#देश में एक साथ कई बीमारियां
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मुश्किल वक्त है! कोरोना, निपाह, डेंगू, रहस्यमय बुखार... एक साथ कई बीमारियों से लड़ रहा देश
मुश्किल वक्त है! कोरोना, निपाह, डेंगू, रहस्यमय बुखार… एक साथ कई बीमारियों से लड़ रहा देश
नई दिल्ली देश ने इस तरह के मुश्किल समय का सामना शायद ही किया है। एक साथ कई बीमारियों ने हम पर हमला कर दिया है। कोरोना से अभी पिंड छूटा भी नहीं है कि निपाह, डेंगू और रहस्यमय बुखार ने चिंता बढ़ा दी है। देश में कोविड-19 की तीसरी लहर के खतरे के बीच यूपी में ‘रहस्यमय बुखार’ सैकड़ों लोगों की जानें लील चुका है। दिनों दिन प्रदेश में इसका कहर बढ़ता जा रहा है। वहीं, कोरोना और जीका के बाद केरल में निपाह…
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🚩वैज्ञानिक : पिज्जा, बर्गर बीमारियां बढ़ाता है, भारतीय भोजन बीमारियां मिटाता है - 15 सितंबर 2021
🚩जर्मनी के वैज्ञानिकों ने लंबी शोध के बाद निष्कर्ष निकाला कि विदेशी फास्टफूड बर्गर, पिज़ा आदि बीमारियों को बुलावा लाता है जबकि भारतीय भोजन दाल-चावल, सोयाबीन आदि बीमारियों को मिटाने का काम करता है।
🚩भारतीय लोग अपने आहार का महत्व नहीं समझकर विदेशी लोग का अंधानुकरण करके स्वाद के लिए पिज़ा, बर्गर, चिप्स आदि खाने लगे हैं जिसके कारण आज लगभग हर व्यक्ति को कुछ न कुछ बीमारी पकड़ लेती है फिर डॉक्टरों के पास चक्कर काटता रहता है पर बीमारी ठीक नहीं हो पाती है, अब हमें अपने भोजन का महत्व समझकर भोजन करना चाहिए और बीमारियों को बुलावा देने वाले फास्टफूड आदि का त्याग करना चाहिए।
🚩जर्मनी के वैज्ञानिकों ने बीमारी पर शोध किया:
जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ़ L .beck के हालिया अध्ययन में कहा गया ��ै कि भारतीय आहार खराब डीएनए के कारण होने वाली बीमारी को मार सकता है। शोध में यह भी पाया गया कि डीएनए, न केवल डीएनए, बीमारियों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है, बल्कि आहार भी सबसे महत्वपूर्ण है जो बीमारी का कारण बन सकता है और इस पर एक स्पंज डाल सकता है। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉल्फ लुडविक के नेतृत्व में तीन वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए शोध प्रकाशित किए गए थे। तीन शोधकर्ताओं में डॉ. आर्टेम वोरोवैव, इज़राइल के डॉ. तान्या शेजीन और डॉ यास्का गुप्ता शामिल हैं। 2 वर्षों तक चूहों में किए गए शोध से पता चलता है कि पश्चिमी देश में उच्च कैलोरी आहार बीमारी को बढ़ाते हैं। जबकि भारत का कम कैलोरी वाला आहार बीमारियों से बचाता है।
🚩फास्ट फूड, जैसे पिज्जा, बर्गर, आनुवांशिक बीमारियों को बढ़ाता है ।
डॉ. गुप्ता ने जर्मनी से भास्कर को बताया कि अब तक सभी आनुवंशिक बीमारियां केवल डीएनए में दिखाई देती थीं। इस शोध में इसे आहार पर ध्यान केंद्रित करके मापा गया है। शोधकर्ताओं ने ल्यूपस नामक बीमारी से पीड़ित चूहों के एक समूह पर प्रयोग किया। ल्यूपस बीमारी सीधे डीएनए से संबंधित है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करता है और विभिन्न अंगों और जोड़ों, गुर्दे, हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और रक्त कोशिकाओं को नष्ट करता है। डॉ. यास्का गुप्ता ने कहा कि इस शोध के परिणामों से पता चलता है कि पश्चिमी देशों में पिज्जा, बर्गर जैसे फास्ट फूड से भारत के शाकाहारी भोजन - चावल, सोयाबीन तेल, दाल, सब्जियां, विशेष रूप से जड़ी-बूटियों को बढ़ाने में मदद मिलती है - शरीर को इन बीमारियों से बचाता है। है। - स्त्रोत : भास्कर
🚩कौन से फास्ट से फूड क्या नुकसान होता है?
🚩पेस्ट्री - पेस्ट्री में अधिक मात्रा में शुगर, फेट और कैलोरी होती है। पेस्ट्री खाने की आदत आपका मोटापा बढ़ा सकती है। इसलिए थोड़ा ध्यान रखें क्योंकि पेस्ट्री शरीर को काफी नुकसान देती है।
🚩पिज्जा - पिज्जा की लत से आपको दिल संबंधी बीमारी हो सकती है। इसमें कोलेस्ट्रोल के कारण आपकी आर्ट्रीज बंद हो सकती हैं और इससे हार्ट अटैक भी आ सकता है।
🚩पाइज - पाइज खाने में स्वादिष्ट है लेकिन एक अध्ययन में पता चला है कि यह शरीर के लिए बेहद नुकसानदेह है। पाइज खाने से आगे चलकर शुगर लेवल बढ़ने और मधुमेह की समस्या आती है।
🚩बर्गर - बर्गर से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही दिल की बीमारी भी हो सकती है। यह डाइटरी कोलेस्ट्रोल को तेजी से बढ़ाता है और बर्गर से हाइ ब्लड प्रेशर की भी परेशानी है।
🚩सैंडविच - सैंडविच खाने की आदत आपका मोटापा बढ़ा देगी।
🚩चिप्स - चिप्स खाने से शरीर को नुकसान होता है। चिप्स में कैलोरी ज्यादा होती है जिसके कारण फेट बढ़ता है। नियमित चिप्स खाने वालों को वजन बढ़ने की समस्या हो जाती है। चिप्स खाने से कोलेस्ट्रोल भी बढ़ता है। सोडियम ज्यादा मात्रा में होने के कारण हाई ब्लड प्रेशर भी हो जाता है।
🚩सॉफ्ट ड्रिंक्स - सॉफ्ट ड्रिंक्स भी लोग काफी पीते हैं और कई लोगों ने तो रोजाना सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने की आदक डाल रखी है। मगर इससे समस्या भी उतनी ही है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने वालों को दांतों में सड़न बहुत तेजी से हो सकती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से मोटापा और छाती में जलन की परेशानी भी धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकती है। - स्त्रोत : अमर उजाला
🚩अब आपने देखा कि फास्टफूड शरीर को कितना नुकसान पहुँचता है अतः इससे बचने के लिए हमारा भारतीय भोजन करें। यह ध्यान रखें कि हमारा पेट गटर नहीं है इसलिए कोई भी बीमारी करे ऐसा भोजन नहीं करे।
🚩भारतीय लोग अपनी संस्कृति की महिमा खुद नहीं समझते, जबतक विदेश के कोई वैज्ञानिक नहीं बोल दें जबकि आज के वैज्ञानिक जो शोध कर रहे हैं वे शोध हमारे ऋषि-मुनि लाखों साल पहले बता चुके हैं पर भारतीय उनका आदर करे तब न, जब भारतीय लोग खुद की संस्कृति का आदर करने लगेंगे तब दुनिया भी भारतीय संस्कृति अपनाकर अपने को धन्य मानेंगी।
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नागरिकता कानून की आड़ में संघी एजेंडा लागू करना बंद करो!
देश को हिन्दू राष्ट्र में बदलने कीसाजिश का पुरजोर विरोध करो नागरिकता कानून की आड़ में संघी एजेंडा लागू करना बंद करो! एक तरफ जब देश भर में विवादित नागरिकता कानून पर लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार की जन विरोधी कार्यवाही का भुगतभोगी बन रहे हैं, वैसे में सरकार ने अब एक और घोषणा की। 2020 की अप्रैल से सितंबर तक वह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एन पी आर) को अपडेट करेगी। यह कदम वह तब करने जा रही है, जबकि पहले एन आर सी और फिर कैब के अंतर्गत लाखों लोग भारत की नागरिकता सूची से बाहर हो आज बिना नागरिकता वाल�� हो चुके हैं। वह भी तब जब एन आर सी अभी केवल उत्तर पूर्व के ही राज्य में शुरू हुआ है। कैब भी एन आर सी हुआ अधिनियम है, एन आर सी जहां लोगों को भारत की नागरिक होने और ना होने की शिनाख्त करता है, वहीं सी.ए.ए विदेशी नागरिकों को के दक्षिण एशिया के देशों से आये शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के लिए लाया कानून है। सी.ए.ए कानून के बन जाने के बाद भारत की नागरिकता का मख्य आधार व्यक्ति का धर्म हो गया है ना की उसकी कोई और बात। यह बिल भाजपा – आरएसएस की लाइन के मुताबिक बनाया गया है, जिन्हें भारत को एक हिन्दू राष्ट्र के तौर पर पेश करना है।आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह से नाकम सरकार ने मेहनतकश, बेरोजगार युवाओं और अन्य देशवासियों को बहकाने के लिए अब अंध-राष्ट्रवाद और हिन्द-आधिपत्यवाद का न्य शगूफा नागरिकता बिल के माध्यम से छेडा है। हिन्द बहुसंख्यकों के हिस्से को धर्म के नाम पर वः भड़का कर पूंजीपतियों के पीछे रखना चाहती है। साथ ही मुस्लिम बहुल इलाकों में विस्थापित विदेश से आये हिन्दुओं को बसा वो अपने राज को मजबूती प्रदान करवाना चाहती है। मोदी सरकार की यह नीतियां इस बात की भी पुष्टि करती है कि भारत सरकार ने 70 साल बाद दो राष्ट्र सिद्धांत को आखिरकार मान लिया। दो राष्ट्र सिद्धांत या दो क़ौमी सिद्धांत, के मुताबिक हिन्दू और मुसलामन एक राष्ट्र नहीं है बल्कि दो अलग अलग राष्ट्र है, और वे एक साथ नहीं रह सकते। बीएस मुंजे, भाई परमानंद, विनायक दामोदर सावरकर, एमएस गोलवलकर और अन्य हिंदू राष्ट्रवादियों के अनुसार भी दो राष्ट्र सिद्धांत सही था और वे भी हिन्दू मुसलमानों को अपना अलग अलग देश की वकालत कर रहे थे, उन्होंने न केवल इस सिद्धांत की वकालत की बल्कि आक्रामक रूप से यह मांग भी उठाई कि भारत हिन्दू राष्ट्र है जहाँ मुसलमानों का कोई स्थान नहीं है। भारत विभाजन में जितना योगदान लीग का रहा उससे कम आरएसएस और हिन्दू दलों का नहीं था। आज राष्ट्रवाद और अखंड भारत का सर्टिफिकेट बांटने वाले भी देश के बंटवारे में लीग जितना ही शरीक थे, यह बात हमे नहीं भूलनी चाहिए। हिन्द महासभा के संस्थापक राजनारायण बसु ने तो 19वीं शताब्दी में ही हिन्दु राष्ट्र और दो राष्ट्र का सिद्धांत पर अपनी प्रस्थापना रखनी शुरू कर दी थी। हिन्दू राष्ट्र के बारे में उन्होंने कहा था, "सर्वश्रेष्ठ व पराक्रमी हिंदू राष्ट्र नींद से जाग गया है और आध्यात्मिक बल के साथ विकास की ओर बढ़ रहा है। मैं देखता हूं कि फिर से जागृत यह राष्ट्र अपने ज्ञान, आध्यात्मिकता और संस्कृति क��� आलोक से संसार को दोबारा प्रकाशमान कर रहा है। हिंदू राष्ट्र की प्रभुता एक बार फिर सारे संसार में स्थापित हो रही है।" । बासु