#मुस्कान के मोती
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एक बार मुस्करा दो (Ek bar muskra do ) पिता जी
मैंने देखा नहीं कभी आपको मुस्कराते हुए, मेरे लिए पिता जी एक बार मुस्करा दो (Ek bar muskra do ) , इस बेचैन दिल में छुपा है कितना तुफान, एक बार मुझे भी दिखला दो, * * * * मुस्कराते हुए प्यारी लगती है, आपके नयनों की ज्योति पिता जी, हम सबके चेहरे खिल जाएंगे , एक बार आंगन में बिखरा दो, अपनी मुस्कान के मोती पिता जी, हर दिन गुजर जाता है ये सोचकर, एक ना एक दिन जरूर आएगी, इस प्यारे…
#एक बार मुस्करा दो (Ek bar muskra do )#एक बेटे का अभिमान हो तुम#बेचैन दिल#बेटे का अभिमान#मुस्कान के मोती
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देखो जन्मे प्रभु राम लिरिक्स | Dekho Janme Prabhu Ram Lyrics
देखो जन्मे प्रभु राम लिरिक्स
बाजे अयोध्या में बधाई देखो जी देखो जन्मे प्रभु राम भाग जागे रे अवध के रे छाई देखो मुखड़े पे सबके मुस्कान खुशियों की बेला देखो केस आज आई रे नाच रही झूमे देखो कौशल्या माई रे करो नज़र उतराई गाओ ऋ गाओ सखियों मंगल गान बांटो घर घर में मिठाई सब नाचो छेड़ो भाई आज नई तान भाग जागे रे अवध के रे ब्रह्मा विष्णु शिव देखो बलिहारी जाते हैं देव ऋषि सारे फूल बरसाते हैं नारद ने वीणा है बजाई देखो जी होगा सबका कल्याण दशरथ फूले ना समाये रहे मोती रे लुटाये अब रोशन होगा नाम भाग जागे रे अवध के रे राम जी के रुप में नारायण जी ही आये हैं धरम की रक्षा का प्राण लेके आये हैं असुरों का नाश करने आये हैं बचाने साधु संतो का मान अपनी ललना पे बलिहारी जाए करते सब प्रभु पे ही अभिमान भाग जागे रे अवध के रे Read the full article
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खामोशियों का समंदर
जिंदगी के पैमाने में दर्द यूं छलक बैठा मेरे खामोशियों के समंदर से मोती के दानों जैसा, कहते हैं हर चेहरे के मुस्कान के पीछे गमों का समंदर है, एक पत्थर भी गिर जाए तो लहरें तूफान बनकर किनारा छोड़ देती हैं ।।
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दूल्हन बरखा रानी आई ! पहिन चुनरिया हरित रंग की , इन्द्रधनुष से माँग सजाई ! साज सिंगार हरित आभूषित , बिजुरी की लै मृदु मुसकाई ! झरझर छर छर बाजत कँगना , तीव्र मंद जब लै अँगड़ाई ! जलधि जनक भेज्यो निज कन्या , नभ डोली में बैठी आई ! कारे बादल बनि कँहार सम , घन गर्जन की लै शहनाई ! अम्बर मोतिन थाल लुटावत , जीव जन्तु सबको हरषाई ! टर टर दादुर मंगल गाये , केकी मनहर नाच दिखाई ! सोंधि सुगंध लिए अगरू की , स्वागत करत प्रकृतिः माई ! नाचत गावत तरुवर पादप , सनन सनन झूमत पुरवाई ! "श्वेत" भूमि को करि श्यामल रँग , वर्ष पिया सँग सेज सजाई ! - Shwetabh Pathak ( श्वेताभ पाठक ) *********************************************************** भावार्थ :: दूल्हन बनी हुई वर्षा रानी का आगमन हुआ है ! वर्षा रानी ने हरे रंग की चुनरी पहन रखी है और इन्द्रधनुष से उसकी माँग सजी हुई है ! हरे हरे आभूषण से सज्जित हुई दूल्हन वर्षा रानी कभी कभी बिजली चमकने के समान मीठी सी मुस्कान भी दे देती है ! वह जब हिलती डुलती या कभी तेज और कभी धीरे अँगड़ाई लेती है तो उसके आभूषण जैसे कंगन कभी झरझर और कभी छर छर की मधुर ध्वनि करते हैं ! समुद्र रुपी पिता ने अपनी कन्या को आकाश की डोली में बिठा कर भेज दिया है ! कँहार रुपी काले बादल दूल्हन की डोली को उठाकर लाये हैं और अपने मेघ गर्जना कर शहनाई बजा रहे हैं ! ऐसा लग रहा है मानो उनकी मेघ गर्जना शहनाई हो ! अम्बर प्रसन्न होकर भर भर मोती की थाल लुटा रहा है अर्थात पानी बूँद मोती के समान लग रही हैं ! मेंढक अपनी अपनी टर्र टर्र आवाज में मंगल गा रहे हैं ( मंगल : वह गाना जब गाँव की स्त्रियाँ किसी शुभ अवसर पर गाती हैं ) और मोर मन को हरने वाला नाच कर रहे हैं ! जैसे पति की माँ या दूल्हन की सास बहु का स्वागत करती है ठीक उसी प्रकार प्रकृति माँ अपने वर्षा रानी बहु की मिटटी की सोंधी सुगंध रुपी अगरबत्ती से स्वागत करने आई है ! सभी पेड़ पौधे हर्ष से नाच गा रहे हैं जिसका साथ सनन सनन कर पुरवाई हवा भी दे रही है ! अब श्वेत भूमि ( जब गर्मियों