#प्रवासी श्रमिक दुर्दशा
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मजदूरों के मामले में खामियां रहीं; केंद्र और राज्य सरकारें यात्रा, रुकने के स्थान और भोजन की व्यवस्था करें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मजदूरों के मामले में खामियां रहीं; केंद्र और राज्य सरकारें यात्रा, रुकने के स्थान और भोजन की व्यवस्था करें
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शीर्ष अदालत के 3 जजों की बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर 28 मई तक जवाब मांगा
दैनिक भास्कर
26 मई, 2020, 08:16 बजे IST
नई दिल्ली। लॉकडाउन के कारण देशभर के प्रवासी मजदूरों का अपने घरों की ओर लौटना जारी है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने देश के अलग-अलग राज्यों में मजदूरों को आ रही परेशानियों पर स्वत: संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार से…
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#migrantlaborers#कोरोनावायरस इंडिया#देश का नाम#प्रवासी श्रमिक दुर्दशा#प्रवासी श्रमिकों की दुर्घटना#लॉकडाउन अपडेट
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भूख से महिला की मौत पर रेलवे ने झाड़ा पल्ला, कहा, ‘पहले से बीमार थी महिला’
कोरोनावायरस लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा खत्म होने का नाम नहीं ले रही.
पटना:
बिहार के मुजफ्फरपुर स्टेशन पर भीषण गर्मी, भूख और डिहाईड्रेशन के चलते हुई महिला की मौत के मामले में रेलवे ने सफाई दी है. रेलवे ने इसे भ्रामक खबर बताया है और कहा कि महिला की मौत बीमारी की वजह से हुई. बता दें कि कोरोनावायरस के चलते लागू लॉकडाउन ने जिसे सबसे ज्यादा दुख दिए हैं, वो हैं प्रवासी मजदूर और उनकी दुर्दशा खत्म होने का नाम नहीं ले रही. बुधवार को सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों के दर्द का एक वीडियो वायरल होता रहा. भीषण गर्मी और भूख से बेहाल होकर बिहार के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर एक महिला ने दम तोड़ दिया और उसका छोटा सा बच्चा अपने मां के ऊपर ओढ़ाए गए कफ़न को हटाकर जगाने की कोशिश करता रहा.
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सोशल मीडिया पर शेयर किया गया था जिसमें महिला जमीन पर पड़ी हुई है और उसे एक कपड़े से ढंका गया है लेकिन उसका बच्चा उसके ‘कफन’ से खेल रहा है और उसे हटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जाहिर तौर पर मां उसकी बात नहीं सुन रही. जानकारी है कि महिला की भीषण गर्मी, भूख और डिहाइड्रेशन के चलते मौत हो गई थी. महिला श्रमिक ट्रेन के जरिए मुजफ्फरपुर पहुंची थी.
महिला के परिवारवालों ने बताया कि उसने शनिवार को गुजरात से ट्रेन ली थी और सोमवार को मुजफ्फरपुर में ट्रेन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही उसकी मौत हो गई. महिला के शव को स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर लिटाया गया था. इस दौरान उसका बच्चा उसे बार-बार जगाने की कोशिश करता रहा. बाद में एक दूसरे लड़के ने उसे वहां से हटा दिया.
कई लोगों ने इस वीडियो इंडियन रेलवे के ट्विटर हैंडल को टैग कर रीट्वीट किया. इसके बाद रेलवे ने अपने बयान में कहा कि उपरोक्त महिला पहले से ही बीमार थी. देहांत हो जाने के बाद परिवार ��े स्टेशन पर उतार लिया था.
उपरोक्त महिला के पहले से ही बीमार होने की पुष्टि उनके परिवार ने की है, जो 23 मई 2020 को अहमदाबाद से कटिहार के लिए ट्रेन में चढ़ी थी और 25 मई 2020 को इनके देहांत हो जाने पर मुज्ज़फरपुर स्टेशन पर उनके परिवार द्वारा उतार लिया गया था।
आग्रह है कि इस तरह ग़लत ख़बरों को ना फैलाए।
— Spokesperson Railways (@SpokespersonIR) May 27, 2020
हालांकि मृतक महिला के साथ आए रिश्तेदार ने मीडियो को बताया कि ‘हम जब गुजरात से ट्रेन में चढ़े थे तब सब ठीक था. महिला को कोई बीमारी नहीं थी. बीच में ट्रेन काफी देर रुकी रही, गर्मी के कारण तबीयत खराब हो गई. मुजफ्फरपुर स्टेशन से कुछ घंटे पहले ही ट्रेन में इनकी मौत हुई.’
ढाई साल के बच्चे की भी मौत इसके अलावा मुजफ्फरपुर स्टेशन पर ही एक ढाई साल के बच्चे की भी मौत हो गई. मृतक बच्चे के परिजन का कहना है कि भीषण गर्मी के कारण और ट्रेन में खाना-पानी नही मिलने के कारण बच्चे की हालत काफी बिगड़ गई और उसने स्टेशन पर ही दम तोड़ दिया. मां को दूध नहीं उतरा, जिससे कि वो बच्चे को दूध भी नहीं पिला सकी.
