंडिया के समझोते को  बढ़ाया नहीं गया तो ये 169…
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