#पंजाब उपन्यास
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पहली बार इस ट्रेन की आधी सीटें खालीं, डर इतना की लोग आपस में बात करने से भी बच रहे थे
पहली बार इस ट्रेन की आधी सीटें खालीं, डर इतना की लोग आपस में बात करने से भी बच रहे थे
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ट्रेन में सफाई तो सफ थी लेकिन रौनक नहीं, यात्री बार-बार पीसी सैनिटाइजर से साफ कर रहे थे हाथ, डस्टबिन भी खाली पड़े थे।
8 की जगह 3 टीटीई ही ट्रेन में, 50 साल से ज्यादा उम्र वाला स्टाफ ज्यादातर डाक पर तैनात, हेल्पर और मैकेनिक किट्टी में तैनात
तेज बाजपेई
Jun 02, 2020, 10:48 AM IST
भोपाल। दूसरी रिपोर्ट भोपाल एक्सप्रेस ट्रेन से,
जो ट्रेन पहले यात्रियों से ठसाठस भरी होती थी। जिसके जनरल कोच में…
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कोरोना देश में: स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा- वैक्सीनेशन के बाद 28 लोगों को भर्ती किया गया; ये 9 की मौत, पर सब अलग कारणआयेन्द से
कोरोना देश में: स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा- वैक्सीनेशन के बाद 28 लोगों को भर्ती किया गया; ये 9 की मौत, पर सब अलग कारणआयेन्द से
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शहीदे आजम भगत सिंह:एक क्रांतिकारी के आखिर 24 घंटे -
शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में ��ंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" ��ुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस ��ाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन कि��ी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी ��दस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/319PmN5
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monday motivation Mona Singh जैसी कोई नहीं! Laal Singh Chaddha में 17 साल बड़े आमिर खान की मां बनी है अपनी 'जस्सी'- monday motivation 40 year old actress mona singh plays 57 year old aamir khan mother in laal singh chaddha
monday motivation Mona Singh जैसी कोई नहीं! Laal Singh Chaddha में 17 साल बड़े आमिर खान की मां बनी है अपनी ‘जस्सी’- monday motivation 40 year old actress mona singh plays 57 year old aamir khan mother in laal singh chaddha
��ॉलीवुड की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ का ट्रेलर रिलीज हो गया है. इसमें करीना कपूर, आमिर खान और मोना सिंह मुख्य भूमिका में हैं। यह फिल्म पूरी हॉलीवुड फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’ की कॉपी है। सिर्फ आमिर खान का लुक बदला और पंजाब की धरती में समा गए। खैर, फिल्म में ऊपर बताए गए तीनों कलाकारों की जोड़ी चेतन भगत के उपन्यास पर आधारित ‘3 इडियट्स’ में भी नजर आई थी। केवल उनकी भूमिकाएँ अलग थीं। मोना सिंह ने…
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ਸਵਰਗੀ ਗਾਇਕ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਉੱਪਰ ਅਧਾਰਿਤ ਮੇਰੇ ਨਾਵਲ ਸ਼ਹੀਦ ਦਾ ਇੱਕ ਕਾਂਡ -ਬਲਰਾਜ ਸਿੰਘ ਸਿੱਧੂ
ਗਲਤ ਗੱਲ -ਬਲਰਾਜ ਸਿੰਘ ਸਿੱਧੂ
ਅੱਤ ਦੀ ਗਰਮੀ ਵਿੱਚ ਲੁਧਿਆਣੇ ਬੱਸ ਅੱਡੇ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬਣੇ ਪੰਜਾਬੀ ਗਾਇਕਾਂ ਦੇ ਦਫਤਰਾਂ ਮੂਹਰੇ ਦੀ ਇੱਕ ਰਿਕਸ਼ਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਰਿਕਸ਼ਾ ਚਾਲਕ ਬਿਹਾਰੀ ਹੈ। ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸਵਾਰੀਆਂ ਬੈਠੀਆਂ ਹਨ। ਇੱਕ ਪੱਚੀ ਛੱਬੀ ਸਾਲ ਦਾ ਟੌਹਰੀ ਜਿਹਾ ਟੇਡੀ ਬੰਨੀ ਪੇਚਾਂ ਵਾਲੀ ਪੱਗ ਵਾਲਾ ਮੁੰਡਾ ਤੇ ਦੂਜਾ ਅਧਖੜ ਜਿਹੀ ਉਮਰ ਦਾ ਖੁੱਲੀ ਦਾੜੀ ਵਾਲਾ ਸਫਾਰੀ ਸੂਟ ਪਹਿਨੀ ਬੈਠਾ ਵਿਅਕਤੀ।
ਪਸੀਨੋ ਪਸੀਨੀ ਹੋਏ ਬਿਹਾਰੀ ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਾਲੇ ਨੇ ਮੱਥੇ 'ਤੇ ਆਇਆ ਪਸੀਨਾ ਪੂੰਝਣ ਲਈ ਜਿਉਂ ਹੀ ਪੈਡਲ ਮਾਰਨੇ ਬੰਦ ਕੀਤੇ ਤਾਂ ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਬੈਠੀਆਂ ਦੋਨਾਂ ਸਵਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਅਧਖੜ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਸੜਕ 'ਤੇ ਜਾਂਦੇ ਇੱਕ ਲੜਕੇ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, "ਓ ਕਾਕਾ... ਗਾਇਕ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਦਫਤਰ ਕਿੱਥੇ ਕੁ ਆ?"
