#ज्योत में भगवान के दर्शन
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nisthadhawani · 2 years ago
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Jyot me phool | क्यों बनता है ज्योत में फूल क्या कभी आपको हुए है ज्योत में भगवान के दर्शन
Jyot me phool | क्यों बनता है ज्योत में फूल क्या कभी आपको हुए है ज्योत में भगवान के दर्शन
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hindistoryblogsfan · 4 years ago
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गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा जिले की दांता तालुका में अम्बाजी का मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर देश के सबसे पुराने और पवित्र शक्ति तीर्थ स्थानों में से एक है। ये शक्ति की देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है।
सिद्धपीठ अम्बाजी मंदिर अम्बाजी का मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरावली शृंखला के आरासुर पर्वत पर स्थित है, जो देश का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। सफेद संगमरमर से बना ये मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है। शिखर सोने से बना है। ये मंदिर की खूबसूरती बढ़ाता है। यहां विदेशों से भी भक्त दर्शन करने आते हैं। ये 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां सती का हृदय गिरा था ।
मान्यता: सालों से जल रही अखंड ज्योत कभी नहीं बुझी कहने को तो यह मंदिर भी शक्ति पीठ है पर यह मंदिर अन्य मंदिरो से कुछ अलग हटकर है। इस मंदिर में मां अम्बा की पूजा श्रीयंत्र की आराधना से होती है जिसे सीधे आंखों से देखा नहीं जा सकता। यहां के पुजारी इस श्रीयंत्र का श्रृंगार इतना अद्भुत ढंग से करते हैं कि श्रद्धालुओं को लगता है कि मां अंबा जी यहां साक्षात विराजमान हैं। इसके पास ही पवित्र अखण्ड ज्योति जलती है, जिसके बारे में कहते हैं कि यह कभी नहीं बुझी।
गब्बर नामक पहाड़ की महिमा माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। अम्बा जी के मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर गब्बर पहाड़ भी मां अम्बे के पद चिन्हों और रथ चिन्हों के लिए विख्यात ��ै। मां के दर्शन करने वाले भक्त इस पर्वत पर पत्थर पर बने मां के पैरों के चिन्ह और मां के रथ के निशान देखने जरूर आते हैं। अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था । वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं। नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है।
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Ambaji temple is about 1200 years old, it is believed that the heart of Goddess Sati fell here
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kisansatta · 4 years ago
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दुनिया का एक ऐसा अनोखा मंदिर, खुद माता करती है अग्नि से स्नान
भगवान में लोगों की अटूट श्रृद्धा और विश्वास होता है. लोगों में उनके लिए आस्था देखि जाती है. अक्सर मंदिरों में समय-समय पर ऐसे दैवीय चमत्कार देखने को मिलते हैं कि जो आपको ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने को मजबूर कर देते हैं | हमारे देश में ऐसे-ऐसे चमत्‍कारिक मंदिर हैं, जिन्‍हें देखकर आप यकीन नहीं करेंगे। कहीं मंदिर के खंबे हवा में झूल रहे हैं तो कही भगवन शराब पी रहे है, कही पानी से दीपक जल रहे है| ऐसा ही चमत्कारिक मंदिर है ईडाणा माता का मंदिर| यहां कुछ ऐसा देखने को मिलता है जिसे जानकर आपको भी हैरानी होगी और थोड़ा अजीब भी लगेगा|
