#मेरा शब्द सुन
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#भजन संहिता 27:7हे यहोवा#मेरा शब्द सुन#मैं पुकारता हूं#तू मुझ पर अनुग्रह कर और मुझे उत्तर दे।********************PRAISE THE LORD ALL OF
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#संतरामपालजी_का_संघर्ष
🇲🇽संत रामपाल जी महाराज के संघर्ष
"जो मम संत सत शब्द दृढ़ावै, वाकै संग सब राड़ बढ़ावै।
ऐसे संत महंतन की करणी, धर्मदास में तोसे वरणी॥"
कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो मेरा सच्चा संत सतनाम के विषय में दृढ़ता से बताएगा उसके साथ उस समय के संत तथा महंत झगड़ा करेंगे क्योंकि वह सच्चा ज्ञान उन नकलियों के नकली ज्ञान का पर्दाफाश करेगा और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज वे ही संत हैं क्योंकि आज उनके सत्यज्ञान का विरोध वर्तमान के सभी धर्मगुरु कर रहे हैं।
👉 अधिक जानकारी के लिए आप *साधना चैनल* पर सायं 7:30 - 8:30 तक सुन सकते हैं संत रामपाल जी महाराज के अमृत वचन l
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart35 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart36
"पांचवां अध्याय"
"श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव के माता-पिता की जानकारी"
प्रश्न 28: कोई प्रमाण दिखाओ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता हैं?
उत्तर :- श्री देवी महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे मातः ! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं, ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते-मरते हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। तुम ही जगत जननी और सनातनी देवी हो और प्रकृति देवी हो। शंकर भगवान बोले, हे माता ! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाला ब्रह्मा जब आपका पुत्र है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो। इस देवी महापुराण के उल्लेख से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी को जन्म देने वाली माता श्री दुर्गा देवी (अष्ट���गी देवी) है और तीनों नाशवान हैं।
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी का पिता कौन है? श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव जी (तमगुण) की माता देवी दुर्गा है तथा पिता काल ज्योति निरंजन है।
प्रमाण : श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) में इनके पिता का ज्ञान है, श्री शिव महापुराण के रूद्रसंहिता खण्ड में अध्याय 5 से 9 तक निम्न प्रकरण है :- अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि हे पुत्र! आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन।
प्रारम्भ में केवल एक "सब्रह्म" ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय था। उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको "सदाशिव" कहा जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्री निकाली, वह स्त्री दुर्गा, जगदम्बिका, प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी कहलाई जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है।
"श्री विष्णु जी की उत्पत्ति: सदाशिव और शिवा (दुर्गा) ने पति-पत्नी रूप में रहकर एक पुत्र की उत्पत्ति की, उसका नाम विष्णु रखा।
• "श्री ब्रह्मा जी की उत्पत्ति" श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पत्ति शिव तथा शिवा के संयोग (भोग-विलास) से हुई है, उसी प्रकार शिव और शिवा ने मेरी (ब्रह्मा की) भी उत्पत्ति की।
नोट :- यहाँ पर शिव को काल ब्रह्म जानें, शिवा को दुर्गा जानें, (अदालत नोट करे) इस रूद्र संहिता खण्ड में शंकर जी की उत्पत्ति का प्रकरण नहीं है, यह अनुवादकर्ता की गलती है। वैसे देवी पुराण में शंकर जी ने स्वयं स्वीकारा है कि मेरा जन्म दुर्गा (प्रकृति) से हुआ है।
श्री शकंर जी भी शिव (काल ब्रह्म) तथा शिवा (देवी दुर्गा) का पुत्र है :- श्री शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता के प्रथम खण्ड अध्याय 6 से 10 में प्रमाण :-
एक समय श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी का इस बात पर युद्ध हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा मैं तेरा पिता हूँ क्योंकि यह संसार मेरे से उत्पन्न हुआ है, मैं प्रजापिता हूँ। विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूँ, तू मेरे नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है। दोनों एक-दूसरे को मारने के लिए तत्पर हो गए। उसी समय सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म ने उन दोनों के बीच में एक सफेद रंग का प्रकाशमय स्तंभ खडा कर दिया।
उसके पश्चात् अपने पुत्र तमगुण शिव के रूप में प्रकट होकर उस स्तंभ को अपने लिंग (Private Part) का आकार दे दिया। उसी दिन से शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। लिंग पूजा आरंभ हुई। (पाँचवें अध्याय के श्लोक 26- 31 में) उस काल ब्रह्म ने स्वयं शंकर के रूप में प्रकट होकर उनको बताया कि तुम दोनों में से कोई भी कर्ता नहीं है। तुमने (ब्रह्मा व विष्णु ने) जो अज्ञानता से अपने आपको "ईश" माना यानि अपने को जगत का कर्ता यह बड़ा ��ी अद्भुत हुआ। उसी (भ्रम) को दूर करने के लिए मैं रणस्थल पर आया हूँ। अब तुम दोनों अपना अभिमान त्यागकर मुझ ईश्वर में अपनी बुद्धि लगाओ।
हे पुत्रो! मैंने तुमको तुम्हारे तप के प्रतिफल में जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं। इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार व तिरोगति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है। मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ) तथा तीसरे मुख से मकार (म), चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ॐ) बना है, यह मेरा मूल मन्त्र है।
शिव पुराण के इस उल्लेख से यह भी सिद्ध हुआ कि मेरे को ब्रह्म कहते हैं। पाँच अक्षरों से बना एक ओम् (ॐ) मेरा मूल मंत्र (नाम) है जो मेरी साधना है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसी ब्रह्म ने कहा है कि (माम् ब्रह्म) मुझ ब्रह्म का स्मरण करने का एक ॐ (ओम्) अक्षर है।
इससे भी स्वसिद्ध है कि गीता का ज्ञान काल रूप ब्रह्म ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके बोला है।
लिंग व लिंगी की पूजा करने को कहना : काल ब्रह्म ने अपने लिंग (Private Part) तथा स्त्री की लिंगी (Private Part) की पूजा करने को कहा है। जो मंदिरों में शिवलिंग स्थापित किया होता है, उसको ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि पत्थर की लिंगी (स्त्री की योनि) में पत्थर का लिंग यानि शिव का लिंग (पेशाब इन्द्री) प्रविष्ट किया गया होता है।
श्री शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता के खण्ड-1 अध्याय 5 श्लोक 26-31 तथा अध्याय 9 श्लोक 40-46 में प्रमाण है। इनकी फोटोकॉपी आगे लगाई हैं, कृपया वहाँ पर पढ़ें। विचार करें कि यह कितनी बेशर्मी की बात है। कितना अभद्र मजाक काल ब्रह्म ने किया। ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि तुम इस मेरे लिंग व लिंगी (स्त्री योनि) की पूजा करो।
उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शकर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् "काल ब्रह्म" है जिसने श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। इसी को क्षर पुरुष, क्षर ब्रह्म (ज्योति निरंजन) काल ब्रह्म भी कहा गया है।
यही प्रमाण श्री मद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है कि रज् (रजगुण ब्रह्मा), सत् (सतगुण विष्णु), तम् (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा देवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है। मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है। ये तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) ही जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं यानि सब जीवों को काल के जाल में फसांकर रखने वाले ये ही तीनों देवता हैं।
यही प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15 में है कि ��िनकी बुद्धि तीन = गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) से मिलने वाले क्षणिक लाभ तक सीमित है यानि जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं जो मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते ।
विशेष :- श्री शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता खण्ड-1 अध्याय 9 के श्लोक 40-46 तथा अध्याय 5 के श्लोक 26-31 की फोटोकॉपी ऊपर लगी हैं। इनमें कहा है कि काल ब्रह्म ने कहा है कि जीवों को जन्म-मृत्यु के चक्र में रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव (ये तीनों गुण यानि तीनों देवता) डालते हैं। अपना बचाव कर रहा है। यह (काल ब्रह्म) इस प्रकार कपटयुक्त कार्य करता है।
गीता अध्याय 7 श्लोक 12 में इसी ने कहा है कि जो कुछ तीनों गुणों यानि रजगुण ब्रह्मा से उत्पत्ति, सतगुण विष्णु से स्थिति तथा तमगुण शिव से संहार हो रहा है, इसका निमित मैं हूँ। परम अक्षर ब्रह्म यानि कबीर जी ने यथार्थ ज��ञान अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास (छुड़ानी वाले) को बताया। उन्होंने अपनी वाणी में उसे समझाया। कहा कि अकेले ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव इसके कारण नहीं हैं। वाणी :- ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, माया और धर्मराया कहिए। इन पाँचों मिल प्रपंच बनाया, वाणी हमरी लहिए।। इन पाँचों मिल जीव अटकाए। जुगन जुगन हम आन छुड़ाए।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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Shraddha TV Satsang 23-06-2024 || Episode: 2601 || Sant Rampal Ji Mahara...
