#बा��दिवस
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लोकमानस : सुगीचा फायदा घेणाऱ्यांवर काय परिणाम होणार?
लोकमानस : सुगीचा फायदा घेणाऱ्यांवर काय परिणाम होणार?
लोकमानस : सुगीचा फायदा घेणाऱ्यांवर काय परिणाम होणार? दिवंगत कवी श्री. बा. रानडे यांची ही नादमधुर कविता आम्हाला इयत्ता तिसरीत होती. ३१ ऑगस्टच्या संपादकीयात दुसऱ्या ओळीबद्दल केलेली विनंती डावलून ही कविता आठवलीच! या संपादकीयात अधोरेखित केलेली सुगी ही राजकारणी मंडळींची आहे. ‘‘दिवस सुगीचे सुरू जाहले। ओला चारा बैल माजले। शेतकरी मन प्रफुल्ल झाले। छन खळ खळ छन ढुम ढुम पट ढुम। लेझीम चाले जोरात…
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#एडिटोरियल#काय?#गद्य#घेणाऱ्यांवर#चालू घडामोडी#परिणाम#फायदा#भारत लाईव्ह न्यूज मीडिया#मथळा#मथळे#लेख विशेष#लेखन विशेष#लोकमानस#विश्लेषक लेख#विश्लेषण:#संपादकांचा शब्द#संपादकीय#संपादकीय टिप्पणी#संपादकीय विचार#सुगीचा#होणार?
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#tuesdaymotivations
8 दिसंबर 2022 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी का 72 वा अवतरण दिवस है।
इस पावन अवसर पर निशुल्क विशाल भंडारा निशुल्क नाम दीक्षा बा 6 से 8 सितंबर तक तीन दिवसीय अखंड पाठ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी सह परिवार आदर आमंतरित हैं।
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अनिल कमल चौहान द्वारा निर्देशित भोजपुरी फ़िल्म सइयाँ मिलल बा 420 का फर्स्ट लुक किया गया रिलीज।
अनिल कमल चौहान द्वारा निर्देशित भोजपुरी फ़िल्म सइयाँ मिलल बा 420 का फर्स्ट लुक किया गया रिलीज।
मुम्बई : भोजपुरी फ़िल्म निर्देशक अनिल कमल चौहान के निर्देशन में बनी भोजपुरी फ़िल्म सइयाँ मिलल बा 420 का फर्स्ट लुक रिलीज किया गया।स्वतंत्रता दिवस के खास अवसर पर इस फ़िल्म का फर्स्ट लुक रिलीज करते हुए अनिल कमल चौहान ने बताया कि फर्स्ट लुक जारी करने के साथ ही बहुत जल्द फ़िल्म का ट्रैलर भी रिलीज किया जाएगा।इससे पूर्व इनके निर्देशन बनीं भोजपुरी फ़िल्म मोर पिया हरजाई का ट्रैलर प्रिया वीडियो भोजपुरी के…
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#पंढरीची_वारी_आनंदवारी नकळत डोळ्यातून अश्रू वाहतात.... #भगवंता बा विठ्ठला नको रे असे दिवस पुन्हा दाखवू....... पुढच्या वारी पर्यंत हा महाराष्ट्र हा भारत देश कोरोणा मुक्त होऊन पायी वारीची परंपरा पुन्हा सुरू होऊ दे हीच विठ्ठलाच्या चरणी प्रार्थना 🙏 (at आपलं संभाजीनगर) https://www.instagram.com/p/CRgn_OCopr6/?utm_medium=tumblr
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चौरी-चौरा आंदोलन ने स्वाधीनता की लड़ाई को दिशा दी : प्रधानमंत्री मोदी Divya Sandesh
#Divyasandesh
चौरी-चौरा आंदोलन ने स्वाधीनता की लड़ाई को दिशा दी : प्रधानमंत्री मोदी
गोरखपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुुुरुवार को शुभारम्भ किया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने चौरी-चौरा पर 5 रुपए का डाक टिकट भी जारी किया। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने समारोह में वर्चुअल प्रतिभाग किया, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री मोदी ने भोजपुरी में लोगों का स्वागत एवं अभिन्दन करते हुए कहा, “शिव अवतारी गोरक्षनाथ की धरती के प्रणाम करत बाड़ी। देवरहवा बाबा के आशीर्वाद से ज़िला खूब बढ़त बा। आप लोगन के प्रणाम करत बाड़ी। शहीदन के नमन करत बाड़ी।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि सौ वर्ष पहले गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में जो हुआ, वह सिर्फ एक आगजनी की घटना नहीं थी। इसका संदेश व्यापक था। यह आगजनी किन परिस्थितियों में हुई, क्यों हुई, यह भी महत्व रखता है। आग थाने में नहीं जन-जन के दिलोंं में प्रज्ज्वलित हो चुकी थी। पूरे साल आयोजित होने वाले इस समारोह में हर गांव और हर क्षेत्र के सेनानियों के बलिदान को याद किया जाएगा। यह समारोह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब स्वतंत्रता दिवस के 75वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। चौरी-चौरा स्वत:स्फूर्त आंदोलन था। इसने स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा दी। यहां की मिट्टी में बलिदानियों का खून मिला है। इतिहास में ऐसी कम ही घटनाये��� होंगी जिसमें किसी एक घटना पर 19 लोग को फांसी दी गयी हो। हमें बाबा राघवदास और मदनमोहन मालवीय को भी नमन करना चाहिए कि जिनके प्रयास से इस घटना में फांसी दिए जाने वाले 150 लोगों की जान बची। पूरे प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रमों से सालभर चलने वाले इस प्रेरणादायक समारोह के लिए मै मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी पूरी टीम को बधाई देता हूँ।
कार्यक्रम के शुभारंभ पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री मोदी और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का स्वागत एवं अभिनन्दन किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री की प्रेरणा और मार्गदर्शन के फलस्वरूप पूरे प्रदेश में मनाये जा रहे इस शताब्दी समारोह के माध्यम से हम सभी अम�� बलिदानियों के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं। इस घटना ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा दी। जन-जन में स्वदेश और स्वावलम्बन की भावना का सृजन हुआ। इस महोत्सव का उद्देश्य भी शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान को याद करते हुए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है। देश एवं राष्ट्र की भावना को सर्वोपरि रखना है।
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नेताजी की 125 वीं जयंती मनाने के लिए कोलकाता में पराक्रम दिवस समारोह में पीएम के संबोधन .
