#नवरात्रि का महत्व
Explore tagged Tumblr posts
Text
जय माता दी पारस परिवार के साथ कुंडली भजन
सनातन धर्म के हृदय में दिव्य मंत्र है: जय माता दी। यह सिर्फ़ अभिवादन से कहीं बढ़कर है; यह एक प्रार्थना है, सार्वभौमिक माँ, माँ का आह्वान है। चाहे वह मंदिरों में गूंजने वाले मधुर भजन हों या हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाली कुंडली पढ़ना, हिंदू धर्म का सार पारस परिवार की आध्यात्मिक प्रथाओं में जटिल रूप से बुना हुआ है। आइए जानें कि पारस परिवार किस तरह से माँ के सार का जश्न मनाता है और कुंडली पढ़ने, भजन और सनातनी आध्यात्मिकता से इसका क्या संबंध है।
पारस परिवार और जय माता दी का महत्व
जय माता दी का जाप न केवल दिव्य माँ का आह्वान है, बल्कि दुनिया भर के हिंदू भाइयों (हिंदू भाइयों और बहनों) के लिए एक एकीकृत नारा भी है। पारस परिवार, सनातन धर्म में गहराई से निहित एक समुदाय है, जो माँ से जुड़ने के साधन के रूप में इस आध्यात्मिक अभिवादन पर जोर देता है। यह देवी से आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन की मांग करते हुए एक हार्दिक प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करता है।
सनातन धर्म के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित पारस परिवार आध्यात्मिक एकजुटता का एक मजबूत समर्थक है। समुदाय प्राचीन परंपराओं को कायम रखता है और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदू भाइयों को एक साथ लाता है, जो दिव्य माँ के प्रति अपने प्रेम और भक्ति से एकजुट होते हैं।
सनातन धर्म और पारस परिवार में कुंडली की भूमिका
सनातन धर्म की प्रथाओं में, कुंडली (जन्म कुंडली) का एक प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी के जीवन का खाका प्रदान करती है। पारस परिवार, वैदिक परंपराओं की अपनी गहरी समझ के साथ, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए कुंडली पढ़ने का उपयोग करता है।
हिंदू धर्म में कुंडली का महत्व
कुंडली की अवधारणा ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जो हिंदू धर्म में एक मुख्य विश्वास है। प्रत्येक ग्रह (ग्रह) का व्यक्ति के जीवन पर एक विशिष्ट प्रभाव होता है। इन प्रभावों को समझकर, व्यक्ति चुनौतियों का सामना कर सकता है और शक्तियों का लाभ उठा सकता है। पारस परिवार कुंडली पढ़ने के माध्यम से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे भक्तों को माँ और ब्रह्मांडीय शक्तियों द्वारा निर्धारित उनके जीवन पथ को समझने में मदद मिलती है।
कुंडली पढ़ना: पारस परिवार की एक परंपरा
पीढ़ियों से, कुंडली पढ़ना हिंदू धर्म में आध्यात्मिक प्रथाओं का हिस्सा रहा है। पारस परिवार इस परंपरा को जारी रखता है, अपने समुदाय के सदस्यों को व्यक्तिगत रीडिंग प्रदान करता है। इस प्राचीन प्रथा को ईश्वरीय इच्छा के साथ अपने कार्यों को संरेखित करने का एक तरीका माना जाता है, जिससे सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए माँ से आशीर्वाद मांगा जा सके। जब पारस परिवार के किसी जानकार मार्गदर्शक द्वारा कुंडली पढ़ी जाती है, तो यह जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर, विवाह, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
पारस परिवार में भजनों की शक्ति
जय माता दी का कोई भी उत्सव भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुति के बिना पूरा नहीं होता है। भजन ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीत हैं, विशेष रूप से माँ की कृपा पर ध्यान केंद्रित करते हुए। पारस परिवार को देवी माँ को समर्पित भजन गाने और रचना करने की अपनी समृद्ध परंपरा पर बहुत गर्व है।
भजन: हिंदू धर्म का आध्यात्मिक संगीत
सनातन धर्म के हृदय में, भजनों को भक्ति का संगीतमय अवतार माना जाता है। माना जाता है कि इन भजनों को गाने से उत्पन्न कंपन ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो गायक को माँ क�� करीब लाते हैं। पारस परिवार के भजन अपनी सादगी, माधुर्य और गहरे आध्यात्मिक अर्थ के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें हिंदू भाइयों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बनाते हैं।