मृतक बच्चे के पिता बेतिया निवासी मकसूद आलम ने बताया कि वह दिल्ली में पेंटर का काम करता था. रविवार को अपने परिवार के साथ श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर के लिए चला. सोमवार की सुबह दस बजे उसकी ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुंची. भीषण गर्मी के बीच ट्रेन में खाना-पानी नही मिलने के कारण बच्चे की तबियत खराब हो गई थी और मुजफ्फरपुर स्टेशन पर उतरते ही उसकी हालत और खराब हो गई. मकसूद आलम का आरो��� है कि वह मदद के लिए पुलिस और स्टेशन पर मौजूद जिला प्रशासन के पदाधिकारियों से संपर्क कर बच्चे के इलाज की गुहार लगाई, लेकिन उसकी बात किसी ने नही सुनी. वह स्टेशन पर 4 घंटे तक मदद के लिए भटकता रहा लेकिन घर जाने के लिए गाड़ी के साधन की भी किसी ने जानकारी नहीं दी और अंततः उसका बच्चा स्टेशन पर ही मर गया. (कौशल किशोर के इनपुट)
भूख-प्यास से बेहाल मां की स्टेशन पर ही मौत, जगाता रहा बच्चा
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मुंबई से गोरखपुर जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन पहुंच गई ओडिशा, फजीहत होने पर रेलवे ने दी सफाई
चैतन्य भारत न्यूज मुंबई. 21 मई को मुंबई से गोरखपुर जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन शनिवार सुबह ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई। यात्रियों को भी ट्रेन के मार्ग परिवर्तन के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। जब यात्रियों ने सोशल मीडिया पर कई वीडियो शेयर किए, इसके बाद उनकी दुर्दशा का पता चला। अब इस पूरे मामले में रेलवे का बयान सामने आया है। सोशल मीडिया पर उड़ा मजाक सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में से एक में यात्री कह रहा है कि, 'मुंबई से हमलोग गाड़ी पकड़े थे यूपी के गोरखपुर जाने के लिए और हमें ओडिशा में लाकर खड़ा कर दिया गया है। अभी हमलोग कैसे जाएंगे? क्या करेंगे हमलोग, बहुत परेशानी में हैं हमलोग। रास्ता ही भूल गए ड्राइवर।' ट्विटर पर इस घटना को लेकर खूब मजाक भी बना। एक यूजर ने लिखा कि, 'जाना था जापान, पहुंच गए चीन समझ गए ना।' फजीहत होने पर रेलवे ने दी सफाई पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह ने ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि मुंबई से गोरखपुर जाने के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई है क्योंकि ड्राइवर रास्ता भूल गया। इसके बाद रेलवे बोर्ड के चेयरम��न विनोद कुमार यादव ने कहा, 'उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ ट्रेनों की अधिक संख्या रहती है, ऐसे में इन मार्गों पर भीड़ अधिक होती है। इसी वजह से हमने कुछ ट्रेनों को दूसरे रूट से ले जाने का फैसला किया है और ये अक्सर होता रहता है।' यात्रियों को दिलाया भरोसा उन्होंने आगे कहा कि, 'इस नेटवर्क पर ट्रैफिक जाम हो जाता है, तो उस पर खड़े रहने से अच्छा होता है कि थोड़ा लंबा रूट लेकर तेजी से पहुंच जाएं। ये हमारा एक प्रोटोकॉल होता है। कुछ ट्रेन को हमने डाइवर्ट किया है। हमने पाया कि एक ही रूट पर ट्रेन चलाते रहें तो कोई भी ट्रेन नहीं पहुंच पाएगी। थोड़ा लंबा रूट है, लेकिन ट्रेन अपने गंतव्य पर जरूर पहुंचेगी और यात्रियों को पहुंचाएगी। हम आपको इस बात का भरोसा दिलाते हैं।' भारतीय रेलवे के इतिहास में ऐसा पहली बार बता दें भारतीय रेलवे के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि ��ब चलती हुई ट्रेन का मार्ग बदल दिया गया हो और इस बारे यात्रियों को जानकारी न दी गई हो। गौरतलब है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सेवा है जिसके माध्यम से विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया जा रहा है। Read the full article
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श्रमिको के पलायन का जिम्मेदार कौन ?औद्योगिक घराने या सरकार
देश की सरकार यह कहने में जरा संकोच नही करती कि वर्तमान सरकार गरीबो की सरकार है लेकिन आश्चर्य तो तब होता है जब नंगे पाव देश की बहुत बडी आबादी अपने घरो की ओर पलायन करती है और सरकार संवेदना के अलावा जो कुछ ��रती है वह बहुत ही नाकाफी होता है जिन वाहनो पर पत्थर ढोये जाते है उन पर वेसहारा श्रमिक अपने परिवार व छोटे बच्चो के साथ यात्रा करने को विवश होते है फिर उससे ज्यादा भयानक तस्वीर तब सामने आती है जब श्रमिको को राज्य के बार्डर पर रोक कर आगे न बढने के निर्देश सरकार की मंशा के विपरीत निरंकुश नौकरशाही फरमान जारी करती है भले ही सरकार ने यह कहा हो कि जो श्रमिक आ रहे है उनके रहने व खाने का बन्दोबस्त किया जाए उन्हे किसी प्रकार की कठिनाई न हो उसको नजर अंदाज किया जाता है मामला यही नही थमता श्रमिको की भावनाओ को दर किनार कर उनका आग्रह ठुकराया जाता है और लाठी चार्ज भी होता है । यह भी यदि मान लिया जाए कि सरकार ने उपयुक्त समय पर उचित निर्णय नही लिया यदि उचितसमय पर सही निर्णय लिया गया होता तो शायद देश की तस्वीर इतनी भयावह न होती ।
आश्चर्य की बात है कि देश के चंद दो चार गिने चुने मीडिया घराने ने ही कोरोना से भी बड़ी कही जा सकने वाली श्रमिक त्रासदी को अपने टी वी चैनल्स पर दिखाना उचित समझा अन्यथा अधिकांश भोंपू चैनल्स का पूरा समय साम्प्रदायिकता फैलाने व सरकार का गुणगान करने में ही निकल रहा है।
जिस समय पूरी दुनिया की नज़रें कोरोना के वैश्विक दुष्प्रभावों पर लगी हुई हैं उसी के साथ साथ विश्व मीडिया भारत के करोड़ों श्रमिकों की दुर्दशा पर भी नज़र रखे हुए है। भारतीय मीडिया इसे ‘मज़दूरों का पलायन’ कहकर संबोधित कर रहा है जबकि यह बेबस व मजबूर श्रमिक अपने औद्योगिक व व्यवसायिक प्रतिष्ठनों की बेरुख़ी व सरकार की नाकामियों व ग़लत फ़ैसलों की वजह से सुरक्षा के दृष्टगत दूरस्थ अपने अपने क़स्बों व गांव मुहल्लों में अपने घरों में अपने परिवार के पास पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं।
