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सेबी वैकल्पिक निवेश कोष में विदेशी निवेश के लिए रूपरेखा लाया
सेबी वैकल्पिक निवेश कोष में विदेशी निवेश के लिए रूपरेखा लाया
बाजार नियामक सेबी ने शुक्रवार को विदेशी निवेशकों से पूंजी जुटाने के लिए वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) की रूपरेखा पेश की। ऑन-बोर्डिंग निवेशकों के समय, एआईएफ के प्रबंधक को यह सुनिश्चित करना होगा कि विदेशी निवेशक उस देश का निवासी है जिसका प्रतिभूति बाजार नियामक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (आईओएससीओ) के बहुपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षरकर्ता है या सेबी के साथ एक द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन के…
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'खतरों' से निपटने के लिए मध्यपूर्व रक्षा प्रणाली बना रहा अमेरिका: अधिकारी
‘खतरों’ से निपटने के लिए मध्यपूर्व रक्षा प्रणाली बना रहा अमेरिका: अधिकारी
इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पिछले सप्ताह ओमान के तट पर एक ड्रोन हमले के लिए ईरान को दोषी ठहराए जाने के बाद घोषणाएं हुईं, जिसने इजरायल के स्वामित्व वाली फर्म द्वारा संचालित एक टैंकर को टक्कर मार दी। Source link
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संस्कृत ही मूल जननी भाषा है
वैदिक संस्कृत 2000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक बोली जाने वाली आर्य भाषा थी। इस भाषा से हिंद- ईरानी भाषा का जन्म हुआ/(मध्य एशिया की भाषा) । इसी ईरानी भाषा से अवस्तई फारसी का जन्म हुआ। 18वी और 19वी शताब्दी मे पश्चिम विद्वानो की नज़र इस संस्कृत फारसी भाषा और लिपि पर पड़ी। उन्होंने अनुभव किया की उच्चारण और व्याकरंण दृष्टि से संस्कृत सर्वश्रेष्ठ है तो बहुत से शब्द अंग���रेजी के इन्होंने अंगीकार कर लिए। आइये हम आज संक्षेप मे जानते है की मध्य एशिया और यूरोप के अनेक शब्द संस्कृत से उठाये गए है, किंतु बोलचाल और उच्चारण की हेरफेर लिपि भिन्नता की वजह से हमे ये अलग प्रतीत होते है। आरंभ करते है, सृष्टि के निर्माण समय से, और माना जाता है हम सब मनु की संतान है। मनु से मानव, मानव से man बना। इसी तरह से हमारे जन्म का कारण पिता और माता है। पिता को संस्कृत मे पितृ कहते है यही पिता शब्द मध्य एशिया तक पंहुच के peder बना जो यूरोप तक जाकर father बना। कुछ यूँही माता के मूल शब्द मातृ से meder फिर mother बना। यँहा एक रोचक जानकारी साझा करना चाहूंगा की आजकल एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए हम google map की मदद से navigate करते है। यह navigate प्राचीन संस्कृत शब्द नवगति से व्युत्पन है। जिसका अर्थ है दिकचालन यानी एक जगह से दूसरी जगह जाने की योजना और प्रबंधन। कुछ अन्य शब्द :- खाट - cot चूड़ी - bangle (चूड़ी को बांग्ला मे बंगली कहते है) डकैत -dacoit चंपू - shampoo ( चंपी मसाज) नारंग - orange चिठ्ठी - chit जगन्नाथ - juggernaut ( एक बड़ा ढोयें जाने वाला ढांचा जैसे रथ)
मित्रो वैसे तो हजारो ऐसे शब्द जिन्हें लिखने बैठे तो लेख बहुत बड़ा हो जायेगा। हमारा उद्देश्य तो वैदिक धर्म और संस्कृत के बारे मे जागरुक करना और बताना है की प्राचीन भारतीय सनातन कितना समृद्ध और वैज्ञानिक रहा है । इसी वृक्��� से अन्य शाखाए पनपी है। 🙏🙏🙏🙏
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक ��िटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की राहत के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उसकी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सके। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह उससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए पुलिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़���ज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट लिया। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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Creative Writing Vocabulary
लेखन - writing (masculine) * सर्जनात्मक लेखन - creative writing कहानीकार - storyteller (masculine) लेखक - author, writer (masculine), लेखिका (feminine) लिखित काम - written work (masculine) मूल कार्य - original work (masculine) किताब, पुस्तक - book (feminine) लेख - article (masculine) कविता, शायरी - poem (feminine) नाटक - play (masculine) निबंध - essay (masculine) उपन्यास - novel (masculine) लघु कथा - short story (feminine) कहानी, कथा, गाथा - story (feminine) * a story can be विचारात्मक (reflective, thoughtful), प्रेरक (motivational, inspiring), असंगत (inconsistent), मुमकिन (credible), संक्षिप्त (short, concise), अप्रासंगिक (irrelevant) or दिलचस्प (interesting).
