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#मुख्य कार्यपालिका का कार्य क्या है?
readspot · 5 months
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Chapter 4: कार्यपालिका (Executive)
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laweducation · 11 months
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सशर्त विधायन क्या है? सशर्त विधायन एवं प्रत्यायोजित विधायन में मुख्य अंतर
सशर्त विधायन (delegated legislation) - सशर्त विधायन एक ऐसा विधायन है जिसे सम्पूर्ण से पारित तो विधायिका द्वारा किया जाता है लेकिन उसका क्रियान्वयन कार्यपालिका अर्थात् प्रशासन पर छोड़ दिया जाता है। प्रशासन को ही यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी विधि-विशेष को - (i) कब लागू किया जाये, और (ii) उसका विस्तार क्या हो। आसान शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अधिनियम में उन परिस्थितियों का उल्लेख कर दिया जाता है जिनमें उसे लागू किया जाना होता है और जब ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है तब अधिनियम के लागू होने की तिथि की घोषणा कर दी जाती है, इस प्रक्रिया को हम संक्षेप में सशर्त विधायन (Conditional legislation) कह सकते है। केस - जागृति बनाम स्टेट (ए.आई.आर. 1994 आन्ध्र प्रदेश 225) इस प्रकरण में आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि वर्तमान समय में सामान्यतः किसी अधिनियम को लागू करने की तिथि सुनिश्चित करने का कार्य शासन-प्रशासन के जिम्मे छोड़ दिया जाता है। शासन-प्रशासन को ही यह देखना होता है कि क्या अधिनियम को लागू किये जाने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई है। उसे प्रयोज्यता की अवधि में वृद्धि करने का भी अधिकार होता है। इसे सशर्त विधायन कहा जाता है। ऐसे विधायन को अत्यधिक प्रत्यायोजन का मामला मानकर निरस्त नहीं किया जा सकता है। सशर्त विधायन में विधियों का निर्माण पूर्णरूपेण विधानमण्डल द्वारा किया जाता है, केवल उसका प्रवर्तन किसी शर्त के पूरा होने पर शासन प्रशासन पर छोड़ दिया जाता है। शर्तों की पूर्ति का समाधान बाहरी शक्ति अर्थात् शासन प्रशासन को ही करना होता है। सशर्त विधायन एवं प्रत्यायोजन विधायन में अन्तर - (i) सशर्त विधायन में कार्यपालिका की विवेकाधीन शक्तियाँ अत्यन्त कम होती है। इसमें विधियों का निर्माण विधायिका द्वारा ही किया जाता है लेकिन कार्यपालिका को केवल प्रवर्तन की तिथि एवं क्षेत्र सुनिश्चित करने का विवेकाधिकार प्रदान किया जाता है। जबकि प्रत्यायोजित विधायन में कार्यपालिका को विस्तृत शक्तियाँ प्रदान की जाती है। (ii) सशर्त विधायन में कार्यपालिका को तथ्यान्वेषण के द्वारा उन परिस्थितियों का पता लगाना होता है, जिनमें किसी विधि को लागू किया जाना है, इससे अधिक और कुछ करने का विवेकाधिकार कार्यपालिका को नहीं होता है। जबकि प्रत्यायोजित विधायन में कार्यपालिका को इस बात का विवेकाधिकार होता है कि उसके द्वारा विवेक शक्ति का प्रयोग किया जाये या नहीं। (iii) सशर्त विधायन में विधि का निर्माण पूर्णरूपेण विधायिका द्वारा किया जाता है, कार्यपालिका पर केवल कतिपय शर्तों की पूर्ति कर उसके क्रियान्वयन का कर्त्तव्य अधिरोपित किया जाता है। जबकि प्रत्यायोजित विधायन में प्रत्यायोजित किया हुआ अधिकारी विधियों में निर्धारित सीमा में कमियों की पूर्ति कर सकता है।
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theyourclasses · 4 years
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Prime Minister of India in Hindi/English For Competitive Exam 2020-21
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Prime Minister of India in Hindi/English For Competitive Exam 2020-21
Prime Ministers of India 2020:- 
  When you give any exams either it is state level or national level questions related to the prime minister are most frequently asked in the examination.
On yourclasses, by taking digi books and online test you can get all the important facts as discussed below 
So let’s start —->
What most important things asked in the examination 
First is an article related to the prime minister that is article 74,75 & 78
Examiners usually confuse you with other articles so first note down these articles.
