#पांच किस्से
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पाकिस्तान की सेना में शामिल होंगे? जिन्ना के ऑफर पर क्या था सैम बहादुर का जवाब
नई दिल्ली: भारत के जांबाज फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को कौन नहीं जानता। आज उनपर बनी फिल्म सैम बहादुर देश के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। सैम मानेकशॉकी भूमिका में बॉलीवुड एक्टर विकी कौशल हैं। लोग मानेकशॉ की भूमिका में विकी की एक्टिंग की जमकर तारीफ भी कर रहे हैं। मानेकशॉ को उनकी वीरता और हास्य-विनोद के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने लगभग चार दशकों तक सेना में सेवा की और द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर 1971 के पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध तक पांच युद्धों में भाग लिया।अब जब बात मानेकशॉ की हो ही रही है तो उनसे जुड़े एक किस्से का जिक्र करना भी जरूरी है। एक बार भारत के निडर निर्भीक इस जवान को पाकिस्तान के कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना का न्योता आया था। न्योता था भारत की सेना को छोड़कर पाक आर्मी में शामिल होने का। लेकिन मानेकशॉ ने इससे इनकार कर दिया था। आइए जानते हैं वो रोचक किस्सा- देश ही नहीं सेना का भी हुआ था विभाजन1947 में हुई भारत-पाकिस्तान का विभाजन सिर्फ जमीन का नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों का भी हुआ था। रेलवे, सरकारी खजाना, सिविल सेवा, यहां तक कि कुर्सियों और मेजों तक, सब कुछ दो नवजात देशों के बीच बांट दिया गया। इसी तरह, 1947 में लगभग 400,000 सैनिकों वाली इंडियन ब्रिटिश आर्मी को भी विभाजित कर दिया गया। सभी संपत्ति और स्वदेशी कर्मियों को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया था, जिसमें भारत को लगभग 260,000 पुरुष और पाकिस्तान को बाकी आवंटित किया गया था। 1947 में बहुत कुछ की तरह, सेना का विभाजन भी एक जटिल और खूनी प्रक्रिया थी, जिसमें व्यक्तिगत इकाइयों को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया था।सेना के जवानों के पास क्या था विकल्प? हालांकि आम सैनिकों को यह चुनने का अधिकार नहीं था कि वे किस सेना में शामिल होंगे, लेकिन अफसरों के लिए यह सच नहीं था, कम से कम औपचारिक रूप से। इतिहासकार ब्रायन लैपिंग ने 1985 में एंड ऑफ एम्पायर में लिखा, 'अधिकारियों को एक फॉर्म मिला, जिस पर उन्हें अपनी पसंद दर्ज करनी थी।'उन्होंने लिखा, 'ज्यादातर हिंदुओं और सिखों के पास कोई विकल्प नहीं था। पाकिस्तान उन्हें नहीं लेता था। लेकिन जिन मुसलमानों के घर भारत में थे, उनमें से कई ने एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में एक धर्मनिरपेक्ष सेना की आवश्यकता को देखते हुए भारत को चुना।' ईसाई और पारसी सैनिकों को भी इसी तरह का विकल्प चुनना पड़ा।मानेकशॉ के सामने जिन्ना की पाक आर्मी वाली शर्त मेजर सैम मानेकशॉ एक पारसी थे और अमृतसर में पैदा हुए थे, हालांकि उनका परिवार मूल रूप से बॉम्बे (अब मुंबई) से था। उन्होंने नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ाई करने से पहले पंजाब शहर में अपने शुरुआती साल बिताए। उनकी मूल यूनिट, 12th फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट, पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई। इस प्रकार, मानेकशॉ के सामने भी कठिन परीक्षा की घड़ी आ गई थी। मानेकशॉ के सामने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ऑफर रखा। यह ऑफर था पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का अनुरोध। सौभाग्य से भारत माता के आगे मानेकशॉ ने जिन्ना के अनुरोध को ठुकरा दिया। हालांकि पाकिस्तान ने उनके जैसे प्रतिभाशाली अधिकारी के लिए बेहतर करियर की संभावनाएं प्रदान कीं थीं। सैम को ऑफर दिया गया था कि अगर वह जिन्ना की बात मान लेते तो पाकिस्तानी सेना में तेजी से पदोन्नति होती लेकिन मानेकशॉ ने भारत में ही रहना पसंद किया। आपके पास अपराजित भारत 1971 में होता...मानेकशॉ को पहले बहुत कम समय के लिए 16वें पंजाब रेजिमेंट में और बाद में, लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में, 5वें गोरखा राइफल्स में स्थानांतरित किया गया था। हालांकि, उन्होंने गोरखा सैनिकों के साथ सेवा नहीं की और उन्हें 1947-48 के कश्मीर युद्ध के दौरान सेना मुख्यालय के सैन्य संचालन निदेशालय को सौंपा गया था। वर्षों बाद, अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, फील्ड मार्शल मानेकशॉ से 1947 में उनके निर्णय के बारे में पूछा गया। उन्होंने मजाक में जवाब दिया, '1947 में जिन्ना ने मुझे पाकिस्तानी सेना में शामिल होने के लिए कहा था। अगर मैं होता, तो आपके पास एक पराजित भारत 1971 में होता।' http://dlvr.it/SzZPtq
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Amitabh Bachchan: जब अमिताभ बच्चन को मिले थे 4000 KISS वाले वोट, जानिए ये बेहद दिलचस्प किस्सा
Amitabh Bachchan: जब अमिताभ बच्चन को मिले थे 4000 KISS वाले वोट, जानिए ये बेहद दिलचस्प किस्सा
Amitabh Bachchan: अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) पांच दशक से फिल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे है. उनका जादू फैंस के सिर चढकर बोलता है. बिग बी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते है और फिल्मों से जुड़े किस्से शेयर करते है. एक्टर कौन बनेगा करोड़पति 14 में भी अपने लाइफ से जुड़े कहानियां बता चुके है. एक किस्सा आपको बताते है जब उन्हें 4 हजार किस वाले वोट मिले थे. अमिताभ बच्चन को मिले थे 4 हजार किस वाले…
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रिम्स में दोस्तों के बीच एक शाम, चिकित्सकों ने सुनाये पुराने यादगार किस्से
रिम्स में दोस्तों के बीच एक शाम, चिकित्सकों ने सुनाये पुराने यादगार किस्से
Ranchi : रिम्स में पांच वर्षों के बाद शनिवार को पुराने दोस्तों की मुलाकात हुई. रिम्स ऑडिटोरियम में आयोजित 1971-72 बैच का गोल्डेन जुबली सह पुनर्मिलन समारोह में रिम्स के पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं ने अपनी पुरानी यादें ताजा की. अपने अनुभव एक-दूसरे से साझा किया. खूब ठहाके भी लगे. पुरानी बातों को याद करते हुए कहा- रिम्स में एक साल ऐसा था, जब 120 रुपये में एक महीने का खर्चा निकल जाता था. 90 रुपये में…
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ये हैं टोक्यो पैरालंपिक के पांच ऐसे किस्सें, जो सालों तक हमारे दिलोंदिमाग में ताजा रहेंगे
ये हैं टोक्यो पैरालंपिक के पांच ऐसे किस्सें, जो सालों तक हमारे दिलोंदिमाग में ताजा रहेंगे
