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livetimesnewschannel · 25 days ago
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10 Temples in India that Restrict Entry for Women
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Introduction
10 Temples in India Where Women Are Not Allowed: कहते हैं भगवान के घर में सब लोग बराबर हैं, लेकिन भारत में कई ऐसे मंदिर भी मौजूद हैं, जहां एंट्री को लेकर लिंग भेद किया जाता है. हालांकि, देश के संविधान में हर एक इंसान को मंदिरों में समान रूप से प्रवेश की इजाजत है. इसके बावजूद भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जहां पीरियड्स के दौरान महिला का मंदिर के अंदर प्रवेश वर्जित है. इसके अलावा कुछ मंदिरों में तो पीरियड्स के उम्र की महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने से रोक दिया जाता है. ऐसे में आज हम आपको देश के उन मंदिरों के बारे में बताएंगे, जहां औरतों का जाना बिल्कुल मना है. आपको बता दें कि केरल का फेमस सबरीमाला मंदिर भी इस लिस्ट में आता है, जहां महिला केवल बाहर से ही मंदिर के दर्शन कर सकती हैं, लेकिन गर्भगृह तक नहीं जा सकतीं. आइए जानते हैं भारत में ऐसे और कौन-कौन से मंदिर हैं.
Table of Content
पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल
जैन मंदिर, मध्य प्रदेश
कार्तिकेय मंदिर, पुष्कर
बाबा बालक नाथ मंदिर, हिमाचल प्रदेश
सबरीमाला मंदिर, केरल
माता मावली मंदिर, छत्तीसगढ़
शनि शिंगणापुर मंदिर, महाराष्ट्र
रणकपुर जैन मंदिर, राजस्थान
मंगल चांडी मंदिर, झारखंड
ध्रूम ऋषि मंदिर, उत्तर प्रदेश
पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल
केरल का श्री पद्मनाथ स्वामी श्री हरि विष्णु को समर्पित है. यह भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है जो केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम के पूर्वी किले के अंदर स्थित है. इस मंदिर को ‘दिव्य देसम’ भी कहा जाता है जो भगवान विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में से एक है. दिव्य देसम श्री हरि का सबसे पवित्र निवास स्थान है जिसका वर्णन तमिल संतों द्वारा लिखे गए पांडुलिपियों में मिलता है.
यहां देश के कोने-कोने से भक्तजन और श्रद्धालुजन दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु की प्रतिमा इसी स्थान पर सबसे पहले मिली थी. यहां महिलाएं श्री हरि विष्णु का पूजन तो करती हैं, मगर उन्हें मंदिर के गर्भगृह के अंदर जाने की मनाही है. इसके अलावा बाहर से भी महिलाओं को दर्शन करने के लिए ड्रेस कोड को फॉलो करना पड़ता है. हालांकि, यहां दर्शन के लिए पुरुषों के लिए ड्रेस कोड है.
इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावणकोर के प्रसिद्ध राजा मार्तंड वर्मा ने करवाया था. जानकारी के लिए बता दें कि केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम नाम भी श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रमुख देवता के नाम पर रखा गया है, जिन्हें अनंत भी कहते हैं. ‘तिरुवनंतपुरम’ का शाब्दिक अर्थ है – श्री अनंत पद्मनाभस्वामी की भूमि.
जैन मंदिर, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश का जैन मंदिर भी उस लिस्ट में शामिल है जहां महिलाओं को आसानी से प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती. खासतौर से जिन महिलाओं ने वेस्टर्न कपड़े पहने हों, वह मंदिर के अंदर नहीं जा सकती. यह मंदिर मध्य प्रदेश के गुना में स्थित है. इतना ही नहीं इस मंदिर में उन महिलाओं को भी एंट्री नहीं मिलती जिन्होंने मेकअप किया हो. जैन मंदिर भगवान शांतिनाथ को समर्पित है जो यहां के प्रमुख देवता हैं. इस मंदिर का मूल नाम श्री शांतिनाथ दि��ंबर जैन अतिशय क्षेत्र है. जैन मंदिर का निर्माण 1236 में हुआ था. लाल पत्थर से बनीं कई जैन तीर्थंकर की प्रतिमाएं मंदिर में मौजूद हैं.
कार्तिकेय मंदिर, पुष्कर
भगवान कार्तिकेय के ब्रह्मचारी रूप को समर्पित कार्तिकेय मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है. यहां भगवान के ब्रह्मचारी स्वरूप का पूजन किया जाता है. मान्यता के अनुसार, भगवान कार्तिकेय के ब्रह्मचारी होने की वजह से मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. अगर कोई महिला इस मंदिर में दर्शन करने आती है तो उसे श्राप मिलता है. यही वजह है कि औरतें इस मंदिर में जाने से खुद को बचाती हैं.
बाबा बालक नाथ मंदिर, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश का बाबा बालक नाथ मंदिर ‘देवसिद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर के मुख्य देवता सिद्ध बाबा बालक नाथ एक हिंदू देवता हैं. उनकी पूजा प्रमुख तौर पर पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में की जाती है. यह मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर और बिलासपुर जिलों की सीमा पर ‘हमीरपुर’ से दूर स्थित है. बाबा बालक नाथ मंदिर हमीरपुर जिले के चकमोह गांव में एक पहाड़ी की चोटी पर प्राकृतिक गुफा में स्थित हैं. इस गुफा में बाबा बालक नाथ की मूर्ति स्थापित है.
यह भी पढ़ें: आखिर क्यों है देशभर में ब्रह्माजी का सिर्फ एक ही मंदिर? जानिए इससे जुड़ी कथा
वैसे तो इस तीर्थस्थान पर पूरे साल कभी भी दर्शन करने के लिए जाया जा सकता है, लेकिन सनडे का दिन बाबा जी का पवित्र दिन माना जाता है. हालांकि कुछ समय पहले तक हमीरपुर में स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर में महिलाओं का एंट्री लेना मना था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज भी यहां महिलाएं बाबा की गुफा के बाहर से ही दर्शन कर सकती हैं.
सबरीमाला मंदिर, केरल
दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है सबरीमाला मंदिर. भगवान अयप्पा को समर्पित यह मंदिर केरल के पथानामथिट्टा जिले में पेरियार टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित है. पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान अयप्पा श्री हरि विष्णु और भगवान शिव के स्त्री अवतार मोहिनी द्वारा जन्म दिए गए पुत्र हैं. बता दें कि भगवान अयप्पा भगवान धर्म शास्त्र के अवतार माने गए हैं. यह मंदि�� एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो समुद्र तल से लगभग 3000 फीट ऊपर है. यह मंदिर कुछ खास मौसमों और दिनों के दौरान ही भक्तों के लिए खुला रहता है. इस मंदिर में जाने के लिए कई प्रतिबंध और अनुष्ठान का पालन करना पड़ता है.
