#बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति
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किसानों, पशुपालकों, डेयरी संघों के पदाधिकारियों तथा जनजातीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ बजट पूर्व संवाद को संबोधित किया। एक लोकतांत्रिक सरकार के लिए आमजन के सुझाव महत्वपूर्ण हैं। राज्य सरकार सभी उपयोगी सुझावों को कृषि बजट में सम्मिलित करने का पूरा प्रयास करेगी। प्रतिवर्ष कृषि के लिए अलग से बजट प्रस्तुत किया जाएगा ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ दिया जा सके।
कृषि, पशुपालन एवं इससे जुड़े क्षेत्र राज्य की जीडीपी एवं अर्थव्यवस्था की धुरी है। राज्य सरकार इस बार के बजट के माध्यम से प्रदेश के किसानों तथा पशुपालकों की समृद्धि एवं खुशहाली के लिए आवश्यक प्रावधान करने के लिए पूरी तरह प्रयासरत है। हमारी सरकार ने पहली बार अलग से कृषि बजट लाने का ऐतिहासिक निर्णय किया। प्रदेश की करीब दो-तिहाई आबादी विषम भौगोलिक परिस्थितियों एवं पानी की कमी के बावजूद अपनी मेहनत से कृषि के क्षेत्र में प्रदेश को हमेशा अग्रणी पायदान पर रखने का सार्थक प्रयास करती है। हमारी पूरी कोशिश है कि बजट में ऐसे प्रावधान करें, जिससे राज्य के किसानों तथा पशुपालकों की आय बढ़े और वे खुशहाल हों।
कृषकों के कल्याण के लिए विगत वर्षों में राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री किसान मित्र ऊर्जा योजना, कृषक कल्याण कोष का गठन, मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना, ऋण माफी, सहकारी फसली ऋण ऑनलाइन पंजीयन एवं वितरण योजना, राजस्थान कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय एवं कृषि निर्यात प्रोत्साहन नीति जैसे कई अहम फैसले लिए गए हैं, जो कृषि क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। राजस्थान में तकनीक और नवाचारों के माध्यम से कृषि और डेयरी क्षेत्रों का तेजी से विकास किया जा सकता है। हम तमाम चुनौतियों के बावजूद इस दिशा में सतत प्रयासरत हैं कि किसान ��र पशुपालक आत्मनिर्भर बन सकें।
आज प्रदेश के किसान नवीन तकनीकों और नवाचारों को अपनाकर उन्नत कृषि की ओर आगे बढ़ रहे हैं। प्रदेश में पानी की कमी और गिरते भूजल स्तर को देखते हुए राज्य सरकार बूंद-बूंद और फव्वारा सिंचाई पद्धति को बढ़ावा मिल रहा है। हमारी सरकार ने खेतों में सोलर पैनल लगाकर किसानों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की योजना लागू की है। राज्य सरकार किसानों को फसल का उचित दाम, अच्छी गुणवत्ता का खाद, बीज और कीटनाशक समय पर उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है।
सभी तबको के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य सरकार का मुख्य ध्येय है और इस दिशा में शानदार योजनाएं संचालित की जा रही है। चिरंजीवी योजना के माध्यम से आमजन को 10 लाख तक का निःशुल्क उपचार दिया जा रहा है। किडनी, हार्ट, लीवर ट्रांसप्लांट जैसे महंगे इलाज में 10 लाख की सीमा समाप्त कर दी गई है। साथ ही, 5 लाख रूपए तक का दुर्घटना बीमा भी दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा आईपीडी, ओपीडी में सभी प्रकार के उपचार निःशुल्क कर दिए गए हैं। प्रदेश में आमजन की सिटी स्केन, एम.आर.आई. स्केन जैसी महंगी जांचें निःशुल्क की जा रही हैं। 1 करोड़ प्रदेशवासियों को पेंशन देने का कार्य राज्य सरकार कर रही है। मुख्यमंत्री किसान मित्र ऊर्जा योजना से लाखों किसानों का बिजली बिल शून्य हुआ है। सरकारी कर्मियों का भविष्य सुरक्षित करने हेतु पुरानी पेंशन योजना प्रदेश में फिर से लागू की गई है।
बैठक में कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किसानों को लगभग 16 हजार 800 करोड़ रूपए की फसल बीमा राशि का भुगतान किया जा चुका है। कोरोना काल के बाद युवाओं का कृषि के प्रति रूझान बढ़ा है। युवा किसानों द्वारा नई तकनीकों का उपयोग कर खेती को उन्नत बनाया जा रहा है।
बैठक में जल संसाधन मंत्री श्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीया, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री डॉ. महेश जोशी, कृषि विपणन राज्य मंत्री श्री मुरारी लाल मीणा, मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार श्री अरविन्द मायाराम, मुख्यमंत्री सलाहकार श्री गोविन्द शर्मा, श्री निरंजन आर्य, प्रमुख शासन सचिव वित्त श्री अखिल अरोडा, प्रमुख शासन सचिव कृषि श्री दिनेश कुमार सहित वरिष्ठ अधिकारीगण, कृषक, पशुपालक, डेयरी संघ पदाधिकारी एवं जनजाति क्षेत्र के प्रतिनिधिगण उपस्थित रहे।
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कपास में बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति अपनायें
कपास में बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति अपनायें
कपास में बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति अपनायें (drip irrigation )
श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिले के विभिन्न फसलों में कपास खरीफ की प्रमुख फसल है। यह फसल इन जिलों के सिंचित क्षेत्रों में लगाई जाती है। इन जिलों में अमेरिकन कपास (नरमा) तथा देशी कपास दोनों को लगभग बराबर महत्व दिया जाता है। देशी कपास की बिजाई ज्यादातर पड़त या चने की फसल के बाद की जाती है जबकि अमेरिकन कपास की बिजाई पड़त, गेहूं, सरसों, चना…
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कम जमीन हो तो इजराईली तकनीक से करें खेती, होगी मोटी कमाई
अगर जमीन कम हो तो किसान सोच में पड़ जाता है कि कैसे खेती से ज्यादा कमाई होगी. लेकिन जमीन के छोटे टुकड़े में भी खेती करके अधिक पैदावार प्राप्त किया जा सकता है.
कम जमीन पर भी ज्यादा पैदावार प्राप्त करना मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं है. इसको लेकर लगातार प्रयोग किया जाता रहा है. भारत ही नहीं विदेशों में भी कम जमीन में अधिक उपज प्राप्त करने को लेकर प्रयास किए जाते रहे हैं. इस क्षेत्र में इजराईल ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है.
कम भूमि में खेती कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर इजराइल ने बनाया मिसाल
इजराइल एक ऐसा देश है जो अपने नवीन अनुसंधानों के लिये जाना जाता है और इसी के कारण निरंतर चर्चा में रहता है. रक्षा के क्षेत्र में हो या स्वास्थ्य के क्षेत्र में इजराईल हमेशा नए नए कीर्तिमान स्थापित करता रहा है. अब कृषि के क्षेत्र में उसके प्रयोग ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है. आजकल इजरायल द्वारा विकसित की गई वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) की आधुनिक तकनीक काफी चर्चा में है और यह तकनीक देश-विदेश में काफी लोकप्रिय हो रही है.
क्या है वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक ?
वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक के तहत कम जगह में दीवार बनाकर खेती की जाती है. वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक के तहत सबसे पहले लोहे या बांस की मदद से दीवार नुमा ढांचा खड़ा किया जाता है. ढांचे पर छोटे-छोटे गमलों को खाद, मिट्टी और बीज डालकर करीने से रखा जाता है. इसके पौधों की रोपाई नर्सरी की तरह भी गमलों में की जा सकती है.
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बहुत उपयोगी है ये वर्टिकल फार्मिंग तकनीक
कम जमीन और कम संसाधनों में खेती करने के लिए यह एक बहुत उपयोगी विकल्प है. हालांकि भारत जैसे देशों में खेती के लिए पर्याप्त उपजाऊ जमीन मौजूद है लेकिन विश्वा में बहुत से देश ऐसे हैं जहाँ खेती योग्य जमीन की कमी है. इजराइल के पास भी खेती योग्य जमीन कम है जिसके कारण उसे खाद्यान्न आपूर्ति के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है. इसी को देखते हुए इजराईल नें वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक का इजाद किया जो कम भूमि संसाधनों वाले देशों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है.
चीन, कोरिया, जापान, अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी इस तकनीक को सफलतापूर्वक अपना रहे हैं. बड़े शहरों में अच्छी और ताज़ी सब्जियों की आपूर्ति करना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि दूर दराज के गांवों से लाया जाता है. वर्टिकल फार्मिंग के द्वारा अब शहरों में ही वर्टिकल फार्मिंग द्वारा सब्जियों को उगाकर मांग की आपूर्ति करना आसान होता जा रहा है.
ड्रिप इरीगेशन से होती है पानी की बचत
इजरायल द्वारा ही सिंचाई तकनीक ड्रिप इरीगेशन या बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति इस तरह की खेती के लिये उपयोगी होता है. इससे पानी की बर्बादी भी बचती है और पौधों में जरूरत के मुताबिक पानी दिया जाता है. इस तकनीक का उपयोग अब भारत में भी होने लगा है. इस तकनीक के जरिए अनाज, सब्जियां, मसाले और औषधीय फसलें सभी कुछ उत्पादित की जा रही हैं. इस तकनीक का दूसरा लाभ ये है कि इससे पौधों में कीड़े और बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है.
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वर्टीकल फार्मिंग रोजगार का भी है माध्यम
बहुत कम जगह में उत्पादन की क्षमता के कारण वर्टीकल फार्मिंग का यह तकनीक शहरी क्षेत्रों के लिए बे��द लाभदायक है. ��ांलाकि वर्टीकल फार्मिंग में खर्च परंपरागत खेती से ज्यादा है लेकिन यह भी सच है की इससे लाभ भी ज्यादा है. यही कारण है कि मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई और गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों के लोग नौकरियां छोड़कर वर्टिकल फार्मिंग को अपना रहे हैं क्योंकि उन्हें अच्छा मुनाफा प्राप्त हो रहा है.
इको फ्रेंडली वर्टीकल फार्मिंग
वर्टीकल फार्मिंग तकनीक जहां कम जमीन में खेती के लिए लाभदायक है, इससे वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदुषण भी कम होता है और पानी एवं अन्य संसाधनों की भी बचत होती है. शहरों में अपनाए जाने के कारण हरियाली तो बढाती ही है साथ ही पर्यावरण को शुद्ध रखने में ये सहायक है. शहरों में उत्पादन करने से परिवहन लागत भी कम हो जाती है.
source कम जमीन हो तो इजराईली तकनीक से करें खेती, होगी मोटी कमाई
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जिले के किसानों के लिए वरदान साबित होगी सूक्ष्म सिंचाई योजना
जिले के किसानों के लिए वरदान साबित होगी सूक्ष्म सिंचाई योजना
Bihar: जिले के सभी किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई योजना वरदान साबित होगी इस योजना के अंतर्गत ड्रिप सिंचाई पद्धति का लाभ सभी श्रेणी के किसानों को दिया जा रहा है, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत जिले में किसानों को ड्रिप व मिनी स्प्रिंकलर कृषि यंत्र लगाने पर किसानों को 90% का अनुदान उपलब्ध कराया जा रहा है, इस योजना के अंतर्गत किसान एक-एक बूंद जल से फसलों की…
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बूंद-बूंद जल का संरक्षण हमारी सामूहिक जिम्मेदारी: जलदाय मंत्री Divya Sandesh
#Divyasandesh
बूंद-बूंद जल का संरक्षण हमारी सामूहिक जिम्मेदारी: जलदाय मंत्री
जयपुर। जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी मंत्री डाॅ. बी. डी. कल्ला ने कहा कि जल संरक्षण हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। पानी की एक भी बूंद व्यर्थ नहीं जाए, इसके लिए सभी को जागरुक रहने और दूसरों को प्रेरित करने की जरूरत है। डाॅ. कल्ला सोमवार को विश्व जल दिवस के अवसर पर बीकानेर में जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग के अतिरिक्त मुख्य अभियंता कार्यालय में जल संरक्षण से संबंधित पोस्��र, फोल्डर एवं बैनर के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बरसात के बूंद-बूंद पानी को संरक्षित एवं सुरक्षित रखना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। प्रत्येक व्यक्ति इसे समझे। उन्होंने कहा कि जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अभियंताओं सहित सभी कर्मचारी जल संरक्षण को बढ़ावा देने का काम करें। पीएचईडी के सभी कार्यालयों के शौचालयों में डबल बटन के फ्लश हों, जिससे पानी की बचत की जा सकेगी।
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उन्होंने कहा कि राजस्थान में देश की 5.5 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रदेश का 10.14 प्रतिशत भू-भाग है, लेकिन हमारे पास देश का सिर्फ 1.1 प्रतिशत जल उपलब्ध है। हमें इस गंभीरता को समझना होगा और पानी का अपव्यय रोकना होगा, अन्यथा भविष्य में गम्भीर जल संकट हमारे सामने होगा। उन्होंने कहा कि विश्व जल दिवस इस संकल्प की शुरूआत का दिन है। प्रत्येक व्यक्ति इस बात की शपथ ले कि पानी का समुचित उपयोग करेंगे।