उदयपुर जिले में एक यह अनोखा मंदिर है, जहां माता रानी अग्नि स्नान करती है| यह मंदिर जयपुर से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर कुराबड रोड पर ईडाणामाता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है |बता दें कि ये मंदिर देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है | मेवाड़ के शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ ईडाणामाता का मंदिर भी है|बता दें कि ये देश का एकमात्र मन्दिर है, जहां माता रानी अग्नि स्नान करती हैं| सबकी मनोकामना पूरी करने वाली ईडाणा माता को मेवल महाराणी भी कहते हैं| बताया जाता है कि ईडाणा माता एक बरगद के पेड़ के नीचे प्रकट हुई थी|
कालांतर में इस क्षेत्र से गुजर रहे एक संत को स्वंय माता रानी ने एक कन्या के रूप में दर्शन देते हुए यही रहने का निवेदन किया| कहा जाता है कि माता के चमत्कार के कारण अन्धों को दिखाई देने लगा, लकवा वाले ठीक होने लगे, नि:सन्तानों को औलादों का सुख प्राप्त होने लगा| सबकी मनोकामनाएं पूरी होने लगी |ऐसे में धीरे-धीरे प्रचार-प्रसार होने से आज राजस्थान के साथ ही यहां गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं आने लगे | बता दें कि अग्नि स्नान करने वाली मेवल महारानी का अग्नि स्नान भी बड़ा रोचक होता है|
यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि माताजी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती है| कहा जाता है कि माता के चमत्कार के कारण अन्धों को दिखाई देने लगा, लकवा वाले ठीक होने लगे, नि:सन्तानों को औलादों का सुख प्राप्त होने लगा| सबकी मनोकामनाएं पूरी होने लगी | ऐसे में धीरे-धीरे प्रचार-प्रसार होने से आज राजस्थान के साथ ही यहां गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं आने लगे| बता दें कि अग्नि स्नान करने वाली मेवल महारानी का अग्नि स्नान भी बड़ा रोचक होता है| यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि माताजी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती है|
जानकारी के अनुसार माताजी को चुनरी और अन्य कपड़े आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है| माता रानी के ऊपर इनका भार जैसे ही होता है, वैसे ही वो अग्नि का स्नान कर लेती है|चढ़ावे के पहने कपडे़ को जला देती है| इस दौरान नजदीक के बरगद के पेड़ को भी चपेट में ले लेती है. लेकिन माता रानी की मूर्ति पर कोई भी असर नहीं होता| अग्नि स्नान के वक्त माताजी की मूर्ति सही सलामत रहती है. दूसरी तरफ माताजी के समीप अखण्ड ज्योत भी जलती रहती है. उसे भी कोई असर नहीं होता है |पह��े चिती दर्शन हर रविवार ��ो होते थे|लेकिन, इनदिनों किसी-किसी को ही दर्शन नसीब हो पाते हैं | चिती की झलक मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. संत ने भक्ति-आराधना आरंभ की तो कुछ ही दिनों में यहां चमत्कार होने लग गए|
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moneycontrolnews · 5 years ago
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गुरुवार का दिन गुरु पूजा एवं गुरु कृपा पाने के लिए बेहत खास माना जाता है। गुरुवार के दिन साई बाबा की आराधना करने वाले साईं भक्त पूरी श्रद्धा और सबुरी के साथ साईं नाथ गुरुदेव की शरण में जाकर उनकी पूजा आराधना करके उनको प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। साईं भक्तों का मानना है कि बाबा साईं उनकी सभी कामनाएं पूरी कर देते हैं। जानें कैसे प्रसन्न होंगे शिरड़ी के साईं बाबा।   बगलामुखी माता की ये स्तुति बना देगी बिगड़े सारे काम   जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान साई नाथ को एक फूल भी अर्पित कर देता है उससे भी बाबा प्रसन्न हो जाते हैं। गुरुवार का दिन गुरु के लिए समर्पित माना जाता है, जो भी भक्त साई नाथ को गुरु रूप में मानते वे गुरुवार के दिन सूर्यास्त के समय साई मंदिर में जाकर श्री साई बाबा की इस वंदना को साई के सामने खड़े होकर एक बार सच्ची श्रद्धा से जरूर पढ़ लें फिर देखे साई के चमत्कार से कैसे आपकी सभी इच्छाएं पूरी होती है।   