#बर्तनों
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वो चार साल पुरानी, फूलो की बेडशीट पे लेते हुए बदली गई हर एक करवट,
सुबह की कोमल धूप में सुखाया गया तकिए का हर एक कवर,
भंगार में दिए गए, उस अंडर आई क्रिम के पचासों डिब्बे
वो हवा जैसी खाई गई मैगी के कागज,
वो पंखे के आजूबाजू बनी P.O.P की बतसूरत सी डिजाइन
और उसे ताकते हुए दिखे अनगिनत मकड़ियों के जाले,
रात और सुबह के बीच की वो लकीर जितना नाजुक समय
जब तुम्हारे खयाल तुम्हे खाने ही वाले थे, तब रूम के नीचे भोंकनेवाले वो कुत्तों का झुंड,
वो घड़ी की उंगलियां, तुम्हारी सांसों का आवाज,
वो परदे की हलचल और उस हलचल के बीच से अपना रास्ता बनाने की कोशिश करनेवाली किरणे,
चुभते वक्त को थोड़ी देर के लिए रोकनेवाली वो कंबल की नमी,
वो अचानक से याद आई बचपन के दोस्तो के साथ की हुई कोई शरारत,
वो हफ्ते से पड़े हुए बर्तनों को साफ करने के बाद उन पे सजी हुई चमक,
वो खिड़की की ग्रिल पे बैठी, आसमान को देखती, तारो से कुछ कहती, कोई चिड़िया,
वो बाथरूम की टाइल्स, साबुन का झाग, नलके से टिप टिप गिरती पानी की बूंदे,
वो बाथरूम की जमीन। हाय वो बाथरूम की उदार जमीन।
अगर सोचा जाए तो कितना कुछ किया है इन सब ने मुझे जिंदा र��ने के लिए।
Sanskruti
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बंटवारे के समय घरों के नीचे सोना दबाकर छोड़ गए थे हिन्दू और सिख, पाकिस्तानी एक्सपर्ट ने किया खुलासा
India News: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया 29 अक्टूबर को एक सीक्रेट मिशन के तहत देश का 102 टन सोना इंग्लैड से भारत ले आया है. इस पर पाकिस्तानी एक्सपर्ट कमर चीमा ने बंटवारे का एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि जब हिंदू और सिख पाकिस्तान छोड़कर आए थे तो वह अपने घरों में सोना दबाकर आए थे. उन्होंने बताया कि बाद में लोगों को बड़-बड़े बर्तनों में यह गोल्ड मिला था और इस तरह की कई कहानियां पाकिस्तान में आज भी मशहूर…
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माटी कला योजना: दिवाली से पहले कुम्हारों को मिलेगा बड़ा आर्थिक लाभ
दिवाली के त्यौहार से पहले कुम्हारों के लिए एक शानदार खबर है। सरकार ने माटी कला योजना (Mati Kala Yojana) के तहत कुम्हारों को बड़ा लाभ देने की घोषणा की है। इस योजना का उद्देश्य पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों और अन्य मिट्टी के उत्पादों के निर्माण से जुड़े कारीगरों को प्रोत्साहित करना और उनकी आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाना है। योजना के अंतर्गत, कुम्हारों को न सिर्फ आर्थिक सहायता मिलेगी, बल्कि आधुनिक…
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हालाँकि बर्तन जड़ पदार्थ है फिर भी जब उन्हें एक साथ रखा जाता है तो वे बहुत आवाज करते हैं, तो फिर जीवित बर्तनों का क्या कहना। यह स्वाभाविक है। किन्तु चूँकि हम सब श्रीकृष्ण के लिए कार्य करने हेतु कटिबद्ध हैं हमें श्रीचैतन्य महाप्रभु के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए - तृणादपि सुनिचेन तरोरपि सहिष्णुना। यह वैष्णव धर्म है। तो मेरा निवेदन है कि उद्विग्न न होओ। आओ ईमानदारी से अपनी सेवायें करें। वृन्दावन, 6 सितम्बर 1975
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी : कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है
यह त्योहार कृष्ण पक्ष की अष्टमी या भाद्रपद महीने के आठवें दिन पड़ता है। इसे गोकुल अष्टमी भी कहा जाता है।
ऐसा मानते हैं कि , भगवान कृष्ण का जन्म वर्तमान समय के मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनका जन्म एक कालकोठरी में और कृष्ण पक्ष की अंधियारी आधी रात को हुआ था ।
मान्यताओं के अनुसार, कंस मथुरा का शासक था। उसने अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव जी को कारागार में डालकर रखा था क्योंकि उसे यह श्राप मिला था कि देवकी की कोख से उत्पन्न होने वाली आठवीं सन्तान एक पुत्र रूप में होगी जो कंस का वध करेगी। अतः आठवें पुत्र के इंतजार में उसने जेल में ही उत्पन्न देवकी के सात सन्तानों की हत्या कर दी थी। दैवीय लीला से जब आठवें पुत्र श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो योगमाया ने वहां उपस्थित सभी पहरेदारों को गहन निद्रा में डाल दिया और वासुदेव जी को निर्देश दिया कि अभी ही वह कारागार से बाहर निकल कर पुत्र को यमुना जी के रास्ते से ले जाकर गोकुल पहुंचा दें।
वासुदेव व देवकी को सारी बात समझ में आ चुकी थी कि यही प्रभु अवतरण हैं जिनके हाथों कंस का वध होगा। वैसा ही सब कुछ हुआ। समय आने पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के हाथों कंस का अंत हुआ।
इसी कारण इस दिन का बहुत ही महत्व माना जाता है और देश भर में इस दिवस को उत्सव की भांति मनाया जाता है।
मथुरा और वृन्दावन में कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी?
