#दोषारोपण का अर्थ
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allgyan · 4 years ago
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महाभियोग और परिस्थति -
महाभियोग एक प्रक्रिया है इसपे हमारी नज़र इन दिनों पड़ी जब ट्रम्प समर्थकों ने अमेरिका की संसद में हंगामा किया । फिर हमने सोचा क्यों न  इसको पुरे विस्तार से समझे ।महाभियोग की प्रक्रिया से अमेरिका के कई राष्ट्रपति गुज़र चुके है ।महाभियोग की प्रक्रिया तब होती है जब अमेरिका में अमेरिका के राष्ट्रपति अभियुक्त हो और ये भी तय है की उनपे दोष किस तरह के हो जैसे -राजद्रोह , घुस लेने का आरोप , दुराचार  और भी हाई क्राइम हो|ये आप यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका के सविधान आर्टिकल 2 सेक्शन -4 लिखा है ।संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमेरिका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है।
महाभियोग का जन्म कहा हुआ -
महाभियोग के जन्म से यहाँ मतलब इसकी शुरवात कहा से हुई या कहे की ये शब्द आया कहा से और किस देश में इसका पहला प्रयोग हुआ ।महाभियोग का मूल शब्द -अभियोग है । और अभियोग का अर्थ होता है दोषरोपड़ या आरोप लगने से है । किसी भी देश में जहाँ लोकतंत्र है वहाँ देश सविधान के बनाये नियम -कानून से चलता है।देश न्यायपलिका , विधायिका , कार्यपालिका से ही चलता है ।इंग्लैंड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग कहा जाता है।जब क्यूरिया ��ा पार्लियामेंट का हाउस ऑफ लार्ड्स तथा हाउस ऑफ कामंस, इन दो भागों में विभाजन हुआ तो यह अभियोगाधिकार हाउस ऑफ़ लार्ड्स को प्राप्त हुआ।इंग्लैंड में कुछ महाभियोग इतने महत्वपूर्ण हुए हैं कि वे स्वयं इतिहास बन गये ।
इंग्लैंड के महाभियोग और अमेरिका के महाभियोग में अंतर -
जैसा की हम जानते है की महाभियोग की प्रक्रिया इंग्लैंड से ही जन्म ली है और कई देशों ने उसे अपनाये है लेकिन उसमे भी अपने कानून के हिसाब से मूल -चूल परिवर्तन किये है । सबसे पहला तो महाभियोग सिद्ध हो जाने पर दंड से सम्बंधित है ।इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है।
भारतीय सविधान में भी महाभियोग की प्रक्रिया -
भारतीय संविधान में इस प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है।इसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज पर साबित कदाचार और अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जाता है ।मुख्या न्यायधीश के खिलाफ किसी भी सदन में अभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है ।लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है।सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस���टिस पीडी दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया|2015 में ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके|आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्��न नहीं मिला|उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 2018 में राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया जिसे उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया।भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्यवाही कभी पूरी ही नहीं हो सकी|
ट्रम्प पर दो बार महाभियोग क्यों लगा -
अमेरिका के इतिहास में ट्रंप पहले ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जिनके ख़िलाफ़ एक ही कार्यकाल में दो बार महाभियोग प्रस्ताव पारित किया गया है|ट्रंप पर पिछले सप्ताह अपने समर्थकों को कैपिटल हिल यानी अमेरिकी संसद परिसर पर हमला करने के लिए उकसाने का आरोप था| जिसे सदन में 197 के मुक़ाबले 232 वोटों से पारित कर दिया गया| दस रिपब्लिकन्स सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया|दिसंबर 2019 में भी उन पर महाभियोग लाया गया था क्योंकि उन्होंने यूक्रेन से बाइडन की जाँच करने का कहकर क़ानून तोड़ा था|हालांकि सीनेट ने उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया था| लेकिन उस समय एक भी रिपब्लिकन सांसद ने ट्रंप के ख़िलाफ़ वोट नहीं दिया था|हमारी कोशिश यही रहेगी की आपके मनोरंजन के साथ साथ आपको कुछ ज्ञान की बातें बता सके |
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jivandarshan · 4 years ago
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क्या आपके भी हाथ आया लड्डू छीन जाता है
क्या आपके भी हाथ आया लड्डू छीन जाता है
दोषारोपण करना बंद करो
आज हम जिस मुद्दे पर बात कर रहे है वो है दोषारोपण करना मतलब किसी भी बात के लिए किसी और को जिम्मेदार ठहराना…
जैसा कि आप सभी जानते है कि सबसे ज्यादा दोषारोपण हम हमारे भाग्य जिसे आप किस्मत भी कहते हो उसे देते है…फिर जब इससे हमारा पेट भर जाए तो संसार के पालन हार को कोसना शुरू कर देते है मतलब कि प��मात्मा…माना इन दोनो ने हमारी ज़िन्दगी का ठेका ले रखा हो…
हमारे साथ कुछ भी…
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god-entire-disposition · 5 years ago
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स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV
शैतान और यहोवा परमेश्वर के मध्य वार्तालाप
अय्यूब 1:6-11 एक दिन यहोवा परमेश्‍वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया। यहोवा ने शैतान से पूछा, "तू क��ाँ से आता है?" शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।" यहोवा ने शैतान से पूछा, "क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।" शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बाँधा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।"
अय्यूब 2:1-5 फिर एक और दिन यहोवा परमेश्‍वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके सामने उपस्थित हुआ। यहोवा ने शैतान से पूछा, "तू कहाँ से आता है?" शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।" यहोवा ने शैतान से पूछा, "क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? यद्यपि तू ने मुझे बिना कारण उसका सत्यानाश करने को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है।" शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "खाल के बदले खाल; परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।"
ये दो अंश परमेश्वर एवं शैतान के मध्य एक वार्तालाप हैं, ये इस बात को दर्ज करते हैं कि परमेश्वर ने क्या कहा और शैतान ने क्या कहा। परमेश्वर ने बहुत अधिक नहीं बोला, और बड़ी सरलता से बोला। क्या हम परमेश्वर के सरल वचनों में उसकी पवित्रता को देख सकते हैं? कुछ लोग कहेंगे कि यह आसान नहीं है। अतः क्या हम शैतान के प्रत्युत्तरों में उसका घिनौनापन देख सकते हैं? (हाँ।) तो आओ हम पहले देखें कि यहोवा परमेश्वर ने शैतान से किस प्रकार के प्रश्न पूछे। "तू कहाँ से आता है?" क्या यह एक सीधा प्रश्न है? क्या इसमें कोई छिपा हुआ अर्थ है? (नहीं।) यह केवल एक सीधा-सा प्रश्न है, जिसमें कोई अन्य उद्देश्य नहीं है। यदि मुझे तुम सब से पूछना होता: "तू कहाँ से आया है?" तब तुम लोग किस प्रकार उत्तर देते? क्या इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है? क्या तुम लोग कहोगे: "इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ"? (नहीं।) तुम सब इस प्रकार उत्तर नहीं दोगे, अतः तब तुम लोगों को कैसा लगता है जब तुम लोग शैतान को इस रीति से उत्तर देते हुए देखते हो? (हम महसूस करते हैं कि शैतान बेतुका और धूर्त है।) क्या तुम बता सकते हो कि मैं क्या महसूस कर रहा हूँ? हर बार जब मैं इन शब्दों को देखता हूँ तो मुझे घृणा महसूस होती है, क्योंकि वह बिना कुछ कहे बात करता है। क्या उसने परमेश्वर के प्रश्न का उत्तर दिया? क्योंकि उसके शब्द कोई उत्तर नहीं थे, कोई परिणाम नहीं निकला। वे परमेश्वर के प्रश्नों के उत्तर नहीं थे। "��ृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।" तुम इन शब्दों से क्या समझते हो? शैतान पृथ्वी पर कहाँ से आया है? क्या तुम लोगों को कोई उत्तर मिला कि वह कहाँ से आया है? (नहीं।) यह शैतान की धूर्तता की "प्रतिभा" है, किसी को भी यह पता लगने न देना कि वह वास्तव में क्या कह रहा है। इन शब्दों को सुनने के बाद तुम अभी भी यह परख नहीं सकते कि उसने क्या कहा है, तो भी उसने उत्तर देना समाप्त कर लिया है। वह मानता है कि उसने उचित रूप से उत्तर दिया है। तो तुम कैसा महसूस करते हो? घृणा महसूस करते हो? (हाँ।) अब तुमने इन शब्दों से घृणा महसूस करना शुरू कर दिया है। शैतान सीधे तौर पर बात नहीं करता है, और तुम्हें अपना सर खुजलाता छोड़ अपने शब्दों के स्रोत को समझने में असमर्थ कर देता है। कभी-कभी वह सोच-समझकर बोलता है, और कभी वह स्वयं अपने सार एवं ख़ुद के स्वभाव के अधीन होता है। ये शब्द सीधे शैतान के मुँह से बाहर आए। शैतान ने उन पर बहुत लम्बे समय तक विचार करके नहीं बोला है; अपने आप को चतुर समझ कर वह उन्हें स्‍वाभाविक रूप में अभिव्यक्त करता है। जैसे ही तुम उससे पूछते हो कि यह कहाँ से आया है, वो तुम्हें जवाब देने के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल करता है। तुम बिलकुल उलझन में पड़ जाते हो, जान नहीं पाते कि आखिर वह कहाँ से आया है। क्या तुम लोगों के बीच में भी ऐसा कोई है जो इस प्रकार से बोलता है? (हाँ।) यह बोलने का कैसा तरीका है! (यह अस्पष्ट है और निश्चित उत्तर नहीं देता है।) बोलने के इस तरीके का वर्णन करने के लिए हमें किस प्रकार के शब्दों का उपयोग करना चाहिए? यह ध्यान भटकाने वाला और गुमराह करने वाला है, है कि नहीं? मान लो कोई नहीं चाहता कि दूसरे जानें कि वह कल कहाँ गया था। तुम उससे पूछते हो: "मैंने तुझे कल देखा था। तू कहाँ जा रहा था?" वो तुम्हें यह बताने के लिए सीधा उत्तर नहीं देता है कि वह कल कहाँ गया था। वह कहता है "कल कितना बढ़िया दिन था। बहुत थक गया!" क्या उसने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया? दिया, लेकिन यह वह उत्तर नहीं है जो तुम चाहते थे। यह मनुष्य की चालाकी की "प्रतिभा" है। तुम कभी पता नहीं लगा सकते कि वह क्या कहना चाहता है या तुम उसके शब्दों के पीछे के स्रोत एवं इरादे को कभी नहीं समझ सकते। तुम नहीं समझते कि वह क्या टाल रहा है, क्योंकि उसके हृदय में उसकी अपनी कहानी है—यह कपटता है। क्या तुम लोग भी अक्सर इस तरह से बोलते हो? (हाँ।) तो तुम लोगों का उद्देश्य क्या होता है? क्या यह कई बार तुम लोगों के अपने हितों की रक्षा के लिए होता है, अपने स्‍तर, एवं अपनी छवि को बनाए रखने के लिए है, अपने निजी जीवन के रहस्यों को गुप्त रखने के लिए, और अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए होता है? उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, यह तुम लोगों के हितों से अलग नहीं है, यह तुम लोगों के हितों से जुड़ा हुआ है। क्या यह मनुष्य का स्वभाव नहीं है? क्या हर एक व्यक्ति जिसका स्वभाव इस प्रकार का है वह शैतान समान नहीं है? हम ऐसा कह सकते हैं, हैं न? साधारण रूप से कहें, तो यह प्रकटीकरण घृणित एवं वीभत्स ��ै। अब तुम लोग भी घृणा़ महसूस करते हो, हैं न? (हाँ।)
प्रथम अंश को फिर से देखते हैं। शैतान फिर से यहोवा को प्रत्युत्तर देता है, यह कहते हुए: "क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है?" वह अय्यूब के विषय में यहोवा परमेश्वर के आकलन पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर देता है, और यह आक्रमण शत्रुता के रंग में रंगा है। "क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बाँधा?" यह अय्यूब पर किए गए यहोवा परमेश्वर के कार्य के विषय में शैतान की समझ एवं उसका आकलन है। शैतान इस तरह आकलन करता है, यह कहते हुए: "तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।" शैतान सदा अस्पष्टता से बात करता है, किन्तु यहाँ वह निश्चय के साथ बात करता है। लेकिन निश्चय के साथ कहे गए ये शब्द एक आक्रमण है, ईश-निंदा है और यहोवा परमेश्वर, और स्वयं परमेश्वर से एक मुकाबला है। जब तुम लोग इसे सुनते हो तो तुम्हें कैसा लगता है? क्या तुम लोगों को घृणा महसूस होती है? क्या तुम लोग उसके इरादों को समझ सकते हो? सर्वप्रथम, वह अय्यूब के विषय में यहोवा के आकलन को अस्वीकार करता है—ऐसा पुरुष जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता है। तब वह हर उस चीज़ को नकारता है जिसे अय्यूब कहता एवं करता है, अर्थात, वह उसके यहोवा के भय को नकारता है। क्या यह आरोप लगाना है? वह सब जिसे यहोवा परमेश्वर करता एवं कहता है शैतान उस पर आरोप लगाता, नकारता एवं सन्देह करता है। वह विश्वास नहीं करता है, यह कहते हुए कि "यदि तू कहता है कि परिस्थितियां ऐसी हैं, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं ने इसे नहीं देखा? तूने उसे बहुत सारी आशीषें दी हैं, तो ऐसा कैसे कि वह तेरा भय नहीं माने?" वह सब जिसे परमेश्वर करता है क्या यह उन सब का परित्याग नहीं है? दोषारोपण, परित्याग, ईश-निन्दा—क्या उसके शब्द आक्रामक नहीं हैं? जो कुछ शैतान अपने हृदय में सोचता है क्या वे उसकी एक सच्ची अभिव्यक्ति नहीं है? ये वचन निश्चित तौर पर वैसे नहीं हैं जैसे हमने अभी पढ़े थे। "पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।" वे पूरी तरह से उन से अलग हैं। इन शब्दों के माध्यम से, शैतान परमेश्वर के प्रति उस रवैये और परमेश्वर के प्रति अय्यूब के भय के विषय में उस घृणा उजागर करता है जिसे वह अपने हृदय में रखता है। जब यह घटित होता है, तो उसकी दुर्भावना और बुरे स्वभाव का पूरी तरह से खुलासा हो जाता है। वह उनसे घृणा करता है जो परमेश्वर का भय मानते हैं, वह उनसे घृणा करता है जो बुराई से दूर रहते हैं, और उससे भी बढ़कर वह मनुष्यों को आशीषें प्रदान करने के लिए यहोवा परमेश्वर से घृणा करता है। वह अय्यूब को नष्ट करने के लिए इस अवसर का उपयोग करना चाहता है जिसे परमेश्वर ने अपने हाथों से बड़ा किया है, उसे बर्बाद करने के लिए, वह कहता है: "तू कहता है कि अय्यूब तेरा भय मानता है और बुराई से दूर रहता है। मैं इसे अलग तरह से देखता हूँ।" वह यहोवा परमेश्वर को क्रोधि��� करने एवं उसे प्रलोभन देने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करता है, और अलग-अलग तरीकों का उपयोग करता है ताकि यहोवा परमेश्वर अय्यूब को शैतान को सौंप दे ताकि वह मनमरज़ी से ऐसा छलपूर्वक व्‍यवहार करे जिससे उसे नुकसान पहुंचे। वह इस मनुष्य का, जो परमेश्‍वर की आंखों में धार्मिक एवं पूर्ण है, उसका विनाश करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहता है। क्या उसके पास इस प्रकार का हृदय होना एक क्षणिक आवेग है? नहीं, ऐसा नहीं है। इसे बनने में लम्बा समय लगा है। परमेश्वर कार्य करता है और किसी व्‍यक्ति की देखभाल करता है, उस पर नज़र रखता है, और शैतान उसके हर एक कदम का पीछा करता है। परमेश्वर जिस किसी पर भी अनुग्रह करता है, तो शैतान भी पीछे-पीछे चलते हुए उस पर नज़र रखता है। यदि परमेश्वर को यह व्यक्ति चाहिए, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब कुछ करता है, वह कार्य जिसे परमेश्वर ने किया है उसे लुभाने, परेशान करने और तबाह करने के लिए वह विभिन्न बुरे तरीकों का इस्तेमाल करता है ताकि वह अपने छिपे हुए उद्देश्य हासिल कर सके। उसका उद्देश्य क्या है? वह नहीं चाहता है कि परमेश्वर के पास कोई हो; उसे वे सभी लोग चाहिए जिन्हें परमेश्वर चाहता है, ताकि वह उन पर कब्‍ज़ा करे, उन पर नियन्त्रण करे, उनको अपने अधिकार में ले जिससे वे उसकी आराधना करें, जिससे वे उसके साथ रहते हुए बुरे कार्य करें। क्या यह शैतान का भयानक इरादा नहीं है? सामान्यतः, तुम लोग अक्सर कहते हो कि शैतान कितना बुरा, कितना खराब है, परन्तु क्या तुम लोगों ने उसे देखा है? तुम लोग सिर्फ यह देख सकते हो कि मनुष्य कितना बुरा है और मनुष्य ने असल में नहीं देखा है कि शैतान वास्तव में कितना बुरा है। किन्तु क्या तुम लोगों ने इसे अय्यूब से सम्बन्धित विषय में देखा है? (हाँ।) इस विषय ने शैतान के भयंकर चेहरे और उसके सार को बिलकुल स्पष्ट कर दिया है। शैतान परमेश्वर के साथ युद्ध में है, उसके पीछे-पीछे चलता रहता है। उसका उद्देश्य परमेश्वर के समस्त कार्य को नष्ट करना है जिसे परमेश्वर करना चाहता है, उन लोगों पर कब्‍ज़ा एवं नियन्त्रण करना है जिन्हें परमेश्वर चाहता है, उन लोगों को पूरी तरह से मिटा देना है जिन्हें परमेश्वर चाहता है। यदि उन्हें मिटाया नहीं जाता है, तो वे शैतान के द्वारा उपयोग होने के लिए उसके कब्ज़े में आ जाते हैं—यह उसका उद्देश्य है। और परमेश्वर क्या करता है? परमेश्वर इस अंश में केवल एक ही सरल वाक्य कहता है; जो कुछ परमेश्वर करता है उससे अधिक यहाँ पर किसी भी चीज़ का कोई लेखा नहीं है, परन्तु जो कुछ शैतान करता एवं कहता है उसके विषय में हम यहाँ पर अनेक अभिलेख देखते हैं। नीचे दिए गए पवित्र शास्त्र के अंश में, यहोवा परमेश्वर ने शैतान से पूछा, "तू कहाँ से आता है?" शैतान का उत्तर क्या था? (यह अभी भी ऐसा ही है "इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।") यह अभी भी वही वाक्य है। यह शैतान का आदर्श-वाक्य, एवं शैतान की उस्‍तादी का काम कैसे बन गया है। क्या शैतान घृणास्पद नहीं है? इस घिनौने वाक्य को एक बार कहना ही काफी है। शैतान हमेशा इस वाक्य पर क्यों लौट आता है। यह एक बात को सिद्ध करता है: शैतान का स्वभाव बदलने वाला नहीं है। उसका भयंकर चेहरा ऐसा नहीं है कि उसे लम्बे समय तक छिपाकर रखा जा सके। परमेश्वर उससे एक प्रश्न पूछता है तब भी वह इस तरह से प्रत्युतर देता है, तो फ़िर लोगों से उसके व्यवहार का तो क्‍या कहा जाए। वह परमेश्वर से नहीं डरता, वह परमेश्वर का भय नहीं मानता, और वह परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानता। अतः वह निर्लज्जता से परमेश्वर के सम्मुख अनैतिकता से ढीठ होने की, परमेश्वर के प्रश्न पर लीपापोती करने के लिए इन्हीं ��चनों का उपयोग करने की, परमेश्वर के प्रश्न का उत्तर देने के लिए इसी उत्तर का उपयोग करने की और परमेश्वर को उलझाने की कोशिश करने के लिए इस उत्तर का उपयोग करने की हिम्मत करता है—यह शैतान का कुरूप चेहरा है। वह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर विश्वास नहीं करता है, वह परमेश्वर के अधिकार पर विश्वास नहीं करता है, और वह निश्चित रूप से परमेश्वर के प्रभुत्व में आज्ञा मानने के लिए तैयार नहीं है। शैतान सदा परमेश्वर के विरोध में रहता है, वह सब कुछ जो परमेश्वर करता है उस पर आक्रमण करता है, वह सब कुछ जो परमेश्वर करता है उसको तबाह करने की कोशिश करता है—यह उसका दुष्‍ट उद्देश्य है।
परमेश्वर की छः हज़ार वर्षीय प्रबंधकीय योजना में, ये दो अंश जिन्हें शैतान कहता है और अय्यूब की पुस्तक में ऐसे कार्य जिन्हें शैतान करता है वे परमेश्वर के प्रति उसके प्रतिरोध को दर्शाते हैं। यहाँ शैतान अपना असली रंग दिखा रहा है। क्या तुमने शैतान के शब्‍दों और कार्यों को असल जीवन में देखा है? जब तुम उन्हें देखते हो, तो तुम नहीं सोच सकते कि ये ऐसी बातें हैं जिन्हें शैतान के द्वारा बोला गया है, किन्तु इसके बजाए सोचते हो कि ये ऐसी बातें हैं जिन्हें मनुष्य के द्वारा बोला गया है। जब ऐसी बातों को मनुष्य के द्वारा बोला जाता है, वहां क्‍या दिखाई देता है? शैतान दिखाई देता है। भले ही तुम इसे पहचान लो, तुम तब भी यह एहसास नहीं कर सकते कि इसे वास्तव में शैतान के द्वारा बोला जा रहा है। पर अभी और यहाँ तुमने सुस्पष्ट ढंग से देखा है कि शैतान ने स्वयं क्या कहा है। अब तुम्हारे पास शैतान के भयानक चेहरे और उसकी दुष्टता की स्पष्ट एवं बिलकुल साफ समझ है। अतः क्या ये दो अंश जिन्हें शैतान के द्वारा बोला गया था वे शैतान के स्वभाव को पहचानने के योग्य होने के लिए आज के ज़माने के लोगों के लिए मूल्यवान हैं। क्या ये अंश आज की मानवजाति के लिए संग्रह किए जाने के योग्य हैं जिससे वे शैतान के डरावने चेहरे को पहचानने और शैतान के मूल एवं असली चेहरे को पहचानने के योग्य हों? यद्यपि ऐसा कहना बिलकुल भी उचित प्रतीत नहीं होता, तब भी उसे इस तरह से अभिव्यक्त करना फिर भी ठीक लग सकता है। मैं इसे केवल इसी रीति से कह सकता हूँ और यदि तुम लोग इसे समझ सको, तो यह काफी है। शैतान उन कार्यों पर बार-बार आक्रमण करता है जिन्हें यहोवा परमेश्वर करता है और यहोवा परमेश्वर के प्रति अय्यूब के भय के विषय में अनेक इल्ज़ाम लगाता है। वह विभिन्न तरीकों से यहोवा परमेश्वर को क्रोधित करने का प्रयास करता है और यहोवा परमेश्वर को रज़ामंद करता है कि वह अय्यूब को प्रलोभन देने के लिए शैतान को अनुमति दे। इसलिए उसके शब्द बहुत ही भड़काने वाले हैं। अतः मुझे बताओ, जब एक बार शैतान ने इन शब्दों को बोल दिया है, तो क्या परमेश्वर साफ-साफ देख सकता है कि शैतान क्या करना चाहता है? (हाँ।) परमेश्वर के हृदय में, यह मनुष्य अय्यूब जिस पर परमेश्वर दृष्टि रखता है—परमेश्वर का यह सेवक, जिसे परमेश्वर धर्मी पुरुष, एवं एक पूर्ण पुरुष मानता है—क्या वह इस तरह के प्रलोभन का सामना कर सकता है? (हाँ) परमेश्वर ऐसे निश्चय के साथ "हाँ" कैसे कहता है? क्या परमेश्वर हमेशा मनुष्य के हृदय को जांचता रहता है? (हाँ।) अतः क्या शैतान मनुष्य के हृदय को जांचने के योग्य है? शैतान जांच नहीं ��कता है। यदि शैतान देख भी पाए कि मनुष्य के अंदर परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय है, फिर भी उसका दुष्ट स्वभाव कभी विश्वास नहीं कर सकता है कि पवित्रता, पवित्रता है, या घिनौनापन, घिनौनापन है। दुष्ट शैतान कभी किसी ऐसी चीज़ को संजोकर नहीं रख सकता है जो पवित्र, धर्मी और उज्ज्वल हैं। शैतान अपने स्वभाव के माध्यम से, अपनी दुष्टता और इन तरीकों के माध्यम से जिन्हें वह उपयोग करता है, क��म करने के लिए कोई कसर बाकी न रखने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकता है। यहाँ तक कि परमेश्वर के द्वारा स्वयं को दण्डित या नष्ट किए जाने की कीमत पर भी, वह ढिठाई से परमेश्वर का विरोध करने से हिचकिचाता नहीं है—यह दुष्टता है, यह शैतान का स्वभाव है। अतः इस अंश में, शैतान कहता है: "खाल के बदले खाल; परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।" शैतान सोचता है कि परमेश्वर के प्रति मनुष्य का भय इस कारण है क्योंकि मनुष्य ने परमेश्वर से बहुत सारा लाभ प्राप्त किया है। मनुष्य परमेश्वर से अनेक लाभ उठाता है, अतः वह कहता है कि परमेश्वर अच्छा है। परन्तु यह इसलिए नहीं है क्योंकि परमेश्वर अच्छा है, यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि मनुष्य इतने सारे लाभ प्राप्त करता है कि वह इस रीति से परमेश्वर का भय मान सकता है: एक बार यदि परमेश्वर उसे इन लाभों से वंचित कर देता है तो वह परमेश्वर को त्याग देता है। अपने दुष्ट स्वभाव के कारण, शैतान यह नहीं मानता है कि मनुष्य का हृदय सचमुच में परमेश्वर का भय मान सकता है। अपने दुष्ट स्वभाव के कारण वह नहीं जानता है कि पवित्रता क्या है, और वह भययुक्त आदर-सम्मान को तो बिलकुल भी नहीं जानता है। वह नहीं जानता कि परमेश्वर की आज्ञा मानना क्या है, या परमेश्वर का भय मानना क्या है। क्योंकि वह उन्हें नहीं जानता है, वह सोचता है, मनुष्य भी परमेश्वर का भय नहीं मान सकता है। मुझे बताओ, क्या शैतान दुष्ट नहीं है? हमारी कलीसिया को छोड़कर, चाहे वे विभिन्न धर्म एवं सम्प्रदाय हों, या धार्मिक एवं सामाजिक समूह, उनमें से कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता, या यह विश्वास नहीं करता कि परमेश्वर कार्य कर सकता है, अतः वे सोचते हैं—जिसमें तुम विश्वास करते हो वह भी परमेश्वर नहीं है। उदाहरण के लिए, एक व्यभिचारी इंसान को हर कोई व्यभिचारी नज़र आता है, जैसा वह खुद है। जो आदमी हर समय झूठ बोलता है तो उसे लगता है कि कोई भी ईमानदार नहीं है, उसे लगता है कि सब झूठ बोलते हैं। एक दुष्ट व्यक्ति हर एक को दुष्ट समझता है और किसी को भी देखते ही लड़ना चाहता है। ऐसे लोग जो तुलनात्मक रूप से ईमानदार हैं वे हर किसी को ईमानदार समझते हैं, अतः वे हमेशा झांसे में आ जाते हैं, वे हमेशा धोखा खाते हैं, और वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते। तुम लोगों को और अधिक निश्चित करने के लिए मैं कुछ उदाहरण दे रहा हूँ: शैतान का बुरा स्वभाव अल्पकालिक विवशता नहीं है या कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो इस वातावरण के द्वारा उत्पन्न हुई है, न ही यह अल्पकालिक प्रगटीकरण है जो किसी कारण या पृष्ठभूमि के द्वारा उत्पन्न हुआ है। कदापि नहीं! वह जैसा है वैसा ही रहेगा! वह कुछ भी अच्छा नहीं कर सकता है। यहाँ तक कि उस समय भी जब वह कुछ ऐसा कहे जो सुनने में मनोहर हो, वह बस तुम्हें लुभाता है। उसके शब्द जितने अधिक सुखद, जितने अधिक व्यवहार-कुशल और जितने अधिक विनम्र होते हैं, इन शब्दों के पीछे उसके भयानक इरादे उतने ही अधिक विद्वेषपूर्ण होते हैं। इन दो अंशों में तुमने शैतान का किस प्रकार का चेहरा, किस प्रकार का स्वभाव देखा है? (भयानक, विद्वेषपूर्ण एवं दुष्ट।) उसका प्रमुख लक्षण दुष्टता है, खास तौर पर दुष्टता एवं विद्वेषपूर्णता।
                                                स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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पुनर्निर्माणका सीइओलाई प्रश्न–कहाँ अड्कियो ‘हाउस पुलिङ ?
