#प्यार पाने के नुस्खे
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मनचाहा प्यार पाने के कुछ खास उपाय नुस्खे और टोटके जाने 📞 +91-9417277217
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जीवन में हमेशा किसी न किसी बात को लेकर अक्सर लोगो के बिच में तनाव रहता है। लेकिन हम इस पोस्ट में बात कर रहे है प्यार को पाने की। कुछ लोगो को उनका प्यार नहीं मिल पाता है। वह परेशान हो जाते है। प्यार को पाना वैसे इतना भी इतना आसान नहीं होता है। इसके लिए आपको कुछ न कुछ तोर तरिके अपनाने पड़ते है। एस्ट्रोलॉजी सेवाएं ऐसा एकमात्र उपाय है जो कि आपके प्यार को हमेशा के लिए आपका बना सकता है। अपने प्यार को पाने के लिए आपको यह रास्ता जरूर अपनाना चाहिए। मनचाहा प्यार पाने के लिए कुछ खास उपाय करे। ताकि आप अपने जीवन को उस व्यक्ति के साथ बिता सके जिसको आप खूब प्रेम करते है।
मनचाह प्यार पाने के कुछ खास नुस्खे
मंत्र जानकर आपने प्यार को अपने काबू में कर सकते है। मंत्र को 3  बार दिन में और 4 बार रात को दोहराये। ताकि आपका प्यार आपसे मिलने के लिए तरस जाए।
अगर आपका विवाह हो चूका है तो आप अपनी पत्नी या पति से बहुत ज्यादा प्रेम करते है और वह आपको भाव भी नहीं दे रहा है तो आप उसे अपना बनाने के लिए नीचे आपको कुछ टोटके बताये गए है उसे करके देखे।
अगर आप किसी कॉलेज में किसी को पसंद करते है तो आपको उसको अपना प्यार दिखाने के लिए वशीकरण आन्तरा का इस्तेमाल करना होगा।
घर के सामने किसी को पसंद करते है और कहने से डरते है तो काला जादू का मंत्र आपके इस विषय के लिए काफी होगा।
अगर आपका पार्टनर किसी और जाति का है और उसे पाने की कोशिश कर रहे है तो आप भी यह मंत्र आपके बहुत काम में आने वाला है।
मंत्र आपको बेस्ट एस्ट्रोलॉजर गुरु जी से मिलेगा। आप इस नंबर 📞 +91-9417277217 पर कॉल करके मंत्र जान सकते है।
मनचाहा प्यार पाने के टोटके
एक दिया रात को 3 बजे अपने घर के बाहर चौराहे में जाकर जलाकर आये।
आँखों से वशीकरण करने के लिए आपको अभिमंत्रित काजल गुरु जी से प्राप्त करना होगा।
लड़की को वश में करने के लिए मोमबत्ती को जलाये और आधी पिघल जाने के पर मंत्र पड़ना शुरू कर दे और फिर तब तक पढ़े जब तक की वह पूरी पिघल ना जाये।
एक वूडू डॉल ले उसके शरीर पर वैसे ही कपड़े पहनाये जैसे कि आपके प्यार को पसंद है। साथ में उसे जो कुछ भी पसंद हो उसी तरह की चीज़े उसे पहननी है। इससे वह आपके वश में आने लगेगा और मंत्र को पढ़ना जारी ही रखे।
एक फुल को लेकर मंदिर में चढ़ाये और फिर उस फुल को लेकर बाहर जाकर किसी बहती नदी में बहा देना है और मंत्र का जाप मन में ही करना है।
गुरु जी से मिलकर आप आप मनचाहा प्यार पाने के लिए खास उपाय कर सकते है। इसे बहुत ही आसानी से आप पार निकाल सकते है। इसके साथ ही आपका जीवन भी अपने पार्टनर के प्रति अच्छा हो जायेगा। तो आज ही संपर्क करे।
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rajujangde · 3 years ago
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[07/09, 11:51 pm] Raj: टाइपिंग कोचिंग सेंटर में विजय का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी उसकी निगाह अपने केबिन के गेट की तरफ गई। कजरारे नयनों वाली एक साँवली लड़की उसकी केबिन में आ रही थी।
लड़की उसकी बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई। टाइपराइटर को ठीक किया और टाइप करने में मशगूल हो गई। विजय का ��न टाइप करने में नहीं लगा। वह किसी भी हालत में लड़की से बातें करना चाह रहा था। वह ��ाइपराइटर पर कागज लगाकर बैठ गया और लड़की को देखने लगा। लड़की की अँगुलियाँ टाइपराइटर के कीबोर्ड पर ऐसे पड़ रही थीं जैसे हारमोनियम बजा रही हो।
क्या देख रहे हो? 'थोड़ी देर बाद लड़की गुस्से से बोली।
आपको टाइप करते हुए देख रहा हूँ।
[07/09, 11:53 pm] Raj: यहाँ क्या करने आए हो?
टाइप सीखने।
ऐसे सीखोगे? लड़की के स्वर में तल्खी बरकरार थी।
[07/09, 11:56 pm] Raj: मेरा आज पहला‍ दिन है, इसलिए मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। आप टाइप कर रही थीं तो मैं देखने लगा कि आपकी अँगुलियाँ कैसे पड़ती हैं कीबोर्ड पर। आपको टाइप करते देखकर लगा मैं भी सीख जाऊँगा।
यदि इसी तरह मुझे ही देखते रहे तो आपकी यह मनोकामना कभी पूरी नहीं होगी।'
लड़की फिर टाइप करने में जुट गई। विजय भी कीबोर्ड देखकर टाइप करने लगा। टाइप करने में उसका मन नहीं लग रहा था। वे बेचैनी-सी महसूस कर रहा था। दस मिनट बाद ही उसने टाइपराइटर का रिबन फँसा दिया।
'रिबन तो फँसेगा ही जब ध्यान कहीं और होगा...।'
लड़की उसके टाइपराइटर को थोड़ा अपनी ओर खींचकर रिबन ठीक करने लगी। इसी बीच रिबन नीचे गिर गया। वह उसे उठाने के लिए झुकी तो उसके गले से चुन्नी गिर गई। रिबन उठाने के‍ लिए विजय भी झुका था। उसकी निगाह अकस्मात ही लड़की के उरोजों पर चली गई। वह सकपका गया।
'लो, ठीक हो गया।' लड़की ने कहा त उसकी चेतना लौटी। लड़की फिर टाइप करने में लग गई, लेकिन विजय का मन टाइप में नहीं लगा। वह लड़की से बात करने की ताक में ही लगा रहा।
'मन नहीं लग रहा है?' अचानक लड़की ने उससे पूछा तो बाँछें खिल गईं।
'लगता है कि सीख भी नहीं पाऊँगा।'
आसार तो कुछ ऐसे ही दिखते हैं।
आपका नाम? विजय ने बात को बढ़ाने के लिए सवाल कर दिया।
सरिता।
अच्छा नाम है।
लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।
क्यों?
