विश्व मानवाधिकार दिवस पर राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी में जुटा संगठन
सेराज अहमद कुरैशी। गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। तीसरी आंख मानवाधिकार संगठन के उत्तर प्रदेश कैंप कार्यालय तारामंडल गोरखपुर में रविवार को एक विशेष आहूत बैठक में राष्ट्रीय एव प्रदेश कार्यकारिणी, संगठन के संरक्षक मंडल व उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश के आमंत्रित अधिवक्ततो के संयुक्त तत्वावधान में आगामी विश्व मानवाधिकार दिवस पर मानवाधिकारों की जन जागरूकता से आमजन को रूबरू कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय अधिवेशन करने का निर्णय लिया गया।
जिसे मूर्ति रूप देने के लिए विभिन्न समितियों का सर्वसम्मति से गठन किया गया। जिसके तहत आयोजन समिति में शैलेंद्र कुमार मिश्र, डीएन सिंह, रमाकांत पांडे, राहुल श्रीवास्तव, शशिकांत व स्मारिका समिति प्रकाशन विमोचन समिति एवम परामर्श दात्री समिति में पर्यावरण विद
डॉक्टर गोविंद पांडे, डॉक्टर जयप्रकाश नायक, डॉक्टर डीएन भट्ट, तथा प्रेस एवं प्रकाशन समिति एवं फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी समिति में पवन गुप्ता, चंद्र प्रकाश मणि त्रिपाठी तथा वित्तीय प्रबंधन समिति में ध्रुव नारायण सिंह, वीरेंद्र वर्मा, राम चंद्र दुबे, प्रचार समिति में शैलेंद्र कुमार मिश्र, संतोष गुप्ता, वीरेंद्र वर्मा, शशीकांत को दायित्व दिया गया।
उक्त के क्रम में संगठन को विधिक क्षेत्र में मजबूत करने एवं विधि सेवा आमजन को सुलभ कराने के उद्देश्य से राजेश कुमार द्विवेदी वरिष्ठ अधिवक्ता उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय विधिक सलाहकार और गौरव शरण श्रीवास्तव अधिवक्ता उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश को राज्य विधिक सलाहकार, एवम अश्वनी मिश्रा को शैलेंद्र कुमार मिश्र संस्थापक महासचिव द्वारा मनोनीत करते हुए माल्यार्पण किया गया।
उक्त के क्रम आज के भौतिकवादी युग में निष्पक्ष निर्भीक जनहित में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए पवन गुप्ता एनडीटीवी 24 के एडिटर को संगठन के संरक्षक प्रोफेसर गोविंद पांडे पर्यावरणविद मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं जेपी नायक उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ एवं प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पांडे उर्फ राजू द्वारा अंग वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।
सत्याग्रह कार्यक्रम में उपस्थित उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश द्विवेदी, विशिष्ठ अतिथि डॉ0 जेपी नायक, प्रदेश उपाध्यक्ष, हीरा लाल गौड़, जिलाध्यक्ष, जिला मंत्री डॉ0 शोभित, जिला मंत्री श्रीवास्तव, सुबास यादव, कैलाश यादव उ0प्र0 मा0शि0 संघ,
