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Dinara Ground Report: दिनारा में नीतीश के मंत्री को हराने में लगे हैं बीजेपी के नेता? हाइलाइट्स: बिहार के सबसे हॉट सीटों में शामिल दिनारा में नीतीश के मंत्री फंसे बीजेपी के कार्यकर्ता एलजेपी कैंडिडेट राजेंद्र सिंह का कर रहे हैं प्रचार
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लोग कहते हैं, बिहार में जो हो जाए, वो कम है। फिर चाहे वो पैसों का घोटाला हो या जमीन का। अपराधों का घोटाला हो या उम्र का। अब आप कहेंगे कि पैसों का, जमीन का, अपराध का घोटाला तो सुना है, लेकिन ये उम्र का घोटाला क्या बला है? ये तो पहली बार सुना है और क्या उम्र का घोटाला भी हो सकता है भला?
तो हम कहेंगे कि हां, उम्र का घोटाला हुआ है। और यह पहली बार भी नहीं हुआ। अक्सर होता रहता है। बिहार में चुनाव है। कैंडिडेट नॉमिनेशन भर रहे हैं। ज्यादातर कैंडिडेट तो अपनी सही उम्र बताते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो अपनी उम्र या तो कम कर देते हैं या बढ़ाते ही नहीं है। कुछ तो ऐसे भी होते हैं, जो उम्र बढ़ा भी देते हैं। चलिए अब जानते हैं कि ये उम्र का घोटाला किसने-किसने किया है। एक-एक करके इनके बारे में जानेंगे...
1.सत्यदेव सिंहः विधानसभा में कुछ और, एफिडेविट में कुछ और
सत्यदेव सिंह कुर्था सीट से जदयू के कैंडिडेट हैं। बिहार विधानसभा पर जो इनके बारे में जानकारी है, उसके हिसाब से ये 14 साल की उम्र में ही राजनीति में आ गए थे। विधानसभा की वेबसाइट पर इनकी डेट ऑफ बर्थ 20 जून 1950 है। इस हिसाब से आज इनको 70 पार हो जाना चाहिए था। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ।
इस बार इन्होंने जो एफिडेविट दाखिल किया है, उसमें अपनी उम्र 61 साल बताई है। 2015 में भी जो एफिडेविट दायर किया था, उसमें 56 साल उम्र बताई थी। उस हिसाब से तो सही है, लेकिन विधानसभा की साइट पर जानकारी के हिसाब से गलत है। अब या तो विधानसभा में गलत जानकार�� है या फिर एफिडेविट में।
2. सरोज यादवः 5 साल में तीन साल छोटे हो गए
सरोज यादव राजद के टिकट पर बड़हरा सीट से खड़े हुए हैं। यहां के मौजूदा विधायक भी हैं। दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। 2015 में इन्होंने जो एफिडेविट दाखिल किया था, उसमें साफ-साफ लिखा था, ‘मैंने 33 वर्ष की आयु पूरी कर ली है।’
इस बार भी जो एफिडेविट दाखिल किया है, उसमें भी इसी तरह लिखा है, ‘मैंने 30 वर्ष की आयु पूरी कर ली है।’ यानी, सरोज यादव ऐसे हैं जिनकी उम्र घटती है। 5 साल में इन्हें कायदे से 38 साल का हो जाना चाहिए था, लेकिन ये और छोटे होकर 30 साल के हो गए हैं।
3. राजेश कुमारः खुद को 2 साल छोटा बताते हैं
कुटुम्बा सीट से कांग्रेस के कैंडिडेट हैं राजेश कुमार। 1985 से राजनीति में हैं। बिहार विधानसभा की वेबसाइट पर जो जानकारी है, उसमें इनकी डेट ऑफ बर्थ है 28 जनवरी 1967। इस हिसाब से ये 53 साल 8 महीने के हो चुके हैं। लेकिन, एफिडेविट में बताते हैं कि इन्होंने 51 वर्ष की आयु पूरी कर ली है।
4. निक्की हेम्ब्रमः 5 साल में एक दिन भी नहीं बढ़ीं
लोग अक्सर कहते हैं कि महिलाओं से उनकी उम्र नहीं पूछना चाहिए। और अगर कोई पूछता भी है तो वो अपनी उम्र कम ही बताती हैं। भाजपा की निक्की हेम्ब्रम भी शायद ऐसी ही हैं। कटोरिया सीट से दोबारा खड़ी हुई हैं। पिछली बार हार गई थीं।
2015 में इन्होंने अपने एफिडेविट में बताया था कि इनकी उम्र 42 साल है। 2015 को बीते हुए 5 साल होने वाले हैं। इन 5 सालों में निक्की की उम्र जरा भी नहीं बढ़ी हैं। वो तब भी 42 की थीं और अब भी 42 की ही हैं। हां, फोटो जरूर बदल गई है।
5. जय कुमार सिंहः 5 साल में 10 साल बढ़ गए
जदयू के जय कुमार सिंह नीतीश सरकार में मंत्री हैं। दिनारा सीट से तीन बार के विधायक हैं। इस बार फिर दिनारा से ही खड़े हुए हैं। ये ऐसे नेता हैं, जिनकी उम्र 5 साल में 10 साल बढ़ गई। हालांकि, वो भी कम है। क्योंकि बिहार विधानसभा की वेबसाइट पर इनकी डेट ऑफ बर्थ है 1 मार्च 1963। इस हिसाब से इनकी उम्र होनी चाहिए 57 साल और 7 महीने।
अब देखिए 2015 में जो एफिडेविट दाखिल किया था, उसमें इन्होंने अपनी उम्र 46 साल बताई थी। और इस बार जो एफिडेविट लगाया है, उसमें अपनी उम्र 56 साल बताई। आखिर सच्ची उम्र कौनसी है?
