#दिल्ली का ताला
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आगरा में पुलिस हिरासत में मौत: थाना प्रभारी लाइन हाजिर, तीन दरोगा निलंबित?
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UP: Man Dies in Police Custody in Agra, SHO Transferred, Three Sub-Inspectors Suspended आगरा: पुलिस कस्टडी में मौत, थाना प्रभारी लाइन हाजिर, तीन दरोगा निलंबित AIN NEWS 1: आगरा के थाना डौकी क्षेत्र की कबीस पुलिस चौकी में एक व्यक्ति की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई, जिसके बाद पुलिस प्रशासन पर गंभीर आरोप लगे हैं। इस घटना के बाद स्थानीय लोग���ं में आक्रोश फैल गया, और उन्होंने जमकर प्रदर्शन किया। मामला गंभीर होने पर पुलिस उपायुक्त ने तत्काल कार्रवाई करते हुए थाना प्रभारी को लाइन हाजिर कर दिया और तीन दरोगाओं को निलंबित कर दिया। कैसे हुई घटना? गढ़ी हैसिया, डौकी निवासी केदार सिंह (52), जो कि गांव में ही आटा चक्की चलाते थे, को पुलिस ने धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के आरोप में हिरासत में लिया था। परिजनों के अनुसार, चार से पांच पुलिसकर्मी दोपहर 2 बजे जीप से उनके घर पहुंचे और बिना स्पष्ट कारण बताए उन्हें चौकी ले गए। जब परिजनों ने कारण पूछा, तो उन्हें बताया गया कि चौकी पहुंचने पर जानकारी दी जाएगी। परिजनों का आरोप: पुलिस ने थर्ड डिग्री दी परिजनों का आरोप है कि चौकी ले जाते समय बरौली अहीर मोड़ पर ही पुलिस ने गाड़ी में बैठाकर केदार सिंह को पीटना शुरू कर दिया। जब उनके परिवार के सदस्य पीछा करते हुए पहुंचे और पुलिस को रोकने की कोशिश की, तो पुलिसकर्मियों ने अनसुना कर दिया और उन्हें चौकी ले गए। चौकी में कथित तौर पर केदार सिंह के मुंह में कपड़ा ठूंसकर बर्बरतापूर्वक पीटा गया। शाम 4 बजे उनकी हालत बिगड़ने पर पुलिसकर्मी उन्हें एक ऑटो में अस्पताल लेकर गए, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। ग्रामीणों का आक्रोश, पुलिस चौकी पर हंगामा परिजनों को बिना बताए ही पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। जब ग्रामीणों को इस घटना की जानकारी मिली, तो उन्होंने पुलिस चौकी के बाहर प्रदर्शन किया और "पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद" के नारे लगाए। स्थिति बिगड़ती देख पुलिसकर्मी चौकी में ताला लगाकर वहां से भाग गए। बढ़ते आक्रोश के कारण शाम 6 बजे ग्रामीणों ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर टोल प्लाजा के पास जाम लगा दिया, जिससे दिल्ली, एत्मादपुर और आगरा की ओर जाने वाले वाहनों की लंबी कतार लग गई। प्रदर्शनकारी शव को लाने और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग करने लगे। पुलिस प्रशासन की कार्रवाई शाम 7:45 बजे डीसीपी पूर्वी जोन अतुल शर्मा मौके पर पहुंचे और मृतक की पत्नी से मुलाकात की। उन्होंने पुलिसकर्मियों पर हत्या का केस दर्ज करने की मांग की। स्थिति को नियंत्रित करने और भीड़ को शांत करने के लिए अधिकारियों ने निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया। इसके बाद पुलिस उपायुक्त ने ��ाना डौकी के प्रभारी निरीक्षक तरुण धीमान को लाइन हाजिर कर दिया। साथ ही, कबीस चौकी प्रभारी सिद्धार्थ चौधरी, दरोगा शिवमंगल और रामसेवक को निलंबित कर दिया गया। इनके खिलाफ विभागीय जांच के आदेश भी जारी किए गए हैं। स्थिति अब नियंत्रण में, लेकिन सवाल कायम करीब दो घंटे के प्रदर्शन और प्रशासन के आश्वासन के बाद ही जाम खुल पाया। लेकिन यह घटना एक बार फिर पुलिस हिरासत में हो रही मौतों और थर्ड डिग्री टॉर्चर के मामलों पर सवाल खड़ा कर रही है। परिजनों का साफ कहना है कि पुलिसकर्मियों ने क्रूरता दिखाई, जिससे केदार सिंह की मौत हुई। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष जांच कर दोषियों को सजा दिलाता है या नहीं। https://youtu.be/YF3CUb8h3Z4?si=gojJRNHIGMWNqZV_ A man died in police custody in Agra's Dauki police station under suspicious circumstances, leading to public outrage and protests. The deceased, Kedar Singh (52), was accused of fraud and detained by the police. Family members allege brutal third-degree torture, including stuffing cloth into his mouth and severe beating, leading to his death in custody. Following protests, the SHO was transferred, and three sub-inspectors were suspended. Authorities have promised a fair investigation into the custodial death case in UP. This incident has sparked fresh debates on police brutality in India. Read the full article
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50 साल के व्यक्ति ने जहर खाकर चार बेटियों के साथ की खुदकुशी, सड़ी हुई हालत में मिली लाशें
#News 50 साल के व्यक्ति ने जहर खाकर चार बेटियों के साथ की खुदकुशी, सड़ी हुई हालत में मिली लाशें
Delhi News: दक्षिणी दिल्ली के रंगपुरी गांव में एक व्यक्ति ने अपनी चार बेटियों के साथ जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने शुक्रवार को फ्लैट का ताला तोड़कर शवों को बाहर निकाला। चारों बेटियां दिव्यांग होने के कारण चलने में असमर्थ थीं और पत्नी की मौत के बाद हीरालाल बेटियों की हालत देखकर पूरी तरह टूट गया। उसने बेटियों को सल्फास खिला दिया और खुद भी जान दे दी। पुलिस अधिकारी ने बताया कि 50…
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सलमान खान केस: मुंबई पुलिस का सिर दर्द बढ़ा गया अनुज थापन, बिश्नोई गैंग पर शिकंजा कसना अब होगा मुश्किल!
नई दिल्ली: दोपहर करीब 12:30 बजे का वक्त रहा होगा। मुंबई पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में बने लॉकअप के बाहर बुधवार को आम हलचल थी। रुटीन चेकिंग के लिए लॉकअप के ऑफिसर इंचार्ज फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचे। उनकी नजरें लॉकअप के अंदर झांक ही रहीं थी कि एक कैदी ने उनके कान खड़े कर दिए। उस कैदी ने बताया कि अनुज थापन टॉयलेट गया था, और अभी तक वापस नहीं लौटा। तुरंत लॉकअप का ताला खोला गया और ऑफिसर के साथ कुछ और पुलिसवाले अंदर दाखिल हुए। टॉयलेट का दरवाजा अंदर से बंद था। किसी तरह दरवाजा खोला गया तो भीतर का हाल देखकर पुलिसवालों की आंखें फटी रह गईं।टॉयलेट के अंदर अनुज थापन फंदा लगाकर लटका हुआ था। उसे तुरंत उतारा गया। पुलिसकर्मी आनन-फानन में उसे लेकर हॉस्पिटल भागे। लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने बताया कि अनुज थापन के अंदर सांसें नहीं बची हैं। इस बीच पुलिस के आला अफसर भी हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। खबर से मुंबई पुलिस की नींद उड़ गई। पूरे महकमे में एक हड़कंप मच गया। ये वही अनुज थापन था, जिसे सलमान खान के घर पर फायरिंग के लिए शूटर्स को हथियार पहुंचाने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था। मामले में मुंबई पुलिस ने एक्सिडेंटल डेथ का केस दर्ज किया है। साथ ही मौका-ए-वारदात के सीसीटीवी फुटेज भी सुरक्षित कर लिए हैं। अनुज की गिरफ्तारी और मकोका का चार्ज अनुज थापन को करीब 5-6 दिन पहले पंजाब के अबोहर से गिरफ्तार किया गया था। दरअसल, की जांच में जुटी मुंबई पुलिस लगातार मामले की कड़ियों को जोड़ रही थी। फायरिंग के तार गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई से जुड़े होने के बाद अनुज थापन की गिरफ्तारी पुलिस के लिए इस केस में एक बड़ा हथियार थी। जिसके बाद मुंबई पुलिस ने मामले में महाराष्ट्र संगठित अपरा�� नियंत्रण अधिनियम (मकोका) भी लगा दिया था। लेकिन, अब ने पुलिस का सिरदर्द बढ़ा दिया है। उसकी मौत के बाद पुलिस के लिए अब गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई पर शिकंजा कसना भी मुश्किल होगा। अनुज थापन की मौत से क्यों टेंशन में पुलिस? दरअसल, मामले में मकोका का जो चार्ज लगाया गया है, अनुज थापन की मौत के बाद वो कमजोर पड़ सकता है। इस बात की आशंका पुलिस के आला अफसरों को भी है। सलमान खान फायरिंग केस में मकोका का आरोप तभी टिक पाएगा, जब पकड़े गए आरोपियों में किसी एक का नाम पिछले 10 सालों के भीतर किसी चार्जशीट में आया हो। गिरफ्तार आरोपियों में केवल अनुज थापन ही था, जिसके खिलाफ पहले से हत्या की कोशिश और जबरन वसूली सहित संगीन धाराओं में तीन मुकदमे दर्ज थे। अनुज थापन ने क्यों की खुदकुशी? मुंबई पुलिस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अनुज थापन ने मकोका के डर की वजह से खुदकुशी जैसा बड़ा कदम उठाया। उसे लगने लगा था कि मामले में मकोका लगने के बाद अब कभी वो जेल से बाहर नहीं निकल पाएगा। हालांकि, अनुज थापन के परिवार ने खुदकुशी के दावों का खंडन किया है। परिवार से जुड़े एक सदस्य ने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर अनुज खुदकुशी क्यों करेगा? उन्होंने बताया कि वो एक जिंदादिल नौजवान था। एक ट्रासपोर्टर के पास उसकी ठीकठाक नौकरी चल रही थी। परिवार ने अनुज की मौत के पीछे साजिश का अंदेशा जताया है। इस वक्त कहां हैं बाकी तीनों आरोपी? अनुज थापन की मौत के मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी गई है। जिस लॉकअप में उसने खुदकुशी की, वो कमिश्नर दफ्तर के फर्स्ट फ्लोर पर बना है। इस पुरानी बिल्डिंग में पहले और दूसरे फ्लोर पर लॉकअप हैं और बुधवार को 11 आरोपी इनमें बंद थे। पिस्टल सप्लाई करने का दूसरा आरोपी अपनी पुरानी चोट की वजह से इस वक्त न्यायिक हिरासत में है। हालांकि, सलमान खान के घर पर फायरिंग के मुख्य आरोपी विक्की गुप्ता और सागर पाल को यहां नहीं रखा गया था। ये पूरी बिल्डिंग सीसीटीवी कैमरों से कवर है। http://dlvr.it/T6JVGW
