#झारखंड विधान सभा चुनाव
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अयोध्या के बाद भोले बाबा की नगरी देवघर में भी हारी भाजपा, जानें कितने वोटों से हारी सीट
Jharkhand News: झारखंड विधान सभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस, आरजेडी और भाकपा माले का गठबंधन ने अपनी सत्ता बरकरार रखी है। राज्य की 81 सीटों में से जेएमएम को 34, बीजेपी को 21, कांग्रेस 16, आरजेडी 4, सीपीआई (एमएल/एल) 2, झारखण्ड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा- जलकम, आजसू, एलजेपी रामविलास और जेडीयू को एक-एक सीट पर जीत मिली है। झारखंड विधानसभा चुनाव में अब तक आए रिजल्ट में भोले…
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Jharkhand jmm after election : झामुमो के कार्यकर्ताओं में मुख्यमंत्री ने भरा जोश, कहा - जीतेगी जनता, बनेगा इंडिया गठबंधन की सरकार
रांची : झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सह मुख्यमंत्री, झारखण्ड सरकार हेमंत सोरेन ने झारखण्ड विधान सभा आम चुनाव 2024 का मतदान समपन्न होने के उपरांत अपने कांके रोड स्थित आवास से ऑनलाइन मीटिंग के माध्यम से पूरे राज्य के पार्टी कार्यकर्ताओं से जुड़े तथा पूरे चुनाव में उनके अभूतपूर्व योगदान तथा समर्पण के लिए उन्हें बधाई देकर उनका उत्साहवर्द्धन…
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झारखंड: त्योहारों ने उम्मीदवारों के लिए खड़ी कर दी परेशानी, चुनाव आयोग ने उठाया ये कदम
चुनाव आयोग ने झारखंड में इस बार विधान सभा चुनाव दो चरण में कराने का ऐलान किया है. 81 सदस्यीय विधानसभा के लिए पहले चरण में 43 सीटों पर वोटिंग होगी. पहले चरण के लिए नामांकन वापस लेने और स्क्रूटनी की प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं. चुनावी मैदान में अब उम्मीदवार प्रचार-प्रसार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. पहले चरण की वोटिंग 13 नवंबर को होगी. अक्टूबर के आखिर और नवंबर के पहले हफ्ते में त्योहारों…
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झारखंड चुनाव: डाल्टनगंज विधानसभा सीट पर कब वोटिंग, मतगणना और नतीजे, क्षेत्र में कौन कैंडिडेट, संपत्ति, केस
झारखंड चुनाव: डाल्टनगंज विधानसभा सीट पर कब वोटिंग, मतगणना और नतीजे, क्षेत्र में कौन कैंडिडेट, संपत्ति, केस
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के तहत पहले चरण में जिन 13 सीटों पर 30 नवंबर को मतदान होगा उसमें डाल्टनगंज विधानसभा सीट भी शामिल है। आइए जानते हैं Daltonganj Assembly Seat डाल्टनगंज विधानसभा सीट के बारे में- डाल्टनगंज विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 44 हजार 814 मतदाता हैं इनमें पुरूष वोटरों की संख्या 1 लाख 81 हजार 259 और महिला वोटरों की संख्या 1 लाख 63 हजार 555 है। Daltonganj Assembly Seat Voting Date…
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द्रौपदी मुर्मू का संक्षिप्त जीवन परिचय ~ Draupadi Murmu Biography in Hindi
Draupadi Murmu Biography in Hindi: 18 जुलाई को देश के सर्वोच्च पद के लिए होने वाले चुनाव में आदिवासी समुदाय से सम्बन्ध रखने वाली द्रौपदी मुर्मू को भारतीय जनता पार्टी द्वारा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। ज्ञात रहे 14वे राष्ट्रपति के रूप में पदभार सँभालने वाले श्री राम नाथ कोविंद जी का कार्यकाल ख़त्म हो रहा है। भारत के उड़ीसा राज्य में जन्मी द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से सम्बन्ध रखती है, और वह भारत की पहली महिला आदिवासी के रूप में इस पदभार को ग्रहण करेंगी। आजकल हर कोई द्रोपदी मुर्मू के बारे में जानना चाहता है। आज इस लेख में हम जानने वाले वाले है द्रोपदी मुर्मू के बारे में, जानते उनकी जीवनी और राष्ट्र्पादी पद तक के सफ़र का संघर्ष तक की पूरी कहानी।
द्रौपदी मुर्मू का संक्षिप्त जीवन परिचय : Draupadi Murmu Biography in Hindi
नाम:द्रौपदी मुर्मूजन्म तिथि:20 जून 1958पिता का नाम:बिरंचि नारायण टुडुमाता का नाम:किनगो टुडूपति का नाम:स्व. श्याम चरण मुर्मूजन्म स्थान:मयूरभंज, ओड़िशा, भारतउम्र:64 वर्ष धर्म:हिन्दूजाति:अनुसूचित जनजातिराशि:मीन राशिपेशा:राजनीतिपार्टी:भारतीय जनता पार्टी द्रौपदी मुर्मू का संक्षिप्त जीवन परिचय द्रौपदी मुर्मू का शैक्षिक जीवन परिचय: Draupadi Murmu Personal Life प्रारंभिक शिक्षाअज्ञातकॉलेजरमा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर, ओडिशाशिक्षाकला स्नातकद्रौपदी मुर्मू का शैक्षिक जीवन परिचय
द्रौपदी मुर्मू का प्रारंभिक जीवन परिचय:
20 जून 1958 को उड़ीसा राज्य के मयुरभंज जिले के बैदापोसी गाँव के एक आदिवासी परिवार में द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ था। इनके पिता जी नाम बिरंचि नारायण टुडु और माता का नाम किनगो टुडू था। द्रौपदी मुर्मू के पिता और दादा दोनों की ग्राम प्रधान र��े। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से शुरू हुई, यह शुरू से पढने में मेधावी थी। पढाई लिखाई के प्रति इनकी रूचि को देखकर इनके पिता ने आगे की पढाई के लिए भुवनेश्वर भेज दिया। जहाँ इन्होने रमा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर, ओडिशा से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। पढाई पूरी करने के बाद 1983 में ओडिशा सरकार के अंतर्गत सिंचाई विभाग में बतौर जूनियर लिपिक कार्य करना शुरू किया। जिसके बाद सन 1994 में बतौर शिक्षक अरबिंदो इंटीग्रल सेण्टर राइरांगपुर ओड़िसा में बच्चों को शिक्षा देने का कार्य शुरू किया।
द्रौपदी मुर्मू का पारिवारिक जीवन परिचय:
इसी दौरान द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ, जिनसे उनको तीन संताने दो पुत्र और एक पुत्री के रूप में प्राप्त हुई। इनके दोनों बेटों का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया और इसके बाद उनके पति श्याम चरण मुर्मू भी पञ्च तत्व में विलीन हो गए। अब उनकी सिर्फ एक बेटी है जिनका नाम इतिश्री मुर्मू है। द्रौपदी मुर्मू का वैवाहिक जीवन भी बहुत ही कष्ट में बीता, पति और बेटों के ना रहने के बाद भी उनकी दृढ इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने के जज्बे ने उन्हें हिम्मत नहीं हारने दी, और जीवन पथ में आगे बढ़ने को सदा प्रेरित रही।
द्रौपदी मुर्मू राजनैतिक जीवन परिचय:
- अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय जनता पार्टी के साथ की। सन 1997 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की तरफ से रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में नामांकन किया और जीत हासिल की। - इसके बाद पार्टी ने इनकी सफलता और लोकप्रियता को देखते हुए इन्हें पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा का उपाध्यक्ष बना दिया। - भाजपा और बीजू जनता दल की गठबंधन सरकार के दौरान आप सन 2000 से 2002 तक कॉमर्स व ट्रांसपोर्ट की स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहीं। - इसके बाद साल 2002 से 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री के तौर पर काम किया। - इसके बाद साल में 2004 ओडिशा के रायगंज विधानसभा सीट से विजय हासिल कर विधान सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। - साल 2015 में आपकी नियुक्ति झारखंड के राज्यपाल के रूप में हुई और साल 2021 तक झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन किया। - आप झारखंड की पहली महिला गवर्नर के रूप में भी जानी जाती है। - इसके अलावा द्रौपदी मुर्मू की पहचान स्वतंत्र भारत की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल के रूप में भी जानी जाती है।