१० वैशाख, काठमाडौं । विनाशकारी भूकम्प गएको चार वर्ष बित्यो । पुनर्निर्माणका लागि प्राधिकरण बनाएर काम गरेको पनि साढे तीन वर्ष भइसक्यो । यसबीचमा निजी घर निर्माण ठीकै रहे पनि एकीकृत बस्ती निर्माण योजना अलपत्र पर्‍यो । चार वर्षमा सरकारले धुर्मुस-सुन्तली फाउण्डसेनले जति पनि काम गर्न सकेन ।
शहरको पुननिर्माण पनि अलपत्र छ । हाउस पुलिङ र ल्याण्ड पुलिङ गरेर पुराना बस्ती पुननिर्माण गर्ने भनिए पनि प्रगति शून्य छ ।
यिनै सन्दर्भमा पुनर्निर्माण प्राधिकरणका कार्यकारी अधिकृत (सीइओ) सुशील ज्ञवालीसँग अनलाइनखबरले गरेको कुराकानीको सम्पादित अंश ः
एकीकृत बस्ती निर्माणको विषयमा जे सोचिएको थियो, त्यसअनुसार काम भएन होइन त ? 
एकीकृत बस्तीको सन्दर्भमा जुन स्केलमा जान सक्थ्यौं, त्यति नभएकै हो । यसका थुप्रै कारणहरु रहे । प्राधिकरणले बनाएको योजना अनुसार एकीकृत बस्ती निर्माण अभियान सञ्चालन हुन सकेन ।
म प्राधिकरणमा फर्किएपछि एकीकृत बस्तीलाई प्राथमिकतामा राखेँ । पहिलो बैठकबाटै एक पालिका, एउटा एकीकृत बस्ती भन्ने निर्णय गराएँ । अहिले ३७ वटा प्रस्ताव आएको छ, त्यसमध्ये २९ वटा अगाडि बढिसक्यो ।
अहिलेसम्म सरकारबाट अनुदान दिएर धेरैले घर बनाइसके, कतिपय बनाउँदैछन् । अहिले आएर एकीकृत बस्ती सम्भव होला र ? 
एकीकृत बस्तीहरु बनाउने अवसर हामीले एउटा तहमा गुमाएकै हौं । तर, म कुनै पनि नयाँ काम गर्न कहिल्यै ढिलो भएको मान्नुहुँदैन भन्ने ठान्छु ।
कतिपयले एकीकृत बस्ती बनाउनुपर्छ भनेर घरै नबनाई बसेको पनि पाएको छु । त्यो सबैलाई हेरेर अब जति एकीकृत बस्ती सम्भव छ, त्यति बनाउन चाहन्छु ।
थातथलो छाडेर जान नचाहने हाम्रो ‘माइन्ड सेट’ छ । माटोप्रति बढी लगाव छ । अर्को ठाउँमा सर्नासाथ जिविकोपार्जनसँग जोजिएका समस्या पनि आउँछ । यसलाई सम्बोधन नगरी बना��ने एकीकृत बस्ती सफल हुँदैन । त्यसैले जनतालाई एकीकृत बस्तीमा जान प्रोत्साहन गर्ने नीति लियौं । यसका लागि एकीकृत बस्तीमा चाहिने खानेपानी, विद्यालय, स्वास्थ चौकी, सडक, विद्युत लगायतका पूर्वाधार प्याकेजमा दिने र समुदायमार्फत काम गर्ने कार्यक्रम बनाएका छौंं ।
एकीकृत बस्तीहरु बनाउँदा पूर्वाधारका लागि तराईमा तीन लाख, पहाडमा चार र हिमाली क्षेत्रमा पाँचलाख रुपैयाँ प्रतिघर धुरी अतिरिक्त अनुदान दिन्छौं । तर, यो व्यक्तिले होइन, समुदायले पाउँछ । यतिले पनि पुगेन भने हामीसँग प्रदेश र स्थानीय सरकार छन् । एकीकृत बस्तीका सन्दर्भमा प्रदेश ३ सरकार निकै उत्साहित पाएको छु । प्रदेश सरकारले थप बजेट मिलाउन सक्छौं भनेको छ ।
अब कतिजति बस्ती बन्लान् त ? 
दुई वर्षभित्र कम्तिमा ७५ वटा एकीकृत बस्ती बनाइसक्ने लक्ष्यका साथ काम गरिहेका छौं ।
अहिले बनिरहेका कतिपय एकीकृत बस्तीमा थोरै ठाउँमा धेरै घरहरु बनेको देखिन्छ । भोलि बस्ती बन्ने तर, मान्छे नबस्ने त हुँदैन ? 
ठाउँ विशेषले असर गर्दोरहेछ । पहाडको भिरालोमा धेरै टाढा लगेर एकीकृत बस्ती बनाउन नसकिने रहेछ । त्यसैले न्यूनतम मापदण्ड कायम गर्न लगाएका छौं ।
एकीकृत बस्ती त गाउँको कुरा भयो, सहरमा पुननिर्माणका लागि ल्याएको ल्याण्ड पुलिङ, हाउस पुलिङको अवधारणा बुझाउनै सक्नुभएन, होइन ? 
विगततिर फर्केर दोषारोपण गर्न चाहन्न, तर यसमा जुन सोचले काम अगाडि बढाएको थिएँ, त्यसअनुसार भएन । ल्याण्ड पुलिङ मोडलमा १२५ वटा एकीकृत बस्ती बनाउन बजेट माग गरेर अर्थ मन्त्रालयमा प्रस्ताव पठाएँ तर, दिइएन
तपाईले महत्वपूर्ण कुरा उठाउनुभयो । म आफैं प्लानिङको विद्यार्थी हुँ । मैले पढेको, २० वर्ष काम गरेको पनि टाउन प्लानिङमा नै हो । त्यसैले शहरमा योजनावद्ध विकासका निम्ति जग्गा एकीकरण वा ल्याण्डपुलिङ र हाउस पुलिङ महत्वपूर्ण लाग्छ । जथाभावी घर बनेर विकृत भइसकेको सहरी बस्तीलाई नयाँ ढंगले सुधार गर्न हाउस पुलिङको मोडलमा जानुपर्छ ।
बस्ती भर्खर बस्न थालेको वा अव्यवस्थितरुपमा जग्गा किनबेच भएको छ भने त्यहाँ ल्याण्डपुलिङ गर्न सकिन्छ । जति पनि योजनावद्ध शहर बनेका छन्, ती ल्याण्ड पुलिङको मोडलबाटै बनेका हुन् ।
विगततिर फर्केर दोषारोपण गर्न चाहन्न, तर यसमा जुन सोचले काम अगाडि बढाएको थिएँ, त्यसअनुसार भएन । ल्याण्ड पुलिङ मोडलमा १२५ वटा एकीकृत बस्ती बनाउन बजेट माग गरेर अर्थ मन्त्रालयमा प्रस्ताव पठाएँ तर, दिइएन । अवसर गुम्ने अवस्था बन्यो ।
यो दोस्रो कार्यकालमा ल्याण्ड पुलिङ गरेर टाउनसिप नै विकास गर्न मसँग समय छैन । ल्याण्ड पुलिङ गरेर आउनुहुन्छ भने पूर्वाधार व्यवस्थापनमा सहयोग गर्छौं । मैले विगतमा काम गरेको नगर विकास कोषसँग सहकार्य गर्न खोजेको छु । उहाँहरु ७० प्रतिशतसम्म सरल ऋण र ३० प्रतिशतसम्म अनुदान उपलब्ध गर���उन सहमत हुनुहुन्छ ।
यदि यो अहिले नै सम्भव भएन भने पनि प्रदेश ३ का मुख्यमन्त्रीले आगामी वर्षको बजेटमा ल्याण्ड पुलिङ कार्यक्रम ल्याउँछु भन्नुभएको छ । त्यसो भयो भने पुनर्निर्माण प्राधिकरणले प्राविधिक सहयोग गर्छ । प्राधिकरण नहुँदा पनि प्रदेश सरकारले काम गर्न सक्छ ।
जहाँसम्म हाउस पुलिङको कुरा छ, यसबारे बुझाइमा पनि समस्या भएजस्तो लाग्छ । विशेष गरेर हाम्रा पुराना बस्तीहरुको मौलिकता कायम राख्नुपर्छ, तर आजसम्म आइपुग्दा धेरै कंक्रिटका घर बनेका छन् । सलाईका बट्टा जस्ता स-साना तर, ६-७ तला अग्ला घरहरु बनेका छन् ।
यसलाई व्यवस्थापन गर्न असुरक्षित र कुरुप घरहरु भत्काएर परम्परागत स्वरुपमा नयाँ बनाउने नै हो । बलियो र भित्र फराकिलो स्पेश बनाउन कम्तिमा ५-६ परिवार मिलेर एउटै घर बनाउन सकिन्छ । बहुस्वामित्वको यस्ता घरहरुको पहिलो तला ब्यापारिक हुनसक्छ, त्यसमाथिका तलाहरुमा फ्ल्याट सिस्टम जस्तै गरेर बस्न सकिन्छ ।
यस्तो हुन्छ र गर्नुपर्छ त भनिरहेका छौं तर, किन हुन सकिरहेको छैन ? बुझाउनै नसकेको हो ?
यसमा सरकारले सडक ढल बनाएजस्तो वा विद्युतको पोल हाले जस्तो गरेर काम गर्न मिल्दैन, सकिँदैन । जनताको निजी सम्पत्ति भएकोले उनीहरु सहमत भएपछि मात्र काम गर्न सकिन्छ । यसरी हेर्दा जनतालाई बताउन, बुझाउन सकेनौं जस्तो लाग्छ ।
मौलिकताबारे पनि भ्रम परेको देखिन्छ । नयाँ निर्माणमा पुरानो वास्तुशैली कायम राख्ने कुरामा पुरातत्वविद् र प्लानरबीच मतभिनन्ता छ । त्यसैले हामीले काठमाडौं महानगरपालिकालाई किलागलवासीलाई थप बताउनुपर्छ भने तयार छौं तर, बाँकी विषय समाधान गर्नुस् भनेका छौं । त्यो नहुँदा किलागलमा काम अगाडि बढ्न सकेको छैन ।
परम्परागत बस्तीहरुको मास्टर प्लान बनाउन थालेका छौैं । साँखु, खोकना, बुंग्मती, नुवाकोट दरबार र दोलखाको भिमसेन मन्दिर क्षेत्रमा काम गर्दैछौं । यसका लागि यो आर्थिक वर्षमा प्रति बस्ती पाँच करोड रुपैंया विनियोजन गरेका छौं । डीपीआर बनाएर काम सुरु गर्न चाहन्छौं । यसमा सिंगो बस्ती नभए पनि केही घरहरुलाई लिएर काम गर्न खोजेको छौं । मानौ, साँखुका २ सय परिवारमध्ये २० परिवार मात्र हाउस पुलिङमा जान सहमत भयो भने पनि काम गर्न सकिन्छ ।
गाउँमा घरहरु भूकम्प प्रतिरोधी नै बनेका छन् । तर, सहरमा त्यस्तो भइसकेको छैन । शहरबासीले भूकम्पपछि सिक्नुपर्ने पाठ नसिकेको हो ?
म आफूले आफैंलाई कहिलेकाँहि यही प्रश्न गर्छु । तर, यसमा केही समस्या पनि थिए, जसलाई ��ुनर्निर्माण प्रधिकरणले हालै मात्र पत्ता लगाएको छ । जस्तो, बहुस्वामित्वको घरको स्वीकृति दिने विधि के ? अनुदान कसरी दिने ? यसमा अलमल रहेछ । हामीले यो टुंगो लगाएका छौं ।
तीन-चार परिवार मिलेर एउटा घर बनाउन चाहने हो भने तीन-चार परिवार नै लाभग्राही हुन्छन् । परम्परागत घर बनाउन थप पैसा लाग्छ । साँखुमा एउटै झ्याल मर्मत गर्दा मात्र १० लाख रुपैयाँ लाग्यो भन्दै हुनुहुन्थ्यो । त्यसैले सहुलियत दरमा काठ दिन टिम्बर कर्पोरेसनसँग छलफल गरेको छु । परम्परागत इँटा लगायतका लागि थप ५० हजार अनुदान दिने गरी कार्यविधि बनाएका छौं ।
कालिगढको अभाव टार्न भक्तपुर नगरपालिका र उ मातहतको ख्वप इन्जिनियरिङ कलेजसँग छलफल गरेर तालिमको व्यवस्था गर्न खोजेका छौं । यी जटिलता नहटाई सहरी क्षेत्रका परम्परागत बस्तीहरुको पुननिर्माण गाह्रो छ ।
अर्को कुरा, घरहरु बनाउँदा ढल, खानेपानीको पाइप, विद्युतको पोल, सडक एकसाथ बनेन भने असर गर्दोरहेछ । यसको एकीकृत योजना पनि छैन ।
हामी काठमाडौं उपत्यकाभित्रका ६२ पुराना बस्तीका लागि एकीकृत योजना बनाउँछौं । यो वर्ष ६ वटामा काम गर्छौं
त्यसैले हामी काठमाडौं उपत्यकाभित्रका ६२ पुराना बस्तीका लागि एकीकृत योजना बनाउँछौं । यो वर्ष ६ वटामा काम गर्छौं । ठूलो संख्यामा नसकौंला तर, १०-१५ वटासम्म योजना बनाउन सक्यौं भने नमूना हुन्छ । विस्तारै अरु बस्ती पनि बनेर काठमाडौं नमुना सांस्कृतिक सहरका रुपमा स्थापित हुन सक्छ । यसका लागि दशक लाग्न सक्छ ।
यसमा तीनै तहको सरकारको सक्रियता चाहिएला नि ? सरकारहरुले कत्तिको चासो राखेका छन् ?
धेरैलाई यस्तो हुन सक्छ र भन्ने छ । त्यसैले हामी नमुनाका रुपमा केही बस्तीहरु बनाएर हुन्छ भनेर देखाउन चाहन्छौं । हामीले साँखु, बुङ्मती र खोकनामा मात्र बनाउन सक्यौं भने भोलि सबै तहका सरकारलाई अनुभूति हुनेछ ।
साथै यस्ता बस्तीहरुमा काम गर्न समन्वयात्मक संयन्त्रको रुपमा काम गरिरहेका छौं । जस्तो, बुङ्मतीमा काम गर्दा ललितपुर महानगर, त्यहाँको वडा कार्यालय, पुरातत्व विभागको संयुक्त संयन्त्र बनाएका छौं । प्रक्रियामै संलग्न भएपछि सबैको अपनत्व स्थापित हुन्छ ।
  यो पनि पढ्नुस्ः-
०७२ सालको भूइँचालोलाई फर्केर हेर्दा-१ : भूकम्पको ‘इपिसेन्टर’ बारपाक : न गाउँ, न शहर !
०७२ सालको भूइँचालोलाई फर्केर हेर्दा-२ : महाभूकम्पले तोडेको ‘लाइफलाइन’ : नेपालको हुटहुटी पूरा गर्न चीनको चटारो
०७२ सालको भूइँचालोलाई फर्केर हेर्दा-३ : भूकम्पले जुटाएको अवसर : गाउँमा सुविधापूर्ण विद्यालय भवन
०७२ सालको भूइँचालोलाई फर्केर हेर्दा-४ : घर उठ्यो, रातो मछिन्द्रनाथ उठेन�� 
०७२ सालको भूइँचालोलाई फर्केर हेर्दा-५ : विस्तारै उठ्दैछ काष्ठमण्डप
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primelatestnews · 7 years ago
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Adhyay 3 Shlok 31-40 | Karma yog | Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 3 का श्लोक 31
ये, मे, मतम्, इदम्, नित्यम्, अनुतिष्ठन्ति, मानवाः, श्रद्धावन्तः, अनसूयन्तः, मुच्यन्ते, ते, अपि, कर्मभिः।।31।।
अनुवाद: जो कोई मनुष्य दोषदृष्टिसे रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत अर्थात् सिद्धांत का सदा अनुसरण करते हैं वे भी शास्त्र विधि त��याग कर अर्थात् सिद्धान्त छोड़ कर किए जाने वाले दोष युक्त कर्मों से बच जाते हैं। (31)
अध्याय 3 का श्लोक 32
ये, तु, एतत्, अभ्यसूयन्तः, न, अनुतिष्ठन्ति, मे, मतम्, सर्वज्ञानविमूढान्, तान्, विद्धि, नष्टान्, अचेतसः।।32।।
अनुवाद: परंतु जो दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत अर्थात् सिद्धान्त के अनुसार नहीं चलते हैं उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही जान। (32)
सदृशम्, चेष्टते, स्वस्याः, प्रकृतेः, ज्ञानवान्, अपि, प्रकृतिम्, यान्ति, भूतानि, निग्रहः, किम्, करिष्यति।।33।।
अनुवाद: सभी प्राणी प्रकृति अर्थात् स्वभाव को प्राप्त होते हैं ज्ञानवान् भी अपने निष्कर्ष द्वारा निकाले भक्ति मार्ग के आधार से स्वभाव के अनुसार चेष्टा करता है हठ क्या करेगा? (33)
अध्याय 3 का श्लोक 34
इन्द्रियस्य, इन्द्रियस्य, अर्थे, रागद्वेषौ, व्यवस्थितौ, तयोः, न, वशम्, आगच्छेत्, तौ, हि, अस्य, परिपन्थिनौ।।34।।
अनुवाद: इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं। उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिये क्योंकि वे दोनों ही इसके विघ्न करने वाले महान् शत्रु हैं। (34)
अध्याय 3 का श्लोक 35
श्रेयान्, स्वधर्मः, विगुणः, परधर्मात्, स्वनुष्ठितात्, स्वधर्मे, निधनम्, श्रेयः, परधर्मः, भयावहः।।35।।
अनुवाद: गुणरहित अर्थात् शास्त्र विधि त्याग कर स्वयं मनमाना अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरों की धार्मिक पूजा से अपनी शास्त्रा विधि अनुसार पूजा अति उत्तम है जो शास्त्रानुकूल है अपनी पूजा में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे की पूजा भय को देनेवाली है। (35)
अध्याय 3 का श्लोक 36 (अर्जुन उवाच)
अथ, केन, प्रयुक्तः, अयम्, पापम्, चरति, पूरुषः, अनिच्छन्, अपि, वाष्र्णेय, बलात्, इव, नियोजितः।।36।।
अनुवाद: हे कृष्ण! तो फिर यह मनुष्य स्वयम् न चाहता हुआ भी बलात् लगाये हुए की भाँति किस से प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है? (36)
अध्याय 3 का श्लोक 37 (भगवान उवाच)
कामः, एषः, क्रोधः, एषः, रजोगुणसमुद्भवः, महाशनः, महापाप्मा, विद्धि, एनम्, इह, वैरिणम्।।37।।
अनुवाद: रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह विषय वासना अर्थात् सैक्स और यह क्रोध जीव को अत्यधिक खाने वाला अर्थात् नष्ट करने वाला बड़ा पापी है इस उपरोक्त पाप को ही तू इस विषय में वैरी जान। (37)
अध्याय 3 का श्लोक 38
धूमेन, आव्रियते, वह्निः, यथा, आदर्शः, मलेन, च, यथा, उल्बेन, आवृतः, गर्भः, तथा, तेन, इदम्, आवृृतम्।।38।।
अनुवाद: जिस प्रकार धुएँ से ��ग्नि और मैल से दर्��ण ढका जाता है तथा जिस प्रकार जाल से गर्भ ढका रहता है वैसे ही उपरोक्त विकारों द्वारा यह ज्ञान ढका रहता है। (38)
अध्याय 3 का श्लोक 39
आवृतम्, ज्ञानम्, एतेन, ज्ञानिनः, नित्यवैरिणा, कामरूपेण, कौन्तेय, दुष्पूरेण, अनलेन, च।।39।।
अनुवाद: और हे कुन्ति पुत्र अर्जुन! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले कामरूप विषय वासना अर्थात् सैक्स रूपी ज्ञानियों के नित्य वैरी के द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढका हुआ है। (39)
अध्याय 3 का श्लोक 40
इन्द्रियाणि, मनः, बुद्धिः, अस्य, अधिष्ठानम्, उच्यते, एतैः, विमोहयति, एषः, ज्ञानम्, आवृत्य, देहिनम्।।40।।
अनुवाद: इन्द्रियाँ मन और बुद्धि ये सब इस काम देव अर्थात् सैक्स का वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम विषय वासना की इच्छा इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों के द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है। (40)
#gita #bhagwad #bhagavadgita #chapter3 #karmayog #adhyay3 #shlok
http://bhagvadgita.in/chapter-1-3/adhyay-3-shlok-31-40/
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सम्बन्धो में लोग मरे सद्भावना को अपना हक्क समझ लेते है . इसका क्या करे ???
सम्बन्धो में लोग मरे सद्भावना को अपना हक्क समझ लेते है . इसका क्या करे ???
कई व्यक्तियों निजी सम्बन्ध को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते  है,  वो एक साइड से ही हिसाब किताब रखते है , चुकी उन्ही की साथ स्वस्थ सम्बन्थ रखना मुश्किल हो जाता है.
अक्सर काफी  टाइम हमने देखा है की ढूंढ़ते कुछ और है, पाते कुछ और है.! येही वाक्य को दो तरीके से बया
कर सकते है, एक तात्विक अर्थ या फिलोसोफी में और एक हकीकत में!!
एक बुज़र्ग ने मुज़से कहा की मरे घर वाले कोई मेरा मान सनमान नहीं रखते,
मैंने कहा आप उसी  का मान रख ते हो?, तो बोले में बड़ा हु में सबको मेंने गोदी में खिला के बड़े किये है,
फिर में ने कहा, आप अबतक ७५ से भी उपरके है , वो बचे भी ५० के आसपास होंगे ना? , उनलोगो ने भी दुन्या में कुछ मान मर्तबा, सन्मान प्राप्त किये होंगे ना?, आप का तो ऐटिटूड ऐसा है के वो आज भी छोटे बचे है. हो सकता है एक समय के पश्च्यात आप को मान देना बंध करदिया हो ??. मेरी बात बुस्ज़ुर्ग को अछि नहीं लगी .
दो बहने आपस में कह रही थी. एक ने कहा “अरे यार तुम मुझे बर्थडे वीश क्यों नहीं किया?” मुझे बहुत बुरा लगा, दूसरी ने कहा, बहन!! “ तू तो कभी किसी को वीश नहीं करती!!”, पहली ने बोलै ,” यार.. मुझे किसी को वीश करे ने की आदत कहा हे??”, “और मई कोई किसी को डेट याद भी नहीं रहती, तुमहे तो अनिवर्सी ,बर्थ डे जैसे प्रसंग का बड़ा महत्व ही तो तुमको तो याद कर के वीश करना चाहिए ना??”