आत्मा पर भजनों का प्रभाव
भजन मन और आत्मा पर शांत प्रभाव डालते हैं। वे तनाव को दूर करने, विचारों को शुद्ध करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करते हैं। भजन गाने या सुनने का कार्य, विशेष रूप से जय माता दी के साथ गाया जाने वाला भजन, वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। पारस परिवार की सभाओं में, ये भजन एक शक्तिशाली सामूहिक आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं, जो हिंदू भाइयों की एकता और विश्वास को मजबूत करते हैं।
पारस परिवार के साथ सनातन धर्म का जश्न मनाना
सनातन धर्म को संरक्षित करने और मनाने के लिए पारस परिवार की प्रतिबद्धता इसकी विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में स्पष्ट है। भव्य नवरात्रि कार्यक्रमों के आयोजन से लेकर नियमित भजन सत्रों की मेजबानी तक, पारस परिवार हिंदू धर्म की परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
0 notes
Text
छत्तीसगढ़ में भगवान के प्रति अटूट आस्था
शारदीय नवरात्रि एवं दशहरा उत्सव पर विशेष आलेखलेखक- एन.डी. मानिकपुरीसामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता छत्तीसगढ़ में देवी और भगवान श्रीराम के प्रति गहरी आस्था है। यहां भगवान श्रीराम और देवी की आराधना का विशेष महत्व है। देवी को प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों के साथ-साथ उनके अवतार के रूप में पूजा जाता है। हर क्षेत्र में पूजा की विधि अलग-अलग होती है। वहीं, भगवान श्रीराम के वनवास काल के दौरान छत्तीसगढ़ में…
0 notes
Text
🚩नवरात्रि की नवमी तिथि है विशेष, जानिए कैसे करें पूजा🚩
🌞शक्ति के लिए देवी आराधना की सुगमता का कारण मां की करुणा, दया, स्नेह का भाव किसी भी भक्त पर सहज ही हो जाता है। ये कभी भी अपने बच्चे (भक्त) को किसी भी तरह से अक्षम या दुखी नहीं देख सकती है। उनका आशीर्वाद भी इस तरह मिलता है, जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वह स्वयं सर्वशक्तिमान हो जाता है।
🌞इनकी प्रसन्नता के लिए कभी भी उपासना की जा सकती है, क्योंकि शास्त्राज्ञा में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है। नवरात्रि के नौवे दिन इस आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन के तप का फल कई गुना व शीघ्र मिलता है। इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है।
🌞देवी सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। इन नामों से हवन करने का भी विधान है। इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नमः लगाकर स्वाहा लगाया जाता है।
🌞हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राप्ति होती है। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती है कि आवश्यकता पड़ती है।
🌞इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए।
🌞अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः ��ा उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
🌞अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए।
🌞इस साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए। अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए।
🌞बाद में उस कुंकुम से स्वयं को या मित्र भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवमी के दिन कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए। इस 1000 अर्चन में आराध्य देवी का अर्चन अधिक लाभकारी है। नवमी के दिन अर्चन का प्रयोग बहुत प्रभावशाली, सात्विक व सिद्धिदायक होता है। अत: इसे पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करना चाहिए।
#motivational motivational jyotishwithakshayg#tumblr milestone#akshayjamdagni#mahakal#panchang#hanumanji#rashifal#nature
0 notes
Video
youtube
नवरात्रि की नवमी पर देवी सिद्धिदात्री की आराधना का महत्व 🙏 #maadurga #ma...