के ही साथी नभा गोपाल मित्रा ने राष्ट्रीय हिंदू सोसायटी बनाई और एक अख़बार भी प्रकशित करना शुरू किया था, इसमें उन्होंने लिखा था, “भारत में राष्ट्रीय एकता की बुनियाद ही हिंदू धर्म है। यह हिंदू राष्ट्रवाद स्थानीय स्तर पर व भाषा में अंतर होने के बावजूद भारत के प्रत्येक हिंदू को अपने में समाहित कर लेता है।” दो राष्ट्र का सिद्धांत फिर किस ने दिया इस पर हिंदुत्व कैंप के इतिहासकार कहे जाने वाले आरसी मजुमदार ने लिखा, "नभा गोपाल ने जिन्नाह के दो कौमी नजरिये को आधी सदी से भी पहले प्रस्तुत कर दिया था।" नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है। सरकार का मानना है कि इन देशों में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे हैं और उनको सरकार द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है, ऐसे में भारत का यह दाइत्व बनता है की हिन्दुओं की रक्षा करे। सरकार इस बात से पूरी तरह बेखबर है की भारत के कई पडोसी राज्यों में मुसलमान अल्पसंख्यक है और उनके साथ भी वहाँ के बहुसंख्यक जमात द्वारा जुल्म की खबर समय समय पर आती रहती है। श्री लंका में तो सिंघली और तमिल (हिन्द) के बीच दशकों से लगातार तनाव बना रहा है। तो क्या सभी तमिल जनता अब भारत आ सकती है? वही हाल बांग्लादेश और म्यांमार के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों का है, तो क्या इन सभी को भारत अपना नागरिक बनाने के लिए तैयार है? और हाँ, तो फिर इन गैर मुस्लिम शरणार्थी और सताए जा रहे मुस्लिम शरणार्थी जैसे रोहिंग्या, पाकिस्तान में शिया, अहमदिया, अफगानिस्तान के हजारा, उज़बेक इत्यादि के साथ यह सौतेला व्यव्हार क्यों? सरकार को इस पर भी जवाब देना होगा। रोहिंग्या के साथ साथ भारत में म्यांमार से चिन शरणार्थी भी बहुसंख्या में भारत में निवास कर रहे हैं, अफगानिस्तान से आये शरणार्थी को भारत ने पनाह दी थी, उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होगी? सीएए के लिए आंकडा एन पी आर से आएगा? नेशनल पापुलेशन रजिस्टर की बात कारगिल युद्ध के बाद शुरू हुई। सन 2000 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेय�� के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा गठित, कारगिल समीक्षा समिति ने नागरिकों और गैर-नागरिकों के अनिवार्य पंजीकरण की सिफारिश की सिफारिशों को 2001 में स्वीकार किया गया था और 2003 के नागरिकता (पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम पारित किए गए थे। इससे पहले एनपीआर को 2010 और 2015 में आयोजित किया गया था, 1955 नागरिकता अधिनियम में संशोधन के बाद एनपीआर को पहली बार 2004 में यूपीए सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था। संशोधन ने केंद्र को "भारत के प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य रूप से पंजीकृत करने और राष्ट्रीय पहचान पत्र" जारी करने की अनुमति दी। 2003 और 2009 के बीच चुनिंदा सीमा क्षेत्रों में एक पायलट परियोजना लागू की गई थी। अगले दो वर्षों (2009-2011) में एनपीआर तटीय क्षेत्रों में भी चलाया गया - इसका उपयोग मुंबई हमलों के बाद सुरक्षा बढ़ाने के लिए किया गया था - और लगभग 66 लाख निवासियों को निवासी पहचान पत्र जारी किए गए थे। इस बार एन पी आर की आंकड़े लेने में सरकार ने कुछ नए कॉलम जोड़ दिए। सरकार द्वारा 24 दिसंबर को घोषित राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) में लोगों को पहली बार "माता-पिता की जन्म तिथि और जन्म स्थान" भी बताना पड़ेगा। यह जानकारी, 2010 में एनपीआर के लिए एकत्र नहीं गयी थी। मतलब साफ है, सरकार इस बार ये आंकड़े इसलिए मांग रही है ताकि वो किसी भी व्यक्ति के बारे में तय कर सके कि उसकी नागरिकता प्रामाणिक है या नहीं। फिर उसके ऊपर एनआरसी और सीएए की विभिन्न प्रावधान के तहत कार्यवाही करने में कितना वक्त लगेगा? इस रजिस्टर में दर्ज जानकारी के लिए, सरकार कह रही है कि आपको कोई दस्तावेज़ या प्रमाण नहीं देने की ज़रूरत है। तो फिर सवाल उठता है कि इन जानकारी की ज़रूरत किस लिए है, सरकार इस जानकारी से क्या करने वाली है? अगर वह इसका इस्तेमाल गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं के लिए करेगी, तो इसके लिए पहले से ही आधार कार्ड बनवाया गया। सरकार अलग अलग सर्वे करवा योजनाओं की ज़रूरत पर आंकड़े इकट्ठा करती है। किसी की आर्थिक स्थिति जानने के लिए उसके माता पिता का नाम और जन्म स्थान की जानकारी किस लिए चाहिए? इन सवालों पर सरकार मौन है। अगर हम भाजपा के मंत्रियों और प्रधानमंत्री की बातों पर ध्यान दें तो उनके द्वारा झूठा प्रचार किसी खतरनाक साजिश की तरफ इशारा करता है। भाजपा और सरकार ने लगातार गलत सचना और कत्साप्रचार का सहारा ले रही है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गह मंत्री अमित शाह के विरोधाभासी का विरोध किया है। भाजपा ने दोनों के साथ अलग किया है आधिकारिक सरकार के रिलीज के पास कोई वास्तविक मूल्य नहीं है। यह सही लग रहा है कि इन झठ और गलत बया���ी के पीछे एक सोची समझी प्लान है, जिसका मकसद जनता के बीच भ्रम फैला कर असली योजना को कार्यान्वित करने का है। एक क्रम में सरकार कानूनों में बदलाव कर रही है। पहले मज़दूर कानूनों को ख़त्म कर पूँजीपतियों के पक्ष कर दिया गया, फिर आया एन आर सी और सी ए ए और अब एन पी आर, साथ ही सरकार कम्प्यूटर के डेटा सुरक्षा कानून भी लेन वाली है, मीडिया में रिपोर्ट के अनुसार इस कानून में सरकार किसी से भी किसी व्यक्ति के बारे में सूचना मांग सकती है। मतलब अब किसी की निजता नहीं रहेगी। मान लीजिये कि आप हस्पताल में भर्ती होते हैं, अस्पताल आपकी बीमारी और शरीर की सभी जानकारी कम्प्यूटर में दर्ज करती है। ये जानकारी आपकी निजी जानकारी होती है, लेकिन अब सरकार इन जानकारी को मांग सकती है। वो भी बिना आपकी इजाज़त के। इन जानकारियों को वो किसी भी तरह से इस्तेमाल करेगी। चाहे किसी दवा कंपनियों को बेच सकती है, या किसी को सामाजिक रूप से बेइज्जत करने के लिए। आज भी हमारे देश मे कई बीमारियों को सामाजिक रूप से शंका की नज़र से देखा जाता है जैसे एड्स, और अन्य गुप्त रोग वाली बीमारियां। सवाल यह है कि सरकार इन सूचना को इकट्ठा क्यो कर रही है और किसलिये, इस पर वह झूठ क्यों कहा रही है? असल मे सरकार पूरे देश को एक बड़े बाड़े में तब्दील करने पर आमादा है। उसने इसके लिए काम शुरू भी कर दिया है। कई जगहों पर डिटेंशन कैम्प बनाए जा रहे है। जहां लोगों को भेजने की तैयारी शुरू हो चुकी है। याद कीजिये हिटलर का यहूदियों और नाज़ी विरोधियों के लिए बनाया कंसन्ट्रेशन कैम्प। इन कैम्पों के कैदियों को केवल मौत के घाट नहीं उतारा गया बल्कि पहले उनसे गुलामों की तरह कमरतोड़ मेहनत करवा जाता था। उस समय तक पूँजीपतियों की कंपनियों में जानवरों की तरह काम करवाया जाता था जब तक उनकी मौत नहीं हो जाती थी। पूँजीपतियों को मुफ्त के मज़दूर मिले रहते थे, जिनके किसी तरह की कानूनी अधिकार नहीं था, मालिक की मर्जी तक वे काम करते थे और जिस दिन वो काम करने लायक नहीं रह जाते उसी दिन उनकी जिंदगी खत्म कर दी जाती थी। क्या मोदी सरकार, भारत में यही कैम्प बनाने की कवायद शुरू तो नहीं कर रही? अगर ऐसा है तो यह भारत के लिए दुर्दिन की शुरुआत है, मोदी की इन नीतियों की वजह से देश का सामाजिक ताना बाना टूटने वाला है, और फिर क्या हमारे देश की हालत अफ़ग़ानिस्तान, और अन्य देशों की तरह नहीं हो जाएगी जहां लोग एक दूसरे को खत्म करने में लग गए थे। देश गृह युद्ध की तरफ बढ़ जाएगा। इसलिए हम इस हिन्द बहलतावादी सोच और मस्लिम को दसरे दर्जे का नागरिक बनाने का कड़ा विरोध करते हैं. देश को अंधराष्ट्रवाद की जहरीली ��ाई में धकेलने की इस कार्यवाही के खिलाफ एकजुट होने की अपील भी करते हैं। हम तमाम साथियों से आह्वान करते हैं की इस खरतनाक साजिश के विरुद्ध एक हो कर मोदी सरकार के इस मंसूबे का विरोध करें। दोस्तों, अब समय आ गया है कि हम आम जनता आने वाले काले दिन के खिलाफ एक होकर संघर्ष करें। साथियों फासीवादी सरकार जनता को धर्म के नाम पर बाँट इस देश पर पूरी तरह से फासीवादी शासन लागू करना चाहती है। आज इसने मुसलमानों को अलग करने का काम शुरू किया है, आगे यह दलितों, आदिवासीयों और सभी दबे कुचलों के साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी। ब्राह्मणवादी-फासीवादी शासन की तरफ इसने एक क़दम उठा लिया है, अगर इसका विरोध नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में हमारी देश की जनता उस काले काननों और बर्बर शासन व्यवस्था में जीने को मजबूर हो जाएगी। आज समय है की हम एक साथ पूरे जोर से इस शासन को टक्कर दें और उसे बतला दें कि देश की जनता अब उसकी छद्म देशभक्ति के बहकावों में आने वाली नहीं है। देश का युवा, मेहनतकश जाग रहा है, इस आन्दोलन को अब नये ऊँचाई पर ले जाने का समय आ गया है, एनआरसी, सीएए, एनपीआर की लड़ाई को लम्बी राजनितिक संघर्ष में बदलने का समय आ गया है, आज एक बार फिर हमे सर्वहारा वर्ग की राजनीति को मध्य में लाना होगा और देश में आमूल परिवर्तन की लडाई को तेज़ करना होगा। नाम * तमाम नागरिकता कानून को वापिस लो * देश को धर्म के आधार पर बांटने का पुर जोर विरोध करो * नागरिकता कानून की आड़ में भाषाई, धार्मिक और जातिय आधार पर जनता को बाँटने के खिलाफ संघर्ष तेज़ करो * मोदी साकार द्वारा देश में फ़ासीवाद लाने की कोशिश को जन-एकता से ध्वस्त करो लोकपक्ष Phone: 886030502, Email: [email protected]
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सही स्त्री रोग विशेषज्ञ कैसे चुने?