चिकित्सा जगत से सैयद वसीम इक्बाल, संगठन के संस्थापक महासचिव शैलेंद्र कुमार मिश्रा, अनूप शुक्ला, अशोक तिवारी दिवानी बार गोरखपुर, योगेन्द्र कुमार मिश्रा एडवोकेट महामंत्री जिला कलक्ट्रेट बार एसोसिएशन, रमाकांत पांडे उर्फ राजू प्रदेश कार्य समिति सदस्य उ०प्र० ठेकेदार संघ,
डी एन सिंह ठेकेदार जन कल्याण समिति लखनऊ के प्रदेश उपाध्यक्ष, लल्लन दुबे वरिष्ठ समाज सेवी, रामनिवास गुप्ता, वरिष्ठ कार्यकर्ता जियाउद्दीन अन्सारी, राजेश शुक्ला अधिवक्ता कमिश्नरी बार गोरखपुर, अनूप कुमार मिश्रा एडवोकेट स्नेहा मिश्रा एडवोकेट दीवानी कचहरी गोरखपुर सत्यव्रत जायसवाल,
विरेन्द्र कुमार वर्मा, विरेन्द्र राय, जिला मंत्री रामचन्दर दूबे, जिला संयोजक राजमंगल गौर,राहुल श्रीवास्तव, जिला मीडिया प्रभारी शशी कांत, नानू अंसारी, बृजराज सैनी, संतोष गुप्ता, सुनील त्रिपाठी, देवांश माथुर, संजय गुप्ता, राजेश्वर पांडे,
अमन कुमार, अजय पांडे, छेदी लाल पासवान, गोकुल गुप्ता, रीना शाही, मुन्ना सिंह, सत्य प्रकाश सिंह, गिरजा़ ऋत्विक मिश्रा, मनोज कुमार गुप्ता, नदीम अजीज, विशाल सिंह,सुधीर कुमार पांडे, शंकर नाथ, इत्यादि भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
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श्रीनिवास रामानुजन् अयँगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) - "ईश्वरीय रुप की गणितीय संगणना"
कुछ लोग तस्वीर में कहानी ब्यान कर सकते हैं,
कुछ कविता से तस्वीर पैदा कर सकते हैं,
कुछ ऐसे हैं जो अपनी तरंगो से,
खूंखार जानवरो को शांत कर सकते हैं
परंतु
एक भारतीय को
जन्मजात ऐसा उपहार मिला था
जो अपूर्व था….
अनन्त काल से, अनन्त प्राणी…..
अनन्त की खोज में लगे हैं……
परन्तु कोई नहीं जान पाया
कि,
ये अनन्त आखिरकार है क्या?
सिवाय,
नामक्कल की नामागिरी माता प्रसाद-पुत्र
एक अनन्त प्रतिभा युक्त
श्रीनिवास रामानुजन के……
ऐसा महानतम गणितज्ञ, जिसने ये स्वीकार किया
की,
उसकी जो भी खोज है
वो उसे उसकी कुलदेवी ने स्वप्न में स्वयं प्रदान की है
“श्रीनिवास रामानुजन अयँगर”
जो अंको को
पूरी दुनिया से अलग तरह से देखता था
वह उनमे विशिष्ट प्रतिरुप देख सकता था
और
उन प्रतिरुपों को
उच्च गणितीय परिकल्पनाओं में बदल सकता था….
ऐसी परिकल्पनाऐं……
ऐसे प्रतिरूप……
जो आज तलक भी
अद्भुत हैं, अबूझ हैं, विस्मयकारी हैं…….
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हो जाये जो देव कृपा, होता प्राप्त अगम्य
सोये हुए मनुष्य में हो पैदा अद्भुत ज्ञानत्व
रामानुजन के बारे में था यही अटल सत्य
अति निर्धनता में हुआ,उन्हें प्राप्त बुद्धत्वा
अज्ञात से स्थान में, हुआ था इनका जन्म
अज्ञातवास में किया, स्व गणित अध्ययन
गणितज्ञ बन उभरे, करते हुए सबको दंग
32 वर्ष की अल्पायु में, थे रचे सूत्र प्रचंड
क्षणभंगुर से जीवन में, इतना किया काम
हुए मृत्यु के सैंकड़ो साल,गूंजे उनका नाम
बाद तेरे आज तक,अबूझ अनेक परिणाम
कार्य को तेरे सुलझाने में, लगे हुए तमाम
कोमलताम्मल माँ थी, मंदिर में गायिका खास
साडी की दुकान में क्लर्क,पिताजी श्रीनिवास
22 दिसम्बर 1887, कोयंबटूर, ईरोड, मद्रास
