#जीवन क��� आधार
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लखनऊ, 20.12.2024 | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मूल मंत्र "स्वस्थ भारत, समर्थ भारत" के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट एवं चिल्ड्रंस पैलेस, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में चिल्ड्रंस पैलेस, म्युनिसिपल नर्सरी स्कूल, 122- महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ में ‘डेंटल चेकअप एवं जागरूकता शिविर’ तथा ‘होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर’ का आयोजन किया गया । शिविर में मुख्य अतिथि के रूप में श्री ब्रजेश पाठक, माननीय उप मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, की गरिमामयी उपस्थिति रही |
"डेंटल चेकअप एवं जागरूकता शिविर’ के अंतर्गत परामर्शदाता चिकित्सक डॉ शैली महाजन, ऑर्थोडॉन्टिस्ट एवं प्रोफेसर, दंत चिकित्सा विभाग, DRMLIMS द्वारा विद्यालय के छात्र-छात्राओं का निशुल्क दंत परीक्षण किया गया, साथ ही उन्हें तथा उनके अभिभावकों को दांतों की स्वच्छता एवं देखभाल बनाए रखने हेतु जागरूक भी किया गया | डॉ महाजन द्वारा दंत जागरूकता अभियान के अंतर्गत सभी छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क डेंटल किट का भी वितरण किया गया |
'होम्योपैथिक परामर्श, निदान एवं दवा वितरण शिविर’ के अंतर्गत होम्योपैथिक परामर्शदाता चिकित्सक डॉ संजय कुमार राणा, राणा होमियो क्लिनिक, लखनऊ एवं उनकी टीम द्वारा बच्चों की नि:शुल्क स्वास्थ्य जांच कर ऑटिज्म, निमोनिया, सर्दी-जुकाम, नसल पॉलिप, बुखार, चिकन पॉक्स, मीजल्स के साथ-साथ अभिभावकों में गठिया रोग, थायराइड और गंजेपन जैसी समस्याओं का निदान किया गया तथा उन्हे निःशुल्क होम्योपैथिक दवाइयां वितरित की गई | शिविर में लगभग 150 छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया गया ।
शिविर का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्री ब्रजेश पाठक, माननीय उप मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, डॉ शैली महाजन, ऑर्थोडॉन्टिस्ट एवं प्रोफेसर, दंत चिकित्सा विभाग, DRMLIMS, डॉ संजय कुमार राणा, राणा होमियो क्लिनिक, लखनऊ, श्रीमती सविता सिंह, हेड मिस्ट्रेस, चिल्ड्रन पैलेस, लखनऊ एवं श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने दीप प्रज्वलन कर किया | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने मुख्य अतिथि श्री ब्रजेश पाठक जी को पुष्प गुच्छ भेंट कर सम्मानित किया | ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री ��ंकज अवस्थी ने डॉक्टर शैली महाजन एवं डॉक्टर संजय कुमार राणा को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया |
इस अवसर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा कि, “आज का यह शुभ अवसर हमें “स्वस्थ भारत, समर्थ भारत” के निर्माण की दिशा में एक और कदम बढ़ाने का अवसर प्रदान कर रहा है । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के इस प्रेरणादायक मूल मंत्र को आत्मसात करते हुए, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट और चिल्ड्रंस पैलेस ने मिलकर यह महत्वपूर्ण पहल की है । हमारे कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल दंत स्वास्थ्य और होम्योपैथिक चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराना है, बल्कि लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाना भी है । इस क्रम में, हमें गर्व है कि हमारे साथ डॉ. शैली महाजन, ऑर्थोडॉन्टिस्ट एवं प्रोफेसर, दंत चिकित्सा विभाग, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, और डॉ. संजय कुमार राणा, राणा होमियो क्लिनिक, लखनऊ, जैसे विशेषज्ञ जुड़े हैं । आपकी उपस्थिति और योगदान इस कार्यक्रम की सफलता को निश्चित रूप से नई ऊंचाई प्रदान करेगा । हम विशेष रूप से आभारी हैं कि हमारे साथ मुख्य अतिथि के रूप में परम आदरणीय श्री बृजेश पाठक जी, माननीय उप मुख्यमंत्री उपस्थित हैं । आपके मार्गदर्शन और प्रेरणा से यह आयोजन और भी प्रभावी बनेगा । आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि माननीय श्री बृजेश पाठक जी की कृपा से आपके स्कूल में जल्दी ही आधुनिक शौचालय का निर्माण होने जा रहा है । आप सभी से निवेदन है कि इस शिविर में अधिक से अधिक भाग लें, अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करें और स्वास्थ्य के प्रति अपनी समझ को बढ़ाएं । हमारा यह प्रयास तभी सफल होगा जब हम सब मिलकर स्वस्थ और समर्थ भारत के सपने को साकार करने में योगदान देंगे । धन्यवाद । जय हिंद ।"
मुख्य अतिथि श्री ब्रजेश पाठक, माननीय उप मुख्यमंत्री ,उत्तर प्रदेश ने कहा कि, “बच्चों को यदि हम प्रारंभ से ही स्वस्थ रहने के लिए नैतिक स्वच्छता (मोरल हाइजीन) के बारे में सिखाएं, तो न केवल उन्हें एक स्वस्थ जीवन का आधार मिलेगा, बल्कि उनका जीवन भी सुखमय बनेगा । यह हमारे शिक्षकों की जिम्मेदारी है, जो बच्चों के जीवन को आकार देने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं । मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि विद्यालय में 'हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट' के माध्यम से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है । मैं इस कार्यक्रम की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं । साथ ही, मैं शिक्षकों, श्री हर्ष जी और डॉक्टरों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने इस सराहनीय कार्य में अपना महत्वपूर्��� योगदान दिया । आइए, हम सभी इस प्रयास को सफल बनाने में सहयोग करें और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की दिशा में एक और सकारात्मक कदम बढ़ाएं ।“
श्रीमती सविता सिंह, हेड, मिस्ट्रेस, चिल्ड्रन पैलेस, लखनऊ ने सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “यह कार्यक्रम हमारे बच्चों के लिए अत्यंत प्रशंसनीय और ज्ञानवर्धक है । यह न केवल उनके जीवन को नई दिशा देगा बल्कि उन्हें सशक्त बनाने में भी सहायक होगा । आपके इस प्रयास के लिए हम आभारी हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में भी आप हमारे बच्चों के हित में इसी तरह सहयोग करते रहेंगे ।“
शिविर में मुख्य अतिथि श्री ब्रजेश पाठक, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री पंकज अवस्थी, परामर्शदाता चिकित्सक डॉ शैली महाजन, डॉ रागिनी, डॉ संजय कुमार राणा तथा उनकी टीम से श्री राहुल राणा, नर्सिंग स्टाफ सुश्री अनुष्का सिंह, सुश्री जूही यादव, चिल्ड्रन पैलेस की हेड मिस्ट्रेस श्रीमती सविता सिंह, शिक्षकगण, छात्र-छात्राओं तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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कालसर्प दोष: ज्योतिषीय परिस्थिति और निवारण
ज्योतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है जो व्यक्ति के जीवन को ग्रहों के चलने के साथ जोड़ती है। यहां हम एक ऐसे विशेष योग के बारे में चर्चा करेंगे जिसे "कालसर्प दोष" कहा जाता है और जिसका निवारण ज्योतिषीय उपायों के माध्यम से किया जा सकता है।
कालसर्प दोष क्या है?
कालसर्प दोष एक ज्योतिषीय प्रवृत्ति है जो किसी कुंडली में राहु और केतु ग्रहों के बीच में बनने वाले योगों को संकेत करती है। इसे कालसर्प योग भी कहा जाता है, और इसके कारण जातक को विभिन्न जीवन क्षेत्रों में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है।
कालसर्प दोष क प्रकार:
कालसर्प दोष के कई प्रकार हो सकते हैं, जैसे कि अनंत, कुलिक, वासुकि, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, और कैलास। इन प्रकारों के आधार पर व्यक्ति की कुंडली में किस प्रकार का कालसर्प दोष है, इसे निर्धारित किया जाता है।
कालसर्प दोष के प्रभाव:
परिवारिक समस्याएं: कालसर्प दोष के कारण परिवारिक संबंधों में कठिनाईयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। विशेषज्ञता और समझदारी से इसका सामना करना आवश्यक होता है
आर्थिक समस्याएं: कालसर्प दोष के चलते व्यक्ति को आर्थिक समस्याएं भी आ सकती हैं। नियमित रूप से धन संबंधित परिस्थितियों का विचार करना महत्वपूर्ण है।
स्वास्थ्य समस्याएं: कुछ व्यक्तियों को कालसर्प दोष के कारण स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं। नियमित चेकअप और स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखना आवश्यक है।
कालसर्प दोष का निवारण:
पूजा और हवन: कालसर्प दोष के उपाय में पूजा और हवन का महत्वपूर्ण स्थान है। निर्धारित रूप से मंगलवार को कालसर्प पूजा करना और हवन आयोजित करना चाहिए।
मंत्र जाप: कालसर्प दोष के उपाय के रूप में कुछ विशेष मंत्रों का जाप करना भी फलकारी हो सकता है। गुरु मंत्र और केतु मंत्र का नियमित रूप से जाप करना लाभकारी हो सकता है।
रत्न धारण: कुछ ज्योतिषी रत्नों के धारण को भी कालसर्प दोष से मुक्ति प्रदान करने का सुझाव देते हैं। नीलम या मूंगा रत्न का धारण करना इसमें शामिल है।
दान और तप: कुछ लोग दान और तप के माध्यम से भी कालसर्प दोष का निवारण करते हैं। गौ-दान, तिल-दान, और वस्त्र-दान इसमें शामिल हैं।
कालसर्प दोष एक ज्योतिषीय परिस्थिति है जो व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर सकती है, लेकिन समझदारी से और उचित उपायों के माध्यम से इसका सामना किया जा सकता है। धार्मिकता, सच्चाई, और आत्म-समर्पण के साथ, व्यक्ति इस प्रकार के ज्योतिषीय परिस्थितियों को पार कर सकता है काल सर्प दोष के निवारण के लिए आप किसी पंडित से सलाह ले सकते है और अगर आप खुद से कालसर्प दोष का निवारण करना चाहते है तो होराइजन आर्क के कुंडली चक्र से कर सकते है ये काफी अच्छा सॉफ्टवे��र है और आप अपने जीवन को संतुलित और समृद्धि भरा बना सकता है।
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*🦋बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🦋*
28/06/24
*🦋Twitter सेवा🦋*
🌿 *मालिक की दया से पूर्ण गुरु और सच्चे गुरु संत रामपाल जी महाराज ही हैं और उनके द्वारा बताई गई सत��क्ति शास्त्र प्रमाणित है और उसी से होगा मोक्ष, यह बताते हुए ट्विटर पर सेवा करेंगे जी।*
*टैग और keyword⤵️*
*#पूर्ण_गुरु_से_होगा_मोक्ष*
*True Guru Sant Rampal Ji*
*📷''' सेवा से सम्बंधित photo लिंक।⤵️
https://www.satsaheb.org/moksha-hindi-0624/
https://www.satsaheb.org/moksha-english-0624/
*🔮सेवा Points🔮* ⬇️
🔹पूर्ण गुरु से होगा मोक्ष
कबीर साहेब जी कहते हैं;
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹पूर्ण गुरु से ही जन्म मरण के रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। अधूरे गुरु से नहीं।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹पूर्ण गुरु ही सतभक्ति देकर चौरासी लाख योनियों के कष्ट से बचा सकता है।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं। अन्य किसी के पास भी भक्ति के यथार्थ मंत्र नहीं हैं।
🔹पूर्ण गुरु द्वारा दिये गए सच्चे मंत्रों द्वारा ही मोक्ष संभव है। संत रामपाल जी महाराज जी ही सच्चे मंत्र देते हैं जिससे सर्व कष्ट, सर्व रोग दूर होकर सनातन परम धाम जहां परम शांति है व मोक्ष प्राप्ति होती है।
🔹कबीर साहेब ने कहा है:
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।
अर्थात तत्वदृष्टा यानी पूर्ण गुरु की बताई भक्ति से ही उपासक को पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो सकता है और वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं, जो वेदों और गीता के आधार पर भक्ति विधि बता रहे हैं।
🔹जो संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है, वही पूर्ण संत होता है। इसके विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक 34, गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4, और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 में भी पूर्ण संत अर्थात तत्वदर्शी संत की ओर संकेत किया गया है।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं जो शास्त्रोक्त भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष संभव है।
🔹मोक्ष केवल पूर्ण गुरु की बताई भक्ति से ही संभव है। इसलिए, पूर्ण गुरु और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को जानने के लिए Sant Rampal Ji Maharaj यूट्यूब चैनल पर प्रतिदिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संग देखें।
🔹वर्तमान समय में सैकड़ों गुरु हो गए हैं और सभी कहते हैं कि उनकी भक्ति करने से मोक्ष होगा, वे ही पूर्ण गुरु हैं। लेकिन पूर्ण गुरु कौन है, इसकी पहचान गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 में बताई गई है कि जो संत संसार रूपी उलटे लटके हुए वृक्ष के सभी विभागों को वेदों के अनुसार बता देगा, वह तत्वदर्शी संत होगा। इस रहस्य को जानने वाले तत्वदर्शी संत वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🔹पूर्ण गुरु से ही मोक्ष संभव है और वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण गुरु हैं। वे गीता के अध्याय 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 और कुरआन शरीफ के सूरह शूरा 42 आयत 2 में वर्णित पूर्ण परमात्मा की भक्ति के सांकेतिक मंत्रों का रहस्य उजागर कर अपने अनुयायियों को प्रदान कर रहे हैं। इन मंत्रों का सुमिरन करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🔹मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्ण गुरु (पूर्ण संत) की तलाश आवश्यक है। कबीर परमात्मा ने पूर्ण गुरु की पहचान बताते हुए ‘‘कबीर सागर’’ के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध’’ के पृष्ठ 1960 पर कहा है:
गुरू के लक्षण चार बखाना। प्रथम वेद शास्त्र का ज्ञाना(ज्ञाता)।
दूसरा हरि भक्ति मन कर्म बानी। तीसरा सम दृष्टि कर जानी।
