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#पितामहेंद्रटिकैत
allgyan · 4 years
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राकेश टिकैत जीवट वाले किसान-
राकेश टिकैत वैसे कोई चर्चा के मोहताज़ नहीं है |इनकी कई पीढ़ी आंदोलन में शामिल रही है | लेकिन गाज़ीपुर बॉर्डर पर जो आंदोलन के समय वो भावुक हुए |उसने उनको और भी चर्चित बना दिया है | और ये देखकर कई किसानो का दिल कचोट गया |कई लोगों उनके बारे में ज्यादा -ज्यादा से जानने चाहते है |लोग ये भी सोचते है की एक आंदोलन जो समाप्ति उसको उनके आँशु ने पुनर्जीवित किया है |सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में वो दो महीने से ज्यादा दिन से किसान इस ठिठुरती ठण्ड में बैठे रहे है |और उन्होंने कई किसानो को यहाँ पर खो दिया है |आये जानते इतने जीवट वाले किसान के बारे में |
राकेश टिकैत की प्रारंभिक जीवन -
राकेश टिकैत हैं जिनका जन्म 4 जून 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के सिसौली गाँव में हुआ|ये टिकैत परिवार का पैतृक गाँव है|टिकैत ने मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है |इनके पिता महेंद्र टिकैत किसानो के बहुत बड़े नेता थे |उनके कई इतिहास है और उस समय की सरकार उनके एक आव्हान से काँप उठती थी |महेंद्र सिंह टिकैत एक सामान्य किसान थे जिनका जीवन अपने गाँव में ही गुज़रा और लेकिन किसान आंदोलनों की वजह से और अपने बयानों की वजह से, कई बार सरकारों के साथ उनका टकराव हुआ था |कई बारे पिछले सरकारों ने महेंद्र टिकैत को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस भेजी लेकिन पुलिस उनको गिरफ्तार नहीं कर सकी|
बाबा टिकैत क्या इनकी प्रेरणा - आप इससे उनके लोकप्रियता को समझ सकते है |बाबा टिकैत को जब भी याद किया जायेगा तो उनके 1988 में दिल्ली के बोट क्लब में हुए किसानों के प्रदर्शन को ज़रूर याद किया जायेगा |कुर्ता-धोती पहने किसानों की एक पूरी फ़ौज बोट क्लब पर जमा हो गई थी जिनका नेतृत्व कर रहे लोगों में बाबा टिकैत एक मुख्य चेहरा थे|ऐसे व्यक्ति के पुत्र होने पर आपको भी कई जिम्मेदारी खुद -बी खुद लेनी पड़ती है |उस जिम्मेदारी को राकेश टिकैत ने रखा है |मेरठ में पढ़ाई के बाद 1992 में दिल्ली पुलिस में तत्कालीन सब इंस्पेक्टर के रूप में कांस्टेबल के रूप में शामिल हुए| लेकिन 1993-1994 में लाल किले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस को छोड़ दिया और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य के रूप में विरोध में शामिल हो गये|
टिकैत अपने पिता की मृत्यु के बाद आधिकारिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में शामिल हो गए और बाद में प्रवक्ता बन गए।उनके एक भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष है |उनके दो भाई है जो शुगर मीलों में काम करते है |राकेश और नरेश की बाकि भाइयों से समाजिक पहचान ज्यादा है |दोनों ने सरकारी नौकरी पायी थी लेकिन दोनों ने सरकार की नौकरी छोड़ कर अपने पिता के विरासत को आगे ले जाने का निर्णय लिया है |
गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के आँशु -
जो शख़्स किसानों के आंदोलनों में शामिल होने की वजह से 43 बार जेल जा चुका है, उसे 44वीं बार जेल जाते देखना कोई हैरानी की बात नहीं थी| पर हमने इस परिस्थिति का सामना पहले नहीं किया था -ये कहना उनके परिवार का था |उस दिन टिकैत के गांव में कई घरों में लोगों ने खाना नहीं खाया है |उनके बारे में कहा जाता है कि बड़े भाई नरेश टिकैत इसलिए अध्यक्ष हैं, क्योंकि वो बड़े हैं, वरना संगठन के अधिकांश निर्णायक फ़ैसले राकेश ही लेते हैं|भारतीय किसान न्यूनतम समर्थनमूल्य(एमएसपी) के कानूनी आश्वासन और कृषि विधेयक को हटाने के समर्थन में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए| राकेश टिकैत  की राजनीति महत्वाकांक्षा-
