#दस्तावेज़ी
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trendingwatch · 2 years ago
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हैरी-मेघन वृत्तचित्र नस्लवाद पर संकेत के रूप में यूके रॉयल्स ब्रेस, 'पूर्ण सत्य' का वादा करता है
हैरी-मेघन वृत्तचित्र नस्लवाद पर संकेत के रूप में यूके रॉयल्स ब्रेस, ‘पूर्ण सत्य’ का वादा करता है
द्वारा एसोसिएटेड प्रेस लंदन: ब्रिटेन की राजशाही गुरुवार को पैलेस गेट्स पर और अधिक धमाकों के लिए तैयार हो गई, क्योंकि नेटफ्लिक्स ने एक श्रृंखला के पहले तीन एपिसोड जारी किए, जो प्रिंस हैरी और मेघन के शाही परिवार से अलगाव के बारे में “पूरा सच” बताने का वादा करता है। नस्लवाद और “मेघन के खिलाफ युद्ध” पर संकेत देने वाले दो नाटकीय रूप से संपादित ट्रेलरों के साथ प्रचारित श्रृंखला “हैरी एंड मेघान” दुनिया…
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academypediahi · 1 year ago
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दस्तावेजी निगरानी
दस्तावेज़ी निगरानी क्या है? दस्तावेज़ी निगरानी दस्तावेज़ों की समीक्षा और विश्लेषण के माध्यम से दस्तावेज़ी आवश्यकताओं के अनुपालन को सत्यापित करने की प्रक्रिया है। यह संगठनों को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि उनकी व्यावसायिक गतिविधियाँ आंतरिक नीतियों और प्रक्रियाओं के साथ-साथ बाहरी नियमों के अ [...] https://academypedia.info/hi/glossary/%e0%a4%a6%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%80/
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bharatalert · 3 years ago
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Documentary ‘Kathegala Kanive’ captures transgender persons’ journey into learning photography
Documentary ‘Kathegala Kanive’ captures transgender persons’ journey into learning photography
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lok-shakti · 3 years ago
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एंथोनी बॉर्डन वॉयस क्लोनिंग क्यों लोगों को डराती है?
एंथोनी बॉर्डन वॉयस क्लोनिंग क्यों लोगों को डराती है?
यह रहस्योद्घाटन कि एक डॉ���्यूमेंट्री फिल्म निर्माता ने दिवंगत शेफ एंथनी बॉर्डन को यह कहने के लिए वॉयस क्लोनिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया कि उन्होंने कभी भी ऐसे शब्द नहीं बोले, जिन्होंने शक्तिशाली तकनीक के उपयोग के बारे में नैतिक चिंताओं के बीच आलोचना की। फिल्म रोडरनर, एंथनी बॉर्डन के बारे में एक फिल्म, शुक्रवार को सिनेमाघरों में दिखाई दी और ज्यादातर 2018 में मरने से पहले प्रिय सेलिब्रिटी शेफ और…
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newsindiaguru · 4 years ago
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Britney Spears Slams 'Hypocritical' Documentaries on Her That Focused on 'Traumatising Times'
Britney Spears Slams ‘Hypocritical’ Documentaries on Her That Focused on ‘Traumatising Times’
अपने जीवन पर एक और वृत्तचित्र की रिलीज के साथ, ब्रिटनी स्पीयर्स ने उन सभी वृत्तचित्रों को लबादा है जो जून में रूढ़िवाद के मुकदमे से पहले अपने जीवन के ‘दर्दनाक समय’ पर केंद्रित थे। उन्होंने उन्हें ‘पाखंडी’ कहा क्योंकि उन्होंने केवल उनके पिता, जेमी स्पीयर्स के खिलाफ उनकी लड़ाई को उजागर किया, उनके संरक्षक के रूप में भूमिका। इंस्टाग्राम पर ख़ुशी से नाचते हुए खुद का एक वीडियो पोस्ट करते हुए, पॉप स्टार…
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everynewsnow · 4 years ago
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'कौन है बौल?' डॉक्यूमेंट्री बंगाल के संगीत मनीषियों के दर्शन में विलम्ब करती है
‘कौन है बौल?’ डॉक्यूमेंट्री बंगाल के संगीत मनीषियों के दर्शन में विलम्ब करती है