उन्होंने कहा कि किसानों को भी कम पानी वाली फसलें लेने के लिए प्रेरित किया जाए। कृषि कार्य बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति के आधार पर हो तथा पानी का मल्टीपल उपयोग हो, ऐसे प्रयास किए जाएं। उन्होंने कहा कि राजस्थान के लोग पानी की कीमत समझते हैं और हमारे घरों में जल संरक्षण की सरंचनाएं परम्परागत रूप से बनाई जाती रही हैं। आज इसके प्रति भी जागरुकता की जरूरत भी है। उन्होंने कहा कि इस बार विश्व जल दिवस को ‘वेल्यूइंग वाटर’ की थीम के साथ मनाया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा भी समुचित जल प्रबंधन की दिशा में प्रभावी कार्य किया जा रहा है, लेकिन इसमें आमजन की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।
जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अतिरिक्त मुख्य अभियंता दिलीप गौड़ ने जल संरक्षण एवं जल तंत्र सुदृढ़ीकरण से संबंधित कार्यों के बारे में बताया। अधीक्षण अभियंता दीपक बंसल ने कहा कि गर्मी के मौसम एवं नहरी बंदी के दौरान आम उपभोक्ताओं को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो, इसके मद्देनजर प्रभावी कार्ययोजना तैयार की गई है। इससे पहले जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी मंत्री ने पोस्टर का विमोचन किया तथा जल संरक्षण की शपथ दिलाई। इस दौरान अधिशाषी अभियंता विजय वर्मा, शरद माथुर, विकास गुप्ता, बलवीर सिंह तथा कर्मचारी प्रतिनिधि जयगोपाल जोशी आदि मौजूद रहे। संचालन जल जीवन मिशन के जिला आईईसी सलाहकार श्याम नारायण रंगा ने किया।
जल भवन में अधिकारियों-कर्मचारियों ने ली जल संरक्षण की शपथ
विश्व जल दिवस के अवसर पर ��ोमवार को जयपुर में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के प्रदेश मुख्यालय जल भवन में अधिकारियों और कर्मचारियों ने जल की बचत, संरक्षण और उसके विवेकपूर्ण उपयोग की शपथ ली। मुख्य अभियंता (प्रशासन) राकेश लुहाड़िया, मुख्य अभियंता (गुणवत्ता नियंत्रण) आरसी मिश्रा, मुख्य अभियंता (तकनीकी) संदीप शर्मा के साथ जल भवन में कार्यरत अधिकारियों और कार्मिकों ने सामूहिक तौर पर शपथ लेते हुए पानी की बूंद-बूंद के संचयन, जल शक्ति अभियान को बढ़ावा देने, जल को अनमोल संपदा मानकर उपयोग करने, जल संरक्षण के प्रति अपने परिवारजनों, मित्रों और पड़ौसियों को भी प्रेरित करने तथा सभी के सहयोग से जल आंदोलन को जन आंदोलन बनाने का संकल्प लिया।
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किसान कम वर्ष�� में भी करें फसलो का उचित प्रबंधन
देश में देरी से आने वाली मानसूनी वर्षा की स्थिति में आकस्मिकता फसल/नियोजन के लिए इनमें से फली वाली सब्जियों की सिफारिश की जा सकती है। दवाब को समाप्त किये जाने के पश्चात स्थिति से निपटने के लिए अच्छी जड़ प्रणाली और क्षमता वाली किस्मों के चयन किये जाने की जरूरत है। स्थिति के अनुसार अल्पकालिक किस्मों का उपयोग किये जाने की सिफारिश की जाती है।
पौधा उत्पादन की उन्नत पद्धति नर्सरी चरण पर कोकोपीट, नायलोन, जाल संरक्षण एवं जैव उर्वरकों/जैव कीटनाशक उपचार का उपयोग करके प्रोट्रे में पौध उत्पादन की उन्नत पद्धति में मजबूत,एक-समान तथा स्वस्थ्य पौधा प्राप्त करने की अच्छी संभावना है। इन पौधों को जब मुख्य खेत में रोपित किया जाता है तो इससे विशेषकर जल दवाब स्थितियों के दौरान जैविक और अजैविक दवाबों से उभरने में मदद मिलेगी तथा जड़ को होने वाली क्षति कम होगी ।
संरक्षण तकनीक को अपनाना कंटूर खेती, कंटूर पट्टी फसलन, मिश्रित फसल, टिलेज, मल्चिंग, जीरो टिलेज ऐसे कुछ कृषि संबंधी उपाय हैं जो इन सिटू मृदा आद्र्रता संरक्षण में सहायक होते हैं। शुष्क भूमि में प्रभावी मृदा एवं आद्र्रता संरक्षण के लिए कंटूर बंडिंग, बैंच टैरेसिंग, वर्टिकल मल्चिंग आदि को भी अपनाए जाने की जरुरत है। जल के कुशल उपयोग के लिए दूसरी प्रौद्योगिकी जल संचयन रिसाईकिलिंग है।
वर्षा जल संचयन में अप्रवाह जल क�� खोदे गये पोखरों या छोटे गड्ढों, तालाबों, नालों में इकट्ïठा किया जाना तथा भूमि के बांधों अथवा चिनी हुई संरचनाओं में एकत्रित किया जाना शामिल है। कम अर्थात 500 से 800 एमएम वर्षा जल संचयन संभव है। वर्षा तथा मृदा विशिष्टताओं पर निर्भर रहते हुए, अप्रवाह का 10-50 प्रतिशत भाग फार्म तालाब में एकत्रित किया जा सकता है। इस तरह से अप्रवाह को फार्म तालाब में एकत्रित किये गये जल का उपयोग लम्बी अवधि के सूखे के दौरान अथवा लघु सिंचाई तकनीकों के माध्यम से संरक्षित सिंचाई मुहैया कराए जाने में किया जा सकता है।
मृदा कार्बनिक पदार्थ में वृद्धि करना मृदा आर्गेनिक कार्बन में सुधार किये जाने के लिए निरंतर प्रयास किये जाने चाहिए। मिट्ïटी में फसल अवशिष्टों तथा फार्म यार्ड खाद मिलाने से कार्बनिक पदार्थ की स्थिति में सुधार होता है, मृदा संरचना और मृदा आद्र्रता भंडारण समक्षता में सुधार होता है। खूड फसलन, हरी खाद देकर, फसल चक्र तथा कृषि वानिकी को अपनाकर भी मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ में सुधार किया जा सकता है।
सब्जियां कम अवधि और तेजी से बढऩे वाली फसल होने के कारण उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ में उचित रूप से कम्पोस्ट खाद मिलाये जाने की जरूरत है। मिट्टी में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ के शीघ्र उपयोग के लिए तथा मृदा आद्र्रता संरक्षण क्षमता में सुधार किये जाने के लिए वर्मी कम्पोस्टिंग को भी अपनाया जा सकता है ।
पर्ण-पोषण का अनुप्रयोग जल दवाब की स्थितियों के दौरान पोषक तत्वों का पर्ण-अनुप्रयोग पोषक तत्वों के शीघ्र अवशोषण के द्वारा बेहतर वृद्धि में मदद करता है। पोटाश एवं कैल्शियम का छिड़काव सब्जी फसलोंं में सूखा सहिष्णुता प्रदान करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों और गौण पोषक तत्वों के छिड़काव से फसल पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होता है।
ड्रिप-सिंचाई का प्रयोग बागवानी फसलों में जड़ के भागो में सही और सीधे प्रयोग के कारण ड्रिप-सिंचाई की अन्य परम्परागत प्रणालियों के ऊपर अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया है। ड्रिप-सिंचाई में जो अलग से लाभ प्राप्त होते हैं, वे हैं जल में महत्वपूर्ण बचत, फलों एवं सब्जियों की पैदावार में वृद्धि तथा खरपतवारों का नियंत्रण एवं श्रम में बचत।