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का सफ़र:
जीवन में कोई भी उपलब्धि बिना त्याग और परिश्रम के नहीं प्राप्त होती है। आरंभिक जीवन से लेकर वैवाहिक जीवन तक का सफ़र द्रौपदी मुर्मू के लिए बहुत ही उतार चढाव वाले रहे। साल 1997 में शुरू हुआ राजनैतिक जीवन 2022 में राष्ट्रपति जैसे पद तक पहुंचा देगा द्रौपदी मुर्मू ने शायद ही कभी इसकी कल्पना की हो। लेकिन आज यह हकीकत में बदल चूका है। द्रौपदी मुर्मू की भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है और नामांकन के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रस्तावक और राजनाथ सिंह अनुमोदक के रूप में उपस्थित रहे है। आप देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के रूप में चुनी गयी है जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्ब्धि है। इसके पूर्व तक देश के राष्ट्रपति के रूप में हर वर्ग के लोगों ने प्रतिनिधित्व किया है लेकिन आदिवासी के रूप में आप पहली महिला होगी जिन्हें इस पद के लिए चयनित किया गया है। इन पार्टियों ने दिया है समर्थन: भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति के रूप में उम्मीदवार घोषित करने के बाद देश की तमाम राजनैतिक पार्टियों आपके समर्थन में सामने आये है जो निम्न प्रकार से है। - ओडिशा की बीजू जनता दल पहले ही मुर्मू को समर्थन की घोषणा कर चुकी है। - बिहार की राजनैतिक पार्टी LJP (रामविलास) भी मुर्मू के समर्थन की घोषणा कर चुकी है। - बिहार के ही एक और राजनैतिक दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) ने भी द्रौपदी के समर्थन की घोषणा की है। - मेघालय जनतांत्रिक गठबंधन (MDA) ने भी समर्थन करने की घोषणा की है। - सिक्किम के मुख्यमंत्री और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के अध्यक्ष प्रेम सिंह तमांग ने राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। - महाराष्ट्र की उद्धव शिव सेना ने भी द्रपादी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा की है।
द्रपादी मुर्मू के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य:
साल 2007 में ओडिशा विधान सभा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के रूप में नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला गवर्नर के रूप में भी जानी जाती है। वे भारत के राज्य की पूर्णकालिक राज्यपाल बनने वाली पहली जनजातीय महिला भी हैं। वे भारत की पहली आदिवासी महिला है जिन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन किया है। यदि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत जाती है तो वे भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेंगी। इसके आलावा जीतने के बाद भारत का सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति होने का रिकॉर्ड भी उनके नाम दर्ज होगा। - भारत के राष्ट्रपति और उनके नाम - रामनाथ कोविंद का जीवन परिचय - भारत के राज्यपाल एवं उनके नाम - देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बारे में 10 बड़ी बातें - योगी आदित्यनाथ का जीवन परिचय - अमिताभ बच्चन का जीवन परिचय महत्वपूर्ण FAQS ��्रौपदी मुर्मू का जन्म कब और कहाँ हुआ था? 20 जून 1958 को मयूरभंज, ओड़िशा, भारत द्रौपदी मुर्मू किस जाति से है? आदिवासी जनजाति द्रौपदी मुर्मू के पिता जी का नाम क्या है? बिरंचि नारायण टुडु द्रौपदी मुर्मू के माता जी का नाम क्या है? किनगो टुडू द्रौपदी मुर्मू पति का नाम क्या है? स्व. श्याम चरण मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल का नाम बताये? द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति का नाम बताओ? द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति है। Read the full article
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नजर और चिंता अपने पसंदीदा अगले राष्ट्रपति की
खेल का मैदान हो या व्यापार के लिए बाजार का , दूरगामी सफलता की तैयारी होने पर ही शिखर पर पहुँचने का लाभ मिल सकता है | इसी तरह राजनीति में दूरगामी हितों को ध्यान में रखकर निरंतर प्रयास करने पर ही लक्ष्य पूरे हो सकते हैं | नरेंद्र मोदी उन नेताओं में से हैं , जो तात्कालिक लाभ हानि के साथ अधिक दूरगामी लक्ष्य और परिणामों को ध्यान में रखकर तैयारियां करते रहते हैं | इस दृष्टि से यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश और पंजाब विधान सभा के आगामी चुनाव के परिणाम केवल उनकी और भाजपा की जयकार वाली सत्ता से अधिक कुछ ही महीनों में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव , फिर 2024 में वही राष्ट्रपति नई सरकार बनाने के लिए बहुमत साबित कर सकने वाले नेता को आमंत्रित कर सकता है | कुछ हद तक राजनीति के सबसे पुराने खिलाड़ी , शरद पवांर ,प्रतिपक्ष को एकत्र करने में जुटी ममता बनर्जी भी इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं |
भारतीय राजनीति में बहुत पहले एक पुस्तक आई थी -" हु आफ्टर नेहरू " | लेकिन 1980 में दुबारा सत्ता में आने के बाद इंदिरा गाँधी दिग्गज नेताओं के रहने के बावजूद कोई पुस्तक नहीं आई कि ' इंदिरा के बाद कौन "? 1984 में उनकी नृशंस हत्या के बाद जल्दबाजी में केबिनेट के वरिष्ठतम मंत्री के नाते प्रणव मुखर्जी का जीवन परिचय हम जैसे पत्रकारों को बंटवा दिया गया | लेकिन कांग्रेस के अन्य नेताओं और तत्कालीन राष्ट्रपति जैलसिंह ने राजीव गाँधी को प्रधान मंत्री बना दिया | वी पी सिंह , चंद्र शेखर और नरसिंह राव के प्रधान मंत्री बन सकने पर कोई पुस्तक नहीं आई थी | हाँ , 1993 में मेरी एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी - " राव के बाद कौन " | किताब में मैंने राव के विकल्प हो सकने वाले प्रमुख नेताओं में शरद पंवार , अर्जुन सिंह , माधव राव सिंधिया , राजेश पायलट , चंद्र शेखर और अटल बिहारी वाजपेयी पर एक एक अध्याय उनकी राजनीतिक ताकत और कमजोरियों पर लिखे थे | हिंदी की यह पुस्तक अधिक बिकी भले ही न हो राजनीतिक गलियारों में सर्वाधिक चर्चित हुई | पुस्तक से थोड़े खिन्न नरसिंह रावजी ने तो एक समारोह में कह भी दिया " राव के बाद कौन जैसी और किताबें लिख ली जाएँ , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता | " फिर अलग से भेंट होने पर मुझसे कहा - " आपके मित्र सिंधिया और राजेश को प्रधान मंत्री बनने की जल्दी क्या है ? " मैंने विनम्रता से इतना ही उत्तर दिया कि आपको प्रसन्न होना चाहिए कि आपके युवा सहयोगी भी प्रधान मंत्री बनने की क्षमता रखते हैं | ' बहरहाल बाद में सिंधियाजी और उनके कुछ सहयोगी यह आशंका करते रहे कि इस किताब में नाम आने के कारण ही राव ने उन्हें हवाला कांड के आरोप में फंसा दिया | यह बात अलग है कि बाद में इस विवाद के सभी आरोपी अदालत ने दोषमुक्त करार दिए | लेकिन राव के रवैयों से कांग्रेस विभाजित हो गई | 1996 के लोक सभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने संख्या बल के आधार और कुछ हद तक अपनी पसंद के अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का निमंत्रण देकर प्रधान मंत्री बना दिया | इसके बाद तो संख्या बल , जोड़ तोड़ और गठबंधन से दो तीन बार केंद्र में सरकार बनी | राष्ट्रपति की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही |
राष्ट्रपति की शक्ति के सन्दर्भ में एक और घटना क्रम का उल्लेख उचित होगा | राजीव गाँधी से बहुत नाराज होने के बाद राष्ट्रपति जैलसिंह ने एक बार मेरी उपस्थिति में ही उनके करीबी पुराने कांग्रेसी विद्याचरण शुक्ल से यह तक कह दिया कि " तुम पचास सांसदों से दस्तखत कराकर ले आओ , तो मैं तुम्हें ही प्रधान मंत्री की शपथ दिला दूंगा बाद में तुम बहुमत जुटा लेना | " उस समय राष्ट्रपति राजीव गाँधी को बर्खास्त करने की सोचने लगे थे | लेकिन न तो शुक्ल ऐसा प्रयास कर सके और फिर कई दबाव और सलाह से जैलसिंह उन्हें बर्खास्त नहीं कर सके | मतलब यह कि संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति अपनी अनुकम्पा से किसी को भी एक बार प्रधान मंत्री बना सकता है और अधिक उत्तेजित होने पर बर्खास्त भी कर सकता है | स्पष्ट बहुमत नहीं होने पर उसकी इच्छा का महत्व बड़ जाता है | ममता बनर्जी भी 2024 में एक गठबंधन के बल पर किसी अनुकूल नेता को राष्ट्रपति के रुप में देखना चाहती हैं |
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ममता और उनके समर्थक नेताओं को लगता है कि पश्चिम बंगाल , तेलंगाना , ओड़िसा , तमिलनाडु , केरल , झारखंड ,महाराष्ट्र , राजस्थान और दिल्ली विधान सभा के सदस्यों और ऐसे ही क्षेत्रीय दलों के सांसदों के बल पर यदि प्रति��क्ष का संयक्त उम्मीदवार होने से उनकी पसंद का राष्ट्रपति बन सकता है | यही कारण है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , भाजपा और उनके समर्थक किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित अन्य राज्यों की विधान सभाओं में सर्वाधिक संख्या में अपने विधायक लाना चाहते हैं |पांच विधान सभाओं में करीब 690 विधायक चुने जाने हैं | फिर आबादी के अनुसार उत्तर प्रदेश के 403 और पंजाब के 117 विधायकों के मत राष्ट्रपति चुनाव में छोटे राज्यों से अधिक उपयोगी होंगे |
इस मुद्दे से जुड़ा दूसरा सवाल है - कोविन्दजी के बाद राष्ट्रपति कौन ? परम्परानुसार डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बाद किसीको दुबारा राष्ट्रपति पद नहीं मिला | मोदीजी की पसंद से भाजपा के किसी नेता के राष्ट्रपति बनने की सम्भावना पर इस समय कोई शायद सही नाम नहीं बता सकता , क्योंकि 2017 में किसी ने भी नहीं कल्पना की थी कि मोदीजी थोड़ा पहले ही राज्यपाल बने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बना देंगें | वैसे डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा और श्रीमती प्रतिभा पाटिल को राज्यपाल रहने के बाद यह पद मिला था | लेकिन वे दोनों कई दशकों से विधायक , सांसद , मंत्री रह चुके थे |इस समय भाजपा सरकार द्वारा नामजद राज्यपालों में कलराज मिश्रा , भगत सिंह कोश्यारी पुराने अनुभवी और संघ से जुड़े नेता हैं | भाजपा के केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों अथवा सांसदों या मुख्यमंत्री में एक लम्बी सूची इच्छुकों की बन सकती है | लेकिन अन्य दलों के सहयोग की जरुरत होने पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान , गुलाम नबी आज़ाद जैसे नाम ��ी सामने आ सकते हैं | आख़िरकार , भाजपा ने डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया था | कश्मीर के नाम पर गुलाम नबी के अलावा पुराने दावेदार , हिंदुत्ववादी और कांग्रेसी डॉक्टर कर्णसिंह भाजपा के लिए अनुकूल हो सकते हैं | जबकि कश्मीर के ही पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला वर्षों से इस दौड़ में हैं | ममता खेमा तो शरद पवांर , फारूक के अलावा नवीन पटनायक जैसा कोई नाम आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकती हैं | इसलिए वह स्वयं विभिन्न राज्यों की राजनीति , पार्टियों और नेताओं से सम्पर्क सम्बन्ध बढ़ाने में लगी हैं | स्वाभाविक है - चुनाव के दूरगामी नतीजों वाला खेल तो अब शुरू हो रहा है |
( लेखक आई टी वी नेटवर्क - इंडिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं )
https://mediawala.in/alok-mehta-column-next-president/
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जिला निर्वाचन पदाधिकारी यश पाल मीणा भ्रमण पर निकले। भ्रमण के दौरान वे रोह प्रखंड, कौआकोल प्रखंड, पकरीबरावां प्रखंड में बने मतदान केन्द्रों पर पहुंचे। झारखंड के रास्ते नवादा जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में उत्क्रमित मध्य विद्यालय, महुलिया टांड,़ प्रखंड कौआकोल पहुंचकर मतदान केन्द्र का जायजा लिया। पकरीबरावां प्रखंड में पहुंचकर उन्होंने एमथ्री इवीएम/वीवी पैट प्रशिक्षण शिविर का जायजा लिया। नवादा जिले में दिनांक 22 अक्टूबर को बिहार विधान परिषद पटना शिक्षक/स्नातक द्विवार्षिक निर्वाचन 2020 एवं 28 अक्टूबर 2020 को बिहार विधान सभा आम निर्वाचन 2020 को मतदान सम्पन्न होना है।
जिला निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा क्षेत्र भ्रमण के दौरान मतदान केन्द्रों का जायजा लिया गया। उनके द्वारा मतदान केन्द्रों पर बिजली, पानी, शौचालय, रैम्प, पहुंच पथ आदि का भौतिक सत्यापन किया गया साथ ही संबंधित पदाधिकारी को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए। बिहार विधान परिषद पटना शिक्षक/स्नातक द्विवार्षिक निर्वाचन 2020 हेतु मतदान केन्द्रों का जायजा लिया। चुनाव संबंधी बेवकास्टिंग की व्यवस्था को भी उन्होंने देखा।
भ्रमण के दौरान वे प्रखंड कार्यालय, नवादा एवं अनुमंडल कार्यालय, नवादा में बने मतदान केन्द्रों का जायजा लिया। भ्रमण के दौरान वे बिहार विधान सभा आम निर्वाचन 2020 के अवसर पर निर्वाचन संबंधी किये जा रहे कार्य को देखने, गांधी इंटर स्कूल एवं श्रम संसाधन विभाग आईटीआई नवादा पहुंचे जहां इवीएम सिलिंग का कार्य किया जा रहा है। इस अवसर पर अनुमंडल पदाधिकारी नवादा सदर उमेश भारती, संबंधित थानाध्यक्ष एवं अंचलाधिकारी उपस्थित थे।
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DM inspected many polling booths in Roh, Kouakol and Pakribarawan, gave directions
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कोराना संकट हो या फिर बिजली गिरने जैसी आपदा, आखिर क्यों नीतीश कुमार जनता और मीडिया से संवाद नहीं करते?