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Jharkhand bokaro theft : बोकारो की बारी कोऑपरेटिव कॉलोनी के घर से 25 लाख के सामान व नगत की चोरी, खिड़की का ग्रिल काट कर बंद घर में घुसे चोर ले गये सारे कीमती सामान, देखें video
अनिल कुमार/बोकारो : बोकारो के सेक्टर 12 थाना क्षेत्र की बारी को ऑपरेटिव कॉलोनी निवासी बीएसएल कर्मी धर्मेंद्र कुमार सिंह के बंद आवास से चोरों ने 20 से 25 लाख रुपये के सामानों की चोरी कर ली है. (नीचे भी पढ़ें) गृह स्वामी धर्मेंद्र ने बताया कि वे विगत 21 अप्रैल से दिल्ली गये हुए थे. 28 अप्रैल की रात 12 बजे जब वह लौट कर घर आये और घर का ताला खोला तो देखा कि घर की खिड़की का ग्रिल कटा हुआ है और गोदरेज…
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Govt will take call on Lockdown 5.0 regulations: Delhi top cop to India TV छवि स्रोत: PIXABAY लॉकडाउन 5.0 नियमों पर सरकार का कहना है: इंडिया टीवी के लिए शीर्ष पुलिस
#कोरोनावाइरस प्रकोप#कोविद -19 डेलही#कोविद -19 नवीनतम समाचार#डेल्ही कोरोनावायरस#डेल्ही कोरोनावायरस lcokdown 5.0#दिल्ली का ताला#लॉकडाउन 5.0 दिल्ली
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यहाँ दिल्ली में व्हाट्सएप और व्हाट्सएप की सूची बंद है
यहाँ दिल्ली में व्हाट्सएप और व्हाट्सएप की सूची बंद है
दिल्ली कर्फ्यू: ऑटो और कैब को केवल दो यात्रियों तक ले जाने की अनुमति होगी नई दिल्ली: दिल्ली में सोमवार रात 10 बजे से सोमवार सुबह 5 बजे तक तालाबंदी होगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज घोषणा की कि कोरोनोवायरस की दूसरी और अधिक घातक लहर ने धीमे होने के संकेत दिए। उसको जोड़ना लॉकडाउन दिल्ली में एक बड़े संकट को रोकने के लिए आवश्यक था, श्री केजरीवाल ने कहा: “सरकार आपका पूरा ध्यान रखेगी। हमने इस…
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#delhi लॉकडाउन न्यूज़ आज#whats ने दिल्ली का ताला खोला#दिल्ली कर्फ्यू#दिल्ली कर्फ्यू न्यूज़#दिल्ली में कर्फ्यू#दिल्ली में तालाबंदी#दिल्ली लॉकडाउन#दिल्ली लॉकडाउन नियम#दिल्ली लॉकडाउन न्यूज़#दिल्ली समाचार#लॉकडाउन न्यूज़
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कोरोन��� डायरी / अभिषेक श्रीवास्तव
22 मार्च, 2020
कम से कम छह किस्म की चिड़ियों की आवाज़ आ रही है।
कबूतर सांस ले रहे हैं, गोया हांफ रहे हों। तोते फर्र फुर्र करते हुए टें टें मचाये हुए हैं। एक झींगुरनुमा आवाज़ है, तो एक चुकचुकहवा जैसी। एक चिड़िया सीटी बजा रही है। दूसरी ट्वीट ट्वीट कर रही है। इसी कोरस में कहीं से चियांओ चियांओ, कभी कभी टिल्ल टिल्ल टाइप ध्वनि भी पकड़ में आती है। पूरा मोहल्ला अजायबघर हुआ पड़ा है।
अकेले कुत्ते हैं जो सदियों बाद धरती पर अपने सबसे अच्छे दोस्त मनुष्य की गैर-मौजूदगी से हैरान परेशान हैं। उनसे बोला भी नहीं जा रहा। वे आसमान की ओर देख कर कूंकते हैं, फिर कंक्रीट पर लोटते हुए चारों टांगें अंतरिक्ष में फेंक देते हैं। कुछ दूर दौड़ कर पार्क के गेट तक आते हैं। ताला बंद पाकर वापस गली में पहुंच जाते हैं। दाएं बाएं बालकनियों को निहारते हैं। रेंगनियों पर केवल सूखते कपड़े नज़र आते हैं।
इंसान अपने पिंजरे में कैद है। जानवरों से दुनिया आबाद है। ये सन्नाटा नहीं, किसी अज़ाब के गिरने की आहट है।
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शाम से बिलकुल तस्कर टाइप फील हो रहा है।
दो दिन पहले रजनी तुलसी का स्टॉक भरने का ख़याल आया था। आश्वासन मिला कि ज़रूरत नहीं है, सब मिलेगा, यहीं मिलेगा। मैंने चेताया कि बॉस, कर्फ्यू है, घंटा मिलेगा। जवाब मिला, जनता का कर्फ्यू है, स्वेच्छा का मामला है, दिक्कत नहीं होगी। शाम को जब स्टॉक खत्म हुआ, तो दैनिक सहजता के साथ मैं चौराहे पर निकला। सब बंद था। केवल मदर डेयरी खुली थी। लगे हाथ दूध ले लिया। दूध को चबाया नहीं जा सकता यह मैं अच्छे से जानता हूं। संकट सघन था, अजब मन था। आदमी को काम पर लगाया गया। तम्बाकू की संभावना देख भीड़ जुट गयी। इसी बीच किसी ने मुखबिरी कर दी।
इसके बाद ��ी कहानी इतिहास है। आगे पीछे से हूटर बजाती पुलिस की जीपों और पुलिस मित्र जनता की निगहबानी के बीच एक डब्बा रजनी और दो ज़िपर तुलसी मैंने पार कर दी। इमरजेंसी के बीच गांजे का जुगाड़ करने मित्र के यहां गए कानपुर के उस नेता की याद बरबस हो आयी जो विजया भाव से लौटते वक्त बीच में धरा गये थे और आज तक आपातकाल के स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन समाजवादी पार्टी से पाते हैं।
तस्करी के माल का रस ले लेकर तब से सोच रहा हूं, काश यह संवैधानिक इमरजेंसी होती। मोदीजी भी न! राफेल से लेकर कर्फ्यू तक, हर काम off the shelf करते हैं!
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24 मार्च, 2020
आधी रात जा चुकी। आधी बच रही है। घर में दो दिन बंद हुए भारी पड़ रहे हैं पड़ोसी को। इस वक़्त चिल्ला रहा है। बीवी को चुप करा रहा है। परसों मेरे ऊपर वाले फ्लैट में विदेश से कुछ लोग वापस लौटे और ट्रक में सामान लोड करवाने लगे। कल बचा हुआ सामान लेने आए थे, कि पुलिस बुला ली गई। खबर फैली कि लोग इटली से आए थे। असामाजिक सोसायटियों में नेतागिरी के नए ठौर RWA के सदस्यों को चिल्लाने का बहाना मिल गया। मीटिंग जमी। बगल वाली सोसायटी में कोई दुबई से आया था, वहां भी पुलिस अाई।
लोगों को अपनी पॉवर दिखाने का नया बहाना मिला है। जनता पहली बार जनता के लिए पुलिस बुलवा रही है। दिल्ली पुलिस बरसों से कह रही है, हमारे आंख कान बनो। मौका अब आया है। एक मित्र बता रहे थे कि शहर से जो गांव जा रहा है, गांव वाले उसकी रिपोर्ट थाने में दे रहे हैं। मित्र नवीन के लिए पुलिस नहीं बुलवानी पड़ी, उन्हें रास्ते में ही पुलिसवालों ने पीट दिया। एक वायरस ने यहां पुलिस स्टेट को न सिर्फ और मजबूत बना दिया है, बल्कि स्वीकार्य भी। सड़क पर कोई कुचल जाता है तो लोग मुंह फेर कर निकल लेते हैं। अब कोई खांस दे रहा है तो लोग सौ नंबर दबा दे रहे हैं।
समय बदल चुका है। यह बात झूठी है कि बाढ़ आती है तो सांप और नेवला एक पेड़ पर चढ़ जाते हैं। हर बाढ़ सांप को और ज़हरीला बनाती है, नेक्लों को और कटहा। अनुभव बताते हैं कि अकाल के दौर में मनुष्य नरभक्षी हुआ है। चिंपांज़ी पर पावलोव का प्रयोग सौ साल पहले यही सिखा गया है। जिन्हें लगता है कि नवउदारवाद की नींव कमजोर पड़ रही है, वे गलती पर हैं। यह नवउदारवाद का पोस्ट कैपिटलिस्ट यानी उत्तर पूंजीवादी संक्रमण है जहां पूंजीवाद और लोकतंत्र के बुनियादी आदर्श भी फेल हो ��ाने हैं। आदमी के आदमी बचने की गुंजाइश खत्म होती दिखती है गोकि आदमी की औकात एक अदद वायरस ने नाप दी है।
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25 मार्च, 2020
मेरा दोस्त मकनपुर रोड को खारदुंगला पास कहता है। आज प्रधान जी के ऐलान के बाद पहली बार उसके कहे का अहसास हुआ। पैदल तो पैदल, गाड़ीवाले भी भाक्काटे के मूड में लहरा रहे थे। पहला नज़ारा गली में पतंजलि और श्रीश्री की ज्वाइंट दुकान। बंटोरा बंटोरी चल रही थी। सामने परचून वाले के यहां जनता का शटर लगा हुआ था, कुछ नहीं दिख रहा था। मदर डेयरी के बाहर कोई तीसेक लोगों की कतार। सब्ज़ी वाला हलवाई बन चुका था, बचे खुचे प्याज और टमाटर गुलाबजामुन हो गए थे और इंसान मक्खी। प्याज पर जब हमला हुआ तो खुद दुकान के भीतर से एक आदमी आकर छिलके में से कुछ चुनने लगा। मैंने तरेरा, तो बोला - घरे भी ले जाना है न!
