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बैकयार्ड मुर्गीपालन में कैरी निर्भीक नस्ल की क्या है ख़ासियत? क्यों बन रही मुर्गीपालकों की पसंद?
जानिए बैकयार्ड मुर्गीपालन में कैरी निर्भीक नस्ल का पालन कैसे करें
ग्रामीण इलाकों में रोज़गार और आमदनी बढ़ाने का एक बेहतरीन ज़रिया है घर के पिछवाड़े यानी बैकयार्ड में मुर्गी पालन करना। बैकयार्ड मुर्गी पालन से मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए, वैज्ञानिक मुर्गियों की उन्नत नस्ल विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक नस्ल है कैरी निर्भीक।
मुर्गीपालन (Poultry Farming): छोटे किसानों और ग्रामीण युवाओं की आमदनी बढ़ाने के साथ ही उनकी पोषण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बैकयार्ड मुर्गी पालन (Backyard Poultry Farming) एक अच्छा विकल्प है। साथ ही देश में अंडे और चिकन की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी मुर्गी पालन को बढ़ावा देना ज़रूरी है। इसलिए वैज्ञानिक लगातार इसकी उन्नत नस्ल विकसित करते रहते हैं।
ऐसी ही एक नस्ल है कैरी निर्भीक जिसे केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (CARI) ने विकसित किया है। बैकयार्ड मुर्गीपालन करने वाले किसानों के लिए ये नस्ल बहुत ही बेहतरीन है, क्योंकि ये उनकी कई समस्याओं का समाधान करके मुनाफ़ा बढ़ाने में मदद करती है।
बैकयार्ड के लिए बेस्ट
कैरी निर्भीक रंगीन और दोहरे प्रकार का देसी चिकन है, जिसका उत्पादन ख़ासतौर पर अंडे और मांस के लिए किया जाता है। इस नस्ल की ख़ासियत ये है कि ये बैकयार्ड मुर्गी पालन में आने वाली सभी समस्याओं को दूर करते है जैसे- शिकार की समस्या, प्रतिकूल जलवायु, खराब पोषण और उत्पादकता। दरअसल, ये पक्षी कठोर प्रकृति का है, इसका पंख रंगीन, शरीर हल्का, प्रतिरक्षा बेहतर और विकास दर अच्छी होने की वजह ये सभी समस्याओं से निपटने में सक्षम है। इसकी अंडे देने की क्षमता भी ज़्यादा है।
कैरी निर्भीक की अहम विशेषताएं
पक्षियों की ये नस्ल अपने उग्र और लड़ाकू स्वभाव के लिए जानी जाती है। इनका चलने का तरीका भी दूसरी मुर्गी से अलग होता है। ये शुद्ध देसी मुर्गी है। इनका रंग लाला और पीला होता है, गर्दन लंबी और टांगे मज़बूत होती हैं। सालाना ये मुर्गी 170 से 190 अंडे देती है। इसे घर के पीछे की थोड़ी सी जगह में भी पाला जा सकता है। जिन किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, वो भी कम खर्च में मुर्गी पालन की शुरुआत कर सकते हैं।
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Kheti se Kaise Badha Sakate Hain Rojagaar ke Avasar?