जन्माष्टमी से 10 दिन पहले रासलीला, भजन, कीर्तन और प्रवचन जैसे विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों के साथ शुरू होता है यह उत्सव । रासलीलाएं कृष्ण और राधा के जीवन और प्रेम कहानिय���ं के साथ-साथ उनकी अन्य गोपियों की नाटकीय रूपांतर पेश किए जाते हैं। पेशेवर कलाकार और स्थानीय उपासक दोनों ही मथुरा और वृन्दावन में विभिन्न स्थानों पर इसका प्रदर्शन करते हैं। भक्त जनमाष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण मंदिरों में आते हैं, विशेषकर वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, जहां माना जाता है कि उनका जन्म हुआ था। मंदिरों को मनमोहक फूलों की सजावट और रोशनी से खूबसूरती से सजाया गया है।
पंचांमृत अभिषेक
अभिषेक के नाम से जाना जाने वाला एक विशिष्ट अनुष्ठान आधी रात को होता है, जो कृष्ण के जन्म का सटीक क्षण माना जाता है। इस दौरान कृष्ण की मूर्ति को दूध, दही, शहद, घी और पानी से स्नान कराया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के अभिषेक के दौरान शंख बजाए जाते हैं, घंटियां बजाई जाती हैं और वैदिक मंत्रो का पाठ किया जाता है। इसके बाद भक्त श्रीकृष्ण को 56 अलग-अलग भोग (जिन्हें छप्पन भोग के नाम से जाना जाता है) अर्पित करते हैं। उनके लड्डू गोपाल स्वरूप को जन्म के बाद झूला झुलाते हैं और जन्म के गीत गाये जाते हैं।
नंदोत्सव
जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाने वाला नंदोत्सव एक खास कार्यक्रम है। कहते हैं कि जब कृष्ण के पालक पिता, नंद बाबा ने उनके जन्म की खुशी में गोकुल (कृष्ण का गाँव) में सभी को उपहार और मिठाइयां दीं। इस दिन, भक्त प्रार्थना करने और जरूरतमंदों को दान देने के लिए नंद बाबा के जन्मस्थान नंदगांव की यात्रा करते हैं। इसके अलावा वे विभिन्न प्रकार के समारोहों और खेलों में भाग लेते हैं जो कृष्ण के चंचल स्वभाव का सम्मान में आयोजित किए जाते हैं।
दही हांडी पर्व का महत्व
दही हांडी का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है । महाराष्ट्र, गुजरात , उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में इसकी अलग धूम देखने को मिलती है। इस दौरान गोविंदाओं की टोली ऊंचाई पर बंधी दही से भरी मटकी फोड़ने की कोशिश करती है ।
जन्माष्टमी पर दही हांडी का खास महत्व होता है । भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकिया दर्शाने के लिए दही हांडी पर्व मनाया जाता है।
दही हांडी कार्��क्रम
दही हांडी कार्यक्रम, जो कृष्ण की मां यशोदा द्वारा ऊंचे रखे गए मिट्टी के बर्तनों से मक्खन चुराने की बचपन की शरारत से प्रेरित एक कार्यक्रम है। मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी समारोह का एक और मुख्य आकर्षण है। इस कार्यक्रम में युवा, पुरुषों के समूह ऊंचाई से लटके हुए एक बर्तन तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं, जिसमें दही या मक्खन होता है। यह अवसर वफादारी, बहादुरी और टीम वर्क को दर्शाता है। इसमें बड़ी संख्या में दर्शक भी शामिल होते हैं, जो तालियां बजाते हैं और इस दृश्य का आनंद लेते हैं।
दरअसल, भगवान श्री कृष्ण बचपन में दही और मक्खन घर से चोरी करते थे और उसके साथ ही गोपियों की मटकियां भी फोड़ देते थे । यही कारण है कि गोपियों ने माखन और दही की हांडियों को ऊंचाई पर टांगना शुरू कर दिया था लेकिन कान्हा इतने नटखट थे कि अपने सखाओं की मदद से एक दूसरे के कंधों पर चढ़कर हांडी को फोड़कर माखन और दही खा जाते थे । भगवान कृष्ण की इन्हीं बाल लीलाओं का स्मरण करते हुए दही हांडी का उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी ।
प्रभु की लीला कभी व्यर्थ नहीं होती है। उसका कोई न कोई कारण अवश्य होता है।
ऐसा मानते हैं कि पैसों के लिए गोपियाँ अपने घर के सारे दूध , दही और माखन मथुरा में जाकर कंस की राजधानी में बेच आतीं थीं। वे सब बलवान हो जाते थे जबकि ग्वाल बाल सीमित रूप में इसे प्राप्त कर पाते थे। तब प्रभु की बाल लीला ने माखन चोरी करने का निर्णय किया था ताकि ये सभी हृष्ट पुष्ट रहें और मथुरा तक ये न पहुंच सके।
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