"ਆਹਾ ਨਾਲ ਦਾ ਮੋੜ ਮੁੜ ਜੋ। ਸ਼ੌਕਰਾਂ ਆਲੀ ਦੁਕਾਨ ਨਾਲ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਈ ਦਫਤਰ ਆ।"
ਦਫਤਰ ਮੂਹਰੇ ਰਿਕਸ਼ਾ ਰੁੱਕੇ ਤੋਂ ਦੋਨੋਂ ਸਵਾਰੀਆਂ ਉਤਰੀਆਂ 'ਤੇ ਅਧਖੜ ਵਿਅਕਤੀ ਪੈਸੇ ਦੇਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਦਫਤਰ ਵੱਲ ਵੱਧ ਗਿਆ। ਦਫਤਰ ਵਿੱਚ ਅਜੇ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਇਆ ।ਸਿਰਫ ਗਾਇਕ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਢੋਲਕ ਮਾਸਟਰ ਕੇਸਰ ਸਿੰਘ ਟਿੱਕੀ ਹੀ ਸੀ। ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਗਾਹਕ ਆਏ ਦੇਖ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੈਠਣ ਦਾ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕੀਤਾ ਤੇ ਚਾਹ ਪਾਣੀ ਪੁੱਛਿਆ।
ਅਧਖੜ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾੜੀ 'ਤੇ ਹੱਥ ਫੇਰ ਕੇ ਬੋਲਿਆ, "ਮੇਰਾ ਨਾਂ ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਆ।... ਮੈਂ ਰਿਟਾਇਰ ਐਸ ਪੀ ਹਾਂ। ਆਹ ਮੇਰਾ ਲੜਕੈ। ਇਹ ਹਿੰਡ ਕਰੀ ਜਾਂਦੈ ਕਿ ਆਪਣੇ ਵਿਆਹ 'ਤੇ ਇਹਨੇ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਜ਼ਰੂਰ ਲਵਾਉਣੈ।"
ਕੇਸਰ ਟਿੱਕੀ ਬੋਲਿਆ, "ਹਾਂ ਜੀ ਸਰਦਾਰ ਜੀ। ਥੋਡੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਨੂੰ ਈ ਅਸੀਂ ਬੈਠੇ ਆਂ। ਕਿਹੜੀ ਤਰੀਕ ਆ?"
"ਅਗਲੇ ਮਹੀਨੇ ਦੀ ਚੌਵੀ।" ਨੌਜਵਾਨ ਹੁੱਭ ਕੇ ਬੋਲਿਆ।
ਕੇਸਰ ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਮੇਜ਼ ਦੇ ਡਰਾਅ ਵਿੱਚ ਪਈ ਡਾਇਰੀ ਕੱਢ ਕੇ ਦੇਖੀ ਤੇ ਕੁਝ ਸੋਚ ਕੇ ਬੋਲਿਆ, "ਸਰਦਾਰ ਜੀ, ਉਂਅਅਅਅਅ ਚੌਵੀ ਤਰੀਕ ਤਾਂ ਬੁੱਕ ਆ ਜੀ। ਆਹ ਲਉ ਆਪੇ ਡੈਰੀ ਦੇਖਲੋ।"
ਦੋਨਾਂ ��ਿਉ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਇੱਕਦਮ ਮੁਰਝਾ ਗਏ। ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਠਰਮੇ ਨਾਲ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, "ਅਸੀਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਆਏ ਹਾਂ। ਪਾਤੜਾਂ ਕੋਲ ਮੇਰਾ ਪਿੰਡ ਆ। ਸੁਣਿਐ ਚਮਕੀਲਾ ਇੱਕ ਦਿਨ ਵਿੱਚ ਤਿੰਨ ਚਾਰ ਅਖਾੜੇ ਲਾ ਦਿੰਦੈ।... ਕਰੋ ਸਾਡਾ ਕੁਸ਼?"
"ਅਖਾੜੇ ਤਾਂ ਚੌਵੀ ਨੂੰ ਵੀ ਤਿੰਨ ਈ ਲੱਗ ਰਹੇ ਨੇ ਜੀ। ਪਰ ਅਸੀਂ ਦੂਜੇ ਅਖਾੜੇ ਲਾ ਕੇ ਥੋਡੇ ਪਿੰਡ ਨਹੀਂ ਪਹੁੰਚ ਸਕਦੇ। ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਕਿਹੜਾ ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ ਆ। ਜੇ ਤੁਹਾਡੇ ਲਾਵਾਂਗੇ ਤਾਂ ਦੂਜੇ ਖੁੰਝਦੇ ਨੇ।" ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਪ੍ਰਗਟਾਈ।
ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਦਫਤਰ ਵਿੱਚ ਚੁੱਪ ਪਸਰੀ ਰਹੀ। ਫੇਰ ਨੌਜਵਾਨ ਲੜਕਾ ਬੋਲਿਆ, "ਬਾਈ ਆਏਂ ਕਰ ਯਾਰ ਸਾਨੂੰ ਕੇਰਾਂ ਚਮਕੀਲੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਦੇ। ਫੇਰ ਮੈਂ ਜਾਣਾ ਜਾਂ ਮੇਰਾ ਕੰਮ।"
ਉਹਨੇ ਅਜੇ ਗੱਲ ਪੂਰੀ ਹੀ ਕੀਤੀ ਸੀ ਕਿ ਦਫਤਰ ਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਦਾ ਬੂਹਾ ਖੁੱਲਿਆ ਤੇ ਅਮੀਤਾਬ ਬਚਨ ਵਰਗੇ ਹੇਅਰ ਸਟਾਇਲ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਲੰਮਾ-ਲੰਝਾ ਨੌਜਵਾਨ ਡੱਬੀਆਂ ਵਾਲੀ ਬਿਸਕੁੱਟੀ ਕਮੀਜ਼ ਤੇ ਭੂਰੀ ਪੈਂਟ ਪਾਈ ਅੰਦਰ ਦਾਖਿਲ ਹੋਇਆ। ਉਸ ਨੇ ਬਾਹਰੋਂ ਖੜ੍ਹੇ ਨੇ ਕੁਝ ਕੁ ਗੱਲਾਂ ਸੁਣ ਲਈਆਂ ਸਨ। ਅੰਦਰ ਆਉਂਦਿਆਂ ਹੀ ਉਸ ਨੌਜਵਾਨ ਨੇ ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਬੁਲਾ ਕੇ ਦੋਨਾਂ ਪਿਉ ਪੁੱਤਾਂ ਨਾਲ ਹੱਥ ਮਿਲਾਇਆ, "ਦਾਸ ਨੂੰ ਹੀ ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲਾ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ।"
ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਦੇਖਦਿਆਂ ਹੀ ਦੋਨਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਖਿੜ ਗਏ। ਕੇਸਰ ਟਿੱਕੀ ਨੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਸਾਰੀ ਕਹਾਣੀ ਸੁਣਾਈ ਤਾਂ ਚਮਕੀਲਾ ਸੋਚਾਂ ਵਿੱਚ ਪੈ ਗਿਆ। ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਕੁਰਸੀ ਛੱਡ ਕੇ ਟਿੱਕੀ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਗਿਆ।
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਟਿੱਕੀ ਨੂੰ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ, "ਜਾ ਟਿੱਕੀ, ਭੱਜ ਕੇ ਚਾਹ ਨੂੰ ਕਹਿ ਕੇ ਆ।"
"ਨਾ ਬਾਈ ਜੀ, ਚਾਹ ਦੀ ਲੋੜ ਨ੍ਹੀਂ, ਬਸ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਵਿਆਹ 'ਤੇ ਖਾੜਾ ਲਾਉਣ ਲਈ ਮੰਨ ਜੋ?" ਨੌਜਵਾਨ ਨੇ ਮੇਜ਼ 'ਤੇ ਪਿਆ ਚਮਕੀਲੇ ਦਾ ਉੱਠ ਕੇ ਹੱਥ ਘੁੱਟ ਲਿਆ।
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੱਥ ਉੱਪਰ ਪਏ ਉਸਦੇ ਹੱਥ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਦੂਜਾ ਹੱਥ ਰੱਖਿਆ ਤੇ ਬੁੱਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਕਾਉਂਦਾ ਹੋਇਆ ਬੋਲਿਆ, "ਯਾਰ ਮੈਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਦਾ। ਪਰ ਮੈਂ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹਾਂ। ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਕਲਾਕਾਰ ਨੂੰ ਭੇਜ ਦਿੰਨੇ ਆ?"
"ਨਹੀਂ ਹੋਰ ਨੂੰ ਨ੍ਹੀਂ ਕਿਸੇ ਨੇ ਉੱਥੇ ਸੁਣਨਾ। ਬਸ ਸਿਰਫ ਤੁਹਾਨੂੰ ਹੀ ਲਿਜਾਣਾ। ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਨਾਂ ਕੇਰਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਜੇ ਬਈ ਕਿਸੇ ਦਾ ਵਿਆਹ ਹੋ ਰਿਹੈ।... ਤੁਸ��ਂ ਪ੍ਰਗਰਾਮ ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਪੈਸੇ ਲੈਂਦੇ ਹੋ?"
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਧੀਮੀ ਜਿਹੀ ਅਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਦੱਸਿਆ, "ਪੈਂਤੀ ਸੌ।"
ਐਨੇ ਨੂੰ ਇੱਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਮੁੰਡੂ ਚਾਰ ਗਿਲਾਸਾਂ ਵਿੱਚ ਚਾਹ ਲੈ ਕੇ ਆ ਗਿਆ। ਸਾਰੇ ਜਾਣੇ ਚਾਹ ਪੀਣ ਲੱਗ ਪਏ।
ਲੜਕੇ ਦੇ ਬਾਪ ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਚਾਹ ਦੀ ਆਖਰੀ ਘੁੱਟ ਭਰੀ, "ਚਮਕੀਲਿਆ, ਇਉਂ ਕਰ ਤੈਨੂੰ ਚਾਰ ਹਜ਼ਾਰ ਦੇਮਾਂਗੇ। ਦੂਜਾ ਚੌਵੀ ਤਰੀਕ ਦਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕੈਂਸਲ ਕਰਕੇ ਸਾਡਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰਦੇ।"
"ਠੀਕ ਐ ਸਰਦਾਰ ਜੀ। ਅਸੀਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰ ਦਿੰਨੇ ਆਂ।" ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਦੋਨਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰਿਆਂ ਨੂੰ ਨਿਰਖ ਨਾਲ ਦੇਖਿਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਪਰ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੌੜ ਰਹੀ ਸੀ। ਜਰੈਨਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਜੇਬ 'ਚੋਂ ਪੈਸੇ ਕੱਢਣ ਲੱਗਾ ਤਾਂ ਚਮਕੀਲਾ ਬੋਲ ਪਿਆ, "ਸਰਦਾਰ ਜੀ, ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਤਾਂ ਥੋਡਾ ਬੁੱਕ ਕਰ ਲੈਨੇ ਆਂ। ਪਰ ਜੇ ਕੱਲ੍ਹ ਨੂੰ ਸਾਨੂੰ ਕੋਈ ਪੰਤਾਲੀ ਸੌ ਦੇ ਗਿਆ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਚਲੇ ਜਾਵਾਂਗੇ।"
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਉੱਠ ਕੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਗਿਆ, "ਲੈ ਤੁਸੀਂ ਸਾਡਾ ਪ੍ਰਗਰਾਮ ਬੁੱਕ ਕਰਕੇ ਆਏਂ ਕਿਵੇਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋ? ਇਹ ਤਾਂ ਗਲਤ ਗੱਲ ਐ ਯਾਰ।"
"ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦਾ ਬੁੱਕ ਕਰਨ ਬਾਅਦ ਕੈਂਸਲ ਕਰਕੇ ਤੁਹਾਡੇ ਆਈਏ, ਕੀ ਉਹ ਗਲਤ ਗੱਲ ਨ੍ਹੀਂ? ਤੁਸੀਂ ਕਰੋ ਤਾਂ ਸਹੀ, ਚਮਕੀਲਾ ਕਰੇ ਤਾਂ ਗਲਤ?" ਕਹਿ ਕੇ ਚਮਕੀਲਾ ਮੁਸਕਰਾਉਣ ਲੱਗ ਪਿਆ।
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨਿੰਮੋਝੂਣਾ ਜਿਹਾ ਹੋ ਕੇ ਬੈਠ ਗਿਆ।
ਚਮਕੀਲਾ ਆਪਣੀ ਡਾਇਰੀ ਫਰੋਲਦਾ ਹੋਇਆ ਬੋਲਿਆ, "ਇਉਂ ਕਰੋ ਬਾਈ ਬਣਕੇ। ਤੁਸੀਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦਿਨ ਦਾ ਵਿਆਹ ਰੱਖ ਲਵੋ ਮੈਂ ਫਰੀ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਲਾਜੂੰ। ਭਾਵੇਂ ਇੱਕ ਪੈਸਾ ਨਾ ਦਿਉ।"
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬੇਬਸੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤੀ, "ਵਿਆਹ ਦੀ ਤਰੀਕ ਤਾਂ ਹੁਣ ਫਿਕਸ ਹੋ ਗਈ। ਕੈਂਸਲ ਨ੍ਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ।"
"ਓ ਭਾਪਾ ਜੇ ਚਮਕੀਲਾ ਨ੍ਹੀਂ ਮੰਨਦਾ, ਤੂੰ ਹੀ ਮੰਨਜਾ? ਕਿਉਂ ਮੇਰਾ ਵਿਆਹ ਖਰਾਬ ਕਰਦੇ ਹੋ।" ਮੁੰਡੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਾਪ ਦੇ ਪੈਰ ਫੜ ਲਏ।
ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮੁੰਡੇ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਆਪਣੇ ਪੈਰ ਛੁਡਾਏ ਤੇ ਚਮਕੀਲੇ ਕੋਲ ਮੇਜ਼ 'ਤੇ ਹੱਥ ਰੱਖ ਕੇ ਝੁੱਕ ਗਿਆ, "ਅੱਛਾ ਚਮਕੀਲੇ ਬਾਈ, ਦੱਸ ਕਿਹੜੀ ਕਿਹੜੀ ਤਰੀਕ ਵਿਹਲੀ ਹੈ।"
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਡਾਇਰੀ 'ਤੇ ਨਿਗਾਹ ਮਾਰਦਿਆ ਦੱਸਿਆ, "ਉਦੂੰ ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਪੱਚੀ ਨੂੰ ਵਿਹਲੇ ਆਂ। ਫੇਰ ਸਾਰਾ ਮਹੀਨਾ ਵੇਹਲ ਨ੍ਹੀਂ ਬਾਈ ਜੀ"
"ਠੀਕ ਆ, ਬੁੱਕ ਕਰਦੇ ਫੇਰ।" ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨੋਟਾਂ ਦੀ ਗੁੱਟੀ ਕੱਢ ਕੇ ਮੇਜ਼ ਉੱਤੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤੀ।
ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਕਮੀਜ ਦੀ ਜ਼ੇਬ ਵਿੱਚੋਂ ਪੈਨ ਕੱਢ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਨਾਮ ਅਤੇ ਐਡਰੈਸ ਪੁੱਛ ਕੇ ਡਾਇਰੀ ਵਿੱਚ ਲਿੱਖ ਦਿੱਤਾ, "ਲਓ ਜੀ ਕਰਤੀ ਬੁੱਕ।"
"ਚੱਲ ਜੈਜ ਜੈਜ ਜੇ ਦੱਸ ਹੁਣ ਪੈਸੇ ਕਿੰਨੇ ਦਈਏ ਤੈਨੂੰ।" ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਥੁੱਕ ਲਾ ਕੇ ਨੋਟ ਗਿਣਨ ਲੱਗ ਪਿਆ।
ਚਮਕੀਲਾ ਮੇਜ਼ ਦੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਪਈ ਕੁਰਸੀ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਖੜਾ ਹੋ ਗਿਆ, "ਮਾਲਕੋ ਇਹ ਕਿਹੜੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਓ। ਹੁਣੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਚਮਕੀਲੇ ਨੇ ਜੁਬਾਨ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਕਿ ਵਿਆਹ ਦੀ ਤਰੀਕ ਬਦਲ ਲਓ, ਮੈਂ ਫਰੀ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰੂੰਗਾ। ਫੇਰ ਮੈਂ ਕਿਵੇਂ ਮੁੱਕਰ ਸਕਦਾਂ। ਮਰਦ ਦੀ ਜਬਾਨ ਤੇ ਰਕਾਨ ਦੇ ਹਾਸੇ ਦਾ ਈ ਮੁੱਲ ਹੁੰਦੈ।"
"ਸੱਚੀਂ ਆਵੇਂਗਾ ਨਾ? ਦੇਖੀ ਕਿਤੇ ਉਹੀ ਗੱਲ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਅਸੀਂ ਉਡੀਕੀ ਜਾਈਏ ਤੇ ਤੂੰ ਆਵੇ ਨਾ। ਏਦੂੰ ਪੈਸੇ ਲੈ ਲੈ ਸਾਨੂੰ ਦਸੱਲੀ ਰਹੂ।" ਮੁੰਡਾ ਬੋਲਿਆ।
"ਮਿੱਤਰਾ ਜੇ ਨਾ ਪਹੁੰਚਿਆ ਤਾਂ ਗਾਉਣਾ ਛੱਡਦੂੰ। ਬੇਫਿਕਰ ਹੋ ਕੇ ਘਰ ਨੂੰ ਜਾਉ। ਪੱਚੀ ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਚਮਕੀਲਾ ਆਪਣੀ ਪਾਰਟੀ ਨਾਲ ਅਖਾੜਾ ਲਾਉਣ ਪਹੁੰਚਜੂ। ਠੀਕ ਆ ਨਾ ਗੱਲ?"