टोक्यो पैरालिम्पिक्स 2020: ये प्रेजेंटेशनलंपिक के पांच ऐसे किस्सों, जो सूखे तक दिलोंमाग में ताजा होते हैं। Source link
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#अफ़ग़ानिस्तान#अवलोकन#टोक्यो पैरालिंपिक 2020#दिल की कहानियां#परालंपिक 2020#पर्लंपिक प्रल#पांच कहानियां#पांच किस्से#पैरालंपिक प्रस्ताव#सारा मंजिला
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Happy Birthday ठाकुर
भारतीय सिनेमा जगत में संजीव कुमार को एक ऐसे प्रतिभावान अभिनेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने हर तरह की भूमिका परदे पर निभाई। उन्होंने सहनायक से शुरुआत की, नायक बने, खलनायक बने हास्य, गंभीर, रोमांटिक, पागल, किन्नर, लूले-लंगड़े, उम्रदराज़ व्यक्ति तक की भूमिकाएं उन्होंने बखूबी निभाई। शोले के लाचार ठाकुर से खिलौना के पागल तक के चरित्र आज भी याद किये जाते हैं । वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे । वर्ष 1982 में प्रदर्शित फ़िल्म अंगूर में संजीव कुमार ने दोहरी भूमिका निभाई। फिल्म “नया दिन नई रात में” उन्होंने एक दो नहीं बल्कि नौ अलग अलग भूमिकाएं निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया इसमें उनके द्वारा निभाया गया किन्नर का किरदार सबसे ज्यादा पसंद किया गया ।
संजीव कुमार का जन्म- 9 जुलाई, 1938 को एक माध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ ।इनका वास्तविक नाम हरिहर जरीवाला था। उन्हें प्यार से हरिभाई जरीवाला कहा जाता था ।उनके पिता का नाम जेठालाल जरीवाला था। अभिनय का शौक जागने पर संजीव कुमार ने इप्टा के लिए स्टेज पर अभिनय करना शुरू किया इसके बाद वे इंडियन नेशनल थिएटर से जुड़े। फिर उन्होंने फ़िल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्ह���ं फ़िल्मालय बैनर की फ़िल्म हम हिन्दुस्तानी में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। यहीं से फ़िल्मी जगत में उनकी शुरुआत हुई।
हम हिंदुस्तानी (1960) संजीव कुमार की पहली फिल्म थी। इसके बाद 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्म 'आरती' के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया, जिसमें वह फेल हो गए । मुख्य अभिनेता के रूप में उन्हें सबसे पहले 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म 'निशान' में काम मिला। 1960 से 1968 तक का समय उनके लिए बेहद संघर्ष का समय रहा उन्होंने 'स्मगलर', 'पति-पत्नी', 'हुस्न और इश्क', 'बादल', 'नौनिहाल' और 'गुनाहगार' जैसी कई फ़िल्में की लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। हालत ये थी की पति-पत्नी में उनकी हीरोइन नंदा ने उनकी शिकायत करते हुए उन्हें फिल्म से निकालने तक की मांग रख दी थी। दरअसल संघर्ष के दिनों में संजीव कुमार बस में सफर करते थे और बेहद साधारण कपडे पहनते थे। नंदा का कहना था की वे हीरो नहीं कोई फेरी वाला लगते हैं । संजीव कुमार के हिट होने के बाद नंदा को अपने कहे पर पछतावा जरूर हुआ होगा।
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'शिकार' में सहायक अभिनेता के तौर पर पुलिस ऑफिसर की भूमिका मिली। फिल्म में मुख्य भूमिका धर्मेंदर की थी लेकिन संजीव कुमार ने अपने दमदार अभिनय से न सिर्फ सबका दिल जीता बल्कि सहायक अभिनेता का 'फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड' भी उनके नाम रहा लेकिन सही मायने में उनको पहली सफलता 1968 में रिलीज़ हुई राजा और रंक से मिली जिसने उन्हें सफल अभिनेता के रूप में फ़िल्मी दुनिया में स्थापित किया ।इसके बाद 1970 में आई खिलौना जबरदस्त कामयाब रही और इसके जरिये संजीव कुमार ने अपने को एक अलग मुकाम पर पहुँचाया। इसके बाद संजीव कुमार हिंदी फिल्मों के स्टार अभिनेता बन चुके थे।
1977 में प्रदर्शित फ़िल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में उन्हें सत्यजीत रे के साथ काम करने का अवसर मिला। इसके बाद उन्होंने 'मुक्ति' (1977), त्रिशूल (1978), 'पति पत्नी और वो' (1978), 'देवता' (1978), 'जानी दुश्मन' (1979), 'गृहप्रवेश' (1979), 'हम पांच' (1980), 'चेहरे पे चेहरा' (1981), 'दासी' (1981), 'विधाता' (1982), 'नमकीन' (1982), 'अंगूर' (1982) और 'हीरो' (1983) जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के दिल जीता।
गुलज़ार साहब को संजीव कुमार से ख़ास लगाव था वे उनकी अभिनय प्रतिभा के कायल थे ।गुलज़ार- संजीव कुमार की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा जगत को कोशिश (1973), आंधी (1975), मौसम (1975), अंगूर (1980), नमकीन (1982) जैसी बेहतरीन फिल्में दीं। कहा जाता है की संजीव कुमार हेमा मालिनी को बेहद पसंद करते थे। लेकिन हेमा मालिनी ने उन्हें न कह दिया था। उनकी और सुलक्षणा पंडित की नज़दीकियों के किस्से भी काफी उछले लेकिन बात शादी तक नहीं पहुँच सकी । सिर्फ हेमा या सुलक्षणा ही नहीं उनकी एक ख्वाहिश और अधूरी ही रही उनकी मुंहबोली बहन अंजू महेंद्रू ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में बताया की उन्हें कोई बंगला पसंद आताऔर उसके लिए पैसे जुटाते तब तक उसके भाव बढ़ जाते। यह सिलसिला कई सालों तक चला । जब पैसा जमा हुआ, घर पसंद आया तो पता चला की वह प्रॉपर्टी कानूनी पचड़े में फंसी है । मामला सुलझे उससे पहले 6 नवंबर 1985 को 47 साल की उम्र में वह चल बसे।
उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। पहली बार दस्तक (1971) और दूसरी बार कोशिश (1973) के लिए। दो बार उन्होंने सर्वश्रेष्ट अभिनेता (आंधी-1976 और अर्जुन पंडित-1977) का और एक बार सर्वश्रेष्ट सहायक अभिनेता (शिकार-1969) के पुरूस्कार से नवाज़ा गया अपने शानदार अभिनय के जरिये वो आज भी हमारे बीच मौजूद हैं
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मंदिरा बेदी सहित इन 10 सितारों ने कम उम्र में खोया अपना जीवनसाथी को, अकेले ही काटनी पड़ी अपनी बाकि ज़िंदगी!
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मंदिरा बेदी सहित इन 10 सितारों ने कम उम्र में खोया अपना जीवनसाथी को, अकेले ही काटनी पड़ी अपनी बाकि ज़िंदगी!
दोस्तों हाल ही में बॉलीवुड और टीवी एक्ट्रेस मंदिरा बेदी ने अपने पति राज कौशल को हमेशा के लिए खो दिया। राज महज 49 वर्ष के थे और मंदिरा ने भी अप्रैल में अपना 49वां बर्थडे मनाया था। दोनों की खूबसूरत जिंदगी पर 30 जून को ग्रहण लग गया जब कार्डिएक अरेस्ट से अचानक राज की मौत हो गई। मंदिरा के अलावा बॉलीवुड के इन सितारे हैं जिन्होंने कम उम्र में अपने लाइफ पार्टनर्स को खो दिया। आईये जानते है इन सितारों के बारे में!