राकेश टिकैत ने राजनीति से परहेज़ नहीं रखा| साल 2007 में पहली बार उन्होंने मुज़फ़्फ़रनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसे वो हार गये थे|उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, पर वहाँ भी उनकी बुरी हार हुई|राकेश को यह पता है कि उनकी दो ताक़त हैं| एक है किसानों का कैडर, और दूसरा है 'खाप' नामक सामाजिक संगठन जिसमें टिकैत परिवार की काफ़ी इज़्ज़त है|
अजित सिंह और राकेश टिकैत क्यों है प्रतिद्वंद्वीता   -
कुछ लोग मानते हैं कि अजित सिंह का परिवार टिकैत परिवार को बिरादरी में अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है वहीं ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के लोग चौधरी चरण सिंह के वारिस चौधरी अजित सिंह के 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता संजीव बालियान से हारने की एक वजह राकेश टिकैत को भी मानते हैं बताया जाता है कि राकेश टिकैत ने अजित सिंह के ख़िलाफ़ बालियान को चुनाव लड़ाया था, और गुरुवार को रोते हुए राकेश टिकैत ने इसकी पुष्टि भी की|बहरहाल, केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद राकेश टिकैत के ख़िलाफ़ कुछ गंभीर धाराओं के तहत मुक़दमे दर्ज किये हैं और दिल्ली पुलिस ने अपने नोटिस में उनसे सवाल किया है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों ना की जाये?हमारा उद्देश्य हमेशा रहा है की आप कुछ और जानकारिया दी जा सके |
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allgyan · 4 years
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राकेश टिकैत जीवट वाले किसान-
राकेश टिकैत वैसे कोई चर्चा के मोहताज़ नहीं है |इनकी कई पीढ़ी आंदोलन में शामिल रही है | लेकिन गाज़ीपुर बॉर्डर पर जो आंदोलन के समय वो भावुक हुए |उसने उनको और भी चर्चित बना दिया है | और ये देखकर कई किसानो का दिल कचोट गया |कई लोगों उनके बारे में ज्यादा -ज्यादा से जानने चाहते है |लोग ये भी सोचते है की एक आंदोलन जो समाप्ति उसको उनके आँशु ने पुनर्जीवित किया है |सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में वो दो महीने से ज्यादा दिन से किसान इस ठिठुरती ठण्ड में बैठे रहे है |और उन्होंने कई किसानो को यहाँ पर खो दिया है |आये जानते इतने जीवट वाले किसान के बारे में |
राकेश टिकैत की प्रारंभिक जीवन -
राकेश टिकैत हैं जिनका जन्म 4 जून 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के सिसौली गाँव में हुआ|ये टिकैत परिवार का पैतृक गाँव है|टिकैत ने मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है |इनके पिता महेंद्र टिकैत किसानो के बहुत बड़े नेता थे |उनके कई इतिहास है और उस समय की सरकार उनके एक आव्हान से काँप उठती थी |महेंद्र सिंह टिकैत एक सामान्य किसान थे जिनका जीवन अपने गाँव में ही गुज़रा और लेकिन किसान आंदोलनों की वजह से और अपने बयानों की वजह से, कई बार सरकारों के साथ उनका टकराव हुआ था |कई बारे पिछले सरकारों ने महेंद्र टिकैत को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस भेजी लेकिन पुलिस उनको गिरफ्तार नहीं कर सकी|
बाबा टिकैत क्या इनकी प्रेरणा - आप इससे उनके लोकप्रियता को समझ सकते है |बाबा टिकैत को जब भी याद किया जायेगा तो उनके 1988 में दिल्ली के बोट क्लब में हुए किसानों के प्रदर्शन को ज़रूर याद किया जायेगा |कुर्ता-धोती पहने किसानों की एक पूरी फ़ौज बोट क्लब पर जमा हो गई थी जिनका नेतृत्व कर रहे लोगों में बाबा टिकैत एक मुख्य चेहरा थे|ऐसे व्यक्ति के पुत्र होने पर आपको भी कई जिम्मेदारी खुद -बी खुद लेनी पड़ती है |उस जिम्मेदारी को राकेश टिकैत ने रखा है |मेरठ में पढ़ाई के बाद 1992 में दिल्ली पुलिस में तत्कालीन सब इंस्पेक्टर के रूप में कांस्टेबल के रूप में शामिल हुए| लेकिन 1993-1994 में लाल किले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस को छोड़ दिया और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य के रूप में विरोध में शामिल हो गये|