कोई एक कारण हो तो बताएँ। यह कहते हुए सरिता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टाँगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। विजय उसे जाते हुए देखता रहा। उसके जाने के बाद उसने टाइपराइटर पर डाली। टाइपराइटर उसे उदास लगा।
और दुनिया बदल गई
इसी दिन से विजय हवा में उड़ने लगा। रातों को छत पर घूमने लगा। तारे गिनता और उनसे बातें करता। चाँदनी रात में बैठकर कविताएँ लिखता। गर्मी की धूप उसे गुनगुनी लगने लगी। दुनिया गुलाबी हो गई तो जिंदगी गुलाब का फूल। आँखों से नींद गायब हो गई। वह ख्‍यालों ही ख्‍यालों में पैदल ही कई-कई किलोमीटर घूम आता।
अपनी इस स्थिति के बारे में उसने अपने एक दोस्त को बताया तो उसने कहाँ 'गुरु तुम्हें प्यार हो गया है।' दोस्त की बात सुनकर उसे अच्छा लगा।
अगले दिन विजय ने सरिता से कहा कि आप पर एक कविता लिखी है। चाहता हूँ कि आप इसे पढ़ें।
'यह भी खूब रही। जान न पहचान। तू मेरा मेहमान। कितना जानते हैं आप मुझे?'
जो भी जानता हूँ उसी आधार पर लिखा हूँ।
सरिता उसकी लिखी कविता पढ़ने लगी।
सरिता,
कल-कल करके बहने वाली जलधारा
लोगों की प्यास बुझाती
किसानों के खेतों को सींचती
राह में आती हैं बहुत बाधा
फिर भी मिलती है सागर से
उसके प्रेम में सागर
साहिल पर पटकता है सिर
उनके प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रमाण
पूर्णमासी की रात में
उठने वाला ज्वार-भाटा
सरिता है तो सागर है
सरिता के बिना रेगिस्तान हो जाएगा सागर
सागर के प्रेम में
सरिता लाँघती है पहाड़, पठार
और मानव निर्मित बाधाओं को
कविता के नीचे उसने विजय की जगह सागर लिखा था। सरिता ने उसे देखा और कागज विजय की तरफ बढ़ा दिया। विजय ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप इसे टाइप कर दें। इसे छपने के लिए भेजना है। सरिता कुछ नहीं बोली। कागज को सामने रखकर टाइप करने लगी। विजय उसे देखता रहा। इस बात का आभास सरिता को भी था कि विजय उसे ही देख रहा है, लेकिन उसने कोई विरोध करने के बजाय पूछा कि आप कवि हैं?
बनने की कोशिश कर रहा हूँ।
कवि भगोड़े होते हैं। सरिता ने उसकी ओर देखते हुए कहा। उसकी इस टिप्पणी से विजय सकपका गया।
कवि अपने सुख के लिए कविता रचता है। रचते समय वह कविता के बारे में सोचता है। उसके बाद वह कविता को उसके हाल पर छोड़ देता है। कविता जब संकट में होती है तो कवि कविता के पक्ष में खड़ा नहीं होता।'
'यह आप कैसे कह सकती हैं।'
मैं समझती हूँ कि आदमी की जिंदगी भी एक कविता है। मेरी जिंदगी एक कविता है। मेरी जिंदगी मुझे अच्छी नहीं लगती। इसलिए कविता भी मुझे अच्छी नहीं लगती।
अरे वाह, आप तो कवि हैं। अभी आपने जो कहा वह तो कविता है।
कविता नहीं, कविता का प्रलाप है, उसकी वेदना।
जो उस कवि के कारण उपजी है, जिसने मेरी जिंदगी की रचना की।' इतना कहकर सरिता केबिन से बाहर चली गई।
कैसी है यह? विजय ने सरिता के टाइपराइटर को देखा। लगा जैसे टाइपराइटर किसी शोक गीत की रचना में मशगूल है।
प्यार की खुशबू
आज उन्होंने बातें अधिक कीं। उनके वार्तालाप को देखकर टाइपिंग इंस्टिट्‍यूट चलाने वाली मैडम ने उनके पास आकर कहा कि आजकल तो तुम काफी खुश हो सरिता। बदले में सरिता केवल मुस्कराई। विजय भी मुस्कराया। तो क्या मेरे प्यार की गंध इसे भी लग गई।
अगले दिन सरिता जब इंस्टिट्‍यूट आई तो काफी सजी-धजी थी। नया गुलाबी सूट पहने थी। बालों का स्टाइल बदला हुआ था। विजय को सरिता का यह बदला रूप अच्‍छा लगा। वह अपनी भावनाओं को दबा नहीं पाया। बोला, 'काफी सुंदर लग रही हो।' जवाब में जब सरिता ने मुस्कराते हुए थैंक्यू का फूल जब उसकी तरफ फेंका तो उसकी इच्छा हुई कि वह खड़ा होकर नाचने लगे और जोर-जोर से चिल्लाये कि उसे प्यार हो गया है।
ग्रह-नक्षत्रों की चाल
आदमी जब‍ निराश होता है या फिर लक्ष्य के प्रति उसकी स्थितियाँ साफ नहीं होती हैं तो वह धर्म और ज्य‍ोतिषी की शरण में चला जाता है। विजय की भी हालत कुछ ऐसी ही थी। वह सरिता को चाहने लगा था, लेकिन सरिता भी उसे चाहती है यह स्पष्ट नहीं था।
वह अपनी बेरोजगारी से भी परेशान था। घर वाले शादी के लिए अलग से दबाव डाल रहे थे। लिहाजा एक दिन वह ज्योतिषी के पास चला गया। नौकरी पाने के लिए वह ज्योतिषी से नुस्खे पूछता रहता है। उसने सोचा कि प्रेम पाने के लिए भी गृह-नक्षत्रों की चाल जान ली जाए। नौकरी के लिए तो ज्योतिषी कभी कहता है कि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है, जो आपके शुभ कार्यों में बाधक है।
इसकी शांति के लिए घर में मोर पंख रखें और प्रतिदिन उसे दो-तीन बार अपने शरीर पर घुमाएँ। सोमवार के दिन चाँदी से बना सर्प का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाएँ। नित्य श्रीगणेश जी की उपासना करें। धैर्यपूर्वक ऐसा करने पर ही रोजगार प्राप्ति की संभावना बनेगी। विजय ने अभी तक उसके बताए हर नुस्खे को आजमाया, लेकिन आज तक कोई संभावना नहीं बनी। शिकायत करने पर वह कह देता है कि आप पर भाग्येश शुक्र की महादशा चल रही है। शुक्र के बलवर्धन के लिए शुक्रवार के दिन साढ़े पाँच रत्ती का ओपल चाँदी में जड़वाकर दाहिनी मध्यमा में धारण करें।
पंडित जी मेरी कुंडली में प्रेम है कि नहीं?
है न, बहुत है। कुंडली पर सरसरी नजर डालते हुए ज्योतिषी ने कहा।
'प्रेम विवाह का योग है?'
है, लेकिन कुछ बाधाएँ हैं।'
प्रेम विवाह में क्या लफड़ा है?
आप पर शुक्र की महादशा चल रही है, जो अशुभ फलप्रद है। गोचर में भी आपकी राशि पर शनि की साढ़े साती चल रही है। शनि शांति के लिए प्रत्येक शनिवार कुत्तों को सरसों के तेल से बना मीठा पराठा‍ खिलाएँ। ग्रह शांति के उपरांत ही प्रेम में सफलता की संभावना बन सकती है।
सब ढकोसला है। इतने दिनों से आप एक नौकरी के लिए मुझसे क्या-क्या नहीं करवाते रहे। मिलीं नौकरी? साला चपरासी भी कोई रखने को तैयार नहीं।
भन्नाया हुआ विजय ज्योतिषी के कमरे से निकल गया। घर पहुँचते ही मम्मी कहने लगी, '��ुम्हारे पिता ने लड़की पसंद कर ली है। उनके दोस्त की बेटी है। बीए करके नौकरी कर रही है।'
तो मैं क्या करूँ?