रेखा और मुकेश अग्रवाल
रेखा ने 1990 में दिल्ली बेस्ड बिजनेसमैन मुकेश अग्रवाल से शादी की थी। लेकिन शादी के एक साल बाद ही मुकेश ने निजी कारणों से आत्महत्या कर ली। रिपोर्ट्स के मुताबिक उस वक्त रेखा की उम्र महज 35 साल की थी। इतनी कम उम्र में रेखा ने जिंदगी का बड़ा दर्द झेला है।
��देश श्रीवास्तव और विजेता पंडित
अपने ज़माने की पॉपुलर अभिनेत्री विजेता पंडित ने प्लेबैक सिंगर-कंपोजर आदेश श्रीवास्तव से 1990 में शादी की थी। दोनों दो बेटों अनिवेश और अवितेश के पेरेंट्स बने। उनकी जिंदगी में अभी सब ठीक चल रहा था कि 2015 में आदेश श्रीवास्तव की कैंसर से मौत हो गई।
सिद्धार्थ रे और शांतिप्रिया
बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म सौगंध में नजर आई एक्ट्रेस शांतिप्रिया ने एक्टर सिद्धार्थ रे से शादी कर ली थी। सिद्धार्थ बाजीगर फिल्म में काजोल के साथ ‘छुपाना भी नहीं आता’ गाने में नजर आए थे। उन्होंने हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया है। शादी के पांच साल बाद 2004 में सिद्धार्थ का हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया। उस वक्त एक्ट्रेस 35 साल की थीं।
कमाल अमरोही और मीना कुमारी
ट्रेजडी क्वीन के नाम से मशहूर दिग्गज अभिनेत्री मीना कुमारी ने 14 फरवरी 1952 को 18 साल की उम्र में 34 वर्षीय कमाल अमरोही से निकाह किया था। मीना और कमाल की शादीशुदा जिंदगी के कई किस्से मशहूर हैं। 31 मार्च 1972 को मीना ने 38 वर्ष की उम्र में अपनी आखिरी सांसें ली। मीना की मौत के बाद कमाल अमरोही ने दूसरी शादी कर ली थी।
गुरु दत्त और गीता दत्त
लीजेंड्री एक्टर-डायरेक्टर और प्रोड्यूसर गुरु दत्त ने 1953 में अपने जमाने की मशहूर प्लेबैक सिंगर गीता दत्त से शादी की थी। उनके तीन बच्चे तरुण, अरुण और नीना हुए। शादी और बच्चे के बाद गुरु दत्त का वहीदा रहमान के साथ भी नाम जोड़ा गया था। 1964 में गुरु दत्त ने दुनिया से विदाई ले ली। उनकी मौत के बाद गीता सदमे में चली गई थीं। उनकी मौत के कुछ सालों बाद 1972 में गीता दत्त का भी 41 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
आरिफ पटेल और कहकशां पटेल
कहकशां पटेल पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री का एक चमकता सितारा रही हैं। वे अपने जमाने की सबसे पॉपुलर एक्ट्रेस थीं। कहकशां ने बिजनेसमैन आरिफ पटेल से शादी की थी। शादी के बाद कपल दो बेटों अरहान और नुमैरे के पेरेंट्स बने। लेकिन उनकी खुशहाल जिंदगी 2018 में अंधेरे में तब्दील हो गई। कार्डिएक अरेस्ट के चलते आरिफ की मौत हो गई और उन्होंने कहकशां का साथ हमेशा के लिए छोड़ दिया।
लक्ष्मीकांत वर्दे और प्रिया अरुण
मराठी और हिंदी फिल्मों के एक्टर लक्ष्मीकांत वर्दे की शादी मराठी एक्ट्रेस प्रिया अरुण से हुई थी। उनके दो बच्चों भी हैं। 16 दिसंबर 2004 को किडनी की बीमारी के कारण लक्ष्मीकांत का निधन हो गया। उनके जाने के बाद प्रिया अरुण ने खुद को संभाला और आज भी वे फिल्मों में सक्रिय हैं।
इरफान खान और सुतापा सिकदर
बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता एक्टर इरफान खान ने 23 फरवरी 1995 को राइटर सुतापा सिकदर से शादी की थी। 2018 में इरफान को अपने न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का पता चला। इलाज चला और फिर एक्टर वापस फिल्मों में काम भी करने लगे थे। लेकिन 29 अप्रैल 2020 को कोलन इन्फेक्शन की वजह से 53 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई। इरफान के जाने से सुतापा सिकदर को गहरा सदमा लगा लेकिन उनके दोनों बेटों बाबिल और अयान ने उन्हें सहारा दिया। आज सुतपा अपने दोनों बेटों के साथ हैं।
लीना चंदावरकर और सिद्धार्थ बंदोदकर
सुनील दत्त की फिल्म मन का मीत से हिंदी सिनेमा में कदम रखने वाली अभिनेत्री लीना चंदावरकर ने 1975 में सिद्धार्थ बंदोदकर से शादी की थी। शादी के कुछ दिनों बाद ही सिद्धार्थ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। फिर 1980 में लीना ने दिग्गज एक्टर व सिंगर किशोर कुमार से शादी की। उनकी शादी 7 साल तक चली और फिर दिल का दौरा पड़ने से किशोर ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। किशोर की मौत के वक्त लीना 37 साल की थीं।
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प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं
प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं
प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं 1.तिमिर छंटने का समय है भोर होने का समय है तिमिर छंटने का समय है, भोर का तारा दिखा है तरल मलयज हो रहा है विहग सक्रीय हो गये हैं गीत गायन में लगे हैं दिख रहा है गाओं कोई जिंदगी करवट बदल कर उठ गयी संकल्प लेकर। बड़ी लम्बी रात थी बिना किस्से बिन कहानी , अंधड़ चले , टट्टर उड़े डंठलों को छोड़ कर बालें…
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भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम के पांच दिलचस्प किस्से
भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम के पांच दिलचस्प किस्से
भारतीय क्रिकेट टीम के कमरे के पांच किस्से। Source link
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#क्रिकेट#टीम इंडिया#भारतीय क्रिकेट टीम#भारतीय क्रिकेटरों के किस्से#भारतीय क्रिकेटरों के प्रसिद्ध किस्से#म स धोनी#विराट कोहली#सौरव गांगुली
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55 साल के हो चुके शाहरुख खान 80 के दशक से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। उन्होंने 10 से ज्यादा टीवी शो और 75 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। शाहरुख के जन्मदिन पर उनके साथ काम कर चुके सेलेब्स ने दैनिक भास्कर के साथ उनसे जुड़ी रोचक बातें साझा की।
दो किस्से, जो हनी ईरानी ने शेयर किए
किस्सा नं. 1 : 'डर' में राहुल के हकलाहट के पीछे खास वजह थी
फिल्म 'डर' में राहुल के किरदार को हकलाहट से लैस करने की वजह थी। वह यह कि राहुल किरण को देखते ही बड़ा कॉन्शियस हो जाता है। बरसों-बरस इजहार नहीं कर पाता है। साथ ही मां के न होने के चलते उसे मेंटल प्रॉब्लम तो थी ही। ऐसे में जब वह कभी किरण को सामने पाता है, तो हकलाने लग जाता था। उस हकलाहट ��र भी शाहरुख ने काफी रियाज किया था। किरण का पूरा नाम लेने में राहुल को ज्यादा वक्त लगता था। राहुल का यह पहलू शाहरुख को बहुत अच्छा लगा था।
किस्सा नं. 2 : शाहरुख को सुबह जल्दी जगाना बहुत मुश्किल
हम लोग 'डर' की शूटिंग कर रहे थे। यश चोपड़ा जी ने कहा था कि सुबह जल्दी शूट के लिए निकलेंगे। रात करीब 11 बजे सब लोग खाना खाकर लॉन में बैठे थे। जब शाहरुख सोने जाने लगे तो मुझसे बोले कि सुबह मुझे जल्दी उठा देना। सुबह पांच बजे मैंने उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर कोई जवाब नहीं मिला।
दरवाजा खुला हुआ था, तो मैं अंदर चली गई। देखा तो वे गहरी नींद में सोए हुए थे। काफी हिलाया-डुलाया, लेकिन उन्होंने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। फिर मैंने आदित्य (चोपड़ा) को बुलाया। कुछ असिस्टेंट भी आ गए।
सबने शाहरुख को उठाया और सोए हुए ही बस में बिठा लिया। इसके बाद जब यशजी ने खांसते हुए पूछा 'चलो भई शूटिंग करनी है कि नहीं।' तब शाहरुख की नींद खुली। लब्बोलुआब यह कि शाहरुख को आप सुबह जल्दी तो जगा ही नहीं सकते।
एक किस्सा, जो जूही चावला ने सुनाया
शाहरुख के साथ सबसे पहले मैंने ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ में काम किया था। तब तक ‘कयामत से कयामत तक’ के चलते मेरा करियर भी उफान पर था। तब मेरी झोली में कई फिल्में थीं। शाह���ुख के खाते में तब तीन फिल्में थीं।
‘राजू बन गया जेंटलमैन’ के अलावा मेरे ख्याल से ‘दिल आशना है’ और ‘दीवाना’ थीं। दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों फिल्मों के साथ शाहरुख ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ भी शूट कर रहे थे।
उनका शेड्यूल काफी बिजी था। ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ शूट करते थे। पैकअप कर दूसरी और फिर उसे भी पैकअप कर तीसरी फिल्म की शूट करते थे। वे 18 घंटे रोजाना काम करते थे।
(जैसा कि अमित कर्ण के साथ शेयर किया।)
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Shah Rukh Khan Birthday: Juhi Chawla And Honey Irani Shares Some Interesting Stories About Shah Rukh Khan
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बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय की राजनीति में एंट्री हो गई। रविवार को वे जदयू में शामिल हो गए। मंगलवार को वीआरएस लेने के बाद से ही उनकी सियासी पारी को लेकर कयासों का बाजार गरमाया हुआ था। फिलहाल ये तो साफ हो गया कि वे जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे लेकिन, कहां से लड़ेंगे यह तय नहीं हुआ है।
सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस को लेकर पिछले कुछ महीनों से चर्चा में आए गुप्तेश्वर पांडे पुलिस महकमे में रहने के दौरान भी चर्चा में रहते थे, चाहे सोशल मीडिया हो या ग्राउंड पर गुस्साई भीड़ के सामने। ऐसे कई किस्से हैं, जिसमें से कुछ किस्सों को वो खुद बार-बार दोहराते हैं और कुछ को छोड़ देते हैं...