से घास वगैरह सूख जाती है तो पृथ्वी बिना पानी के मिटटी के सफ़ेद सी लगती है ) को श्यामल रंग करके ( जब सब कुछ हराभरा हो जाता है ) अब बरखा रानी अपने प्रियतम या पति वर्ष / साल के साथ अपने सेज पर आकर अपने पति के अंक में समा गयी है ! यहाँ श्वेत भूमि को श्यामल रंग करना - अर्थात उजाले को ख़तम करके अँधेरा करना जैसा की सुहागरात के समय ! - Shwetabh Pathak ( श्वेताभ पाठक ) https://www.instagram.com/p/Cf0KiojPcZd/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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#सतलोक_का_सुख
परमेश्वर #कबीर जी अपने शाश्वत धाम सतलोक की महिमा बताते है कि सतलोक मोक्ष धाम/अविनाशी स्थान है। जहाँ #मोक्ष प्राप्त आत्माएँ आनंद मौज से रहती है।
#सतलोक के तीन भाग है। सबसे उपरी भाग में परमात्मा का #सिंहासन है। जहाँ कबीर परमात्मा (कविर्देव, कबीर अल्लाह) विराजमान है। उनके एक रोम कूप में करोड़ों सूर्यो और चन्द्रमाओं जितनी रोशनी है। #परमात्मा के चेहरे पर हमेशा #मुस्कान रहती है जिसे देखकर आत्माएँ गदगद रहती है। हमेशा परमात्मा के दर्शन होते है।
बीच वाले भाग में सुन्दर नगर-गांव बस्ती है जहाँ नर-नारी करके #सृष्टि है। सभी हंसात्माओं का 16 सूर्य रोशनी वाला अमर #शरीर है। सभी के सिर पर मुकुट सुशोभित है। सभी आपस में विशेष #प्रेम रहते है। परमात्मा के गुण गाते है और मौज से रहते हैं।
अंतिम बाहरी भाग में #बाग-बगीचे वन नदी झरने पहाड़ यानि घूमने का विस्तृत स्थान है। घूमने के लिए सभी के पास सुन्दर #विमान है। सतलोक में हमेशा अनहद धुन बजती रहती है अर्थात कानों को अच्छी और आत्मा को आनन्दित करने वाली मीठी #धुन हमेशा बजती रहती है। चारों तरफ मनभावन सुगंध उठी रहती है। वहाँ दिन-रात नहीं है, एकरस वातानुकूलित #मौसम रहता है।
सतलोक की #धरती स्वप्रकाशित है, असंख्य सूर्यों और चंद्रमाओं जितनी रोशनी है। कदम-कदम पर #हीरे मोती पन्ने लाल पड़े रहते है। #धन-संपत्ति माया चरणों में पड़ी रहती है। पृथ्वी जितने विशाल नूरी महल है। जिसमें सर्व सुविधाएँ है। #घर के आगे बाग-बगीचे फुलवारी झूले सरोवर है। आसमान ��े #फुंवारे गिरती है। अमृत #भोजन व जल है। #दूध घी शहद की नदियाँ बहती हैं। अमर #वृक्ष है। फल फूल मेवे #सदाबहार रहते है।
ऐसा अमर सुख हमारे सतलोक में है जहां जाने की यात्रा(भक्ति) हम शुरू कर चुके है।
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माँ का सिपाही
माँ का सिपाही
बैठ कहीं किसी सरहद पर, ख़य्याबो के फूल संजोता हूँ दूर कहा में तुजसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
उगता सूरज, तेरे ललाट की बिंदिया सा बन जाता हे क्षितिज पे फेली लाली, माँ तेरी चुनरी याद दिलाता हे वहीँ संग एक चाँद भी हे, जिसमे में खुद को पाता हूँ दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
उठती - गिरती सागर लहरे, मुस्कान तेरी दे जाते हे शर्द पवन के झोंके, तेरी थपकी याद दिलाते हे वही शिप में मोती सा, में गोद मे तेरी पाता हूँ दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
लहलहाती फसले, तेरा आँचल महसूस कराती हे सर-सर बहती हवा, तेरी पायल का गीत सुनाती हे वही बैठ बन चिड़िया, तेरे हाथो से दाना खाता हूँ दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
बहती नदिया देख लगे, जैसे तू दौड़ के आती हे समतल पर मुझको देख पड़ा, तू ठेर वही पर जाती हे बनकर मीन तेरे अंदर, में अपनी प्यास बुझाता हूँ दूर कहा में तुझसे माँ, खुद को ये याद दिलाता हूँ
Awaz-e-trishna
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जीवन की खट्टी-मीठी यादें (jeevan ki khatti-meethi yaden )
जीवन की खट्टी-मीठी यादें (jeevan ki khatti-meethi yaden ) : सच्ची ख़ुशी जीवन की खट्टी -मीठी यादें ( jeevan ki khatti-meethi yaden ) हैं मेरा उपहार , मैंने इन यादों को अपने दिल में बसाया है , देखता हूँ जब पीछे मुड़कर , मैंने जीवन में क्या खोया क्या पाया है, * * * * * * * जो भी किया जैसे भी किया, सब परिवार के लिए, सजाकर सबके चेहरे पर, रखीं हैं मुस्कान अब तक, सब उनके…
