#फिरो��ाबाद
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जब तक हम भगवान को पाते नहीं, हमें लगता है कि हम तो किसी बड़े संत को गुरू बनाएँगे, तभी हम भगवान को पाएँगे। और जब हम भगवान को पा जाते हैं, तब हमें लगने लगता है कि मैंने तो पा ही लिया है, अब मैं सभी का कल्याण कर दूंगा। जबकि दोनों ही बातें सिरे से गलत हैं। इसे हम एक घटना के माध्यम से समझने की चेष्टा करें- एक बार की बात है, कुछ भक्त लोग, मस्तराम बाबा और ��नके शिष्य मेरे सद्गुरूदेव भगवान स्वामी मित्रानन्द जी महाराज को, एक गाड़ी में बिठा कर, रेलवे स्टेशन छोड़ने जा रहे थे। भक्तों ने गाड़ी को फूल मालाओं से लाद दिया था। रास्ता लंबा था। रास्ते में बाबा मस्तराम एक उलझी हुई माला को सुलझाने लगे। कुछ देर प्रयास करने के बाद बाबा ने वह माला स्वामी जी की ओर बढ़ा दी। और सुलझाने का इशारा किया। स्वामी जी भी गुरू आज्ञा समझकर बहुत देर तक प्रयास करते रहे, पर माला थी कि सुलझ ही नहीं रही थी। कुछ समय बाद बाबा ने पूछा- माला सुलझ गई? स्वामी जी- गुरू जी! यह माला तो सुलझ ही नहीं रही। बाबा- तब बाहर कर दो। स्वामी जी ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और माला को बाहर गिरा दिया। तभी बाबा ने पूछा- क्या समझे हो? स्वामी जी- गुरू जी! आप समझाएँ। बाबा मस्तराम बोले- बहुत लोग मिलेंगे। गजब के उलझे होंगे। जो जहाँ जैसे भी टकरा जाए, एक बार सुलझाने का पूरा प्रयास करना। सुलझ जाए तो भगवान के दरबार में चढ़ा देना। न सुलझे तो बाहर कर देना। लोकेशानन्द कहता है कि हर किसी का कल्याण हर किसी से नहीं होता। परमात्मा का विधान विचित्र है। आप लाख भटकते फिरो, आपका कल्याण उसी से होगा, जिससे होना है। और कोई लाख प्रयास करे, उससे उसी का कल्याण होगा, जिसका उससे होना है। रामकृष्ण परमहंस के पास एक नरेन्द्र ही नहीं पहुँचा था। विवेकानन्द कितने बने? हमें तो भगवान के विधान पर श्रद्धा टिका कर, उपलब्ध समकालीन महापुरुष का ही आश्रय ग्रहण करना चाहिए। फिर जैसी भगवान की इच्छा। https://www.instagram.com/p/CeXVE9tBQaZ/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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कबीर दास जीवनी हिंदी में || Kabir das biography in Hindi
कबीर दास भारत के महान कवि और समाज सुधारक थे। वे हिन्दी साहित्य के विद्दान थे। कबीर दास के नाम का अर्थ महानता से है अर्थात वे भारत के महानतम कवियों में से एक थे।
Kabir Das Biography in Hindi: महान संत कबीरदास ज्ञान आश्रय शाखा के मुख्य कवि माने जाते हैं. “कबीरदास का जीवन परिचय” (Biography of Kabir Das in Hindi) नीचे प्रस्तुत किया गया है, आप उनके जीवन परिचय को पढ़कर उनके साहित्यिक योगदान और कृतियों से परिचित होंगे.
कबीर दास को ज्ञान आश्रय शाखा के प्रमुख कवियों में से माना जाता है. उन्होंने अपने समस्त जीवन काल में सर्वाधिक ध्यान जातिवाद मिटाने पर दिया. देश स्वयं भी एक मुस्लिम थे या हिंदू उसका कोई पुख्ता प्रमाण ��हीं है. आइए पढ़ते हैं- Kabir Das Biography in Hindi.