पहला किस्सा: साल 2007 की बात है। सीतामढ़ी के रूनी सैदपुर में एक स्थानीय माले नेता की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई। मामला इतना बिगड़ गया कि देखते-देखते हजारों स्थानीय लोगों ने पुलिस थाने को घेर लिया। नारेबाजी के साथ पथराव शुरू हो गया। सीतामढ़ी के तत्कालीन एसपी मौके पर पहुंचे लेकिन हालात को काबू नहीं कर पाए। गुप्तेश्वर तब मुजफ्फरपुर रेंज के डीआईजी थे। वे घटना स्थल पर पहुंचे।
मंगलवार को गुप्तेश्वर पांडेय ने कार्यकाल खत्म होने के 5 महीने पहले ही वीआरएस ले लिया।
वहां तैनात सिपाहियों को पीछे हटने के लिए बोला। अपने सुरक्षा गार्डस को खुद से दूर किया और गुस्साई भीड़ की तरफ पैदल चल दिए। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने जमीन पर मृत माले-नेता की लाश रखी हुई थी। गुप्तेश्वर लाश के पास बैठे और दहाड़ मार-मारकर रोने लगे।
वो उस नेता को बिल्कुल नहीं जानते थे, लेकिन उसे ईमानदारी की मूर्ति बताया, उसे अपना भाई कहा और वहीं भीड़ के सामने ही ऐलान किया कि दोषी थाना अधिकारी को सस्पेंड कर रहे हैं। एक बड़े ���ुलिस अधिकारी को ऐसा करते और कहते देखकर भीड़ का गुस्सा शांत हो गया और वो उल्टे अपने डीआईजी साहब की खोज-खबर लेने लगे।
दूसरा किस्सा: साल 2016 की बात है। गुप्तेश्वर तब बिहार सैन्य पुलिस के डीजी थे और पटना में तैनात थे। पड़ोस के जहानाबाद जिले में दंगा भड़क गया। मकर ��ंक्रांति को हो रहे जुलूस के दौरान विवाद के बाद यह दंगा हुआ था। स्थिति जब काबू से बाहर होने लगी तो राज्य सरकार ने पटना से गुप्तेश्वर पांडे को वहां भेजने का फैसला लिया।
जनवरी का महीना था। वो सुबह-सुबह निकल भी गए। वहां जाकर उन्हें लगा कि रात में वहीं कैंप करना होगा। वो पटना से जल्दी-जल्दी में निकले थे तो उनके पास ठंड से बचने के अच्छे और गर्म जैकेट नहीं थे। स्थानीय एसपी-डीएसपी ने एक थानेदार को दानापुर आर्मी कैंट से जैकेट लाने का आदेश दिया। थानेदार जब दानापुर कैंट पहुंचा तो तय नहीं कर पाया कि किस साइज का एक जैकेट लिया जाए।
लिहाजा उसने अलग-अलग साइज के पांच-छह महंगे जैकेट ले लिए। उसने सोचा कि जो ‘साहब’ को पसंद आएगा वो रख लेंगे बाकी वापस कर दिया जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। थानेदार द्वारा लाए गए सारे जैकेट रख लिए गए। पुलिस अधिकारी से राजनेता बने गुप्तेश्वर पांडेय ने 33 साल पुलिस में गुजारे हैं। इन 33 सालों के कई किस्से हैं।
जिसमें से कुछ किस्सों को वो खुद बार-बार दोहराते हैं और कुछ को छोड़ देते हैं। गुप्तेश्वर बिहार पुलिस के ऐसे विरले अधिकारी रहे हैं जो एसपी रहते हुए अपने डीजीपी से ज्यादा चर्चा बटोरते थे। उन्हें सुर्खियां बटोरना हमेशा से पसंद रहा है। उनकी ये ख्वाहिश तब और परवान चढ़ी जब वो बिहार पुलिस के सर्वेसर्वा बना दिए गए।
पुष्यमित्र पटना में रहते हैं। वे पत्रकार हैं। पिछले साल एक सार्वजनिक कार्यक्रम में वो बिहार के तत्कालीन डीजीपी और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गुप्तेश्वर पांडेय के साथ मंच पर थे। वो बताते हैं, 'पांडे जी को सोशल मीडिया का जबरदस्त क्रेज है। मैंने देखा कि उनका एक सुरक्षा गार्ड मोबाइल से फोटो ले रहा है वहीं दूसरा फेसबुक पर लाइव स्ट्रीमिंग कर रहा है।'
गुप्तेश्वर के इस क्रेज ने उन्हें कभी मीडिया के कैमरों से दूर नहीं होने दिया और डीजीपी रहते हुए भी वो पत्रकारों के लिए सर्व सुलभ बने रहे। पत्रकारों से अपनी इस नजदीकी को गुप्तेश्वर 'जनता से नजदीकी' बताते हैं, लेकिन बिहार पुलिस के कई सीनियर अधिकारी इसे 'बड़बोलापन और एक पुलिस अधिकारी के लिए गैरजरूरी' कहते हैं।
यही वजह है कि जब बिहार पुलिस प्रमुख के पद से उन्होंने छुट्ट�� ली तो पटना के पुलिस महकमे इसकी कोई खास चर्चा नहीं हुई। बिहार पुलिस के एक अधिकारी ने हमें बताया, 'कहीं कोई चर्चा नहीं है, एक शब्द भी नहीं। हम सभी अधिकारियों के तीन वॉट्सऐप ग्रुप हैं। एक तो पूरी तरह से आधिकारिक बातों के लिए हैं, वहीं दो ऐसे ग्रुप हैं जिनके माध्यम से अधिकारी आपस में किसी भी मसले पर बतियाते हैं। किसी भी ग्रुप में एक पोस्ट तक नहीं आया।
इस खामोशी की वजह पूछने पर उन्होंने बताया, 'बतौर अधिकारी उन्हें विभाग में कोई पसंद नहीं करता। वो अधिकारियों के साथ की जाने वाली मीटिंग में ऐसे व्यवहार करते थे जैसे वही एक ईमानदार और कर्मठ अधिकारी हैं, बाकी सब बेकार हैं। भ्रष्ट हैं।' कई अधिकारी ये मान रहे हैं कि डीजीपी के अपने कार्यक्रम में बिहार पुलिस की छवि का जितना नुकसान गुप्तेश्वर पांडेय ने किया, उतना किसी और ने नहीं किया।
डीजीपी रहते हुए गुप्तेश्वर एसपी, एसएसपी की साप्ताहिक बैठक में धमक जाते तो कभी किसी बात पर थानेदार तक को फोन लगाकर झाड़ देते थे। ये सब शुरू-शुरू में तो ठीक रहा, लेकिन जब बार-बार होने लगा तो थानेदार तक ने डीजीपी की बातों को सीरियसली लेना छोड़ दिया।
इन सब से उन्हें मीडिया में सुर्खियां तो मिल रही थीं, लेकिन ऐसी हर खबर के साथ डीजीपी के पद की गरिमा में बट्टा लग रहा था। और यही वजह है कि जब गुप्तेश्वर ने दूसरी बार वीआरएस ली तो बिहार पुलिस के एक आला अधिकारी ने कहा, 'आज विभाग में खुशी की लहर है। आखिर हमने अपना ‘हेडैक’ लोगों को दे दिया।'
गुप्तेश्वर पांडेय 31 जनवरी 2019 को बिहार के डीजीपी बने और 22 सितंबर 2020 तक इस पद पर रहे। उनके मुताबिक वो जनता के डीजीपी थे। उन्होंने पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी तक जनता की सीधी पहुंच का रास्ता साफ किया लेकिन क्या उनके पद पर रहने के दौरान बिहार में अपराध भी कम हुआ? बिहार पुलिस हर साल राज्य में हुए अपराधों की संख्या जारी करती है।