जानें किस उम्र में कौन सा ग्रह कब असर दिखाता हैं   साईंनाथ वंदना थोड़ा ध्यान लगा, साईं दौड़े दौड़े आएंगे, थोड़ा ध्यान लगा, साईं दौड़े दौड़े आएंगे, तुझे गले से लगाएंगे। अखियाँ मन की खोल, तुझको दर्शन वो कराएंगे, अखियाँ मन की खोल, तुझको दर्शन वो कराएंगे, तुझे गले से लगाएंगे॥ थोड़ा ध्यान लगा, साईं दौड़े दौड़े आएंगे...... हैं राम रमिया वो, हैं कृष्ण कन्हैया वो, वही मेरा साईं है। सत्कर्म राहों पे चलना सीखते वो, वही जगदीश हैं। प्रेम से पुकार तेरे पाप को जलाएंगे, तुझे गले से लगाएंगे॥ थोड़ा ध्यान लगा, साईं दौड़े दौड़े आएंगे......   जादू टोने, ऊपरी हवाओं के प्रभाव तुरंत हो जाएंगे खत्म, कर लें ये उपाय   किरपा की छाया में बिठाएंगे तुझको, कहाँ तुम जावोगे। उनकी दया दृष्टि जब जब पड़ेगी तुम यह भव तर जावोगे। ऐसा है विशवास मन में ज्योत जगायेंगे, तुझे गले से लगाएंगे॥ थोड़ा ध्यान लगा, साईं दौड़े दौड़े आएंगे...... मुनिओं ने ऋषिओं ने, गुरु शिष्य महिमा का, किया गुणगान है। साईं के चरणो में, झुकती सकल सृष्टि, झुके भगवान है। महिमा है अपार, सत्य की राह वो दिखलाएंगे, तुझे गले से लगाएंगे॥ थोड़ा ध्यान लगा, साईं दौड़े दौड़े आएंगे...... *********** source https://www.patrika.com/dharma-karma/manokama-purti-ka-mahaupay-in-sai-baba-5679245/
http://www.poojakamahatva.site/2020/01/blog-post_906.html
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thesandhyadeepme · 5 years ago
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ज्वाला जी मंदिर : मुगल अकबर ने मंदिर की श्रद्धा को खंडित करने का किया प्रयास
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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में देवी माता ज्वाला जी मंदिर है। यह चिंतापूर्णी माता मंदिर से करीबन 30 किमी की दूरी पर है। पहाड़ी इलाका होने के बावजूद चौड़े मार्ग हैं जिस कारण एक घंटे से भी कम समय से छिनमस्तिका मंदिर से वहां पहुंचा जा सकता है। जब माता ज्वाला जी की बात होती है तो मुगल अकबर के अहंकार और मां के भक्त ध्यानु पर ढहाये गये जुल्मों की बात नहीं हो, यह हो नहीं सकता।
मुगल अकबर का अहंकार हमें भले ही इतिहास में ��ुगल अकबर को महान बताया हो, लेकिन वह भी अपनी क्रूरता के लिए हिन्दुओं में जाना जाता था। उसने अपनी क्रूरता से ज्वाला जी मंदिर की श्रद्धा को भी खंडित करने का प्रयास किया किंतु वह कामयाब नहीं हो सका। भक्त ध्यानु का सम्मान सुरक्षित रखने के लिए मां दुर्गा ने साक्षात दर्शन दिये और बादशाह अकबर को उसकी असली जगह का अहसास करवाया। यह शक्तिपीठ ऐसा है, जहां आज भी मां दुर्गा की शक्ति के साक्षात दर्शन होते हैं।
चिंतापूर्णी मंदिर : सावन और नवरात्रि में जहां लगते हैं विशाल भंडारे
भक्त ध्यानु पर ढहाये मुगलों ने जुल्म मंदिर के इतिहास के अनुसार ज्वाला जी मंदिर देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक है। सनातनकाल से पहले ही मंदिर में रोजाना हिन्दुओं का आना-जाना था। यहां के प्रति बहुत ही आस्था थी। इसका कारण भी था, यहां देवी दुर्गा साक्षात विराजमान थी। बिना घी और तेल के ज्योति 24 घंटे प्रकट रहती थी�� इसके बार प्रमाण मिले। रात्रिकालीन समय में शेर वहां मंदिर की रखवाली और सेवा करने आया करता था। यह बात जग प्रसिद्ध् थी। इस दौरान मां के अनन्य भक्त ध्यानु का उदय हुआ। वह बचपन काल से ही देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान किया करता था और ज्वाला जी मंदिर में सेवा किया करता था। उसकी सेवा भाव का प्रताप था कि अनेक असिद्ध रोगी ठीक हो रहे थे। लोगों की मनोकामना ध्यानु के कीर्तन में शामिल होने से पूरी हो रही थी। यह बात तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर को मिली। उसने मंदिर की आस्था को खंडित करने के लिए मंदिर के शक्ति रूप ज्योति पर लोहे के भारी-भरकम तवे रखवा दिये। ज्योति स्वरूप देवी दुर्गा ने अपनी शक्ति का परिचय दिया। मुगल आक्रमणकारी को उसकी सही दिखाने के लिए ज्योति को तवों के ऊपर भी अपने प्रकाश से जगमगा दिया। अकबर के