#youtube#navmi#durgaashtmi#navratri#maadurga#maasidhidatri#hinditoonstories#hindistories#stories#storiesinhindi#moralstories
0 notes
Text
Mahanavmi: कब है महानवमी जानिए तिथि और पूजन विधिMahanavmi: नवरात्रि के आखिरी दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। लेकिन, इस बार तिथियों को लेकर थोड़ा असमंजस है। दरअसल, नवरात्रि की शुरुआत से ही दो तिथियां एक ही दिन पड़ रही हैं
#maha navami#mahanavami#maha navami 2024 date#maha navmi kab hai#maha navami status#navmi#maha navami 2024#maha navami 2023#2024 maha navami#maha nabamiDharm News in Hindi#Dharm News in Hindi#Dharm Hindi News
0 notes
Text
दुर्गा पूजा 2024: विजय का उत्सव
दुर्गा पूजा, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार प्रतिवर्ष शरद नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर के महीने में होता है। इस वर्ष, दुर्गा पूजा 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। महत्व और उत्सव दुर्गा पूजा का महत्व हिंदू धर्म में बहुत गहरा है। यह त्योहार देवी दुर्गा की पूजा और उपासना से जुड़ा है, जो शक्ति की…
0 notes
Text
कब है अष्टमी 10 या 11 अक्टूबर, जानें दुर्गाष्टमी 2024 की सही तारीख, कन्या पूजन मुहूर्त और क्या है सही विधि
mahatvapoorna: नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। व्रत रखने वाले भक्त कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं। कन्याओं को देवी मां का स्वरूप माना जाता है। नवरात्रि, देवी दुर्गा की नौ रूपों की पूजा का महोत्सव, हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल, एक खास संयोग के तहत, अष्टमी और नवमी एक ही दिन, शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024 को पड़ रही हैं। यह दुर्लभ संयोग कन्या पूजन…
0 notes
Text
मां नर्मदा स्कूल में मनाया, नवरात्रि का पावन पर गरबा महोत्सव
इटारसी। मां नर्मदा स्कूल में गरबा महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर स्कूल एवं महाविद्यालय के सभी शिक्षिक शिक्षिकाओं ने मां दुर्गा के समीप दीप प्रज्वलित एवं माला अर्पण कर कुमकुम आदि से शृंगार कर आरती का गान किया। इसी क्रम में स्कूल संचालिका अनिता अग्रवाल एवं दीपक अग्रवाल ने मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का वर्णन करते हुए बच्चों को नवरात्रि का महत्व बताया। कक्षा नर्सरी से सातवी तक के सभी बच्चों ने अपना…
0 notes
Text
किडनी की बीमारियों को दूर रखने में कारगर हैं ये घरेलू उपाय, बाबा रामदेव से जानें बेहतरीन नुस्खें
Image Source : SOCIAL Baba Ramdev Tips आज शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन हैं। आज के दिन माता चंद्र��ंटा की पूजा होती है। इनकी आराधना से शरीर के सभी रोग-दुख दूर होते हैं वैसे भी इन दिनों तो मैं अपने शहर कोलकाता को मिस करने लगता हूं। बंगाल में तो दूर्गा पूजा और पंडाल की बात ही अलग है। माता को चढ़ने वाले इन रंग-बिरंगे फलों का भी बड़ा महत्व है। खासकर सेहत के लिहाज से। अब देखिए नवरात्रि में ज्यादातर लोग…
0 notes
Text
आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे ��ैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
सनातन धर्म में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से सभी कार्य सफल होते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है और नवरात्रि के दिनों में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करना सबसे अच्छा होता है।
इसी के साथ उपवास रखने वाले इन दोनों दिनों में कन्याओं को भोग लगाकर अपने व्रत का पारण भी करते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य में कन्याओं का पूजन सबसे पहले किया जाता है। आइये जानते हैं आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन और सनातन धर्म में क्या है कन्या पूजन का महत्व ?
कन्या पूजा या इसे कुमारी पूजा भी कहते हैं, यह एक हिंदू पवित्र अनुष्ठान है, जो मुख्य रूप से नवरात्रि उत्सव की अष्टमी और नवमी के दिन किया जाता है। इस पूजन में नौ लड़कियों की पूजा की जाती है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों यानि नवदुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि देवराज इंद्र ने जब भगवान ब्रह्मा जी से भगवती को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया था। कुमारी पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या और तेज़ प्राप्त होता है। इससे विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश भी होता है।
हमारे हिंदू धर्म में कन्या को मां दुर्गा का प्रतीक ��ानकर पूजा करते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है। नवरात्रि में नौ कुमारी कन्याओं और एक छोटे लड़के को घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर रोली और तिलक लगाकर पूजा-अर्चना की जाती है। लड़के को हनुमान जी का रूप माना जाता है। जिस तरह मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