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द! मंच पर विराजमान पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री जगदीप धनखड़ जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बहन ममता बनर्जी जी, मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी श्री प्रह्लाद पटेल जी, श्री बाबुल सुप्रियो जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के निकट संबंधी जन, भारत का गौरव बढ़ाने वाली आजाद हिंद फौज के जांबाज सदस्य, उनके परिजन, यहां उपस्थित कला और साहित्य जगत के दिग्गज और बंगाल की इस महान धरती के मेरे भाइयों और बहनों, आज कोलकाता में आना मेरे लिए बहुत भावुक कर देने वाला क्षण है। बचपन से जब भी ये नाम सुना- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मैं किसी भी स्थिति में रहा, परिस्थिति में रहा, ये नाम कान में पड़ते ही एक नई ऊर्जा से भर गया। इतना विराट व्यक्तित्व कि उनकी व्याख्या के लिए शब्द कम पड़ जाएं। इतनी दूर की दृष्टि कि वहां तक देखने के लिए अनेकों जन्म लेने पड़ जाएं। विकट से विकट परिस्थिति में भी इतना हौसला, इतना साहस कि दुनिया की बड़ी से बड़ी चुनौती ठहर न पाए। मैं आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चरणों में अपना शीश झुकाता हूं, उन्हें नमन करता हूं। और नमन करता हूं उस मां को, प्रभादेवी जी को जिन्होंने नेताजी को जन्म दिया। आज उस पवित्र दिन को 125 वर्ष हो रहे हैं। 125 वर्ष पहले, आज के ही दिन माँ भारती की गोद में उस वीर सपूत ने जन्म लिया था, जिसने आज़ाद भारत के सपने को नई दिशा दी थी। आज के ही दिन ग़ुलामी के अंधेरे में वो चेतना फूटी थी, जिसने दुनिया की सबसे बड़ी सत्ता के सामने खड़े होकर कहा था, मैं तुमसे आज़ादी मांगूंगा नहीं, आज़ादी छीन लूँगा। आज के दिन सिर्फ नेताजी सुभाष का जन्म ही नहीं हुआ था, बल्कि आज भारत के नए आत्मगौरव का जन्म हुआ था, भारत के नए सैन्य कौशल का जन्म हुआ था। मैं आज नेताजी की 125वीं जन्म-जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से इस महापुरुष को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं, उन्हें सैल्यूट करता हूं। साथियों, मैं आज बालक सुभाष को नेताजी बनाने वाली, उनके जीवन को तप, त्याग और तितिक्षा से गढ़ने वाली बंगाल की इस पुण्य-भूमि को भी आदरपूर्वक नमन करता हूँ। गुरुदेव श्री रबीन्द्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, शरद चंद्र जैसे महापुरुषों ने इस पुण्य भूमि को राष्ट्रभक्ति की भावना से भरा है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, चैतन्य महाप्रभु, श्री ऑरोबिन्दो, मां शारदा, मां आनंदमयी, स्वामी विवेकानंद, श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जैसे संतों ने इस पुण्यभूमि को वैराग्य, सेवा और आध्यात्म से अलौकिक बनाया है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजा राममोहन राय, गुरुचंद ठाकुर, हरिचंद ठाकुर जैसे अनेक समाज सुधारक सामाजिक सुधार के अग्रदूतों ने इस पुण्यभूमि से देश में नए सुधारों की नींव भरी है। जगदीश चंद्र बोस, पी सी रॉय, एस. एन. बोस और मेघनाद साहा अनगिनत वैज्ञानिकों ने इस पुण्य-भूमि को ज्ञान विज्ञान से सींचा है। ये वही पुण्यभूमि है जिसने देश को उसका राष्ट्रगान भी दिया है, और राष्ट्रगीत भी दिया है। इसी भूमि ने हमें देशबंधु चितरंजन दास, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और हम सभी के प्रिय भारत रत्न प्रणब मुखर्जी से साक्षात्कार कराया। मैं इस भूमि के ऐसे लाखों लाख महान व्यक्तित्वों के चरणों में भी आज इस पवित्र दिन पर प्रणाम करता हूँ। साथियों, यहाँ से पहले मैं अभी नेशनल लाइब्रेरी गया था, जहां नेताजी की विरासत पर एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस और आर्टिस्ट-कैम्प का आयोजन हो रहा है। मैंने अनुभव किया, नेत��जी का नाम सुनते ही हर कोई कितनी ऊर्जा से भर जाते हैं। नेताजी के जीवन की ये ऊर्जा जैसे उनके अन्तर्मन से जुड़ गई है! उनकी यही ऊर्जा, यही आदर्श, उनकी तपस्या, उनका त्याग देश के हर युवा के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। आज जब भारत नेताजी की प्रेरणा से आगे बढ़ रहा है, तो हम सबका कर्तव्य है कि उनके योगदान को बार-बार याद किया जाए। पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया जाए। इसलिए, देश ने तय किया है कि नेताजी की 125वीं जयंती के वर्ष को ऐतिहासिक, अभूतपूर्व भव्यता भरे आयोजनों के साथ मनाए। आज सुबह से देशभर में इससे जुड़े कार्यक्रम हर कोने में हो रहे हैं। आज इसी क्रम में नेताजी की स्मृति में एक स्मारक सिक्का और डाक-टिकट जारी किया गया है। नेताजी के पत्रों पर एक पुस्तक का विमोचन भी हुआ है। कोलकाता और बंगाल, जो उनकी कर्मभूमि रहा है, यहाँ नेताजी के जीवन पर एक प्रदर्शनी और प्रॉजेक्शन मैपिंग शो भी आज से शुरू हो रहा है। हावड़ा से चलने वाली ट्रेन ‘हावड़ा-कालका मेल’ का भी नाम बदलकर ‘नेताजी एक्सप्रेस’ कर दिया गया है। देश ने ये भी तय किया है कि अब हर साल हम नेताजी की जयंती, यानी 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया करेंगे। हमारे नेताजी भारत के पराक्रम की प्रतिमूर्ति भी हैं और प्रेरणा भी हैं। आज जब इस वर्ष देश अपनी आजादी के 75 वर्ष में प्रवेश करने वाला है, जब देश आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तब नेताजी का जीवन, उनका हर कार्य, उनका हर फैसला, हम सभी के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। उनके जैसे फौलादी इरादों वाले व्यक्तित्व के लिए असंभव कुछ भी नहीं था। उन्होंने विदेश में जाकर देश से बाहर रहने वाले भारतीयों की चेतना को झकझोरा, उन्होंने आज़ादी के लिए आज़ाद हिन्द फौज को मजबूत किया। उन्होंने पूरे देश से हर जाती, पंथ, हर क्षेत्र के लोगों को देश का सैनिक बनाया। उस दौर में जब दुनिया महिलाओं के सामान्य अधिकारों पर ही चर्चा कर रही थी, नेता जी ने ‘रानी झाँसी रेजीमेंट’ बनाकर महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। उन्होंने फौज के सैनिकों को आधुनिक