Planning the Story
रूपरेखा - outline (feminine) * विषयबद्ध रूपरेखा - thematic outline * रूपरेखा बनाना - to create an outline (transitive) व्यक्तिगत, वैयक्तिक - personal (adjective) विचार - thought, idea (masculine) * वैयक्तिक विचार - personal opinion कल्पना - imagination (feminine) प्रेरणा - motivation, inspiration (feminine) से प्रेरणा लेना - to draw inspiration from (transitive) नकल करना - to copy, imitate (transitive) विषय - topic (masculine) * a topic can be व्यापक (broad) or विशिष्ट (specific) केंद्र बिदु - focus, focal point (masculine) चुनना, का चयन करना - to choose, select [topic, focus] (transitive) विषय पर केन्द्रित होना - to be focused on (intransitive) संरचना - structure, composition (feminine), also ढांचा (masculine) * तार्किक संरचना - logical structure (feminine) * की संरचना बनाना - to structure (transitive) संरचनात्मक - structural (adjective) संयोजित / क्रमबद्ध करना - to sort, organize (transitive) पुनर्व्यवस्थित करना - to rearrange (transitive) जटिलता - complexity (feminine) योजना बनाना - to plan (transitive) जानकारी इकट्ठा करना - to gather information (transitive) पुनर्कल्पना करना - to reimagine (transitive) चरित्र, किरदार - character (masculine) * a character can be मुख्य (main) or सहायक (supportive character) कथावस्तु - plot, storyline (feminine), also कथानक (masculine) कारण और प्रभाव, कारणता - cause and effect, causality (masculine) कालानुक्रम, कालक्रम - chronology, sequence of events (masculine) घटना - event (feminine) * प्रमुख घटना - major, main event (feminine) * असल में घटी/घटित हुई घटना - an actual, real-life event संघर्ष - conflict (masculine) समाधान - resolution (masculine) रहस्य - mystery (masculine) कहानी का आधार - basis of a story (masculine) अपने विचारों पर आधारित - based on one's own ideas अपने अनुभवों पर आधारित - based on one's experiences असलियत - reality (feminine) कहानी की शुरुआत - beginning of a story (feminine) कहानी का अंत - end of story (masculine) * खुशनुमा अंत - happy ending (masculine)
Writing Process
लिखने का तरीका - writing method (masculine) लिखना - to write (transitive) * के बारे में लिखना - to write about * सफ़ाई से लिखना - to write neatly * पहले/तीसरे व्यक्ति में लिखना - to write in first/third person हाशिया - margin (masculine) * हाशिये बनाना - to draw margins (transitive) संवाद - dialogue (masculine) संवाद की एक पंक्ति - line of dialogue (feminine) उद्धरण - citation (masculine) मुहावरा - saying, phrase, idiom (masculine) संकल्पना - concept, notion (feminine) वाक्य - sentence (masculine) * पूरा वाक्य - complete sentence * प्रारंभिक वाक्य - opening sentence अनुच्छेद - paragraph, section (masculine) लिखावट - handwriting (feminine) शब्दावली - vocabulary (feminine) हस्तलिपि - manuscript (feminine) मसौदा - draft (masculine) वर्णन - description, characterization (masculine) * वर्णन करना - to describe (transitive) विस्तारित करना - to expand, elaborate (transitive) के नजरिए से - from the perspective of (adverb) वर्तमान काल - present tense (masculine) भूतकाल - past tense (masculine) विराम चिह्न - punctuation (masculine) वर्तनी - spelling (feminine) व्याकरण - grammar (masculine) लेखन गलती - typo, writing mistake (feminine) * गलती सुधारना - to correct a mistake (transitive) संशोधित करना - to revise, correct (transitive)
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Rajasthan's Evolving Geopolitical Landscape: A Look at the State's New Map
परिचय