साईराम सगीराजू की डॉक्यूमेंट्री – कौन है बूल? – बंगाल के भटकते संगीतमय मनीषियों के सदियों पुराने दर्शन में चार साल पहले, फिल्म निर्माता साईराम सगीराजू, ग्रैमी विजेता संगीतकार रिकी केज और इतिहासकार विक्रम संपत ने भारत में संगीत परंपराओं का दस्तावेजीकरण किया। उन्होंने बंगाल की बालू के साथ परियोजना शुरू करने का फैसला किया। ग्रामीण पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में रहने वाले रहस्यवादी गायन टकसालों का…
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mrdevsu · 4 years ago
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'ABP अनCUT' की डॉक्यूमेंट्री को ENBA में मिला अवॉर्ड, हासिल किए दो खिताब
‘ABP अनCUT’ की डॉक्यूमेंट्री को ENBA में मिला अवॉर्ड, हासिल किए दो खिताब
ENBA अवॉर्ड्स 2020 में एबीपी न्यूज़ के साथ-साथ एबीपी अनकट ने भी अपना परचम लहराया है। एबीपी अनकट ने इस अवॉर्ड समारोह में दो अवॉर्ड अपने नाम किए हैं। एबीपी अनकट की डॉक्यूमेंट्री ‘ग्रामीण भारत में जातिवाद और उनर किलिंग’ को बस्ट इंडेप्थ हिंदी डॉक्यूमेंट्री की कैटगरी में अवॉर्ड से नवाज़ा गया है। ENBA अवॉर्ड्स में एबीपी न्यूज छाया ENBA अवॉर्ड्स 2020 में एबीपी न्यूज़ ने धूम मचा दी। घंटी बजाओ को बाइट…
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tinku88044 · 5 years ago
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पशु ग्रह: 17 मई को कोविद -19 का जानवरों पर पड़ने वाले प्रभाव की डॉक्यूमेंट्री प्रसारित होगी
पशु ग्रह: 17 मई को कोविद -19 का जानवरों पर पड़ने वाले प्रभाव की डॉक्यूमेंट्री प्रसारित होगी
[ad_1] 17 मई को एनिमल प्लैनेट हाउस नया डॉक्यूमेंट्री प्रसारित करने जा रहा है। इसमें विभाजित -19 का जानवरों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताया जाएगा। । [ad_2] Source link
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abhay121996-blog · 4 years ago
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सुप्रीम कोर्ट अब इंसाफ़ का मंदिर नहीं रह गया है, वह सरकार का दफ़्तर बन गया : प्रशांत भूषण Divya Sandesh
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सुप्रीम कोर्ट अब इंसाफ़ का मंदिर नहीं रह गया है, वह सरकार का दफ़्तर बन गया : प्रशांत भूषण
पिछले कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट और देश के मुख्य न्यायाधीशों की छवि को तगड़ा धक्का लगा है. यह कहा जाने लगा है क�� सुप्रीम कोर्ट अब इंसाफ़ का मंदिर नहीं रह गया है, वह सरकार का दफ़्तर बन गया लगता है. सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने मशहूर वकील प्रशांत भूषण से बात की. पढ़ें वह इंटरव्यू.     एक ज़माना था जब कहा जाता था कि जिसका कोई नहीं, उसका सहारा है सुप���रीम कोर्ट. जिसे कहीं इंसाफ़ न मिले, उसे सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ़ मिलता था. भारत के सुप्रीम कोर्ट की मिसाल दुनिया भर में दी जाती थी. लेकिन पिछले कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट और देश के मुख्य न्यायाधीशों की छवि को तगड़ा धक्का लगा है. यह कहा जाने लगा है कि सुप्रीम कोर्ट अब इंसाफ़ का मंदिर नहीं रह गया है, वह सरकार का दफ़्तर बन गया लगता है.
पिछले दिनों जब कोरोना के मसले पर कई हाई कोर्टो ने सरकारों को फटकारा और फिर अचानक सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना मामले का स्वतः संज्ञान लिया तो सवाल खड़ा हो गया कि क्या ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बचाने के लिये किया? सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने मशहूर वकील प्रशांत भूषण से बात की. प्रशान्त को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में खुद सुप्रीम कोर्ट दोषी ठहरा चुकी है.