आज पहली बार पता चला कि केवल त्यागीजी की चक्की का आटा लोग यहां नहीं खाते। दो लोकप्रिय विकल्प और हैं। मैं दूसरी चक्की में नंबर लगवा के निकल लिया। लौटने के बाद भी आटा मिलने में पंद्रह मिनट लगा। चीनी गायब थी। नमक गायब। चावल लहरा चुका था। तेल फिसल गया था। एक जगह नमक मांगा। बोला पैंतीस वाला है। जब सत्ताईस का आटा अड़तीस में लिया, तो नमक से कैसी नमक हरामी। तुरंत दबा लिया। एटीएम खाली हो चुका था, कैश क्रंच है। ग्रोफर वाले ने ऑर्डर डिलिवरी को मीयाद अब बढ़ा कर 6 अप्रैल कर दी है। सोचा लगे हाथ मैगी के पैकेट दबा दिए जाएं।
एक दुकान पर पूरी शेल्फ पीली नज़र आती थी। दशकों का अनुभव है, आंख से सूंघ लिया मैंने कि मैगी है। मैंने कहा - अंकल, दस पैकेट दस वाले। अंकल ने बारह वाले पांच पकड़ाए और बोले - बस! मैंने पांच और की ज़िच की। उन्होंने समझाया - बेटे, और लोग भी हैं, सब थोड़ा थोड़ा खाएं, क्या हर्ज़ है! अंकल लाहौर से आए थे आज़ादी के ज़माने में, शायद तकसीम का मंज़र उन्हें याद हो। वरना ऐसी बातें आजकल कहां सुनने को मिलती हैं। जिस बदहवासी में लोग सड़कों पर निकले थे, ऐसी बात कहने वाले का लिंच होना बदा था। क्या जाने हो ही जाए ऐसा कुछ, अभी तो पूरे इक्कीस दिन बाकी हैं।
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आज बहुत लोगों से फोन पर बात हुई। चौथा दिन है बंदी का, लग रहा है कि लोग हांफना शुरू कर चुके हैं। अचानक मिली छुट्टी वाला शुरुआती उत्साह छीज रहा है। चेहरे पर हवा उड़ने लगी है। कितना नेटफ्लिक्स देखें, कितना फेसबुक करें, कितना फोन पर एक ही चीज के बारे में बात करें, कितनी अफ़वाह फैलाएं वॉट्सएप से? कायदे से चार दिन एक जगह नहीं टिक पा रहे हैं लोग, चकरघिन्नी बने हुए हैं जैसे सबके पैर में चक्र हो। ये सब समाज में अस्वस्थता के लक्षण हैं। अस्वस्थ समाज लाला का जिन्न होता है, हुकुम के बगैर जी नहीं सकता।
स्वस्थ समाज, स्वस्थ आदमी, मने स्व में स्थित। स्व में जो स्थित है, उसे गति नहीं पकड़ती। गति को वह अपनी मर्ज़ी से पकड़ता है। गति में भी स्थिर रहता है। अब सारी अवस्थिति, सारी चेतना हमारी, बाहर की ओर लक्षित रही इतने साल। हमने शतरंज खेलना छोड़ दिया। हॉकी को कौन पूछे, खुद हॉकी वाले छोटे छोटे पास देने की पारंपरिक कला भूल गए। क्रिकेट पर ट्वेंटी ट्वेंटी का कब्ज़ा हो गया। घर में अंत्याक्षरी खेले कितनों को कितने बरस हुए? किताब पढ़ना भूल जाइए ट्विटर के दौर में, उतना श्रम पैसा मिलने पर भी लोग न करें। खाली बैठ कर सोचना भी एक काम है, लेकिन ऐसा कहने वाला आज पागल करार दिया जाएगा।
ये इक्कीस दिन आर्थिक और सामाजिक रूप से भले विनाशक साबित हों, लेकिन सांस्कृतिक स्तर पर इसका असर बुनियादी और दीर्घकालिक होगा। बीते पच्चीस साल में मनुष्य से कंज्यूमर बने लोगों की विकृत सांस्कृतिकता, आधुनिकता के कई अंधेरे पहलू सामने आएंगे। कुछ लोग शायद ठहर जाएं। अदृश्य गुलामियों को पहचान जाएं। रुक कर सोचें, क्या पाया, क्या खोया। बाकी ज़्यादातर मध्यवर्ग एक पक चुके नासूर की तरह फूटेगा क्योंकि संस्कृति के मोर्चे पर जिन्हें काम करना था, वे सब के सब राजनीतिक हो गए हैं। जो कुसंस्कृति के वाहक थे, वे संस्कार सिखा रहे हैं।
गाड़ी का स्टीयरिंग बहुत पहले दाहिने हाथ आ गया था, दिक्कत ये है कि चालक कच्चा है। उसने गाड़ी बैकगियर में लगा दी है और रियर व्यू मिरर फूटा हुआ है। सवारी बेसब्र है। उसे रोमांच चाहिए। इस गाड़ी का लड़ना तय है। तीन हफ्ते की नाकाबंदी में ऐक्सिडेंट होगा। सवारी के सिर से खून नहीं निकलेगा। मूर्खता, ���ाखंड, जड़ता का गाढ़ा मवाद निकलेगा। भेजा खुलकर बिखर जाएगा सरेराह। जिस दिन कर्फ्यू टूटेगा, स्वच्छता अभियान वाले उस सुबह मगज बंटोर के ले जाएंगे और रिप्रोग्राम कर देंगे। एक बार फिर हम गुलामियों को स्वतंत्रता के ��ूप में परिभाषित कर के रेत में सिर गड़ा लेंगे।
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27 मार्च, 2020
एक राज्य के फलाने के माध्यम से दूसरे राज्य से ढेकाने का फोन आया: "भाई साहब, बड़ी मेहरबानी होगी आपकी, मुझे किसी तरह यहां से निकालो। फंसा हुआ हूं, पहुंचना ज़रूरी है। मेरे लोग परेशान हैं।" अकेले निकालना होता तो मैं सोचता। साथ में एक झंडी लगी बड़ी सी गाड़ी भी थी जो देखते ही पुलिस की निगाह में गड़ जाती। वैसे सज्जन पुरुष थे। नेता थे। दो बार के विधायकी के असफल प्रत्याशी। समस्या एक नहीं, दो राज्यों की सीमा पार करवाने की थी। उनकी समस्या घर पहुंचने की नहीं क्योंकि वे घर में ही थे। समस्या अपने क्षेत्र और लोगों के बीच पहुंचने की थी। ज़ाहिर है, इन्हें गाड़ी से ही जाना था।
एक और फोन आया किसी के माध्यम से किसी का। यहां घर पहुंचने की ऐसी अदम्य बेचैनी थी कि आदमी पैदल ही निकल चुका था अपने जैसों के साथ। तीन राज्य पार घर के लिए। ये भी सज्जन था। इसे बस घरवालों की चिंता थी। वो पहुंचता, तब जाकर राशन का इंतजाम होता उसकी दो महीने की पगार से। ऐसा ही फंसा हुआ एक तीसरा मामला अपना करीबी निकला, पारिवारिक। सरकारी नौकरी में लगे दंपत्ति दो अलग शहरों में फंस गए थे, एक ही राज्य में। लोग हज़ार किलोमीटर पैदल निकलने का साहस कर ले रहे हैं। यहां ऐसा करना तसव्वुर में भी नहीं रहा जबकि फासला सौ किलोमीटर से ज़्यादा नहीं है। वे न मिलें तो भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि उन्हें चूल्हे चौकी की चिंता नहीं। बस प्रेम है, जो खींच रहा था।
पहला केस सेवाभाव वाला है। एक भला नेता अपने लोगों के बीच जल्द से जल्द पहुंचना चाह रहा है। दूसरा केस आजीविका और ज़िन्दगी का है। यह भला आदमी नहीं पहुंचा तो परिवार भुखमरी का शिकार हो जाएगा। तीसरा केस अपना है, विशुद्ध मध्यमवर्गीय और भला। यहां केवल पहुंचना है, उसके पीछे कोई ठोस उद्देश्य नहीं है, सिवाय एक नाज़ुक धागे के, जिसे प्रेम कहते हैं। पहुंचने की बेसब्री और तीव्रता के मामले में तीनों अलग केस हैं। पहला घर से समाज में जाना चाहता है, लेकिन पैदल नहीं जा सकता। बाकी दो घर जाना चाहते हैं, लेकिन पैदल वही निकलता है जिसकी ज़िन्दगी दांव पर लगी है। समाज के ये तीन संस्तर भी हैं। तीन वर्ग कह लीजिए।
मुश्किल वक्त में चीजें ब्लैक एंड व्हाइट हो जाती हैं। प्राथमिकताएं साफ़। वर्गों की पहचान संकटग्रस्त समाज में ही हो पाती है। अगर मेरे पास किसी को कहीं से कहीं पहुंचवाने का सामर्थ्य होता तो सबसे पहले मैं पैदल मजदूर को उठाता। उस��े फारिग होने के बाद भले नेता को। अंत में मध्यमवर्गीय दंपत्ति को। इस हिसाब से संकट के प्रसार की दिशा को समझिए। सबसे पहले गरीब मरेगा। उसके बाद गरीबों के बारे में सोचने वाले। सबसे अंत में मरेंगे वे, जिन्हें अपने कम्फर्ट से मतलब है। ये शायद न भी मरें, बचे रह जाएं।
सबसे अंतिम कड़ी की सामाजिक उदासीनता ही बाकी सभी संकटों को परिभाषित करती है - जिसे हम महान मिडिल क्लास कहते हैं। ये वर्ग अपने आप में समस्या है। दुनिया को ये कभी नहीं बचाएगा। कफ़न ओढ़ कर अपना मज़ार देखने का ये आदी हो चुका है। दुनिया बचेगी तो गरीब के जीवट से और एलीट की करुणा से। क्लास स्ट्रगल की थिअरी में इसे कैसे आर्टिकुलेट किया जाए, ये भी अपने आप में विचित्र भारतीय समस्या है।
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28 मार्च, 2020
बलिया के मनियर निवासी 14 प्रवासी मजदूरों के फरीदाबाद में अटके होने की शाम को सूचना मिली। इनमें दो बच्चे भी थे, चार और छह साल के। मित्रों को फोन घुमाया गया। एक पुलिस अधिकारी के माध्यम से प्रवासियों तक भोजन पहुंचवाने की अनौपचारिक गुंजाइश बन गई। फिर भी सौ नंबर पर फोन कर के ऑफिशली कॉल रजिस्टर करवाने की सलाह उन्हें दी गई। वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। सबने समझाया, लेकिन तैयार ही नहीं हुए। बोले, पुलिस आएगी तो मारेगी। उल्टे भाई लोगों ने कैमरे में एक वीडियो रिकॉर्ड कर के भिजवा दिया, सरकार से मदद मांगते हुए कि भोजन वोजन नहीं, हमें गांव पहुंचाया जाए। बस, पुलिस न आवे।
इस घटना ने नोटबंदी के एक वाकये की याद दिला दी। नोटबंदी की घोषणा के बाद चौराहे से चाय वाला अचानक गायब हो गया था। बहुत दिन बाद मैंने ऐसे ही उसकी याद में उसका ज़िक्र करते हुए जनश्रुति के आधार पर एक पोस्ट लिखी। उसे अगले दिन नवभारत टाइम्स ने छाप दिया। शाम को मैं चौराहे पर निकला। पहले सब्ज़ी वाले ने पूछा। फिर रिक्शे वाले ने। फिर एक और रिक्शे वाले ने। फिर नाई ने पूछा। सबने एक ही सवाल अलग अलग ढंग से पूछा- "क्यों गरीब आदमी को मरवाना चाहते हो, पत्रकार साहब? आपने लिख दिया कि वो महीने भर से गायब है, अब कहीं पुलिस उसे पकड़ न ले!" एक सहज सी पोस्ट और उसके अख़बार में आ जाने के चलते मैं उस चायवाले के सारे हितैषियों की निगाह में संदिग्ध हो गया। यह मेरी समझ से बाहर था। अप्रत्याशित।
प्रवासी मजदूरों, दिहाड़ी श्रमिकों, गरीबों, मजलूमों पर लिखना एक बात है। मध्यमवर्गीय पत्रकार के दिल को संतोष मिलता है कि चलो, एक भला काम किया। आप नहीं जानते कि आपके लिखे को आपके किरदार ने लि��ा कैसे है। हो सकता है अख़बार में अपने नाम को देख कर, अपनी कहानी सुन कर, वह डर जाए। आपको पुलिस का आदमी मान बैठे। फिर जब आप प्रोएक्टिव भूमिका में लिखने से आगे बढ़ते हैं, तो उनसे डील करने में समस्या आती है। आपके फ्रेम और उनके फ्रेम में फर्क है। मैं इस बात को जानता हूं कि कमिश्नर को कह दिया तो मदद हो ही जाएगी, लेकिन उसको तो पुलिस के नाम से ही डर लगता है। वो आपको पुलिस का एजेंट समझ सकता है। आपके सदिच्छा, सरोकार, उसके लिए साजिश हो सकते हैं।
वर्ग केवल इकोनोमिक कैटेगरी नहीं है। उसका सांस्कृतिक आयाम भी होता है। यही आयाम स्टेट सहित दूसरी ताकतों और अन्य वर्गों के प्रति एक मनुष्य के सोच को बनाता है। इस सोच का फ़र्क दो वर्गों के परस्पर संवाद, संपर्क और संलग्नता से मालूम पड़ता है। अगर आप एक इंसान की तरफ हाथ बढ़ाते वक़्त उसके वर्ग निर्मित सांस्कृतिक मानस के प्रति सेंसिटिव और अलर्ट नहीं हैं, तो आपको उसकी एक अदद हरकत या प्रतिक्रिया ही मानवरोधी बना सकती है। गरीब, वंचित, पीड़ित का संकट यदि हमारा स्वानुभूत नहीं है तो कोई बात नहीं, सहानुभूत तो होना ही चाहिए, कम से कम! इससे कम पर केवल कविता होगी, जो फटी बिवाइयां भरने में किसी काम नहीं आती।
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29 मार्च, 2020
माना आप बहुत सयाने हैं। आप जानते हैं कि मौत यहां भी है और वहां भी, इसलिए गांव लौट जाना ज़िन्दगी की गारंटी नहीं है। आप ठीक कहते हैं कि गांव न जाकर शहर में जहां एक आदमी अकेला मरता, वहीं उस आदमी के गांव चले जाने से कई की ज़िन्दगी खतरे में पड़ सकती है। सच बात है। तो क्या करे वो आदमी? गांव से दूर परदेस में पड़ा पड़ा हाथ धोता रहे? दूर दूर रहे अपनों से? मास्क लगाए? गरम पानी पीये? लौंग दबाए? क्या इससे ज़िन्दगी बच जाएगी?