टिकैत अपने पिता की मृत्यु के बाद आधिकारिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में शामिल हो गए और बाद में प्रवक्ता बन गए।उनके एक भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष है |उनके दो भाई है जो शुगर मीलों में काम करते है |राकेश और नरेश की बाकि भाइयों से समाजिक पहचान ज्यादा है |दोनों ने सरकारी नौकरी पायी थी लेकिन दोनों ने सरकार की नौकरी छोड़ कर अपने पिता के विरासत को आगे ले जाने का निर्णय लिया है |
गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के आँशु -
जो शख़्स किसानों के आंदोलनों में शामिल होने की वजह से 43 बार जेल जा चुका है, उसे 44वीं बार जेल जाते देखना कोई हैरानी की बात नहीं थी| पर हमने इस परिस्थिति का सामना पहले नहीं किया था -ये कहना उनके परिवार का था |उस दिन टिकैत के गांव में कई घरों में लोगों ने खाना नहीं खाया है |उनके बारे में कहा जाता है कि बड़े भाई नरेश टिकैत इसलिए अध्यक्ष हैं, क्योंकि वो बड़े हैं, वरना संगठन के अधिकांश निर्णायक फ़ैसले राकेश ही लेते हैं|भारतीय किसान न्यूनतम समर्थनमूल्य(एमएसपी) के कानूनी आश्वासन और कृषि विधेयक को हटाने के समर्थन में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए| राकेश टिकैत  की राजनीति महत्वाकांक्षा-
राकेश टिकैत ने राजनीति से परहेज़ नहीं रखा| साल 2007 में पहली बार उन्होंने मुज़फ़्फ़रनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसे वो हार गये थे|उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिक��� पर चुनाव लड़ा, पर वहाँ भी उनकी बुरी हार हुई|राकेश को यह पता है कि उनकी दो ताक़त हैं| एक है किसानों का कैडर, और दूसरा है 'खाप' नामक सामाजिक संगठन जिसमें टिकैत परिवार की काफ़ी इज़्ज़त है|
अजित सिंह और राकेश टिकैत क्यों है प्रतिद्वंद्वीता   -
कुछ लोग मानते हैं कि अजित सिंह का परिवार टिकैत परिवार को बिरादरी में अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है वहीं ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के लोग चौधरी चरण सिंह के वारिस चौधरी अजित सिंह के 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता संजीव बालियान से हारने की एक वजह राकेश टिकैत को भी मानते हैं बताया जाता है कि राकेश टिकैत ने अजित सिंह के ख़िलाफ़ बालियान को चुनाव लड़ाया था, और गुरुवार को रोते हुए राकेश टिकैत ने इसकी पुष्टि भी की|बहरहाल, केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद राकेश टिकैत के ख़िलाफ़ कुछ गंभीर धाराओं के तहत मुक़दमे दर्ज किये हैं और दिल्ली पुलिस ने अपने नोटिस में उनसे सवाल किया है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों ना की जाये?हमारा उद्देश्य हमेशा रहा है की आप कुछ और जानकारिया दी जा सके |
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allgyan · 4 years
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राकेश टिकैत :एक इंस्पेक्टर से किसान नेता का सफर -
राकेश टिकैत जीवट वाले किसान-
राकेश टिकैत वैसे कोई चर्चा के मोहताज़ नहीं है |इनकी कई पीढ़ी आंदोलन में शामिल रही है | लेकिन गाज़ीपुर बॉर्डर पर जो आंदोलन के समय वो भावुक हुए |उसने उनको और भी चर्चित बना दिया है | और ये देखकर कई किसानो का दिल कचोट गया |कई लोगों उनके बारे में ज्यादा -ज्यादा से जानने चाहते है |लोग ये भी सोचते है की एक आंदोलन जो समाप्ति उसको उनके आँशु ने पुनर्जीवित किया है |सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में वो दो महीने से ज्यादा दिन से किसान इस ठिठुरती ठण्ड में बैठे रहे है |और उन्होंने कई किसानो को यहाँ पर खो दिया है |आये जानते इतने जीवट वाले किसान के बारे में |
राकेश टिकैत की प्रारंभिक जीवन -
राकेश टिकैत हैं जिनका जन्म 4 जून 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के सिसौली गाँव में हुआ|ये टिकैत परिवार का पैतृक गाँव है|टिकैत ने मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है |इनके पिता महेंद्र टिकैत किसानो के बहुत बड़े नेता थे |उनके कई इतिहास है और उस समय की सरकार उनके एक आव्हान से काँप उठती थी |महेंद्र सिंह टिकैत एक सामान्य किसान थे जिनका जीवन अपने गाँव में ही गुज़रा और लेकिन किसान आंदोलनों की वजह से और अपने बयानों की वजह से, कई बार सरकारों के साथ उनका टकराव हुआ था |कई बारे पिछले सरकारों ने महेंद्र टिकैत को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस भेजी लेकिन पुलिस उनको गिरफ्तार नहीं कर सकी|