आशुतोष : प्रशांत जी, आपने ‘द हिंदू’ अख़बार में एक लेख लिखा है और उसमें आपने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में पिछले कुछ मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल में ज़बरदस्त गिरावट आयी है, एक स्वतंत्र संस्था की वजह वह एक सरकारी संस्था बन कर रही गयी है. आपने सुप्रीम कोर्ट के लिये इतनी तीखी भाषा का इस्तेमाल क्यों किया? 
प्रशांत : देखिये, उम्मीद पर दुनिया क़ायम है. जब कोई नया चीफ़ जस्टिस आता है तो बड़ी उम्मीद होती है कि यह पहले की तरह नहीं होंगे. जब पिछले चीफ़ जस्टिस से बहुत निराशा होती है तो हम उम्मीद करते हैं कि नये वैसे नही होंगे . ये (जस्टिस एस. ए. बोबडे) जब आये थे तो बड़ी उम्मीद थी. जस्टिस रंजन गोगोई ने कई मसलों पर बहुत निराश किया.   रफ़ाल का मसला हो या अयोध्या का मुद्दा हो या और भी कई मुद्दों पर जो बहुत संवेदनशील थे, राजनीतिक थे और जिनमें सरकार का बहुत ज़ोर लगा हुआ था, साफ़ ज़ाहिर था कि सरकार की मदद करने के लिये फ़ैसले लिये गये. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा में नौकरी भी ले ली. उनके पहले भी दो और चीफ़ जस्टिस हुये थे, उनके समय में भी यही कुछ देखा गया.  जस्टिस दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ तो महाभियोग भी चला था. मेडिकल कालेज का उनका केस था, उन्होंने उसकी सुनवाई खुद कर ली. उनके पहले जस्टिस खेहर साहब थे, उनके समय बिरला ��हारा वाला केस था. कलिको पुल वाला भी केस था, जिसमें भी यही सब देखा गया. खुद बचने के लिये सरकार की मद की गयी.  जब बोबडे साहब आये तो हमें लगा शायद कुछ उम्मीद हो.  जब 18 महीने का इनका कार्यकाल देखा गया तो बहुत ही निराशा हुयी. जितने मामले देखे या जिन मामले की सुनवायी ही इन्होंने नही होने दी, या जजों की नियुक्ति का मसला हो, जिसमें चीफ जस्टिस की अहम भूमिका होती है, हर चीज में इन्होंने निराश किया. बहुत सारे मामले निपटारे के लिये सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जैसे धारा 370 हो या कश्मीर के बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला हो, नागरिकता क़ानून मामला हो, उनकी कोई सुनवायी नहीं की गयी. जो अर्जेंट केस याचिका भी डाली जैसे एलेक्टोरल बॉन्ड्स का हो या रोहिंग्या के प्रत्यर्पण का मामला हो, उनमें भी जिस तरह की सुनवाई की गयी या फ़ैसले आये, उस वजह से मुझे तीखा लेख लिखना पड़ा. मैं नहीं चाहता था कि रिटायरमेंट के दिन ऐसा लिखा जाये. लेकिन मजबूरन लिखना पड़ा.  
  आशुतोष: आपको क्या कारण लगता है? पिछली बार भी जब प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतर रहे थे तो सुप्रीम कोर्ट ने सॉलीसिटर जनरल की एक अप्रैल की बात मान ली थी कि एक भी आदमी सड़क पर नहीं है, जबकि हज़ारों लाखों लोग पैदल जा रहे थे. यह धारणा बनी कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बचाने के लिये यह काम किया था. इस बार भी ऐसा लग रहा है, लोगों को?  
प्रशांत : जी हाँ. सुप्रीम कोर्ट का जो रोल पिछले सालों से दिख रहा है, उससे यह लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सामने घुटने टेक दिये हैं. पिछले पाँच साल में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला सरकार के ख़िलाफ़ नहीं आ पाया है. कोई भी फ़ैसला लें. बिरला सहारा का लें, जज लोया का लें, राम मंदिर का लें या रफ़ाल का लें. ये फ़ैसले एक के बाद एक सरकार के हक़ में गये. और ऐसे- ऐसे फ़ैसले जिनका कोई सिर पैर भी नहीं है.