6. रामानंद मंडलः ये भी 5 साल में 8 साल बढ़ गए
रामानंद मंडल जदयू के टिकट पर इस बार सूर्यगढ़ा सीट से खड़े हुए हैं। पिछली बार भी जदयू से ही लखीसराय सीट से खड़े हुए थे, लेकिन भाजपा के विजय कुमार सिन्हा से हार गए थे। जय कुमार सिंह की तरह ही इनकी उम्र भी 5 साल में 8 साल बढ़ गई है।
2015 में इन्होंने अपने एफिडेविट में अपनी उम्र 47 साल बताई थी। 2020 में जो एफिडेविट जमा किया है, उसमें लिख दिया कि 55 वर्ष की आयु पूरी कर ली है।
7. ज्ञानेंद्र कुमार सिंहः इनकी उम्र भी 5 साल में 10 साल बढ़ गई
जय कुमार सिंह और रामानंद मंडल ही ऐसे नहीं हैं, जिनकी उम्र बढ़ी हो। इस फेहरिस्त में एक नाम और है और वो है ज्ञानेंद्र कुमार सिंह का। ज्ञानेंद्र भाजपा के टिकट पर बाढ़ सीट से लड़ रहे हैं। पिछली बार भी यहीं से जीते थे। इनकी उम्र भी 2015 से 2020 के बीच 10 साल बढ़ गई है।
2015 के एफिडेविट में इनकी उम्र 51 साल लिखी है और 2020 में इन्होंने अपनी उम्र 61 साल बताई है। हालांकि, विधानसभा की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के हिसाब से तो इनकी उम्र 61 साल ही होनी चाहिए। वहां इनकी डेट ऑफ बर्थ 19 जून 1959 लिखी है।
8. बृजकिशोर विंदः ये भी खुद को 8 साल बड़ा बताते हैं
भाजपा के बृजकिशोर विंद 1991 से राजनीति में हैं। 2009 में उपचुनाव से पहली बार विधायक बने। उसके बाद 2010 और 2015 में फिर चैनपुर से जीते। इस बार भी चैनपुर से खड़े हुए हैं। विंद का नाम भी उस लिस्ट में है, जो खुद को बड़ा दिखाते हैं।
विधानसभा की वेबसाइट पर इनकी डेट ऑफ बर्थ 1 ���नवरी 1966 लिखी है। यानी, आज इनकी उम्र 54 साल 9 महीने होनी चाहिए। लेकिन, 2015 में जो इन्होंने एफिडेविट दाखिल किया था, उसमें अपनी उम्र 56 साल बताई थी और इस बार 61 साल।
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Bihar Election 2020 Age Fraud Vs Fake Umr | JDU Candidate Satyadev Singh, BJP Nikki Hembram, Jai Kumar Singh Different Nomination Papers And Different Ages
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बीजेपी-जेडीयू के विधायकों का टूट सकता है टिकट पाने का सपना नईदिल्ली : 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे के फॉमूले को लेकर जेडीयू और बीजेपी में सहमति बन गई है। इस फॉमूले के तहत गठबंधन के अन्य सहयोगियां की सीटों के बंटवारे के बाद बाकी बची सीटों पर 50-50 फीसदी सीटों का बंटवार��� जेडीयू-बीजेपी के बीच होगा। यानी दोनों दल बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। जेडीयू सूत्रों के मुताबिक इस फॉमूले पर बीजेपी 17 सीटों पर, जेडीयू 16 सीटों पर चुुनाव लड़ेगी। वहीं लोजपा 5 सीटों पर जबकि रालोस्पा 2 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सूत्रों से चौंकाने वाली खबर यह आ रही है कि बिहार सरकार के जल संसाधन मंत्री लल्लन सिंह के सिवा किसी भी विधायक या मंत्री को टिकट नहीं दिया गया है। ऐसा करने के पीछे बात यह बतायी जा रही है कि अगर विधायक चुनाव जीतकर सांसद बन जाते हैं तो नीतीश कुमार की सरकार अल्पमत में आ जाएगी। बिहार विधानसभा में 243 विधायक हैं, ऐसे में बहुमत के लिए 122 विधायकों की जरूरत होती है। राजग गठबंधन में दोनों बड़ी पार्टियां जदयू और भाजपा की बात करें तो, जदयू के पास 70 विधायक हैं जबकि भाजपा के पास कुल 53 विधायक हैं। दोनों को मिलाया जाए तो 123 यानी बहुमत से एक आधिक का आंकड़ा बनता है। ऐसे में अगर चुनाव लड़ने को इच्छुक 13 विधायकों को टिकट दिया जाए और इनमें से कोई पांच भी चुनाव जीत जाते हैं तो पांचों विधायक सांसद हो जाएंगे और विधायकों की संख्य 118 रह जाएगी और गठबंधन अल्पमत में आ जाएगा। विधायकों की संख्या घटकर 238 पर आ जाएगी। जिसके बाद नीतीश को ऐसी पार्टियों के भरोसे रहना पड़ेगा जिनपर उन्हें भरोसा नहीं है। लोजपा के दो विधायक है, जिन्हें नीतीश सरकार के गठन के समय कोई मंत्री पद नहीं दिया गया था। 