#फादर्स डे कविता
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Day 205
Good evening everyone,
जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं
जो किया,कहा,माना, उसमें क्या बुरा भला।
आज श्री हरिवंश राय बच्चन जी की कविता की इन पंक्तियों ने मुझे आभास कराया की किस प्रकार हम जीवन में हर चीज़ को रोज़ अहमियत देते हैं लेकिन हर एहम चीज़ के लिए सिर्फ एक दिन फिर चाहे वो मदर्स डे हो, फादर्स डे हो, फ्रेंडशिप डे हो ।
क्यों न हम किसी भी रिश्ते या भावना की अहमियत जताने के लिए एक दिन का सहारा न लेकर रोज़ उसे खास बनाए।
Translation:
जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं
जो किया,कहा,माना, उसमें क्या बुरा भला।
Today, while reading this beautiful lines by Dr. Harivansh Rai Bachchan, I came to a realisation how everyday we have something important to do but what actually is important to us has only one single day in our calendar.
Whether it's mother's day, father's day or any other day which shows empathy or sympathy towards relation,nature or earth why to limit our emotions,duties, responsibilities to that just one day.
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20 जून: पढ़े आज दिनभर की बड़ी खबरें Divya Sandesh
#Divyasandesh
20 जून: पढ़े आज दिनभर की बड़ी खबरें
देश-
तेलंगाना में पूर्ण लॉकडाउन हटा, महानगर में बस और मेट्रो सेवा बहाल
पिता-माता को खोने वाले बच्चों को मिलेगा आशीर्वाद योजना का सराहा
भारतीय रेलवे ने 5 सालों में 6 हजार से अधिक स्टेशनों को फ्री वा��-फाई सुविधा से किया लैस
देश को मिली 11वीं ��हिला फाइटर पायलट, माव्या सूदन ने बचपन में देखा था लड़ाकू विमान उड़ाने का सपना
पेट्रोल-डीजल मूल्य वृद्धि पर राहुल का तंज, कहा- ‘मोदी सरकार ने टैक्स वसूली में पीएचडी कर ली’
भारत ने कोरोना से जीती जंग! 81 दिनों बाद 60 हजार से कम नए मामले, 1576 लोगों की मौत
विदेश-
एंतोनियो गुतारेस को लगातार दूसरी बार नियुक्त किया गया संयुक्त राष्ट्र महासचिव
International Yoga Day 2021: 21 जून को ही क्यों मनाया जाता हैं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, हर साल होती है एक अलग थीम
एक मंच पर नजर आएंगे भारत पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार
राजस्थान-
मुनाबाव बॉर्डर पर भारत में घुसा पाकिस्तानी नागरिक गिरफ्तार
रणथंभौर में बाघिन टी-111 का बढ़ा कुनबा, चार नए शावकों के साथ आई नजर
वीकेंड कर्फ्यू शनिवार शाम से, सोमवार की सुबह खुलेंगे बाजार
खेल-
भावेश पटेल का राष्ट्रीय स्तर के अंपायर पैनल में चयन
‘फादर्स डे’ पर भारतीय क्रिकेटरों ने शेयर किए इमोशनल मैसेज
भारत और इंग्लैड महिला क्रिकेट टीम के बीच खेला गया एक मात्र टेस्ट मैच ड्रा
मनोरंजन-
व्हाइट टॉप और ब्लू जींस में बेबी बंप फ्लॉन्ट करती नजर आई नुसरत जहां, देखें तस्वीरें
Indian Idol 12: पवनदीप और अरुणिता को लॉन्च करेंगे हिमेश रेशमिया, जानिए एल्बम से जुडी सारी डिटेल्स
इंडस्ट्री में दौड़ी शोक की लहर, प्लेबैक सिंगर तपू मिश्रा का कोरोना से निधन
लाईफस्टाइल-
पितृ दिवस पर मर्मस्पर्शी कविता: जन्म दिया है अगर माँ ने, जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता…
Love horoscope: आज प्रेमियों का हो सकता ज्यादा खर्च, उनकी महबूबा..हो सकती है कुंवारों की शादी, जानें आज का लव राशिफल
दिलचस्प खबरें-
100 साल तक जिंदा और 50 साल की हो जाने पर सेक्सुअली तैयार होती हैं यह रहस्यमय मछली, 5 वर्ष तक गर्भवती
Download app: अपने शहर की तरो ताज़ा खबरें पढ़ने के लिए डाउनलोड करें संजीवनी टुडे ऐप
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फादर्स डे पर अनुपम खैर ने अपने पिता को याद कर खूबसूरत पंक्तियों के साथ शेयर की थ्रोबैक फोटोज!
