#पवित्र तीर्थस्थान
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iskconchd · 1 year ago
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जो अपने अन्तःकरण में सदैव श्रीकृष्ण को धारण करता है, वह कहीं भी जा सकता है और उस स्थान को पवित्र तीर्थस्थान में परिवर्तित कर सकता है। रूपानुग को पत्र, 3 जुलाई 1968
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glorious-maharashtra · 1 month ago
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nashikfast · 1 year ago
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--II ● विवेक विचार ● II--
अखंडित, सातत्यपूर्ण संकल्पाचा २२५४ वा दिवस* ‘पाश्चात्त्य देशांत येण्यापूर्वी मी भारतावर प्रेम करीत असे. आता तर भारतातील धूळही मला पवित्र वाटत आहे, तेथील हवा देखील मला पवित्र वाटते. भारत आता ��ला परमपवित्र धाम वाटतो, तो माझ्यापक्षी आता तीर्थस्थान होऊन बसला आहे!’ तरीही भारताबद्दल अतिशय प्रीती, देशभक्ती व आपल्या पूर्वजांविषयी बाळगूनही मला वाटत आहे की, आपल्याला इतर देशांकडून पुष्कळ गोष्टी शिकावयाच्या…
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journalistcafe · 4 years ago
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भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है राम मंदिर : RSS
भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है राम मंदिर : RSS
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा है कि राम मंदिर, एक पवित्र तीर्थस्थान के अलावा भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है, जो सांस्कृतिक मूल्यों और आर्थिक समृद्धि का भी प्रतीक है। डॉ. मनमोहन वैद्य के मुताबिक, अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का शुभारंभ भारत के सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। जिस तरह से गुजरात में सोमनाथ मंदिर…
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deepestcollectiongarden · 5 years ago
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विशालाक्षी शक्तिपीठ -
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उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।
विशालाक्षी शक्तिपीठ अथवा काशी विशालाक्षी मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मन्दिर उत्तर प्रदेश के प्राचीन नगर बनारस ('काशी' या 'वाराणसी') में काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर मीरघाट पर स्थित है। भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी पुरातत्त्व, पौराणिक कथाओं, भूगोल, कला और इतिहास संयोजन का एक महान केंद्र है। यह दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा नदी के बाएं तट पर स्थित है और हिन्दुओं की सात पवित्र पुरियों में से एक है। इस पवित्र स्थल को 'बनारस' और 'काशी' नगरी के नाम से भी जानते हैं। इसे मन्दिरों एवं घाटों का नगर भी कहा जाता है। ऐसा ही एक मंदिर है 'काशी विशालाक्षी मंदिर', जिसका वर्णन 'देवीपुराण' में किया गया है।
मान्यता
हिन्दुओं की मान्यता के अनुसार यहाँ माता सती की आँख या 'दाहिने कान के मणि' गिरे थे। यहाँ की शक्ति 'विशालाक्षी' माता तथा भैरव 'काल भैरव' हैं। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र ��ा आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
पौराणिक कथा
'काशी विश्‍वनाथ मंदिर' से कुछ ही दूरी पर स्थित विशालाक्षी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी सती की आँख या दाहिने कान के मणि गिरे थे। इसलिए इस जगह को 'मणिकर्णिका घाट' भी कहते हैं। वैसे कहा यह भी जाता है कि जब भगवान शिव वियोगी होकर सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब भगवती का कर्ण कुण्डल इसी स्थान पर गिरा था।