आखिर Nitish Kumar ने मीडिया से इतनी दूरी क्यों बनाई है
पटना:
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने कोरोना संकट (Corona Crisis) के सौ दिन बाद भी एक बार भी न ही मीडिया से बात की और ना ही अपने राज्य के लोगों को संबोधित किया. इससे पहले वह लगातार विपक्ष के निशाने पर घर से तीन महीने तक ना निकलने के कारण आलोचना झेलते रहे हैं. हालांकि अब घर से निकल कर योजनाओं की समीक्षा तो कर ही रहे हैं लेकिन अपनी किसी भी प्रतिक्रिया को नीतीश कुमार (N itish Kumar) ने सरकारी विज्ञप्ति तक ही सीमित कर रखा है. आलम यह है कि वज्रपात गिरने से राज्य में एक दिन में 85 से अधिक लोगों की मौत हो जाती हैं, रात तक पीएम मोदी और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया आ जाती है लेकिन नीतीश कुमार(Nitish Kumar) सिर्फ विज्ञप्ति जारी कर अपने दायित्व का निर्हवन कर लेते हैं.
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गुरुवार को टीवी चैनल के संपादकों ने उस समय अपना माथा पीट लिया जब एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में राज्य के किसानो और ग़रीबों की मौत पर मात्र विपक्ष के नेता तेजस्वी ��ादव की बाइट चल रही थी. इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद न तो नीतीश औ न ही उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने शोक प्रकट करते हुए कोई वीडियो जारी किया. इसके पहले बिहार रेजिमेंट के शहीद सैनिकों का पार्थिव शरीर जब पटना पहुंचा तो नीतीश कुमार श्रद्धांजलि देने के लिए एयरपोर्ट तो आए लेकिन मीडिया के सामने दो शब्द बोलने के बजाय वह गाड़ी में बैठकर निकल गए. इस बात से शहीद के परिवार वाले व सेना के अधिकाी खासे मायूस नजर आए.
ऐसे में सवाल उठता है की नीतीश कुमार ने मीडिया से इतनी दूरी क्यों बनाई है. जबकि कोरोना काल में कई राज्य के मुख्यमंत्रियों ने मीडिया के जरिए जनता से संवाद बनाए रखा. केरल जैसे राज्य के मुख्यमंभी अपने विपक्ष के नेता के साथ बैठकर हर दिन संवादाता सम्मेलन करते थे इस वजह से वह चर्चा में बने रहे. वैसे ही राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश या झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसे मुख्यमंत्रियों ने लोगों के बीच अपने काम करने के स्टाइल और मीडिया के सवालों के जवाब देने के लिए हमेशा चर्चा में रहे. दरअसल नीतीश कुमार के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह लोगों और मीडिया, दोनों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं, उनके ईर्द-गिर्द कुछ अधिकारी रहते हैं जिनसे उन्हें संतुष्टि मिलती है. हालांकि पिछले कुछ दिनों में वह वर्चुअल माध्यम का इस्तेमाल करते हुए जरूर दिखाई दिए, इस माध्यम से उन्होंने अपनी पार्टी और कार्यकर्ताओं से 6 दिनों तक लगातार संवाद किया.
वहीं इस मामले पर उनकी पार्टी के प्रवक्ता और बिहार के सूचना मंत्री नीरज कुमार कहते हैं कि आप दिखा दें, किस राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के हर वर्ग के व्यक्ति के ख़ातिर उनके खाते में 86 सौ करोड़ से ज़्यादा राशि इस कोरोना काल में पहुंचाई हैं. एक दिन का भी रिकॉर्ड उठाकर दिखा दें जिसमें नीतीश कुमार ने हर चीज़ की बारीकी से समीक्षा ना की हो. नीरज कुमार का मानना है कि नीतीश कुमार ज़्यादा प्रचार प्रसार में विश्वास नहीं रखते है. उन्होंने कहा कि यह भी एक सच है कि पूरे बिहार में लोगों ने यह शिकायत नहीं कि उनके पास खाद्यान्न का अभाव है या पैसे के अभाव में मौत हो गई हो या फिर कोई आत्महत्या क���ने के लिए विवश हुआ हो. क्योंकि नीतीश कुमार ने लोगों की ज़रूरत की सभी चीज़ों का पहले ही प्रबंध कर दिया था. कुमार ने कहा कि शायद बिहार इस देश का पहला राज्य है जहां के मुख्यमंत्री ने बाहर के राज्य में फंसे लोगों को एक-एक हज़ार सीधे उनके खाते में पहुंचाया. इसके बाद अब 20 लाख से ज्यादा लोगों के नए राशन कार्ड इसी दौरान बने हैं, जिसे अब वितरित किया जा रहा है. तो कामकाज के आधार पर आप नीतीश कुमार को विलेन नहीं बना सकते है.
वहीं JDU के कुछ नेताओं का मानना हैं कि नीतीश कुमार का अतिआत्मविश्वास ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन हैं. वो हर चीज़ के लिए अधिकारियों पर निर्भर रहते हैं. ये अधिकारी मुख्यमंत्री को सही फीडबैक नहीं देते हैं और मौके का फायदा उठाकर अपनी प्रचार की दुकान चलाते हैं. इन नेताओं का मानना हैं कि कई अच्छे काम करने के बावजूद नीतीश कुमार के खिलाफ बन रहे पर्सेप्शन में पीछे उनका अहंकार ही कारण है. वह मीडिया से जितनी दूरी बनाएंगे उतना ही वह अपने विरोधियों और सहयोगियों को बढ़ने का मौक़ा देंगे. हालांकि इन नेताओं का मानना है कि बहुत चिंता का विषय नहीं है क्योंकि चुनावी अंकगणित फ़िलहाल हमारे पक्ष में हैं.
चुनावी रणनीतिकार और नीतीश कुमार के पार्टी से निलंबित प्रशांत किशोर का कहना हैं कि ये मीडिया के सवालों का जवाब न देना या कन्नी कटाना साबित करता हैं कि नीतीश लोकतांत्रिक नहीं रहे. उनमें अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह एक तरफ़ा संवाद करने की एक नई लोकतंत्र विरोधी आदत लग गई है. किशोर ने कहा कि आप देख लें कि मुज़फ़्फ़रपुर के बाल सुधार का मामला हो या पिछले साल उसी मुज़फ़्फ़रपुर शहर में बच्चों की मौत का मामला हो या पटना का जल जमाव, नीतीश कुमार अब अपने आप को घर में बंद कर प्रेस विज्ञप्ति का सहारा लेते हैं. ये वहीं मुख्य मंत्री हैं जिनके बारे में जीवित त्रासदी के समय उसके हर पहलू का घंटो जवाब देते थे फिर वो चाहे मीडिया हो या विधान सभा का सदन. प्रशांत किशोर के अनुसार जबकि उनकी पहचान देश के उन गिने चुने मुख्यमंत्रियों में थी जो हर सोमवार को देश विदेश के हर मुद्दे पर मीडिया के सवाल का हंस कर मुस्करा कर जवाब देते थे.
पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर सभा के बाद उनके एक घंटे वाले संवादाता सम्मेलन पर एक बार अपनी जनसभा में टिप्पणी भी की थी कि एक शख़्स शाम में घंटो प्रवचन देते हैं. प्रशांत किशोर के अनुसार नीतीश कुमार के मीडिया के प्रति हाल का व्यवहार एक झेंपे हुए इंसान की पहचान हैं. जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपने द्वारा स्थापित मापदंड को अब पूरा करना तो दूर उससे विपरीत दिशा में जा रहा हैं. प्रशांत ने कहा कि नीतीश भले ही यह कहकर संतोष कर लें कि वह जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं लेकिन उन्हें भी मालूम हैं कि अगर वो कुर्सी पर हैं तो राज्य की राजनीति में विकल्पहीनता है.