New Post has been published on https://bollywoodpapa.com/285214/actor-anupam-kher-lovely-post-on-father-day/
फादर्स डे पर अनुपम खैर ने अपने पिता को याद कर खूबसूरत पंक्तियों के साथ शेयर की थ्रोबैक फोटोज!
दोस्तों बाॅलीवुड के दिग्गज एक्टर अनुपम खेर ट्विटर पर काफी एक्टिव रहते हैं। वह अक्सर अपने विचारों को ट्वीट या वीडियो के जरिए फैंस के साथ शेयर करत हैं।उन्होंने कई बार ट्विटर पर वीडियोज शेयर किए हैं और उनकी आंखें आंसुओं से डबडबा गई। हाल ही में फादर्स डे पर अनुपम खेर ने ट्विटर पर कविता की कुछ पंक्तियां शेयर की। इसके साथ उन्होंने पिता संग कुछ तस्वीरें शेयर की हैं।
अनुपम ने लिखा-‘यूं तो मैंने बुलंदियों के हर निशान को छुआ, पर जब पापा ने कंधे पे उठाया तो आसमान को छुआ।’ अब उनकी ये पंक्तियां चर्चा में बनी हुई हैं। सैकड़ों ट्विटर यूजर्स और उनके फैंस ने इसपर प्रतिक्रिया दी है।
यूँ तो मैंने बुलंदियों के हर निशान को छुआ, पर जब पापा ने कंधे पे उठाया तो आसमान को छुआ… ❤️ #HappyFathersDay2021 #PushkarNath pic.twitter.com/W1JkhXOaoo
— Anupam Kher (@AnupamPKher) June 20, 2021
‘कश्मीर फाइल्स’, ‘नौटंकी’ में नजर आएंगे। इसके अलावा उन्होंने सूरज बड़जात्या की भी एक फिल्म साइन की है। पर्ससनल लाइफ की बात करें तो अनुपम खेर इन दिनों अपनी एक्ट्रेस पत्नी किरण खेर की देखभाल में बिजी हैं। बीजेपी सांसद किरण खेर इन दिनों ब्लड कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं।
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Happy Father’s Day 2020 why third sunday of june celebrates as fathters day | अमेरिका के वर्जीनिया में 110 साल पहले शुरू हुआ था फादर्स डे, एक बेटी की परवरिश से जुड़ा इस दिन का रिश्ता
Happy Father’s Day 2020 why third sunday of june celebrates as fathters day | अमेरिका के वर्जीनिया में 110 साल पहले शुरू हुआ था फादर्स डे, एक बेटी की परवरिश से जुड़ा इस दिन का रिश्ता
पत्नी के निधन के बाद विलियन ने बेटी की परवरिश और बेटी ने बड़ी होकर पिता के सम्मान में इस दिन की शुरुआत की
1966 में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जाॅनसन ने इसे जून के तीसरे रविवार को मनाने की सहमति दी
दैनिक भास्कर
Jun 21, 2020, 02:05 PM IST
पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है, पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है – ओम व्यास ओम की कविता का अंश । यूं तो पिता को शब्दों में बयां करना मुश्किल है लेकिन…
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अमेरिका के वर्जीनिया में 110 साल पहले शुरू हुआ था फादर्स डे, एक बेटी की परवरिश से जुड़ा इस दिन का रिश्ता
अमेरिका के वर्जीनिया में 110 साल पहले शुरू हुआ था फादर्स डे, एक बेटी की परवरिश से जुड़ा इस दिन का रिश्ता
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पत्नी के निधन के बाद विलियन ने बेटी की परवरिश और बेटी ने बड़ी होकर पिता के सम्मान में इस दिन की शुरुआत की
1966 में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जाॅनसन ने इसे जून के तीसरे रविवार को मनाने की सहमति दी
दैनिक भास्कर
Jun 21, 2020, 01:54 PM IST
पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है, पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है – ओम व्यास ओम की कविता का अंश । यूं तो पिता को शब्दों में बयां करना मुश्किल है…
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पिता को समर्पित दो लघुकथा और एक कविता जो एक बार फिर आपको पापा के करीब ले जाएंगी https://ift.tt/2YUCY1Z
लघुकथा :पापा ने बनायासकारात्मक
लेखक : माणिक राजेंद्र देव
पापा से बात करने के बाद यूं तो हर तरह का तनाव और चिंता नौ दो ग्यारह हो जाती है, परंतु कोरोना काल में इस ��ात का गहराई से अहसास हुआ। बच्चों के बाहर रहने और पति के बैंक में कार्यरत होने की वजह से पूरे लॉकडाउन में मुझे दिनभर घर में अकेले ही रहना पड़ा। छोटे शहर में एसबीआई की एक ही शाखा होने के चलते कुछ दिन काम बंद रखे जाने का विकल्प नहीं था।
टीवी पर कोरोना के मरीज़ों की बढ़ती संख्या देखकर मैं चिंताग्रस्त हो जाती। अकेले में चिंताएं बेलगाम होकर अधिक परेशान करती हैं। उस पर एक मां को तो जैसे ईश्वर ने ही चिंता करने का नैसर्गिक गुण प्रदान किया है। शाम को जब दिन भर मास्क की वजह से पति का सूजा चेहरा देखकर और सैनेटाइज़र की तेज़ गंध से परेशान हो जाती तो अनायास ही मन उन डॉक्टरों और नर्सों के प्रति श्रद्धानत हो जाता जो रात-दिन कोरोना मरीज़ों की जान बचाने में लगे हुए हैं। बैंक के बाहर तेज़ धूप में सरकार द्वारा भेजे रुपयों के लिए लगी मज़दूरों की लंबी लाइनें देखकर तो दिल कांप जाता।
पापा से बात करना मेरी दिनचर्या में शामिल है। मैंने अपनी मनःस्थिति कभी शेयर नहीं की, फिर भी पापा की बातें मेरी सोच को पूर्णतया बदलकर सकारात्मक कर देतीं। जैसे, सरकार ने कोरोना से निबटने के लिए अच्छी तैयारी की है या सरकार किसी को भूख से नहीं मरने देगी, कई समाजसेवी संस्थाएं भी इस कार्य में लगी हुई हैं। रोज़ स्वस्थ होकर घर लौटने वाले मरीज़ों की संख्या भी वे अवश्य बताते। कभी बच्चों से बात कर मुझे बताते कि वे सावधानीपूर्वक वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं और सुरक्षित हैं। न जाने क्यूं मैंं कभी इन सकारात्मक बातों पर ग़ौर ही नहीं कर पाई।
फिर एक दिन उनकी कॉलोनी में एक सज्जन कोरोना पॉज़िटिव निकले। हम सभी घबराने लगे परंतु पापा तब भी सकारात्मक ही सोचते रहे। सभी को समझाते कि वे तो अपनी मां को हॉस्पिटल ले गए थे, वहीं से उन्हें कोरोना हो गया। लक्षण दिखते ही स्वयं हॉस्पिटल चले गए और जल्द ही स्वस्थ होकर लौट आएंगे। उनकी बात सच साबित हुई। सच मंे ही कुछ ही दिनों में वे परिचित घर आ गए।
पापा सदैव समझाते कि हमारा आधा तनाव तो व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करने और अपने काम समय पर करने से ही दूर हो जाता है। तनावरहित रहने से रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ती है जो वर्तमान समय की महती ��वश्यकता है। अपने शौक़ को ज़िंदा रखना भी हमें मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। इसीलिए आज भी टीवी, अख़बार के अलावा किताबें पढ़ना, लिखना, संगीत सुनना उनकी दिनचर्या के अंग हैं। इस प्रकार वे स्वयं की मिसाल से सभी को ‘स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो’ की प्रेरणा देते हैं। फादर्स डे के अवसर पर पापा को प्रणाम।
