#दोनों ही पाप के भ
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#यदि नारी न होती तो नारी को जो बुरी कहते हैं#वे कहाँ से जन्म लेते ? भावार्थ स्पष्ट है कि दुराचारी चाहे स्त्री हो या पुरुष#दोनों ही पाप के भ
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( #Muktibodh_part214 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part215
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 411-412
भावार्थ :- वेदों में वर्णित विधि से तथा अन्य प्रचलित क्रियाओं से ब्रह्म प्राप्ति नहीं है। इसलिए उस चुणक ऋषि को परमात्मा प्राप्ति तो हुई नहीं, सिद्धियाँ प्राप्त हो गई। ऋषियों ने उसी को भक्ति की अन्तिम उपलब्धि मान लिया। जिसके पास अधिक सिद्धियाँ होती थी, वह अन्य ऋषियों से श्रेष्ठ माना जाने लगा। यही उपलब्धि चुणक ऋषि को प्राप्त थी।
एक मानधाता चक्रवर्ती राजा (जिसका राज्य पूरी पृथ्वी पर हो, ऐसा शक्तिशाली राजा) था। उसके पास 72 अक्षौहिणी सेना थी। राजा ने अपने आधीन राजाओं को कहा कि जिसको मेरी पराधीनता स्वीकार नहीं, वे मेरे साथ युद्ध करें, एक घोड़े के गले में एक पत्र बाँध दिया कि जिस राजा को राजा मानधाता की आधीनता स्वीकार न हो, वो इस घोड़े को पकड़ ले और युद्ध के लिए तैयार हो जाए। पूरी पृथ्वी पर किसी भी राजा ने घोड़ा नहीं पकड़ा। घोड़े के साथ कुछ सैनिक भी थे। वापिस आते समय ऋषि चुणक ने पूछा कि कहाँ गए थे सैनिको! उत्तर मिला कि पूरी पृथ्वी पर घूम आए, किसी ने घोड़ा नहीं पकड़ा। किसी
ने राजा का युद्ध ��हीं स्वीकारा। ऋषि ने कहा कि मैंने यह युद्ध स्वीकार लिया। सैनिक बोले हे कंगाल! तेरे पास दाने तो खाने को हैं नहीं और युद्ध करेगा महाराजा मानधाता के साथ?
ऋषि चुणक जी ने घोड़ा पकड़कर वृक्ष से बाँध लिया। मानधाता राजा को पता चला तो युद्ध की तैयारी हुई। राजा ने 72 अक्षौहिणी सैना की चार टुकडि़याँ बनाई। ऋषि पर हमला करने के लिए एक टुकड़ी 18 अक्षौहिणी (18 करोड़) सेना भेज दी । दूसरी ओर ऋषि ने अपनी सिद्धि से चार पूतलियाँ बनाई। एक पुतली छोड़ी जिसने राजा की 18 अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। राजा ने दूसरी टुकड़ी भेजी। ऋषि ने दूसरी पुतली छोड़ी, उसने दूसरी टुकड़ी 18 अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। इस प्रकार चुणक ऋषि ने मानधाता राजा की चार पुतलियों से 72 अक्षौहिणी सेना नष्ट कर दी। जिस कारण से महर्षि चुणक की महिमा पूरी पृथ्वी पर फैल गई।
हे धर्मदास! (जिन्दा रुप धारी परमात्मा बोले) ऋषि चुणक ने जो सेना मारी, ये पाप कर्म ऋषि के संचित कर्मों में जमा हो गए। ऋषि चुणक ने जो ऊँ (ओम्) एक अक्षर का जाप किया, वह उसके बदले ब्रह्मलोक में जाएगा। फिर अपना ब्रह्म लोक का सुख समय व्यतीत
करके पृथ्वी पर जन्मेगा। जो हठ योग तप किया, उसके कारण पृथ्वी पर राजा बनेगा। फिर मृत्यु के उपरान्त कुत्ते का जन्म होगा। जो 72 अक्षौहिणी सेना मारी थी, वह अपना बदला लेगी। कुत्ते के सिर में जख्म होगा और उसमें कीड़े बनकर 72 अक्षौहिणी सेना अपना बदला चुकाएगी। इसलिए हे धर्मदास! गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) ने अपनी साधना से होने वाली गति को अनुत्तम (अश्रेष्ठ) कहा है।
प्रश्न (धर्मदास जी का) :- हे जिन्दा! मैंने एक महामण्डलेश्वर से प्रश्न किया था कि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भगवान कृष्ण जी ने किस परमेश्वर की शरण में जाने के लिए कहा है? उस मण्डलेश्वर ने उत्तर दिया था कि भगवान श्री कृष्ण से अतिरिक्त कोई
भगवान ही नहीं। कृष्ण जी ही स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं, वे अपनी ही शरण आने के लिए कह रहे हैं, बस कहने का फेर है। हे जिन्दा जी! कृपया मुझ अज्ञानी का भ्रम निवारण करें।
उत्तर : (जिन्दा बाबा परमेश्वर का) :- हे धर्मदास! ये माला डाल हुए हैं मुक्ता। षटदल उवा-बाई बकता।
आपके सर्व मण्डलेश्वर अर्थात् तथा शंकराचार्य अट-बट करके भोली जनता को भ्रमित कर रहे हैं। कह रहे हैं कि गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अर्जुन को अपनी