Video: राजद नेता ��ेजस्वी यादव ने निकाली साइकिल यात्रा
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jamshedpur baharagora vidhan sabha-चाकुलिया में एक बजे तक 54.34 फीसदी हुआ मतदान
चाकुलिया: झारखंड विधान सभा चुनाव में मतदान करने के लिए वोटरों में काफी उत्साह देखा गया.सुबह से ही प्रखंड के हर बूथों पर वोटरों की लंबाई कतार देखी गई. महिला और पुरूष वोटर घंटों कतार में खड़े होक�� अपनी बारी की प्रतीक्षा की और अपने मताधिकार का प्रयोग किया. सुरक्षा के मद्देनजर हर बूथ पर जवान तैनात थे. (नीचे भी पढ़े) स्थानीय प्रशासन द्वारा बुजुर्ग वोटरों को मतदान केंद्र तक लाने के लिए वाहन की व्यवस्था…
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झारखंड विधान सभा चुनाव 2019: कोई स्कूल परिसर तो कोई खेल के मैदान से पहुंचा विधानसभा
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अविभाजित बिहार के समय छोटानागपुर और कोल्हान की धरती में ऐसे आदिवासी नेता हुए जिन्हें अपने जीवन के शुरुआती दौर में राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन अपने नेतृत्व करने के गुण व संघर्षरत जीवन की… Source link
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झारखंड: JMM, कांग्रेस और RJD ने मिलकर लड़ा चुनाव तो बीजेपी हार सकती है दर्जन भर सीटें! ये रहा सियासी गणित
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Jharkhand Election 2019: 2014 के विधान सभा चुनाव को देखें तो इन सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा विपक्षी दो दलों को मिले वोट से काफी कम है। ऐसे में अगर 2014 जैसा ही चुनावी पैटर्न रहा विपक्षी महागठबंधन एकजुट रहा तब भी बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती है।
Jharkhand Election 2019: झारखंड में विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इसके साथ ही विपक्षी महागठबंधन में टूट का सिलसिला शुरू हो…
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संघीय विधायिका: संसद( लोकसभा एवं राज्यसभा)[Full Detail] by EXAM TAK
नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है एक बार फिर से आज हम आप लोगों को राजनीति विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय बताने वाले हैं | यह एक सामान्य अध्ययन जो हर एक परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | यह टॉपिक हैं संघीय विधायिका: संसद( लोकसभा एवं राज्यसभा) इनके बारे में हम लोग पूरी चर्चा करने वाले हैं | आप इस पोस्ट को ध्यान से पढ़िए तथा अपने मित्रों के साथ शेयर जरूर कीजिए |
संघीय विधायिका: संसद( लोकसभा एवं राज्यसभा)
संसद भारत की संघीय विधायिका है, जिसमें राष्ट्रपति तथा दो सदन लोकसभा व राज्यसभा सम्मिलित हैं |
राज्यसभा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 संसद के उच्च सदन के रूप में राज्यसभा का उल्लेख करता है |
राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती हैं, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है |
राज्यसभा में 233 सदस्यों का चुनाव 29 राज्य तथा 2 केंद्रशासित प्रदेशों( दिल्ली एवं पुडुचेरी) के विधान मंडल द्वारा किया जाता है |
इसमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं | ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा तथा सहकारिता क्षेत्र में विशेष ज्ञान और अनुभव प्राप्त हो |
राज्यसभा का गठन 6 वर्ष के लिए होता है | राज्यसभा एक स्थाई सदन हैं, जो कभी भंग नहीं किया जा सकता है |
प्रत्येक 2 वर्ष पश्चात इसके एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य चुने जाते हैं |
योग्यताएं
राज्य सभा के सदस्यों की निम्नलिखित योग्यताएं हैं-
वह भारत का नागरिक हो |
उसकी आयु 30 वर्ष से कम ना हो |
वह किसी लाभ के पद पर ना हो, विकृत मस्तिष्क का या दिवालिया ना हो |
राज्यसभा का उम्मीदवार होने के लिए उस राज्य में संसदीय क्षेत्र में मतदाता होना आवश्यक है, जिस राज्य से वह चुनाव लड़ रहा हो |
सभापति
भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है तथा राज्यसभा अपने में से किसी एक सदस्य को उपसभापति निर्वाचित करता है | सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति सभापति के कर्तव्यों का पालन करता है | उपसभापति को राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अपने कुल बहुमत से प्रस्ताव ��ारित कर हटाया जा सकता है |
राज्य सभा के कार्य तथा शक्तियां
राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर कानून बनाती हैं तथा संविधान में संशोधन करते हैं |
राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं |
राज्यसभा के सदस्य लोकसभा के सदस्यों के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं |
राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा अन्य कुछ पदाधिकारियों पर महाभियोग लगा सकते हैं |
राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर बहुमत से प्रस्ताव पास कर उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटा सकती हैं |
एक माह से अधिक अवधि तक यदि आपातकाल लागू रखना हो, तो उस प्रस्ताव का अनुमोदन लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों से पारित होना आवश्यक है |
राज्यसभा अनुच्छेद 312 के अंतर्गत अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन कर सकती हैं और अनुच्छेद 249 के अंतर्गत राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व घोषित कर सकती हैं |
लोकसभा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81 के अंतर्गत लोक सभा का गठन 5 वर्ष के लिए किया जाता है |
संघीय संसद का निम्न अथवा लोकप्रिय सदन, लोकसभा हैं |
लोकसभा में अधिकतम सदस्य संख्या 530 राज्यों से, 20 केंद्रशासित प्रदेशों से तथा दो आंग्ल भारतीय समुदाय से मिलकर 552 हो सकती हैं, परंतु वर्तमान में 530 राज्यों से, 13 केंद्र शासित प्रदेशों से और दो आंग्ल भारतीय समुदाय से मिलकर 545 ही हैं |
लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या[530+20+2=552] हो सकती हैं | वर्तमान में इसकी व्यवहारिक सदस्य संख्या[530+13+2=545] है | 2 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं; जो आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं |
84 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2001 के अनुसार,तथा एवं विधानसभा की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा |
योग्यताएं
भारतीय संविधान के अनुसार, लोकसभा के सदस्यों की योग्यताएं निम्नलिखित होनी चाहिए-
भारत का नागरिक हो |
उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष या उससे अधिक हो |
भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अंतर्गत वह कोई लाभ का पद धारण नहीं किए हुए हो |
वह किसी न्यायालय द्वारा दिवालिया ना ठहराया गया हो तथा पागल ना हो | वह संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा अयोग्य नहीं ठहराया गया हो |
कोई भी सदस्य संसद की सदस्यता से वंचित किया जा सकता है, यदि-
वह स्वेच्छा से उस दल की सदस्यता त्याग देता है, जिसके टिकट से वह सदन का सदस्य निर्वाचित हुआ था |
वह पार्टी के निर्देशन के ��िरुद्ध वोट देता है अथवा वोट देने नहीं जाता |
वह बिना बताए 60 दिन तक सदन में अनुपस्थित रहता है |
कार्यकाल
लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, प्रधानमंत्री के परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को समय के पूर्व भी भंग किया जा सकता है |
आपातकाल की घोषणा लागू करने पर संसद विधि द्वारा लोकसभा के कार्यकाल में वृद्धि कर सकती हैं, जो एक बार में 1 वर्ष से अधिक नहीं होगी |
अधिवेशन
लोकसभा और राज्यसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति द्वारा ही बुलाए और स्थगित किए जाते हैं | इस संबंध में नियम केवल यह हैं कि लोकसभा की दो बैठकों में छह माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए |
लोकसभा की शक्तियां व कार्य
राज्य सभा तथा राष्ट्रपति के साथ मिलकर लोकसभा कानून का निर्माण करती हैं |
लोकसभा तथा राज्यसभा मिलकर राष्ट्रपति तथा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव पास कर सकती हैं |
राज्य सभा द्वारा पारित उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के प्रस्ताव पर लोकसभा का अनुमोदन आवश्यक हैं |
राष्ट्रपति द्वारा की गई संकट काल की घोषणा को एक माह के अंदर संसद से स्वीकृत होना आवश्यक है |
लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष
लोकसभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन करती हैं |
उनका कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल तक अर्थात समय से पूर्व भंग ना होने की स्थिति में 5 वर्ष तक होता है |
परंतु इस अवधि के अंदर अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष विचार से अपने पदों से त्यागपत्र दे सकते हैं तथा उन्हें उनके पद से लोकसभा द्वारा तिहाई मत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटाया भी जा सकता है |
लोकसभा एवं राज्यसभा में प्रतिनिधित्व( विभिन्न राज्यों का)
राज्य
लोकसभा के सदस्यों की संख्या
राज्य सभा के सदस्यों की संख्या
आंध्र प्रदेश
25
11
असम
14
7
बिहार
40
16
गुजरात
26
11
जम्मू कश्मीर
6
4
केरल
20
9
मध्य प्रदेश
29
11
महाराष्ट्र
48
19
कर्नाटक
28
12
ओडिशा
21
10
पंजाब
13
7
राजस्थान
25
10
तमिलनाडु
39
18
उत्तर प्रदेश
80
31
हिमाचल प्रदेश
4
3
पश्चिम बंगाल
42
16
हरियाणा
10
5
नागालैंड
1
1
मेघालय
2
1
मणिपुर
2
1
त्रिपुरा
2
1
सिक्किम
1
1
अरुणाचल प्रदेश
2
1
तेलंगाना
17
7
गोवा
2
1
मिजोरम
1
1
छत्तीसगढ़
11
5
उत्तराखंड
5
3
झारखंड
14
6
केंद्र शासित प्रदेश
दिल्ली
7
3
पुडुचेरी
1
1
अंडमान निकोबार
1
-
चंडीगढ़
1
-
दादरा और नगर हवेली
1
-
दमन और दीव
1
-
लक्षद्वीप
1
-
नामित सदस्य
2
12
कुल
543
245
तो दोस्तों हमें उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी होगी, अगर अच्छी लगी हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं तथा अपने मित्रों के साथ शेयर जरूर कीजिए |
अगले भाग में हम लोग संसद के और अधिक अधिकारों के बारे में चर्चा करेंगे |
धन्यवाद !