खेती भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। देश की अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहाँ कृषि ही मुख्य आजीविका का साधन है। पिछले कुछ दशकों में खेती और इससे जुड़े क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर उभरकर सामने आए हैं। खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, कई लोग अपने गांव लौटे और खेती में रोजगार के विकल्प तलाशने लगे। इस लेख में, हम खेती में रोजगार के विभिन्न अवसरों पर विचार करेंगे और समझेंगे कि कैसे ये अवसर न केवल ग्रामीण विकास में योगदान दे सकते हैं, बल्कि युवाओं को भी आत्मनिर्भर बना सकते हैं।
1. खेती से जुड़ी विविधता और रोजगार के अवसर
खेती का दायरा केवल फसल उगाने तक सीमित नहीं है। आज खेती में विभिन्न प्रकार के रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं, जो किसानों और युवाओं को एक स्थिर आय के साथ नए कौशल भी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, जैविक खेती, मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती, फूलों की खेती, मत्स्य पालन, और बागवानी जैसे क्षेत्रों में रोजगार के कई विकल्प उभर रहे हैं। इन क्षेत्रों में शुरुआत करने के लिए तकनीकी जानकारी के साथ-साथ सरकारी योजनाओं का भी सहयोग मिलता है, जो शुरुआती लागत को कम करने में मदद करते हैं।
2. कृषि प्रसंस्करण और खाद्य प्रसंस्करण
कृषि प्रसंस्करण और खाद्य प्रसंस्करण से रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। फसल के बाद की प्रक्रियाएं जैसे धान को चावल में बदलना, गेहूं से आटा बनाना, फल और सब्जियों का संरक्षण, और दूध से दुग्ध उत्पाद बनाना आदि कार्यों के लिए कारखानों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में की जा रही है। यह स्थानीय स्तर पर ही रोजगार सृजित करता है। किसान अब अपनी फसल बेचने की बजाय, प्रसंस्करण कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और साथ ही क्षेत्र में रोजगार भी पैदा कर सकते हैं।
3. एग्रो-टेक्नोलॉजी और डिजिटल खेती
एग्रो-टेक्नोलॉजी का उभरना खेती में एक बड़ी क्रांति ला रहा है। स्मार्टफोन, ड्रोन्स, सैटेलाइट मैपिंग, और सेंसर जैसे उपकरणों का उपयोग करके अब खेती को अधिक सटीक और लाभकारी बनाया जा सकता है। इसके लिए युवाओं को प्रशिक्षित करने और उन्हें इस तकनीक में दक्षता दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। डिजिटल खेती में जैसे ही लोग शामिल होते हैं, कई रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
4. सरकार की योजनाएँ और रोजगार सृजन
भारत सरकार ने कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना। इन योजनाओं का उद्देश्य किसानों को नई तकनीकों से जोड़ना और उनके उत्पादन में वृद्धि करना है। साथ ही, इन योजनाओं के माध्यम से युवाओं को कृषि में रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं। विशेष रूप से महिला किसान और छोटे किसानों को वित्तीय सहायता और अनुदान दिया जा रहा है, जिससे वे अपनी कृषि को नए स्तर पर ले जा सकते हैं और स्थायी रोजगार के अवसर बना सकते हैं।
5. डेयरी उद्योग और पशुपालन में रोजगार के अवसर
खेती के साथ-साथ डेयरी और पशुपालन भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें रोजगार की अच्छी संभावनाएँ हैं। गाय, भैंस, बकरी, और मुर्गीपालन जैसे पशुपालन के व्यवसायों में निवेश कर, लोग एक स्थिर और अच्छा आय स्रोत बना सकते हैं। इसके अलावा, दुग्ध उत्पादों के प्रसंस्करण, जैसे मक्खन, घी, पनीर आदि बनाने के कारखानों में भी रोजगार के अवसर मौजूद हैं। डेयरी उद्योग में रोजगार के साथ-साथ पोषण और आर्थिक सुरक्षा भी प्राप्त की जा सकती है।
6. कृषि-पर्यटन: एक नया पहलू
कृषि-पर्यटन, जिसे एग्रो-टूरिज्म भी कहा जाता है, खेती में रोजगार का एक अनूठा तरीका है। इसके तहत शहरी क्षेत्रों के लोग गांवों में आकर खेती के अनुभव का आनंद लेते हैं और ग्रामीण जीवनशैली को नज़दीक से देखते हैं। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होते हैं। स्थानीय हस्तशिल्प, भोजन, और खेती के उत्पादों की बिक्री से किसानों की आय में इजाफा होता है और रोजगार के नये अवसर भी उत्पन्न होते हैं।
