#मगर
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झूम करून बघा या किचकट चित्रात एक मगर लपलीये, सोडवा हे कोडं!
झूम करून बघा या किचकट चित्रात एक मगर लपलीये, सोडवा हे कोडं!
झूम करून बघा या किचकट चित्रात एक मगर लपलीये, सोडवा हे कोडं! आपले डोळे तीक्ष्ण ठेवण्याचा ऑप्टिकल भ्रम हाएक मजेदार मार्ग आहे. हे भ्रम फोटो, पेंटिंग्ज किंवा स्केचेसच्या कोणत्याही स्वरूपात असू शकतात. काही ऑप्टिकल भ्रम आपले लपलेले व्यक्तिमत्त्वही सांगू शकतात, तर काही आपले निरीक्षण कौशल्य आणि बुद्ध्यांकाची परीक्षा घेतात. तसे पाहिले तर अशी चित्रे वाटते तितकी सोपी नसतात. किंवा या चित्रांमध्ये दिलेल्या…
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#परमात्मा पाना कति आशान है मगर सत भक्ति न मिलने से लोगो को पता ही नहीं भगवान कौन है।#संत रामपाल जी महाराज
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माना इश्क़ जबरदस्ती नहीं होती, मगर ये कमबख्त होता जबरदस्त हैं।
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‘पत्रकारिता क्षेत्र निष्पक्ष हुनुपर्छ’ : अध्यक्ष मगर
‘पत्रकारिता क्षेत्र निष्पक्ष हुनुपर्छ’ : अध्यक्ष मगर
काठमाडौँ, ४ पुस । राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोगका अध्यक्ष तपबहादुर मगरले पत्रकार आचारसंहिताको अक्षरस पालना गर्न पत्रकारिता क्षेत्रलाई आग्रह गर्नुभएको छ । उहाँले पत्रकारिता निष्पक्ष, सन्तुलित र सकारात्मक हुनुपर्नेमा जोड दिनुभयो । काठमाडौँ विश्वविद्यालयले आज यहाँ आयोजना गरेको आम सञ्चार माध्यममा आचारसंहितासम्बन्धी सम्मेलनमा उहाँले भन्नुभयो, “कुनै पनि विषयमा स्पष्ट जानकारी नभई समाचार बनाउँदा त्यसको…
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लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
💗🧿
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एक शादी शुदा स्त्री , जब किसी पुरूष से मिलती है ... उसे जाने अनजाने में अपना दोस्त बनाती है .... तो वो जानती है की न तो वो उसकी हो सकती है .... और न ही वो उसका हो सकता है .... वो उसे पा भी नही सकती और खोना भी नही चाहती .. फिर भी वह इस रिश्ते को वो अपने मन की चुनी डोर से बांध लेती है .... तो क्या वो इस समाज के नियमो को नही मानती ? क्या वो अपने सीमा की दहलीज को नही जानती ? जी नहीं .... !! वो समाज के नियमो को भी मानती है .... और अपने सीमा की दहलीज को भी जानती है ... मगर कुछ पल के लिए वो अपनी जिम्मेदारी भूल जाना चाहती है ... !! कुछ खट्टा ... कुछ मीठा .... आपस मे बांटना चाहती है .. जो शायद कही और किसी के पास नही बांटा जा सकता है .वो उस शख्स से कुछ एहसास बांटना चाहती है ... जो उसके मन के भीतर ही रह गए है कई सालों से ... थोडा हँसना चाहती है . खिलखिलाना चाहती हैं ... वो चाहती है की कोई उसे भी समझे बिन कहे ... सारा दिन सबकी फिक्र करने वाली स्त्री चाहती है की कोई उसकी भी फिक्र करे ... वो बस अपने मन की बात कहना चाहती है ... जो रिश्तो और जिम्मेदारी की डोर से आजाद हो ... कुछ पल बिताना चाहती है ... जिसमे न दूध उबलने की फिक्र हो , न राशन का जिक्र हो .... न EMI की कोई तारीख हो .... आज क्या बनाना है , ना इसकी कोई तैयारी हो .... बस कुछ ऐसे ही मन की दो बातें करना चाहती है .... कभी उल्टी सीधी , बिना सर पैर की बाते ... तो कभी छोटी सी हंसी और कुछ पल की खुशी ... बस इतना ही तो चाहती है .... आज शायद हर कोई इस रिश्ते से मुक्त एक दोस्त ढूंढता है .. .. जो जिम्मेदारी से मुक्त हो ... ,