ड्रिप-सिंची को फल फसलोंं तथा साथ ही कम अंतर वाली फसलोंं जैसे प्याज और फली सहित अन्य सभी सब्जी फसलोंं में भी अपनाया जा सकता है। जल में फसल और मौसम के आधार पर 30-50 प्रतिशत की तर्ज पर बचत होती है। आमतौर पर सब्जी फसलोंं के लिए 2 एलपीएच की उत्सर्जन दर पर 30 सें.मी. दूरी के उत्सर्जन बिंदु स्थान वाले इन लाइन ड्रिप लेटरल्स का चयन किया जाता है। मिर्च, बैंगन, फूलगोभी तथा भिण्डी जैसी फसलोंं में जोड़ा पंक्ति पौधा रोपण की प्रणाली अपनाई जाती है तथा दो फसल पंक्तियों के लिए एक ड्रिप लेटरल का उपयोग किया जाता है।
सूक्ष्म स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रयोग स्थिति तथा ��ल की उपलब्धता पर निर्भर रहते हुए, इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग फल एवं सब्जी फसलों के लिए किया जा सकता है। प्रारम्भिक संस्थापन की लगत ड्रिप प्रणाली की तुलना में कम है। आगे ग्रीष्मकाल में जल का छिड़काव सूक्ष्म जलवायु तापमान को कम करने में तथा आद्र्रता में वृद्धि किए जाने में मदद करता है, इससे फसल की वृद्धि व पैदावार में सुधार होता है । बचाया गया जल 20 से 30 प्रतिशत तक होता है।
जल बचत सिंचाई प्रणाली सीमित जल स्थितियों में, वैकल्पिक फरो सिंचाई अथवा बड़े अन्तराल की फरो सिंचाई और डरियो सिंचाई प्रणालियां अपनाई जा सकती हैं । पहाड़ी मिर्च, टमाटर, भिण्डी तथा फूल गोभी में सिंचाई प्रणालियों पर किए गए अध्ययनों ने दर्शाया है कि वैकल्पिक फरो सिंचाई तथा बड़े अन्तराल की खुड सिंचाई को अपनाए जाने से पैदावार को बिना प्रतिकूल रूप से प्रभावित किए 35 से 40 प्रतिशत तक सिंचाई जल बचाया गया ।
सब्जी उत्पादन में मल्चिंग प्रणालियां मृदा और जल संरक्षण के लिए मृदा को प्राकृतिक फसल अवशेषों या प्लास्टिक फिल्म्स से कवर किए जाने की तकनीक को मल्चिंग कहा जाता है । मल्चिंग का इस्तेमाल फार्म में उपलब्ध फसल अवशेषों और अन्य कार्बनिक सामग्री का प्रयोग करके फलों व सब्जी की फसलोंं में किया जा सकता है। हाल ही में कुशल आद्र्रता संरक्षण, खरपतवार उपशमन तथा मृदा संरचना के अनुरक्षण के निहित लाभों के कारण प्लास्टिक मल्च प्रयोग में आए हैं ।
मल्चेज का प्रयोग करके सब्जियों की कई किस्में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। मृदा एवं जल संरक्षण, उन्नत उपज व गुणवत्ता, खरपतवार वृद्धि को रोकने के अतिरिक्त, मल्चेज प्रयुक्त उवर्रक पोषक तत्वों का प्रयोग कुशलता में सुधार कर सकता है तथा प्रतिबिम्बित मल्चेज के प्रयोग से वायरस रोगों की घटना भी संभवतया न्यूनतम होगी।
सब्जी उत्पादन के लिए आमतौर पर 30 माइक्रोन मोटी और 1-1.2 मि. चौड़ी पोलीथिलीन मल्च फिल्म जा प्रयोग किया जाता है। मल्च फिल्म बिछते समय आमतौर पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली के साथ उथली क्यारी का उपयोग किया जाता है।
बाड़े और अंतफसलन अधिक तापमान तथा गर्म हवाओं से निपटने के लिए फार्म के चारों तरफ लम्बे वृक्ष लगाए जाने की जरुरत है। गर्मी के महीनों में फलोद्यानों के क्षेत्र में सब्जी फसलों की अंतफसलन प्रणाली अपनाई जा सकती है। शुष्क हवाओं के प्रभाव को कम करने के लिए प्लाट के चारों तरफ मक्का/ज्वार उगाई जा सकती है।
सब्जियों की संरक्षण खेती का प्रयोग परि-नगरीय क्षेत्रों, जहां की जलवायु खुले खेत में फसलोंं के वर्ष भर उत्पादन के अनुकूल नहीं होती है, पाली हाउस में संरक्षित पर्यावरण में सब्जी उत्पादन किया जा सकता है । पाली हाउस फसल को जैविक और अजैविक बाधाओं से बचाने के लिए एक सुविधा है। संरक्षित खेती के लिए संरचनाओ में ग्रीन हाउसेज, प्लास्टिक/नेट हाउसेज तथा सुरंगें शामिल हैं।
सामान्य तौर पर संरक्ष��त संरचनाएं पोलिहाउसेज और नेट या शेड हाउस हैं। रेन-शेल्टर एक साधारण संरचना है जो पोलिथिलिन से ढका होता है और अधिक वर्षा से प्रभावित फसलोंं को उगने में मदद करता है। टमाटर, प्याज और खरबूजे की उत्पादकता,पर्ण रोगों के प्रबंधन, उचित मृदा वातन व निकासी की कमी में कठिनाई के कारण अधिक वर्षा की स्थिति में प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है तथा पर्णसमूह व पुष्प भी गिर सकते हैं।
नेट हाउस खेती तथा शेड़ नेट खेती विशेषकर ग्रीष्मकाल के दौरान अधिक तापमान प्रभाव को न्यूनतम करने तथा सापेक्ष आद्र्रता में सुधार करने के लिए बेहतर सूक्ष्म जलवायु मुहैया कराती है । अधिक तापमान की अवधि के दौरान नेट/ऊपरी शेड़ नेट का उपयोग करके टमाटर, फ्रेंच चीन तथा पहाड़ी मिर्च की उत्पादकता को सुधारा जा सकता है।
वृक्षों में बढ़ोतरी होने से पहले वृक्षों के नीचे तथा वृक्षों की कतारों के बीच खुली जगह को खरपतवार रहित रखना।
प्याज जैसी फसलों में सीधी बुवाई के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग करें ।
अनुकूल मृदा आद्र्रता होम तक मुख्य खेत में पौधों के प्रतिरोपण और उर्वरक उपयोग को टाल दें।
आद्र्रता स्थिति अनुकूल होते ही पौधा का रोपण करें ।
मुख्य पोषक तत्वों (जल घुलनशील) के पर्ण अनुप्रयोग करना चाहिए।
आंशिक शेड से नए पौधे का संरक्षण।
फसलोंं के बीच दूरियों में निराई तथा इंटर-कल्चर पद्धतियां अपनाई जाएं।
पौधों की संख्या को कम करने के लिए विरलन किया जाए।
जल की उपलब्धता के आधार पर वैकल्पिक फरो सिंचाई की जाए।
ड्रिप सिंचाई अपनाई जाए। संरक्षी अनुरक्षण के लिए जहां ड्रिप उपलब्ध न हो वहां घड़ा सिंचाई पद्धति अपनाएं।
बेहतर मृदा एवं आद्र्रता संरक्षण तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई अपनाई जाए।
सतही और भू- जल का संयुक्त उपयोग और साथ ही गैर-परम्परागत स्रोतों जैसे खारे जल के उपयोग को अपनाना ।
बिना पूर्व उपचार के बेकार जल का उपयोग नहीं किया जाना तथा सुरक्षित जल का पुन: उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
उन उर्वरकों का उपयोग कम करें जो पौधो की वनस्पतिक वृद्धि को बढ़ाते हैं जैसे नाइट्रोजन, पौधों की वृद्धि को बनाए रखने के लिए पर्ण छिड़़काव के रूप में पोटाश और बोरोन का प्रयोग करें ।
जल प्रवाह और वितरण के दौरान जल हानियों को कम करना।
जल अवशोषण और धीमे निर्गमन के लिए सुपर एबजोब्रेट पोलीमर्स जैसे ल्युक्यसोर्ब का उपयोग करें।
फल सब्जियों के लिए क्या करें और क्या न करें ट्रेचिंग, कंटूर/फील्ड बन्डिंग, गुली प्लगिंग, लूज बाउल्डर चेक डेम द्वारा स्व-स्थाने आद्र्रता संरक्षण किया जाए ।
बेसिन में स्व-स्थाने आद्र्रता संरक्षण के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध कार्बनिक मल्चेज का प्रयोग करें। जल के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए ड्रिप/बूंद-बूंद सिंचाई को अपनाएं।