Other than this they also ask duties of the prime minister which is usually related to working, management and all the chief offices related to the prime minister 
When you have to write answer then these facts will be highly important for you with correct data 
Let’s take an example Narendra Modi is the 14th prime minister elected in 2014. Now to get some qualitative points about Narendra Modi, So we need to have a common understanding of prime minister and how it is different from other heads of government as president and king and queen.
Every country needs ahead to control and regulate the internal and external affairs of the country. They are usually chosen either directly by the people or through indirect election or in hereditary they get this known as a monarchy.
In India, there are 2 types of the head in India  
Prime minister is head of the executive in the central government chosen by the people and elected by direct election. 
Other is the president elected indirectly by people.
Current prime minister Narendra Modi is elected by the majority of the population.
Prime minister is the real head of executive who controls all the council of minister And state-level minister.
Modi became chief minister of Gujarat after keshubhai Patel then chief minister was downsized due to corruption and poor image in public .in this way he became a chief minister by chance.
But destiny needs something else from him, therefore, Gujarat riots 202 right after he became chief minister of Gujarat leads to downgrading his image in public as Hindu leader. but Modi kept on fighting with image issues throughout his life and gave respect to his position through his hard work and dedication.
Modi won in 2014 with the largest majority ever and done landmark job 
By giving hi party and nation a different image and face in front of the world.
He started various schemes such as Swachh Bharat Abhiyan for cleanliness drive in the whole country while Jan Dhan yojana to make availability of bank accounts for poor people and provide pension under Atal pension yojana.
Modi became more popular after demonetization in which he prohibited 1000 and 500 rupees notes from circulation to curb black money from the system and end path of terrorism inside and outside nation such as Pakistan and Bangladesh 
He started man ki bat on radio o directly connect with people of the nation.
Next time when you will come u can know about the fascinating life of other prime ministers.
Till then study hard and learn with  yourclasses.!!!!
भारत के प्रधान मंत्री 2020: –
जब कोई भी परीक्षा देता है तो वह राज्य स्तर की होती है या प्रधानमंत्री से संबंधित राष्ट्रीय स्तर के प्रश्न परीक्षा में सबसे अधिक पूछे जाते हैं।
योरक्लास्सेस पर, डिजी पुस्तकें और ऑनलाइन टेस्ट लेने से आप सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को प्राप्त कर सकते हैं जैसा कि नीचे चर्चा की गई है
तो चलिए शुरू करते हैं —->
परीक्षा में सबसे महत्वपूर्ण बात क्या पूछी जाती है ??
पहले प्रधान मंत्री से संबंधित एक लेख है जो कि लेख &४, 78५ और to to है
इसके अलावा वे प्रधान मंत्री के कर्तव्यों के बारे में भी पूछते हैं जो आमतौर पर काम करने, प्रबंधन और प्रधानमंत्री से संबंधित सभी मुख्य कार्यालयों से संबंधित होते हैं
जब आपको उत्तर लिखना होता है तो ये तथ्य आपके लिए सही डेटा के साथ अत्यधिक महत्वपूर्ण होंगे