वैसे कुछ लोग नवरात्रि के दौरान हर दिन ही कन्या पूजन करते हैं लेकिन दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन इसका विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों के दौरान कन्याओं को भोजन कराने से माँ खुश होती हैं और यह भोजन माता रानी तक जरूर पहुँचता है।
कन्या पूजन से परिवार में खुशहाली आती है। नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पू���न करने से माँ आपके दुखों को दूर करती हैं। माँ सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती हैं। इसके साथ ही कन्या पूजन करने से कुंडली में नौ ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। कन्या पूजन से लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजा करने से आपका व्रत और पूजन पूरा होता है।
माँ दुर्गा के दुलारे, महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माता रानी आपको आशीर्वाद देती हैं और छोटी कन्याओं को मां का साक्षात स्वरूप माना जाता है।
9 वर्ष तक की कन्याएं देवी मानी जाती हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में समस्त नारियाें काे पूजनीय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ नारी की पूजा हाेती है वहाँ देवताओं का निवास हाेता है। जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती जितनी कन्या पूजन से होती हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक कन्याओं को भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता अंधेरे को मिटाकर आपके जीवन में उजाला करती हैं। कन्या पूजन में कम से कम 9 बच्चियों की पूजा जरूर की जाती है।
नवरात्रि के दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा सुख की वर्षा करती हैं और भक्तों को सुख का वरदान देती हैं। अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं को दक्षिणा देने से ही माँ प्रसन्न हो जाती हैं। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का व्रत पूरा होता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पूरे विश्व में “सनातन धर्म” एक ऐसा धर्म है जिसमें कन्याओं को देवी मानकर पूजा जाता है। यह हमारे धर्म की एक महान संस्कृति का उदाहरण है। नवरात्रि में अन्य सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। माना जाता है कि आयु के अनुसार कन्या पूजन के फल भी अलग अलग होते हैं।
जैसे दो वर्ष की कन्या के पूजन से दुख और दरिद्रता को मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है और इस आयु की कन्या के पूजन से घर धन-धान्य से भर जाता है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है, इनके पूजन से घर-परिवार का कल्याण होता है। वहीं पांच वर्ष की कन्या ��ोहिणी कहलाती है। इनकी पूजा से व्यक्ति को कोई रोग नहीं घेर पाता है। यानि अगर किसी पर रोहिणी की कृपा हो तो वह व्यक्ति रोगों से दूर रहता हैं।
छह वर्ष की कन्या को कालिका का रूप कहा गया है, जो विजय का प्रतीक होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप माँ चंडिका का है, माँ चंडिका रूप की पूजा करने से धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है और इनकी पूजा से करने से वाद-विवाद में सफलता प्राप्त होती है।
नौ वर्ष की कन्या दुर्गा माँ कहलाती है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है और लम्बे समय से यदि कोई काम अटका है तो वह भी जल्दी पूरा हो जाता है। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है, इनकी पूजा से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि सिर्फ 9 दिन ही नहीं बल्कि जीवन भर कन्याओं का सम्मान करें। क्योंकि इनका आदर करना ईश्वर की पूजा के ही बराबर पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में कन्या या नारी का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं।
0 notes
Text
नवरात्रि और मानसिक संतुलन: एक गहरा संबंध
नवरात्रि, एक ऐसा पर्व है जो भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व न केवल देवी दुर्गा की आराधना का अवसर है, बल्कि यह हमारे मानसिक संतुलन और आंतरिक शांति को प्राप्त करने का भी माध्यम है। इस लेख में, हम नवरात्रि के महत्व और मानसिक संतुलन के बीच के संबंध को समझेंगे। 1. आध्यात्मिक साधना का महत्व नवरात्रि के दौरान, भक्तगण देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और साधना में लिप्त रहते हैं। यह साधना…
View On WordPress
#आंतरिकशांति#आत्मविश्वास#आध्यात्मिकसाधना#देवीदुर्गा#ध्यान#नकारात्मकता#नवरात्रमहत्व#परिवर्तन#प्रार्थना#भारतीयसंस्कृति#मानसिकसंतुलन#संजीवनी#सकारात्मकता#सामाजिकएकता#नवरात्रि
0 notes
Text
🚩नवरात्रि का छठा दिन देवी कात्यायनी के नाम, विवाह में रुकावट या धन का है अभाव? आजमाएँ ये उपाय, बन जायेंगे बिगड़े काम !