*🌞~ आज दिनांक - 4 सितम्बर 2024 का वैदिक, सटीक गणना के साथ हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक - 4 सितम्बर 2024*
*⛅दिन - बुधवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - भाद्रपद*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - प्रतिपदा प्रातः 09:46 तक तत्पश्चात द्वितीया*
*⛅नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी प्रातः 06:14 सितम्बर 5 तक तत्पश्चात हस्त*
*⛅योग - साध्य रात्रि 08:03 तक तत्पश्चात शुभ*
*⛅राहु काल - दोपहर 12:38 से दोपहर 02:12 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:26*
*⛅सूर्यास्त - 06:52*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:51 से प्रातः 05:37 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:16 सितम्बर 05 से रात्रि 01:01 सितम्बर 05 तक*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹भोजन हेतु कैसे पात्रों का उपयोग हो ?🔹*
*🔸 भोजन बनाने व खाने हेतु एल्यूमीनियम और प्लास्टिक के बर्तनों के प्रयोग से भोजन में हानिकारक रासायनिक पदार्थ मिश्रित हो जाते हैं । एल्यूमीनियम के बर्तनों में पकाया गया विटामिन्सयुक्त पौष्टिक खाद्य पदार्थ भी अपने गुण खो बैठता है । विशेषज्ञों का मानना है कि एल्यूमीनियम की विषाक्तता के कारण आँतों में जलन होने लगती है तथा आँतों का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है । एल्यूमीनियम के बर्तनों में भोजन बनाना हानिकारक है ।*
*🔸 अतः भोजन बनाने व जाने हेतु उपरोक्त बर्तनों की अपेक्षा देशी मिट्टी (चीनी मिट्टी आदि नहीं), काँच, स्टील या कलई किये हुए पीतल के बर्तनों का प्रयोग हितकारी है ।*
*🔸 केला, पलाश अथवा बड़ के पत्ते रूचि उत्पन्न करने वाले तथा विषदोष नाशक और जठराग्निवर्धक होते हैं अतः भोजन करने के लिए इनकी पत्तलों का उपयोग भी हितावह है ।*
*🔸 खाद्य पदार्थों को फ्रिज अथवा कोल्ड स्टोरेज में रखने से उनका प्राकृतिक स्वरूप बदल जाता है और पौष्टिक तत्त्वों में कमी आ जाती है ।*
*🔸 भोजन में संयम व सावधानी रखने से तथा उपरोक्त नियमों का पालन करने से हम अपने शरीर को स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं तथा मन की प्रसन्नता पा सकते हैं ।*
*🔹दुकान में उन्नति🔹*
*🔹सुबह दुकान खोलने पर थोड़ी कपूर जला कर आरती कर लें और जहाँ दुकान के मालिक बैठते हों वहां, जिधर से ग्राहक आते हों उधर भी आरती कर लें । इससे दुकान में उन्नति होगी ।*
*🔸पढने में रूचि न हो या सफलता न मिलती हो तो...*
*🔸जिन बच्चों का पढाई की और रुझान नहीं होता अथवा कम होता है या काफी परिश्रम करके भी जिन्हें अध्ययन में पर्याप्त सफलता नहीं मिलती उनके लिए लाभदायी प्रयोग :*
*🔸१ ग्राम कपूर और मौलसिरी का एक बीज पीसकर देशी गाय के २०० ग्राम घी में मिला दें । नित्य किसी भी समय ५ से १० मिनट तक संबंधित बच्चे के शयनकक्ष में इस मिश्रण से दीपक जलायें । अथवा उसके तकिये में मौलसिरी के ३ बीज रख दें ।*
*🔹सुख – शांति व धनवृद्धि हेतु🔹*
*🔸सफेद पलाश के एक या अधिक पुष्पों को किसी शुभ महूर्त में लाकर तिजोरी में सुरुक्षित रखने से उस घ में सुख-शांति रहती है, धन-आगमन में बहुत वृद्धि होती है ।*
*
#motivational motivational jyotishwithakshayg#tumblr milestone#akshayjamdagni#mahakal#panchang#hanumanji#rashifal#nature
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कपिंग थेरेपी के 10 विशेष उपयोगी तरीके
कपिंग थेरेपी एक प्राचीन चीनी चिकित्सा पद्धति है जिसमें त्वचा पर ग्लास या सिलिकॉन के कप लगाकर रक्त प्रवाह को बढ़ावा दिया जाता है। इस चिकित्सा विधि में ग्लास कप को शरीर की चुनी हुई स्थानों पर लगाकर विशिष्ट तरीके से उसमें हवा को बाहर निकाला जाता है, जिससे त्वचा के नीचे रक्त प्रवाह को बढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया से शरीर की ऊर्जा का संतुलन सुधारता है और शारीरिक दर्द, सूजन, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में राहत मिल सकती है।