वैसे, आपको खुद इस सब पर भरोसा है क्या? दिल पर हाथ रख कर कहिए वे लोग, जिन्हें एनएच-24 पर लगा रेला आंखों में दो दिन से चुभ रहा है। आप मास्क लगाए हैं, घर में कैद हैं, सैनिटाइजर मल रहे हैं, कुण्डी छूने से बच रहे हैं, गरम पानी पी रहे हैं। ये बताइए, मौत से आप ये स�� कर के बच जाएंगे इसका कितना भरोसा है आपको? होगी किसी की स्टैंडर्ड गाइडलाइन है, लेकिन दुश्मन तो अदृश्य है और उपचार नदारद। कहीं आप भी तो भ्रम में नहीं हैं? आपका भ्रम थोड़ा अंतरराष्ट्रीय है, वैज्ञानिक है। हाईवे पर दौड़ रहे लोगों का भ्रम भदेस है, गंवई है। आप खुद को व्यावहारिक, समझदार, पढ़ा लिखा वैज्ञानिक चेतना वाला शहरी मानते हैं। उन्हें जाहिल। बाकी उस शाम बजाई तो दोनों ने ��ी - आपने ताली, उन्होंने थाली! इतना ही फर्क है? बस?
भवानी बाबू आज होते तो दोबारा लिखते: एक यही बस बड़ा बस है / इसी बस से सब विरस है! तब तक तो आप और वे, सब बारह घंटे का खेल माने बैठे थे? जब पता चला कि वो ट्रेलर था, खेल इक्कीस दिन का है, तो आपके भीतर बैठा ओरांगुटांग निकल कर बाहर आ गया? आपके नाखून, जो ताली बजाते बजाते घिस चुके थे और दांत जो निपोरने और खाने के अलावा तीसरा काम भूल चुके थे, वे अपनी और गांव में बसे अपनों की ज़िन्दगी पर खतरा भांप कर अचानक उग आए? लगे नोंचने और डराने उन्हें, जिन्हें अपने गांव में ज़िन्दगी की अंतिम किरन दिख रही है! कहीं आपको डर तो नहीं है कि जिस गांव घर को आप फिक्स डिपोजिट मानकर छोड़ आए हैं और शहर की सुविधा में धंस चुके हैं, वहां आपकी बीमा पॉलिसी में ये लाखों करोड़ों मजलूम आग न लगा दें?
आप गाली उन्हें दे रहे हैं कि वे गांव छोड़कर ही क्यों आए। ये सवाल खुद से पूछ कर देखिए। फर्क बस भ्रम के सामान का ही तो है, जो आपने शहर में रहते जुटा लिया, वे नहीं जुटा सके। बाकी मौत आपके ऊपर भी मंडरा रही है, उनके भी। फर्क बस इतना है कि वे उम्मीद में घर की ओर जा रहे हैं, जबकि आप उनकी उम्मीद को गाली देकर अपनी मौत का डर कम कर रहे हैं। सोचिए, ज़्यादा लाचार कौन है? सोचिए, ज़्यादा अमानवीय कौन है? सोचिए ज़्यादा डरा हुआ कौन है?
सोचिए, और उनके बारे में भी सोचिए जिनके पास जीने का कोई भरम नहीं है। जिन्होंने कभी ताली नहीं पीटी, जो मास्क और सैनिटाइजर की बचावकारी क्षमता और सीमा को समझते हैं, और जिनके पास सुदूर जन्मभूमि में कोई बीमा पॉलिसी नहीं है, कोई जमीन जायदाद नहीं है, कोई घर नहीं है। मेरी पत्नी ने आज मुझसे पूछा कि अपने पास तो लौटने के लिए कहीं कुछ नहीं है और यहां भी अपना कुछ नहीं है, अपना क्या होगा? मेरे पास इसका जवाब नहीं था। फिलहाल वो बुखार में पड़ी है। ये बुखार पैदल सड़क नापते लोगों को देख कर इतना नहीं आया है, जितना उन्हें गाली देते अपने ही जैसे तमाम उखड़े हुए लोगों को देख कर आया है। दुख भी कोई चीज है, बंधु!
मनुष्य बनिए दोस्तों। संवेदना और प्रार्थना। बस इतने की दरकार है। एक यही बस, बड़ा बस है...।
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30 मार्च, 2020
आज हम लोग ऐसे ही चर्चा कर रहे थे कि जो लोग घर में बंद हैं, उनमें सबसे ज़्यादा दुखी कौन होगा। पहले ही जवाब पर सहमति बन गई - प्रेमी युगल। फिर 'रजनीगंधा' फिल्म का अचानक संदर्भ आया, कि दो व्यक्तियों के बीच भौतिक दूरी होने से प्रेम क्या वाकई छीज जाता होगा? हो सकता है। नहीं भी। कोई नियम नहीं है इसका। निर्भर इस बात पर कर��ा है कि दूरी की वजह क्या है।
इस धरती के समाज को जितना हम जानते हैं, दो व्यक्तियों के बीच कोई बीमारी या बीमारी की आशंका तो हमेशा से निकटता की ही वजह रही है। घर, परिवार, समाज, ऐसे ही अब तक टिके रहे हैं। ये समाज तो बलैया लेने वाला रहा है। बचपन से ही घर की औरतों ने हमें बुरी नज़र से बचाया है, अपने ऊपर सारी बलाएं ले ली है। यहीं हसरत जयपुरी लिखते हैं, "तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवाय, तुमको हमारी उमर लग जाय।" बाबर ने ऐसे ही तो हुमायूं की जान बचाई थी। उसके पलंग की परिक्रमा कर के अपनी उम्र बेटे को दे दी थी!
बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत प्रेम कथाओं में किशोर कुमार और मधुबाला का रिश्ता गिना जाता है। मधुबाला को कैंसर था, किशोर जानते थे फिर भी उनसे शादी रचाई। डॉक्टर कहते रह गए उनसे, कि पत्नी से दूर रहो। वे दूर नहीं हुए। जब खुद मधुबाला ने उनसे मिन्नत की, तब जाकर माने। अपने यहां एक बाबा आमटे हुए हैं। बाबा चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए थे लेकिन बारिश में भीगते एक कोढ़ी को टांगकर घर ले आए थे। बाद में उन्होंने पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों को समर्पित कर दिया। ऐसे उदाहरणों से इस देश का इतिहास भरा पड़ा है। सोचिए, बाबा ने कुष्ठ लग जाने के डर से उस आदमी को नहीं छुआ होता तो?
मेरे दिमाग में कुछ फिल्मी दृश्य स्थायी हो चुके हैं। उनमें एक है फिल्म शोले का दृश्य, जिसमें अपनी बहू राधा के जय के साथ दोबारा विवाह के लिए ठाकुर रिश्ता लेकर राधा के पिता के यहां जाते हैं। प्रस्ताव सुनकर राधा के पिता कह उठते हैं, "ये कैसे हो सकता है ठाकुर साब? समाज और बिरादरी वाले क्या कहेंगे?" यहां सलीम जावेद ने अपनी ज़िन्दगी का सबसे अच्छा डायलॉग संजीव कुमार से कहलवाया है, "समाज और बिरादरी इंसान को अकेलेपन से बचाने के लिए बने हैं, नर्मदा जी। किसी को अकेला रखने के लिए नहीं।"
यही समझ रही है हमारे समाज की। हम यहां तक अकेले नहीं पहुंचे हैं। साथ पहुंचे हैं। ज़ाहिर है, जब संकट साझा है, तो मौत भी साझा होगी और ज़िन्दगी भी। बाजारों में दुकानों के बाहर एक-एक ग्राहक के लिए अलग अलग ग्रह की तरह बने गोले; मुल्क के फ़कीर के झोले से सवा अरब आबादी को दी गई सोशल डिस्टेंसिंग नाम की गोली; फिर शहर और गांव के बीच अचानक तेज हुआ कंट्रास्ट; कुछ विद्वानों द्वारा यह कहा जाना कि अपने यहां तो हमेशा से ही सोशल डिस्टेंसिंग रही है जाति व्यवस्था के रूप में; इन सब से मिलकर जो महीन मनोवैज्ञानिक असर समाज के अवचेतन में पैठ रह�� है, पता नहीं वो आगे क्या रंग दिखाएगा। मुझे डर है।
बाबा आमटे के आश्रम का स्लोगन था, "श्रम ही हमारा श्रीराम है।" उस आश्रम को समाज बनना था। नहीं बन सका। श्रम अलग हो गया, श्रीराम अलग। ये संयोग नहीं है कि आज श्रीराम वाले श्रमिकों के खिलाफ खड़े दिखते हैं। अनुपम मिश्र की आजकल बहुत याद आती है, जो लिख गए कि साद, तालाब में नहीं समाज के दिमाग में जमी हुई है। आज वे होते तो शायद यही कहते कि वायरस दरअसल इस समाज के दिमाग में घुस चुका है। कहीं और घुसता तो समाज फिर भी बच जाता। दिमाग का मरना ही आदमी के मर जाने का पहला और सबसे प्रामाणिक लक्षण है।
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3 अप्रैल, 2020
इंसान के मनोभावों में भय सबसे आदिम प्रवृत्ति है। इसी भय ने हमें गढ़ा है। सदियों के विकासक्रम में इकलौता भय ही है, जो अब तक बना हुआ है। मन के गहरे तहखानों में, दीवारों से चिपटा। काई की तरह, हरा, ताज़ा, लेकिन आदिम। जब मनुष्य अपने विकासक्रम में छोटा हुआ करता था, उसे तमाम भय थे। जानवरों का भय प्राथमिक था। कोई भी आकर खा सकता था। सब बड़े-बड़े जंगली पशु होते थे। जो जितना बड़ा, छोटे को उतना भय। हर बड़ा अपने से छोटे को खाता था। यह जंगल का समाज था। शुरुआत में तो इसका इलाज यह निकाला गया कि जिससे ख़तरा हो उसके सामने ही न पड़ो। मचान पर पड़े रहो। पेड़ से लटके रहो। अपने घर के भीतर दुबके रहो। आखिर कोई कितना खुद को रोके लेकिन?