शरण में आने को कहता है, यह बिल्कुल गलत है क्योंकि गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि ‘हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ठीक से काम नहीं कर रही है। मैं आप का शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। जो मेरे हित में हो, वह ज्ञान मुझे दीजिए। हे धर्मदास! अर्जुन तो पहले ही श्री कृष्ण की शरण में था। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने ��पने से अन्य ‘परम अक्षर ब्रह्म’ की शरण में जाने के लिए कहा है। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू मेरा भक्त है। इसलिए यह गीता शास्त्र सुनाया है। गीता ज्ञान दाता से अन्य पूर्ण परमात्मा का अन्य प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 11 से 28, 30, 31, 34 में भी है। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि शरीर को क्षेत्र कहते हैं जो इस क्षेत्रा अर्थात् शरीर को जानता है, उसे “क्षेत्रज्ञ” कहा जाता है। (गीता अध्याय 13 श्लोक 1)
गीता अध्याय 13 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि :- मैं क्षेत्रज्ञ हूँ। क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ दोनों को जानना ही तत्त्वज्ञान कहा जाता है, ऐसा मेरा मत है। गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी भक्ति अव्याभिचारिणी होनी चाहिए। जैसे अन्य देवताओं की
साधना तो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में व्यर्थ कही हैं। केवल ब्रह्म की भक्ति करें। उसके
विषय में यहाँ कहा है कि अन्य देवता में आसक्त न हों। भावार्थ है कि भक्ति व मुक्ति के लिए ज्ञान समझें, वक्ता बनने के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त वक्ता बनने के लिए ज्ञान सुनना अज्ञान है। पतिव्रता स्त्री की तरह केवल मुझमें आस्था रखकर भक्ति करें और मनुष्यों में बैठकर बातें बनाने का स्वभाव नहीं होना चाहिए। एकान्त स्थान में रहकर भक्ति करें।
गीता अध्याय 13 श्लोक 11 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान में रूचि रखकर तत्त्व ज्ञान के लिए सद्ग्रन्थों को देखना तत्त्वज्ञान है, वह ज्ञान है तथा तत्त्वज्ञान की अपेक्षा कथा कहानियाँ सुनाना, सुनना, शास्त्रविधि विरूद्ध भक्ति करना यह सब अज्ञान है।
तत्त्वज्ञान के लिए परमात्मा को जानना ही ज्ञान है।
गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से “परम ब्रह्म” यानि श्रेष्ठ परमात्मा का ज्ञान करवाया है, जो परमात्मा (ज्ञेयम्) जानने योग्य है, जिसको जानकर (अमृतम् अश्नुते) अमरत्व प्राप्त होता है अर्थात् पूर्ण मोक्ष का अमृत जैसा आनन्द भोगने को
मिलता है। उसको भली-भाँति कहूँगा। (तत्) वह दूसरा (ब्रह्म) परमात्मा न तो सत् कहा जाता है अर्थात् गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में कहा है कि जो तत्त्वज्ञान है, उसमें परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है, वह तत्त्वज्ञान परमात्मा अपने मुख कमल से स्वयं उच्चारण करके बोलता है। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्त जानते हैं, उनको दण्डवत् प्रणाम करने से, नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले
तत्त्वदर्शी सन्त तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता को परमात्मा का पूर्ण ज्ञान नहीं है। इसलिए कह रहा है कि वह दूसरा परमात्मा जो गीता ज्ञान
दाता से भिन्न है। वह न सत् है, न ही असत्। यहाँ पर परब्रह्म का अर्थ सात शंख ब्रह्माण्ड वाले परब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 16 वाले अक्षर पुरूष से नहीं है। यहाँ (पर माने दूसरा और ब्रह्म माने परमात्मा) ब्रह्म से अन्य परमात्मा पूर्ण ब्रह्म का वर्णन है।
भावार्थ :- गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि जो मेरे से दूसरा ब्रह्म अर्थात् प्रभु है वह अनादि वाला है। अनादि का अर्थ है जिसका कभी आदि अर्थात् शुरूवात न हो, कभी जन्म न हुआ हो। गीता ज्ञानदाता क्षर पुरूष है, ��से “ब्रह्म” भी कहा जाता है। इसने गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, 9, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में स्वयं स्वीकारा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञानदाता अनादि वाला “ब्रह्म” अर्थात् प्रभु नहीं है। इससे यह सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञानदाता ने अध्याय 13 के श्लोक 12 में अपने से अन्य अविनाशी परमात्मा की महिमा कही है। (अध्याय 13 श्लोक 12)
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 411-412