आइए एक उदाहरण लेते हैं कि नरेंद्र मोदी 2014 में चुने गए 14 वें प्रधान मंत्री हैं। अब नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ गुणात्मक बिंदुओं को प्राप्त करना है, इसलिए हमें प्रधान मंत्री की आम समझ होने की आवश्यकता है और यह कैसे राष्ट्रपति और राजा के रूप में सरकार के अन्य प्रमुखों से अलग है ।
हर देश को देश के आंतरिक और बाहरी मामलों को नियंत्रित और नियंत्रित करने के लिए आगे की आवश्यकता है। वे आमतौर पर या तो सीधे लोगों द्वारा या अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से या वंशानुगत में चुने जाते हैं, उन्हें यह राजशाही कहा जाता है।
भारत में, भारत में 2 प्रकार के प्रमुख हैं
प्रधानमंत्री लोगों द्वारा चुनी गई केंद्र सरकार में कार्यकारी का प्रमुख होता है और प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना जाता है।
अन्य लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है।
वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बहुमत से चुने गए हैं।
प्रधानमंत्री कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है जो सभी मंत्री और राज्य स्तरीय मंत्री परिषद को नियंत्रित करता है।
वडनगर में एक गुजराती परिवार में रहते हुए, मोदी ने अपने पिता को एक बच्चे के रूप में चाय बेचने में मदद की और कहा कि उन्होंने बाद में अपनी मंदी छोड़ी।
वह संघ के साथ एक लंबे रिश्ते की शुरुआत करते हुए, आठ साल की उम्र में आरएसएस से परिचित हो गए थे।
नरेंद्र ने जसोदाबेन के साथ अपनी शादी के बाद घर छोड़ दिया, ताकि समाज के लिए और अधिक लाभ उठाया जा सके और उन सूचनाओं को उठाया जा सके जिन्हें कई दशकों बाद पहचाना गया था।
मोदी ने लंबे समय तक भारत का दौरा किया और गुजरात वापस आने से पहले विभिन्न सख्त फ़ोकस का दौरा किया। 1971 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए एक पूरे दिन के विशेषज्ञ बन गए। 1975 में अत्यधिक संवेदनशील स्थिति में जिसने देश को मजबूर किया, मोदी को शरण लेनी पड़ी। आरएसएस ने उन्हें 1985 में भाजपा में आने की अनुमति दी और उन्होंने 2001 तक महासम्मेलन की स्थिति में रहते हुए पेकिंग ऑर्डर के अंदर कुछ स्थितियों को रखा।
मोदी को 2001 में केशुभाई पटेल की बम विस्फोट भलाई और ���ुज में भूकंप के बाद खराब खुली तस्वीर के कारण गुजरात का मुख्यमंत्री चुना गया था। मोदी को अधिकारिक सभा के लिए बहुत पहले चुना गया था। उनके संगठन को 2002 के गुजरात दंगों या इसके इलाज के लिए किसी भी मामले में जांच के लिए जटिल माना गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा चयनित विशेष जांच दल को मोदी के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से विरोधाभासी प्रक्रिया शुरू करने का कोई सबूत नहीं मिला। बॉस के पादरी के रूप में उनकी व्यवस्था, मौद्रिक विकास को सशक्त बनाने का श्रेय दिया जाता है, जिसने प्रशंसा प्राप्त की है। उनके संगठन को राज्य में भलाई, विनाश और प्रशिक्षण सूचियों में मौलिक रूप से सुधार करने की उपेक्षा के लिए फटकार लगाई गई है।
मोदी ने 2014 की आम राजनीतिक दौड़ में भाजपा को पीछे छोड़ दिया जिसने भारतीय संसद के निचले स्थान, लोकसभा में एक बड़ा हिस्सा दिया, 1984 के बाद से किसी भी एक सभा के लिए पहला रन-थ्रू। मोदी के संगठन ने सीधे प्रत्यक्ष अटकलों को बाहर लाने का प्रयास किया है भारतीय अर्थव्यवस्था में और औषधीय सेवाओं और सामाजिक सरकारी सहायता कार्यक्रमों पर खर्च में कमी। मोदी ने संगठन में उत्पादकता में सुधार करने का प्रयास किया है; उन्होंने योजना आयोग की घोषणा करके बल पर ध्यान केंद्रित किया और NITI अयोग की स्थापना की। उन्होंने एक प्रमुख स्वच्छता लड़ाई शुरू की और पारिस्थितिक और कार्य कानूनों को दुर्बल या रद्द कर दिया। उन्होंने उच्च-स्तरीय बैंकनोटों का एक संदिग्ध प्रदर्शन शुरू किया।
अब तक हम एक प्रधानमंत्री के बारे में जान चुके हैं।
अगली बार जब आप आएंगे तो आप दूसरे प्रधानमंत्री के आकर्षक जीवन के बारे में जान सकते हैं।
तब तक मेहनत से पढ़ाई करो और यौरक्लास्सेस  के साथ सीखो। !!!!