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📚शिशु रूप कबीर परमेश्वर का नामकरण करने आए काजियों ने जब कुरान शरीफ को खोला तो कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर हो गए। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह हू, मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।
पूर्ण परमेश्वर का नाम कबीर (कविर्देव) है जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 16, 17, 18 व् आदि वेद मंत्रों में भी स्पष्ट देखा जा सकता है।
📚स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी बताते है कि मेरा शरीर ना तो पांच तत्व का बना है और ना ही मेरा जन्म हुआ है, मैं तो जीवों के उद्धार के लिए सशरीर प्रकट हुआ हूँ।
पाँच तत्व की देह ना मेरी, ना कोई माता जाया।
जीव उदारन तुम को तारन, सीधा जग में आया।। – कबीर सागर - अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 34
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सन् 1398 में ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को कबीर जी सशरीर प्रकट हुए थे उसी उपलक्ष्य में कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाता है!
🥁5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के रामानंद जी को कबीर परमेश्वर ने अपनी शरण में लिया। वास्तविकता से परिचित कराया। रामानंद जी के शब्द:-
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
लाल।
🥁स्वामी रामानन्द जी ने पाँच वर्षीय बालक कबीर जी से प्रश्न किया। हे बालक! आपका क्या नाम है,कौन जाति है,भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? बालक कबीर जी ने भी आधीनता से उत्तर दिया :- जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठूं पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।।
🥁कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो सबके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, "ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी जल कमल पे डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी।।"
🥁वह परमात्मा सतलोक से चलकर आते हैं। जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन��य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है।
🥁कबीर परमेश्वर जी संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए। निःसंतान नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।। – कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध
#youtube#satbhakti_sandesh#aimofsantrampalji#santrampaljimaharaj#almightygod kabir#satlokashram#sundayfeeling
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*🎺बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🎺*
19/06/24
🌷"कबीर परमेश्वर प्रकट दिवस पर विषेश सेवाएं"🌷
*🦚Twitter Trending सेवा सूचना🦚*
🌿 *मालिक की दया से कबीर साहेब जी के प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में Twitter पर परमात्मा के कलयुग में प्रकट होने की लीला से संबंधित सेवा करेंगे जी।*
*टैग और keyword⤵️*
*#परमात्मा_का_पृथ्वी_पर_आगमन*
*3Days Left Kabir Prakat Diwas*
*📷''' सेवा से सम्बंधित photo लिंक⤵️*
https://www.satsaheb.org/manifestation-in-kalyug-hindi-0624/
https://www.satsaheb.org/manifestation-in-kalyug-english/
*🔮सेवा Points🔮* ⬇️
⚡️कबीर परमेश्वर सशरीर प्रकट हुए
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में परमेश्वर कबीर जी तेजोमय रूप में आकर काशी के लहरतारा तालाब में बालक रूप में कमल के फूल पर प्रकट हुए, इसके प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानन्द जी थे। वहाँ से नीरू नीमा ने परमेश्वर कबीर जी को अपने घर ले आये।
⚡️काशी शहर की पवित्र भूमि पर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पूर्ण परमेश्वर कबीर/कविर्देव जी स्वयं अपने सतलोक से आकर लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए।
गरीब, काशी पुरी कस्त किया, उतरे अधर आधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
⚡️कबीर परमेश्वर का कलयुग में प्रकट होना
ज्येष्ठ मांस की पूर्णमासी सन् 1398(विक्रम संवत 1455) को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब काशी में शिशु रूप में प्रकट हुए।
साहेब होकर उतरे, बेटा काहू का नाहीं।
जो बेटा होकर उतरे, वो साहेब भी नाहीं।।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब सशरीर आये और अनेकों लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक चले गए। क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
⚡️सन् 1398 में परमेश्वर कबीर जी शिशु रूप में प्रकट हुए। नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले वो परमेश्वर को घर ले आये | शिशु रूपी कबीर जी का नामांकन करने आये काजी ने कुरान खोली तो पूरी कुरान में कबीर-कबीर शब्द लिखा मिला। तब शिशु रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मेरा नाम कबीर ही रहेगा। इस घटना को देखकर काजी डर कर चले गए और बच्चे का नाम कबीर रखा गया।
गरीब, काजी गये कुरान ले, धरि लरके का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुरया, धन कबीर बलि जांव।।
सकल कुरान कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।
⚡️शिशु कबीर परमेश्वर द्वारा कुंवारी गाय का दूध पीने का वर्णन
परमेश्वर जब पृथ्वी पर शिशु रूप में प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध द्वारा होती है।
गरीब शिव उतरे शिवपुरी से, अविगत बदन विनोद।
महके कमल खुशी भये, लिया ईश कूं गोद।
सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैन।
शिव कूं कर मस्तक धरया, ला मोमन एक धैन।
गरीब अन ब्यावर कूं दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्मगति, तहाँ शिव भये दयाल।।
⚡️स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी बताते है कि मेरा शरीर ना तो पांच तत्व का बना है और ना ही मेरा जन्म हुआ है, मैं तो जीवों के उद्धार के लिए सशरीर प्रकट हुआ हूँ।
पाँच तत्व की देह ना मेरी, ना कोई माता जाया।
जीव उदारन तुम को तारन, सीधा जग में आया।। – कबीर सागर - अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 34
सन् 1398 में ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को कबीर जी सशरीर प्रकट हुए थे उसी उपलक्ष्य में कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाएगा।
⚡️5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के रामानंद जी को कबीर परमेश्वर ने अपनी शरण में लिया। वास्तविकता से परिचित कराया। रामानंद जी के शब्द:-
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
⚡️गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै परब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।
संत गरीबदास जी कहते हैं कि शिशु रूप में कबीर परमेश्वर जी को देखकर काशी के लोग कह रहे थे कि यह तो कोई देवता का अवतार है। देवता कह रहे थे कि यह स्वयं ईश्वर है और ईश्वर कहते हैं कि स्वयं पूर्ण ब्रह्म पृथ्वी पर आए हैं।
⚡️काशी में एक लहरतारा तालाब था। गंगा नदी का जल लहरों के द्वारा नीची पटरी के ऊपर से उछल कर एक सरोवर में आता था। इसलिए उस सरोवर का नाम लहरतारा पड़ा। उस तालाब में बड़े-2 कमल के फूल उगे हुए थे। नीरू-नीमा(नि:सन्तान दम्पत्ति थे) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के लिए गए हुए थे। वहां नीरू - नीमा को कमल कंद फूल पर शिशु रूप में कबीर परमात्मा मिले थे। उसी दिन को कबीर प्रकट दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
⚡️जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं।
⚡️कबीर साहेब जी का नामकरण-
काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे अन्य लेख नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो।
⚡️स्वामी रामानन्द जी ने पाँच वर्षीय बालक कबीर जी से प्रश्न किया। हे बालक! आपका क्या नाम है,कौन जाति है,भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? बालक कबीर जी ने भी आधीनता से उत्तर दिया :- जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठूं पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।।
⚡️कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो ��बके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, "ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी जल कमल पे डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी।।"
⚡️वह परमात्मा सतलोक से चलकर आते हैं। जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है।
⚡️कबीर परमेश्वर जी संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए। निःसंतान नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।। – कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध"
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🌷"कबीर परमेश्वर प्रकट दिवस पर विषेश सेवाएं"🌷
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⚡️कबीर परमेश्वर सशरीर प्रकट हुए
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में परमेश्वर कबीर जी तेजोमय रूप में आकर काशी के लहरतारा तालाब में बालक रूप में कमल के फूल पर प्रकट हुए, इसके प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानन्द जी थे। वहाँ से नीरू नीमा ने परमेश्वर कबीर जी को अपने घर ले आये।
⚡️काशी शहर की पवित्र भूमि पर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पूर्ण परमेश्वर कबीर/कविर्देव जी स्वयं अपने सतलोक से आकर लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए।