"ਹਾਂ ਠੀਕ ਆ ਗੱਲ ਤਾਂ ਪਰ ਚਮਕੀਲੇ ਉਹ ਗਾਣਾ ਜ਼ਰੂਰ ਗਾਈ ਜਦ ਪਹਿਲੀ ਲਾਮ ਪੜੀ ਭੁੱਬ ਨਿਕਲਗੀ ਮੇਰੀ। ਸਾਲੀ ਦਾਰੂ ਪੀ ਕੇ ਪੂਰਾ ਭੰਗੜਾ ਪਾਮਾਂਗੇ ਇੱਕ ਲੱਤ 'ਤੇ।"
"ਮੈਂ ਤਾਂ ਗਾਦੂੰਗਾ। ਤੇਰੀ ਭੁੱਬ ਨਿਕਲਜੂਗੀ?"
"ਮੈਂ ਤਾਂ ਉੱਚੀ-ਉੱਚੀ ਲੇਰਾਂ ਮਾਰਦੂੰ।"
ਚਮਕੀਲਾ ਖਿੜਖਿੜਾ ਕੇ ਹੱਸ ਪਿਆ। ਦੋਨੇ ਪਿਉ ਪੁੱਤ ਚਮਕੀਲੇ ਨੂੰ ਜੱਫੀ ਪਾ ਕੇ ਦਫਤਰ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲ ਗਏ।
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ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਚਮਕੀਲੇ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਉੱਪਰ ਅਧਾਰਿਤ ਮੇਰਾ ਨਾਵਲ ਸ਼ਹੀਦ ਜ਼ਰੂਰ ਪੜ੍ਹੋ। ਨਾਵਲ ਖਰੀਦਣ ਲਈ ਸੰਪਰਕ: 00447713038541 (Whatsapp)
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पंजाब के प्रसिद्ध गायक (स्व.)अमर सिंह चमकीला के जीवन पर आधारित बलराज सिंह सिद्धू के नये उपन्यास ‘शहीद’ का एक अध्याय – अनुवाद : सुभाष नीरव
गलत बात
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भीषण गर्मी में लुधियाना बस अड्डे के सामने बने पंजाबी गायकों के दफ़्तरों के आगे एक रिक्शा जा रहा है। रिक्शा वाला बिहारी है। रिक्शे में दो सवारियाँ बैठी हैं। एक 25-26 वर्षीय शौकीन-सा युवक बैठा है जिसने पेचों वाली टेढ़ी पगड़ी बाँध रखी है और दूसरा खुली दाढ़ी वाला सफ़ारी सूट पहने अधेड़-सी उम्र का आदमी बैठा है।
पसीने-पसीने हुए बिहारी रिक्शेवाले ने माथे पर चुहचुहा आया पसीना पोंछने के लिए जैसे ही पैडल मारना बन्द किया तो रिक्शे में बैठी दोनों सवारियों में से अधेड़ व्यक्ति ने सड़क पर जाते एक लड़के से पूछा, “ओ काका… गायक अमर सिंह चमकीले का दफ़्तर किधर है ?”
“ये साथ वाला मोड़ मुड़ जाओ। शौकरों वाली दुकान के साथ ही चमकीले का दफ़्तर है।“
दफ़्तर के सामने रिक्शा रुका तो दोनों सवारियाँ उतरीं। अधेड़ आदमी पैसे देने लगा और नौजवान दफ़्तर की ओर बढ़ गया। दफ़्तर में अभी अन्य कोई नहीं आया था। सिर्फ़ चमकीले का ढोलक मास्टर केसर सिंह टिक्की ही था। टिक्की ने ग्राहक आए देखकर उन्हें बैठने का इशारा किया और चाय-पानी पूछा।
अधेड़ व्यक्ति दाढ़ी पर हाथ फेरकर बोला, “मेरा नाम जरनैल सिंह है… मैं रिटायर एस.पी. हूँ। यह मेरा बेटा है। यह जिद किए बैठा है कि अपने विवाह पर इसे चमकीले का अखाड़ा ज़रूर लगवाना है।”
केसर टिक्की बोला, “हाँ जी, सरदार जी। आप लोगों की सेवा करने के लिए ही तो हम बैठे हैं। कौन सी तारीख है ?”