एक स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी भी स्त्री के महिला अंगों की डॉक्टर होती है। किसी भी महिला के जीवन के पहले महीने के बारे में बताने से लेकरउसके जीवन के आखरी महीने या मेनोपॉज (menopause) से संबंधित सभी लक्षणों में उसकी सहायता करने तक, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी भी महिला के जीवन के प्रत्येक चरण पर उसकी सहायता करती है। बहुत से देशों में प्रसूति या प्रेगनेंसी (pregnancy) के डॉक्टर और स्त्री रोग विशेषज्ञ एक ही डॉक्टर होते हैं, जो महिलाओं के अंगों से जुडी सभी बीमारियों और प्रेगनेंसी का इलाज करते हैं।
विषय–सूची
1. स्त्री रोग विशेषज्ञ क्या करते हैं। 2. सही स्त्री रोग विशेषज्ञ का चयन कैसे करें 3. टेक आवे
स्त्री रोग विशेषज्ञ क्या करती है? किसी भी महिला का स्वास्थ्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसमे कई चीजे आती हैं, जैसे उनके महीने या पीरियड्स (periods), प्रेगनेंसी, बच्चे की डिलीवरी, और उसके बाद बच्चे ��र मां की देख रेख। किसी भी स्वस्थ समाज के लिए, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ बहुत जरूरी है क्योंकि औरतों के स्वास्थ्य को अकसर नज़रंदाज़ किया जाता है। एक स्त्री रोग विशेषज्ञ बनने में कई साल की मेहनत लगती है। सबसे पहले 5.5 साल की एम.बी.बी.एस (MBBS) की पढ़ाई खत्म करनी होती है। इसमें एक साल की इंटर्नशिप भी मौजूद होती है जिसके बाद ही कोई व्यक्ति एक डॉक्टर कहलाया जाता है। उसके बाद स्त्री रोग विशेषज्ञता में पोस्ट ग्रेजुएशन करके ही आप एक स्त्री रोग विशेषज्ञ बन सकते हैं। बहुत से डॉक्टर आगे भी पढ़ाई करते रहते हैं ताकि उन्हें इस विशेषज्ञता में और महारत हासिल हो। नीचे कुछ आम बीमारियां दी हैं, जिनका इलाज एक स्त्री रोग विशेषज्ञ करता है।
महीनों से संबंधित बीमारियां बहुत सी महिलाएं महीनों से संबंधित बीमारियों का सामना करती हैं जैसे बहुत ज्यादा खून बहना, हर महीने सही वक्त पर महीना ना आना, पीसीओएस (PCOS), गर्भ में फायब्रॉयड्स (fibroids) होना, आदि। इसके साथ साथ एक स्त्री रोग विशेषज्ञ महिलाओं को अपने महीने के दौरान सही तरीके से सफाई कैसे रखनी है और महीने के दौरान होने वाले लक्षणों के बारे में भी बताती है। हमारे देश में महीनों को ले कर कई गलत जानकारी फैली हुई हैं। एक स्त्री रोग विशेषज्ञ सुनिश्चित करती है की वो लोगों को सही जानकारी दे पाए।
महिला रेपेरोडक्टीव सिस्टम से संबंधित बीमारियां एक स्त्री रोग विशेषज्ञ महिला के रेपेरोडक्टीव सिस्टम से संबंधित बीमारियों का भी इलाज करती है। उससे जुड़ी किसी भी परेशानी को एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ही पहचान कर ठीक कर सकती है।
बांझपन या इनफर्टिलिटी (infertility) आज के ज़माने में कई दम्पति को बांझपन का सामना करना पड़ता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। अगर महिला में किसी बीमारी की वजह से बांझपन होता है तो उसे एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ही ढूंढ कर ठीक करते है।
यौन संक्रमण या STI
यौन संक्रमण ऐसी बीमारियां हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ संबंध बनाने से हो सकती है। एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ही ऐसे यौन संक्रमणों का इलाज करते है। इसके साथ साथ वो लोगों को सुरक्षित तरह से संबंध बनाने पर भी सलाह देती हैं।
श्रोणि तल (पेल्विक फ्लोर) हेल्थ
स्त्री रोग विशेषज्ञ पेल्विक फ्लोर हेल्थ का भी ध्यान रखती है और कई बीमारियां जैसे योनि में संक्रमण, यूटेराइन प्रोलैप्स (गर्भाशय खिसककर बच्चेदानी का बाहर आना), यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस और पेल्विक फ्लोर डिसफंक्शन आदि को होने से रोकते है
प्रेगनेंसी
एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, प्रेगनेंसी के हर चरण में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह समय समय पर कई टेस्ट और सोनोग्राफी कर के सुनिश्चित करती है की मां और बच्चा दोनो स्वस्थ है। डिलीवरी के समय, मां की प्रेगनेंसी के अनुसार वह यह निर्णय भी लेते है की डिलीवरी किस माध्यम से की जाएगी। अगर कोई जोड़ा बांझपन से पीड़ित है तो वह उसके इलाज में भी सहायता करते है।
कैंसर के लिए स्क्रीनिंग
स्त्री रोग विशेषज्ञ विभिन्न प्रकार के रेपेरोडक्टीव सिस्टम के कैंसर की जांच करते है और उसके अनुसार एक ऑन्कोलॉजिस्ट को संदर्भित करते हैं।
परिवार नियोजन या फैमिली प्लानिंग
स्त्री रोग विशेषज्ञ गर्भनिरोधक तरीकों, सर्जरी और प्रक्रियाओं का सुझाव देकर परिवार नियोजन में मदद करते है। इन सब बातों से पता चलता है कि एक स्त्री रोग विशेषज्ञ सिर्फ एक महिला के लिए ही नहीं बल्कि पूरे परिवार के लिए महत्वपूर्ण है। जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान और बच्चा पैदा होने के बाद एक दम सही इलाज और जानकारी मिली है, वो खुद तो स्वस्थ होती ही है और साथ में उनके बच्चे भी ज्यादा स्वस्थ होते हैं। इस के साथ साथ, समय समय पर एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाने से कई बीमारियां जैसे पीसीओएस, कैंसर, आदि सही समय पर पकड़े जा सकते हैं।
सही स्त्री रोग विशेषज्ञ का चुनाव कैसे करें?
सही स्त्री रोग विशेषज्ञ का चयन करते समय आपको कुछ चीजों का ध्यान रखना होगा। जरूरी नहीं है कि एक डॉक्टर जो किसी के लिए सही वो वही आपके लिए भी सही हो। इसलिए जरूरी है की आपको अच्छे से पता हो की आप किस कारण से एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहते हैं। नीचे कुछ ऐसे बातों के बारे में चर्चा की गई है जिनका आपको ध्यान रखना चाहिए।
आप एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श क्यों कर रहे हैं?
क्या आप सामान्य महिला रेपेरोडक्टीव हेल्थ के लिए दिखा रहे हैं, या प्रेगनेंसी या गर्भनिरोधक, या फैमिली प्लानिंग, आदि। इस प्रश्न का जवाब आपको एक दम साफ़ तरह से पता होना चाहिए।
आपके स्त्री रोग विशेषज्ञ किन अस्पतालों में काम करते हैं?
यह जानना बहुत जरूरी है की आपके स्त्री रोग विशेषज्ञ किस किस अस्पताल में काम करते हैं। ऐसा करना और भी आवश्यक है अगर आप प्रेगनेंसी के लिए एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ढूंढ रहे हैं क्योंकि प्रेगनेंसी में कभी भी आपको अस्पताल जाना पड़ सकता है और इसलिए जरूरी है की वह अस्पताल आपके आस पास हो और वहां सब सुविधाएं आपके लिए किफायती हो। यह पता करना भी जरूरी ह�� की उस अस्पताल में क्या इलाज किये जाते हैं।
क्या आप एक पुरुष स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ सहज हैं?
वैसे तो हर व्यक्ति को, चाहे पुरुष हो या महिला, स्त्री रोग विशेषज्ञ बनने के लिए एक जैसी ट्रेनिंग ही मिलती है, परंतु अगर आप अपने इलाज के लिए एक महिला डॉक्टर ही चाहते हैं तो वो आपकी मर्जी है। इसके साथ साथ यह भी सुनिश्चित कर लें की अगर आपके डॉक्टर कहीं और व्यस्त हो तो उनकी जगह कौनसा स्त्री रोग विशेषज्ञ लेता है और क्या वो पुरुष है या महिला।
स्त्री रोग विशेषज्ञ की संबद्धता और प्रमाणन
एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की संबद्धता और प्रमाणन( Affiliation and Certification) बहुत महत्वपूर्ण प्रमाण हैं और स्त्री रोग विशेषज्ञ को चुनने से पहले उसकी जांच हमेशा करनी चाहिए।
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स्त्री रोग विशेषज्ञ की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर जाके देखें।
कुछ स्त्री रोग विशेषज्ञ समय समय पर अपने वेबसाइट और सोशल मीडिया को अपडेट करते हैं और मरीजों के विवरण भी डालते हैं। इन विवरण से आपको पता चलेगा की वह कैसे डॉक्टर है। परंतु यह याद रखें कि सब डॉक्टर अपनी वेबसाइट अपडेट नहीं करते हैं और इसलिए हो सकता है की आपको उनको वेबसाइट पर ऐसी मरीजों की विवरण न मिले। इसलिए जरूरी है ऐसे स्थिति में डॉक्टर की साख और प्रशिक्षण को देखना ज्यादा जरूरी है।
अतिरिक्त ट्रेनिंग
कुछ स्त्री रोग विशेषज्ञ अतिरिक्त ट्रेनिंग लेते हैं ताकि वो ज्यादा रिस्क वाले प्रेगनेंसी को भी संभाल पाए। इसमें वो कुछ प्रक्रियाएं जैसे लेप्रोस्कोपी (laparoscopy), हिस्ट्रोस्कॉपी (hysteroscopy), आदि को सीखते हैं। कोई भी स्त्री विशेषज्ञ चुनने से पहले यह सब भी देख लें ताकि अगर आप सुनिश्चित रहें की अगर आपकी प्रेगनेंसी के दौरान कोई कठिनाई आती है तो वह स्त्री रोग विशेषज्ञ उसे संभाल पाए।
स्त्री रोग विशेषज्ञ की विशेषज्ञता
स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुभव का बहुत महत्व है। एक स्त्री रोग विशेषज्ञ जिसके पास वर्षों का अनुभव है, उसने अपने कौशल को पूर्ण करने में बहुत समय बिताया है।
उपलब्धता
यह देखना बहुत जरूरी है कि क्या आपका और आपके स्त्री रोग विशेषज्ञ का उपलब्ध रहने का समय मेल खाता है या नही क्योंकि यह बहुत आवश्यक है कि आप समय समय पर जांच करवाते रहें, खास तौर पर अगर आप प्रेगनेंट हैं।
स्त्री रोग विशेषज्ञ का दृष्टिकोण
स्त्री रोग की जांचें बहुत ही ज्यादा निजी होती हैं इसलिए यह जरूरी हैकि आप उनके साथ बिल्कुल सुरक्षित और सहज हो। अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ कोई भी प्रक्रिया करने से पहले आपको अच्छे से उसके बारे में बताएंगे और हर चरण पर आपकी सहमति लेंगे। आज के ज़माने में ज्यादातर स्त्री रोग विशेषज्ञ इस बात का ध्यान रखते हैं।
अच्छा श्रोता
ज्यादातर महिलाओं को रेपेरोडक्टीव सिस्टम से संबंधित बीमारियों के बारे में बात करने में झिझक और शर्म होती है। स्त्री रोग विशेषज्ञ ऐसे डॉक्टर हैं जिन्होंने इन सब के बारे में पढ़ाई कर उसमे महारत हासिल की है और इसलिए वो सुनिश्चित करते हैं की उनके मरीज खुल के अपनी तकलीफ सामने रख पाएं। यह सही इलाज के लिए बहुत आवश्यक है। कोई भी स्त्री विशेषज्ञ चुनने से पहले, ऊपर दिए हुए सभी बातों पर सोचना बहुत जरूरी है। आप एक ऐसे स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास जाना पसंद करेंगे जो आपको सहज महसूस करवाते हैं। नहीं तो आप हमेशा अपॉइंटमेंट से डरते रहेंगे। हम आशा करते हैं कि इस लेख से आपको समझ आया होगा कि स्त्री रोग विशेषज्ञ क्या करते हैं? और आप यह भी जान गए होंगे कि यह भी जरूरी है किआपके डॉक्टर आपके साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
टेक अवे
