#मुख्यमंत्री यो��ी आदित्यनाथ
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abhay121996-blog · 4 years ago
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स्विस बैंकों में भारतीयों के पैसों की रेकॉर्ड बढोत्तरी, अखिलेश ने BJP राज में हुए घोटालों को ठहराया जिम्मेदार Divya Sandesh
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स्विस बैंकों में भारतीयों के पैसों की रेकॉर्ड बढोत्तरी, अखिलेश ने BJP राज में हुए घोटालों को ठहराया जिम्मेदार
लखनऊ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने स्विस बैंकों में जमा ‘काले धन’ में हुए इजाफे के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस पार्टी के शासन में हुए घोटालों के कारण ही विदेश में जमा काला धन बढ़ गया है। दरअसल स्विट्जरलैंड के सेंट्रल बैंक के जारी सालाना आंकड़ों के मुताबिक स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का धन 20000 करोड़ रुपए को पार कर गया है जो पिछले 13 साल में सबसे ज्यादा है।
अखिलेश ने सोमवार को यहां जारी एक बयान में कहा, “बीजेपी सरकार में विकास के काम शून्य के बराबर हैं… बीजेपी राज में घोटालों के चलते ही विदेशों में जमा कालाधन बढ़ गया और देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) घाटे में चली गई है।”
‘घोटालों की कमाई में लगी योगी सरकार’ उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने आरोप लगाया कि लोगों का विश्वास खो चुकी बीजेपी अब अपने शासनकाल के आखिरी दौर में ‘घोटालों की कमाई’ में लग गई है। भ्रष्टाचार कतई अर्दाश्त नहीं करने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा खोखला साबित हुआ है।
कई सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का लगाया आरोप एसपी अध्यक्ष ने कई सरकारी योजनाओं में कथित भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि बरेली के 49 परिषदीय विद्यालयों में सरकारी खाते से निकला भोजन छात्रों को मिला ही नहीं। इसके अलावा कानपुर में शादी अनुदान और पारिवारिक लाभ योजना में 6.50 करोड़ रूपए का घपला सामने आया है।
कहीं करोड़ों तो कहीं लाखों के घोटाले का किया जिक्र अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि लखनऊ में परमिट नवीनीकरण में वसूले गये जुर्माने में 15 करोड़ रुपये का गबन हो गया। बरेली के कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में बिना छात्राओं की उपस्थिति के भोजन, पानी, अन्य सुविधाओं के नाम पर 84 लाख रूपए का खर्च दिखा दिया गया। बरेली के अलावा प्रदेश के 17 जिलों में भी घपले होने की चर्चा है।
बीजेपी सत्ता से बाहर होना तय, एसपी करेगी वापसी-अखिलेश अखिलेश ने दावा किया कि बीजेपी के शासन काल में उत्तर प्रदेश की बदहाली की इबारत लिख दी गई है। जनता त्रस्त है और कानून व्यवस्था ध्वस्त है। उन्होंने कहा कि बीजेपी नेतृत्व भी अब समझने लगा है कि अगले विधानसभा चुनाव में उसका सत्ता से बाहर होना तय है और समाजवादी सरकार बनने वाली है।
यो गी के मंत्री ही उनके खिलाफ-अखिलेश यादव अखिलेश यादव ने दावा किया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ पार्टी के अंदर ही विरोध के स्वर उभरने लगे हैं और दो जिम्मेदार मंत्रियों ने कह दिया कि चुनाव बाद केन्द्र तय करेगा कि मुख्यमंत्री कौन होगा? प्रदेश की राजनीति में यह स्थिति हास्यास्पद है।
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newspluss · 4 years ago
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दिल्ली पहुंचे CM योगी आदित्यनाथ, मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो दिनी दौरे पर दिल्ली पहुंचे हैं। प्रदेश भाजपा संगठन में बदलाव के साथ ही प्रदेश के योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट को देखते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ का यह दिल्ली दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गुरुवार को दिन में अचानक ही दिल्ली जाने का कार्यक्रम फाइनल हुआ है। सीएम योगी आदित्यनाथ के अचानक दिल्ली दौरे को लेकर लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। वह दिन में 2:30 बजे लखनऊ के रवाना होकर 3:30 बजे स्टेट प्लेन से गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर लैंड किए। यहां से सड़क मार्ग से दिल्ली स्थिति यूपी सदन पहुंच गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज शाम 4 बजे गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर सकते हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ के इस दौरे के बाद अब उत्तर प्रदेश में एक बार फिर राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