कपिंग थेरेपी का मान�� जाता है कि यह रक्त संचार को बढ़ाने से त्वचा के अंदर के विभिन्न अंगों और ऊतकों को पोषण प्राप्त होता है और इससे त्वचा के रोगों जैसे की मामले में लाभ हो सकता है। इसके अलावा, कपिंग थेरेपी से तंत्रिकाओं की संतुलन और शारीरिक ऊर्जा के बारे में भी सुधार हो सकती है। यह चिकित्सा पद्धति विशेष तौर पर अर्थराइटिस, मांसपेशियों के दर्द, मांसपेशियों में तनाव, और मस्तिष्क के संबंधित समस्याओं में सुधार के लिए इस्तेमाल की जाती है।
कपिंग थेरेपी के 10 विशेष उपयोगी तरीके:
दर्द से राहत:कपिंग थेरेपी मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द, सिरदर्द, माइग्रेन, और मासिक धर्म ऐंठन जैसे विभिन्न प्रकार के दर्द से राहत प्रदान करने में प्रभावी हो सकती है। यह थेरेपी रक्त संचार को बढ़ावा देती है, शरीर में ऊर्जा संतुलन को सुधारती है, और दर्द को कम करने में मदद करती है।
सूजन कम करना: कपिंग थेरेपी सूजन को कम करने में मदद कर स���ती है, जो दर्द और गतिशीलता में कमी का कारण बन सकती है। यह गठिया, चोटों और संक्रमण जैसी स्थितियों में फायदेमंद हो सकता है।
रक्त प्रवाह में सुधार: कपिंग थेरेपी त्वचा में रक्त प्रवाह को बढ़ावा दे सकती है, जिससे ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में सुधार होता है। यह घाव भरने और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
तनाव और चिंता कम करना: कपिंग थेरेपी तनाव और चिंता को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा विधि में बने बड़े बर्तनों को शरीर पर रखकर उनमें हवा को बाहर निकालने से अंदरूनी दबाव कम होता है और एंडोर्फिन की रिहाई को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे मूड में सुधार हो सकता है।
त्वचा स्वास्थ्य में सुधार: कपिंग थेरेपी त्वचा के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। यह मुंहासे, एक्जिमा और सोरायसिस जैसी स्थितियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
पाचन तंत्र में सुधार: कपिंग थेरेपी पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। यह कब्ज, अपच, और सूजन जैसी स्थितियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किए गए विशेष बर्तनों को शरीर पर रखकर उनमें हवा को बाहर निकालने से शरीर का अपशिष्ट, विषाक्त रक्त, और दूषित धातुओं से मुक्ति होती है, जिससे पाचन तंत्र की क्रिया सुधारती है।
प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना: कपिंग थेरेपी पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। यह कब्ज, अपच, और सूजन जैसी स्थितियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किए गए विशेष बर्तनों को शरीर पर रखकर उनमें हवा को बाहर निकालने से शरीर का अपशिष्ट, विषाक्त रक्त, और दूषित धातुओं से मुक्ति होती है, जिससे पाचन तंत्र की क्रिया सुधारती है।
वजन घटाने में सहायता: कपिंग थेरेपी वजन घटाने में सहायक हो सकती है। इस थेरेपी से चयापचय को बढ़ावा मिलता है और शरीर की वसा को जलाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, कपिंग थेरेपी से शरीर का अच्छा रक्त संचार होता है जो स्वस्थ वजन प्राप्त करने में सहायक होता है।
डिमेंशिया का इलाज: कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कपिंग थेरेपी डिमेंशिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा पद्धति में रक्त संचार को बढ़ावा देने से मस्तिष्क की स्वस्थता में सुधार हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप डिमेंशिया जैसी समस्याओं के लक्षणों में कमी आ सकती है।
कैंसर का इलाज: कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कपिंग थेरेपी कैंसर के इलाज में सहायक हो सकती है। यह कैंसर कोशिकाओं को मारने और कैंसर के उपचार के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।
कपिंग थेरेपी के कुछ संभावित द���ष्प्रभाव:
त्वचा पर चोट या घाव
चक्कर आना या मतली
थकान
सिरदर्द
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कपिंग थेरेपी हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं है। गर्भवती महिलाओं, रक्तस्राव विकारों वाले लोगों, और त्वचा की स्थिति वाले लोगों को कपिंग थेरेपी से बचना चाहिए। यदि आप कपिंग थेरेपी पर विचार कर रहे हैं, तो किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