हर जगह गलत ��ूचना है – अपने पीरियड्स के दौरान ऐसा न करें, गर्भवती होने पर वह न खाएं, जब आप बड़े हों तो इस गर्भनिरोधक का उपयोग न करें, बेहतर प्रजनन स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन करें – यदि आप एक ऐसी महिला है जो अपने रेपेरोडक्टीव सिस्टम के बारे में बातचीत करना चाहती है तो यह सब बकवास टिप्पणियाँ कभी खत्म नहीं होती और सब लोग एक विशेषज्ञ के रूप में बात करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में यह महत्वपूर्ण है कि आपके साथ सम्मान और दयालुता का व्यवहार किया जाए। आईवीएफ जंक्शन (IVF Junction) पर हम आपकी सही जानकारी पाने की इच्छा का सम्मान करते हैं। हम ऐसे डॉक्टरों से जुड़े हैं जिनका मुख्य ध्यान सिर्फ अपने मरीजों का सही इलाज है। आईवीएफ जंक्शन सपोर्ट फोरम सभी प्रकार के प्रश्नों का स्वागत करता है ताकि आप अपने प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में कोई भी प्रश्न प्रस्तुत कर सकें। आईवीएफ जंक्शन सब विशेषज्ञों से सूचनात्मक सामग्री लाने में मदद करता है। हम आपकी यात्रा के दौरान आपका समर्थन करने के लिए हैं – चाहे वह बेहतर प्रजनन स्वास्थ्य, आईवीएफ उपचार, बांझपन सहायता, और वित्तीय उपचार के लिए तैयारी हो।
Source: https://bit.ly/3xptrzh
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असली है या नकली, किसे लेना चाहिए और किसे नहीं? जानिए कोरोना वैक्सीन की ABCD Divya Sandesh
#Divyasandesh
असली है या नकली, किसे लेना चाहिए और किसे नहीं? जानिए कोरोना वैक्सीन की ABCD
देश में कोरोना की वैक्सीन तेजी से लगाई जा रही है। अब कई कंपनियों की वैक्सीन मौजूद है। वैक्सीन को लेकर हममें से बहुत लोगों के मन में अभी तक कई तरह के भ्रम बने हुए हैं। कुछ गलतफमियां, कुछ सवाल और जरूरी बातें हैं जिनके जवाब मिलना जरूरी है। जैसे, कौन-सी वैक्सीन बेहतर है, क्या 100 फीसदी इम्यूनिटी मिल सकती है, कोरोना से ठीक हो चुके हैं तो फिलहाल वैक्सीन लें या न लें, वैक्सीन के फ्रॉड से कैसे बचना है? एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसे ही सवालों के जवाब दे रहे हैं लोकेश के. भारती
यहां कराएं रजिस्ट्रेशन
Aarogya Setu App Co-WIN Vaccinator App नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो। यह सुविधा उन लोगों के लिए अहम है जो तकनीक के मामले में थोड़ा पीछे हैं।
यहां से लें मदद वैक्सीनेशन के बाद 30 से 40 मिनट इंतजार करने के लिए कहा जाता है। इंतजार जरूर करें। अगर परेशानी होती है तो वहां के मेडिकल स्टाफ से मदद मांग सकते हैं।
हेल्��लाइन नंबर: 011-23978046 वॉट्सऐप पर मदद: 9013151515 टोल फ्री: 1075 ईमेल:
सबसे खास बातें
कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी डोज में 12 से 16 हफ्ते का गैप होना चाहिए। कोवैक्सीन की दूसरी डोज लेने में 4 से 6 हफ्ते का गैप होना चाहिए। स्पूतनिक-वी की दूसरी डोज लेने में भी 4 से 6 हफ्ते का गैप होना चाहिए। स्पूतनिक-वी लाइट को मंजूरी मिलने के बाद एक ही डोज लगाने की बात कही गई है। जायडस-कैडिला की वैक्सीन ZyCoV-D कोरोना की पहली वैक्सीन होगी जिसे लगाते समय सुई का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। प्रेग्नेंट हों या दूध पिलाने वाली मां, कोरोना वैक्सीन लगवा सकती हैं।
जानें वैक्सीन से जुड़ी बेसिक जानकारी
वैक्सीन लें या न लें? वैक्सीन जरूर लेनी है। सभी को लेनी है। बिना वैक्सीन के इम्यूनिटी नहीं बनेगी। फिलहाल जो वैक्सीन पूरी दुनिया में मिल रही हैं, वे सभी आपातकालीन इस्तेमाल (इमरजेंसी यूज) के लिए हैं। इनमें से अभी तक किसी को भी कमर्शल प्रोडक्शन का अधिकार नहीं मिला है। देश में इस वक्त तीन वैक्सीन: कोवैक्सीन, कोविशील्ड, स्पूतनिक-वी मिल रही हैं और जल्द ही फाइजर की वैक्सीन भी मिल सकती है। इन सभी को इमरजेंसी यूज (यह सिर्फ जान बचाने के लिए है, डेटा का विश्लेषण नहीं हुआ हैै) के लिए ही अधिकार दिया गया है। जिससे हर शख्स के शरीर में कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी विकसित हो सके।
कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और फाइजर में से कौन-सी वैक्सीन बेहतर है? हर वैक्सीन की क्षमता अलग-अलग होती है। सभी के साइड इफेक्ट्स भी अलग-अलग होते हैं। जिस वैक्सीन की क्षमता 50 फीसदी से ज्यादा है, वह वैक्सीन अच्छी है। देश में मिल रही हर वैक्सीन की क्षमता 50 फीसदी से ज्यादा है। सिर्फ क्षमता ज्यादा होने से वैक्सीन की क्वॉलिटी निर्धारित नहीं की जा सकती है। वैक्सीन लगने के बाद उसके साइड इफेक्ट्स कितने कम उभर रहे हैं, इससे भी वैक्सीन की क्वॉलिटी समझी जाती है। इसलिए कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और फाइजर में से किसी को भी लगाया जा सकता है।
देश में कौन-सी नई वैक्सीन आ रही है और कब तक? देश में मिल रही वैक्सीन: कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक-वी।
जल्द मिलेगी
1. अमेरिकी वैक्सीन फाइजर
यह आरएनए तकनीक पर काम करती है। इसकी क्षमता करीब 95 फीसदी कही गई है।
2. भारतीय वैक्सीन जायडस-कैडिला
यह पहली वैक्सीन होगी जिसे बिना इंजेक्शन शरीर में पहुंचाया जाएगा। इसे फार्माजेट तकनीक से लगाया जाएगा, जिसमें तेज गति से वैक्सीन को स्किन के अंदर पहुंचाया जाता है। इससे इंफेक्शन का खतरा भी कुछ कम होगा। इस वैक्सीन का नाम ZyCoV-D है। इसने भारत के औषधि महानियंत्रक (DGCI) से आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मांगी है। यह पहली प्लाज्मिड DNA वैक्सीन है। इस वैक्सीन के बारे में कहा जा रहा है कि यह 12 से 18 साल के किशोरों के लिए भी कारगर है। इस वैक्सीन की 3 डोज लगेंगी।
3. स्पूतनिक-वी लाइट
भारत की कंपनी डॉ. रेडीज ने इस वैक्सीन के लिए DGCI के पास आवे��न दिया था। DGCI ने वैक्सीन से संबंधित डेटा उपलब्ध कराने के लिए कहा है। तब तक के लिए मंजूरी नहीं दी गई है। इसे स्टोर करना आसान है। इसकी एक खुराक ही दी जाएगी। जबकि भारत में पहले से मिल रही स्पुतनिक-वी वैक्सीन की दो खुराकें दी जाती हैं।
देसी और विदेशी वैक्सीन में क्या खास अंतर है? देसी और विदेशी वैक्सीन में कोई फर्क नहीं है। दोनों का काम शरीर में कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी तैयार करना है। इस काम में देसी और विदेशी दोनों वैक्सीन कामयाब हैं।
क्या वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी बूस्टर डोज लगवानी होगी? कोरोना वायरस की शुरुआत हुए 2 साल भी नहीं बीते हैं। फिलहाल लोगों की जान बचाने के लिए इमरजेंसी में वैक्सीन दी जा रही है। अभी इस पर स्टडी करनी बाकी है। इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल है कि बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी या नहीं। स्टडी को पूरा होने में 3 से 5 साल या इससे ज्यादा का वक्त भी लग सकता है। जब तक वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां डेटा का सही तरीके से विश्लेषण नहीं कर लेतीं, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
रजिस्ट्रेशन कहां करवाना होगा? रजिस्ट्रेशन के बाद वैक्सीन लगवाने का नंबर आता है। पर वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते है। इसके अलावा Aarogya Setu app या Co-WIN Vaccinator App पर भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। यह भी मुमकिन न हो तो नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो, वहां भी रजिस्ट्रेशन हो सकता है। यह सुविधा उन लोगों के लिए बेहतर है जो टेक सेवी नहीं हैं।
वैक्सीन कितनी असरदार
क्या वैक्सीन लगवाने के बाद ज़िंदगीभर कोरोना नहीं होगा? इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती। कोरोना से पहले जितनी भी वैक्सीन अलग-अलग बीमारियों के खिलाफ लगाई जाती रही हैं बाद में उनके मामले भी देखे गए हैं। जैसे, MMR (मीजल्स, मम्स, रुबेला से बचाव के लिए), BCG (टीबी से बचाव के लिए)। इन्हें लगाने के बाद भी लोगों को ये बीमारियां हुई हैं। हां, यह जरूर है कि वैक्सीन लगने के बाद ऐसे मामले बहुत कम देखे गए। अगर किसी को बाद में ये बीमारियां हुई भी तो जानलेवा नहीं रहीं। कोरोना की वैक्सीन के साथ भी ऐसा ही है। जिन लोगों ने कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी हासिल कर ली है, भविष्य में दोबारा इंफेक्शन होने पर इसकी गंभीरता से काफी हद तक बच सकते हैं।
कोविशील्ड और कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन जैसे, डेल्टा और डेल्टा प्लस के खिलाफ कितनी असरदार हैं? सिर्फ कोवैक्सीन और कोविशील्ड ही नहीं, स्पूतनिक-वी लगवा चुके लोगों में अभी तक डेल्टा या डेल्टा प्लस के गंभीर मामले न के बराबर ही हैं। तीनों वैक्सीन इनके खिलाफ भी कारगर हैं। हालांकि इनकी विस्तार से स्टडी करना बाकी है।
वैक्सीन लगवाने के कितने दिनों बाद तक शरीर में इम्यूनिटी रहती है? कोरोना वायरस को आए अभी डेढ़ साल ही हुआ है और वैक्सीन को तैयार हुए लगभग 6 महीने। अभी तक जिन्हें वैक्सीन लगी है, उनमें ऐंटिबॉडी की मौजूदगी देखी गई है। बीतते वक्त के साथ य�� साबित होता जाएगा कि वैक्सीनेशन के बाद शरीर की इम्यूनिटी कितने दिनों तक रहती है। वैक्सीन लगवाने के बाद इम्यूनिटी कितने दिनों में व���कसित होती है? वैक्सीन लगवाने के चौथे से पांचवें दिन अस्थायी ऐंटिबॉडी (IgM) बननी शुरू हो जाती है। यह अमूमन 15 से 20 दिन तक बनी रहती है। वहीं 15 से 20 दिन के बाद स्थायी ऐंटिबॉडी (IgG) बनने लगती है।
वैक्सीन की पहली डोज ही काफी नहीं? इस बारे में अब तक विस्तार में स्टडी नहीं हुई है। हालांकि यह देखा गया है कि कुछ लोगों में पहली डोज के बाद ही ऐंटिबॉडी विकसित हो जाती है, वहीं कुछ लोगों में दूसरी डोज के बाद विकसित होती है। इसलिए दोनों डोज लेना जरूरी है।
वैक्सीन 100 फीसदी असरदार क्यों नहीं है? पूरी दुनिया में आज तक ऐसी वैक्सीन नहीं बनी है जो 100 फीसदी असरदार हो। वैक्सीनेशन के बाद इम्यूनिटी की स्थिति क्या होगी, यह काफी हद तक उस शख्स के शरीर पर भी निर्भर करता है। अगर किसी को गंभीर बीमारी जैसे कि कैंसर हो, किडनी की बीमारी, ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो, डायबिटीज के पुराने मरीज हों और शुगर काबू में न हो, एलर्जी के गंभीर मरीज हों तो ऐसे लोगों में वैक्सीनेशन के बाद भी इम्यूनिटी कमजोर होती है। ऐंटिबॉडीज भी कम बनती हैं। स्वस्थ शरीर में वैक्सीन कारगर रहती है।
वैक्सीनेशन के बाद IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराकर देखना चाहिए कि ऐंटिबॉडीज बनी हैं या नहीं?