पौधों की बेहतर स्थापना हेतु सुखारोधक जड़ भंडारों पर स्वस्थाने संशोधन। रुपांतरण बागवानी जैसे अंतर फसलें एवं मृदा नमी रूपांतरण कार्य प्रणालियां अपनाएं।
जब तक पर्याप्त मृदा नमी उपलब्ध है उर्वरकों के मृदा ��नुप्रयोग पर रोक।
पोषक तत्व अन्तर ग्रहण तथा उपयोग दक्षता वृद्धि करते हुए जल सहय स्थितियों के तहत प्रमुख पोषक तत्वों के पणीय पोषक तत्वों का प्रयोग करना ।
उच्च वाष्पीकृत मांग का कम करने के लिए नए पौधों को मिट्ïटी के पत्रों एवं संरक्षित शेड के माध्यम से संरक्षित सिंचाई प्रदान करना ।
जल सीमित स्थितियों के अंतर्गत फल फसलोंं के उत्पादन के लिए ड्रिप सिंचाई एवं मल्चिंग के अलावा, मविन सिंचाई पद्धतियों जैसे आंशिक रूट जोन ड्राईग (पीआरडी) को अंगूर, आम तथा निम्बू में अपनाया जा सकता है। आंशिक रुट जोन ड्राईंग पद्धति डिपर रुट प्रणाली को विकसित करने में मदद करती है
सभी फल फसलोंं के लिए, स्थानीय उपलब्ध पौधा सामग्रियों के साथ बेसिन मल्चिंग तथा प्लास्टिक मल्च अपनाये जा सकते हैं ।
सभी उपलब्ध पौध अपशिष्ट सामग्रियों को वनस्पतिक खाद में बदलने की कोशिश की जानी चाहिए तथा फल एवं सब्जी फसल के लिए जैविक खाद के रूप में इसका उपयोग करना चाहिए।
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वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से किसानों, पशुपालकों, डेयरी संघों के पदाधिकारियों तथा जनजातीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ बजट पूर्व संवाद को संबोधित किया। कृषि-बागवानी एवं पशुपालन सेक्टर राज्य की अर्थव्यवस्था की धुरी है। प्रदेश की करीब दो-तिहाई आबादी की आजीविका इस पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र के महत्व को समझते हुए हमारी सरकार ने पहली बार अलग से कृषि बजट लाने जैसा ऐतिहासिक निर्णय किया है, जिसके माध्यम से प्रदेश के काश्तकारों तथा पशुपालकों की समृद्धि एवं खुशहाली के लिए आवश्यक प्रावधान किए जाएंगे। किसान कल्याण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसके लिए हमने विगत तीन वर्षों में मुख्यमंत्री किसान मित्र ऊर्जा योजना, कृषक कल्याण कोष के गठन, मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना, ऋण माफी, सहकारी फसली ऋण ऑनलाइन पंजीयन एवं वितरण योजना, राजस्थान कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय एवं कृषि निर्यात प्रोत्साहन नीति जैसे कई अहम फैसले लिए हैं, जो कृषि के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।
राज्य सरकार खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन को भी भरपूर बढ़ावा देने का इरादा रखती है। हमारा प्रयास रहेगा कि जिलों में अधिक से अधिक दुग्ध संकलन केन्द्र तथा चिलिंग सेन्टर खुलें। दुधारू पशुओं की उन्नत नस्लों के संवर्धन एवं संरक्षण के सार्थक प्रयास किए जाएं जिससे कि दुग्ध उत्पादन के ���्षेत्र में राजस्थान देश का अव्वल राज्य बने। उन्होंने कहा कि किसान राज्य सरकार की नीतियों का फायदा उठाकर अधिक से अधिक फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाएं। अपनी उपज का वैल्यू एडीशन करें और उन्हें निर्यात के लिए तैयार करें। इनसे उनकी आय बढ़ेगी और वे खुशहाल बनेंगे।
प्रदेश में पानी की कमी और गिरते भूजल स्तर को देखते हुए राज्य सरकार बूंद-बूंद और फव्वारा सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दे रही है। किसान इनका अधिकाधिक उपयोग कर जल संरक्षण में अपनी सहभागिता निभाएं। हमारा प्रयास रहेगा कि कृषि क्षेत्र के लिए अलग से बिजली कंपनी बने। सिंचाई के लिए रात-रात भर जागने से किसानों को होने वाली तकलीफ का एहसास सरकार को है। अब 15 जिलों में किसानों को दिन में बिजली उपलब्ध होने लगी है। हमारा प्रयास है कि ट्रांसमिशन सिस्टम विकसित कर तथा बिजली की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर मार्च 2023 से पूर्व प्रदेश के सभी जिलों में किसानों को पिलाई के लिए दिन में बिजली दी जाए।
प्रदेश के विभिन्न जिलों के किसानों ने बैठक में आगामी कृषि बजट को लेकर महत्वपूर्ण ��ुझाव दिए। कृषि, बागवानी एवं सहकारिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री दिनेश कुमार ने बताया कि प्रदेश की जीडीपी में कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्रों की 29.77 प्रतिशत भागीदारी है। सरसों, बाजरा एवं ग्वार के उत्पादन में राजस्थान देश में प्रथम तथा तिलहन, दलहन एवं दुग्ध उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। उन्होंने कहा कि बैठक में जो सुझाव प्राप्त हुए हैं। परीक्षण के बाद इनमें से उपयोगी सुझावों को आगामी कृषि बजट में सम्मिलित किया जा सकेगा।
बैठक में कृषि एवं पशुपालन मंत्री श्री लालचन्द कटारिया, जलदाय मंत्री डॉ. महेश जोशी, राजस्व मंत्री श्री रामलाल जाट, गोपालन मंत्री श्री प्रमोद जैन भाया, सहकारिता मंत्री श्री उदयलाल आंजना, कृषि विपणन राज्यमंत्री श्री मुरारीलाल मीणा, ऊर्जा राज्यमंत्री श्री भंवरसिंह भाटी, जनजातीय क्षेत्र विकास राज्यमंत्री श्री अर्जुन बामनिया, सिंचित क्षेत्र विकास राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग सहित मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्य, मुख्य सचिव श्रीमती ऊषा शर्मा, प्रमुख शासन सचिव वित्त श्री अखिल अरोरा, सलाहकार डॉ. गोविन्द शर्मा सहित विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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निवास पर ऊर्जा विभाग की समीक्षा बैठक में निर्देश दिए कि रबी सीजन में फसलों की बुवाई को देखते हुए किसानों को बिजली की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। बिजली कम्पनियां कर्ज का बोझ कम करने एवं ट्रांसमिशन-डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए दीर्घकालीन कार्य योजना बनाएं।
कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर किसानों को बूंद-बूंद सिंचाई एवं फव्वारा सिंचाई पद्धति अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए। इस संबंध में व्यापक प्रचार-प्रसार करने के निर्देश दिए।
बैठक में ऊर्जा राज्य मंत्री श्री भंवर सिंह भाटी ने कहा कि ‘मुख्यमंत्री किसान मित्र ऊर्जा योजना’ का किसानों को काफी लाभ मिल रहा है। सब्सिडी मिलने के कारण कई किसानों के बिजली के बिल शून्य हो गए हैं।