एक विद्��ार्थी दूसरे को एक्ज़ाम के बाद बात की , “अरे यार पास बैठी  सिमा तो एकदम बेवकूफ है, मैंने उसे उत्तर पूछा तो एक का लिखाया, दूसरा पूछा तो आध अधूरा दिया, बोली आता नहीं है, यार पूरा लिखना चाइये ना??”
 उपरके बात से लगता है की काफी लोग खुद के लिए  ही सोचते है, सिर्फ उसीका ही हक है बस , व्क्यती की साथ उसका हक्क जताते है और एक तरफ़ा सम्बन्ध का हिसाब होता ही. उन लोगो लो समझना मुश्किल होता है .
ऊपर की उदहारण - एक्साम्पल से ये पता चलता है की की भलाई को वो ग्रांटेड ले ते है.
हम जो सद्भावना या एक अच्छे के लिए करते है तो वो अपना हक़ समज़ते है. सामने वाले को अपमानित करते है,
जियादा अपेक्षा रखते है, और तो और फरियाद करते है की क्यों नहीं किया ? सम्बन्ध में ऐसे लोग उलटे चलते है , हराम कभी खुद का विश्लेषण किया हो!  तुम उसकी  पास कोई अपेक्षा रखो तो वो गलत मानते है ,
यातो उसके सवभाव में नहीं होता या वो मानते नहीं है,और उसको ये जरुरी भी नहीं लगता. ये देखा की एक बहन का हठाग्रह है की वो नहीं मानती पर खुद को सामने वाले ने वीश करना चाइये, कितना गलत है... वो नहीं सोचते. वो बुस्ज़ुर्ग अपनों को सन्मान नहीं देते फिर अपेक्षा करते है , मुझे बराबर ट्रीट करे, वो मान ने को तैयार नहीं की सबका होना चाहिए.
सम्बन्धो में ऐसे लोगो का एक तरफा हिसाब रहता है, ऐसी व्यक्ति से सम्बन्ध टिकना और निभाना या स्वस्थ सम्बन्ध बनाये रखना मुश्किल होता है. उन्ही की फरियाद और दोषारोपण सामने वाले को पीडादेह होती है, बहतेर है उसी से दूर रहे  व्यर्थ चर्चा या दलील से समजाना नहीं चाहिए. ना सपर्धा करनी चाहिए , “जैसे को तैसा” वाला व्यहवार भी नहीं करना चहिये , बेहतर है की हम आपने स्वाभाव के अनुकूल व्यहवार करे, उसको ये बात से संतोष मिले ना मिले पर आप तो मन के उद्वेग या उचाट से बच पाओ गए .
सम्बन्धो में एक तरफ़ा हक या फ़र्ज़ ,पीड़ाकारक होती है .
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allgyan · 4 years ago
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महाभियोग और परिस्थति -
महाभियोग एक प्रक्रिया है इसपे हमारी नज़र इन दिनों पड़ी जब ट्रम्प समर्थकों ने अमेरिका की संसद में हंगामा किया । फिर हमने सोचा क्यों न  इसको पुरे विस्��ार से समझे ।महाभियोग की प्रक्रिया से अमेरिका के कई राष्ट्रपति गुज़र चुके है ।महाभियोग की प्रक्रिया तब होती है जब अमेरिका में अमेरिका के राष्ट्रपति अभियुक्त हो और ये भी तय है की उनपे दोष किस तरह के हो जैसे -राजद्रोह , घुस लेने का आरोप , दुराचार  और भी हाई क्राइम हो|ये आप यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका के सविधान आर्टिकल 2 सेक्शन -4 लिखा है ।संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमेरिका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है।
महाभियोग का जन्म कहा हुआ -
महाभियोग के जन्म से यहाँ मतलब इसकी शुरवात कहा से हुई या कहे की ये शब्द आया कहा से और किस देश में इसका पहला प्रयोग हुआ ।महाभियोग का मूल शब्द -अभियोग है । और अभियोग का अर्थ होता है दोषरोपड़ या आरोप लगने से है । किसी भी देश में जहाँ लोकतंत्र है वहाँ देश सविधान के बनाये नियम -कानून से चलता है।देश न्यायपलिका , विधायिका , कार्यपालिका से ही चलता है ।इंग्लैंड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग कहा जाता है।जब क्यूरिया या पार्लियामेंट का हाउस ऑफ लार्ड्स तथा हाउस ऑफ कामंस, इन दो भागों में विभाजन हुआ तो यह अभियोगाधिकार हाउस ऑफ़ लार्ड्स को प्राप्त हुआ।इंग्लैंड में कुछ महाभियोग इतने महत्वपूर्ण हुए हैं कि वे स्वयं इतिहास बन गये ।
इंग्लैंड के महाभियोग और अमेरिका के महाभियोग में अंतर -
जैसा की हम जानते है की महाभियोग की प्रक्रिया इंग्लैंड से ही जन्म ली है और कई देशों ने उसे अपनाये है लेकिन उसमे भी अपने कानून के हिसाब से मूल -चूल परिवर्तन किये है । सबसे पहला तो महाभियोग सिद्ध हो जाने पर दंड से सम्बंधित है ।इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है।
भारतीय सविधान में भी महाभियोग की प्रक्रिया -
भारतीय संविधान में इस प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है।इसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज पर साबित कदाचार और अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जाता है ।मुख्या न्यायधीश के खिलाफ किसी भी सदन में अभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है ।लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है।सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस पीडी दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया|2015 में ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके|आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्थन नहीं मिला|उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 2018 में राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया जिसे उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया।भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्यवाही कभी पूरी ही नहीं हो सकी|
ट्रम्प पर दो बार महाभियोग क्यों लगा -
अमेरिका के इतिहास में ट्रंप पहले ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जिनके ख़िलाफ़ एक ही कार्यकाल में दो बार महाभियोग प्रस्ताव पारित किया गया है|ट्रंप पर पिछले सप्ताह अपने समर्थकों को कैपिटल हिल यानी अमेरिकी संसद परिसर पर हमला करने के लिए उकसाने का आरोप था| जिसे सदन में 197 के मुक़ाबले 232 वोटों से पारित कर दिया गया| दस रिपब्लिकन्स सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया|दिसंबर 2019 में भी उन पर महाभियोग लाया गया था क्योंकि उन्होंने यूक्रेन से बाइडन की जाँच करने का कहकर क़ानून तोड़ा था|हालांकि सीनेट ने उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया था| लेकिन उस समय एक भी रिपब्लिकन सांसद ने ट्रंप के ख़िलाफ़ वोट नहीं दिया था|हमारी कोशिश यही रहेगी की आपके मनोरंजन के साथ साथ आपको कुछ ज्ञान की बातें बता सके |
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allgyan · 4 years ago
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महाभियोग:अमेरिका में राष्ट्रपति पर क्यों लगता है महाभियोग ?
महाभियोग और परिस्थति -
महाभियोग एक प्रक्रिया है इसपे हमारी नज़र इन दिनों पड़ी जब ट्रम्प समर्थकों ने अमेरिका की संसद में हंगामा किया । फिर हमने सोचा क्यों न  इसको पुरे विस्तार से समझे ।महाभियोग की प्रक्रिया से अमेरिका के कई राष्ट्रपति गुज़र चुके है ।महाभियोग की प्रक्रिया तब होती है जब अमेरिका में अमेरिका के राष्ट्रपति अभियुक्त हो और ये भी तय है की उनपे दोष किस तरह के हो जैसे -राजद्रोह , घुस लेने का आरोप , दुराचार  और भी हाई क्राइम हो|ये आप यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका के सविधान आर्टिकल 2 सेक्शन -4 लिखा है ।संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमेरिका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है।
महाभियोग का जन्म कहा हुआ -
महाभियोग के जन्म से यहाँ मतलब इसकी शुरवात कहा से हुई या कहे की ये शब्द आया कहा से और किस देश में इसका पहला प्रयोग हुआ ।महाभियोग का मूल शब्द -अभियोग है । और अभियोग का अर्थ होता है दोषरोपड़ या आरोप लगने से है । किसी भी देश में जहाँ लोकतंत्र है वहाँ देश सविधान के बनाये नियम -कानून से चलता है।देश न्यायपलिका , विधायिका , कार्यपालिका से ही चलता है ।इंग्लैंड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग कहा जाता है।जब क्यूरिया या पार्लियामेंट का हाउस ऑफ लार्ड्स तथा हाउस ऑफ कामंस, इन दो भागों में विभाजन हुआ तो यह अभियोगाधिकार हाउस ऑफ़ लार्ड्स को प्राप्त हुआ।इंग्लैंड में कुछ महाभियोग इतने महत्वपूर्ण हुए हैं कि वे स्वयं इतिहास बन गये ।
इंग्लैंड के महाभियोग और अमेरिका के महाभियोग में अंतर -
जैसा की हम जानते है की महाभियोग की प्रक्रिया इंग्लैंड से ही जन्म ली है और कई देशों ने उसे अपनाये है लेकिन उसमे भी अपने कानून के हिसाब से मूल -चूल परिवर्तन किये है । सबसे पहला तो महाभियोग सिद्ध हो जाने पर दंड से सम्बंधित है ।इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है।
भारतीय सविधान में भी महाभियोग की प्रक्रिया -
भारतीय संविधान में इस प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है।इसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज पर साबित कदाचार और अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जाता है ।मुख्या न्यायधीश के खिलाफ किसी भी सदन में अभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है ।लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है।सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस पीडी दिनाकरन के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया|2015 में ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के ख़िलाफ़ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके|आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्थन नहीं मिला|उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 2018 में राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया जिसे उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया।भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्यवाही कभी पूरी ही नहीं हो सकी|
ट्रम्प पर दो बार महाभियोग क्यों लगा -
अमेरिका के इतिहास में ट्रंप पहले ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जिनके ख़िलाफ़ एक ही कार्यकाल में दो बार महाभियोग प्रस्ताव पारित किया गया है|ट्रंप पर पिछले सप्ताह अपने समर्थकों को कैपिटल हिल यानी अमेरिकी संसद परिसर पर हमला करने के लिए उकसाने का आरोप था| जिसे सदन में 197 के मुक़ाबले 232 वोटों से पारित कर दिया गया| दस रिपब्लिकन्स सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया|दिसंबर 2019 में भी उन पर महाभियोग लाया गया था क्योंकि उन्होंने यूक्रेन से बाइडन की जाँच करने का कहकर क़ानून तोड़ा था|हालांकि सीनेट ने उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया था| लेकिन उस समय एक भी रिपब्लिकन सांसद ने ट्रंप के ख़िलाफ़ वोट नहीं दिया था|हमारी कोशिश यही रहेगी की आपके मनोरंजन के साथ साथ आपको कुछ ज्ञान की बातें बता सके | पूरा जानने के लिए-http://bit.ly/2XXE3Gg
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god-entire-disposition · 5 years ago
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परमेश्वर के स्वभाव को समझना अति महत्वपूर्ण है
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बहुत सारी ऐसी चीज़ें हैं जिनके विषय में मैं आशा करता हूँ कि आप उसे प्राप्त करेंगे। फिर भी, आपकी गतिविधियाँ और आपक��� जीवन मेरी माँगों को सम्पूर्णता से पूरा करने में ��समर्थ हैं, इसलिए, सीधे मुद्दे पर आकर अपने दिल और मन की बात आपको समझाता हूं। ये मानते हुए कि आपकी परखने और प्रशंसा करने की योग्यताएँ बेहद कमज़ोर हैं, आप पूरी तरह मेरे विवेक और सार से लगभग बिलकुल अनजान हैं, तो ये अति आवश्यक है कि मैं इसके बारे में आपको सूचित करूँ। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप पहले कितना समझते थे या फिर आप इन विषयों को समझने में इच्छुक हैं कि नहीं, फिर भी मुझे उनके बारे में आपको विस्तारपूर्वक बताना होगा। ये कोई ऐसा विषय नहीं हैं जो आपके लिए बिलकुल अनजान हो, परन्तु ऐसा नहीं लगता कि आप इसे समझते हैं या इसमें जो अर्थ निहित है उससे परिचित हैं। बहुतों के पास समझ की बस एक हल्की-सी रोशनी है और मुख्यतः इस विषय का एक छिछला ज्ञान है। सच्चाई को बेहतर ढंग से अपनाने में आपकी मदद करने के लिये, अर्थात मेरे वचनों को अभ्यास में लाने के लिये पहले आपको इस विषय को समझना होगा। अन्यथा आपका विश्वास अस्पष्ट, कपटपूर्ण, और धर्म के रंगों में रंगा हुआ बना रहेगा। यदि आप परमेश्वर के स्वभाव को नहीं समझोगे, तब आप जो उसके लिए करना चाहते हैं उसे करना आपके लिए असंभव होगा। यदि आप परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं जानते हैं, तो भी उसके आदर और भय को धारण करना असंभव होगा, केवल बेपरवाह असावधानी और घुमा-फिराकर कहना और इसके अतिरिक्त असाध्य ईश-निन्दा होगी। परमेश्वर के स्वभाव को समझना वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है, और परमेश्वर के अस्तित्व के ज्ञान को कभी भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, फिर भी किसी ने भी पूरी तरह इस विषय का परीक्षण नहीं किया है या उसकी गहराई मे नहीं गए हैं। यह बिलकुल साफ-साफ देखा जा सकता है कि आपने मेरे द्वारा दिए गए सभी प्रशासनिक आदेशों को निरस्त कर दिया है। यदि आप परमेश्वर के स्वभाव को समझ नहीं सकते, तो आप आसानी से उसके स्वभाव को ठेस पहुँचा देंगे। ऐसा अपराध स्वयं परमेश्वर को क्रोधित करने के समान है, और अंततः प्रशासनिक आदेशों के विरूद्ध एक गुनाह बन जाता है। अब आपको एहसास हो जाना चाहिए कि जब आप उसके सार को समझ जाते हैं तो आप परमेश्वर के स्वभाव को समझ सकते हैं, और परमेश्वर के स्वभाव को समझना उसके प्रशासनिक आदेशों को समझने के बराबर है। निश्चित रूप से, परमेश्वर के स्वभाव में बहुत सारे प्रशासनिक आदेश शामिल हैं, परन्तु उसके स्वभाव की सम्पूर्णता को उनमें प्रकट नहीं किया गया है। इसमें परमेश्वर के स्वभाव से और ज़्यादा परिचित होने की जरूरत है।
आज मैं आप से सामान्य बोलचाल की भाषा में बात नहीं कर रहा हूँ, अतः आपको मेरे वचनों पर ईमानदारी से ध्यान देना होगा और, इसके अतिरिक्त, गहराई से उन पर विचार करना होगा। इस से मेरा अभिप्राय यह है कि आप ने उन वचनों के प्रति जो मैं ने कहे हैं, बहुत थोड़ा-सा प्रयास किया ��ै। जब परमेश्वर के स्वभाव की बात आती है, तो उस पर मनन करने के लिए आप और भी अनिच्छुक हो जाते हैं, और इस पर बहुत ही कम लोग समर्पित होते हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि आपका विश्वास मात्र शब्दों का आडम्बर है। अभी भी, अपनी अति महत्वपूर्ण कमज़ोरियों के लिए आप में से एक ने भी कोई सच्चा प्रयास नहीं किया है। आपके लिए इतना दर्द सहने के बावजूद आपने मुझे शर्मिन्दा किया है। इस में कोई आश्चर्य नहीं कि आप सभी परमेश्वर का भय एवं उसकी आज्ञाओं को नहीं मानते हैं और ऐसा जीवन जीते हैं जिस में कोई सत्य नहीं है। इस प्रकार के लोगों को संत कैसे माना जाएगा? स्वर्ग ऐसी बात को बर्दाश्त नहीं करेगा! चूंकि आप समझने से इतना भय खाते हैं, तो मुझे कुछ और साँसें न्योछावर करनी होंगी।
परमेश्वर का स्वभाव एक ऐसा विषय है जो बहुत गूढ़ दिखाई देता है और जिसे आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता, क्योंकि उसका स्वभाव मनुष्यों के व्यक्तित्व के समान नहीं है। परमेश्वर के पास भी आनन्द, क्रोध, दुखः, और खुशी की भावनाएँ हैं, परन्तु ये भी भावनाएँ उन मनुष्यों की भावनाओं से जुदा हैं। परमेश्वर का अपना अस्तित्व और स्वत्वबोध है। जो कुछ वह प्रकट और उजागर करता है वह उसके सार और उसकी पहचान का प्रस्तुतिकरण है। उसकी हस्ती, उसका स्वत्वबोध, साथ ही उसके सार और पहचान को किसी मनुष्य के द्वारा बदला नहीं जा सकता है। उसका स्वभाव मानव जाति के प्रति उसके प्रेम, मानवजाति के लिए उसकी दिलासा, मानवजाति के प्रति नफरत, और उस से भी बढ़कर, मानवजाति की सम्पूर्ण समझ के चारों ओर घूमता रहता है। फिर भी, मुनष्य का व्यक्तित्व आशावादी, जीवन्त, या कठोर हो सकता है। परमेश्वर का स्वभाव सब बातों में सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों के शासक, सारी सृष्टि के प्रभु से सम्बन्ध रखता है। उसका स्वभाव आदर, सामर्थ, कुलीनता, महानता, और सब से बढ़कर, सर्वोच्चता का प्रतिनिधित्व करता है। उसका स्वभाव अधिकार और उन सब का प्रतीक है जो धर्मी, सुन्दर, और अच्छा है। इस के अतिरिक्त, यह इस का भी प्रतीक है कि परमेश्वर को अंधकार और शत्रु के बल के द्वारा दबाया या उस पर आक्रमण नहीं किया जा सकता है, साथ ही इस बात का प्रतीक भी है कि उसे किसी भी सृजे गए प्राणी के द्वारा ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती है (और उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं है)। उसका स्वभाव सब से ऊँची सामर्थ का प्रतीक है। कोई भी मनुष्य उसके कार्य और उसके स्वभाव को अस्थिर नहीं कर सकता है। परन्तु मनुष्य का व्यक्तित्व पशुओं से थोड़ा बेहतर होने के चिह्न से बढ़कर कुछ भी नहीं है। मनुष्य के पास अपने आप में और स्वयं में कोई अधिकार नहीं है, कोई स्वायत्तता नहीं है, और स्वयं को श्रेष्ठ करने की कोई यो��्यता भी नहीं है, वो तो बस एक तत्व है जो किसी व्यक्ति की चालाकी, घटना, या वस्तु के द्वारा भयातुर होकर नतमस्तक हो जाता है। परमेश्वर का आनन्द धार्मिकता और ज्योति की उपस्थिति और अभ्युदय से है; अँधकार और बुराई के विनाश से है। वह आनन्दित होता है क्योंकि वह मानवजाति के लिए ज्योति और अच्छा जीवन ले कर आया है; उसका आनन्द धार्मिकता का है, हर चीज़ के सकारात्मक होने का एक प्रतीक, और सब से बढ़कर कल्याण का प्रतीक। परमेश्वर का क्रोध अन्याय की मौजूदगी और उस अस्थिरता के कारण है जो इससे पैदा होती है जो उसकी मानवजाति को हानि पहुँचा रही है; बुराई और अँधकार की उपस्थिति के कारण, और ऐसी चीज़ों की उपस्थिति जो सत्य को बाहर धकेल देती है, और उस से भी बढ़कर ऐसी चीज़ों की उपस्थिति के कारण जो उनका विरोध करती हैं जो भला और सुन्दर है। उसका क्रोध एक चिह्न है कि वे सभी चीज़ें जो नकारात्मक हैं आगे से अस्तित्व में न रहें, और इसके अतिरिक्त यह पवित्रता का प्रतीक है। उसका दुखः मानवजाति के कारण है, जिसके लिए उस ने आशा की थी परन्तु वह अंधकार में गिर गई, क्योंकि जो कार्य वह मनष्यों के लिए करता है मनुष्य वह उसकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता, और क्योंकि वह जिस मानवजाति से प्रेम करता है वह ज्योति में पूरी तरह जीवन नहीं जी पाती। वह अपनी भोलीभाली मानवजाति के लिए, ईमानदार किन्तु अनजान मनुष्य के लिए, और अच्छे और अनिश्चित भाव वाले मनुष्य के लिए दुखः की अनुभूति करता है। उसका दुखः उसकी भलाई और उसकी करूणा का चिह्नहै, और सुन्दरता और उदारता का चिह्नहै। उसकी प्रसन्नता, वास्तव में, अपने शत्रुओं को हराने और मनुष्यों के भले विश्वास को प्राप्त करने से आती है। इसके अतिरिक्त, सभी शत्रु ताकतों को भगाने और हराने से और मनुष्यों के द्वारा भले और शांतिपूर्ण जीवन को प्राप्त करने से आती है। परमेश्वर की प्रसन्नता, मनुष्य के आनंद के समान नहीं है; उसके बजाए, यह मनोहर फलों को प्राप्त करने का एहसास है, एक एहसास जो आनंद से बढ़कर है। उसकी प्रसन्नता इस बात का चिह्नहै कि मानवजाति दुखः की जंज़ीरों को तोड़कर आज़ाद होकर ज्योति के संसार में प्रवेश करती है। दूसरे रूप में, मानवजाति की भावनाएँ सिर्फ स्वयं के सारे स्वार्थों के उद्देश्य के तहत अस्तित्व में हैं, धार्मिकता, ज्योति, या जो सुन्दर है उसके लिए नहीं, और स्वर्ग के अनुग्रह के लिए तो बिल्कुल नहीं। मानव जाति की भावनाएँ स्वार्थी हैं और अँधकार के संसार से वास्ता रखती हैं। वे इच्छा के लिए नहीं हैं, परमेश्वर की योजना के लिए तो बिल्कुल नहीं। इसलिए मनुष्य और परमेश्वर को एक ही साँस मे बोला नहीं जा सकता है। परमेश्वर सर्वदा सर्वोच्च है और हमेशा आदरणीय है, जबकि मनुष्य सर्वदा तुच्छ और हमेशा से निकम्मा है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर हमेशा बलिदान करता रहता है और मनुष्यों के लिए अपने आप को दे देता है; जबकि, मनुष्य हमेशा लेता है और सिर्फ अपने आप के लिए ही परिश्रम करता है। परमेश्वर सदा मानवजाति के अस्तित्व के लिए परिश्रम करता रहता है, फिर भी मनुष्य ज्योति और धार्मिकता में कभी भी कोई योगदान नहीं देता है। भले ही मनुष्य कुछ समय के लिए परिश्रम करे, लेकिन वह कमज़ोर होता है और हल्के से झटके का भी सामना नहीं सकता है, क्योंकि मनुष्य का परिश्रम केवल उसी के लिए होता है दूसरों के लिए नहीं। मनुष्य हमेशा स्वार्थी होता है, जबकि परमेश्वर सर्वदा स्वार्थविहीन होता है। परमेश्वर उन सब का स्रोत है जो धर्मी, अच्छा, और सुन्दर है, जबकि मनुष्य सब प्रकार की गन्दगी और बुराई का वाहक और फैलाने वाला है। परमेश्वर कभी भी अपनी धार्मिकता और सुन्दरता के सार-तत्व को नहीं पलटेगा, जबकि मनुष्य किसी भी समय धार्मिकता से विश्वासघात कर सकता है और परमेश्वर से दूर जा सकता है।
हर एक वाक्य जो मैं ने कहा है वह परमेश्वर के स्वभाव को सिद्ध करता है। आप यदि मेरे वचनों पर सावधानी से मनन करोगे तो अच्छा होगा, और आप निश्चय ही उनसे बड़ा लाभ उठाएंगे। परमेश्वर के सार-तत्व को समझना बड़ा ही कठिन काम है, परन्तु मैं भरोसा करता हूँ कि आप सभी के पास कम से कम परमेश्वर के स्वभाव का कुछ तो ज्ञान है। तब, मैं आशा करता हूँ कि आप वह कार्य जिससे परमेश्वर के स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचती है और भी अधिक करेंगे और मुझे दिखाएँगे। तब ही मुझे पुनः आश्वासन मिलेगा। उदाहरण के लिए, परमेश्वर को हर समय अपने दिल में रखिए। जब आप कार्य करते हैं तो उसके वचनों के साथ बने रहिये। सब बातों में उसके विचारों की खोज कीजिए, और ऐसा कोई भी काम मत कीजिए जिससे परमेश्वर का अनादर और अपमान हो। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर को अपने हृदय के भविष्य के खालीपन को भरने के लिए अपने मन में मत रखिये। यदि आप ऐसा करेंगे, तो आप परमेश्वर के स्वभाव को ठेस लगायेंगे। यदि आपने परमेश्वर के विरूद्ध कभी भी ईशनिन्दा की टिप्पणी या शिकायत नहीं की है और अपने सम्पूर्ण जीवन में जो कुछ उसने आपको सौंपा है उस से यथोचित कार्य करने में समर्थ रहे हैं, साथ ही परमेश्वर के वचनों के लिए पूर्णतया समर्पण कर दिया है, तो आप प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करने से बच गये हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप ने कभी ऐसा कहा है, "मैं ऐसा क्यों न सोचूँ कि वह परमेश्वर है?", "मैं सोचता हूँ कि ये शब्द पवित्र आत्मा के प्रकाशन से बढ़कर और कुछ नहीं हैं", "मैं नहीं सोचता कि जो कुछ परमेश्वर करता है वह सही है", "परमेश्वर की मानवीयता मेरी मानवीयता से बढ़कर नहीं है", "परमेश्वर का वचन सामान्य रूप से विश्वास करने योग्य नहीं है," या अन्य प्रकार की दोषारोपण संबंधी टीका टिप्पणियाँ, तो मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप अपने पापों का अंगीकार करें और पश्चाताप करें। अन्यथा, आपको पापों की क्षमा के लिए कभी अवसर नहीं मिलेगा, क्योंकि आपने किसी मनुष्य को नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर को ठेस पहुँचाई है। आप सोच सकते हैं कि आप मात्र एक मनुष्य पर न्याय-विचार कर रहे हैं, किन्तु परमेश्वर का आत्मा इस रीति से विचार नहीं करता है। उसके देह का अनादर उसके अनादर के बराबर है। यदि ऐसा है, तो क्या आपने ��रमेश्वर के स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचाई है? आपको याद रखना होगा कि जो कुछ भी परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया गया है वह उसकेदेह में उसके कार्य का समर्थन करने और ऐसे कार्य को भली भांति करने के लिए किया गया है। यदि आप इसे महत्व न दें, तब मैं कह सकता हूँ आप ही वो शख्स हैं जो परमेश्वर पर विश्वास करने में कभी सफल नहीं हो पाएँगे। क्योंकि आपने परमेश्वर के क्रोध को भड़का दिया है, इस प्रकार आपको सज़ा देने के लिए उसे उचित दण्ड का इस्तेमाल करना होगा।