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#खुशियों के मोती#जीवन की खट्टी-मीठी यादें (jeevan ki khatti-meethi yaden )#परिवार की मुस्कान#मेहनत के रंग
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चाय वाले की बेटी एयरफोर्स पायलट बनी, कहा जिंदगी में हार न मानना पापा से सीखा https://ift.tt/315non6
मध्यप्रदेश के नीमच में चाय की गुमटी लगाने वाले सुरेश गंगवाल की 23 वर्षीय बेटी आंचल हैदराबाद में एयरफोर्स ट्रेनिंग एकेडमी में एयर चीफ मार्शल आर के एस भदौरिया के सामने जब मार्च पास्ट कर रही थीं, तो उनकी आंखें छलक आईं। 20 जूनको 123 कैडेट्स के साथ आंचल गंगवाल की एयरफोर्स में कमिश्निंग हो गई। पिता सुरेश गर्व भरी मुस्कान लिए कहते हैं- ‘फादर्स डे पर पिता के लिए इससे अच्छा और क्या तोहफा हो सकता है।
पिता से मिली सीख
आंचल के पिता कहते हैं कि मेरी जिंदगी में खुशी के कम अवसर आए हैं, लेकिन कभी न हार मानने वाली बेटी ने यह साबित कर दिया कि मेरे हर संघर्ष के पसीने की बूंदें किसी मोती से कम नहीं।’ वहीं, आंचल ने कहा- ‘मुसीबतों से नहीं घबराने का सबक उन्होंने अपने पिता से सीखा है। आर्थिक परेशानियां जीवन में आती हैं, लेकिन मुश्किलों का मुकाबला करने का हौसला होना जरूरी है।’
हर हाल में वायुसेना में जाना है भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट के रूप में चयनित आंचल का कहना है कि एयरफोर्स में फ्लाइंग ऑफिसर बनने के लिए मैंने पुलिस सब इंस्पेक्टर और लेबर इंस्पेक्टर की नौकरी भी छोड़ दी। सिर्फ एक लक्ष्य था- हर हाल में वायुसेना में जाना है। आखिरकार छठवें प्रयास में मुझे सफलता मिल ही गई।
बच्चे हमेशा अनुशासन में रहे
आंचल के पिता कहते हैं- ‘मेरे तीनों बच्चे शुरू से अनुशासन में रहे। मैं पत्नी के साथ बस स्टैंड पर चाय-नाश्ते का ठेला ��गाता हूं। जब मैं काम करता तो तीनों बच्चे हमें देखते रहते थे। कभी कुछ फरमाइश नहीं की। जो मिल जाता, उसमें संतुष्ट रहते। कभी दूसरों की देखा-देखी नहीं की। बेटी शुरू से ही पढ़ाई में टॉपर रही है। बोर्ड परीक्षा में 92% से अधिक अंक प्राप्त किए।
बेटी शुरू से ही पढ़ाई में टॉपर रही है
21 जून को बेटी आंचल ने हैदराबाद में वायुसेना के सेंटर पर फ्लाइंग ऑफिसर के पद पर ज्वाइनिंग कर लिया, यही मेरी अब तक की पूंजी और बचत है। 2013 में उत्तराखंड में आई त्रासदी व वायुसेना ने वहां जिस तरह का काम किया, यह देख बेटी आंचल ने अपना मन बदला और वायुसेना में जाने की तैयारी की। आज बेटी इस मुकाम पर पहुंच गई। यह मेरे लिए गौरव की बात है।’
मातृभूमि की सेवा के लिए हमेशा तैयार हूं आंचल मां बबीता और पिता सुरेश गंगवाल के संघर्ष को अपनी कामयाबी का श्रेय देते हुए कहती हैं- ‘जब मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं डिफेन्स सर्विस में जाना चाहती हूं, तो वे थोड़े चिंतित थे। लेकिन उन्होंने कभी मुझे रोकने की कोशिश नहीं की। वास्तव में, वे हमेशा मेरे जीवन के आधार स्तंभ रहे हैं। मैं अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए हमेशा तैयार हूं और इसे ऐसा करने के अवसर के रूप में देखती हूं।’
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Chai Wale's daughter became Airforce Pilot. she gives success credit to her father
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ये ग़ज़ल उन दो चमत्कारी किरदारों के नाम जो अपने जाने के बाद एक बहुत बड़ा ख़ालीपन इस दुनिया में छोड़ गए जिसे भर पाना नामुमकिन है। मरहूम अज़ीम अदाकार ॠषि कपूर और इरफ़ान ख़ान को हम सब अपनी यादों में संजोये रखेंगे। उन्हें रोते हुए नहीं एक ख़ूबसूरत मीठी सी मुस्कान के साथ विदा करते हैं। उनका काम हमेशा उन को इस फ़ानी दुनिया में अमर रखेगा। ईश्वर उन्हें जन्नत नशीन करें। ॐ शांति ॐ । ................................................................................................... ग़ज़ल - श्रद्धान्जलि ..................................................................................................... तिरा इक दिन अचानक से यूँ ही चले जाना रूलाता है बहुत सबको यूँ वस्ते सफ़र जाना //१ ..................................................................................................... कहानी हो गई है ख़त्म पर यारों रूको न तुम मुमकिन हो कोई नई कहानी का लिखा जाना //२ ..................................................................................................... रोएगा नहीं ये दिल तुम दोनों के बिछड़ने पर मुझे आता है ग़म के सैलाबों में संभल जाना // ३ ..................................................................................................... हो अनमोल तुम इतने ज़ाया तुमको करूँ कैसे मुश्किल है यूँ सागर में मोती का मिल जाना //४ ..................................................................................................... अश्क आसानी से अपने निकलने नहीं दूंगा जाना ही है तो जाओ मगर हंसते हुए जाना //५ ..................................................................................................... वस्ते सफ़र - बीच रास्ते / यात्रा का मध्य ..................................................................................................... - तुषार रस्तोगी 'निर्जन' ..................................................................................................... #irrfankhan #rishikapoor #restinpeace #condolences #urdu #nastaliq #facebook #instagram #tusharrastogi #nirjan #tamashaezindagi #Delhi #khatati #urdulover #urdushayari #urduadab #ghazal ..................................................................................................... 😘😍🌹🚩🇮🇳🙏🏻🏵🌸🌷🌼🌻🌺💐❤😎🤗🙂 https://tamasha-e-zindagi.blogspot.com/2020/04/blog-post_30.html?m=1 (at Delhi, India) https://www.instagram.com/p/B_muzCJDVuy/?igshid=76bxj33ci9iz
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कोरोनोवायरस की एबीसी: देखिए 5 वर्षीय आद्या बताती हैं कि कैसे हम कोरोनोवायरस को हरा सकते हैं | लाइफस्टाइल - टाइम्स ऑफ इंडिया वीडियो
कोरोनोवायरस की एबीसी: देखिए 5 वर्षीय आद्या बताती हैं कि कैसे हम कोरोनोवायरस को हरा सकते हैं | लाइफस्टाइल – टाइम्स ऑफ इंडिया वीडियो
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हम निश्चित रूप से इन दिनों चिंता और रोजमर्रा की चुनौतियों से घिरे कठिन समय में जी रहे हैं। लेकिन इन कठिन समय में भी, इस छोटे से टोटके से ज्ञान के मोती निश्चित रूप से आपके चेहरे पर मुस्कान ला देंगे। आइए सुनते हैं कि थोड़ा सा क्या कहना है और इसे पूरी तरह से पालन करने की कसम खाई है! अपने छोटे से एक से पूछें कि वह ‘कोरोनावायरस’ शब्द से क्या समझता है, रिकॉर्ड करें और ��ैशटैग #ABCofCoronavirus…
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दहेज और मोहिनी
दहेज और मोहिनी
घर की एकलौती बेटी मोहिनी, अपने माँ- बाप की सबसे चहिती मोहिनी की आज शादी होने वाली थी। शादी की सारी तैयारी हो चुकी थी। पूरे घर में रौनक छाई हुई थी । सभी लोग बाराती के आने का इंतजार कर रहे थे। इधर मोहिनी कमरे में तैयार बैठी बरातियों के आने का इंतजार कर रही थी। मोहिनी जितनी सुंदर थी उतनी ही गुणवान भी थी। मोहिनी इस शादी से खुश भी थी और अपने माँ बाप को छोड़ कर जाने का गम भी था। तभी गंगाधर जी कमरे में धीरे से आते है और अपनी बेटी को देख कर मुसकुराते है।
मोहिनी भी अपने पिता को देखती है और दौड़ कर गंगाधर से लिपट कर ज़ोर से रोने लगती है। गंगाधर के भी आंखो में आँसू आ जाते है। गंगाधर मोहिनी को चुप कराते है और कहते है- "बेटी तो पराई होती ही है। तू रो मत वहाँ जाकर खुश रहना।" इतना ही कह कर गंगाधर कमरे से बाहर चले जाते है और एक कुर्सी पर जाकर बैठ जाते है। गंगाधर एक सरकारी कर्मचारी थे जो अब रिट���यर हो चुके थे। उनकी जागीर यही छोटा सा मकान था। बहुत मेहनत से पैसे जामा किए थे अपनी एकलौती बेटी की शादी के लिए। आज वो दिन आ चुका था। अब उसकी मोहिनी किसी और के घर जा रही थी। गंगाधर जी ये सब सोच ही की तभी उनकी पत्नी कौसल्या वहाँ आई और कहने लगी- "क्या सोच रहे है?"
गंगाधर- "कुछ नहीं। (अपने आँसू पोछ्ते हुए।) पंडित जी आ गए ना?"