“अगले महीने की 24 तारीख़।” नौजवान उमंगित-सा तुरन्त बोला।
केसर टिक्की ने मेज़ की दराज में पड़ी डायरी निकालकर देखी और कुछ सोचकर बोला, “सरदार जी, चौबीस तारीख़ तो बुक है जी। ये लो खुद देख लो डैरी !”
बाप-बेटे दोनों के चेहरे एकदम मुरझा गए। जरनैल सिंह धैर्यपूर्वक कहने लगा, “हम बहुत दूर से चलकर आए हैं। पातड़ां के पास गाँव है मेरा। सुना है, चमकीला एक दिन में तीन-चार अखाड़े लगा देता है… करो हमारा भी कुछ।”
“अखाड़े तो चौबीस को भी तीन ही लग रहे हैं जी। पर हम दूसरे अखाड़े लगाकर तुम्हारे गाँव नहीं पहुँच सकते। हमारे पास कौन-सा हवाई जहाज है। अगर तुम्हारे यहाँ लगाएँगे तो दूसरे छूटते हैं।” टिक्की ने अपनी मज़बूरी प्रकट की।
कुछ समय के लिए दफ़्तर में चुप पसर गई। फिर नौजवान लड़का बोला, “भई, ऐसा कर यार, हमें ज़रा चमकीले से मिला दे। फिर मैं जानूं या मेरा काम।”
उसने अभी बात पूरी ही की थी कि दफ़्तर का दरवाज़ा खुला और अमिताभ बच्चन जैसे हेयर स्टाइल वाला एक लम्बा-पतला नौजवान डिब्बियों वाली बिस्कुटी कमीज़ और भूरी पैंट पहने अंदर दाख़िल हुआ। उसने बाहर खड़े ने कुछेक बातें सुन ली थीं। अंदर आते ही उस नौजवान ने ‘सतिश्री अकाल’ बुलाकर बाप-बेटे दोनों से हाथ मिलाया, “दास को ही अमर सिंह चमकीला कहते हैं।”
चमकीले को देखते ही दोनों के चेहरे खिल उठे। केसर टिक्की ने संक्षेप में चमकीले को सारी कहानी सुनाई तो चमकीला सोच में पड़ गया। चमकीले के लिए कुर्सी छोड़कर टिक्की खड़ा हो गया।
चमकीले ने टिक्की को हुक्म दिया, “जा टिक्की, भागकर चाय को कह आ।”
“न भाई जी, चाय की ज़रूरत नहीं, बस आप मेरे विवाह पर अखाड़ा लगाने के लिए मान जाओ।” नौजवान ने उठकर मेज़ पर रखा चमकीले का हाथ दबा लिया।
चमकीले ने अपने हाथ पर पड़े उसके हाथ पर अपना दूसरा हाथ रखा और होंठों में मुस्कराते हुए बोला, “यार, मैं प्रोग्राम कर सकता होता तो अवश्य करता। पर मैं मज़बूर हूँ। किसी दूसरे कलाकार को भेज देते हैं।”
“दूसरे को कोई नहीं सुनने वाला। बस, सिर्फ़ आपको ही लेकर जाना है। मैं चाहता हूँ कि ज़रा लोगों को पता तो चले कि किसका विवाह हो रहा है… आप प्रोग्राम के कितने पैसे लेते हो ?”
चमकीले ने धी���ी-सी आवाज़ में बताया, “पैंतीस सौ।”
तभी एक छोटा-सा लड़का चार गिलासों में चाय लेकर आ गया। सभी चाय पीने ल्ग पड़े।
लड़के के बाप जरनैल सिंह ने चाय का आख़िरी घूंट भरा, “चमकीले, ऐसा कर, तुझे चार हज़ार देंगे। चौबीस तारीख का दूसरा प्रोग्राम कैंसिल करके हमारा प्रोग्राम कर दे।”
“ठीक है सरदार जी। हम प्रोग्राम कर देते हैं।” चमकीले ने दोनों चेहरों की ओर देखते हुए कहा। उन पर खुशी की लहर दौड़ रही थी। जरनैल सिंह अपनी जेब में से पैसे निकालने लगा तो चमकीला बोल पड़ा, “सरदार जी, प्रोग्राम तो आपका बुक कर लेते है, पर अगर कल को हमें कोई पैंतालीस सौ दे गया तो हम उनके यहाँ प्रोग्राम करने चले जाएँगे।”
जरनैल सिंह उठकर खड़ा हो गया, “लो, तुम हमारा प्रोग्राम बुक करके ऐसा कैसे कर सकते हो ? यह तो गलत बात है यार।”
“किसी दूसरे का बुक करने के बाद कैंसिल करके आपके यहाँ आएँ, क्या वो गलत बात नहीं। आप करो तो सही, चमकीला करे तो गलत ?” कहकर चमकीला मुस्कराने लग पड़ा।
जरनैल सिंह शर्मिंदा-सा होकर बैठ गया।
चमकीला अपनी डायरी उलट-पुलटकर बोला, “ऐसा करो जी। आप किसी दूसरे दिन का विवाह रख लो, मैं फ्री में प्रोग्राम कर दूँगा। बेशक एक पैसा न देना।”
जरनैल सिंह ने बेबसी प्रकट की, “विवाह की तारीख़ तो फिक्स हो गई। कैंसिल नहीं हो सकती।”
“ओ भापा, अगर चमकीला नहीं मानता तो आप ही मान जाओ। क्यों मेरा विवाह खराब करते हो।” लड़के ने बाप के पैर पकड़ लिए।
जरनैल सिंह ने लड़के के हाथों अपने पैर छुड़ाये और चमकीले के पास मेज़ पर हाथ रखकर झुक गया, “अच्छा चमकीले भाई, बता कौन-सी तारीख़ खाली है ?”