7. मशरूम उत्पादन और बागवानी में अवसर
मशरूम उत्पादन एक तेजी से बढ़ता हुआ व्यवसाय है, जिसमें ज्यादा पूंजी की आवश्यकता नहीं होती और यह एक अच्छा रोजगार विकल्प भी है। इसके अलावा, बागवानी, जिसमें फल, सब्जियों और फूलों की खेती शामिल है, रोजगार के नए रास्ते खोल रही है। यह क्षेत्र उन लोगों के लिए अधिक उपयुक्त है, जो छोटी जगह में अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं। सरकार भी मशरूम उत्पादन और बागवानी को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण और सब्सिडी उपलब्ध कराती है।
8. खेती में उद्यमिता का उदय
खेती में उद्यमिता का बढ़ता चलन आज के युवाओं के लिए एक आकर्षक अवसर बनता जा रहा है। वे खेती के पारंपरिक तरीकों से हटकर नई तकनीकों और व्यापार मॉडल का प्रयोग कर रहे हैं। कृषि उद्यमिता में युवाओं को अपने कृषि उत्पादों को बेचने के लिए नए रास्ते खोजने होते हैं। इसमें ऑनलाइन मार्केटिंग, वितरण चैनल, और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग कर मुनाफा कमाना भी शामिल है।
9. खेती में कौशल विकास और प्रशिक्षण
खेती में रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है। सरकार और गैर-सरकारी संगठन युवाओं को खेती से जुड़े विभिन्न कौशल जैसे जैविक खेती, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, और बागवानी आदि में प्रशिक्षण देने के लिए कार्यक्रम चला रहे हैं। इससे युवाओं में आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ती है और वे कृषि क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं।
10. रोजगार सृजन के लिए कृषि से संबद्ध क्षेत्रों का विकास
कृषि से जुड़े विभिन्न क्षेत्र जैसे कृषि यंत्र, उर्वरक उत्पादन, बीज उत्पादन और वितरण, कृषि परामर्श, और कृषि शिक्षण भी रोजगार के बड़े स्रोत हैं। इन क्षेत्रों में युवा इंजीनियर, वैज्ञानिक, और शिक्षाविद् एक नया करियर बना सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि तकनीकी और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिससे किसानों को नए तरीकों के बारे में जानकारी मिलती है और युवा इन सेवाओं के माध्यम से रोजगार पा सकते हैं।
निष्कर्ष
खेती में रोजगार के अवसर एक उज्ज्वल भविष्य का संकेत देते हैं। जहां एक ओर, यह क्षेत्र किसानों को नए तरीके अपनाने का मौका देता है, वहीं दूसरी ओर, युवाओं के लिए आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करता है। खेती में रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देकर न केवल ग्रामीण क्षेत्रों का विकास हो सकता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी एक मजबूत आधार मिल सकता है।
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कृषि विद्यार्थियों को विशेषज्ञों ने कृषि क्षेत्र में हो रहे नवीनतम शोध और विकास की जानकारी दी 🌿
मेवाड़ विश्वविद्यालय के कृषि एवं पशु चिकित्सा संकाय के विद्यार्थियों ने शनिवार को भीलवाड़ा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र और बारानी कृषि अनसुंधान केन्द्र का शैक्षणिक भ्रमण किया। इस दौरे का उद्देश्य विद्यार्थियों को उन्नत कृषि तकनीकियों, शोध विधियों और कृषि क्षेत्र में रोजगार के बढ़ते अवसरों से अवगत कराना था। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. सी.एन यादव और प्रो. के. सी नागर ने विद्याथियों को केंद्र में संचालित प्राकृतिक खेती के विभिन्न घटकों जैसे बीजामृत, जीवामृत, ��नजीवामृत, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र, दशपर्णी अर्क, अग्निअस्त्र एवं वर्मीकम्पोस्ट इकाई के साथ नर्सरी, मुर्गीपालन, बकरियों और गायों की विभिन्न नस्लों, पशुओं के लिए उगाई जाने वाली नेपियर घास की विस्तृत जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने आंवला उद्यानिकी के नवीनतम अनुसंधानों को भी विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया। बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र के भ्रमण का नेतृत्व केंद्र प्रमुख एवं मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एल. के छाता ने किया। उन्होंने केंद्र में संचालित गतिविधियों और अनुसंधान के अंतर्गत कुल्थी की उन्नत किस्मों की जानकारी दी जो सूखाग्रस्त क्षेत्रों में कृषि की चुनौतियों को समाधान प्रदान करती है।🌳