कौसल्या- "हाँ आ गए है।"
गंगाधर- "वो बनारस वाली बुआ आयी की नहीं।
कौसल्या- "नहीं अभी तक तो नहीं आई है।"
गंगाधर- "तो उन्हें फोन कर लो। कब तक आएंगी। में किसी को लेने भेज दूँगा।"
कौसल्या ठीक है कहकर चली जाती है।
रामू जो की गंगाधर जी के पड़ोस में रहता था। वो अनाथ था। गंगाधर जी ने उसे रहने के लिए किराए पर एक घर दिलवाया था और काम भी दिलवाया था। गंगाधर जी उसे अपने बेटे की तरह मानते थे और शादी का सारा भर रामू ने ही लिया हुआ था। रामू काफी ईमानदार आदमी था। वह अकेला ही रहता था इसलिए वह गंगाधर के परिवार को ही अपना परिवार मानता था और मोहिनी को वह अपनी बहन मानता था।
इधर मोहिनी खुद को आईने में निहारती है। आज वह पहली बार इतनी सजी थी। खुद को आईने के सामने खड़े देखकर आज उसे कुछ अजीब लग रहा था। मानो उसके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आने वाली हो। तभी अचानक जोर जोर से पटाखों की आवाजें आनी शुरू हो गयी। सभी के चेहरे पर खुशी छा गयी कि बराती वाले आ गये। मोहिनी की कुछ सहेलियां मोहिनी के कमरे में आती है और मोहिनी से खुशी के मारे कहती है- "बराती वाले आ गये है।"
मोहिनी समझ नही पाती की वह क्या करे। अजीब इतफाक होता है शादी में लड़कियों का। समझ नही कि वह खुश हो या दुखी हो। मोहिनी अपने खिड़की से बाहर की तरफ झाँकती है और फिर थोड़ा मुसकुराती है। फिर अपने बचपन में किए कुछ अनोखी घटनाओं को याद करती है और कुछ आँसू बहाकर अपनी उन पुरानी यादों को मिटाने की कोशिश करती है।
दूसरी तरफ बाराती वाले बारात लेकर गंगाधर के घर के बाहर पहुँचते है। दूल्हा घोड़ी पर सवार मानो कोई ��ाजकुमार हो। दूल्हे के पिता जिनका नाम दीन दयाल था वह घोड़े के आगे आगे चले आ रहे थे। सब मस्ती में झूम रहे थे। बारात का बड़े धूमधाम से स्वागत हुआ। नरेंद्र जो की दूल्हा बना था वह मंडप पर तैयार बैठा था। इधर कौसल्या जी मोहिनी को लेने उसके कमरे में जाती है। माँ को आता देख मोहिनी कस कर अपनी माँ से लिपट कर रोने लगती है। माँ उसे दिलासा देती है की- "तू रोती क्यों है? तू कोन सा हमसे हमेशा के लिए दूर जा रही है। तू जब चाहे हमारे पास आ सकती है।"
ये कहकर वह मोहिनी को चुप कराती है और नीचे ले आती है। विवाह की सारी विधि आरंभ होती है। गंगाधर जी के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान आती है।
लेकिन दयाल जी के चेहरे पर थोड़ी उदासी छाई रहती है। दयाल जी बार बार गंगाधर जी के तरफ देखते है।विवाह संपत्र होने के बाद दयाल जी गंगाधर जी के पास जाते है और उन्हें अकेले में बुलाते है और कहते है- "आपने हमें दहेज में पूरे पाँच लाख रुपये देने का वादा किया था जिसमें आपने हमें सिर्फ ढाई लाख ही दिया है बाँकी के पैसे जल्दी हमारे घर पर भिजवा दीजिएगा।" गंगाधर (थोड़ा सोचकर)- "उसकी चिंता आप मत कीजिये मैं पैसे दे दूंगा।" इतना कह कर दयाल जी वहाँ से चले जाते है। गंगाधर अब सोच में पर जाते है कि वह कहाँ से पैसे लायेगें। वह किसी से कुछ नहीं कहते है। शादी के बाद विदाई की बारी आती है। मोहिनी रोते हुए अपने ससुराल चली जाती है। इस तरह शादी के पूरे दो दिन बीत गए। लेकिन गंगाधर जी अभी तक पैसो का इंतजाम नहीं कर पाये थे और वह इसी चिंता में डूबे थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। दूसरी तरफ मोहिनी अपने ससुराल में बहुत खुश थी। क्योंकि मोहिनी को बहुत बड़ा ससुराल मिला था। बिलकुल महल के तरह।बाहर बगीचा, बगीचे में बहुत सारे पेड़ पौधे लगे थे। घर में नौकरो की भी कमी नहीं थी। नरेंद्र कपड़ों का व्यापारी था। उसका व्यापार भी काफी अच्छा चलता था। उसकी माँ का नाम शीतल देवी था। नरेंद्र की एक बहन थी जिसका नाम रुक्मणी था। रुक्मणी मोहिनी को बहुत पसंद भी करती थी। नरेंद्र भी शादी से खुश था। दूसरी तरफ गंगाधर जी कमरे में बैठे बैठे सोच रहे थे कि कहाँ से इतना पैसा लाएगें। उनका सारा पैसा तो शादी में खर्च हो चुका था। कई बार उनके मन में आया कि वे अपना घर बेच दे, मगर वो फिर रहते कहाँ?
ये सब सोच कर ही उनका दिल घबरा रहा था की इतने में मोहिनी के ससुराल से दयाल जी का फोन आता है। गंगाधर जी फोन उठाते है। तभी दयाल जी कहते है- "कहिए गंगाधर जी कैसे है? पैसो का इंतजाम हुआ या नहीं या फिर आपकी बेटी को आपके यहाँ भेजूँ।"
गंगाधर- "नहीं नहीं आप ऐसा मत कीजिएगा। मैं कुछ दिनों में ही आपके पैसे लेकर पहुँच रहा हूँ।"
दयाल जी- "कुछ दिनों से आपका क्या मतलब है? मैंने आपक�� दो दिनों की मोहलत तो दी ही। अब क्या?"
गंगाधर- "मैं लेकर आ जाऊंगा। आप चिंता मत कीजिये।"
दयाल जी- "ठीक है। मुझे भी आपसे यही आशा है, लेकिन जल्दी करिए, कहीं देर न हो जाए।"
इतना कहकर दयाल जी फोन काट देते है। गंगाधर जी अब और ज्यादा गहरे सोच में चले जाते है। थोड़ी देर बाद कौसल्या जी वहाँ आती है और कहती है- "क्या हुआ आप यहाँ इस तरह से क्यों बैठे है। बाहर क्यों नहीं जाते। तबीयत तो ठीक है न?"