चमकीले ने डायरी पर निगाह मारते हुए बताया, “इससे अगले दिन 25 को खाली हैं। ��िर सारा महीना खाली नहीं है भाई जी।”
“ठीक है, बुक कर दे फिर।” जरनैल सिंह ने नोटों की गड्डी निकालकर मेज़ पर रख दी।
चमकीले ने कमीज़ की जेब में से पेन निकालकर उनका नाम और पता पूछकर डायरी में लिखा और बोला, “लो जी, कर दी बुक।”
“चल, अब बता पैसे कितने दें तुझको ?” जरनैल सिंह उंगलियों को थूक लगाकर नोट गिनने लग पड़ा।
चमकीला मेज़ के दूसरी तरफ़ कुर्सी को छोड़ उठकर खड़ा हो गया, “मालिको, ये क्या बातें करते हो ? अभी आपको चमकीले ने जुबान दी थी कि विवाह की तारीख़ बदल लो, मैं फ्री में प्रोग्राम करूँगा। फिर मैं कैसे मुकर सकता हूँ। मर्द की जुबान और समझदार औरत की हँसी का मोल होता है।”
“सच में, आओगे न ? देखना वही बात न हो, हम इंतज़ार करते रहें और तुम आओ ही नहीं। इससे तो पैसे ले लो, तसल्ली तो रहेगी।” लड़का बोला।
“मित्तरा, अगर न पहुँचा तो गाना छोड़ दूँगा। बेफिक्र होकर घर जाओ। 25 तारीख़ को चमकीला अपनी पार्टी के साथ अखाड़ा लगाने ज़रूर पहुँच जाएगा। ठीक है न बात ?”
“हाँ ठीक है, पर चमकीला जी वो गाना ज़रूर गाना ‘जद पहली लाम पड़ी भुब निकल गी मेरी…’ दारू पीकर पूरा भंगड़ा डालेंगे एक टाँग से…।”
चमकीला खिलखिलाकर हँस पड़ा। दोनों बाप-बेटा चमकीले को जफ़्फ़ी डालकर दफ़्तर में से बाहर निकल गए।
(हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव)
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मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र पुणे मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब बिहार उपन्यास कोरोना (COVID-19) डेथ टोल इंडिया टुडे | 24 घंटे में रिकॉर्ड 52 हजार 263 मरीज बढ़े; त्रिपुरा में 4 और महाराष्ट्र में 31 अगस्त तक लॉकडाउन को रखा गया; देश में अब 15.84 लाख केस
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मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र पुणे मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब बिहार उपन्यास कोरोना (COVID 19) डेथ टोल इंडिया टुडे
नई दिल्ली11 मिनट पहले
बिहार की राजधानी पटना में मंगलवार को एक बच्चे का स्वैब सैंपल स्वास्थ्यकर्मी लेता है। राज्य में अब तक 43 हजार से ज्यादा राजस्व मिले हैं।
दे…
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कोरोनावायरस: 1 जून से पंजाब में 19 मौतें, अमृतसर, जालंधर, लुधियाना सबसे ज्यादा प्रभावित शहर पंजाब में अब तक कुल 2,986 उपन्यास कोरोनावायरस के मामले सामने आए हैं। राज्य में कुल कोरोनोवायरस से संबंधित मौत का आंकड़ा शनिवार सुबह तक 63 है।
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न सख्त लॉकडाउन, न ऐप से निगरानी; कारोबार-रेस्तरां भी खुले रहे; ज्यादा टेस्टिंग नहीं होने पर फिर भी कोरोना से जीत रहा
न सख्त लॉकडाउन, न ऐप से निगरानी; कारोबार-रेस्तरां भी खुले रहे; ज्यादा टेस्टिंग नहीं होने पर फिर भी कोरोना से जीत रहा
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आज इमरजेंसी पूरी तरह से हो सकती है, सप्ताहभर से रोजाना 50 से कम केस आ रहे हैं
जापान को facades पहनने के कल्चर और मोटापा दर कम होने से कोरोना पर कामयाबी मिला
दैनिक भास्कर
25 मई, 2020, सुबह 06:18 बजे IST
टोक्यो। न लॉकडाउन, न आवाजाही पर सख्त पाबंदी, यहाँ तक कि रेस्तरां और सैलून भी खुले रहे। बड़ी संख्या में टेस्ट भी नहीं किए गए, फिर भी जापान कोरोना की अप थामने में कामयाब रहा है। सोमवार को…
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#इंडिया टुडे - विदेश समाचार#इंदौर#उत्तर प्रदेश#कोरोना#कोरोना (COVID 19) डेथ टोल#कोरोनावाइरस#कोरोनावाइरस खबरें#कोरोनावायरस का प्रकोप भारत में#पंजाब उपन्यास#पुणे#बिहार#मध्य प्रदेश#महाराष्ट्र#राजस्थान Rajasthan#विदेश समाचार#हरियाणा
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कोरोना देश में: मार्च में शुरू हो जाएगा वैक्सीनेशन का तीसरा चरण; इसमें 50 साल से ऊपर वालों को दी जाएगी वैक्सीन
कोरोना देश में: मार्च में शुरू हो जाएगा वैक्सीनेशन का तीसरा चरण; इसमें 50 साल से ऊपर वालों को दी जाएगी वैक्सीन
हिंदी समाचार राष्ट्रीय कोरोनावायरस का प्रकोप भारत में रहता है LIVE अपडेट; महाराष्ट्र पुणे मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब बिहार उपन्यास कोरोना (COVID 19) डेथ टोल इंडिया टुडे मुंबई दिल्ली कोरवांडन समाचार विज्ञापन से परेशान है? बिना विज्ञापन खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप नई दिल्ली3 मिनट पहले कॉपी लिस्ट फोटो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की है। यहां जीआरपी…
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शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत स���ंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