वैक्सीन लेने के बाद शरीर में इम्यूनिटी दो तरीके से बनती है:
1. न दिखने वाली: यह सेल्युलर लेवल पर होता है। इस तरह की इम्यूनिटी होने पर वैक्सीनेशन के बाद भी IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट नेगेटिव आ सकता है। लेकिन इम्यूनिटी बनाने वाली कोशिकाएं वायरस के आकार-प्रकार को याद कर लेती हैं। इसमें शरीर को इम्यूनिटी देने वाली T-हेल्पर सेल और T-किलर सेल अहम भूमिका निभाती हैं। ये सेल्स वायरस को अपनी मेमरी में स्टोर करती हैं। भविष्य में जब भी वायरस शरीर में पहुंचता है तो ऐंटिबॉडी बनने लगती है और वायरस को खत्म कर देती हैं। इसलिए वैक्सीन लेने के बाद या कोरोना से ठीक होने के बाद भी अगर किसी का ऐंटिबॉडी टेस्ट नेगेटिव हो तो परेशान नहीं होना चाहिए।
2. दिखने वाली: वैक्सीनेशन के बाद IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराने पर रिजल्ट पॉजिटिव आता है। वैक्सीन लेने के 20 से 25 दिन में टेस्ट करा सकते हैं।
एक डोज ही लग पाए तो…
अगर किसी को वैक्सीन की पहली डोज लग गई है, लेकिन दूसरी डोज नहीं मिल पा रही है तो क्या वह दूसरी डोज को छोड़ सकता है? कुछ दिन पहले तक यह सवाल वाजिब हो सकता था कि वैक्सीन नहीं मिल पा रही है, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। फिलहाल वैक्सीन की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है। जहां तक दूसरी डोज छोड़ने की बात है तो ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए। कोरोना के खिलाफ पर्याप्त इम्यूनिटी के लिए दूसरी डोज लगवाना भी जरूरी है।
अगर कोई शख्स सरकार की ओर से तय वक्त में वैक्सीन की दूसरी डोज नहीं ले पाता है तो क्या उसे फिर से पहली डोज लेनी पड़ेगी? वैक्सीनेशन को हमें प्राथमिकता पर रखना चाहिए। वैक्सीन आने वाले समय में शरीर की सेहत, सामान्य कामकाज और यात्राओं के लिए पासपोर्ट का काम भी करेगी। सरकार ने जिस वैक्सीन के लिए जो समय सीमा निर्धारित किया है, उसी में वैक्सीन लगवानी चाहिए ताकि शरीर को सही इम्यूनिटी मिल सके।
अगर किसी को वैक्सीन की दूसरी डोज के लिए स्लॉट और डेट मिल गई थी। लेकिन वह क��विड-19 से संक्रमित हो गया तो अब दूसरी डोज कब लेनी चाहिए? इस सवाल में एक बात साफ है कि उस शख्स ने पहली डोज ले ली थी। दूसरी डोज लगवाने से पहले ही उसे कोरोना हो गया। ऐसे में कोरोना से उबरने यानी लक्षण खत्म के बाद (यह अमूमन 15 दिनों का होता है) 3 महीने का अंतराल रखना चाहिए यानी जिस दिन पहला लक्षण आया उसे जोड़कर 105 (90+15) दिनों के बाद।
कोवैक्सीन कम मात्रा में बन रही है। दूसरी डोज के लिए कोवैक्सीन नहीं मिल रही है कोई दूसरी वैक्सीन की डोज लगवा लें? ऐसा नहीं है। कोवैक्सीन पहले जितनी मात्रा में बन रही थी, उतनी ही मात्रा में अब भी बन रही है। पहले जिस जगह कोवैक्सीन लगवाई थी, वहां पर फिर से कोवैक्सीन मिलने की गुंजाइश है। अभी तक सरकार ने दोनों वैक्सीन दो अलग-अलग कंपनियों की लगवाने के बारे में नहीं कहा है।
कौन न ले वैक्सीन
अगर कोई शख्स कैंसर, डायबिटीज या हाइपरटेंशन से पीड़ित है और दवाई ले रहा है तो क्या उसे वैक्सीन लगवानी चाहिए? सभी को वैक्सीन लेनी है चाहे वह कैंसर का मरीज हो, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हार्ट, किडनी का या फिर किसी दूसरी बीमारी का। अगर मन में कोई डर हो तो अपने डॉक्टर से जरूर बात कर लें। किसी को एलर्जी की गंभीर समस्या है तो उसे वैक्सीन नहीं लेनी है। एलर्जी की गंभीर परेशानी का मतलब यह है: एलर्जी की परेशानी शुरू होने पर 1. शरीर पर चकत्ते हो गए हों, 2. बीपी लो हो गया हो और 3. सांस लेने में परेशानी हो। एलर्जी की वजह से ये तीनों लक्षण मरीज में उभरते हों तो वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए और अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
किसी शख्स में कोरोना के लक्षण हैं तो वैक्सीन लेनी चाहिए? अगर किसी शख्स में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं तो पहले उसे कोरोना का इलाज करवाना चाहिए। 15 दिनों तक आइसोलेशन में रहना चाहिए। फिर लक्षण जाने के 3 महीने से अंदर वैक्सीन नहीं लगवानी है। दरअसल, कोरोना होने के बाद शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है। ऐसे में वैक्सीनेशन का फायदा भी ज्यादा नहीं होगा।
बच्चों के लिए वैक्सीन कब तक आएगी और यह कब तक उपलब्ध होगी? अभी तक कोरोना का असर बच्चों पर कम पड़ा है। बहुत ही कम मामलों में बच्चों की स्थिति गंभीर हुई है। फिर भी बच्चों को कोरोना से बचाना है। इसके लिए कई कंपनियां काम कर रही हैं। हमारे देश में जायडस-कैडिला 12 से 18 साल तक के किशोरों के लिए वैक्सीन ला रही है। उम्मीद है कि यह अगस्त तक मुहैया हो जाएगी। वहीं भारत बायोटेक भी बच्चों की वैक्सीन बना रही है। यह 2 से 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए है। यह सितंबर तक मिल सकती है।
नेजल वैक्सीन कब तक आ सकती है? नाक से दी जाने वाली वैक्सीन को नेजल वैक्सीन या नेजल स्प्रे वैक्सीन भी कहते हैं। WHO के मुताबिक पूरी दुनिया में 7 कंपनियां नेजल वैक्सीन पर काम कर रही है। भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन अक्टूबर तक आ सकती है। इसके अलावा कोविशील्ड भी नेजल स्प्रे ला सकती है।
असली-नकली वैक्सीन की पहचान क्या है जो वैक्सीन लगाई जा रही है वह असली है या नकली, यह कैसे पता लगाएं? रजिस्टर्ड प्राइवेट अस्पतालों, सरकारी अस्पतालों और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान जो वैक्सीनेशन कर रहे हैं, उसमें संदे�� की गुंजाइश न के बराबर है। लेकिन इन जगहों पर भी वैक्सीनेशन के तरीकों पर ध्यान दिया जा सकता है। मन में शंका हो तो उसे दूर कर लेना चाहिए। ऐसा नहीं है कि वैक्सीनेशन में फ्रॉड के मामले सिर्फ भारत में ही सामने आए हैं। इस तरह की घटनाएं अमेरिका, चीन, पोलैंड और मैक्सिको में भी हुई हैं। ये घटनाएं कैंप लगाकर दी जाने वाली वैक्सीन के मामले में ज्यादा हुई हैं।
अगर किसी कैंप में यह कहा जाता है कि आप अभी अपना मोबाइल नंबर और आधार नंबर दे दें, बाद में वैक्सीनेशन का मेसेज आएगा तो अलर्ट हो जाएं। अगर बाद में किसी का नाम या उनसे जुड़ी ऑनलाइन अपलोड करने में गलती हुई तो सर्टिफिकेट भी गलत आएगा। दरअसल कोरोना के खिलाफ जंग में वैक्सीनेशन काफी अहम है�� इसके लिए वक्त जरूर निकालना चाहिए। बेहतर होगा कि रजिस्ट्रेशन करवाकर स्लॉट लें और किसी अच्छे सरकारी या प्राइवेट अस्पताल या सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर पर जाकर ही वैक्सीनेशन करवाएं। वायल देखकर भी असली-नकली वैक्सीन की पहचान की जा सकती है।
वैक्सीन की वायल (शीशी) पुरानी दिखे या ऐसा लगे कि इसे दोबारा पैक की गई है तो सचेत हो जाएं। उस पर मैन्युफैक्चरिंग डेट, एक्सपायरी डेट आदि सही तरीके से नहीं दिख रही हो।
वैक्सीनेशन के दौरान इन बातों का भी रखें ध्यान
जहां वैक्सीन लेने गए हैं, वहां पर अगर हेल्थ वर्कर ने वायल से वैक्सीन निकालकर पहले ही सिरिंज में भर दी हो और आपके मन में कोई संदेह हो तो आप उन्हें सामने में भरने के लिए कह सकते हैं। जो मेडिकल स्टाफ वैक्सीन लगा रहा है, उसकी यह जिम्मेदारी है कि वह अपना नाम और जिस कंपनी की वैक्सीन लगाई जा रही है उसकी जानकारी दे। मोबाइल पर जब मेसेज से वैक्सीनेशन की जानकारी आती है तो मेडिकल स्टाफ ने जो जानकारी दी है, उससे मिलान कर लें। अगर अंतर दिख रहा है तो वहां के स्टाफ से जरूर बात करें। कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और कोविशील्ड वैक्सीन को रखने के लिए 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। वहीं फाइजर की वैक्सीन को माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होता है। ऐसे में अगर किसी हेल्थ वर्कर ने 2 से 3 मिनट या इससे ज्यादा समय से पहले ही शीशी को बाहर निकाल लिया और सिरिंज में डालकर रख दिया है तो वैक्सीन की कोल्ड चेन टूट जाएगी और असर कम हो सकता है। वैक्सीनेशन वैक्सीनेशन के 5 मिनट के अंदर ही मेसेज से यह कंफर्म कर दिया जाता है कि उस शख्स को किस कंपनी की वैक्सीन लगी है। उस पर उसका नाम भी दर्ज होता है। कुछ मामलों में मेसेज देर से मिल सकता है, लेकिन यह भी पता करें कि जिस स्लॉट में हमें वैक्सीन लगी है, उस स्लॉट के बाकी लोगों के मेसेज कब आए। अगर उस स्लॉट में किसी का मेसेज नहीं आया है तो वहां के स्टाफ से जरूर बात करनी चाहिए। यह काम तब करें जब वैक्सीन लगाने के बाद आपको आनिवार्य रूप से आधा घंटा इंतजार करना होता है। वैक्सीन लगने के बाद 30 से 40 मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा जाता है कि वैक्सीन का कोई गलत असर हो तो उनका इलाज किया जा सके। आमतौर पर बीपी लो होने की परेशानी हो सकती है।
फ्रॉड से बचने के लिए ऐसे कदम उठाएं
कैंप लगाकर वैक्सीनेशन अच्छा उपाय है लेकिन ऐसा करने के दौरान कुछ राज्यों में फ्रॉड के मामले सामने आए हैं। किसी खास जिले में कैंप लगाकर वैक्सीनेशन किया जा रहा हो तो पूरी जानकारी प्रशासन के पास भी जरूर होनी चाहिए। इनमें CMO/DM शामिल हों ताकि किसी को कैंप पर शक हो तो तत्काल ही इन अधिकारियों से पूछकर इसकी तसल्ली कर ले। CMO/DM ऐसे कैंप को मंजूरी देने के बाद अपनी सरकारी वेबसाइट पर पूरी जानकारी मुहैया कराएं। कैंप लगाने के लिए रजिस्टर्ड अस्पताल या सरकार से मान्यता प्राप्त संस्था को ही मंजूरी मिले। उसके पास अस्पताल का एक ऑफिशल लेटर भी जरूर होना चाहिए।कैंप पर एक डॉक्टर जरूर हो। हर डॉक्टर का एक रजिस्ट्रेशन नंबर होता है। उस नंबर को वहां लिखा जाना चाहिए। इसके अलावा वहां पर डॉक्टर और बाकी स्टाफ के नाम और फोटो के साथ लगे हों। अगर कोई कैंप किसी रजिस्टर्ड अस्पताल के नाम से लगा हो तो वहां का फोन नंबर जरूर हो। उस नंबर को इंटरनेट पर और उसकी वेबसाइट पर सर्च करके भी चेक करना चाहिए कि नंबर फर्जी है या असली। अगर वैक्सीन का उत्पादन करने वाली हर कंपनी अपने हर वायल पर बार कोड लगा दे तो उसे मोबाइल से स्कैन करके उस वायल के बारे में हर तरह जानकारी हासिल की जा सकती है कि कब उत्पादन हुआ, एक्सपायरी डेट क्या है आदि। इससे किसी भी तरह के फ्रॉड से बचा जा सकता है।
वैक्सीन सर्टिफिकेट कहां मिलता है और उसका फायदा
रजिस्ट्रेशन के सेंटर पर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं तो सर्टिफिकेट कैसे मिलेगा? अगर सीधे सेंटर पर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं तो वहां भी आधार कार्ड और मोबाइल नंबर देना होता है। वैक्सीन लगने के बाद मोबाइल नंबर पर मेसेज आता है और सर्टिफिकेट डाउनलोड करने के लिए लिंक भी। उस लिंक पर क्लिक करने के बाद सर्टिफिकेट मिल जाता है। इसे मोबाइल ऐप Digilocker में भी रख सकते हैं और प्रिंट भी निकालकर रख सकते हैं।
जो सर्टिफिकेट मिला है वह असली है, इस बात का कैसे पता लगाएं? सर्टिफिकेट सरकारी पोर्टल से हासिल किया गया है तो वह असली ही है।
वैक्सीन लगने के बाद अगर कोई शख्स बीमार हो जाता है या मर जाता है तो क्या कंपनी या सरकार कोई मुआवजा देगी? हमारे देश में ऐसे मामले बहुत ही कम आए हैं। चूंकि अभी वैक्सीन को इमरजेंसी यूज का ही अधिकार मिला है, इसलिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। DGCI ने इसके लिए किसी भी तरह का जुर्माना नहीं रखा है। जब वैक्सीन का कमर्शल यूज शुरू होगा तब ऐसे मामलों के लिए मुआवजे की बात भी होगी।
क्या वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवाने के बाद मास्क हटा सकते हैं? अभी ऐसा नहीं करना चाहिए। जब तक पूरे देश में सबका वैक्सीनेशन न हो जाए और सरकार इसके लिए घोषणा न कर दे, न मास्क हटेगा और न ही सोशल डिस्टेंसिंग खत्म होगी। इसलिए अभी कई महीनों तक मास्क को लगाना पड़ेगा।
अगर किसी को अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन की एक-एक डोज लग जाए तो क्या होगा? कुछ देश एक्सपेरि��ेंट के तौर पर अलग-अलग वैक्सीन लगा रहे हैं। इसका क्या नतीजा रहा? इस तरह के प्र��ोग भी हो रहे हैं। अपने देश में भी गलती से ही ऐसे मामले सामने आए, लेकिन ऐसे लोगों पर अभी तक कोई खास बुरा असर देखने को नहीं मिला है। सीधे कहें तो आंकड़े आने में वक्त लगेगा। इनका नतीजा बाद में क्या होगा, इस बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिस कंपनी की पहली डोज की वैक्सीन लगी है, उसी डोज की दूसरी डोज भी लगवानी चाहिए।
नोट: अगर इन सवालों के अलावा भी कोई सवाल हो तो अंग्रेजी या हिंदी में हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर लिख दें। इसके अलावा हमें ईमेल भी कर सकते हैं। अपने सवाल पर बुधवार तक भेज दें। सब्जेक्ट में vaccine लिखें। हम चुने हुए सवालों के जवाब एक्सपर्ट से लेकर अपने फेसबुक पेज पर और अखबार में भी देंगे।
एक्सपर्ट पैनल
प्रो.(डॉ.) एन. के. अरोड़ा चेयरपर्सन, ORG, नैशनल टास्क फोर्स कोविड-19, ICMR प्रो.(डॉ.) जी. सी. खिलनानी, चेयरमैन, इंस्टिट्यूट ऑफ पल्मोनरी, PSRI प्रो.(डॉ.) संजय राय कम्यूनिटी मेडिसिन और इंचार्ज कोवैक्सीन ट्रायल, AIIMS प्रो.(डॉ.) राजेश मल्होत्रा एचओडी ऑर्थोपीडिक्स, इंचार्ज कोविड ट्रॉमा सेंटर, AIIMS डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल
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🚩आप चाय पीते हैं तो जरूर पढ़ें, फायदा करता है कि नुकसान ? 25 दिसंबर 2021
🚩दो सौ वर्ष पहले भारतीय घरों में चाय नहीं होती थी। पहले घर पर अतिथि आते थे तो देशी गाय का दूध-लस्सी आदि दिया जाता था लेकिन आज कोई भी घर आये अतिथि को पहले चाय पूछते हैं। ये बदलाव अंग्रेजों की देन है। कई लोग घर, दुकान, ऑफिस या यात्रा के दौरान दिन में कई बार चाय लेते रहते हैं, यहाँ तक कि उपवास में भी चाय लेते हैं! किसी भी डॉक्टर के पास जायेंगे तो वो शराब-सिगरेट-तम्बाखू छोड़ने को कहेगा, पर चाय नहीं, क्योंकि यह उसे पढ़ाया नहीं गया और वह भी खुद चाय का गुलाम है। परन्तु किसी अच्छे वैद्य के पास जायेंगे तो वह पहली सलाह देगा- चाय ना पियें।
🚩चाय और कॉफी में दस प्रकार के जहर होते हैं...