चौथा बेद विधि सब कर्मा। यह चारि गुरू गुन जानों मर्मा।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिए पूर्ण गुरु का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि पूर्ण गुरु ही सच्चा आध्यात्मिक मार्ग प्रदान करता है। केवल पूर्ण गुरु ही पवित्र शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान समझाता है और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करता है, क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही मानव जीवन का एकमात्र मुख्य उद्देश्य है। इसलिए, पूर्ण संत की खोज करके उसे गुरु धारण करना चाहिए ताकि मनुष्य अपना मोक्ष प्राप्त कर सके।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं जो शास्त्रोक्त भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष संभव है।"
"कबीर साहेब कहते हैं:
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
🔹जो गुरु शास्त्रों के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयायियों अर्थात शिष्यों को करवाता है, वही पूर्ण संत है। मोक्ष केवल पूर्ण गुरु के द्वारा बताई गई शास्त्रानुकूल भक्ति से होता है और इस कलियुग में संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण संत हैं, जो शास्त्रों के अनुसार सतभक्ति बताते हैं।
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दुनिया के शीर्ष 10 सबसे बड़े जानवर [अद्यतित सूची 2024]
दुनिया का सबसे बड़ा जानवर अंटार्कटिक ब्लू व्हेल (बैलेनोप्टेरा मस्कुलस एसएसपी इंटरमीडिया) है जिसका वजन 400,000 पाउंड (लगभग 33 हाथियों के बराबर) है और इसकी लंबाई 98 फीट है।
दुनिया के सबसे बड़े जानवरों का विषय विशेषज्ञों और आम लोगों दोनों को ही आकर्षित करता है। ये विशाल जीव पृथ्वी पर जीवन क�� विविधता और अनुकूलनशी��ता के प्रमाण हैं, और उन्होंने पूरे इतिहास में प्राकृतिक प्रणालियों और मानव संस्कृतियों दोनों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं।
दुनिया के कई सबसे बड़े जानवर सबसे ज़्यादा खतरे में भी हैं। इसलिए इस लेख में, हम शीर्ष 10 सबसे बड़े जानवरों पर चर्चा करने जा रहे हैं rummybo।
आकार के विभिन्न पहलुओं के आधार पर, दुनिया के शीर्ष 10 सबसे बड़े जानवरों की सूची यहां दी गई है:
1.ब्लू व्हेल (100 फीट तक लंबी)
2.अफ्रीकी हाथी (13 फीट तक लंबा)
3.जिराफ़ (19 फीट तक लंबा)
4.दरियाई घोड़ा (16 फीट तक लंबा)
5.ध्रुवीय भालू (10 फीट तक लंबा)
6.खारे पानी का मगरमच्छ (23 फीट तक लंबा)
7.शुतुरमुर्ग (9 फीट तक लंबा)
8.ग्रिज़ली भालू (8 फीट तक लंबा)
9.विशाल स्क्विड (40 फीट तक लंबा)
10.व्हेल शार्क (40 फीट तक लंबा)
1. दुनिया का सबसे बड़ा जानवर: ब्लू व्हेल (बैलेनोप्टेरा मस्कुलस)
सामान्य नाम: ब्लू व्हेल
वैज्ञानिक नाम: बैलेनोप्टेरा मस्कुलस
वर्ग: स्तनधारी
ऑर्डर: सीटेशिया
परिवार: बैलेनोप्टेरिडे
निवास स्थान: दुनिया भर के महासागर, अक्सर गहरे पानी को पसंद करते हैं।
आकार: औसतन 100 फीट (30 मीटर) तक लंबे और 200 टन तक वजन वाले।
आहार: उनके प्राथमिक आहार में मुख्य रूप से क्रिल, छोटे झींगा जैसे जीव होते हैं, जिन्हें वे अपने मुंह में बेलन प्लेटों के माध्यम से छानते हैं।
विशिष्ट विशेषताएं: विशाल आकार, हृदय, जीभ और बेलन प्लेट।
संरक्षण स्थिति: ब्लू व्हेल को एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
ब्लू व्हेल पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्तनपायी या जानवर है। वे लंबाई में 100 फीट (30 मीटर) तक बढ़ सकते हैं और उनका वजन 200 टन (180 मीट्रिक टन) तक हो सकता है। ब्लू व्हेल दुनिया के सभी महासागरों में पाए जाते हैं, लेकिन वे सबसे अधिक आर्कटिक और अंटार्कटिक के ठंडे पानी में पाए जाते हैं। अपने विशाल आकार के बावजूद, ब्लू व्हेल मुख्य रूप से क्रिल नामक छोटे झींगा जैसे जानवरों को खाती हैं, जिन्हें वे अपनी बेलन प्लेटों का उपयोग करके समुद्री जल से छानती हैं। वे भोजन की तलाश में 2,000 फीट (600 मीटर) या उससे अधिक गहराई तक गोता लगाने में भी सक्षम हैं। ब्लू व्हेल को एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, अतीत में शिकार के कारण उनकी आबादी गंभीर रूप से कम हो गई है rummy bo।
2. दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जानवर: व्हेल शार्क (राइनकोडॉन टाइपस)
सामान्य नाम: व्हेल शार्क
वैज्ञानिक नाम: राइनकोडोन टाइपस
वर्ग: कोंड्रिकथिस
ऑर्डर: ओरेक्टोलोबिफॉर्मेस
परिवार: राइनकोडोन्टिडे
निवास स्थान: व्हेल शार्क मुख्य रूप से दुनिया भर में गर्म, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय महासागरों में पाई जाती हैं।
आकार: वे औसतन 40 फीट (12 मीटर) से अधिक लंबाई तक बढ़ सकते हैं।
आहार: अपने विशाल आकार के बावजूद, व्हेल शार्क फ़िल्टर फीडर हैं और मुख्य रूप से प्लवक खाते हैं, जिसमें छोटी मछलियाँ, कोपपोड, क्रिल और अन्य छोटे जीव शामिल हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: विशाल आकार, अनोखा पैटर्न, फ़िल्टर फीडिंग तंत्र और कोमल स्वभाव।
संरक्षण स्थिति: व्हेल शार्क को IUCN रेड लिस्ट के अनुसार कमज़ोर के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और गर्म महासागरों में, शार्क की एक प्रजाति है जिसे व्हेल शार्क (राइनकोडोन टाइपस) कहा जाता है। वे 40 फीट (12 मीटर) की लंबाई तक पहुँच सकते हैं, उनका वजन 20,000 पाउंड (9000 किलोग्राम) तक हो सकता है, और वे समुद्र में सबसे बड़ी मछली हैं। व्हेल शार्क की पहचान उनके बड़े आकार, चौड़े सपाट सिर और चौड़े मुंह से होती है। उनकी ग्रे या भूरी त्वचा पर सफ़ेद धब्बे और खड़ी धारियों का पैटर्न होता है। उनका सिर चौड़ा, सपाट होता है, जिसमें दो छोटी आँखें और चौड़ा मुंह होता है जो 4 फीट (1.2 मीटर) तक चौड़ा हो सकता है। वे फ़िल्टर फीडर हैं और मुख्य रूप से प्लवक, छोटी मछलियों और मैक्रो-शैवाल पर भोजन करते हैं।
3. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जानवर: अफ़्रीकी हाथी (लोक्सोडोंटा अफ़्रीकाना)
सामान्य नाम: अफ़्रीकी हाथी
वैज्ञानिक नाम: लोक्सोडोंटा अफ़्रीकाना
वर्ग: स्तनधारी
ऑर्डर: प्रोबोसिडिया
परिवार: एलिफैंटिडे
निवास स्थान: उप-सहारा अफ़्रीका में विभिन्न आवासों में पाया जाता है, जिसमें सवाना, जंगल, दलदल और रेगिस्तान शामिल हैं।
आकार: कंधे पर 10-13 फ़ीट तक लंबा और 10,000 से 14,000 पाउंड के बीच वजन।
आहार: अफ़्रीकी हाथी शाकाहारी होते हैं, जो घास, पत्ते, फल और छाल सहित विभिन्न वनस्पतियों को खाते हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: बड़े दाँत, सूंड, कान और सामाजिक व्यवहार।
संरक्षण स्थिति: अफ़्रीकी हाथियों को कमज़ोर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
अफ़्रीकी हाथी (लोक्सोडोंटा अफ़्रीकाना) अफ़्रीका का सबसे बड़ा भूमि जानवर है और दुनिया में सबसे बड़े जानवरों में से एक है। वे अपने बड़े आकार, लंबी सूंड और बड़े कानों के लिए जाने जाते हैं। अफ़्रीकी हाथी उप-सहारा अफ़्रीका के मूल निवासी हैं और 37 देशों में पाए जाते हैं, मुख्य रूप से सवाना, घास के मैदानों और जंगलों में। वयस्क नर का वज़न 6,000 किलोग्राम (13,227 पाउंड) तक हो सकता है और कंधे पर 4 मीटर (13 फ़ीट) तक की ऊँचाई हो सकती है। वयस्क मादाएँ थोड़ी छोटी होती हैं और उनका वज़न 3,000 किलोग्राम (6,614 पाउंड) तक हो सकता है और उनकी ऊँचाई 3.5 मीटर (11.5 फ़ीट) तक हो सकती है। उनकी मोटी भूरी त्वचा और लंबे दाँत होते हैं जो उनके पूरे जीवन में बढ़ते रहते हैं। अफ़्रीकी हाथी शाकाहारी होते हैं और घास, फल और पत्तियों सहित कई तरह के पौधे खाते हैं। अपने बड़े शरीर के आकार को बनाए रखने के लिए उन्हें प्रतिदिन 300 पाउंड तक का बहुत ज़्यादा खाना खाने की ज़रूरत होती है।
4. जिराफ़ (जिराफ़ कैमलोपार्डालिस)
सामान्य नाम: जिराफ़
वैज्ञानिक नाम: जिराफ़ कैमलोपार्डालिस
वर्ग: स्तनधारी
आदेश: आर्टियोडैक्टाइला
परिवार: जिराफ़िडे
निवास स्थान: उप-सहारा अफ़्रीका में विभिन्न सवाना, घास के मैदानों और खुले वुडलैंड्स के मूल निवासी।
आकार: आम तौर पर 14 से 18 फ़ीट (4.3 से 5.5 मीटर) तक की ऊँचाई तक पहुँचते हैं।
आहार: उनके आहार में मुख्य रूप से बबूल के पेड़ों और अन्य वनस्पतियों की पत्तियाँ, अंकुर और टहनियाँ शामिल होती हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: लंबी गर्दन, अनोखा पैटर्न, लंबे पैर और पकड़ने वाली जीभ।
संरक्षण स्थिति: जिराफ़ को वर्तमान में विलुप्त होने के प्रति संवेदनशील के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
जिराफ़ एक और बड़ा स्तनपायी है जो अफ़्रीका का मूल निवासी है। यह दुनिया का सबसे लंबा स्थलीय जानवर है, जिसमें नर 6 मीटर (लगभग 20 फ़ीट) तक लंबे होते हैं, और मादाएँ 4.5 मीटर (लगभग 15 फ़ीट) तक की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। जिराफ़ की गर्दन बहुत लंबी होती है जो सिर्फ़ सात कशेरुकाओं से बनी होती है, जो लम्बी होती हैं ताकि वे पत्तियों और शाखाओं तक पहुँच सकें जो अन्य जानवर नहीं कर सकते। यह लंबी गर्दन जिराफ़ को आसानी से पहचानने योग्य जानवर भी बनाती है। वे संभोग के मौसम के दौरान लड़ने के लिए अपनी गर्दन का उपयोग करते हैं और साथ ही भोजन और पत्तियों तक पहुँचने के लिए एक उपकरण के रूप में, वे 18 फीट की ऊँचाई पर पेड़ों से भी पत्ते खा सकते हैं।
5. दरियाई घोड़ा (हिप्पोपोटामस एम्फीबियस)
सामान्य नाम: दरियाई घोड़ा
वैज्ञानिक नाम: दरियाई घोड़ा उभयचर
वर्ग: स्तनधारी
आदेश: आर्टियोडैक्टाइला
परिवार: दरियाई घोड़ा
निवास स्थान: दरियाई घोड़े मुख्य रूप से उप-सहारा अफ्रीका में पाए जाते हैं, नदियों, झीलों और दलदलों में निवास करते हैं।
आकार: 3,000 से 4,000 पाउंड (1,360 से 1,814 किलोग्राम) के बीच वजन और कंधे पर लगभग 4.9 से 5.9 फीट (1.5 से 1.8 मीटर) लंबा होता है।
आहार: दरियाई घोड़े शाकाहारी होते हैं, जो मुख्य रूप से घास और जलीय पौधों पर भोजन करते हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: विशाल आकार, अनोखी त्वचा, बड़े दाँत और श्वान और अर्ध-जलीय जीवन शैली।
संरक्षण स्थिति: दरियाई घोड़े को निवास स्थान के नुकसान के कारण असुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
भूमि पर सबसे बड़े जानवरों में से एक दरियाई घोड़ा, या "हिप्पो" है, जैसा कि इसे आमत���र पर संदर्भित किया जाता है। दरियाई घोड़े की लंबाई 4 मीटर (13 फीट) और वजन 1,500 किलोग्राम (3,307 पाउंड) तक हो सकता है। वे शाकाहारी जलीय जानवर हैं जो अपना ज़्यादातर समय दलदल, झीलों और नदियों में बिताते हैं। दरियाई घोड़ों के शरीर बैरल के आकार के होते हैं और उनके सिर नुकीले दांतों वाले होते हैं। वे अफ़्रीका के सबसे ख़तरनाक जानवरों में से हैं क्योंकि उन्हें बेहद क्षेत्रीय और हिंसक होने की प्रतिष्ठा प्राप्त है। वे कई अफ़्रीकी देशों में फैले हुए हैं, मुख्य रूप से उप-सहारा अफ़्रीका में।
6. खारे पानी का मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस)
सामान्य नाम: खारे पानी का मगरमच्छ
वैज्ञानिक नाम: क्रोकोडिलस पोरोसस
वर्ग: सरीसृप
क्रम: क्रोकोडिलिया
परिवार: क्रोकोडाइलिडे
निवास स्थान: खारे पानी के मगरमच्छ दक्षिण पूर्व एशिया, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और भारत के पूर्वी तट के कुछ हिस्सों में खारे और मीठे पानी के क्षेत्रों में रहते हैं।
आकार: वयस्क नर औसतन 15 से 20 फीट (4.6 से 6 मीटर) की लंबाई तक पहुँचते हैं।
आहार: खारे पानी के मगरमच्छ शीर्ष शिकारी और अवसरवादी भक्षक होते हैं, जो मछली, पक्षी, स्तनधारी (जैसे बंदर या हिरण) और यहाँ तक कि अन्य सरीसृपों सहित विभिन्न जानवरों का शिकार करते हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: शक्तिशाली जबड़े, नमक ग्रंथियाँ, बख्तरबंद तराजू और जालदार पैर।
संरक्षण स्थिति: खारे पानी के मगरमच्छों को संरक्षण स्थिति के संदर्भ में सबसे कम चिंता की प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के तट खारे पानी के मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस) का घर हैं, जो मगरमच्छ का एक प्रकार है जो खारे पानी के वातावरण जैसे कि मुहाना, मैंग्रोव और लैगून में रहता है। उन्हें कभी-कभी साल्टी, समुद्री मगरमच्छ या मुहाना मगरमच्छ के रूप में संदर्भित किया जाता है। वयस्क खारे पानी के मगरमच्छ अधिकतम 6 मीटर (20 फीट) की लंबाई और अधिकतम 1,000 किलोग्राम (2,200 पाउंड) तक बढ़ सकते हैं। उनके पास दुनिया के किसी भी सरीसृप की तुलना में सबसे बड़ा सिर और सबसे मजबूत जबड़े, एक लंबी, मोटी पूंछ और एक मजबूत कवच वाला शरीर होता है। उनके पास एक खुरदरी, शल्कदार खाल होती है जो गहरे भूरे या भूरे रंग की होती है।
7. ध्रुवीय भालू (उर्सस मैरिटिमस)
सामान्य नाम: ध्रुवीय भालू
वैज्ञानिक नाम: उर्सस मैरिटिमस
वर्ग: स्तनधारी
आदेश: मांसाहारी
परिवार: उर्सिडी
निवास स्थान: ध्रुवीय भालू मुख्य रूप से आर्कटिक क्षेत्र में रहते हैं, जो आर्कटिक महासागर, समुद्री बर्फ, द्वीपों और उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के तटरेखाओं में फैले हुए हैं।
आकार: 900 से 1,600 पाउंड (410 से 730 किलोग्राम) के बीच वजन और लगभग 8 से 10 फीट (2.4 से 3 मीटर) की लंबाई होती है।
आहार: ध्रुवीय भालू मांसाहारी शीर्ष शिकारी होते हैं, जिनका आहार मुख्य रूप से सील, विशेष रूप से रिंग्ड और दाढ़ी वाले सील होते हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: सफ़ेद फर, बड़ा शरीर, बेहतरीन तैराक और गंध की तीव्र भावना।
संरक्षण स्थिति: ध्रुवीय भालू को समुद्री बर्फ के निरंतर नुकसान के कारण असुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो शिकार करने और भोजन खोजने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।
वयस्क ध्रुवीय भालू का वजन 600 किलोग्राम (1,323 पाउंड) तक हो सकता है और उनकी लंबाई 2.5 मीटर (8.2 फीट) तक हो सकती है। वे मुख्य रूप से आर्कटिक क्षेत्र में पाए जाते हैं, अलास्का, कनाडा, ग्रीनलैंड, नॉर्वे और रूस जैसे क्षेत्रों में। ध्रुवीय भालुओं के पास मोटा, सफ़ेद फर और चर्बी की एक परत होती है जो उन्हें कठोर आर्कटिक जलवायु में गर्म रहने में मदद करती है। वे बेहतरीन तैराक होते हैं और आर्कटिक महासागर में लंबी दूरी तक तैरने के लिए जाने जाते हैं। वे मांसाहारी होते हैं और उनका आहार मुख्य रूप से सील होता है, जिसका वे बर्फ में छेदों से ऊपर आने का इंतज़ार करके शिकार करते हैं।
8. शुतुरमुर्ग (स्ट्रुथियो कैमलस)
सामान्य नाम: शुतुरमुर्ग
वैज्ञानिक नाम: स्ट्रुथियो कैमेलस
वर्ग: एवेस