Kabir Das Biography in Hindi (कबीरदास का जीवन परिचय)
नाम – कबीर दास जन्म – 15 वी शताब्दी ,संवत 1455, रामतारा (काशी)गुरु का नाम – संत आचार्य रामानंद जीविवाह – “लोई’ विशेष- ज्ञानाआश्रय शाखा के प्रतिनिधि कवि.मृत्यु – संवत 1551, मगहरसाहित्यिक कार्य-भक्ति आंदोलन. प्रगतिशील लेखक आंदोलन में भाग लेना.रचनाएं- साखी, सबद, रमैनीकार्यक्षेत्र- ज्ञान क्षेत्र
कबीर दास जी की जीवनी – Kabir Das ka Jeevan Parichay
महान संत और रहस्यवादी कवि कबीर दास जी का जन्म 15 वी शताब्दी में हुआ था. इनके जन्म की तिथि एवं जन्म स्थान के संबंध में बहुत से मत-भेद हैं अतः यह स्पष्ट नहीं है कि इनका जन्म कब और किस स्थान पर हुआ था. अधिकतर विद्वान कबीरदास का जन्म काशी में रामतारा नामक तालाब पर में मानते हैं. उन्होंने अपने जन्म स्थान के संबंध में भी एक वाक्यांश लिखा है जो इस प्रकार है कि- “काशी में परगट भरे रामानंद चेताये।”
कहा जाता है,इनकी माता एक विधवा ब्राह्मणी थी.जो इन्हें बचपन में राम तारा तालाब के पास छोड़ कर चली गई थी. इसके बाद कबीर दास जी का लालन पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था , इनके वास्तविक माता-पिता का नाम प्रमाणित नहीं है. कुछ विद्वानों के अनुसार कि नीरू और नीमा नाम के मुस्लिम पति एवं पत्नी ने कबीर दास का पालन पोषण किया. नीरू नाम के जुलाहा को कबीर रामतारा तालाब के निकट पढ़ें मिले थे. कबीर दास जी द्वारा लिखे गए एक दोह में भी इसका वर्णन किया गया है- “जाति जुलाहा नाम कबीरा”, बनि बनि फिरो उदासी
कबीरदास की हार्दिक इच्छा थी, कि उनके गुरु संत आचार्य रामानंद जी बने लेकिन आचार्य रामानंद जी ने कबीर दास को अपना गुरु बनाने से इनकार कर दिया. किंतु कबीर दास जी ने भी ठान लिया था, कि वे अपना गुरु आचार्य रामानंद जी को ही बनाएंगे.
एक बार प्रातः काल की बेला में जब रामानंद जी गंगा स्नान कर रहे थे, तो कबीर दास उनके रास्ते में पड़ने वाले मंदिर की सीढ़ियों पर लेट गए, और जब रामानंद जी स्नान करके लौट रहे थे तब उनका पैर कबीर दास जी के ऊपर पड़ा और कबीर दास के मुख से “राम” शब्द निकला. इसी को देख कर आचार्य रामानंद जी ने कबीर दास को अपना चेला बना लिया और उन्हें शिक्षा दीक्षा देने लगे. कबीर दास हिंदू एवं मुस्लिम शब्द को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे. बे सभी को एक समान ईश्वर का पुत्र मानते थे.
कबीरदास मानते थे कि हमारे कर्मों के अनुसार हमें फल मिलता है और उन्होंने अपने सारे दोहो में भी इसका व्याख्यान किया है. अपनी इस बात को अंतिम समय में साबित करने के लिए वे मगहर में रहने लगे, क्योंकि कुछ लोगों का कहना था कि मगहर में मरने वाले लोगों को नरक मिलता है और काशी में मरने वाले लोग स्वर्ग में जाते हैं. इस अवधारणा को गलत साबित करने के लिए उन्होंने अपनी अंतिम सांस मगहर मे ली. आज भी कबीर दास का मजार मगहर में बना हुआ है. इनकी मृत्यु के संबंध में भी कोई पुख्ता सबूत नहीं है किंतु कुछ विद्वानों के अनुसार इनका निधन संवत 1551 में हुआ था.