परमेश्वर के सार-तत्व से परिचित होना कोई खिलवाड़ की बात नहीं है। आपको उसके स्वभाव को समझना ही होगा। इस तरह से आप धीरे-धीरे परमेश्वर के सार-तत्व से परिचित होते जाएँगे, जब आप इस ज्ञान में प्रवेश कर लेंगे, और इस प्रकार आप एक ही साथ एक महान और ख़ू़बसूरत स्थिति में आगे बढ़ते जाएँगे। अंत में आप अपनी घृणित आत्मा पर इतनी लज्जा महसूस करेंगे कि आप अपनी शक्ल दिखाने से भी लजाएँगे। उस समय, आप परमेश्वर के स्वभाव को कम से कम ठेस पहुँचायेंगे, आपका हृदय परमेश्वर के निकट और भी निकट होता जाएगा, और धीरे-धीरे उसके लिए आपका प्यार आपके हृदय में बढ़ता जाएगा। ये मानवजाति के ख़ूबसूरत स्थिति में प्रवेश करने का एक चिह्न है। परन्तु आप ने इसे अभी प्राप्त नहीं किया है। आपने अपनी नियति के लिए यहाँ वहाँ भटकते हुए अपने आप को थका दिया है, तो परमेश्वर के स्वभाव से परिचित होने की कौन सोचेगा? क्या इसे जारी रहना चाहिए, आप अनजाने में प्रशासनिक आदेशों के विरूद्ध अपराध करेंगे क्योंकि आप परमेश्वर के स्वभाव के बारे में बहुत ही कम जानते हैं। तो क्या अब आप परमेश्वर के स्वभाव के विरूद्ध अपने अपराधों के लिये नींव नहीं खोद रहे हैं? मैं चाहता हूं कि आप इस बात को समझें कि परमेश्वर के स्वभाव और मेरे कार्य में कोई मतभेद नहीं है। क्योंकि यदि आप बार-बार प्रशासनिक आदेशों के विरूद्ध अपराध करते रहेंगे, तो आप में से कौन है जो दण्ड से बच पाएगा? तो क्या मेरा कार्य पूरी तरह व्यर्थ नहीं हो जाएगा? इसलिए, मैं अभी भी कहता हूँ कि अपने कार्यों का सूक्ष्म परीक्षण करने के साथ-साथ, आप जो कदम उठा रहे हैं उसके प्रति सावधान रहिए। यह एक बड़ी माँग है जो मैं आप से करूँगा और आशा करता हूँ कि आप इस पर सावधानी से विचार करेंगे और इसे महत्वपूर्ण समझेंगे। यदि एक दिन ऐसा आया जब आपके कार्य मुझे प्रचण्ड रूप से क्रोधित करें, तब परिणाम सिर्फ आपको ही भुगतने होंगे जिन पर आपको विचार करना होगा, और आपके स्थान पर दण्ड को सहने वाला और कोई नहीं होगा।
                                                                    स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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god-entire-disposition · 5 years ago
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पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
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तुम आत्मा के सुनिश्चित विवरणों को कैसे समझते हो? पवित्र आत्मा मनुष्य में कैसे कार्य करता है? शैतान मनुष्य में कैसे कार्य करता है? दुष्ट आत्माएँ मनुष्य में कैसे कार्य करती हैं? और इस कार्य के प्रकटीकरण क्या हैं? जब तुम्हारे साथ कुछ घटित होता है, तो क्या यह पवित्र आत्मा की ओर से होता है, और क्या तुम्हें उसे मानना चाहिए या ठुकरा देना चाहिए? लोगों की वास्तविक क्रिया उसे बहुत बढ़ा देती है जो मनुष्य की इच्छा से आती है, परंतु फिर भी लोग मानते हैं कि वह पवित्र आत्मा की ओर से है। कुछ बातें दुष्ट आत्माओं की ओर से आती हैं, परंतु फिर भी लोग सोचते हैं कि यह पवित्र आत्मा से जनित है, और कभी-कभी पवित्र आत्मा भीतर से लोगों की अगुवाई करता है, फिर भी लोग डर जाते हैं कि ऐसी अगुवाई शैतान की ओर से होती है, और फिर आज्ञा मानने का साहस नहीं करते, जबकि वास्तविकता में यह पवित्र आत्मा का प्रकाशन होता है। अतः, इनमें भेद किए बिना इसका अनुभव करने का कोई मार्ग नहीं है जब ऐसे अनुभव तुम्हारे साथ घटित होते हैं, तो बिना भेद किए जीवन को प्राप्त करने का भी कोई मार्ग नहीं है। पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है? दुष्ट आत्माएँ कैसे कार्य करती हैं? मनुष्य की इच्छा से क्या निकलता है? और पवित्र आत्मा की अगुवाई और उसके प्रकाशन से क्या जनित होता है? यदि तुम मनुष्य के भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के नियमों को समझ लेते हो, तब तुम अपने ज्ञान को बढ़ा पाओगे और अपने प्रतिदिन के जीवन में और अपने वास्तविक अनुभवों में भेद कर पाओगे; तुम परमेश्वर को जान पाओगे, तुम शैतान को समझ पाओगे, तुम अपनी आज्ञाकारिता या अनुसरण में उलझन में नहीं रहोगे, और तुम एक ऐसे व्यक्ति बनोगे जिसके विचार स्पष्ट होंगे, और जो पवित्र आत्मा के कार्य का पालन करेगा।
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय अगुवाई करना और सकारात्मक प्रकाशन है। यह लोगों को निष्क्रिय नहीं बनने देता है। यह उनको राहत पहुँचाता है, उन्हें विश्वास और दृढ़ निश्चय देता है और यह परमेश्वर के द्वारा सिद्ध किए जाने का अनुसरण करने के लिए उन्हें योग्य बनाता है। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग सक्रिय रूप से प्रवेश कर सकते हैं; वे निष्क्रिय नहीं होते और उन्हें बाध्य भी नहीं किया जाता, बल्कि वे सक्रिय रहते हैं। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है तो लोग प्रसन्न और इच्छापूर्ण होते हैं, और वे आज्ञा मानने के लिए तैयार होते हैं, और स्वयं को दीन करने में प्रसन्न होते हैं, और यद्यपि भीतर से पीड़ित और दुर्बल होते हैं, फिर भी उनमें सहयोग करने का दृढ़ निश्चय होता है, वे ख़ुशी-ख़ुशी दुःख सह लेते हैं, वे आज्ञा मान सकते हैं, और वे मानवीय इच्��ा से निष्कलंक रहते हैं, मनुष्य की विचारधारा से निष्कलंक रहते हैं, और निश्चित रूप से मानवीय अभिलाषाओं और अभिप्रेरणाओं से निष्कलंक रहते हैं। जब लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं, तो ��े भीतर से विशेष रूप से पवित्र हो जाते हैं। जो पवित्र आत्मा के कार्य को अपने अंदर रखते हैं वे परमेश्वर के प्रेम को और अपने भाइयों और बहनों के प्रेम को अपने जीवनों से दर्शाते हैं, और ऐसी बातों में आनंदित होते हैं जो परमेश्वर को आनंदित करती हैं, और उन बातों से घृणा करते हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, उनमें सामान्य मनुष्यत्व होता है, और वे मनुष्यत्व को रखते हैं और निरंतर सत्य का अनुसरण करते हैं। जब पवित्र आत्मा लोगों के भीतर कार्य करता है, तो उनकी परिस्थितियाँ और अधिक बेहतर हो जाती हैं और उनका मनुष्यत्व और अधिक सामान्य हो जाता है, और यद्यपि उनका कुछ सहयोग मूर्खतापूर्ण हो सकता है, परंतु फिर भी उनकी प्रेरणाएँ सही होती हैं, उनका प्रवेश सकारात्मक होता है, वे रूकावट बनने का प्रयास नहीं करते और उनमें कुछ भी दुर्भाव नहीं होता। पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और वास्तविक होता है, पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के अनुसार कार्य करता है, और वह सामान्य लोगों के वास्तविक अनुसरण के अनुसार लोगों को प्रकाशित करता है और उन्हें अगुवाई देता है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है तो वह सामान्य लोगों की आवश्यकता के अनुसार अगुवाई करता और प्रकाशित करता है, वह उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी जरूरतों को पूरा करता है, और वह सकारात्मक रूप से उनकी कमियों और अभावों के आधार पर उनकी अगुवाई करता है और उनको प्रकाशित करता है; जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो यह कार्य मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के साथ सांमजस्यपूर्ण होता है, और यह केवल वास्तविक जीवन में ही होता है कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य को देख सकते हैं। यदि अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग सकारात्मक अवस्था में हों और उनके पास एक सामान्य आत्मिक जीवन हो, तो उनमें पवित्र आत्मा के कार्य पाए जाते हैं। ऐसी अवस्था में, जब वे परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं तो उनमें विश्वास आता है, जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं, जब उनके साथ कुछ घटित होता है तो वे निष्क्रिय नहीं होते, और उनके साथ कुछ घटित होते समय वे उन सबकों या सीखों को देख सकते हैं जो परमेश्वर चाहता है कि वे सीखें, और वे निष्क्रिय, या कमजोर नहीं होते, और यद्यपि उनके जीवन में वास्तविक कठिनाइयाँ होती हैं, फिर भी वे परमेश्वर के सभी प्रबंधनों की आज्ञा मानने के लिए तैयार रहते हैं।
पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा किन प्रभावों को प्राप्त किया जाता है? तुम शायद निर्बुद्धि हो सकते हो और तुम्हारे भीतर कोई अंतर या भेद भी न हो, परंतु पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर कार्य कर सकता है ताकि तुम में विश्वास उत्पन्न हो, और तुम्हें यह अनुभव कराए कि तुम कभी पर्याप्त रूप से परमेश्वर से प्रेम नहीं कर सकते, ताकि तुम सहयोग करने के लिए तैयार हो जाओ, मुश्किलें सामने चाहे जितनी भी हों फिर भी तुम सहयोग करने के लिए तैयार हो। तुम्हारे साथ घटनाएँ घटित होंगी और तुम्हारे समक्ष यह स्पष्ट भी नहीं होगा कि वे परमेश्वर की ओर से हैं या शैतान की ओर से, परंतु तुम प्रतीक्षा कर पाओगे, और न तो निष्क्रिय होगे और न ही लापरवाह। यह पवित्र आत्मा का सामान्य कार्य है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है, तब भी लोग वास्तविक कठिनाइयों का सामना करते हैं, कभी-कभी वे रोते भी हैं, और कभी-कभी ऐसी बातें भी होती हैं जिन पर वे विजय प्राप्त नहीं कर सकते, परंतु यह सब पवित्र आत्मा के साधारण कार्य का एक चरण है। यद्यपि वे उन विषयों पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते, और यद्यपि कभी-कभी वे ��मजोर होते हैं और शिकायतें करते हैं, फिर भी बाद में वे सम्पूर्ण भरोसे के साथ परमेश्वर पर विश्वास कर सकते हैं। उनकी निष्क्रियता उन्हें सामान्य अनुभवों को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती, और इस बात की परवाह किए बिना भी कि लोग क्या कहते हैं, और वे कैसे हमला करते है, वे परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं। प्रार्थना के दौरान वे हमेशा महसूस करते हैं कि जब वे ऐसी बातों का पुनः सामना करते हैं तो वे परमेश्वर के प्रति ऋणी हो जाते हैं, और वे परमेश्वर को संतुष्ट करने और शरीर के कार्यों को त्याग देने का दृढ़ निश्चय करते हैं। यह सामर्थ्य दिखाता है कि उनके भीतर पवित्र आत्मा का कार्य होता है, और यह पवित्र आत्मा के कार्य की सामान्य अवस्था है।
शैतान की ओर से कौनसे कार्य आते हैं? उस कार्य में जो शैतान की ओर से आता है, ऐसे लोगों में दर्शन अस्पष्ट और धुंधले होते हैं, और वे सामान्य मनुष्यत्व के बिना होते हैं, उनमें उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएँ गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सैदव दोषारोपण रहते हैं, और ये दोषारोपण और विचार उनमें सदैव हस्तक्षेप करते रहते हैं, जिससे वे उनके जीवन की बढ़ोतरी को सीमित कर देते हैं और परमेश्वर के समक्ष सामान्य परिस्थितियों को रखने से उन्हें रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं हो सकते, उन्हें नहीं पता होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें, सभा का दृश्य उन्हें वहाँ से भाग जाने को बाध्य करता है, और वे तब अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते जब दूसरे प्रार्थना करते हैं। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच के सामान्य संबंध को तोड़ देता है, और लोगों के पहले के दर्शनों और उस मार्ग को बिगाड़ देता है जिनमें उनके जीवन ने प्रवेश किया था, अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें निरंतर होती रहती हैं जो उनमें बाधा उत्पन्न करती हैं और उन्हें बंधन में बाँध देती हैं, और उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते, जिससे उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की कोई शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएँ पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्यों के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान का कार्य निम्न रूपों में प्रकट होता है: अपने स्थान और गवाही में स्थिर खड़े नहीं रह सकना, तुम्हें ऐसा बना देना जो परमेश्वर के समक्ष दोषी हो, और जिसमें परमेश्वर के प्रति कोई विश्वासयोग्यता न हो। शैतान के हस्तक्षेप के समय तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफ़ादारी को खो देते हो, तुम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध से वंचित कर दिए जाते हो, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो, और निष्क्रिय बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो, और पाप से घृणा भी नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, यह तुम्हारे भीतर से परमेश्वर के स्पर्श को हटा देता है, और तुम्हें परमेश्वर के प्रति शिकायत करने ��र उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो, और फिर तुम परमेश्वर को त्यागने तक को तैयार होने लगते हो। यह सब शैतान का कार्य है।
जब तुम्हारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में तुम्हारे साथ कुछ घटित होता है, तो तुम यह फर्क कैसे कर पाते हैं कि यह पवित्र आत्मा के कार्य के कारण है या ��ैतान के कार्य के कारण? जब लोगों की परिस्थितियाँ सामान्य होती हैं, तो उनके आत्मिक जीवन और दैहिक जीवन भी सामान्य होते हैं, उनका विवेक भी सामान्य और तर्कसंगत होता है; सामान्यतः इस समय अपने भीतर जो वे अनुभव करते हैं या जान जाते हैं, उसके विषय में कहा जा सकता है कि वह पवित्र आत्मा के स्पर्श के द्वारा आया है (जब तुम परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं तो अंतर्दृष्टि रखना या कुछ सतही ज्ञान को रखना, या जब तुम्हारे साथ कुछ घटित होता है तब विश्वासयोग्य बने रहना, या कुछ घटित होने के समय परमेश्वर से प्रेम करने के सामर्थ्य को रखना - यह सब पवित्र आत्मा के कार्य हैं)। मनुष्य में पवित्र आत्मा का कार्य विशेष रूप से सामान्य है; मनुष्य इसको महसूस करने के योग्य है, और यह स्वयं मनुष्य के द्वारा ही प्रतीत होता है - परंतु वास्तव में यह पवित्र आत्मा का कार्य होता है। दिन प्रतिदिन के जीवन में पवित्र आत्मा प्रत्येक व्यक्ति में बड़े और छोटे रूप में कार्य करता है, और यह एक सामान्य बात है कि इस कार्य की सीमा अलग-अलग होती है। कुछ लोगों की क्षमता अधिक होती है, वे बातों को जल्दी समझ लेते हैं, और पवित्र आत्मा का प्रकाशन उनके भीतर विशेष रूप से अधिक होता है; कुछ लोगों में क्षमता की कमी होती है, और उन्हें बातों को समझने में बहुत समय लगता है, परंतु पवित्र आत्मा उन्हें भीतर से स्पर्श करता है, और वे भी परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्यता को प्राप्त कर पाते हैं - पवित्र आत्मा उन सब में कार्य करता है जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। दिन प्रतिदिन के जीवन में जब लोग परमेश्वर का विरोध नहीं करते या परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह नहीं करते, ऐसे कार्यों को नहीं करते जो परमेश्वर के प्रबंधन के विरोध में हों, और परमेश्वर के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करते, तो उन सब में परमेश्वर के आत्मा का कार्य बड़े या छोटे रूप में होता है, और वह उन्हें स्पर्श करता है, प्रकाशित करता है, उन्हें विश्वास प्रदान करता है, सामर्थ्य प्रदान करता है, और सक्रिय रूप में प्रवेश करने के लिए बढ़ाता है, आलसी नहीं बनने देता या शरीर के कामों का आनंद लेने का लालच करने नहीं देता, सत्य को क्रियान्वित करने को तैयार रहता है, और परमेश्वर के वचनों की चाहत करता है - यह सब ऐसा कार्य है जो पवित्र आत्मा की ओर से आता है।
जब लोगों की अवस्था सामान्य नहीं होती, तो वे पवित्र आत्मा के द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनके भीतर कुड़कुड़ाहट होती है, उनकी प्रेरणाएँ गलत होती हैं, वे आलसी होते हैं, वे शरीर के कार्यों में आसक्त रहते हैं, और उनके हृदय सत्य के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, और यह सब कुछ शैतान की ओर से आता है। जब लोगों की परिस्थितियाँ सामान्य नहीं होतीं, जब वे अपने भीतर अंधकारमय होते हैं और उन्होंने अपने सामान्य विवेक को खो दिया हो, पवित्र आत्मा के द्वारा त्याग दिए गए हों, और अपने भीतर परमेश्वर को समझ पाने में योग्य न हों, तो यही वह समय होता है जब शैतान उनके भीतर कार्य करता है। यदि लोगों के भीतर सदैव बल रहे और वे सदैव परमेश्वर से प्रेम करें, तो सामान्यतः जब उनके साथ कुछ घटित होता है तो वह पवित्र आत्मा की ओर से होता है, और जिससे भी वे मिलते हैं, वह परमेश्वर के प्रबंधनों का प्रतिफल होता है। कहने का अर्थ है कि जब तुम्हारी परिस्थितियाँ सामान्य होती हैं, जब तुम पवित्र आत्मा के महान कार्य ��ें होते हो, तो शैतान के लिए यह असंभव हो जाता है कि वह तुम्हें डगमगा सके; इस बुनियाद पर यह कहा जा सकता है कि सब कुछ पवित्र आत्मा की ओर से आता है, और यद्यपि तुम्हारे मन में गलत विचार आ सकते हैं, फिर भी तुम उनको ठुकराने और उनका अनुसरण न करने में सक्षम होते हो। यह सब पवित्र आत्मा के कार्य से होता है। किन परिस्थितियों में शैतान हस्तक्षेप करता है? जब तुम्हारी परिस्थितियाँ सामान्य नहीं होतीं, जब तुम्हें परमेश्वर के द्वारा स्पर्श न मिला हो, और तुम परमेश्वर के कार्य से रहित हो, और तुम भीतर से सूखे और बंजर हो, जब तुम परमेश्वर से प्रार्थना तो करो परंतु तुम्हें कुछ समझ न आए, और तुम परमेश्वर के वचनों को खाओ और पीओ तो सही परंतु प्रकाशित या ज्योतिर्मय न हो - ऐसे समयों पर शैतान के लिए यह सहज हो जाता है कि वह तुम्हारे भीतर कार्य करे। अन्य शब्दों में, जब तुम पवित्र आत्मा के द्वारा त्याग दिए जाते हो और परमेश्वर को समझ नहीं पाते, तो ऐसी बहुत सी बातें घटित होती हैं जो शैतान की ओर से परीक्षा करने के कारण आती हैं। शैतान उसी समय कार्य करता है जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, और उसी समय मनुष्य में हस्तक्षेप करता है जब पवित्र आत्मा मनुष्य के अंतर्मन को स्पर्श करता है; परंतु ऐसे समयों में पवित्र आत्मा का कार्य अग्रणी स्थान ले लेता है, और ऐसे लोग जिनकी परिस्थितियाँ सामान्य होती हैं वे विजय को प्राप्त करते हैं, जो कि शैतान के कार्य के ऊपर पवित्र आत्मा के कार्य की विजय होती है। फिर भी जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तब भी शैतान का थोड़ा-बहुत कार्य चलता रहता है; जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तब भी लोगों के भीतर अवज्ञाकारी स्वभाव बना रहता है, और जो मूल रूप से उनके अंदर था वह तब भी वहाँ होता है, परंतु पवित्र आत्मा के कार्य के साथ लोगों के लिए आवश्यक बातों और परमेश्वर के प्रति उनके विद्रोही स्वभाव को जानना सरल हो जाता है - यद्यपि वे धीरे-धीरे नियमित रूप से किए जाने वाले कार्य के द्वारा ही उनसे छुटकारा पा सकते हैं। पवित्र आत्मा का कार्य विशेष रूप से सामान्य होता है, और जब वह लोगों में कार्य करता है, तब भी उनके जीवन में कठिनाइयाँ होती हैं, वे तब भी रोते हैं, वे तब भी दुःख उठाते हैं, वे तब भी कमजोर होते हैं, और ऐसी बहुत सी बातें होती हैं जो उनके लिए अस्पष्ट हों, फिर भी ऐसी अवस्था में वे पीछे हटने से स्वयं को रोक सकते हैं और परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं, और यद्यपि वे रोते हैं और भीतर से व्याकुल होते हैं, वे फिर भी परमेश्वर की प्रशंसा कर सकते हैं; पवित्र आत्मा का कार्य विशेष रूप से सामान्य होता है, और उसमें थोड़ा सा भी अलौकिक नहीं होता। अधिकाँश लोग सोचते हैं कि जैसे ही पवित्र आत्मा कार्य करना आरंभ करता है, वैसे ही लोगों की दशा में परिवर्तन आ जाता है और उनकी आधारभूत बातें हट जाती हैं। ऐसी धारणाएँ त्रुटिपूर्ण होती हैं। जब पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर कार्य करता है, तो मनुष्य की निष्क्रिय बातें तब भी उसमें में होती हैं और उसकी अवस्था वही रहती है, परंतु पवित्र आत्मा का प्रकाशन और प्रज्ज्वलन आ जाता है, उसकी दशा और अधिक सक्रिय हो जाती है, उसके भीतर की परिस्थितियाँ सामान्य हो जाती हैं, और वह शीघ्रता से बदल जाता है। लोगों के वास्तविक अनुभवों में वे प्राथमिक रूप से या तो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं या शैतान के कार्य का, और यदि वे इन अवस्थाओं को समझने में सक्षम नहीं होते, और इनमें भेद नहीं करते, तो वास्तविक अनुभवों का तो सवाल ही नहीं उठता, कहने का अर्थ है कि उनके स्वभाव में कुछ नहीं बदलता। इस प्र��ार, परमेश्वर का अनुभव करने की कुँजी इन बातों को समझना ही है; इस रूप में, उनके लिए यह अनुभव करना सहज होगा।
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय उन्नति है, वहीं शैतान का कार्य पीछे को हटना और निष्क्रियता, परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारिता, परमेश्वर का विरोध, परमेश्वर में विश्वास की कमी, गीतों को गाने और खड़ा होकर नृत्य करने की अनिच्छा है। वह जो पवित्र आत्मा के प्रकाशन से आता है वह तुम पर थोपा नहीं जाता, बल्कि विशेष रूप से ��्वाभाविक होता है। यदि तुम इसका अनुसरण करते हो, तो तुम में सत्य होगा, और यदि तुम अनुसरण नहीं करते हो, तो फिर बाद में अपमान होता है। यदि यह पवित्र आत्मा का प्रकाशन होता है, तब जो कुछ भी तुम करो उसमें कोई हस्तक्षेप या रोक नहीं होगी, तुम स्वतंत्र होगे, तुम्हारे कार्यों में अभ्यास का एक मार्ग होगा, और तुम किन्हीं सीमाओं के अधीन नहीं होगे, और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करने के योग्य होगे। शैतान का कार्य बहुत सी बातों को लाता है जो तुम में व्यवधान या हस्तक्षेप उत्पन्न करती हैं, यह तुम्हें प्रार्थना करने से विमुख करता है, और परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने में बहुत आलसी बनाता है, कलीसिया के जीवन को जीने के प्रति विमुख बनाता है, और यह आत्मिक जीवन से दूर कर देता है। पवित्र आत्मा का कार्य तुम्हारे दैनिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता, और सामान्य आत्मिक जीवन में तुम्हारे प्रवेश करने में हस्तक्षेप नहीं करता। बहुत सी बातें जो तुम्हारे साथ घटित होती हैं, तुम उस समय उनमें भेद नहीं कर पाते। फिर भी, कुछ दिनों के बाद तुम उनको थोड़ा-बहुत अपने जीवन में दर्शाने लगते हो, और थोड़ा-बहुत प्रकट करने लगते हो, और तुम्हारे भीतर कुछ प्रतिक्रियाएँ होती हैं, और इन प्रकटीकरणों के द्वारा तुम दूसरों को बता पाते हो कि तुम्हारे भीतर के विचार परमेश्वर की ओर से आते हैं या शैतान की ओर से। कुछ बातें तुमसे परमेश्वर का विरोध करवाती हैं और परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह करवाती हैं, या परमेश्वर के वचनों को कार्य में लाने से तुम्हें रोकती हैं, और ये सब बातें शैतान की ओर से आती हैं। कुछ बातें स्पष्ट नहीं होतीं, और उस समय तुम बता नहीं सकते कि वे क्या हैं; बाद में, जब तुमने उनके प्रकटीकरणों को देख लिया हो, तो तुम बता सकते हो कि कौनसे शैतान की ओर से आते हैं और कौनसे पवित्र आत्मा के द्वारा निर्देशित होते हैं। ऐसी बातों को स्पष्ट रूप से पहचान लेने के बाद, तुम अपने अनुभवों में सरलता से भटक नहीं सकते। कभी-कभी जब तुम्हारी परिस्थितियाँ अच्छी नहीं होतीं, तो तुम में ऐसे विचार आते हैं जो तुम्हें तुम्हारी निष्क्रिय अवस्था से बाहर ले आते हैं - जो दिखाता है कि जब तुम्हारी परिस्थितियाँ प्रतिकूल होती हैं, तो तुम्हारे कुछ विचार पवित्र आत्मा से भी आ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि जब तुम निष्क्रिय होते हो, तो तुम्हारे सारे विचार शैतान के भेजे हुए हों; यदि ऐसा होता, तो तुम सकारात्मक अवस्था की ओर कब मुड़ पाओगे? कुछ समय तक तुम्हारे निष्क्रिय रहने के बाद, पवित्र आत्मा तुम्हें सिद्ध बनाए जाने का अवसर देता है, वह तुम्हें स्पर्श करता है, और तुम्हें तुम्हारी निष्क्रिय अवस्था से बाहर लाता है।