एक अन्य आख्यान के अनुसार मां अन्नपूर्णा, जिनके आशीर्वाद से संसार के समस्त जीव भोजन प्राप्त करते हैं, वे ही 'विशालाक्षी' हैं। 'स्कंद पुराण' की कथा के अनुसार जब ऋषि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था, तब विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन दिया। विशालाक्षी की भूमिका बिलकुल अन्नपूर्णा के समान थी।
तंत्रसागर के अनुसार
तंत्रसागर के अनुसार भगवती गौरवर्णा हैं। उनके दिव्य विग्रह से तप्त स्वर्ण सदृश्य कांति प्रवाहित होती है। वह अत्यंत रूपवती हैं तथा सदैव षोडशवर्षीया दिखती हैं। वह मुण्डमाल धारण करती हैं, रक्तवस्त्र पहनती हैं। उनके दो हाथ हैं जिनमें क्रमशः खड्ग और खप्पर रहता है।
तंत्रचूड़ामणि के अनुसार
तंत्रचूड़ामणि के अनुसार काशी (वाराणसी) में सती के दाहिने कान की मणि का निपात हुआ था। यह स्थान मीरघाट मुहल्ले के मकान नंबर डी/3-85 में स्थित है, जहाँ विशालाक्षी गौरी का प्रसिद्ध मंदिर तथा विशालाक्षेश्वर महादेव का शिवलिंग भी है। यहाँ भगवान् काशी विश्वनाथ विश्राम करते हैं।
विशालाक्षी पीठ
देवी भागवत के 108 शक्तिपीठों में सर्वप्रथम विशालाक्षी का नामोल्लेख है,
वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषे लिंगधारिणी। प्रयागे ललिता देवी कामाक्षी गंधमादने॥
जहाँ सती का मुख गिरा था।देवी के सिद्ध स्थानों में काशी में मात्र विशालाक्षी का वर्णन मिलता है तथा एक मात्र विशालाक्षी पीठ का उल्लेख काशी में किया गया है।
अविमुक्ते विशालाक्षी महाभागा महालये।
तथा
वारणस्यां विशालाक्षी गौरीमुख निवासिनी।
स्कंद पुराण के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं तथा भगवान् श्री काशी विश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं।
विशालाक्ष्या महासौधे मम विश्राम भूमिका। तत्र संसृति खित्तान्नां विश्रामं श्राणयाम्यहम्॥
महत्त्व
विशालाक्षी शक्तिपीठ भारत का अत्यंत पावन तीर्थ स्थान है। यहां की शक्ति विशालाक्षी माता तथा भैरव काल भैरव हैं। श्रद्धाल��� यहां शुरू से ही देवी मां के रूप में विशालाक्षी तथा भगवान शिव के रूप में काल भैरव की पूजा करने आते हैं। पुराणों में ऐसी परंपरा है कि विशालाक्षी माता को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि चढ़ाए जाएँ। ऐसी मान्यता है कि यह शक्तिपीठ दुर्गा मां की शक्ति का प्रतीक है। दुर्गा पूजा के समय हर साल लाखों श्रद्धालु इस शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए आते हैं। देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि यहां 41 मंगलवार 'कुमकुम' का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी मां भक्त झोली भर देती हैं।
।। श्री स्नेहा माता जी ।।
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moneycontrolnews · 5 years ago
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जीवन मंत्र डेस्क. सिख समुदाय के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को पटना, मेंं विक्रम संवत 1723 को हुआ था। इस साल यह तिथि 2 जनवरी को आ रही है। गुरु गोबिंद सिंह की याद में ही श्री हरिमंदिरजी पटना साहिब तख्त का निर्माण हुआ था। सिख इतिहास में पटना साहिब का विशेष महत्व है। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म यहीं 5 जनवरी, 1666 को हुआ था और उनका संपूर्ण बचपन भी यहीं गुजरा था। यही नहीं सिखों के तीन गुरुओं के चरण इस धरती पर पड़े हैं। इस कारण देश व दुनिया के सिख संप्रदाय के लिए पटना साहिब आस्था, श्रद्धा का बड़ा और पवित्र केंद्र व तीर्थस्थान हमेशा से है। सिक्खों को संगठित किया इनका मूल नाम गोविंद राय था। गोविंद सिंह को सैन्य जीवन के प्रति लगाव ��पने दादा गुरु हरगोविंद सिंह से मिला था और वह बहुभाषाविद थे, जिन्हें फ़ारसी अरबी, संस्कृत और अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान था। उन्होंने सिक्ख क़ानून को सूत्रबद्ध किया, काव्य रचना की और सिक्ख ग्रंथ दशम ग्रंथ (दसवां खंड) लिखकर प्रसिद्धि पाई। उन्होंने देश, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिक्खों को संगठित किया। यहां बीते जीवन के शुरुआती साल आनंदपुर जाने से पहले गुरु गोबिंद सिंह के जीवन के शुरुआती साल यहीं बीते थे। यह गुरुद्वारा सिखों के पाँच पवित्र तख्त में से एक है। भारत और पाकिस्तान में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे की तरह, इस गुरुद्वारा को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाया गया था। 