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लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपाय
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लक्ष्मी भगवती धन और समृद्धि की देवी हैं। उनकी कृपा से ही व्यक्ति धन-दौलत एवं सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकता है। लक्ष्मी प्राप्ति के 151 सरल उपाय में से 51 उपाय हम आपको बताते हैं। यहाँ लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपाय दिए गए हैं:
१. प्रतिदिन लक्ष्मी जी की आराधना करें और उनके भजन गाएं।
२. शुक्रवार को उपवास रखें और शाम को लक्ष्मी पूजा करें।
३. घर में पीपल का पेड़ लगाएं और उसकी नित्य सेवा करें।
४. मंदिर में लक्ष्मी जी के चरणों में शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
५. शुद्ध पीतल के बर्तनों में भोजन करें और उनकी देखभाल करें।
६. गरीबों को नित्य भोजन विश्वास से विलेपन करें।
७. अपने घर में कमल के फूलों को रखें।
८. किसी भी धनराशि को अपवित्र न होने दें।
९. बीज मंत्र "श्री मणै नम:" का जाप करें।
१०. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन अवश्य करें।
इसी तरह आप इस लेख में लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपायों से अवगत हो सकते हैं। इन सरल उपायों को कर��े से निश्चित रूप से लक्ष्मी जी की कृपा आप पर बनी रहेगी।
Read More: https://www.futuresamachar.com/hi/51-ways-to-get-lakshmi-4767
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लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपाय
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लक्ष्मी भगवती धन और समृद्धि की देवी हैं। उनकी कृपा से ही व्यक्ति धन-दौलत एवं सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकता है। लक्ष्मी प्राप्ति के 151 सरल उपाय में से 51 उपाय हम आपको बताते हैं। यहाँ लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपाय दिए गए हैं:
१. प्रतिदिन लक्ष्मी जी की आराधना करें और उनके भजन गाएं।
२. शुक्रवार को उपवास रखें और शाम को लक्ष्मी पूजा करें।
३. घर में पीपल का पेड़ लगाएं और उसकी नित्य सेवा करें।
४. मंदिर में लक्ष्मी जी के चरणों में शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
५. शुद्ध पीतल के बर्तनों में भोजन करें और उनकी देखभाल करें।
६. गरीबों को नित्य भोजन विश्वास से विलेपन करें।
७. अपने घर में कमल के फूलों को रखें।
८. किसी भी धनराशि को अपवित्र न होने दें।
९. बीज मंत्र "श्री मणै नम:" का जाप करें।
१०. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन अवश्य करें।
इसी तरह आप इस लेख में लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपायों से अवगत हो सकते हैं। इन सरल उपायों को करने से निश्चित रूप से लक्ष्मी जी की कृपा आप पर बनी रहेगी।
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Shani Dev: शनि देव की पूजा में तांबे के बर्तनों का उपयोग क्यों नहीं होता?Shani Dev: शनि देव न्याय, कर्म और दंड के देवता माने जाते हैं। उनकी पूजा करने से कर्मों का फल मिलता है,शनि देव की पूजा से शनि की साढ़े साती और ढैय्या से बचाव होता है, और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
#Pital ke bartan saaf karne ka tarika#tambe ke bartan mein pani peene ke fayde#tambe ke bartan ka pani#shanidev ki puja mein kaun se bartan ka prayog kar#puja mein steel ke bartan ka use sahi ya galat#puja mein steel ka bartan kyu prayog nhi karte#puja mein steel ke bartan ka use shubh ya ashubh#puja mein steel ke bartan ka istemal ashubh#Dharm News in Hindi#Dharm Hindi News
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मध्यपाषाण काल के शैल चित्रों की खोज