ऑर्डर: स्ट्रुथियोनिफॉर्मेस
परिवार: स्ट्रुथिओनिडे
निवास स्थान: शुतुरमुर्ग अफ्रीका के सवाना, घास के मैदानों और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के मूल निवासी हैं।
आकार: वयस्क नर लगभग 7 से 9 फीट (2.1 से 2.7 मीटर) लंबे होते हैं और उनका वजन 220 से 350 पाउंड (100 से 160 किलोग्राम) के बीच होता है।
आहार: शुतुरमुर्ग सर्वाहारी होते हैं, जो मुख्य रूप से जड़ों, बीजों, पत्तियों और फूलों जैसे पौधों को खाते हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: लंबे पैर और गर्दन, उड़ान रहित, मजबूत, मज़बूत पैर और पंख पैटर्न।
संरक्षण स्थिति: सामान्य शुतुरमुर्ग (स्ट्रुथियो कैमेलस) को वैश्विक रूप से संकटग्रस्त नहीं माना जाता है।
बड़ा और उड़ने में असमर्थ, शुतुरमुर्ग (स्ट्रुथियो कैमेलस) अफ्रीका का मूल निवासी है। वयस्क नर की ऊंचाई 2.8 मीटर (9 फीट) तक हो सकती है और इसका वजन 150 किलोग्राम (330 पाउंड) तक हो सकता है, जो इसे दुनिया का सबसे लंबा और भारी पक्षी बनाता है। हालांकि काफी छोटे, वयस्क मादाओं का वजन 100 किलोग्राम (220 पाउंड) तक हो सकता है। शुतुरमुर्गों की पहचान उनकी लंबी गर्दन और पैर, छोटे सिर और बड़े, गोलाकार शरीर से होती है। उनके पैर और गाल नंगे और गुलाबी होते हैं और उनके पंख काले होते हैं। शुतुरमुर्गों की दौड़ने की गति बहुत तेज़ होती है - 45 मील प्रति घंटे तक - और वे बहुत तेज़ी से बहुत ज़्यादा ज़मीन को कवर कर सकते हैं।
9. ग्रिज़ली भालू (उर्सस आर्कटोस हॉरिबिलिस)
सामान्य नाम: ग्रिजली भालू
वैज्ञानिक नाम: उर्सस आर्कटोस हॉरिबिलिस
वर्ग: स्तनधारी
ऑर्डर: कार्निवोरा
परिवार: उर्सिडी
निवास स्थान: ग्रिजली भालू उत्तरी अमेरिका के विभिन्न आवासों में पाए जाते हैं, जिनमें जंगल, घास के मैदान, टुंड्रा और पहाड़ शामिल हैं।
आकार: 300 से 1,500 पाउंड (135 से 680 किलोग्राम) के बीच वजन और लगभग 6.5 से 8 फीट (2 से 2.5 मीटर) लंबा होता है।
आहार: ग्रिजली भालू सर्वाहारी होते हैं, उनके आहार में जामुन, मेवे, ��ड़ें, कीड़े, मछली, छोटे स्तनधारी और कभी-कभी हिरण या एल्क जैसे बड़े शिकार शामिल होते हैं।
विशिष्ट विशेषताएं: कंधे पर कूबड़, लंबे पंजे, भूरे रंग के फर और प्रमुख चेहरे की रूपरेखा।
संरक्षण स्थिति: ग्रिजली भालू को वैश्विक स्तर पर "सबसे कम चिंता" की प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
उत्तरी अमेरिका में पाई जाने वाली भूरे भालू की एक उप-प्रजाति ग्रिज़ली भालू (उर्सस आर्कटोस हॉरिबिलिस) है। इन्हें सिल्वरटिप भालू या उत्तरी अमेरिकी भूरे भालू भी कहा जाता है। मुख्य रूप से अलास्का और कनाडा में पाए जाने वाले ये भालू महाद्वीपीय संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ क्षेत्रों जैसे मोंटाना, इडाहो और व्योमिंग में भी पाए जा सकते हैं। ग्रिज़ली भालू बड़े जानवर होते हैं जो 2.5 मीटर (8.2 फीट) लंबे हो सकते हैं और इनका वजन 600 किलोग्राम (1,320 पाउंड) तक हो सकता है। वे अपने कंधों पर कूबड़, अपने पंजों की लंबाई और अपने चेहरे के आकार से पहचाने जाते हैं। हालाँकि वे सुनहरे या काले भी हो सकते हैं, लेकिन वे अक्सर गहरे भूरे रंग के होते हैं।
10. विशाल स्क्विड (आर्किटुथिस डक्स)
सामान्य नाम: विशाल स्क्विड
वैज्ञानिक नाम: आर्किटुथिस डक्स
वर्ग: सेफलोपोडा
ऑर्डर: टेउथिडा
परिवार: आर्किटुथिडे
निवास स्थान: विशाल स्क्विड गहरे समुद्र में रहने वाले जीव हैं, जो दुनिया भर में समुद्र की गहराई में रहते हैं, अक्सर खुले समुद्र के अंधेरे, गहरे पानी में पाए जाते हैं।
आकार: वे 43 फीट (13 मीटर) या उससे भी बड़े आकार तक पहुँचते हैं।
आहार: उनके आहार में मुख्य रूप से मछली और अन्य स्क्विड प्रजातियाँ शामिल हैं।
विशिष्ट विशेषताएँ: विशाल आकार, टेंटेकल्स और भुजाएँ, बायोलुमिनसेंस और मायावी प्रकृति।
संरक्षण स्थिति: गहरे समुद्र में उनके मायावी स्वभाव और निवास के कारण, विशाल स्क्विड की विशिष्ट संरक्षण स्थिति को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है।
विशाल स्क्विड (आर्किटुथिस डक्स)। यह गहरे समुद्र में रहने वाले स्क्विड की एक प्रजाति है जो बहुत बड़ी हो सकती है। उन्हें दुनिया के सबसे बड़े अकशेरुकी जीवों में से एक माना जाता है, कुछ नमूनों की लंबाई 43 फीट (13 मीटर) तक होती है और उनका वजन 1,100 पाउंड (500 किलोग्राम) ��क होता है। विशाल स्क्विड में एक विशिष्ट लंबा बेलनाकार शरीर होता है जिसमें एक विशिष्ट सिर, बड़ी आंखें, आठ भुजाएँ और दो लंबे तंबू होते हैं जो सैकड़ों चूसने वालों से पंक्तिबद्ध होते हैं। इन तंबूओं का उपयोग शिकार को पकड़ने और विशाल स्क्विड को पानी में आगे बढ़ने में मदद करने के लिए किया जाता है। उनके शरीर के पीछे स्थित पंखों की एक जोड़ी भी होती है जो उन्हें तैरने में मदद करती है। उन्हें गहरे समुद्र के जीव के रूप में जाना जाता है और 330 से 9,800 फीट (100-3,000 मीटर) की गहराई पर पाए जाते हैं।
निष्कर्ष
तो दुनिया के शीर्ष 10 सबसे बड़े जानवरों पर ऊपर चर्चा की गई है। ये जानवर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पाए जाते हैं, जिनका निवास आर्कटिक से लेकर अफ्रीकी सवाना और महासागरों तक है।
वे सभी अपनी शारीरिक विशेषताओं, आहार और व्यवहार के मामले में अद्वितीय हैं। हालांकि, उनमें से कई को शिकार, आवास विनाश और मानवीय गतिविधियों जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें जोखिम में डालते हैं। इन जानवरों और उनके आवासों की रक्षा के लिए संरक्षण प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें से कुछ प्रजातियों को सफलता की कहानी माना जाता है जबकि अन्य अभी भी गंभीर रूप से खतरे में हैं। https://rummybo.com/
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart24 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart25
पुराण शास्त्र हैं या नहीं ?
इस गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में स्पष्ट किया है कि जिन साधकों की आस्था रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी में अति दृढ है तथा जिनका ज्ञान लोक वेद (दंत कथा) के आधार से इस त्रिगुणमयी माया के द्वारा हरा जा चुका है। वे इन्हीं तीनों प्रधान देवताओं व अन्य देवताओं की भक्ति पर दृढ़ हैं। इनसे ऊपर मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते। ऐसे व्यक्ति राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच (नराधमाः) दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं। ये मुझको (गीता ज्ञान देने वाले काल ब्रह्म को) नहीं भजते।
प्रश्न 13 अब हिन्दू साहेबान कहेंगे कि पुराणों में श्राद्ध करना, कर्मकाण्ड करना बताया है। तीर्थों पर जाना पुण्य बताया है। ऋषियों ने तप किए। क्या उनको भी हम गलत मानें? श्री ब्रह्मा जी ने, श्री भक्तोंका पुनर्जन्म नहीं होता।*) विष्णु जी तथा शिव जी ने भी तप किए। क्या वे भी गलत करते रहे हैं?
उत्तर : ऊपर श्रीमद्भगवत गीता से स्पष्ट कर दिया है कि जो घोर तप करते हैं, वे मूर्ख हैं, पापाचारी क्रूरकर्मी हैं, चाहे कोई ऋषि हो या अन्य। उनको वेदों का क-ख का भी ज्ञान नहीं था, सामान्य हिन्दू को तो होगा कहाँ से? गीता में तीर्थों पर जाना कहीं नहीं लिखा है। इसलिए तीर्थ भ्रमण गलत है। शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण है जो ��ीता में व्यर्थ कहा है।
प्रश्न 14 : क्या पुराण शास्त्र नहीं है?
उत्तर :- पुराणों का ज्ञान ऋषियों का अपना अनुभव है। वेद व गीता प्रभुदत्त (God Given) ज्ञान है जो सत्य है। ऋषियों ने वेदों को पढ़ा। लेकिन ठीक से नहीं समझा। जिस कारण से लोकवेद (एक-दूसरे से सुने ज्ञान के) के आधार से साधना की। कुछ ज्ञान वेदों से लिया यानि ओम् (ॐ) नाम का जाप यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 15 से लिया। तप करने का ज्ञान ब्रह्मा जी से लिया। खिचड़ी ज्ञान के अनुसार साधना करके सिद्धियाँ प्राप्त करके किसी को श्राप, किसी को आशीर्वाद देकर जीवन नष्ट कर गए। गीता में कहा है कि जो मनमाना आचरण यानि शास्त्रविधि त्यागकर साधना करते हैं। उनको कोई लाभ नहीं होता। जो घोर तप को तपते हैं, वे राक्षस स्वभाव के हैं। प्रमाण के लिए : एक बार पांडव वनवास में थे। दुर्योधन के कहने से दुर्वासा ऋषि अठासी हजार ऋषियों को लेकर पाण्डवों के यहाँ गया। मन में दोष लेकर गया था कि पांडव मेरी मन इच्छा अनुसार भोजन करवा नहीं पाएँगे। मैं उनको श्राप दे दूँगा। वे नष्ट हो जाएँगे। क्या यह नेक व्यक्ति का कर्म है? दुष्टात्मा ऐसा करता है। > विचार करो : दुर्वासा महान तपस्वी था। उस घोर तप करने वाले पापाचारी नराधम ने क्या जुल्म करने की ठानी। दुःखियों को और दुःखी करने के उद्देश्य से गया। क्या ये राक्षसी कर्म नहीं था? क्या यह क्रूरकर्मी नराधम नहीं था?
इसी दुर्वासा ऋषि ने बच्चों के मजाक करने से क्रोधवश यादवों को श्राप दे दिया। गलती तीन-चार बच्चों ने (प्रद्यूमन पुत्र श्री कृष्ण आदि ने) की, श्राप पूरे यादव कुल का नाश होने का दे दिया। दुर्वासा के श्राप से 56 करोड़ (छप्पन करोड़) यादव आपस में लड़कर मर गए। श्री कृष्ण जी भी मारे गए। क्या ये राक्षसी कर्म दुर्वासा का नहीं था?
* अन्य कर्म पुराण की रचना करने वाले ऋषियों के सुनो :- वशिष्ठ ऋषि ने एक राजा को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। वह राक्षस बनकर दुःखी हुआ। वशिष्ठ ऋषि ने एक अन्य राजा को इसलिए मरने का श्राप दे दिया जिसने ऋषि वशिष्ठ से यज्ञ अनुष्ठान न करवाकर अन्य से करवा लिया। उस राजा ने वशिष्ठ ऋषि को मरने का श्राप दे दिया। दोनों की मृत्यु हो गई।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
वशिष्ठ जी का पुनः जन्म इस प्रकार हुआ जो पुराण कथा है :- दो ऋषि जंगल में तप कर रहे थे। एक अप्सरा स्वर्ग से आई। बहुत सुंदर थी। उसे देखने मात्र से दोनों ऋषियों का वीर्य संखलन (वीर्यपात) हो गया। दोनों ने बारी-बारी जाकर कुटिया में रखे खाली घड़े में वीर्य छोड़ दिया। उससे एक तो वशिष्ठ ऋषि वाली आत्मा का पुनर्जन्म ��ुआ। नाम वशिष्ठ ही रखा गया। दूसरे का कुंभज ऋषि नाम रखा जो अगस्त ऋषि कहलाया।
विश्वामित्र ऋषि के कर्म : राज त्यागकर जंगल में गया। घोर तप किया। सिद्धियाँ प्राप्त की। वशिष्ठ ऋषि ने उसे राज ऋषि कहा। उससे क्षुब्ध (क्रोधित) होकर वशिष्ठ जी के सौ पुत्रों को मार दिया। जब वशिष्ठ ऋषि ने उसे ब्रह्म-ऋषि कहा तो खुश हुआ क्योंकि विश्वामित्र राज ऋषि कहने से अपना अपमान मानता था। ब्रह्म ऋषि कहलाना चाहता था।
विचार करो! क्या ये राक्षसी कर्म नहीं हैं? ऐसे-ऐसे ऋषियों की रचनाएँ हैं अठारह पुराण।
एक समय ऋषि विश्वामित्र जंगल में कुटिया में बैठा था। एक मैनका नामक उर्वशी स्वर्ग से आकर कुटी के पास घूम रही थी। विश्वामित्र उस पर आसक्त हो गया। पति-पत्नी व्यवहार किया। एक कन्या का जन्म हुआ। नाम शकुन्तला रखा। कन्या छः महीने की हुई तो उर्वशी स्वर्ग में चली गई। बोली मेरा काम हो गया। तेरी औकात का पता करने इन्द्र ने भेजी थी, वह देख ली। कहते हैं विश्वामित्र उस कन्या को कन्व ऋषि की कुटिया के सामने रखकर फिर से गहरे जंगल में तप करने गया। कन्व ऋषि ने उस कन्या को पाल-पोषकर राजा दुष्यंत से विवाह किया।
> विचार करो : विश्वामित्र पहले उसी गहरे जंगल में घोर तप करके आया ही था। आते ही वशिष्ठ जी के पुत्र मार डाले। उर्वशी से उलझ गया। नाश करवाकर फिर डले ढोने गया। फिर क्या वह गीता पढ़कर गया था। उसी लोक वेद के अनुसार शास्त्रविधि रहित मनमाना आचरण किया। फिर विश्वामित्र ऋषि ने राजा हरिशचन्द्र से छल करके राज्य लिया। राजा हरिशचन्द्र, उनकी पत्नी तारावती तथा पुत्र रोहतास के साथ अत्याचार किए।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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🍀संत रामपाल जी महाराज ने क्या नया ज्ञान दिया है?🍀
आइए हम जानते हैं कि संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान का क्या आधार है और यह अन्य संतों से भिन्न कैसे हैं? संत रामपाल जी ने प्रत्येक बात पर शास्त्रों का हवाला दिया है।
संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान हैं। संत रामपाल जी ने ही शास्त्रों द्वारा पूर्ण संत की क्या पहचान है, बताई है। उन्होंने बताया कि गीता में लिखा है जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है उसको कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है तथा न उसको परमगति प्राप्त होती है।
सन्त रामपाल जी महाराज जी को छोड़कर अन्य सभी सन्तों का ज्ञान मात्र अंधविश्वास और पाखंड तक सीमित है। सभी सन्त, धर्मगुरु, कथावाचक मात्र पुराणों में लिखी कहानियाँ दोहराते हैं किन्तु उससे शिक्षा क्या मिल रही है इस पर ज़ोर नहीं देते हैं। आज तक के इतिहास में कभी किसी भागवत कथावाचक द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता खोलकर नहीं दिखाई गई और न ही उसमें वर्णित श्लोकों का अर्थ बताया गया। सभी धर्मगुरु केवल उपवास और राशियों, ग्रह एवं नक्षत्रों के ऊपर बल देते हैं। मोक्ष के विषय में न उनके पास स्वयं कोई ज्ञान है और न ही वे इसके विषय में कुछ भी बोल पाते हैं। सभी सन्त ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य सभी देवी देवताओं की भक्ति के विषय में बताते हैं। जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने एक सही तरीका और सही भक्ति से लोगों को अवगत कराया है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत, उपवास, जागरण वर्जित है। किन्तु सभी धार्मिक गुरु व्रत करने पर बल देते हैं। वे बताते हैं व्रत कैसे, किस विधि से, किस मुहूर्त में करें।
संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि भगवतगीता में तप करना स्पष्ट रूप से मना है। अध्याय 17 के श्लोक 5 से 6 में तप करने सम्बंधी वर्जना स्पष्ट है। साथ ही तप करने वाले पाखंडी और दम्भी कहे गए हैं।
संत रामपाल जी ने बताया कि ब्रह्मा विष्णु शिव जी की उपासना श्रीमद्भगवद्गीता में वर्जित है। फिर ये धर्मगुरु रात और दिन किसके गुणगान करते हैं? श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा अध्याय 9 श्लोक 20 से 23 में प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया गया है कि तीनों गुणों ( रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तथा तमगुण शिव) अर्थात तीनों भगवानों की भक्ति करने वालों को असुर स्वभाव को धारण किये हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले, मूढ़ लोग बताया है।