शादी कर लो।
बिना नौकरी मिले यह नहीं हो पाएगा।
फिर तो पूरी जिंदगी कुँआरे ही रह जाओगे।
बीवी की कमाई खाने से तो कुँआरा रहना ही अच्छा है। कहते हुए विजय अपने कमरे में चला गया।
जिंदगी आसान नहीं
एक सप्ताह तक सरिता टाइपिंग स्कूल नहीं आई। विजय रोज आता रहा और निराश होकर वापस घर जाता रहा। आठवें दिन सरिता के आते ही वह पूछा बैठा कि एक सप्ताह आई नहीं?
जिंदगी में बहुत दिक्कतें हैं। कहते हुए सरिता अपनी सीट पर बैठ गई।
क्या हो गया?
मेरी बहन जो बीए कर रही है किसी लड़के के साथ चली गई। दोनों बिना शादी के ही एक साथ रह रहे हैं।
ऐसा क्यों किया?
उसका कहना है कि यदि वह ऐसा न करती तो उसकी शादी ही नहीं हो पाती।
मतलब?
हमारे घर के आर्थिक हालात। इतना कहकर सरिता चुप हो गई।
मुझे नहीं लगता कि आपकी बहन ने गलत किया है। आज की युवा पीढ़ी विद्रोही हो गई है। वह परंपराओं को तोड़कर नई नैतिकता गढ़ रही है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।
पर माँ तो नहीं समझतीं।
हाँ, उनके लिए समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आजकल सब चलता है। हमारा समाज बदल रहा है। बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिमी परंपरा है, लेकिन अब ऐसा हमारे यहाँ भी होने लगा है।'
हाँ, बैठकर सपनों के राजकुमार का इंतजार करने से तो बेहतर ही है न कि जो हाथ थाम ले उसके साथ चल दिया जाए। चाहे चार दिन ही सही, जिंदगी में बहार तो आ जाएगी।
विजय को लगा कि कह दे कि फिर तुम मेरे साथ क्यों नहीं चली चलतीं। हम शादी कर लेते हैं पर वह कह नहीं पाया।
'जानते हो मेरी एक बहन बारहवीं में पढ़ रही है। उसका भी एक लड़के से प्रेम चल रहा है। वे दोनों एक-दूसरे से शादी करने को तैयार हैं। अगले साल बालिग होते ही शादी कर लेंगे।'
विजय के मन में आया कि कह दे कि अच्छा ही है। वह अपने आप वर खोज लें तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी। वैसे भी पाँच हजार रुपए की नौकरी में तुम कौन सा राजकुमार उन्हें दे दोगी। अच्‍छा है कि वह अपने-अपने ‍प्रेमियों के साथ भाग जाएँ।
बातों-बातों में एक दिन सरिता ने उसे बताया था कि उसके पिता की मौत हो चुकी है और वह तीन बहन हैं। उसका कोई भाई नहीं है। बहनों में वही सबसे बड़ी है। वह एक ऑफिस में काम करती है और उसे पाँच हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है। दूसरी जगह काम पाने के लिए टाइपिंग सीख रही है।
विजय को अपने एक दोस्त के साथ घटी ऐसी ही घटना की याद आ गई। उसके दोस्त की एक बहन अपनी बड़ी बहन के अधेड़ से ब्याह देने के बाद प्रेमी के साथ भाग गई। इसके बाद उसका दोस्त गुस्से में उबल रहा था। तब विजय ने कहा था कि शांत रहो यार। वे दोनों जहाँ हो कुशल से रहें। उसने जो किया अच्छा ही किया। तुम कौन सा उसे राजकुमार से ब्याह देते। आखिरकार जिंदगी उसकी है।
जीना उसे है इसलिए निर्णय भी उसे ही लेना चाहिए। दोस्त के बड़े भाई ने भी विजय की बात का समर्थन किया था। लेकिन थोड़ा दार्शनिक अंदाज में कहा था कि होनी को यही मंजूर था।
मैं भी सोचती हूँ कि एक बहन ने जो किया ठीक ही है। दूसरी जो करेगी वह भी अच्छा ही है। जीवन यदि संघर्ष है तो करो। प्रेमी से पति बना व्यक्ति भी धोखा दे सकता है। जीवन नरक बन सकता है और माता-पिता का खोजा राजकुमार भी यही करता है। लेकिन माँ नहीं मानतीं। सोचती बहुत हैं और तबियत खराब कर लेती हैं।
पुराने जमाने की हैं न।
'हद तो यह हो गई कि वह मुझसे कहने लगी हैं कि तू भी किसी के साथ भाग जा।
मैं उन्हें इस हाल में छोड़कर किसके साथ...'
रो पड़ी सरिता।
विजय की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे और क्या करे।
स्थिति को सरिता समझ गई तो खुद पर काबू किया और फिर से टाइप करने लगी।
दस मिनट बाद सरिता उठी और बिना बोले ही चली गई। विजय की इच्छा हुई कि वह उसके पीछे-पीछे चला जाए, लेकिन वह बैठा रहा और उसे जाते देखता रहा।
मूसलाधारिश में बिजली का गिरना
आसमान में काले बादल घिर आए थे। इस कारण परिवेश में अँधेरा पसर गया था। रह-रहकर आसमान में बिजली चमकती और बादल गरजते। ऐसे मौसम में भी विजय टाइपिंग स्कूल जाने के लिए तैयार था। वह सरिता से मिलना चाहता था। जब वह घर से निकला तो बूँदाबाँदी शुरू हो चुकी थी। फिर भी वह तेज कदमों से टाइपिंग स्कूल की तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही दूर गया होगा कि बारिश तेज हो गई। सड़क पर चल रहे लोग भागकर किसी छाँव में खड़े हो गए पर वह अपनी मस्ती में भीगता हुआ चलता रहा।
इंस्टिट्‍यूट पहुँचकर उसे पता चला कि सरिता नहीं आई है।
इतनी बारिश में आने की क्या जरूरत थी? मैडम ने विजय से कहा।
आप नहीं समझेंगी। सब समझती हूँ, लेकिन अब सरिता यहाँ कभी नहीं आएगी।
क्यों? आपको कैसे पता?
'उसका फोन आया था। उसने कहा कि यदि आप आओ तो बता दूँ।'
वह कभी नहीं आएगी? विजय की आवाज किसी कुएँ में से आती लगी।
विजय टाइपिंग स्कूल से बाहर आया। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। जैसे ही उसने नीचे की ओर कदम रखा जोर से बिजली ‍चमकी और बादल गरजने लगा।
विजय संज्ञाशून्य सा भीगता हुआ घर की तरफ चल पड़ा।
उसने सोचा कि वह सरिता के घर जाएगा। लेकिन उसके घर का पता तो मैडम दे सकती हैं। यह सोचकर वापस पलटा लेकिन तब तक टाइपिंग स्कूल बंद हो चुका था।
भीगते हुए घर पहुँचा। तब तक उसका शरीर बुखार से तपने लगा। लगभग पंद्रह दिन वह चारपाई पर पड़ा रहा। ���ब कुछ ठीक हुआ तो बीसवें दिन टाइपिंग स्कूल पहुँचा। मैडम नहीं मिली। यह सिलसिला पंद्रह दिनों तक चला। सोलहवें दिन उसे मैडम मिली। उसे देखते ही बोल पड़ी कि काफी कमजोर हो गए हो?