गंगाधर- "मेरी तबीयत को क्या होगा, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"
कौसल्या जी- "आपको मोहिनी की याद सता रही है न? आखिर एकलौती जो थी। एक काम क्यों नहीं करते आप नरेंद्र को फोन करके दोनों को कुछ दिनों के लिए बुला लेते है और वैसे भी ये तो रसम है न।"
गंगाधर जी कौसल्या की बातें सुनकर क्रोधित हो जाते है और कहते है- "बस करो। तुम थोड़ी देर के लिए मुझे अकेला छोड़ दो।"
कौसल्या जी चुपचाप बाहर चली जाती है। उन्हें समझ नहीं आता की गंगाधर जी को हुआ क्या है। आखिर किस बात पर इतने नाराज है। गंगाधर जी भी क्या करते। उनके उपर तो मानो दुखो का पहाड़ गिर पड़ा हो। अब वह धीरे धीरे पूरी तरह से टुट रहे थे। शादी के पहले उन्हें लगा था कि पैसों का बंदोवस्त हो जाएगा लेकिन उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि शादी में इतना खर्च होगा। उन्होने बड़े खानदान में अपनी बेटी की शादी करने के चक्कर में पहले ही बहुत खर्च किया था। ये सब सोचते सोचते शाम हो जाती है। कौसल्या जी फिर गंगाधर जी के कमरे में आती है। कौसल्या जी गंगाधर जी से खाना खाने के लिए बुलाती है। मगर गंगाधर जी खाने से मना कर देते है और कहते है- "अभी मुझे भूख नहीं है। जब भूख लगेगी तो खा लूँगा।" कौसल्या जी झुंजलाकर पूछ ही लेती है कि- "आखिर आपको हुआ क्या है? क्यों आप ऐसा कर रहे है? कुछ तो बताइये।"
गंगाधर जी थोड़ी देर चुप रहते है। फिर उनके आँखों से मोती की धारा बहनी शुरू हो जाती है और रोते हुए गंगाधर जी सारी बात बताते है। ये सब सुन कर कौसल्या जी की आँखों में भी आँसू आ जाता है। कौसल्या जी रोते हुए कहती है- "ऊपर वाला हमसे पता नहीं किस जन्म का बदला ले रहा है। आखिर क्या बिगाड़ा है हमने किसी का।"
गंगाधर- "पता नहीं विधाता को क्या मंजूर है। किसी से उधार भी लेना मुश्किल है। कौन देगा हमें उधार? अगर पैसों का बन्दोवस्त नहीं हुआ तो क्या होगा। नहीं मुझे ये घर गिरवी रखना पड़ेगा। इससे ढाई लाख रूपये का इंतजाम हो जाएगा। मैं सुबह पैसो का बंदोवस्त कर दूंगा। बाद में मैं धीरे धीरे ये मकान छुड़ा लूँगा।"
कौसल्या जी भी बात मान जाती है।
दूसरे दिन सुबह ही उठ कर ही अपने एक दोस्त के पास अपनी मकान गिरवी रखने चले जाते है। मगर वहाँ से भी उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। क्योंकि गंगाधर के मित्र के पास पैसे न होने के वजह से उन्होने कुछ दिनों का समय मांगा। मगर गंगाधर जी के पास कहा समय था। गंगाधर जी घर आते ही अपने कमरे में जाकर रोने लगते है। कौसल्या जी उन्हें ��िलासा देती है और कहती है- "आप चिंता मत कीजिये मैं समधी जी से बात करूंगी। सब ठीक हो जाएगा।"
तभी गंगाधर जी के दरवाजे पर दस्तक होती है। कौसल्या जी दरवाजा खोलने बाहर की तरफ जाती है। दरवाजा खुलते ही बाहर मोहिनी अपना समान लिए खड़ी रहती है।
कौसल्या जी (सहमी आवाज़ में)- "मोहिनी तू! दामाद जी नहीं आए?"
मोहिनी (मुसकुराते हुए)- "नहीं उनको थोड़ा काम था।"
गंगाधर जी कमरे में बैठे ही ये सब सुन लेते है और बिल्कुल शांत हो जाते है।
मोहिनी- "माँ मैं कुछ दिनों के लिए आई हूँ फिर चली जाऊँगी। माँ तुम इतनी उदास क्यों हो?"