गरीब, काशी पुरी कस्त किया, उतरे अधर आधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
⚡️कबीर परमेश्वर का कलयुग में प्रकट होना
ज्येष्ठ मांस की पूर्णमासी सन् 1398(विक्रम संवत 1455) को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब काशी में शिशु रूप में प्रकट हुए।
साहेब होकर उतरे, बेटा काहू का नाहीं।
जो बेटा होकर उतरे, वो साहेब भी नाहीं।।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब सशरीर आये और अनेकों लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक चले गए। क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
⚡️सन् 1398 में परमेश्वर कबीर जी शिश�� रूप में प्रकट हुए। नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले वो परमेश्वर को घर ले आये | शिशु रूपी कबीर जी का नामांकन करने आये काजी ने कुरान खोली तो पूरी कुरान में कबीर-कबीर शब्द लिखा मिला। तब शिशु रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मेरा नाम कबीर ही रहेगा। इस घटना को देखकर काजी डर कर चले गए और बच्चे का नाम कबीर रखा गया।
गरीब, काजी गये कुरान ले, धरि लरके का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुरया, धन कबीर बलि जांव।।
सकल कुरान कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।
⚡️शिशु कबीर परमेश्वर द्वारा कुंवारी गाय का दूध पीने का वर्णन
परमेश्वर जब पृथ्वी पर शिशु रूप में प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध द्वारा होती है।
गरीब शिव उतरे शिवपुरी से, अविगत बदन विनोद।
महके कमल खुशी भये, लिया ईश कूं गोद।
सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैन।
शिव कूं कर मस्तक धरया, ला मोमन एक धैन।
गरीब अन ब्यावर कूं दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्मगति, तहाँ शिव भये दयाल।।
⚡️स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी बताते है कि मेरा शरीर ना तो पांच तत्व का बना है और ना ही मेरा जन्म हुआ है, मैं तो जीवों के उद्धार के लिए सशरीर प्रकट हुआ हूँ।
पाँच तत्व की देह ना मेरी, ना कोई माता जाया।
जीव उदारन तुम को तारन, सीधा जग में आया।। – कबीर सागर - अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 34
सन् 1398 में ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को कबीर जी सशरीर प्रकट हुए थे उसी उपलक्ष्य में कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाएगा।
⚡️5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के रामानंद जी को कबीर परमेश्वर ने अपनी शरण में लिया। वास्तविकता से परिचित कराया। रामानंद जी के शब्द:-
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
⚡️गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै परब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।
संत गरीबदास जी कहते हैं कि शिशु रूप में कबीर परमेश्वर जी को देखकर काशी के लोग कह रहे थे कि यह तो कोई देवता का अवतार है। देवता कह रहे थे कि यह स्वयं ईश्वर है और ईश्वर कहते हैं कि स्वयं पूर्ण ब्रह्म पृथ्वी पर आए हैं।
⚡️काशी में एक लहरतारा तालाब था। गंगा नदी का जल लहरों के द्वारा नीची पटरी के ऊपर से उछल कर एक सरोवर में आता था। इसलिए उस सरोवर का नाम लहरतारा पड़ा। उस तालाब में बड़े-2 कमल के फूल उगे हुए थे। नीरू-नीमा(नि:सन्तान दम्पत्ति थे) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के लिए गए हुए थे। वहां नीरू - नीमा को कमल कंद फूल पर शिशु रूप में कबीर परमात्मा मिले थे। उसी दिन को कबीर प्रकट दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
⚡️जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं।
⚡️कबीर साहेब जी का नामकरण-
काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे अन्य लेख नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो।
⚡️स्वामी रामानन्द जी ने पाँच वर्षीय बालक कबीर जी से प्रश्न किया। हे बालक! आपका क्या नाम है,कौन जाति है,भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? बालक कबीर जी ने भी आधीनता से उत्तर दिया :- जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठूं पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।।
⚡️कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो सबके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, "ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी जल कमल पे डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी।।"
⚡️वह परमात्मा सतलोक से चलकर आते हैं। जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है।
⚡️कबीर परमेश्वर जी संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए। निःसंतान नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।। – कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध"
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Best 40+ Dard Bhari Shayari in Hindi | दर्द शायरी
दोस्तों, दर्द भरी शायरी में कुछ शब्द हमारी निजी ज़िंदगी से गहराई से जुड़ते हैं। हमारे द्वारा प्रस्तुत की गई Dard Bhari Shayari in Hindi का गहरा असर होता है, जिससे आप अपनी भावनाओं को सबसे अच्छे से व्यक्त करने वाली शायरी चुन सकते हैं। हमने नीचे 40 से ज़्यादा बेहतरीन और नई Dard Bhari Shayari in Hindi संकलित की हैं। जब आपका कोई करीबी अब आपकी ज़िंदगी में नहीं होता और उसे भूलना मुश्किल होता है, तो ये शायरी उनकी यादों को अपने दिल में ज़िंदा रखकर और अपना दर्द बाँटकर आपको इससे उबरने में मदद कर सकती हैं। हमारी Best 40+ Dard Bhari Shayari in Hindi सरल लेकिन शक्तिशाली है, जो उन भावनाओं को दर्शाती है जो हमने कई बार अनुभव की हैं। प्रत्येक शायरी में एक छिपी हुई भावना होती है जो प्रियजनों के साथ अलगाव या निकटता के क्षणों का वर्णन करती है। दर्द भरी शायरी में साझा की गई भावनाएँ अक्सर आंसू बहा देने वाली होती हैं, जो दिल टूटने के सार को पकड़ लेती हैं। इस पोस्ट को पढ़ें और इन मार्मिक भावनाओं में डूब जाएँ।.
Dard Bhari Shayari Collection in Hindi
उसको किसी और के साथ खुश देख लिया, दुख तो बहुत हुआ, पर वो खुश थी..!!!
मैं अब कैसी भी ज़िद नहीं करता किसी से, मैं जानता हूं मेरी अहमियत कम हो गई है..!!!
रात भर इंतजार किया उसके जवाब का, सुबह एहसास हुआ, जवाब ना आना भी तो एक जवाब है..!!!
तुम क्या जानो मैं खुद से शर्मिंदा हूं, छूट गया है साथ तुम्हारा, फिर भी जिंदा हु..!!!
मैं अंधेरों में हरगिज ना रहता, मुझे धोखा दिया है उजालों ने..!!!
आज फिर दम घुटने लगा, ना जाने किसने गले लगाया होगा उसे.!!!
मैने उसको पाने की चाहत में उसे इतना तड़पाया इतना तड़पाया, के आज उसे हमेशा के लिए खो दिया..!!!
मैं अगर सब जैसा होता, तो यकीन मानो इतना परेशान नहीं होता..!!!
इस तरह याद आकार बेचैन ना किया करो, एक ही सजा काफी है पास नही हो तुम..!!!
जिसके लिए सब कुछ गवा दिया, एक दिन वो भी मुझसे रूठ कर चला गया.!!!!
मैं वो बरबाद लड़का हु जो हर किसी को खुश रखने के चक्कर में, अपनी बेइज्जती करवा लेता हु..!!!
सीने से लगाकर सुन वो धड़कन मेरी, जो हर वक्त तूझसे मिलने का इंतजार करती है..!!!
थक गया था सबकी परवाह करते करते, बड़ा सकून सा है जबसे लापरवाह हुआ हु..!!!
अब आता नहीं मैं किसी के बहकावे में, एक लड़की मुझे इतना समझदार कर गई…!!!
तेरे होकर भी तेरे ना हो पाए, देख कितने बदनसीब है हम..!!!
वजह तो कोई नही, मगर अब हर टाइम, मन उदास, दिल परेशान और दिमाग खराब रहता है..!!!
बहुत लड़ा तुमसे, पर तुम्हारी यादों से हार गया..!!!
Zindagi Dard Bhari Shayari Hindi Mein
मुस्किल नही मेरा फिरसे पहले जैसा हो पाना, खुद को बहुत पीछे छोड़ आया हु..!!!!
पल पल का इंतजार हमे बेहाल कर देता है, पता नहीं तुम्हे कब फुरशत मिलेगी हमे याद करने की..!!!
मुस्कुरा रह��� हो तो अच्छा है, मुस्कुराना पड़ रहा है तो मसला है..!!!
नब्ज़ क्या खाक बोलेगी, जो दिल पर गुजरी है सिर्फ दिल जनता है…!!!
मैं सिर्फ़ उसको देख लेता हु तो रो देता हु, डर है की किसी और के साथ देख लिया तो मेरा क्या होगा..!!!
आशु अंतिम प्राय होता है, अपने प्यार को बचाने के लिए..!!!
उनके बिना रहना तो सिख गए, मगर खुश रहना भूल गए..!!!
अपना सबकुछ दाव पर लगाकर, हम उस शख्स से हारते चले गए..!!!
हमे नहीं आता अपने दर्द का दिखावा करना, अकेले रोते हैं और सो जाते है..!!!
दिल तो था ही नहीं मेरे पास, जो टूटा वो भरोसा था..!!!
हिचकियां आए तो पानी पी लेना, कोई याद कर रहा है ये वाला वहम मत पालना..!!!
कुर्बान हो जाऊं उस शख्स की हाथो की लकीरों पर, जिसने तुझे मांगा भी नही और अपना बना लिया..!!!
लौट आए हैं हम भी इश्क में धोखा खाकर, बड़ी दूर बैठे हैं खुद से मुंह छुपाकर..!!!
वो दर्द बहुत गहराई तक चोट पोहुचाता है, जो आंखो से आशु बनकर बाहर भी ना आ सके..!!!
अजीब सा डर रहता है तुझे खोने का, जबकि तुझ्से खुलकर बात भी नहीं होती…!!!
खफा भी हो जाए तो पहले की तरह खफा नही लगता, वो बेवफाई भी करे तो बेवफा नहीं लगता…!!!
Akelapan Dard Bhari Shayari in Hindi
वफा की बाते अब ना कीजिए हमसे, हमने एक उम्र गवा दी है वफाई करके..!!!
जिसने सवारा था ये जहां, वही उजड़ गया, पहले पौधे लगाए फिर उन्हें उखाड़ गया..!!!
हर रोज मेरे ख्वाब सूली पर चढ़ते है, मगर सजा ए मोहब्ब्त खत्म नहीं होती..!!!
कोई हमारा भी था, अभी कल की ही तो बात है..!!!
जिंदगी उन्ही की रंगीन है, जो रंग बदलना जानते है..!!!
ऐ ज़िन्दगी तुझे भी शिकायतें बहुत है, संभल जा वरना तुझे भी छोड़ देंगे..!!!!