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jodhpurnews24 · 6 years
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धर्मनिरपेक्षता बनाम हिन्दुज्म – एक संघर्ष
उदय चे
भारत के संविधान की प्रस्तावना कहती है कि “हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता
ये शब्द सिर्फ शब्द नही है। इन शब्दों का बहुत व्यापक अर्थ है। इन शब्दों को संविधान में शामिल करने के लिए बहुत संघर्ष हुआ है। संघर्ष की एक तरफ जहां इन शब्दों को सविधान में शामिल करने के लिए मजदूर, किसान, महिला, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, प्रगतिशील बुद्विजीवी, कलाकार, लेखकखड़े थे वही दूसरी तरफ इनके खिलाफ, सामन्तवादी, राजशाही के समर्थक, फासीवादी, हिंदुत्वादी, जातिवादी खड़े थे।
जीत धर्मनिरपेक्ष मेहनतकश आवाम की हुई क्योंकि इस आवाम ने ही गुलामी कीजंजीरे तोड़ने के लिए कुर्बानियां दी थी। देश के इस आवाम का आजादी का सपना सिर्फ अंग्रेजो से आजादी ही नही था, सामन्तवादऔऱ राजशाही जिनका आधार ही जातीय औऱधार्मिक शोषण पर टिका था, से भी आजादी का सपना था। उसी सपने औऱ संघर्ष की कुछ झलकसंविधान में इन शब्दों में निहित है।
लेकिन क्या जमीनी स्तर परभारत का संविधान काम कर रहा है?
क्या देश इतने सालों बाद भी लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्ष राज्य बन पाया है?क्या संविधान में निहित विचार, अभिव्यक्ति, धर्म की उपासना को लागू कर पाया है?
भारत के संविधान को लागू करवाने वाली शक्तियां भारत के सविधान को लागू करने में जानबूझकर फैल हुई। क्यों?
संविधान के लागू होने से अब तक जितनी भी सरकारे सत्ता परकाबिज रही उन सभी ने संविधान के खिलाफ गैरजिम्मेदारानाव्यवहार अपनाया। इन सभी सरकारों ने हिन्दुज्म के नाम पर साम्प्रदायिक राजनीति करने वालो औऱ उनके संघठनो के आगे घुटने टेके है। इन सभी ने समय-समय पर अल्पसंख्यको के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे करवाये।
2014 में हिन्दुज्म के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी जब से सत्ता में आई है तब से ही पूरे देश मे मुस्लिमो, दलितों, आदिवासियों, बुद्विजीवियों, कलाकारों, लेखकों पर हमलों की बाढ़ सी आ गयी है। इनके खिलाफ सत्ता द्वारा प्रायोजित युद्ध चल रहा है। गाय के नाम पर मुस्लिमो की हत्या, छात्रों, पत्रकारो, लेखकों व लेखिका गौरी लंकेश की हत्या, स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमला करने के बाद,
ताजा घटना हरियाणा के टिटौली गांव की है, जो रोहतक जिले में है। गांव पंचायत द्वारा मुस्लिम धर्म को मानने वालों के खिलाफ जो 4 दिन पहले फरमान सुनाया गया है को देखकर तो नही लगता कि भारत का सविधान काम कर रहा है।
भारत के मुख्य न्यूज पेपर पंचायत के इस फरमान को अपने पेपर केपहले पन्ने पर जगह देते है। लेकिन भारत के सविधान के खिलाफ फरमान सुनाने वाली इस पंचायत के खिलाफ भारत की कार्य पालिका चुप है, न्याय पालिका चुप है, हरियाणा और केंद्र की सरकार जो संघी विचार से चलती है चुप है। इससे पहले भी गाय के नाम परभीड़ द्वारा की गई हत्याओं पर ये सब चुप रहे है।
संघ सर संचालक जो 4 दिन पहले ही हिंदुइज्म की व्याख्या करते हुए बोल रहे थे कि हिंदुइज्म में मुस्लिम न हो तो वो हिंदुइज्म ही नही है।
“इनके हिन्दुज्म में मुश्लिम तो होंगे लेकिन वो मुस्लिम नही रहेंगे।“
उनका हिन्दुज्म ये ही है कि मुस्लिम अगर भारत मे रहे तो उनको अपनेधर्म के रीति रिवाज, उपासना छोड़ कर हिन्दू रीति-रिवाज औऱ उपासना माननी पड़ेगी।
सर संचालक ने अपने सम्बोधन में डॉ अंबेडकर और भारत के सविधान की बहुत सराहना की है। लेकिन जमीनी सच्चाई क्या है ये टिटौली गांव की घटना से साफ दिख रही है।
“हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और“
      हरियाणा के टिटौली गांव में 22 अगस्त को बकरीद के दिन एक गाय ने बच्ची को टक्कर मार दी, बच्ची के चाचा यामीन ने गाय को डंडे से मारा। डंडे लगने से गाय की मौत हो गयी। मरी हुई गाय को जब बच्ची का चाचा व परिवार के लोग गांव के बाहर दफनाने जा रहे थे तो गांव के शरारती तत्वों ने गांव में अफवाह फैला दी कि ईद के दिन गांव के मुस्लिम गाय काटने के लिए गाय को मार कर गांव की बणी में ले गए है।