उस दिन बारिश में भीगा तो बीमार हो गया।
विजय ने मैडम से सरिता के घर का पता माँगा तो उसने एक कागज पर लिखा और विजय को थमा दिया। मैडम को धन्यवाद बोलकर विजय चल पड़ा। वह आज ही सरिता से मिलना चाहता था।
जब वह मैडम के दिए पते पर पहुँचा तो वहाँ ताला लगा था।
पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि सरिता यहीं रहती थी, लेकिन अब मकान बेचकर चली गई है। कई लोगों से पूछने के बाद भी विजय को उसका नया पता नहीं मिला। निराश होकर वह घर लौट आया।
सरिता के इस व्यवहार से उसे काफी धक्का लगा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सरिता ने ऐसा क्यों किया?
वह सरिता की याद में कविताएँ लिखने लगा।
एक दिन उसने एक सपना देखा और उसके भावों को कविता के रूप में कागज पर लिखा...
सरिता, जो निकली
अपने उद्‍गम स्थल से
सागर की चाह में चली द्रुतगति से
सामने आ गया पहाड़
टकराने के बाद बदल लिया अपना मार्ग
मार्ग था लंबा
पहाड़ों की श्रृंखला थी
पठार और पथरीली जमीन भी
आदमी भी खड़ा था फावड़ा लिए
बाँध बनाने को तत्पर
खेत सींचने के लिए
चाहिए उसे पानी पीने के लिए भी
बिजली भी तो चाहिए
घर रोशन करने के लिए
कारखाने चलाने के लिए
कारखानों के कचरे को
बहाने के लिए भी चाहिए उसे नदी।
प्रकृति से लड़ते नहीं थकी वह
बहती रही अविरल
दिल में सागर से मिलने की चाह लिए।
भारी पड़ा प्यार अवरोधों पर
पहुँच गई वह साहिल पर
लेकिन मानव ने बना बाँध
रोक दी उसकी धारा
कारखानों की गंदगी उड़ेल
सड़ा दिया उसकी आत्मा को
अपने आँसुओं से धोती रह वह अपना बदन
निर्मलता से मिलना चाहती थी सागर से
विकास उन्मादी मानव ने
रौंद दिया उसकी आत्मा को
जिंदा लाश हो गई वह
उसके लिए तड़पता है सागर।
साहिल पर पटकता है अपने सिर को
उसने तो दम तोड़ दिया मानव के विकास में
सागर भेजता है बादलों को
उसे पुनर्जीवित करने के लिए
वह जानता है बेवफा नहीं है वह
सच्चा है उसका प्यार
कैद है वह मानव के विकास में
बरसते हैं बादल उफनती है नदी
मानव को दिखाती है अपना विकराल रूप
मिलते ही प्यार की ताकत
तबाह कर देना चाहती है वह मानव सृष्टि को
बदला लेना उसकी प्रकृति नहीं
भागती है तेज गति से सागर की ओर
बाँहें फैलाए स्वागत करता है सागर
बताना चाहती है अपने कष्टों को वह
लेकिन कुछ भी नहीं जानना चाहता सागर
जानता है वह मानव स्वभाव को
उसका भी तो पाला पड़ा है इस स्वार्थी प्राणी से
विजय की इस कविता को पत्रिका में छपे एक माह से अधिक हो गया है, लेकिन उसके पास इस बार भी ��ब तक सरिता का कोई पत्र या फोन नहीं आया है। उसे उम्मीद है कि एक न एक दिन सरिता उससे संपर्क जरूर करेगी। जब से वह कविता प्रकाशित हुई है तब से वह फोन की प्रत्येक घंटी पर चौंक जाता है। यही नहीं हर रोज पोस्टमैन का बेसब्री से इंतजार करता है। और जब उसके आने का समय खत्म हो जाता है तो वह उदासी के समुद्र में डूब जाता है।
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astrologerdksharmaji · 5 years ago
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Love back in 3 hours by Black Magic Specialist Astrologer in India
It is very common that love is an addiction. People who do it well know everything and there is a saying that it is blind that people also know well, yet why do they fall into this trap? This post has been written keeping in mind those who know all the rules of love, yet they give it the most importance. Very good thing is that such people know to appreciate love. If you ever have to appreciate such a feeling, you should not panic at all. Our astrologer D.K Sharma provides the best service for you. Here you will find out about the love back in 3 hours , how you can bring your lost love back into your life.
बहुत ही आम सी बात है कि प्यार एक नशा है। जो लोग करते है वह अच्छे से सब जानते है और एक कहावत है कि अँधा होता है यह भी लोग अच्छे से जानते है फिर भी वह इस जाल में क्यों फस जाते है? यह पोस्ट उन लोगो को ध्यान में रखकर लिखी गयी है जो कि प्यार के सभी नियम जानते है फिर भी वह इसको ही सबसे ज्यादा महत्व देते है। बहुत अच्छी बात यह है कि ऐसे लोग प्यार की कदर करना जानते है। अगर आपको कभी ऐसी भावना की कदर करनी पड़ जाये तो आप बिलकुल भी न घबराये। हमारे अस्त्रोलोगेर डी के शर्मा आपके लिए सबसे अच्छी सेवा का प्रावधान करते है। यहां आपको लव बैक इन ३ हॉर्स का पता लगेगा की कैसे आप अपने खोये प्यार को फिर अपनी जिंदगी में बापिस ला सकते है।
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superksharma01 · 5 years ago
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Navratri 2019 date & time – नवरात्रि 2019 शुभ चौघड़िया मुहूर्त
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Navratri 2019 : जानें कब से शुरू हो रहे है नवरात्र ( JAI MATA DI )
 आपको ये जानकर बहुत खुशी होगी इस नवरात्रि माता रानी मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी. हमारे हिंदू धर्म में नवरात्र और बहुत से तौयार का बहुत अधिक महत्व है।  हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्र की शुरूआत 29 सितंबर 2019 से शुभारंभ हो रहे है जोकि 7 अक्टूबर 2019 तक होग��। इस बार पूरे नौ दिन मां दुर्गा की उपासना की जाएगी। वहीं 8 अक्टूबर को बहुत ही धूमधाम के साथ विजयदशमी यानि दशहरा के अलावा दुर्गा विसर्जन का त्योहार मनाया जाएगा। आपको बता दें कि इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार हो कर आएगी और उनका प्रस्थान भी घोड़े पर ही होगा।
शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है. देवी के इन स्वरूपों की पूजा नवरात्रि में विशेष रूप से की जाती है. नवरात्रि के नौ दिन लगातार माता का पूजन चलता है.