इन आकड़ों के मुताबिक 2019 में पिछले दो सालों के मुकाबले सबसे ज्यादा गंभीर अपराध रजिस्टर किए गए। 2017 में कुल 2 लाख 36 हजार 37 मामले दर्ज हुए। 2018 में ये बढ़कर 2 लाख 62 हजार 802 हो गए। अगर बात करें 2019 की तो इस साल राज्य में कुल 2 लाख 69 हजार 096 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हुए।
डीजीपी पद से वीआरएस लेने के साथ ही गुप्तेश्वर पांडे ने सोशल मीडिया पर अपनी कवर फोटो बदल ली है। वे एक इंटरव्यू में बक्सर से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं।
गुप्तेश्वर के आलोचकों की माने तो इनके कार्यकाल में अपराध इसलिए बढ़े क्योंकि उन्होंने पुलिस प्रमुख का असली काम करने की जगह स्टंटबाजी करते रहे। कभी केस की तहकीकात के नाम पर खुद नदी में कूद गए। कभी जनता से सीधा संवाद स्थापित करने के नाम पर राम कथा वाचक बनकर पंडाल में बैठ गए।
सार्वजनिक मंचों से भोजपुरी में गीत गाए और जाते-जाते खुद पर एक पूरा म्यूजिक एल्बम ही बनवा डाला। जब एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या का मामला सामने आया तो इसे लेकर वो मुम्बई पुलिस से भिड़ते हुए दिखे। भावुक और आक्रामक बयानबाजी करके मीडिया में खासी चर्चा बटोरी और कार्यकाल खत्म होने से कुछ महीने पहले ही पद छोड़ कर राजनीति की तरफ चल दिए��
इन तमाम आलोचनाओं के बीच एक पक्ष ऐसा भी है जो बिहार पुलिस प्रमुख के तौर पर या एक पुलिस अधिकारी तौर पर इनके काम को पसंद करता है। आगे बढ़कर तारीफ करता है। रविंद्र कुमार सिंह मुजफ्फरपुर में रहते हैं और बिहार से प्रकाशित एक प्रतिष्ठित हिन्दी अखबार में पत्रकार हैं और गुप्तेश्वर पांडे के काम करने के तरीके से खासे प्रभावित हैं।
वो कहते हैं, 'मैंने उनके जैसा अधिकारी नहीं देखा। हर वक्त जनता के लिए खड़ा रहते थे। बड़े ओहदे पर थे लेकिन उपलब्धता के मामले में कई बार एसपी को भी पछाड़ देते थे। विभाग में उनकी आलोचना होती हैं क्योंकि वो ऊंची जाति से आते हैं। अपने कार्यकाल में अधिकारियों से ज्यादा उन्होंने आम लोगों को वक्त दिया है। वो बड़े से बड़े दंगे को रोकने की ताकत रखते थे और रोका भी है।
रामाश्रय यादव बिहार पुलिस में इंस्पेक्टर हैं और फिलहाल नरकटियागंज में तैनात हैं। वो गुप्तेश्वर पांडे के साथ कई मौकों पर रहे हैं और उनके काम करने के तरीके प्रशंसक हैं। वो कहते हैं, 'एक बार की बात है। जिले में तनाव की स्थिति थी। वो डीआईजी थे। एसपी ने उन्हें फोन पर हालात की जानकारी दी तो वो बोले-मैं आता हूं। सब ठीक हो जाएगा। हालांकि, उनके आने की नौबत नहीं आई।
मामला निपट गया लेकिन ये उनका खुद पर भरोसा था। ये उनकी पुलिसिंग का कमाल था। वो पगलाई ह��ई भीड़ को कुछ ही मिनटों में बिना लाठी-बंदूक के शांत कर देते थे। जब हमने उनसे गुप्तेश्वर पांडे के राजनीति में जाने पर प्रतिक्रिया मांगी तो वो पहले हंसे फिर बोले, 'सर कर रहे हैं तो ठीके कर रहे होंगे। कुछ सोचे होंगे, लेकिन उनके जइसा (जैसा) आदमी को लोकसभा जाना चाहिए। ई विधायकी उनके कद के लायक नहीं है।”
ये तो वक्त ही बताएगा कि वो चुनाव जीत पाते हैं या नहीं। अगर चुनाव जीत भी जाते हैं तो राजनीति में किस हद तक कामयाब हो पाते हैं। फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि आने वाले वक्त में गुप्तेश्वर पांडेय, बिहार को लेकर होने वाली राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में रहेंगे क्योंकि 'पांडे जी' को चर्चा में बने रहना पसंद है और वो ऐसा करने के तमाम तरीके जानते हैं।
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गुप्तेश्वर पांडेय हमेशा से चर्चा का केंद्र रहे हैं चाहे पुलिस महकमे में रहने के दौरान हों या उससे बाहर।
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* 25% महिलाएं ही अपने बच्चों को अपना दूध पिलाती है।
* और सबसे खास बात ये कि बहुत सारी
महिलाओं(लगभग सारी ही मानके चलो)में छतरी☔इस्तेमाल करने का गजब का हुनर होता है
भरी भीड़ में भी ये छतरी लेके ताबड़तोड़ निकल लेती हैं इन्हें🔔फर्क नहीं पड़ता कि अगल-बगल वाले को छाते का किनारा लग सकता है
(लग ही जाता है)
किसी की आँख फूट जाए तो!
मतलब वही वाला हिसाब हो गया कि सामने से स्कूटी लेके लड़की आ रही है
अौर उससे बचना अापकी ही जिम्मेदारी है
और जिम्मेदारी से भागे तो....
तो...फिर.. धे टक्कर
और क्या😂
* इनकी साफ-सफाई का अन्दाजा इसी बात से लगा लीजिए कि अधिकतर महिलाओं के घर का सामान सरकाते ही कचरे के दर्शन हो जाएंगे
* *सुबह दस-ग्यारह बजे तक सोने वाली महिलाएं,*
*कुछ दिनों के लिए आए मेहमानों के आने से लौट जाने तक अपना टाईम टेबल ऐसे चेंज करती हैं कि पूछो मत!*
*पता नहीं कहां से लाती है इतनी एनर्जी*🤔
*हद तो तब होती है जब इन्हीं मेहमानों द्वारा हमारे घर की महिलाओं की मिसालें देके इनकी अपने घर की महिलाओं की असफल झाड़फूंक😖😤 कर दी जाती है*
*और जब हम कभी कहीं मेहमान बन जाएं तब यही कहानी फिर शुरू होती है।*
*Note*
*जिन देवीयों पर मेहमानों का भी कोई असर नहीं होता,वह phd धारी होती हैं*
* बर्दास्त तो इनमें होती ही नहीं
सर्दी में हाय सर्दी,हाय हाय सर्दी
और...
गर्मी में हाय गर्मी हाय हाय गर्मी
* 25% महिलाओं का बर्थ-डे साल में दो बार आता है😂😂
गिफ्ट चाहिए गिफ्ट😤
* अगर इनके पेट में बात पचना शुरु हो जाए तो संसार के आधे क्लेश तो यूंहीं छू-मन्तर हो जाएं
* 30% महिलाओं की जीभ कैंची की तरह कचर-पचर,कचर-पचर चलती ही रहती है
इस बात की पुष्टि भी महिलाओं से ही हुई है
बहुओं का कहना है:-मेरी सास जब देखो चिक-चिक,चिक चिक करे है
सास का कहना है:- यूं डायन तो जब देखो ज्वालामुखी सी फटे है इससे अच्छा तो गुंगी से ब्याह देती मेरे छोरे को।
* ऑनलाइन फ्रॉड करने वालों का 50% काम तो तभी पूरा हो जाता है
जब सामने वाला शिकार महिला हो!