मेवाड़ विश्वविद्यालय में वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. दीपक मिश्रा ने बताया कि वरिष्ठ अनसुंधान अध्यता डॉ. हितेश मुबाल एवं इन्द्रजीत ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत केंद्र पर संचालित विभिन्न योजनाओं और कृषि क्षेत्र में विकास हेतु दी जाने वाली सहायता के बारे में विद्यार्थियों को अवगत कराया। इसके अतिरिक्त कृषि विज्ञान केंद्र ने विद्यार्थियों को ”स्वच्छता ही सेवा“ अभियान के तहत जागरूक किया जिसमें कृषि और ग्रामीण विकास के बीच स्वच्छता का महत्व रेखांकित किया गया। कुलपति प्रो. (डॉ.)आलोक मिश्रा ने इस शैक्षणिक भ्रमण की सराहना करते हुए कहा कि इससे विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है जो उनके विषय की गहरी समझ विकसित करने में सहायक होता है। इस औद्योगिक भ्रमण में 68 से ज्यादा कृषि विद्यार्थियों ने भाग लिया। भ्रमण के दौरान संकाय के सहायक प्रो. ओमप्रकाश, चम्पालाल रेगर और चंद्रकांता जाखड़ भी विद्यार्थियों के साथ मौजूद रहे।
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जांजगीर-चांपा । जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. ज्योति पटेल ने सोमवार को जनपद पंचायत पामगढ़ के सभाकक्ष में ग्राम पंचायत वार गोठान, गोधन न्याय योजना की समीक्षा बैठक ली। बैठक में उन्होंने गोठान नोडल अधिकारी, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, पंचायत सचिव एवं गोठानों में कार्यरत स्व सहायता समूह से प्रतिदिन गोबर खरीदी सुनिश्चित करने, वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने, खाद के विक्रय करने, गोठान में आजीविका गतिविधियों के सुचारू रूप से संचालन करने के निर्देश दिए। इसके साथ ही उन्होंने गौठान में मूलभूत सुविधाएं बिजली, पानी, साफ-सफाई, चारा आदि की व्यवस्था करने कहा। जिपं सीईओ CEO ने बैठक में कहा कि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बारी है। गोधन न्याय योजना की नियमित रूप से राज्य सरकार द्वारा गंभीरता के साथ समीक्षा की जाती है, इसलिए किसी तरह की कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने जनपद पंचायत पामगढ़ के अंतर्गत गोठान की समीक्षा करते हुए प्रगतिरत गोठानों को समय सीमा में पूर्ण करने के निर्देश दिए। बैठक में उन्होंने कहा कि गोधन न्याय योजना में पंजीकृत पशुपालकों से नियमित रूप से गोबर की खरीदी कराई जाए, और गोबर खरीदी के बाद निर्धारित समय सीमा में वर्मी कम्पोस्ट तैयार कराकर उसे सोसायटी के माध्यम से विक्रय कराया जाए। ताकि नियमित रूप से विक्रय होने से गोठान को स्वावलंबी बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि गौठान में चल रहे कार्यो, गोबर खरीदी, सहित आजीविका गतिविधियों की अधिकारी नियमित रूप से मानीटरिंग करे एवं गोबर, खाद, पशुपालकों की ऑनलाइन एंट्री भी कराएं। जिपं सीईओCEO ने कहा कि गौठान में गायों को पहुंचाने के लिए पशुपालकों को प्रेरित किया जाए और नियमित रूप से गोठान में गायों के लिए चारा, पानी एवं स्वास्थ्य परीक्षण शिविर लगाए जाए। बैठक में कृषि विभाग उपसंचालक एम.डी. मानकर, जनपद पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रज्ञा यादव सहित जनपद पंचायत अधिकारी, कर्मचारी मौजूद रहे। समूहों को आजीविका गतिविधियों से जोड़े जिपं सीईओ ने कहा कि स्व सहायता समूहों को नियमित रूप से आमदनी अर्जित हो, इसके लिए उन्हें गौठान से जोड़े। प्रत्येक गौठान में कम से कम तीन आजीविका गतिविधियों का संचालन अवश्य किया जाए। समूह की महिलाओं को संबंधित कार्यक्षेत्र में बेहतर प्रशिक्षण दिया जाए। समूह की महिलाओं को गौठान में तालाब, डबरी के माध्यम से मछलीपालन में दक्ष किया जाए जिससे उन्हें अच्छी आमदनी अर्जित हो सके। इसके अलावा मशरूम उत्पादन, बकरीपालन, मुर्गीपालन, मसाला, दोना-पत्तल की आजीविका गतिविधियां से जुड़कर मुनाफा कमाया जा सकता है।