पूरे मामले की सच्चाई जाने बिना गांव में भीड़ इकट्ठा हो गयी और इस भीड़ ने मुस्लिम परिवारों के घर मे तोड़फोड़ व मारपीट की, गाय मारने के आरोपित व्यक्तियों को पोलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद भी भीड़ का तांडव नही रुका, भीड़ ने गाय को जबरदस्ती मुस्लिमो के कब्रिस्तान में दफनाया।
बहुत से परिवार डर के मारे गांव से पलायन कर गए। उसके बाद से ही गांव में गऊरक्षा के नाम पर तांडव करने वाले गुंडा टोल जो पूरे देश मे सक्रिय है, जिनको संघी सरकारों व विपक्ष का खुला समर्थन है। जो बहुत जगह भीड़ का सहारा लेकर मुस्लिमो को मार चुके हैये सब टिटौली गांव में भी सक्रिय हो गए। इनके प्रयासों से ही गांव में एक पँचायत का आयोजन होता है। पंचायत ये फरमान सुनाती है कि
आरोपित व्यक्ति को गांव से आजीवन बाहर किया जाता है।
गांव के मुस्लिम नमाज नही पढ़ेगेऔऱ न ही बाहर से कोई मुल्ला गांव में इनके धार्मिक रीति-रिवाज में नमाज पढ़ने आएगा।
गांव के मुस्लिम अपने बच्चों के नाम अरबी या उर्दू भाषा के नाम नही रखेंगे।
मुस्लिमो के कब्रिस्तान की जगह को बदल कर गांव से बाहर कोई अन्य जगह दी जाएगी।
कोई भी मुस्लिम दाढ़ी व टोपी नही रखेगा।
क्या ये फरमान भारत के सविधान की मूल प्रस्तावना –
“भारत का सविधान हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी धर्म का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो कानून की नजर में बराबर होते हैं।“के खिलाफ नही है?
लेकिन संविधान की कसम खाने वाले विधायक, सांसद, जज, कर्मचारी इस फरमान के खिलाफ चुप है। क्यों?
“हम भारत के लोग” वाक्य से शुरू होने वाले सविधान के हम भारत के लोग चुप है। क्यों?
इसका सीधा और सरल उत्तर है कि कार्यपालिका, न्याय पालिका औऱ भारत की सत्ता पर बैठे ये सभी बहुसंख्यक हिन्दू है ये अपनी लूट को जारी रखने के लिए, असमानता पर आधारित धर्म के नियम-कायदों से देश को चलाना चाहते है। ये मनुस्मृति से देश को चलाना चाहते है।
इनके हिन्दुज्म में दलित, मुस्लिम, आदिवासी, महिला, मजदूर, किसान दोयम दर्जे का नागरिक होगा। इन सबको कोई सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक अधिकार नही होंगे।
देश का मेहनतकश अपने जनाधिकारों के लिए न लड़े,अपने क्रांतिकारी पूर्वजो द्वारा जोड़ी गयी सार्वजनिक सम्पति को लुटेरे पूंजीपति से बचाने के लिए न लड़े,जल-जंगल-जमीनके लिए न लड़े, अपने बच्चों के भविष्य के लिए आवाज न उठाये,जिनको पूंजीपति गुलामी की बेड़िया पहनाना चाहता है। इन लड़ाई से आपका ध्यान भटकाने के लिए आपको धर्म-जात-गोत्र-इलाका के नाम पर बांट कर खूनी भीड़ का हिस्सा बनाया जा रहा है।
आज जो हमको इन धार्मिक आतंकवादियों द्वारा धर्म का नशा करवाकर, धर्म का चश्मा पहनाकर जो कातिलों की भीड़ में शामिल किया जा रहा है।
आप आज जो मुस्लिमो का कत्लेआम कर रहे होया भीड़ के कृत्यों पर खामोश हो। भीड़ का हिस्सा बन जो आप हुंआ-हुंआ कर खुशी का उन्माद कर रहे हो। ये मानवता के खात्मे की तरफ बढ़ रहे हो।
आने वाले दिनों में ऐसी ही भीड़ आपके व आपके बच्चों के खिलाफ खड़ी मिलेगी आपका खून पीने के लिए, जब आप खड़े होंगे, मजदूर-किसान, दलित, आदिवासी के ��ूप में अपने अधिकारों के लिए।
उदय चे
उस समय तक सायद ही ये सविधान के मानवतावादी शब्द भी आपके लिए न बचे। इसलिए आप सबको फैसला करना है कि आपके पूर्वजो की लाखों कुर्बानियों के बाद बने धर्मनिरपेक्ष संविधान को बचाना औऱ उसको लागू करवाने के लिए भीड़ का हिस्सा बनने की बजाए ऐसी भीड़ का विरोध करोगे या फिर हिन्दुज्म के जाल में फंस कर दोबारा गुलामी की बेड़ियों में खुद जकड़ जाओगे।
(ये लेखक के निजी विचार है। उपरोक्त विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं।)
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source http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/26281/
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laweducation · 11 months
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प्रशासनिक कानून के तहत प्रत्यायोजित विधान से आप क्या समझते हैं?