क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जीवंत परंपराओं और विविध भूगोल के लिए जाना जाता है। यह राजसी राज्य पूरे इतिहास में कई साम्राज्यों और राजवंशों का उद्गम स्थल रहा है, जो अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गया है जो इसकी पहचान को आकार देती रहती है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान की भौगोलिक सीमाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे गए हैं, और हाल के दिनों में, एक नया मानचित्र सामने आया है, जो राज्य के भू-राजनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करता है। इस लेख में, हम राजस्थान के विकसित होते मानचित्र और इन परिवर्तनों में योगदान देने वाले कारकों का पता लगाएंगे।
ऐतिहासिक सीमाएँ
नए मानचित्र पर गौर करने से पहले राजस्थान की ऐतिहासिक सीमाओं को समझना जरूरी है। राज्य का भूगोल हमेशा वैसा नहीं रहा जैसा हम आज जानते हैं। राजस्थान का इतिहास विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन के कारण क्षेत्रीय विस्तार और संकुचन के उदाहरणों से भरा पड़ा है। राजस्थान के क्षेत्र ने राजपूत वंशों, मुगलों, मराठों और अंग्रेजों का शासन देखा है, जिनमें से प्रत्येक ने राज्य की सीमाओं पर अपनी छाप छोड़ी है।
आधुनिक राजस्थान का निर्माण
आधुनिक राजस्थान राज्य, जैसा कि हम आज इसे पहचानते हैं, का गठन 30 मार्च, 1949 को हुआ था, जब राजस्थान की रियासतें एक एकीकृत इकाई बनाने के लिए एक साथ आईं। इस एकीकरण से पहले, राजस्थान रियासतों का एक समूह था, जिनमें से प्रत्येक का ��पना शासक और प्रशासन था। इन रियासतों के एकीकरण ने राजस्थान के लिए एक नए युग की शुरुआत की, जिसमें विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं को एक बैनर के नीचे एक साथ लाया गया।
राजस्थान का नया मानचित्र
हाल के वर्षों में, राजस्थान के मानचित्र में ऐसे परिवर्तन देखे गए हैं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों का ध्यान आकर्षित किया है। ये परिवर्तन मुख्य रूप से प्रशासनिक सीमाओं के पुनर्गठन और नए जिलों के निर्माण के इर्द-गिर्द घूमते हैं। यहां कुछ उल्लेखनीय विकास हैं:
नये जिलों का निर्माण: राजस्थान के मानचित्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव नए जिलों का निर्माण है। राज्य सरकार ने प्रशासनिक दक्षता में सुधार और शासन को लोगों के करीब लाने के लिए यह पहल की है। उदाहरण के लिए, 2018 में, राज्य सरकार ने सात नए जिलों, अर्थात् प्रतापगढ़, चूरू, सीकर, झुंझुनू, उदयपुरवाटी, दौसा और नागौर के निर्माण की घोषणा की। इन परिवर्तनों का उद्देश्य नागरिकों को बेहतर प्रशासन और सेवा वितरण करना था।
सीमा विवाद: राजस्थान की सीमाएँ गुजरात, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश सहित कई पड़ोसी राज्यों के साथ लगती हैं। सीमा विवाद एक लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा रहा है, जो अक्सर क्षेत्र और संसाधनों पर विवादों का कारण बनता है। इन विवादों के परिणामस्वरूप कभी-कभी राजस्थान के मानचित्र में परिवर्तन होता है क्योंकि संघर्षों को हल करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों को फिर से तैयार किया जाता है। ऐसे विवादों के समाधान में अक्सर राज्य सरकारों और केंद्रीय अधिकारियों के बीच बातचीत शामिल होती है।
बुनियादी ढांचे का विकास: बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाएं राजस्थान के मानचित्र को भी प्रभावित कर सकती हैं। नई सड़कों, राजमार्गों और रेलवे का निर्माण राज्य के भीतर विभिन्न क्षेत्रों की पहुंच और कनेक्टिविटी को बदल सकता है। ऐसी परियोजनाओं से भौगोलिक सीमाओं की धारणा में बदलाव के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों में आर्थिक विकास भी हो सकता है।