फिर मनुष्य ने भाषा विकसित की। हो हो, हुर्र हुर्र, गो गो जैसी आवाज़ें निकाली जाने लगीं जानलेवा पशु को भगाने के लिए। खतरा लगता, तो हम गो गो करने लग जाते। इसकी भी सीमा थी। पांच किलोमीटर दूर बैठे अपने भाई तक आवाज़ कैसे पहुंचाते? उसे सतर्क कैसे करते? फिर बजाने की कला आयी। खतरे का संकेत देने और भाइयों को सतर्क करने के लिए हमने ईंट बजायी, लकड़ी पीटी, दो पत्थरों को आपस में टकराया। तेज�� आवाज़ निकली, तो शिकार पर निकला प्रीडेटर मांद में छुप गया। फिर धीरे-धीरे उसे आवाज़ की आदत पड़ गयी। हम थाली पीटते, वह एकबारगी ठिठकता, फिर आखेट पर निकल जाता। समस्या वैसी ही रही।
एक दिन भय के मारे पत्थर से पत्थर को टकराते हुए अचानक चिंगारी निकल आयी। संयोग से वह चकमक पत्थर था। मनुष्य ने जाना कि पत्थर रगड़ने से आग निकलती है। ये सही था। अब पेड़ से नीचे उतर के, अपने घरों से बाहर आ के, अलाव जला के टाइट रहा जा सकता था। आग से जंगली पशु तो क्या, भूत तक भाग जाते हैं। रूहें भी पास आने से ��रती हैं। मानव विकास की यात्रा में हम यहां तक पहुंच गए, कि जब डर लगे बत्ती सुलगा लो। भाषा, ध्वनि, प्रकाश के संयोजन ने समाज को आगे बढ़ाने का काम किया। आग में गलाकर नुकीले हथियार बनाए गए। मनुष्य अब खुद शिकार करने लगा। पशुओं को मारकर खाने लगा। समाज गुणात्मक रूप से बदल गया। आदम का राज तो स्थापित हो गया, लेकिन कुदरत जंगली जानवरों से कहीं ज्यादा बड़ी चीज़ है। उसने सूक्ष्म रूप में हमले शुरू कर दिए। डर, जो दिमाग के भीतरी तहखानों में विलुप्ति के कगार पर जा चुका था, फिर से चमक उठा।
इस आदिम डर का क्या करें? विकसित समाज के मन में एक ही सवाल कौंध रहा था। राजा नृतत्वशास्त्री था। वह मनुष्य की आदिम प्रवृत्तियों को पहचानता था। दरअसल, इंसान की आदिम प्रवृत्तियों को संकट की घड़ी में खोपड़ी के भीतर से मय भेजा बाहर खींच निकाल लाना और सामने रख देना उसकी ट्रेनिंग का अनिवार्य हिस्सा था। उसका वजूद मस्तिष्क के तहखानों में चिपटी काई और फफूंद पर टिका हुआ था। चिंतित और संकटग्रस्त समाज को देखकर उसने कहा- "पीछे लौटो, आदम की औलाद बनो"। राजाज्ञा पर सब ने पहले कहा गो गो गो। काम नहीं बना। फिर समवेत् स्वर में बरतनों, डब्बों, लोहे-लक्कड़ और थाली से आवाज़ निकाली, गरीबों ने ताली पीटी। अबकी फिर काम नहीं बना। राजा ज्ञानी था, उसने कहा- "प्रकाश हो"!
अब प्रजा बत्ती बनाएगी, माचिस सुलगाएगी। उससे आग का जो पुनराविष्कार होगा, उसमें अस्त्र-संपन्न लोग अपने भाले तराशेंगे, ढोल की खाल गरमाएंगे। फिर एक दिन आदम की औलाद आग, ध्वनि और भाषा की नेमतें लिए सामूहिक आखेट पर निकलेगी। इस तरह यह समाज एक बार फिर गुणात्मक रूप से परिवर्तित हो जाएगा। पिछली बार प्रकृति के स्थूल तत्वों पर विजय प्राप्त की गयी थी। अबकी सूक्ष्म से सूक्ष्मतर तत्वों को निपटा दिया जाएगा।
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7 अप्रैल, 2020
मनुष्य की मनुष्यता सबसे प्रतिकूल परिस्थितियों में कसौटी पर चढ़ती है। आपकी गर्दन पर गड़ासा लटका हो, उस वक़्त आपके मन में जो खयाल आए, समझिए वही आपकी मूल प्रवृत्ति है। आम तौर से ज़्यादातर लोगों को जान जाने की स्थिति में भगवान याद आता है। कुछ को शैतान। भगवान और शैतान सबके एक नहीं होते। भूखे के लिए रोटी भगवान है। भरे पेट वाले के लिए धंधा भगवान है। भरी अंटी वाले के लिए बंदूक भगवान है। जिसके हाथ में बंदूक हो और सर पर भी तमंचा तना हो, उसके लिए? ये स्थिति ऊहापोह की है। आप एक ही वक़्त में जान ले भी सकते हैं और गंवा भी सकते हैं। जान लेने के चक्कर में जान जा सकत��� है। सामने वाले को अभयदान दे दिया तब भी जान जाएगी। क्या करेंगे?
एक ही वक़्त में सबसे कमज़ोर होना लेकिन सबसे ताकतवर महसूस करना, ये हमारी दुनिया की मौजूदा स्थिति है। हाथ में तलवार है लेकिन गर्दन पर तलवार लटकी हुई है। समझ ही नहीं आ रहा कौन ले रहा है और कौन दे रहा है, जान। ये स्थिति मोरलिटी यानी नैतिकता के लिए सबसे ज़्यादा फिसलन भरी होती है। यहां ब्लैक एंड व्हाइट का फर्क मिट जाता है। कायदे से, ये युद्ध का वक़्त है जिसमें युद्ध की नैतिकता ही चलेगी। जो युद्ध में हैं, जिनके हाथ में तलवार है, वे इसमें पार हो सकते हैं। संकट उनके यहां है जिनकी गर्दन फंसी हुई है और हाथ खाली है।
जिनके हाथ खाली हैं, उनमें ज़्यादातर ऐसे हैं जिन्होंने युद्ध के बजाय अमन की तैयारी की थी। उनकी कोई योजना नहीं थी भविष्य के लिए। वे खाली हाथ रह गए हैं। अब जान फंसी है, तो पलट के मार भी नहीं सकते। सीखा ही नहीं मारना। इसके अलावा, इस खेल के नियम उन्हीं को आते हैं जिन्होंने गुप्त कमरों में किताब पढ़ने के नाम पर षड्यंत्रों का अभ्यास किया था; जिन्होंने दफ्तरों में नौकरी की और दफ्तर के बाहर इन्कलाब; जिन्होंने मास्क लूटे और पब्लिक हेल्थ की बात भी करते रहे। अब संकट आया है तो उनके शोरूम और गोदाम दोनों तैयार हैं। जो लोग दुनिया को दुनिया की तरह देखते रहे- शतरंज की तरह नहीं- वे खेत रहेंगे इस बार भी। इस तरह लॉकडाउन के बाद की सुबह आएगी।
कैसी होगी वो सुबह? जो ज़िंदा बचेगा, उसके प्रशस्ति गान लिखे जाएंगे। वे ही इस महामारी का इतिहास भी लिखेंगे और ये भी लिखेंगे कि कैसे मनु बनकर वे इस झंझावात से अपनी नाव निकाल ले आए थे। जो निपट जाएंगे, वे प्लेग में छटपटा कर भागते, खून छोड़ते, मोटे, सूजे और अचानक बीच सड़क पलट गए चूहों की तरह ड्रम में भरकर कहीं फेंक दिए जाएंगे। उन्हें दुनिया की अर्थव्यवस्था को, आर्थिक वृद्धि को बरबाद करने वाले ज़हरीले प्राणियों में गिना जाएगा। हर बार जब जब महामारी अाई है, एक नई और कुछ ज़्यादा बुरी दुनिया छोड़ गई है। हर महामारी भले लोगों को मारती है, चाहे कुदरती हो या हमारी बनाई हुई। भले आदमी की दिक्कत ये भी है कि वो महामारी आने पर चिल्ला नहीं पाता। सबसे तेज़ चिल्लाना सबसे बुरे आदमी की निशानी है।
होता ये है कि जब बुरा आदमी चिल्लाता है तो भला आदमी डर के मारे भागने लगता है। भागते भागते वह हांफने लगता है और मर जाता है। बुरा आदमी जानता है कि दुनिया भले लोगों के कारण ही बची हुई थी। इसलिए वह दुनिया के डूबने का इल्ज़ाम भले लोगों पर लगा देता है। जैसे महामारी के बाद प्लेग का कारण चूहों को बता दिया जाता है, जबकि प्लेग के हालात तो बुर�� लोगों के पैदा किए हुए थे! चूहे तो चूहे हैं। मरने से बचते हैं तो कहीं खोह बनाकर छुप जाते हैं। कौन मरने निकले बाहर?