युद्ध के लिए ट्रेनिंग दी, उन्हें देश के लिए जीने का जज्बा दिया, देश के लिए मरने का मकसद दिया। नेता जी ने कहा था- “भारोत डाकछे। रोकतो डाक दिए छे रोक्तो के। ओठो, दाड़ांओ आमादेर नोष्टो करार मतो सोमोय नोय। अर्थात, भारत बुला रहा है। रक्त, रक्त को आवाज़ दे रहा है। उठो, हमारे पास अब गँवाने के लिए समय नहीं है। साथियों, ऐसी हौसले भरी हुंकार सिर्फ और सिर्फ नेताजी ही दे सकते थे। और आखिर, उन्होंने ये दिखा भी दिया कि जिस सत्ता का सूरज कभी अस्त नहीं होता, भारत के वीर सपूत रणभूमि में उसे भी परास्त कर सकते हैं। उन्होंने संकल्प लिया ��ा, भारत की जमीन पर आज़ाद भारत की आज़ाद सरकार की नींव रखेंगे। नेताजी ने अपना ये वादा भी पूरा करके दिखाया। उन्होंने अंडमान में अपने सैनिकों के साथ आकर तिरंगा फहराया। जिस जगह अंग्रेज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों को यातनाएं देते थे, काला पानी की सजा देते थे, उस जगह जाकर उन्होंने उन सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि दी। वो सरकार, अखंड भारत की पहली आज़ाद सरकार थी। नेताजी अखंड भारत की आज़ाद हिन्द सरकार के पहले मुखिया थे। और ये मेरा सौभाग्य है कि आज़ादी की उस पहली झलक को सुरक्षित रखने के लिए, 2018 में हमने अंडमान के उस द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रखा। देश की भावना को समझते हुए, नेताजी से जुड़ी फाइलें भी हमारी ही सरकार ने सार्वजनिक कीं। ये हमारी ही सरकार का सौभाग्य रहा जो 26 जनवरी की परेड के दौरान INA Veterans परेड में शामिल हुए। आज यहां इस कार्यक्रम में आजाद हिंद फौज में रहे देश के वीर बेटे और बेटी भी उपस्थित हैं। मैं आपको फिर से प्रणाम करता हूं और प्रणाम करते हुए यही कहूंगा कि देश सदा-सर्वदा आपका कृतज्ञ रहेगा, कृतज्ञ है और हमेशा रहेगा। साथियों, 2018 में ही देश ने आज़ाद हिन्द सरकार के 75 साल को भी उतने ही धूमधाम से मनाया था। देश ने उसी साल सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबन्धन पुरस्कार भी शुरू किए। नेताजी ने दिल्ली दूर नहीं का नारा देकर लाल किले पर झंडा फहराने का जो सपना देखा था, उनका वो सपना देश ने लाल किले पर झंडा फहराकर पूरा किया। भाइयों और बहनों, जब आजाद हिंद फौज की कैप में मैंने लाल किले पर झंडा फहराया था, उसे मैंने अपने सर पर लगाया था। उस वक्त मेरे मन मस्तिष्क में बहुत कुछ चल रहा था। बहुत से सवाल थे, बहुत सी बातें थीं, एक अलग अनुभूति थी। मैं नेताजी के बारे में सोच रहा था, देशवासियों के बारे में सोच रहा था। वो किसके लिए जीवन भर इतना रिस्क उठाते रहे, जवाब यही है- हमारे और आपके लिए। वो कई-कई दिनों तक आमरण अनशन किसके लिए करते रहे- आपके और हमारे लिए। वो महीनों तक किसके लिए जेल की कोठरी में सजा भुगतते रहे- आपके और हमारे लिए। कौन ऐसा होगा जिसके जीवन के पीछे इतनी बड़ी अंग्रेजी हुकूमत लगी हो वो जान हथेली पर रखकर फरार हो जाए। हफ्तों-हफ्तों तक वो काबुल की सड़कों पर अपना जीवन दांव पर लगाकर एक एंबैसी से दूसरी के चक्कर लगाते रहे- किसके लिए? हमारे और आपके लिए। विश्व युद्ध के उस माहौल में देशों के बीच पल-पल बदलते देशों के बीच के रश्ते, इसके बीच क्यों वो हर देश में जाकर भारत के लिए समर्थन मांग रहे थे? ताकि भारत आजाद हो सके, हम और आप आजाद भारत में सांस ले सकें। हिंदुस्तान का एक-एक व्यक्ति नेताजी सुभाष बाबू का ऋणी है। 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के शरीर में बहती रक��त की एक-एक बूंद नेताजी सुभाष की ऋणी है। ये ऋण हम कैसे चुकाएंगे? ये ऋण क्या हम कभी चुका भी पाएंगे? साथियों, जब नेताजी सुभाष यहां कोलकाता में अपने अड़तीस बटा दो, एल्गिन रोड के घर में कैद थे, जब उन्होंने भारत से निकलने का इरादा कर लिया था, तो उन्होंने अपने भतीजे शिशिर को बुलाकर कहा था- अमार एकटा काज कोरते पारबे? अमार एकटा काज कोरते पारबे? क्या मेरा एक काम कर सकते हो? इसके बाद शिशिर जी ने वो किया, जो भारत की आजादी की सबसे बड़ी वजहों में से एक बना। नेताजी ये देख रहे थे कि विश्व-युद्ध के माहौल में अंग्रेजी हुकूमत को अगर बाहर से चोट पहुंचाई जाए, तो उसे दर्द सबसे ज्यादा होगा। वो भविष्य देख रहे थे कि जैसे-जैसे विश्व युद्ध बढ़ेगा, वैसे-वैसे अग्रेजों की ताकत कम पड़ती जाएगी, भारत पर उनकी पकड़ कम पड़ती जाएगी। ये था उनका विजन, इतनी दूर देख रहे थे वो। मैं कहीं पढ़ रहा था कि इसी समय उन्होंने अपनी भतीजी इला को दक्षिणेश्वर मंदिर भी भेजा था कि मां का आशीर्वाद ले आओ। वो देश से तुरंत बाहर निकलना चाहते थे, देश के बाहर जो भारत समर्थक शक्तियां हैं उन्हें एकजुट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने युवा शिशिर से कहा था- अमार एकटा काज कोरते पारबे? क्या मेरा एक काम कर सकते हो? साथियों, आज हर भारतीय अपने दिल पर हाथ रखे, नेताजी सुभाष को महसूस करे, तो उसे फिर से ये सवाल सुनाई देगा- अमार एकटा काज कोरते पारबे? क्या मेरा एक काम कर सकते हो? ये काम, ये काज, ये लक्ष्य आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने का है। देश का जन-जन, देश का हर क्षेत्र, देश का हर व्यक्ति इससे जुड़ा है। नेताजी ने कहा था- पुरुष, ओर्थो एवं उपोकरण निजेराई बिजोय बा साधिनता आंते पारे ना. आमादेर अबोशोई सेई उद्देश्यो शोकति थाकते होबे जा आमादेर साहोसिक काज एवंम बीरतपुरनो शोसने उदबुधो कोरबे. यानि, हमारे पास वो उद्देश्य और शक्ति होनी चाहिए, जो हमें साहस और वीरतापूर्ण तरीके से शासन करने के लिए प्रेरित करे। आज हमारे पास उद्देश्य भी है, शक्ति भी है। आत्मनिर्भर भारत का हमारा लक्ष्य हमारी आत्मशक्ति, हमारे आत्मसंकल्प से पूरा होगा। नेता जी ने कहा था- “आज आमादेर केबोल एकटी इच्छा थाका उचित – भारोते ईच्छुक जाते, भारोते बांचते पारे। यानि, आज हमारी एक ही इच्छा होनी चा���िए कि हमारा भारत बच पाए, भारत आगे बढ़े। हमारा भी एक ही लक्ष्य है। अपना खून-पसीना बहाकर देश के लिए जीएं, अपने परिश्रम से, अपने innovations से देश को आत्मनिर्भर बनाएं। नेताजी कहते थे- “निजेर प्रोती शात होले सारे बिस्सेर प्रोती