भावार्थ :- वेदों में वर्णित विधि से तथा अन्य प्रचलित क्रियाओं से ब्रह्म प्राप्ति नहीं है। इसलिए उस चुणक ऋषि को परमात्मा प्राप्ति तो हुई नहीं, सिद्धियाँ प्राप्त हो गई। ऋषियों ने उसी को भक्ति की अन्तिम उपलब्धि मान लिया। जिसके पास अधिक सिद्धियाँ होती थी, वह अन्य ऋषियों से श्रेष्ठ माना जाने लगा। यही उपलब्धि चुणक ऋषि को प्राप्त थी।
एक मानधाता चक्रवर्ती राजा (जिसका राज्य पूरी पृथ्वी पर हो, ऐसा शक्तिशाली राजा) था। उसके पास 72 अक्षौहिणी सेना थी। राजा ने अपने आधीन राजाओं को कहा कि जिसको मेरी पराधीनता स्वीकार नहीं, वे मेरे साथ युद्ध करें, एक घोड़े के गले में एक पत्र बाँध दिया कि जिस राजा को राजा मानधाता की आधीनता स्वीकार न हो, वो इस घोड़े को पकड़ ले और युद्ध के लिए तैयार हो जाए। पूरी पृथ्वी पर किसी भी राजा ने घोड़ा नहीं पकड़ा। घोड़े के साथ कुछ सैनिक भी थे। वापिस आते समय ऋषि चुणक ने पूछा कि कहाँ गए थे सैनिको! उत्तर मिला कि पूरी पृथ्वी पर घूम आए, किसी ने घोड़ा नहीं पकड़ा। किसी
ने राजा का युद्ध नहीं स्वीकारा। ऋषि ने कहा कि मैंने यह युद्ध स्वीकार लिया। सैनिक बोले हे कंगाल! तेरे पास दाने तो खाने को हैं नहीं और युद्ध करेगा महाराजा मानधाता के साथ?
ऋषि चुणक जी ने घोड़ा पकड़कर वृक्ष से बाँध लिया। मानधाता राजा को पता चला तो युद्ध की तैयारी हुई। राजा ने 72 अक्षौहिणी सैना की चार टुकडि़याँ बनाई। ऋषि पर हमला करने के लिए एक टुकड़ी 18 अक्षौहिणी (18 करोड़) सेना भेज दी । दूसरी ओर ऋषि ने अपनी सिद्धि से चार पूतलियाँ बनाई। एक पुतली छोड़ी जिसने राजा की 18 अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। राजा ने दूसरी टुकड़ी भेजी। ऋषि ने दूसरी पुतली छोड़ी, उसने दूसरी टुकड़ी 18 अक्षौहिणी सेना का नाश कर दिया। इस प्रकार चुणक ऋषि ने मानधाता राजा की चार पुतलियों से 72 अक्षौहिणी सेना नष्ट कर दी। जिस कारण से महर्षि चुणक की महिमा पूरी पृथ्वी पर फैल गई।
हे धर्मदास! (जिन्दा रुप धारी परमात्मा बोले) ऋषि चुणक ने जो सेना मारी, ये पाप कर्म ऋषि के संचित कर्मों में जमा हो गए। ऋषि चुणक ने जो ऊँ (ओम्) एक अक्षर का जाप किया, वह उसके बदले ब्रह्मलोक में जाएगा। फिर अपना ब्रह्म लोक का सुख समय व्यतीत
करके पृथ्वी पर जन्मेगा। जो हठ योग तप किया, उसके कारण पृथ्वी पर राजा बनेगा। फिर मृत्यु के उपरान्त कुत्ते का जन्म होगा। जो 72 अक्षौहिणी सेना मारी थी, वह अपना बदला लेगी। कुत्ते के सिर में जख्म होगा और उसमें कीड़े बनकर 72 अक्षौहिणी सेना अपना बदला चुकाएगी। इसलिए हे धर्मदास! गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) ने अपनी साधना से होने वाली गति को अनुत्तम (अश्रेष्ठ) कहा है।
प्रश्न (धर्मदास जी का) :- हे जिन्दा! मैंने एक महामण्डलेश्वर से प्रश्न किया था कि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भगवान कृष्ण जी ने किस परमेश्वर की शरण में जाने के लिए कहा है? उस मण्डलेश्वर ने उत्तर दिया था कि भगवान श्री कृष्ण से अतिरिक्त कोई
भगवान ही नहीं। कृष्ण जी ही स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं, वे अपनी ही शरण आने के लिए कह रहे हैं, बस कहने का फेर है। हे जिन्दा जी! कृपया मुझ अज्ञानी का भ्रम निवारण करें।
उत्तर : (जिन्दा बाबा परमेश्वर का) :- हे धर्मदास! ये माला डाल हुए हैं मुक्ता। षटदल उवा-बाई बकता।
आपके सर्व मण्डलेश्वर अर्थात् तथा शंकराचार्य अट-बट करके भोली जनता को भ्रमित कर रहे हैं। कह रहे हैं कि गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अर्जुन को अपनी
शरण में आने को कहता है, यह बिल्कुल गलत है क्योंकि गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि ‘हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ठीक से काम नहीं कर रही है। मैं आप का शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। जो मेरे हित में हो, वह ज्ञान मुझे दीजिए। हे धर्मदास! अर्जुन तो पहले ही श्री कृष्ण की शरण में था। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य ‘परम अक्षर ब्रह्म’ की शरण में जाने के लिए कहा है। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू मेरा भक्त है। इसलिए यह गीता शास्त्र सुनाया है। गीता ज्ञान दाता से अन्य पूर्ण परमात्मा का अन्य प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 11 से 28, 30, 31, 34 में भी है। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि शरीर को क्षेत्र कहते हैं जो इस क्षेत्रा अर्थात् शरीर को जानता है, उसे “क्षेत्रज्ञ” कहा जाता है। (गीता अध्याय 13 श्लोक 1)