कबीरदास जी का विवाह और बच्चे – Kabir Das Life History
कबीरदास जी का विवाह वनखेड़ी बैरागी की कन्या ”लोई” के साथ हुआ था। विवाह के बाद दोनों को संतान का सुख मिला कबीरदास जी के बेटे का नाम कमाल था जबकि बेटी का नाम कमाली था।
वहीं इन लोगों को परिवरिश करने के लिए कबीरदास जी को अपने करघे पर काफी काम करना पड़ता था। जिससे घर साधु-संतों का आना-जाना लगा रहता था, वहीं उनके ग्रंथ साहब के एक श्लोक से अनुमान लगााया जाता है उनका पुत्र कमाल कबीर दास जी के मत का विरोधी था।
करीब दास जी की विशेषताएं – Sant Kabir Information
करीब दास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था वे साधु-संतों के साथ कई जगह भ्रमण पर जाते रहते थे इसलिए उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान हो गया था। इसके साथ ही कबीरदास अपने विचारो और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। कबीर दास जी की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है।
कबीर अपनी स्थानीय भाषा में लोगो को समझाते थे और उपदेश देते थे। इसके साथ ही वे जगह-जगह पर उदाहरण देकर अपनी बातों को लोगो के अंतरमन तक पहुंचाने की कोशिश करते थे। कबीर के वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है। जो ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। कबीर ग्रन्थावली में भी उनकी रचनाएं का संग्रह देखने को मिलता है।
कबीर ने गुरु का स्थान भगवान से बढ़कर बताया है। कबीरदास ने एक जगह पर गुरु को कुम्हार का उदाहरण देते हुए समझाया है कि – जो मिटटी के बर्तन के समान अपने शिष्य को ठोक-पीटकर सुघड़ पात्र में बदल देता है।
कबीर दास हमेशा सत्य बोलने वाले निडर और निर्भाक व्यक्ति थे। वे कटु सत्य भी कहने से नहीं बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते थे।
कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे कबीरदास
कबीरदास जी झूठा दिखावा, कर्मकाण्ड और पाखंड के घोर विरोधी थे और उन्हें मौलवियों और पंडितों के कर्मकांड पसंद नहीं थे और तो और कबीर दास अवतार, मूर्ति, रोज़ा, ईद, मस्जिद, मंदिर को नहीं मानते थे।
Sant Kabir Das – कबीर दास को मस्जिदों में नमाज पढ़ना, मंदिरों में माला जपना, तिलक लगाना, मूर्तिपूजा करना रोजा या उपवास रखना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
कबीर दास को सादगी में रहना ज्यादा अच्छा लगता था और वे हमेशा सादा भोजन करना पसंद करते थे, उन्हें किसी तरह की बनावट अच्छी नहीं लगती थी। अपने आस- पास के समाज को वे आडम्बरो से मुक्त बनाना चाहते थे।
कबीर दास के ग्रंथ – Kabir Granthavali
कबीरदास के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या अलग-अलग लेखों के मुताबिक अलग – अलग हैं वहीं एच.एच. विल्सन की माने तो कबीर के नाम पर 8 ग्रंथ हैं। जबिक विशप जी.एच. वेस्टकॉट ने कबीर के 84 ग्रंथों की लिस्ट जारी की है वहीं रामदास गौड ने `हिंदुत्व’ में 71 किताबें गिनाईं हैं।
कबीर दास जी की मृत्यु- Sant Kabir Death
कबीर दास जी ने अपना पूरा जीवन काशी में ही गुजारा लेकिन वह मरने के समय मगहर चले गए थे। ऐसा माना जाता है उस समय लोग मानते थे कि मगहर में मरने से नरक मिलता है और काशी में प्राण त्यागने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
वहीं कबीर को जब अपने आखिरी समय का अंदेशा हो गया था तब वे लोगों की इस धारणा को तोड़ने के मगहर चले गए।