ब्राह्मण के घर में जन्मे, रामानुजन श्रीनिवास
विपरीत परिस्थितियों में, जन्म हुआ बेचारा
पर था, पौराणिक गाथाओं के जैसा न्यारा
माता को स्वप्न में,आदिशक्ति ने था ये अघारा
गर्भ से तेरे ईश्वर लेंगे, अवतार फिर से दोबारा
माता थी पीहर में, था सर्द काल अयनांत
उत्तिरातदी तारे के पास, चंद्र बङा सम्भ्रांत
मिथुन राशि उदियमान, अन्य सब ग्रह शांत
शुभ नक्षत्र स्वस्तिश्री और 22 का जन्मांक
विलक्षणता की कुंडली, थी बोल रही जुबान
जीवन चाहे हो अत्यल्प,पर होगा बङा महान
विपदाओ से भरा रहेगा, पर हरदम ये इंसान
अद्भुत रुप से होगा सफल,कहता सारा ज्ञान
रामानुजन डेढ़ साल के, आया भाई सदगोपन
तीन महीनो भीतर देहांत, बंद कर गया लोचन
दिसंबर 1889,रामानुजन पर भी चेचक आया
मां का सुनकर के क्रंदन, माता ने पुत्र लौटाया
अपनी माँ से रामानुजन ने, सीखे सभी पुराण
गणित नहीं था जब उतरा,भजनों से पाया ज्ञान
कंगयां स्कूल में सीखा, तमिल, गणित, विज्ञान
1897 में जिले में , रामानुजन का प्रथम स्थान
अब रामानुजन पहुंचे, उच्च माध्यमिक स्कूल
पहली बार यहां इन्होंने, गणित समझा माकूल
मन में भरे बारुद को, मिली चिंगारी अनुकूल
और अब लगे उतरने अनखोजे गणितीय फूल
हाई स्कूल में लिखा, त्रिकोणमितीय फलन
लगा इन्हें, बस अब तो हो गया जन्म सफल
पता लगा, यूलर 150 साल पहले लिख गये
हुऐ इतने खफा, कि घर में जाकर के रो दिये
जीवन के शुरुआत में,थे अति विनम्र व शांत
माँ नामागिरी ने स्वप्न में दर्शन किया प्रारम्भ
किये प्रदान सूत्र वे जिनसे जगत हुआ निहाल
माँ ने जिव्हा पर लिखा “नक्किल इझूतिनाल"
स्वभाव से था जिज्ञासू, उस पर मां से संवाद
किसी ओर जहाँ के सिम्बल आने लगे थे याद
अब खुद की थ्योरमस को शुरू किया बनाना
उम्र बहुत थी थोङी, बहुत दूर तलक था जाना
नोट बुक्स अब केवल, गणित लगीं थी भरने
अन्य विषय छूट गये, स्कॉलरशिप लगी मरने
हाय गरीबी, बिना शुल्क विद्यालय गया छूट
ऐसी प्रतिभा कहां परखते, अनपढ निरे ठूंठ
पढाई छूटने के बाद, हुए 5 वर्ष बहुत हताश
अंग्रेजो का क्रूर शासन, नहीं था कहीं प्रकाश
ऐसे में बिन नौकरी,भूखा मरता फिरा ये ज्ञान
ना सरकार ही सूने, ना सूनता कोई संस्थान
बस माता पर आस्था और गणित का प्यार
ये दोनों ही रह गये, रामानुजन का सब संसार
नामागिरी की श्रद्धा, कदम न रुकने देती थी
पेट चाहे भले ना भरे,गणित न मिटने देती थी
ट्यूशन के 5 रुपये,मासिक आय गुजारा था
सड़े हुए सिस्टम में सब को उसने पुकारा था
रामा का यह समय, आंखो को नम करता है
जो न झुके वक़्त के आगे, पार वही उतरता है
1908 में मां ने जानकी का हाथ पकङा दिया
और शोध के संग,अन्य खर्चों में जकङा दिया
ढूंढने को नौकरी अब रामा मद्रास चला आया
स्वास्थ्य रहा छोङ साथ,काम कहीं नहीं पाया
समय रहा था तेज गुजर, रामा भी भटक रहा
हर ज्ञानी को दिखलाने, शोध को भी पटक रहा
इसी तलाश में वी. रामास्वामी से जा टकराया
देख रजिस्टर डिप्टी कलेक्टर का सर चकराया
थे रामास्वामी खुद गणित के प्रकांड विद्वान
पर उससे भी पहले एक अच्छे व सच्चे इंसान
आखिरकार हीरा जौहरी से जा टकराया था