1837 में हुआ पुनर्निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने इसका पुनर्निर्माण 1837-39 के बीच कराया था। यहां आज भी गुरु गोबिंद सिंह की वह छोटी कृपाण है, जो बचपन में वे धारण करते थे। यहां आने वाले श्रद्धालु उस लोहे की छोटी चक्र को, जिसे गुरु बचपन में अपने केशों में धारण करते थे तथा छोटा बघनख खंजर, जो कमर-कसा में धारण करते थे, के दर्शन करना नहीं भूलते। गुरु तेग बहादुर जी महाराज जिस चंदन की लकड़ी के खड़ाऊं पहना करते थे, उसे भी यहां रखा गया है, जो श्रद्धालुओं की श्रद्धा से जुड़ा है। गुरुद्वारे की चौथी मंजिल में पुरातन हस्तलिपि और पत्थर के छाप की पुरानी बड़ी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रति को सुरक्षित रखा गया है, जिस पर गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने तीर की नोक से केसर के साथ मूल मंत्र लिखा था। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Shriharimandir ji Patna Sahib Takht, Guru Gobind Singh was born here
http://poojakamahatva.blogspot.com/2019/12/blog-post_45.html
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geetashlokofficial · 6 years ago
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Swipe next for English.. तात्पर्य :‘पवित्र स्थान’ तीर्थस्थान का सूचक है | भारत में योगी तथा भक्त अपना घर त्याग कर प्रयाग, मथुरा, वृन्दावन , हृषिकेश तथा हरिद्वार जैसे पवित्र स्थानों में वास करते हैं और एकान्तस्थान में योगाभ्यास करते हैं, जहाँ यमुना तथा गंगा जैसी नदियाँ प्रवाहित होती हैं | किन्तु प्रायः ऐसा करना सबों के लिए, विशेषतया पाश्चात्यों के लिए, सम्भव नहीं है | बड़े-बड़े शहरों की तथाकथित योग-समितियाँ भले ही धन कमा लें, किन्तु वे योग के वास्तविक अभ्यास के लिए सर्वथा अनुपयुक्त होती हैं | जिसका मन विचलित है और जो आत्मसंयमी नहीं है, वह ध्यान का अभ्यास नहीं कर सकता | अतः बृहन्नारदीय पुराण में कहा गया है कि कलियुग (वर्तमान युग) में, जबकि लोग अल्पजीवी, आत्म-साक्षात्कार में मन्द तथा चिन्ताओं से व्यग्र रहते हैं, भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन है – हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् | कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा || “कलह और दम्भ के इस युग में मोक्ष का एकमात्र साधन भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन करना है | कोई दूसरा मार्ग नहीं है | कोई दूसरा मार्ग नहीं है | कोई दूसरा मार्ग नहीं है |” #geeta #gitashlok #shlok #geetashlok #gita https://www.instagram.com/p/BqgbVzjAN0c/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=18j1akiu58jri
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zityndra-blog · 6 years ago
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सबरीमाला ;- अनुशासित परम्परा या आडम्बर – अजेष्ठ त्रिपाठी कोई आपसे पूछे कि ब्रह्मांड में कितनी तरह की चीज़े हैं तो आप क्या जवाब देंगे ? जवाब है सिर्फ दो - पहली चीज़ है ऊर्जा यानी एनर्जी (E), दूसरी द्रव्यमान, मैटर या मास (M) । इनके बीच के सिद्धांत को ऊर्जा द्रव्यमान का समीकरण कहते है जिसे E = MC*2 से प्रदर्शित करते है और इस समीकरण के अनुसार ऊर्जा न पैदा होती है न खत्म की जा सकती है। बस अपना रूप बदलती है। # अब_जरा_इसे_पढिये - नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 23) आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। मतलब उसे नष्ट नही किया जा सकता । दोनो में समानता मिली ऊपर का नियम ऊर्जा द्रव्यमान का नियम है जो अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा दिया गया नीचे भगवत गीता में आत्मा के उसी रूप यानी आत्मा के एक ऊर्जा ही होने की पुष्टि की जा रही है , की आत्मा भी ऊर्जा का एक रूप है जिससे मानव शरीर कार्य करता है । भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं रहे, व��� हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त कर सकते है। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर तरह के लोगों को ध्यान मे रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया। एक व्यक्ति की कई तरह की जरूरतें होती हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए जि��का आधार रहा अगम शास्त्र दरअसल आगम शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये। यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है , सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं, जिसको हम ईश्वर कहते हैं दूसरे शब्दों में विज्ञान की व्याख्यानुसार ऊर्जा का केंद्र जिससे हमें ऊर्जा मिलती है । # अगम_शास्त्र , बहुत लम्बे समय से हिन्दू धर्म के पूजा-पाठ, मंदिर निर्माण, आध्यात्मिक और अनुष्ठानिक रीति-रिवाज के नियम और मानदंडों के लिए बने विचारों का एक सम्पूर्ण संकलन है। यह संस्कृत, तमिल और ग्रंथ शास्त्रों का एक संग्रह है जिसमें मुख्य रूप से मंदिर निर्माण के तरीके, मूर्ती निर्माण के तरीके, दार्शनिक सिद्धांतों और ध्यान मुद्राओं का सम्पूर्ण संगृह है। बाद के वर्षों में यह विभिन्न प्रकार के श्रोतों और विचारों के आत्मसात हुआ और सम्पूर्ण अस्तित्व में आया (कुछ कुरीतिया भी सम्मिलित हुई)। एक संग्रह के रूप में सम्पुर्ण अगम शस्त्र को दिनांकित नहीं किया जा सकता है इसके कुछ भाग वैदिक काल के पहले के प्रतीत होते हैं और कुछ भाग वैदिक काल के बाद के। मंदिर निर्माण और पूजा में अगम शास्त्र की भूमिका एक पूर्ण उपदेशक और मार्गदर्शक के रूप में, आगम शास्त्र अभिषेक और पवित्र स्थानों के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ज्यादातर हिन्दू पूजास्थल अगम शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करतें है। अगम शास्त्र के चार पद - जैसे की अगम संख्या में बहुत सारे हैं लेकिन उनमे से प्रत्येक के चार भाग होते हैं # क्रिया_पद # चर्या_पद # योग_पद # जनन_पद क्रिया पद मंदिर निर्माण, मूर्तिकला के अधिक साकार नियमों की व्याख्या करता है जबकि जनन पद मंदिर में पूजा की विधि, दर्शन और आध्यामिकता के नियमों की गर्वित व्याख्या करता है ,अगम शस्त्र के अनुसार मंदिर और पूजास्थल कभी भी एसे ही स्वेच्छा से और स्थानीय धारणाओं के आधार पर मनमाने ढंग से नहीं बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी भी हिन्दू तीर्थस्थान के लिए तीन अनिवार्य सारभूत या मौलिक आवश्यकताएं है # स्थल - मंदिर की जगह को दर्शाता है # तीर्थ - मंदिर के जलाशय या सरोवर को दर्शाता है # मूर्ती - पूजित प्रतिमा को दर्शाती है अगम शास्त्र में तीर्थस्थल/मंदिर के प्रत्येक छोटे-छोटे से पहलु, आकृति, दृष्टिकोण और भाव के लिए विस्तार पूर्वक नियमों और तरीकों का विवरण है जैसे की मंदिर क�� निर्माण किस सामग्री से किया जाना चाहिए, पवित्र प्रतिमा का उचित स्थान कहाँ होना चाहिए और पवित्र प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करनीं चाहिए आदि आदि। आसान शब्दो मे ऊर्जा स्थानांतरण के लिए किन नियमो का पालन किया जाए कि हममे स्थित ऊर्जा उस ऊर्जा के केंद्र से ऊर्जा लेकर और अधिक ऊर्जावान बन सके ये हमे अगम शास्त्र का जनन पद बताता है , वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आप ऐसे समझिए कि यदि किसी ट्रांसफार्मर से हम ऊर्जा यानी विद्युत आपूर्ति करते है तो वायर यदि सही न लगाकर गलत लगा दिया जाए तो न सिर्फ उपभोक्ता को नुकसान होगा अपितु उस ट्रांसफार्मर को भी छती पहुँचेगी और यही होता है जब कोई अपात्र व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है तो न सिर्फ उसे नुकसान होता है बल्कि उन ऊर्जा केंद्रों का भी ।। केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा है और वहाँ से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग 1km की ऊंचाई पर शबरीमला मंदिर स्थित है। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं ,और हिन्दू धर्म का एक प्रतीक चिन्ह है ये मंदिर इसलिए विधर्मियों की नजर भी हमेसा इसपर रही । मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं। मंदिर में रजस्वला स्त्री का प्रवेश वर्जित था इसके पीछे कारण था इस समय महिलाओं की औरा नेगेटिव एनर्जी होना , आप हर प्रवेश करने वाली महिला से ये तो पूछ नही सकते कि आप रजस्वला हो या नही इसलिए मंदिर में 10 से नीचे और 50 से ऊपर महिलाओं के प्रवेश की अनुमति थी वो भी उनके ही भले के लिए क्योंकि ऐसा न होने पर मंदिर सिर्फ एक दर्शन स्थल ही रह जॉयगा उसका प्रभाव कम हो जाएगा , लेकिन फेमिनिस्ट जमात को सिर्फ हिन्दू धार्मिक स्थलों पर ही असमानता दिखती है आशा करता हूं मस्जिद में महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए जल्द ही ये जमात आंदोलन करेगी । # विशेष - ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए साल में सिर्फ नवंबर से जनवरी तक खुलता है। बाकी महीने इसे बंद रखा जाता है।भक्तजन पंपा त्रिवेणी में स्नान करते हैं और दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करते हैं। इसके बाद ही शबरीमलै यानी सबरीमाला मंदिर जाना होता है।पंपा त्रिवेणी पर गणपति जी की पूजा करते हैं। उसके बाद ही चढ़ाई शुरू करते हैं। पहला पड़ाव शबरी पीठम नाम की जगह है। कहा जाता है कि यहां पर रामायण काल में शबरी नामक भीलनी ने तपस्या की थी। श्री अय्यप्पा के अवतार के बाद ही शबरी को मुक्ति मिली थी। इसके आगे शरणमकुट्टी नाम की जगह आती है। पहली बार आने वाले भक्त यहाँ पर शर (बाण) गाड़ते हैं। इसके बाद मंदिर में जाने के लिए दो मार्ग हैं। एक सामान्य रास्ता और दूसरा अट्ठारह पवित्र सीढ़ियों से होकर। जो लोग मंदिर आने के पहले 41 दिनों तक कठिन व्रत करते हैं वो ही इन पवित्र सीढ़ियों से होकर मंदिर में जा सकते हैं । दरअसल पहले नियम था कि इस मंदिर में 41 दिन के व्रत के बाद ही लोग प्रवेश करते थे इससे उनको ऊर्जा , व्रत के कारण आत्मिक शारीरिक शुद्धि मिलती थी जिससे यहां से जाने पर वो जीवन मे अधिक ऊर्जा से आगे बढ़ते । लेकिन अब सीधे ऊर्जा के केन्द्र को ही दूषित कर देने का कुत्शित प्रयास हो रहा है ताकि हिन्दुओ का धर्मांतरण , उनके हनन में आसानी हो । # मंदिर_का_नियम_और_मानव_शरीर - शबरीमाला मंदिर प्रवेश के लिए 41 दिन के व्रत के लिए जो निर्देश है उनसे क्या लाभ है इसका विश्लेषण भी कर देता हूँ - 1- इकतालीस दिन तक समस्त लौकिक बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है। ब्रम्हचर्य के लाभ आज हर वैमानिक पुष्टि करती है कि इससे शरीर मे ऊर्जा बढ़ती है मेडीकली देखे तो स्पर्म काउंट , डेन्सिटी और यौन छमता को बढ़ाया जाता है ब्रम्हचर्य से । 2- इन दिनों में उन्हें नीले या काले कपड़े ही पहनने पड़ते हैं। प्रकाश के सबसे अच्छे अवशोषक है ये रंग , चर्म रोग या व्यधि कैलसिफिकेशन आदि रोगी जब 41 दिन तक इन कपड़ो में दैनिक कार्य सूर्य उपासना पूजा कर्म आदि करते है तो उसमें लाभ होता है यहाँ तक कि स्किन कैंसर जैसी समस्या के लिए भी एक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है 3- गले में तुलसी की माला रखनी होती है और पूरे दिन में केवल एक बार ही साधारण भोजन करना होता है। तुलसी माला एक मदिबन्ध पर दवाब डालती है तो रक्तचाप नियंत्रण में रहता है साधारण और 1 समय के भोजन से लिवर और पेट से समस्या खत्म हो जाती है । 4- शाम को पूजा करनी होती है और ज़मीन पर ही सोना पड़ता है। मान��िक शांति के साथ , जमीन पर सोने से सर्वाइकल पेन और शरीर के मांसपेशियों को लाभ धरती की चुम्बकीय तरंगों से तन मन को रिलैक्स मिलता है ।
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जो अपने अन्तःकरण में सदैव श्रीकृष्ण को धारण करता है, वह कहीं भी जा सकता है और उस स्थान को पवित्र तीर्थस्थान में परिवर्तित कर सकता है। रूपानुग को पत्र, 3 जुलाई 1968
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