दरअसल, मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 18 पवित्र सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जिन्हें थिनेट्टू त्रिपदीकल भी कहा जाता है. बता दें कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश करना वर्जित है. इस मंदिर में 10 वर्ष की बच्ची से लेकर 50 वर्ष तक की महिला एंट्री नहीं ले सकती. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी है. सबरीमाला मंदिर के कपाट साल में केवल दो बार खुलते हैं एक 14 जनवरी और दूसरा 15 नवंबर को.
माता मावली मंदिर, छत्तीसगढ़
माता मावली का मंदिर भारत में ही नहीं, बल्कि इसे विदेश में भी खूब जाना-पहचाना जाता है. यह मंदिर छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में भाटापारा के तहसील में एक गांव में स्थित है. माता मावली मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 75 किलोमीटर से दूर मौजूद है. ऐसा माना जाता है कि यहां माता मावली त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की इच्छा से प्रकट हुई थीं. बता दें कि यह मंदिर देश-विदेश में इतना फेमस होते हुए भी यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. आज भी सिर्फ पुरुष ही इस 400 साल पुराने मंदिर में दर्शन कर सकते हैं. मां आदि शक्ति के इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है.
शनि शिंगणापुर मंदिर, महाराष्ट्र
शनि शिंगणापुर मंदिर एक फेमस शनि मंदिर है. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित यह मंदिर श्री शनेश्‍वर देवस्‍थान की कथाओं और अनगिनत भक्तों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. इस मंदिर के अविश्‍वसनीय चमत्‍कारों के बारे में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है. महाराष्ट्र का जिला अहमदनगर संतों के निवास स्थान के तौर पर प्रसिद्ध है. अक्सर लोगों के मन में शनिदेव का खौफ देखा जाता है. आपको बता दें कि शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओ का प्रवेश करना वर्जित है, लेकिन वह मंदिर का बाहर से दर्शन कर सकती हैं. हालांकि, इस दकियानुसी परंपरा को महिलाओं द्वारा तोड़ने की भी कोशिश की गई जिसके लिए उन्होंने रैली भी निकाली थी. बावजूद इसके महिलाएं मंदिर में आज भी प्रवेश करने से वंचित हैं.
रणकपुर जैन मंदिर, राजस्थान
जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थस्‍थलों में से एक है रणकपुर जैन मंदिर. राजस्थान में स्थित यह मंदिर अपनी खूबसूरत नक्काशी के लिए मशहूर है. बता दें कि उदयपुर से 96 किलोमीटर की दूरी पर रणकपुर मंदिर मौजूद है. इस मदिर की इमारत बेहद विशाल और भव्य है जो लगभग 40,000 वर्ग फीट में फैली है. बता दें कि 15वीं शताब्‍दी में राणा कुंभा के शासनकाल में इ मंदिर का निर्माण हुआ था. जो करीब 50 साल तक बनकर तैयार हुआ. रणकपुर जैन मंदिर के निर्माण में लगभग 99 लाख रुपये खर्च हुए. इस तीर्थ स्थान का नाम राणा कुंभा के नाम पर ही रणकपुर रखा गया. यह मंदिर भारतीय स्‍थापत्‍य कला के एक शानदार नमूनों में से एक है. अगर आप जैन धर्म में आस्था रखते हैं और वास्‍तुशिल्‍प में दिलचस्‍पी रखते हैं तो यह जगह आपको खूब पसंद आएगी.
यह भी पढ़ें: बेहद खास है तमिलनाडु का तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर, जानिए इसकी विशेषताएं
इस मंदिर की दिलचस्प बात यह है कि यहां महिलाओं क��� प्रवेश पर प्रतिबंध है. हालांकि यहां महिलाओं की एंट्री पूरी तरह से तो वर्जित नहीं है, लेकिन मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के आने पर रोक है. इसके अलावा महिलाओं को वेस्टर्न कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.
मंगल चांडी मंदिर, झारखंड
मां मंगल चंडी मंदिर झारखंड के फेमस मंदिरों में से एक है. यह मंदिर झारखंड के बोकारो जिला मुख्यालय से दूर कसमार प्रखंड के कुसमाटांड़ गांव में स्थित है. बता दें कि इस मंदिर में बच्चियों और महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मां मंगल चंडी मंदिर में महिलाएं और बच्चियां किसी भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान के दौरान एंट्री नहीं ले सकती हैं. महिलाएं मंदिर से लगभग 150-200 मीटर की दूरी बैठकर ही पूजा कर सकती हैं. वहीं से बैठकर ही मां मंगल चांडी की पूजा और आराधना कर सकती हैं. मंदिर के पुजारी के अनुसार, पिछले करीब 100-150 सालों से महिलाओं के लिए मंदिर में प्रवेश लेना वर्जित है. इस परंपरा का आज भी यहां के लोग सख्ती से पालन कर रहे हैं.
ध्रूम ऋषि मंदिर, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश ध्रूम ऋषि मंदिर में भी कई दशकों से एक अनोखी परंपरा का पालन किया जा रहा है. यह मंदिर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित एक फेमस मंदिर है. इस मंदिर में भी महिलाओं की एंट्री पर भी बैन लगा हुआ है. यहां गांव के लोग कई दशकों से उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में कड़ाई से कर रहे हैं. अगर गलती से भी कोई महिला मंदिर में प्रवेश कर लेती हैं तो गांव को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. गांव से सभी पुरुष इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए जाते हैं, मगर कोई भी महिला आज तक मंदिर की चौखट को भी छू नहीं पाई है.
Conclusion
भले ही समाज में स्त्री और पुरुष को समान दर्जा दिया गया है, लेकिन व्यावहारिकता में ऐसा नहीं है. यह कार्यस्थल और नौकरियों के अलावा धार्मिक स्थलों पर भी नजर आता है. भले ही इस पर विवाद हो, लेकिन यह नैतिक रूप से गलत है. मंदिरों में महिलाओं को प्रवेश न करने देना एक तरह से अमानवीय कृत्य है.