सीएम योगी आदित्यनाथ की आज शाम को दिल्ली में गाजियाबाद तथा नोएडा के भाजपा नेताओं से भेंट होगी। इसके बाद वह भाजपा के राष्ट्रीय संगठन के नेताओं से मिलेंगे। उनकी गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात होनी है। सीएम योगी आदित्यनाथ  शुक्रवार को दिन में 11 बजे पीएम नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात होगी।
सीएम योगी आदित्यनाथ का आज रात में नई दिल्ली में प्रवास भी है। इसके बाद शुक्रवार सुबह 11 बजे उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात होनी है। पीएम मोदी से भेंट करने के बाद उनकी कल केंद्र सरकार के अन्य मंत्रियों तथा भाजपा के सांसदों से भी भेंट होनी है। वह कल 12:30 बजे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी भेंट कर सकते हैं। ��नका यह अचानक दिल्ली दौरा बड़ी आशंकाओं को भी जन्म देता है। ऐसे में कयास लगाना स्वाभाविक है। हालांकि अब पूरी स्थितियां तो उनकी मुलाक़ात और बैठकों के बाद ही साफ़ हो पाएंगी। आने वाले एक-दो दिन उत्तर प्रदेश में भाजपा राजनीति के लिए काफी अहम माने जा रहे हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ पीएम को देंगे रिपोर्ट
लखनऊ में बुधवार देर रात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह तथा संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ बैठक के बाद बनी रिपोर्ट को आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा आलाकमान को सौंपेंगे। इसके अलावा पिछले एक महीने से पंचायत चुनाव को लेकर आगे की रणनीति पर भी वह चर्चा करेंगे। अब भाजपा आलाकमान तय करेगा कि उत्तर प्रदेश सरकार और संगठन में किस तरीके के बदलाव होंगे। 2022 का विधानसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा और इसके अलावा पंचायत चुनाव के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में किस तरीके से भाजपा बेहतरीन फिनिश करें। सीएम योगी आदित्यनाथ की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से इन मुद्दों पर भी वार्ता होगी।
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kasooriinchina · 5 years ago
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क्या यूपी को इन तीन हिस्सों में तोड़ने वाली है सरकार? फ़ैक्ट चेक
सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के ज़िला मुख्यालयों की एक लिस्ट इस दावे के साथ शेयर की जा रही है कि 'सरकार ने यूपी के बंटवारे का मसौदा तैयार कर लिया है'.
इस लिस्ट के हवाले से फ़ेसबुक, ट्विटर और वॉट्सऐप के बहुत से यूज़र यह दावा कर रहे हैं कि 'यूपी को तीन राज्यों में बाँटा जाने वाला है. इनका नाम होगा उत्तर प्रदेश, बुंदेलखण्ड और पूर्वांचल. पहले की राजधानी लखनऊ, दूसरे की प्रयागराज और तीसरे की राजधानी गोरखपुर होगी.'
इस वायरल लिस्ट में यह भी दावा किया गया है कि यूपी के कुछ ज़िलों को उत्तराखण्ड, दिल्ली और हरियाणा में शामिल करने की योजना बनाई गई है और इसकी घोषणा जल्द ही की जाएगी.
इन दावों में कितनी सच्चाई है? यह जानने के लिए बीबीसी के तीन सौ से ज़्यादा पाठकों ने वॉट्सऐप के ज़रिये यह लिस्ट हमें भेजी है.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इस लिस्ट के बारे में हमने यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी के सूचना सलाहकार मृत्युंजय कुमार से बात की.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "उत्तर प्रदेश के बँटवारे की कोई योजना नहीं है. यूपी सरकार के सामने इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है. सोशल मीडिया पर इससे संबंधित जो भी ख़बरें घूम रही हैं, वो फ़र्ज़ी हैं. लोग ऐसी अफ़वाहों पर ध्यान ना दें."