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*🪷बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🪷*
10/06/24
*🎈Facebook सेवा🎈*
🌿 *मालिक की दया से अब कबीर साहेब द्वारा गोरखनाथ के साथ की गई लीला से सम्बंधित Facebook पर सेवा करेंगे जी।*
*टैग है*
#सिद्धि_बड़ी_या_भगवान #Gorakhnath #kashi #nath #nathdwara #गोरखनाथ #सिद्धि
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🔹परमात्मा के सामने गोरखनाथ की सिद्धि हुई फेल।
गोरखनाथ ने कबीर परमात्मा से कहा कि आपकी एक परीक्षा लूंगा। गोरखनाथ ने कहा मैं गंगा में छुपुंगा। मुझे खोज देना। परमात्मा बोले भाई यह भी कसर निकाल ले। दरिया में कूद गया और मछली बन गया गोरखनाथ। परमात्मा ने उसको पकड़ कर और पटड़ी पर रख दिया, गोरखनाथ बना दिया। तब गोरखनाथ ने परमात्मा पैर पकड़ लिए।
🔹कबीर परमात्मा से हारने के बाद गोरखनाथ बोला, हे भगवान! आप कौन शक्ति हो? कहां से आए हो ? मेरे सामने टिकने वाला आज पृथ्वी पर कोई नहीं।
परमात्मा ने कहा
अवधू अविगत से चला आया। रे मेरा भेद मरम ना पाया।।
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशी शहर जल कमलपर डेरा, तहां जुलाहे ने पाया।।
🔹एक समय गोरख नाथ (सिद्ध महात्मा) काशी में स्वामी रामानन्द जी से शास्त्रार्थ करने के लिए आए। उसी समय बालक रूप कबीर जी ने कहा:- नाथ जी पहले मेरे से चर्चा करें।
गोरख नाथ जी ने कहा तू बालक कबीर जी कब से योगी बन गया। तेरी क्या आयु है? और कब वैरागी बन गए?
कबके भए वैरागी कबीर जी, कबसे भए वैरागी।
नाथ जी जब से भए वैरागी मेरी, आदि अंत सुधि लागी।।
गुरु के वचन साधु की संगत, अजर अमर घर पाया।
कहैं कबीर सुनो हो गोरख, मैं सब को तत्व लखाया।
🔹साहेब कबीर जी गोरख नाथ जी को बताते हैं कि मैं कब से वैरागी बना।
धूंधूकार आदि को मेला, नहीं गुरु नहीं था चेला।
जब का तो हम योग उपासा, तब का फिरा अकेला।।
साहेब कहते हैं कि जब कोई सृष्टि (काल सृष्टि) नहीं थी तथा न सतलोक सृष्टि थी तब मैं (कबीर) अनामी रूप में था और कोई नहीं था।
🔹साहेब कबीर जी गोरख नाथ जी को बताते हैं कि
धरती नहीं जद की टोपी दीना, ब्रह्मा नहीं जद का टीका।
शिव शंकर से योगी, न थे जद का झोली शिका।।
साहेब कबीर ने ही सतलोक सृष्टि शब्द से रची तथा फिर काल की सृष्टि भी सतपुरुष ने रची। जब मैं अकेला रहता था जब धरती भी नहीं थी तब से ��ेरी टोपी जानो। ब्रह्मा जो गोरखनाथ तथा उनके गुरु मच्छन्दर नाथ आदि सर्व प्राणियों के शरीर बनाने वाला पैदा भी नहीं हुआ था। तब से मैंने टीका लगा रखा है अर्थात् मैं (कबीर) तब से सतपुरुष आकार रूप मैं ही हूँ।
🔹गोरखनाथ जी कबीर परमात्मा से जब पूछा था कि आपकी आयु तो बहुत छोटी है अर्थात् आप लगते तो हो बालक से।
तब परमात्मा बोले
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी। असंख युग प्रलय गए, तब का ब्रह्मचारी।।
🔹जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी। असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी। हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
श्री गोरखनाथ सिद्ध को सतगुरु कबीर साहेब अपनी आयु का विवरण देते हैं। असंख युग प्रलय में गए। तब का मैं वर्तमान हूँ अर्थात् अमर हूँ।
🔹अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया। सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कबीर परमात्मा ने गोरखनाथ को तत्त्वज्ञान समझाते हुए कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् अमर पुरुष हूं। कबीर साहेब कहते हैं कि हम अमर हैं। अन्य भगवान जिसका तुम आश्रय ले कर भक्ति कर रहे हो वे नाशवान हैं। फिर आप अमर कैसे हो सकते हो?
🔹नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी। कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
कबीर परमात्मा ने गोरखनाथ को बताया कि मैं (कबीर साहेब) न बूढ़ा न बालक, मैं तो जवान रूप में रहता हूँ जो ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है। यह तो मैं लीलामई शरीर में आपके समक्ष हूँ। कहै कबीर सुनों जी गोरख, मेरी आयु (उम्र) यह है जो आपको बताई है।
🔹परमात्मा के सामने गोरखनाथ की सिद्धि हुई फेल।
एक बार गोरखनाथ जी जमीन में गड़े लगभग 7 फुट ऊँचें त्रिशूल के ऊपर सिद्धि से बैठ गए और कबीर परमात्मा से कहा कि यदि आप इतने महान हो तो मेरे बराबर में ऊँचा उठ कर बातें करो।
साहेब कबीर ने अपनी पूर्ण सिद्धि का प्रदर्शन किया।
जेब से धागे की रील निकाली और एक सिरा आकाश में फैंक दिया। वह धागा सीधा खड़ा हो गया। साहेब कबीर आकाश में उड़े तथा लगभग 150 फुट धागे के ऊपर बैठ गए और कहा कि आओ नाथ जी! बराबर में बैठकर चर्चा करें। गोरखनाथ जी ने ऊपर उड़ने की कोशिश की लेकिन उल्टा जमीन पर टिक गए।
🔹पूर्ण परमात्मा के सामने सिद्धियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं। गोरखनाथ जी कबीर साहेब से सिद्धि में हारने के बाद जान गए कि कबीर साहेब कोई मामूली संत नहीं है। तब कहा कि हे परम पुरुष! कृप्या नीचे आएँ और अपने दास पर दया करके अपना परिचय दें। आप कौन शक्ति हो? किस लोक से आना हुआ है? तब कबीर साहेब नीचे आए और कहा कि:-
अवधू अबिगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
🔹 गोरख नाथ ने कबीर साहेब से कहा कि मेरी एक शक्ति और देखो। यह कह कर गंगा की ओर चल पड़ा। सर्व दर्शकों की भीड़ भी साथ ही चली। लगभग 500 फुट पर गंगा नदी थी। उसमें जा कर छलांग लगाते हुए कहा कि मुझे ढूंढ दो। फिर मैं (गोरखनाथ) आप का शिष्य बन जाऊँगा। गोरखनाथ मछली बन गए। साहेब कबीर ने उसी मछली को पानी से बाहर निकाल कर सबके सामने गोरखनाथ बना दिया। तब गोरखनाथ जी ने साहेब कबीर को पूर्ण परमात्मा स्वीकार किया और शिष्य बने।
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चमारों की गली -अदम गोंडवी
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ��े चलूँगा आपको
जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी
चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा
कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई
कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को
डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से
आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में
होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी
चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई
दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया
और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में
जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था
बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है
कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं
कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें
बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से
पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में
दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर
क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया
कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो
देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ पड़ गया है सीप का मोती गँवारों क�� यहाँ
जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है
भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ
आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई
वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही
जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है
कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी
बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था
क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था
रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था
सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में
घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने - "जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"
निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर
गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"
"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा
होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -
"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो आग लाओ और इस��ी झोपड़ी भी फूँक दो"
और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी
दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था
घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे
"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं" यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से
फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा
इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"
बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो होश में आया नहीं ��ो लाठियों पर टांग लो
ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"
पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल "कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल" उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को
धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को
मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में
गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही
हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए!
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#Mere_Aziz_Hinduon_Swayam Padho Apne Granth
मेरे अज़ीज़ हिंदुओं स्वयं पढ़ो अपने ग्रंथ
श्रीमदभगवद्गीता
संत रामपाल जी महाराज
पवित्र हिन्दू धर्म के गुरूओं द्वारा गीता अध्याय 18 श्लोक 66 के अर्थ में व्रज शब्द का अर्थ आना किया है जबकि व्रज शब्द का वास्तविक अर्थ जाना होता है। यह हमारे धर्मगुरूओं द्वारा हिन्दुओं के साथ बहुत बड़ा धोखा किया गया है जबकि संत रामपाल जी महाराज ने समाज को सही गीता ज्ञान बताया है।
सतपाल जी महाराज
सर्वधर्मान्यरित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।।
हे अर्जुन ! अति गोपनीय वचनों को तू फिर भी सुन क्योंकि तू मेरा प्रिय है। यह परम हितकारी वचन तेरे लिये कहूंगा। इसलिये मेरे में मन लगा, भक्ति-पूजाकरके मुझे प्रणाम कर, यह सत्य प्रतिज्ञा है कि तू मुझे प्यारा है। सर्वधर्मों के कर्मों को छोड़कर
केवल मेरी ही शरण में आ। मेरी शरणागत रूप धर्म में लग, मैं
तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा। ।
। अ० १८ श्लोक ६४-६५-६६ ।।
हिन्दू साहेयान!