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bikanerlive · 1 month ago
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*पांडुलिपियों और प्राचीन पुस्तकों की प्रदर्शनी सम्पन्न*
बीकानेर, 13 नवंबर। सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट के 80वें स्थापना दिवस के अवसर पर पांडुलिपियों और हस्तलिखित प्राचीन पुस्तकों की दो दिवसीय प्रदर्शनी बुधवार को सम्पन्न हुई। समापन समारोह के मुख्य अतिथि पुरातत्व एवं संग्रहालय के वृत्त अधीक्षक महेन्द्र निम्हल थे। अध्यक्षता वास्तुविद् केके शर्मा ने की। निम्हल ने कहा कि राजस्थानी में लिखित और अप्रकाशित साहित्य प्रचुर मात्रा में है। ऐसी सभी…
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hinduactivists · 2 years ago
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रामनाथ स्वामी मंदिर के एक कमरे में ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों का एक विशाल संग्राहलय मिला है। जिसमें लगभग 277 पांडुलिपियां और 25000 ताड़पत्र हैं। जो संस्कृत, तमिल और तेलुगु भाषा में है। जिनकी विशेषज्ञों द्वारा जांच की जा रही है।
#रामनाथस्वामी_मंदिर #रामनाथ_स्वामी_मंदिर #रामेश्वरम #तमिलनाडु
#RamnathSwamyTemple #Rameshwaram #RameshwaramTemple #Tamil #Tamilnadu #SanataniCulture
Ram Ram
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marketingstrategy1 · 2 years ago
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Varanasi:संपूर्णानंद विश्वविद्यालय पहुंचे सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति, दुर्लभ पांडुलिपियां देख हुए अभिभूत - Supreme Court Justice Ps Narsimha Visit Sampurnanand Sanskrit University See Rare Manuscripts
Varanasi:संपूर्णानंद विश्वविद्यालय पहुंचे सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति, दुर्लभ पांडुलिपियां देख हुए अभिभूत – Supreme Court Justice Ps Narsimha Visit Sampurnanand Sanskrit University See Rare Manuscripts
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा पहुंचे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय – फोटो : अमर उजाला ख़बर सुनें ख़बर सुनें सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा  संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन में रखी दुर्लभ पांडुलिपियां देखकर अभिभूत नजर आए। गुरुवार को उन्होंने सरस्वती भवन में रखी एक लाख से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियों को देखा। यहां स्वर्णपत्र आच्छादित, लाक्षपत्र पर कमवाचा,…
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ykpurohit · 2 years ago
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Dear sir ..
good morning
for this post reply i have this matter of fb post ..
it is in Hindi ..
मित्रों आज मुझे जैन मुनि जिनविजय एव पाण्डुलिपि सम्पदा की वर्तमान प्रासंगिकता पर आधारित सेमिनार में शामिल होने का आमंत्रण राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के वरिष्ठ अनुसन्धान अधिकारी डॉ.नितिन गोयल जी के द्वारा उनके व्हाट्सअप से मिला ! सेमिनार का आयोजन रखा गया था ��ीकानेर की होटल भवर निवास हवेली बीकानेर में ! भी विशेष था सो जाना स्वाभाविक था !
समय सुबह 10 बजे का समय था सो मैं समय से 15 मिनट पूर्व पहुंचा होटल भवर निवास जहा डॉ. नितिन गोयल जी अपनी पूरी टीम के साथ व्यस्त थे आयोजन की तैयारी में !
मुनि जिनविजय एव पाण्डुलिपि सम्पदा की वर्तमान प्रासंगिकता पर आधारित इस सेमिनार के मुख्या अतिथि रहे कला एवं संस्कृति मंत्री राजस्थान सरकार डॉ बुलाकीदास कल्ला , शासनश्री साध्वी श्री चांदकुमारी जी और वरिष्ठ अतिथि रही अध्यक्ष जिला उपभोगता प्रतिशोध आयोग सुश्री चंद्र कला जैन जी !
उद्धघाटन सत्र का सञ्चालन साहित्यकार रितु शर्मा जी ने किया !प्रथम सत्र में डॉ, नितिन गोयल जी ने मुनि जिनविजय एव पाण्डुलिपि सम्पदा की वर्तमान प्रासंगिकता पर आधारित सेमिनार के विषय को परिवर्त किया ! साथ ही राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के रचनात्मक कार्य की जानकारी मंच से दी , उन्होंने ऐतिहासिक पांडुलिपियों को डिजिटलाइजेशन करने और राजस्थान और राजस्थान से बहार भी उपलब्ध और निजी पांडुलिपियों को भी संकलन में लेने की बात बताई !
उनके बाद डॉ. बी.डी कल्ला जी ने भी राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान को पुन्ह सुचारु होने और डॉ. नितिन गोयल जी के कार्य की तारीफ़ करते हुए राजस्थान सरकार की और से हर संभव सहयोग की बात कही ! साथ ही उन्होंने पाण्डुलिपि और उनमे उल्लेखित ॐ शब्द की पुनः सर्व धर्म में शोध की बात को मंच से प्रकाशित किया जो बहुत ही महताऊ बात थी पांडुलिपियों के शोधार्थियों के लिए !
साध्वी श्री चांद कुमारी जी ने भी पाण्डुलिपि का डिजिटलाइजेशन की बात की महत्ता को समझा साथ ही उन्होंने कहा की हस्त लिखित पाण्डुलिपि तैयार करने की प्रथा अब कम हो रही है! ये एक चिंता का विषय है सो चिंता की आग को त्याग कर चिंतन का चिराग जलाने की आवश्यकता और जरूररत है ! उस सत्र में मुनि जिनविजय जी के परिवार के सदस्यो को भी रूबरू देखने का अवसर मिला जिसके लिए आये हुए सभी आगुन्तकों ने उनका आभार व्यक्त किया प्रथम सत्र में !
प्रथम सत्र और द्वितीय सत्र में मुनि जिनविजय एव पाण्डुलिपि सम्पदा की वर्तमान प्रासंगिकता पर आधारित सेमिनार में पत्रवाचन हुए ! इन सत्र में डॉ टी के जैन , डॉ. गिरजाशंकर जी और डॉ.महेंद्र जैन प्रथम व् द्वितीय सत्र प्रभारी रहे और आठ से दस शोधार्थियों ने अपने पत्र पाण्डुलिपि और मुनि जिनविजय जी के जीवन के सन्दर्भ में तथ्यात्मकता साथ पढ़े , समय के सीमा के तहत सब ने अपने पर्चे तय समय में पढ़े और मंच की गर्मीमा का खयाल रखा ! इन पर्चो से कई जानकारियाँ सामने आयी जैसे की मुनि जिनविजय जी पदमश्री से सम्मानित थे ! वे मुंबई में शोधार्थियों के गाइड बने जब��ि वे खुद डॉक्टर नहीं थे ! उनके राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान का सुभारम्भ भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने किया था ! मुनि जिनविजय जी ने अपने जीवन में 4000 पांडुलिपियों का प्रकाशन करवाया ! आप ने गुजरती भाषा की पांडुलिपियों का संकलन किया और उसे कहा पुराणी राजस्थानी ! आप को स्वयं महात्मा गांधी जी ने संस्कृति और साहित्य की शिक्षा भारतीय तत्वों के साथ वाली शिक्षण प्रणाली लाने का दिशा निर्देश दिया जिसपर आप ने अति ऊर्जा से कार्य किया और गुजरात में जैन मंदिर से ये कार्य आरम्भ किया !