चेयरमैन डिस्कॉम्स श्री भास्कर ए सावंत ने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से बताया कि रबी सीजन 2021-22 में किसानों को पर्याप्त बिजली उपलब्ध कराने की दिशा में कार्य योजना तैयार की गई है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ऊर्जा श्री सुबोध अग्रवाल ने बताया कि कोयले की पर्याप्त आपूर्ति के लिए केन्द्र सरकार के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित किया जा रहा है।
बैठक में अधिकारियों ने बताया कि दिसंबर 2018 से अभी तक करीब ढ़ाई लाख कृषि कनेक्शन दिये जा चुके हैं। वर्ष 2021-22 की बजट घोषणा में शामिल 50 हजार ���ृषि कनेक्शनों के मुकाबले अभी तक 48 हजार कनेक्शन जारी कर दिये गए हैं।
इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री निरंजन आर्य, प्रमुख शासन सचिव वित श्री अखिल अरोरा, राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के सीएमडी श्री आर के शर्मा, जयपुर डिस्कॉम के एमडी श्री नवीन अरोड़ा, जोधपुर डिस्कॉम के एमडी श्री अविनाश सिंघवी, अजमेर डिस्कॉम के एमडी श्री वीएस भाटी सहित ऊर्जा विभाग के अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
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निवास से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जल जीवन मिशन की समीक्षा की। प्रदेश के हर घर में नल से जल पहुंचाने की दिशा में जल जीवन मिशन के कार्यों को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। जल संसाधन विभाग की विभिन्न वृहद् जल परियोजनाओं मे छीजत रोकने के साथ ही जल का कुशलतम उपयोग सुनिश्चित किया जाए ताकि जल जीवन मिशन के लिए इन परियोजनाओं से जल की उपलब्धता सुलभ हो सके।
वर्ष 2024 तक प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में हर घर जल पहुंचाने के लिए यह एक महत्वाकांक्षी योजना है। राजस्थान की पेयजल आवश्यकताओं को देखते हुए जरूरी है कि चंबल परियोजना, माही बांध, नर्मदा परियोजना सहित अन्य वृहद् परियोजनाओं के जल का कुशलतम उपयोग किया जाए। साथ ही व्यर्थ बह जाने वाले वर्षा जल को संचित कर इस जल के माध्यम से जल जीवन मिशन की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जाए।
प्रदेश में जल सीमित मात्रा में है, जबकि मांग लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में जरूरी है कि इजरायल जैसे देशों का अध्ययन कर जल के संरक्षण और समुचित उपयोग पर विशेष जोर दिया जाए। जल संरक्षण के माध्यम से नए स्रोत विकसित किए जाएं। जिनसे भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप पर्याप्त पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। जल संरक्षण की दिशा में किसानों को स्प्रिंकलर एवं बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति के अधिकाधिक उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
यह प्रसन्नता की बात है कि प्रदेश में विगत दिनों में जल जीवन मिशन के कार्यों को तेजी से आगे बढ़ाया गया है। यह मिशन प्रभावी रूप से क्रियान्वित हो सके, इसके लिए विभिन्न स्तर पर दी जाने वाली स्वीकृतियों का समय और कम किया जाए ताकि धरातल पर जल्द काम शुरू हो सके।
जलदाय मंत्री श्री बीडी कल्ला ने कहा कि प्रदेश में 15 अगस्त, 2019 तक 11 लाख 73 हजार ग्रामीण परिवारों को पेयजल कनेक्शन मिल चुके थे। इसके बाद करीब दो वर्षों में 74 लाख से अधिक स्वीकृतियां जारी की गई हैं। मिशन के तहत 8 हजार 162 पेयजल परियोजनाओं को स्वीकृति दी जा चुकी है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग श्री सुधांश पंत ने प्रस्तुतीकरण में बताया कि चालू वर्ष में पेयजल योजनाओं, कनेक्शन की प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृति, निविदा आमंत्रित करने तथा कार्यादेश जारी करने के कार्य को काफी तेजी से आगे बढ़ाया गया है। इस साल अब तक 14 हजार 830 गांवों में 6 हजार 214 ��ेयजल योजनाओं के माध्यम से 37 लाख कनेक्शनों के लिए निविदा आमंत्रित की जा चुकी हैं। साथ ही करीब 14 लाख जल संबंधों के लिए कार्यादेश जारी कर दिए गए हैं। सभी जिलों में इम्प्लीमेंटेशन, सपोर्ट एजेंसी का चयन करने के साथ ही 43 हजार 230 विलेज वाटर एंड सेनिटेशन कमेटी का गठन कर दिया गया है।
शासन सचिव जल संसाधन डॉ. पृथ्वीराज ने विभिन्न जल परियोजनाओं में जल की उपलब्धता, विभिन्न बांध निर्माण कार्यों की प्रगति आदि के संबंध में अवगत कराया। इस अवसर पर इंदिरा गांधी नहर परियोजना मंत्री श्री उदयलाल आंजना, मुख्य सचिव श्री निरंजन आर्य तथा जल संसाधन एवं जलदाय विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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राज्य सरकार के सतत प्रयासों से इंदिरा गांधी नहरी तंत्र क��� रिलाइनिंग का ऐतिहासिक काम हुआ है। इससे जल की बड़ी छीजत रूकेगी एवं सिंचाई और पेयजल के लिए अंतिम छोर तक अधिक पानी मिल सकेगा। अधिकारी बेहतर जल प्रबंधन कर इंदिरा गांधी नहर से जुडे़ सभी दस जिलों में सुचारू जलापूर्ति सुनिश्चित करें। साथ ही, टेल क्षेत्र के किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिले इसके लिए विभाग कार्य योजना बनाकर आगे बढ़े।
निवास से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इंदिरा गांधी नहर परियोजना की समीक्षा बैठक को संबोधित किया। इंदिरा गांधी नहर परियोजना क्षेत्र में 60 दिवसीय ऐतिहासिक मिश्रित नहरबंदी के दौरान इंदिरा गांधी फीडर व मुख्य नहर में हुए 70 किलोमीटर रिलाइनिंग कार्यों से टेल क्षेत्र के किसानों को लाभ मिलेगा। रिलाइनिंग पूर्ण हो जाने से इन्दिरा गांधी नहरी तंत्र में निर्धारित क्षमता से पानी का प्रवाह होगा जिससे पश्चिमी राजस्थान के 10 जिलों में आमजन को लाभ होगा। पंजाब सरकार ने लंबे समय से रूके हुए इस कार्य को पूरा करने में सकारात्मक सहयोग दिया है। इसके लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जी का आभार, साथ ही, राज्य के जल संसाधन विभाग की टीम को बधाई।