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कोरोनावायरस | मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र पुणे मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा बिहार पंजाब उपन्यास कोरोना (COVID-19) डेथ टोल इंडिया टुडे | 96 हज़ार 137 केस: लगभग 37 हज़ार मरीज ठीक हुए, 1 मई तक इतने ही योग्य थे; अब 56 हजार का इलाज चल रहा है
कोरोनावायरस | मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र पुणे मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा बिहार पंजाब उपन्यास कोरोना (COVID-19) डेथ टोल इंडिया टुडे | 96 हज़ार 137 केस: लगभग 37 हज़ार मरीज ठीक हुए, 1 मई तक इतने ही योग्य थे; अब 56 हजार का इलाज चल रहा है
रविवार को सबसे ज्यादा 5049 मरीज बढ़े, मुंबई में 20 हजार से ज्यादा नुकसान
एक दिन में 2538 कोरोनार्ट्स ठीक हुए, 152 लोगों की मौत हुई
मरीजों की संख्या महाराष्ट्र में 33 हजार और ��ुजरात-तमिलनाडु में 11 हजार के पार
दैनिक भास्कर
18 मई, 2020, 01:19 बजे IST
नई दिल्ली। देश में कोरोना शक्तियोंओं की संख्या 96 हजार 137 हो गई है। इनमें से अब तक 36 हजार 795 मरीज ठीक हो चुके हैं। इस महीने की पहली तारीख को…
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App COVA पंजाब ’मोबाइल ऐप ने फैलाया कोरोनोवायरस जागरूकता में मदद के लिए लोगों को उपन्यास कोरोनवायरस (COVID-19) से निपटने के लिए संवेदनशील बनाने के लिए, पंजाब के मुख्य सचिव करण अवतार स��ंह ने सोमवार को 'COVA पंजाब' मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया।
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अब तक 3 हजार 678 मामले: महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 145 मामले; आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बोले- संक्रमण फैलाने के लिए एक समुदाय को निशाना बनाना ठीक नहीं
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स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को बताया कि 30 प्रतिशत मामले जमात के मरकज से लौटे लोगों की वजह से बढ़े हैं
शनिवार को 400 से ज्यादा मामले सामने आए; तमिलनाडु में 74, उत्तर प्रदेश में 60 और दिल्ली में 59 मामले हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लॉकडाउन के बाद पहली बार विपक्षी पार्टियों के नेताओं से 8 अप्रैल को बात करेंगे
दैनिक भास्कर
अप्रैल 05, 2020, 02:26 AM IST
नई दिल्ली। देश में कोरोनावायरस के…
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मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र मुंबई मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा बिहार तेलंगाना पंजाब उपन्यास कोरोना (COVID 19) डेथ टोल इंडिया टुडे | 24 घंटे में 46 हजार से ज्यादा मामले बढ़े, 34 हजार लोग ठीक भी हुए, 636 मरीजों की जान चली गई; देश में अब तक 14.82 लाख केस
मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र मुंबई मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा बिहार तेलंगाना पंजाब उपन्यास कोरोना (COVID 19) डेथ टोल इंडिया टुडे | 24 घंटे में 46 हजार से ज्यादा मामले बढ़े, 34 हजार लोग ठीक भी हुए, 636 मरीजों की जान चली गई; देश में अब तक 14.82 लाख केस
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हिंदी समाचार
राष्ट्रीय
मुंबई दिल्ली कोरोनावायरस न्यूज़ | कोरोनवायरस वायरस का प्रकोप भारत में रहता है; महाराष्ट्र मुंबई मध्य प्रदेश इंदौर राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा बिहार तेलंगाना पंजाब उपन्यास कोरोना (COVID 19) डेथ टोल इंडिया टुडे
नई दिल्ली8 मिनट पहले
फोटो दिल्ली के सीडब्ल्यूजी को विभाजित कैर सेंटर की है। यहां भर्ती कोरोना रोगी मनोरंजन के लिए लूडो खेलते हुए। दिल्ली में अब तक 1.31…
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Pakistan reports over 1,800 new COVID-19 cases, 36 deaths: Health Ministry
Pakistan reports over 1,800 new COVID-19 cases, 36 deaths: Health Ministry
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द्वारा PTI
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने पिछले 24 घंटों के दौरान उपन्यास कोरोनावायरस के 368 नए मामले और 36 मौतें दर्ज कीं।
चूंकि राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद में कोरोनावायरस के मामले 1,000 का आंकड़ा पार कर चुके हैं, पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में भी संक्रमण जारी है।
अब तक सिंध में 17,241 मामले, पंजाब में 15,976, खैबर-पख्तूनख्वा में 6,230, बलूचिस्तान में 2,820,…
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शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया। " भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगें ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अ��तिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
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