वेदों में परमेश्वर का नाम कविर्देव यानी कबीर बताया है। जबकि ये धर्मगुरु वेदों का क, ख भी नहीं जानते हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने सर्वप्रथम यह ज्ञान दिया कि गीता ज्ञान दाता काल भगवान है जो कृष्ण भगवान से अलग है।
संत रामपाल जी महाराज ने संसार रूपी पीपल के वृक्ष का वर्णन उसके विभागों सहित सही-सही किया जो आज तक हमें कोई नहीं बता पाया था।
गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने के लिए कहा है एवं अध्याय 15 श्लोक 1 से 5 में तत्वदर्शी सन्त के लक्षण भी बताए हैं। किन्तु कोई सन्त या धार्मिक गुरु यह नहीं प्रमाणित कर पाया कि कौन है तत्वदर्शी सन्त।
वे कहते हैं विधि का विधान नहीं बदल सकता जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने यह करके दिखाया है इसकी गवाही वेद देते हैं।
वे मंत्र जाप मनमुखी तरीके से देते हैं। जबकि गीता अध्यय 17 श्लोक 23 के अनुसार ॐ, तत, सत ये तीन मन्त्र हैं पूर्ण परमेश्वर को पाने के लिए जिसका इन नकली धर्मगुरुओं को कोई अंदेशा नहीं है।
वर्तमान समय में पूर्ण गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिनकी शरण में आने से ही मानव का कल्��ाण हो सकता है। पूरे विश्व से निवेदन है कि देर ना करके पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को समझें और ग्रहण करें व अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाएं। इस संसार में एक पल का भरोसा नहीं कब क्या हो जाए। इसलिए जब भी ज्ञान समझ में आए उसी समय पूर्ण गुरु की शरण ग्रहण कर लेना चाहिए।
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🍀संत रामपाल जी महाराज ने क्या नया ज्ञान दिया है?🍀
आइए हम जानते हैं कि संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान का क्या आधार है और यह अन्य संतों से भिन्न कैसे हैं? संत रामपाल जी ने प्रत्येक बात पर शास्त्रों का हवाला दिया है।
संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान हैं। संत रामपाल जी ने ही शास्त्रों द्वारा पूर्ण संत की क्या पहचान है, बताई है। उन्होंने बताया कि गीता में लिखा है जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है उसको कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है तथा न उसको परमगति प्राप्त होती है।
सन्त रामपाल जी महाराज जी को छोड़कर अन्य सभी सन्तों का ���्ञान मात्र अंधविश्वास और पाखंड तक सीमित है। सभी सन्त, धर्मगुरु, कथावाचक मात्र पुराणों में लिखी कहानियाँ दोहराते हैं किन्तु उससे शिक्षा क्या मिल रही है इस पर ज़ोर नहीं देते हैं। आज तक के इतिहास में कभी किसी भागवत कथावाचक द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता खोलकर नहीं दिखाई गई और न ही उसमें वर्णित श्लोकों का अर्थ बताया गया। सभी धर्मगुरु केवल उपवास और राशियों, ग्रह एवं नक्षत्रों के ऊपर बल देते हैं। मोक्ष के विषय में न उनके पास स्वयं कोई ज्ञान है और न ही वे इसके विषय में कुछ भी बोल पाते हैं। सभी सन्त ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य सभी देवी देवताओं की भक्ति के विषय में बताते हैं। जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने एक सही तरीका और सही भक्ति से लोगों को अवगत कराया है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत, उपवास, जागरण वर्जित है। किन्तु सभी धार्मिक गुरु व्रत करने पर बल देते हैं। वे बताते हैं व्रत कैसे, किस विधि से, किस मुहूर्त में करें।
संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि भगवतगीता में तप करना स्पष्ट रूप से मना है। अध्याय 17 के श्लोक 5 से 6 में तप करने सम्बंधी वर्जना स्पष्ट है। साथ ही तप करने वाले पाखंडी और दम्भी कहे गए हैं।
संत रामपाल जी ने बताया कि ब्रह्मा विष्णु शिव जी की उपासना श्रीमद्भगवद्गीता में वर्जित है। फिर ये धर्मगुरु रात और दिन किसके गुणगान करते हैं? श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा अध्याय 9 श्लोक 20 से 23 में प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया गया है कि तीनों गुणों ( रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तथा तमगुण शिव) अर्थात तीनों भगवानों की भक्ति करने वालों को असुर स्वभाव को धारण किये हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले, मूढ़ लोग बताया है।
वेदों में परमेश्वर का नाम कविर्देव यानी कबीर बताया है। जबकि ये धर्मगुरु वेदों का क, ख भी नहीं जानते हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने सर्वप्रथम यह ज्ञान दिया कि गीता ज्ञान दाता काल भगवान है जो कृष्ण भगवान से अलग है।
संत रामपाल जी महाराज ने संसार रूपी पीपल के वृक्ष का वर्णन उसके विभागों सहित सही-सही किया जो आज तक हमें कोई नहीं बता पाया था।
गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने के लिए कहा है एवं अध्याय 15 श्लोक 1 से 5 में तत्वदर्शी सन्त के लक्षण भी बताए हैं। किन्तु कोई सन्त या धार्मिक गुरु यह नहीं प्रमाणित कर पाया कि कौन है तत्वदर्शी सन्त।
वे कहते हैं विधि का विधान नहीं बदल सकता जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने यह करके दिखाया है इसकी गवाही वेद देते हैं।
वे मंत्र जाप मनमुखी तरीके से देते हैं। जबकि गीता अध्यय 17 श्लोक 23 के अनुसार ॐ, तत, सत ये तीन मन्त्र हैं पूर्ण परमेश्वर को पाने के लिए जिसका इन नकली धर्मगुरुओं को कोई अंदेशा नहीं है।
वर्तमान समय में पूर्ण गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिनकी शरण में आने से ही मानव का कल्याण हो सकता है। पूरे विश्व से निवेदन है कि देर ना करके पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को समझें और ग्रहण करें व अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाएं। इस संसार में एक पल का भरोसा नहीं कब क्या हो जाए। इसलिए जब भी ज्ञान समझ में आए उसी समय पूर्ण गुरु की शरण ग्रहण कर लेना चाहिए।
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🍀संत रामपाल जी महाराज ने क्या नया ज्ञान दिया है?🍀
आइए हम जानते हैं कि संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान का क्या आधार है और यह अन्य संतों से भिन्न कैसे हैं? संत रामपाल जी ने प्रत्येक बात पर शास्त्रों का हवाला दिया है।
संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान हैं। संत रामपाल जी ने ही शास्त्रों द्वारा पूर्ण संत की क्या पहचान है, बताई है। उन्होंने बताया कि गीता में लिखा है जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है उसको कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है तथा न उसको परमगति प्राप्त होती है।
सन्त रामपाल जी महाराज जी को छोड़कर अन्य सभी सन्तों का ज्ञान मात्र अंधविश्वास और पाखंड तक सीमित है। सभी सन्त, धर्मगुरु, कथावाचक मात्र पुराणों में लिखी कहानियाँ दोहराते हैं किन्तु उससे शिक्षा क्या मिल रही है इस पर ज़ोर नहीं देते हैं। आज तक के इतिहास में कभी किसी भागवत कथावाचक द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता खोलकर नहीं दिखाई गई और न ही उसमें वर्णित श्लोकों का अर्थ बताया गया। सभी धर्मगुरु केवल उपवास और राशियों, ग्रह एवं नक्षत्रों के ऊपर बल देते हैं। मोक्ष के विषय में न उनके पास स्वयं कोई ज्ञान है और न ही वे इसके विषय में कुछ भी बोल पाते हैं। सभी सन्त ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य सभी देवी देवताओं की भक्ति के विषय में बताते हैं। जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने एक सही तरीका और सही भक्ति से लोगों को अवगत कराया है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत, उपवास, जागरण वर्जित है। किन्तु सभी धार्मिक गुरु व्रत करने पर बल देते हैं। वे बताते हैं व्रत कैसे, किस विधि से, किस मुहूर्त में करें।
संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि भगवतगीता में तप करना स्पष्ट रूप से मना है। अध्याय 17 के श्लोक 5 से 6 में तप करने सम्बंधी वर्जना स्पष्ट है। साथ ही तप करने वाले पाखंडी और दम्भी कहे गए हैं।
संत रामपाल जी ने बताया कि ब्रह्मा विष्णु शिव जी की उपासना श्रीमद्भगवद्गीता में वर्जित है। फिर ये धर्मगुरु रात और दिन किसके गुणगान करते हैं? श्रीमद्भागवत गीता अ��्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा अध्याय 9 श्लोक 20 से 23 में प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया गया है कि तीनों गुणों ( रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तथा तमगुण शिव) अर्थात तीनों भगवानों की भक्ति करने वालों को असुर स्वभाव को धारण किये हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले, मूढ़ लोग बताया है।
वेदों में परमेश्वर का नाम कविर्देव यानी कबीर बताया है। जबकि ये धर्मगुरु वेदों का क, ख भी नहीं जानते हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने सर्वप्रथम यह ज्ञान दिया कि गीता ज्ञान दाता काल भगवान है जो कृष्ण भगवान से अलग है।
संत रामपाल जी महाराज ने संसार रूपी पीपल के वृक्ष का वर्णन उसके विभागों सहित सही-सही किया जो आज तक हमें कोई नहीं बता पाया था।
गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने के लिए कहा है एवं अध्याय 15 श्लोक 1 से 5 में तत्वदर्शी सन्त के लक्षण भी बताए हैं। किन्तु कोई सन्त या धार्मिक गुरु यह नहीं प्रमाणित कर पाया कि कौन है तत्वदर्शी सन्त।
वे कहते हैं विधि का विधान नहीं बदल सकता जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने यह करके दिखाया है इसकी गवाही वेद देते हैं।
वे मंत्र जाप मनमुखी तरीके से देते हैं। जबकि गीता अध्यय 17 श्लोक 23 के अनुसार ॐ, तत, सत ये तीन मन्त्र हैं पूर्ण परमेश्वर को पाने के लिए जिसका इन नकली धर्मगुरुओं को कोई अंदेशा नहीं है।
वर्तमान समय में पूर्ण गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिनकी शरण में आने से ही मानव का कल्याण हो सकता है। पूरे विश्व से निवेदन है कि देर ना करके पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को समझें और ग्रहण करें व अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाएं। इस संसार में एक पल का भरोसा नहीं कब क्या हो जाए। इसलिए जब भी ज्ञान समझ में आए उसी समय पूर्ण गुरु की शरण ग्रहण कर लेना चाहिए।
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🚩अब “मान्यवर” और आलियाभट्ट ने किया हिन्दुओं के पवित्र अनुष्ठान पर प्रहार - 22 सितंबर 2021
🚩एक बार फिर से हिन्दुओं के विवाह से सम्बन्धित अनुष्ठान पर वार हुआ है और अबकी बार वार किया है “मान्यवर” ब्रांड ने, जिसमें आलिया भट्ट ने आकर कहा है कि “वह कोई वस्तु नहीं हैं, जिसे दान किया जाए; इसलिए अब कन्यादान नहीं, कन्यामान।”
इस विज्ञापन के आने के बाद से ही हिन्दुओं में गुस्से की लहर है।
🚩एक और बात नहीं समझ आती है कि जो ऐड एजेंसियां होती हैं, उनके दिमाग में हिन्दू धर्म को लेकर इतना कचरा क्यों भरा होता है?
या फिर वे वही वोक लिबरल होते हैं, जिन्हें न ही कन्या का अ��्थ पता होता है और न ही दान का और इन्हें कौन अधिकार देता है कि वह हिन्दू धर्म पर कुछ कह सकें! उनके भीतर हिन्दू धर्म की मूल समझ ही नहीं होती है। हिन्दुओं को ही अपना सामान बेचने वाले लोगों के भीतर हिन्दुओं को ही नीचा दिखाने की प्रवृत्ति क्यों होती है और वह भी आलिया भट्ट जैसे लोगों से जिनके पिता अपनी बड़ी बेटी के साथ लिप-लॉक करके चर्चा में आ चुके थे और यह बॉलीवुड ही है, जिसने “बेटी पराया धन है"- जैसे डायलॉग बनाए और जिसने लड़की को वस्तु बनाकर पेश किया।
🚩कन्यादान जैसे पवित्र हिन्दू अनुष्ठान पर प्रहार करने के कारण मान्यवर अब लोगों के निशाने पर आ चुका है और लोग भारी संख्या में जाकर उस विज्ञापन पर डिस्लाइक का बटन दबा रहे हैं।
🚩ऐड एजेंसी या प्रोडक्ट निर्माता, आखिर समाज सुधारक क्यों बन जाते हैं और वह भी केवल हिन्दू धर्म के?
जिसके विषय में उन्हें क, ख, ग नहीं पता होता है और जो सड़क छाप कविताएँ पढ़कर अपनी जानकारी का निर्माण करते हैं। यह लोग कभी भी हलाला के खिलाफ अभियान नहीं चलाते, जिससे परेशान होकर कई मुस्लिम औरतें न्यायालय और पुलिस के चक्कर काट रही हैं।
यहाँ तक कि हाल ही में अहमदाबाद में आयशा नामक मुस्लिम लड़की ने अपने शौहर की बेवफाई से दुखी होकर लाइव आत्महत्या की थी, मगर उसे आधार बनाकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर निशाना नहीं साध पाए कि चार निकाह की कुप्रथा बंद की जाए या फिर एक बार बोलने वाले तीन तलाक पर ही अभियान नहीं चलाते हैं।
हाल ही में चर्च में यौन शोषण के आरोप आए हैं, पर कोई भी ब्रांड अभियान नहीं चलाता!
परन्तु हाँ,हिन्दुओं के अनुष्ठानों पर प्रश्न उठाने के लिए हर कोई तैयार हो जाता है और यही प्रश्न अब लोग कर रहे हैं कि आखिर हिन्दुओं से समस्या क्या है?
प्रश्न है कि अगर “कन्यादान पितृसत्तात्मक है, तो निकाहनामा में लड़की देना और मेहर तय करना क्या है? क्या यह सभी वोक है?”
मेहर पर आज तक क्यों किसी ने प्रश्न नहीं उठाया? और विवाह हिन्दुओं में जन्म-जन्म का बंधन है, जबकि निकाहनामा एक अनुबंध है जिसे मेहर के आधार पर तय किया जाता है; इस व्यवस्था को बंद करने के लिए “मान्यवर” जैसे ब्रांड कितना अभियान चलाएंगे?
क्या हम उस समाज में रहते हैं, जिसमें कन्यादान पितृसत्तात्मक है और चार निकाह आज़ादी है?
🚩हालाँकि यह कोई नया कदम नहीं है, जब किसी ब्रांड ने समाज सुधारक बनने की कोशिश की है। रेड लेबल चाय ने हिन्दू विरोधी विज्ञापन बनाया था, जिसमें गणेशजी की मूर्ति के बहाने हिन्दुओं को ही असहि��्णु ठहराने की कोशिश की थी।
उससे पहले होली के समय बच्चों को शिकार बनाते हुए सर्फ़ एक्सेल का विज्ञापन भी हमें याद होगा और जब #लव_जिहाद के मामले में लड़कियां बक्से में मिल रही थीं मरी हुईं, तब घावों पर नमक छिड़कने के लिए तनिष्क का विज्ञापन!