रिलाइनिंग कार्यों से नहर की मूल प्रवाह क्षमता रिस्टोर होगी। सीपेज से हो रही जल हानि रूकेगी और सेम की समस्या से निजात मिलेगी। साथ ही, नहरी तंत्र पर निर्भर 10 जिलों के लोगों को पेयजल उपलब्धता एवं 16.17 लाख हेक्टेयर कमांड क्षेत्र सिंचाई जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। प्रदेश में जल की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए नहरी क्षेत्रों के लिए माइनर इरीगेशन प्रोजेक्ट बनाया जाए। किसानों को फव्वारा एवं बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
रिलाइनिंग के कार्य होने से पाकिस्तान बहकर जाने वाले जल पर कुछ हद तक रोक लग सकेगी। निर्देश दिए कि भविष्य में इस पानी को पूरी तरह रोकने के लिए कार्य योजना बनाई जाए। साथ ही, गुजरात व्यर्थ बहकर जाने वाले पानी को जवा�� बांध में लाने के लिए सेई टनल के कार्य को समय पर पूरा करने का प्रयास किया जाए।
प्रदेश के 13 जिलों के लिए महत्वाकांक्षी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) राजस्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राजस्थान यात्रा के दौरान जयपुर एवं अजमेर में इस परियोजना को राष्ट्रीय दर्जा देने के लिए आश्वस्त किया था। राजस्थान में सूखे, अकाल और विषम भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को जल्द से जल्द इसे राष्ट्रीय दर्जा देना चाहिए। इस विषय पर राज्य सरकार के अधिकारी केंद्र सरकार के संबंधित विभागों के साथ लगातार समन्वय करें।
निर्देश दिए कि राज्य के हिस्से का पूरा पानी प्राप्त करने के लिए अन्तर्राज्यीय जल समझौतों से जुड़े लम्बित मुददों पर मुख्य सचिव एवं विभागीय उच्चाधिकारी प्रभावी पैरवी करें। इसके लिए सम्बन्धित राज्यों एव केन्द्र सरकार के स्तर पर सतत समन्वय किया जाए।
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जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए है कि प्रदेश की नवीन सिंचाई परियोजनाओं में बूंद-बूंद और फव्वारा सिंचाई पद्धति से परियोजना बनाया जाना अनिवार्य रूप से लागू करें। सिंचाई तथा पीने के लिए पानी की सीमित उपलब्धता के चलते यह बहुत आवश्यक है कि पानी की एक-एक बूंद का समुचित उपयोग हो।
निवास पर जल संसाधन विभाग की समीक्षा बैठक को संबोधित किया। विभाग में प्रगतिरत परियोजनाओं में बूंद-बूंद एवं फव्वारा पद्धतियों का लाभ किसानों को दिए जाने हेतु कृषि विभाग, उद्यान विभाग एवं जल संसाधन विभाग समन्वय बैठक कर लाभ पहुंचाना सुनिश्चित करें। प्रगतिरत परियोजनाओं को समयबद्ध पूर्ण किये जाने हेतु निर्देशित किया।
बैठक में बताया गया कि गत वर्षों की तुलना में इस वर्ष में राजस्थान को रावी-व्यास नदियों से 24 प्रतिशत तथा सतलज से 9 प्रतिशत जल अधिक मिलने से उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के किसानों एवं पूर्वी राजस्थान में यमुना नदी से लगभग दोगुना जल मिलने से भरतपुर क्षेत्र के किसानों को अधिक मात्रा में जल प्राप्त हुआ है। साथ ही, यह भी अवगत कराया गया कि पंजाब द्वारा फिरोजपुर फीडर की रिलाईनिंग की डीपीआर तैयार कर ली गई है तथा पंजाब से नहरों के माध्यम से राजस्थान में आ रहे प्रदूषित जल की रियल टाइम मॉनिटरिंग हेतु इन्दिरा गांधी फीडर एवं बीकानेर कैनाल पर मॉनिटरिंग सिस्टम लगाए जाने हेतु कार्यादेश जारी किया जा चुका है। मुख्यमंत्री ने विभाग को पंजाब सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर अन्तर्राज्यीय समझौते के अनुसार जल प्राप्त करने की कार्यवाही करने के लिए निर्देश दिए।
उल्लेखनीय है कि वर्षों से लम्बित इन्दिरा गांधी फीडर और सरहिन्द फीडर की रिलाइनिंग हेतु राजस्थान, पंजाब तथा केन्द्र सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौता दिनांक 23 जनवरी 2019 को किया गया है। इसके अन्तर्गत पंजाब द्वारा सरहिन्द फीडर की रिलाइनिंग के कार्य आरम्भ किए जाकर वर्ष 2019 में लगभग 17 किलोमीटर रिलाइनिंग पूर्ण की जा चुकी है। आगामी वर्षों में इन्दिरा गंाधी फीडर व सरहिन्द फीडर के कार्य पूर्ण किये जाने प्रस्तावित है। इन कार्यों की रिलाइनिंग पूर्ण हो जाने से इन्दिरा गांधी नहरी तंत्र में निर्धारित क्षमता से पानी की प्राप्ति होगी और पश्चिमी राजस्थान के 10 जिलों के आमजन को लाभ होगा।
विभाग में चल रही वृहद् सिंचाई परियोजनाओं जैसे- परवन परियोजना, ईसरदा बांध एवं धौलपुर लिफ्ट परियोजना की प्रगति की समीक्षा कर इन परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूर्ण कर आमजन को लाभ दिलाए जाने हेतु निर्देश दिए। विभाग में जल संसाधन तंत्र के आधुनिकीकरण एवं बांधों तथा नहर प्रणाली को स्वचालित करने हेतु चल रहे कार्यों की प्रगति की समीक्षा की गई।
विभाग द्वारा बताया गया कि जल उपभेाग दक्षता में वृद्धि करने हेतु विभाग में बांध पुर्नवास एवं सुधार परियोजना में राज्य के बड़े बांधों के जीर्णाेद्धार एवं आधुनिकीकरण हेतु 7 बांधों की निविदाएं एवं 6 बांधों की डीपीआर बनाकर केन्द्रीय जल आयोग को प्रस्तुत की गई हैं। राजस्थान राज्य आजीविका सुधार परियोजना के अर्न्तगत राज्य के 27 जिलों के बांध एवं नहरों के जीर्णाेद्धार से 4.70 लाख हैक्टेयर क्षेत्र के किसानों को लाभ होगा। परियोजना के प्रथम चरण हेतु 1 हजार 69 करोड़ रूपये स्वीकृत हैं, जिसके अन्तर्गत 39 परियोजनाओं के 477 करोड़ रूपये के कार्य प्रगतिरत हैं।
रेगिस्तान क्षेत्र में राजस्थान जल क्षेत्र पुर्नसंरचना परियोजना में इन्दिरा गांधी फीडर, इन्दिरा गांधी मुख्य नहर एवं वितरण प्रणाली के जीर्णोद्धार कार्यों में फीडर एवं मुख्य नहर के लगभग 41 किलोमीटर के कार्य, वितरण प्रणाली के 765 किलोमीटर के कार्य पूर्ण किये जाकर किसानों को लाभ दिए जाने की जानकारी दी गई।
शासन सचिव जल संसाधन श्री नवीन महाजन ने सिंचाई एवं पेयजल के लिए विभाग द्वारा संचालित विभिन्न परियोजनाओं तथा भविष्य की प्रस्तावित योजनाओं पर विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया। उन्होंने विभिन्न जल परियोजनाओं की प्रगति, बजट घोषणाओं आदि की क्रियान्विति की स्थिति से भी अवगत कराया। उन्होंने बताया कि विभाग कोे जल दक्षता सुधार कार्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संगठनों जैसे भारत सरकार के नेशनल वाटर मिशन, केन्द्रीय बोर्ड ऑफ इरिगेशन एण्ड पावर तथा वाटर इनोवेशन समिट 2020 आदि ने पुरस्कृत किया है।
इस दौरान मुख्य सचिव श्री राजीव स्वरूप, अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त श्री निरंजन आर्य, जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता एवं वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।