शहरीकरण: राजस्थान में हाल के वर्षों में तेजी से शहरीकरण हो रहा है। जैसे-जैसे शहरों और कस्बों का विस्तार होता है, उनकी सीमाएँ अक्सर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को घेरती हुई बढ़ती हैं। इस शहरी फैलाव के परिणामस्वरूप जिलों और नगरपालिका क्षेत्रों की प्रशासनिक सीमाओं में बदलाव हो सकता है, जो राज्य के मानचित्र में परिलक्षित हो सकता है।
प्रभाव और निहितार्थ
राजस्थान के मानचित्र में बदलाव के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं। सकारात्मक पक्ष पर, नए जिलों के निर्माण और प्रशासनिक सुधारों से अधिक प्रभावी शासन, बेहतर सेवा वितरण और बेहतर स्थानीय विकास हो सकता है। यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों के बेहतर प्रतिनिधित्व और भागीदारी को भी सुविधाजनक ��ना सकता है।
हालाँकि, इन परिवर्तनों के साथ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। सीमा विवाद कभी-कभी पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव का कारण बन सकते हैं और ऐसे विवादों के समाधान के लिए राजनयिक प्रयासों और बातचीत की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, जबकि शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास आर्थिक अवसर ला सकता है, वे पर्यावरण संरक्षण, भूमि उपयोग और संसाधन प्रबंधन से संबंधित चुनौतियां भी पैदा करते हैं।
निष्कर्ष
राजस्थान का नया नक्शा इसके भू-राजनीतिक परिदृश्य की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है। राज्य में क्षेत्रीय परिवर्तनों का एक समृद्ध इतिहास है, और इसकी सीमाएँ ऐतिहासिक, प्रशासनिक और विकासात्मक कारकों के कारण समय के साथ विकसित हुई हैं। हालाँकि इन परिवर्तनों का शासन, सीमा विवाद और शहरीकरण पर प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन ये बेहतर प्रशासन और विकास के अवसर भी प्रदान करते हैं।
जैसे-जैसे राजस्थान का विकास और विकास जारी है, नीति निर्माताओं, प्रशासकों और नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे इन परिवर्तनों के निहितार्थों पर विचार करें और यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करें।
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junghaesin ने पूछा:
क्या लिगेसी एडिटर को विकल्प के तौर पर रखे जाने की कोई संभावना है? हम कंटेंट क्रिएटर के लिए, ये नया एडिटर हमारे gif/बदलावों/कला की क्वालिटी को पूरी तरह बर्बाद कर देता है. हम अपनी रचनाओं को बेहतरीन बनाने के लिए अपना कीमती वक्त लगाते हैं. लेकिन हमें एक ऐसे एडिटर का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो हमारी इन्हीं रचनाओं की क्वालिटी को ख़राब कर देता है. इससे वाकई परेशानी हो रही है.
जवाब: नमस्ते, @junghaesin!
हमें लिखने के लिए धन्यवाद. और उन सभी को भी धन्यवाद जिन्होंने हमारे साथ इसी तरह का फ़ीडबैक शेयर किया है.
तो, tl;dr—दरअसल ये ब्लॉग थीम से जुड़ी समस्या है. आपकी थीम आपको नए एडिटर में बनाई गई पोस्ट में इमेज उस ढंग से नहीं दिखा रही है जैसा आप उम्मीद करते हैं.
लिगेसी एडिटर या नए एडिटर के ज़रिये अपलोड किए गए GIF को दरअसल एक जैसे तरीके से प्र���सेस किया जाता है. इनके बीच ना तो बिट डेप्थ के और ना ही रेज़ल्युशन के लिहाज़ से कोई फ़र्क रहता है. आप Tumblr डैशबोर्ड में अपनी पोस्ट पर नज़र डालकर ये चीज़ देख सकते हैं (उदा. yourblog.tumblr.com/post/id के बजाय tumblr.com/yourblog/id पर जाएँ).
आपको क्वालिटी में अंतर इसलिए दिखाई पड़ता है क्योंकि पुरानी ब्लॉग थीम, नए एडिटर से बनाई गई पोस्ट को टेक्स्ट पोस्ट मानती हैं. ये थीम अक्सर टेक्स्ट पोस्ट के पूरे कंटेंट के साथ-साथ उसमें दिखने वाली इमेज के चारों तरफ़ भी एक पैडिंग जोड़ देती हैं. अगर आपकी थीम आपकी पोस्ट को 540px चौड़ी पोस्ट के तौर पर पेश करती है, तो उस अतिरिक्त पैडिंग के साथ टेक्स्ट पोस्ट में आपकी इमेज के लिए दरअसल 540px से कम जगह उपलब्ध होती है. और नतीजा ये होता है कि ब्राउज़र आपकी इमेज को फ़िट करने के लिए उसे छोटा कर देता है और ऐसा होने पर इमेज की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है.