गीता अध्याय 13 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि :- मैं क्षेत्रज्ञ हूँ। क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ दोनों को जानना ही तत्त्वज्ञान कहा जाता है, ऐसा मेरा मत है। गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी भक्ति अव्याभिचारिणी होनी चाहिए। जैसे अन्य देवताओं की
साधना तो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में व्यर्थ कही हैं। केवल ब्रह्म की भक्ति करें। उसके
विषय में यहाँ कहा है कि अन्य देवता में आसक्त न हों। भावार्थ है कि भक्ति व मुक्ति के लिए ज्ञान समझें, वक्ता बनने के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त वक्ता बनने के लिए ज्ञान सुनना अज्ञान है। पतिव्रता स्त्री की तरह केवल मुझमें आस्था रखकर भक्ति करें और मनुष्यों में बैठकर बातें बनाने का स्वभाव नहीं होना चाहिए। एकान्त स्थान में रहकर भक्ति करें।
गीता अध्याय 13 श्लोक 11 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान में रूचि रखकर तत्त्व ज्ञान के लिए सद्ग्रन्थों को देखना तत्त्वज्ञान है, वह ज्ञान है तथा तत्त्वज्ञान की अपेक्षा कथा कहानियाँ सुनाना, सुनना, शास्त्रविधि विरूद्ध भक्ति करना यह सब अज्ञान है।
तत्त्वज्ञान के लिए परमात्मा को जानना ही ज्ञान है।
गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से “परम ब्रह्म” यानि श्रेष्ठ परमात्मा का ज्ञान करवाया है, जो परमात्मा (ज्ञेयम्) जानने योग्य है, जिसको जानकर (अमृतम् अश्नुते) अमरत्व प्राप्त होता है अर्थात् पूर्ण मोक्ष का अमृत जैसा आनन्द भोगने को
मिलता है। उसको भली-भाँति कहूँगा। (तत्) वह दूसरा (ब्रह्म) परमात्मा न तो सत् कहा जाता है अर्थात् गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में कहा है कि जो तत्त्वज्ञान है, उसमें परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है, वह तत्त्वज्ञान परमात्मा अपने मुख कमल से स्वयं उच्चारण करके बोलता है। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्त जानते हैं, उनको दण्डवत् प्रणाम करने से, नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले
तत्त्वदर्शी सन्त तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता को परमात्मा का पूर्ण ज्ञान नहीं है। इसलिए कह रहा है कि वह दूसरा परमात्मा जो गीता ज्ञान
दाता से भिन्न है। वह न सत् है, न ही असत्। यहाँ पर परब्रह्म का अर्थ सात शंख ब्रह्माण्ड वाले परब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 16 वाले अक्षर पुरूष से नहीं है। यहाँ (पर माने दूसरा और ब्रह्म माने परमात्मा) ब्रह्म से अन्य परमात्मा पूर्ण ब्रह्म का वर्णन है।
भावार्थ :- गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि जो मेरे से दूसरा ब्रह्म अर्थात् प्रभु है वह अनादि वाला है। अनादि का अर्थ है जिसका कभी आदि अर्थात् शुरूवात न हो, कभी जन्म न हुआ हो। गीता ज्ञानदाता क्षर पुरूष है, इसे “ब्रह्म” भी कहा जाता है। इसने गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, 9, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में स्वयं स्वीकारा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञानदाता अनादि वाला “ब्रह्म” अर्थात् प्रभु नहीं है। इससे यह सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञानदाता ने अध्याय 13 के श्लोक 12 में अपने से अन्य अविनाशी परमात्मा की महिमा कही है। (अध्याय 13 श्लोक 12)
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🚩 टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ -23 मार्च 2021
🚩 अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।
🚩 जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-दुनिया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।
🚩 भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम ��स प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।
शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?