प्रत्यायोजित विधायन प्रत्यायोजित विधायन विधि निर्माण की महत्त्वपूर्ण अवधारणा है। वस्तुतः विधि-निर्माण का मुख्य रूप से कार्य विधायिका का है। लेकिन लोक कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलने के कारण विधि-निर्माण के कार्य में आशातीत अभिवृद्धि हुई है। आज के समय में विधायिका के पास इतना समय नहीं है कि, वह स्वयं ही सभी विधियों, उप विधियों, नियमों, विनियमों आदि का निर्माण कर लेवें। इस कारण वह मोटे तौर पर सिद्धान्तों एवं नीतियों को समाहित करने वाली विधियों का ही निर्माण करती है और शेष कार्य कार्यपालिका या प्रशासनिक अधिकारियों पर छोड़ देती है, जिस कार्य को 'प्रत्यायोजित विधायन' कहा जाता है। प्रत्यायोजित विधायन की एक सार्वभौम परिभाषा दिया जाना कठिन है, क्योंकि प्रत्यायोजित विधायन की परिभाषा को दो रूपों या अर्थों में देखा जा सकता है – एक प्रत्यायोजन की परिभाषा एवं दूसरी प्रत्यायोजित विधायन की परिभाषा। प्रत्यायोजन की परिभाषा – किसी शक्ति को एक निकाय द्वारा दूसरे निकाय को सौंपा जाना है। इसमें अवशेषित शक्तियाँ अर्थात् प्रतिसंहरण एवं संशोधन की शक्तियाँ प्रत्यायोजक के पास ही सुरक्षित रहती है।प्रत्यायोजित विधायन की परिभाषा – विधान मण्डलों द्वारा विधायी शक्तियों का कार्यकारिणी को प्रत्यायोजित किया जाना ही, प्रत्यायोजित विधायन है। आसान शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कुछ विवशताओं के अधीन विधायिका द्वारा विधायी कार्यों को कार्यपालिका के हाथों में सौंप देना, प्रत्यायोजित विधायन है।भारत में प्रत्यायोजित विधायन​ -भारत के संविधान के अनुच्छेद 245 एवं 246 में संसद एवं राज्य विधानमण्डलों की शक्तियों का उल्लेख किया गया है लेकिन इन दोनों अनुच्छेदों में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकें कि विधायिका द्वारा विधायी शक्तियों का प्रत्यायोजन नहीं किया जा सकता है। संविधान में ऐसे अनेक उपबन्ध है जो कार्यपालिका को विधायी निर्माण की शक्तियाँ प्रदान करते है,भारत में प्रत्यायोजित विधायन के विकास के तत्व -भारत में प्रत्यायोजित विधायन के उद्भव एवं विकास के अनेक कारण रहे है या ऐसा कहा जा सकता है कि इसके विकास में अनेक सहयोगी तत्वों की भागीदारी रही है, जिनमे प्रमुख तत्व निम्न है - (i) समय का अभाव, (ii) विषय-वस्तु का तकनीकीपन, (iii) लचीलापन,  (iv) आपात स्थिति, (v) स्थानीय एवं क्षेत्रीय विषय, (vi) प्रयोगात्मक कृत्यों का सम्पादन, (vii) विवेकाधीन विषय
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