हर वर्ष रक्षाबंधन पर महिला समानता के अभियान चलने लगते हैं और करवाचौथ को तो गुलामी का प्रतीक ही बना दिया है; जबकि इनमें से किसी ने भी गहराई से हिन्दू धर्म के उन ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया होता है, जहाँ पर विवाह के समय दुल्हन को माँ लक्ष्मी एवं वर को भगवान विष्णु माना जाता है। दान का अर्थ भी पढ़े-लिखे वोक कुपढ़ डोनेट से ले लेते हैं, जबकि दान का अर्थ हिन्दुओं में कहीं अधिक है। दान का अर्थ त्यागना नहीं होता है, न ही सम्बन्ध तोड़ना होता है। दान एक पवित्र शब्द है और यह कल्याण की भावना के साथ किया जाता है, जैसे- समाज के कल्याण के लिए विद्यादान; यहाँ तक कि जीवनदान जब एक वृहद कल्याण के लिए प्रसन्नता के साथ दान किया जाता है।
🚩कन्या का पिता, अपनी पुत्री को नव जीवन के लिए वर को दान देता है, इस आशीर्वाद के साथ कि वह अब गृहस्थ जीवन में प्रवेश करें, परन्तु वह “त्यागता” नहीं है। वह दयावश किसी को अपनी बेटी डोनेट नहीं कर रहा है कि किसी अपात्र की शादी नहीं हो पा रही है, तो दयावश अपनी बेटी को डोनेट कर दिया, जैसे दस या बीस रूपए डोनेट कर देते हैं।
पहले पिता अपनी पुत्री के योग्य वर की तलाश करता है और जब उनकी पुत्री उनकी पसंद को स्वीकृत करती है, तभी वह अपनी पुत्री को उस योग्य एवं पात्र वर के हाथों में इस विश्वास के साथ सौंपता है कि वह उनकी पुत्री को हर प्रकार का सुख देगा।
वह किसी दयावश किसी को अपनी बेटी डोनेट नहीं कर देता है, परन्तु दान शब्द को डोनेट शब्द तक सीमित करने वाले वोक लिबरल इस भावना को नहीं समझ सकते हैं क्योंकि उनके दिमाग में फेमिनिज्म की कचरा कविताएँ बसी रहती हैं, जो कन्यादान को बिना समझे ही कोसती रहती हैं।
🚩वहीं पुरुषों पर लिंग के आधार पर होने वाले कानूनी पक्षपात पर काम करने वाले कुछ लोगों ने यह भी कहा कि परम्पराओं को तोड़ने के स्थान पर उन कानूनों को तोड़ा जाना चाहिए, जो लिंग के आधार पर पक्षपाती हैं।
🚩मूल प्रश्न यही है कि हर ऐरा-गैरा आकर हिन्दू धर्म में सुधारक होने का दावा क्यों करता है?
क्या तीन तलाक और हलाला पर बोलने में उन्हें अपनी गर्दन तन से जुदा होने का डर होता है?
यह दोनों ही प्रश्न हमें मात्र मान्यवर @Manyavar_ से ही नहीं पूछने चाहिए, बल्कि विज्ञापन बनाने वाली श्र��यांस इनोवेशंस से भी पूछने चाहिए।
यह तो प्रश्न करना ही चाहिए कि आखिर मान्यवर/मोही केमालिक, रवि मोदी और उनकी पेरेंट कंपनी वेदान्त फैशन लिमिटेड जो खुद को “सेलेब्रेशन वियर ब्रांड” कहती हैं और फिर हिन्दुओं के विवाह संस्कारों पर थूकती है, यह कैसा खेल है?
हर हिन्दू जो इस विज्ञापन से आहत है, उसे कम से कम यह प्रश्न करना चाहिए कि पवित्र दान को सस्ते “डोनेट” में कैसे बदल दिया और किसने उन्हें अधिकार दिया कि हिन्दू धर्म के पवित्र संस्कार के विरुद्ध इतनी घटिया भाषा और तिरस्कार वाली भाषा का प्रयोग करें?
कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि हम #BoycottHinduphobicManyavar का ट्रेंड चलाएं और इन भाँडों को उनकी औकात दिखलायें!!
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जानिए कौन है उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री, और क्यों बने वो बीजेपी के खास
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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद उत्तराखंड को अब ग्यारहवें मुख्यमंत्री के रूप में एक नया चेहरा में चुका है।
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जी हां शनिवार को देहरादून में हुई बीजेपी की विधायक दल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी(Pushkar Singh Dhami) को उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री चुना गया है। आपको बता दें कि पुष्कर सिंह धामी (pushkar singh dhami) खटीमा से लगातार दो बार विधायक रहे हैं और युवाओं के बीच वो काफी मशहूर भी है। उसी को देखते हुए भाजपा के मंत्रिमंडल ने उन पर भरोसा जताया है।
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हालांकि उत्तराखंड में होने वाले 2022 के चुनाव से पहले इस तरह से एक युवा चेहरे पर दांव लगाना साफ दर्शाता है कि भाजपा 2022 में युवाओं को अपनी और आकर्षित करना चाहती है।
पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) के लिए आने वाले समय में राहें इतनी आसान भी नहीं होने वाली हैं। उनके पास मात्र 6 से 7 महीने का वक्त बचा हुआ है और इतने कम वक्त में उन्हें अपने आप को साबित करना होगा।
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उत्तराखंड के 11वीं मुख्यमंत्री बनने से पहले पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami)भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। और वह उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के काफी करीबी माने जाते हैं।
16 सितंबर 1975 को जन्मे 45 वर्षीय पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की टुंडी तहसील के डीडीहाट से तालुक रखते हैं। उनके पिता फ़ौज में थे और उन्होंने अपने गांव से ही अपनी प्राथमिक व स्तनकोतर की शिक्षा पूरी की। वह अपने परिवार के चार भाई-बहनों में सबसे छोटे और अकेले भाई हैं। उनकी माता का नाम विश्रा देवी है और उनकी पत्नी का नाम गीता धामी है।
newsuttarakhand.in
इससे पहले 20 सालों में उत्तराखंड को 10 और मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। जिनमें नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, नारायण दत्त तिवारी, भुवन चंद खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक,भुवन चंद्र खंडूरी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत,त्रिवेंद्र सिंह रावत,तीरथ सिंह रावत और अब 11वीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शामिल हैं।
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प्रारंभिक जीवन:- माता जी का एक धर्मपरायण, मृदुभाषी एवं अपने परिवार के प्रति समर्पित धरेलू महिला होने तथा पिता की सैनिक होने के कारण देश की सरहद पर हर पल तन-मन न्यौछावर करने की दशा भक्ति की प्ररेणा से ओत-प्रोत वाल्य मन-मस्तिष्क में सदैव देश एवं प्रदेश के लिए कुछ कर गुजरने की ललक के कारण बचपन से ही स्काउट गाइड, एन0सी0सी0, एन0एस0एस0 इत्यादी शाखाओं में प्रतिभाग एवं समाजिक कार्यो को करने की भावना तथा ’’संधे शक्ति कलयुगें’’ के मूलमंत्र के आधार पर छात्र शक्ति को उनके हकों एवं उत्थान के लिए एक जुट करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडने के मुख्य कारक रहे हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों को एक जुट करके निरन्तर संधर्षशाील रहते हुए उनके शैक्षिणक हितों की लडाई लडते हुए उनके अधिकार दिलाये गये तथा शिक्षा व्यवस्था के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। राजनितिक दल भारतीय जनता पार्टी से जुडने का कारण भी राष्ट्रीयता, देशभक्ति, कमजोर एवं युवा बेरोजगार के प्रति कुछ कर गुजरने की भावना रही। यही राजनिति में आने का उदे्श्य रहा।
राजनीतिक जीवन
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राजनितिक यात्राः- सन् 1990 से 1999 तक जिले से लेकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों में रहकर विद्यार्थी परिषद में कार्य किया है। इसी दौरान अलग-अलग दायित्वों के साथ-साथ प्रदेश मंत्री के तौर पर लखनऊ में हुये अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन में संयोजक एवं संचालन कर प्रमुख भूमिा निभाई।
राज्य की भौगोलिक परिस्थियों को नजदीक से समझते हुए क्षेत्रीय समस्याओं की समझ और उत्तराखण्ड राज्य गठन के उपरान्त पूर्व मुख्यमंत्री जी के साथ एक अनुभवी सलाहकार के रूप में 2002 तक कार्य किया। कुशल नेतृत्�� क्षमता, संधर्षशीलता एवं अदम्य सहास के कारण दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सन 2002 से 2008 तक छः वर्षो तक लगातार पूरे प्रदेश में जगह-जगह भ्रमण कर युवा बेरोजगार को संगठित करके अनेकों विशाल रैलियां एवं सम्मेलन आयोजित किये गये।
संधर्षो के परिणाम स्वरूप तत्कालीन प्रदेश सरकार से स्थानीय युवाओं को 70 प्रतिशत आरक्षण राज्य के उद्योगों में दिलाने में सफलता प्राप्त की। इसी क्रम में दिनांक 11.01.2005 को प्रदेश के 90 युवाओं को जोड़कर विधान सभा का धेराव हेतु एक ऐतिहासिक रैली आयोजित की गयी जिसे युवा शक्ति प्रदर्शन के रूप में उदाहरण स्वरूप आज भी याद किया जाता है।
कुशल नेतृत्व क्षमता तथा शैक्षिणिक एवं व्यावसायिक योग्यता के कारण पूर्ववर्ती भा0ज0पा0 सरकार में वर्ष 2010 से 2012 तक शहरी विकास अनुश्रवण परि��द के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यशील रहते हुए क्षेत्र की जनता की समस्याओं का समाधान कराने में आशातीत सफलता प्राप्त की जिसका प्रतिफल जनता द्वारा 2012 के विधान सभा विधान सभा चुनाव में ’’विजयश्री’’ दिलाते हुए अपने जनप्रिय विधायक के रूप में विधान सभा में पहुॅचाकर उनकी आवाज को और भी अधिक बुलन्दी के साथ सरकार के समक्ष उठाते हुए क्षेत्रीय जनता को उनके मौलिक अधिकारों एवं जीवन यापन के हकों को दिलवाने के लिए उनके विधानसभा प्रतिनिध होने का गौरव प्राप्त हुआ है।
विधान सभा के मुख्य मुद्देः-
(क) राज्य स्तरीयः- 1. शिक्षित बेरोजगार युवक आज राज्य की प्रमुख समस्या है। राज्य के युवाओं को अपने लिये रोजगार के अवसर प्राप्त हो, गाॅवों से पलायन रूके यही मुख्य समस्या है। 2. आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को भी रोजगार परक शिक्षा और तकनीकी शिक्षा यह राज्य सरकार दे, जिससे सभी वर्गो को जीवन यापन एवं विकास के समान अवसर प्राप्त हो एवं प्रचलित शिक्षा का बाजारीकरण बंद हो, जिसके लिए बहुत कार्य किया जाना है। 3.बुनियादी जरूरतों में स्वच्छ पानी तक प्रदेश की जनता को प्राप्त नही पा रहा है। स्वच्छ पेय जल लोगों तक निःशुल्क पहुॅचे आज एक प्रमुख मुद्दा है।
(ख) क्षेत्रीय स्तरीयः-
विधान सभा क्षेत्र खटीमा एक सीमान्त पिछड़ा, तराई जनजातिय बहुल्य क्षेत्र है। स्वच्छ पानी से लेकर शिक्षा तक अनेकों क्षेत्र में अत्यधिक कार्य किया जाना है। 2. नेपाल से लगा हुआ सीमान्त क्षेत्र होने के कारण अनेकों समस्याएं जैसेः- माओवाद, तस्करी इत्यादी समस्याओं के सामाधान हेतु अनेंको कार्य जानेे हैं। 3. जनजाति एवं गैरजनजाति जमीनों के विवादों का समाधान। 4. कृषि आधारित क्षेत्रों में बाढ की समस्या एवं भूमि का कटानों का समाधान। 5. पाॅलिटेक्निक का निर्माण। 6. आई0टी0आई0 का निर्माण। 7. निर्माणधीन सरकारी अस्पताल का यथा शीध्र निर्माण कार्य पूर्ण करवाना। 8. रोडवेज बस स्टेशन का निर्माण कार्य। 9. खटीमा शहर में बाईपास का निर्माण। 10. खटीमा में 4-लेन सड़क का निर्माण कार्य। 11. सीमान्त बग्गा चैवन ग्राम सभा को राजस्व ग्राम धोषित करवान एवं सम्पर्क मार्ग से जोडना। 12. स्पोर्टस स्टेडियम का निर्माण। 13. डिग्री कालेज में अन्य पाठ्यक्रमों को शुरू करवाना। 14. लम्बे समय से जीर्ण क्षीर्ण सड़क बगिया धाट से चकरपुर तक निर्माण करवाना। 15. परवीन नदी पर यथा शीध्र पुल का निर्माण। 16. खटीमा क्षेत्र में आन्दोलकारीयों का चिन्ह्ीकरण एवं शहीद स्मारक का निर्माण। 17. उधोगों की स्थापना कर नौजवानों को रोजगार उपलब्ध कराना। 18. किसानों से जुड़ी समस्याओं का समाधान। 19. सभी ग्राम सभाओं में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना है।
समाधान हेतु प्रयासः- राज्यों से शिक्षित बेरोजगारों का पलायन रूके इसके लिए आवश्यक है राज्य में अधिक से अधिक उद्योगों की स्थापना, पर्यटन के क्षेत्र का विकास, जल स्रोतों का वैज्ञानिक सोच के साथ उचित दोहन कर बिजली उत्पादन, हाॅटी कल्चर, फ्लोरी कल्चर, उद्यान, फल उत्पादन, जड़ी बूटी उत्पादन एवं फूल उत्पादन इत्यादी क्षेत्रों में बेरोजगारी युवकों को प्रशिक्षण देकर राज्य में ही पहाड़ों की जवानी का प्रयोग किया जाए जिससे पलायन रूके तथा युवा शक्ति का सदुपयोग प्रदेश के चहुॅमुखी विकास में हो सकें।
विजनः- चॅूकि समस्त युवा बेरोजगारों को सरकारी नौकरी उपलब्ध कराना वर्तमान में चुनौतीपूर्ण है इसलिए आवश्यकता है कि सरकार अपने प्रयासों से सभी वर्गो को सरकारी विद्यालय एवं महाविद्यालयों में से ऐसी तकनीकी, रोजगार परक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करे जिससे कि युवा वर्ग के लोगों को ड्रिगी प्राप्त करने के पश्चात तकनीकी रूप से स्वरोजगार के अवसरांे का लाभ उठाने हेतु कुशल बने एवं रोजगार प्राप्त हो सकंे। यह प्रशिक्षण राज्य सरकार अनेकों क्षेत्रों जैसेेंः- उद्योगों, पर्यटन के क्षेत्र में बिजली उत्पादन, हाॅटी कल्चर, फ्लोरी कल्चर, उद्यान, फल उत्पादन, जड़ी बूटी उत्पादन, एवं फूल उत्पादन इत्यादि क्षेत्रों में दे सकें। इन सभी के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण विजन यह भी रहेगा कि जनसंख्या वृद्वि रोक जाने हेतु परिवार नियोजन, जन जागरण एवं जनता को सचेत किया जाना।
जनता के प्रति आपका सन्देशः- क्षेत्र एवं राज्य की जनता से मेरा यही विनम्र निवेदन है कि अपनी समस्याओं के समय-समय पर अवगत कराते रहें जिससे मैं उन्हे विधानसभा में सरकार के सम्मुख प्रमुखता से उठाते हुए उनका निराकरण आपके सहयोग से समय पर करा सकूॅ। मेरे द्वारा सदैव आपके स्वागत के लिए खुल हैं। सभी लोग, सभी वर्ग, सभी क्षेत्रों में जाति-धर्म के विचार से ऊपर उठकर सामाजिक उत्थान के लिए मिलजुलकर कार्य करें। अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति संजग रहते हुए सकारात्मक एवं प्रगतिशील सोच के साथ कार्य करें जिससे हमारा राज्य प्रगति एवं विकास के मार्ग पर अग्रसर हों।
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*🦋बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🦋*
28/06/24
*🦋Twitter सेवा🦋*
🌿 *मालिक की दया से पूर्ण गुरु और सच्चे गुरु संत रामपाल जी महाराज ही हैं और उनके द्वारा बताई गई सतभक्ति शास्त्र प्रमाणित है और उसी से होगा मोक्ष, यह बताते हुए ट्विटर पर सेवा करेंगे जी।*
*टैग और keyword⤵️*
*#पूर्ण_गुरु_से_होगा_मोक्ष*
*True Guru Sant Rampal Ji*
*📷''' सेवा से सम्बंधित photo लिंक।⤵️
https://www.satsaheb.org/moksha-hindi-0624/
https://www.satsaheb.org/moksha-english-0624/
*🔮सेवा Points🔮* ⬇️
🔹पूर्ण गुरु से होगा मोक्ष
कबीर साहेब जी कहते हैं;
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।
वर्तमा��� में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹पूर्ण गुरु से ही जन्म मरण के रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। अधूरे गुरु से नहीं।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹पूर्ण गुरु ही सतभक्ति देकर चौरासी लाख योनियों के कष्ट से बचा सकता है।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं। अन्य किसी के पास भी भक्ति के यथार्थ मंत्र नहीं हैं।
🔹पूर्ण गुरु द्वारा दिये गए सच्चे मंत्रों द्वारा ही मोक्ष संभव है। संत रामपाल जी महाराज जी ही सच्चे मंत्र देते हैं जिससे सर्व कष्ट, सर्व रोग दूर होकर सनातन परम धाम जहां परम शांति है व मोक्ष प्राप्ति होती है।
🔹कबीर साहेब ने कहा है:
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।
अर्थात तत्वदृष्टा यानी पूर्ण गुरु की बताई भक्ति से ही उपासक को पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो सकता है और वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं, जो वेदों और गीता के आधार पर भक्ति विधि बता रहे हैं।
🔹जो संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है, वही पूर्ण संत होता है। इसके विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक 34, गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4, और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 में भी पूर्ण संत अर्थात तत्वदर्शी संत की ओर संकेत किया गया है।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं जो शास्त्रोक्त भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष संभव है।
🔹मोक्ष केवल पूर्ण गुरु की बताई भक्ति से ही संभव है। इसलिए, पूर्ण गुरु और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को जानने के लिए Sant Rampal Ji Maharaj यूट्यूब चैनल पर प्रतिदिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संग देखें।
🔹वर्तमान समय में सैकड़ों गुरु हो गए हैं और सभी कहते हैं कि उनकी भक्ति करने से मोक्ष होगा, वे ही पूर्ण गुरु हैं। लेकिन पूर्ण गुरु कौन है, इसकी पहचान गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 में बताई गई है कि जो संत संसार रूपी उलटे लटके हुए वृक्ष के सभी विभागों को वेदों के अनुसार बता देगा, वह तत्वदर्शी संत होगा। इस रहस्य को जानने वाले तत्वदर्शी संत वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🔹पूर्ण गुरु से ही मोक्ष संभव है और वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण गुरु हैं। वे गीता के अध्याय 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 और कुरआन शरीफ के सूरह शूरा 42 आयत 2 में वर्णित पूर्ण परमात्मा की भक्ति के सांकेतिक मंत्रों का रहस्य उजागर कर अपने अनुयायियों को प्रदान कर रहे हैं। इन मंत्रों का सुमिरन करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🔹मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्ण गुरु (पूर्ण संत) की तलाश आवश्यक है। कबीर परमात्मा ने पूर्ण गुरु की पहचान बताते हुए ‘‘कबीर सागर’’ के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध’’ के पृष्ठ 1960 पर कहा है:
गुरू के लक्षण चार बखाना। प्रथम वेद शास्त्र का ज्ञाना(ज्ञाता)।
दूसरा हरि भक्ति मन कर्म बानी। तीसरा सम दृष्टि कर जानी।
चौथा बेद विधि सब कर्मा। यह चारि गुरू गुन जानों मर्मा।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिए पूर्ण गुरु का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि पूर्ण गुरु ही सच्चा आध्यात्मिक मार्ग प्रदान करता है। केवल पूर्ण गुरु ही पवित्र शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान समझाता है और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करता है, क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही मानव जीवन का एकमात्र मुख्य उद्देश्य है। इसलिए, पूर्ण संत की खोज करके उसे गुरु धारण करना चाहिए ताकि मनुष्य अपना मोक्ष प्राप्त कर सके।
वर्तमान में पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
🔹वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं जो शास्त्रोक्त भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष संभव है।"
"कबीर साहेब कहते हैं:
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
🔹जो गुरु शास्त्रों के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयायियों अर्थात शिष्यों को करवाता है, वही पूर्ण संत है। मोक्ष केवल पूर्ण गुरु के द्वारा बताई गई शास्त्रानुकूल भक्ति से होता है और इस कलियुग में संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण संत हैं, जो शास्त्रों के अनुसार सतभक्ति बताते हैं।
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स्त्री जातक:-
स्त्रीजातक : भाग-1.