गीता, वेद, पुराग
SANT RAMPAL JI MAHARAJ
संस्कृत हिन्दी शब्दार्थकोश में प्रमाण
Sant Rampal Ji Maharaj
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कबीर, एक राम दशरथ का बेटा
एक राम घट घट में बैठा।
एक राम का सकल पसारा,
एक राम त्रिभुवन से न्यारा।।
.
तीन राम को सब कोई धयावे,
चतुर्थ राम को मर्म न पावे।
चौथा छाड़ि जो पंचम धयावे,
कहे कबीर सो हमपर आवे।।
अटपटा ज्ञान कबीर का,झटपट समझ न आए।
झटपट समझ आए तो,सब खटपट ही मिट जाए ।।
साचा शब्द कबीर का,सुनकर लागै आग ।
अज्ञानी सो जल जल मरे, ज्ञानी जाए जाग ।।
"कबीर" शब्द क�� अर्थ सर्वश्रेष्ठ,सर्वोतम,सबसे बड़ा,महान, है।
गौर कीजिए, असली भगवान को पहचानिए।
क का केवल नाम है ,ब से बरन शरीर।
र से रम रहा संसार ,ताका नाम कबीर॥
कबीर :-
हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गौस और पीर।
गरीबदास खालिक धणी, हमरा नाम कबीर॥
गरीब :-
अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, ये कुल के सृजनहार॥
दादू:-
जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, वो कबीर सृजनहार॥
कबीर :-
ना हमरे कोई मात-पिता, ना हमरे घर दासी।
जुलाहा सुत आन कहाया, जगत करै मेरी हाँसी॥
कबीर :-
पानी से पैदा नहीं, श्वासा नहीं शरीर।
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर॥
कबीर :-
ना हम जन्मे गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशा शहर जलज पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया॥
कबीर :-
सतयुग में सत्यसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा, द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया
कबीर :-
अरबों तो ब्रह्मा गये, उन्नचास कोटि कन्हैया ।
सात कोटि शम्भू गये, मोर एक पल नहीं पलैया॥
कबीर :-
नहीं बूढा नहीं बालक, नहीं कोई भाट भिखारी।
कहै कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी॥
कबीर :-
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानू ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा॥
कबीर :-
हाड- चाम लहू नहीं मेरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी॥
कबीर :-
अधर द्वीप ( सतलोक ) भँवर गुफा, जहाँ निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन भी, धरता ध्यान हमारा॥
कबीर :-
जो बूझे सोई बावरा, पूछे उम्र हमारी।
असंख्य युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी॥
कबीर :-
अवधू अविगत से चल आया, मेरा कोई मर्म भेद ना
पाया ॥
#Real_Lord_Kabir
God on Earth
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( #Muktibodh_part185 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part186
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 355-356
पारख के अंग की वाणी नं. 1063-1096 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने ही गुप्त रूप में दस सिर वाले रावण को मारा। हम ही ज्ञानी हैं। चतुर भी हम ही हैं। चोर भी हम हैं क्योंकि काल के जाल से निकालने वाला स्वयं सतपुरूष होता है। अपने को छुपाकर चोरी-छुपे सच्चा ज्ञान बताता है। यह रंग रास यानि आनंददायक वस्तुएँ भी मैंने बनाई हैं। ��ब आत्माओं की उत्पत्ति मैंने की है जिससे काल ब्रह्म ने भिन्न-भिन्न योनियां (जीव) बनाई हैं। जब-जब भक्तों पर आपत्ति आती है, मैं ही सहायता करता हूँ। व्रतासुर ने जब वेद चुराए थे तो मैंने ही बरहा रूप धरकर व्रतासुर को मारकर वेदों की रक्षा की थी।
हिरण्यकशिपु को मैंने ही नरसिंह रूप धारण करके उदर फाड़कर मारा था। मैंने ही बली राजा की यज्ञ में बावन रूप बनाकर तीन कदम (डंग) स्थान माँगा था। सुरपति के राज की रक्षा की थी। महिमा विष्णु की बनाई थी। इन्द्र ने विष्णु को पुकारा। विष्णु ने मुझे पुकारा।
तब मैं गया था। मैं जन्मता-मरता नहीं हूँ। इसलिए चार प्रकार से जो अंतिम संस्कार किया जाता है, वह मेरा नहीं होता। हम किसी को भ्रमित नहीं करते। काल का रूप मन सबको भ्रमित करता है। करोड़ों शंकर मरकर समूल (जड़ा मूल से) चले गए। ब्रह्मा, विष्णु की गिनती नहीं कि कितने मरकर जा चुके हैं। मैं वह परमेश्वर
हूँ जिसका गुणगान वेद तथा कतेब (कुरान व बाईबल) करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, सनकादिक भी जिसे प्राप्त नहीं कर सके, वे प्रयत्न करके थक चुके हैं। अल्फ रूप यानि मीनी सतलोक भी हमारा अंग (भाग) है। उसको भी ये प्राप्त नहीं कर सके जहाँ पर अनंत करोड़ त्रिवेणी तथा गंगा बह रही हैं। हमारे लोक में स्वर्ग-नरक नहीं, मृत्यु नहीं होती। कोई बंधन
नहीं है। सब स्वतंत्रा हैं। सत्य शब्द उस स्थान को प्राप्त करवाने का मंत्र है। केवल हमारे वचन (शब्द) से उत्पन्न ऊपर के लोक तथा उनमें रहने वाले भक्त/भक्तमती (हंस, हंसनी) अमर रहेंगे, और सब ब्रह्माण्ड एक दिन नष्ट हो जाएँगे। कच्छ, मच्छ, कूरंभ, धौल, धरती सब नष्ट हो जाएँगे। स्वर्ग, पाताल सब नष्ट हो जाएँगे। इन्द्र, कुबेर, वरूण, धर्मराय, ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव भी मर जाएँगे। आदि माया (दुर्गा) काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भी मरेंगे।
सब संसार मरेगा। हम नहीं मरेंगे। जो हमारी शरण में हैं, वो नहीं मरेंगे। सतलोक में मौज करेंगे।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1097-1124 (धर्मदास जी ने कहा) :-
धर्मदास बोलत है बानी, कौंन रूप पद कहां निशानी।
तुम जो अकथ कहांनी भाषी, तुमरै आगै तुमही साषी।।1097।।
योह अचरज है लीला स्वामी, मैं नहीं जानत हूं निजधामी।
कौन रूप पदका प्रवानं, दया करौं मुझ दीजै दानं।।1098।।
हम त�� तीरथ ब्रत करांही, अगम धामकी कछु सुध नांही।
गर्भ जोनि म��ं रहैं भुलाई, पद प्रतीति नहीं मोहि आई।।1099।।
हम तुम दोय या एकम एका, सुन जिंदा मोहि कहौ बिबेका।
गुण इन्द्री और प्राण समूलं, इनका कहो कहां अस्थूलं।।1100।।
तुम जो बटकबीज कहिदीन्या, तुमरा ज्ञान हमौं नहीं चीन्या।
हमकौं चीन्ह न परही जिंदा, कैसे मिटै प्राण दुख दुन्दा।।1101।।
त्रिदेवनकी की महिमा अपारं, ये हैं सर्व लोक करतारं।
सुन जिन्दा क्यूं बात बनाव, झूठी कहानी मोहे सुनावैं।।1102।।
मैं ना मानुं, बात तुम्हारी। मैं सेवत हूँ, विष्णु नाथ मुरारी।
शंकर-गौरी गणेश पुजाऊँ, इनकी सेवा सदा चित लाऊँ।।1103।।
तहां वहां लीन भये निरबांनी, मगन रूप साहिब सैलानी।
तहां वहां रोवत है धर्मनीनागर, कहां गये तुम सुख के सागर।।1104।।
अधिक बियोग हुआ हम सेती, जैसैं निर्धन की लुटी गई खेती।
कलप करै और मन में रोवै, दशौं दिशा कौं वह मग जोवै।।1105।।
हम जानैं तुम देह स्वरूपा, हमरी बुद्धि अंध गृह कूपा।
हमतो मानुषरूप तुम जान्या, सुन सतगुरू कहां कीन पियाना।।1106।।
बेग मिलौ करि हूं अपघाता, मैं नाहीं जीवूं सुनौं विधाता।
अगम ज्ञान कुछि मोहि सुनाया, मैं जीवूं नहीं अविगत राया।।1107।।
तुम सतगुरू अबिगत अधिकारी, मैं नहीं जानी लीला थारी।
तुम अविगत अविनाशी सांई, फिरि मोकूं कहां मिलौ गोसांई।।1108।।
दोहा - कमर कसी धर्मदास कूं, पूरब पंथ पयान।
गरीब दास रोवत चले, बांदौगढ अस्थान।।1109।।
जा पौंहचैं काशी अस्थाना, मौमन के घरि बुनि है ताना।
षटमास बीतै जदि भाई, तहां धर्मदास यग उपराई।।1110।।
बांदौगढ में यग आरंभा, तहां षटदर्शन अधि अचंभा।
यज्ञमांहि जगदीश न आये, धर्मदास ढूंढत कलपाये।।1111।।
अनंत भेष टुकड़े के आहारी, भेटै नहीं जिंद व्यौपारी।
तहां धर्मदास कलप जब कीनं, पलक बीच बैठै प्रबीनं।।1112।।
औही जिंदे का बदन शरीरं, बैठे कदंब वृक्ष के तीरं।
चरण लिये चिंतामणि पाई, अधिक हेत सें कंठ लगाई।।1113।।
◆ कबीर वचन :-
अजब कुलाहल बोलत बानी, तुम धर्मदास करूं प्रवानी।