लघुकथा...जन्म
लेखिका :माण्डवी बर्वे
एक तूफ़ान-सा उठ रहा था जज़्बात का। वो जब थमा, तो झड़ी लग गई।
घोड़े की गति-सी भागती धड़कनें, तेज़ सांसें। कभी वो चहलक़दमी करने लगता, तो कभी बेंच पर बैठकर पैर हिलाने लगता, कभी भरी ठंड में भी माथे पर उभरे पसीने पर रुमाल फेरता। ऐसी बेचैनी, इतनी घबराहट कभी-भी महसूस नहीं की थी। बार-बार ऐसा लगता कि मानो आंखों से खारा पानी फूट पड़ेगा। हाथ प्रार्थना में जुड़ जाते। फिर कभी आंखें मूंद के ख़ुद को शांत करने की कोशिश करता।
तभी दरवाज़े की आवाज़ से वो झट उठ खड़ा हुआ। नर्स बाहर आई। उसने एक मुस्कान के साथ नरम रुई-सी नन्ही-सी जान को उसके हाथों में थमाते हुए कुछ कहा। उसकी नज़रें उस कोमल चेहरे पर टिककर रह गईं। नर्स के शब्द शायद सुनाई ही नहीं पड़े। अचानक धड़कनें, सांसें सब क़ाबू में आने लगीं। बेचैनी, घबराहट सब आंखों से फूटकर सुकून की धारा बन गईं। आज आंखों का ये खारा पानी मीठा-सा लग रहा था। आज एक और पिता का जन्म हुआ था।
कविता... पिता
लेखक :सन्नी डांगी चौधरी
लहर उठी विश्वास की
पिता खड़े जिस ओर,
लम्बी काली रात की
सदा रहे तुम भोर,
ऊपर से है सख़्त दिखे
मोम सा हृदय होय,
हर दुःख हंसकर सहे
भीतर-भीतर रोय।
लगन, मेहनत और परिश्रम
देते सदा सिखाय,
लगे सदा कड़वी सी बातें पर
जो माने सुख पाय।
अनबोला अनकहा है रिश्ता
तात तुम्हारे साथ,
तुम दे दो आशीष
जहां ख़ुशी हमारे हाथ।
आस तुम्हीं विश्वास तुम्हीं
तुम हो ईश्वर समान,
मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर में
भटक रहा इंसान।
जहां भर की दौलत से जो
न ख़रीदा जाय,
मात पिता का प्यार तो
बिना मोल मिल जाय,
जितनी जल्दी जाग सके
उतनी जल्दी जाग,
दोनों हाथ में समेट ले
यह मीठा अनुराग।
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Two short stories and a poem dedicated to father that will once again take you closer to Papa
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माझ्यावरच्या कविता
शनिवारची संध्याकाऴ होती. दिवसभराच्या कामामुऴे पुरता कंटाऴलो होतो. सात वाजले तरी Bed वरुन उठण्याचा विचार नव्हता. आई आणि दुर्गा बाहेर निघाल्या होत्या. 'दुर्गे, जाताना कपाटातलं पुस्तक देउन जा गं...' 'कुठलं?' 'एक काम कर, शेवटच्या ओऴीत जे दुसरं पुस्तक असेल ते दे...' नेहमीप्रमाणेच आमच्या Guess ने माती खाल्ली आणि आम्ही सांगितलेलं पुस्तक, नेमकं 'व्योमकेश बक्षी' निघालं. 'चुकीची वेऴ अन् चुकीचं पुस्तक..', आम्ही पुटपुटलो.. 'एक काम कर... 'तुझ्यावरच्या कविता' दे, संदिप खरेचं' 'कसल्या तुझ्यावरच्या कविता वगैरे वाचतोस रे..', ती पुस्तक काढताना खेकसली. 'माझ्यावरच्या कविता, असं पुस्तक असेल तर दे मला वाचायला...' 'हॅॅ.. असलं काही पुस्तक नाहीए...' त्यावेऴी खरंतर तिला वेड्यात काढलं. पण मग नंतर घरी एकटाच असताना विचार आला. च्यायला, खरंच की असं काही नसतंच आप��्याकडे. तिच्यावरच्या असतात, त्याच्यावरच्या असतात, आईवरच्या असतात, बाबांवरच्या असतात, शेतकरी, सैनिक अगदी निर्जिव वस्तुंवरच्यासुद्धा असतात. पण माझ्यावरच्या? एखादी सोडली तर बाकी पाटी कोरीच... मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, व्हॅॅलेंटाईन डे, प्रत्येकासाठी