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स्त्री जातक फलित पर हम अब जिन योगों की चर्चा करेंगे वे बहुत सटीक हैं।लेकिन इससे पहले हम यह स्मरण रखें कि नारी स्वभाव से सहजशील है, वह परवश आचरण कर सकती है अत: मात्र एक अशुभयोग के आधार पर किसी महिला के चरित्र पर अन्तिम राय बना लेना ज्योतिष के प्रति अपराध ही होगा। यह एक अति संवेदनशील विषय है। अन्तत: वह हमारी जननी है।
मनुस्मृति ( मूलत: देवीभागवत) अध्याय 3, श्लोक 56 में कहा गया हैं :
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रा फलाः क्रियाः ।।
जहां स्त्रीजाति का आदर होता है वहां देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता वहां संपन्न किये गये सभी कार्य असफल होते हैं।
योग संख्या-01.
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सोमात्मिका: स्त्रिय: सर्वा पुरुषा भाष करात्मका:।
तासां चंद्रबलात् स्त्रीणां नृणां सर्व हि सूर्यत:।। ( वशिष्ठ संहिता )
अर्थात : स्त्रियां चन्द्र के अंशबल से और पुरुष सूर्य के अंशबल से उत्पन्न होते हैं। अतः:स्त्री का शुभाशुभ चंद्र के और पुरुष का शुभाशुभ सूर्य के बल से होना चाहिए।
उपरोक्त कथन का "सुगमज्योतिष" भी समर्थन करता है:-
-पुयोषितां जन्मफलं तु तुल्य किवात्र राशिश्वर लग्नतश्च।।
: स्त्रीजातक विशेष विचार श्लोक-2. ************
भावार्थ: स्त्री तथा पुरुष जातक का फलित समान ही होता है। किन्तु स्त्रियों के जन्मफल के विचार उनके चंद्र को लग्न मानकर करने चाहिए।आधुनिक ज्योतिष में इसे महिला के संबंध में 1-लग्नभाव-लग्नेश और 2-चंद्रभाव और चंद्र से जो बलवान हो उसका चयन करें।
इसी प्रकार पुरुष जातक फलित के लिए 1-लग्नभाव-लग्नेश और 2-सूर्यभाव और सूर्य से जो बलवान हो उसका चयन करें।
ऋषि पराशर के शिष्य लग्नभाव ही को प्रधान मानते हैं। वे स्त्रीजातक और पुरुषजातक की फलित विधि में भेद नही करते।
स्त्रीजातक : भाग-2
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स्त्रीजातक की कुंडली की विशेषता:
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योग संख्या -2: **********
फलदीपिका एवं सुगमज्योतिष : स्त्रीजातक विशेष विचार श्लोक-3 के अनुसार:-
वैधव्यं निधनगृहे पतिसौभाग्यं सुखं च यामित्रे।
सौन्दर्यं लग्नगृहे विचिन्तयेत् पुत्र सम्पदं नवमे।।
भावार्थ: लग्न या चंद्र जो भी भाव बलवान हो उससे आठवे भाव से महिला के पति की आयु, सातवे भाव से पति की प्राप्ति और कामसुख, लग्नभाव से रुप और सौन्दर्य और नवमभाव से सन्तान और सम्पत्ति का सुख के संबंध में जानना चाहिए।
योग संख्या -3: ************
सुगमज्योतिष : स्त्रीजातक विशेष विचार:
श्लोक-3 के अनुसार:
एषु स्थानेषु युवत्या: क्रूरास्तु नेष्ट फलदा।
भुवनेश विवर्जिता: सदा चिन्त्या:।।
अर्थात् : उपरोक्त भावों में( 1, 8, 7 और 9) में नैसर्गिक क्रूरग्रह अनिष्ट फल देते हैं। लेकिन ये क्रूरग्रह यदि अपने इन भावों में ही बैठे हो अर्थात् स्वराशिस्थ हों तो शुभफल ही देंगे, इस तथ्य को स्मरण रखें।
योग संख्या -4: ************
सुगमज्योतिष : स्त्रीजातक विशेष विचार श्लोक-4 के अनुसार:
नारिणां जन्मकाले कुज-शनि तमस: कोणकेन्द्रेषु शस्ता-
श्चन्द्रोsस्ते च प्रशस्तो बुध-सित-गुरुव: सर्व भावेषु शस्ता:।।
अर्थात् : स्त्रीजातक की जन्मलग्न कुंडली में मंगल,शनि और राहु कोण और केन्द्रभावौं में शुभ फलदायक सिद्ध होते हैं।
-चंद्रमा सातवें भाव में शुभ फलदायक होता है।
-बुध, शुक्र और बृहस्पति सभी भावों में शुभ फलदायक माने जाते हैं।
-लग्नेश सातवें भाव में और सप्तमेश लाभ भाव में और लाभेश पांचवें भाव में श्रेष्ठ फल देते हैं।
स्त्री जातक:- भाग-3.
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योग संख्या-5: **************
सारावली के अध्याय 3 श्लोक संख्या 9 के अनुसार:
द्वादसमण्डल भगणं तस्यार्धे सिंहतो रविर्नाथ:।
कर्कटक अत्प्रतिलोमं शशी तथान्ये अपि तत्स्थानात्।
भावार्थ:- अनन्त आकाश को कुल बारह भगों में बांटा गया है।शनि, बृहस्पति, सूर्य, बुध, शुक्र और चंद्र (पृथ्वी) आदि सात ग्रह इन बारह स्थानों ( भगण ) पर क्रमस: भ्रमण करते रहते हैं।इन बारह स्थानों (राशियों) का नाम क्रमस: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, बृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन है।
सिंहराशि से क्रमवार छ राशियों ( सिंह, कन्या, तुला, बृश्चिक, धनु, मकर) का एक अर्धमण्डल (अर्धवृत्त) है। इस मण्डल का स्वामित्व "सूर्य" को दिया गया है।
इसी प्रकार कुंभराशि से क्रमवार छ राशियों जैसे: कुंभ, मीन, मेष, वृष, मिथुन और कर्क तक की राशियों का एक अन्य अर्धमण्डल (अर्धवृत्त)। इस अर्धवृत का स्वामित्व "चंद्र" को दिया गया है।
योग संख्या-6: **************
सारावली-3/10.
भानोर्धे विहगै: शूरास्तेजस्विनश्च साहसिका:।
शशिनो मृदव: सौम्या: सौभाग्य युता प्रजायन्ते।।
भावार्थ:- यदि किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका में सूर्यादि सभी सात ग्रह सूर्य के आधीन छ राशियों के क्षेत्र (सिंह, कन्या, तुला, बृश्चिक, धनु, मकर) में हो तो वह जातक शौर्यवान, तेजस्वी और अदम्य साहसी होता है।इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका में सूर्यादि सभी सात ग्रह चंद्र के आधीन छ राशियों के क्षेत्र (कुंभ, मीन, मेष, वृष, मिथुन और कर्क ) में हो तो वह जातक सरल और शान्त स्वभाव का शत्रुहीन और सुखभोगी होता है।
उपरोक्त योग को यदि हम श्री रघुकुल गुरु श्री वशिष्ठ कृत " वशिष्ठ संहिता " के अनुसार देखते है कि, " स्त्रियां चन्द्र के अंशबल से और पुरुष सूर्य के अंशबल से उत्पन्न होते हैं।"गुरु वशिष्ठ के उपरोक्त आदेश पर हम कह सकते हैं कि, " यदि किसी महिला की जन्मपत्रिका में सूर्यादि सभी सात ग्रह चंद्र के आधीन छ राशियों के क्षेत्र (कुंभ, मीन, मेष, वृष, मिथुन और कर्क ) में हो तो वह जातिका एक सर्वगुण सम्मपन्न राजयोगी होगी होगी।
स्त्री जातक:- भाग-4
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योग संख्या 07. *************
पति कि प्यारी और धन-ऐश्वर्य से पूर्ण:-
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बृध्द यवन जातक: अध्याय 63 श्लोक-11 के अनुसार:
वक्रस्तृतीये रिपुसंस्थितो
षडवर्गशुध्दो रवि जश्च लाभे।
स्थिरे विलग्ने गुरू मा च य���क्ते
राज्ञी भवेत् स्त्री पतिवल्लभा।।
भावार्थ:- जिस महिला की जन्मपत्रिका मैं :
(क)- तीसरे या छठे भाव में मंगल हो या शनि हो या
(ख)- एकादस भाव में मंगल हो या शनि हो
और और ये दोनों ग्रह षड(सप्त) वर्ग मैं शुध्द हो। या
(ग)- स्थिरराशियों ( 2,5,8,11) के लग्नभाव मैं बृहस्पति हो;
तो उपरोक्त योगों में वह महिला अपने पति कि प्यारी और धन-संपत्ति से पूर्ण होती है।
ग्रह कब शुध्द होता है ? *************
-कोई भी ग्रह जब सप्तवर्गकुंडलियों मैं तीन से अधिक वर्गकुंडलियों में अपनी राशि में, अपनी उच्चराशि में या अपने अधिमित्रग्रह की राशियों में आते है तो ग्रह शुध्द (शुभ फलदायक ) माना जाता है।षट्वर्ग : लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश ये छः वर्ग होते है।सप्तवर्ग : उपरोक्त षट्वर्ग मे सप्तांश जोड़ देने पर सप्तवर्ग हो जाते है।विशेष: 1-सूर्य और चंद्र का त्रिशांश वर्ग नहीं होता।
2-होरा वर्ग केवल सूर्य और चंद्र का होता है शेष 05 ग्रहों मंगल से शनि तक का नहीं।
इस प्रकार से हम सभी 07 ग्रहों का अध्ययन केवल 06 वर्गों में ही कर पाते हैं।
योग संख्या 08.
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प्रकृतिस्थ लग्नेन्द्वो: समभे सच्छोल रुपाढ्या।
भूषण गुणैरुपेता शुभवीक्षित योश्च युवति: स्याता।।
सारावली-45/13.
भावार्थ: यदि महिला जातक के दोनों लग्न ( जन्म और चंद्र) समराशि (12,2,4 में विशेषकर) हों तो वह पतिव्रता और सुन्दर चरित्र की होती है।
ऐसे दोनों लग्न यदि किसी नैसर्गिक सौम्यग्रह से देखे जाए तो निश्चित ही वह अलंकारों से युक्त नित्य रमणी बनी रहती है।
स्त्री जातक:- भाग-5
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योग संख्या 09.
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पिता एवं ससुराल पक्ष के लिए धनदात्री महिला :-
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होरारत्न: अध्याय-10 श्लोक-18के अनुसार:-
सौम्य क्षेत्रे उदये चंद्रे सार्धं शुक्रेण सा वधु:।
सुखी पिता पर्तिद्वेषा नित्यम स्थिरचारिणी।।
भावार्थ:- किसी स्त्री जातक का जन्मलग्न बुध की राशियों वाला (3 या 6) हो तथा
इस लग्नभाव में शुक्र और चंद्र की युति हो तो ऐसी महिला अपने पिता के घर में अपने लिए सभी प्रकार के सुख के साधन उत्पन्न कराती है और सुखी जीवन जीती है।अपने विवाह के पश्चात ऐसी महिलाए अपने ससुराल में भी अपना ऐश्वर्य और पूर्ण नियंत्रण बनाए रखती हैं।
संक्षेप में यह कन्या साक्षात लक्ष्मी और दुर्गा का स्वरुप होती है।
योग संख्या 10.
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होरारत्न: अध्याय-10 श्लोक-19 के अनुसार:-
चन्द्रज्ञौ यदि लग्नस्थौ कुलाढ्या ब्रह्मवादिनी।
न शुक्रो यदि लग्नस्थौ सौम्य स्थाने कुलाढ्या।।
भावार्थ:- किसी स्त्री जातक का जन्मलग्न बुध की राशियों वाला (3 या 6) हो, तथा इस लग्नभाव में शुक्र आसीन हो या न भी आसीन हो तो भी ऐसी महिला सभी प्रकार से सुखी जीवन जीती है।[ उपरोक्त योगों के संबंध में कुछ विद्वानों का मत है कि यदि मिथुन लग्न हो तो कर्क और मीन के नवांश में न हो।यदि कन्या लग्न हो तो धनु और मीन के नवांश में न हो।]
योग संख्या-11.
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-10 के अनुसार :-
युगल में विलग्ने कुज-सौम्य-जीव,
शुक्रैर्बलिष्ठे: खलु जातकन्या।
विख्यात-नाम्नी सकलार्थ तत्त्व,
बुध्दिप्रसिध्दा भवतीह साध्वी।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली का लग्नभाव समराशि का हो,मंगल, बृहस्पति,शुक्र और बुध बलवान हों तो वह जातिका सर्वगुणसंपन्न, विख्यात और दूसरों की पथप्रदर्शक (साध्वी ) होती है।विशेष: इस योग में केवल लग्न का ही समराशि में होना अनिवार्य है। ग्रहों का नहीं।
योग संख्या-12.
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-21 के अनुसार :-
पतिवल्लभा सद् ग्रहांशे।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली के लग्नभाव में या सातवे भाव में कोई भी राशि हो लेकिन नवमांशकुंडली के सातवे भाव में शुभग्रहों (बुध, बृहस्पति, सूर्य या शुक्र ) की राशियां आती हो और
2-वह नवांश राशीश लग्नकुंडली में शुभ प्रभाव रखता हो तो वह महिला अपने पति की प्राणवल्लभा होती है।3-साथ ही उस महिला का पति सर्वगुणसंपन्न होता है।
यह महिला के लिए सुखदायक स्थिति होती है।
स्त्री जातक:- भाग-6
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मन-वाणी-कर्म से सत्यनिष्ठ महिला:-
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योग संख्या 13.