ये भी कहा जाता है कि कबीर के शत्रुओं ने उनको मगहर जाने के लिए ��जबूर किया था, वे चाहते थे कि कबीर की मुक्ति न हो पाए, लेकिन कबीर तो काशी मरन से नहीं, राम की भक्ति से मुक्ति पाना चाहते थे।
बीरदास जी एक महान कवि और समाज सुधारक थे। इन्होनें अपने साहित्य से लोगों को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी इसके साथ ही समाज में फैली कुरोतियों पर जमकर प्रहार किया है। कबीरदास जी सादा जीवन जीने में यकीन रखते थे वे अहिंसा, सत्य, सदाचार गुणों के प्रशंसक थे।
कबीरदास जैसे कवियों का भारत में जन्म लेना गौरव की बात है।
कबीर दास जी का योगदान – Kabir Works
कबीर दास जी ने अपने लेखन से समाज में फैली कुरोतियों को दूर किया है इसके साथ ही सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध किया है।
Compositions of Kabir Das in Hindi (कबीर दास की रचनाएं)
कबीर दास की शिष्यों ने उनकी वाणी को बीजक नाम के काव्य संग्रह में एकत्रित करके रखा था .इस काव्य संग्रह के मुख्यतः तीन भाग हैं. जिनका नाम साखी, सबद, रमैनी है-
साखी– साखी शब्द संस्कृत के “साक्षी “शब्द से बना है और इसका मतलब होता है धर्म का उपदेश कबीर दास के इस काव्य संग्रह में अधिकतर दोह लिखे गए हैं. कहीं-कहीं पर सोरठा का प्रयोग भी किया गया है.
सबद– शब्द के प्रकार का गेय पद है. इस काव्य में कबीर ने प्रेम प्रसंग से संबंधित रचनाएं की हैं.
रमैनी– यह बीजक का तीसरा हिस्सा है और इसमें चौपाई छंद लिखी गई है.
language Style of Kabir Das in Hindi (कबीरदास की भाषा शैली)
कबीर दास जी की भाषा सधुक्कड़ी और मिश्रित भाषा है. इन्होंने लगभग सभी प्रकार की भाषा का प्रयोग किया था ,जिनमें से हरियाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी ब्रज, भाषा राजस्थानी मुख्य है.
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स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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आईएएस अफसर ने आदिवासी महिला से कहा – कपड़े उतारो नंगे हो जाओ, लेकिन शौचालय बनवाओ मध्यप्रदेश में आदिवासी महिला सरपंच के अपमान का बेहद ही शर्मनाक मामला सामने आया है. श्योपुर जिले में सरपंचो की बैठक में स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिला पंचायत सीईओ ने शोचालय के निर्माण के लिए आदिवासी महिला सरपंच को कपड़े उतारकर नंगे होने के लिए कहा. दरअसल, विजयपुर में सरपंच-सचिवों की बैठक के दौरान जिला पंचायत सीईओ ऋषि गर्ग ने दिवासी महिला सरपंच से कहा कि कपड़े उतारो, चाहे नंगे फिरो, लेकिन शौचालय किसी भी कीमत पर बनवाओ. सीईओ के इस व्यवहार से महिला सरपंच पानी-पानी हो गई. महिला सरपंच के इस अपमान के बाद सभी सरपंचों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया. ओछा ग्राम पंचायत की आदिवासी महिला सरपंच ने बताया कि उन्होंने सीईओ ऋषि गर्ग से कहा था कि हितग्राही ने शौचालय बनवाने के लिए खाते से पैसे नहीं निकाले, इसलिए शौचालय नहीं बन सका. इसमें मेरी क्या गलती है? बिना पैसों के शौचालय कैसे बनेंगे? इस पर सीईओ ने विवादित बयान दिया. हालांकि जब मामलें ने तूल पकड़ा तो सीईओ बयान से मुकर गए और बोले कि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा. यह सरासर झूठे आरोप हैं. इस ममाले में सीईओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है.