देश के कई नामीगिरामी लोगो का कहना है कि अब तक के सबसे बड़े श्रमिक प्रस्थान की तुलना 1947 के भारत पाक विभाजन से की जाए तो कहना गलत न होगा जब करोड़ों लोगों ने अनिश्चितता के वातवरण में इधर से उधर कूच किया था। उस समय भी भारत पाक दोनों ही ओर के संपन्न लोग प्रायः सुरक्षित थे जबकि विभाजन की त्रासदी का दंश आम लोगों ने ही झेला था। स्थिति आज भी लगभग वैसी ही है। आज भी लॉक डाउन की सबसे बड़ी मार कामगार,श्रमिक,दिहाड़ीदार व आम लोगों पर ही पड़ रही है। परन्तु मजबूरी,बेबसी और लाचारी के ��ो मंज़र लगभग दो महीने से चल रहे इस वृहद श्रमिक कूच के दौरान देखे गए वह विभाजन से कहीं ज़्यादा दर्दनाक,भयावह,अप्रत्याशित तथा श्रमिकों के भरोसे को तोड़ने वाले थे वाले थे।
सोशल मीडिया पर अपने अपने गांव घरों को वापस जा रहे श्रमिकों व उनके परिवार के सदस्यों की जो हृदय विदारक तस्वीरें सामने आ रही हैं उन्हें देखकर कोई भी पत्थर दिल इंसान भी रो पड़ेगा। परन्तु अफ़सोस कि देश के नेताओं को इन्हें तत्काल राहत पहुंचाए जाने का कोई उपाय नहीं सूझा। श्रमिक कूच के दौरान केवल दो अवसरों पर सरकारें सक्रिय दिखाई दीं।
एक उस समय जब औरंगाबाद के समीप ट्रेन से कटकर 16 श्रमिकों ने अपनी जानें गंवाईं। चूँकि उनकी संख्या 16 थी इसलिए उन श्रमिकों के क्षत विक्षत शव को मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ ले जाने के लिए विशेष ट्रेन का प्रबंध किया गया। प्रशासन ने तत्काल आर्थिक सहायता के साथ स्पेशल ट्रेन से शवों को महाराष्ट्र से रवाना किया।
जबलपुर पहुंचने पर शवों को दो बोगियों से शहडोल और उमरिया रवाना किया गया। श्रमिक स्पेशल ट्रेन में औरंगाबाद के समीप हुई दुर्घटना में मारे गये शहडोल के ग्यारह और उमरिया के पांच व्यक्तियों के शव भी जबलपुर लाये गये थे। सभी 16 शवों को स्पेशल ट्रेन से उमरिया और शहडोल रवाना किया गया। दुर्घटना स्थल पर अधिकारियों को हेलीकॉप्टर से भेजा गया। नेताओं के शोक संदेशों का दौर चला।
श्रमिकों की शव यात्रा में राजनैतिक दलों के नेताओं ने शिरकत कर घड़ियाली आंसू बहाए। साथ ही इस दुर्घटना के बाद रेल ट्रैक के किनारे श्रमिकों के पैदल चलने पर रोक लगा दी गयी और इस संबंध में रेलवे प्रशासन को अलर्ट कर दिया गया। जो श्रमिक उस दुर्घटना के दौरान या बाद में रेल ट्रैक के किनारे चल रहे थे उन्हें हटाने की व्यवस्था की गयी। दूसरी सरकारी सक्रियता उस समय नज़र आई जब उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले में दो ट्रकों की टक्कर में ट्रक पर सवार 24 मज़दूरों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।
अनेक श्रमिक इस दुर्घटना में घायल भी हुए। यहाँ भी मृतक श्रमिकों की संख्या चूँकि 24 थी और मामला भी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का था इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सभी ने संवेदना के ट्वीट कर डाले। मोदी जी ने अपने ट्वीट में फ़रमाया कि -‘उत्तर प्रदेश के औरैया में सड़क दुर्घटना बेहद ही दुखद है।
सरकार राहत कार्य में तत्परता से जुटी है। इस हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं, साथ ही घायलों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं।’ इसी ��्रकार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ”उत्तर प्रदेश के औरैया में हुए सड़क हादसे में कई श्रमिकों की मृत्यु के बारे में जानकर अत्यंत दुख हुआ है. इस दुर्घटना में जिन लोगों की जान गई है, मैं उनके परिजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं. साथ ही दुर्घटना में घायल हुए मज़दूरों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं’।
वहीं मुख्यमंत्री योगी का संवेदना ट्वीट कुछ इन शब्दों में था -‘जनपद औरैया में सड़क दुर्घटना में प्रवासी कामगारों/श्रमिकों की मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण एवं दुःखद है, मेरी संवेदनाएं मृतकों के शोक संतप्त परिजनों के साथ हैं। पीड़ितों को हर संभव राहत प्रदान करने,घायलों का समुचित उपचार कराने व दुर्घटना की त्वरित जांच करवाने के निर्देश भी दिए गए हैं।’
ठीक है सरकार की जितनी भी संवेदनशीलता है उसका का सम्मान किया जाना चाहिए। परन्तु इसी लॉक डाउन में पैदा परिस्थितियों के कारण एक,दो,चार,छः करके भी कम से कम अब तक एक हज़ार लोग रास्ते में ही मौत की आग़ोश में समा चुके हैं।लगभग प्रतिदिन श्रमिकों के साथ होने वाले किसी न किसी हादसे की ख़बरें आ रही हैं। बिना किसी हादसे के भी कितने श्रमिक या उनके परिवार के सदस्य यहाँ तक कि छोटे बच्चे भूख,प्यास,थकान या डी हाइड्रेशन की वजह से दम तोड़ रहे हैं। देश के इतिहास में श्रमिकों ने इतने बुरे दिन पहले कभी नहीं देखे। निश्चित रूप से यह सरकार की ग़लत व जल्दबाज़ी में लिए गए फ़ैसलों तथा अदूरदर्शिता का ही परिणाम है।
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थ्रोबैक गुरुवार: मृणाल सेन को फिर से देखना, परशुराम के प्रवासी कार्यकर्ता अकाल सांधाने में
थ्रोबैक गुरुवार: मृणाल सेन को फिर से देखना, परशुराम के प्रवासी कार्यकर्ता अकाल सांधाने में
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मृणाल सेन का दो साल पहले दिसंबर 2018 में निधन हो गया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा नहीं देखी थी – घर पाने के लिए मीलों बाद पैदल चलना, शहरों को छोड़कर वे अपने जीवन का निर्माण करने आए थे। लेकिन क्या किसी भी युग में प्रवासी श्रमिक की दुर्दशा अलग है?