काही ना काहीतरी आहेच... पण माझ्यासाठी? एक काय तो बर्थडे.. पण तेव्हासुद्धा अर्धे पार्टीची वाट बघत असतात आणि अर्धे 'अरे, आता पंचवीशीची झालीस ना? आता लग्नाचं बघायला पाहिजे' याच्या तयारीत असतात. (माझा नाही, पण आपलं आजूबाजूच्यांचा अनुभव सांगितला.) मग खरेच्याच ओऴी आठवल्या, खूप दिवस झाले, शहारा येउन.. स्वतःविषयी थोडं बरं वाटून.. आणि तरीही ते खरं वाटून! स्वत्वाचा शोध वगैरे सगऴं झूठ आहे बरं का! पण स्वतःला ओऴखणं तेवढंच महत्वाचं आहे... आपण समोरचा काय वागणार... कसं बोलणार... याचं Prediction करु शकतो... पण त्याच्या वागण्यावर आपली प्रतिक्रीया काय असेल, हे मात्र आपल्याला सांगता येत नाही. जिथे आम्ही स्वतःला ओऴखतंच नाही, तिथे कविता म्हणजे दूरचीच गोष्ट. ओऴखायला पाहिजे ना स्वतःला? मग आम्ही स्वतःच्या अंतर्मनाला वगैरे प्रश्न विचारले, बाबा तु नक्की आहेस तरी काय? तुला काय आवडतं, मग मन म्हणालं मला पु.लं.चा विनोद आवडतो... मग आम्ही उत्सुकतेने 'व्यक्ती आणि वल्ली' मध्ये स्वतःची ओऴख शोधू लागलो. भैया नागपूरकर वाचून होतंय तेवढ्यात हाक ऐकू आली, 'च्यायला कंटाऴा आला याचा.. मला ना वपुंचं आयुष्य आवडतं' मग आम्ही तडक जाउन वपुर्झा हाती घेतलं. पाचव्या पानाला परत हाक आली, 'बास झालं तत्वज्ञान.. मला ना, स्टडी इन स्कार्लेट आवडतं', आता मात्र आमची चिडचिड व्हायला लागली. तरीसुद्धा आम्ही सर डाॅॅयलचा शेरलाॅॅक उघडला, आत्ता कुठे थोडा रस यायला लागला तर परत एक हाक आली, 'आता ना मला याचा पण कंटाऴा आलाय.. आता मला FRIENDS चा दहावा Season बघायचांय' आता मात्र आमची सटकली. मग आम्ही चार शिव्या हासडून गच्चीत जाउन बसलो. वारं होतं. गारठा वगैरे जाणवत होता. एकांताचं संगीत वगैरे ऐकण्याचा प्रयत्न केला. कसलं संगीत, च्यायला साधा आवाज पण ऐकू येईना. पण त्याक्षणी वाटून गेलं... अंतर्मन वगैरे काही नाहीचे मुऴी... अनामिक क्षणी, नेणीवेच्या पातऴीवर ज्याच्याशी संवाद चालतो, तो खरा 'मी' आहे.. Media, वर्तमानपत्र, शेकडो लेखांमधून ओरड चालू असते, माणूस एकटा होत चाललाय... स्वार्थी होत चाललाय... नातेवाईक आणि आपल्या माणसांपासून दूर होत चाललाय.. पण त्यापेक्षा काय महत्त्वाचं आहे, माणूस स्वतःपासूनच दूर होत चाललाय.. शिक्षण, नोकरी, घर, पुढे जाउन लग्न... या सगऴ्या चक्रात 'मी' कुठेतरी हरवतोय... लहानपणी 'माझ्याशी' जो मुक्त संवाद व्हायचा, तो कुठेतरी हरवतोय... एखादी गोष्ट भिडली की शहारुन जाणारा 'मी' कुठेतरी हरवतोय... एखादी गोष्ट खरी वाटली, तर पेटून उठणारा 'मी' हरवतोय... ती, तो, ते, त्यांचं, त्यांच्या जगातच, 'मी' इतका गुरफटून गेलाय, की कसल्या कविता अन् कसलं काय... आभासी जगात किती वेऴ जगणार? मी तर काय म्हणतो... घ्यावी एखादा दिवस सुट्टी... सूर्य डोक्यावर येईपर्यंत ताणून द्यावी... स्वतःच्या हाताने फक्कड चहा करावा... Selfie न काढता फक्त आस्वाद घेत, तो संपवावा... मग तुमच्या 'मी' सोबत गप्पा करत पुढचा दिवस घालवावा... एवढं करुन तर बघा, एक काय हजार कविता सुचतील.. एक खुप छान Quote आहे.. तो लिहून थांबतो... You have permission to rest. You are not responsible for fixing everything that is broken. You don't have to try and make everyone happy. For now, take time for you. It's time to replenish.