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पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सह कांग्रेस विधायक ने अपने पैतृक आवास में की बैठक बरहरवा: बरहरवा प्रखंड अंतर्गत इस्लामपुर गाँव मैं पूर्व विधान सभा अध्यक्ष सह कांग्रेस के प्रतिपक्ष नेता व स्थानिया कांग्रेस विधायक आलमगीर आलम के पैतृक आवास में रविवार को कांग्रेस कार्यकर्ता की बैठक प्रखंड अध्यक्ष अशोक दास की अध्यक्षता में हुई। जिसमें मुख्य अतिथि कांग्रेस विधायक दाल के नेता सह स्थानीया विधायक माननीय आलमगीर आलम, जिला अध्यक्ष मोफ्फकर हुसैन, विधायक प्रतिनिधि बरकात खान, पुर्व प्रखड अध्यक्ष मो० हेजाज उपस्थित थे। मौके पर श्री आलम ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि झारखंड में बहुत सारी जन समस्याएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मिशन 2019 के लिए कांग्रेस कार्यकर्ता अभी से तैयारी में जुट जाएं। पाकुड़ विधानसभा के सभी कांग्रेस कार्यकर्ता अपने साथ नये लोगों को जोड़ने की काम करें, तभी पार्टी मजबूत होगी और कहा की 2019 के चुनाव के लिए तैयार रहें। हर गाँव गाँव एवं हर पंचायत स्तर पर कांग्रेस पार्टी की ही लहर हो।
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आखिर कौन है प्रशांत सिंह? भानू शाही के समर्थक क्यों मना रहे उनकी प्रथम पुण्यतिथि? पढ़ीए पूरी अपडेट सोशल मीडिया पर कुछ दिनों से प्रशांत सिंह को याद किया जा रहा है और उनके प्रथम पुण्यतिथि के बारे जानकारी दी जा रही है। चलिए जानतें है विस्तार अपडेट .. झारखंड राज्य के भवनाथपुर विधान सभा से भाजपा विधायक भानू प्रताप शाही के भांजे है प्रशांत सिंह, लेकिन आप साफ शब्दों में इन्हें आप विधायक शाही जी के हनुमान भी कह सकते हैं। विधायक भानू शाही, भवनाथपुर विधान सभा से अब तक तीन बार चुनाव जीत चुके है और तीनों जीत में प्रशांत सिंह की अहम भूमिका रही है। लेकिन वक्त का पहिया ऐसा बदला जैसे विधायक भानू प्रताप शाही का सब कुछ खत्म हो चुका हो। दरअसल 2019 झारखंड विधानसभा चुनाव के मतदान के बाद गढ़वा बाजार समिति परिसर में जमा किये ईवीएम को सील होने के उपरांत। रविवार के अहले सुबह स्काॅर्पीयो पर सवार प्रशांत सिंह अपने चार स���थियों के साथ वापस भवनाथपुर लौट रहे थें तभी ट्रक और स्कार्पियों के बीच भीषण टक्कर में प्रशांत सिंह समेत चार अन्य साथियों की मौत हो गई है। शायद किसी के लिए ये एक आम एक्सीडेंट हो लेकिन भवनाथपुर विधान सभा क्षेत्र में ये खबर आग की तरफ फैल गई और हर तरह इन्हीं के चर्चे हो रहे थें। कल दिनांक एक दिसम्बर को विधायक भानू प्रताप शाही के समर्थक प्रशांत सिंह की पुण्यतिथि मनाने वाले है। प्रशांत सिंह रिस्ते में भाजपा विधायक भानू प्रताप शाही के भांजे तथा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के नागवा ब्लॉक के भाजपा अध्यक्ष थे। https://www.instagram.com/p/CINg5-Tnm7E/?igshid=730tbhg4kocr
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लालू प्रसाद यादव की जीवनी Lalu Prasad Yadav Biography in Hindi
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लालू प्रसाद यादव की जीवनी Lalu Prasad Yadav Biography in Hindi
लालू प्रसाद यादव की जीवनी Lalu Prasad Yadav Biography in Hindi
लालू प्रसाद यादव एक भारतीय राजनीतिज्ञ है। उनका जन्म 11 जून 1948 को हुआ था। वह भारत के बिहार में एक राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष हैं। लालू प्रसाद यादव ने राज्य और संसद दोनों में उच्च एवं महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है।
लालू प्रसाद यादव की जीवनी Lalu Prasad Yadav Biography in Hindi
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पारिवारिक विवरण
लालू प्रसाद यादव बिहार में गोपालगंज जिले के फुलवरिया क्षेत्र में पैदा हुए थे। वह श्री कुंदन राय और श्रीमती मराचिया देवी के दुसरे पुत्र है। लालू प्रसाद यादव ने 1 जून 1973 को राबड़ी देवी से शादी की थी। उनकी सात बेटियां हैं। रोहिणी, मीसा, भारती, हेमा, चंदा, धन्नू और राजलक्ष्मी और दो बेटे तेज प्रताप और तेजश्वी है।
शिक्षा
लालू प्रसाद यादव की प्राथमिक शिक्षा एक मिडिल स्कूल में हुई थी। वह वहां पर 7 वीं कक्षा तक अध्ययन किए। इसके बाद वह अपने बड़े भाई के साथ पटना चले गए। वहाँ, वह पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत बी एन कॉलेजसे कानून में स्नातक और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री पूरी की। उन्होंने पटना में बिहार पशु चिकित्सा कॉलेज में एक क्लर्क के रूप में भी काम किया। राजनीति में उनका पहला कदम एक छात्र के रूप में था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय के संघ चुनाव में हिस्सा लिया।
लालू प्रसाद यादव की जीवनी Lalu Prasad Yadav Biography in Hindi
उपलब्धियां और पुरस्कार
लालू प्रसाद यादव ने भारतीय रेल को एक लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित करने मरीं महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
लालू प्रसाद यादव का नाम किसी भी भारतीय राजनीतिक पार्टी के सबसे लंबी अवधि तक ��्रमुख के रूप नियुक्त रहने के लिए लिम्का बुक में सूचीबद्ध है।
वर्ष 2004 में, लालू प्रसाद यादव ने पटना विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित डाक्टर की मानद उपाधि को ठुकरा दिया।
किताबें और वृत्तचित्र
संकर्षण ठाकुर लालू प्रसाद यादव के जीवन पर आधारित “द मेकिंग लालू प्रसाद यादव; द अनमेकिंग बिहार” शीर्षक से चर्चित किताब के लेखक है। इस किताब को पुनः पिकाड���र भारत ने नए शीर्षक “सबअल्टर्न & द मेकिंग आफलालू प्रसाद यादव” नाम से अद्यतन एवं पुनः प्रकाशित किया है।