★'टैनिन': यह विष 18 प्रतिशत होता है। यह पेट में छिद्र और वायु उत्पन्न करता है।
★‘थिन’: यह विष 3 प्रतिशत होता है। इसके कारण मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं तथा यह विष फेफड़��ं और मस्तिष्क में जड़ता को निर्मित करता है।
★‘कैफिन’: यह विष 2.75 प्रतिशत होता है। यह गुर्दों (किडनियों) को दुर्बल बनाता है।
★‘वॉलाटाइल’: यह विष आंतों को हानि पहुंचाता है।
★‘कार्बोनिक अम्ल’: अम्लपित्त (एसिडिटी) बढ़ाता है।
★‘पैमिन’: पाचनशक्ति को दुर्बल करता है।
★‘एरोमोलीक’: आँतों पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
★‘सायनोजन’: अनिद्रा और पक्षाघात जैसे भयंकर रोग उत्पन्न करता है।
★‘ऑक्सेलिक अम्ल’: शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होता है।
★‘स्टिनॉयल’: रक्तविकार और नपुंसकता उत्पन्न करता है।
इसीलिए चाय अथवा कॉफी का सेवन कभी नहीं करना चाहिए।
🚩चाय कितना नुकसान पहुंचाता है?
🚩हमारे गर्म देश में चाय, और गर्मी बढ़ाती है, पित्त बढ़ाती है। चाय के सेवन करने से शरीर में उपलब्ध विटामिन्स नष्ट होते हैं। इसके सेवन से स्मरण शक्ति में दुर्बलता आती है। चाय का सेवन लिवर पर बुरा प्रभाव डालता है।
🚩●चाय से भूख मर जाती है, दिमाग सूखने लगता है, गुदा और वीर्याशय ढीले पड़ जाते हैं। डायबिटीज़ जैसे रोग होते हैं। दिमाग सूखने से उड़ जाने वाली नींद के कारण आभासित कृत्रिम स्फूर्ति को स्फूर्ति मान लेना, यह बड़ी गलती है। चाय-कॉफी के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह व्यसन में अधिकाधिक गहरे डूबते जाते हैं। वे लोग शरीर, मन, दिमाग और पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के शिकार बन जाते हैं।
🚩●चाय का सेवन रक्त आदि की वास्तविक ऊष्मा को नष्ट करने में भारी भूमिका निभाता है।
🚩●चाय में उपलब्ध कैफीन हृदय पर बुरा प्रभाव डालती है, अत: चाय का अधिक सेवन प्राय: हृदय के रोग को उत्पन्न करने में सहायक होता है।
🚩●जो लोग चाय बहुत पीते हैं उनकी आंतें जवाब दे जाती हैं, कब्ज घर कर जाती है और मल निष्कासन में कठिनाई आती है। चाय पीने से कैंसर तक होने की संभावना भी रहती है।
🚩●चाय पीने से अनिद्रा की शिकायत भी बढ़ती जाती है, न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ियां आ जाती हैं। चाय में उपलब्ध यूरिक एसिड से मूत्राशय या मूत्र नलिकायें निर्बल हो जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप चाय का सेवन करने वाले व्यक्ति को बार-बार मूत्र आने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिक चाय पीने से खुश्की आ जाती है और दांत भी खराब होते हैं।
🚩यह सावधानी अवश्य रखें
🚩रेलवे स्टेशनों या टी-स्टॉलों पर बिकने वाली चाय का सेवन यदि न करें तो बेहतर होगा क्योंकि ये बरतन को साफ किये बिना कई बार इसी में चाय बनाते रहते हैं जिस कारण क�� बार चाय विषैली हो जाती है। चाय को कभी भी दोबारा गर्म करके न पिएं तो बेहतर होगा। बाज़ार की चाय अक्सर अल्युमीनियम के भगोने में खदका (उबाल) कर बनाई जाती है जो बहुत नुकसान करता है। कुछ जगह पर तो दूध भी कलर से बनाकर उसकी चाय बनाई जाती है जो शरीर को अत्यंत नुकसान पहुँचाती है।
🚩कई बार हम लोग बची हुई चाय को थरमस में डालकर रख देते हैं लेकिन भूलकर भी ज्यादा देर तक थरमस में रखी चाय का सेवन न करें। जितना हो सके चायपत्ती को कम उबालें तथा एक बार चाय बन जाने पर इस्तेमाल की गई चायपत्ती को फेंक दें।
🚩चाय-कॉफी को हमेशा के लिए त्याग दें क्योंकि चाय के हर कप के साथ एक चम्मच या उससे अधिक शक्कर ली जाती है जो वजन बढ़ाती है और अनेक बीमारियां बुलाती है। अगर पीनी ही पड़ी तो गुड़, नींबू मिलाकर काली चाय पीएं, शक्कर और दूध नहीं मिलाएं। चाय के साथ नमकीन, खारे बिस्कुट, पकौड़ी आदि लेते हैं, यह विरुद्ध आहार है; इससे त्वचा रोग होते हैं।
🚩चाय का विकल्प
🚩संकल्प कर लें कि चाय नहीं पियेंगे। दो दिन से एक हफ्ते तक याद आएगी ; फिर सोचेंगे अच्छा हुआ छोड़ दी। एक दो दिन सिर दर्द हो सकता है।
🚩सुबह ताजगी के लिए गर्म पानी लें, चाहे तो उसमें आंवले के टुकड़े मिला दें तो और स्फूर्ति आ जाएगी।
🚩तुलसी पत्ते, गुड़ और नींबू मिलाकर चाय बनाकर पियें तो चाय की लत भी छूट जाएगी और शरीर निरोग होने लगेगा।
🚩चाय की जगह देशी गाय के दूध का उपयोग करना चाहिए इससे स्वास्थ्य में चार चांद लग जायेंगे और सभी बीमारियां भाग जाएंगी।
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भारत में कोविड-19 संक्रमण के मामले बढ़कर 92 लाख के पार नयी दिल्ली, 25 नवंबर l भारत में एक दिन में कोरोना वायरस संक्रमण के 44,376 नए मामले सामने आए जिसके बाद कुल मामले बढ़कर 92 लाख के पार पहुंच गए। इसके साथ ही ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर 86.42 हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को यह जानकारी दी। मंत्रालय की ओर से सुबह आठ बजे उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार द��श में संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 92,22,216 हो गए। आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 से 481 और मरीजों की मौत हो गई जिसके बाद मृतकों की संख्या 1,34,699 प�� पहुंच गई। वर्तमान में देश में कोविड-19 के 4,44,746 मरीज उपचाराधीन हैं। यह संख्या मंगलवार के मुकाबले 6,079 अधिक है। आंकड़ों के मुताबिक उपचाराधीन मरीजों की संख्या लगातार पंद्रहवें दिन पांच लाख से कम रही। यह संक्रमण के कुल मामलों का 4.82 प्रतिशत है। ठीक होने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 86,42,771 हो गई जिससे राष्ट्रीय स्तर पर ठीक होने की दर 93.72 प्रतिशत हो गई। कोविड-19 से मरने वालों की दर 1.46 प्रतिशत है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अनुसार 24 नवंबर तक 13.48 करोड़ से अधिक नमूनों की कोविड-19 की जांच की गई। मंगलवार को 11,59,032 नमूनों की जांच की गई। पिछले एक दिन में कोविड-19 से दिल्ली में 109, पश्चिम बंगाल में 49, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 33, महाराष्ट्र में 30, केरल में 24, पंजाब में 22 तथा चंडीगढ़ में 21 मरीजों की मौत हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सत्तर प्रतिशत से अधिक मौत उन मरीजों की हुई जिन्हें पहले से कई बीमारियां थी। Source link
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देश के उत्तरी हिस्से में ठंड ने दस्तक दे दी है। WHO(वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) के मुताबिक भारत में अगले दो महीने सीजनल फ्लू के हैं। इस दौरान मौसम बदलने और ठंड लगने से लोगों को कई तरह की बीमारियों का खतरा होता है। खासकर बच्चे और बुजुर्ग तो इस मौसम में हाई रिस्क कैटेगरी में होते हैं। इस बार लोगों को और ज्यादा अलर्ट रहना होगा, क्योंकि कोरोना अभी गया नहीं है। अमेरिकी हेल्थ एजेंसी CDC(सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) का कहना है कि ऐसे लोग जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा है और इन्फ्लूएंजा इंफेक्शन या सीरियस फ्लू की चपेट में हैं। इन्हें ठंड में जान जाने का भी खतरा होता है।
फ्लू को लेकर हमारे हर सवाल का एम्स दिल्ली में रुमेटोलॉजी डिपार्टमेंट की HOD डॉक्टर उमा कुमार जवाब दे रही हैं-
क्यों होता है फ्लू? फ्लू भी वायरस से ही होते हैं। चूंकि ठंड में तापमान कम होता है और लोग ��हुत पास-पास रहते हैं, इ��लिए जब कोई खांसता या छींकता है तो वायरस तेजी से एक से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। ठंड में सांस से जुड़ी बीमारियां ज्यादा होती हैं।
फ्लू के लक्षण कैसे हैं? फ्लू में बुखार, गले में खरास, खांसी, सिर में तेज दर्द, शरीर में दर्द होता है। थकान बहुत ज्यादा आती है। जोड़ों में भी दर्द होता है। फ्लू अचानक होता है, इसलिए हमें तुरंत डॉक्टर की सलाह से दवा लेनी चाहिए।
फ्लू कितने दिन तक रहता है? फ्लू वैसे तो एक हफ्ते के अंदर सही हो जाता है, लेकिन यदि शरीर में और कोई कॉम्प्लीकेशंस हैं तो इसका असर अन्य आर्गन्स पर भी पड़ सकता है। कुछ लोग इससे बचने के लिए नियमित तौर पर फ्लू की वैक्सीन भी लगवाते हैं।
क्या सावधानी रखें?