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Father's Day पर करण देओल ने शेयर की इमोशनल पोस्ट
फादर्स डे पर बॉलीवुड एक्टर सनी देओल के बेटे करण देओल ने एक इमोशनल कविता पोस्ट कर बताया कि सनी कैसे पिता हैं. from Latest News मनोरंजन News18 हिंदी http://bit.ly/2IKeErJ from Blogger http://bit.ly/2ZyPKlH
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पिता को समर्पित दो लघुकथा और एक कविता जो एक बार फिर आपको पापा के करीब ले जाएंगी https://ift.tt/2YUCY1Z
लघुकथा :पापा ने बनायासकारात्मक
लेखक : माणिक राजेंद्र देव
पापा से बात करने के बाद यूं तो हर तरह का तनाव और चिंता नौ दो ग्यारह हो जाती है, परंतु कोरोना काल में इस बात का गहराई से अहसास हुआ। बच्चों के बाहर रहने और पति के बैंक में कार्यरत होने की वजह से पूरे लॉकडाउन में मुझे दिनभर घर में अकेले ही रहना पड़ा। छोटे शहर में एसबीआई की एक ही शाखा होने के चलते कुछ दिन काम बंद रखे जाने का विकल्प नहीं था।
टीवी पर कोरोना के मरीज़ों की बढ़ती संख्या देखकर मैं चिंताग्रस्त हो जाती। अकेले में चिंताएं बेलगाम होकर अधिक परेशान करती हैं। उस पर एक मां को तो जैसे ईश्वर ने ही चिंता करने का नैसर्गिक गुण प्रदान किया है। शाम को जब दिन भर मास्क की वजह से पति का सूजा चेहरा देखकर और सैनेटाइज़र की तेज़ गंध से परेशान हो जाती तो अनायास ही मन उन डॉक्टरों और नर्सों के प्रति श्रद्धानत हो जाता जो रात-दिन कोरोना मरीज़ों की जान बचाने में लगे हुए हैं। बैंक के बाहर तेज़ धूप में सरकार द्वारा भेजे रुपयों के लिए लगी मज़दूरों की लंबी लाइनें देखकर तो दिल कांप जाता।
पापा से बात करना मेरी दिनचर्या में शामिल है। मैंने अपनी मनःस्थिति कभी शेयर नहीं की, फिर भी पापा की बातें मेरी सोच को पूर्णतया बदलकर सकारात्मक कर देतीं। जैसे, सरकार ने कोरोना से निबटने के लिए अच्छी तैयारी की है या सरकार किसी को भूख से नहीं मरने देगी, कई समाजसेवी संस्थाएं भी इस कार्य में लगी हुई हैं। रोज़ स्वस्थ होकर घर लौटने वाले मरीज़ों की संख्या भी वे अवश्य बताते। कभी बच्चों से बात कर मुझे बताते कि वे सावधानीपूर्वक वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं और सुरक्षित हैं। न जाने क्यूं मैंं कभी इन सकारात्मक बातों पर ग़ौर ही नहीं कर पाई।
फिर एक दिन उनकी कॉलोनी में एक सज्जन कोरोना पॉज़िटिव निकले। हम सभी घबराने लगे परंतु पापा तब भी सकारात्मक ही सोचते रहे। सभी को समझाते कि वे तो अपनी मां को हॉस्पिटल ले गए थे, वहीं से उन्हें कोरोना हो गया। लक्षण दिखते ही स्वयं हॉस्पिटल चले गए और जल्द ही स्वस्थ होकर लौट आएंगे। उनकी बात सच साबित हुई। सच मंे ही कुछ ही दिनों में वे परिचित घर आ गए।