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-25 के अनुसार :-
कलत्रराश्य अंशगते महीने मन्देक्षिते दुर्भ गमेति कन्या।
शुक्रांशके सौम्यदृशा समेते कलत्रराशौ पतिवल्लभा स्यात्।।
भावार्थ: - किसी स्त्री जातक के लग्नभाव में बलवान चंद्र और बुध की युति हो तो ऐसी महिला ईश्वर के प्रति अपने मन-वाणी-कर्म से सत्यनिष्ठ होती हैं।
[उपरोक्त योग के संबंध में कुछ विद्वानों का मत भी है कि लग्नभाव मंगल की राशि 1 या 8 का न हो।]
योग संख्या 14.
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सुगमज्योतिष स्त्रीजातक/श्लोक-10 के अनुसार :-
सौम्याभ्याम् प्रवरा शुभत्रय युते जाता भवेद् भूपते:।
सौम्यर्केन पतिप्रिया मदनभे दृष्टे युते जन्मनि।।
भावार्थ:- किसी स्त्री जातक के सातवेभाव में तीन सौम्यग्रह (चंद्र-बुध- बृहस्पति-शुक्र में से) हों तो वह स्त्री रानी के समान जीवन जीती है।
2- यदि सातवें भाव में केवल एक सौम्यवह ग्रह ही हो लेकिन वह सौम्यग्रह द्वारा देखा जा रहा हो तो वह स्त्री अपने पति (जो बड़ा अधिकारी, मंत्री आदि हो) की प्राण-प्यारी होती है।
उपरोक्त कथन की पुष्टि जातक पारिजात अध्याय-16 श्लोक-34 भी करता है:-
राज अमात्य वरांगना यदि शुभे कामं गते कन्यका।
मारस्थे तु शुभत्रये गुणवती राज्ञी भवेद् भूपते।।
योग संख्या 15.
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सामान्यतः लग्नभाव में स्थित चंद्रमा को (स्वराशिस्थ या अपनी उच्चराशि में स्थित के अतिरिक्त ) शुभ नहीं माना जाता किन्तु जातक पारिजात, अध्याय-16 श्लोक-36 का मत है कि:
स्त्रीजन्मलग्ने.....सर्वत्र चंद्रे सति तत्र जाता,
सुखान्विता वीतरतिप्रिया स्यात् ।।
भावार्थ- यदि किसी स्त्रीजातक की जन्मकुंडली के लग्नभाव में बलवान चन्द्र हो तो वह महिला सुन्दर,पति की प्यारी और सुखी रहती है। वह अपने वैवाहिक सुख और जीवन का संयत और संतुलित विधि से एक वीतरागी संन्यासी की तरह से निर्वहन करती है।।
बलवान चन्द्र से सामान्य आशय :-
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जन्मकुंडली में स्थित सूर्य से आगे तीसरे भाव और सूर्य से पीछे के तीसरे भाव में चंद्र को (सभी राशियों में) बलवान माना जाता है केवल अपने नीच नवांश में न हो।
स्त्री जातक:- भाग-7.
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विवाह अवश्य होगा:-
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सुगमज्योतिष स्त्रीजातक/श्लोक-4 के अनुसार :-
योग संख्या:-16.
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सप्तमेशे त्रिकोणस्थे केन्द्रे वा शुभवीक्षिते।
गुरुयुक्तं यदा मित्रे पतिसौख्यं ध्रुवम भवेत्।।
भावार्थ:-
1-यदि किसी स्त्री जातक की जन्मकुंडली केे सातवेभाव का स्वामि किसी केन्द्र अथवा त्रिकोण भाव में हो, या
2-किसी सौम्यग्रह के साथ युति में हो, या
3-बृहस्पति या किसी सौम्यग्रह से दृष्ट हो तो उसे पति का सुख अवश्य मिलता है।
बहुसंबंध या द्विविवाह:-
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जातकतत्तवम्-सप्तमविवेक-78-88. के अनुसार:-
सपापा: लग्नार्थारीशा: सप्तमें बहुदारा।।
भावार्थ:- लग्न (1),अर्थ (2) और अरि (6) भावों के स्वामि यदि लग्न से सातवें भाव में हों तो एक से अधिक विवाह और,
यदि यह युति पापदृष्ट भी हो तो अत्यधिक शारीरिक संबंध हो सकते हैं।
योगसंख्या-17.
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-मदायेशौ बलिनौ कोणगौ बहुदारा:।।
भावार्थ:- यदि मद (7) और आय (11) भावों के स्वामिग्रह किसी त्रिकोण भाव में हों तो एक से अधिक विवाह और,
यदि यह युति पापदृष्ट भी हो तो अत्यधिक शारीरिक संबंध हो सकते हैं।
योगसंख्या-18.
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-दारायपौ युतौ व अन्यो���्येक्षितो बहुदारा।।
भावार्थ:- यदि दार (7) और आय (11) भावों के स्वामिग्रह किसी भी प्रकार से *संबंध बनाए हों।
तो एक से अधिक विवाह और,
यदि यह युति पापदृष्ट भी हो तो अत्यधिक शारीरिक संबंध हो सकते हैं।
*संबंध से आशय: ग्रह आपस में चार प्रकार से संबंध बनाते हैं।
1-युति, 2-एक-दूसरे को देखना, 3- एक-दूसरे की राशि में आना।
चौथे संबंध पर पराशरीय/वरा: मतानुसार कोई ग्रह यदि जिस राशि पर आसीन हो उस राशि के स्वामिग्रह को भी देखता भी हो तो यह भी द्विग्रही संबंध है, किन्तु आधुनिक विद्वानों की मानना है कि यह ग्रह का एकल संबंध है, द्विग्रही नहीं।
"फलदीपिका" एक पांचवां संबंध भी कहती हैं।
"फलदीपिका" किन्हीं दो ग्रहों के परस्पर 1, 4, 7 और 10 वे भाव में होने पर भी द्विग्रही संबंध मानती है।
उपरोक्त तीन प्रकार के द्विग्रही संबंध निर्विवादित है।
स्त्री जातक:- भाग-8.
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योग संख्या-19.
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राजा के समान पति मिले:-
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बृध्दयवन स्त्रीजातक-05.
बुधो विलग्ने यदि तुंगसंस्थौ लाभाश्रितो देवपुरोहितश्च।
नरेन्द्रपत्नी वनितात्रयोगे भवेत् प्रसिध्दा धरणीतलेsस्मिन।।
भावार्थ:-
यदि किसी स्त्रीजातक के लग्न में अपनी उच्चराशि (6) में स्थित बुध हो और आयभाव में बृहस्पति हों तो वह स्त्री अति धनवान और शक्तिशाली पुरुष को पतिरुप में पाती है।
योग संख्या-20
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पति का प्रकृति:-
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सारावली अध्याय-45 के श्लोक संख्या 21 के अनुसार :-
द्यूने वृध्दो ��ूर्ख: सौरगृहे स्वान्नवाशके वाsय।
स्त्रीलोल: क्रोधपर: कुजभेsथ नवांशके भर्ता।।
भावार्थ: यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली के सातवे भाव में कोई भी राशि हो लेकिन,
नवमांशकुंडली के सातवे भाव में शनि की राशि मकर या कुंभ आयी है तो उस महिला का पति उससे आयु में बड़ा और कम बुध्दि वाला हो सकता है।
इसी प्रकार से यदि यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली के सातवे भाव में कोई भी राशि हो लेकिन,
नवमांशकुंडली के सातवे भाव में मंगल की राशि मेष या बृश्चिक आयी है तो उस महिला का पति स्वभाव से अधिक क्रोध करने वाला हो सकता है।
योग संख्या-21
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-25 के अनुसार :-
शून्य अस्ते का पुरुषो बलहीन सौम्य दर्शनविहीने।
चरभे प्रवासशीलो भर्त्ता क्लीबो ज्ञ-मन्दयोश्च भवेत।।
भावार्थ:- यदि महिला जातक की कुंडली में जन्मलग्न या चंद्रलग्न से ( दोनों में जो बलवान हो) सातवे भाव में:
1- कोई ग्रह न हो तो : उसका पति प्रशंसा के योग्य नही होता। अर्थात्त साधारण व्यक्तित्व का होता है।
2-किसी सौम्यग्रह की दृष्टि भी न हो तो: उसका पति शौर्य और पराक्रम से हीन हो सकता है।
3-सातवे भाव में चरराशि और चर ही नवमांश आया हो तो: पति भ्रमणशील रहता है।
4-सातवे भाव में बुध और शनि की युति हो: तो पति नपुंसक हो सकता है।।
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मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
अंत के दिनों का कार्य, सभी को उनके स्वभाव के आधार पर पृथक करना, परमेश्वर की प्रबंधन योजना का समापन करना है, क्योंकि समय निकट है और परमेश्वर का दिन आ गया है। परमेश्वर उन सभी को जिन्होंने उसके राज्य में प्रवेश कर लिया है अर्थात्, वे सभी लोग जो अंत तक उसके वफादार रहे हैं, स्वयं परमेश्वर के युग में ले जाता है। हालाँकि, जब तक स्वयं परमेश्वर का युग नहीं आ जाता है तब तक परमेश्वर जो कार्य करेगा वह मनुष्य के कर्मों को देखना या मनुष्य जीवन के बारे में पूछताछ करना नहीं, बल्कि उनके विद्रोह का न्याय करना है, क्योंकि परमेश्वर उन सभी को शुद्ध करेगा जो उसके सिंहासन के सामने आते हैं। वे सभी जिन्होंने आज के दिन तक परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण किया है वे हैं जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ गए हैं, इसलिए, हर एकेला व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को इसके अंतिम चरण में स्वीकार करता है वह परमेश्वर द्वारा शुद्ध किए जाने की वस्तु है। दूसरे शब्दों में, हर कोई जो परमेश्वर के कार्य को इसके अंतिम चरण में स्वीकार करता है वही परमेश्वर के न्याय की वस्तु है।
पहले कहे गये वचनों में "न्याय" परमेश्वर के घर से आरम्भ होगा उस न्याय को संदर्भित करता है जो परमेश्वर आज उन लोगों पर पारित करता है जो अंत के दिनों में उसके सिंहासन के सामने आते हैं। शायद ऐसे लोग हैं जो ऐसी अलौकिक कल्पनाओं पर विश्वास करते हैं जैसे कि, जब अंतिम दिन आ चुके होंगे, तो परमेश्वर स्वर्ग में ऐसी बड़ी मेज़ स्थापित करेगा, जिस पर सफेद मेजपोश बिछा होगा, और फिर परमेश्वर एक बड़े सिंहासन पर बैठेगा और सभी मनुष्य ज़मीन पर घुटने टेकेंगे। वह प्रत्येक मनुष्य के पापों को प्रकट करेगा और फलस्वरूप निर्धारित करेगा कि उन्हें स्वर्ग में आरोहण करना है या आग और गंधक की झील में डाला जाना है। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य किस प्रकार की कल्पना करता है, परमेश्वर के कार्य का सार नहीं बदला जा सकता है। मनुष्य की कल्पनाएँ ��नुष्य के विचारों की रचना से अधिक कुछ नहीं हैं और मनुष्य की देखी और सुनी हुई बातें जुड़ कर और एकत्रित हो कर उसके दिमाग से निकलती हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि, छवियों की कितनी ही उत्कृष्ट कल्पना की जाए, वे तब भी एक आरेख से अधिक कुछ नहीं हैं और परमेश्वर के कार्य की योजना की विकल्प नहीं हैं। आख़िरकार, मनुष्य शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं, तो वह कैसे परमेश्वर के विचारों की थाह पा सकते हैं? मनुष्य परमेश्वर के न्याय के कार्य को अत्यधिक विलक्षण होने की कल्पना करता है। वह विश्वास करता है कि चूँकि परमेश्वर स्वयं ही न्याय का कार्य कर रहा है, तो यह अवश्य ही बहुत ज़बर्दस्त पैमाने का और नश्वरों के लिए समझ से बाहर होना चाहिए, इसे स्वर्ग भर में गूँजना और पृथ्वी को हिलाना अवश्य चाहिए; अन्यथा यह परमेश्वर द्वारा न्याय का कार्य कैसे हो सकता है? वह विश्वास करता है, कि क्योंकि यह न्याय का कार्य है, तो जब परमेश्वर कार्य करता है तो वह विशेष रूप से प्रभाव डालने वाला और प्रतापी अवश्य होना चाहिए, और जिनका न्याय किया जा रहा है उन्हें अवश्य आँसू बहाते हुए गिड़गिड़ाना और घुटनों पर टिक कर दया की भीख माँगना चाहिए। इस तरह का दृश्य एक भव्य नज़ारा और गहराई तक उत्साहवर्धक अवश्य होना चाहिए। ... हर कोई परमेश्वर के न्याय के कार्य के अलौकिक रूप से अद्भुत होने की कल्पना करता है। हालाँकि, क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच न्याय के कार्य को काफी समय पहले आरम्भ किया और यह सब तब किया जबकि तुम शांतिपूर्ण विस्मृति में आश्रय लिए हुए हो? यह कि, जिस समय तुम सोचते हो कि परमेश्वर के न्याय का कार्य अधिकृत तौर पर आरम्भ हो रहा है, तब तक तो परमेश्वर के लिए स्वर्ग और पृथ्वी को नए सिरे से बनाने का समय हो जाता है। उस समय, शायद तुमने केवल जीवन के अर्थ को ही समझा होगा, परन्तु परमेश्वर के न्याय का निष्ठुर कार्य तुम्हें, तब भी गहरी नींद, नरक में ले जाएगा। केवल तभी तुम अचानक महसूस करोगे कि परमेश्वर के न्याय का कार्य पहले से ही सम्पन्न हो चुका है।
आओ हम अनमोल समय को नष्ट न करें, और इन वीभत्स और घृणित विषयों के बारे में और अधिक बातचीत न करें। इसके बजाय कौन सी चीज न्याय का गठन करती है आओ हम इस बारे में बातचीत करें। जब "न्याय" शब्द की बात आती है, तो तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे जो यहोवा ने सभी स्थानों के लिए कहे थे और ��टकार के उन वचनों के बारे में सोचोगे जो यीशु ने फरीसियों को कहे थे। अपनी समस्त कठोरता के कारण, ये वचन मनुष्य के बारे में परमेश्वर का न्याय नहीं हैं, ये केवल विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात्, विभिन्न हालातों में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन हैं; और ये वचन मसीह द्वारा तब कहे गए वचनों के असमान हैं जब वह अन्त के दिनों में मनुष्यों का न्याय करता है। अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की सच्चाइयों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सच्चाइयों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए अबोधगम्य हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है। यदि तुम इन सच्चाइयों को महत्व का नहीं समझते हो और निरंतर इनसे बचने के बारे में या इनसे अलग किसी नए मार्ग को पाने का विचार करते रहते हो, तो मैं कहूँगा कि तुम एक दारुण पापी हो। यदि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है, फिर भी सत्य को या परमेश्वर की इच्छा को नहीं खोजते हो, न ही परमेश्वर के निकट लाने वाले मार्ग को प्यार करते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो न्याय से बचने की कोशिश कर रहा है, और यह कि तुम एक कठपुतली और ग़द्दार हो जो महान श्वेत सिंहासन से दूर भाग रहा है। परमेश्वर ऐसे किसी भी विद्रोही को नहीं छोड़ेगा जो उसकी आँखों के नीचे से बचकर भागता है। इस प्रकार के लोग और भी अधिक कठोर दण्ड पाएँगे। जो लोग न्याय किए जाने के लिए परमेश्वर के सम्मुख आते हैं, और इसके अलावा शुद्ध किए जा चुके हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर के राज्य में रहेंगे। वास्तव में, यह कुछ ऐसा है जो भविष्य में निहित है।
न्याय का कार्य परमेश्वर का स्वयं का कार्य है, इसलिए प्राकृतिक रूप से इसे परमेश्वर के द्वारा किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना न्याय है, इसलिए यह निर्विवाद है कि तब भी परमेश्वर मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होता है। अर्थात्, अंत के दिनों में, मसीह पृथ्वी के चारों ओर मनुष्यों को सिखाने के लिए और सभी सत्यों को उन्हें ज्ञात करवाने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है। कई लोगों को परमेश्वर के दूसरे देह धारण के बारे में बुरी अनुभूति है, क्योंकि मनुष्य को यह बात स्वीकार करने में कठिनाई होती है कि न्याय का कार्य करने के लिए परमेश्वर देह बन जाएगा। तथापि, मैं तुम्हें अवश्य बता दूँ कि प्रायः परमेश्वर का कार्य मनुष्य की अपेक्षाओं से बहुत अधिक होता है और मनुष्य के मन इसे स्वीकार करने में कठिनाई महसूस करते हैं। क्योंकि मनुष्य पृथ्वी पर मात्र कीड़े-मकौड़े हैं, जबकि परमेश्वर सर्वोच्च एक है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में समाया हुआ है; मनुष्य का मन गंदे पानी से भरे हुए एक गड्डे के सदृश है जो केवल कीड़े-मकोड़ों को ही उत्पन्न करता है, जबकि परमेश्वर के विचार��ं द्वारा निर्देशित कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर की बुद्धि का ही आसवन है। मनुष्य निरंतर परमेश्वर के साथ झगड़ा करता रहता है, जिसके लिए मैं कहता हूँ कि यह स्वतः-प्रमाणित है कि कौन अंत में नुकसान सहेगा। मैं तुम सभी लोगों को प्रोत्साहित करता हूँ कि तुम लोग अपने आप को स्वर्ण की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण मत समझो। यदि अन्य लोग परमेश्वर के न्याय को स्वीकार कर सकते हैं, तो तुम क्यों नहीं स्वीकार कर सकते हो? तुम दूसरों की अपेक्षा कितना ऊँचा खड़े हो? यदि दूसरे लोग सत्य के आगे अपने सिर झुका सकते हैं, तो तुम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते हो? परमेश्वर के कार्य का संवेग अविरल है। वह तुम्हारी "योग्यता" के वास्ते न्याय के कार्य को फिर से नहीं दोहराएगा, और तुम इतने अच्छे अवसर को चूकने पर असीम पछतावे से भर जाओगे। यदि तुम्हें मेरे वचनों पर विश्वास नहीं है, तो बस आकाश में उस महान श्वेत सिंहासन द्वारा तुम पर "न्याय पारित करने" की प्रतीक्षा करो! तुम्हें अवश्य पता होना चाहिए कि सभी इस्राएलियों ने यीशु को ठुकराया और अस्वीकार किया था, मगर यीशु द्वारा मानवजाति के छुटकारे का तथ्य अभी भी ब्रह्माण्ड के सिरे तक फैल रहा है। क्या यह एक वास्तविकता नहीं है जिसे परमेश्वर ने बहुत पहले बनाया? यदि तुम अभी भी यीशु के द्वारा स्वर्ग में उठाए जाने का इंतज़ार कर रहे हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक ज़िद्दी अवांछित व्यक्ति हो।[क]यीशु तुम जैसे किसी भी झूठे विश्वासी को अभिस्वीकृत नहीं करेगा जो सत्य के प्रति निष्ठाहीन है और केवल आशीषों की ही माँग करता है। इसके विपरीत, वह तुम्हें दसों हज़ार वर्षों तक जलने देने के लिए आग की झील में फेंकने में कोई दया नहीं दिखाएगा।