कौसल्या जी (आँसू पोछ्ते हुए)- "अरे मैं कहाँ उदास हूँ। ये तो खुशी के आँसू है।"
मोहिनी- "वैसे पिता जी कहाँ है? मुझे उनसे बहुत सारी बातें करनी है।"
कौसल्या जी- "अपने कमरे में है।"
मोहिनी समान रख कर गंगाधर जी के कमरे में जाती है। कौसल्या जी भी पीछे पीछे जाती है। गंगाधर जी अपने कुर्सी पर बैठे एक टक दीवार की तरफ देखते रहते है। मोहिनी आते ही गंगाधर जी के गले से लिपट जाती है और कहती है- "पापा मुझे आपकी बहुत याद आती थी।"
मगर गंगाधर जी कुछ नहीं कहते। ये देख कर कौसल्या जी घबरा जाती है। फिर मोहिनी अपने पिता की तरफ देख कर हिलाती है तभी गंगाधर जी की आँखें बंद हो जाती है और कौसल्या जी के मुहँ से एक चीख निकल जाती है। मोहिनी भी देख कर पहले डर जाती है फिर पापा पापा कहते हुए गंगाधर जी से लिपट कर ज़ोर से रोने लगती है। गंगाधर जी अब इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे। कौसल्या जी भी अपनी चूड़ी पटक कर रोने लगती है। हल्ला सुनकर मोहल्ले वाले मकान के बाहर जमा हो जाते है। कुछ औरतें घर के अंदर आती है। रामू भी ये सब देख कर भागा हुआ घर के अंदर आता है।
गंगाधर जी को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है। मोहिनी के ससुराल वाले भी आते है। मोहिनी इन सारी बातों से बिल्कुल अंजान रहती है। सारी विधि खत्म होने के बाद कौसल्या जी मोहिनी को सारी बात बताती है। यह सब सुनकर मोहिनी ससुराल जाने से साफ इंकार कर देती है और ससुराल से सारे रिश्ते खत्म कर देती है और खुद अपने पैरों पर खड़ा होने का फैसला करती है।
नरेंद्र इन सब बातों से अंजान था। उसे जब ये पता चलता है तो वो भी काफी दुखी होता है। मगर अब तक बहुत देर हो चुकी होती है। दयाल जी को इस हादसे के बाद से कोमां में चले जाते है। नरेंद्र मोहिनी के सुंदर रूप को कभी भुला नही पाता।
Writer: Aditya Kumar
"कहती है नन्ही- सी बाला, मैं कोई अभिशाप नहीं। लज्जित होना पड़े पिता को, मैं कोई ऐसा पाप नहीं।"- मुंशी प्रेमचन्द्र
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देशभक्ति के गीतों पर झूमे वृद्धजन
अहमदाबाद. इसरो के वैज्ञानिक व गायक डॉ. आशुतोष आर्य एवं ग्रुप ने मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती… सुनाया तो वृद्धजन भी झूम उठे। पीर पराई फाउंडेशन की ओर से इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस पर छठीं बार संगीतमय शाम के आयोजन में वृद्धजनों सहित सभी उपस्थितजनों ने खूब आनंद लिया। यहां इसरो कॉलोनी के सामुदायिक केंद्र में डॉ. आर्य ने सेंट्रल एक्साइज, कस्टम्स एंड सर्विस टेक्स (अब जीएसटी) विभाग के अधीक्षक व गायक सुदीप मुखर्जी के साथ एक से बढ़कर एक गीत प्रस्तुत किए। फाउंडेशन के अध्यक्ष शरद अग्रवाल ने शहर के 6 वृद्धाश्रमों के वृद्धों के लिए शुरू की गई पेंशन योजना की जानकारी दी। मंत्री प्रमोद गुप्ता ने फाउंडेशन की गतिविधियों की जानकारी दी। अजमेर मूल के वक्ता व माइंड, मेमॉरी एंड विल-पावर ट्रैनर योगेन्द्रसिंह राठौड़ ने ऊर्जा बढ़ाने व मुस्कान से जीवन को खुशहाल बनाने के बारे में विचार व्यक्त करते हुए प्रयोग करवाए। सेवानिवृत्त उप कलक्टर जितेंद्र जयंतीलाल जोशी ने वृद्धजनों के उपयोग के लिए प्रकाशित अपनी पुस्तक के बारे में और वृद्धजनों के सहयोग के लिए डाकघरोंए रेलवे व गुजरात सरकार से की गई मांगों व वार्ता की जानकारी दी। फाउंडेशन अध्यक्ष शरद अग्रवाल के अनुसार राष्ट्रीय व सामाजिक पर्वों पर वृद्धजनों को जोडऩे व उन्हें स्वस्थ मनोरंजन देने के उद्देश्य से आयोजित कार्यक्रम में अहमदाबाद के भारती आश्रम सरखेज, सुवर्ण मंदिर बोपल, जीवनतीर्थ जूना वाडज, अतीत का आशीर्वाद हाथीजण, जीवन सागर लांभा आदि वृद्धाश्रम में रहने वाले 200 वृद्धजन विशेष तौर पर मौजूद थे। मुख्य अतिथि श्याम ग्रुप ऑफ कम्पनी के चेयरमैन एच.पी. गुप्ता के अलावा अग्रबंधु एसोसिएशन के अध्यक्ष जे.के. गुप्ता, मनपा एएमटीएस कमेटी के निदेशक नरेंद्र पुरोहित, भारतीय विचार मंच की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष उमेश अग्रवाल, पूर्व श्रम आयुक्त पी.सी. भार्गव, डॉ. प्रवीण गर्ग, इसरो के पूर्व वैज्ञानिक सुरेंद्र पोखरना, समाजसेवी किशनदास अग्रवाल, रामस्वरूप अग्रवाल, विजय अग्रवाल, रवि प्रकाश गोयल, दिलीप अग्रवाल, राकेश जैन, विनय जैन, कमलेश अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, चिमनलाल शाह, सुधीर अग्रवाल आदि भी मौजूद थे। आयोजन संयोजक प्रवीण अग्रवाल ने स्वागत भाषण दिया। फाउंडेशन के वी.के. गर्ग, रमेश जैन, अशोक राठौर, देवेंद्र पटेल, विनीत अग्रवाल, प्रेम बंसल, कौशिक शाह, एच.के. अग्रवाल, सुनील भंसाली, नीलेश अग्रवाल, एच.के. अग्रवाल, एच.एन. गुप्ता, राजेश वालिया, सुनील भंसाली ने आयोजन को सफल बनाने में सहयोग किया। फाउंडेशन के पूर्व मंत्री विष्णु माहेश्वरी ने गीतों की फिल्मों, गायकों, संगीतकारों की जानकारी देते हुए संचालन किया।