और इसका एकमात्र कारण:-लालच
बल्कि यूं कहें:-अन्धा लालच,जो इन शिकार लालची महिलाओं में कूट-कूट के व ठूंस-ठूंस के भरा रहता है।
* अधिकतर देवियां धारावाहिक देख-देख के दो नम्बर की नाटकबाज होती जा रही हैं!
एक नम्बर की तो allready ही होती हैं😁😂
* कोई नहीं जानता (यकीनन भगवान भी नहीं)
अरे ये खुद भी नहीं जानती कि कब इनका मूड बिगड़ जाए।
* कुछ लड़कियां तो बेचारी इतनी भोली होती हैं कि अगर आपको उसका नाम जानना है तो आप उनके पीछे जाके उनको किसी भी नाम से पुकारो,वो तुरंत पलट के बोलेगी😡जी मेरा नाम ये नहीं है और असली नाम बता देंगी।
* और उन महिलाओं के तो कहने ही क्या🤗
जो घंटे भर "बड़बड़ाने" के बाद
*(Note:-यहाँ आप 'बड़बड़ाने'की जगह अपने स्वादानुसार कोई और शब्द भी इस्तेमाल कर सकते हैं)*
कहती हैं:-मैं बता रही हूं:-मेरा मुंह मत खुलवाओ।
* न जाने कितनी ही महिलाओं ने अपने पति को एक काम परमानेन्ट सौंप रखा होता है कि सुबह काम पे जाते वक्त मोटर चालू कर देना और शाम को आते समय ऑन कर देना😂
इसका नतीजा:-पानी की बरबादी,टंकी के पास सीलन,मोटर का अक्सर खराब होना।
* जिन नई नवेली दुल्हन की सास व ननद दोनों ही नहीं होती
40% स्त्रियां उन्हें लपलपाती जीभ जैसी ललचाई नजरों से देखती हैं कि वाह क्या किस्मत पाई है बन्दी ने।
न सास न ननद
मतलब कोई लडाई झगड़े का डर नहीं और...
और पति मुठ्ठी में😁
* जितना अधिक सास-बहू के किस्से मशहूर हैं
आपको बता दूं
मुझे तो ऐसा लगता है कि हकीकत में इससे ज्यादा तो ननद-भाभी में ठनी रहती है।
* 50% महिलाएं बीमारी में दवाईयां खाने की बजाय चुपके से घर के ही किसी कोने में फेंक देती हैं
अरे नहीं खानी तो बता दो ना!
खर्चा क्यूं करवाती हो?
और घर में ही फेंकने का क्या फण्डा है ये मेरी समझ से परे है
* ऑफिस टाइम या छुट्टी टाइम पे रास्ते में आते जाते वक्त 55% महिलाएं फोन से चिपकी होती है
पुरूषों की संख्या फिलहाल 25% है।
* 30% लड़कियों के बॉयफेण्ड होने का एकमात्र कारण तो यही है कि उनकी सहेलियां उनका यह कहके मजाक उड़ाती है कि आ तेरा बॉयफ्रेण्ड नहीं है तेरी तो जिन्दगी ही झन्ड है तेरा तो कुछ हो ही नहीं सकता!
काश किसी ने मेरा भी ऐसे मजाक उड़ाया होता तो आज मेरी भी कोई गर्लफ्रेण्ड होती।😜
* बहुत सारी महिलाएं तो बाल बनाने के बाद टूटे हुए बालों का गुच्छा कहीं भी {ज्यादातर औरों के घर के सामने}फेंक देती हैं।
* पुरूषों का ग्रुप व्यायाम के वक्त जितना बड़ा हो
कसरत उतनी ही अच्छी होती है,
और ये तो लगभग आप जानते ही हो��गे कि अधिकतर महिलाओं में एक से अधिक होते ही व्यायाम नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ डाटा-ट्रांसफर होता है।
* 40% महिलाओं को खर्च करना है तो बस करना है
उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि पति कहां से लाए, चाहे वो अपनी ऐसी-तैसी कराए इससे इन्हें 🔔 फर्क नहीं पड़ता।
* कुछ महिलाएं बिना मेकअप के भी इतनी भयंकर नहीं लगती जितना ज्यादातर महिलाएं सुबह जागते ही लगती हैं
कमस से...
अगर मनचला पड़ोसी देख ले तो उसकी दीवानगी छू मन्तर हो जाए😂
मेरे कुछ दोस्त हैं जिन्होंने लव-मैरिज की है और कमाल की बात ये कि कई बार सुबह सुबह वो भी कन्फ्यूज हो जाते हैं कि क्या उन्होंने वाकई लव-मैरिज की है!😂😂
* अधिकतर महिलाओं को उम्र छुपाने की बीमारी होती है,
उम्र बताते समय शादीशुदा महिलाएं तो लगभग पूरे चार-पांच साल ही खा जाती हैं
और अगर सामने वाली या वाला इनसे छोटा निकले तो बड़ी ही खूबसूरती के साथ कहती है
मेरी असली उम्र तो दो साल कम है
वो तो स्कूल में दाखिले के लिए पापा ने ज्यादा लिखवा दी थी।
* अगर महिलाएं तीन घंटे लगातार घर की सफाई करें तो भी घर उतना साफ नहीं होगा जितना एक अनाड़ी पुरूष आधे घन्टे में चमका देगा,
वो भी बिना पोछा लगाए😜
* 45% महिलाओं में दिन में भी सोने की जबरदस्त बीमारी होती है,जिस दिन इन्हें सोने का मौका न मिले तो इनमें से 20% महिलाएं अगले दिन बिस्तर पे लगभग फैल ही जाती है।
हाय मैं मर गई☃
मेरे बस की नहीं है अब कुछ भी करना।
* 60% महिलाएं अपने पति को एक नम्बर का C समझती हैं
वो बात दूसरी है कि 30% होते भी हैं
और मुझे पूरा यकीन है कि आप उनमें से कतई नहीं हो😁
अत: पाठकों से विनम्र निवेदन है:-कृप्या मेरे अनमोल भरोसे पे हां की मोहर लगाके अपनी बुद्धिमानी का परिचय पोस्ट को लाईक व शेअर करके अवश्य दें।
MaanavpreM
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भारतीय मूल के महज 12 साल के अभिमन्यु बने दुनिया के सबसे युवा ग्रैंड मास्टर
चैतन्य भारत न्युज बुडापेस्ट (हंगरी)। बुडापेस्ट में आयोजित किए जा रहे ग्रैंड मास्टर टूर्नामेंट में भारतीय मूल के अमेरिकी शतरंज खिलाड़ी अभिमन्यु मिश्रा ने इतिहास रच दिया। महज 12 साल की उम्र में बुधवार को वे दुनिया के सबसे कम उम्र के ग्रैंड मास्टर बन गए। उन्होंने भारतीय ग्रैंड मास्टर गोवा के चौदह साल के लियॉन मेनडोन्का को हराकर ये खिताब अपने नाम किया। न्यूजर्सी में रहने वाले अभिमन्यु 12 साल चार महीने और पच्चीस दिन के हैं। अभिमन्यु ने 19 साल पुराना यूक्रेन के सर्गे कर्जाकिन का रिकार्ड तोड़ दिया। उन्होंने 12 साल सात महीने की उम्र में यह उपलब्धि हासिल की थी। अभिमन्यु के पिता हेमंत मिश्रा डेटा एनालिस्ट हैं। उन्होंने बताया कि विश्व विजेता गैरी कारपोरोव अभिमन्यु का खेल देख उसके मेंटर बनने के लिए तैयार हो गए थे। अभिमन्यू जब ढाई साल का था और ठीक से बोल भी नहीं पाता था तब से मैं उसे किस्से-कहानियों के जरिये शतरंज की मोहरों के बारे में बताया करता था। वह ध्यान से इन्हें देखता था। फिर उसने खेलना शुरू किया और पांच साल की उम्र में उसने मुझे हरा दिया। न्यूजर्सी में उसने एक टूर्नामेंट में अपने से पांच गुना बड़ी उम्र के लोगों को भी चुनौती दे दी। उन्हें हरा दिया। अभिमन्यु की विशेषता यह है कि वह अपनी रणनीति खुद बनाता है। विरोधियों को अपने चक्रव्यूह में फंसाकर गलतियां करने पर मजबूर कर देता हैं। Read the full article