जैसे कि रफाल के मसले पर एक काल्पनिक सीएजी की रिपोर्ट पर ही कह दिया कि सीएजी ने आडिट कर लिया है, जबकि सीएजी ने आडिट किया ही नहीं था. सरकार ने बंद लिफ़ाफ़े में कुछ दे दिया. बंद लिफाफे में क्या है, किसी को नहीं मालूम. इसकी वजह क्या है, यह अलग मुद्दा है. लेकिन यह तो साफ़ दिखता है कि पिछले पाँच सालों में चार चीफ जस्टिसों के समय सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सामने घुटने टेक दिये. यह देखने में आया है कि जब कोई हाईकोर्ट अच्छा काम करता है, सरकार से स्वतंत्र हो कर तो सुप्रीम कोर्ट बीच में आ जाता है, सरकार के बचाव में.
  आशुतोष : क्या कारण है कि हाईकोर्ट स्वतंत्र काम करता हैं और सुप्रीम कोर्ट नहीं कर पा रहा है. जैसे की आपातकाल के समय में हुआ था. ये पै��र्न दिख रहा है. क्या सरकार का दबाव है या कुछ और कारण है?  
प्रशांत : देखिये. हाईकोर्ट में अगर स्वतंत्र चीफ़ जस्टिस होते हैं तो काम अच्छा हो जाता है. अगर आप सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को क़ब्ज़े में कर लें, किसी तरह से, बहुत तरीक़े होते हैं. जैसे रिटायरमेंट के बाद के लिये गाजर लटका दीजिये. मानवाधिकार में नियुक्ति का हो या राज्यपाल बनाने का या राज्यसभा की सदस्यता दे देंगे, तो कुछ लोग तो उसी से लुढ़क जाते हैं. कुछ लोग डर जाते हैं. अगर ऐसी सरकार हो जैसे आज की मौजूदा सरकार है जो बहुत मज़बूत और फासीवादी है, जो कि धड़ाधड़ लोगों को गिरफ़्तार करती है, कोई भी क़ानून की परवाह नहीं करती है जब यह दिखता है कि सारी संस्थाओं ने सरकार के सामने घुटने टेक दिये है, चाहे वह मीडिया हो या चुनाव आयोग हो या कैग हो आदि आदि तो फिर कई बार जज भी डर जाते हैं. चीफ़ जस्टिस भी डर जाते हैं. वे सरकार की हाँ में हाँ मिलाने लगते हैं.  एक और बहुत ख़तरनाक तरीक़ा है, जो हाल में मुझे दिखता है. जैसे कलिको पुल के सुसाइड नोट का मसला जिसमें जस्टिस खेहर के ख़िलाफ़ बड़े गंभीर आरोप लगाये गये कि जब अरुणाचल का केस हुआ तो इनके रिश्तेदारों ने पैसे माँगे. उस समय जो लेफ़्टिनेंट गवर्नर थे, उन्होंने कहा था कि सीबीआई की जाँच होनी चाहिये. सरकार ने नहीं होने दिया. बाद में पुल की पत्नी आयी, जाँच की माँग की, पर जाँच नहीं हुयी. उनके बाद जस्टिस दीपक मिश्रा का मामला आया. मेडिकल कालेज का घोटाला था. जस्टिस गोगोई आये. उनके आते ही सेक्सुअल हैरेसमेंट का केस आया. वह लेडी सामने आयी. मुझे ऐसा लगता है कि सरकार सारी एजेंसियों का इस्तेमाल करती है. विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़, मीडिया के ख़िलाफ़, या फिर इंडिपेंडेंट एक्टिविस्ट हो, सबके ख़िलाफ़ आयकर विभाग हो ईडी हो या सीबीआई हो का इस्तेमाल होता है. तो ये लगता है कि कहीं न कहीं एजेंसियों का भी इस्तेमाल हो रहा है.