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गौठानों में भी बकरी प्रजनन केंद्र, दुर्ग के कुर्मीगुंडरा गौठान में किया गया नवाचार
रायपुर, 20 फरवरी 2023 मुख्यमंत्री श्री भू��ेश बघेल ने खेती के साथ ही पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए नस्लसंवर्धन के लिए विशेष पहल करने के निर्देश अधिकारियों को दिये थे। इसके लिए बहुत जरूरी था कि स्थानीय स्तर पर उच्च नस्ल के मवेशी पशुपालकों को उपलब्ध हो सकें। जिला प्रशासन दुर्ग ने इसके लिए बहुत कारगर तरीके से काम किया है। पहले मुर्गीपालन के लिए किसानों को मुर्गियां उपलब्ध कराने बड़ी संख्या में हैचरी…
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Kisan Credit Card: फसलों के साथ ही मछली, मुर्गीपालन और डेयरी फार्मिंग के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड से सस्ता लोन
Kisan Credit Card: फसलों के साथ ही मछली, मुर्गीपालन और डेयरी फार्मिंग के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड से सस्ता लोन
किसान क्रेडिट कार्ड से किसानों के साथ ही अन्य पशुपालकों को सस्ती दर पर ब्याज रोजगार बढ़ाने में सहायह है. असल में केंद्र सरकार की इस योजना का फायदा उठाकर किसान व उनके परिजन डेयरी फार्मिंग, मुर्गी पालन, सुअर पालन, मछली पालन जैसे स्वरोजगार कर सकते हैं. किसान क्रेडिड से अब पशुपालकों और मछलीपालक भी सस्ता लोन ले सकते हैं. Image Credit source: File Photo भारत कृषि प्रधान देश हैं. जहां बड़ी आबादी…
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देखिए एक अनोखा फार्म जिसमें Fish और Poultry Farming दोनों होती है, एक-दूसरे से दोनों फार्म चलते हैं
https://hindi.ethonce.com/integrated-poultry-farm-and-fish-farming-in-bulandshahar/ वर्तमान समय में लोग शहरों की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को छोड़ गांव की तरफ रुख कर रहें हैं ताकि शांतिपूर्ण जीवन गुजार सकें। ऐसे में जीवनयापन के लिए लोग गांवो में मत्स्यपालन, खेती, मुर्गीपालन तथा मवेशीपालन को अपने आय का स्त्रोत बना रहे हैं। आज के हमारे इस लेख में आप एक ऐसे शख्स से रू-ब-रू होंगे जिन्होंने शहरों की चकाचौंध से निकलकर गांव आकर इंट्रीग्रेटेड फार्मिंग प्रारम्भ की, जहां वह मत्स्यपालन का कार्य प्रारंभ किया और धीरे-धीरे मुर्गीपालन के तरफ भी रुख मोड़ा।
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Kadaknath: खेती-बाड़ी के साथ करें कड़कनाथ मुर्गीपालन और पाएँ बढ़िया आमदनी
कड़कनाथ को विशेष भौगोलिक पहचान यानी Geographical Indication (GI) टैग भी हासिल है। इसकी वजह से कड़कनाथ की विदेशों में भी माँग है।
मुर्गीपालन की अन्य नस्लों के मुक़ाबले कड़कनाथ को पालना आसान और कम खर्चीला है, क्योंकि इन्हें बीमारियाँ कम होती हैं। इसका रखरखाव बॉयलर और देसी मुर्गी के मुक़ाबले आसान होता है। कड़कनाथ का माँस काफ़ी स्वादिष्ट होता है। इसमें आयरन और प्रोटीन की प्रचुरता तथा कोलेस्ट्रॉल यानी फैट बेहद कम होता है। कड़कनाथ का माँस, अंडा और चूजा, सभी की ख़ूब माँग है इसीलिए बढ़िया दाम मिलते हैं।
मुर्गीपालन जहाँ बड़े-बड़े पॉल्ट्री फ़ार्म के रूप में होता है, वहीं छोटे और मझोले पैमाने पर किसान भी इसे अपनाते हैं, क्योंकि इससे उनका ‘कैश फ्लो’ यानी नकदी आमदनी बनी रहती है। इसीलिए, मुर्गीपालन को अतिरिक्त कमाई के लिए भी अपनाया जाता है। बॉयलर और देसी मुर्गी के अलावा कड़कनाथ नस्ल का भी मुर्गीपालन में अच्छा दबदबा है।
वैसे तो हरेक नस्ल की अपन�� ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ होती हैं, लेकिन कड़कनाथ की ख़ूबियों ने हाल के वर्षों में मुर्गीपालकों को ख़ासा आकर्षित किया है। इसे देखते हुए कई राज्य सरकारों और बैंकों की ओर से कड़कनाथ को प्रोत्साहित करने की योजनाएँ चलायी जा रही हैं।
क्या है GI Tag की अहमियत?
मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ और धार ज़िलों के अलावा समीपवर्ती छत्तीसगढ़ के इलाकों में कड़कनाथ नस्ल का पारम्परिक दबदबा रहा है। अब तो यहाँ के कड़कनाथ को विशेष भौगोलिक पहचान यानी Geographical Indication (GI) टैग भी हासिल है। इसकी वजह से कड़कनाथ की विदेशों में भी माँग है। GI Tag के ज़रिये किसी खाद्य पदार्थ, प्राकृतिक और कृषि उत्पादों तथा हस्तशिल्प के उत्पादन क्षेत्र की गारंटी दी जाती है। भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत GI Tag वाली पुख़्ता पहचान देने की शुरुआत 2013 में हुई। ये किसी ख़ास क्षेत्र की बौद्धिक सम्पदा का भी प्रतीक है। एक देश के GI Tag पर दूसरा देश दावा नहीं कर सकता। भारत के पास आज दुनिया में सबसे ज़्यादा GI Tag हैं। इसकी वजह से करीब 365 भारतीय उत्पादों की दुनिया में ख़ास पहचान है।
कम खर्चीला और आसान है कड़कनाथ को पालना
कड़कनाथ को स्थानीय बोली में ‘कालामासी’ भी कहते हैं, क्योंकि ‘मिलेनिन पिग्मेंट’ की अधिकता वाली इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गी का माँस, चोंच, पंख, कलंगी, टाँगे, ज़ुबान, नाख़ून, चमड़ी, हड्डी आदि सभी का रंग काला होता है। इसकी तीन प्रमुख नस्लें हैं – जेट ब्लैक, पेंसिल्ड और गोल्डन। इनमें से जेट ब्लैक यानी बिल्कुल काले नस्ल की माँग सबसे अधिक है। गोल्डन नस्ल वाले कड़कनाथ कम मिलते हैं। अन्य नस्लों के मुक़ाबले कड़कनाथ को पालना आसान और कम खर्चीला है, क्योंकि इन्हें बीमारियाँ कम होती हैं। इसका रखरखाव बॉयलर और देसी मुर्गी के मुक़ाबले आसान होता है। इन्हें बाग़ में शेड ब��ाकर पाला जाए तो खान-पान का ख़र्च भी किफ़ायती रहता है।
कड़कनाथ देता है ज़्यादा कमाई
देसी मुर्गी की तुलना में कड़कनाथ नस्ल के मुर्गीपालन से होने वाली कमाई काफ़ी ज़्यादा होती है। जहाँ देसी मुर्गा 700 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है, वहीं कड़कनाथ का दाम 900 से 1200 रुपये प्रति किलो होता है। कड़कनाथ के परिपक्व नर का वजन 1.8 से 2.3 किलोग्राम और मादा का वजन 1.25 से 1.5 किलोग्राम के आसपास होता है। कड़कनाथ मुर्गी साल में 110 से 120 अंडे देती है। इसका अंडे का वजन 30 से 35 ग्राम और रंग हल्का भूरा या गुलाबी होता है। कड़कनाथ मुर्गी का एक अंडा 25 से 50 रुपये तक बिकता है।
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किसान: आजकल सब्जियों में लग रहे हैं कीट, पढिये ये उपाय, झट होगा समाधान...
किसान: आजकल सब्जियों में लग रहे हैं कीट, पढिये ये उपाय, झट होगा समाधान…
देशः सब्जियों की खेती का प्रचलन नई तकनीकी व गुणवत्तायुक्त बीजों जिसमें हाइब्रिड बीज मुख्य हैं के प्रसार व लॉकडाउन से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के रोजगार में विपरीत असर होने से खेती -किसानी व खेती- किसानी के साथ -साथ सब्जी उत्पादन, मुर्गीपालन, मधुमक्खीपालन, बकरीपालन, मशरूम उत्पादन डेयरी पदार्थों का विपणन आदि कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर कर रहें हैं स्थानीय स्तर पर इन उत्पादों…
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ब्रायलर पोल्ट्री फार्म बिजनेस कैसे शुरू करें | Broiler Poultry Farming Business
ब्रायलर पोल्ट्री फार्म बिजनेस कैसे शुरू करें | Broiler Poultry Farming Business
मुर्गीपालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसको कम लागत में शुरू करके हर महीने हजारों रुपए कमाए जा सकते हैं। अगर कोई किसान 500 मुर्गी से इस व्यवसाय को शुरू करता है तो एक महीने में 10 से 12 हजार रुपए की अतिरिक्त आय कमा सकता है। इस व्यवसाय में पशुपालक को बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं होती है। अगर कोई व्यक्ति इस व्यवसाय को शुरू करना चाहता है तो वह 500 ब्रायलर मुर्गियों से शुरुआत कर सकता है। पुराने दौर में…