तुम आए बांदौगढ स्थाना, तुम कारण हम कीन पयाना।।1114।।
अललपंख ज्यूं मारग मोरा, तामधि सुरति निरति का डोरा।
ऐसा अगम ज्ञान गोहराऊँ, धर्मदास पद पदहिं समाऊं।।1115।।
गुप्त कलप तुम राखौं मोरी, देऊँ ��क्रतार की डोरी।
पद प्रवानि करूं धर्मदासा, गुप्त नाम हृदय प्रकाशा।।1116।।
हम काशी में रहैं हमेशं, मोमिन घर ताना प्रवेशं।
भक्ति भाव लोकन कौ देही, जो कोई हमारी सिष बुद्धि लेही।।1117।।
ऐसी कलप करौ गुरूराया, जैसे अंधरें लोचन पाया।
ज्यूं भूखैकौ भोजन भासै, क्षुध्या मिटि है कलप तिरासै।।1118।।
जैसै जल पीवत तिस जाई, प्राण सुखी होय तृप्ती पाई।
जैसे निर्धनकूं धन पावैं, ऐसैं सतगुरू कलप मिटावैं।।1119।।
कैसैं पिण्ड प्राण निसतरहीं, यह गुण ख्याल परख नहीं परहीं।
तुम जो कहौ हम पद प्रवानी, हम यह कैसैं जानैं सहनानी।।1120।।
दोहा - धर्म कहैं सुन जिंद तुम, हम पाये दीदार।
गरीबदास नहीं कसर कुछ, उधरे मोक्षद्वार।।1121।।
◆ कबीर वचन :-
अजर करूं अनभै प्रकाशा, खोलि कपाट दिये धर्मदासा।
पद बिहंग निज मूल लखाया, सर्व लोक एकै दरशाया।।1122।।
खुलै कपाट घाटघट माहीं, शंखकिरण ज्योति झिलकांहीं।
सकल सृष्टि में देख्या जिंदा, जामन मरण कटे सब फंदा।।1123।।
दोहा - जिंद कहैं धर्मदास सैं, अभय दान तुझ दीन।
गरीबदास नहीं जूंनि जग, हुय अभय पद लीन।।1124।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 355-356
पारख के अंग की वाणी नं. 1063-1096 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने ही गुप्त रूप में दस सिर वाले रावण को मारा। हम ही ज्ञानी हैं। चतुर भी हम ही हैं। चोर भी हम हैं क्योंकि काल के जाल से निकालने वाला स्वयं सतपुरूष होता है। अपने को छुपाकर चोरी-छुपे सच्चा ज्ञान बताता है। यह रंग रास यानि आनंददायक वस्तुएँ भी मैंने बनाई हैं। सब आत्माओं की उत्पत्ति मैंने की है जिससे काल ब्रह्म ने भिन्न-भिन्न योनियां (जीव) बनाई हैं। जब-जब भक्तों पर आपत्ति आती है, मैं ही सहायता करता हूँ। व्रतासुर ने जब वेद चुराए थे तो मैंने ही बरहा रूप धरकर व्रतासुर को मारकर वेदों की रक्षा की थी।
हिरण्यकशिपु को मैंने ही नरसिंह रूप धारण करके उदर फाड़कर मारा था। मैंने ही बली राजा की यज्ञ में बावन रूप बनाकर तीन कदम (डंग) स्थान माँगा था। सुरपति के राज की रक्षा की थी। महिमा विष्णु की बनाई थी। इन्द्र ने विष्णु को पुकारा। विष्णु ने मुझे पुकारा।
तब मैं गया था। मैं जन्मता-मरता नहीं हूँ। इसलिए चार प्रकार से जो अंतिम संस्कार किया जाता है, वह मेरा नहीं होता। हम किसी को भ्रमित नहीं करते। काल का रूप मन सबको भ्रमित करता है। करोड़ों शंकर मरकर समूल (जड़ा मूल से) चले गए। ब्रह्मा, विष्णु की गिनती नहीं कि कितने मरकर जा चुके हैं। मैं वह परमेश्वर
हूँ जिसका गुणगान वेद तथा कतेब (कुरान व बाईबल) करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, सनकादिक भी जिसे प्राप्त नहीं कर सके, वे प्रयत्न करके थक चुके हैं। अल्फ रूप यानि मीनी सतलोक भी हमारा अंग (भाग) है। उसको भी ये प्राप्त नहीं कर सके जहाँ पर अनंत करोड़ त्रिवेणी तथा गंगा बह रही हैं। हमारे लोक में स्वर्ग-नरक नहीं, मृत्यु नहीं होती। कोई बंधन
नहीं है। सब स्वतंत्रा हैं। सत्य शब्द उस स्थान को प्राप्त करवाने का मंत्र है। केवल हमारे वचन (शब्द) से उत्पन्न ऊपर के लोक तथा उनमें रहने वाले भक्त/भक्तमती (हंस, हंसनी) अमर रहेंगे, और सब ब्रह्माण्ड एक दिन नष्ट हो जाएँगे। कच्छ, मच्छ, कूरंभ, धौल, धरती सब नष्ट हो जाएँगे। स्वर्ग, पाताल सब नष्ट हो जाएँगे। इन्द्र, कुबेर, वरूण, धर्मराय, ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव भी मर जाएँगे। आदि माया (दुर्गा) काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भी मरेंगे।
सब संसार मरेगा। हम नहीं मरेंगे। जो हमारी शरण में हैं, वो नहीं मरेंगे। सतलोक में मौज करेंगे।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1097-1124 (धर्मदास जी ने कहा) :-
धर्मदास बोलत है बानी, कौंन रूप पद कहां निशानी।
तुम जो अकथ कहांनी भाषी, तुमरै आगै तुमही साषी।।1097।।
योह अचरज है लीला स्वामी, मैं नहीं जानत हूं निजधामी।
कौन रूप पदका प्रवानं, दया करौं मुझ दीजै दानं।।1098।।
हम तो तीरथ ब्रत करांही, अगम धामकी कछु सुध नांही।
गर्भ जोनि में रहैं भुलाई, पद प्रतीति नहीं मोहि आई।।1099।।
हम तुम दोय या एकम एका, सुन जिंदा मोहि कहौ बिबेका।
गुण इन्द्री और प्राण समूलं, इनका कहो कहां अस्थूलं।।1100।।
तुम जो बटकबीज कहिदीन्या, तुमरा ज्ञान हमौं नहीं चीन्या।
हमकौं चीन्ह न परही जिंदा, कैसे मिटै प्राण दुख दुन्दा।।1101।।
त्रिदेवनकी की महिमा अपारं, ये हैं सर्व लोक करतारं।
सुन जिन्दा क्यूं बात बनाव, झूठी कहानी मोहे सुनावैं।।1102।।
मैं ना मानुं, बात तुम्हारी। मैं सेवत हूँ, विष्णु नाथ मुरारी।
शंकर-गौरी गणेश पुजाऊँ, इनकी सेवा सदा चित लाऊँ।।1103।।
तहां वहां लीन भये निरबांनी, मगन रूप साहिब सैलानी।
तहां वहां रोवत है धर्मनीनागर, कहां गये तुम सुख के सागर।।1104।।
अधिक बियोग हुआ हम सेती, जैसैं निर्धन की लुटी गई खेती।
कलप करै और मन में रोवै, दशौं दिशा कौं वह मग जोवै।।1105।।
हम जानैं तुम देह स्वरूपा, हमरी बुद्धि अंध गृह कूपा।
हमतो मानुषरूप तुम जान्या, सुन सतगुरू कहां कीन पियाना।।1106।।
बेग मिलौ करि हूं अपघाता, मैं नाहीं जीवूं सुनौं विधाता।
अगम ज्ञान कुछि मोहि सुनाया, मैं जीवूं नहीं अविगत राया।।1107।।
तुम सतगुरू अबिगत अधिकारी, मैं नहीं जानी लीला थारी।
तुम अविगत अविनाशी सांई, फिरि मोकूं कहां मिलौ गोसांई।।1108।।
दोहा - कमर कसी धर्मदास कूं, पूरब पंथ पयान।
गरीब दास रोवत चले, बांदौगढ अस्थान।।1109।।
जा पौंहचैं काशी अस्थाना, मौमन के घरि बुनि है ताना।
षटमास बीतै जदि भाई, तहां धर्मदास यग उपराई।।1110।।
बांदौगढ में यग आरंभा, तहां षटदर्शन अधि अचंभा।
यज्ञमांहि जगदीश न आये, धर्मदास ढूंढत कलपाये।।1111।।
अनंत भेष टुकड़े के आहारी, भेटै नहीं जिंद व्यौपारी।
तहां धर्मदास कलप जब कीनं, पलक बीच बैठै प्रबीनं।।1112।।
औही जिंदे का बदन शरीरं, बैठे कदंब वृक्ष के तीरं।
चरण लिये चिंतामणि पाई, अधिक हेत सें कंठ लगाई।।1113।।
◆ कबीर वचन :-
अजब कुलाहल बोलत बानी, तुम धर्मदास करूं प्रवानी।
तुम आए बांदौगढ स्थाना, तुम कारण हम कीन पयाना।।1114।।
अललपंख ज्यूं मारग मोरा, तामधि सुरति निरति का डोरा।
ऐसा अगम ज्ञान गोहराऊँ, धर्मदास पद पदहिं समाऊं।।1115।।
गुप्त कलप तुम राखौं मोरी, देऊँ मक्रतार की डोरी।
पद प्रवानि करूं धर्मदासा, गुप्त नाम हृदय प्रकाशा।।1116।।
हम काशी में रहैं हमेशं, मोमिन घर ताना प्रवेशं।
भक्ति भाव लोकन कौ देही, जो कोई हमारी सिष बुद्धि लेही।।1117।।
ऐसी कलप करौ गुरूराया, जैसे अंधरें लोचन पाया।
ज्यूं भूखैकौ भोजन भासै, क्षुध्या मिटि है कलप तिरासै।।1118।।
जैसै जल पीवत तिस जाई, प्राण सुखी होय तृप्ती पाई।
जैसे निर्धनकूं धन पावैं, ऐसैं सतगुरू कलप मिटावैं।।1119।।
कैसैं पिण्ड प्राण निसतरहीं, यह गुण ख्याल परख नहीं परहीं।
तुम जो कहौ हम पद प्रवानी, हम यह कैसैं जानैं सहनानी।।1120।।
दोहा - धर्म कहैं सुन जिंद तुम, हम पाये दीदार।
गरीबदास नहीं कसर कुछ, उधरे मोक्षद्वार।।1121।।
◆ कबीर वचन :-
अजर करूं अनभै प्रकाशा, खोलि कपाट दिये धर्मदासा।
पद बिहंग निज मूल लखाया, सर्व लोक एकै दरशाया।।1122।।
खुलै कपाट घाटघट माहीं, शंखकिरण ज्योति झिलकांहीं।
सकल सृष्टि में देख्या जिंदा, जामन मरण कटे सब फंदा।।1123।।
दोहा - जिंद कहैं धर्मदास सैं, अभय दान तुझ दीन।
गरीबदास नहीं जूंनि जग, हुय अभय पद लीन।।1124।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। स���त रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart-1