या उस बात के लिए जो मध्यम वर्ग की दुर्दशा है? बेटी, परिवार की एकमात्र रोटी कमाने वाला जब घर नहीं आता है तो क्या करता…
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SC का आदेश- राज्य सरकार पैदल जा रहे प्रवासी मजदूरों को तुरंत दें आश्रय - HW News Hindi
SC का आदेश- राज्य सरकार पैदल जा रहे प्रवासी मजदूरों को तुरंत दें आश्रय – HW News Hindi
नई दिल्ली:कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि 1 मई से 27 मई तक 3700 श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई गई हैं। बुधवार तक करीब 91 लाख प्रवासी ��ामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है। बता दें कि प्रवासी…
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पिछले 8 महीनों से असम, एनआरसी और डी-मतदाताओं की समस्या के बारे में अध्ययन करने के बाद पहली बार मेरा असम का दौरा हुआ। एसआईओ ने जमीनी रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक टीम भेजने का फैसला किया जिसका नेतृत्व मुझे सौंपा गया। हम वहां एक सप्ताह के लिए रहे और इस दौरान हमारी मुलाक़ात बुद्धिजीवी वर्ग, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विभिन्न संगठन के नेताओं और विशेष रूप से आम लोगों से हुई जो वास्तव में राज्य के पीड़ित वर्ग हैं और जो राज्य द्वारा प्रताड़ित किए जा रहे हैं।
विस्तृत तथ्यों की खोज आज जारी की जाएगी, लेकिन जितनी जल्दी हो सके इस मुद्दे को उठाना आवश्यक है क्योंकि भारत के अन्य नागरिक, असम के भारतीय नागरिकों की समस्या और वास्तविक दुर्दशा से अनजान है। नीचे दी गई जानकारी विभिन्न लोगों के साथ हुई चर्चा और हमारे अवलोकन हैं।
असम का इतिहास
वर्ष 1826 में अंग्रेजों ने यंदबो संधि के बाद असम पर कब्जा कर लिया, और फिर असम के विभिन्न समूहों को आर्थिक विकास के लिए आमंत्रित किया गया। बंगाल के लोग शिक्षित और अंग्रेजी भाषा के जानकार थे तो उन्हें राजस्व, डाकघर, रेलवे, बैंक इत्यादि जैसे प्रशासनिक वर्गों के प्रबंधन के लिए बुलाया गया। इसके बाद बंगाल, उड़ीसा और कनुज से पूर्व में आए प्रवासियों के इस समूह ने असमिया समुदाय के साथ विलय कर लिया। विशेष रूप से चाय की खेती के लिए बिहार, झारखंड और यूपी के कुछ हिस्सों के अंग्रेजों ने एक और समूह को बुलाया और इस तरह से असम की श्रमिक आबादी का गठन हुआ।
क्योंकि दो प्रवासी समूहों और अंग्रेजों के लिए भोजन की बुनियादी आवश्यकताएं उनके अनुसार पूरी नहीं हो पा रही थीं और पूर्ववर्ती बंगाल के मुस्लिम खेती के लिए मशहूर थे। क्योंकि असम की भूमि खेती के लिए उपयुक्त थी और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध थी इसलिए अंग्रेज़, मुसलमानों को बंगाल से खाद्य, सब्जियां और जूट के उत्पादन के लिए असम लाए। दुर्भाग्यवश, मूल असमिया ने बंगाल से आने वाले पहले समूह को तो स्वीकार कर लिया जो अब असमिया के बुद्धिजीवी हैं लेकिन श्रमिकों के रूप में दूसरे समूह को, जिनका बहुमत अनुसूची जनजातियों से संबंधित है और जिनको उपरोक्त दो समूहों को खिलाने के लिए लाया गया था, विदेशियों के रूप में जाना गया।
मुद्दा और इसका परिपेक्ष्य
वर्ष 1998 में, उस समय असम के गवर्नर स्वर्गीय श्री एसके सिन्हा ने असम में बांग्लादेशियों के प्रवाह पर रिपोर्ट करते हुए आरोप लगाया था कि असम में प्रामाणिकता एचसी (डी) टी अधिनियम के सत्यापन के बिना दैनिक 6000 बांग्लादेशी असम आ रहे हैं। भारत के नागरिक को किसी भी सूचना या उसके बिना, तैयार मतदाता सूची में अपने नाम के आगे डी चिह्न डालकर संदिग्ध किया जा सकता है।
एक सीमा पुलिस कार्यालयों में बैठकर एक विदेशी के रूप में केवल संदेह के आधार पर एक स्वतंत्र नागरिक की रिपोर्ट करता है और ऐसा मामला ट्रिब्यूनल को संदर्भित करता है। लक्षित लोग अधिकतर अशिक्षित, गरीब और नागरिकता से सम्बंधित जानकारी से अनजान होते हैं। अधिकारियों के पास कोई उचित सबूत नहीं है जिससे वह यह समझा सकें कि वे मतदाताओं के नाम के सामने डी का उल्लेख क्यों कर रहे हैं जिससे उन्हें बाद में संदिग्ध मतदाता बताकर उन्हें विदेशियों के रूप में घोषित किया जा सके।
ट्रिब्यूनल के अधिकारी (सभी नहीं) नाम, शीर्षक, आयु, निवास में परिवर्तन, वैवाहिक स्थिति में मामूली विसंगतियों का मुद्दा उठा रहे हैं। कई मामलों में राज्य द्वारा पार की जांच के बावजूद वास्तविक साक्ष्य को नजरअंदाज किया जा रहा है। पूर्ण बेंच निर्णय में तैयार दिशानिर्देशों का पालन अधिकांश न्यायाधिकरणों के साथ-साथ विदेशियों के मामलों का निर्णय लेने में उच्च न्यायपालिका द्वारा भी नहीं किया जा रहा है, ट्रिब्यूनल में इस प्रवृत्ति को विकसित किया जा रहा है कि वे स्पष्टीकरण स्वीकार न करें और किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर दें।
ब्रह्मपुतरा और अन्य नदियों द्वारा हर साल कटाव के कारण लाखों लोगों (जिनमें अधिकतर मुसलमान हैं) को भूमिहीन और बेघर बना होना पड़ता है। सरकार ने इन लोगों का पुनर्वास भी नहीं किया है। भूमिहीन, बेरोजगार मुसलमानों को काम के लिए स्थानांतरित होने और बुनियादी जरूरतों के लिए कमाई करने के लिए पकड़ा जाता है, संदिग्ध नागरिक मानकर उनका उत्पीड़न किया जाता है, जिससे बाद में उन्हें विदेशियों के रूप में घोषित किया जा सके।
बिमला ख़ातून राज्य या निरक्षरता का शिकार?