आशुतोष: बोबडे के ख़िलाफ़ तो कोई मामला नहीं आया, लेकिन जो अगले चीफ़ जस्टिस बनने वाले हैं जस्टिस रमना उनकी बेटी पर बेह��� गंभीर आरोप हैं. क्या यह महज़ इत्तफ़ाक़ है?
प्रशान्त : देखो, कलिको पुल की कोई जाँच नहीं हुयी. जस्टिस दीपक मिश्रा के मामले में भी मुझे नहीं लगता कि पूरी जाँच हुयी. उसके बाद सेक्सुअल हैरेसमेंट का केस आया. उसमें कोई जाँच होने नहीं दी गयी. अब जो नये चीफ़ जस्टिस हैं, उनके ख़िलाफ़ एक मुख्यमंत्री ने बड़े सीरियस आरोप लगाये हैं. मुख्यमंत्री ने बड़े गंभीर आरोप लगाये, दस्तावेज़ी सबूत दिये. लेकिन जाँच होगी, लगता नहीं है. ऐसे में क्या इसका इस्तेमाल ब्लैकमेल के हथियार के तौर पर होगा.
   सत्य हिंदी डाट काम से साभार
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trendingwatch · 2 years ago
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जो मैंगनीलो सह-निर्देशक के रूप में 'डंगऑन्स एंड ड्रेगन' वृत्तचित्र में शामिल हुए
जो मैंगनीलो सह-निर्देशक के रूप में ‘डंगऑन्स एंड ड्रेगन’ वृत्तचित्र में शामिल हुए
द्वारा पीटीआई लॉस एंजिलस: अभिनेता जो मैंगनीलो लोकप्रिय टेबलटॉप फैंटेसी गेम ‘डंगऑन्स एंड ड्रैगन्स’ पर काइल न्यूमैन के साथ एक डॉक्यूमेंट्री का सह-निर्देशन करने के लिए तैयार हैं। बहुराष्ट्रीय समूह कंपनी हैस्ब्रो और मनोरंजन बैनर ईवन द्वारा निर्मित फिल्म को “दुनिया की सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले खेल के बारे में निश्चित वृत्तचित्र विशेषता” के रूप में बिल किया गया है। मनोरंजन वेबसाइट वैराइटी के अनुसार,…
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indianscooper · 5 years ago
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ड्वेन वेड ने गैब्रिएल यूनियन को बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने ब्रेकअप के दौरान एक बच्चे को est सबसे मुश्किल काम जो मैंने कभी करना था ’किया था
ड्वेन वेड ने गैब्रिएल यूनियन को बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने ब्रेकअप के दौरान एक बच्चे को est सबसे मुश्किल काम जो मैंने कभी करना था ’किया था
<p class = "कैनवस-परमाणु कैनवास-टेक्स्ट एमबी (1.0em) एमबी (0) - sm माउंट (0.8em) - sm" टाइप = "टेक्स्ट" सामग्री = "उसके आगामी में ईएसपीएन वृत्तचित्र & nbsp;डी। वेड: लाइफ अनपेक्षित, द्व्यने वादे कथित तौर पर बताने के बारे में खुलता है गेब्रियल यूनियन उन्होंने 2013 में एक और महिला के साथ एक बच्चे को जन्म दिया था, जबकि युगल टूट गया था। “डेटा-रिएडिड =” 22 “> उनके आने वाले समय में ईएसपीएन दस्तावेज़ी
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24x7politics · 5 years ago
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मोदी सरकार आरबीआई से लेगी 1.76 लाख करोड़ : —ये देश की आर्थिक बदहाली का दस्तावेज़ी प्रमाण है। आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी सरकार ने रिज़र्व बैंक पर सरेआम डाका डाला है। कांग्रेस ने दी “अर्थ व्यवस्था”, बीजेपी ने दी “अनर्थ विवशता”..!#RBILootedhttps://t.co/Rvkfad7FFR
— 24x7politics (@24x7Politics) August 27, 2019
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everynewsnow · 4 years ago
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पानी की खपत पर बदलाव के वृत्तचित्र के लिए थिएटर
पानी की खपत पर बदलाव के वृत्तचित्र के लिए थिएटर