वहीं भारत के गृह मंत्रालय की ओर से प्रेस से बात करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस बात से इनकार क���या कि 'यूपी के बँटवारे की कोई योजना' बनाई गई है.
उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार के सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है. सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही लिस्ट फ़र्ज़ी है."
उत्तर प्रदेश का एक बँटवारा 9 नवंबर 2000 को किया जा चुका है जिसके बाद भारत का 27वां राज्य उत्तराखण्ड बना था. इस राज्य में अब 13 ज़िले हैं.
लेकिन इसके बाद भी उत्तर प्रदेश के कुछ और टुकड़े करने की माँग समय-समय पर उठती रही है.
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख और यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यूपी को चार भागों में बाँटने का प्रस्ताव पास किया था.
मायावती सरकार ने 21 नवंबर 2011 को विधानसभा में भारी हंगामे के बीच बिना चर्चा यह प्रस्ताव पारित कर दिया था कि उत्तर प्रदेश का चार राज्यों: अवध प्रदेश, बुंदेलखण्ड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश में बँटवारा होना चाहिए.
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abhay121996-blog · 4 years ago
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क्या UP में ब्राह्मणों के छिटकने का डर से जितिन प्रसाद को लाई BJP? जानिए असली वजह Divya Sandesh
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क्या UP में ब्राह्मणों के छिटकने का डर से जितिन प्रसाद को लाई BJP? जानिए असली वजह
लखनऊ यूपी में विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है। इसी बीच अपने गृह क्षेत्र से लगातार तीन बार चुनाव हार चुके कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल हो गए। जेपी नड्डा, अमित शाह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक ने उनका आना बीजेपी की मजबूती के लिए अहम बताया है।
इसे यूपी में ब्राह्मण वोटों के छिटकने से रोकने की बीजेपी की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। हालांकि, यूपी की सियासत पर नजर रखने वालों का कहना है कि बीजेपी की ब्राह्मणों में पैठ अब भी मजबूत है। लेकिन वह संदेश की सियासत से जमीन और पुख्ता करने में लगी है।
यूपी में ब्राह्मण की हिस्सेदारी 9 से 11 फीसदी जातीय राजनीति की प्रयोगशाला माने जाने वाले यूपी में ब्राह्मणों की हिस्सेदारी 9 से 11 फीसदी तक बताई जाती है। राजनीतिक रूप से जागरूक होने के चलते संख्या से अधिक इनकी भूमिका परसेप्शन तैयार करने में है। 90 के दशक तक जब तक यूपी में कांग्रेस सत्ता में रही, अधिकतर मुख्यमंत्री और बड़े चेहरे यहां ब्राह्मण रहे। इसके बाद मंडल और कमंडल की राजनीति से करवट लेते सामाजिक समीकरणों ने पिछड़ा नेतृत्व की उर्वरा जमीन तैयार की।
इसमें उपजी एसपी रही हो यो बीएसपी, पार्टी में ब्राह्मणों की भागीदारी को लेकर सतर्क रही। वहीं बीजेपी में लगातार कई ब्राह्मण चेहरे चमके। कमजोर पड़ती बीजेपी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के सामाजिक समीकरणों को साधने की रणनीति से ब्राह्मण भी नई राजनीतिक संभावनाओं का हिस्सा बने।
2007 में मायावती के सतीश चंद्र मिश्र को आगे बढ़ाकर ब्राह्मणों को साधने की सोशल इंजिनियरिंग सत्ता का रास्ता बनी। हालांकि, 2014 में नरेंद्र मोदी के बीजेपी का चेहरा बनने, हिंदुत्व की राजनीति के उभार के बीच ब्राह्मण बीजेपी की ओर लौटे और अब तक उनका झुकाव काफी हद तक कायम है।