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आलस कैसे खत्म करें - How to overcome laziness in Hindi
How to overcome laziness in Hindi : नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको बताने वाली हूं कि अपने आलस को किस तरह खत्म किया जाए। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आलस तो सभी के अंदर होता है। किसी में ज्यादा तो किसी में कम लेकिन होता जरूर है। और अगर एक बार आलस आ जाए तो हमारा बना बनाया काम बिगड़ता चला जाता है। जिससे हमें कई सारे नुकसान होते हैं। आलस इंसान को तबाह कर सकता है। अगर आप में भी आलस है तो जान लीजिये ये किस प्रकार आपको नुकसान पहुँचा सकता है। चलिए विस्तारपूर्वक जानते हैं। आलस के कारण जीवन में मान सम्मान न मिलना। जो अलसी इंसान होता है वो हमेशा आराम ढूंढता है। और हर काम से बचने की कोशिश करता है। ऐसे लोगों को कहीं पर भी मान सम्मान नहीं मिलता है। ना तो उनकी कहीं इज्जत होती है। हर जगह उनकी हर कोई उस अलसी इंसान की निन्दा करते हैं। हर जगह से उन्हे ताने मिलते हैं। ऐसे लोग सभी के लिए धरती पर बोझ के समान होते हैं। इसलिए अगर आप भी हर बात पर आलस को दिखाते हैं तो अपने आलस को निकाल फेंको ताकि आपको हर जगह मान सम्मान मिले।
आलस के कारण कामियाबी हासिल ना होना। दोस्तो यह सच है कि हम अगर हर बात पर आलस आप दिखाते हैं तो जिंदगी में आप नाकामयाब रहते हैं। और अपनी जिंदगी में कामियाबी को कभी भी हासिल नहीं कर पाते है। फिर बाद में अगर हमारे फ्रेंड्स हमसे लाइफ में आगे बढ़ जाते हैं तो हमें बहुत ही ज्यादा अफसोस होता है। अगर आप अपनी जिंदगी में किसी भी प्रकार का अफसोस नहीं करना चाहते तो अपने आलस को साइड में रखो और पूरी मेहनत ईमानदारी के साथ अपने गोल पर फोकस करो और लाइफ में कमियाबी को हासिल करें। क्यूंकि अब भी हमारे पास समय है लाइफ में कुछ कर दिखाने के लिए। आलस के कारण हैल्थ का खराब होना। जो बहुत ही ज्यादा आलसी होता है। वो हमेशा सोता है, लेटा या बैठा रहता है। जिसके कारण वह न तो अपने शरीर पर ध्यान देते हैं न ही उनकी हेल्थ अच्छी होती है। क्यूंकि वह हर काम में आराम चाहता है। न तो मेहनत करता है। अगर दोस्तो आपके साथ भी कुछ ऐसा है तो आज से और अभी से आलस के दूर करो। घूमो फिरो काम के प्रति जागरूक रहें खुश रहे। अलास से कैसे बचा जाए बुढापे में आराम चाहिए तो जवानी में मेहनत करें। दोस्तो अगर आप चाहते हैं कि आपको बुढापे में कोई तकलीफ़ ना हो आराम की जिंदगी व्यतीत करना चाहते हैं। तो अपनी जवानी को आलस में बर्बाद ना करके इस जवानी के समय अपनी लाइफ में आगे बड़े ताकि आपका बुढापा एक बेहतर तरीके से गुजरे। इसलिए मेहनत से ना घबराए बल्कि हार्ड वर्क स्मार्ट वर्क करके लाइफ में आगे बढ़े। रोजाना नहाने की आदत डाले। दोस्तो अगर आप सच में आलस से मुक्ति