थिएटर फॉर चेंज की संस्थापक सुजाता बालाकृष्णन की लघु वृत्तचित्र, एच 2 ओ, विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर रिलीज होगी। चार मिनट की डॉक्यूमेंट्री एक ग्रामीण क्षेत्र और शहर में पानी के उपयोग की तुलना करेगी। संयुक्त राष्ट्र के 2015 के एक अध्ययन के अनुसार, लगभग आधी वैश्विक आबादी प्रति वर्ष कम से कम एक महीने में पानी की कमी का अनुभव करती है और 2050 में यह बढ़कर 4.8-5.7 बिलियन हो सकती है। सुजाता कहती हैं,…
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aapnugujarat1 · 5 years ago
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SC में बोले अयोध्‍या केस के वकील-निर्मोही अखाड़े के दस्तावेज और सबूत 1982 में डकैत ले गए
निर्मोही अखाड़े के दस्तावेज और सबूत 1982 में डकैत ले गए। ये बात निर्मोही अखाड़े के वकील ने अयोध्‍या मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कही। अखाड़े के वकील ने यह बात कोर्ट में तब बताई जब चीफ जस्टिस ने अखाड़ा से कहा कि वह सरकार द्वारा 1949 में ज़मीन का अटैचमेंट करने से पहले के जमीन के मालिकाना हक को दर्शाने वाले दस्तावेज, राजस्‍व रिकॉर्ड या अन्य कोई सबूत कोर्ट के समक्ष पेश करे। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि इस मामले में वे असहाय हैं। वर्ष 1982 में अखाड़े में एक डकैती हुई थी। जिसमें उन्होंने उस समय पैसे के साथ उक्त दस्तावेजों को भी खो दिया था। इस पर चीफ जस्टिस (CJI) ने पूछा- क्या अन्य सबूत जुटाने के लिए केस से जुड़े दस्तावेजों में फेरबदल किया गया था? इससे पहले जस्टिस बोबड़े ने पूछा- क्या निर्मोही अखाड़े को सेक्शन 145 सीआरपीसी के तहत राम जन्म भूमि पर दिसंबर 1949 के सरकार के अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है? ऐसा इसलिए क्योंकि निर्मोही अखाड़े ने इस आदेश को क़ानून में तय अवधि समाप्त होने के बाद निचली अदालत में चुनौती दी थी। दरअसल अखाड़ा ने तय अवधि (6 साल) समाप्त होने पर 1959 में आदेश को चुनौती दी थी। इस पर अखाड़ा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 1949 में सरकार का अटैचमेंट ऑर्डर था और उस ऑर्डर के ख़िलाफ़ मामला 1959 तक निचली अदालत में लंबित था। लिहाजा 1959 में निर्मोही अखाड़े ने निचली कोर्ट में अपनी याचिका दायर की थी। CJI रंजन गोगोई ने कहा कि अगले 2 घंटे में हम मौखिक और दस्तावेज़ी सबूतों को देखना चाहेंगे। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमको असली दस्तावेज़ दिखाइए। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि दस्तावेजों का उल्लेख इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में शामिल है। CJI ने कहा कि आप अपने तरीके से इसको रखिये। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से कहा कि आप अपने दस्तावेज़ तैयार करें। हम आपको बाद में ��ुनेंगे। अब श्रीरामलला विराजमान की तरफ से वरिष्‍ठ वकील के परासरन अपना पक्ष रखेंगे। Read the full article
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trendingwatch · 2 years ago
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संगीतकार हंस ज़िममेर पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री बना रहा है
संगीतकार हंस ज़िममेर पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री बना रहा है
द्वारा एक्सप्रेस समाचार सेवा बीबीसी कथित तौर पर अकादमी पुरस्कार विजेता संगीतकार हैंस ज़िमर पर एक वृत्तचित्र बना रहा है। विपुल संगीतकार जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है द लायन किंग, दून, पाइरेट्स ऑफ द कैरिबियन, ग्लेडिएटर, रेन मैन, ब्लैक रेन, तथा डार्क नाइट श्रृंखला। उन्होंने अपने काम के लिए ऑस्कर जीता है शेर राज�� (1995) और ड्यून (2022)। बीबीसी टू डॉक्यूमेंट्री कथित तौर पर संगीतकार के जीवन और करियर…
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