यह जानने के द्वारा कि पवित्र आत्मा का कार्य क्या है, और शैतान का कार्य क्या है, तुम इनकी तुलना अपने अनुभवों के दौरान अपनी स्वयं की दशा से और अपने अनुभवों के साथ कर सकते हो, और इस प्रकार से तुम्हारे अनुभवों में सिद्धांत से संबंधित ��र अधिक सत्य प्रकट होंगे। इन बातों को समझने के द्वारा तुम अपनी वास्तविक दशा को नियंत्रित कर पाओगे और लोगों एवं तुम्हारे साथ घटित हुई बातों को परख पाओगे, और तुम्हें पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक प्रयास नहीं करने होगे। निःसंदेह, यह तब तक ही होगा जब तक तुम्हारी प्रेरणाएँ सही हैं, और जब तक तुम खोजने और अभ्यास करने के लिए तैयार हो। इस प्रकार की भाषा - वह भाषा जो सिद्धांतों से संबंधित है- तुम्हारे अनुभवों में दिखनी चाहिए। इसके बिना तुम्हारे अनुभव शैतान के व्यवधानों या हस्तक्षेपों से और निर्बुद्धि ज्ञान से भरे हुए होंगे। यदि तुम यह नहीं समझते कि पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है, तो तुम यह भी नहीं समझ सकते कि कैसे प्रवेश करें, और यदि तुम यह नहीं समझते कि शैतान कैसे कार्य करता है, तो तुम यह भी नहीं समझते कि तुम्हें अपने चाल-चलन में कैसे सावधान रहना है। लोगों को समझना चाहिए कि पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है और शैतान कैसे कार्य करता है; वे लोगों के अनुभवों के अभिन्न अंग हैं।
यद्यपि तुम किसी और पर नहीं बल्कि परमेश्वर पर विश्वास करते हो, फिर भी क्या परमेश्वर के साथ तुम्हारा एक सामान्य संबंध है? कुछ लोग कहते हैं कि केवल यही बात महत्वपूर्ण है कि वे परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध रखें, और वे दूसरों के साथ अपने संबंध पर अधिक ध्यान नहीं देते। परंतु परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध कैसे प्रकट होता है? क्या ऐसे लोगों में थोड़ा सा भी सच्चा ज्ञान होता है? ऐसा क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर से प्रेम करने के तुम्हारे निश्चय की सीमा, और कि क्या तुमने शरीर के कार्यों को त्याग दिया है, इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तुम अपने मन में तुम्हारे भाइयों और बहनों के प्रति पूर्वाग्रह रखते हो, और यदि तुम रखते हो तो क्या ऐसे पूर्वाग्रहों को अपने से दूर कर सकते हो। कहने का अर्थ है कि जब तुम्हारा संबंध अपने भाइयों और बहनों के साथ सामान्य होता है, तब परमेश्वर के समक्ष तुम्हारी परिस्थितियाँ भी सामान्य हो जाती हैं। जब तुम्हारा कोई भाई या तुम्हारी बहन कमजोर हो, तो तुम उनसे घृणा नहीं करोगे, उन्हें तुच्छ नहीं जानोगे, उनका मज़ाक नहीं उड़ाओगे, या उन्हें नजरअंदाज नहीं करोगे। यदि तुम उनके लिए कुछ कर पाओ, तो तुम उनके साथ बातचीत करोगे और कहोगे, "मैं निष्क्रिय और कमजोर हुआ करता था। मैं किसी सभा में शामिल होना नहीं चाहता था, परंतु कुछ ऐसा हुआ जिसके द्वारा परमेश्वर ने मुझे भीतर से प्रकाशित कर दिया और मुझे अनुशासित किया; मैं भीतर से अपमानित था, मैं बहुत लज्जित था और मैं परमेश्वर के प्रति बहुत ही दुखी महसूस करता था। उसके बाद मैंने स्वयं को कलीसिया के जीवन के प्रति समर्पित कर दिया, और जितना अधिक मैंने स्वयं को अपने भाइयों और बहनों के साथ सलंग्न किया, मैंने उतना ही अधिक महसूस किया कि मैं परमेश्वर के बिना कुछ नहीं कर सकता था। जब मैं उनके साथ था, तो मैंने कभी अकेलापन महसूस नहीं किया; जब मैं अपने कमरे में बंद था तो मैंने अकेला और मित्ररहित महसूस किया, मैंने महसूस किया कि मेरा जीवन खाली था; और मेरे विचार मृत्यु की ओर मुड़ गए। अब जबकि मैं अपने भाइयों और बहनों के साथ था, तो शैतान ने अपना कार्य करने का साहस नहीं किया, और मैंने अकेलापन महसूस नहीं किया। जब मैंने देखा कि मेरे भाइयों और बहनों का परमेश्वर के प्रति प्रेम कितना मजबूत है, तो मैंने प्रेरणा प्राप्त की, और इसलिए मैं सदैव अपने भाइयों और बहनों के साथ था, और मेरी निष्क्रिय अवस्था स्वाभाविक रूप से ग़ायब हो ग���।" यह सुनने के द्वारा वे महसूस करते हैं कि घर पर प्रार्थना करना व्यर्थ है, वे अब भी महसूस करते हैं कि उनके भाइयों और बहनों के बीच कोई प्रेम नहीं है, कि उनका जीवन खाली है, कि ऐसा कोई नहीं है जिस पर वे भरोसा रख सकें, और कि केवल प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं है। यदि तुम उनसे इस प्रकार से बातचीत करते हो, तब उनके पास एक मार्ग होगा जिसका वे अभ्यास करेंगे। यदि तुम महसूस करते हो कि तुम उनकी जरूरतें पूरी करने में असमर्थ हो, तो तुम उनसे भेंट कर सकते हो। जरुरी नहीं है कि यह कलीसिया के अगुवे के द्वारा किया जाए - यह प्रत्येक भाई और बहन की जिम्मेदारी है कि वे यह कार्य करें। यदि तुम देखो कि कोई भाई या बहन किसी बुरी अवस्था में है, तो तुम्हें उनसे भेंट करनी चाहिए। यह तुम में से प्रत्येक जन की जिम्मेदारी है।
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god-entire-disposition · 6 years ago
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28. पवित्र आत्मा के कार्य और बुरी आत्माओं के काम के बीच क्या अंतर है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो मनुष्य हमेशा से अधिक सामान्य बन जाता है, और उसकी मानवता हमेशा से अधिक सामान्य बन जाती है। मनुष्य को अपने स्वभाव का, जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है और मनुष्य के सार का बढ़ता हुआ ज्ञान होता है, और उसकी सत्य के लिए हमेशा से अधिक ललक होती है। अर्थात्, मनुष्य का जीवन अधिकाधिक बढ़ता जाता है और मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव अधिकाधिक बदलावों में सक्षम हो जाता है - जिस सब का अर्थ है परमेश्वर का मनुष्य का जीवन बनना। यदि एक मार्ग उन चीजों को प्रकट करने में असमर्थ है जो मनुष्य का सार हैं, मनुष्य के स्वभाव को बदलने में असमर्थ है, और, इसके अलावा, उसे परमेश्वर के सामने लाने में असमर्थ है या उसे परमेश्वर की सच्ची समझ प्रदान कराने में असमर्थ है, और यहाँ तक कि उसकी मानवता का हमेशा से अधिक निम्न होने और उसकी भावना का हमेशा से अधिक असामान्य होने का कारण बनता है, तो यह मार्ग अवश्य सच्चा मार्ग नहीं होना चाहिए और यह दुष्टात्मा का कार्य, या पुराना मार्ग हो सकता है। संक्षेप में, यह पवित्र आत्मा का वर्तमान का कार्य नहीं हो सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर को सन्तुष्ट कर सकते हैं" से
पवित्र आत्मा का कार्य कुल मिलाकर लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे लाभ प्राप्त कर सकें; यह कुल मिलाकर लोगों की उन्नति के विषय में है; ऐसा कोई कार्य नहीं है जो लोगों को लाभान्वित न करता हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सत्य गहरा है या उथला, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन लोगों की क्षमता किसके समान है जो सत्य को स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी पवित्र आत्मा करता है, यह सब लोगों के लिए लाभदायक है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय अगुवाई करना और सकारात्मक प्रकाशन है। यह लोगों को निष्क्रिय नहीं बनने देता है। यह उनको राहत पहुँचाता है, उन्हें विश्वास और दृढ़ निश्चय देता है और यह परमेश्वर के द्वारा सिद्ध किए जाने का अनुसरण करने के लिए उन्हें योग्य बनाता है। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग सक्रिय रूप से प्रवेश कर सकते हैं; वे निष्क्रिय नहीं होते और उन्हें बाध्य भी नहीं किया जाता, बल्कि वे सक्रिय रहते हैं। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है तो लोग प्रसन्न और इच्छापूर्ण होते हैं, और वे आज्ञा मानने के लिए तैयार होते हैं, और स्वयं को दीन करने में प्रसन्न होते हैं, और यद्यपि भीतर से पीड़ित और दुर्बल होते हैं, फिर भी उनमें सहयोग करने का दृढ़ निश्चय होता है, वे ख़ुशी-ख़ुशी दुःख सह लेते हैं, वे आज्ञा मान सकते हैं, और वे मानवीय इच्छा से निष्कलंक रहते हैं, मनुष्य की विचारधारा से निष्कलंक रहते हैं, और निश्चित रूप से मानवीय अभिलाषाओं और अभिप्रेरणाओं से निष्कलंक रहते हैं। जब लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं, तो वे भीतर से विशेष रूप से पवित्र हो जाते हैं। जो पवित्र आत्मा के कार्य को अपने अंदर रखते हैं वे परमेश्वर के प्रेम को और अपने भाइयों और बहनों के प्रेम को अपने जीवनों से दर्शाते हैं, और ऐसी बातों में आनंदित होते हैं जो परमेश्वर को आनंदित करती हैं, और उन बातों से घृणा करते हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, उनमें सामान्य मनुष्यत्व होता है, और वे मनुष्यत्व को रखते हैं और निरंतर सत्य का अनुसरण करते हैं। जब पवित्र आत्मा लोगों के भीतर कार्य करता है, तो उनकी परिस्थितियाँ और अधिक बेहतर हो जाती हैं और उनका मनुष्यत्व और अधिक सामान्य हो जाता है, और यद्यपि उनका कुछ सहयोग मूर्खतापूर्ण हो सकता है, परंतु फिर भी उनकी प्रेरणाएँ सही होती हैं, उनका प्रवेश सकारात्मक होता है, वे रूकावट बनने का प्रयास नहीं करते और उनमें कुछ भी दुर्भाव नहीं होता। पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और वास्तविक होता है, पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के अनुसार कार्य करता है, और वह सामान्य लोगों के वास्तविक अनुसरण के अनुसार लोगों को प्रकाशित करता है और उन्हें अगुवाई देता है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है तो वह सामान्य लोगों की आवश्यकता के अनुसार अगुवाई करता और प्रकाशित करता है, वह उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी जरूरतों को पूरा करता है, और वह सकारात्मक रूप से उनकी कमियों और अभावों के आधार पर उनकी अगुवाई करता है और उनको प्रकाशित करता है; जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो यह कार्य मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के साथ सांमजस्यपूर्ण होता है, और यह केवल वास्तविक जीवन में ही होता है कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य को देख सकते हैं। यदि अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग सकारात्मक अवस्था में हों और उनके पास एक सामान्य आत्मिक जीवन हो, तो उनमें पवित्र आत्मा के कार्य पाए जाते हैं। ऐसी अवस्था में, जब वे परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं तो उनमें विश्वास आता है, जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं, जब उनके साथ कुछ घटित होता है तो वे निष्क्रिय नहीं होते, और उनके साथ कुछ घटित होते समय वे उन सबकों या सीखों को देख सकते हैं जो परमेश्वर चाहता है कि वे सीखें, और वे निष्क्रिय, या कमजोर नहीं होते, और यद्यपि उनके जीवन में वास्तविक कठिनाइयाँ होती हैं, फिर भी वे परमेश्वर के सभी प्रबंधनों की आज्ञा मानने के लिए तैयार रहते हैं।
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शैतान की ओर से कौनसे कार्य आते हैं? उस कार्य में जो शैतान की ओर से आता है, ऐसे लोगों में दर्शन अस्पष्ट और धुंधले होते हैं, और वे सामान्य मनुष्यत्व के बिना होते हैं, उनमें उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएँ गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सैदव दोषारोपण रहते हैं, और ये दोषारोपण और विचार उनमें सदैव हस्तक्षेप करते रहते हैं, जिससे वे उनके जीवन की बढ़ोतरी को सीमित कर देते हैं और परमेश्वर के समक्ष सामान्य परिस्थितियों को रखने से उन्हें रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं हो सकते, उन्हें नहीं पता होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें, सभा का दृश्य उन्हें वहाँ से भाग जाने को बाध्य करता है, और वे तब अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते जब दूसरे प्रार्थना करते हैं। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच के सामान्य संबंध को तोड़ देता है, और लोगों के पहले के दर्शनों और उस मार्ग को बिगाड़ देता है जिनमें उनके जीवन ने प्रवेश किया था, अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें निरंतर होती रहती हैं जो उनमें बाधा उत्पन्न करती हैं और उन्हें बंधन में बाँध देती हैं, और उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते, जिससे उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की कोई शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएँ पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्यों के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान का कार्य निम्न रूपों में प्रकट होता है: अपने स्थान और गवाही में स्थिर खड़े नहीं रह सकना, तुम्हें ऐसा बना देना जो परमेश्वर के समक्ष दोषी हो, और जिसमें परमेश्वर के प्रति कोई विश्वासयोग्यता न हो। शैतान के हस्तक्षेप के समय तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफ़ादारी को खो देते हो, तुम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध से वंचित कर दिए जाते हो, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो, और निष्क्रिय बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो, और पाप से घृणा भी नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, यह तुम्हारे भीतर से परमेश्वर के स्पर्श को हटा देता है, और तुम्हें परमेश्वर के प्रति शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो, और फिर तुम परमेश्वर को त्यागने तक को तैयार होने लगते हो। यह सब शैतान का कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य" से
अतः इन तरीकों से जिसके अंतर्गत परमेश्वर कार्य करता है, आपको क्या महसूस होता है कि आपका परमेश्वर के साथ किस प्रकार का रिश्ता है? … जब परमेश्वर आपकी अगुवाई करता है, जब वह आपको प्रदान करता है, आपकी सहायता करता है और आपको सहारा देता है, तो आप परमेश्वर के मिलनसार स्वभाव, एवं उसकी प्रतिष्ठा को महसूस करते हैं, और आप महसूस करते हैं कि वह कितना प्यारा है, और कितना स्नेही है। किन्तु जब परमेश्वर आपकी भ्रष्टता के लिए आपकी भर्त्सना करता है, या जब वह अपने विरुद्ध विद्रोह करने के लिए आपका न्याय करता है एवं आपको अनुशासित करता है, तो परमेश्वर किन तरीकों का उपयोग करता है? क्या वह शब्दों से आपकी भर्त्सना करता है? (हाँ।) क्या वह वातावरण एवं लोगों, मा��लों, एवं चीज़ों के माध्यम से आपको अनुशासित करता है? (हाँ।) तो यह अनुशासन किस स्तर तक पंहुचता है? (उस स्तर तक जिसे मनुष्य सह सकता है।) क्या अनुशासन करने का उसका स्तर वहाँ तक पहुंचता है जहाँ शैतान मनुष्य को नुकसान पहुंचाता है? (नहीं।) परमेश्वर सौम्यता, प्रेम, कोमलता एवं सावधानी से कार्य करता है, ऐसा तरीका जो विशेष रूप से नपा-तुला और उचित है। उसका तरीका आपमें तीव्र भावनाओं को उत्पन्न नहीं करता है, यह कहते हुए कि, "परमेश्वर इसे करने के लिए मुझे अनुमति नहीं देगा" या "परमेश्वर उसे करने के लिए मुझे ज़रूर अनुमति देगा।" परमेश्वर आपको कभी भी उस किस्म की तीव्र मानसिकता या तीव्र भावनाएं नहीं देता है जो चीज़ों को असहनीय बना देती हैं। क्या स्थिति ऐसी ही नहीं है? (हाँ।) यहाँ तक कि जब आप न्याय एवं ताड़ना के विषय में परमेश्वर के वचनों को ग्रहण करते हैं, तब आप कैसा महसूस करते हैं? जब आप परमेश्वर के अधिकार एवं सामर्थ को महसूस करते हैं, तब आप कैसा महसूस करते हैं? क्या आप परमेश्वर की अलंघनीय ईश्वरीयता को महसूस करते हैं? (हाँ।) क्या आप इन समयों में परमेश्वर से दूरी महसूस करते हैं? क्या आपको परमेश्वर से भय महसूस होता है? (नहीं।) इसके बजाए, आप परमेश्वर के लिए भययुक्त सम्मान महसूस करते हैं। क्या लोग परमेश्वर के कार्य के कारण इन सब चीज़ों को महसूस करते हैं? (हाँ।) …
मनुष्य पर किए गए शैतान के कार्य के द्वारा किस प्रकार का प्रतीकात्मक लक्षण दिखाया गया है? …(हर एक चीज़ जिसे वह करता है उसे मनुष्य को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है।) वह मनुष्य को नुकसान पहुंचाने के लिये कार्य करता है। वह मनुष्य को कैसे नुकसान पहुंचाता है? क्या तुम सब मुझे और अधिक विशिष्टता से तथा और अधिक विस्तार से दिखा सकते हो? (वह मनुष्य को लुभाता, फुसलाता एवं प्रलोभन देता है।) यह सही है, यह विभिन्न पहलुओं को दिखाता है। और कुछ? (यह मनुष्य को ठगता है।) वह ठगता है, आक्रमण करता है एवं दोष लगाता है। हाँ, इनमें से सब कुछ। क्या और भी कुछ है? (वह झूठ बोलता है।) धोखा देना और झूठ बोलना शैतान में स्वाभाविक रीति से आता है। वह ऐसा इतनी बार करता है कि झूठ उसके मुंह से होकर बहता है और इसके विषय में सोचने की जरुरत भी नहीं है। और कुछ? (वह मतभेद प्रकट करता है।) यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। मैं तुम लोगों को कुछ चीज़ें बताऊंगा जो तुम लोगों को भयभीत कर देगा, परन्तु मैं तुम लोगों को डराने के लिए इसे नहीं करूंगा। परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करता और मनुष्य परमेश्वर की मनोवृत्ति एवं उसके हृदय में पोषित होता है। इसके विपरीत, क्या शैतान मनुष्य को पोषित करता है? वह मनुष्य को पोषित नहीं करता है। वह मनुष्य से क्या चाहता है? वह मनुष्य को हानि पहुंचाना चाहता है, वह जो कुछ सोचता है वह मनुष्य को हानि पहुंचाने के विषय में होता है। क्या यह सही नहीं है? अतः जब वह मनुष्य को हानि पहुंचाने का विचार करता है, तो क्या वह ऐसा मस्तिष्क के दबाव की स्थिति में करता है? (हाँ।) अतः जब मनुष्य पर शैतान के कार्य की बात आती है, तो यहाँ मेरे पास दो शब्द हैं जो शैतान की दुर्भावना एवं दुष्ट स्वभाव की बहुतायत से व्याख्या कर सकते हैं, जो सचमुच में तुम लोगों को शैतान की घृणा को जानने की अनुमति दे सकता है: मनुष्य तक शैतान की पहुंच में, वह हमेशा बलपूर्वक "कब्जा" करता है और स्वयं को उनमें से प्रत्येक के साथ "जोड़ता" है ताकि वह उस बिन्दु तक पहुंच सके जहाँ वह मनुष्य को पूरी तरह से नियन्त्रण में रखता है, और मनुष्य को नुकसान पहुंचता है, ताकि वह इस उद्देश्य एवं अनियन्त्रित महत्वाकांक्षाओं को हासिल कर सके। "बलपूर्वक कब्जा" करने का अर्थ क्या है? क्या यह आपकी सहमति के साथ होता है, या बिना आपकी सहमति से होता है? क्या यह तुम्हारी जानकारी से होता है, या तुम्हारी जानकारी के बगैर होता है? यह पूरी तरह से तुम्हारी जानकारी के बगैर होता है। ऐसी परिस्थितियों में जहाँ तू अनजान रहता है, संभवतः जब उसने कुछ भी नहीं कहा है या संभवतः जब उसने कुछ भी नहीं किया है, जब कोई प्रतिज्ञा नहीं है, और कोई सन्दर्भ नहीं है, वहाँ वह आपके चारों ओर है, और आपको घेरे हुए है। वह तेरा शोषण करने के लिए एक अवसर तलाशता ��ै, तब वह बलपूर्वक तुझ पर कब्जा करता है, स्वयं को तुझसे जोड़ देता है, और पूरी तरह से तुझ पर नियन्त्रण करने एवं तुझे नुकसान पहुँचाने के अपने उद्देश्य को हासिल करता है। मानवजाति के लिए परमेश्वर के विरुद्ध शैतान की लड़ाई में यह एक अति प्रतीकात्मक इरादा एवं व्यवहार है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV" से
    से: 28. पवित्र आत्मा के कार्य और बुरी आत्माओं के काम के बीच क्या अंतर है?
अनुशंसित: 26. पवित्र आत्मा के कार्य को कोई कैसे प्राप्त कर सकता है?
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god-entire-disposition · 6 years ago
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27. बुरी आत्माओं का क्या काम है? बुरी आत्माओं का काम कैसे प्रकट होता है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
शैतान की ओर से कौनसे कार्य आते हैं? उस कार्य में जो शैतान की ओर से आता है, ऐसे लोगों में दर्शन अस्पष्ट और धुंधले होते हैं, और वे सामान्य मनुष्यत्व के बिना होते हैं, उनमें उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएँ गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सैदव दोषारोपण रहते हैं, और ये दोषारोपण और विचार उनमें सदैव हस्तक्षेप करते रहते हैं, जिससे वे उनके जीवन की बढ़ोतरी को सीमित कर देते हैं और परमेश्वर के समक्ष सामान्य परिस्थितियों को रखने से उन्हें रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं हो सकते, उन्हें नहीं पता होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें, सभा का दृश्य उन्हें वहाँ से भाग जाने को बाध्य करता है, और वे तब अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते जब दूसरे प्रार्थना करते हैं। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच के सामान्य संबंध को तोड़ देता है, और लोगों के पहले के दर्शनों और उस मार्ग को बिगाड़ देता है जिनमें उनके जीवन ने प्रवेश किया था, अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें निरंतर होती रहती हैं जो उनमें बाधा उत्पन्न करती हैं और उन्हें बंधन में बाँध देती हैं, और उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते, जिससे उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की कोई शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएँ पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्यों के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान का कार्य निम्न रूपों में प्रकट होता है: अपने स्थान और गवाही में स्थिर खड़े नहीं रह सकना, तुम्हें ऐसा बना देना जो परमेश्वर के समक्ष दोषी हो, और जिसमें परमेश्वर के प्रति कोई विश्वासयोग्यता न हो। शैतान के हस्तक्षेप के समय तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफ़ादारी को खो देते हो, तुम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध से वंचित कर दिए जाते हो, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो, और निष्क्रिय बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो, और पाप से घृणा भी नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, यह तुम्हारे भीतर से परमेश्वर के स्पर्श को हटा देता है, और तुम्हें परमेश्वर के प्रति शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो, और फिर तुम परमेश्वर को त्यागने तक को तैयार होने लगते हो। यह सब शैतान का कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य" से
यदि तुम कहते हो कि पवित्र आत्मा हमेशा तुम्हारे भीतर कार्य कर रहा है, कि तुम परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध किए गए हो और हर पल पवित्र आत्मा द्वारा स्पर्श किए जाते हो, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हो, तो यह सामान्य नहीं है। यह नितान्त अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब ऐसे समय होते हैं जब उसे भी अवश्य आराम करना चाहिए और भोजन करना चाहिए-तुम्हारी तो बात ही छोड़ो। जो लोग बुरी आत्माओं द्वारा ग्रस्त हो गए हैं, वे देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम हैं, वे संयमशील होते हैं, यातना को सहने में सक्षम होते हैं, वे जरा सी भी थकान महसूस नहीं करते हैं, मानो कि वे देहातीत हैं चुके हों। क्या यह नितान्त अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्मा का कार्य अलौकिक है, और ये चीजें मनुष्य के द्वारा अप्राप्य हैं। जो लोग विभेद नहीं कर सकते हैं वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं, और कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, और बहुत अच्छा है, और यह कि वे कभी कमजोर नहीं पड़ते हैं। वास्तव में, यह दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्ति है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "अभ्यास (4)" से
यदि, वर्तमान समय में, कोई व्यक्ति उभर कर आता है जो चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करने, पिशाचों को निकालने, और चंगाई करने में और कई चमत्कारों को करने में समर्थ है, और यदि यह व्यक्ति दावा करता है कि यह यीशु का आगमन है, तो यह दुष्टात्माओं की जालसाजी और उसका यीशु की नकल करना होगा। इस बात को स्मरण रखें! परमेश्वर एक ही कार्य को दोहराता नहीं है। यीशु के कार्य का चरण पहले ही पूर्ण हो चुका है, और परमेश्वर फिर से उस चरण के कार्य को पुनः नहीं दोहराएगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "आज परमेश्वर के कार्य को जानना" से
से: 27. बुरी आत्माओं का क्या काम है? बुरी आत्माओं का काम कैसे प्रकट होता है?