केउ असोत होते पारबे ना’ अर्थात, अगर आप खुद के लिए सच्चे हैं, तो आप दुनिया के लिए गलत नहीं हो सकते। हमें दुनिया के लिए बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट बनाने होंगे, कुछ भी कमतर नहीं, Zero Defect- Zero Effect वाले प्रॉडक्ट। नेताजी ने हमें कहा था- “स्वाधीन भारोतेर स्वोप्ने कोनो दिन आस्था हारियो ना। बिस्से एमुन कोनो शोक्ति नेई जे भारोत के पराधीनांतार शृंखलाय बेधे राखते समोर्थों होबे” यानी, आज़ाद भारत के सपने में कभी भरोसा मत खोओ। दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो भारत को बांधकर के रख सके। वाकई, दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो 130 करोड़ देशवासियों को, अपने भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाने से रोक सके। साथियों, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, गरीबी को, अशिक्षा को, बीमारी को, देश की सबसे बड़ी समस्याओं में गिनते थे। वो कहते थे- ‘आमादेर शाब्छे बोरो जातियो समस्या होलो, दारिद्रो अशिकखा, रोग, बैज्ञानिक उत्पादोन। जे समस्यार समाधान होबे, केबल मात्रो सामाजिक भाबना-चिन्ता दारा” अर्थात, हमारी सबसे बड़ी समस्या गरीबी, अशिक्षा, बीमारी और वैज्ञानिक उत्पादन की कमी है। इन समस्याओं के समाधान के लिए समाज को मिलकर जुटना होगा, मिलकर प्रयास करना होगा। मुझे संतोष है कि आज देश पीड़ित, शोषित वंचित को, अपने किसान को, देश की महिलाओं को सशक्त करने के लिए दिन-रात एक कर रहा है। आज हर एक गरीब को मुफ्त इलाज की सुविधा के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं। देश के किसानों को बीज से बाजार तक आधुनिक सुविधाएं दी जा रही हैं। खेती पर होने वाला उनका खर्च कम करने के प्रयास किए जा रहा है। हर एक युवा को आधुनिक और गुणवत्ता-पूर्ण शिक्षा मिले, इसके लिए देश के education infrastructure को आधुनिक बनाया जा रहा है। बड़ी संख्या में देश भर में एम्स, IITs और IIMs जैसे बड़े संस्थान खोले गए हैं। आज देश, 21वीं सदी की जरूरतों के हिसाब से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी लागू कर रहा है। साथियों, मैं कई बार सोचता हूँ कि आज देश में जो बदलाव हो रहे हैं, जो नया भारत आकार ले रहा है, उसे देख नेताजी को कितनी संतुष्टि मिलती। उन्हें कैसा लगता, जब वो दुनिया की सबसे आधुनिक technologies में अपने देश को आत्मनिर्भर बनते देखते? उन्हें कैसा लगता, जब वो पूरी दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों में, शिक्षा में, मेडिकल सैक्टर में भारतीयों का डंका बजते देखते? आज राफेल जैसे आधुनिक विमान भी भारत की सेना के पास हैं, और तेजस जैसे अत्याधुनिक विमान भारत खुद भी बना रहा है। जब वो देखते कि आज उनके देश की सेना इतनी ताकतवर है, उसे वैसे ही आधुनिक हथियार मिल रहे हैं, जो वो चाहते थे, तो उन्हें कैसा लगता? आज अगर नेताजी ये देखते कि उनका भारत इतनी बड़ी महामारी से इतनी ताकत से लड़ा है, आज उनका भारत vaccine जैसे आधुनिक वैज्ञानिक समाधान खुद तैयार कर रहा है तो वो क्या सोचते? जब वो देखते कि भारत वैक्सीन देकर दुनिया के दूसरे देशों की मदद भी कर रहा है, तो उन्हें कितना गर्व होता। नेताजी जिस भी स्वरूप में हमें देख रहे हैं, हमें ��शीर्वाद दे रहे हैं, अपना स्नेह दे रहे हैं। जिस सशक्त भारत की उन्होंने कल्पना की थी, आज LAC से लेकर के LOC तक, भारत का यही अवतार दुनिया देख रही है। जहां कहीं से भी भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश की गई, भारत आज मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। साथियों, नेताजी के बारे में बोलने के लिए इतना कुछ है कि बात करते-करते रातों की रातों बीत जाए। नेताजी जैसे महान व्यक्तित्वों के जीवन से हम सबको, और खासकर युवाओं को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। लेकिन एक और बात जो मुझे बहुत प्रभावित करती है, वो है अपने लक्ष्य के लिए अनवरत प्रयास। विश्व युद्ध के समय पर जब साथी देश पराजय का सामना कर चुके थे, सरेंडर कर रहे थे, तब नेताजी ने अपने सहयोगियों को जो बात कही थी, उसका भाव यही था कि- दूसरे देशों ने सरेंडर किया होगा, हमने नहीं। अपने संकल्पों को सिद्धि तक ले जाने की उनकी क्षमता अद्वितीय थी। वो अपने साथ भगवत गीता रखते थे, उनसे प्रेरणा पाते थे। अगर वो किसी काम के लिए एक बार आश्वस्त हो जाते थे, तो उसे पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक प्रयास करते थे। उन्होंने हमें ये बात सिखाई है कि, अगर कोई विचार बहुत सरल नहीं है, साधारण नहीं है, अगर इसमें कठिनाइयाँ भी हैं, तो भी कुछ नया करने से डरना नहीं चाहिए। अगर आप किसी चीज में भरोसा करते हैं, तो आपको उसे प्रारंभ करने का साहस दिखाना ही चाहिए। एक बार को ये लग सकता है कि आप धारा के विपरीत बह रहे हैं, लेकिन अगर आपका लक्ष्य पवित्र है तो इसमें भी हिचकना नहीं चाहिए। उन्होंने ये करके दिखाया कि आप अगर अपने दूरगामी लक्ष्यों के लिए समर्पित हैं, तो सफलता आपको मिलनी ही मिलनी है। साथियों, नेताजी सुभाष, आत्मनिर्भर भारत के सपने के साथ ही सोनार बांग्ला की भी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। जो भूमिका नेताजी ने देश की आज़ादी में निभाई थी, आज वही भूमिका पश्चिम बंगाल को आत्मनिर्भर भारत अभियान में निभानी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान का नेतृत्व आत्मनिर्भर बंगाल और सोनार बांग्ला को भी करना है। बंगाल आगे आए, अपने गौरव को और बढ़ाए, देश के गौरव को और बढ़ाए। नेताजी की तरह ही, हमें भी अपने संकल्पों की प्राप्ति तक अब रुकना नहीं है। आप सभी अपने प्रयासों में, संकल्पों में सफल हों, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आज के इस पवित्र दिवस पर, इस पवित्र धरती पर आकर के, आप सबके आशीर्वाद लेकर के नेताजी के सपनों को पूरा करने का हम संकल्प करके आगे बढ़े, इसी एक भावना के साथ मैं आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ! जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द! बहुत-बहुत धन्यवाद!