विपक्ष के आरोप पर भागीदारी के तर्क सीएम योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद विपक्ष ने उनको जातीय खांचे में बांधने की कोशिश की। आम आदमी पार्टी ने तो कुछ घटनाओं का हवाला देकर खुलेआम ‘ठाकुरवाद’ का आरोप लगाया। हालांकि, योगी की छवि पर ऐसे आरोप टिक ��हीं पाए। योजनाओं में हिस्सेदारी और सत्ता में भागीदारी गिना बीजेपी इन आरोपों को धता बताती रही है। सरकार में 9 मंत्री ब्राह्मण हैं तो प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी से लेकर गृह सचिव तक के अहम पदों पर ब्राह्मण बैठे हैं।
राम बनाम परशुराम से ‘बेअसर’ जनता पिछले साल जुलाई में विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद एक तबके में उठी चर्चाओं में विपक्ष भी ब्राह्मणों को साधने की जमीन तलाशने लगा। एसपी ने महर्षि परशुराम और स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय की मूर्तियां लगाने की घोषणा की। इसे राम की सियासत का ‘एनकाउंटर’ माना गया। इस अभियान में बीएसपी प्रमुख मायावती भी कूद पड़ी। उन्होंने पहले सरकार को ब्राह्मणों की उपेक्षा न करने की नसीहत दी और कहा कि सत्ता में आने के बाद वह परशुराम की मूर्तियां लगवाएंगी।
कांग्रेस में जितिन प्रसाद की अगुवाई में ब्राह्मण चेतना परिषद बनी। हालांकि, अक्टूबर-नवंबर में हुए उपचुनावों में विपक्ष की कवायद और आरोप दोनों बेअसर दिखे। बीजेपी ने 7 में 6 सीटें जीतीं। इसमें ब्राह्मणों के प्रभाव वाली देवरिया और बांगरमऊ सीट भी शामिल है। जबकि, बांगरमऊ में कांग्रेस ने प्रभावशाली ब्राह्मण परिवाार का चेहरा उतारा था। देवरिया में सपा ने पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया था। दांव फेल रहा।
चिंता नहीं सजगता की ओर बीजेपी तीन दशक से यूपी की सियासत देख रहे वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल कहते हैं कि सत्ता के साथ जातिवाद का आरोप नया नहीं है। लेकिन उसे वास्तविकता के जमीन पर नापना होगा। ब्राह्मण अभी भी बीजेपी के साथ हैं और दूसरे दलों ने उन्हें जोड़ने की कोई ठोस पहल भी नहीं की है। जबकि, बीजेपी सजगता से समीकरण साधने के संदेश भी देती रहती है।
जितिन प्रसाद ब्राह्मण सियासत से अधिक राहुल गांधी पर हमले के हथियार हैं। बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष और एमएलसी विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल को शाश्वत रहने और जनाधार बढ़ाने के लिए पुराने के साथ नयों को जोड़ना जरूरी है। सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास बीजेपी की नीति है। इसमें ब्राह्मण भी समाहित है। उनको भी साथ बनाए रखना और जोड़ते रहना है।
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abhay121996-blog · 4 years ago
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क्या UP में ब्राह्मणों के छिटकने का डर से जितिन प्रसाद को लाई BJP? जानिए असली वजह Divya Sandesh
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क्या UP में ब्राह्मणों के छिटकने का डर से जितिन प्रसाद को लाई BJP? जानिए असली वजह
लखनऊ यूपी में विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है। इसी बीच अपने गृह क्षेत्र से लगातार तीन बार चुनाव हार चुके कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल हो गए। जेपी नड्डा, अमित शाह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक ने उनका आना बीजेपी की मजबूती के लिए अहम बताया है।
इसे यूपी में ब्राह्मण वोटों के छिटकने से रोकने की बीजेपी की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। हालांकि, यूपी की सियासत पर नजर रखने वालों का कहना है कि बीजेपी की ब्राह्मणों में पैठ अब भी मजबूत है। लेकिन वह संदेश की सियासत से जमीन और पुख्ता करने में लगी है।