🚩 वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह
अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?
उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए योजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।
🚩 सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए? अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्र��मेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्यादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?
🚩 लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?
भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की लाठी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।
🚩 अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।
🚩 लाला लाजपत राय एक राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की री��� मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय जिस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?
🚩 जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।
🚩 वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी खुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।
आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे
🚩 भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी वेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है और इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।
🚩 भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था।1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन क��या था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके बाद कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर सवाल उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे।
🚩 उन्होंने लिखा है: “मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”
ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष्य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।
आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह
🚩 स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे।पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं? असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन कर के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।
🚩 आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।
🚩 आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।
🚩 और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत सिंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1374190412810743809?s=19
🚩 आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वचन निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?
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©pramilaprem
Lockdown के पिरियड में बैठे थे हम घर पर खाली,
तभी jss के लोकेशजी ने शुरू की भ.महावीर के धर्म की दलाली!!
घर बैठे सही जिवन जीने की कला पर हुई चर्चा
जिसे समझ के अपना रहे हे, सभी बड़े और बच्चा!!
भ. महावीर के सही धर्म का बिगुल हे इन्होंने बजाया,
सोचो तो सही, समझो तो सही, केहते हुए, लोगों के सोये मन को हे जगाया!!
बिना समकित के किया गया धर्म हे अधुरा ,
जो जैसा हे उसको वैसा समझने में हे धर्म का सार पूरा!!!
समकित के साथ हम आगे बढे चौदह नियम कि और,
पहाड़ जीतने पाप को राई जीतना करने का हे मज़ा ही कुछ और!!
इस बीच हमने किया , कमला की रसोई की सैर,
जहां सिखाया गया यतना से रखना चाहिए रसोई में पैर!!
यहां तक आने के बाद हमने समझी धर्म कि गेहराई,
फिर लोकेशजी ने नव तत्व कि क्लास लगाई!
जीव तत्व मे हमने जाना आत्मा हे, अजीव से ममत्व हटाना है,
पुन्य को बढ़ाना और जीवन में पाप को घटाना हे!!
हमे आश्रव से बच के, हमेशा संवर मे रेहना हे,
पूर्व कर्मों की निर्जरा कर नये बंधन से बचना है!!
लोकेश और सोमाजी ने, शुद्ध सामायिक की सिख दी,
हम सब को ,सच्चा श्रावक व श्राविका बनने की तैयारी करा दी!!!
आप दोनों का हे बहुत बहुत आभार,
हम सब का धन्यवाद करो स्वीकार!!!!
प्रेमिला प्रेम!!
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