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'भारत रत्न' लता मंगेशकर ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गीत गाए हैं। बकौल लता जी, 'पिताजी जिंदा होते तो मैं शायद सिंगर नहीं होती'...ये मानने वाली महान गायिका लता मंगेशकर लंबे समय तक पिता के सामने गाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं। फिर परिवार को संभालने के लिए उन्होंने इतना गाया कि सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान 'गिनीज बक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं। 91वें जन्मदिन पर लताजी से जुड़े कुछ खास किस्से।
लता जब गातीं तो मां डांटकर भगा देती थीं
लता मानती हैं कि पिता की वजह से ही वे आज सिंगर हैं, क्योंकि संगीत उन्होंने ही सिखाया। जानकर आश्चर्य हो सकता है कि लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर को लंबे समय तक मालूम ही नहीं था कि बेटी गा भी सकती है। लता को उनके सामने गाने में डर लगता था। वो रसोई में मां के काम में हाथ बंटाने आई महिलाओं को कुछ गाकर सुनाया करती थीं। मां डांटकर भगा दिया करती थीं कि लता के कारण उन महिलाओं का वक्त जाया होता था, ध्यान बंटता था।
पिता के शिष्य को सिखाया था सही सुर
एक बार लता के पिता के शिष्य चंद्रकांत गोखले रियाज कर रहे थे। दीनानाथ किसी काम से बाहर निकल गए। पांच साल की लता वहीं खेल रही थीं। पिता के जाते ही लता अंदर गई और गोखले से कहने लगीं कि वो गलत गा रहे हैं। इसके बाद लता ने गोखले को सही तरीके से गाकर सुनाया। पिता जब लौटे तो उन्होंने लता से फिर गाने को कहा। लता ने गाया और वहां से भाग गईं। लता मानती हैं 'पिता का गायन सुन-सुनकर ही मैंने सीखा था, लेकिन मुझ में कभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके साथ गा सकूं।'
सच हो गई पिता की भविष्यवाणी
इसके बाद लता और उनकी बहन मीना ने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया। छोटे भाई हृदयनाथ केवल चार साल के थे जब पिता की मौत हो गई। उनके पिता ने बेटी को भले ही गायिका बनते नहीं देखा हो, लेकिन लता की सफलता का उन्हें अंदाजा था, अच्छे ज्योतिष जो थे।
लता के मुताबिक उनके पिता ने कह दिया था कि वो इतनी सफल होंगी कि कोई उनकी ऊंचाइयों को छू भी नहीं पाएगा। साथ ही लता यह भी मानती हैं कि पिता जिंदा होते तो वे गायिका कभी नहीं बनती, क्योंकि इसकी उन्हें इजाजत नहीं मिलती।
13 की उम्र से संभाला परिवार
पिता की मौत के बाद लता ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ म���ंबई आकर मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं। 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में 'पहिली मंगलागौर' फिल्म में एक्टिंग की। कुछ फिल्मों में उन्होंने हीरो-हीरोइन की बहन के रोल किए हैं, लेकिन एक्टिंग में उन्हें कभी मजा नहीं आया। पहली बार रिकॉर्डिंग की 'लव इज ब्लाइंड' के लिए, लेकिन यह फिल्म अटक गई।
ऐसे मिला पहला बड़ा ब्रेक
संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया। शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी'। फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को फिल्म 'मजबूर' के गीत 'अंग्रेजी छोरा चला गया' में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। बाद में शशधर ने अपनी गलती मानी और 'अनारकली', 'जिद्दी' जैसी फिल्मों में लता से कई गाने गवाए।
कभी अचार-मिर्च से नहीं किया परहेज
करियर के सुनहरे दिनों में वो गाना रिकॉर्ड करने से पहले आइसक्रीम खा लिया करती थीं और अचार, मिर्च जैसी चीजों से भी उन्होंने कभी परहेज नहीं किया। उनकी आवाज हमेशा अप्रभावित रही। 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्म करने वाली वे पहली भारतीय हैं।
अपने सफर को जब लता याद करती हैं तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों की रिकॉर्डिंग वाली रातें भुलाए नहीं भूलतीं। तब दिन में शूटिंग होती थी और रात की उमस में स्टूडियो फ्लोर पर ही गाने रिकॉर्ड होते थे। सुबह तक रिकॉर्डिंग जारी रहती थी और एसी की जगह आवाज करने वाले पंखे होते थे।
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लता जी सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान 'गिनीज बक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं।
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जाने-माने प्लेबैक सिंगर एसपी बालासुब्रमण्यम का 74 साल की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया। वे पिछले करीब डेढ़ महीने से चेन्नई के एक अस्पताल में भर्ती थे, जहां उनका कोरोना का इलाज चल रहा था। 50 साल के सिंगिंग करियर में बाला ने बॉलीवुड के कई म्यूजिक डायरेक्टर्स और सिंगर्स के साथ काम किया। जिनमें से कुछ ने दैनिक भास्कर के साथ उनसे जुड़े कुछ किस्से साझा किए।
ललित पंडित : किशोर कुमार को टक्कर देने वाले एक ही इंसान थे एसपी बालू जी
संगीतकार ललित पंडित ने बालू से जुड़ी यादें शेयर करते हुए बताया, 'एसपी जी बहुत मंजे हुए सिंगर थे। उनका रिकॉर्ड तो अविश्वसनीय है। बड़े ही गुणी इंसान थे। ‘सागर’ में किशोर कुमार के साथ कोई उनकी मस्ती के साथ मैच कर सकता था तो वो एकमात्र बालू सुब्रमण्यम ही थे। ‘यूं ही गाते रहो’ गाने में ऋषि कपूर और कमल हासन थे। उसमें किशोर कुमार को बालू जी ने जोरदार टक्कर दी थी। बालू की याददाश्त और ग्रास्पिंग पावर अपने समकालीनों से मीलों आगे थी। कोई भी गाना वो दो बार सुनकर ही याद कर लेते थे और पूरा गा देते थे।'
ललित के मुताबिक, 'वो एक्सप्रेशन में गाने लिखा भी करते थे। हमारे यानी जतिन-ललित के करियर में बालू जी के सिवाय किसी और गायक के साथ एक चीज नहीं हुई। वो है एक ही दिन में किसी फिल्म के पूरे गाने रिकॉर्ड होना। फिल्म थी ‘वादे-इरादे’। उसमें पांच गाने थे और उन्होंने रिक्वेस्ट की थी कि वो मद्रास से सुबह की फ्लाइट से आकर रात वाली से वापसी कर लेंगे। हमें हैरानी हुई कि एक दिन में पांच गाने कैसे रिकॉर्ड होंगे। तो उस पर उन्होंने कहा कि अगर काम संतोषप्रद नहीं हुआ तो वे वापसी की फ्लाइट कैंसिल कर लेंगे।'
संगीतकार जोड़ी जतिन-ललित के ललित पंडित।
आगे उन्होंने बताया, 'यकीन मानिए, उन्होंने उस पूरे दिन बिना कुछ खाए पूरा गाना रिकॉर्ड किया और फिर गए। जैसे लता दीदी सुर की पक्की हैं, ठीक वही हाल बालू जी का था। हम खुद अमूमन सिंगर्स से काफी रियाज के बाद गवाते हैं। तभी हमारे साथ काम कर चुके नौ गायकों को फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुके हैं। मगर बालू जी के साथ ऐसा नहीं करना पड़ा। वो इतने माहिर जो थे। एयरपोर्ट से स्टूडियो सेंटर आने जाने में ढाई घंटे लगते थे। वो वक्त जोड़ने के बाद भी बालू जी ने एक दिन में पूरी फिल्म के गाने रिकॉर्ड कर दिए थे।'