#netaji subhash chandra bose jayanti#birth anniversary#parakramdivas#kolkataspeeches#newindia#yuvashakti#youth#aatmanirbharbharat#aatmanirbharbharatabhiyan#freedomfighters#leader#education#empoweringthepoor#technology#farmer#farmerwelfare#womanempowerment#healthcare#iit#aiims#infrastructure#science and technology#indiafirst#narendramodi
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'का हाल बा' पूछने वाले हो सकते हैं गणतंत्र दिवस पर चीफ ग���स्ट http://www.headlinehindi.com/citizen-news/%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%9b%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a4%a4/?feed_id=47090&_unique_id=5ffbf02a0cf70
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#tuesdaymotivations
8 दिसंबर 2022 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी का 72 वा अवतरण दिवस है।
इस पावन अवसर पर निशुल्क विशाल भंडारा निशुल्क नाम दीक्षा बा 6 से 8 सितंबर तक तीन दिवसीय अखंड पाठ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी सह परिवार आदर आमंतरित हैं।
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Bollywood: यश राज की अगली फिल्म का हिस्सा बनेंगे विक्की कौशल, मानुषी छिल्लर https://ift.tt/320hiTI
Bollywood: यश राज की अगली फिल्म का हिस्सा बनेंगे विक्की कौशल, मानुषी छिल्लर https://ift.tt/320hiTI
डिजिटल डेस्क, मुंबई। यश राज फिल्म्स द्वारा निर्मित एक आगामी कॉमेडी फिल्म में अभिनेता विक्की कौशल पूर्व मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर संग नजर आएंगे। एक सूत्र ने आईएएनएस के साथ हुई बातचीत में कहा, मानुषी को विक्की के विपरीत यश राज फिल्म्स द्वारा निर्मित एक कॉमेडी फिल्म के लिए साइन किया गया है।
वह एक आउटसाइडर हैं, लेकिन प्रियंका चोपड़ा के 17 साल बाद साल 2017 में उन्होंने मिस वर्ल्ड को खिताब जीतकर अपनी पहचान खुद बनाई है। उन्हें अपने दम पर पृथ्वीराज में भी काम करने का मौका मिला है जिसके लिए उन्होंने ��ूब मेहनत की और एक दमदार ऑडिशन दिया।
कंगना के निशाने पर एक बार फिर करण जौहर
सूत्र ने आगे बताया, फिल्म से जुड़ी इससे अधिक जानकारी का अभी खुलासा नहीं किया जा सकता है। ज्ञात हो कि यह फिल्म यश राज फिल्म्स के प्रोजेक्ट 50 का हिस्सा है जिसके तहत कुछ बेहद ही बेहतरीन फिल्मों की घोषणा की जाएगी।
यश राज फिल्म्स के द्वारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर किए गए एक ऐलान में आदित्य चोपड़ा ने कहा कि 27 सिंतबर को अपने दिवंगत पिता व फिल्मकार यश चोपड़ा की 88वीं जयंती को चिन्हित करने के लिए उनके प्रोडक्शन हाउस द्वारा निर्मित कई परियोजनाओं की घोषणा की जाएगी।
यह ऐलान बैनर की 50वीं सालगिरह को चिन्हित करने के मद्देनजर किया गया। विक्की और मानुषी अभिनीत यह फिल्म भी यश राज फिल्मस के प्रोजेक्ट 50 का हिस्सा है जिसका मकसद बैनर की 50वीं सालगिरह के जश्न को मनाना है।
फिल्म व कास्टिंग को लेकर आधिकारिक घोषणा 27 सिंतबर को की जानी है, जिस दिन आदित्य चोपड़ा के द्वारा स्टूडियो के पूर्ण कार्यविवरण का अनावरण किया जाएगा। बैनर की आगामी फिल्मों में बंटी और बबली 2, शमशेरा, जयेशभाई जोरदार, पृथ्वीराज और संदीप और पिंकी फरार जैसी फिल्में शामिल हैं।
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Vicky Kaushal to be a part of Yash Raj's next film, Manushi Chillar
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#AbadhaFoundation #AbadhaAbhyas दि. २७/०२/२०२० रोज गुरुवारला अबाधा फाऊंडेशन तुमसर च्या वतीने अबाधा अभ्यास या उपक्रमांतर्गत केंद्र तुमसर, उसर्रा, गुंथारा, दवडीपार (बा.) येथे “मराठी भाषा दिन” साजरा करण्यात आला. विष्णू वामन शिरवाडकर उर्फ कुसुमाग्रज यांची जन्म दिवसाच्या निमित्ताने हा दिवस मराठी भाषा दिन म्हणून साजरा करतात. पंधराशे वर्षाचा इतिहास जपणारी मराठी भाषा आहे. म्हणून त्याविषयीची संस्कृती मनुष्याने जपून ठेवायला पाहिजे, मराठी भाषेचा गोडवा अमृतापेक्षा जास्त आहे. संत ज्ञानेश्वरांनी ज्ञानेश्वरी या मराठी ग्रंथातूनच सामाजिक प्रबोधन केले. सदर कार्यक्रमाचा उद्देश म्हणजे मराठी हि महाराष्ट्रीयन लोकांची मातृभाषा असल्यामुळे ती शेवटपर्यंत टिकून राहावी हा आहे. अश्याप्रकारे हे कार्यक्रम संस्थेच्या व्यवस्थापकीय संचालिका मा. माधुरीताई पटले यांच्या मार्गदर्शनाखाली संस्थेचे अधिकारी मा. जय मोरे व सर्व कर्मचारी वृंद यांनी सुरळीत पार पाडले. (at Abadha Foundation) https://www.instagram.com/p/B9ESYfinP9I/?igshid=1s97jxxej02xv
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कस्तूरबा ग्राम: बा के घर में महिलाओं को बनाया जा रहा है सक्षम, हाथों से काटे गए सूत से बने कपड़े पहनती हैं छात्राएं
चैतन्य भारत न्यूज इंदौर. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी ने 22 फरवरी, 1944 को दुनिया को अलविदा कह दिया था। कस्तूरबा गांधी के स्मृति दिवस पर हम आपको आज इंदौर स्थित 'बा के घर' के बारे में बता रहे हैं। कस्तूरबा ग्राम में स्थित बा के घर में रोजाना सैकड़ों छात्राएं प्रार्थना सभा के बाद एक साथ बैठकर सूत काटती हैं। वे अपने हाथों से बने कपड़ें और स्कूल यूनिफार्म पहनती हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); कस्तूरबा ग्राम इंदौर के खंडवा रोड पर है। महात्मा गांधी ने 22 फरवरी 1944 को पुणे में पत्नी के निधन के बाद कस्तूरबा गांधी के नाम से एक ट्रस्ट खोलने का निर्णय लिया था। उनकी इच्छा थी कि इस ट्रस्ट को भारत के मध्य में किसी गांव में खोला जाए। फिर 2 अक्टूबर 1945 को महात्मा गांधी के जन्मदिन के अवसर पर कस्तूरबा ग्राम ट्रस्ट का गठन किया गया।