यह इमेज नए एडिटर से पोस्ट की गई है और पुरानी थीम पर डिस्प्ले हो रही है. यहाँ ब्राउज़र ने इमेज को छोटा कर दिया है, क्योंकि यह एक "टेक्स्ट पोस्ट" है और इस थीम में टेक्स्ट पोस्ट के लिए पैडिंग है, जिसके चलते कंटेंट के लिए मौजूद चौड़ाई कम हो जा रही है.
यह इमेज नए एडिटर से पोस्ट की गई है और एक नई थीम (Vision) पर डिस्प्ले हो रही है. यह थीम सिर्फ़ टेक्स्ट पर पैडिंग करती है, इसलिए इमेज पोस्ट की पूरी चौड़ाई में दिखती है.
इसका हल ये है—आप किसी और आधुनिक, सबसे नई थीम पर ��पडेट करें, जैसे कि विज़न या स्टीरियो. थीम डेवलपर @eggdesign ने एक थीम टेम्पलेट भी बनाया जो नई पोस्ट के साथ काम करता है जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकते हैं. ये आधुनिक थीम पूरी पोस्ट के बजाय सिर्फ़ टेक्स्ट ब्लॉक पर पैडिंग लगाती हैं, इसलिए इमेज ब्लॉक पर कोई पैडिंग नहीं होती और उन्हें उनकी पूरे 540px चौड़ाई के साथ सर्व किया जाता है, बिल्कुल डैशबोर्ड की तरह. जहाँ तक हमने देखा है, इससे ब्लॉग पर जो GIF की क्वालिटी से जुड़ी समस्याएँ दिखाई देती हैं, वो सभी ठीक हो जाती हैं.
हमें पता है. अपनी थीम बदलने में बहुत मेहनत लगती है. आने वाले समय में, हम इस बदलाव को आसान बनाने के तरीके ढूँढने वाले हैं—उदाहरण के लिए, आपको उन थीम की पहचान करने में मदद करना जो थीम समूह में नई पोस्ट के साथ बढ़िया काम करती हैं. लेकिन आगे बढ़ने के लिए नई पोस्ट के साथ काम करना होगा—नई पोस्ट जिस फ़ॉर्मेट का इस्तेमाल करती हैं वो भविष्य में बहुत सारे अवसर खोलने वाला है.
आप नए एडिटर से पोस्ट में पोस्ट प्रकार क्यों नहीं जोड़ सकते? क्यों ना नई पोस्ट को टेक्स्ट पोस्ट के बजाय फ़ोटो पोस्ट के तौर पर सर्व किया जाए?
नया पोस्ट एडिटर एक नए पोस्ट फ़ॉर्मेट का इस्तेमाल करता है जिसे Neue पोस्ट फ़ॉर्मेट (NPF) कहते हैं. पोस्ट में कौन सा कंटेंट हो सकता है, इस बारे में लचीलेपन के मामले में NPF ने हमें काफ़ी बढ़ावा दिया है—आपको वो समय याद है जब आप रीब्लॉग में इमेज तक अपलोड नहीं कर पाते थे? या किस तरह पुराने चैट और विचार पोस्ट जादूई ढंग से लेखक बदल देते हैं? NPF ने इन चीज़ों को ठीक करने में हमारी मदद की. इसने सीमाएँ हटा दीं—पोस्ट प्रकारों से जुड़ी सीमा भी, जो हर पोस्ट को एक ख़ास प्रकार क�� कंटेंट तक सीमित कर देती है.
लेकिन अब भी मौजूदा ब्लॉग थीम के पास इन पोस्ट को डिसप्ले करने की ताकत होनी ज़रूरी है. NPF पोस्ट कहीं भी मीडिया शामिल कर सकती हैं (जबकि ज़्यादातर पुराने पोस्ट प्रकारों में मीडिया के लिए एक कठोर ढांचा होता है), इसलिए हमारे लिए सबसे सुरक्षित तरीका यही था कि NPF पोस्ट को सबसे कम सीमित पोस्ट प्रकार यानी टेक्स्ट प्रकार के तौर पर श्रेणीबद्ध किया जाए. इन पोस्ट को मौजूदा ब्लॉग थीम के साथ उल्टा-संगत बनाने के लिए हमारे पास बस यही सबसे बढ़िया तरीका है.