'उनके सुर कभी ऊपर नीचे नहीं लगते थे। सुर पक्के थे तभी वो गायकी के दौरान एक्सप्रेशन ले आया करते थे कि इस अंतरे या मुखड़े पर जरा रोमांस ले आइये। वो बाकयदा पेपर पर लिखे हुए गानों पर मार्क कर देते थे। फिर गाते थे। जरूरत पड़े तो कॉमेडी कर लें। लता जी की तरह उनकी इंटोनेशन बिल्कुल परफेक्ट थी। लता जी जिस तरह परफेक्ट नोट लगाती हैं, जो कि बिल्कुल निखर कर आता है, ठीक वही हालत एसपी बालू जी की थी।'
'यह जरूर था कि उनके उच्चारण को संभालना पड़ता था, क्योंकि साउथ इंडियन एक्सेंट आता ही था। हजारों में उन्होंने साउथ में गाने गाए हैं तो वह लहजा निश्चित तौर पर रह ही जाता है। असर आना लाजिमी था।'
राम-लक्ष्मण: 'मैंने प्यार किया' के वक्त पूरी टीम नई थी, इसलिए सलमान पर एसपी ���ालू जी की आवाज ट्राई की
संगीतकार राम-लक्ष्मण ने बालू को याद करते हुए कहा, ‘मैंने प्यार किया’ के दौरान सलमान, भाग्यश्री, सूरज बड़जात्या जी और मैं खुद सब नए थे। नई टीम थी। लिहाजा गीत-संगीत में भी हम नयापन चाह रहे थे। गायकी में जरूर लता जी की अनुभवी आवाज थी।' 'उस वक्त तक रफी साहब का देहांत हो चुका था, किशोर दा भी नहीं थे और मुझे बालू जी के सिवाय तत्कालीन सिंगर्स में से कोई पसंद नहीं थे। वो इसलिए क्योंकि उसके थोड़े दिन पहले ही ‘एक दूजे के लिए’ में बालू जी की आवाज पसंद आई थी। वो भी रोमांटि�� फिल्म थी। बालू जी से जो गाने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी ने गवाए थे, वे हिट थे। तभी अपने कंपोजिशन के लिए बालू जी को बुलाया। हम ऐसी आवाज चाहते थे, जो दीदी के सामने टिक सके।'
'लता जी को कोई आपत्ति नहीं थी। वो इसलिए क्योंकि बालू जी साउथ में पॉपुलर तो थे ही हिंदी में भी वो कमल हासन आदि की आवाज थे ही। बालू जी की हिंदी में साउथ इंडिया का लहजा आता तो था। पर रिकॉर्डिंग के दौरान रियाज कर वो दूर हो जाया करता था। हमने जब-जब उनके और सलमान के साथ मिलकर गाना किया, हमारे हीरो तो बालू जी ही हुआ करते थे।'
संगीतकार जोड़ी राम-लक्ष्मण के लक्ष्मण यानी विजय पाटिल।
'पांच-छह महीने पहले बात हुई थी उनसे। उन्होंने मेरी सेहत का हाल पूछा था। मेरे गानों का हीरो मैंने खो दिया। हमने 25 फिल्में साथ में कीं। मेरी फिल्मों के गानों में सलमान के लिए सदा उनकी ही आवाज रही। ‘हम साथ-साथ हैं’ से जरूर हमारा साथ छूटा। वो इसलिए क्योंकि वो सोलो हीरो फिल्म नहीं थी। तीन हीरो थे। फिल्म का जॉनर अलग था। वहां फिर हमने हरिहरन आदि को अपनाया। उसके बाद ‘हंड्रेड डेज’ में जैकी श्रॉफ पर भी उनकी आवाज फिट बैठती थी। तो सलमान के साथ कोई ऐसी मनमुटाव वाली बात नहीं थी।'
‘बॉम्बे फिल्म लेबोरेट्री’ में वो जब भी मद्रास से आते थे तो उनकी आवाज से ही पूरे माहौल में ताजगी घुल जाती थी। ‘एक दूजे के लिए’ के टाइम पर भी एसपी बालू जी पॉपुलर हुए थे, मगर एक बार फिर ‘मैंने प्यार किया’ से वो छा गए।
बप्पी लहरी: बालासुब्रमण्यम को एक बार गाना बता दो तो सीख लेते थे
बप्पी लहरी ने शेयर करते हुए बताया, 'एसपी बालासुब्रमण्यम के साथ मैंने हिंदी, तमिल और तेलुगू में बहुत काम किया। एक पिक्चर थी- 'इंसाफ की आवाज' इसमें गाना था- इरादा करो तो पूरा करो...। इसे उन्होंने लता मंगेशकर के साथ गाया था। इसके बाद फिल्म- 'फर्स्ट लव लेटर' में उन्होंने लता मंगेशकर के साथ दीवानी-दीवानी... दीवाना तेरा हो गया... गाया। इस तरह हमने साथ में बहुत काम किया। वे दुनिया के लीजेंड में ��े एक थे। एक बार गाना बता दो तो सीख जाते थे, उन्हें दोबारा बताना नहीं पड़ता था। ऐसे गुणी सिंगर कम ही होते हैं। हम लोगों के लिए बहुत बड़ा लॉस हो गया। बालासुब्रमण्यम साहब हंसमुख स्वभाव और बहुत अच्छे नेचर के थे। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।'
बप्पी लहरी
राजेश्वरी लक्ष्मीकांत: डैडी उन्हें गाने के लिए बुलाते रहते थे
'बालू अंकल के साथ मैंने ये राजू ये डैडी... (फिल्म- एक ही भूल) में गाया। उन्होंने बहुत सपोर्ट किया। मेरे डैडी लक्ष्मीकांत ने बालू अंकल से कहा कि कुछ अपने मन से गाइए और राजेश्वरी को भी वैसे ही गवाइए। उन्होंने मुझे इतने सरल तरीके से समझाया कि मैं सहज ही समझ गई। उन्होंने इतनी सरलता से पूरा गाना गाया कि ऑन द स्पॉट उन्हें फॉलो कर सकी। खैर, जब वे चेन्नई से मुंबई रिकॉर्डिंग के लिए आते थे, तब डैडी घर पर उन्हें डिनर के लिए जरूर बुलाते थे।'
'जब कभी डैडी भी चेन्नई जाते थे तो उनके घर जाते थे। डैडी कहते थे कि मैं रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें सिर्फ 15 मिनट पहले बुलाता हूं। इससे पहले उन्हें आने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि वे 15 मिनट में ही गाना पिक कर लेते थे। इतनी जल्दी गाने को पकड़ लेते थे कि तारीफ में कहते थे कि आप अपने घर का पता दो, इस पर वह मुस्कुरा देते थे। मुझे ही नहीं, मेरी मम्मी का भी फेवरेट जो गाना है, वो है- 'हम-तुम दोनों जब मिल जायेंगे एक नया इतिहास बनाएंगे...'
'मुझे लगता है कि 'एक दूजे के लिए' का यह गाना उनका पहला हिंदी गाना था। उसके बाद एक ही भूल, रास्ते प्यार के, जरा सी जिंदगी, अग्निपथ आदि फिल्मों में गाने के लिए बुलाते रहते थे। उनका जब से एसोसिएशन हुआ तब से उनसे गाने लेते ही रहते थे। पता नहीं पिताजी को क्या सूझा कि एक ही भूल फिल्म में पहली बार गाने वाली थी, तब डैडी ने बालू अंकल को ही बुलाया। और किसी से भी गवा सकते थे। खैर, बालू अंकल जाना इंडस्ट्���ी के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वेरी सैड न्यूज। उन्हें मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि।'
(जैसा अमित कर्ण और उमेश उपाध्याय को बताया)
राजेश्वरी लक्ष्मीकांत
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Bappi Lahiri said- Once Balasubrahmanyam learned the song, he would have learned, Lalit Pandit said- He was the only person to beat Kishore Kumar
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