#न्यायालय अवमान के प्रकार
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laweducation · 7 months ago
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न्यायालय अवमान क्या है एंव इसके प्रकार | Contempt of Court in Hindi
न्यायालय अवमान क्या है? न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 2(क) के अनुसार न्यायालय अवमान से सिविल एवं आपराधिक अवमान अभिप्रेत है लेकिन यह शाब्दिक परिभाषा नहीं है। वस्तुतः न्यायालय के अवमान से तात्पर्य – (i) न्यायालय के आदेशों एवं निर्णयों की साशय अवज्ञा करना, अथवा (ii) न्यायालय के कार्य में विघ्न उत्पन्न करना, अथवा (iii) न्यायाधीशों के साथ अभ्रद व्यवहार करना है। न्यायालय के अवमान के लिए अधिवक्ता…
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laweducation · 1 year ago
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भाग 3 : अनुच्छेद 19 से 22 : स्वतंत्रता का अधिकार | Right to Freedom in hindi
स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19 से 22 (RIGHT TO FREEDOM) वैयक्तिक स्वतन्त्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वपरि माना जाता है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि “स्वतन्त्रता ही जीवन है", क्योंकि इस अधिकार के बिना मनुष्य अपने व्यक्तितत्व का विकास नहीं कर सकता है। भारतीय संविधान के भाग 3 (स्वातंत्र्या अधिकार) में अनुच्छेद 19 से 22 तक में भारत के नागरिकों को स्वतन्त्रता सम्बन्धी अनेक अधिकार प्रदान किये गये हैं। अनुच्छेद 19 वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का सरंक्षण - (i) सभी नागरिकों को - (क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का (ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का (ग) संगम या संघ बनाने का (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का (ड) भारत के राज्यक्षेत्र ��े किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, और (च) ******* (लोपित) (लोपित 20-6-1979 से प्रभावी) (छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का, अधिकार होगा। (ii) खंड (i) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निबंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। (iii) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निबंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। (iv) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निबंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। (v) उक्त खंड के उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निबंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निबंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। (vi) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्तः उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया उक्त उपखंड की कोई बात - (क) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारवार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या जहां तक कोई विद्यमान विधि सम्बन्ध रखती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार सम्बन्ध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। (ख) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से, जहाँ तक कोई विद्यमान विधि सम्बन्ध रखती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार सम्बन्ध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी| टिप्पणी - कोर्ट ओन ऑन मोशन बनाम स्टेट ऑफ त्रिपुरा के मामले में कहा गया कि, सरकारी एवं प्राइवेट विद्यालयों के शिक्षक निजी ट्यूशन नहीं करा सकते| 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को ट्यूशन देना अधिनियम के विरुद्ध है। (Teachers employed in Government or Private Schools are not permitted to impart private tutions imparting of tution to students below age of 14 years is prohibited under right of children to free and compulsary education Act, 2009) (ए.आई.आर. 2016, त्रिपुरा 4) रजिस्ट्रार जनरल, हाई कोर्ट ऑफ मेघ���लय बनाम स्टेट ऑफ मेघालय के मामले में कहा गया कि, बंद (bandh) से जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है, दैनिक आवश्यकता की वस्तुयें नहीं मिल पाती, इससे शांतिपूर्ण लोक जीवन में विघ्न उत्पन्न होता है, अतः यह मूल अधिकारों का अतिक्रमण है। (ए.आई. आर. 2015 मेघालय 23) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्तितव विकास के लिए आवश्यक है। (स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम एसोसियेटेड मैनेजमेन्ट ऑफ प्राइमरी एण्ड सैकण्डरी स्कूल्स, ए.आई. आर. 2014 एस.सी. 2094) अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण – (i) कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक की उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागा नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी। (ii) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा। (iii) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। टिप्पणी - सुखासिंह बनाम दविन्दर कौर के प्रकरण में कहा गया है कि, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 304 के अन्तर्गत दोषसिद्धि पर मृतक की पत्नी प्रतिकर का क्लैम कर सकती है क्योंकि सिविल क्षतिपूर्ति अभियोजन नहीं है और क्षतिपूर्ति की डिक्री दण्ड नहीं है। यहां 'दोहरे खतरे से संरक्षण का सिद्धान्त' लागू नहीं होता है। (ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 3163) जहां दो कार्यवाहियां भिन्न-भिन्न क्षेत्राधिकार की हो वहां दोहरे खतरे से संरक्षण का सिद्धान्त लागू नहीं होगा। (पीताम्बरन टी.आर बनाम एडिशनल लाइसेंसिंग ऑथोरिटी ए.आई.आर. 2013 केरल 46 ) Read More -  भाग 3 : स्वातंत्र्य अधिकार अनुच्छेद 19 से 22 (Article 19 to 22 in Hindi) भारतीय संविधान Read the full article
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