इन सत्र में इस राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में अमेरिका और जापान के साथ उदयपुर से भी पाण्डुलिपि शोधकर्ता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़े और उन्होंने पुरे सत्र को अचंभित किया जब अमेरिका ��ी शोधकर्ता ने हिंदी में अपने शोधपत्र को स्क्रीन से सबके समक्ष रखा! तो जापान के शोधार्थी ने तो लिपि को उच्चारित कर के सब के सामने पढ़ा पाण्डुलिपि के उस सेमीनार की ये अद्धभुत बात थी उस सत्र की ! ये सेमिनार साथ की साथ ऑनलाइन पर लाइव भी देखा जारहा था पाण्डुलिपि के विषय में रूचि रखने वाले शोधार्थियों और दर्शकों द्वारा वो भी पूरी दुनिया भर के ! ये बात ही अपने आप में सेमीनार के सार्थक होने का एक पुख्ता प्रमाण रहा ! साहित्कार गिरधर दान रतनु साहित्यकार शंकर सिंह राजपुरोहित बालोतरा से पधारी साध्वी जी ने भी अपने पत्र को नए आयाम और शोध के विषय के साथ रखा !
तीसरे और अंतिम सत्र में अध्यक्ष रहे चितौड़ से पधारे वरिष्ठ शोधार्थी और मुनि जिनविजय जी के अति निकटतम व्यक्तित्व श्री सत्यनारायण समदानी जी ! जिन्होंने मंच से मानो पूरी जीवनी मुनि जिनविजय जी के बचपन से अंतिम छण तक की एक एक घटना और विशेष उपक्रम की व्याख्या के साथ मंच से रखी ! जिन्हे मुनि जिनविजय जी ने जिया या भोगा ! उनके साथ मंच पर उपस्थित थे डॉ. नितिन गोयल जी और राजस्थान संस्कृत भाषा अकादमी जयपुर के सदस्य ! इन तीन सत्रों के तहत मुनि जिनविजय जी द्वारा किये गए पाण्डुलिपि , संकलन लेखन और उसके प्रकाशन के विषय पर आधारित सेमिनार में कब सुबह के 10 बजे से सायं के 6 :45 बज गए पता ही नहीं चला ! मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मै किसी टाइम मशीन के जरिये किसी अन्य लोक या स्थान पर चला गया हु ! जहाँ सिर्फ और सिर्फ पाण्डुलिपि और उससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों और उन तथ्यों साथ स्वयं मुनि जिनविजय जी साक्षात् मेरे समक्ष उपस्थित है और ये सब अनुभूत करवाराहा था ये सेमिनार! जिसे आयोजित किया डॉ. नितिन गोयल जी ने अपने अथक प्रयासों से राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की और से !मैं अति लाभा��्वित हुआ हु उस गरिमामय पाण्डुलिपि के इतिहास और उस इतिहास को रचने वाले व्यक्तित्व जी के बारे में जानकार सो हृदय से साधुवाद डॉ. नितिन गोयल जी को ! उनके आग्रह ने मुझे संत संगत का लाभ दिलवाया और विशेष आभारी हूँ चितौड़ से पधारे हुए वरिष्ठ शोधार्थी श्री सत्यनारायण समदानी जी का जिन्होंने एक मुनि के पुरे जीवन को समय के कुछ पलों में ही पूरी एक पुस्तक की तरह खोल के रख दिया ! यहाँ कुछ फोटो उस ऐतिहासिक सेमिनार के आप के अवलोकन हेतु मेरे कैमरा की नजर से !
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you have a great day sir ..
warm regards
Yogendra kumar purohit
Master of Fine arts
Bikaner,India
DAY 5511
Jalsa, Mumbai               Mar 19/20,  2023              Sun/Mon  7:43 AM
Birthday Ef 
🪔 .. March 20 .. on happiness day .. all the happiness to Ef Jasmine Jaywant from USA .. and Ef Milan from Gujarat .. on their birthday .. love and happiness to you today and everyday in every way .. ❤️❤️🌿
It has been proven that the Ef listens to me .. one request and the entire Ef World came alive .. I am astounded and I am filled with such emotion it is difficult to describe .. my gratitude and love for this gift of the connection and my endless respect for the Ef .. you have proved that you are truly the family we all set up and continue to honour and respect and add to ..
Work be the essence of routine .. and routine be the effervescence of living life .. in the absence of either the world crumbles and falls apart .. routine guides the day to its efficiency and the absence of which disturbs .. 
So .. I must rid myself of disturbance .. get back to work and bring back routine .. and that shall hopefully , with all your prayers , occur in its rapidity .. 
Artists flourish in the realms of beautiful petals of colourful flowers .. in the sublime strains of soulful music .. in the atmosphere and surroundings of peace harmony and love .. 
And when they get this they prosper with great achievement ..
BUT ..
When they get the opposite , it triggers the determined angst to disprove , to throw back the garbage that came your way , and rise above it all , chest out, a brave smile adorning the face .. 
Many have  .. and many shall be subjected to this , and shall endeavour to come face to face with it and live up to the expectations that they deserve .. 
They that be victorious .. be in humbled silence .. they that be victorious in abstract circumstances  .. be in silence too, for the noise from the achievement shall drown all else ..
Live in example .. live in spirit .. live in bestowed blessings .. no other living be absolute .. 
Give and see .. give and receive .. give and be given .. but .. give  .. !!
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Divinity always has perched itself on peaks of the extreme .. not without reason .. to achieve nirvaan, the extreme to be conquered  ..
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Amitabh Bachchan
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currentnewsss · 3 years ago
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राकेश सिन्हा: 'हमें भारतीय पांडुलिपियों को वापस लाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है'
राकेश सिन्हा: ‘हमें भारतीय पांडुलिपियों को वापस लाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है’
बी जे पी राज्यसभा में सदस्य राकेश सिन्हा ने विदेशी विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों में पड़ी भारतीय पांडुलिपियों को देश में वापस लाने की आवश्यकता को उठाया। उसने बात की इंडियन एक्सप्रेस: आज आपने क्या मुद्दा उठाया? 2003 में, वाजपेयी शासन के तहत देश में पांडुलिपियों की भीड़ का पता लगाने और संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) की स्थापना की गई थी। इसके बावजूद, न केवल देश भर में,…
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polkajaadu · 3 years ago
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मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थी। दूसरे शब्दों में, इसे हाथों के द्वारा लिखी हुई पुस्तक भी कहते हैं। जब भारत देश पर मुगलों का शासन था तो उस समय चीन की तरह मुद्रण (छपाई) आरंभ नहीं हुई थी, इसलिए पुस्तकें हाथों से ही लिखी जाती थी।  हाथों द्वारा पुस्तकें लिखना बहुत ही कठिन कार्य होता था।
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allgyan · 4 years ago
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मेकअप करना कब से शुरू हुआ ?
