बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मेरा है
बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मेरा है
आँखें भी मेरी ख़्वाब ए परेशाँ भी मेरा है,
जो डूबती जाती है वो कश्ती भी है मेरी
जो टूटता जाता है वो पैमाँ भी मेरा है,
जो हाथ उठे थे वो सभी हाथ थे मेरे
जो चाक हुआ है वो गिरेबाँ भी मेरा है,
जिसकी कोई आवाज़ न पहचान न मंज़िल
वो क़ाफ़िला ए बे सर ओ सामाँ भी मेरा है,
वीराना ए मक़तल पे हिजाब आया तो इस बार
ख़ुद चीख़ पड़ा मैं कि ये उनवाँ भी मेरा है,
वारफ़्तगी ए सुब्ह ए…
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