बापू खुद इस ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष बने। इसके उपाध्यक्ष सरदार पटेल बनाए गए। इंदौर में कस्तूरबा ग्राम की स्थापना के बाद देश के करीब 23 राज्यों में इसकी 547 शाखाएं संचालित हो रही है। बा के सपने के अनुरूप ही बा के घर में महिलाओं को प्रशिक्षण, सेवा, शिक्षा, स्वरोजगार के माध्यम से सक्षम बनाने काम किया जा रहा है। संस्था के कर्मचारी भी इसमें श्रमदान देते हैं। यह संस्था ग्रामीण, दलित महिलाओं को शिक्षा, सेवा और स्वरोजगार से जोड़ने की दिशा में काम कर रही है। संस्था में करीब 2500 छात्राएं शिक्षा पा रही हैं। कस्तूरबा ग्राम में रोजाना सुबह पहले प्रार्थना होती है और फिर नियमित आधा घंटा सूत काटा जाता है। कताई विभाग प्रभारी पद्मा मानमोड़े ने बताया कि, कताई विभाग में एक दिन में एक गुंडी और 30 दिन में 30 गुंडी यानी एक किलो के लगभग कपड़ा तैयार हो जाता है। कताई का उद्देश्य पैसा कमाना नहीं बल्कि श्रमदान कर स्वावलंबी बनाना है। बालिकाओं को कताई की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रस्ट की मंत्री व पूर्व आइएस सूरज डामोर ने बताया कि, अंबर चरखों के जरिए बालिकाएं सूत कातने का काम कर रही हैं। साथ ही यहां इसका कोर्स और ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इनका लक्ष्य पुरानी पंरपराएं और नए प्रयोग से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। ये भी पढ़े... स्मृति दिवस: बेहद संघर्षभरा था कस्तूरबा गांधी का जीवन, आखिरी समय तक ��िता के पास बैठे रहे थे बापू इंदौर में महिलाओं की अनोखी प्रतियोगिता, जीतने पर मिलेगा मिस हीमोग्लोबिन का ताज मध्यप्रदेश के इस गांव में 97 साल से नहीं बढ़ी जनसंख्या, बेहद रोचक है इसके पीछे कहानी Read the full article
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हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव RSS के छः उत्सवों में तिथिक्रमानुसार दूसरा उत्सव १६७४ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन रायगढ़ के विशाल प्रांगण में राजे रजबाडों की सहभागिता तथा जीजा माता एवं शम्भाजी की उपस्थिति में शिवराज का राज्याभिषेक हुआ ! इसके पीछे के पराभव की सुदीर्घ एतिहासिक प्रष्ठभूमि में यह एक गौरवपूर्ण क्षण था ! मुहम्मद बिन कासिम सातवीं सदी में आक्रमण करने आया तब से १७ वीं सदी तक पददलित रहे ! महिलाओं का अपमान तो आम बात थी ! पराक्रम की शक्यता व क्षमता होते हुए भी उसका चिन्ह दिखाई नहीं देता था ! छुटपुट प्रयास या बड़े प्रयास, यहाँ तक कि महाराणा प्रताप का पराक्रम भी यह दाग धो नहीं सका था ! विजय नगर साम्राज्य एवं देवगिरी साम्राज्य भी अल्पकाल में लुप्त हो गए थे ! निराशाजनक स्थिति थी ! पराक्रम के वाबजूद कुंठा का भाव था ! न्यायमूर्ति रानाडे ने उन्नीसवीं शताव्दी के अंत में हिस्ट्री ऑफ ग्रेट मराठा लिखी ! उन्होंने पुस्तक लिखने का कारण भी लिखा ! देश की आगामी पीढ़ी पर पराभूतता की छाया नहीं रहे ! पुस्तक की अंतिम कड़ी है विजय ही विजय – शिव राज्याभिषेक ! लोकमान्य तिलक ने भी सार्वजनिक रूप से गुलामी काल में हिन्दू साम्राज्य दिवस के नाम से यह उत्सव प्रारम्भ किया ! आज भी परिवेश भिन्न, किन्तु संकट बरकरार ! आज भी आधी अधूरी विजय ! आज भी निराशा का वातावरण ! राम गणेश गडकरी के मराठी नाटक शिव संभव का एक दृश्य है – गर्भवती जीजामात�� से उनकी इच्छा पूछकर होने बाले बच्चे के स्वभाव का पूर्वानुमान लगाया जाता है ! जीजा माता सहेलियों को अपनी इच्छा बताती हैं कि शेर पर सवार, १८ भुजाओं में शस्त्र लेकर बैठी हूँ ! यह उनकी इच्छा किन्तु समाज में साहस नहीं ! समर्थ रामदास रामराय से प्रार���थना करते – जनहित में करो राम दाया, मेरा मन तड़प रहा है ! ��वतार लेना होगा ! शिव बा से कहते थे साम्राज्य स्थापित करो, शपथ लो उंगली चीरकर ! जीजा माता भी कहतीं, यही मेरा भी सपना है ! जीजामाता कहतीं थीं चाकरी नहीं राज करने को पैदा हुआ है ! वहां से विजय पथ प्रारम्भ हुआ ! क्षत्रपति शिवराय का प्रयास समाज का खोया आत्मविश्वास पुनः जागृत करने का ! शिवाजी स्वराज की संकल्पना का जन (mass) के साथ साथ गण (Class) में सम्प्रेषण सफलता पूर्वक इस कारण कर पाए, क्योंकि उन्होंने यह नहीं कहा कि “स्वराज मेरी अवधारणा है” | उन्होंने हमेशा स्पष्ट स्वरों में कहा कि “स्वराज यह श्री की इच्छा है” | जबकि आज देश में दृश्य ठीक विपरीत है | सरकार हो या संगठनों के नेता, हर योजना को अपनी बताते हैं, उसके लिए विज्ञापन, होर्डिंग तथा मार्केटिंग के विभिन्न तर https://www.instagram.com/p/ByrTopagvnN/?igshid=vhdnvpa2poom
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#tuesdaymotivations
8 दिसंबर 2022 को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी का 72 वा अवतरण दिवस है।
इस पावन अवसर पर निशुल्क विशाल भंडारा निशुल्क नाम दीक्षा बा 6 से 8 सितंबर तक तीन दिवसीय अखंड पाठ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी सह परिवार आदर आमंतरित हैं।
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वीपी कोइराला र अहिलेको कांग्रेस
नेपालमा मात्र नभई सारा विश्वमा नै उच्च छवि बनाएका एक महान् राजनीतिज्ञ हुन्, वीपी कोइराला । नेपाली कांग्रेस पार्टीका संस्थापक नेता कोइराला आफ्नो जीवनभर प्रजातन्त्रका लागि लडिरहे । दूरदर्शी नेता कोइरालाको आदर्श, विचार र सिद्धान्त अहिले पनि उत्तिकै सान्दर्भिक छ । आज अर्थात् साउन ६ गते कोइरालाको स्मृति दिवस । यही लेखमार्फत वीपीको राजनीतिक जीवन र उनका प्रेरणादायी कुरालाई प्रकाश पार्ने प्रयास गरेको छु ।