2 विधायक रालोस्पा के हैं, इनमें से भी किसी को मंत्री पद नहीं दिया गया था। दोनों दलों में से किसी को प्रतिनिधित्व नहीं मिला था। इसलिए अब नीतीश का इन दोनों का भरोसा करना खतरे से खाली नहीं है। लेकिन कई विधायक और मंत्री ऐसे हैं जो टिकट पाने और चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक हैं। विधायकों ने टिकट पाने की तैयारी जोरों पर: दुमरांव से जेडीयू के विधायक ददन यादव बक्सर से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी का दावा कर रहे हैं, वहीं बिहार सरकार के उद्योग मंत्री जय कुमार सिंह दिनारा से जेडयू विधायक हैं और चुनाव लड़ना चाहते हैं। बिहार सरकार में सहकारिता मंत्री और भाजपा विधायक राना रंधीर सिंह की तैयारी भी जोर पर है। ये मोतीहारी से चुनाव लड़ना चाहते हैं। दिनेश चंद्र यादव जेडयू से राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन मंत्री और सिमरी बख्तियारपुर से विधायक हैं और चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। बता दें कि इन्हें मिलाकर कुल 13 ऐसे विधायक और मंत्री हैं जो 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना देख रहे हैं लेकिन ये संभव दिखाई नहीं पड़ रहा। गौरतलब है कि बिहार में रोलास्पा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा का कम सीटों के साथ भी राजग में रहना लगभग तय है। दूसरी ओर खबर है कि उनकी सीट बदली जा सकती है और अपनी मर्जी के अनुसार उनको कारा��ाट सीट मिल सकती है। हालांकि बीते शुक्रवार को अरवल के सर्किट जिले में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव और रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बीच मुलाकात हुई। जब दिल्ली में अमित शाह और नीतीश कुमार सीट बंटवारों पर चर्चा कर रहे थे तो वहीं अरवल के सर्किट जिले में एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा तेजस्वी यादव से मुलाकात कर रहे थे। जिससे उनके महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन अब उनका राजग में रहना तय हो चुका है। Political desk Report by : Chandan Das
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बिहार में पहले फेज का चुनाव 28 अक्टूबर को होना है। इस फेज में 71 सीटों पर वोटिंग होगी। पहला फेज इसलिए भी खास है क्योंकि बिहार सरकार के 7 मंत्रियों की किस्मत का फैसला इसी में होना है। साथ ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय भी जिन सीटों से लड़ सकते हैं, वहां भी इस फेज में ही वोटिंग होगी।
किन मंत्रियों की किस्मत का होगा फैसला? 1. शैलेश कुमार नीतीश सरकार में जदयू कोटे से ग्रामीण कार्य मंत्री हैं। जमालपुर से चुनाव जीतते हैं। पहली बार फरवरी 2005 में जीते थे। उसके बाद से अक्टूबर 2005, 2010 और 2015 में लगातार चौथी बार जीते थे। कोरोनावायरस से भी रिकवर हो चुके हैं।