यूपी में ब्राह्मण की हिस्सेदारी 9 से 11 फीसदी जातीय राजनीति की प्रयोगशाला माने जाने वाले यूपी में ब्राह्मणों की हिस्सेदारी 9 से 11 फीसदी तक बताई जाती है। राजनीतिक रूप से जागरूक होने के चलते संख्या से अधिक इनकी भूमिका परसेप्शन तैयार करने में है। 90 के दशक तक जब तक यूपी में कांग्रेस सत्ता में रही, अधिकतर मुख्यमंत्री और बड़े चेहरे यहां ब्राह्मण रहे। इसके बाद मंडल और कमंडल की राजनीति से करवट लेते सामाजिक समीकरणों ने पिछड़ा नेतृत्व की उर्वरा जमीन तैयार की।
इसमें उपजी एसपी रही हो यो बीएसपी, पार्टी में ब्राह्मणों की भागीदारी को लेकर सतर्क रही। वहीं बीजेपी में लगातार कई ब्राह्मण चेहरे चमके। कमजोर पड़ती बीजेपी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के सामाजिक समीकरणों को साधने की रणनीति से ब्राह्मण भी नई राजनीतिक संभावनाओं का हिस्सा बने।
2007 में मायावती के सतीश चंद्र मिश्र को आगे बढ़ाकर ब्राह्मणों को साधने की सोशल इंजिनियरिंग सत्ता का रास्ता बनी। हालांकि, 2014 में नरेंद्र मोदी के बीजेपी का चेहरा बनने, हिंदुत्व की राजनीति के उभार के बीच ब्राह्मण बीजेपी की ओर लौटे और अब तक उनका झुकाव काफी हद तक कायम है।
विपक्ष के आरोप पर भागीदारी के तर्क सीएम योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद विपक्ष ने उनको जातीय खांचे में बांधने की कोशिश की। आम आदमी पार्टी ने तो कुछ घटनाओं का हवाला देकर खुलेआम ‘ठाकुरवाद’ का आरोप लगाया। हालांकि, योगी की छवि पर ऐसे आरोप टिक नहीं पाए। योजनाओं में हिस्सेदारी और सत्ता में भागीदारी गिना बीजेपी इन आरोपों को धता बताती रही है। सरकार में 9 मंत्री ब्राह्मण हैं तो प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी से लेकर गृह सचिव तक के अहम पदों पर ब्राह्मण बैठे हैं।
राम बनाम परशुराम से ‘बेअसर’ जनता पिछले साल जुलाई में विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद एक तबके में उठी चर्चाओं में विपक्ष भी ब्राह्मणों को साधने की जमीन तलाशने लगा। एसपी ने महर्षि परशुराम और स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय की मूर्तियां लगाने की घोषणा की। इसे राम की सियासत का ‘एनकाउंटर’ माना गया। इस अभियान में बीएसपी प्रमुख मायावती भी कूद पड़ी। उन्होंने पहले सरकार को ब्राह्मणों की उपेक्षा न करने की नसीहत दी और कहा कि सत्ता में आने के बाद वह परशुराम की मूर्तियां लगवाएंगी।
कांग्रेस में जितिन प्रसाद की अगुवाई में ब्राह्मण चेतना परिषद बनी। हालांकि, अक्टूबर-नवंबर में हुए उपचुनावों में विपक्ष की कवायद और आरोप दोनों बेअसर दिखे। बीजेपी ने 7 में 6 सीटें जीतीं। इसमें ब्राह्मणों के प्रभाव वाली देवरिया और बांगरमऊ सीट भी शामिल है। जबकि, बांगरमऊ में कांग्रेस ने प्रभावशाली ब्राह्मण परिवाार का चेहरा उतारा था। देवरिया में सपा ने पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया था। दांव फेल रहा।
चिंता नहीं सजगता की ओर बीजेपी तीन दशक से यूपी की सियासत देख रहे वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल कहते हैं कि सत्ता के साथ जातिवाद का आरोप नया नहीं है। लेकिन उसे वास्तविकता के जमीन पर नापना होगा। ब्राह्मण अभी भी बीजेपी के साथ हैं और दूसरे दलों ने उन्हें जोड़ने की कोई ठोस पहल भी नहीं की है। जबकि, बीजेपी सजगता से समीकरण साधने के संदेश भी देती रहती है।
जितिन प्रसाद ब्राह्मण सियासत से अधिक राहुल गांधी पर हमले के हथियार हैं। बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष और एमएलसी विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल को शाश्वत रहने और जनाधार बढ़ाने के लिए पुराने के साथ नयों को जोड़ना जरूरी है। सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास बीजेपी की नीति है। इसमें ब्राह्मण भी समाहित है। उनको भी साथ बनाए रखना और जोड़ते रहना है।
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