सानोमा वीपीका बारेमा प्रशस्त किस्सा सुनिन्थे । हामी स्कुल पढ्ने हुँदा नेपालमा प्रजातनत्र आइसकेको थियो । त्यसैले पनि वीपी सँगसँगै हिँडेको, नजिकबाट चिनेको र वीपी विचारबाट अत्यन्त प्रभावित शिक्षकले हामीलाई पढाउँदा वीपी र उनका विचारबारे भनिररहन्थे । त्यसकारण उनीप्रति सानैदेखि सकारात्मक प्रभाव परेको थियो । कक्षा उक्लिँदै गर्दा वीपीबारे पढ्ने मौका मिल्यो । वीपीका राजनीतिक जीवन, सिद्धान्त र विचारबारे अध्ययन गर्न थालियो । स्कुले जीवनमा नै वीपीलाई प्रशस्त पढियो ।
वीपीलाई प्रधानमन्त्री भएपछि मोहन शमशेरले सोधेका थिए, ‘वीपी अब तपाईं प्रधानमन्त्री हुनुभयो, तपाईंको उद्देश्य के छ ?’ वीपीले सरल उत्तर दिएका थिए, ‘एउटा मध्यम वर्गीय परिवारको मान्छे हुँ, बिहान बेलुका खान हामीलाई दुःख छैन । मेरो अलिकति खेत पनि छ, त्यहीँबाट गुजारा चल्छ, मेरो अबको उद्देश्य भनेको हरेक नेपालीलाई मेरै हैसियतमा पु¥याउने हो ।’
वीपीको यस्तो विचार सानैमा पढेको थिएँ, जुन आजसम्म पनि मनमा अमिट छाप बनेर बसेको छ । वीपीका बारेमा यस्ता अनेकौं कुराहरू पढिन्थ्यो, सुनिन्थ्यो र अग्रजहरूबाट बुझिन्थ्यो । त्यसकारण त्यतिबेला मेरो बाल मस्तिष्कबाट नै वीपी विचार र सिद्धान्तप्रति झुकाव बढेको थियो । त्यसकारण पनि सानैबाट (स्कुले जीवनदेखि नै) वीपी विचारप्रति झुकाव बढ्न थाल्यो । अहिले पनि वीपीको त्यो विचारप्रति झुकाव मरेको छैन । वीपीकै आर्दश र सिद्धान्तलाई आत्मसात् गरिएको छ ।
हामीले आत्मकथामा वीपीलाई पढ्यौं, सुन्दरीजलमा पढ्यौं, वीपीक�� अन्तर्वार्ताहरू पढ्यौं, लेखहरू पढ्यौं, वीपीका बारेमा विचार गोष्ठीहरूमा सहभागी भएर कुरा पनि सुन्यौं । मेरो बा, हजुर’बाले रुखमा भोट हाल्थे भनेर म रुखमा भोट हा���्ने भएको होइन । वीपीलाई पढेर बुझेर वीपीका आर्दश सिद्धान्त र विचार मन परेर रुखलाई भोट हाल्ने भएको हुँ । त्यसकारण मलाई अहिले रुखमा भोट हाल्ने बनाउनुमा कसैको योगदान छैन ।
नेपाल र नेपालीका लागि वीपीले थुप्रै विचार, नीति तथा सिद्धान्त छाडेर जानुभएको छ । जुन नीति अहिले पनि उत्तिकै सान्दर्भिक छ । ती नीतिहरू अहिले लागू गर्न सकियो भने मात्र देशको कायापलट हुन्छ ।
राष्ट्रियताको सवालमा वीपीको अडान अविचलित थियो । उनी कुनै पनि दृष्टिकोणबाट भारत या चीनले नेपाललाई हेपेको मन पराउँदैन’थे, तत्काल प्रतिक्रिया जनाइहाल्थे । तत्कालीन भारतीय र चीनका शासक वीपीसँग यसकारण डराउँथे कि वीपीले बिस्तारै आफ्नो छवि अन्तर्राष्ट्रियस्तरमा ख्यातिप्राप्त राजनेताको रूपमा विकास गर्दै लगेका थिए ।
नेपाल र नेपालीका लागि वीपीले थुप्रै विचार, नीति तथा सिद्धान्त छाडेर जानुभएको छ । जुन नीति अहिले पनि उत्तिकै सान्दर्भिक छ । ती नीतिहरू अहिले लागू गर्न सकियो भने मात्र देशको कायापलट हुन्छ । तर विडम्बना आज सान्दाजुको पुण्य स्मृति दिवसमा यो भन्न करै लाग्छ कि उनले जीवनभर प्रजातन्त्रका लागि भन्दै लडेर स्थापना गरेको पार्टी नेपाली कांग्रेसले समेत सान्दाजुका कुरा लागू गर्न सकेन वा चाहेन ।
आज कांग्रेस वीपीलाई बेच्छ तर वीपीका आर्दश, सिद्धान्त र विचारहरूलाई व्यवहारमा लागू गर्दैन । यसले वीपीका अनुयायीहरूलाई ठूलो चोट पुगेको छ । कांग्रेस प्रजातन्त्र स्थापनापछि लामो समय सत्तामा बस्यो, त्यतिबेला उसले न वीपी सम्झियो न त वीपीका विचार सिद्धान्त र आर्दशहरू नै सम्झियो । जसले गर्दा देशमा कांग्रेसको लोकप्रियता क्रमशः घट्दै गयो र कांग्रेस आजको हालतमा पुगेको छ ।
वीपीका आफ्नै भाइ–भतिजा पटक पटक प्रधानमन्त्री भए । उनकै शिष्य शेरबहादुर पटक पटक प्रधानमन्त्री भए, अहिले कांग्रेसको सभापति छन् । वीपीकै कान्छा छोरा डा. शशांक अहिले कांग्रेसका महामन्त्री छन् । तर पनि कांग्रेसको नेतृत्व तहले कहिल्यै नेपाली राजनीतिमा र सत्ता सञ्चालनमा वीपी विचार र नीति लागू गर्न सकेन । यसले वीपीका अनुयायीलाई त चोट परेको छ नै स्वयं सान्दाजुको आत्मासमेत पक्कै पनि खुसी भएको छैन होला ।
वर्षको एक दुई दिन वीपीलाई सम्झिएर चर्को भाषण गर्ने, उनकै आदर्शको बाटोमा हिँड्ने प्रण गर्ने तर भाषण गरेको ५ मिनेटमै सबै कुरा भुल्ने कांग्रेस नेतृत्वको प्रवृत्ति नै समस्याको मूल जड हो । कांग्रेसले अब पनि बोलीमा मात्र होइन व्यवहारमा नै वीपीको सिद्धान्त अङ्गीकार गर्न सकेन भने कांग्रेस फेरि पनि वामपुड्के हुँदै जानेमा दुईमत छैन । यही सन्दर्भमा स्वयं वीपीले भनेको एउटा भनाइ स्मरणीय छ–
एक���िन एउटा कार्यकर्ताले वीपीलाई सोधेछन्, ‘सान्दाजु प्रजातन्त्र आएपछि हामीजस्ता कार्यकर्तालाई के हुन्छ ?’ वीपीले भनेछन्, ‘प्रजातन्त्र आएपछि एकपटक फेरि पार्टीभित्र सुकिला मुकिलाहरू हाबी हुनेछन्, तिनले आदर्श बिर्सनेछन्, त्यस्ताकाविरुद्ध पार्टीभित्रै फेरि तिमीजस्ता कार्यकर्ताहरूले संघर्ष गर्नुपर्र्छ । वीपी कति दूरदर्शी थिए भन्ने यही कुराले पुष्टि गर्छ ।
नभन्दै प्रजातन्त्र आएपछि त्यस्तै भयो, वीपीका आर्दश र सिद्धान्तहरू बिर्सिन थालियो र सुकिलामुकिला पार्टीमा हाबी हुँदै गए । तर इमान्दार कार्यकर्ताहरूले अझै तिनीहरूविरुद्ध संघर्ष गरेका छैनन् । अति हुँदै गयो भने एकदिन त्यो पनि अवश्य हुनेछ ।
त्यसकारण कांग्रेस नेतृत्वले यसबारेमा बेलैमा सोचोस् । वीपी व्यक्ति मात्र नभएर विचार र सिद्धान्त हो, तसर्थ वीपीलाई अब कांग्रेसले व्यवहारमा नै अवलम्बन गर्नु आवश्यक छ ।
आफू पनि केही नयाँ दिन नसक्ने अनि ७० वर्ष पहिले वीपीले प्रतिपादन गरेका सिद्धान्तलाई पनि व्यवहारमा अवलम्बन नगर्दा कांग्रेस नेतृत्व चक्रव्यूहमा फसेको छ । चक्रव्यूहबाट निस्कने एकमात्र सूत्र वीपीकै आर्दश, नीति र सिद्धान्त हो । यसलाई आजैदेखि व्यवहारमा नै अवलम्बन गर्न एकपटक सबै इमान्दार कांग्रेसीहरूले नेतृत्वलाई दबाब दिनु आवश्यक छ ।
(लेखक बस्ताकोटी नेपाल प्रेस युनियनमा आवद्ध छन् ।)
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या जगात येताना मनुष्य एकटाच रिकाम्या हाताने येतो व एकटाच रिकाम्या हाताने जगाचा निरोप घेतो. जाण्यापूर्वी निर्माण केलेले घरदार, पैसा, नातेसंबंध येथेच सोडून द्यावे लागते, हेच खरे जीवनाचे स्वरुप आहे.