पाना चाहते हैं तो रोजाना सुबह सुबह नहाए जिससे हमें ना सिर्फ फ्रेश महसूस होता है बल्कि हम पूरा दिन फुर्ती में रहते हैं। और हमारा शरीर भी स्वस्थ होता है। ना ही आलस आता साथ ही पूरा दिन एक्टिव रहते हैं। काम टालने की आदत छोड़ने की कोशिश करें। दोस्तो जो आलसी होता है। वो अपने काम को हर दिन टालता है। बल्कि ऐसा करके वह अपने समय को गवाता है। और अपनी जिंदगी में सबसे अधिक परेशानी में रहता है। क्यूंकि वह काम को टालकर अपना काम और ज्यादा मात्रा में बड़ा लेता है। जिससे उन्हें काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसलिए कल क��म करने से अच्छा है। वक्त पर काम को करें। काम को टालने की आदत को अपने अंदर से त्याग दें। कम सोने की आदत डाले। दोस्तो जितना हो सके अपने सोने की आदत को कम करें। क्यूंकि ज्यादातर सोना हमारे लिए बहुत ही नुक़सानदायक होता है। हमारे अन्दर मोटापा व आलस दिन पर दिन बड़ता चला जाता है। इसलिए दोस्तो स्वस्थ रहे। ऐसी बुरी आदतों को छोड़ दें। नोट दोस्तो मेरा आप सभी से अनुरोध है कि अपनी जिंदगी को अच्छे से एन्जॉय के साथ गुजारे। लाइफ में आगे बढ़ने के लिए आलस को छोड़ कर। थोड़ी मेहनत पर ध्यान दे। अपनी बुलंदियों को छू कर रहे। क्यूंकि लाइफ में कोई काम मुश्किल नहीं होता है। जैनब खान Read the full article
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जब तक हम भगवान को पाते नहीं, हमें लगता है कि हम तो किसी बड़े संत को गुरू बनाएँगे, तभी हम भगवान को पाएँगे। और जब हम भगवान को पा जाते हैं, तब हमें लगने लगता है कि मैंने तो पा ही लिया है, अब मैं सभी का कल्याण कर दूंगा। जबकि दोनों ही बातें सिरे से गलत हैं। इसे हम एक घटना के माध्यम से समझने की चेष्टा करें- एक बार की बात है, कुछ भक्त लोग, मस्तराम बाबा और उनके शिष्य मेरे सद्गुरूदेव भगवान स्वामी मित्रानन्द जी महाराज को, एक गाड़ी में बिठा कर, रेलवे स्टेशन छोड़ने जा रहे थे। भक्तों ने गाड़ी को फूल मालाओं से लाद दिया था। रास्ता लंबा था। रास्ते में बाबा मस्तराम एक उलझी हुई माला को सुलझाने लगे। कुछ देर प्रयास करने के बाद बाबा ने वह माला स्वामी जी की ओर बढ़ा दी। और सुलझाने का इशारा किया। स्वामी जी भी गुरू आज्ञा समझकर बहुत देर तक प्रयास करते रहे, पर माला थी कि सुलझ ही नहीं रही थी। कुछ समय बाद बाबा ने पूछा- माला सुलझ गई? स्वामी जी- गुरू जी! यह माला तो सुलझ ही नहीं रही। बाबा- तब बाहर कर दो। स्वामी जी ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और माला को बाहर गिरा दिया। तभी बाबा ने पूछा- क्या समझे हो? स्वामी जी- गुरू जी! आप समझाएँ। बाबा मस्तराम बोले- बहुत लोग मिलेंगे। गजब के उलझे होंगे। जो जहाँ जैसे भी टकरा जाए, एक बार सुलझाने का पूरा प्रयास करना। सुलझ जाए तो भगवान के दरबार में चढ़ा देना। न सुलझे