जीवनी वास्तविक नाम लालू प्रसाद यादव उपनाम लालू, किंग मेकर व्यवसाय राजनीतिज्ञ पार्टी राष्ट्रीय जनता दल राजनीतिक सफर 1977: 29 साल की उम्र में 6 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1980-1989 : बिहार विधान सभा के सदस्य । 1989: बिहार विधान सभा में बिपक्ष के नेता, पुस्तकालय समिति के अध्यक्ष एवं 9 वीं लोक सभा के लिए चुने गए। 1990-1995 : बिहार विधान परिषद के सदस्य। 1990-1997 : बिहार के मुख्यमंत्री । 1995-1998 : बिहार विधान सभा के सदस्य । 1996: चारा घोटाले फसें । 1997: राष्ट्रीय जनता दल का गठन । 1998: 12 वीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित । 1998-1999 : गृह मंत्रालय, सामान्य प्रयोजन, सूचना और प्रसारण मंत्रालय की समिति के सदस्य। 2004: 14 वीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित और रेल मंत्री का कार्यभार सम्भाला और सराहनीय कार्य किया । 2009: 15 वीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित । 2013: चारा घोटाले में अपनी भागीदारी के लिए जेल में 5 साल की सजा और लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिये गए। शारीरिक आँकड़े और अधिक कद सेंटीमीटर में- 186 cm मीटर में- 1.68 m फुट-इंच में- 5’ 6” वजन (किलोग्राम में) किलोग्राम – 80 किलो पाउंड – 176 एलबीएस शरीर माप – छाती: 37 इंच – कमर: 33 इंच – मछलियां: 13 इंच आँखों का रंग काला बालों का रंग सफ़ेद व्यक्तिगत जीवन जन्मतिथि 11 जून 1948 उम्र (2016 में) 68 वर्ष जन्म स्थान फुलवरिया, गोपालगंज, बिहार, भारत राशि मिथुन राशि राष्ट्रीयता भारतीय गृहनगर फुलवरिया, गोपालगंज, बिहार, भारत कॉलेज बी एन कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय , पटना, बिहार शैक्षिक योग्यता बी० ए० और LL.B राजनीतिक भविष्य की शुरुआत 1977 में 6 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी परिवार पिता कुंदन राय माँ मरछिया देवी भाई – 5 धर्म हिंदू पता पटना, बिहार पसंद-नापसंद शौक मशहूर लेखकों की किताबें पढ़ना, कुकिंग, पाक कला, लोक संगीत, ग्रामीण नृत्य। विवाद •लालू प्रसाद यादव को 1996 में ” चारा घोटाला” में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषी करार दिया गया था जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। • 2004 में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना की मौत की साजिश में भाजपा के नेता L.K.Advani आरोप पर लगाया था और यहां तक कि उन्हें एक ” अंतरराष्ट्रीय भगोड़ा” घोषित कर दिया था। • ओसामा बिन लादेन के हमशक्ल का उपयोग कर अपने चुनाव प्रचार के दौरान 2005 बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट पाने के लिए आलोचना की। • 1998 में उन्हें एवं उनकी पत्नी को आय से अधिक संपत्ति के मामले उनके खिलाफ याचिका दायर की गयी थी। पसंदीदा चीजें पसंदीदा भोजन लिट्टी चोखा और सत्तू पसंदीदा अभिनेता अमिताभ बच्चन वैवाहिक स्थिति विवाहित परिवार पत्नी राबड़ी देवी (नेता) बच्चे बेटी मिशा भारती, रोहिणी आचार्य, चंदा, रागिनी , धन्नू , हेमा और लक्ष्मी पुत्र – तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव
लालू प्रसाद यादव के बारे में कुछ अज्ञात तथ्य
लालू प्रसाद यादव धूम्रपान करते है ?: नहीं।
लालू प्रसाद यादव ने शराब पीते है ?: नहीं।
1970 में जब वह 22 वर्ष की आयु के थे तब वे पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव पद पर रहते हुए राजनीति में प्रवेश किया।
लालू प्रसाद यादव की वास्तविक जन्म तिथि के बारे में ज्ञात नहीं है,शैक्षिक दस्ताबेज के आधार पर अंकित जन्म तिथि 11 जून 1948 ही मेनी है।
माननीय लालू जी की पहली नौकरी बिहार के पशु चिकित्सा कॉलेज, पटना में एक क्लर्क की थी।
लालू प्रसाद यादव 1990 में बिहार राज्य के मुख्य मंत्री बने. 1997 में वह जनता दल से अलग के बाद ” राष्ट्रीय जनता दल ” नामक एक नई पार्टी का गठन किया।
अक्टूबर 2013 को न्यायालय ने उन्हें चारा घोटाले मामले में पाँच साल की कैद और पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा दी। दो महीने तक जेल में रहने के बाद 13 दिसम्बर 2013 को लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से बेल मिली।
1970 में जब लालू जी जब 22 वर्ष की आयु के थे तब पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव बनने के साथ वे राजनीति में से प्रवेश किये।
आपातकाल के दौरान जब कई नेताओं के साथ उन्हें जेल में डाल दिया गया था उस समय अपनी बड़ी बेटी का नामकरण उन्होंने मीसा किया था जो के आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम के नाम पर रखा गया था।
1977 में वे मात्र २९ वर्ष की आयु में लोकसभा सीट की जीत हासिल करके सबसे युवा संसद सदस्य बन गए।
बॉलीवुड निर्देशक महेश भट्ट ने एक बार कहा था कि वह भारत के प्रधानमंत्री बनने के हकदार हैं।
2004 में उन्होंने एक फिल्म ” पद्मश्री लालू प्रसाद यादव” में एक अल्पावधि अतिथि की भूमिका अदा की थी।
उनके पुत्र तेजस्वी यादव एक मध्यम तेज गेंदबाज है और घरेलू क्रिकेट टीम झारखंड के लिए खेला करते हैं ।
उनके पुत्र, तेजस्वी यादव भी दिल्ली डेयरडेविल्स टीम में इंडियन प्रीमियर लीग 5 में 2012 में भाग ले चुके हैं।
1989 में भागलपुर दंगों के बाद वे मुसलमानों का विश्वास जीत कर अपने पक्ष में कर लिया जो कांग्रेस के लिए बड़ा वोट बैंक था ।
2005 बिहार चुनाव की रैलियों के दौरान उन्होंने एक व्यक्ति से ओसामा बिन लादेन की भूमिका अदा कराई जो कि ओसामा बिन लादेन की तरह दिखता था और मुस्लिम वोट पाने के लिए एंटी- अमेरिका के भाषणों दिए थे।
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कोराना संकट हो या फिर बिजली गिरने जैसी आपदा, आखिर क्यों नीतीश कुमार जनता और मीडिया से संवाद नहीं करते?