डी. रविंदर रेड्डी और डॉ. मुरलीधर रेड्डी ने तेलंगाना के सीताम्मा लोड्डी में मध्यपाषाण काल के शैल चित्रों की खोज की है।सीताम्मा लोड्डी पेद्दापल्ली जिले के गट्टुसिंगाराम में स्थित है।यहाँ मिले शैलचित्र मध्यपाषाण काल (10,000-12,000 वर्ष पहले) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (पहली ईसा पूर्व से 6ठीं शताब्दी) से संबंधित हैं।ये जंगल में एक बड़े बलुआ पत्थर पर मिले हैं। सीपियों वाला एक जीवाश्म पत्थर भी पाया गया है, जिससे पता चलता है कि यह स्थल लगभग 65 मिलियन वर्ष पुराना है।डॉ. मुरलीधर रेड्डी ने ��स स्थल को जयशंकर भूपालपल्ली जिले में स्थित पांडवुला गुट्टा की तरह शैल चित्रों की “हीरे की खान” के रूप में वर्णित किया है। शैलचित्र पर मिले चित्र - इस पर मानव आकृतियों का चित्रण है। - पुरुष और महिला दोनों पंक्ति और गोल पैटर्न में समूह नृत्य कर रहे हैं। - सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए हैं और विशेष प्रकार के जूते पहने हैं। - धनुष और तीर लिए व्यक्ति का चित्र मिला है। - कुछ चित्रों में लाल रंग में विभिन्न आकारों के कई हाथ के निशान मिले हैं। - कुछ सफ़ेद और पीले रंग के हाथ के निशान भी मिले हैं, जो दुर्लभ हैं। - अन्य आकृतियों में कुछ जानवरों जैसे- हिरण, मृग, कछुआ, जंगली बिल्ली, मांसाहारी, बंदर, जंगली छिपकलियाँ, पैरों के निशान प्रमुख हैं। पाषाण काल - पाषाण काल में मानव उपकरण बनाने के लिए पत्थरों का उपयोग करता था। पाषाण काल को तीन चरणों में बांटा गया है - पुरापाषाण काल: अवधि - 500,000 - 10,000 B.C. - मध्यपाषाण काल: अवधि - 10,000 - 6000 B.C. - नवपाषाण काल: अवधि - 6000 - 1000 B.C. मध्यपाषाण काल - भारत में मध्यपाषाणकालीन स्थल की खोज सर्वप्रथम C.L. कार्लाइल ने विन्ध्य क्षेत्र में वर्ष,1867 ई. में की। - मध्यपाषाण काल के उपकरण आकार में अत्यंत छोटे हैं। - इस काल के मानव अधिकांशतः शिकार पर ही निर्भर थे, किंतु अब ये गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैसे आदि का शिकार करने लगे थे। - इन लोगों ने थोड़ी कृषि करना भी सीख ली थी। - अंतिम चरण तक आते-आते बर्तनों का निर्माण करना भी सीख गए थे। - सरायनाहर राय और महदहा की समाधियों से इस काल के लोगों के लोगों की अंत्येष्टि संस्कार विधि बारे में भी जानकारी मिलती हैं। - ये मृतकों को समाधियों में दफनाते थे और उनके साथ खाद्य सामग्री, औजार और हथियार भी रख देते थे। - शायद यह किसी प्रकार के लोकोत्तर जीवन में विश्वास का सूचक था। Read the full article
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बर्तन धोने वाले स्पंज का रंग अलग-अलग क्यों होता है?
अपघर्षक भाग हमेशा एक सख्त पदार्थ होता है जिसका उपयोग लाइमस्केल या जले हुए उत्पाद के अवशेषों को हटाने के लिए किया जाता है। चिपकी हुई परत के अलग-अलग रंग होते हैं, जो अपघर्षक के गुणों को दर्शाते हैं। हरा इसे सबसे कठिन सामग्रियों को सौंपा गया है। इसलिए हरा रंग बताता है कि यह स्पंज किसी भी गंदगी से निपटने में मदद करेगा। लेकिन आपको इनेमल वाले बर्तनों को साफ करने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि…
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टूटा हुआ कांच क्या संकेत देता है।- Bhoomika kalam www.astrobhoomi.com
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इसे सुनें टूटा हुआ शीशा इस बात का संकेत देता है कि आने वाला संकट टल गया है और आपका परिवार अब पूरी तरह से सुरक्षित है
कांच या शीशे के चटकने और टूटने को लेकर तमाम मान्यताएं पुराने समय से चली आ रही हैं. कुछ लोग इन्हें सच मानकर इनके नियमों को फॉलो करते हैं, वहीं कुछ लोग इस तरह की बातों को फिजूल मानते हैं. यहां जानिए इन मान्यताओं को लेकर धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताओं के बारे में. कांच या शीशे का टूटना अशुभ है या शुभ, जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं ! कांच या शीशा टूटना Follow us on social Twitter facebook linkedin instagram youtube देखा जाए तो कांच का टूटना एक सामान्य घटना है, ठीक वैसे ही, जैसे असावधानी बरतने पर अन्य चीजें टूट जाती हैं, कांच भी एक वस्तु है जो टूट सकती है. लेकिन पुरानी मान्यताओं के अनुसार लोग कांच या शीशे के टूटने को अशुभ घटना मानते हैं और इसे आने वाले समय में बुरे समाचार से जोड़ते हैं.