"प्रथम अध्याय"
"दो शब्द "
विश्व के सब भाईयों तथा बहनों को मेरा शत-शत प्रणाम । हिन्दू साहेबानों से मेरा निवेदन है कि इस पुस्तक को कृपया निष्पक्ष बुद्धि से दिल थामकर पूरा पढ़ना। हिन्दू समाज के लिए यह पुस्तक संजीवनी है तथा वरदान सिद्ध होगी।
{निवेदन :- भक्तात्मा हिन्दुओं से मेरा करबद्ध निवेदन है कि इस पुस्तक के अमृतज्ञान के सत्य तथा असत्य को जानने के लिए आप गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित व मुद्रित तथा श्री जयदयाल गोयन्दका जी द्वारा अनुवादित " पदच्छेद अन्वय साधारण भाषाटीकासहित श्रीमद्भगवत गीता" साथ रखें। अजब आनंद आएगा क्योंकि इसमें अनुवादक ने शब्दों के अर्थ आमने-सामने भिन्न-भिन्न किए हैं। अन्य अनुवादकों ने ऊपर संस्कृत में मूल पाठ रखा है, नीचे केवल अनुवाद सीधा किया है। शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न नहीं किए हैं। यदि मुझ पर भरोसा करो तो उस गीता की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैंने उसी पुस्तक की फोटोकॉपी लगाई हैं।]
पुस्तक "हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण का आधार सूक्ष्मवेद यानि तत्त्वज्ञान है। समझने के लिए प्रमाण वेदों, गीता, महाभारत तथा पुराणों आदि शास्त्रों से लिए हैं।
सूक्ष्मवेद में कहा है कि :-
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेशा । तीनूं देव दयालु हमेशा ।।
तीन लोक का राज है। ब्रह्मा, विष्णु महेश ।।
तीनों देवता कमल दल बसें, ब्रह्मा, विष्णु, महेश । प्रथम इनकी बंदना, फिर सुन सतगुरू उपदेश ।।
अर्थात् सूक्ष्मवेद में अध्यात्म का सम्पूर्ण ज्ञान है। उसमें कहा है कि तीनों देवता श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी बहुत दयालु हृदय के हैं। इनकी केवल तीन लोक (स्वर्ग लोक, पाताल लोक, पृथ्वी लोक) में सत्ता है। ये तीन लोक के मालिक हैं, परंतु लोक तो बहुत सारे हैं जिनका मालिक परम अक्षर ब्रह्म है जिसकी सत्ता तीनों लोकों समेत सब पर है। मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रथम इन तीनों देवताओं की बंदना अर्थात् मान-सम्मान यानि साधना करनी होती है। फिर सतगुरू का उपदेश सुनो जो परम अक्षर ब्रह्म की पूजा साधना बताएगा। उस संत से तत्त्वज्ञान सुनो। तत्त्वदर्शी संत पूर्ण मोक्ष प्राप्ति की साधना / पूजा बताता है। पूर्ण मोक्ष के लिए इन तीनों देवताओं की शास्त्रोक्त साधना करनी होती है, परंतु पूजा गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10, अध्याय 15 श्लोक 17 अध्याय 18 श्लोक 62 में बताए "परम अक्षर ब्रह्म" की करनी होती है। परम अक्षर ब्रह्म को गीता अध्याय 8 श्लोक 9 तथा अध्याय 15 श्लोक 17 में गीता ज्ञान देने वाले ने अपने से अन्य बताया है तथा कहा है कि (उत्तम पुरुषः तू अन्य) पुरूषोत्तम तो मेरे से अन्य है, वही परमात्मा है। सबका धारण-पोषण करने वाला अविनाशी परमेश्वर है। (पूजा तथा साधना का अंतर जानने के लिए कृपया आप इसी पुस्तक में पृष्ठ 179 पर पढ़ें ।]
मेरा उद्देश्य :- विश्व के मानव को सत्य ज्ञान सुनाकर सनातनी बनाना है क्योंकि पिछला इतिहास बताता है कि पहले केवल एक सनातन पंथ (धर्म) ही था तत्त्वज्ञान के अभाव से हम धर्मों में बंटते चले गए जो विश्व में अशांति का कारण बना है। एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए हैं।
यह बात विश्व का मानव निर्विरोध मानता है कि सबका मालिक (परमात्मा) एक है। परंतु वह कौन है? कैसा है यानि साकार है या निराकार हैं? मानव रूप में या अन्य रूप में? यह प्रश्न वाचक चिन्ह (?) अभी तक लगा है। इस पुस्तक में वह प्रश्नवाचक चिन्ह (?) पूर्ण रूप से हटा दिया है। सत्य को ग्रहण करना, असत्य से किनारा करना, एक नेक मानव का परम कर्तव्य बनता है। इस पुस्तक में एक शब्द भी चारों वेदों व वेदों के सार रूप श्रीमद्भगवत गीता, पुराणों तथा सूक्ष्मवेद से बाहर नहीं है सूक्ष्मवेद में बताया है कि विश्व के सभी जीवात्मा परमशांति वाले सनातन परम धाम में उस परमात्मा के पास रहते थे जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे भारत! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उसकी कृपा से ही तू परमशांति को तथा (शाश्वतम स्थानम् ) सनातन परम धाम यानि सत्यलोक को प्राप्त होगा। उस परमेश्वर का प्रमाण :- गीता अध्याय 8 श्लोक 1 में अर्जुन ने प्रश्न किया कि आपने गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में जो तत् ब्रह्म कहा है वह तत् ब्रह्म क्या है? जिसका उत्तर देते हुए गीता अध्याय 8 श्लोक 3. 8, 9, 10, गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा 17 आदि में कहा है। जिस लोक में वह तत् ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म (सत्यपुरूष) रहता है, उसमें परमशांति है यानि महासुख है। उस सनातन परम धाम में गए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते।
जीवात्मा जब से परम अक्षर ब्रह्म यानि परमेश्वर से बिछड़ी है यानि उस परमशांति वाले सनातन परम धाम से काल ब्रह्म के दुःखालय लोक में आई है, उसी समय से इसको उस सुख का अभाव खल रहा है जो परमात्मा के पास था। उस सुख की खोज में इधर-उधर भटक रही है। इस यात्रा में जैसा भी मार्गदर्शक मिला, उस पर विश्वास कर लिया क्योंकि भक्त का हृदय नम्र व श्रद्धायुक्त होता है। इस कारण से धर्म बनते चले गए। अधूरे ज्ञान से मानव समाज धर्मों में बंटता चला गया। अनेकों पंथ (धर्म) बन गए। सर्वप्रथम एक आदि सनातन पंथ (धर्म) था। मानव समाज शास्त्रोक्त साधना करता था।
वह सत्ययुग का समय था। पाँचों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा सूक्ष्मवेद) शास्त्र थे । चार वेद ब्रह्मा जी को मिले, उनमें सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं था। परम अक्षर ब्रह्म सत्ययुग में लीला करने के लिए शिशु रूप धारण करके आए। बड़े होकर सूक्ष्मवेद का प्रचार किया। तब तक उस समय के ऋषियों ने चारों वेदों वाला ज्ञान पढ़ लिया था। सूक्ष्मवेद वाला कुछ ज्ञान चारों वेदों में न होने के कारण उसको गलत माना। ���सलिए सूक्ष्मवेद को धीरे-धीरे छोड़ दिया, परंतु लगभग एक लाख वर्ष तक सत्ययुग में शास्त्रोक्त भक्ति की गई। इसके पश्चात् शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हो गया। गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा है कि जो व्यक्ति शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, उसको न सिद्धि प्राप्त होती है, न उसकी गति होती है, न उसे सुख मिलता है। (इन तीन वस्तुओं के लिए ही भक्ति की जाती है।)
[संत गरीबदास जी ने सूक्ष्मवेद में कहा है- आदि सनातन पंथ हमारा। जानत नहीं इसे संसारा ।। पदर्शन सब खट-पट होई हमरा पंथ ना पावे कोई।।
इन पथों से वह पंथ अलहदा पंथों बीच सब ज्ञान है वहदा ।। अर्थात् हमारा आदि सनातन पंथ है जिसको संसार के व्यक्ति नहीं जानते वह आदि सनातन पंथ सब पंथों से भिन्न है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा है कि (पुरा) सृष्टि की आदि में जिस (ब्रह्मणः ) सच्चिदानंद घन ब्रह्म की साधना तीन नामों ॐ तत् सतृ वाली की जाती थी जो तीन विधि से स्मरण किया जाता है। सब ब्राह्मण यानि साधक उसी वेद (जिसमें यह तीन नाम का मंत्र लिखा है) के ��धार से यज्ञ-साधना करते थे।
विशेष: ये तीन नाम मंत्र चार वेदों में नहीं हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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627वें कबीर साहेब प्रकट महोत्सव पर सतलोक आश्रम, धनाना धाम (हरियाणा) सीधा...