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सरसों के तेल से दो मिनट में दूर करें दांतों का पीलापन
सरसों के तेल से दो मिनट में दूर करें दांतों का पीलापन
लोगो को अपनी और आकर्षित करने के लिए खिलखिलाती हुई मुस्कान बहुत ज़रूरी होती है। और खिलखिलाती मुस्कान के लिए मोती जैसे दांतों का होना ज़रूरी है। लेकिन अक्सर लोग दांतों में पीलापन या कलापन होने की वजह से किसी के सामने हंसने से कतराते है। और अगर ऐसे में कोई व्यक्ति किसी के सामने हंस देता है तो उसे कोई न कोई टोक ही देता है। जिसकी वजह से उसे बहुत ज़्यादा शर्ममिन्देगी उठानी पडती है। अगर आप भी अपनी…
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नारी सौन्दर्य र सोह्र श्रृंगार
साउन महिनामा श्रृंगारलाई पनि महत्व दिइन्छ । साउनको पहिलो दिन अर्थात साउने संक्रान्तिमा तिउरी लगाउने गरिन्छ, जो श्रृंगारसँग सम्बन्धित छ । खासगरी नङ, हातलाई रंगीन बनाउने प्रचलन हो यो ।
श्रृंगारलाई महिलाकै सौन्दर्यको एउटा हिस्सा मानिन्छ । सदियौंदेखि श्रृंगारको खास ढाँचा र महत्व रहँदै आएको छ । श्रृंगार शब्दको प्रयोग सामन्यतः ब्रस्त्रभूषण आदिले शरीरलाई सु–सज्जित गराउने अर्थमा लिइन्छ । सोह्र श्रृंगार शरीरको स्वच्छतादेखि श्रृंगार एवं मुस्कान, शारीरिक हाउभाउको संयोजन मानिन्छ । यसमा मेहेन्दी, आभूषण, केस–विन्यासदेखि मुस्कानसम्म पर्छ ।
स्नान
श्रृंगारको सुरुवात स्नानपछि गर्नुपर्छ ।
बस्त्र
बिना वस्त्र सबै सौन्दर्य कान्तिहीन लाग्छ । प्रस्तर युगबाट शीत, ग्रीष्मबाट बच्न मानिसले रुखको बोक्रा, पशुको छालाले आफ्नो शरीर ढाक्ने गर्थे । कालन्तरमा स��्यताको विकाससँगै बस्त्रमा अनेकन ढाँचा र बान्की देखापरे । यसरी बस्त्र सौन्दर्यकै मूख्य पाटोको रुपमा विकास भएको हो ।
हार
हार लगाउनुको अर्थ सुन्दर देखिनुका साथै स्वास्थ्यका लागि पनि हो । गला वा यसको नजिकमा यस्तो प्रेशर विन्दु हुन्छ, जसको केहि हिस्साबाट शरीरलाई लाभ प्राप्त हुन्छ ।
बिन्दी
टिका अर्थात बिन्दीलाई सौभाग्यको प्रतिक मानिन्छ ।
काजल
आँखालाई सुन्दर बनाउन एवं आँखाको सुरक्षा दुबै दृष्टिले काजल प्रयोग गरिन्छ ।
अधरंजन
ओंठ एवं अधरको सुन्दरता बढाउनका लागि त्यसमा केहि रंग प्रयोग गरिन्छ । प्राचिन कालमा फूलको रसबाट यो काम गरिन्थ्यो ।
नथ
नाखको सोभा बढाउनका लागि नाखमा छेडेर केहि प्रकारका नथ लगाइन्छ ।
केस सज्जा
केसमा सुगन्धित तेल लगाएर आकर्षक बान्कीका सजाइन्छ ।
कमरबन्ध
कमरको सौन्दर्यका लागि कमरबन्ध प्रयोग गरिन्छ । यसलाई सुन, चाँदी, हिरा, मोती जडान गरी विभिन्न आकारमा बनाइन्छ ।
चरणराग
खुट्टा वा हातको सौन्दर्य साथै छालाको सुरक्षाको लागि मेहेन्दी लगाउने परम्परा छ ।
गुणवती स्त्री
भनिन्छ, गुणवती स्त्रीको आभूषण अथावा श्रृंगारको आवश्यक्ता हुन्न । सुन्दर गुण नै उसको आभूषण हो । पवित्र, सुशील र चदाचारिणी स्त्रीलाई गुणवती मानिन्छ ।
स्त्रीको १२ अभूषण के हो ?
१. शील
२. लज्जा
३. मधुरवाणी
४. दृढाता
५. सरल स्वभाव
६. पतिव्रता
७ सन्तोष
८. सुहृदय
९. विनय
१०. क्षमा
११. हृदयको शुद्धता
१२. सेवाभाव
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#603 पकड़ तू मेरा हाँथ आ तुझे जन्नत दिखा लाऊँ मैं, चाँद तारे, दुनिया की हर ख़ुशी, दिला लाऊँ मैं, मेरे आँसू हैं मोती से तेरी हर मुस्कान है करोड़ों की, आँसू अपने बेच बेच के, तेरी मुस्कानें तुझे दे जाऊँ मैं, घड़ी दो घड़ी की क्या बात करूँ ज़िंदगी तुझ संग बिताऊँ मैं, है बस यही तमन्ना मेरी तेरी साँसों में समा जाऊँ मैं, पकड़ तू मेरा हाँथ आ तुझे जन्नत दिखा लाऊँ मैं।। . . #Kumar #beingvocal #friendshipday #writersofinstagram #writersclub #delhipoetree (at Gurgaon, Haryana)
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