अनुशंसित: 18. एक झूठा नेता या झूठा चरवाहा क्या होता है?
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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ओली प्रचण्ड अन्तरविरोध, लोग्ने स्वास्नीको झगडा !
२७ माघ, काठमाडौं । प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली र अध्यक्ष प्रचण्डवीच अन्तरविरोध चर्किएकै हो त ? दुई नेतावीच अन्तरविरोध बढेको हो भने कहाँ पुगेर, कसरी यसको बैठान होला ? यो साताको सघन राजनीतिक प्रश्न यही नै हो ।
पछिल्लो राजनीतिक परिघटनाले ओली र प्रचण्डवीच खटपट वा मतभिन्नता देखा परेको अनुमान नेकपाभित्र र बाहिर जबरजस्त गर्न थालिएको छ । दुई नेतावीच खटपट सुरु भएको खबरले कतिपयलाई खुशी तुल्याएको छ भने कतिपयमा चिन्ता बढेको छ ।
‘ओली-प्रचण्ड रिलेसन’ का अन्य पाटा पक्षलाई विश्लेषण नगरी केवल ‘भेनेजुएला प्रकरण’ का रुपमा मात्रै यो अन्तरविरोधलाई व्याख्या गर्नुचाहिँ ‘कस्मेटिक’ बुझाइ हो ।
खटपटका बाहिरी संकेतहरु
ओली र प्रचण्डवीच खटपट सुरु भएकै हो त ? सबैभन्दा पहिले यो प्रश्नमाथि विमर्श गरौं । अझ, यो प्रश्नमाथि विमर्श गर्नुभन्दा पहिले ती परिघटनाको चर्चा गरौं, जसलाई ओली-प्रचण्ड अन्तरविरोधको ‘प्रतिविम्ब’ मानिँदैछ ।
१. प्रचण्डको वक्तव्य- प्रधानमन्त्री ओली डावोस बैठकमै रहेका बेला प्रचण्डले भेनेजुएला प्रकरणमा अमेरिकाको आलोचना गर्दै वक्तव्य निकाले । के यो वक्तव्य ओलीको शेखी झार्नकै लागि थियो ? पार्टीभित्र छलफलै नगरी वक्तव्य निकालिएको थियो ? अनि यो वक्तव्यले ओलीलाई असहज परिस्थितिमा पुर्‍याएकै हो त ? प्रचण्डको वक्तव्यबारे केपी ओली असहमत नै बनेका हुन् त ? प्रचण्डको जनवरी २५ को वक्तव्यले यस्ता विविध प्रश्नहरु उब्जाएका छन् ।
प्रधानमन्त्री स्वीटजरल्याण्डबाट नेपाल फर्किँदा उनलाई विमानस्थलमै पत्रकारले भेनेजुएला प्रकरणमा प्रचण्डबाट जारी वक्तव्यबारे प्रश्न सोधेका थिए । तर, ‘भट्टराई लडेर घाइते’ भन्ने टुक्का जोड्दै प्रधानमन्त्री यो प्रश्नबाट पन्छिए । उनले प्रचण्डलाई कुनै दोषारोपण गरेनन्, बरु ‘म भर्खर त आउँदैछु, यसबारेमा बुझ्छु’ मात्रै भने ।
अन्ततः प्रधानमन्त्री ओली नेपाल आएपछि परराष्ट्र मन्त्रालयका तर्फबाट अर्को सफ्ट विज्ञप्ति जारी गरियो र प्रचण्डको वक्तव्यलाई नै सरकारले सदर गरिदियो । सरकारको यो कदमबाट प्रचण्डले थप उत्साही बने । अर्कोतर्फ, अमेरिकी राजदूत रिसाएर सरकारले बोलाएको ब्रिफिङमै आएनन् ।
२. ‘चिप्लिएको’ कुरा – यसैवीच प्रधानमन्त्री ओली र अमेरिकी राजदूत र्‍याण्डी बेरीबीच बालुवाटारमा भेट भयो । सो भेटमा प्रधानमन्त्री ओलीले ‘भेनेजुएला प्रकरणमा प्रचण्डको वक्तव्य चिप्लिएको‘ व्याख्या गरेको समाचार बाहिर आयो ।
प्रधानमन्त्रीको यस्तो भनाइ बाहिर आइसकेपछि सरकारले दोस्रो वक्तव्य निकालेर मथ्थर पारिसकेको भेनेजुएला प्रकरणमा फेरि ओली-प्रचण्डवीच बातयुद्ध सुरु भएजस्तो देखियो ।
प्रधानमन्त्रीले भेनेजुएलाबारे प्रचण्ड चिप्लिएको प्रतिक्रिया दिनासाथ अध्यक्ष प्रचण्डले सार्वजनिकरुपबाटै जवाफ फर्काए । भेनेजुएला प्रकरणमा पार्टीको सचिवालयले वक्तव्य निकालिसक्यो, व्यक्तिको विचारको कुनै अर्थ छैन भन्दै प्रचण्डले प्रधानमन्त्रीमाथि सार्वजनिक रुपमै कटाक्ष गरे ।
३. प्रचण्डको अर्को प्रहार- अध्यक्ष प्रचण्डले आफूलाई यतिमा मात्रै सीमित राखेनन् । उनले अर्को एक सार्वजनिक कार्यक्रममा यो पनि भने कि पुरानै तरिकाले चल्न खोज्ने हो भने अर्को माओवादी जन्मिन्छ । ठूलो लडाइँ हुन्छ ।
यसरी एकपछि अर्को गर्दै प्रचण्डले प्रधानमन्त्री ओलीमाथि प्रहार गर्न थालेपछि र सार्वजनिकरुपमै भनाभन बाहिर आउन थालिसकेपछि नै नेकपाका दुई अध्यक्षवीच अन्तरविरोध बढेको अनुमान लगाउन थालिएको हो ।
हुन त यसवीचमा प्रचण्ड र ओलीवीच ‘गोप्य’ छलफलसमेत भैसकेको छ । तथापि, पछिल्लो राजनीतिक परिघटना र भनाभनले दुई अध्यक्षवीच खटपट बढेकै छैन भनेर ढुक्क हुन सकिने अवस्था पनि छैन ।
‘भेनेजुएला प्रकरण’ बाहाना मात्रै
नेकपाभित्र र बाहिरका कतिपय मानिसको बुझाइ के देखिन्छ भने ओली र प्रचण्डवीच भेनेजुएलाकै कारण अन्तरविरोध बढेको हो । र, भेनेजुएलालाई हेर्ने दृष्टिकोणमा रहेको भिन्नताकै कारण ओली- प्रचण्डवीच खटपट पर्न थालेको हो । तर, यो पूर्ण सत्य होइन । ‘भेनेजुएला’ त एउटा निमित्त कारक मात्र हो । ओली प्रचण्डको अन्तरविरोधको अन्तर्यमा अर्कै रहस्यले बढी काम गरिरहेको देख्न सकिन्छ । तर, यो अन्तरविरोध तत्काल धेरै तन्किने चाहिँ देखिँदैन ।
यो पनि पढ्नुस्– प्रचण्डको सन्देश : नेकपामा अर्को अध्यक्ष पनि छ !
कम्युनिष्टहरुको एउटा खराब आदत हुन्छ, जसलाई गैरकम्युनिष्टले सजिलै देख्न वा पर्गेल्न सक्दैनन् । कम्युनिष्टले जे विषयमा विवाद गरिरहेका हुन्छन्, त्यो उनीहरुको रुप पक्षमात्रै हुन्छ, सार पक्षमा अर्कै विषय हुन्छ । भन्नैलाई कम्युनिष्टहरु ‘रुप र सार’ को द्वन्द्वको कुरो गर्छन् ।
कम्युनिष्टहरुको यही भाष्यका आधारमा के भन्न सकिन्छ भने ‘भेनेजुएला प्रकरण’ रुप पक्षमात्रै हो । प्रचण्ड र ओलीवीच अन्तरविरोध बढेकै हो भने त्यसको सार पक्ष घरेलु विषयसँगै सम्बन्धित छ । भेनेजुएला त बाहना मात्रै हो ।
विगतमा माओकी कान्छी श्रीमत��� च्याङ चिङलाई हेर्ने विषयमा नेपालका कम्युनिष्टवीच विवाद भयो । श्रीलंकाको तामिललाई कसरी हेर्ने भन्ने विषयलाई बाहाना बनाएर प्रचण्ड र मोहनविक्रम सिंहले ०४२ सालमा पार्टी फुटाए । ०५१/०५२ सालमा ‘माओवाद’ मान्ने कि नमान्ने भन्ने बाहनामा प्रचण्ड र नारायणकाजीको पार्टी फुटेको इतिहास छ ।
अहिले पनि विदेशकै विषयमा, अर्थात् ‘भेनेजुएलाको विषयमा विवाद भयो’ भनिँदैछ । तर, अन्तर्यमा चाहिँ विगतको जस्तै नेताहरुको जुँगाकै लडाइँले काम गरेको छ । प्रचण्ड र ओलीवीचको यदि अन्तरविरोध बढेकै हो भने पनि यो एक प्रकारको जुँगाकै लडाइँ हो ।
ओली र प्रचण्ड दुबै अप्ठ्यारोमा
प्रचण्ड र ओलीवीचको अन्तरविरोधको अन्तर्यबारे चर्चा गरिरहँदा दुबै नेताले भोगिरहेको अप्ठ्यारो र संकटको पनि चर्चा गर्न आवश्यक छ । अहिले प्रधानमन्त्रीको कुर्सीमा बसेका ओली र पार्टीको कुर्सीमा रहेका प्रचण्ड दुबै संकटमा फसेका छन् ।
१. ओलीको अप्ठ्यारोः सरकार गठनको एक वर्ष पुग्दै गर्दा प्रधानमन्त्री ओली विकास र समृद्धिका लागि विदेशी लगानी भित्र्याउने हुटहुटीमा छन् । ठूला विकासका आयोजना अगाडि बढाउनका लागि विदेशी लगानीकर्तालाई आकषिर्त गर्नुपर्ने र दाता राष्ट्रहरुलाई विश्वासमा लिएर अघि बढ्नुपर्ने प्रधानमन्त्री ओलीको बाध्यता छ ।
यही बाध्यतामा परेर प्रधानमन्त्रीले एकनाथ ढकाल र माधव नेपालका कुरा सुनेर एशिया प्यासिफिक सम्मेलनलाई सहयोग गरे । तर, त्यसले लगानीकर्तालाई आकर्षित गर्नुभन्दा पनि अन्तरराष्ट्रिय सम्बन्धलाई गिजोल्ने उल्टो काम गरिदियो । राम्रो परिणाम दिएन ।
लगानीकर्ताहरुलाई आकषिर्त गर्न सकिन्छ कि भन्ने ठानेर प्रधानमन्त्री ओलीले डाबोस फोरममा सहभागिता जनाए । तर, त्यो फोरमको सहभागिताले नत पश्चिमालाई आकर्षित गर्न सक्यो, न त लगानी नै भित्र्याउने गरी तत्काल फल प्राप्त भयो । यसको विपरीत, सो बैठकको सहभागिताले चीनलाई चिढ्याएको बुझाइ नेकपाकै नेताले गर्न थाले ।
प्रधानमन्त्री ओलीले यसवीचमा भारत र चीनका साथै नेपालको महत्वपूर्ण दाता राष्ट्र रहेको अमेरिकासँग पनि सम्बन्ध सुधार्ने प्रयास नगरेका होइनन् । परराष्ट्र मन्त्रीको अमेरिका भ्रमणले ओलीको प्रयासलाई एक कदम अगाडि बढाउन खोजेको थियो । तर, अमेरिकाको इण्डोप्यासिफिक रणनीतिमा नेपाल पर्न लागेको प्रचार भयो र यसले उत्तरी छिमेकीलाई असर पार्‍यो भन्ने विश्लेषण नेकपाभित्रै हुने थाल्यो ।
अन्ततः भेनेजुएला प्रकरणसम्म आइपुग्दा एउटा ठूलो दाता राष्ट्र (अमेरिका ) सँगको सम्बन्ध पनि बिगि्रएको अवस्थामा पुगेको छ । यसमा नेकपामै नेताहरुको योगदान छ भन्ने कुरा त बलराम बास्कोटाको भेनेजुएला भ्रमण र प्रचण्डले निकालेको वक्तव्यसम्म आइपुग्दा प्रष्टै छ । यसमा छिमेकी राष्ट्रले पनि पम्म दिएको अनुमान एकथरिले लगाउँदै आएका छन् ।
आगामी मार्चमा सरकारले काठमाडौंमा लगानी सम्मेलन गर्दैछ । आउँदो जेठ १५ गते नयाँ आर्थिक वर्षका लागि महत्वाकांक्षी बजेट बनाउनुपर्ने ओली सरकारको बाध्यता छ । चालु आर्थिक वर्षको पछिल्लो चौमासिक अवधिमा बजेटको कार्यान्वयन बाँकी नै छ । यो अवस्थामा सरकारले आगामी वर्षको खर्च कसरी जुटाउने र समृद्धिको योजना कसरी अघि बढाउने भन्ने हुटहुटी प्रधानमन्त्री ओलीमा देखिनु स्वाभाविकै हो । किनभने, रित्तो ढिकुटीको साँचो बोकेर आगामी तीन/चार वर्षमा धेरै काम गर्न सकिन्न भन्ने प्रधानमन्त्री ओलीलाई पक्कै थाहा छ ।
‘पूर्वमाओवादी’ नामको घोडा एकाएक हिनहिनाउन थालेपछि यो घोडा बुरुक्क उफ्रिरने पो हो कि भन्ने डर प्रधानमन्त्री ओलीभित्र पलाउन थालेको छ
तर, नेकपाका अर्का अध्यक्ष प्रचण्डलाई भने मुलुकको ढुकुटीको दयनीय स्थितिप्रति ओलीलाई जति चासो र चिन्ता नदेखिएको ओली पक्षका नेकपा नेताहरुको आरोप छ । देशमा विदेशी लगानीको वातावरण बनाउनका लागि सरकारले प्रयास गरिरहेकै बेला विभिन्न तरिकाले भाँड्ने र आगामी मार्चको लगानी सम्मेलन असफल बनाएर ओलीलाई असफल सावित गराउने प्रयास पार्टीभित्रैबाट सुरु भएको बुझाइ ओली पक्षका नेताहरुको छ ।
अन्ततः विदेशी लगानी जुटाउने र देश विकासमा अन्तरराष्ट्रिय समुदायलाई आकषिर्त गर्ने ओली सरकारको योजना आफ्नै पार्टीभित्रको अन्तरविरोधका कारण अवरुद्ध हुने अवस्थामा पुगेको छ । यो अप्ठ्यारोबाट पार तर्ने हो भने अब प्रधानमन्त्री ओलीले प्रचण्डसँग मिलेर, उनलाई कन्भिन्स गरेरै अगाडि बढनुको विकल्प देखिँदैन । तर, प्रधानमन्त्री ओलीको कुर्सीमाथि अर्को खतराको घण्टी पनि सधैं पार्टीभित्रैबाट झुण्डिइरहेको छ । त्यो हो- वामदेव गौतम, झलनाथ खनाल र माधव नेपालहरु प्रचण्डसँग मिल्ने हुन् कि भन्ने डर ।
नेकपाभित्र बलियो मानिएको माधव नेपाल समूह र प्रचण्डसमूह आपसमा मिले भने पार्टीले ओलीलाई फिर्ता बोलाउने वा संसदीय दलबाट हटाएर नैतिक संकटमा पार्ने डर प्रधानमन्त्री ओलीको छैठौं इन्द्रीयले महसुस गर्न थालेको पछिल्ला परिघटनाबाट अनुमान लगाउन सकिन्छ ।
ओलीसँग टक्कर लिनेबारे प्रचण्डले तत्कालै कुनै निर्णय नगर्नेमा ढुक्का हुन सकिएला, तर पूर्वएमालेभित्रको अन्तरविरोधमा प्रचण्ड पनि प्रयोग हुने पो हुन् कि भन्ने डर ओलीको कित्तामा बढ्दै जान थालेको छ ।
एकातिर देशमा लगानी भित्र्याउने वातावरण बिगारेर सरकारलाई कमजोर बनाउने, अनि अर्कातिर पार्टीभित्रै गुटबन्दी गरेर प्रधानमन्त्रीलाई सफल हुन नदिने चलखेल कतै न कतैबाट भइरहेको ओली पक्षमा त्रास देखिन थालेको छ । भारत, चीन, अमेरिका लगायतका देशसँगको सम्बन्ध बिगारेर सरकारलाई असफल पार्ने भित्री खेलहरु हुन थालेको सत्ता पक्षका नेताहरुले बताउन थालिसकेका छन् ।
हुनत प्रचण्ड निकै नै अप्ठ्यारा र परिवर्तनशील नेता हुन् भन्ने कुरा केपी ओलीलाई निर्वाचनअघि वाम गठबन्धन बनाउने बेलामै राम्रोसित थाहा थियो । तर, चुनावमा कांग्रेसलाई साइजमा राख्न र आफ्नो दलको बहुमत सुनिश्चित गर्न ओलीले प्रचण्ड नामको ‘अप्ठ्यारो घोडा’ चढेर हिँड्ने नीति लिन बाध्य भए । यही कारणले आज उनी बहुमतका साथ प्रधानमन्त्री बन्न सफल भएका हुन् ।
ओली सरकार असफल हुँदा प्रचण्डलाई मालामाल फाइदा हुन्छ भन्ने स्थिति देखिँदैन । प्रधानमन्त्री ओली अप्ठ्यारोमा छन् । तर, प्रचण्ड झनै अक्करमा छन्
तर, यतिबेला ‘पूर्वमाओवादी’ नामको घोडा एकाएक हिनहिनाउन थालेपछि यो घोडा बुरुक्क उफ्रिने पो हो कि भन्ने डर प्रधानमन्त्री ओलीभित्र पलाउन थालेको छ ।
एमाले र माओवादीवीच पार्टी एकता हुँदै गर्दा एमालेभित्रको माधव-वामदेव-झलनाथ समूहले प्रचण्डको साथ पाउने अपेक्षा गरेको थियो । तर, ओलीले उनीहरुलाई काउन्टर गरेर प्रचण्डलाई आफ्नो साथमा लिएर चल्न सकिने जोखिम मोले । अहिले त्यही जोखिमको ‘साइड इफेक्ट’ ओली समूहले महसुस गर्न थालेको छ ।
ओलीलाई असफल पार्न विपक्षीहरु त लागेका छन् नै, स्वयं नेकपाभित्रैको गैरसंस्थापन पक्षले पनि सरकारलाई सजिलो वातावरण बनाइरहेको छैन । यसमा ओलीको कार्यशैली नै जिम्मेवार रहेको बझाइ प्रचण्ड- माधव- झलनाथ- वामदेव समूहको छ ।
२. प्रचण्ड पनि संकटमा : ओली सरकार असफल हुँदा प्रचण्डलाई मालामाल फाइदा हुन्छ भन्ने स्थिति देखिँदैन । प्रधानमन्त्री ओली अप्ठ्यारोमा छन् । तर, प्रचण्ड झनै अक्करमा छन् ।
अमेरिका र पश्चिमी देशहरुसँगको सम्बन्ध ओलीको भन्दा प्रचण्डको बढ्ता खराब छ । भारतले आफूलाई ओलीलाई भन्दा बढी विश्वास गर्छ भन्ने प्रचण्डले ठानेका छन् । तर, उनी आफूलाई चीनको पनि प्यारो बनाइराख्न चाहन्छन् । प्रचण्डको यो नीतिलाई सन्तुलित सम्बन्ध भन्दा पनि अस्थिरताका रुपमा भारत र चीन दुबैले बुझ्ने गरेका छन् ।
यो स्थितिमा ओलीसँगको खटपटलाई चर्काउँदै लगेर वामदेव गौतमहरु समेतको सहयोगमा प्रचण्ड आफैं प्रधानमन्त्री बने भने देशको समस्या समाधान होला त ? त्यो अवस्थामा नेकपाले अरु बढी काम गर्न सक्ला ? दुई नेताको अन्तरविरोध तन्किँदै गयो भने यस्ता प्रश्नहरुको पनि सामना गर्नुपर्ने हुन सक्छ ।
तर, ओलीको ठाउँमा प्रचण्ड आए भने पश्चिमा देशका दाताहरुले झनै पीठ फर्काउन सक्छन् । भेनेजुएला प्रकरणमा जस्तै प्रचण्डले क्रान्तिकारिता देखाए भने त झनै नेपालको अन्तरराष्ट्रिय छवि रुस र चीनको धुरीमा पुग्न सक्छ । त्यो अवस्थामा भारतसँगको सम्बन्ध राम्रो बन्ने वा नेपालमा विदेशी सहयोग बढ्ने अपेक्षा गर्न सकिँदैन । ओली सरकारले अहिले जसरी विदेशी सहायता जुटाउन सकिरहेको छैन, प्रचण्ड आउँदा यो समस्या झन चुलिन सक्छ ।
यो पनि पढ्नुस्–भेनेजुएला प्रकरणमा प्रचण्डको वक्तव्यले ओलीमाथि दबाव
योभन्दा अर्को खतरनाक कुरा के छ भने शान्ति प्रक्रियाको विषयलाई लिएर करिब चार सय माओवादी नेताहरुको मुद्दा विदेशमा पुगेका छन् । ती मुद्दाका साथै अन्तरराष्ट्रिय समुदायले नेपालको शान्ति प्रक्रियालाई लिएर थप प्रश्न उठाउने र माओवादी नेताहरु विदेश जाँदा थुनिनुपर्ने स्थिति पनि आउन सक्छ । यो परिस्थितिमा ओलीको विकल्प प्रचण्ड बन्न सक्दैनन् ।
यसर्थ, अन्तर्राष्ट्रिय सम्बन्ध, विदेशी लगानी जुटाउने सवाल अनि द्वन्द्वकालीन मुद्दाको निरुपण लगायतका समस्याका कारण प्रचण्ड पनि संकटमै छन् । यो स्थितिमा उनले केपी ओलीलाई असफल बनाएर आफू सफल हुने सोच्छन् या ओलीलाई सफल बनाउँदा आफ्नो पनि राजनीतिक भविश्य सुरक्षित हुने ठान्छन् ? प्रचण्ड अगाडि तेर्सिएको यक्ष प्रश्न हो यो ।
कमसेकम केपी ओलीलाई प्रचण्डको यो अप्ठ्यारो थाहा छ । त्यसैले उनी प्रचण्डको यही कमजोरीमा खेलेर भए पनि प्रचण्डलाई आफ्नै ‘ग्रीप’ मा राखिराख्न चाहन्छन् । ओलीको साथमा रहँदा प्रचण्डले सन्तुष्टि नै नभएता पनि एक हदसम्म सुरक्षित महसुस गरिरहेका छन् ।
प्रचण्डले आफ्नो पार्टीलाई एमालेमा मिसाउनुको कारण प���ि यही आत्मसुरक्षाको मनोविज्ञानले गर्दा नै हो । चुनावमा एमालेसँग नमिलेको भए तत्कालीन माओवादी ४/५ सीटमा खुम्चने खतरा थियो । पार्टी कमजोर भएपछि द्वन्द्वकालीन मुद्दाहरु ब्युँतने र जेल जानुपर्ने स्थिति पनि आउन सक्थ्यो भन्ने प्रचण्डलगायतका नेताहरुलाई राम्रैसित थाहा थियो । माओवादी नेताहरुलाई जनयुद्धले सुम्पेको भवितव्य नै यही हो भन्दा फरक नपर्ला ।
लोग्ने स्वास्नीको झगडा !