आखिर Nitish Kumar ने मीडिया से इतनी दूरी क्यों बनाई है
पटना:
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने कोरोना संकट (Corona Crisis) के सौ दिन बाद भी एक बार भी न ही मीडिया से बात की और ना ही अपने राज्य के लोगों को संबोधित किया. इससे पहले वह लगातार विपक्ष के निशाने पर घर से तीन महीने तक ना निकलने के कारण आलोचना झेलते रहे हैं. हालांकि अब घर से निकल कर योजनाओं की समीक्षा तो कर ही रहे हैं लेकिन अपनी किसी भी प्रतिक्रिया को नीतीश कुमार (N itish Kumar) ने सरकारी विज्ञप्ति तक ही सीमित कर रखा है. आलम यह है कि वज्रपात गिरने से राज्य में एक दिन में 85 से अधिक लोगों की मौत हो जाती हैं, रात तक पीएम मोदी और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया आ जाती है लेकिन नीतीश कुमार(Nitish Kumar) सिर्फ विज्ञप्ति जारी कर अपने दायित्व का निर्हवन कर लेते हैं.
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गुरुवार को टीवी चैनल के संपादकों ने उस समय अपना माथा पीट लिया जब एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में राज्य के किसानो और ग़रीबों की मौत पर मात्र विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की बाइट चल रही थी. इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद न तो नीतीश औ न ही उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने शोक प्रकट करते हुए कोई वीडियो जारी किया. इसके पहले बिहार रेजिमेंट के शहीद सैनिकों का पार्थिव शरीर जब पटना पहुंचा तो नीतीश कुमार श्रद्धांजलि देने के लिए एयरपोर्ट तो आए लेकिन मीडिया के सामने दो शब्द बोलने के बजाय वह गाड़ी में बैठकर निकल गए. इस बात से शहीद के परिवार वाले व सेना के अधिकाी खासे मायूस नजर आए.
ऐसे में सवाल उठता है की नीतीश कुमार ने मीडिया से इतनी दूरी क्यों बनाई है. जबकि कोरोना काल में कई राज्य के मुख्यमंत्रियों ने मीडिया के जरिए जनता से संवाद बनाए रखा. केरल जैसे राज्य के मुख्यमंभी अपने विपक्ष के नेता के साथ बैठकर हर दिन संवादाता सम्मेलन करते थे इस वजह से वह चर्चा में बने रहे. वैसे ही राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश या झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसे मुख्यमंत्रियों ने लोगों के बीच अपने काम करने के स्टाइल और मीडिया के सवालों के जवाब देने के लिए हमेशा चर्चा में रहे. दरअसल नीतीश कुमार के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह लोगों और मीडिया, दोनों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं, उनके ईर्द-गिर्द कुछ अधिकारी रहते हैं जिनसे उन्हें संतुष्टि मिलती है. हालांकि पिछले कुछ दिनों में वह वर्चुअल माध्यम का इस्तेमाल करते हुए जरूर दिखाई दिए, इस माध्यम से उन्होंने अपनी पार्टी और कार्यकर्ताओं से 6 दिनों तक लगातार संवाद किया.
वहीं इस मामले पर उनकी पार्टी के प्रवक्ता और बिहार के सूचना मंत्री नीरज कुमार कहते हैं कि आप दिखा दें, किस राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के हर वर्ग के व्यक्ति के ख़ातिर उनके खाते में 86 सौ करोड़ से ज़्यादा राशि इस कोरोना काल में पहुंचाई हैं. एक दिन का भी रिकॉर्ड उठाकर दिखा दें जिसमें नीतीश कुमार ने हर चीज़ की बारीकी से समीक्षा ना की हो. नीरज कुमार का मानना है कि नीतीश कुमार ज़्यादा प्रचार प्रसार में विश्वास नहीं रखते है. उन्होंने कहा कि यह भी एक सच है कि पूरे बिहार में लोगों ने यह शिकायत नहीं कि उनके पास खाद्यान्न का अभाव है या पैसे के अभाव में मौत हो गई हो या फिर कोई आत्महत्या करने के लिए विवश हुआ हो. क्योंकि नीतीश कुमार ने लोगों की ज़रूरत की सभी चीज़ों का पहले ही प्रबंध कर दिया था. कुमार ने कहा कि शायद बिहार इस देश का पहला राज्य है जहां के मुख्यमंत्री ने बाहर के राज्य में फंसे लोगों को एक-एक हज़ार सीधे उनके खाते में पहुंचाया. इसके बाद अब 20 लाख से ज्यादा लोगों के नए राशन कार्ड इसी दौरान बने हैं, जिसे अब वितरित किया जा रहा है. तो कामकाज के आधार पर आप नीतीश कुमार को विलेन नहीं बना सकते है.
वहीं JDU के कुछ नेताओं का मानना हैं कि नीतीश कुमार का अतिआत्मविश्वास ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन हैं. वो हर चीज़ के लिए अधिकारियों पर निर्भर रहते हैं. ये अधिकारी मुख्यमंत्री को सही फीडबैक नहीं देते हैं और मौके का फायदा उठाकर अपनी प्रचार की दुकान चलाते हैं. इन नेताओं का मानना हैं कि कई अच्छे काम करने के बावजूद नीतीश कुमार के खिलाफ बन रहे पर्सेप्शन में पीछे उनका अहंकार ही कारण है. वह मीडिया से जितनी दूरी बनाएंगे उतना ही वह अपने विरोधियों और सहयोगियों को बढ़ने का मौक़ा देंगे. हालांकि इन नेताओं का मानना है कि बहुत चिंता का विषय नहीं है क्योंकि चुनावी अंकगणित फ़िलहाल हमारे पक्ष में हैं.
चुनावी रणनीतिकार और नीतीश कुमार के पार्टी से निलंबित प्रशांत किशोर का कहना हैं कि ये मीडिया के सवालों का जवाब न देना या कन्नी कटाना साबित करता हैं कि नीतीश लोकतांत्रिक नहीं रहे. उनमें अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह एक तरफ़ा संवाद करने की एक नई लोकतंत्र विरोधी आदत लग गई है. किशोर ने कहा कि आप देख लें कि मुज़फ़्फ़रपुर के बाल सुधार का मामला हो या पिछले साल उसी मुज़फ़्फ़रपुर शहर में बच्चों की मौत का मामला हो या पटना का जल जमाव, नीतीश कुमार अब अपने आप को घर में बंद कर प्रेस विज्ञप्ति का सहारा लेते हैं. ये वहीं मुख्य मंत्री हैं जिनके बारे में जीवित त्रासदी के समय उसके हर पहलू का घंटो जवाब देते थे फिर वो चाहे मीडिया हो या विधान सभा का सदन. प्रशांत किशोर के अनुसार जबकि उनकी पहचान देश के उन गिने चुने मुख्यमंत्रियों में थी जो हर सोमवार को देश विदेश के हर मुद्दे पर मीडिया के सवाल का हंस कर मुस्करा कर जवाब देते थे.
पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर सभा के बाद उनके एक घंटे वाले संवादाता सम्मेलन पर एक बार अपनी जनसभा में टिप्पणी भी की थी कि एक शख़्स शाम में घंटो प्रवचन देते हैं. प्रशांत किशोर के अनुसार नीतीश कुमार के मीडिया के प्रति हाल का व्यवहार एक झेंपे हुए इंसान की पहचान हैं. जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपने द्वारा स्थापित मापदंड को अब पूरा करना तो दूर उससे विपरीत दिशा में जा रहा हैं. प्रशांत ने कहा कि नीतीश भले ही यह कहकर संतोष कर लें कि वह जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं लेकिन उन्हें भी मालूम हैं कि अगर वो कुर्सी पर हैं तो राज्य की राजनीति में विकल्पहीनता है.
Video: राजद नेता तेजस्वी यादव ने निकाली साइकिल यात्रा
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