उत्तिष्ठ उत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठ गरूड़ध्वज।
उत्तिष्ठ कमलाकांत त्रैलोक्यं मंगलं कुरू।।
🌺 देवउठनी एकादशी और 🛕 तुलसी विवाह की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। ये पर्व आप सभी के जीवन में सुख, समृद्धि, ख़ुशहाली लेकर आएं। 🌺❤️🙏
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देवशयनी एकादशी (4 जुलाई 2017) पर मंगलवार को भगवान विष्णु तथा अन्य सभी देवी-देवताओं के शयन के लिए चले जाने पर चार माह के लिए शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी।
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चार महीने बाद आज योगनिद्रा से जागेंगे भगवान विष्णु, जानिए देवउठनी एकादशी का महत्व, पूजन-विधि और मंत्र
चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी का काफी महत्व है। इस साल देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु चार महीने तक सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु शालीग्राम रूप में तुलसी से विवाह करते हैं। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजन-विधि।
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देवउठनी एकादशी का महत्व
देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी या हरिप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के शयनकाल के बाद जागते हैं। विष्णु पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था। फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर भगवान विष्णु ने शयन किया। इसके बाद वह चार महीने की योग निद्रा त्यागने के बाद जागे। इसी के साथ देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से 100 गायों को दान के बराबर पुण्य मिलता है।
देवउठनी एकादशी पूजन-विधि
एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अब भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद आंगन में गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाएं।
चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं।
भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई समर्पित किया जाता है।
घी का एक दीपक जलाया जाता है जो कि रात भर जलता रहता है।
इसके बाद शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को यह कहते हुए उठाएं- 'उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास।'
भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
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चैतन्य भारत न्यूज
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का त्योहार मनाया जाएगा। इस बार देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। शास्त्रों के मुताबिक, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार महीने के लिए सो जाते हैं और एक ही बार कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। देवउठनी एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाता हैं। इस बार देवउठनी एकादशी पर अनोखा संयोग बन रहा है जिसके चलते शुभ फल की प्राप्ति होगी। आइए जानते हैं इस संयोग के बारे में और इस व्रत के नियम।
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देवउठनी एकादशी का शुभ संयोग
ज्योतिष के मुताबिक, इस साल देवउठनी एकादशी पर शनि और गुरु धनु राशि में रहेंगे। धनु राशि का स्वामी गुरु है। इस साल से 59 साल पहले 30 अक्टूबर 1960 को देवउठनी एकादशी पर गुरु-शनि का योग धनु राशि में था। इस बार धनु राशि में शनि और गुरु के साथ केतु भी रहेगा। ऐसा योग 1209 साल पहले बना था। 16 अक्टूबर 810 को गुरु, शनि और केतु का योग धनु राशि में था, उस दिन भी देवउठनी एकादशी मनाई गई थी।
देवउठनी एकादशी व्रत के नियम
निर्जला या सिर्फ ज्यूस और फल पर ही उपवास रखना चाहिए।
अगर रोगी, वृद्ध, बालक या व्यस्त व्यक्ति हैं तो वह कुछ घंटों का उपवास रखकर अपना व्रत खोल सकता है।
इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करते हैं।
पूजा के दौरान "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" मंत्र का लगातार जाप करना चाहिए।
इसके बाद व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है।
इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरु किए जा सकते हैं।
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8 नवंबर को है देवउठनी एकादशी, जानिए इसको मनाने की पौराणिक मान्यता और शुभ मुहूर्त
चैतन्य भारत न्यूज
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर श्री विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाई जाती है देवउठनी एकादशी और इसका शुभ मुहूर्त।
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इसलिए मनाई जाती है देवउठनी एकादशी
पुराणों के मुताबिक, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। फिर वे क्षीरसागर में आकर सो गए और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। देवश्यनी एकादशी के बाद से सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। जो कि देवउठनी एकादशी पर ही आकर फिर से शुरू होते हैं।
इस दिन तुलसी विवाह का महत्व
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही कर दिया था। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ जिसके बाद से ही शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।
देवउठनी एकादशी मंत्र
“उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।”
पूजा का शुभ मुहूर्त
7 नवंबर 2019 प्रात: 09:55 से 8 नवंबर 2019 को रात 12:24 तक
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