मेकअप और  श्रृंगार-
मेकअप  या श्रृंगार करना इस समय बहुत प्रचलित है और अब तो ज़माना ये आ गया है की पुरुष और महिलाये भी इस क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चलते है। हर तरह का श्रृंगार करते है पुरुष हो या महिलाये। और इस क्षेत्र बड़ी -बड़ी कंपनी आ गयी है और उसका विज्ञापन भी फ़िल्मी हस्तियां करती है और करोड़ -अरबों रूपए इस क्षेत्र में लगा रखे है हेल्थ इंडस्ट्री के बाद ये सबसे बड़ी इंडस्ट्री बनके उभरी है। लेकिन क्या आपको पता है की आखिर ये मेकअप कब शुरू हुआ या कहे इसका इतिहास क्या है। इसको सबसे पहले किसने शुरू किया या किस देश या किस सहर में ये शुरू हुआ और इसकी जरुरत ही क्यों आन पड़ी।
शरीर और चेहरे पर मेक-अप और वनस्पति के रंगों के प्रयोग का साक्ष्य विभिन्न पांडुलिपियों और इतिहास पुस्तकों में दर्ज हैं। नव पाषाण युग में भी पुरूष और महिलाएं अपने शरीर को सजाने के लिए काया लेप और रंगों का प्रयोग करती थीं। उन दिनों मेक-अप का इस्तेमाल मौसम के अनुकूल त्वचा की रक्षा करने के लिए एक छद्मावरण उत्पाद के रूप में किया जाता था। मेक-अप का इस्तेमाल श्रृंगार, जनजातीय पहचान, सामाजिक स्तर और युद्ध व धार्मिक गतिविधियों की तैयारी के रूप में भी किया जाता था। क्लेयोपेट्रा के मेक-अप ने मिस्र की उत्तेजक आंखों को मशहूर कर दिया था।
मेकअप का सबसे पहले प्रयोग -
सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग का पहला पुरातात्विक सबूत प्राचीन इजिप्ट(मिस्र) में लगभग चार हजार ईसा पूर्व मिलता है। प्राचीन समय में ग्रीस और रोम में भी सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग होता था। प्राचीन मिस्रवासियों ने आँखों की बाहरी सजावट के लिए एक विधि ईजाद की थी जिसे सीसा, ताँबा और जले हुए बादाम व अन्य पदार्��ों को मिलाकर तैयार किया जाता था।इसे कोल कहा जाता था।इसके बारे में मान्यता थी कि इसे लगाने से बुरी आत्मा का प्रकोप नहीं होता है और यह नजरों को तेज करता है।इसलिए इसका प्रयोग इजिप्ट में गरीब लोग भी करते थे। मिस्र की महारानी क्लियोपेट्रा के अप्रतिम सौंदर्य का राज उनके लिए विशेष प्रकार से तैयार की गई मेकअप सामग्री थी।
क्लियोपेट्रा की लिपस्टिक को एक विशेष प्रकार के लाल कीड़े से बनाया जाता था जो गहरे लाल रंग का होता था। इसमें चीटियों के अंडे भी मिलाए जाते थे।यहाँ सौंदर्य प्रसाधनों के प्रयोग का पहला पुरातात्विक सबूत 1931 में प्राप्त हुआ।सिंध प्रांत के चंहुदड़ो में सिंधुवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली लिपस्टिक मिली।एक उत्खनन कार्य ने एकाएक भारत के इतिहास को अधिक गौरवशाली बना दिया कि 2500 से 1750 ईसा पूर्व मानी जानी वाली यह भारतीय सभ्यता किसी भी मायने में मिस्र और रोम की सभ्यता से पीछे नहीं थी।
आधुनिक मेकअप को जन्म देने का श्रेय मैक्स फैक्टर को है।इनका जन्म पोलैंड के लॉड्ज में 1877 में हुआ। उनके व्यवसाय की शुरुआत 1902 में अमेरिका में हुई जब वे सेंट लुईस में हुए वर्ल्ड फेयर में परिवार सहित शामिल हुए। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शुरुआत में उन्होंने बालों से संबंधित वस्तुएँ और त्वचा को चिकनाई देने वाली वस्तुएँ सेंट लुइस के स्थानीय रंगमंच कलाकारों को बेचना शुरू की। इस प्रकार उनकी शुरुआती छवि स्थापित हुई।
मेक अप में समय के साथ बदलाव -
एलिजाबेथ अर्डेन ने वर्ष 1910 में अपना पहला सैलून शुरू किया था और प्रसिद्ध काॅस्मेटिक श्रृंखला की प्रमुख बनी। 1 - यद्यपि मेक-अप का प्रयोग धीरे-धीरे प्रचलित हो रहा था किंतु अभी भी प्राकृतिक सुन्दरता का प्रचलन था। 2 - नेल पॉलिश का सृजन किया गया। यार्डले और हेलेना रूबेनस्टिन जैसी कंपनियां उभरीं। 3 - सन् 1930 में महिलाओं के चेहरे पर भारी मेक -अप हुआ करता था। सन् 1920 के अंत में पहली बार सुरक्षित संघटकों का उपयोग करते हुए मेक -अप तैयार किया गया। 4 - सन् 1923 में आईलेश कर्लर का आविष्कार हुआ। 5 - सन् 1910 में केवल वेश्याओं द्वारा ही मेक-अप का इस्तेमाल किया जाता था, किंतु सन् 1920 और 1930 की शुरूआत में अन्य महिलाओं ने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।
सन् 1930 -
1 - मैक्सफैक्टर ने 1936 में सौंदर्य प्रसाधन के सैलून की शुरूआत की। मैक्सफैक्टर ने पहली बार वाटर प्रफू केक फाउंडेशन व पैन-केक विकसित किया। 2 -चमकी��े और गहरे रंगों की नेल पॉलिश का इस्तेमाल किया गया। 3 - इस समय सूर्य स्नान का प्रचलन था और जो प्राकृतिक त्वचा के रंग को अधिक रिफ्लेक्ट करता था। 4 - प्लास्टिक सर्जरी की शुरूआत हुई।
सन् 1940
सन् 1940 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नियंत्रित वितरण करने के लिए मेक-अप का उपयोग कम किया गया। इस दौरान केवल लाल लिप्सटिक ही सरलता से उपलब्ध थी।इसके परिणामस्वरूप लाल लिप्सटिक 1940 का प्रतीक बन गयी।
सन् १९५०
1. सन् 1950 के अंत तक ‘गुआनिन‘ युक्त कई नए मेक-अप की वस्तुएं आ गयीं जो पाउडर और पेंट में झिलमिल चमक देती थीं। 2. पेन-केक मेक-अप प्रसिद्ध हुआ और 1953 में 10 मिलियन से अधिक ��ेक-अप के सामानों की बिक्री हुई।
सन् 1960 -