आदमी और चूहे की नैतिकता में फर्क होता है। घिरा हुआ आदमी मरते वक़्त अपने मरने का दोष कंधे पर डालने के लिए किसी चूहे की तलाश करता है। चूहे मरते वक़्त आदमी को नहीं, सहोदर को खोजते हैं। इस तरह इक्का दुक्का आदमी की मौत पर चूहों की सामूहिक मौत होती है। दुनिया ऐसे ही चलती है। हर महामारी के बाद आदमी भी ज़हरीला होता जाता है, चूहा भी। फिर एक दिन समझ ही नहीं आता कि प्लेग कौन फैला रहा है - आदमी या चूहा, लेकिन कटे कबंध हाथ भांजते चूहों को हथियारबंद मनुष्य का प्राथमिक दुश्मन ठहरा दिया जाता है। इस तरह हर बार ये दुनिया बदलती है। इस तरह ये दुनिया हर बदलाव के बाद जैसी की तैसी बनी रहती है।
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8 अप्रैल, 2020
बर्नी सांडर्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। बर्नी ने जो ट्वीट किया है उसे देखा जाना चाहिए: "मेरा कैंपेन भले समाप्त हो गया, लेकिन इंसाफ के लिए संघर्ष जारी रहना चाहिए।" आज ही यूरोपियन यूनियन के शीर्ष वैज्ञानिक और यूरोपीय रिसर्च काउंसिल के अध्यक्ष प्रोफेसर मौरो फरारी ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस्तीफा देते वक़्त क्या कहा, इसे भी देखें: "कोविड 19 पर यूरोपीय प्रतिक्रिया से मैं बेहद निराश हूं। कोविड 19 के संकट ने मेरे नज़रिए को बदल दिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय सहयोग के आदर्शों को मैं पूरे उत्साह के साथ समर्थन देता रहूंगा।"
जर्मनी के उस मंत्री को याद करिए जिसने रेलवे की पटरी पर लेट कर अपनी जान दे दी थी। थॉमस शेफर जर्मनी के हेसे प्रांत के आर्थिक विभाग के मुखिया थे। कोरोना संकट के दौर में वे दिन रात मेहनत कर के यह सुनिश्चित करने में लगे हुए थे कि महामारी के आर्थिक प्रभाव से मजदूरों और कंपनियों को कैसे बचाया जाए। वे ज़िंदा रहते तो अपने प्रांत के प्रमुख बन जाते, लेकिन उनसे यह दौर बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने ट्रेन के नीचे आकर अपनी जान दे दी।
दो व्याख्याएं हो सकती हैं बर्नी, फरारी और शेफर के फैसलों की: एक, वे जिस तंत्र में बदलाव की प्रक्रिया से जुड़े थे उस तंत्र ने इन्हें नाकाम कर दिया और इन्होंने पैर पीछे खींच लिए; दूसरे, संकट में फंसी दुनिया को बीच मझधार में इन्होंने गैर ज़िम्मेदार तरीके से छोड़ दिया। कुछ इंकलाबी मनई अतिउत्साह में कह सकते हैं कि बर्नी ने अमेरिकी जनवादी राजनीति के साथ, फरारी ने विज्ञान के साथ और शेफर ने जर्मनी की जनता के साथ सेबोटेज किया है। व्याख्या चाहे जो भी हो, अप्रत्याशित स्थितियां अप्रत्याशित फैसलों की म��ंग करती हैं। इन्होंने ऐसे ही फैसले लिए।
शेफर तो रहे नहीं, लेकिन फरारी और बर्नी सांडर्स के संदेश को देखिए तो असल बात पकड़ में आएगी। वो ये है, कि संघर्ष जारी रखने के दोनों हामी हैं और दोनों ने ही भविष्य के प्रति संघर्ष में अपनी प्रतिबद्धता जताई है। यही मूल बात है। एक चीज है अवस्थिति, दूसरी चीज है प्रक्रिया। ज़रूरी नहीं कि बदलाव की प्रक्रिया किसी अवस्थिति पर जाकर रुक जाए। ज़रूरी नहीं कि बदलाव की भावना से काम कर रहा व्यक्ति किसी संस्था या देश या किसी इकाई के प्रति समर्पित हो। समर्पण विचार के प्रति होता है, अपने लोगों के प्रति होता है। जो यह सूत्र समझता है, वह प्रक्रिया चलाता है, कहीं ठहरता नहीं, बंधता नहीं।
समस्या उनके साथ है जिन्होंने एक सच्चे परिवर्तनकामी से कहीं बंध जाने की अपेक्षा की थी। जब वह बंधन तोड़ता है, तो उसे विघ्नसंतोषी, विनाशक, अराजक और हंता कह दिया जाता है। ऐसे विश्लेषण न सिर्फ अवैज्ञानिक होते हैं, बल्कि प्रतिगामी राजनीति के वाहक भी होते हैं। नलके के मुंह पर हाथ लगा कर आप तेज़ी से आ रही जल को धार को कैसे रोक पाएंगे और कितनी देर तक? दुनिया जैसी है, उससे सुंदर चाहिए तो ऐसे बेचैन लोगों का सम्मान किया जाना होगा जिन्हें तंत्र ने नाकाम कर देने की कसम खाई है। तंत्र को तोड़ना, उससे बाहर निकलना, बदलाव की प्रक्रिया को जारी रखना ही सच्ची लड़ाई है। जो नलके के मुंह पर कपड़ा बांधते हैं, इतिहास उन्हें कचरे में फेंक देता है।
बर्नी सांडर्स और फरारी को सलाम! शेफर को श्रद्धांजलि! गली मोहल्ले से लेकर उत्तरी ध्रुव तक मनुष्य के बनाए बेईमान तंत्रों के भीतर फंसे हुए दुनिया के तमाम अच्छे लोगों को शुभकामनाएं, कि वे अपने सपनों की दुनिया को पाने की दौड़ बेझिझक बरकरार रख सकें।
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9 अप्रैल, 2020
बात पांच साल पहले की है। वह फरवरी की एक गहराती शाम थी। हलकी ठंड। मद्धम हवा। वसंत दिल्ली की सड़कों पर उतर चुका था। शिवाजी स्टेडियम के डीटीसी डिपो पर मैगज़ीन की दुकान लगाने वाले जगतजी दुकान समेटने के मूड में थे, लेकिन एक बुजुर्ग शख्स किसी अख़बार के भीतरी पन्नों में मगन था। जगतजी उन्हीं का इंतज़ार कर रहे थे। वे सीताराम बाज़ार के मूल निवासी रामगोपाल जी थे। थे इसलिए लिख रहा हूं कि पिछली बार जब फोन लगाया था दिल्ली चुनाव के दौरान, तो उनके बेटे ने उठाया था और बिना कुछ बोले काट दिया था। दोबारा मेरी हिम्मत नहीं बनी कॉल करने की।
रामगोपाल जी सन् चालीस की पैदाइश थे। पांचवीं पास थे। कनॉट प्लेस में एक साइकिल की दुकान हुआ करती थी तब, उसी के लालाजी के साथ टहला करते थे। ��क बार लालाजी उन्हें एम्स लेकर गये थे। ढलती शाम में भुनती मूंगफली और रोस्ट होते अंडों की मिश्रित खुशबू में रामगोपालजी ने यह किस्सा सुनाया था मुझे। वे एम्स में भर्ती मरीज़ से मिलकर जब बाहर निकले, तो बड़े परेशान थे। उस मरीज़ ने उन्हें सैर करने को कहा था। तब रामगोपालजी की उम्र पंद्रह साल थी यानी सन् पचपन की बात रही होगी। हंसते हुए उन्होंने मुझसे कहा, “पांचवीं पास बुद्धि कितना पकड़ेगी? मैंने तो बस सैर की... इतने महान आदमी थे वो... क्या तो नाम था, राहुल जी... हां... सांस्कृत्यायन जी...!"
राहुल सांकृत्यायन से एक अदद मुलाकात ने रामगोपाल की जिंदगी बदल दी। वे अगले साठ साल तक सैर ही करते रहे। रामगोपालजी को उनके लालाजी ने बाद में अज्ञेय से भी मिलवाया था। आज राहुल के बारे में दूसरों का लिखा देख अचानक रामगोपालजी की तस्वीर और दिल्ली की वो शाम मन में कौंध गयी। सोच रहा था कि क्या अब भी यह होता होगा कि एक लेखक की पहचान को जाने बगैर एक पंद्रह साल का लड़का उससे इत्तेफ़ाकन मिले और उसके कहे पर जिंदगी कुरबान कर दे? “सैर कर दुनिया की गाफ़िल...”, बस इतना ही तो कहा था राहुलजी ने रामगोपाल से! इसे रामगोपालजी ने अपनी जिंदगी का सूत्रवाक्य बना लिया! लगे हाथ मैं यह भी सोच रहा था कि आज राहुलजी होते तो लॉकडाउन में सैर करने के अपने फलसफ़े को कैसे बचाते? आज चाहकर भी आप या हम अपनी मर्जी से सैर नहीं कर सकते। ढेरों पाबंदियां आयद हैं।
बहरहाल, कभी कनॉट प्लेस के इलाके में सैर करते हुए आप शाम छह बजे के बाद पहुंचें तो आंखें खुली रखिएगा। अज्ञेय कट दाढ़ी वाला, अज्ञेय के ही कद व डीलडौल वाला, मोटे सूत का फिरननुमा कुर्ता पहने, काली गांधी टोपी ओढ़े और पतले फ्रेम का चश्मा नाक पर टांगे एक बुजुर्ग यदि आपको दिख जाए, तो समझ लीजिएगा कि ये कहानी उन्हीं की है। रामगोपालजी अगर अब भी हर शाम सैर पर निकलते होंगे, तो शर्तिया उनके जैसा दिल्ली में आपको दूसरा न मिले। एक सहगल साहब हैं जो अकसर प्रेस क्लब में पाए जाते हैं लेकिन उनकी वैसी छब नहीं है। रामगोपालजी इस बात का सुबूत हैं कि एक ज़माना वह भी था जब सच्चे लेखकों ने सामान्य लोगों की जिंदगी को महज एक उद्गार से बदला। ज़माना बदला, तो रामगोपालजी जैसे लोग बनने बंद हो गये। लेखक भी सैर की जगह वैर करने लगे।
उस शाम बातचीत के दौरान पता चला कि पत्रिका वाले जगतजी से लेकर अंडे वाला और मूंगफली वाला सब उन्हें जानते हैं। अंडेवाले ने हमारी बातचीत के बीच में ही टोका था, “अरे, बहुत पहुंचे हुए हैं साहब, पूरी दिल्ली इन्होंने देखी है। क्यों साहबजी?" दिल्ली का ज़िक्र आते ही रामगोपालजी ने जो कहा था, वह मुझे आज भी याद हैः “ये दिल्ली एक धरमशाला होती थी। अब करमशाला बन गयी है। लाज, शरम, सम्मान, इज्ज़त, सब खतम हो गये। ये अंडे उठाकर बाहर फेंक दो नाली में, क्योंकि ये नयी तहज़ीब के अंडे हैं!" इतना कह कर रामगोपालजी आकाश में कहीं देखने लगे थे। अलबत्ता अंडे वाला थाेड़ा सहम गया था और अपने ठीहे पर उसने वापस ध्यान जमा लिया था। गोया नयी तहज़ीब के अंडे आंखाें से छांट रहा हो।
#CoronaDiaries
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हेलमेट पहन कर मॉल रोड़ पर तोड़ा घर का ताला