कोविड-19 की तरह ही ढेर सारे वायरस वातावरण में हैं, जिनसे छोटा-मोटा कफ-कोल्ड होता रहता है और वह ठीक भी हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि ठंडी चीज न खाएं, ताकि गला खराब न हो। यदि गला खराब होता है तो किसी भी इन्फेक्शन के अंदर जाने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए ठंड में गर्म पानी जरूर पीएं, इससे फ्लू से बचे रहेंगे।
कोरोना और फ्लू में अंतर जानने लिए के पढ़ें- एक्सपर्ट्स की सलाह- दोनों के लक्षण एक जैसे हैं, अंतर बेहद मामूली; पर इन्हें कुछ सावधानी से पहचान सकते हैं
कोरोना और फ्लू में कन्फ्यूजन कैसे दूर करें? कोविड-19 और सीजनल फ्लू के कई सिंप्टम्स एक-दूसरे को ओवरलैप करते हैं। इसलिए दोनों में अंतर करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। अभी कोरोना महामारी चल रही है, इसलिए इस बात का डायग्नोसिस में ध्यान ��खना बेहद जरूरी होता है।
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flu season start in India, next 2 months will be the risk of flu along with corona, if you recognize emergency symptoms soon then you will be saved, how you will safe against the flu.
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🚩 अंडे खाते हैं तो हो जाइए सावधान, हो सकती हैं ये भयंकर बीमारियां - 14 जुलाई 2021
🚩 भारतीय संस्कृति और भारतीयों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने का यह एक विराट षड्यंत्र है । अंडे के भ्रामक प्रचार के कारण ऐसे परिवार जो अंडे का छिलका तक देखना पसंद नहीं करते थे, आज बेझिझक अंडा खाते हैं । अंडे का प्रचार करके उसे जितना फायदेमंद बताया जाता है वह अपने अवगुणों के कारण उतना ही नुकसानप्रद होता है, अंडे में कई विषैले तत्व भी होते हैं, जो आपके स्वस्थ शरीर में जहर घोलने का काम करते हैं ।
🚩 अंडा शाकाहारी नहीं होता है, लेकिन क्रूर व्यावसायिकता के कारण एवं ऊलजलूल तर्क देकर उसे शाकाहारी सिद्ध किया जा रहा है । मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पक्के तौर पर साबित कर दिया है कि दुनिया में कोई भी अंडा चाहे वह सेया हुआ हो या बिना सेया हुआ हो, निर्जीव नहीं होता । अफलित अंडे की सतह पर प्राप्त ‘इलेक्ट्रिक एक्टिविटी’ कोपोलीग्राफ पर अंकित कर वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि अफलित अंडा भी सजीव होता है । अंडा शाकाहार नहीं, बल्कि मुर्गी का वैनिक (रज) स्राव है ।
🚩 यह सरासर गलत व झूठ है कि अंडे में प्रोटीन, खनिज, विटामिन और शरीर के लिए जरूरी सभी एमिनो एसिड्स भरपूर हैं और बीमारों के लिए पचने में आसान है । अब आप कहेंगे कि डॉक्टर्स भी तो अंडा खाने की सलाह देते हैं, तो यहां एक ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत में पढ़ी जाने वाली चिकित्सा की पढ़ाई MBBS यूरोप से ली गयी है और यूरोप एक ऐसा देश है जहाँ हरी सब्जियों की तुलना में मांस एवं अंडे अधिक पाए जाते हैं ।
🚩 अब आप ही बताइये एक ऐसा देश जहाँ प्रोटीन का कोई और स्रोत न हो वहाँ तो किताबों में अंडे और मांस को ही एकमात्र स्त्रोत माना ही जाएगा, लेकिन भारत में तो भरपूर मात्रा में हरी सब्जियां उपलब्ध है ।
🚩 शरीर की रचना और स्नायुओं के निर्माण के लिए जितने प्रोटीन की जरूरत होती है । उसकी रोजाना आवश्यकता प्रति किलोग्राम वजन पर 1 ग्राम होती है यानी 60 किलोग्राम वजन वाले व्यक्ति को प्रतिदिन 60 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है जो 100 ग्राम अंडे में से मात्र 13.3 ग्राम ही मिलता है ।इसकी तुलना में प्रति 100 ग्राम सोयाबीन से 43.2 ग्राम, मूँगफली से 31.5 ग्राम, मूँग और उड़द से 24, 24 ग्राम तथा मसूर से 25.1 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है । शाकाहार में अंडे व मांसाहार से कहीं अधिक प्रोटीन होता है इस बात को अनेक पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने प्रमाणित क��या है ।
🚩 केलीफोर्निया के डियरपार्क में ‘सेंटहेलेना’ अस्पताल के ‘लाईफ एण्डस्टाइल एण्डन्यूट्रिशनप्रोग्राम’ के निर्देशक डॉ. जोन ए. मेक्डूगलकादावा है कि शाकाहार में जरूरत से भी ज्यादा प्रोटीन है ।
🚩 1972 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ही डॉ. एफ. स्टेर ने प्रोटीन के बारे में अध्ययन करतेहुए प्रतिपादित किया कि शाकाहारी मनुष्यों में से अधिकांशको हर रोज की जरूरत से दुगना प्रोटीन अपने आहार से मिल जाता है । 200 अंडे खाने से जितना विटामिन ‘सी’ मिलता है उतना विटामिन ‘सी’ एक नारंगी (संतरा) खाने से मिल जाता है । जितना प्रोटीन तथा कैल्शियम अंडे में है उसकी अपेक्षा चने, मूँग, मटर में ज्यादा है ।
🚩 ब्रिटिश हेल्थ मिनिस्टर मिसेज एडवीनाक्यूरी ने चेतावनी दी कि अंडों से मौत संभावित है क्योंकि अंडों में सालमोनेला विष होता है जो स्वास्थ्य की हानि करता है । अंडों से हार्ट अटैक की बीमारी होने की चेतावनी नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकन डॉ. ब्राऊन व डॉ. गोल्डस्टीन ने दी है क्योंकि अंडों में कोलेस्ट्राल भी बहुत पाया जाता है । साथ ही अंडे से पेट के कई रोग होते हैं ।
🚩 डॉ. पी.सी.सेन, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतसरकार ने भी चेतावनीदी है कि अंडों से कैंसर होता है क्योंकि अंडों में भोजन तंतु नहीं पाये जाते हैं तथा इनमें डी.डी.टी. विष पाया जाता है ।
🚩 जानलेवा रोगों की जड़ है : अंडा
🚩 अंडे व दूसरे मांसाहारी खुराक में अत्यंत जरूरी रेशातत्त्व (फाईबर्स) जरा-भी नहीं होते हैं । जबकि हरीसाग-सब्जी, गेहूँ, बाजरा, मकई, जौ, मूँग, चना, मटर, तिल, सोयाबीन, मूँगफली वगैरह में ये काफी मात्रा में होते हैं । अमेरिका के डॉ. राबर्ट ग्रास की मान्यता के अनुसार अंडे से टी.बी. और पेचिश की बीमारी भी हो जाती है । इसी तरह डॉ. जे.एम. विनकीन्स कहते हैं कि अंडे से अल्सर होता है ।
🚩 मुर्गी के अंडों का उत्पादन बढ़े इसके लिए उसे जो हार्मोन्स दिये जाते हैं उनमें स्टील बेस्टेरोलनामक दवा महत्त्वपूर्ण है । इसदवावाली मुर्गी के अंडे खाने से स्त्रियों को स्तनका कैंसर, हाई ब्लडप्रेशर, पीलिया जैसे रोग होने की सम्भावना रहती है । यह दवापुरुष के पौरुषत्व को एक निश्चित अंश में नष्ट करती है ।
🚩 वैज्ञानिक ग्रास के निष्कर्ष के अनुसार अंडे से खुजली जैसे त्वचा के लाइलाजरोग और लकवा होने की भी संभावना होती है ।
🚩 अंडे के अवगुण का इतना सारा विवर�� पढ़ने के बाद बुद्धिमानोें को उचित है कि स्वयं भी इस विष का सेवन न करें एवं जो इसके नुकसान से वाकिफ नहीं हैं उन्हें इस विष के सेवन से बचाने का प्रयत्न करें । उन्हें भ्रामक प्रचार से बचायें ।
🚩 संतुलित शाकाहारी भोजन लेने वाले को अंडा या अन्य मांसाहारी आहार लेने की कोई जरूरत नहीं है ।शाकाहारी भोजनसस्ता, पचने में आसान और आरोग्य की दृष्टि से दोषरहित होता है । कुछ दशक पहले जब भोजन में अंडे का कोई स्थान नहीं था, तब भी हमारे बुजुर्ग तंदुरुस्त रहकर लम्बी उम्र तक जीते थे । अतः अंडे के उत्पादकों और भ्रामक प्रचार की चपेट में न आकर हमें उक्त तथ्यों को ध्यान में रख कर ही अपनी इस शाकाहारी आहार संस्कृति की रक्षा करनी होगी ।
🚩 आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः
1971 में ‘जामा’ पत्रिका में एक खबर छपी थी । उसमें कहा गया था कि ‘शाकाहारी भोजन 60 से 67 प्रतिशत तक हृदयरोग को रोक सकता है ।उसका कारण यह है कि अंडे और दूसरे मांसाहारी भोजन में चर्बी (कोलेस्ट्राल) की मात्रा बहुत ज्यादा होती है ।’ केलिफोर्निया की डॉ. केथरिन निम्मो ने अपनी पुस्तक ‘हाऊ हेल्दीयरआर एग्ज’ में भी अंडे के दुष्प्रभाव का वर्णन किया है ।
🚩 वैज्ञानिकों की इन रिपोर्टों से सिद्ध होता है कि अंडे के द्वारा हम जहर का ही सेवन कर रहे हैं । अतः हमें अपने-आपको स्वस्थ रखने व फैल रही जानलेवा बीमारियों से बचने के लिए ऐसेआहार से दूर रहने का संकल्प करना चाहिए व दूसरों को भी इससे बचाना चाहिए ।
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अपने दांतों का ख्याल कैसे रखना चाहिए, जानें दांतों के स्वास्थ्य से जुड़ी सभी बातें विस्तार से
बड़े बुजुर्ग कहते हैं जिंदगी का मजा तभी तक है, जब तक आपके दांत सलामत हैं। इस बात को कहने के पीछे तर्क ये है कि दांत न रहने पर ऐसी बहुत सारे खाने की चीजें हैं, जिनका मजा आप नहीं ले पाते हैं। दांत खाना चबाने में मदद करने के साथ-साथ हमारी खूबसूरती भी बढ़ाते हैं। इन सब बातों को जानने के बाद भी अक्सर लोग दांतों के स्वास्थ्य के प्रति उतने सजग नहीं होते हैं, जितना उन्हें होना चाहिए।
आपको जानकर हैरानी होगी कि दांतों के स्वास्थ्य का सीधा संबंध आपके दिल से भी है। इसलिए कई तरह की रिसर्च में वैज्ञानिकों ने इस बात का दावा किया है कि जो लोग अपने दांतों को गंदे रखते हैं या जिन्हें मसूड़ों से जुड़े रोग होते हैं, उनमें हार्ट अटैक और दूसरी दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
हम सभी को दांतों से जुड़ी कोई न कोई समस्या होती ही रहती है। लेकिन, कम लोग ही छोट���-मोटी समस्या के लिए दंत विशेषज्ञ के पास जाते हैं। इस अनदेखी के कारण ही कई बार छोटी-छोटी बीमारियां भी गंभीर हो जाती हैं। अगर आप दांतों की सही देखभाल करें और हर छह महीने में अपने दांतों का नियमित चेकअप करवायें तो समस्याओं को समय रहते रोका जा सकता है।
दांतों में ठंडा-गरम लगना, कैविटी (कीड़ा लगना), पायरिया, मुंह से बदबू आना और दांतों का बदरंग होना जैसी बीमारियां सबसे सामान्य देखी जाती हैं। अधिकतर लोग इनमें से किसी न किसी परेशानी से दो-चार होते रहते हैं। आइये जानते हैं कि इन परेशानियों के कारण क्या हैं और इनसे कैसे बचा जा सकता है।
क्यों लगता है ठंडा गरम
दांत टूटने, नींद में किटकिटाने, दांतों के घिसने के बाद, मसूड़ों की जड़ें नजर और कैविटी के कारण दांतों में ठंडा-गरम लगने लगता है। इसके साथ ही ब्रश करते समय दांतों पर ज्यादा जोर डालने से भी दांत घिस जाते हैं और बहुत ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं।
बचाव के लिए क्या करें- ब्रश करते समय दांतों पर ज्यादा दबाव न डालें। और साथ ही दांतों को पीसने से बचें।
क्या है इलाज
इस समय का इलाज इस बात पर तय होता है कि आखिर आपको दांतों में ठंडा गरम लगने के पीछे कारण क्या है। फिर भी डॉक्टर खास टूथपेस्ट इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। आप डॉक्टरी सलाह के बिना भी बाजार में मिलने वाले सेंसेटिव टूथपेस्ट इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, अगर दो से तीन महीने पेस्ट करने के बाद भी आपको आराम न मिले तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिये।
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दांत में कीड़ा लगना