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#कैसे होता हैं मुर्गी पालन?#ब्रायलर पोल्ट्री फार्म गाइड#ब्रायलर पोल्ट्री फार्म शुरू कैसे करे#भारत में ब्रायलर मुर्गी पालन की जानकारी#how to start broiler poultry farm in hindi
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मुर्गी पालन से आत्मनिर्भरता की कहानी गढ़ रही हैं तोरपा प्रखंड की महिलाएं Divya Sandesh
#Divyasandesh
मुर्गी पालन से आत्मनिर्भरता की कहानी गढ़ रही हैं तोरपा प्रखंड की महिलाएं
खूंटी। 15 से अधिक गांवों में 20 वर्षों से हो रहा है कुक्कुट पालन मुर्गी पालन से आत्मनिर्भरता की कहानी गढ़ रही हैं तोरपा प्रखंड की महिलाएं। स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त ��ो रही हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। तोरपा के गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह की महिलायों को जोड़कर वर्ष 2002 में ब्रायलर मुर्गी पालन का कार्य स्वयं सेवी संस्था प्रदान ने प्रारंभ किया था। 20 वर्षों के बाद ऐसी कई महिलाएं हैं, जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनी हैं और मुर्गीपालन जैसी आजीविका की गतिविधि से जुड़कर खुद का एवं अपने परिवार का भरण पोषण कर रहीं हैं।
आदिवासी कल्याण विभाग के मार्गदर्शन में इन कार्यों की शुरुआत झारखण्ड में हुई थी, जिसमें स्वयं सेवी संस्था द्वारा आजीविका के कई प्रोटोटाइप विकसित किये गए। इनमें ब्रायलर मुर्गी पालन भी एक था। मुर्गीपालन की तकनीकी जानकारी, प्रबंधन, बाज़ार व्यवस्था एवं शेड की देखभाल जैसी कई बारीकियों को सहज प्रशिक्षण एवं मीटिंग के माध्यम से महिला सदस्यों को सिखाया गया। स्वाबलंबी सहकारी समिति के रूप में पंजीकृत होने के बाद महिलाआं की यह सोसाइटी पिछले 20 वर्षों से तोरपा प्रखंड में कार्यरत है। तोरपा के बारकुली, झटनीटोली, जागु, जारी, कसमार, कुदरी, ओकड़ा डोड़मा, गुड़िया, कोरला, चंद्रपुर बोतलो सहित प्रखंड के कई गांवों में स्वयं सहायता समूह की उत्पादक सदस्यों के स्वाबलंबन के लिए कार्य किये जा रहे हैं।
पिछले 20 वर्षों में बर्ड फ्लू, महामारी, बाज़ार की समस्या और कोरोना महामारी आदि से जूझते हुए यह सहकारी समिति आज भी अपने सदस्यों की उन्नति के लिए संघर्षरत है। तोरपा ग्रामीण पोल्ट्री सहकारी समिति की अध्यक्ष फुलमनी भेंगरा कहती हैं कि यह को-ऑपरेटिव महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का प्रतीक है। को-ऑपरेटिवका संचालन महिलाओं की बोर्ड सदस्यों द्वारा किया जाता है। महिलाओं के कार्यों में सहयोग के लिए वेटनरी डॉक्टर एवं प्रोडक्शन मेनेजर रहते हैं, जो बेहतर उत्पादन एवं बाज़ार व्यवस्था में मदद करते हैं।
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गांव की दीदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हम कृतसंकल्पित: प्रीति को-ऑपरेटिवका की मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी प्रीति श्रीवास्तव का कहना है की गांव की दीदियों को आत्मनिर्भर बनाना एवं उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए हमलोग कृतसंकल्पित हैं। राज्य स्तर पर सहकारी समितियों का फेडरेशन बना है, जो बाज़ार व्यवस्थाए चूजा उत्पादनए दाना उत्पादन एवं इसकी खरीद में सहयोग प्रदान करता है। समिति के प्रोडक्शन मैनेजर अरूप रॉय कहते हैं क�� झारखण्ड में ब्रायलर मुर्गी का स्वयं ब्रांड के नाम से तैयार मुर्गी का विपणन होता है। तोरपा से उत्पादित मुर्गी की स्थानीय बाज़ारों के अलावा सिमडेगा, पोकला, रांची, राउरकेला आदि जगहों पर बिक्री होती है। प्रदान संस्था उत्पादक सदस्यों एवं इनके समूहों को आवश्यक प्रशिक्षण देने का कार्य करती है, ताकि ये सतत रूप से मुर्गी उत्पादन का काम कर सकें। वर्तमान में मुर्गी उत्पादन से करीब 350 महिलाएं सक्रिय उत्पादक के रूप में लाभार्जन कर रही हैं।