कुछ वकील जो विदेशी मामलों के मामलों से निपट रहे हैं उनका प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक है। वह मूर्खतापूर्ण गलतियां करते हैं और तर्कों के आधार पर संदिग्ध मतदाताओं को ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी मन जाने लगता है और उन्हें असम राज्य के 6 हिरासत शिविरों में रखा जाता है। यहां बिमला ख़ातून का एक उदाहरण दिया गया है, जिनको पुलिस से नोटिस मिला और वकीलों से संपर्क करते हुए उन्होंने भारतीय नागरिक के रूप में अपनी पहचान का प्र��ाण देने के लिए सभी दस्तावेजों प्रदान किया। बाद में उन्हें दो और नोटिस प्राप्त हुए, जिसमें वकील बिमला को भारतीय नागरिक के रूप में प्रमाणित करने में नाकाम रहे और ट्रिब्यूनल ने उन्हें विदेशी घोषित कर दिया।
बाद में, पुलिस ने उन्हें केंद्रीय जेल, तेजपुर में उनके छोटे बेटे के साथ गिरफ्तार कर लिया, बिमला ख़ातून चार बच्चों की मां हैं और बाक़ी के तीन बच्चे अपने पिता के साथ थे। कुछ दिनों के बाद, चार बच्चों के पिता और ख़ातून के पति की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई और बच्चे उनके पति के बड़े भाई के साथ थे, कुछ दिन बाद उनके बड़े भाई की भी मृत्यु हो गई और बच्चे अपने नाना-नानी (बिमला ख़ातून के माता-पिता) के साथ हैं। वह तेजपुर में जेल में असहाय हैं और अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए रो रही है। उनके माता-पिता भी बहुत ग़रीब हैं और बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में असमर्थ हैं लेकिन फिर भी वे उसी में समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं।
बच्चों के अनुसार जेल में उन्हें महीने में बस एक बार अपनी मां से मिलने की इजाज़त है। जब हम जेल में बिमला ख़ातून से मुलाकात की, तो उन्होंने जेल में आपबीती सुनाई और अपने बच्चों का बताते हुए बहुत भावुक हो गईं। दूसरों के साथ वे भी जेल में रोज़ा रख रही हैं और जेल अधिकारी उन्हें भोजन नहीं दे रहे हैं, इदगाह समिति रोजाना जेल में दो सौ लोगों के लिए इफ्तर का इंतज़ाम करते हैं।
बच्चों की शिक्षा रुक गई है, वे अपनी मां के प्यार से दूर हैं। कोई भी नहीं जानता कि उनके साथ क्या होता है, उन्हें कब रिहा किया जाएगा और बच्चों के भविष्य के बारे में क्या होगा…? यह तो एक कहानी है जिसका मैंने यहां उल्लेख किया है, असम के अन्य जिलों में ऐसे कई मामले हैं।
नागरिकों की वर्तमान स्थिति
असम सरकार नागरिकों की सूची तैयार कर रही है जिसमें नागरिकों को दस्तावेजों के माध्यम से यह साबित करना होगा कि वे या उनके परिवार 24 मार्च, 1971 से पहले से देश में रह रहे थे। वह तारीख जब बांग्लादेश से लोगों का प्रवासन हुआ था। हालांकि सभी समुदायों को एनआरसी नवीनीकरण के लिए फॉर्म भरना है, लेकिन सत्यापन प्रक्रिया विशेष रूप से मुसलमानों और बंगाली हिंदुओं के लिए बहुत कठिन बना दी गई है। लगभग 2.9 मिलियन महिलाएं, जिनमें अधिकतर मुसलमान हैं, और लगभग 4.5 मिलियन अन्य 13 मिलियन लोगों का हिस्सा हैं जिन्हें 31 दिसंबर, 2017 को प्रकाशित एनआरसी के पहले मसौदे से बाहर रखा गया था।
वास्तविक भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या एनआरसी सूची से हटा दी जा सकती है, जिसे 30 जून 2018 को प्रकाशित किया जाना है। एनआरसी 300,000 से अधिक लोगों के भाग्य पर फैसला नहीं कर सकता, जिन्हें या तो विदेशी घोषित किया गया है या जिनके मामले विशेष अदालतों में पड़े हैं, यानि विदेशियों ट्रिब्यूनल जो पूरे राज्य ��ें 100 हैं। बाद में, हजारों के लोग जिनके नाम एनआरसी सूची में नहीं होंगे उन्हें हिरासत केंद्रों में फेंक दिया जाएगा और उन्हें स्टेटलेस कर दिया जा सकता है, वोट का उनका मूल अधिकार ख़त्म हो जाएगा, वे अपने मूलभूत अधिकारों का उपयोग करके संपत्ति खरीद नहीं सकते हैं क्योंकि उनकी भारतीय नागरिकता म्यांमार में रोहिंग्या के लोगों की तरह मिटा दी जाएगी।
न्याय के लिए प्रार्थना
एक तरफ, सर्वोच्च न्यायालय में मामला लंबित है। जिन लोगों के नाम 30 जून के बाद एनआरसी सूची में नहीं हैं उन्हें अपनी पहचान साबित करने के लिए 1 या 2 महीने दिए जाएंगे। राज्य में केवल 100 ट्रिब्यूनल जिनमें 89 कार्यरत, वे लाखों नागरिकों का निर्णय कैसे दे सकती हैं? कई वरिष्ठ वकीलों का कहना है कि, अधिकांश ट्रिब्यूनल कर्मचारी पक्षपात कर रहे हैं और अस्थायी रूप में नियुक्त किए गए हैं, उन्हें सरकार को संतुष्ट करने की जरूरत है और साथ ही राजनेताओं को भी जिससे वे अपनी नौकरियां स्थायी बना सकें। अधिकारियों के पक्षपात के चलते न्याय कैसे दिया जा सकता है?
दूसरी ओर, भारत में विदेशी घोषित हो जाने के बाद बांग्लादेश के अधिकारियों उनसे बांग्लादेशी पहचान साबित करने के लिए भी कह रहे हैं। 30 जून, 2018 के बाद असमिया लोगों की हालत क्या होगी? क्या असम म्यांमार का द्वितीय प्रकरण होगा?
ऐसे कई सवाल उठाए जा रहे हैं जिनका कोई जवाब नहीं है। असम कि इस स्थिति का कौन ज़िम्मेदार है वर्तमान सरकार या पिछली सरकारें या फिर यह अशिक्षित लोगों का भाग्य है? यही समय है कि लोगों को मानव आधार पर असम में भारतीय नागरिकों की दुर्दशा पर विचार करना चाहिए और उन्हें गरिमा के साथ अपना जीवन व्यतीत करने में मदद करना चाहिए।
(सैयद अज़हरुद्दीन एसआईओ ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सचिव हैं। इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति ‘जनता का रिपोर्टर’ उत्तरदायी नहीं है।)
असम में आप्रवासी बांग्लादेशी लोगों की पहचान के नाम पर भाजपा सरकार की मुहिम, कितनी वाजिब है मुसलामानों की चिंता?
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भूख से महिला की मौत पर रेलवे ने झाड़ा पल्ला, कहा, ‘पहले से बीमार थी महिला’
कोरोनावायरस लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा खत्म होने का नाम ��हीं ले रही.