  29 सितंबर, प्रतिपदा – बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना – शैलपुत्री 30 सितंबर, द्वितीया – नवरात्रि 2 दिन तृतीय- ब्रह्मचारिणी पूजा 1 अक्टूबर, तृतीया – नवरात्रि का तीसरा दिन- चंद्रघंटा पूजा 2 अक्टूबर, चतुर्थी – नवरात्रि का चौथा दिन- कुष्मांडा पूजा 3 अक्टूबर, पंचमी – नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा, स्कंदमाता पूजा 4 अक्टूबर, षष्ठी – नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा 5 अक्टूबर, सप्तमी – नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा 6 अक्टूबर, अष्टमी – नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन 7 अक्टूबर, नवमी – नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण 8 अक्टूबर, दशमी – दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
 Navratri 2019 : कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त ( JAI MATA DI )
 इस बार नवरात्र पर कलश स्थापना की बात करें तो इसका शुभ मुहूर्त सुबह 6.16 बजे से 7.40 बजे (सुबह) के बीच है। इसके अलावा दोपहर में 11.48 बजे से 12.35 के बीच अभिजीत मुहूर्त भी है जिसके बीच आप कलश स्थापना कर सकते हैं। बता दें कि अश्विन की प्रतिपदा तिथि 28 सितंबर को रात 11.56 से ही शुरू हो रही है और यह अगले दिन यानी 29 सितंबर को रात 8.14 बजे खत्म होगी।
  Navratri 2019 : कलश स्थापना की विधि ( JAI MATA DI )
 कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान पर मिट्टी और पानी को मिलाकर एक समतल वेदी तैयार कर लें जिस पर कलश को रखा जाना है। इस मिट्टी से तैयार जगह के बीचों बीच कलश को रखें। कलश में गंगा जल भर दें। साथ ही कुछ सिक्के, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत आदि भी डाल दें। कलश के चारों ओर जौ के बीच डालें। इसके बाद कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें और उसे ढक्कन से ढक दें। कलश के ऊपरी हिस्से पर मौली या रक्षा सूत्र बांधे। साथ ही तिलक भी लगाये।   कलश रखने के लिए आप मिट्टी की वेदी से अलग एक बड़े पात्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको उस पात्र में मिट्टी भरनी होगी और उसमें जौ के बीज डालने होंगे। बहरहाल, अ�� कलश के ऊपर लाल कपड़े या लाल चुन्नी में ढका नारियल रख दें। नारियल को भी रक्षा सूत्र से बांधे। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी जरूर बनायें। इसके साथ ही आपकी कलश स्थापना पूरी हो चुकी है और आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगले 9 दिनों तक उन हिस्सों में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहें जहां आपने जौ के बीज डाले हैं।
 Navratri 2019 : पूजा विधि ( JAI MATA DI )
 कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान पर मिट्टी और पानी को मिलाकर एक समतल वेदी तैयार कर लें जिस पर कलश को रखा जाना है। इस मिट्टी से तैयार जगह के बीचों बीच कलश को रखें। कलश में गंगा जल भर दें। साथ ही कुछ सिक्के, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत आदि भी डाल दें। कलश के चारों ओर जौ के बीच डालें। इसके बाद कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें और उसे ढक्कन से ढक दें। कलश के ऊपरी हिस्से पर मौली या रक्षा सूत्र बांधे। साथ ही तिलक भी लगाये।   कलश रखने के लिए आप मिट्टी की वेदी से अलग एक बड़े पात्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको उस पात्र में मिट्टी भरनी होगी और उसमें जौ के बीज डालने होंगे। बहरहाल, अब कलश के ऊपर लाल कपड़े या लाल चुन्नी में ढका नारियल रख दें। नारियल को भी रक्षा सूत्र से बांधे। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी जरूर बनायें। इसके साथ ही आपकी कलश स्थापना पूरी हो चुकी है और आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगले 9 दिनों तक उन हिस्सों में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहें जहां आपने जौ के बीज डाले हैं।
 नवरात्रि के 9 दिन और 9 देवियां
पहले दिन- शैलपुत्री दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी तीसरे दिन- चंद्रघंटा चौथे दिन- कुष्मांडा पांचवें दिन- स्कंदमाता छठे दिन- कात्यानी सातवें दिन- कालरात्रि आठवें दिन- महागौरी नवें दिन- सिद्धिदात्री
 दशहरे का शुभ संयोग
 नवमी के अगले दिन दशहरा का त्योहार है। 7 अक्टूबर 2019 को महानवमी दोपहर 12.38 तक रहेगी। इसके दशमी यानी दशहरा होगा। 8 अक्टूबर को विजयदशमी रवि योग में दोपहर 2.51 तक रहेगी। यह बहुत ही शुभ मानी गई है।
  दुर्गा पूजा
 अष्टमी तिथि – रविवार, 6 अक्टूबर 2019 अष्टमी तिथि प्रारंभ – 5 अक्टूबर 2019 से 09:50 बजे अष्टमी तिथि समाप्त – 6 अक्टूबर 2019 10:54 बजे तक
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doodle-ak · 8 years ago
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इश्क़ और इशिता
इश्क़ किस चिड़िया का नाम है ये तो खुद-ब-खुद सबको पता चल ही जाता है. बचपन के पार होते  ही कुछ रसायन सक्रिय होते हैं और मन में प्रेम हिलोर लेने लगता है, और ये रोग तब आक्रमण करता है जब आप एकदम निहत्थे होते हैं. बस अनजाने ही दिल आ जाता है इस लाइलाज रोग की गिरफ्त में. हल्का-हल्का सुरूर,  मीठा-मीठा दर्द और एक अजब सी खुमारी, ये हैं इस रोग के लक्षण. इश्क़ के रोग की बारीकियों को समझाना वाला मैं कोई डॉक्टर नहीं बल्कि खुद इसका एक मरीज़ हूँ. मैं कब और कैसे इस रोग की गिरफ्त में आ गया और इसने कैसे मेरी सुस्त रफ़्तार ज़िन्दगी में क्या-क्या गुल खिलाये उसका हर किस्सा मुझको मुँह-ज़बानी याद है!
तब मैं बारहवीं कक्षा में था और ये हमारे करियर की सबसे ज़रूरी सीढ़ी थी, इसलिए क्लास का हर लड़का पूरे ज़ोरों से पढाई में लगा हुआ था. लड़कियों की तो बात ही अलग थी, वो तो आदतन पढ़ाकू और सिन्सेयर होती ही हैं तो फिर बोर्ड की परीक्षाओं का खौफ उनमें लड़कों से कहीं अधिक था, यानि सब के सब पढाई में डूबे हुए थे. टीचर्स भी हर बच्चे पर अलग से ध्यान दे रहे थे और खूब मेहनत कर रहे थे, आखिर स्कूल के रिजल्ट का सवाल था. सत��र की शुरुआत में ही सबको सिखा दिया गया था की ज़िन्दगी में कुछ करना हो, अगर कोई मुकाम हासिल करना हो तो यही एक साल है, जी भर के मेहनत करलो, सभी छात्र छात्राओं ने इस बात को गाँठ बाँध ली. मगर मैं एक अपवाद साबित हुआ. मैंने अपने भविष्य को दाँव पर लगाकर इश्क़ का जूनून पाल लिया था. मैं दीवाना हो गया था किसीका. लड़कपन का इश्क़ बड़ा विकट होता है, इसमें लड़के या तो हद से ज़्यादा सुधर जाते हैं और किताबी कीड़ा बनकर लड़कियों की गुडबुक्स में रहना चाहते हैं, या तो एकदम निठल्ले, जिन्हें खुली आँखों से सपने देखने के सिवा कुछ नहीं भाता. मैं दूसरी केटेगरी में आता था. यानी मुझे पढाई से कोई वास्ता ना रहा. मैं तो बस उसकी एक झलक पाने के लिए ही स्कूल जाता था. हेयर जेल लगा-लगाकर, अपने कपड़ों में इस्त्री करते और किस्म-किस्म के इत्र छिडकते कई बार तो इतनी देर हो जाती थी की मैं अपना स्कूल बैग ही घर भूल जाता था. क्लास में भी बस ऐसी जगह हड़पने की कोशिश करता की मुझे बस उसकी झलक दिखती रहे.