पोस्ट प्रकारों की जगह हमने हर पोस्ट के लिए एक {NPF} थीम वेरिएबल जोड़ दिया है जिनका कस्टम थीम फ़ायदा उठा सकती हैं. इस नए डेटा का फ़ायदा उठाने के लिए थीम डेवलपर को अपनी थीम अपडेट करनी होंगी ताकि वो पोस्ट के HTML आउटपुट पर पूरा नियंत्रण बनाए रख सकें.
आप इन फ़ैसलों और Neue पोस्ट फ़ॉर्मेट विनिर्देशों के बारे में ज़्यादा यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं.
आपके फ़ीडबैक के लिए धन्यवाद और इन्हें भेजते रहें!
सप्रेम,
—Tumblr WIP टीम
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ग़ज़ल और नज़्म क्या हैं? उर्दू कविता की आत्मा का परिचय
ग़ज़ल क्या है?
ग़ज़ल एक काव्य रूप है, जिसे उसकी रोमांटिक और रहस्यमयी गहराई के लिए सराहा जाता है। इसमें तुकांत मक्तियाँ और दोहराई जाने वाली पंक्तियाँ होती हैं, जो भावनात्मक रूप से जटिल विषयों को पेश करती हैं। ग़ज़ल की उत्पत्ति फारसी और अरबी साहित्य में हुई, और यह उर्दू साहित्य का ��हम हिस्सा बन गई, जिसे ��ारत और पाकिस्तान में बेहद पसंद किया जाता है। प्रेम और विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाने वाली ग़ज़ल, रूपक भाषा और प्रतीकात्मक छवियों का उपयोग करने का अनोखा ढंग रखती है। नज़्म क्या है?
ग़ज़ल से अलग, नज़्म किसी विशेष थीम या कहानी पर आधारित होती है। इसकी जड़ें फारसी में हैं, लेकिन यह उर्दू कविता में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही। नज़्म के माध्यम से कवि सामाजिक, दार्शनिक और भावनात्मक मुद्दों पर अभिव्यक्ति देते हैं। नज़्म का लचीला ढांचा इसे रोमांटिक विचारों, राजनीतिक कथाओं और दार्शनिक चिंतन के लिए एक आदर्श माध्यम बनाता है। मुक्त छंद की शैली में नज़्म आधुनिक अभिव्यक्ति और सामाजिक आलोचना का एक महत्वपूर्ण साधन बन चुकी है। ग़ज़ल और नज़्म के प्रमुख अंतर संरचना: ग़ज़ल स्वतंत्र मक्तियों से बनी होती है, जिनमें हर एक अलग भावनात्मक परत को उजागर करती है, जबकि नज़्म एक सुसंगत कथा के माध्यम से बहती है।
विषय और भावनाएँ: ग़ज़ल में अक्सर अनंत भावनाएँ जैसे प्रेम, सुंदरता, और रहस्यवाद होते हैं, जबकि नज़्म आध्यात्मिकता से लेकर राजनीति तक के विषयों को पेश करती है।
तुकांत और लय: ग़ज़ल में एक सख्त तुकांत योजना और रदीफ़ होती है, जबकि नज़्म अधिक लचीली संरचना का पालन करती है, अक्सर मुक्त छंद में होती है।
उत्पत्ति और सांस्कृतिक महत्त्व ग़ज़ल की शुरुआत 7वीं शताब्दी के अरब से हुई, जो फ़ारसी साहित्य के माध्यम से उर्दू में पहुँची, जहाँ यह एक सांस्कृतिक धरोहर बन गई। इसके विपरीत, नज़्म का विकास उर्दू में हुआ और यह दक्षिण एशियाई विरासत को दर्शाती है, जिसमें व्यक्तिगत से लेकर दार्शनिक विषयों का समावेश होता है। आज भी, ग़ज़ल और नज़्म उर्दू-भाषी क्षेत्रों की कलात्मक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं, जो दक्षिण एशियाई संस्कृति की भावनात्मक और बौद्धिक गहराई का प्रतीक हैं।
#Ghazal#Nazm#UrduPoetry#PersianPoetry#Love#Heartbreak#Spirituality#SouthAsianCulture#PoeticExpression#TumblrPoetry#ArtisticIdentity#Mysticism#RomanticPoetry#PhilosophicalPoetry
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**गरीबों को भी रोटी चाहिए, उनका शोषण ठीक नहीं, ये सूरत बदलनी चाहिए**