पटना:
बिहार के मुजफ्फरपुर स्टेशन पर भीषण गर्मी, भूख और डिहाईड्रेशन के चलते हुई महिला की मौत के मामले में रेलवे ने सफाई दी है. रेलवे ने इसे भ्रामक खबर बताया है और कहा कि महिला की मौत बीमारी की वजह से हुई. बता दें कि कोरोनावायरस के चलते लागू लॉकडाउन ने जिसे सबसे ज्यादा दुख दिए हैं, वो हैं प्रवासी मजदूर और उनकी दुर्दशा खत्म होने का नाम नहीं ले रही. बुधवार को सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों के दर्द का एक वीडियो वायरल होता रहा. भीषण गर्मी और भूख से बेहाल होकर बिहार के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर एक महिला ने दम तोड़ दिया और उसका छोटा सा बच्चा अपने मां के ऊपर ओढ़ाए गए कफ़न को हटाकर जगाने की कोशिश करता रहा.
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सोशल मीडिया पर शेयर किया गया था जिसमें महिला जमीन पर पड़ी हुई है और उसे एक कपड़े से ढंका गया है लेकिन उसका बच्चा उसके ‘कफन’ से खेल रहा है और उसे हटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जाहिर तौर पर मां उसकी बात नहीं सुन रही. जानकारी है कि महिला की भीषण गर्मी, भूख और डिहाइड्रेशन के चलते मौत हो गई थी. महिला श्रमिक ट्रेन के जरिए मुजफ्फरपुर पहुंची थी.
महिला के परिवारवालों ने बताया कि उसने शनिवार को गुजरात से ट्रेन ली थी और सोमवार को मुजफ्फरपुर में ट्रेन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही उसकी मौत हो गई. महिला के शव को स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर लिटाया गया था. इस दौरान उसका बच्चा उसे बार-बार जगाने की कोशिश करता रहा. बाद में एक दूसरे लड़के ने उसे वहां से हटा दिया.
कई लोगों ने इस वीडियो इंडियन रेलवे के ट्विटर हैंडल को टैग कर रीट्वीट किया. इसके बाद रेलवे ने अपने बयान में कहा कि उपरोक्त महिला पहले से ही बीमार थी. देहांत हो जाने के बाद परिवार ने स्टेशन पर उतार लिया था.
उपरोक्त महिला के पहले से ही बीमार होने की पुष्टि उनके परिवार ने की है, जो 23 मई 2020 को अहमदाबाद से कटिहार के लिए ट्रेन में चढ़ी थी और 25 मई 2020 को इनके देहांत हो जाने पर मुज्ज़फरपुर स्टेशन पर उनके परिवार द्वारा उतार लिया गया था।
आग्रह है कि इस तरह ग़लत ख़बरों को ना फैलाए।
— Spokesperson Railways (@SpokespersonIR) May 27, 2020
हालांकि मृतक महिला के साथ आए रिश्तेदार ने मीडियो को बताया कि ‘हम जब गुजरात से ट्रेन में चढ़े थे तब सब ठीक था. महिला को कोई बीमारी नहीं थी. बीच में ट्रेन काफी देर रुकी रही, गर्मी के कारण तबीयत खराब हो गई. मुजफ्फरपुर स्टेशन से कुछ घंटे पहले ही ट्रेन में इनकी मौत हुई.’
ढाई साल के बच्चे की भी मौत इसके अलावा मुजफ्फरपुर स्टेशन पर ही एक ढाई साल के बच्चे की भी मौत हो गई. मृतक बच्चे के परिजन का कहना है कि भीषण गर्मी के कारण और ट्रेन में खाना-पानी नही मिलने के कारण बच्चे की हालत काफी बिगड़ गई और उसने स्टेशन पर ही दम तोड़ दिया. मां को दूध नहीं उतरा, जिससे कि वो बच्चे को दूध भी नहीं पिला सकी.
मृतक बच्चे के पिता बेतिया निवासी मकसूद आलम ने बताया कि वह दिल्ली में पेंटर का काम करता था. रविवार को अपने परिवार के साथ श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर के लिए चला. सोमवार की सुबह दस बजे उसकी ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुंची. भीषण गर्मी के बीच ट्रेन में खाना-पानी नही मिलने के कारण बच्चे की तबियत खराब हो गई थी और मुजफ्फरपुर स्टेशन पर उतरते ही उसकी हालत और खराब हो गई. मकसूद आलम का आरोप है कि वह मदद के लिए पुलिस और स्टेशन पर मौजूद जिला प्रशासन के पदाधिकारियों से संपर्क कर बच्चे के इलाज की गुहार लगाई, लेकिन उसकी बात किसी ने नही सुनी. वह स्टेशन पर 4 घंटे तक मदद के लिए भटकता रहा लेकिन घर जाने के लिए गाड़ी के साधन की भी किसी ने जानकारी नहीं दी और अंततः उसका बच्चा स्टेशन पर ही मर गया. (कौशल किशोर के इनपुट)
भूख-प्यास से बेहाल मां की स्टेशन पर ही मौत, जगाता रहा बच्चा
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PM Modi Government 2.0: मोदी सरकार के एक साल, ये 5 बातें जो नहीं होनी चाहिए थीं
PM Modi 2.0 : पीएम मोदी ने आज देशवासियों को चिट्ठी लिखी है.
नई दिल्ली :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा 31 मई यानी रविवार को पूरा हो जाएगा. इससे एक दिन पहले शनिवार पीएम मोदी ने देशवासियों को चिट्ठी लिखी है. जिसमें उन्होंने बीते साल एक साल में सरकार की उपलब्धियों और चुनौतियों का जिक्र किया है. पीएम मोदी ने अपनी चिट्ठी में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370, राम मं���िर, तीन तलाक और नागरिक संशोधन बिल (CAA) का जिक्र किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद से आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा है. लेकिन पीएम मोदी की बातों से इतर बीते एक साल में पीएम मोदी के कार्यकाल में हुए क��छ ऐसी बातों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि ये देश में हित नहीं थीं और ऐसा नहीं होना चाहिए था.
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1-नागरिकता संशोधन बिल (CAA) को लेकर दंगे मोदी सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल पेश किया जिसके मुताबिक बांग्लादेश और पाकिस्तान में ऐसे अल्पसंख्यकों जिनके ऊपर धर्म के आधार पर अत्याचार हुआ है उनके देश में नागरिकता दी जाएगी. लेकिन इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया था. इसके बाद अमित शाह ने ऐलान किया कि एनआरसी लाकर देश से अवैध नागरिकों को बाहर कर दिया जाएगा. यहां सरकार की ओर से संवाद में चूक हुई और मुसलमानों के बीच संदेश गया कि उनको देश से बाहर निकाल दिया जाएगा. नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ पहले ही गुस्सा था क्योंकि इसको कई संगठन और लोग धर्मनिरपेक्षता और संविधान की मूल भावना के खिलाफ बता रहे थे. लेकिन एनआरसी वाली बात सुनकर दिल्ली सहित देश के कई शहरों में प्रदर्शन, आगजनी और हिंसा हुई. बाद में पीएम मोदी को दिल्ली में हुई रैली में सफाई देनी पड़ी कि किसी की भी नागरिकता खतरे में नहीं है. लेकिन तब तक बड़े पैमाने पर नुकसान हो चुका था.