कासी हुई चोटियों में गुथे हुए लंबे काले बाल, जिन्हें वो रोज़ अलग-अलग रंगों के फूलों वाले रबर बंद से सजाकर आती थी. उसकी बारीक काजल से सजी बड़ी-बड़ी आँखें, होंठ गुलाब की पँखुडियों जैसे मुलायम दिखाई पड़ते थे, सुबह की ओस जैसी ताज़गी दिखाई पड़ती थी मेरी माशूका में…इशिता नाम था उसका. थोड़ा फ़िल्मी ज़रूर है, मगर थी भी तो वो ऐसी ही, हंसती थी तो मानो लगता था अशर्फियों की पोटली खुल कर फर्श पर बिखर गयी हो जैसे. इश्क़ तो आखिर होना ही था!
इशिता यानी मेरी माशूका, जिससे मुझे एकतरफा लेकिन बेपनाह मोहब्बत हो गयी थी, अभी पिछले ही साल स्कूल में आयी थी. स्कूल के पहले ही दिन जब उसने सहमते हुए अपने फैंसी स्कूल बैग को सुरक्षा कवच की तरह अपने सीने से चिपकाकर क्लास में कदम रखा था, तभी उसकी सलोनी सूरत देखकर मेरे मन में कुछ गुदगुदी सी हुई थी. वो पहली नज़र का प्यार था ये मैंने काफी बाद में जाना. उसके क्लास में आते ही मनो कमरे की सारी आबो-हवा ताज़ी हो गयी थी. मेरे सिवा बाकी सब के सब बारी-बरी से उसके पास जाकर अपना परिचय दे आये थे. मैं पता नहीं किस मौके की तलाश में अपनी सीट पर ही बैठा हुआ था. क्लास का हर लड़का मुस्तैदी से तैनात हो गया था उसकी मदद करने के लिए. सब अपनी-अपनी कॉपियां ये कहते उसे ज़बरदस्ती था आये की पिचले एक महीने में जो जो मिस हुआ है वो नोट करलो, और आराम से करो, लौटाने की कोई जल्दी नहीं है. मुझे अचानक याद आया की पिछले हफ्ते बुखार की वजह से जो मेरी पढाई छूटी है वो मैं अभी तक रिकवर नहीं कर पाया हूँ, क्योंकि कोई मुझे अपनी कॉपी देने को तैयार ही नहीं था. इशिता क्लास में सबसे ख़ूबसूरत लड़की थी, और मैं साधारण सा दिखने वाला, ज़रुरत से ज़्यादा पतला और कद में भी काम था. इतना पतला की आते-जाते मोहल्ले-पड़ोस वाले शुभचिंतक भी मुफ्त में मुझे वज़न बढ़ने और चर्बी चढ़ाने के नुस्खे चिपका जाया करते थे. मगर मैं अपना अक्स आईने में देख कर खुद को ‘रॉकस्टार’ फिल्म का 'रणबीर कपूर’ समझा करता था. शायद इसी आत्मविश्वास के कारण मैं इशिता से इश्क़ करने की हिम्मत भी कर बैठा था. इश्क़ करने की हिम्मत थी इसलिए मैंने एक रोज़ हिमाकत भी कर डाली. स्कूल में इशिता का कोई चौथा-पांचवा दिन ही रहा होगा और मैंने एक कागज़ पर 'आई लव यू’ लिखा और उसे तोड़-मड़ोड़ कर एक बॉल बनाकर उसकी ओर उछाल दिया. मगर मेरा वो पहला प्रेम सन्देश इशिता के पास पहुँचने के बजाये, क्लास के मॉनिटर के हाथों लग गया. उसने इस तुड़े-मुड़े कागज़ को पहले तो डेस्क पर रखकर सीधा किया, फिर मुझको घूरकर खा जाने वाली नज़रों से देखा, मैंने भी ढिठई से अपना मुँह फेर लिया, 'हाँ नै तो’!
मैंने अपनी जीवन में इतनी सुन्दर और समझदार लड़की नहीं देखी थी. कहने को जलतरंग जैसी आवाज़ में बात करने वाली लड़की की ओर मैं खिंचा चला जा रहा था. धीरे-धीरे इश्क़ की गिरफ्त में मैं इस कदर आता जा रहा था की मुझे पूरे क्लास में किसी से कोई मतलब ही नहीं रहा था. यार-दोस्त तो दूर, मुझे टीचर क्या पढ़ा रही है वो भी समझ आना बंद हो गया था. मुझे तो बस लगता था की पृथ्वी घूम रही है, मौसम बदल रहे हैं, वक़्त गुज़र रहा है, तो मुझे क्या! मेरे लिए तो इशिता ही पृथ्वी थी और मैं उसका चाँद बनने की तमन्ना अपने भीतर पाल रहा था. जल्द ही पहले टर्म के नतीजे आ गए, इशिता ने क्लास में फर्स्ट किया था, और मेरे नंबर अबतक के सबसे बुरे थे. मुझे तो फ़ैल होने तक का ग़म नहीं था, अल्बत्ता पापा ने मुझे पूरे दिन कमरे में बंद रखा, माँ ने तो चार दिन बात ही नहीं की थी. मगर मेरा एट्टीट्यूड वही रहा, 'मुझे क्या’! इशिता के इश्क़ में मैं बर्बाद हुआ जा रहा था, क्लास मे दिनभर उसको ताकते रहने क�� अलावा मैं कुछ भी नहीं करता था. मेरी आँखें उसको देखते रहती और उंगलियां कॉपी के पिछले पन्ने में किस्म-किस्म की ऑब्स्टेकट डिजाईन बनाती रहती.
मुझे उसकी हर हरकत अच्छी लगती थी…उसका पेन पकड़ने का ��ंदाज़, अटेंडेंस के दौरान उसका हड़बड़ाकर उसका 'प्रेजेंट मैम’  बोलने का अंदाज़, किताब के पीछे चेहरा छुपाके सहेलियों से बतियाना और बात बेबात हँसना..मैं दीवाना हुआ जा रहा था उसका. अपने से छोटे बच्चों की मदद करना, स्कूल के माली, चपरासी, चौकीदार, ड्राइवर सबसे पूरी तहज़ीब से बात करना ऐसी ही लाखों क़ुअलिटीज़ थी उसमें. और इश्क़ की इसी दीवानगी के कारण मेरा मन पढ़ने में ज़रा भी नहीं लगता था. इशिता को देखने से पहले मैं बारहवीं पास करके मेडिकल में एडमिशन लेना चाहता था और एक बेहतरीन डॉक्टर बन समाज की सेवा करना चाहता था, लेकिन ये लड़की मुझको लगातार आने वाले ए ग्रेड से बी..सी..और डी की तरह धकेल रही थी. मेरे सुनहरे करियर का बर्बाद होना लगभग तय था. लेकिन मुझे ये भी मंज़ूर था, इशिता से इश्क़ की एवज में मुझे मेरा भविष्य, मेरा करियर सबका बर्बाद होना मंज़ूर था. फ़िक्र थी तो बस मुझे मेरे और उसके भविष्य की! हालाँकि मुझे अब लगता है की करियर बनाने वाले दिन और पहली पहली आशिक़ी वाले दिन कम्भख्त एक ही साथ क्यों आते हैं?