आज के इस युग में, जहाँ हर कोई अपने सपनों के पीछे भाग रहा है, कहीं न कहीं हम एक महत्वपूर्ण सच्चाई को अनदेखा कर रहे हैं—हमारे समाज के उस हिस्से को, जो अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्ष कर रहा है। गरीबों के पास वह सब कुछ नहीं है जो हमें आसानी से मिल जाता है। उनके पास ना तो पर्याप्त भोजन है, ना ही पहनने को अच्छे क��ड़े, और ना ही एक सुरक्षित छत।
### गरीबी का वास्तविक चेहरा
जब हम किसी महानगर की चमचमाती इमारतों को देखते हैं, तो हमें महसूस ही नहीं होता कि इन इमारतों की नींव में उन गरीब मजदूरों का खून-पसीना शामिल है। वे वही लोग हैं जो सुबह से शाम तक काम करते हैं, परंतु बदले में उन्हें सिर्फ कुछ मुट्ठीभर पैसे मिलते हैं, जिससे उनका जीवन संघर्षों से भरा रहता है। यह विडंबना है कि जो लोग हमारे समाज को बनाने में अपना योगदान देते हैं, वे खुद भूखे पेट सोने को मजबूर हैं।
### शोषण की जड़ें और इसे खत्म करने की आवश्यकता
हमारा समाज एक ऐसा ढांचा बन चुका है जहाँ गरीबों का शोषण करना एक सामान्य बात हो गई है। उनसे कम वेतन पर लंबे घंटे काम करवाना, उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रखना, और उनके बच्चों को शिक्षा से दूर रखना, यह सब एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यह शोषण तब और भी ज्यादा दर्दनाक हो जाता है जब हम देखते हैं कि उनकी मेहनत का फल कुछ गिने-चुने अमीरों की जेबों में चला जाता है।
### हमें क्या बदलने की आवश्यकता है?
विक्रांत राजलीवाल का मानना है कि अब समय आ गया है कि हम इस स्थिति को बदलें। हमें एक ऐसा समाज बनाना चाहिए जहाँ हर व्यक्ति को जीने का हक मिले। गरीबों को सिर्फ दया का पात्र समझने के बजाय हमें उनके अधिकारों के लिए आवाज उठानी चाहिए। यह जरूरी है कि—
1. **रो��़गार और उचित वेतन:** गरीबों को भी सम्मानजनक नौकरी और उचित वेतन मिलना चाहिए। अगर वे दिन-रात मेहनत करते हैं, तो उन्हें उनकी मेहनत का सही फल मिलना चाहिए।
2. **शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ:** गरीब बच्चों को भी उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध होनी चाहिए ताकि वे अपने भविष्य को संवार सकें।
3. **शोषण का अंत:** जो लोग गरीबों का शोषण करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए जो मजदूरों और गरीबों के अधिकारों की रक्षा करें।
### एक नया दृष्टिकोण
हमारी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। हमें समझना होगा कि गरीब कोई बोझ नहीं हैं, बल्कि वे भी इस समाज के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। अगर हम सभी अपने छोटे-छोटे प्रयासों से उनकी मदद करें, तो यह दुनिया रहने के लिए एक बेहतर जगह बन सकती है।
### विक्रांत राजलीवाल का संदेश
विक्रांत राजलीवाल के शब्दों में, "गरीबों का शोषण करना मानवता के खिलाफ है। हमें उनकी मदद करनी चाहिए और उन्हें वह सम्मान देना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। अगर हम समाज की इस सूरत को बदलने में सफल होते हैं, तो यही असली जीत होगी।"
आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाने की ओर कदम बढ़ाएँ जहाँ कोई भूखा न सोए, जहाँ हर किसी को उसकी मेहनत का फल मिले, और जहाँ गरीबों का शोषण एक बीते हुए कल की बात बन जाए।
अगर आप इस संदेश से सहमत हैं और इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो कृपया इस वीडियो को देखें, फॉलो करें, और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। आइए मिलकर इस समाज की सूरत बदलने की ओर कदम बढ़ाएँ।
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