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डोल ग्यारस आज, इस व्रत को करने से हर संकट का होता है अंत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए इसे 'परिवर्तनी एकादशी' भी कहा जाता है। इसके अलावा भी इसे 'पद्मा एकादशी', 'वामन एकदशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस साल डोल ग्यारस 29 अगस्त 2020 को है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं डोल ग्यारस का महत्व और पूजा-विधि।
डोल ग्यारस का महत्व डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि कृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है।
डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे 'वामन ग्यारस' भी कहा जाता है। जो भी इस एकादशी में भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसके हर संकट का अंत होता है।
डोल ग्यारस पूजा-विधि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप की आराधना करें और उनकी मूर्ति के समक��ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में तुलसी और फलों का प्रयोग करें। शास्त्रों के अनुसार इस दिन अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत खोल लें। ये भी पढ़े... दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां भगवान गणेश ने क्यों लिया विकट अवतार, जानिए इसका रहस्य Read the full article
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परिवर्तिनी एकादशी : इस दिन करवट बदलते हैं श्री हरि विष्णु, इस कथा को पढ़ने से मिलती है पापों से मुक्ति
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसके अलावा भी इसे 'पद्मा एकादशी', 'वामन एकदशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस साल परिवर्तिनी एकादशी 29 अगस्त 2020 को है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं डोल ग्यारस का महत्व और पूजा-विधि। परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा त्रेता युग की बात है। बलि नाम का एक दैत्य था। वह दैत्यों का राजा था। भगवान विष्णु का परम भक्त था। विष्णु जी को अपना आराध्य मान उनका पूजन किया करता था। साथ ही ब्राह्मणों का भी आदर सत्कार किया करता था। उन्हें कभी खाली हाथ नहीं लौटने देता था। बलि का इंद्रदेव से बैर था। उसने अपनी शक्तियों से सभी देवी-देवताओं सहित इंद्र को जीत लिया था। तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। दैत्य के शासन का विस्तार देखकर सभी देवता चिंतित हो गए कि पृथ्वी पर दैत्यों का शासन स्थापित हो जाएगा। इसलिए सभी देवी-देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। उनकी स्तुति कर उनसे इस समस्या का समाधान मांगा। भगवान विष्णु ने उनको आश्वासन दिया कि वह संपूर्ण विश्व पर दैत्यों का राज नहीं होने देंगे। क्योंकि इससे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा और चारों ओर हिंसा ��ैल जाएगी। उन्होंने दैत्य राजा बलि से तीनों लोक मुक्त कराने के ��िए वामन अवतार लिया। यह भगवान विष्णु का पांचवा अवतार था। वामन अवतार लेकर भगवान विष्णु राजा बलि के महल गए। वहां जाकर उन्होंने राजा बलि से संकल्प लेने को कहा कि वह वामन देव को तीन पग भूमि दान करेंगे। वामन की बातों से दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने यह समझ लिया कि यह भगवान विष्णु हैं और यह राजा बलि से तीनो लोक लेने आए हैं। गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को सावधान किया। लेकिन राजा बलि ने कहा यह संकल्प ले चुके हैं और वह विष्णु जी को अपना आराध्य मानते हैं तो उन्हें मना कैसे कर सकते हैं। इस पर वामन देव ने दो पगों में ही समस्त संसार और लोकों को नाप दिया। इसके बाद विष्णु जी ने वामन देव से पूछा कि अब तीसरा पग कहां रखें। इसके जवाब में बलि महाराज ने अपना सिर भगवान विष्णु के कदमों में रख दिया और कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रखें। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने तीनों लोगों को दैत्य शासन से मुक्त कर दिया। एकादशी के दिन व्रत कर इस कथा को पढ़ने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। ये भी पढ़े... जानिए कब है डोल ग्यारस, इस व्रत को करने से हर संकट का होता है अंत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि अगस्त में पड़ रहे है ये प्रमुख व्रत-त्योहार, जानें तिथि और इसका महत्व Read the full article
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जानिए कब है डोल ग्यारस, इस व्रत को करने से हर संकट का होता है अंत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए इसे 'परिवर्तनी एकादशी' भी कहा जाता है। इसके अलावा भी इसे 'पद्मा एकादशी', 'वामन एकदशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस साल डोल ग्यारस 29 अगस्त 2020 को है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं डोल ग्यारस का महत्व और पूजा-विधि।
डोल ग्यारस का महत्व डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि कृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है।
डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे 'वामन ग्यारस' भी कहा जाता है। जो भी इस एकादशी में भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसके हर संकट का अंत होता है।
डोल ग्यारस पूजा-विधि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप की आराधना करें और उनकी मूर्ति के समक्ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में तुलसी और फलों का प्रयोग करें। शास्त्रों के अनुसार इस दिन अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत खोल लें। ये भी पढ़े... दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां भगवान गणेश ने क्यों लिया विकट अवतार, जानिए इसका रहस्य Read the full article
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जानिए कब है डोल ग्यारस, इस व्रत को करने से हर संकट का होता है अंत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए इसे 'परिवर्तनी एकादशी' भी कहा जाता है। इसके अलावा भी इसे 'पद्मा एकादशी', 'वामन एकदशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस साल डोल ग्यारस 29 अगस्त 2020 को है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं डोल ग्यारस का महत्व और पूजा-विधि।
डोल ग्यारस का महत्व डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि कृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है।
डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन ��ाजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे 'वामन ग्यारस' भी कहा जाता है। जो भी इस एकादशी में भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसके हर संकट का अंत होता है।
डोल ग्यारस पूजा-विधि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप की आराधना करें और उनकी मूर्ति के समक्ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में तुलसी और फलों का प्रयोग करें। शास्त्रों के अनुसार इस दिन अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत खोल लें। ये भी पढ़े... दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां भगवान गणेश ने क्यों लिया विकट अवतार, जानिए इसका रहस्य Read the full article
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डोल ग्यारस व्रत करने से हर संकट का होता है अंत, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए इसे 'परिवर्तनी एकादशी' भी कहा जाता है। इसके अलावा भी इसे 'पद्मा एकादशी', 'वामन एकदशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस साल डोल ग्यारस 9 सितंबर दिन सोमवार को पड़ रही है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं डोल ग्यारस का महत्व और पूजा-विधि।
डोल ग्यारस का महत्व डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि कृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है।
डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे 'वामन ग्यारस' भी कहा जाता है। जो भी इस एकादशी में भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसके हर संकट का अंत होता है।
डोल ग्यारस पूजा-विधि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप की आराधना करें और उनकी मूर्ति के समक्ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में तुलसी और फलों का प्रयोग करें। शास्त्रों के अनुसार इस दिन अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत खोल लें। ये भी पढ़े... सितंबर महीने में आने वाले हैं ये प्रमुख तीज-त्योहार, जानिए कब से शुरू हो रही नवरात्रि दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां भगवान गणेश ने क्यों लिया विकट अवतार, जानिए इसका रहस्य Read the full article
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