कई दिनों तक एक तरफ़ा इश्क़ पालने के बाद मुझे लगने लगा की अब ये भी पता लगाना ज़रूरी है की इशिता के मन में मेरे लिए क्या है. चलिए इश्क़ ना ही सही, लेकिन ज़रा सा कोई नाज़ुक का एहसास तो हो जिसे भले वक़्ती तौर पे वो उसे दोस्ती का नाम ही दे दे. मगर ये पता लगता भी तोह कैसे, इशिता से सीधे बात करने की हिम्मत मुझमे तो थी नहीं, और वो मुझसे बात करती नहीं थी. हाँ, कभी-कभार हमारी नज़रें मिल जाया करती थी और मुझे लगता था की वो हौले से मुस्कुरायी हो, हालाँकि मैं पक्के तौर से ये कह नहीं सकता हाँ वो क्लास के उस मॉनिटर को देखकर अक्सर मुस्कुराते हुए दिखाई दे जाती थी लेकिन मैंने कोशिश की, की मैं इस बात को दिल पे ना लूँ. इशिता और मेरी लाइफस्टाइल में ज़मीन आसमान का फर्क था. वो महंगी वाली लक्ज़री कार में आती थी, और मैं रिक्शा से. स्कूल से निकलने के बाद मैं तबतक उसकी गाडी को देखता रहता जबतक या तो वो मेरी नज़रों से ओझल ना हो जाए. मुझे पूरा यकीन था की कार के रियर व्यू मिरर में वो मुझको ज़रूर देखती होगी, मेरा यकीन उस रोज़ कुछ और पक्का ही गया जब एक बार हम स्कूल के बहार टकराये, वो रोड के उस पर थी, मैं इस पर. चैराहे पे लगी बत्तियां हरी…पीली…लाल होती रही. ना उसने सड़क पर की, न मैंने, ना वो इस तरफ आयी, ना मैं उस तरफ गया, मगर कितना कुछ चलता रहा होगा उन कुछ लम्हों में हम दोनों के बीच. उस रात मैं पूरी रात नहीं सो पाया बस अपने तस��्वुर में इशिता और अपने इश्क़ को ख्याल को सींचता रहा. बीच-बीच में पिताजी आते और मेरी आँखों को और उनके सामने खुली किताब को देखकर चले जाते. इस इश्क़ ने मुझे पिताजी को धोखा देना भी सिख दिया था. उन दिनों पन्द्रह-सोलह साल की सभी लडकियां जॉन ग्रीन और रविंदर सिंह जैसे लेखकों की रूमानी उपन्यास पढ़ा करती थी, लेकिन इशिता के हाथ हमेशा कोर्स और इनके साइड-बुक्स से ही भरे रहते थे. वो अपने भविष्य को लेकर बहुत संजीदा थी. संजीदा तो मैं भी बहुत था, लेकिन उसके और मेरे रिश्ते को लेकर. स्कूल में रहता तो उसके करीब होने का एहसास होता रहता, घर आते ही मेरी परेशानियां बढ़ने लगती थी.
तभी उन दिनों एक और एग्जाम का रिजल्ट आया, मेरे नंबर और भी ख़राब हो गए थे. मैं घबरा गया, और इस बार तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई की मैं मार्कशीट लेजाकर पिताजी को दिखाऊं. उस रोज़ मैंने एक बड़ी शर्मनाक हरकत की, मार्कशीट पे पिताजी के जाली हस्ताक्षर कर दिए.ज़रा सी आत्मग्लानि हुई थी, थोड़ी शर्म भी आयी होगी, लेकिन एक बार फिर इश्क़ हावी हो गया था, ये इश्क़ मुझे बदलता जा रहा था. इस बार के वाहियाद रिजल्ट के बाद मैंने ठान लिए की मुझे इशिता के मन की बात जाननी ही होगी वरना मैं तो इसी तरह बर्बाद होता चला जाऊंगा और उसके दिल पर किसी और का कब्ज़ा हो जायेगा. अचानक उस क्लास मॉनिटर की शक्ल मेरे ज़ेहन में कौंध गयी, इस ख्याल से ही मेरा दिल बैठने लगा. इशिता के लिए मेरी मोहब्बत अब मुझे तकलीफ देने लगी थी. अब मुझे मरहम चाहिए था, अपने लिए उसके इश्क़ का मरहम. उस रोज़ मैं सुबह से ही आईने के सामने खड़ा होकर खुदको तैयार करने लगा की कैसे मैं इज़हार करूँगा अपनी मोहब्बत का, कैसे जानूँगा उसके मन की बात. जहाँ तक मुझे याद है उस दिन भी मैं अपना स्कूल बैग लेजाना भूल गया था. क्लास के बाद सब लड़के-लडकियां सैलाब की तरह बहार निकलते थे. मैंने अक्सर देखा था की इशिता सब्र के साथ अपनी बेंच अर बैठे रहती थी और सबके निकल जाने के बाद आराम से निकलती थी. उस दिन मैं भी अपनी बेंच पर बैठा रहा और सबके निकलते ही उसके सामने जाकर धमक पड़ा. वो मुझे यूँ अपने सामने, इतने करीब देखकर बुरी तरह चौंक गयी, उसके हाथ से किताब गिर गयी, और उसी किताब में से सूखी, सुर्ख लाल गुलाब की पंखुड़ियां भी निकल के बिखर गयी. मैं उसका चेहरा ताकने लगा वो मुझे देख रही थी, बिना पनके झपकाए, कुछ घबराई सी. किसी फिल्म के सीने की तरह हम एक दूसरे को देख रहे थे, उसकी आँखें कुछ कहती सी लग रही थी. मुझे उसके मोहब्बत का ज़रा यकीन सा होने लगा था! की तभी क्लास मॉनिटर की आवाज़ सुनाई दी : “क्या हुआ इशिता? जल्दी चलो.” मेरा खून खौल उठा, मैंने बिना कुछ कहे सुन��� चुप-चाप पंखुड़ियां बीनकर उसके हाथ में दीं और क्लास से बहार निकल गया.