लेकिन वास्तु ��े हिसाब से देखा जाए तो कांच या शीशे का टूटना अशुभ नहीं होता, बल्कि शुभ होता है. लेकिन टूटे कांच को घर में रखना जरूर अशुभ हो सकता है. यहां जानिए कांच और शीशे के टूटने को लेकर वास्तु शास्त्र में क्या कहा गया है और इस मामले में विज्ञान क्या कहता है?
शुभ होता है कांच या शीशे का टूटना वास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर पड़ी कांच की कोई चीज या शीशा अगर किसी कारणवश टूट जाए, तो इसका मतलब है कि आपके घर पर कोई बड़ा संकट आने वाला था, जिसे कांच या शीशे ने अपने ऊपर ले लिया है. यानी अब मुसीबत टल चुकी है और आपका परिवार सुरक्षित हो गया है. इसके अलावा अचानक कांच या शीशे के टूटने का मतलब ये भी होता है कि आपके घर का कोई पुराना मसला अब समाप्त हो गया है. कुछ लोग कांच को लोगों की सेहत से भी जोड़ते हैं, ऐसे में कांच का चटकना या टूटना सेहत ठीक होने का संकेत हो सकता है. इन सभी बातों पर गौर किया जाए तो कांच या शीशे का टूटना एक शुभ संकेत माना जाना चाहिए.
घर में रखना अशुभ कांच का टूटना बेशक शुभ संकेत है, लेकिन टूटे या चटके कांच या शीशे को घर में रखना वास्तु के अनुसार अशुभ माना जाता है. ठीक उसी तरह जैसे टूटे बर्तनों में भोजन न करने की सलाह दी जाती है. मान्यता है कि टूटे कांच से सकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है और घर में नकारात्मकता फैलने लगती है. ऐसे में तमाम परेशानियां घर में आती हैं. इसलिए अब कि बार घर में कभी अचानक से कांच टूट जाए तो बिना शोरशराबा किए, उस कांच को चुपचाप घर से बाहर फेंक दें.
क्यों माना गया अशुभ जानिए वैज्ञानिक वजह कांच बहुत नाजुक होता है और शुरुआती समय में इसे दूर देशों से मंगाया जाता था. तब ये बहुत महंगा हुआ करता था. इसकी उपलब्धता के लिए काफी रकम खर्च करनी होती थी और इसे मंगाने में समय भी अधिक लगता था. ऐसे में कांच को लोग संभालकर रखें और इसकी देखरेख में सावधानी बरतें, इसलिए इसके टूटने को लेकर तमाम तथ्यों को धर्म और सेहत से जोड़ दिया गया. चूंकि धर्म को लेकर लोगों के मन में हमेशा से ही आस्था रही है और सेहत के प्रति तब लोग काफी सजग हुआ करते थे, इसलिए वे इन तथ्यों में विश्वास करने लगे और समय के साथ ये विश्वास और मजबूत हो गया.
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मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने के इतने फायदे| #shorts
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🕉️ओम नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतराय अमृता-कलशा हस्तायसरवा-अमाया विनाशाय त्रैलोक्य नाथाय धन्वंतरि महा-विष्णवे नमः।✨
🙏मैं भगवान धनुट��री के सामने झुकता हूं, जो चार भुजाओं वाले शंकु बन गए हैं, जोंक और अमृत के बर्तनों की चर्चा करते हैं। उसके मन में एक तेज रोशनी और एक जादुई आग थी। उसके सिर के चारों ओर 🌟प्रकाश चमक रहा था और उसकी सुंदर कमल की आंखें। उनके दिव्य खेल ने जंगल की आग जैसी सभी बीमारियों को खत्म कर दिया।
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क्या आपको पता है दिवाली से जुड़े ये रोचक फैक्ट्स ? जानिए इस दिवाली स्पेशल ब्लॉग मैं।
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दीपावली क्यों मनाते हैं?