एक दिवस सगळ्यालाच तुम्हाला रामराम करायचा आहे. अगदी तुमच्या शरीराचासुद्धा तुम्हाला निरोप घ्यायचा आहे. प्रत्येक जण कधी ना कधी जाणार. फरक ऐवढाच, काही लोक लवकर जातील तर काही उशीरा जातील. मृत्यू कधी येणार? कसा येणार आणि कुठे येणार? हे कोणीही सांगू शकत नाही.
कोठे व्हावा जन्म आपला। मरणही कोठे कसे यावे?
स्वाधीन नाही यातील काही। पदरी पडले गोड मानावे।।
विश्वनियत्या प्रभुने साऱ्यांचे पासपोर्टस तयार करुन ठेवले आहेत. त्यावर शिक्केही मारले आहेत. तारखाही लिहुन ठेवलेल्या आहेत. तो दिवस आलाकी, तुम्हा-आम्हा सर्वांनाच मुकाट्याने इहलोकातून प्रस्थन करावे लागणार आहे. हे वास्तव आहे.
काळाची हे उडी पडेल बा जेंव्हा। सोडविना तेंव्हा रावरंक।
म्हणून संत सांगून गेले की, या जगात जगत असताना दोन गोष्टींचा कधीही विसर पडू देवू नका. एक म्हणजे परमात्मा आणि दुसरे म्हणजे आपला मृत्यू. उद्या आपल्याला जायचे आहे याचाच विसर माणसाला पडला आहे. त्याची सारखी धावाधाव सुरु आहे या ब्रम्हांडाच्या पसाºयात आपले अस्त��त्व नगण्य आहे. संकटाच्या क्षणी फक्त परमेश्वराचा आधार असतो ह्याची आठवण ठेवणे अगत्याचे आहे.
अजुनी तरी होई जागा। तुका म्हणे पुढे दगा।।
मृत्यूचा प्रवास खूप लांबचा आहे. ह्या प्रवासात तुमच्या मदतीला कोणीही धावून येवून शकत नाही. तुमच्या घरात अन्नधान्याचे भांडार असले तरी प्रवासाला निघतांना तुम्हाी चिमूटभर पीठही नेवू शकत नाही.
उंच उंच माडी, लाल हवेली। हे घर म्हणशील माझेरे
अखेर शेवटी तुझ्या नशीबी। स्मशानी काया उघडी रे
सोन्या चांदीचे तांब्या पितळचे। हे भांडे म्हणशील माझे रे
अखेर शेवटी तुझ्या नशीबी। मातीचे एक मडके रे।।
पैसा खूप काही होवू शकतो पण सर्व काही कधीही होवू शकत नाही. ज्यांनी पैशालाच सर्वस्व मानले त्यांच्यावर आयुष्याच्या शेवटी पश्चाताप करण्याची वेळ येते. शिकंदर बादशहाने मरणापूर्वी आपल्या जवळ असलेली प्रचंड संपत्ती पाहिली. त्याचे डोळेअश्रूंनी भरले. कारण त्याला समजले की, ही अलोट संपत्ती आपल्यासोबत नेता येणार नाही.
‘‘लाया तू क्या शिकंदर और साथ ले जा रहा क्या?
दोनो हाथ थे खाली, बाहर कफनसे निकले।
इकठ्ठे कर जहॉके जर, सभी मुल्कोके माली थे।
सिकंदर जब गये दुनियासे, तो दोनो हाथ खाली थे।’’
देश घडविणारी युगंधर व्यक्तीमत्त्वांची मांदियाळी ह्याच पद्धतीने मृत्युच्या द्वारापर्यंत पोहचली, हा निसर्गाचा नियमच आहे. प्रत्येक माणसाने ही जाणीव ठेवूनच जीवनाचे कल्याण कसे होईल याचे वेळापत्रक करायला हवे. वेळापत्रकाप्रमाणे सर्व गोष्टी होतीलच असे नाही परंतु जीवनप्रवासाचा शेवट चांगला होईल. संतजणांनी आम्हाला सांगितले आहे की, एखाद्याची प्रेतयात्रा रस्त्यावरुन जाताना ‘अरेरे, बिचारा गेला’ असे कधीही म्हणू नका. कारण ह्याच रस्त्याने आपणाला जायचे आहे. अर्थी निघण्यापूर्वी आपण जीवनाचा अर्थ समजून घ्यायला हवा.
‘‘कर्ता निमित्त मी, मज नको- चिंता काळाची मनी।
ठेवा ईशनाम मुखी, गुरुला स्मरोनि- आनंद भोगाजनी।
रामकृष्ण हरी विठ्ठल केशवा। मंत्र हा जपावा सर्वकाळ।।.
- ह.भ.प. डॉ. ज्ञानेश्वर मिरगे, शेगाव
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10 फरवरी पुण्यतिथि दिवस पर रूबी सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित। भोजपुरी फिल्मों की सुपर स्टार अदाकारा रूबी सिंह भले ही आज हमारे बीच नही है ।लेकिन भोजपुरी में आज भी कई लोग है जिनके दिलो में उनकी अच्छाई आज भी कायम है ।10 फरवरी को रूबी सिंह हमारे बीच नही रही थी।प्रति वर्ष उनकी ��ाद में श्रधांजलि सभा का आयोजन भोजपुरी के खलनायक जय सिंह द्वारा आयोजित किया जाता है ।रूबी सिंह ने भोजपुरी के सुपर स्टार दिनेशलाल यादव के साथ सिल्वर जुबली फ़िल्म की थी जिसका नाम था ,हो गइल बा प्यार ओढनिया वाली से ,पावर स्टार पवन सिंह के साथ सुपरहिट फिल्म ओढनिया कमाल करे सहित कई फिल्मों में काम कर चुकी है ।श्रधांजलि देने वालो में अभिनेता प्रिंस सिंह राजपूत, लेखक वीरू ठाकुर ,खल अभिनेता जय सिंह,उधोगपति अर्पित मिश्रा,सह निर्देशक संजू बीस्ट,गायक विकाश सिंहः,राहुल सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
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