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📚शिशु रूप कबीर परमेश्वर का नामकरण करने आए काजियों ने जब कुरान शरीफ को खोला तो कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर हो गए। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह हू, मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।
पूर्ण परमेश्वर का नाम कबीर (कविर्देव) है जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 16, 17, 18 व् आदि वेद मंत्रों में भी स्पष्ट देखा जा सकता है।
📚स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी बताते है कि मेरा शरीर ना तो पांच तत्व का बना है और ना ही मेरा जन्म हुआ है, मैं तो जीवों के उद्धार के लिए सशरीर प्रकट हुआ हूँ।
पाँच तत्व की देह ना मेरी, ना कोई माता जाया।
जीव उदारन तुम को तारन, सीधा जग में आया।। – कबीर सागर - अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 34
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सन् 1398 में ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को कबीर जी सशरीर प्रकट हुए थे उसी उपलक्ष्य में कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाता है!
🥁5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के रामानंद जी को कबीर परमेश्वर ने अपनी शरण में लिया। वास्तविकता से परिचित कराया। रामानंद जी के शब्द:-
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
लाल।
🥁स्वामी रामानन्द जी ने पाँच वर्षीय बालक कबीर जी से प्रश्न किया। हे बालक! आपका क्या नाम है,कौन जाति है,भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? बालक कबीर जी ने भी आधीनता से उत्तर दिया :- जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठूं पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।।
🥁कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो सबके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, "ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी जल कमल पे डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी।।"
🥁वह परमात्मा सतलोक से चलकर आते हैं। जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है।
🥁कबीर परमेश्वर जी संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्�� पर बालक रूप में प्रकट हुए। निःसंतान नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।। – कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध
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*🎺बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🎺*
19/06/24
🌷"कबीर परमेश्वर प्रकट दिवस पर विषेश सेवाएं"🌷
*🦚Twitter Trending सेवा सूचना🦚*
🌿 *मालिक की दया से कबीर साहेब जी के प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में Twitter पर परमात्मा के कलयुग में प्रकट होने की लीला से संबंधित सेवा करेंगे जी।*
*टैग और keyword⤵️*
*#परमात्मा_का_पृथ्वी_पर_आगमन*
*3Days Left Kabir Prakat Diwas*
*📷''' सेवा से सम्बंधित photo लिंक⤵️*
https://www.satsaheb.org/manifestation-in-kalyug-hindi-0624/
https://www.satsaheb.org/manifestation-in-kalyug-english/
*🔮सेवा Points🔮* ⬇️
⚡️कबीर परमेश्वर सशरीर प्रकट हुए
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में परमेश्वर कबीर जी तेजोमय रूप में आकर काशी के लहरतारा तालाब में बालक रूप में कमल के फूल पर प्रकट हुए, इसके प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानन्द जी थे। वहाँ से नीरू नीमा ने परमेश्वर कबीर जी को अपने घर ले आये।
⚡️काशी शहर की पवित्र भूमि पर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पूर्ण परमेश्वर कबीर/कविर्देव जी स्वयं अपने सतलोक से आकर लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए।
गरीब, काशी पुरी कस्त किया, उतरे अधर आधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
⚡️कबीर परमेश्वर का कलयुग में प्रकट होना
ज्येष्ठ मांस की पूर्णमासी सन् 1398(विक्रम संवत 1455) को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब काशी में शिशु रूप में प्रकट हुए।
साहेब होकर उतरे, बेटा काहू का नाहीं।
जो बेटा होकर उतरे, वो साहेब भी नाहीं।।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब सशरीर आये और अनेकों लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक चले गए। क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
⚡️सन् 1398 में परमेश्वर कबीर जी शिशु रूप में प्रकट हुए। नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले वो परमेश्वर को घर ले आये | शिशु रूपी कबीर जी का नामांकन करने आये काजी ने कुरान खोली तो पूरी कुरान में कबीर-कबीर शब्द लिखा मिला। तब शिशु रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मेरा नाम कबीर ही रहेगा। इस घटना को देखकर काजी डर कर चले गए और बच्चे का नाम कबीर रखा गया।
गरीब, काजी गये कुरान ले, धरि लरके का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुरया, धन कबीर बलि जांव।।
सकल कुरान कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।
⚡️शिशु कबीर परमेश्वर द्वारा कुंवारी गाय का दूध पीने का वर्णन
परमेश्वर जब पृथ्वी पर शिशु रूप में प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध द्वारा होती है।
गरीब शिव उतरे शिवपुरी से, अविगत बदन विनोद।
महके कमल खुशी भये, लिया ईश कूं गोद।
सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैन।
शिव कूं कर मस्तक धरया, ला मोमन एक धैन।
गरीब अन ब्यावर कूं दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्मगति, तहाँ शिव भये दयाल।।
⚡️स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी बताते है कि मेरा शरीर ना तो पांच तत्व का बना है और ना ही मेरा जन्म हुआ है, मैं तो जीवों के उद्धार के लिए सशरीर प्रकट हुआ हूँ।
पाँच तत्व की देह ना मेरी, ना कोई माता जाया।
जीव उदारन तुम को तारन, सीधा जग में आया।। – कबीर सागर - अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 34
सन् 1398 में ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को कबीर जी सशरीर प्रकट हुए थे उसी उपलक्ष्य में कबीर परमेश्वर का प्रकट दिवस मनाया जाएगा।
⚡️5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के रामानंद जी को कबीर परमेश्वर ने अपनी शरण में लिया। वास्तविकता से परिचित कराया। रामानंद जी के शब्द:-
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
⚡️गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै परब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।
संत गरीबदास जी कहते हैं कि शिशु रूप में कबीर परमेश्वर जी को देखकर काशी के लोग कह रहे थे कि यह तो कोई देवता का अवतार है। देवता कह रहे थे कि यह स्वयं ईश्वर है और ईश्वर कहते हैं कि स्वयं पूर्ण ब्रह्म पृथ्वी पर आए हैं।
⚡️काशी में एक लहरतारा तालाब था। गंगा नदी का जल लहरों के द्वारा नीची पटरी के ऊपर से उछल कर एक सरोवर में आता था। इसलिए उस सरोवर का नाम लहरतारा पड़ा। उस तालाब में बड़े-2 कमल के फूल उगे हुए थे। नीरू-नीमा(नि:सन्तान दम्पत्ति थे) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के लिए गए हुए थे। वहां नीरू - नीमा को कमल कंद फूल पर शिशु रूप में कबीर परमात्मा मिले थे। उसी दिन को कबीर प्रकट दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
⚡️जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं।
⚡️कबीर साहेब जी का नामकरण-
काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे अन्य लेख नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो।
⚡️स्वामी रामानन्द जी ने पाँच वर्षीय बालक कबीर जी से प्रश्न किया। हे बालक! आपका क्या नाम है,कौन जाति है,भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? बालक कबीर जी ने भी आधीनता से उत्तर दिया :- जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठूं पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।।
⚡️कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो सबके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, "ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी जल कमल पे डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी।।"
⚡️वह परमात्मा सतलोक से चलकर आते हैं। जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है।
⚡️कबीर परमेश्वर जी संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए। निःसंतान नीरू-नीमा जुलाहे दम्पति को मिले।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।। – कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध"
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