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शिमला हिमाचल की राजधानी शिमला में माल रोड में स्थित पुलिस कंट्रोल रूम से महज 100 मीटर की दूरी पर घर में चोरी का मामला सामने आया है। शिमला के माल रोड पर 24 घंटे पुलिस का कड़ा पहरा रहता है। शातिर ने इसकी परवाह किए बगैर घर का ताला तोड़ा और घर के अंदर घुसा। जिस गेट का ताला तोड़ा उसके ठीक ऊपर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है। चोरी की घटना को अंजाम देने आए शातिर ने सिर में हैलमेट और हाथों में दस्ताने पहने हुए थे। पूरी प्लानिंग से इस चोरी की घटना को अंजाम दिया गया। हालांकि अभी तक यह पता नहीं लग पाया है कि घर से चोरी क्या सामान हुआ है। सूत्रों के अनुसार मॉलरोड़ पर स्थित नाथू राम एंड सन्स की कपड़ों की दुकान है। इन दिनों दुकान पर विंटर ब्रेक का बोर्ड लगा है। इसमें लिखा है कि दुकान 20 फरवरी को खुलेगी। दुकान का मालिक परिवार के साथ दिल्ली गया हुआ है। दुकान खोलने गया तो पता लगा ताला टूटा हुआ है दुकान के साथ ज्वैलरी दुकान का मालिक सुबह जब दुकान खोलने आया तो उसने देखा की उनकी दुकान के ऊपर नाथू राम एंड सन्स के घर को जाने वाले गेट का ताला टूटा हुआ है। उन्होंने इसकी सूचना दुकान के मालिक को फोन पर दी। मालिक ने कहा कि वह इस को लेकर पुलिस में शिकायत करवाएं। वह दिल्ली से वापिस आ जाएगा। मॉल रोड़ से होते हुए दुकान के पास पहुंचा था पुलिस ने शिकायत के आधार पर मौके का मुआयना किया। मालिक के लौटने के बाद ही इसकी शिनाख्त हो पाएगी कि घर से क्या सामान चोरी हुआ है। पहले ताला तोड़ा, 4 घंटे बाद वापिस निकल कर मिडल बाजार की तरफ गयाशातिर ने चोरी की इस घटना को बेखौफ तरीके से अंजाम दिया है। शातिर मॉल रोड़ से होते हुए दुकान के पास पहुंचा। मुंह छुपाने के लिए पहना था हेलमेट मुंह छुपाने के लिए उसने हैलमेट पहना था, हाथों के ��िशान न मिले इसके लिए दस्ताने पहने हुए थे। उसने बैग से एक छड़ी निकाली और कुंडा तोड़ा। इसके बाद वह अंदर घुसा और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। 4 घंटे बाद वह वापिस निकला और दरवाजा उसी तरह बंद कर कुंडे को ऐसे तरीके से बंद किया ताकि यह न लगे कि यहां पर चोरी हुई है। मॉल रोड पर 24 घंटे रहता है पुलिस का पहरा दुकान से चार कदम दूरी पर मिडल बाजार को रास्ता जाता है यह वापिस वहीं से लौटा। पुलिस कार्यप्रणाली पर उठे सवाल इस घटना ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चोरी की यह घटना मॉल रोड पर पेश आई है जहां पर 24 घंटे पुलिस का पहरा रहता है और जगह जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे। रिपोर्टिंग रूम में भी इसकी फुटेज दिखती है बावजूद इसके पुलिस को इसका पता ही नहीं चला। Read the full article
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Delhi Lt Governor Acts Against Official Amid Row With AAP
Delhi Lt Governor Acts Against Official Amid Row With AAP
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने यह आदेश जारी किया है नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना और आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के बीच चल रही खींचतान ने आज एक नाटकीय मोड़ ले लिया क्योंकि एक शीर्ष अधिकारी के कार्यालय पर ताला लगा दिया गया और उनके विशेषाधिकार वापस ले लिए गए। दिल्ली के संवाद और विकास आयोग (DDC) के उपाध्यक्ष जैस्मीन शाह को उपराज्यपाल के आदेश से अपने कार्यालय का उपयोग करने से रोक…
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सरकार की बड़ी कार्रवाई: 40 हजार कंपनियों पर लगेगी ताला, ये है बड़ी वजह
सरकार की बड़ी कार्रवाई: 40 हजार कंपनियों पर लगेगी ताला, ये है बड़ी वजह
धोखाधड़ी को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एक बड़ी योजना तैयार की है। निष्क्रिय कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का फैसला किया। सरकार के निशाने पर एक-दो नहीं, एक-दो नहीं, कुल 40,000 कंपनियां संदेह के घेरे में हैं.कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने 40,000 से ज्यादा कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का फैसला किया है. इनमें से ज्यादातर कंपनियां दिल्ली और हरियाणा में पंजीकृत हैं। इन दोनों राज्यों में…
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बीजेपी ने जारी की 195 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट, पीएम मोदी बनारस से करेंगे दावेदारी
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले बीजेपी ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में 100 से ज्यादा कैंडिडेट्स के नाम घोषित किए गए हैं। पहली लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजना�� सिंह का भी नाम शामिल है। पीएम मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे। 34 केंद्रीय मंत्री और राज्य मंत्री के नाम पहली सूची में है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का भी नाम इस लिस्ट में हैं। 34 केंद्रीय मंत्री, लोकसभा स्पीकर, दो पूर्व मुख्यमंत्री, 28 महिलाओं को पहली सूची में जगह मिली है। 50 से कम उम्र वाले 47 उम्मीदवार इस लिस्ट में हैं। बीजेपी की पहली लिस्ट की बड़ी बातें बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में एससी से 27, एसटी से 18 और ओबीसी से 57 उम्मीदवार हैं। इसमें यूपी से 51, बंगाल से 20, एमपी से 24, गुजरात से 15, राजस्थान से 15, केरल से 12 तेलंगाना से 9, असम से 11 झारखंड से 11, छत्तीसगढ़ से 11 उम्मीदवारों को टिकट मिला है। दिल्ली से 5 सीट, जम्मू कश्मीर 2, उत्तराखंड 3, गोवा 1, त्रिपुरा 1, अंडमान और निकोबार 1, दमन दीव 1 सीट पर नाम का ऐलान किया गया है। केरल में शशि थरूर के सामने राजीव चंद्रशेखर को टिकट दिया गया है। बीजेपी की पहली लिस्ट में किस-किस को मिला टिकट दिल्ली चांदनी चौक- प्रवीण खंडेलवाल उत्तर पूर्वी दिल्ली- मनोज तिवारीनई दिल्ली- बांसुरी स्वराज पश्चिमी दिल्ली- कमलजीत सहरावत दक्षिण दिल्ली- रामवीर सिंह विधूड़ीयूपी में इन सीटों पर उम्मीदवार घोषितवाराणसी- नरेंद्र मोदीकैराना- प्रदीप कुमारमुजफ्फरनगर- संजीव कुमार बालियाननगीना- ओम कुमाररामपुर- घनश्याम लोधीसंभल- परमेश्वर लाल सैनीअमरोहा- कंवर सिंह तोमरगौतमबुद्ध नगर- महेश शर्माबुलंदशहर- डॉ भोला सिंहमथुरा- हेमा मालिनीआगरा- सत्यपाल सिंह बघेलफतेपुर सीकरी- राजकुमार चाहरएटा- राजवीर सिंह राजू भैयाआंवला- धर्मेंद्र कश्यपशाहजहांपुर- अरुण कुमार सागरखीरी- अजय मिश्रा टेनीधौरहरा- रेखा वर्मासीतापुर- राजेश वर्माहरदोई- जयप्रकाश रावतमिसरिख- अशोक कुमार रावतउन्नाव- साक्षी महाराजमौहनलाल गंज- कौशल किशोरलखनऊ- राजनाथ सिंहअमेठी- स्मृति इरानीप्रतापगढ़- संगम लाल गुप्ताइटावा- रामशंकर कठेरियाकन्नौज- सुब्रत पाठकअकबरपुर- देवेंद्र सिंह भोलेझांसी- अनुराग शर्माहमीरपुर- पुष्पेंद्र सिंह चंदेलबांदा- आरके सिंह पटेलफतेहपुर- साध्वी निरंजन ज्योतिबाराबंकी- उपेंद्र सिंह रावतफैजाबाद- लल्लू सिंहअंबेडकरनगर- रितेश पांडेयश्रावस्ती- साकेत मिश्रागोंडा- कीर्तिव���न सिंहडुमरियागंज- जगदंबिका पालबस्ती- हरीश द्विवेदीसंत कबीरनगर- प्रवीण निषादमहाराजगंज- पंकज चौधरीगोरखपुर- रवि किशनकुशीनगर - विजय कुमार दुबेबांसगांव- कमलेश पासवानलालगंज- नीलम सोनकरआजमगढ़- दिनेश लाल यादव निरहुआसलेमपुर- रवींद्र कुशवाहाजौनपुर - कृपाशंकर सिंहचंदौली- महेंद्र नाथ पांडेयफर्रुखाबाद- मुकेश राजपूतमध्य प्रदेशमुरैना- शिवमंगल सिंह तोमरभिंड- संध्या रायग्वालियर- भारत सिंहगुना- ज्योतिरादित्य सिंधियासागर- लता वानखेड़ेटीकमगढ़- वीरेंद्र खटीकदमोह- राहुल लोधीखजुराहो- वीडी शर्मासतना- गणेश सिंहरीवा- जनार्दन मिश्रसीधी- राजेश मिश्राशहडोल- हिमाद्रि सिंहजबलपुर- आशीष दुबेमंडला- फग्गन सिंह कुलस्तेहोशंगाबाद- दर्शन सिंह चौधरीविदिशा- शिवराज सिंह चौहानभोपाल- अनूप शर्माराजगढ़- रोडमल नागरदेवास- महेंद्र सिंह सोलंकीमंदसौर- सुधीर गुप्तारतलाम- अनिता नागर सिंह चौहानखरगौन- गजेंद्र पटेलखंडवा- ज्ञानेश्वर पाटिलबैतूल- दुर्गादासछत्तीसगढ़सरगुजा- चिंतामणि महाराजरायगढ़- राधेश्याम राठियाजागीरचंपा - कमलेश जांगडेकोरबा - सरोज पांडेबिलासपुर - तोकल साहूराजनंदगांव- संतोष पांडेदुर्ग - विजय बघेलरायपुर- बृजमोहन अग्रवालमहासमुंद- रूपकुमारी चौधरीबस्तर- महेश कश्यपकांकेर- भोजराज नागगुजरातकच्छ- विनोदभाई चावड़ाबनासकांठा- रेखाबेन हितेशबाई चौधरीपाटन- भरत सिंह जी दादीगांधीनगर- अमित शाहअहमदाबाद पश्चिम- धीरेशभाई मकवानाराजकोट- पुरुषोत्तम भाई रुपालापोरबंदर- मनसुखभाई मंडावीयाजामनगर- पूनमबेन माडवआणंद- नीतेशभाई पटेलखेड़ा -देवुसिंह चौहानपंचमहल- राजपाल सिंह जाधवदाहोद- जसवंत सिंहभरूच- मनसुख भाई वसावाबारडोली- प्रभुभाई नागर भाई वसावानवसारी- सीआर पाटिलझारखंडराजमल- ताला मरांडीदुमका- सुनील सोरेनगोड्डा- निशिकांत दुबेकोडरमा- अन्नपूर्णा देवीरांची- संजय सेठजमशेदपुर- विद्यु महतोसिंहभूम- गीता कोडाकुंटी- अर्जुन मुंडालोहरदगा- समीर उरांवपलामू- विष्णुदयाल रामहजारीबाग- मनीष जयसवालकेरलकासरवड- एमएल अश्विमीकन्नूर- सी रघुनाथवडक��ा- प्रफुल्ल कृष्णकोझिकोड- एमटी रमेशमंगलापुरम- अब्दुल सलामपोन्नामी- निवेदिता सुब्रमण्यमपल्लकड- सी कृष्णकुमारत्रिशूर- सुरेश गोपीअलकुजा- शोभा सुरेंद्रनपत्तनमटिटा - अनिल एंटनीअटिंगल- वी मुरलीवरन जीतिरुअनंतपुरम- राजीव चंद्रशेखरअरुणाचलअरुणाचल प्रदेश वेस्ट- किरण रिजिजूअरुणाचल ईस्ट… http://dlvr.it/T3WYdP