कई बार दांतों की सही प्रकार से देखभाल नहीं करने पर दांतों में सुराख हो जाता है और इस वजह से यह समस्या होती है। इसके साथ ही मुंह में बनने वाला एसिड भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। हमारे मुंह में बैक्टीरिया जरूर होते हैं। और जब खाने के बाद जब हम कुल्ला नहीं करते तो ये बैक्टीरिया मुंह में ही रह जाते हैं। इन परिस्थितियों में भोजन के कुछ ही देर बाद यह बैक्टीरिया मीठे या स्टार्च वाली चीजों को स्टार्च में बदल देते हैं। बैक्टीरिया युक्त यह एसिड और मुंह की लार मिलकर एक चिपचिपा पदार्थ (प्लाक) बनाते हैं। यह चिपचिपा पदार्थ दांतों के साथ चिपककर दांतों और मसूड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है। प्लाक का बैक्टीरिया जब दांतों में सुराख यानी कैविटी कर देता है तो इसे ही कीड़ा लगना अर्थात कैरीज कहते हैं।
कैसे बचें
इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप रात को जरूर ब्रश करके सोयें। इसके साथ मीठी या स्टार्च वाली चीजें कम खायें। इन चीजों के सेवन से आपके दांतों पर बुरा असर पड़ता है। खाने के बाद ब्रश या कुल्ला जरूर करें। अपने दांतों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
कैसे करें पहचान
क्या आपकें दांत अब चमचमाते नहीं हैं। क्या आपको दांतों पर भूरे और काले धब्बे नजर आने लगे हैं। भोजन आपके दांतों में फंसने लगा है। ठंडा - गरम लगता है, तो यह सब कैविटी के लक्षण हैं। आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिये। अगर आप जल्द ही इस समस्या की ओर ध्यान देंगे तो कैविटी को रोका जा सकता है।
जल्द पायें राहत
दांतों में दर्द होने पर सामान्य दर्द निवारक दवाओं का सेवन किया जा सकता है। आप पैरासिटामोल , एस्प्रिन , इबो - प्रोफिन आदि का सेवन कर सकते हैं। कुदरती इलाज के तौर पर दांतों में लौंग या उसका तेल भी लगाया जा सकता है। इससे मसूड़ों का दर्द कम हो जाता है। हां, दर्द दूर होने के बाद इसे भूल न जाएं। आपको डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग जरूर करवानी चाहिये।
फिलिंग है जरूरी
फिलिंग करवाये बिना दांतों में ठंडा-गरम और खट्टा मीठा लगता रहता है। इसके बाद आपको दांतों में दर्द भी हो सकता है। समस्या अधिक हो जाए तो पस भी बन सकती है। और आगे चलकर आपको रूट कनाल करवाना पड़ सकता है। इसलिए फिलिंग करवाने में देरी न करें।
सांस में बदबू
मसूड़ों और दांतों की अगर सही प्रकार सफाई न की जाए, तो उनमें सड़न और बीमारी के कारण सांसों में बदबू हो सकती है। कई बार खराब पेट या मुंह की लार का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। प्याज और लहसुन आदि खाने से भी मुंह से बदबू आने लगती है।
इलाज: लौंग , इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है। थोड़ी देर तक शुगर - फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।
पायरिया
मुंह से बदबू आने लगे, मसूड़ों में सूजन और खून निकलने लगे और चबाते हुए दर्द होने लगे तो पायरिया हो सकता है। पायरिया होने पर दांत के पीछे सफेद - पीले रंग की परत बन जाती है। कई बार हड्डी गल जाती है और दांत हिलने लगता है।पायरिया की मूल वजह दांतों की ढंग से सफाई न करना है।
इलाज: पायरिया का सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों तरह से इलाज होता है। शुरू में इलाज कराने से सर्जरी की नौबत नहीं आती। क्लीनिंग , डीप क्लीनिंग ( मसूड़ों के नीचे ) और फ्लैप सर्जरी से पायरिया का ट्रीटमंट होता है।
दांत निकालना कब जरूरी
दांत अगर पूरा खोखला हो गया हो , भयंकर इन्फेक्शन हो गया हो , मसूड़ों की बीमारी से दांत हिल गए हों या बीमारी दांतों की जड़ तक पहुंच गई हो तो दांत निकालना जरूरी हो जाता है।
ब्रश करने का सही तरीका
यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। ऐसे में दिन में कम - से - कम दो बार ब्रश जरूर करें और हर बार खाने के बाद कुल्ला करें। दांतों को तीन - चार मिनट ब्रश करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह मांजते हैं , जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं , उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है। दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे - धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी - बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों के बीच में फंसे कणों को फ्लॉस ( प्लास्टिक का धागा ) से निकालें। इसमें 7-8 मिनट लगते हैं और यह अपने देश में ज्यादा कॉमन नहीं है। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। उंगली या ब्रश से धीरे - धीरे मसूड़ों की मालिश करने से वे मजबूत होते हैं।
जीभ की सफाई जरूरी: जीभ को टंग क्लीनर और ब्रश , दोनों से साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें कि खून न निकले।
कैसा ब्रश सही: ब्रश सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। करीब दो-तीन महीने में या फिर जब ब्रसल्स फैल जाएं , तो ब्रश बदल देना चाहिए।
टूथपेस्ट की भूमिका
दांतों की सफाई में टूथपेस्ट की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक मीडियम है , जो लुब्रिकेशन , फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है। असली एक्शन ब्रश करता है। लेकिन फिर भी अगर टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें , तो उसमें फ्लॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमिंट वगैरह से ताजगी का अहसास होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना काफी होता है।
इसे भी पढ़ें:- दांतों की सेंसिविटी से छुटकारा पाना है, तो ब्रश करते समय ध्यान रखें ये 5 बातें
पाउडर और मंजन
टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें। टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है। टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं , बल्कि ब्रश से। मंजन इनेमल को घिस देता है।
दातुनः नीम के दातुन में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है लेकिन यह दांतों को पूरी तरह साफ नहीं कर पाता। बेहतर विकल्प ब्रश ही है। दातुन करनी ही हो तो पहले उसे अच्छी तरह चबाते रहें। जब दातुन का अगला हिस्सा नरम हो जाए तो फिर उसमें दांत धीरे - धीरे साफ करें। सख्त दातुन दांतों पर जोर - जोर से रगड़ने से दांत घिस जाते हैं।
माउथवॉशः मुंह में अच्छी खुशबू का अहसास कराता है। हाइजीन के लिहाज से अच्छा है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
नींद में दांत पीसना
वजह: गुस्सा , तनाव और आदत की वजह से कई लोग नींद में दांत पीसते हैं। इससे आगे जाकर दांत घिस जाते हैं।
बचाव: नाइटगार्ड यूज करना चाहिए।
स्केलिंग और पॉलिशिंग
दांतों पर जमा गंदगी को साफ करने के लिए स्केलिंग और फिर पॉलिशिंग की जाती है। यह हाथ और अल्ट्रासाउंड मशीन दोनों तरीकों से की जाती है। चाय - कॉफी , पा�� और तंबाकू आदि खाने से बदरंग हुए दांतों को सफेद करने के लिए ब्लीचिंग की जाती है। दांतों की सफेदी करीब डेढ़ - दो साल टिकती है और उसके बाद दोबारा ब्लीचिंग की जरूरत पड़ सकती है।
चेकअप कब कराएं
अगर कोई परेशानी नहीं है तो कैविटी के लिए अलग से चेकअप कराने की जरूरत नहीं है लेकिन हर छह महीने में एक बार दांतों की पूरी जांच करानी चाहिए।
मुस्कुराते रहें
मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है। सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है , वहीं मुस्कराहट से दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है , जिससे दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से एसिड भी बनता है , जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।
* बच्चों के दांतों की देखभाल
* छोटे बच्चों के मुंह में दूध की बोतल लगाकर न सुलाएं।
* चॉकलेट और च्यूइंगम न खिलाएं। खाएं भी तो तुरंत कुल्ला करें।
* बच्चे को अंगूठा न चूसने दें। इससे दांत टेढ़े - मेढ़े हो जाते हैं।
* डेढ़ साल की उम्र से ही अच्छी तरह ब्रशिंग की आदत डालें।
* छह साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न दें।
साभार
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केंद्र सरकार ने रहस्यमय बीज पार्सल को लेकर जारी की चेतावनी
नई दिल्ली। कृषि मंत्रालय ने रहस्यम बीजों के पैकेट को लेकर सभी राज्यों को चेतावनी जारी की है दरअसल पूरे विश्व में लोगों को मिस्ट्री बीजों के पैकेट मिल रहे हैं। भारत में भी लोगों को इस तरह के पैकेट मिले हैं। कृषि मंत्रालय के मुताबिक इन बीजों के रोपन से बायोडायवर्सिटी को खतरा हो सकता है। केंद्र ने राज्य सरकारों के साथ-साथ बीज उद्योग और अनुसंधान निकायों को अज्ञात स्रोतों से भारत में आने वाले ‘संदिग्ध या अवांछित बीज पार्सल’ के बारे में सतर्क किया है जो देश की जैव विविधता के लिए खतरा हो सकते हैं। कृषि मंत्रालय ने कहा है कि इस संबंध में एक निर्देश जारी किया गया है. पिछले कुछ महीनों में दुनिया भर में हजारों संदिग्ध बीज खेपों को भेजे जाने की सूचना प्राप्त हुई है। इसमें कहा गया है, ‘‘अज्ञात स्रोतों से भ्रामक पैकेज के साथ अनचाहे / संदिग्ध बीज पार्सल” का खतरा अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, जापान और कुछ यूरोपीय देशों में पाया गया था। मंत्रालय ने यह भी उल्लेख किया कि ‘‘अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने इसे ‘‘ब्रशिंग घोटाला” और ‘‘कृषि तस्करी” करार दिया है। बताया जा रहा है कि ये बीज मौजूदा फसल को नष्ट कर सकते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी ये बीज खतरा साबित हो सकते हैं। कई देशों को इस तरह के पैकेट से एग्री टेररिज्म की आशंका जताई है।
यह भी पढ़ें : भारतीय सैनिकों ने लश्कर के 2 ठिकानों का किया भंडाफोड़
सभी राज्यों के कृषि विभाग, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, बीज संघों, राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियों, बीज निगमों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ साथ उनके अपने फसल आधारित शोध संस्थानों को ‘संदिग्ध बीज पार्सल’ के बारे में ‘सतर्क’ रहने का निर्देश दिया है। सरकार के इस निर्देश पर फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के महानिदेशक राम कौंडिन्य ने एक बयान में कहा, अभी यह केवल बिना आर्डर के अनधिकृत स्रोतों से आने वाले बीजों के माध्यम से पौधों के रोगों के संभावित प्रसार के लिए एक चेतावनी है। बीज कौन सी बीमारियां ला सकती हैं, इसकी एक सीमा है। लेकिन फिर भी, यह एक खतरा है। उन्होंने कहा कि ये बीज एक आक्रामक प्रजाति या खरपतवार हो सकते हैं, जो भारतीय वातावरण में स्थापित होने पर देशी प्रजातियों का मुकाबला या उनका विस्थापन कर सकते हैं।
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