एक सुहागन औरत की रणभूमि उसके सुहाग का बिस्तर होता है,
जहा वो हर जीत को भूल बस अपने यद्ध कला का भरपूर प्रदर्शन करती,🔥🔥🔥🔥
अपने यौवन के तीर को कामुकता भरे अंदाज में प्रहार करती है,🔥🔥🔥
अपने वस्त्रों को त्याग कर रणभूमि में निडर हो कर अपने कामवासनाओं के शास्त्रो के साथ रणभुमि में अपने यौवन 🥵का भार पुर जौहर दिखती है,💋
अपने तन के शास्त्रो को एक एक कर ऐसे प्रहार करती है कि रणभुमि भी उसके वीरता की गवाही देने पर मजबूर हो जाती है,
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हो सके तो कभी कभी ख्वाबों में आके मिला कीजिए
हकीकत से तो जा चुके हैं, ख्वाबों में ही सही आ मुझे गले से लगाया कीजिए
फिक्र ना करें मैं इन मुलाकातों के बारे में किसी को नहीं बताऊंगी
आप बस मेरा हाथ थाम मेरे बगल में बैठ जाना, तब मैं दुनिया से छुपाया हुआ अपना हर आंसू आपके सामने बहा दूंगी
फिर आपकी गोद में सिर सुकून की नींद सोजाऊंगी
आखिर ये तो ख़्वाब है, यहां तो वैसा हो जाएगा जैसा मैं चाहूंगी
मगर फिर एक मनहूस पल आएगा जब मेरा ख़्वाब टूट जायेगा और मेरा सामना मेरी हकीकत से हो जाएगा
तब मैं अपने सिरहाने रखी आपकी तस्वीर को देख कहूंगी
हो सके तो कभी कभी ख्वाबों में आके मिला कीजिए
दिशा
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दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें आज तक अपनी बेकली का सबब ख़ुद भी जाना नहीं कि तुझ से कहें बे-तरह हाल-ए-दिल है और तुझ से दोस्ताना नहीं कि तुझ से कहें एक तू हर्फ़-ए-आश्ना था मगर अब ज़माना नहीं कि तुझ से कहें
- अहमद फ़राज़
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तुम?
पहली नजर ���ें नहीं मगर धीरे-धीरे अच्छे लगने लगे थे तुम,
तुम्हारी मीठी बातों से इश्क करने लगे थे हम,
मेरे ख्यालों सवालों में आ जाते थे तुम,
मेरे सपनों में आकर सताते थे तुम,
वो बातें, वो रातें कुछ ना��ाब सपना की तरह लगती थी|
जिसमे में कुछ उलझी पहेलियां की तरह रहती,
और तुम सूलझी पतंग की तरह उड़ते।
उन आंखों में कुछ तो बात थी,
जो छुपाए बैठे थे तुम,
उन मुस्कुराहट में कुछ तो बात थी,
जो मुझे फंसाये बैठे थे तुम।
मुझे समझना, अक़्सर सही राह दिखना केवल ख्वाबों मैं ही क्यूँ बता जाते थे तुम?
इस दुनिया मे गुम हो जाते,
मगर ना जाने सपने मैं ही क्यूँ दिखाई आते थे तुम?
~विधि विक्रम सिंह गौड़
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how is it fair to just leave and come back later for love?
मगर मोहब्बत एक क़ैद नहीं
ये एक खुला आसमान है जहां
कोई बेड़ियाँ नहीं लोहे के
सिर्फ़ क़समे हैं प्यार के
जो बंधन है जन्मों के ।
avis
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Mirza Hadi Ruswa wrote,
दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें
दो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले
And Bismil Saeedi said
किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया
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रोजा रखने से मोक्ष नहीं!