जागु गांव की उत्पादक एवं समिति की उपाध्यक्ष सोनी तिर्की बताती हैं कि कोरोना के कारण मांग एवं बाज़ार प्रभावित होने से सक्रिय सदस्यों की संख्या में कमी आयी है। समिति को नुकसान का सामना भी करना पड़ा है, लेकिन तोरपा ग्रामीण पोल्ट्री सहकारी समिति पुनः अपने लक्ष्य में लगी है और सदस्यों और ग्रामीणों को कोरोना के संक्रमण से बचने के उपाय के साथ-साथ उत्पादन को भी आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है। मुर्गीपालन के कार्य ने ग्रामीण युवकों को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है। आज कई ऐसे नौजवान हैं, जो सुपरवाइजर, पैरा वेटरनरी के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं और आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। कुदरी के बिपिन तिग्गा व मेरी तिग्गा जो मुर्गीपालन के कार्य से आत्मनिर्भरता और सफलता की ओर अग्रसर हैं पूरे क्षेत्र के लिए मिसाल हैं।
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कुपोषण मुक्ति अभियान से जुड़ी महिला स्वावलंबन की राहें
कुपोषण मुक्ति अभियान से जुड़ी महिला स्वावलंबन की राहें #NationalYouthDay #SwamiVivekananda #राष्ट्रीय_युवा_दिवस #BanNeet_4TN
रायपुर 10 जनवरी 2022 विकास की राहें आपस में जोड़ दी जाएं तो नए आयाम स्थापित हो जाते हैं। इसकी एक बानगी अम्बिकापुर जिले में नजर आती है जहां गौठानों में मुर्गीपालन से जुड़ी महिलाओं की आर्थिक सशक्तिकरण की डगर को आंगनबाड़ियों के कुपोषण मुक्ति की पहल से जोड़ा गया है। इससे समूह की महिलाओं के लिए न सिर्फ आय का नया जरिया खुला है बल्कि आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडों कीे सप्लाई से बच्चों को पौष्टिक आहार…
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कौओें की मृत्यु पर, पशुपालन विभाग ने उठाये एहतियाती कदम राज्य स्तर पर नियन्त्रण कक्ष स्थापित
कौओें की मृत्यु पर, पशुपालन विभाग ने उठाये एहतियाती कदम राज्य स्तर पर नियन्त्रण कक्ष स्थापित
कौओें की मृत्यु पर, पशुपालन विभाग ने उठाये एहतियाती कदमराज्य स्तर पर नियन्त्रण कक्ष स्थापित जयपुर,राजस्थान हाल ही में झालावाड में एवियन इनफ््लूएन्जा से हुई कौओं की मृत्यु की पुष्टि के दृष्टिगत राज्य में मुर्गीपालन व्यवसाय की सुरक्षा को लेकर विभागीय स्तर पर एहतियात के तौर पर की गई तैयारी की जानकारी देने के उद्देश्य से रविवार को यहां पशुधन भवन के सभागार में आयोजित बैठक में पशुपालन विभाग के प्र��ुख…
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि प्रदेश की 1 करोड़ 20 लाख जीविका दीदियों के बीमा के लिए योजना बने। इन्हें जिला अस्पतालों के कैंटीन में भोजन का मैनेजमेंट का जिम्मा दिया जाए। मुख्यमंत्री, शुक्रवार को ‘जीविका’ प्रोजेक्ट की समीक्षा कर रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों के गठन से महिलाओं में जागृति आई है। जीविका दीदियों के आर्थिक गतिविधियों से जुड़ने से परिवार की आमदनी बढ़ी है। इनके द्वारा कांट्रैक्ट फार्मिंग, दुग्ध उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मुर्गीपालन, बकरी पालन ढंग से किए जा रहे हैं। छोटे उद्यम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। मुख्यमंत्री ने कहा-10 लाख स्वयं सहायता समूह बनाने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है। महिलाओं को और प्रशिक्षित किया जाए, जिससे उनकी भागीदारी छोटे उद्यम में बढ़े। जीविका दीदियों के माध्यम से मद्य निषेध कार्य के लिए लोगों को प्रेरित करें। वैसे वंचित परिवार जिन्हें किसी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, उन्हें चिह्नित कर सतत् जीविकोपार्जन योजना का लाभ दिलाएं। नीरा के उपयोग को और बढ़ावा देने की जरूरत है।
खास निर्देश
महिलाओं को छोटे उद्यम के कार्यों में और प्रशिक्षित किया जाए
जीविका दीदियों के माध्यम से मद्य निषेध कार्य के लिए लोगों को प्रेरित करें
मत्स्यपालन से जुड़े सभी काम के लिए जीविका दीदियों क�� प्रेरित करें।
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बिहार सरकार का कैलेंडर जारी करते सीएम।
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