बाबा टिकैत क्या इनकी प्रेरणा - आप इससे उनके लोकप्रियता को समझ सकते है |बाबा टिकैत को जब भी याद किया जायेगा तो उनके 1988 में दिल्ली के बोट क्लब में हुए किसानों के प्रदर्शन को ज़रूर याद किया जायेगा |कुर्ता-धोती पहने किसानों की एक पूरी फ़ौज बोट क्लब पर जमा हो गई थी जिनका नेतृत्व कर रहे लोगों में बाबा टिकैत एक मुख्य चेहरा थे|ऐसे व्यक्ति के पुत्र होने पर आपको भी कई जिम्मेदारी खुद -बी खुद लेनी पड़ती है |उस जिम्मेदारी को राकेश टिकैत ने रखा है |मेरठ में पढ़ाई के बाद 1992 में दिल्ली पुलिस में तत्कालीन सब इंस्पेक्टर के रूप में कांस्टेबल के रूप में शामिल हुए| लेकिन 1993-1994 में लाल किले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस को छोड़ दिया और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य के रूप में विरोध में शामिल हो गये|
टिकैत अपने पिता की मृत्यु के बाद आधिकारिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में शामिल हो गए और बाद में प्रवक्ता बन गए।उनके एक भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष है |उनके दो भाई है जो शुगर मीलों में काम करते है |राकेश और नरेश की बाकि भाइयों से समाजिक पहचान ज्यादा है |दोनों ने सरकारी नौकरी पायी थी लेकिन दोनों ने सरकार की नौकरी छोड़ कर अपने पिता के विरासत को आगे ले जाने का निर्णय लिया है |
गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के आँशु -
जो शख़्स किसानों के आंदोलनों में शामिल होने की वजह से 43 बार जेल जा चुका है, उसे 44वीं बार जेल जाते देखना कोई हैरानी की बात नहीं थी| पर हमने इस परिस्थिति का सामना पहले नहीं किया था -ये कहना उनके परिवार का था |उस दिन टिकैत के गांव में कई घरों में लोगों ने खाना नहीं खाया है |उनके बारे में कहा जाता है कि बड़े भाई नरेश टिकैत इसलिए अध्यक्ष हैं, क्योंकि वो बड़े हैं, वरना संगठन के अधिकांश निर्णायक फ़ैसले राकेश ही लेते हैं|भारतीय किसान न्यूनतम समर्थनमूल्य(एमएसपी) के कानूनी आश्वासन और कृषि विधेयक को हटाने के समर्थन में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए| राकेश टिकैत  की राजनीति महत्वाकांक्षा-
राकेश टिकैत ने राजनीति से परहेज़ नहीं रखा| साल 2007 में पहली बार उन्होंने मुज़फ़्फ़रनगर की ��ुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसे वो हार गये थे|उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, पर वहाँ भी उनकी बुरी हार हुई|राकेश को यह पता है कि उनकी दो ताक़त हैं| एक है किसानों का कैडर, और दूसरा है 'खाप' नामक सामाजिक संगठन जिसमें टिकैत परिवार की काफ़ी इज़्ज़त है|
अजित सिंह और राकेश टिकैत क्यों है प्रतिद्वंद्वीता   -
कुछ लोग मानते हैं कि अजित सिंह का परिवार टिकैत परिवार को बिरादरी में अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है वहीं ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के लोग चौधरी चरण सिंह के वारिस चौधरी अजित सिंह के 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता संजीव बालियान से हारने की एक वजह राकेश टिकैत को भी मानते हैं बताया जाता है कि राकेश टिकैत ने अजित सिंह के ख़िलाफ़ बालियान को चुनाव लड़ाया था, और गुरुवार को रोते हुए राकेश टिकैत ने इसकी पुष्टि भी की|बहरहाल, केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद राकेश टिकैत के ख़िलाफ़ कुछ गंभीर धाराओं के तहत मुक़दमे दर्ज किये हैं और दिल्ली पुलिस ने अपने नोटिस में उनसे सवाल किया है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों ना की जाये?हमारा उद्देश्य हमेशा रहा है की आप कुछ और जानकारिया दी जा सके |
पूरा जानने के लिए-http://bit.ly/3aeQi77
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