प्रधानमन्त्री ओलीसँग प्रचण्ड रिसाउनुको मूल कारण भेनेजुएला प्रकरण होइन, आन्तरिक राजनीतिमा ओलीले आफूसँग सरसल्लाह गरेनन् भन्ने प्रचण्डको असन्तुष्टि हुन सक्छ ।
नेकपाको कार्यकदलमा, पार्टीभित्रको पदीय बाँडफाँटमा अनि सरकारले गर्ने कतिपय नियुक्तिहरुमा प्रचण्डले आफ्नो स्पेस खोजेर असन्तुष्टि जनाएका हुन सक्छन् । यसमा भेनेजुएला प्रकरण र कतिपय कानूनहरु पुरानैखालका बनाइए भन्ने प्रचण्डको गुनासोभित्र सोही स्पेसको खोजी हुन सक्छ ।
अन्यथा, साम्राज्यवादीसँग लड्न सकिँदैन भनेर जनयुद्ध बिसाएका प्रचण्डले भेनेजुएलाकै बाहना बनाएर राष्ट्रिय मुक्ति युद्ध लड्ने पक्षमा अडान राख्छन् भनेर अनुमान गर्न सकिँदैन । साम्राज्यवादीसँग सम्झौता गर्ने नीतिमै प्रचण्डसमेत उभिएका छन् भन्ने कुरा विगतदेखि नै स्पष्ट छ । यसमा ओली र प्रचण्डको ‘लाइन’ फरक छैन । राजनीतिक लाइन, र अन्य धेरै स्वार्थहरुमा ओली र प्रचण्डवीच राम्रो मिलिभगत छ । उनीहरुको मिल्ती नभएको भए पार्टी एकता नै हुने थिएन ।
त्यसैले, कतिपय भाषणहरुमा छेडखानी चले पनि नेकपाका यी दुई अध्यक्षवीचको गठबन्धन कमसेकम तल्कालै तोडिने संकेत देखिन्न । तत्काल सम्बन्ध टुटाइयो भने दुबै पक्षलाई के कस्तो घाटा पर्छ भन्ने कुरा पक्कै पनि ओली र प्रचण्ड दुबैले आँकलन गरेकै हुनुपर्छ ।
यो पनि पढ्नुस्–‘अमेरिकी साम्राज्यवादलाई ओली र प्रचण्डले चुनौती दिएकै हुन्’
आम जनसमुदाय र नागरिक समाजले पनि अहिले राजनीतिक अस्थिरता चाहेका छैनन् । बहुमत दिएको सरकारले जनतालाई सुशासन र विकास देओस् भन्ने जनचाहना स्वाभाविक देखिन्छ । अहिले जनताले प्रधानमन्त्री फेर्ने भन्दा पनि जनताले देशको मुहार फेरियोस् भन्ने चाहेका छन् । वर्षैपिच्छे प्रधानमन्त्री फेर्ने परिपाटीले देशलाई स्थितरता र विकास दिन सक्दैन । शायद प्रचण्डले पनि यो कुरा राम्रोसँग बुझेका छन् ।
प्रचण्ड र ओलीका वीचमा आएको खटपट ‘एकता-संघर्ष-एकता’ कै बाटोमा अघि बढ्ने देखिन्छ, ‘संघर्ष- एकता-संघर्ष’ को बाटोमा होइन ।
अर्को माओवादी जन्मने कुरा नि ?
प्रचण्डले एक सार्वजनिक कार्यक्रममा ‘अर्को माओवादी जन्मन सक्छ र झन ठूलो लडाइँ हुन सक्छ’ भनेकोमा धेरै मानिसहरु झस्किएका छन् । के प्रचण्डले नेकपाबाट फुटेर फेरि आफ्नै नेतृत्वमा अर्को माओवादी जन्मन्छ भन्न खोजेका हुन् ? अब नेकपा फुट्छ व फुटाइन्छ भन्न खोजेका हुन् ?
प्रचण्डले अर्को माओवादी जन्मन्छ र ठूलो लडाइँ हुन्छ भने पनि उनी आफैंले अब त्यस्तो माओवादी जन्माउने परिस्थिति छैन । त्यो स्थिति हुने भए उनले आफ्नो पार्टीलाई एमालेमा मिसाउने नै थिएनन् ।
यहाँनेर अर्को महत्वपूर्ण पक्ष के पनि छ भने प्रचण्ड र ओलीवीच कुनै सैद्धान्तिक-वैचारिक मतभेद भएको भए त पार्टी एकता नै हुने थिएन ।
प्रचण्डले कदाचित् अर्को पार्टी बनाइहाले भने उनको स्थिति मोहन वैद्यको भन्दा पनि खराब हुन सक्छ । शक्तिहीन भएर पनि वैचारिक अडान राखेर वैद्यले जसरी बस्न सक्ने धैर्यता प्रचण्डसँग छैन ।
प्रचण्डले अब यो उमेरमा आएर विप्लवले जसरी अर्को लडाइँको तयारी गर्ने सम्भावना पनि छैन । त्यस्तो लडाइँले देश र जनतालाई पार तार्न पनि सक्दैन ।
त्यसर्थ, प्रचण्डले अर्को माओवादी जन्मिन्छ भनिहाले पनि त्यो ‘अर्को माओवादी’ को नेता सम्भवतः अर्कै नै हुने छ, उनी आफैं होइनन् ।
बरु, देशको स्थिति राम्रो भएन र सरकारले राम्रो काम गर्न सकेन अनि पुरानै ढंगबाट चल्न खोज्यो भने देशमा अर्को अस्थिरता हिंसा र बितण्डा आउन सक्छ भनेर प्रचण्डले खबरदारीसम्म गरेको हुनुपर्छ, जुन स्वाभाविकै खबरदारी हो ।
तर, प्रचण्डले नै अब अर्को माओवादी जन्माउन लागे कि भनेर आत्तिने वा उत्तेजित हुने दुबै अवस्था देखिँदैन ।
बरु के देखिन्छ भने ओली र प्रचण्डको अन्तरविरोध श्रीमान-श्रीमतीको घरायसी झगडाजस्तै हो, यो मिल्छ । भोलि फेरि झगडा चल्छ, फेरि मिलाप हुन्छ । त्यतिबेलासम्म यस्तै असैद्धान्तिक झगडा भइरहन्छ, जतिबेलासम्म परिबन्दमा परेर बिहे गरेका दुई श्रीमान-श्रीमतीवीच पारपाचुके हुँदैन ।
श्रीमान-श्रीमतीको झगडामा अक्सर ‘डिभोर्स’ दिने चर्चा हुने गर्छ । अर्कोसित जाने, अर्की ल्याउने वा छुटि्टएर अलग्गै बस्ने चर्चा भइ नै रहन्छ ।
जति नै भनाभन गरे पनि आपसमा नमिलेस��्म ओली र प्रचण्ड दुबैलाई सुख छैन । जनताले बहुमत दिएर पठाएको पार्टी वीचैमा फुट्नु राम्रो पनि होइन । उनीहरुले एकतावद्ध भएर जनताको पक्षमा काम गर्नु नै सबैको हितमा छ ।
ओली र प्रचण्ड दुबैका लागि एकापसमा भागेर टाढासम्म जान सक्ने वस्तुगत र आत्मगत दुबै परिस्थिति छैन ।
अन्त्यमा, ‘अर्को माओवादी’ जन्मिने प्रचण्डको भनाइबारे गोपाल किरातीको रोचक एसएमएसबाट बीट मारौं-
प्रचण्डले अर्को माओवादी जन्मन सक्छ भनेको समाचार पढेपछि विद्रोही माओवादी गोपाल किरातीले यस्तो एसएमएस पठाए-
‘अर्को माओवादी जन्मन सक्ने समाचार पढियो । संसदीय दलमा बिलाएका कारण प्रचण्डबाट यो सम्भव छैन ।’
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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ओली प्रचण्ड अन्तरविरोध, लोग्ने स्वास्नीको झगडा !
२७ माघ, काठमाडौं । प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली र अध्यक्ष प्रचण्डवीच अन्तरविरोध चर्किएकै हो त ? दुई नेतावीच अन्तरविरोध बढेको हो भने कहाँ पुगेर, कसरी यसको बैठान होला ? यो साताको सघन राजनीतिक प्रश्न यही नै हो ।
पछिल्लो राजनीतिक परिघटनाले ओली र प्रचण्डवीच खटपट वा मतभिन्नता देखा परेको अनुमान नेकपाभित्र र बाहिर जबरजस्त गर्न थालिएको छ । दुई नेतावीच खटपट सुरु भएको खबरले कतिपयलाई खुशी तुल्याएको छ भने कतिपयमा चिन्ता बढेको छ ।
‘ओली-प्रचण्ड रिलेसन’ का अन्य पाटा पक्षलाई विश्लेषण नगरी केवल ‘भेनेजुएला प्रकरण’ का रुपमा मात्रै यो अन्तरविरोधलाई व्याख्या गर्नुचाहिँ ‘कस्मेटिक’ बुझाइ हो ।
खटपटका बाहिरी संकेतहरु
ओली र प्रचण्डवीच खटपट सुरु भएकै हो त ? सबैभन्दा पहिले यो प्रश्नमाथि विमर्श गरौं । अझ, यो प्रश्नमाथि विमर्श गर्नुभन्दा पहिले ती परिघटनाको चर्चा गरौं, जसलाई ओली-प्रचण्ड अन्तरविरोधको ‘प्रतिविम्ब’ मानिँदैछ ।
१. प्रचण्डको वक्तव्य- प्रधानमन्त्री ओली डावोस बैठकमै रहेका बेला प्रचण्डले भेनेजुएला प्रकरणमा अमेरिकाको आलोचना गर्दै वक्तव्य निकाले । के यो वक्तव्य ओलीको शेखी झार्नकै लागि थियो ? पार्टीभित्र छलफलै नगरी वक्तव्य निकालिएको थियो ? अनि यो वक्तव्यले ओलीलाई असहज परिस्थितिमा पुर्‍याएकै हो त ? प्रचण्डको वक्तव्यबारे केपी ओली असहमत नै बनेका हुन् त ? प्रचण्डको जनवरी २५ को वक्तव्यले यस्ता विविध प्रश्नहरु उब्जाएका छन् ।
प्रधानमन्त्री स्वीटजरल्याण्डबाट नेपाल फर्किँदा उनलाई विमानस्थलमै पत्रकारले भेनेजुएला प्रकरणमा प्रचण्डबाट जारी वक्तव्यबारे प्रश्न सोधेका थिए । तर, ‘भट्टराई लडेर घाइते’ भन्ने टुक्का जोड्दै प्रधानमन्त्री यो प्रश्नबाट पन्छिए । उनले प्रचण्डलाई कुनै दोषारोपण गरेनन्, बरु ‘म भर्खर त आउँदैछु, यसबारेमा बुझ्छु’ मात्रै भने ।
अन्ततः प्रधानमन्त्री ओली नेपाल आएपछि परराष्ट्र मन्त्रालयका तर्फबाट अर्को सफ्ट विज्ञप्ति जारी गरियो र प्रचण्डको वक्तव्यलाई नै सरकारले सदर गरिदियो । सरकारको यो कदमबाट प्रचण्डले थप उत्साही बने । अर्कोतर्फ, अमेरिकी राजदूत रिसाएर सरकारले बोलाएको बि्रफिङमै आएनन् ।
२. ‘चिप्लिएको’ कुरा – यसैवीच प्रधानमन्त्री ओली र अमेरिकी राजदूत र्‍याण्डी बेरीबीच बालुवाटारमा भेट भयो । सो भेटमा प्रधानमन्त्री ओलीले ‘भेनेजुएला प्रकरणमा प्रचण्डको वक्तव्य चिप्लिएको‘ व्याख्या गरेको समाचार बाहिर आयो ।
प्रधानमन्त्रीको यस्तो भनाइ बाहिर आइसकेपछि सरकारले दोस्रो वक्तव्य निकालेर मथ्थर पारिसकेको भेनेजुएला प्रकरणमा फेरि ओली-प्रचण्डवीच बातयुद्ध सुरु भएजस्तो देखियो ।
प्रधानमन्त्रीले भेनेजुएलाबारे प्रचण्ड चिप्लिएको प्रतिक्रिया दिनासाथ अध्यक्ष प्रचण्डले सार्वजनिकरुपबाटै जवाफ फर्काए । भेनेजुएला प्रकरणमा पार्टीको सचिवालयले वक्तव्य निकालिसक्यो, व्यक्तिको विचारको कुनै अर्थ छैन भन्दै प्रचण्डले प्रधानमन्त्रीमाथि सार्वजनिक रुपमै कटाक्ष गरे ।
३. प्रचण्डको अर्को प्रहार- अध्यक्ष प्रचण्डले आफूलाई यतिमा मात्रै सीमित राखेनन् । उनले अर्को एक सार्वजनिक कार्यक्रममा यो पनि भने कि पुरानै तरिकाले चल्न खोज्ने हो भने अर्को माओवादी जन्मिन्छ । ठूलो लडाइँ हुन्छ ।
यसरी एकपछि अर्को गर्दै प्रचण्डले प्रधानमन्त्री ओलीमाथि प्रहार गर्न थालेपछि र सार्वजनिकरुपमै भनाभन बाहिर आउन थालिसकेपछि नै नेकपाका दुई अध्यक्षवीच अन्तरविरोध बढेको अनुमान लगाउन थालिएको हो ।
हुन त यसवीचमा प्रचण्ड र ओलीवीच ‘गोप्य’ छलफलसमेत भैसकेको छ । तथापि, पछिल्लो राजनीतिक परिघटना र भनाभनले दुई अध्यक्षवीच खटपट बढेकै छैन भनेर ढुक्क हुन सकिने अवस्था पनि छैन ।
‘भेनेजुएला प्रकरण’ बाहाना मात्रै
नेकपाभित्र र बाहिरका कतिपय मानिसको बुझाइ के देखिन्छ भने ओली र प्रचण्डवीच भेनेजुएलाकै कारण अन्तरविरोध बढेको हो । र, भेनेजुएलालाई हेर्ने दृष्टिकोणमा रहेको भिन्नताकै कारण ओली- प्रचण्डवीच खटपट पर्न थालेको हो । तर, यो पूर्ण सत्य होइन । ‘भेनेजुएला’ त एउटा निमित्त कारक मात्र हो । ओली प्रचण्डको अन्तरविरोधको अन्तर्यमा अर्कै रहस्यले बढी काम गरिरहेको देख्न सकिन्छ । तर, यो अन्तरविरोध तत्काल धेरै तन्किने चाहिँ देखिँदैन ।
कम्युनिष्टहरुको एउटा खराब आदत हुन्छ, जसलाई गैरकम्युनिष्टले सजिलै देख्न वा पर्गेल्न सक्दैनन् । कम्युनिष्टले जे विषयमा विवाद गरिरहेका हुन्छन्, त्यो उनीहरुको रुप पक्षमात्रै हुन्छ, सार पक्षमा अर्कै विषय हुन्छ । भन्नैलाई कम्युनिष्टहरु ‘रुप र सार’ को द्वन्द्वको कुरो गर्छन् ।
कम्युनिष्टहरुको यही भाष्यका आधारमा के भन्न सकिन्छ भने ‘भेनेजुएला प्रकरण’ रुप पक्षमात्रै हो । प्रचण्ड र ओलीवीच अन्तरविरोध बढेकै हो भने त्यसको सार पक्ष घरेलु विषयसँगै सम्बन्धित छ । भेनेजुएला त बाहना मात्रै हो ।
विगतमा माओकी कान्छी श्रीमती च्याङ चिङलाई हेर्ने विषयमा नेपालका कम्युनिष्टवीच विवाद भयो । श्रीलंकाको तामिललाई कसरी हेर्ने भन्ने विषयलाई बाहाना बनाएर प्रचण्ड र मोहनविक्रम सिंहले ०४२ सालमा पार्टी फुटाए । ०५१/०५२ सालमा ‘माओवाद’ मान्ने कि नमान्ने भन्ने बाहनामा प्रचण्ड र नारायणकाजीको पार्टी फुटेको इतिहास छ ।
अहिले पनि विदेशकै विषयमा, अर्थात् ‘भेनेजुएलाको विषयमा विवाद भयो’ भनिँदैछ । तर, अन्तर्यमा चाहिँ विगतको जस्तै नेताहरुको जुँगाकै लडाइँले काम गरेको छ । प्रचण्ड र ओलीवीचको यदि अन्तरविरोध बढेकै हो भने पनि यो एक प्रकारको जुँगाकै लडाइँ हो ।
ओली र प्रचण्ड दुबै अप्ठ्यारोमा
प्रचण्ड र ओलीवीचको अन्तरविरोधको अन्तर्यबारे चर्चा गरिरहँदा दुबै नेताले भोगिरहेको अप्ठ्यारो र संकटको पनि चर्चा गर्न आवश्यक छ । अहिले प्रधानमन्त्रीको कुर्सीमा बसेका ओली र पार्टीको कुर्सीमा रहेका प्रचण्ड दुबै संकटमा फसेका छन् ।
१. ओलीको अप्ठ्यारोः सरकार गठनको एक वर्ष पुग्दै गर्दा प्रधानमन्त्री ओली विकास र समृद्धिका लागि विदेशी लगानी भित्र्याउने हुटहुटीमा छन् । ठूला विकासका आयोजना अगाडि बढाउनका लागि विदेशी लगानीकर्तालाई आकषिर्त गर्नुपर्ने र दाता राष्ट्रहरुलाई विश्वासमा लिएर अघि बढ्नुपर्ने प्रधानमन्त्री ओलीको बाध्यता छ ।
यही बाध्यतामा परेर प्रधानमन्त्रीले एकनाथ ढकाल र माधव नेपालका कुरा सुनेर एशिया प्यासिफिक सम्मेलनलाई सहयोग गरे । तर, त्यसले लगानीकर्तालाई आकर्षित गर्नुभन्दा पनि अन्तरराष्ट्रिय सम्बन्धलाई गिजोल्ने उल्टो काम गरिदियो । राम्रो परिणाम दिएन ।
लगानीकर्ताहरुलाई आकषिर्त गर्न सकिन्छ कि भन्ने ठानेर प्रधानमन्त्री ओलीले डाबोस फोरममा सहभागिता जनाए । तर, त्यो फोरमको सहभागिताले नत पश्चिमालाई आकर्षित गर्न सक्यो, न त लगानी नै भित्र्याउने गरी तत्काल फल प्राप्त भयो । यसको विपरीत, सो बैठकको सहभागिताले चीनलाई चिढ्याएको बुझाइ नेकपाकै नेताले गर्न थाले ।
प्रधानमन्त्री ओलीले यसवीचमा भारत र चीनका साथै नेपालको महत्वपूर्ण दाता राष्ट्र रहेको अमेरिकासँग पनि सम्बन्ध सुधार्ने प्रयास नगरेका होइनन् । परराष्ट्र मन्त्रीको अमेरिका भ्रमणले ओलीको प्रयासलाई एक कदम अगाडि बढाउन खोजेको थियो । तर, अमेरिकाको इण्डोप्यासिफिक रणनीतिमा नेपाल पर्न लागेको प्रचार भयो र यसले उत्तरी छिमेकीलाई असर पार्‍यो भन्ने विश्लेषण नेकपाभित्रै हुने थाल्यो ।
अन्ततः भेनेजुएला प्रकरणसम्म आइपुग्दा एउटा ठूलो दाता राष्ट्र (अमेरिका ) सँगको सम्बन्ध पनि बिगि्रएको अवस्थामा पुगेको छ । यसमा नेकपामै नेताहरुको योगदान छ भन्ने कुरा त बलराम बास्कोटाको भेनेजुएला भ्रमण र प्रचण्डले निकालेको वक्तव्यसम्म आइपुग्दा प्रष्टै छ । यसमा छिमेकी राष्ट्रले पनि पम्म दिएको अनुमान एकथरिले लगाउँदै आएका छन् ।
आगामी मार्चमा सरकारले काठमाडौंमा लगानी सम्मेलन गर्दैछ । आउँदो जेठ १५ गते नयाँ आर्थिक वर्षका लागि महत्वाकांक्षी बजेट बनाउनुपर्ने ओली सरकारको बाध्यता छ । चालु आर्थिक वर्षको पछिल्लो चौमासिक अवधिमा बजेटको कार्यान्वयन बाँकी नै छ । यो अवस्थामा सरकारले आगामी वर्षको खर्च कसरी जुटाउने र समृद्धिको योजना कसरी अघि बढाउने भन्ने हुटहुटी प्रधानमन्त्री ओलीमा देखिनु स्वाभाविकै हो । किनभने, रित्तो ढिकुटीको साँचो बोकेर आगामी तीन/चार वर्षमा धेरै काम गर्न सकिन्न भन्ने प्रधानमन्त्री ओलीलाई पक्कै थाहा छ ।
‘पूर्वमाओवादी’ नामको घोडा एकाएक हिनहिनाउन थालेपछि यो घोडा बुरुक्क उफ्रिरने पो हो कि भन्ने डर प्रधानमन्त्री ओलीभित्र पलाउन थालेको छ
तर, नेकपाका अर्का अध्यक्ष प्रचण्डलाई भने मुलुकको ढुकुटीको दयनीय स्थितिप्रति ओलीलाई जति चासो र चिन्ता नदेखिएको ओली पक्षका नेकपा नेताहरुको आरोप छ । देशमा विदेशी लगानीको वातावरण बनाउनका लागि सरकारले प्रयास गरिरहेकै बेला विभिन्न तरिकाले भाँड्ने र आगामी मार्चको लगानी सम्मेलन असफल बनाएर ओलीलाई असफल सावित गराउने प्रयास पार्टीभित्रैबाट सुरु भएको बुझाइ ओली पक्षका नेताहरुको छ ।
अन्ततः विदेशी लगानी जुटाउने र देश विकासमा अन्तरराष्ट्रिय समुदायलाई आकषिर्त गर्ने ओली सरकारको योजना आफ्नै पार्टीभित्रको अन्तरविरोधका कारण अवरुद्ध हुने अवस्थामा पुगेको छ । यो अप्ठ्यारोबाट पार तर्ने हो भने अब प्रधानमन्त्री ओलीले प्रचण्डसँग मिलेर, उनलाई कन्भिन्स गरेरै अगाडि बढनुको विकल्प देखिँदैन । तर, प्रधानमन्त्री ओलीको कुर्सीमाथि अर्को खतराको घण्टी पनि सधैं पार्टीभित्रैबाट झुण्डिइरहेको छ । त्यो हो- वामदेव गौतम, झलनाथ खनाल र माधव नेपालहरु प्रचण्डसँग मिल्ने हुन् कि भन्ने डर ।
नेकपाभित्र बलियो मानिएको माधव नेपाल समूह र प्रचण्डसमूह आपसमा मिले भने पार्टीले ओलीलाई फिर्ता बोलाउने वा संसदीय दलबाट हटाएर नैतिक संकटमा पार्ने डर प्रधानमन्त्री ओलीको छैठौं इन्द्रीयले महसुस गर्न थालेको पछिल्ला परिघटनाबाट अनुमान लगाउन सकिन्छ ।
ओलीसँग टक्कर लिनेबारे प्रचण्डले तत्कालै कुनै निर्णय नगर्नेमा ढुक्का हुन सकिएला, तर पूर्वएमालेभित्रको अन्तरविरोधमा प्रचण्ड पनि प्रयोग हुने पो हुन् कि भन्ने डर ओलीको कित्तामा बढ्दै जान थालेको छ ।
एकातिर देशमा लगानी भित्र्याउने वातावरण बिगारेर सरकारलाई कमजोर बनाउने, अनि अर्कातिर पार्टीभित्रै गुटबन्दी गरेर प्रधानमन्त्रीलाई सफल हुन नदिने चलखेल कतै न कतैबाट भइरहेको ओली पक्षमा त्रास देखिन थालेको छ । भारत, चीन, अमेरिका लगायतका देशसँगको सम्बन्ध बिगारेर सरकारलाई असफल पार्ने भित्री खेलहरु हुन थालेको सत्ता पक्षका नेताहरुले बताउन थालिसकेका छन् ।
हुनत प्रचण्ड निकै नै अप्ठ्यारा र परिवर्तनशील नेता हुन् भन्ने कुरा केपी ओलीलाई निर्वाचनअघि वाम गठबन्धन बनाउने बेलामै राम्रोसित थाहा थियो । तर, चुनावमा कांग्रेसलाई साइजमा राख्न र आफ्नो दलको बहुमत सुनिश्चित गर्न ओलीले प्रचण्ड नामको ‘अप्ठ्यारो घोडा’ चढेर हिँड्ने नीति लिन बाध्य भए । यही कारणले आज उनी बहुमतका साथ प्रधानमन्त्री बन्न सफल भएका हुन् ।
ओली सरकार असफल हुँदा प्रचण्डलाई मालामाल फाइदा हुन्छ भन्ने स्थिति देखिँदैन । प्रधानमन्त्री ओली अप्ठ्यारोमा छन् । तर, प्रचण्ड झनै अक्करमा छन्
तर, यतिबेला ‘पूर्वमाओवादी’ नामको घोडा एकाएक हिनहिनाउन थालेपछि यो घोडा बुरुक्क उफ्रिने पो हो कि भन्ने डर प्रधानमन्त्री ओलीभित्र पलाउन थालेको छ ।
एमाले र माओवादीवीच पार्टी एकता हुँदै गर्दा एमालेभित्रको माधव-वामदेव-झलनाथ समूहले प्रचण्डको साथ पाउने अपेक्षा गरेको थियो । तर, ओलीले उनीहरुलाई काउन्टर गरेर प्रचण्डलाई आफ्नो साथमा लिएर चल्न सकिने जोखिम मोले । अहिले त्यही जोखिमको ‘साइड इफेक्ट’ ओली समूहले महसुस गर्न थालेको छ ।
ओलीलाई असफल पार्न विपक्षीहरु त लागेका छन् नै, स्वयं नेकपाभित्रैको गैरसंस्थापन पक्षले पनि सरकारलाई सजिलो वातावरण बनाइरहेको छैन । यसमा ओलीको कार्यशैली नै जिम्मेवार रहेको बझाइ प्रचण्ड- माधव- झलनाथ- वामदेव समूहको छ ।
२. प्रचण्ड पनि संकटमा : ओली सरकार असफल हुँदा प्रचण्डलाई मालामाल फाइदा हुन्छ भन्ने स्थिति देखिँदैन । प्रधानमन्त्री ओली अप्ठ्यारोमा छन् । तर, प्रचण्ड झनै अक्करमा छन् ।
अमेरिका र पश्चिमी देशहरुसँगको सम्बन्ध ओलीको भन्दा प्रचण्डको बढ्ता खराब छ । भारतले आफूलाई ओलीलाई भन्दा बढी विश्वास गर्छ भन्ने प्रचण्डले ठानेका छन् । तर, उनी आफूलाई चीनको पनि प्यारो बनाइराख्न चाहन्छन् । प्रचण्डको यो नीतिलाई सन्तुलित सम्बन्ध भन्दा पनि अस्थिरताका रुपमा भारत र चीन दुबैले बुझ्ने गरेका छन् ।
यो स्थितिमा ओलीसँगको खटपटलाई चर्काउँदै लगेर वामदेव गौतमहरु समेतको सहयोगमा प्रचण्ड आफैं प्रधानमन्त्री बने भने देशको समस्या समाधान होला त ? त्यो अवस्थामा नेकपाले अरु बढी काम गर्न सक्ला ? दुई नेताको अन्तरविरोध तन्किँदै गयो भने यस्ता प्रश्नहरुको पनि सामना गर्नुपर्ने हुन सक्छ ।
तर, ओलीको ठाउँमा प्रचण्ड आए भने पश्चिमा देशका दाताहरुले झनै पीठ फर्काउन सक्छन् । भेनेजुएला प्रकरणमा जस्तै प्रचण्डले क्रान्तिकारिता देखाए भने त झनै नेपालको अन्तरराष्ट्रिय छवि रुस र चीनको धुरीमा पुग्न सक्छ । त्यो अवस्थामा भारतसँगको सम्बन्ध राम्रो बन्ने वा नेपालमा विदेशी सहयोग बढ्ने अपेक्षा गर्न सकिँदैन । ओली सरकारले अहिले जसरी विदेशी सहायता जुटाउन सकिरहेको छैन, प्रचण्ड आउँदा यो समस्या झन चुलिन सक्छ ।
योभन्दा अर्को खतरनाक कुरा के छ भने शान्ति प्रक्रियाको विषयलाई लिएर करिब चार सय माओवादी नेताहरुको मुद्दा विदेशमा पुगेका छन् । ती मुद्दाका साथै अन्तरराष्ट्रिय समुदायले नेपालको शान्ति प्रक्रियालाई लिएर थप प्रश्न उठाउने र माओवादी नेताहरु विदेश जाँदा थुनिनुपर्ने स्थिति पनि आउन सक्छ । यो परिस्थितिमा ओलीको विकल्प प्रचण्ड बन्न सक्दैनन् ।
यसर्थ, अन्तर्राष्ट्रिय सम्बन्ध, विदेशी लगानी जुटाउने सवाल अनि द्वन्द्वकालीन मुद्दाको निरुपण लगायतका समस्याका कारण प्रचण्ड पनि संकटमै छन् । यो स्थितिमा उनले केपी ओलीलाई असफल बनाएर आफू सफल हुने सोच्छन् या ओलीलाई सफल बनाउँदा आफ्नो पनि राजनीतिक भविश्य सुरक्षित हुने ठान्छन् ? प्रचण्ड अगाडि तेर्सिएको यक्ष प्रश्न हो यो ।
कमसेकम केपी ओलीलाई प्रचण्डको यो अप्ठ्यारो थाहा छ । त्यसैले उनी प्रचण्डको यही कमजोरीमा खेलेर भए पनि प्रचण्डलाई आफ्नै ‘ग्रीप’ मा राखिराख्न चाहन्छन् । ओलीको साथमा रहँदा प्रचण्डले सन्तुष्टि नै नभएता पनि एक हदसम्म सुरक्षित महसुस गरिरहेका छन् ।
प्रचण्डले आफ्नो पार्टीलाई एमालेमा मिसाउनुको कारण पनि यही आत्मसुरक्षाको मनोविज्ञानले गर्दा नै हो । चुनावमा एमालेसँग नमिलेको भए तत्कालीन माओवादी ४/५ सीटमा खुम्चने खतरा थियो । पार्टी कमजोर भएपछि द्वन्द्वकालीन मुद्दाहरु ब्युँतने र जेल जानुपर्ने स्थिति पनि आउन सक्थ्यो भन्ने प्रचण्डलगायतका नेताहरुलाई राम्रैसित थाहा थियो । माओवादी नेताहरुलाई जनयुद्धले सुम्पेको भवितव्य नै यही हो भन्दा फरक नपर्ला ।
लोग्ने स्वास्नीको झगडा !