मेरे रतजगे वाली रातों में एक और रात का इज़ाफ़ा हो गया था. पूरी रात मैं बस ये सोच रहा था की आखिर उसको किसने दी होंगी सुर्ख लाल गुलाब का फूल जिसकी सूखी पंखुड़ियों को वो इस तरह सहेजे घूम रही है! मेरा दिल टूट गया था, मेरे इश्क़ का सफ़र अपनी मंज़िल नहीं पा सका था, मुझे दुःख भी हो रहा था की मैंने इतनी देर क्यों लगायी मोहब्बत का इज़हार करने में, खुद पर गुस्सा आ रहा था की मैंने मोहब्बत ही क्यों की? मुझे शर्म आ रही थी अपने ऊपर की बारहवीं कक्षा में पढ़ते हुए अपनी पढाई लिखाई को छोड़कर इन प्यार-मोहब्बत के चक्करों में पड़ा ही क्यों? और मुझे हंसी भी आ रही थी इस बचकाने इश्क़ पे. शायद इस एक नाकाम इश्क़ ने मुझमें समझदारी ला दी थी, शायद वो चंद सूखी पंखुड़ियां मेरे डूबते करियर को तिनके का सहारा देकर बचा ले गयी थी. कुछ दिन तक इशिता याद आती रही फिर धीरे-धीरे मेरा उदास दिल और भटकता हुआ दिमाग अपने रास्ते पर आ गया. फिर कभी बिना स्कूल बैग के मैं स्कूल नही गया. क्लास में इशिता का होना या ना होना मुझे बेचैन नहीं करता था. दरअसल, उस वाकये के बाद मैंने उसे ठीक से देखा भी नहीं था. मेरा मन फिर से  पढाई में लगने लगा था. देर रात जब पापा कमरे में झाँकते तोह मैं सचमुच पढाई में लगा रहता था, वो मेरे सर पे हाथ  फेरकर चले जाते. मेरे सर से इश्क़ का भूत उतर गया था और तो और मन ही मन अब इशिता से इश्क़ की जगह उससे पढाई में कम्पटीशन करने लगा था. मन बस इतना चाहता था की बस बोर्ड एग्जाम में मेरे नंबर उससे ज़्यादा आ जाए. किसी और से गुलाब कुबूल फर्मा के मेरे साथ अच्छा नहीं किया था उसने.
स्कूल के बस अब आखिरी ढेड़ महीने बचे हुए थे. जब स्कूल लाइफ ख़तम हो जाए तो ऐसा लगता है मानो अचानक किसीने बचपन छीन लिया हो, किसीने एक बड़ा भारी सा लोहे का बक्सा रख दिया हो सिरपे और कहे इसी बक्से को ढोते हुए अपनी पूरी ज़िन्दगी जीनी हो तुम्हें, उफ़! वो दर्द!! खैर, ग्यारहवी कक्षा के बच्चों ने मिलकर एक शानदार सा फेयरवेल का आयोजन किया था. सभी दोस्तों ने औपचारिक विदाई ली. कुछ करीबी दोस्तों ने अपने स्लैम बुक भी भरने को दिए, हमने अपने अपने शुभकामनाएं और मेस्सजस लिख दिए. लेकिन मैं हैरान तब रह गया जब इशिता अपनी गुलाबी रंग के फूलों वाली स्लैम बुक लेकर मेरे सामने आ गयी. मुझे समझ नहीं आया की मैं आखिर क्या लिखूं? सिर्फ 17 साल का तो था ही मैं, शेरो-शायरी की ज़्यादा समझ नहीं थी वरना लिख देता:
अबकी बार बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले!
लेकिन ��ैंने बस एक मुस्कुराता हुआ चेहरा बनाकर औपचारिकता पूरी कर दी.
एग्ज़ाम्स  को बस अब 15 -20 दीं बाकी थे और क्लासेज़ खत्म हो चुकी थी. मैंने खुदको पूरी तरह पढाई में डूबा लिया और खूब मेहनत करने लगा. मन के भटकने का कोई कारण नहीं था इसलिए जब नतीजा आया तो मैं ख़ुशी से उछाल पड़ा. मैंने अपनी क्लास के सभी दोस्तों से ज़्यादा नंबर लाये थे. उस रोज़ हमसब स्कूल पहुचे थे, एक-दुसरे से रिजल्ट पूछते हुए. इशिता के नंबर काफी कम आये थे, वो बमुश्किल पास हो पायी थी. उसका उदास चेहरा देखकर मेरी ख़ुशी को जैसे लगाम लग गयी हो. ना जाने क्यों उससे ज़्यादा नंबर पाकर भी मैं बिलकुल खुश नहीं था. सभी टीचर्स भी हैरान थे की आखिर के दिनों में ऐसा क्या हो गया था इशिता को. बस दो महीने में इशिता के नतीजों में इतना उतार कैसे आ गया था? मैं भी हैरान था. मैंने इशिता की ओर देखा, उसकी पलकों के किनारे भीगे हुए थे. मेरा मन भी भीग गया. जिस इश्क़ से मैं खुदको अलग कर चूका था वो फिरसे मुझको अपने शिकंजे में ले रहा था. मैं इशिता का उदास चेहरा नहीं देख पा रहा था, मैं उसका रिजल्ट बदलना चाहता था, मैं उसका रिजल्ट टॉप पर देखना चाहता था, मैं उसके रिजल्ट से अपना रिजल्ट बदलना चाहता था.
मैं पहली बार उससे सीधे बात करने पहुच गया. “इशिता तुम्हारा रिजल्ट इतना ख़राब? क्यों? कैसे?” “मन ही नहीं लगता था पढ़ने में” उसने कहा. “ और तुम्हारा रिजल्ट इतना शानदार?” पूछते हुए वो हल्का सा मुस्कुरायी थी! “हाँ वो..आखिरी दिनों में काफी डटकर पढाई की थी मैंने” मैंने डरते-डरते जवाब दिया, जैसे मन लगाकर पढ़ना कोई गुनाह हो! “तुम्हारा मन पढ़ने में क्यों नही लगता था?” मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया. उसने जवाब नहीं देकर एक सवाल किया: “जिस दिन वो गुलाब की बिखरी हुई पंखुड़ियां तुमने मुझे बीनकर दीं थी उस दीं तुम क्या कहना चाहते थे?” “वो पंखुड़ियां मैंने तुम्हें नहीं दी थी, वो तुम्हारी किताब से गिरी थी” मैंने भी मौका देखकर उलाहना दे ही डाला, “और उस सूखे गुलाब ने मेरी लव-लाइफ चौपट कर दी थी.” मैंने कहा, मेरी हिम्मत फिर बढ़ने लगी थी. “लेकिन तुम्हारा रिजल्ट तो सुधार दिया.” बड़ी संजीदगी से उसने कहा. “हाँ लेकिन तुम्हारा किसने बिगाड़ दिया?” मैंने कहा. बोली: “उन पंखुड़ियों ने जिन्हें मैंने कबसे तुम्हारे लिए सहेजकर रखा था. हाँ, लेकिन मुझे अफ़सोस नहीं है.” “किस बात का? रिजल्ट बिगड़ने का?” मैंने हैरानी से पूछा. “ नहीं तुमसे कम मार्क्स लाने का.” वो फिरसे मुस्कुरा रही थी.
उन सूखी पंखुड़ियों पर मेरा ही हक़ था, इस ख्याल से ही मेरा दिल ज़ोरों से धड़क गया. मैं भी मुस्कुरा दिया. मुझे इशिता से एक बार फिर इश्क़ हो चला था, और किस्मत से मेरा रिजल्ट, मेरा करियर दांव पर नहीं लगा था. मैंने मन में सोंच लिया था की मैं इशिता की अब मदद करूँगा की वो भी अब पढाई में पहले से भी बेहतर कर सके. क्योंकि अब इश्क़ एकतरफा कहा था!
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