तो बाहर कर देना। लोकेशानन्द कहता है कि हर किसी का कल्याण हर किसी से नहीं होता। परमात्मा का विधान विचित्र है। आप लाख भटकते फिरो, आपका कल्याण उसी से होगा, जिससे होना है। और कोई लाख प्रयास करे, उससे उसी का कल्याण होगा, जिसका उससे होना है। रामकृष्ण परमहंस के पास एक नरेन्द्र ही नहीं पहुँचा था। विवेकानन्द कितने बने? हमें तो भगवान के विधान पर श्रद्धा टिका कर, उपलब्ध समकालीन महापुरुष का ही आश्रय ग्रहण करना चाहिए। फिर जैसी भगवान की इच्छा। http://shashwatatripti.wordpress.com #ramrajyamission https://www.instagram.com/p/CJyN7SYnewB/?igshid=1r383bj17243r
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जब तक हम भगवान को पाते नहीं, हमें लगता ���ै कि हम तो किसी बड़े संत को गुरू बनाएँगे, तभी हम भगवान को पाएँगे। और जब हम भगवान को पा जाते हैं, तब हमें लगने लगता है कि मैंने तो पा ही लिया है, अब मैं सभी का कल्याण कर दूंगा। जबकि दोनों ही बातें सिरे से गलत हैं। इसे हम एक घटना के माध्यम से समझने की चेष्टा करें- एक बार की बात है, कुछ भक्त लोग, मस्तराम बाबा और उनके शिष्य स्वामी मित्रानन्द जी महाराज को, एक गाड़ी में बिठा कर, रेलवे स्टेशन छोड़ने जा रहे थे। भक्तों ने गाड़ी को फूल मालाओं से लाद दिया था। रास्ता लंबा था। रास्ते में बाबा मस्तराम एक उलझी हुई माला को सुलझाने लगे। कुछ देर प्रयास करने के बाद बाबा ने वह माला स्वामी जी की ओर बढ़ा दी। और सुलझाने का इशारा किया। स्वामी जी भी गुरू आज्ञा समझकर बहुत देर तक प्रयास करते रहे, पर माला थी कि सुलझ ही नहीं रही थी। कुछ समय बाद बाबा ने पूछा- माला सुलझ गई क्या? स्वामी जी- गुरू जी! यह माला तो सुलझ ही नहीं रही। बाबा- तब बाहर कर दो। स्वामी जी ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और माला को बाहर गिरा दिया। तभी बाबा ने पूछा- क्या समझे हो? स्वामी जी- गुरू जी! आप क्या समझाना चाहते हैं, मैं नहीं समझा। बाबा मस्तराम बोले- बहुत लोग मिलेंगे। गजब के उलझे होंगे। जो जहाँ जैसे भी टकरा जाए, एक बार सुलझाने का पूरा प्रयास करना। सुलझ जाए तो भगवान के दरबार में चढ़ा देना। न सुलझे तो बाहर कर देना। लोकेशानन्द कहता है कि हर किसी का कल्याण हर किसी से नहीं होता। परमात्मा का विधान विचित्र है। आप लाख भटकते फिरो, आपका कल्याण उसी से होगा, जिससे होना है। और कोई लाख प्रयास करे, उससे उसी का कल्याण होगा, जिसका उससे होना है। रामकृष्ण परमहंस के पास एक नरेन्द्र ही नहीं पहुँचा था। विवेकानन्द कितने बने? हमें तो भगवान के विधान पर श्रद्धा टिका कर, उपलब्ध समकालीन महापुरुष का ही आश्रय ग्रहण करना चाहिए। फिर जैसी भगवान की इच्छा। https://www.instagram.com/p/CArGh7GH-g6/?igshid=10p18yqamlmkt
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