क्या अब तुम समझ गए कि न्याय क्या है और सत्य क्या है? यदि तुम समझ गए हो, तो मैं तुम्हें न्याय किए जाने हेतु आज्ञाकारी ढंग से समर्पित होने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ, अन्यथा तुम्हें कभी भी परमेश्वर द्वारा प्रशंसा किए जाने या परमेश्वर द्वारा उसके राज्य में ले जाए जाने का अवसर नहीं मिलेगा। जो केवल न्याय को स्वीकार करते हैं परन्तु कभी भी शुद्ध नहीं किए जा सकते हैं, अर्थात्, जो न्याय के कार्य के बीच ही भाग जाते हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर द्वारा नफ़रत किए जाएँगे और अस्वीकार कर दिए जाएँगे। फरीसियों के पापों की तुलना में उनके पाप बहुत अधिक हैं, और अधिक दारुण हैं, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया है और वे परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोही हैं। इस प्रकार के लोग जो सेवा करने के योग्य भी नहीं है अधिक कठोर दण्ड प्राप्त करेंगे, ऐसा दण्ड जो इसके अतिरिक्त चिरस्थायी है। परमेश्वर किसी भी गद्दार को नहीं छोड़ेगा जिसने एक बार तो वचनों से वफादारी दिखायी मगर फिर परमेश्वर को धोखा दिया। इस तरह के लोग आत्मा, प्राण और शरीर के दण्ड के माध्यम से प्रतिफल प्राप्त करेंगे। क्या यह हूबहू परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को प्रकट नहीं करता है? क्या मनुष्य का न्याय करने, और उसे प्रकट करने में यह परमेश्वर का उद्देश्य नहीं है? परमेश्वर उन सभी को जो न्याय के समय के दौरान सभी प्रकार के दुष्ट कर्म करते हैं दुष्टात्माओं से पीड़ित स्थान में भेजता है, इन दुष्टात्माओं को इच्छानुसार उनके दैहिक शरीरों को नष्ट करने देता है। उनके शरीरों से लाश की दुर्गंध निकलती है, और ऐसा ही उनके लिए उचित दण्ड है। परमेश्वर उन निष्ठाहीन झूठे विश्वासियों, झूठे प्रेरितों, और झूठे कार्यकर्ताओं के हर एक पाप को उनकी अभिलेख पुस्तकों में लिखता है; फिर, जब सही समय आता है, वह उन्हें इच्छानुसार गंदी आत्माओं के बीच में फेंक देता है, इन अशुद्ध आत्माओं को अपनी इच्छानुसार उनके सम्पूर्ण शरीरों को दूषित करने देता है, ताकि वे कभी भी पुनः-देहधारण नहीं कर सकें और दोबारा कभी भी रोशनी को नहीं देख सकें। वे पाखण्डी जिन्होंने किसी समय सेवकाई की किन्तु अंत तक वफादार बने रहने में असमर्थ हैं परमेश्वर द्वारा दुष्टों में गिने जाते हैं, ताकि वे दुष्टों की सलाह पर चलें, और उनकी उपद्रवी भीड़ का हिस्सा बन जाएँ; अंत में, परमेश्वर उन्हें जड़ से मिटा देगा। परमेश्वर उन लोगों को अलग फेंक देता है और उन पर कोई ध्यान नहीं देता है जो कभी भी मसीह के प्रति वफादार नहीं रहे हैं या जिन्होंने कोई भी प्रयास समर्पित नहीं किया है, और युगों के बदलने पर उन सभी को जड़ से मिटा देगा। वे पृथ्वी पर अब और अस्तित्व में नहीं रहेंगे, परमेश्वर के राज्य में मार्ग तो बिल्कुल नहीं प्राप्त करेंगे। जो कभी भी परमेश्वर के प्रति ईमानदार नहीं रहे हैं किन्तु परमेश्वर के साथ बेपरवाह ढंग से व्यवहार करने के लिए परिस्थितिवश मजबूर किए जाते हैं उनकी गिनती ऐसे लोगों में होती है जो परमेश्वर के लोगों के लिए सेवा करते हैं। ऐसे लोगों की छोटी सी संख्या ही जीवित बचती है, जबकि बहुसंख्य उन लोगों के साथ तबाह हो जाएँगे जो सेवा करने के भी योग्य नहीं हैं। अंत में, परमेश्वर उन सभी को जिनका मन परमेश्वर के समान है, लोगों को और परमेश्वर के पुत्रों को और साथ ही पादरी बनाए जाने के लिए परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत लोगों को, अपने राज्य में ले आएगा। परमेश्वर द्वारा अपने कार्य के माध्यम से प्राप्त किया गया आसव ऐसा ही होता है। जहाँ तक उनका प्रश्न है जो परमेश्वर द्वारा निर्धारित किसी भी श्रेणी में पड़ने में असमर्थ हैं, वे अविश्वासियों में गिने जाएँगे। और तुम लोग निश्चित रूप से कल्पना कर सकते हो कि उनका परिणाम क्या होगा। मैं तुम सभी लोगों से पहले ही वह कह चुका हूँ जो मुझे कहना चाहिए; जिस मार्ग को तुम लोग चुनते हो वह तुम लोगों का लिया हुआ निर्णय होगा। तुम लोगों को जो समझना चाहिए वह है किः परमेश्वर का कार्य ऐसे किसी का भी इंतज़ार नहीं करता है जो उसके साथ तालमेल बनाए नहीं रख सकता है, और परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव किसी भी मनुष्य के प्रति कोई दया नहीं दिखाता है।
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#श्राद्ध_शास्त्रविरुद्ध_साधना पितरों का उद्धार कैसे संभव है? मरने के बाद की जाने वाली सारी क्रियाएं भूत पूजा में आती है जैसे श्राद्ध, पिण्डोदक, अस्थियाँ विसर्जन, बारहवीं, तेरहवीं, छमाही आदि। यह क्रिया भूत पूजा में आती है और भूत पूजने वाले मृत्यु उपरांत भूत प्रेत की योनि प्राप्त करते हैं। श्राद्ध पूजा शास्त्र विरुद्ध साधना है। पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में गीता ज्ञान दाता कहता है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं वे न तो सुख को प्राप्त करते हैं न परमगति को तथा न ही कोई कार्य सिद्ध करने वाली सिद्धि को ही प्राप्त करते हैं अर्थात् जीवन व्यर्थ कर जाते हैं। मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। “पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं।" रूची ऋषि ने जवाब दिया कि पितामहो वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात् यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है। परमेश्वर कबीर जी ने शास्त्र विरुद्ध क्रियाओं के बारे में कहा है कि तत्वज्ञान नेत्रहीन धर्मगुरुओं ने अपने धर्म के शास्त्रों को ठीक से नहीं समझ कर लोक वेद के आधार से मनमानी साधना करा कर हमारे जीवन के साथ खिलवाड़ किया है। गीताजी के अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि जो पितर पूजा (श्राद्ध आदि) करते हैं वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते, वे यमलोक में पितरों को प्राप्त होते हैं। परमात्मा के संविधान की किसी भी धारा का उल्लंघन कर देने पर सजा अवश्य मिलेगी। पवित्र गीता जी व पवित्र चारों वेदों में वर्णित व वर्जित विधि के विपरीत साधना करना व्यर्थ है। गीताजी के अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि जो पितर पूजा (श्राद्ध आदि) करते हैं वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते। "कबीर भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एक्कोतर बंशा" श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी सन्त दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की शरण में रहकर पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की सतभक्ति करने से न केवल स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक लाभ एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं बल्कि भूत प्रेतों एवं पितर दोष आदि से मुक्ति मिलती है। भक्ति क https://www.instagram.com/p/CisWmcRpEsr/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में राजस्थान से जुड़े विभिन्न मुद्दों को रखने के साथ राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं एवं नवाचारों से अवगत कराया। अपने संबोधन में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में राजस्थान से एक अतिरिक्त पूर्णकालिक सदस्य के पद सृजित करने की मांग की।
जल जीवन मिशन के वित्त पोषण में बदलाव करने, पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर 13 जिलों को लाभांवित करने और जनता की कड़ी मेहतन की कमाई को लूटने वाली मल्टीस्टेट क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करने की मांग रखी। साथ ही राज्य में क्रियाशील 56 पॉक्सो कोर्ट के जरिए त्वरित न्याय व्यवस्था, मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना, आई.एम. शक्ति उड़ान योजना सहित अन्य योजनाओं और नवाचारों के बारे में जानकारी दी।
भविष्य की परिस्थितियों एवं राजस्थान के व्यापक हित में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में पूर्णकालिक सदस्य का एक अतिरिक्त पद राजस्थान के लिए सृजित होना चाहिए। सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) को प्रभावी तरीके से लागू करने की बात रखी। राज्य में जनाधार पोर्टल के जरिए 1 जुलाई 2022 तक लगभग 116 करोड़ ट्रांजेक्शन से लगभग 56 हजार करोड़ रूपये (संचयी रूप से) के प्रत्यक्ष लाभ तथा वर्ष 2022 के 5 माह में लगभग 6000 करोड़ रूपये के प्रत्यक्ष नकद लाभ हस्तांतरित किए गए हैं।
बैंक शाखाओं से वंचित 2908 गांवों में बैंक शाखाएं अथवा डाकघर के द्वारा बैंकिंग सुविधाएं प्रदान की जाए। राजस्थान में राज्य निधि से वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर 500 आबादी तक के सभी गांवों को सड़कों से जोड़ने का कार्य शुरू कर 535 गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को वर्ष 2001 की बजाय 2011 की जनगणना के अनुसार लागू करना चाहिए। श्री गहलोत ने बताया कि साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए राजस्थान में तेजी से कार्य किया जा रहा है।
राज्य में फास्ट ट्रेक स्पेशल कोर्ट योजना से पूर्व ही 56 पॉक्सो कोर्ट संचालित थे। पॉक्सो प्रकरणों के त्वरित निस्तारण के लिए 60 स्पेशल कोर्ट क्रियाशील है। अपराध नियंत्रण एवं परिवादी को न्याय दिलाने के लिए पुलिस थानों में स्वागत कक्ष स्थापित किए गए। प्रदेश में एफ.आई.आर. अनिवार्य करने से पंजीकरण की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन न्यायालयों के माध्यम से 156 (3) के तहत दर्ज मामलों की संख्या आधी रह गई। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों की शीघ्र जांच हो रही है।
राजस्थान में भौगोलिक चुनौतियों से जल जीवन मिशन (जेजेएम) में हर घर तक नल से जल पहुंचाने में अधिक समय लग रहा है। मिशन की समय-सीमा 31 मार्च 2026 की जाए और योजनाओं के क्रियान्वयन में वित्त पोषण पैटर्न को 90ः10 किया जाना चाहिए।
पात्र प्रदेशवासियों को खाद्य सुरक्षा का लाभ दिलाने के लिए बात रखी। वर्ष 2021 की अनुमानित जनसंख्या के आधार पर सीलिंग पुनः निर्धारित कर राज्य के लिए लाभार्थियों की वितरण सीमा 4.46 करोड़ से बढ़ाकर 5.24 करोड़ करनी चाहिए।
जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि जून 2022 से बढ़ाकर जून 2027 तक करने के लिए कहा। साथ ही वर्ष 2017-18 से मई 2022 तक राजस्थान को देय जीएसटी मुआवजे के लगभग 5000 करोड़ रूपये की बकाया राशि एकमुश्त जारी करने की मांग रखी।
राज्य में जल संबंधित मुद्दों के समाधान की आवश्यकता बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करें। ईआरसीपी 37,247 करोड़ रूपये की महत्वाकांक्षी परियोजना है, इससे राज्य के 13 जिले लाभांवित होंगे। प्रधानमंत्री ने भी विभिन्न अवसरों पर इस परियोजना के लिए सकारात्मक रूख रखने का वादा किया था।
मल्टीस्टेट क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटियों ने धोखाधड़ी से राज्य के लाखों लोगों की मेहनत की कमाई का गबन किया है। इन पर सख्त कार्रवाई कर लोगों को राहत प्रदान की जाए। निवेशकों के हित में Banning of Unregulated Deposit Schemes Act, 2019 के प्रावधानों को अधिक कठोर करने की मांग की। इन सोसायटियों पर अधिक नियंत्रण करने के लिए एक्ट के तहत राज्य सरकारों को शक्तियां प्रदान की जाएं। राजस्थान की तरह केंद्र को भी मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटियों का पंजीयन निषेध करना चाहिए।
बैठक में राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और नवाचारों के बारे में जानकारी दी। राज्य सरकार प्रदेशवासियों को निशुल्क चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कर राहत प्रदान कर रही है। सरकार द्वारा मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में 10 लाख रूपये तक के कैशलेस ईलाज की सुविधा दी गई और 5लाख रूपये तक का दुर्घटना बीमा भी दिया जा रहा है। सरकार द्वारा प्रदेशवासियों को हार्ट, लीवर, किडनी ट्रांसप्लांट जैसी गंभीर चिकित्सा सुविधाएं भी निःशुल्क दी जा रही है।
राज्य सरकार द्वारा पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को मानवीय दृष्टिकोण से लागू किया गया है। इससे राज्य कार्मिकों को सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक सुरक्षा मिलेगी। राजस्थान की तरह केंद्र और अन्य सरकारों को भी ओपीएस को पुनः शुरू करना चाहिए।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की तर्ज पर राज्य में इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना‘ लागू कर अभिनव पहल की गई है। केंद्र सरकार और अन्य राज्यों को भी ऐसी योजना शुरू करनी चाहिए, ताकि शहरी लोगों को भी रोजगार मिलें। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 1183 महात्मा गांधी राजकीय अंग्रेजी माध्यम विद्यालय खोले गए है। ‘कोई भूखा ना सोए‘ की अवधारणा के साथ 213 नगरीय निकायों में स्थाई इंदिरा रसोई योजना संचालित की जा रही है। वहीं लड़कियों और महिलाओं को ‘आई एम शक्ति उड़ान योजना‘ के तहत निःशुल्क सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री श्री शिंजो आबे और अमरनाथ में बादल फटने से जान गंवाने वाले श्रद्धालुओं को श्रद्धांजलि अर्पित की। बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने की। इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर, दिल्ली के उपराज्यपाल श्री विनय कुमार सक्सेना, चंडीगढ़ के प्रशासक श्री बनवारी लाल पुरोहित, लददाख के उपराज्यपाल श्री राधाकृष्ण ठाकुर, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया सहित विभिन्न राज्यों के मंत्री और उच्चाधिकारी उपस्थित थे।
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