2. राम नारायण मंडलः भाजपा कोटे से सरकार में राजस्व व भूमि सुधार मंत्री हैं। 1990 में पहली बार विधायक चुने गए थे। 2015 में 5वीं बार बांका से जीते हैं। राम नारायण मंडल कुछ समय पूर्व तब चर्चा में आए थे, जब उनके विभाग की तरफ से किए गए ट्रांसफर को नीतीश सरकार ने रद्द कर दिया था।
3.कृष्णनंदन वर्माः जदयू कोटे से शिक्षा मंत्री हैं। अक्टूबर 2005 के चुनाव में मखदुमपुर से पहली बार चुनाव जीते थे। उसके बाद 2015 में दूसरी बार घोसी से जीतकर आए थे।
4. बृज किशोर बिन्दः भाजपा कोटे से खान व भूतत्व मंत्री हैं। चैनपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतते हैं। पहली बार 2009 के उपचुनाव में जीते थे। उसके बाद 2010 और 2015 में लगातार दूसरी और तीसरी बार जीते। पहले बसपा में थे, बाद में भाजपा में आ गए।
5. संतोष कुमार निरालाः जदयू कोटे से सरकार में परिवहन मंत्री हैं। राजपुर से लगातार दो बार के विधायक हैं। पहली बार यहां से 2010 के चुनाव में जीते थे। 2015 में उन्होंने भाजपा के विश्वनाथ राम को 32,788 वोटों से हराया था।
5. संतोष कुमार निरालाः जदयू कोटे से सरकार में परिवहन मंत्री हैं। राजपुर से लगातार दो बार के विधायक हैं। पहली बार यहां से 2010 के चुनाव में जीते थे। 2015 में उन्होंने भाजपा के विश्वनाथ राम को 32,788 वोटों से हराया था।
7.जय कुमार सिंहः जदयू कोटे से नीतीश सरकार में ��द्योग विज्ञान व तकनीकी मंत्री हैं। तीन बार के विधायक हैं। दिनारा विधानसभा सीट से 2015 में भाजपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह को 2,691 वोटों से हराया था।
गुप्तेश्वर पांडेय बक्सर से लड़ सकते हैं बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय जदयू में शामिल हो चुके हैं और अब इस बात में कोई शक नहीं रहा कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। पहले फेज में बक्सर सीट पर भी वोटिंग होनी है। अभी यहां से कांग्रेस के संजय तिवारी विधायक हैं और ब्राह्मण जाति से आते हैं। गुप्तेश्वर पांडेय भी बक्सर के रहने वाले हैं और इसकी खूब चर्चा है कि वो बक्सर से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, अभी तक ये पूरी तरह से साफ नहीं हुआ कि वो कहां से लड़ेंगे।
मांझी चुनाव लड़ेंगे या नहीं, अभी तय नहीं इस फेज में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की उन दोनों सीटों पर भी चुनाव होना है, जहां से उन्होंने चुनाव लड़ा था। पिछली बार मांझी ने मखदमपुर और इमामगंज सीट से चुनाव लड़ा था। मखदमपुर से मांझी राजद के सूबेदार दास से हार गए थे। जबकि, इमामगंज से ही जीत पाए थे।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की तरह ही मांझी भी इस बार चुनाव लड़ने के मूड में नहीं हैं। हालांकि, उनका कहना है कि वो चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इसका फैसला पार्टी करेगी। मांझी को लेकर एक खास बात ये भी है कि वो एक ही सीट से दोबारा चुनाव नहीं जीत पाते हैं।
इसलिए इस बार अगर मांझी चुनाव लड़ते भी हैं, तो इमामगंज और मखदमपुर छोड़ कुटुम्बा से लड़ सकते हैं। कुटुम्बा भी एससी के लिए आरक्षित सीटों में से एक है।
71 में से 22 सीट पर यादव का कब्जा है पहले फेज में जिन 71 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से 22 पर अभी यादव विधायकों का कब्जा है। जबकि 7-7 विधायक राजपूत, भूमिहार और कुशवाहा हैं। इस फेज में तीन कुर्मी विधायक हैं। पहले फेज में होने वाले चुनाव में एससी-एसटी की 13 सीटों पर वोटिंग होनी है।
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