1 - सन् 1960 के दौरान कई रूप आये और चली गयीं। 60 के दशक की शुरूआत में म्लान आकृति का प्रचलन था, किंतु दस वर्ष की अवधि के दौरान इस मेक-अप के आगमन से उस मेक-अप का प्रचलन समाप्त हो गया। 2 -मिनी स्कर्ट के उभरने से टांगों के मेक-अप की लोकप्रियता बढ़ी। 3 - इस दशक के अंत में चेहरे और शरीर पर पेंटिंग लोकप्रिय हुई।
सन् 1970 -
1 - डिस्को का प्रचलन हुआ और इसके परिणामस्वरूप चमकीले और इंद्रधनुषी रंगों की लोकप्रियता बढ़ी । 2 -अराजक युवा को दर्शाता एक उग्र व्यक्ति जिसके बाल का रंग फ्लोरोसेंट और उसमें पिन जड़ा हो तथा वेधित चेहरा एवं युद्ध में भाग लेने वाले सैनिक की तरह पेंट वाले स्टाइल के साथ मेक-अप का प्रचलन शुरू हुआ ।
सन् 1980 -
1 - 1980 के मध्य तक विषम आकृति का प्रचलन था। पलकों पर विभिन्न रंग लगाए जाते थे। 2 - भौहों को आकार देना बंद कर दिया गया और इसे स्वाभाविक रूप में रखा जाता था।
सन् 1990 और वर्तमान-
1 -कुल मिलाकर एक प्राकृतिक त्वचा रंग जिसमें एक बेहतर प्राकृतिक परिसज्जा थी, फैशन में था। होठों पर लाल रंग लगाया जाता था। मैट इसकी कुंजी थी। 2 - 1990 के अंत के दौरान चमकदार, भड़कीले और चमकीली मेकअप की व्यापक वापसी हुई। 3 - प्लास्टिक सर्जरी तकनीक में सुधार होता रहा और समाज अब पूर्णरूपेण मेकअप चाहता था। 4 -1990 के अंत में मेंहदी के टेटू और बिंदी फैशन का अंग बन गया।
हम हमेशा इन मेक अप के प्रोडक्ट को कॉस्मेटिक प्रोडक्ट कहते है क्या आपको पता है की आखिर ये नाम ही क्यों दिया गया है इसको क्योकियहाँ पर सौंदर्य प्रसाधनों का आविष्कार विशेष रूप से दासियों के लिए किया गया। इन दासियों को यहाँ पर "कासमेट" कहकर बुलाया जाता था।क्योकि रोम में सौंदर्य प्रसाधनों का आविष्कार विशेष रूप से दासियों के लिए किया गया। इन दासियों को यहाँ पर "कासमेट" कहकर बुलाया जाता था।इसलिए इसका नाम कॉस्मेटिक पड़ा है। हमारा हमेशा ये उद्देश्य रहता है की आपको कुछ रोचक जानकारी ले��र आये। हमारे आर्टिकल अगर आपको पसंद आ रहे है तो हमे समर्थन दे।
पूरा जानने के लिए-https://bit.ly/3fah193
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countryinsidenews · 2 years ago
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पटना /साहित्य में अनुशीलन के आदर्श थे आचार्य धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री जयंती पर श्रद्धा से स्मरण किए गए सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह और शिवनन्दन सहाय
पटना /साहित्य में अनुशीलन के आदर्श थे आचार्य धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री जयंती पर श्रद्धा से स्मरण किए गए सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह और शिवनन्दन सहाय
पटना, २८ सितम्बर। संत साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य थे ��ा धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री। वे साहित्य में शोध और अनुशीलन के आदर्श-पुरुष थे। उनका संपूर्ण जीवन तपश्चर्या का पर्याय था। प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों पर किए गए उनके कार्य, साहित्य-संसार की धरोहर हैं।यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने…
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aajkitaazakhabar2022 · 3 years ago
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नालंदा, विक्रमशिला से बौद्ध पांडुलिपियों के लिए बिहार की योजना
नालंदा, विक्रमशिला से बौद्ध पांडुलिपियों के लिए बिहार की योजना
सैकड़ों मूल बौद्ध पांडुलिपियों के अनुवाद और प्रकाशन की प्रक्रिया चल रही है। (एड्स: तकनीकी त्रुटि के कारण सीएएल 1 को नए सिरे से दोहराना) पटना: नालंदा और विक्रमशिला से सैकड़ों मूल बौद्ध पांडुलिपियों का अनुवाद और प्रकाशित करने के लिए एक प्रक्रिया चल रही है, जिसे बख्तियार खिलजी की सेना द्वारा 12 वीं और 13 वीं शताब्दी में प्राचीन विश्वविद्यालयों को जलाने के दौरान सहेजा गया था और बाद में यात्री,…
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bikanerlive · 1 month ago
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*सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट का 80वाँ स्थापना दिवस* *प्राचीन ग्रंथों और पांडुलिपियों की प्रदर्शनी मंगलवार से, विधायक व्यास करेंगे उद्घाटन*
बीकानेर, 11 नवम्बर। सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट बीकानेर के 80वें स्थापना दिवस के अवसर पर दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। के तहत 12 नवंबर को इंस्टीट्यूट सचिव कवि-कथाकार राजेंद्र जोशी ने बताया कि इसकी शुरुआत मंगलवार को प्राचीन राजस्थानी ग्रंथों एवं पांडुलिपियों की दो दिवसीय प्रदर्शनी से होगी। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन बीकानेर पश्चिम विधायक श्री जेठानंद व्यास दोपहर 1 बजे करेंगे। जोशी ने…
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bundelijhalak · 3 years ago
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Bundelkhand ke Patra- Pandulipi बुन्देलखंड की पत्र-पांडुलिपियाँ