जब से आत्माए अल्लाह ताला से जुदा हुई हैं तब से उसे कई तरीकों से खोजने की कोशिश कर रही है, जैसे:- रोजे रखना, नमाज़ अदा करना! मगर अल्लाह की सही जानकारी तो सिर्फ बाखबर ही देंगे जो वर्तमान में जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही है।
#AlKabir_Islamic
#SaintRampalJi
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Safar
- sung by Arijit Singh, lyrics written by Irshad Kamil and composed by Pritam
अब न मुझको याद बीता मैं तोह लम्हों में जीता चला जा रहा हूँ मैं कहाँ पे जा रहा हूँ... कहाँ हूँ? इस यक़ीन से मैं यहाँ हूँ की ज़माना यह भला है और जो राह में मिला है थोड़ी दूर जो चला है वह भी आदमी भला था पता था ज़रा बस खफा था वह भटका सा राही मेरे गाँव का ही वह रास्ता पुराना जिसे याद आना ज़रूरी था लेकिन जो रोया मेरे बिन व��� एक मेरा घर था पुराना सा डर था मगर अब न मैं अपने घर का रहा सफर का ही था मैं सफ़र का रहा इधर का ही हूँ न उधर का रहा सफर का ही था मैं सफ़र का रहा इधर का ही हूँ न उधर का रहा सफर का ही थ मैं सफ़र का रहा मैं रहा... ओ ओ... मैं रहा... वो मैं रहा... मील पत्थरों से मेरी दोस्ती है चाल मेरी क्या है राह जानती है जाने रोज़ाना... ज़माना वही रोज़ाना शहर शहर फुर्सतों को बेचता हूँ खाली हाथ जाता खाली लौट'ता हूँ ऐसे रोज़ाना रोज़ाना खुद से बेगाना... जबसे गाँव से मैं शहर हुआ इतना कड़वा हो गया की ज़ेहर हुआ मैं तोह रोज़ाना न चाहा था यह हो जाना मैंने ये उम्र्र, वक़्त, रास्ता गुजरता रहा सफर का ही था मैं सफ़र का रहा इधर का ही हूँ न उधर का रहा सफर का ही था मैं सफ़र का रहा इधर का ही हूँ न उधर का रहा सफर का ही था मैं सफ़र का रहा मैं राहा मैं राहा मैं राहा मैं राहा मैं राहा मैं राहा मैं राहा मैं राहा मैं मैं राहा मैं राहा सफर का ही था मैं सफ़र का रहा
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पर्वतमा मगर सङ्ग्रहालय निर्माण गरिँदै
पर्वतमा मगर सङ्ग्रहालय निर्माण गरिँदै
पर्वत, १६ मङ्सिर । मगर समुदायको कला संस्कृति र ऐतिहासिक परम्परालाई संरक्षण गर्नका लागि पर्वतमा मगर सङ्ग्रहालय निर्माण गर्न थालिएको छ । पुन युवा क्लबको अगुवाईमा जिल्ला कुश्मास्थित दुर्लुङचोक नजिकै मध्यपहाडी राजमार्गको आडैमा सङ्ग्रहालय बनाउन सुरु गरिएको हो । सङ्ग्रहालय भवनको बुधबार कुश्मा नगर प्रमुख रामचन्द्र जोशीले शिलान्यास गर्नुभएको छ । सङ्ग्रहालय निर्माण गर्नका लागि क्लबले अघिल्ला दुई वर्ष…
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हसरत-ए-दीदार
जब कोई सुकून ना दे सका
तब काग़ज़ों पर लिखे शक्स ने अपने बाहों में समेट लिया
जब जिंदगी की पहेली बोलते हुए लफ्स फिसले
तब काग़ज़ों पर लिखे हर्फ ने लहजा सिखाया
आसमान था अंधेरे से भरा
तब चाँदनी इनायत बन कर बरसी
सितारे थे वहाँ
जिन्होंने अपने नूर से हम में जीने की उम्मीद भर दी
उनसे मिलने की आस लगा बैठें है
जिन्हें जानते भी नहीं
जानते तोह इतना है की एक होश-रुबा हैं
जिनसे ये कायनात हमें मिलाना चाहती हैं
मगर तब तक, हसरत-ए-दीदार के आलम में, वो काग़ज़ों पर लिखे ये लोग ही काफी हैं,
ये चाँदनी ही काफी हैं...
आखिर ज़रा सी जुस्तुजू ��ी ही तो बात हैं।
@humapkehaikaun thanks for the suggestion! 🥰
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