प्रधानमन्त्री ओलीसँग प्रचण्ड रिसाउनुको मूल कारण भेनेजुएला प्रकरण होइन, आन्तरिक राजनीतिमा ओलीले आफूसँग सरसल्लाह गरेनन् भन्ने प्रचण्डको असन्तुष्टि हुन सक्छ ।
नेकपाको कार्यकदलमा, पार्टीभित्रको पदीय बाँडफाँटमा अनि सरकारले गर्ने कतिपय नियुक्तिहरुमा प्रचण्डले आफ्नो स्पेस खोजेर असन्तुष्टि जनाएका हुन सक्छन् । यसमा भेनेजुएला प्रकरण र कतिपय कानूनहरु पुरानैखालका बनाइए भन्ने प्रचण्डको गुनासोभित्र सोही स्पेसको खोजी हुन सक्छ ।
अन्यथा, साम्राज्यवादीसँग लड्न सकिँदैन भनेर जनयुद्ध बिसाएका प्रचण्डले भेनेजुएलाकै बाहना बनाएर राष्ट्रिय मुक्ति युद्ध लड्ने पक्षमा अडान राख्छन् भनेर अनुमान गर्न सकिँदैन । साम्राज्यवादीसँग सम्झौता गर्ने नीतिमै प्रचण्डसमेत उभिएका छन् भन्ने कुरा विगतदेखि नै स्पष्ट छ । यसमा ओली र प्रचण्डको ‘लाइन’ फरक छैन । राजनीतिक लाइन, र अन्य धेरै स्वार्थहरुमा ओली र प्रचण्डवीच राम्रो मिलिभगत छ । उनीहरुको मिल्ती नभएको भए पार्टी एकता नै हुने थिएन ।
त्यसैले, कतिपय भाषणहरुमा छेडखानी चले पनि नेकपाका यी दुई अध्यक्षवीचको गठबन्धन कमसेकम तल्कालै तोडिने संकेत देखिन्न । तत्काल सम्बन्ध टुटाइयो भने दुबै पक्षलाई के कस्तो घाटा पर्छ भन्ने कुरा पक्कै पनि ओली र प्रचण्ड दुबैले आँकलन गरेकै हुनुपर्छ ।
आम जनसमुदाय र नागरिक समाजले पनि अहिले राजनीतिक अस्थिरता चाहेका छैनन् । बहुमत दिएको सरकारले जनतालाई सुशासन र विकास देओस् भन्ने जनचाहना स्वाभाविक देखिन्छ । अहिले जनताले प्रधानमन्त्री फेर्ने भन्दा पनि जनताले देशको मुहार फेरियोस् भन्ने चाहेका छन् । वर्षैपिच्छे प्रधानमन्त्री फेर्ने परिपाटीले देशलाई स्थितरता र विकास दिन सक्दैन । शायद प्रचण्डले पनि यो कुरा राम्रोसँग बुझेका छन् ।
प्रचण्ड र ओलीका वीचमा आएको खटपट ‘एकता-संघर्ष-एकता’ कै बाटोमा अघि बढ्ने देखिन्छ, ‘संघर्ष- एकता-संघर्ष’ को बाटोमा होइन ।
अर्को माओवादी जन्मने कुरा नि ?
प्रचण्डले एक सार्वजनिक कार्यक्रममा ‘अर्को माओवादी जन्मन सक्छ र झन ठूलो लडाइँ हुन सक्छ’ भनेकोमा धेरै मानिसहरु झस्किएका छन् । के प्रचण्डले नेकपाबाट फुटेर फेरि आफ्नै नेतृत्वमा अर्को माओवादी जन्मन्छ भन्न खोजेका हुन् ? अब नेकपा फुट्छ व फुटाइन्छ भन्न खोजेका हुन् ?
प्रचण्डले अर्को माओवादी जन्मन्छ र ठूलो लडाइँ हुन्छ भने पनि उनी आफैंले अब त्यस्तो माओवादी जन्माउने परिस्थिति छैन । त्यो स्थिति हुने भए उनले आफ्नो पार्टीलाई एमालेमा मिसाउने नै थिएनन् ।
यहाँनेर अर्को महत्वपूर्ण पक्ष के पनि छ भने प्रचण्ड र ओलीवीच कुनै सैद्धान्तिक-वैचारिक मतभेद भएको भए त पार्टी एकता नै हुने थिएन ।
प्रचण्डले कदाचित् अर्को पार्टी बनाइहाले भने उनको स्थिति मोहन वैद्यको भन्दा पनि खराब हुन सक्छ । शक्तिहीन भएर पनि वैचारिक अडान राखेर वैद्यले जसरी बस्न सक्ने धैर्यता प्रचण्डसँग छैन ।
प्रचण्डले अब यो उमेरमा आएर विप्लवले जसरी अर्को लडाइँको तयारी गर्ने सम्भावना पनि छैन । त्यस्तो लडाइँले देश र जनतालाई पार तार्न पनि सक्दैन ।
त्यसर्थ, प्रचण्डले अर्को माओवादी जन्मिन्छ भनिहाले पनि त्यो ‘अर्को माओवादी’ को नेता सम्भवतः अर्कै नै हुने छ, उनी आफैं होइनन् ।
बरु, देशको स्थिति राम्रो भएन र सरकारले राम्रो काम गर्न सकेन अनि पुरानै ढंगबाट चल्न खोज्यो भने देशमा अर्को अस्थिरता हिंसा र बितण्डा आउन सक्छ भनेर प्रचण्डले खबरदारीसम्म गरेको हुनुपर्छ, जुन स्वाभाविकै खबरदारी हो ।
तर, प्रचण्डले नै अब अर्को माओवादी जन्माउन लागे कि भनेर आत्तिने वा उत्तेजित हुने दुबै अवस्था देखिँदैन ।
बरु के देखिन्छ भने ओली र प्रचण्डको अन्तरविरोध श्रीमान-श्रीमतीको घरायसी झगडाजस्तै हो, यो मिल्छ । भोलि फेरि झगडा चल्छ, फेरि मिलाप हुन्छ । त्यतिबेलासम्म यस्तै असैद्धान्तिक झगडा भइरहन्छ, जतिबेलासम्म परिबन्दमा परेर बिहे गरेका दुई श्रीमान-श्रीमतीवीच पारपाचुके हुँदैन ।
श्रीमान-श्रीमतीको झगडामा अक्सर ‘डिभोर्स’ दिने चर्चा हुने गर्छ । अर्कोसित जाने, अर्की ल्याउने वा छुटि्टएर अलग्गै बस्ने चर्चा भइ नै रहन्छ ।
जति नै भनाभन गरे पनि आपसमा नमिलेसम्म ओली र प्रचण्ड दुबैलाई सुख छैन । जनताले बहुमत दिएर पठाएको पार्टी वीचैमा फुट्नु राम्रो पनि होइन । उनीहरुले एकतावद्ध भएर जनताको पक्षमा काम गर्नु नै सबैको हितमा छ ।
ओली र प्रचण्ड दुबैका लागि एकापसमा भागेर टाढासम्म जान सक्ने वस्तुगत र आत्मगत दुबै परिस्थ��ति छैन ।
अन्त्यमा, ‘अर्को माओवादी’ जन्मिने प्रचण्डको भनाइबारे गोपाल किरातीको रोचक एसएमएसबाट बीट मारौं-
प्रचण्डले अर्को माओवादी जन्मन सक्छ भनेको समाचार पढेपछि विद्रोही माओवादी गोपाल किरातीले यस्तो एसएमएस पठाए-
‘अर्को माओवादी जन्मन सक्ने समाचार पढियो । संसदीय दलमा बिलाएका कारण प्रचण्डबाट यो सम्भव छैन ।’
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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आईजीपी खनालको चुनौती : दबाव दिएको भेटिए मेरो बर्दी फुकालिदिनुस्
२४ मंसिर, काठमाडौं । नेपाल प्रहरीका महानिरीक्षक सर्वेन्द्र खनालले निर्मला पन्तको बलात्कारपछि हत्या घटनाको अनुसन्धानमा कुनै दबाव नरहेको बताएका छन् । तर, घटनामा संलग्न भएका आशंका लागेकालाई पक्राउ गर्दै सोधपुछ गर्नु पर्ने भएकाले हत्यारा पत्ता लाग्न समय लागेको बताए ।
राष्ट्रियसभाको दिगो विकास तथा सुशासन समितिले निर्मला पन्तको हत्याको अनुसन्धानबारे छलफल गर्न प्रहरी महानिरीक्षक खनाललाई बोलाएको थियो । सांसदहरुले शान्ति सुरक्षाको अवस्था किन यति कमजोर भयो ? विगतमा राम्रो सफलता पाएको प्रहरी अनुसन्धान किन फितलो भयो ? निर्मला पन्तको बलात्कारपछि हत्या गर्नेहरु किन पत्ता लागेनन् जस्ता प्रश्न गरे ।
कांग्रेस सांसद रमेशजंग रायमाझी निर्मला-नमिता हत्याकाण्डमा दरबारमा मान्छे जस्तै निर्मला हत्याकाण्डमा शक्तिशाली को छन् भनेर प्रश्न गरे । उनले भने, ‘शक्तिशाली मान्छेलाई जोगाउन सरकारले प्रहरी प्रमुखलाई प्रयोग गरेको हुनसक्छ । सीआईबीले पनि प्रहरी प्रमुखको इन्ट्रेस्टमा काम गर्छ ।’
तत्कालीन डीआईजी एवं वर्तमान सांसद नवराज सिलवालले राजनीतिक प्रभावमा आफू आईजीपी हुन नसकेको भनेको भन्दै रायमाझीले खनाललाई प्रश्न गरे, ‘तपाईंले पनि आईजीपी नै परिर्वतन हुन्छ भनेर घटना उजागर नगरेको हो कि ?
सांसद प्रमिला यादवले सुरक्षा दिन नसक्ने हो भने पदबाट राजीनामा दिन आग्रह गरिन् । दक्षिण भारतीय फिल्ममा जस्तै निर्मला हत्याका दोषीलाई लुकाएर निर्दोषलाई यातना दिने काम भइरहेको भन्दै उनले यो रोक्नुपर्ने बताइन् ।
सत्तारुढ नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (नेकपा)का सांसद दिनानाथ शर्माले अपराधिक घटनामा राजनीतिकरण वा राजनीतिक प्रभाव हुन नहुने बताए । निर्मला हत्यामा पनि त्यस्तो भएको भए प्रहरी संगठन दृढतापूर्वक अगाडि आउन आग्रह गरे ।
कडि्कए आईजीपी खनाल
बैठकको सुरुमा धारणा राख्दा नरम देखिएका प्रहरी महानिरीक्षक खनाल जवाफ दिने क्रममा भने कडा रुपमा प्रस्तुत भए ।
संसदीय समितिमा संगठन र शान्ति सुरक्षाको विषय मात्र नभई व्यक्तिगत विषय आएको भन्दै असन्तुष्टि जनाएका उनले सुरुमा सांसदहरुलाई कडा वाण हाने । उनले भने, ‘मैले नै केही माननीयलाई समातेर जेलमा हालेको छु । यसको अर्थ सबैलाई अपमानित गर्न खोजेको होइन’ भन्दै उनले ड्यासिङ दिएका हुन् ।
केही प्रहरी अधिकारीले गलत गर्दा सिंगो संगठनलाई दोषारोपण गर्न नहुने उनले बताए ।
त्यसपछि उनले प्रहरीले गरेका कामको फेहरिस्त सुनाए । हालै मात्र प्रहरीले ई-गुड गभर्नेन्स अवार्ड पाएको, ऐन कानुन नहुँदा पनि आपसी सम्बन्धका आधारमा नेपालमा अपराध गरेर विदेश भागेकाहरुलाई पक्राउ गरिएको उनले बताए ।
लामो समयदेखि फरार ७३२ जना पक्राउ परेको, विप्लव समूहको आतंक अन्त्य गरेको, सीके राउतको राष्ट्रविरोधी गतिनिधि न्यूनीकरण गरेको उनले सुनाए । उनका अनुसार विप्लव समूहका ३४७ र सीके राउतसहित उनका ९४ जनालाई पक्राउ गरी मुद्दा चलाएको तथा १५२ थान अवैध हतियारसहित १५० भन्दा बढीलाई पक्राउ गरेको संसदीय समितिलाई जानकारी दिए ।
निर्मला हत्याबारे
प्रहरी महानिरीक्षक खनालले निर्मला हत्याबारे अनुसन्धान भइरहेको र यो साँघुरिँदै गएको बताए । तर, अभियुक्त पत्ता लाग्न कति समय लाग्छ भन्न नसक्ने बताए ।
आफू अपराध अनुसन्धान महाशाखा प्रमुख हुँदा बडीखेल घटनाका अभियुक्त १३ वर्षमा पक्राउ गरेको स्मरण गर्दै उनले भने, ‘कुनै कुनै घटनामा केही समय लाग्नसक्छ तर, हामीले अनुसन्धान नै नगरेको भन्ने होइन, काम भइरहेको छ ।’
आफूलाई कुनै दबाव नभएको र प्रहरीको अनुसन्धान कतैबाट प्रभावित नहुने उनले बताए । निर्मला हत्याको अनुसन्धान म्यानुअल्ली गर्नुपर्ने अवस्था आएको र यसमा शंकास्पद व्यक्तिलाई सोधपुछ गर्नुको विकल्प नभएको भन्दै खनालले भने, ‘सहज अनुसन्धानका लागि वातावरण बनाइदिन आग्रह गर्छु ।’
बर्दी फुकालिदिनुस्
आईजीपी खनालले आफूलाई दबाव नआएको मात्र होइन, आफूले पनि दबाव नदिएको स्पष्ट पारे । सीआईबीलाई आईजीपीले दबाव दिएको सांसदको टिप्पणीमा उनले भने, ‘मैले अहिलेसम्म दबाव दिएको पनि छैन, दिने पनि छैन ।’
अनुसन्धानमा इलाका प्रहरी, जिल्ला, संघीय प्रहरी, प्रदेश लगायतका थुप्रै तह हुने भन्दै उनले भने, ‘मैले चाहेर पनि कसैलाई लुकाउन दबाव दिन सक्ने अवस्था हुँदैन । यदि दबाव दिएको भेट्टाउनुभयो संसदबाट मेरो बर्दी फुकालिदिनुस् ।’
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onlinekhabarapp · 6 years ago
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सांसदलाई आईजीपी खनालको चुनौती : दबाव दिएको भेटिए मेरो बर्दी फुकालिदिनुस्
२४ मंसिर, काठमाडौं । नेपाल प्रहरीका महानिरीक्षक सर्वेन्द्र खनालले निर्मला पन्तको बलात्कारपछि हत्या घटनाको अनुसन्धानमा कुनै दबाव नरहेको बताएका छन् । तर, घटनामा संलग्न भएका आशंका लागेकालाई पक्राउ गर्दै सोधपुछ गर्नु पर्ने भएकाले हत्यारा पत्ता लाग्न समय लागेको बताए ।
राष्ट्रियसभाको दिगो विकास तथा सुशासन समितिले निर्मला पन्तको हत्याको अनुसन्धानबारे छलफल गर्न प्रहरी महानिरीक्षक खनाललाई बोलाएको थियो । सांसदहरुले शान्ति सुरक्षाको अवस्था किन यति कमजोर भयो ? विगतमा राम्रो सफलता पाएको प्रहरी अनुसन्धान किन फितलो भयो ? निर्मला पन्तको बलात्कारपछि हत्या गर्नेहरु किन पत्ता लागेनन् जस्ता प्रश्न गरे ।
कांग्रेस सांसद रमेशजंग रायमाझी निर्मला-नमिता हत्याकाण्डमा दरबारमा मान्छे जस्तै निर्मला हत्याकाण्डमा शक्तिशाली को छन् भनेर प्रश्न गरे । उनले भने, ‘शक्तिशाली मान्छेलाई जोगाउन सरकारले प्रहरी प्रमुखलाई प्रयोग गरेको हुनसक्छ । सीआईबीले पनि प्रहरी प्रमुखको इन्ट्रेस्टमा काम गर्छ ।’
तत्कालीन डीआईजी एवं वर्तमान सांसद नवराज सिलवालले राजनीतिक प्रभावमा आफू आईजीपी हुन नसकेको भनेको भन्दै रायमाझीले खनाललाई प्रश्न गरे, ‘तपाईंले पनि आईजीपी नै परिर्वतन हुन्छ भनेर घटना उजागर नगरेको हो कि ?
सांसद प्रमिला यादवले सुरक्षा दिन नसक्ने हो भने पदबाट राजीनामा दिन आग्रह गरिन् । दक्षिण भारतीय फिल्ममा जस्तै निर्मला हत्याका दोषीलाई लुकाएर निर्दोषलाई यातना दिने काम भइरहेको भन्दै उनले यो रोक्नुपर्ने बताइन् ।
सत्तारुढ नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (नेकपा)का सांसद दिनानाथ शर्माले अपराधिक घटनामा राजनीतिकरण वा राजनीतिक प्रभाव हुन नहुने बताए । निर्मला हत्यामा पनि त्यस्तो भएको भए प्रहरी संगठन दृढतापूर्वक अगाडि आउन आग्रह गरे ।
कडि्कए आईजीपी खनाल
बैठकको सुरुमा धारणा राख्दा नरम देखिएका प्रहरी महानिरीक्षक खनाल जवाफ दिने क्रममा भने कडा रुपमा प्रस्तुत भए ।
संसदीय समितिमा संगठन र शान्ति सुरक्षाको विषय मात्र नभई व्यक्तिगत विषय आएको भन्दै असन्तुष्टि जनाएका उनले सुरुमा सांसदहरुलाई कडा वाण हाने । उनले भने, ‘मैले नै केही माननीयलाई समातेर जेलमा हालेको छु । यसको अर्थ सबैलाई अपमानित गर्न खोजेको होइन’ भन्दै उनले ड्यासिङ दिएका हुन् ।
केही प्रहरी अधिकारीले गलत गर्दा सिंगो संगठनलाई दोषारोपण गर्न नहुने उनले बताए ।
त्यसपछि उनले प्रहरीले गरेका कामको फेहरिस्त सुनाए । हालै मात्र प्रहरीले ई-गुड गभर्नेन्स अवार्ड पाएको, ऐन कानुन नहुँदा पनि आपसी सम्बन्धका आधारमा नेपालमा अपराध गरेर विदेश भागेकाहरुलाई पक्राउ गरिएको उनले बताए ।
लामो समयदेखि फरार ७३२ जना पक्राउ परेको, विप्लव समूहको आतंक अन्त्य गरेको, सीके राउतको राष्ट्रविरोधी गतिनिधि न्यूनीकरण गरेको उनले सुनाए । उनका अनुसार विप्लव समूहका ३४७ र सीके राउतसहित उनका ९४ जनालाई पक्राउ गरी मुद्दा चलाएको तथा १५२ थान अवैध हतियारसहित १५० भन्दा बढीलाई पक्राउ गरेको संसदीय समितिलाई जानकारी दिए ।
निर्मला हत्याबारे
प्रहरी महानिरीक्षक खनालले निर्मला हत्याबारे अनुसन्धान भइरहेको र यो साँघुरिँदै गएको बताए । तर, अभियुक्त पत्ता लाग्न कति समय लाग्छ भन्न नसक्ने बताए ।
आफू अपराध अनुसन्धान महाशाखा प्रमुख हुँदा बडीखेल घटनाका अभियुक्त १३ वर्षमा पक्राउ गरेको स्मरण गर्दै उनले भने, ‘कुनै कुनै घटनामा केही समय लाग्नसक्छ तर, हामीले अनुसन्धान नै नगरेको भन्ने होइन, काम भइरहेको छ ।’
आफूलाई कुनै दबाव नभएको र प्रहरीको अनुसन्धान कतैबाट प्रभावित नहुने उनले बताए । निर्मला हत्याको अनुसन्धान म्यानुअल्ली गर्नुपर्ने अवस्था आएको र यसमा शंकास्पद व्यक्तिलाई सोधपुछ गर्नुको विकल्प नभएको भन्दै खनालले भने, ‘सहज अनुसन्धानका लागि वातावरण बनाइदिन आग्रह गर्छु ।’
बर्दी फुकालिदिनुस्
आईजीपी खनालले आफूलाई दबाव नआएको मात्र होइन, आफूले पनि दबाव नदिएको स्पष्ट पारे । सीआईबीलाई आईजीपीले दबाव दिएको सांसदको टिप्पणीमा उनले भने, ‘मैले अहिलेसम्म दबाव दिएको पनि छैन, दिने पनि छैन ।’
अनुसन्धानमा इलाका प्रहरी, जिल्ला, संघीय प्रहरी, प्रदेश लगायतका थुप्रै तह हुने भन्दै उनले भने, ‘मैले चाहेर पनि कसैलाई लुकाउन दबाव दिन सक्ने अवस्था हुँदैन । यदि दबाव दिएको भेट्टाउनुभयो संसदबाट मेरो बर्दी फुकालिदिनुस् ।’
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