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"पीएम नरेंद्र मोदी जी ने हिन्दूओ के लिए क्या किया ? पेट्रोल, डीजल, दाल, प्याज, सब्जी, आलू, से बाहर निकलोगे तो जान पाओगे"🚩
30 दिसम्बर 2017 को एक आदमी केरल के कोच्ची हवाई अड्डे पर आता है बैंकाक से। जैसे ही वो इमीग्रेशन पर अपना पासपोर्ट देता है तो कम्प्यूटर में चेक करने के बाद महिला इमीग्रेशन अफसर उससे उसका नाम बोलने को कहती है, वो आदमी बोलता है नाम पासपोर्ट पर लिखा है। वो अफसर डाँट के बोलती है बहस नहीं नाम बोलो। वो नाम बोलता है इमीग्रेशन अफसर तत्काल उसको अपने सीनियर के हवाले कर देती है। पूरी रात वो आदमी हवाई अड्डे के उस कमरे में बैठा रहता है, सुबह की पहली फ्लाइट से वापस उसको देश से निकाल दिया जाता है। रात भर वो आदमी केरल से लेकर दिल्ली तक के हर बड़े कांटेक्ट को फ़ोन करता है लेकिन उसकी दाल नहीं गलती। केंद्र सरकार से सीधे आदेश है और IB के लोग हवाई अड्डे पर जमे हैं, कोई कुछ नहीं कर सकता। 100 साल से ऊपर पुरानी पार्टी के लोग उसको देश में घुसाने के लिए हर जुगाड़ लगाते हैं लेकिन मोदी सरकार में कोई कुछ नहीं कर सकता। मोदी जी और राजनाथ सिंह जी की सीधी निगाह है। इस आदमी का नाम है Henri Thipagne और ये मदुरै स्थित NGO People's Watch नामक संस्था का फण्ड प्रोवाइडर हैं। ये NGO धर्म परिवर्तन का काम करती है, ये आदमी भारत में लगातार कई वर्षों से आता जाता रहा है। इस पर IB की रिपोर्ट 2010 से ही थी लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। 2016 में ये मोदी सरकार के राडार पर आया और अब ये ब्लैक लिस्टेड है। भारत में प्रवेश नहीं कर सकता और उसकी NGO के पैसे अब यहाँ नहीं चलते।🚩
Greenpeace नाम सुना होगा! वही जिसने भारत में Kim Davy को प्लांट किया था, वही किम डेवी जिसने पुरुलिया में हथियारों का जखीरा गिराया था, वही किम डेवी जो संसद पप्पू यादव की गाडी में बैठ कर भागा था, जिसको HM की गाडी दिल्ली लेकर आई थी और उसको भारत से भगा दिया गया था सुरक्षित। ये काण्ड नरसिम्हा राव के जमाने में हुआ था। इसी greanpeace के CEO Ben Hargreaves को भारत विरोधी कार्य के लिए सितम्बर 2015 को भारत के हवाई अड्डे पर आते ही भगा दिया गया था। इसी ग्रीनपीस की एक्टिविस्ट प्रिया पिल्लई को भारत छोड़ने पर बैन लगा दिया। ये एक्टिविस्ट मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों का धर्म परवर्तन का काम कराती थी, नाम प्रिया पिल्लई हैं लेकिन है ये ईसाई ।🚩
2015 में मोदी सरकार ने 150000 NGO का लाइसेंस ख़त्म किया। IB के रिपोर्ट के अनुसार ये NGO भारत में धर्म परिवर्तन, पैसे देकर प्रदर्शन, ��िन्दू लड़कियों को विदेशों में बेचना, बलवा कराना आदि का काम का ठेका लेती थीं। इनके इस काम से भारत के GDP को कम से कम 2% का नुक्सान कराया और 12 लाख से ऊपर परिवारों का धर्म परिवर्तन कराया। IB लगातार 2008 से सरकार को ये रिपोर्ट दे रही थी लेकिन मनमोहन सिंह जी की सरकार कुंडली मारे बैठी थी। सनातन को भारी नुकसान दिया गया।🚩
भारत में बलवा, दंगा, धर्म परिवर्तन, आतंकवाद, जिहाद, लव जिहाद, नक्सलवाद, वायरस की बीमारी, उद्योगों का विरोध, 80% हिन्दूओ की खेती का खात्मा करने के लिए घटिया बेकार बीज खाद, ये सब कराने के लिए विदेशी धन से चलने वाले NGO के मकड़जाल ऐसा था कि प्रति 400 बलवाकर्मी लोगों पर एक NGO की टीम थी। इन लोगो ने 2013 में भारत में लगभग 80000 करोड़ का फण्ड का निवेश किया। इन पैसों से चर्च, मस्जिद का निर्माण, प्रायोजित RTI करने वालों का खर्च से लेकर प्रोपगंडा का बजट शामिल था।🚩
मोदी सरकार के समय 2015 - 16 में लगाम लगाने ���े कारण रकम घटकर लगभग 37000 करोड़ रह गई 2016 - 17 में और घटकर 6800 रह गई, 2017 - 18 में ये 500 करोड़ रह गई, 2018 - 19 में 200 करोड़ के नींचे जाने की उम्मीद है। मतलब मोदी जी ने सबकी पुंगी बजा डाली।🚩
वैसे ये सारा पैसा कहाँ लगता था ? ये पैसा उन लोगों को मिलता था जो हिन्दू आतंकवाद शब्द के जन्मदाता थे। इन्ही लोगों की प्लानिंग और इशारे पर कर्नल पुरोहित, कर्नल पठानिया तथा अन्य सैनिकों को जेल भेजा गया। मोदी सरकार में ये इज़्ज़त से बाहर हुए और इनका सैनिक सम्मान वापस मिला।🚩
इन पैसों से ये तमिलनाडु में ईसाईकरण करते थे। मदुरई के मिनाक्षी मंदिर हो या कांचीपुरम, चेन्नई का विष्णु मंदिर हो या महाबलिपुरम, ऐतिहासिक ताम्बरम हो या अड्यार, हर जगह मंदिरों के सामने या बगल में चर्च और मस्जिदों का जाल बिछाया। ये सब उस UPA सरकार के कार्यकाल में भयंकर रूप से हुआ।🚩
मोदी सरकार ने डायनासोर की दूकान पर ताला लगा दिया तो ये चमगादड़ बन के फड़फड़ा रहे हैं। इनका नमक खाए हुए लोग प्रोपेगैंडा फैला रहे हैं, नकारात्मकता फैला रहे हैं और आम हिन्दू इसको समझे बिना उन्हीं की लाइन पर चलने लगता है। पीएम मोदी ने 5 साल में 400000 से ज्यादा NGO को खत्म कर डाला जिनकी मदद से इस्लामिक और ईसाई देशो से हर साल 100000 करोड़ से ज्यादा पैसा आता था जिससे हिन्दुओ को ईसाई और मुस्लिम बनाने का काम जोरो पर था। हिन्दुओ से जमीन खरीदकर उस पर चर्च, मस्जिदे, मदरसे, इस्लामिक ताल��बानी शिक्षा के केंद्र बनाए जा रहे थे पर अब ये सब खत्म हो चुका है। NGO से आने वाला पैसा देश देश और हिन्दू विरोधी कार्यो में लगाया जाता था। अब इनके दिन लद चूके है। कांग्रेस के राज के कारण आज हिन्दू 7 राज्यो से खत्म हो गये। 4 में अल्पसंख्यक हो गए। समय रहते ईश्वर ने मोदी जी को अवतार के रूप में भारत भूमि पर भेज दिया वर्ना आज हालात बहुत डरावने हो जाते। भारत भूमि पर भारत और हिन्दुओ को रक्षा के लिये हमेशा अवतारों ने जन्म लिया है। इतिहास गवाह है जब जब भारत पर कष्ट आये हिन्दुओ पर जुल्म अत्याचार हुआ, पाप बढ़े, तब तब राम, कृष्ण, विष्णु, दयानंद, सरस्वती विवेकानंद, जैसे सेकड़ो अवतार अनेको ऋषि मुनि ने जन्म लिया। आज नरेंद्र मोदी उसी ईश्वर का अवतार हैं।🚩
समय है सजग रहिये, स्वयं को शक्तिशाली बनाइये, मोदी जी को बल दीजिये, देश को ताकतवर बनाइये, जातिवाद छोड़कर हिन्दू एक होकर रहे और इन धोखेबाजों के जाल में मत फंसिए !!🚩🙏🙏
जय श्री कृष्णा।।🚩🚩
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हरियाणा में बीजेपी सरकार का कमाल छात्र - छात्राएं सड़क पर और स्कूल पर लटका ताला !
हरियाणा में बीजेपी सरकार का कमाल छात्र – छात्राएं सड़क पर और स्कूल पर लटका ताला !
हरियाणा में बीजेपी सरकार का कमाल छात्र – छात्राएं सड़क पर और स्कूल पर लटका ताला ! गांव राठीवास में गर्ल्स हाई स्कूल पर 6 दिन से लटका हुआ ताला छात्राओं अभिभावकों व ग्रामीणों के द्वारा 2 घंटे दिया गया धरना दिल्ली-जयपुर नेशनल हाईवे जाम करने के मुद्दे पर कसम-कस पुलिस प्रशासन ने बैरिकेड लगाकर रोड जाम करने से रोका गया मौके पर आये एसडीएम का आश्वासन गुरुवार को 3 टीचर पहुचेंगे सभी छात्राओं सहित अभिभावकों…
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आसमान में दिखाई दे रही रहस्यमयी रोशनी, बनी चर्चा
आसमान में दिखाई दे रही रहस्यमयी रोशनी, बनी चर्चा
दिल्ली: लगातार दो दिन से आसमान में दिखाई दे रही रहस्यमयी रोशनी ने लोगों को हैरान कर दिया है। इसको देखकर लोग काफी देर तक देख रहे है। लेकिन रोशनी का रहस्य किसी को पता ही नहीं है। किसी शख्स ने रंगीन रोशनी का वीडियो मोबाइल पर कैद किया है। Haryana News: सीनियर सैकेंडरी स्कूल एक शिक्षक के भरोसे, ग्रामीणो ने स्कूल पर लगाया ताला राज्य के कई शहरों में एक कतार में चल रही लाइट दिखाई दी है। हरियाणा राजस्थान,…
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बंद मकान का ताला काटकर चोरी
बंद मकान का ताला काटकर चोरी
बिलग्राम ॥नगर के मोहल्ला बजरिया स्थित नीलमणि मिश्रा के मकान में उस वक्त चोरों ने धावा बोला जब वह किसी जरूरी काम से दिल्ली गए हुए थे गृहस्वामी नीलमणि मिश्रा के मकान से लाखों की नगदी समेत कीमती आभूषणों चोर उड़ा ले गए । उन्होने बताया कि जब नीलमणि मिश्रा दिल्ली से वापस आए घर का सामान बिखरा द��ख कर होश उड़ गए आनन-फानन में उन्होंने जेवरात के डब्बे तथा नगदी रखने की जगह को चेक किया तो सब कुछ गायब था जिसके…
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