Bundelkhand ke Patra- Pandulipi बुन्देलखंड की पत्र-पांडुलिपियाँ इतिहास पिछली घटनाओं का विवरण है इतिहास का निर्माण करने वाली घटनाओं का संबंध व्यक्तियों, कालखंडों तथा स्थानों से रहता है। बुंदेलखंड की पर्व-रियासतों में सर्वेक्षण के अतंर्गत् उपलब्ध Bundelkhand ke Patra- Pandulipi और उन पत्र-पांडुलिपियों में जहाँ-जहाँ इतिहास से संबंधित सूचनायें हैं, वे महत्वपूर्ण हैं। इतिहास को प्रमाणित करती…
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udaipurviews · 3 years ago
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राजस्थान साहित्य अकादमी की विभिन्न योजनाओं में 19 लाख रुपये का सहयोग स्वीकृत
राजस्थान साहित्य अकादमी की विभिन्न योजनाओं में 19 लाख रुपये का सहयोग स्वीकृत
उदयपुर, 29 दिसंबर। राजस्थान साहित्य अकादमी की विभिन्न योजनान्तर्गत 19 लाख रुपये के सहयोग दिए जाने की घोषणा की गई। अकादमी ��्रशासक महोदय की स्वीकृतिनुसार अकादमी सचिव डॉ. बसंत सिंह सोलंकी ने बताया कि ‘पांडुलिपि प्रकाशन सहयोग’ योजना अन्तर्गत कुल 85 पांडुलिपियों पर लेखकों को 13.45 लाख रु. का आर्थिक सहयोग स्वीकृत किया गया है। यह जानकारी देते हुए ‘नीड़ से बिछडे़ परिंदे (काव्य), यशपाल शर्मा यशस्वी, त्रय…
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lok-shakti · 3 years ago
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राकेश सिन्हा: 'हमें भारतीय पांडुलिपियों को वापस लाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है'
राकेश सिन्हा: ‘हमें भारतीय पांडुलिपियों को वापस लाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है’
राज्यसभा में भाजपा सदस्य राकेश सिन्हा ने विदेशी विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों में पड़ी भारतीय पांडुलिपियों को देश में वापस लाने की आवश्यकता को उठाया। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बात की: आज आपने क्या मुद्दा उठाया? 2003 में, देश में पांडुलिपियों की भीड़ का पता लगाने और संरक्षित करने के लिए वाजपेयी शासन के तहत राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) की स्थापना की गई थी। इसके बावजूद, न केवल देश भर में,…
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cfor36garh · 3 years ago
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यह राजनांदगाँव का त्रिवेणी परिसर है। छत्तीसगढ़ की साहित्यिक धरोहर, विशेष कर मुक्तिबोध जी, डॉ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी तथा डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के महत्त्व को रेखांकित करने का शानदार कार्य राजनांदगाँव ज़िला प्रशासन द्वारा किया गया है। इन साहित्यिक मनीषियों की कृतियों पांडुलिपियों एवं अन्य वस्तुओं को संरक्षित करने हेतु यह सराहनीय कार्य है। . . Exploring with: Jinendra Parakh . . #cfor36garh #hamarrajnandgaon #rajnandgaon #rajnandgaoncity #triveniparisar #literature #development #instachhattisgarh #chhattisgarhdiaries #chhattisgarhiya #dongargarh #instaphotography #instatravel #instapic #photooftheday #chhattisgarh #36garh (at Rajnandgaon, Chattishgarh) https://www.instagram.com/p/CWz0_TELOX5/?utm_medium=tumblr
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allgyan · 4 years ago
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मेकअप और  श्रृंगार-
मेकअप  या श्रृंगार करना इस समय बहुत प्रचलित है और अब तो ज़माना ये आ गया है की पुरुष और महिलाये भी इस क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चलते है। हर तरह का श्रृंगार करते है पुरुष हो या महिलाये। और इस क्षेत्र बड़ी -बड़ी कंपनी आ गयी है और उसका विज्ञापन भी फ़िल्मी हस्तियां करती है और करोड़ -अरबों रूपए इस क्षेत्र में लगा रखे है हेल्थ इंडस्ट्री के बाद ये सबसे बड़ी इंडस्ट्री बनके उभरी है। लेकिन क्या आपको पता है की आखिर ये मेकअप कब शुरू हुआ या कहे इसका इतिहास क्या है। इसको सबसे पहले किसने शुरू किया या किस देश या किस सहर में ये शुरू हुआ और इसकी जरुरत ही क्यों आन पड़ी।
शरीर और चेहरे पर मेक-अप और वनस्पति के रंगों के प्रयोग का साक्ष्य विभिन्न पांडुलिपियों और इतिहास पुस्तकों में दर्ज हैं। नव पाषाण युग में भी पुरूष और महिलाएं अपने शरीर को सजाने के लिए काया लेप और रंगों का प्रयोग करती थीं। उन दिनों मेक-अप का इस्तेमाल मौसम के अनुकूल त्वचा की रक्षा करने के लिए एक छद्मावरण उत्पाद के रूप में किया जाता था। मेक-अप का इस्तेमाल श्रृंगार, जनजातीय पहचान, सामाजिक स्तर और युद्ध व धार्मिक गतिविधियों की तैयारी के रूप में भी किया जाता था। क्लेयोपेट्रा के मेक-अप ने मिस्र की उत्तेजक आंखों को मशहूर कर दिया था।
मेकअप का सबसे पहले प्रयोग -
सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग का पहला पुरातात्विक सबूत प्राचीन इजिप्ट(मिस्र) में लगभग चार हजार ईसा पूर्व मिलता है। प्राचीन समय में ग्रीस और रोम में भी सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग होता था। प्राचीन मिस्रवासियों ने आँखों की बाहरी सजावट के लिए एक विधि ईजाद की थी जिसे सीसा, ताँबा और जले हुए बादाम व अन्य पदार्थों को मिलाकर तैयार किया जाता था।इसे कोल कहा जाता था।इसके बारे में मान्यता थी कि इसे लगाने से बुरी आत्मा का प्रकोप नहीं होता है और यह नजरों को तेज करता है।इसलिए इसका प्रयोग इजिप्ट में गरीब लोग भी करते थे। मिस्र की महारानी क्लियोपेट्रा के अप्रतिम सौंदर्य का राज उनके लिए विशेष प्रकार से तैयार की गई मेकअप सामग्री थी।