दीपावली भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हिंदू धर्म के लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्योहार को प्रकाश का त्योहार भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग अपने घरों और दुकानों को दीयों से सजाते हैं।
दीपावली मनाने के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
असत्य पर सत्य की विजय: दीपावली का सबसे महत्वपूर्ण कारण है असत्य पर सत्य की विजय। इस दिन भगवान राम ने चौदह वर्ष का वनवास काटकर लंकापति रावण को पराजित किया था और माता सीता को अपने साथ वापस अयोध्या लाए थे।
अंधकार पर प्रकाश की विजय: दीपावली का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है अंधकार पर प्रकाश की विजय। इस दिन भगवान कृष���ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसने अंधकार फैलाकर लोगों को परेशान कर रखा था।
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दीपावली से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाएँ:
1.भगवान राम की अयोध्या वापसी: दीपावली के दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर लंकापति रावण को पराजित कर माता सीता को अपने साथ वापस अयोध्या लाए थे। अयोध्यावासियों ने भगवान राम के स्वागत के लिए पूरे नगर को दीयों से सजाया था।
2.भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध: नरकासुर नामक राक्षस ने अंधकार फैलाकर लोगों को परेशान कर रखा था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और लोगों को अंधकार से मुक्ति दिलाई।
3.समुद्र मंथन के दौरान देव और दानवो ने मिलकर चौदा रत्न की प्राप्ति की थी. और, इसी मैं लक्ष्मी माता जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है उनका भी जन्म हुआ था. इसलिए हम लक्ष्मी पूजन करते है.
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दक्षिण भारत मैं दिवाली मनाने का कारण प्रभु श्री राम नहीं है पर, भगवान श्री कृष्ण है।
दक्षिण भारत में इसे मनाने का तरीका कुछ अलग है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में, जैसे तमिलनाडु और केरल में, दिवाली भगवान राम की तुलना में भगवान कृष्ण का अधिक उत्सव है।
इसके कुछ कारण हैं। पहला, भगवान कृष्ण दक्षिण भारत में भगवान राम की तुलना में अधिक लोकप्रिय देवता हैं। दूसरा, भगवान कृष्ण से जुड़े कई कथाये हैं जो दिवाली से जुड़ी हैं। एक कथा कहती है कि भगवान कृष्ण ने दिवाली के दिन राक्षस नरकासुर का वध किया था । एक अन्य कथा है कि भगवान कृष्ण एक लंबी निर्वासन के बाद दिवाली के दिन अपनी पवित्र नगरी द्वारका लौट आए थे।
इन परिणाम स्वरूप, दक्षिण भारत के कई लोगों का मानना है कि दिवाली भगवान कृष्ण का एक विशेष दिन है।
दक्षिण भारत में भगवान कृष्ण के उत्सव के रूप में दिवाली मनाने के कुछ विशिष्ट उदाहरण हैं:
तमिलनाडु में, लोग अक्सर कृष्णनाट्टम, एक पारंपरिक नृत्य रूप जो भगवान कृष्ण की कहानियों को बताता है, गाते और नाचते हैं।
केरल में, लोग अक्सर दिवाली के दिन विशेष कृष्ण-संबंधी व्यंजन पकाते और खाते हैं, जैसे कृष्णपचडी (केले और नारियल से बना दही का व्यंजन) और कृष्णविलक्कु (चावल के आटे और गुड़ से बना एक मिठाई)।
आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में, लोग दिवाली के दिन अलाव बनाते हैं और तेल और घी से भरे मिट्टी के बर्तनों को आग में फेंकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह बुराई का दहन और अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
आपको जानकर हैरानी होगी की , भारत की विभन्नता मैं एकता कैसे झलकती है इसका उदाहरण है।
काली दिवाली
कर्नाटक मैं कई गाँव है जहां काली दिवाली मनाई जाती है।
काली दिवाली कर्नाटक में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है। यह दिवाली के बाद के दिन मनाया जाता है, और यह देवी काली की पूजा का दिन है। काली दिवाली का महत्व यह है कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
कर्नाटक में, काली दिवाली का उत्सव आमतौर पर घरों और मंदिरों में होता है। घरों में, लोग देवी काली की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मंदिरों में, विशेष अनुष्ठान और पूजा आयोजित की जाती है।
काली दिवाली के दिन, लोग काली के रंगों, जैसे काले, लाल और हरे रंग के कपड़े पहनते हैं। वे काली की पूजा के लिए विशेष व्यंजन भी तैयार करते हैं, जैसे कि काले तिल का हलवा और काले चने की दाल।
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