सिपाहसलारों ने इसकी खबर अकबर को दी तो उन्होंने पानी की धारा का मुंह मंदिर की ओर कर दिया। मंदिर में पानी भर गया क्योंकि मां का शक्ति रूप ज्योति पानी के बीच में भी बिना तेल और घी के प्रकाश होती रही। मंदिर की आस्था को खंडित रहने के बाद ध्यानु को मुगल सैनिकों ने बंधक बना लिया। उसके घोड़े का शीश काटकर यह शर्त रख दी कि अब वह देवी दुर्गा को कहे कि उसके घोड़े का शीश रातों-रात जोड़ दे। अगर सुबह तक घोड़ा पुन: जीवित नहीं हुआ तो उसको मार दिया जाये। मुगल बादशाह के अहंकार और कूरता की यह हदें पारी करने वाली शर्त थी। ध्यानु ने मन ही मन शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को याद किया और अपने सम्मान के लिए पुकारा। देवी मां दुर्गा ने अपने भक्त ध्यानु के सम्मान और जीवन की रक्षा के लिए घोड़े के सिर को पुन: जोड़ कर जीवित कर दिया। उसी घोड़े को पुन: जीवित दे��कर मुगलों को पता चल गया कि भक्ति में शक्ति होती है। ज्वाला जी मंदिर सनातनकाल का शक्तिपीठ है। अब अकबर मंदिर में अपनी भूल की माफी के लिए पहुंच गया। वह सोने का छत्र लेकर गया था। वहां उसने मंदिर पर छत्र चढ़ाया तो एक बार फिर से उसने कहा कि देखो मां, आज तक तुम्हारे मंदिर पर इतना विशाल सोने का छत्र नहीं चढ़ाया था। मैं ऐसा करने वाला पहला बादशाह हूं। इतना कहते ही छत्र का रंग बदल गया। वह न पीतल का रहा, न सोने का और न ही चांदी का। आज भी यह छत्र मंदिर प्रशासन के पास मौजूद है। सदियां बदल गयीं किंतु आज तक अनेक विद्वान नहीं जाने पाये कि यह छत्र अब किस धातु का है।
अंग्रेजों ने भी शक्ति को दी थी चुनौति मुगलकाल के बाद अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया। जब उन्हें पता चला कि ज्वाला जी मंदिर में ज्योति बिना घी और बिना तेल अखंड प्रकाश करती है तो उन्होंने भी मंदिर को चुनौति देने का प्रयास किया। अंग्रेजों ने मंदिर के आसपास के स्थान पर खुदाई करवायी और यह जांचने का प्रयास किया आसपास गैस का भंडार होगा, उसी से यह ज्योति प्रकाशमय हो रही है। पहाड़ों पर खुदाई के बाद भी उन्हें गैस या अन्य ज्वलनशील पदार्थ नहीं मिला। अंत में उन्होंने भी स्वीकार किया कि यहां अवश्य ही वो शक्ति विद्यमान है, जिसकी पूजा की जाती है।
सावन माह 17 जुलाई से, रक्षाबंधन पर होगा सम्पन्न
आज भी अखंड ज्योत है प्रज्जवलित
देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों में शामिल ज्वाला जी को ज्वालामुखी भी कहते हैं। शिव तांडव के उपरांत भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के भागों को विभाजित किया गया था तो यहां पर माता की जीव्हा गिरी थी जो अब ज्योति स्वरूप में विद्यमान है। इस ज्योति को प्रकाश के लिए न तो घी की आवश्यकता है और न ही तेल की। सदियों से यह ज्योत अखण्ड प्रज्जविलत हो रही है। लोग हजारों की संख्या में देवी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
विशाल है मां का मंदिर
ज्वाला जी का मंदिर बहुत ही विशाल परिसर में बना हुआ है। मां के अनन्नय भक्त बाबा गौरखनाथ का मंदिर भी यहां बना हुआ है। मंदिर का प्रथम बार निर्माण राजा भूमिचंद ने करवाया था। इसके बाद पंजाब रियासत के राजा रणजीतसिंह और संसारचंद ने करवाया। अब भक्तों की ज्यादा भीड़ को देखते हुए प्राचीन मंदिर से इतर मंदिर परिसर में ही नया भवन भी बनाया गया है। इसके अतिरिक्त एक म्यूजियम भी बना हुआ है जिसके चित्र मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं।
उच्चतम है रात्रि निवास की व्यव���्था
मंदिर के आसपास अनेक धर्मशाला और होटल बने हुए हैं। उनके लिए रात्रि निवास की बेहतर व्यवस्था होती है। यहां भी हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। मंदिर में पंजाब, हिमाचल ही नहीं अपितु उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से भी रोजाना हजारों की संख्या में आते हैं। नवरात्रि के दौरान अत्यधिक भीड़ रहती है।
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