2-महाराष्ट्र में रातों-रात सरकार बनाना और फिर इस्तीफा महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और दोनों के गठबंधन ने मिलकर बहुमत भी पा लिया.लेकिन बाद में मुख्यमंत्री पद के लिए झगड़ा शुरू हो गया. शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर शपथग्रहण की तैयारी शुरू कर दी. जिस दिन शपथ होना था उससे पहले रात में एनसीपी नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार बीजेपी से मिल गए. सुबह 7 बजे के करीब देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने भी उनके साथ जाकर राजभवन में शपथ ग्रहण किया. अजित पवार ने दावा किया उनके साथ कई विधायक आ गए हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया जहां फ्लोर टेस्ट का फैसला सुनाया गया. लेकिन इससे पहले ही देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया. अजित पवार का दावा हवा-हवाई साबित हुआ. बीजेपी की भी काफी किरकिरी हुई. इसके साथ ही राजभवन और केंद्र सरकार पर भी सवाल उठे.
3-विपक्ष की भूमिका हो गई ‘जीरो’? इसमें दो राय नहीं है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल ��ें प्रचंड बहुमत के साथ आई है और राज्यसभा में भी उसको समर्थन देने के लिए साथ खड़े हैं. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष की भूमिका भी होती है और सरकार से उम्मीद होती है कि उससे भी सलाह-मशविरा लिया जाए. लेकिन मोदी सरकार की कार्यशैली में विपक्ष को कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती है. यह आरोप अक्सर कांग्रेस सहित विपक्ष के कई नेता लगाते हैं. हाल ही में लॉकडाउन को लेकर भी ऐसे आरोप लगे हैं. 4- बेरोजगारी स्तर चरम पर केंद्र में मोदी सरकार के 6 साल पूरे होने को आए हैं. इस दौरान देश में बेरोजगारी की दर बेतहाशा बढ़ी है. हालांकि सरकारी दावा है कि कई कदम इसको लेकर उठाए गए हैं और असंगठित क्षेत्र का डाटा नहीं होने से इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है कि कितने लोगों को रोजगार मिला है. लेकिन सच्चाई है कि बेरोजगारी दूर करने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसे कार्यक्रम जमीन स्तर पर फेल साबित हुए हैं और ये रोजगार देने में सक्षम साबित नहीं हुए हैं. दूसरी ओर सरकारी नौकरियों में भी अवसर कम होते जा रहे हैं. लॉकडाउन के बाद एक बड़ी संख्या बेरोजगार हो गई है और यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती है.
5-प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बीते 25 मार्च से लॉकडाउन जारी है. इसकी वजह से उद्योग-धंधे बंद पड़े हैं. ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों को होने वाली समस्याओं का आंकलन सरकार ठीक से नहीं कर पाई और न ही उनके लिए कोई ठोस उपाय किए गए. नतीजा यह हुआ कि जब मजदूर हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पैदल ही तय करके अपनों को घरों जाने लगे तो स्थिति दुखदायी हो गई. सरकार पर भी दबाव बढ़ा तो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं. लेकिन उनमें क्या हाल है किसी से छिपा नहीं है. लेकिन इतना जरूर है कि लॉकडाउन से पहले अगर कोई ठोस नीति अपनाई गई होती है तो प्रवासी मजदूरों को इतनी दिक्कत न उठानी पड़ती.
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PM Modi Government 2.0: मोदी सरकार के एक साल, ये 5 बातें जो नहीं होनी चाहिए थीं
PM Modi 2.0 : पीएम मोदी ने आज देशवासियों को चिट्ठी लिखी है.
नई दिल्ली :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा 31 मई यानी रविवार को पूरा हो जाएगा. इससे एक दिन पहले शनिवार पीएम मोदी ने देशवासियों को चिट्ठी लिखी है. जिसमें उन्होंने बीते साल एक साल में सरकार की उपलब्धियों और चुनौतियों का जिक्र किया है. पीएम मोदी ने अपनी चिट्ठी में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370, राम मंदिर, तीन तलाक और नागरिक संशोधन बिल (CAA) का जिक्र किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद से आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा है. लेकिन पीएम मोदी की बातों से इतर बीते एक साल में पीएम मोदी के कार्यकाल में हुए कुछ ऐसी बातों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि ये देश में हित नहीं थीं और ऐसा नहीं होना चाहिए था.
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1-नागरिकता संशोधन बिल (CAA) को लेकर दंगे मोदी सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल पेश किया जिसके मुताबिक बांग्लादेश और पाकिस्तान में ऐसे अल्पसंख्यकों जिनके ऊपर धर्म के आधार पर अत्याचार हुआ है उनके देश में नागरिकता दी जाएगी. लेकिन इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया था. इसके बाद अमित शाह ने ऐलान किया कि एनआरसी लाकर देश से अवैध नागरिकों को बाहर कर दिया जाएगा. यहां सरकार की ओर से संवाद में चूक हुई और मुसलमानों के बीच संदेश गया कि उनको देश से बाहर निकाल दिया जाएगा. नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ पहले ही गुस्सा था क्योंकि इसको कई संगठन और लोग धर्मनिरपेक्षता और संविधान की मूल भावना के खिलाफ बता रहे थे. लेकिन एनआरसी वाली बात सुनकर दिल्ली सहित देश के कई शहरों में प्रदर्शन, आगजनी और हिंसा हुई. बाद में पीएम मोदी को दिल्ली में हुई रैली में सफाई देनी पड़ी कि किसी की भी नागरिकता खतरे में नहीं है. लेकिन तब तक बड़े पैमाने पर नुकसान हो चुका था.
2-महाराष्ट्र में रातों-रात सरकार बनाना और फिर इस्तीफा महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और दोनों के गठबंधन ने मिलकर बहुमत भी पा लिया.लेकिन बाद में मुख्यमंत्री पद के लिए झगड़ा शुरू हो गया. शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर शपथग्रहण की तैयारी शुरू कर दी. जिस दिन शपथ होना था उससे पहले रात में एनसीपी नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार बीजेपी से मिल गए. सुबह 7 बजे के करीब देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने भी उनके साथ जाकर राजभवन में शपथ ग्रहण किया. अजित पवार ने दावा किया उनके साथ कई विधायक आ गए हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया जहां फ्लोर टेस्ट का फैसला सुनाया गया. लेकिन इससे पहले ही देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया. अजित पवार का दावा हवा-हवाई साबित हुआ. बीजेपी की भी काफी किरकिरी हुई. इसके साथ ही राजभवन और केंद्र सरकार पर भी सवाल उठे.