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
🚩मां दुर्गा की छठवीं शक्ति हैं मां कात्यायनी। नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है।
🚩कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया।
इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं।
भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं।
इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।
इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। भक्तों के रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि में मां दुर्गा के भक्त श्रद्धा भाव से जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूप की पूजा करते हैं। इसी कड़ी में बात करें षष्ठी तिथि की तो इस दिन आदिशक्ति मां कात्यायनी की पूजा अर्चना का विधान बताया गया है। इस दिन मां दुर्गा के भक्त श्रद्धा भाव से मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करते हैं।
🚩शारदीय नवरात्रि 2024- षष्ठी तिथि 🚩
👉वर्ष 2024 में नवरात्रि की षष्ठी तिथि नवरात्रि के सातवें दिन यानी 9 अक्टूबर 2024 बुधवार के दिन पड़ रही है। इस दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाएगी। बात करें इस दिन के हिंदू पंचांग की तो इस दिन तिथि षष्ठी रहेगी, पक्ष शुक्ल रहेगा, नक्षत्र मूल रहने वाला है, और योग सौभाग्य और शोभन रहेगा। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त की बात करें तो इस दिन का कोई भी ��भिजीत मुहूर्त नहीं है।
🚩माँ कात्यायनी का स्वरूप कैसा है ? 🚩
👉मां के स्वरूप की तो मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं जिसमें उन्होंने अस्त्र-शस्त्र और कमल धारण किया हुआ है। माँ कात्यायनी सिंह की सवारी करती हैं। इन्हें ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी का दर्जा प्राप्त है। कहते हैं गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए मां कात्यायनी की ही पूजा की थी। इसके अलावा जिन लोगों का विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह में रुकावट आ रही है उन्हें माँ कात्यायनी की पूजा करने की सलाह दी जाती है। साथ ही योग्य और मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ रहता है।
👉ज्योतिष में मां कात्यायनी का संबंध बृहस्पति ग्रह से जोड़कर देखा जाता है। मां का वर्ण सुनहरा और चमकीला है। माता की चार भुजाएं हैं और उन्होंने रत्न आभूषण धारण किए हुए हैं। यह देवी खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में रहने वाले सिंह पर सवारी करती हैं। इनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। मां कात्यायनी के दाहिने और ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में है, नीचे वाली भुजा वर देने वाली मुद्रा में है, बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में उन्होंने तलवार धारण की है और नीचे वाली भुजा में कमल का फूल लिया हुआ है।
प्राणियों में मां का वास आज्ञा चक्र में होता है और योग साधक इस दिन अपनी ध्यान आज्ञा चक्र में ही लगाते हैं। मां कात्यायनी पूजा से प्रसन्न होने पर साधक को दैवीय शक्तियाँ प्रदान करती हैं। जिन लोगों की भक्ति से मां कात्यायनी प्रसन्न होती हैं उन्हें देवी कृतार्थ कर देती हैं। ऐसे व्यक्ति इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव को प्राप्त करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों के रोग, शोक, संताप, डर के साथ-साथ जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। कहते हैं जो कोई भी भक्त निरंतर देवी कात्यानी की उपासना करता है उन्हें परम पद प्राप्त होता है। यही वजह है कि कहा जाता है की देवी कात्यानी जिस भी व्यक्ति से प्रसन्न हो जाए उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
👉देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर शांतिमय हो जाता है और गृहस्थ जीवन सुखमय बना रहता है। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा बेहद ही सिद्ध साबित होती है। इसके अलावा देवी नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी मानी गई हैं।