क्लियोपेट्रा की लिपस्टिक को एक विशेष प्रकार के लाल कीड़े से बनाया जाता था जो गहरे लाल रंग का होता था। इसमें चीटियों के अं���े भी मिलाए जाते थे।यहाँ सौंदर्य प्रसाधनों के प्रयोग का पहला पुरातात्विक सबूत 1931 में प्राप्त हुआ।सिंध प्रांत के चंहुदड़ो में सिंधुवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली लिपस्टिक मिली।एक उत्खनन कार्य ने एकाएक भारत के इतिहास को अधिक गौरवशाली बना दिया कि 2500 से 1750 ईसा पूर्व मानी जानी वाली यह भारतीय सभ्यता किसी भी मायने में मिस्र और रोम की सभ्यता से पीछे नहीं थी।
आधुनिक मेकअप को जन्म देने का श्रेय मैक्स फैक्टर को है।इनका जन्म पोलैंड के लॉड्ज में 1877 में हुआ। उनके व्यवसाय की शुरुआत 1902 में अमेरिका में हुई जब वे सेंट लुईस में हुए वर्ल्ड फेयर में परिवार सहित शामिल हुए। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शुरुआत में उन्होंने बालों से संबंधित वस्तुएँ और त्वचा को चिकनाई देने वाली वस्तुएँ सेंट लुइस के स्थानीय रंगमंच कलाकारों को बेचना शुरू की। इस प्रकार उनकी शुरुआती छवि स्थापित हुई।
मेक अप में समय के साथ बदलाव -
एलिजाबेथ अर्डेन ने वर्ष 1910 में अपना पहला सैलून शुरू किया था और प्रसिद्ध काॅस्मेटिक श्रृंखला की प्रमुख बनी। 1 - यद्यपि मेक-अप का प्रयोग धीरे-धीरे प्रचलित हो रहा था किंतु अभी भी प्राकृतिक सुन्दरता का प्रचलन था। 2 - नेल पॉलिश का सृजन किया गया। यार्डले और हेलेना रूबेनस्टिन जैसी कंपनियां उभरीं। 3 - सन् 1930 में महिलाओं के चेहरे पर भारी मेक -अप हुआ करता था। सन् 1920 के अंत में पहली बार सुरक्षित संघटकों का उपयोग करते हुए मेक -अप तैयार किया गया। 4 - सन् 1923 में आईलेश कर्लर का आविष्कार हुआ। 5 - सन् 1910 में केवल वेश्याओं द्वारा ही मेक-अप का इस्तेमाल किया जाता था, किंतु सन् 1920 और 1930 की शुरूआत में अन्य महिलाओं ने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।
सन् 1930 -
1 - मैक्सफैक्टर ने 1936 में सौंदर्य प्रसाधन के सैलून की शुरूआत की। मैक्सफैक्टर ने पहली बार वाटर प्रफू केक फाउंडेशन व पैन-केक विकसित किया। 2 -चमकीले और गहरे रंगों की नेल पॉलिश का इस्तेमाल किया गया। 3 - इस समय सूर्य स्नान का प्रचलन था और जो प्राकृतिक त्वचा के रंग को अधिक रिफ्लेक्ट करता था। 4 - प्लास्टिक सर्जरी की शुरूआत हुई।
सन् 1940
सन् 1940 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नियंत्रित वितरण करने के लिए मेक-अप का उपयोग कम किया गया। इस दौरान केवल लाल लिप्सटिक ही सरलता से उपलब्ध थी।इसके परिणामस्वरूप लाल लिप्सटिक 1940 का प्रतीक बन गयी।
सन् १९५०
1. सन् 1950 के अंत तक ‘गुआनिन‘ युक्त कई नए मेक-अप की वस्तुएं आ गयीं जो पाउडर और पेंट में झिलमिल चमक देती थीं। 2. पेन-केक मेक-अप प्रसिद्ध हुआ और 1953 में 10 मिलियन से अधिक मेक-अप के सामानों की बिक्री हुई।
सन् 1960 -
1 - सन् 1960 के दौरान कई रूप आये और चली गयीं। 60 के दशक की शुरूआत में म्लान आकृति का प्रचलन था, किंतु दस वर्ष की अवधि के दौरान इस मेक-अप के आगमन से उस मेक-अप का प्रचलन समाप्त हो गया। 2 -मिनी स्कर्ट के उभरने से टांगों के मेक-अप की लोकप्रियता बढ़ी। 3 - इस दशक के अंत में चेहरे और शरीर पर पेंटिंग लोकप्रिय हुई।
सन् 1970 -
1 - डिस्को का प्रचलन हुआ और इसके परिणामस्वरूप चमकीले और इंद्रधनुषी रंगों की लोकप्रियता बढ़ी । 2 -अराजक युवा को दर्शाता एक उग्र व्यक्ति जिसके बाल का रंग फ्लोरोसेंट और उसमें पिन जड़ा हो तथा वेधित चेहरा एवं युद्ध में भाग लेने वाले सैनिक की तरह पेंट वाले स्टाइल के साथ मेक-अप का प्रचलन शुरू हुआ ।
सन् 1980 -
1 - 1980 के मध्य तक विषम आकृति का प्रचलन था। पलकों पर विभिन्न रंग लगाए जाते थे। 2 - भौहों को आकार देना बंद कर दिया गया और इसे स्वाभाविक रूप में रखा जाता था।
सन् 1990 और वर्तमान-
1 -कुल मिलाकर एक प्राकृतिक त्वचा रंग जिसमें एक बेहतर प्राकृतिक परिसज्जा थी, फैशन में था। होठों पर लाल रंग लगाया जाता था। मैट इसकी कुंजी थी। 2 - 1990 के अंत के दौरान चमकदार, भड़कीले और चमकीली मेकअप की व्यापक वापसी हुई। 3 - प्लास्टिक सर्जरी तकनीक में सुधार होता रहा और समाज अब पूर्णरूपेण मेकअप चाहता था। 4 -1990 के अंत में मेंहदी के टेटू और बिंदी फैशन का अंग बन गया।
हम हमेशा इन मेक अप के प्रोडक्ट को कॉस्मेटिक प्रोडक्ट कहते है क्या आपको पता है की आखिर ये नाम ही क्यों दिया गया है इसको क्योकियहाँ पर सौंदर्य प्रसाधनों का आविष्कार विशेष रूप से दासियों के लिए किया गया। इन दासियों को यहाँ पर "कासमेट" कहकर बुलाया जाता था।क्योकि रोम में सौंदर्य प्रसाधनों का आविष्कार विशेष रूप से दासियों के लिए किया गया। इन दासियों को यहाँ पर "कासमेट" कहकर बुलाया जाता था।इसलिए इसका नाम कॉस्मेटिक पड़ा है। हमारा हमेशा ये उद्देश्य रहता है की आपको कुछ रोचक जानकारी लेकर आये। हमारे आर्टिकल अगर आपको पसंद आ रहे है तो हमे समर्थन दे।
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