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#GodMorningWednesday
साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग। ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं। उसकी औषधि केवल मौन रहना है, इससे शरीर में उसके तीखे-वचनों का विष नहीं व्यापेगा।
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कबीर,साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
📱अवश्य देखें Satlok Ashram यूट्यूब चैनल ।
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#सत_भक्ति_संदेश
कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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#GodMorningMonday
कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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#GodMorningMonday
कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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कबीर, साकट का ���ुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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कबीर, साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं। उसकी औषधि केवल मौन रहना है, इससे शरीर में उसके तीखे-वचनों का विष नहीं व्यापेगा।
अधिक जानकारी के लिए देखें संत रामपाल जी महाराज यूट्यूब चैनल।
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#GodMorningWednesday
साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग। ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं। उसकी औषधि केवल मौन रहना है, इससे शरीर में उसके तीखे-वचनों का विष नहीं व्यापेगा।
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साकट का मुख बिंब है, निकसत बचन भुवंग। ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि साकट अर्थात निगुरा का मुख बिल के समान है और उसमें से उसके कठोर तीखे वचन सर्प की भांति निकलते हैं।
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