🚩माँ का नाम कात्यायनी ऐसे पड़ा 🚩
कहा जाता है कि मां कात्यायनी ऋषि कात्यायन की तपस्या के फल स्वरुप उनके घर में उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई थी। अपने इसी स्वरूप में मां ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था और इसी वजह से देवी का नाम मां कात्यायनी पड़ा। कात्यानी देवी को गुप्त रहस्यों का प्रतीक भी माना जाता है।
🚩माँ कात्यायनी पूजा मंत्र- भोग- और शुभ रंग 🚩
बात करें मां कात्यायनी की पूजा में शामिल किए जाने वाले मंत्रों की तो इस दिन की पूजा में मां कात्यानी की प्रसन्नता हासिल करने के लिए नीचे दिए गए मित्रों को स्पष्ट उच्चारण पूर्वक पूजा में अवश्य शामिल करें:
1.या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थित��।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2.चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
नवरात्रि के सभी 9 दिनों में अलग-अलग भोग चढ़ाने की परंपरा है। ऐसे में बात करें मां कात्यायनी के प्रिय भोग की तो मां कात्यायनी को शहद बहुत ही प्रिय होता है इसीलिए षष्ठी तिथि की पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएँ। कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आने लगता है।
मां कात्यायनी के प्रिय रंग की तो देवी को पीला और लाल रंग बहुत ही प्रिय होता है। ऐसे में इस दिन की पूजा में मां कात्यायनी को लाल और पीले रंग के गुलाब पीले और लाल रंग के वस्त्र अवश्य अर्पित करें। इसके साथ ही आप खुद भी इन्हीं रंगों का पूजा में इस्तेमाल करें। इससे मां कात्यानी के प्रसन्नता निश्चित रूप से आप हासिल कर सकेंगे।
🚩नवरात्रि षष्ठी तिथि पर करें सरल और यह अचूक उपाय 🚩
👉नवरात्रि के छठे दिन आपको क्या कुछ उपाय करने हैं जिससे आपके विवाह में आ रही रुकावट दूर हो, साथ ही जीवन से धन का अभाव भी दूर जाने लगे।
👉नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर नारियल लेकर उसके साथ एक लाल, पीले और सफेद रंग का फूल माता को अर्पित कर दें। इसके बाद नवरात्रि की नवमी तिथि की शाम को यह फूल नदी में प्रवाहित कर दें और नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर इसे अपने तिजोरी या पैसे रखने वाली जगह पर रख दें। इस उपाय को करने से जीवन में धन-धान्य की वृद्धि होती है और अगर आपका धन कहीं अटका हुआ है तो वह भी आपको मिलने लगता है।
👉नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करें और पीले वस्त्र धारण करके माँ की पूजा करें। माँ को पीले रंग के फूल अर्पित करें, भोग लगाएँ और सुख समृद्धि की कामना करें। ऐसा करके आप अपने जीवन में सुख शांति लेकर आ सकते हैं। इस दिन की पूजा में यदि आप मां कात्यायनी को शहद अर्पित करते हैं तो इसके वैवाहिक जीवन में मिठास बनी रहती है। साथ ही अविवाहित लोगों को योग्य वर वधु की भी प्राप्ति होती है।
👉नवरात्रि के छठे दिन अगर आप मां कात्यायनी को तीन गांठ हल्दी चढ़ाते हैं और पूजा के बाद इन गांठों को शुद्ध स्थान पर रख देते हैं तो ऐसा करने से आपको अपने शत्रुओं पर विजय हासिल होती है।
👉नवरात्रि के छठे दिन की पूजा में मां कात्यायनी से संबंधित मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति का आभामंडल मजबूत होता है। साथ ही सामाजिक स्तर पर आपको अच्छे परिणाम मिलते हैं और बिगड़े काम बनने लगते हैं।
👉इस दिन की पूजा में दूध में केसर मिलाकर मां कात्यायनी का अभिषेक करें। ऐसा करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर होने लगेगी, आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा, आत्मविश्वास में वृद्धि होगी और करियर में सफलता प्राप्त होगी।
#motivational motivational jyotishwithakshayg#tumblr milestone#akshayjamdagni#mahakal#panchang#hanumanji#rashifal
0 notes
Video
youtube
कात्यायनी देवी नवरात्रि में पूजा का महत्व और उनकी प्रेरणादायक कथा 🙏 | N...