3-विपक्ष की भूमिका हो गई ‘जीरो’? इसमें दो राय नहीं है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में प्रचंड बहुमत के साथ आई है और राज्यसभा में भी उसको समर्थन देने के लिए साथ खड़े हैं. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष की भूमिका भी होती है और सरकार से उम्मीद होती है कि उससे भी सलाह-मशविरा लिया जाए. लेकिन मोदी सरकार की कार्यशैली में विपक्ष को कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती है. यह आरोप अक्सर कांग्रेस सहित विपक्ष के कई नेता लगाते हैं. हाल ही में लॉकडाउन को लेकर भी ऐसे आरोप लगे हैं. 4- बेरोजगारी स्तर चरम पर केंद्र में मोदी सरकार के 6 साल पूरे होने को आए हैं. इस दौरान देश में बेरोजगारी की दर बेतहाशा बढ़ी है. हालांकि सरकारी दावा है कि कई कदम इसको लेकर उठाए गए हैं और असंगठित क्षेत्र का डाटा नहीं होने से इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है कि कितने लोगों को रोजगार मिला है. लेकिन सच्चाई है कि बेरोजगारी दूर करने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसे कार्यक्रम जमीन स्तर पर फेल साबित हुए हैं और ये रोजगार देने में सक्षम साबित नहीं हुए हैं. दूसरी ओर सरकारी नौकरियों में भी अवसर कम होते जा रहे हैं. लॉकडाउन के बाद एक बड़ी संख्या बेरोजगार हो गई है और यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती है.
5-प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बीते 25 मार्च से लॉकडाउन जारी है. इसकी वजह से उद्योग-धंधे बंद पड़े हैं. ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों को होने वाली समस्याओं का आंकलन सरकार ठीक से नहीं कर पाई और न ही उनके लिए कोई ठोस उपाय किए गए. नतीजा यह हुआ कि जब मजदूर हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पैदल ही तय करके अपनों को घरों जाने लगे तो स्थिति दुखदायी हो गई. सरकार पर भी दबाव बढ़ा तो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं. लेकिन उनमें क्या हाल है किसी से छिपा नहीं है. लेकिन इतना जरूर है कि लॉकडाउन से पहले अगर कोई ठोस नीति अपनाई गई होती है तो प्रवासी मजदूरों को इतनी दिक्कत न उठानी पड़ती.
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मुंबई से गोरखपुर जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन पहुंच गई ओडिशा, फजीहत होने पर रेलवे ने दी सफाई
चैतन्य भारत न्यूज मुंबई. 21 मई को मुंबई से गोरखपुर जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन शनिवार सुबह ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई। यात्रियों को भी ट्रेन के मार्ग परिवर्तन के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। जब यात्र���यों ने सोशल मीडिया पर कई वीडियो शेयर किए, इसके बाद उनकी दुर्दशा का पता चला। अब इस पूरे मामले में रेलवे का बयान सामने आया है। सोशल मीडिया पर उड़ा मजाक सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में से एक में यात्री कह रहा है कि, 'मुंबई से हमलोग गाड़ी पकड़े थे यूपी के गोरखपुर जाने के लिए और हमें ओडिशा में लाकर खड़ा कर दिया गया है। अभी हमलोग कैसे जाएंगे? क्या करेंगे हमलोग, बहुत परेशानी में हैं हमलोग। रास्ता ही भूल गए ड्राइवर।' ट्विटर पर इस घटना को लेकर खूब मजाक भी बना। एक यूजर ने लिखा कि, 'जाना था जापान, पहुंच गए चीन समझ गए ना।' फजीहत होने पर रेलवे ने दी सफाई पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह ने ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि मुंबई से गोरखपुर जाने के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई है क्योंकि ड्राइवर रास्ता भूल गया। इसके बाद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने कहा, 'उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ ट्रेनों की अधिक संख्या रहती है, ऐसे में इन मार्गों पर भीड़ अधिक होती है। इसी वजह से हमने कुछ ट्रेनों को दूसरे रूट से ले जाने का फैसला किया है और ये अक्सर होता रहता है।' यात्रियों को दिलाया भरोसा उन्होंने आगे कहा कि, 'इस नेटवर्क पर ट्रैफिक जाम हो जाता है, तो उस पर खड़े रहने से अच्छा होता है कि थोड़ा लंबा रूट लेकर तेजी से पहुंच जाएं। ये हमारा एक प्रोटोकॉल होता है। कुछ ट्रेन को हमने डाइवर्ट किया है। हमने पाया कि एक ही रूट पर ट्रेन चलाते रहें तो कोई भी ट्रेन नहीं पहुंच पाएगी। थोड़ा लंबा रूट है, लेकिन ट्रेन अपने गंतव्य पर जरूर पहुंचेगी और यात्रियों को पहुंचाएगी। हम आपको इस बात का भरोसा दिलाते हैं।' भारतीय रेलवे के इतिहास में ऐसा पहली बार बता दें भारतीय रेलवे के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब चलती हुई ट्रेन का मार्ग बदल दिया गया हो और इस बारे यात्रियों को जानकारी न दी गई हो। गौरतलब है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सेवा है जिसके माध्यम से विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया जा रहा है। Read the full article
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भारत में शीर्ष 56,000 कोरोनोवायरस मामलों में, महामहिम ने मामलों के बढ़ने के साथ मुंबई में सेना को ले जाने की अफवाहों का खंडन किया
भारत में शीर्ष 56,000 कोरोनोवायरस मामलों में, महामहिम ने मामलों के बढ़ने के साथ मुंबई में सेना को ले जाने की अफवाहों का खंडन किया
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एक त्रासदी में जो कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में फंसे हजारों बेरोजगार मजदूरों की दुर्दशा को उजागर करती है और लंबी दूरी तय करके अपने मूल राज्यों में वापस चली जाती है, एक मालगाड़ी के एक समूह के ऊपर से गुजरने के बाद 16 प्रवासी श्रमिक मारे गए, जो सो गए महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में शुक्रवार को रेल की पटरी।
औरंगाबाद की घटना की सूचना शुक्रवार सुबह करीब 5:22 बजे मिली। प्रवासी…
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