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प्रदेश में कृषि को किसानों के लिए लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए प्रगतिशील कृषकों के साथ मिलकर नवाचार करने, जैविक तथा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु के आधार पर शोध कर फसल उत्पादन की सलाह देने पर जोर दिया है। राज्य सरकार के लिए कृषि उच्च प्राथमिकता का विषय है, क्योंकि इस क्षेत्र के विकास से ही प्रदेश और देश की तरक्की को गति मिलती है।
निवास से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कृषि तथा इससे जुड़े विभिन्न विभागों की समूहवार समीक्षा बैठक को संबोधित किया। अधिकारियों को विभिन्न फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद का कवरेज बढ़ाने, फसल बीमा योजना को तर्कसंगत बनाने, कम पानी वाली फसलों एवं बूंद-बूंद सिंचाई और फव्वारा सिंचाई परियोजनाओं को प्रोत्साहन देने के लिए अभियान चलाने के निर्देश दिए।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए प्रीमियम के रूप में बीमा कम्पनियों को देय राज्यांश के लिए 250 करोड़ रूपये का भुगतान राज्य सरकार द्वारा गठित कृषक क��्याण कोष से करने का निर्णय लिया। साथ ही, प्रदेश के विभिन्न जिलों में डिग्गी निर्माण के बकाया दायित्वों के भुगतान के लिए कृषक कल्याण कोष से 92.2 करोड़ रूपये की राशि भी स्वीकृत की। इन स्वीकृतियों के बाद फसल बीमा कम्पनियों को प्रीमियम तथा किसानों को डिग्गी निर्माण के लिए अनुदान का भुगतान जल्द से जल्द हो सकेगा।
स्टाम्प ड्यूटी पर देय 20 प्रतिशत अधिभार का 50 प्रतिशत हिस्सा प्रदेशभर में संचालित गौशालाओं को गायों के संरक्षण तथा गौ-वंश के संवर्धन के लिए अनुदान के रूप में देने का निर्णय भी लिया। विगत दिनों प्रदेशभर के गौशाला संचालकों तथा गौ-वंश प्रेमियों द्वारा ज्ञापन आदि भेजकर इसके लिए मांग करने पर यह संवेदनशील निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि पूर्व में गायों के संरक्षण तथा गौ-वंश के संवर्धन के लिए स्टाम्प ड्यूटी पर 10 प्रतिशत अधिभार देय था। विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों के दृष्टिगत विगत दिनों स्टाम्प ड्यूटी पर अधिभार को 10 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया। साथ ही, अधिभार से प्राप्त राशि का उपयोग प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं सूखा, बाढ़, महामारी, लोक स्वास्थ्य की तात्कालिक जरूरतों, आगजनी आदि के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाना भी प्रस्तावित किया गया। अब स्टाम्प ड्यूटी पर कुल 20 प्रतिशत अधिभार का आधा हिस्सा गौ-वंश के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए ही व्यय करने के निर्णय से गौ-वंश के संरक्षण के लिए पूर्ववत ही फण्ड उपलब्ध रहेगा। इसके अतिरिक्त, अधिभार की शेष राशि का उपयोग विभिन्न आपदाओं एवं लोक स्वास्थ्य की तात्कालिक जरूरतों, आगजनी आदि की परिस्थितियों के प्रभाव को कम करने के लिए भी किया जा सकेगा।
समीक्षा बैठक में प्रदेश में ईज ऑफ डूइंग फार्मिंग, किसानों के लिए विभिन्न फसलों के प्रमाणित बीजों की उपलब्धता, कृषकों को नवाचारों के लिए प्रशिक्षण देने एवं प्रोत्साहित करने, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के विकल्प, किसानों से फसल उत्पादों की एमएसपी पर खरीद, कृषि प्रसंस्करण और विपणन में नवाचार, जीरो बजट प्राकृतिक खेती तथा जैविक खेती, कृषि शिक्षा, उद्यानिकी में बूंद-बूंद तथा फव्वारा सिंचाई पद्धति के महत्व, प्रदेश में फलों और फूलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने तथा केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित कृषि से जुड़े तीन अधिनियमों आदि विष��ों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।
प्रमुख शासन सचिव कृषि श्री कुंजीलाल मीणा ने बताया कि प्रदेश में जल्द ही राज किसान पोर्टल तैयार किया जाएगा। राज्य बजट में घोषित ईज ऑफ डूइंग फार्मिंग के क्रम में विभिन्न योजनाओं एवं अनुदानों का लाभ लेने के लिए प्रदेश के किसान इस पोर्टल के माध्यम ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। इससे योजनाओं का लाभ लेने में किसानों को आ रही परेशानियों का त्वरित एवं पारदर्शी समाधान हो सकेगा। उन्होंने कृषि, उद्यानिकी और कृषि विपणन विभागों की फ्लैगशिप योजनाओं एवं केन्द्रीय परिवर्तित योजनाओं की प्रगति, बजट घोषणाओं, जन घोषणा-पत्र एवं मुख्यमंत्री द्वारा विभिन्न अवसरों पर की गई घोषणाओं की क्रियान्विति की स्थिति पर प्रस्तुतीकरण दिया। साथ ही, कृषि एवं इसकी गतिविधियों से जुड़े विभागों की आगामी तीन माह की प्राथमिकताओं से भी अवगत कराया।
इस दौरान कृषि मंत्री श्री लालचन्द कटारिया, गोपालन मंत्री श्री प्रमोद जैन भाया, सहकारिता मंत्री श्री उदयलाल आंजना, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री श्री सुखराम विश्नोई, सहकारिता राज्यमंत्री श्री टीकाराम जूली, कृषि एवं पशुपालन राज्यमंत्री श्री भजनलाल जाटव, मुख्य सचिव श्री राजीव स्वरूप, अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त श्री निरंजन आर्य, शासन सचिव पंचायती राज श्री सिद्धार्थ महाजन, शासन सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति श्री हेमन्त गेरा सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे। विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बैठक में उपस्थित रहे।
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खीरा की पॉली हाउस में उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
खीरा की पॉली हाउस में उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
खीरा(Cucumber farming)मुख्यतयाः गर्म म��सम की फसल है, लेकिन पॉली हाउस में खीरा की खेती सालभर की जा सकती है। खीरा कि उत्पादन तकनीक इस प्रकार हैं।
खीरा की उन्नत किस्में:-
सेटिश, कियान, इनफाइनिटी, हिल्टन, मल्टीस्टार, डायनेमिक, काफ्का आदि।
Read also – कपास में बूंद- बूंद सिंचाई पद्धति अपनायें
तापमान एवं आद्रता:-
खीरा गर्म मौसम की फसल हैं। खुले वातावरण में इसकी खेती फरवरी-मार्च से लेकर सितंबर तक की जा…
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