#youtube#maadurga#maakatyayni#katyani#navratri2024#motivationalstories#moralstories#hindikahaniya#kahaniya#hinditoonstories
0 notes
Text
जिसने भी तेरा नाम लिया माँ
youtube
नवरात्रि: डांडिया गीत और माता के भजन :-
नवरात्रि, भारत का एक प्रमुख त्योहार, विशेष रूप से हिंदू धर्म में माता दुर्गा की पूजा का समय है। यह नौ दिनों का पर्व, माता के विभिन्न रूपों की आराधना करने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान, डांडिया और गरबा जैसे पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया जाता है, जो न केवल धार्मिक भावना को जागृत करता है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
नवरात्रि का महत्व:- नवरात्रि का त्योहार देवी दुर्गा की शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसे विशेष रूप से पश्चिमी भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर, भक्तगण नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, देवी की पूजा करते हैं, और सामूहिक नृत्य का आनंद लेते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं।
डांडिया: एक सांस्कृतिक धरोहर -
डांडिया, एक पारंपरिक गुजराती नृत्य है जो विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है। इसे छोटे-छोटे डंडों के साथ खेला जाता है, जहां लोग एक-दूसरे के साथ ताल मिलाते हैं। यह नृत्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। डांडिया की धुनों पर लोग देवी की आराधना करते हैं, और यह सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है। डांडिया नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीत मुख्यतः माता की महिमा का गुणगान करते हैं। ये गीत भक्तों को ऊर्जा और उत्साह प्रदान करते हैं, और हर किसी को नृत्य में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं।
माता के भजन:
श्रद्धा और भक्ति का संगम - नवरात्रि के दौरान गाए जाने वाले माता के भजन भक्तों के हृदय में गहरी श्रद्धा और भक्ति की भावना जागृत करते हैं। ये भजन अक्सर देवी के विभिन्न रूपों की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। माता के भजनों में भक्त अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं और माता से सहायता की प्रार्थना करते हैं।
कई प्रसिद्ध भजन इस दौरान गाए जाते हैं,
जैसे:
1. "जय माता Di" – यह भजन देवी की जयकारा है, जो भक्तों को एकजुट करता है।
2. "माता रानी की जय"– इस भजन में भक्त माता को नमन करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं।
3. "नवरात्रि में माँ का दरबार" – इस भजन में माता के दरबार की महिमा का बखान किया गया है।
इन भजनों की धुनें भक्तों के मन को छू जाती हैं और नवरात्रि के उत्सव का आनंद बढ़ाती हैं।
संगीत और नृत्य का संगम:- नवरात्रि में डांडिया और गरबा नृत्य का आयोजन होता है, जिसमें संगीत और नृत्य का अद्भुत संगम होता है। विभिन्न प्रकार के डांडिया गीतों की धुनें और बोल इस नृत्य को और भी रंगीन बना देते हैं। जैसे-जैसे रात बढ़ती है, भक्त जन उत्साह के साथ नृत्य करते हैं और माता की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दौरान, लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर एक-दूसरे से मिलते हैं, और यह एक अनोखा अनुभव होता है। यह नृत्य न केवल उत्सव का हिस्सा है, बल्कि यह सामाजिक जुड़ाव और भाईचारे का प्रतीक भी है।
नवरात्रि का समापन :-
नवरात्रि का समापन विजयादशमी (दशहरा) के दिन होता है, जो रावण के दहन के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त माता की पूजा के साथ-साथ अपने जीवन में बुराईयों को समाप्त करने का संकल्प लेते हैं। विजयादशमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में अच्छे और बुरे का संघर्ष हमेशा चलत��� रहता है, लेकिन अंततः सत्य की जीत होती है।
निष्कर्ष:- नवरात्रि का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। डांडिया गीत और माता के भजन इस पर्व को और भी खास बनाते हैं। यह हमें न केवल माता की आराधना करने का अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि हमें एकजुट होने और अपने परंपराओं को संरक्षित करने की प्रेरणा भी देते हैं। इस नवरात्रि, हम सब मिलकर माता के चरणों में श्रद्धा निवेदित करें और अपनी भक्ति के साथ इस उत्सव का आनंद लें। माता का आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, यही प्रार्थना है।
#Navratri Special Song 2024#Navratri Song 2024#Latest Navratri Song 2024#Navratri Dance Song#dandiya#song#navratri#Youtube
0 notes
Text
दशहरा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, जो धर्म और अधर्म की लड़ाई में अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इस विशेष दिन का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को सुधारने और सकारात्मकता लाने का भी अवसर होता है। विशेषकर उन लोगों के लिए जो विवाह में आ रही देरी से परेशान हैं, दशहरे का दिन मां कात्यायनी की पूजा से विशेष रूप से लाभकारी हो सकता है। नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यानी का होता है
#asexual#court case astrology#barbie#artists on tumblr#birth chart#nakshatra#across the spiderverse#margot robbie#donald trump
0 notes
Text
मां कात्यायनी: विवाह में आ रही देरी को दूर करने वाली देवी
भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का पर्व बहुत महत्व रखता है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा कीजाती है इनमेंसेएक मां कात्यायनी हैं, जिन्हें विशेष रूप से विवाह संबंधी समस्याओं को हल करनेवाली देवी के रूप में पूजा जाता है अगर आपकी जन्मकुंडली में विवाह में देरी की संभावनाएं हैं याआपके विवाह की बात बनते बनते टूट जाती है, तो कात्यायनी माता की पूजा विशेष रूप से लाभकारी हो सकती है।
Visit Now: -https://bandhanyoga.medium.com/solution-for-late-marriage-by-maa-katyayani-88aca9315f34
0 notes