उन्होंने 25 रु मासिक छात्रवृत्ति दिलवाया था
अब रामा जी के प्रथम शोधपत्र ने कदम धरा
"बरनौली संख्याओं के गुण”, इसका नाम पङा
इंडियन मैथ्स सोसायटी की भी अंगङाई टूटी
मिली क्लर्क की नौकरी,दो रोटी की चिंता छूटी
आइन्सटाइन और रामानुजन रातों को जागे थे
दोनों ही छोटे क्लर्क बन कर यहां वहां भागे थे
थ्योरी आॅफ रिलेटिविटी काम के साथ उभरी थी
ये गणित भी नौकरी की रद्दी पर ही निखरी थी
मद्रास पोर्ट का ये क्लर्क, पूरे दिन भाग रहा था
सीलन भरी रद्दी के साथ रातों को जाग रहा था
ईश्वर के गणितीय चेहरे से नकाब पिघल रहा था
रात ढल रही थी, ज्ञान का चिराग जल रहा था
रामा जी के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू जी ने समझे
और ये, विश्व प्रसिध्द प्रोफेसर हार्डी तक पहूंचे
अब रामा ने प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिख डाला
लगे हाथ उनका अबूझा शोध भी सुलझा डाला
और अब एक नये युग का सूत्रपात हो चूका था
रामा का शोध, हार्डी की सूधबूध खो चूका था
पारखी जौहरी ने अनमोल हीरे को उठवा लिया
हार्डी सर ने रामानुजन को कैंब्रिज बुलवा लिया
पहले पहल जब रामा ने अपना शोध दिखलाया
तो स्वयं प्रोफेसर हार्डी भी उसे नहीं समझ पाया
हार्डी ने, सारी दूनिया के गणितज्ञों को मापा था
खुद को 25 व रामा को 100 अंकों पर नापा था
इंग्लैंड में रामा अत्यंत लोकप्रिय पर परेशान था
क्योंकि शुद्ध सात्विक जीवन उनकी पहचान था
3000 से अधिक नवीन सूत्रों को जीवन दे डारा
पर ठंडी रातों में मेहनत ने क्षयरोग पैदा कर मारा
हमवतन ने जिसे हाई स्कूल के काबिल न जाना
राॅयल सोसायटी ने उसे प्रथम अश्वेत फैलो माना
राॅयल के पूरे इतिहास में रामा सबसे कम उम्र है
इस फैलोशिप पर खूद कैम्ब्रिज तक को फक्र है
अब जब सब कुछ ठीक जगह पर लग रहा था
पर कुंडलीनुसार रामा का स्वास्थ्य गिर रहा था
अन्ततः डाक्टरों की सलाह पर वतन को लौटा
आते ही मद्रास युनिवर्सिटी ने प्राचार्य पद सौंपा
रेत घङी में रेत समाप्ति की और चल पङी थी
अब जब जीवन में शेष कुछ अंतिम ही घङी थी
तो भी रामा ने माॅक थीटा पर शोध लिख डाला
आने वाले कल में कैंसर इलाज सरल कर डाला
नगण्य शिक्षित पर सदियों का गणित उघाङ गया
रामा को नामागिरी प्रदत्त ज्ञान सबको पछाड़ गया
तेरी ही वजह से पुरातन गणित ने सम्मान पाया
हो गई ये धरा पावन जो तूं भारत भूमि पर आया
गणितीय सूत्रों को लिखते लिखते ही चला गया
32 वर्षों में दुनिया में, सिक्का अपना चला गया
तूं शंकराचार्य था और उन जितनी ही उम्र लाया
26 अप्रैल 1920 को आपने परम निर्वाण पाया
कुम्भकोणम गाँव, सारंगपाणी में है इनका घर
मौसम की मार झेल-झेल, हो चुका है जर्जर
इस घर में बीता बचपन, नामागिरी नाम लेकर
घर है बना म्यूजियम, गणितज्ञ टेकें माथा इस पर
उत्तम भी टेके माथा इस दर पर…….
उत्तम भी टेके माथा इस दर पर…….
रामानुजन जी के अनुसार, “मेरे लिए किसी भी उस समीकरण का कोई महत्व नहीं है जो ईश्वरीय विचार का द्योतक ना हो।”
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