पापा सदैव समझाते कि हमारा आधा तनाव तो व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करने और अपने काम समय पर करने से ही दूर हो जाता है। तनावरहित रहने से रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ती है जो वर्तमान समय की महती आवश्यकता है। अपने शौक़ को ज़िंदा रखना भी हमें मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। इसीलिए आज भी टीवी, अख़बार के अलावा किताबें पढ़ना, लिखना, संगीत सुनना उनकी दिनचर्या के अंग हैं। इस प्रकार वे स्वयं की मिसाल से सभी को ‘स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो’ की प्रेरणा देते हैं। फादर्स डे के अवसर पर पापा को प्रणाम।
लघुकथा...जन्म
लेखिका :माण्डवी बर्वे
एक तूफ़ान-सा उठ रहा था जज़्बात का। वो जब थमा, तो झड़ी लग गई।
घोड़े की गति-सी भागती धड़कनें, तेज़ सांसें। कभी वो चहलक़दमी करने लगता, तो कभी बेंच पर बैठकर पैर हिलाने लगता, कभी भरी ठंड में भी माथे पर उभरे पसीने पर रुमाल फेरता। ऐसी बेचैनी, इतनी घबराहट कभी-भी महसूस नहीं की थी। बार-बार ऐसा लगता कि मानो आंखों से खारा पानी फूट पड़ेगा। हाथ प्रार्थना में जुड़ जाते। फिर कभी आंखें मूंद के ख़ुद को शांत करने की कोशिश करता।
तभी दरवाज़े की आवाज़ से वो झट उठ खड़ा हुआ। नर्स बाहर आई। उसने एक मुस्कान के साथ नरम रुई-सी नन्ही-सी जान को उसके हाथों में थमाते हुए कुछ कहा। उसकी नज़रें उस कोमल चेहरे पर टिककर रह गईं। नर्स के शब्द शायद सुनाई ही नहीं पड़े। अचानक धड़कनें, सांसें सब क़ाबू में आने लगीं। बेचैनी, घबराहट सब आंखों से फूटकर सुकून की धारा बन गईं। आज आंखों का ये खारा पानी मीठा-सा लग रहा था। आज एक और पिता का जन्म हुआ था।
कविता... पिता
लेखक :सन्नी डांगी चौधरी
लहर उठी विश्वास की
पिता खड़े जिस ओर,
लम्बी काली रात की
सदा रहे तुम भोर,
ऊपर से है सख़्त दिखे
मोम सा हृदय होय,
हर दुःख हंसकर सहे
भीतर-भीतर रोय।
लगन, मेहनत और परिश्रम
देते सदा सिखाय,
लगे सदा कड़वी सी बातें पर
जो माने सुख पाय।
अनबोला अनकहा है रिश्ता
तात तुम्हारे साथ,
तुम दे दो आशीष
जहां ख़ुशी हमारे हाथ।
आस तुम्हीं विश्वास तुम्हीं
तुम हो ईश्वर समान,
मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर में
भटक रहा इंसान।
जहां भर की दौलत से जो
न ख़रीदा जाय,
मात पिता का प्यार तो
बिना मोल मिल जाय,
जितनी जल्दी जाग सके
उतनी जल्दी जाग,
दोनों हाथ में समेट ले
यह मीठा अनुराग।
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Two short stories and a poem dedicated to father that will once again take you closer to Papa
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सनी देओल के बेटे करण ने शेयर की इमोशनल तस्वीर, लिखा पापा...
फादर्स डे पर बॉलीवुड एक्टर सनी देओल के बेटे करण देओल ने एक इमोशनल कविता पोस्ट कर बताया कि सनी कैसे पिता हैं. from Latest News मनोरंजन News18 हिंदी http://bit.ly/2RkbkYg from Blogger http://bit.ly/2XlgIzu
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