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सूर्य देव को जल चढ़ाने के 10 लाभ एवं सही विधि
वैकुंठ पर सूर्य देव को जल चढ़ाने के लाभ के बारे में जानें। हम आपको सूर्य पूजा के अनुभव को आसान बनाते हैं, जो समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति के साथ-साथ आपको अन्य अनेक लाभ भी प्रदान करता है। सही विधि के साथ सूर्य देव को जल चढ़ाने से आपको उनके आशीर्वाद का अनुभव होगा। वैकुंठ के साथ सूर्य पूजा का आनंद लें और अपने जीवन को सकारात्मकता और प्रकाश से भरें।
Read More: - 8 बजे से पहले सूर्य देव को जल चढ़ाने के 10 लाभ एवं सही विधि
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People expressed their gratitude to Colonel Saheb for the development work worth Rs 1081 crore in Jhotwara
11 माह में राजस्थान में दोगुनी हुई विकास की रफ्तार
झोटवाड़ा में 1081 करोड़ रुपये के विकास कार्यों के लिए जनता ने कर्नल साहब का जताया आभार
झोटवाड़ा विधायक और कैबिनेट मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ जी ने आज जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान क्षेत्र और प्रदेश की जनता से संवाद किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आदरणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और माननीय मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा जी के कुशल नेतृत्व में राजस्थान विकास की नई ऊंचाइयां छू रहा है।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ जी ने कहा कि पिछले 11 महीनों में झोटवाड़ा समेत पूरे प्रदेश में विकास कार्य दोगुनी रफ्तार से हुए हैं। उन्होंने झोटवाड़ा क्षेत्र में 1081 करोड़ रुपये की लागत से पूर्ण किए गए विकास कार्यों की जानकारी दी जिनमें सड़कों का निर्माण, जल आपूर्ति, ड्रेनेज, मेट्रो, रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचे के कार्य शामिल हैं।
कार्यक्रम के दौरान क्षेत्र की जनता ने कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ जी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि झोटवाड़ा में विकास कार्यों की गति ने क्षेत्र को एक नए स्तर पर पहुंचाया है।
इस अवसर पर कर्नल राठौड़ ने जनता को आश्वस्त किया कि आने वाले समय में विकास कार्यों की यह रफ्तार और तेज होगी। उन्होंने क्षेत्र की जनता से अपील की कि वे सरकार की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाएं। साथ ही कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ जी ने कहा, यह सब हमारे प्रेरणास्रोत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के विजन का नतीजा है। वह दिन दूर नहीं जब राजस्थान ��ा विकास मॉडल पूरे देश के लिए प्रेरणा बनेगा।
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Shraddha TV Satsang 23-07-2024 || Episode: 2631 || Sant Rampal Ji Mahara...
*📯🙏बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी क�� जय🙏📯*
22/07/24
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1🎠कांवड़ से पाप ही प्राप्त होते हैं, पुण्य नहीं
सावन के महीने में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिससे कांवड़ यात्रा में आने जाने में पैरों तले सबसे ज्यादा जीव मरते हैं। जिस वजह से पुण्य के स्थान पर अत्यधिक पाप होते हैं।
2🎠 कांवड़ से पाप हैं, पुण्य कोई नहीं
कांवड़ यात्रा, एक शास्त्र विरुद्ध साधना है और गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता। बल्कि इससे पाप ही होता है। सूक्ष्मवेद में बताया गया है:
गरीब, तीर्थ बाट चलै जो प्राणी। सोतो जन्म-जन्म उरझानी।।
3🎠कांवड़ यात्रा से पाप प्राप्त होते हैं, पुण्य नहीं
कांवड़ यात्रा, एक शास्त्र विरुद्ध साधना है और गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता। बल्कि कांवड़ यात्रा के दौरान आने जाने में पैरों तले जीव मरते हैं जिसका पाप लगता है।
4🎠कांवड़ कोरा पाप है
गंगा तो शिव के लोक में बने जटा कुंडली डैम में है। उसे यहाँ से ले जाने की जरूरत नहीं है। रही बात कांवड़ यात्रा की तो सावन में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिस वजह से कांवड़ के लाने में सबसे ज्यादा जीव मरते हैं। जिसका पाप कांवड़ यात्रियों को लगता है।
5🎠कांवड़ से पाप के अतिरिक्त कुछ नहीं
शिव जी के लोक में बने जटा कुंडली डैम में गंगा शुद्ध रूप में है और वहीं से गंगा पृथ्वी पर आई है उस जल को इधर लेने आने की आवश्यकता नहीं है। रही बात कांवड़ की तो आन उपासना से शिव जी प्रसन्न नहीं हो सकते। क्योंकि सावन में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिससे कांवड़ के लाने में सबसे ज्यादा जीव पैरों के नीचे मरते हैं और इसका पाप कांवड़ियों को लगता है।
6🎠कांवड़ में कोरा पाप हैं
सावन के महीने में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जो कांवड़ यात्रा में आने जाने में पैरों तले कुचले जाने में मर जाते हैं। जिससे जीव हत्या का भयंकर पाप लगता है। इस विषय में सूक्ष्मवेद में परमात्मा ने बताया है:
जा तीर्थ पर कर है ��ानं। ता पर जीव मरत है अरबानं।।
गोते-गोते पड़ि है भारं। गंगा जमना गए केदारं।।
7🎠कांवड़ यात्रा से पाप होते हैं या पुण्य?
जानने के लिए पढ़ें पवित्र पुस्तक "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता वेद पुराण
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सूचना: जोधवाड़ा में राजवर्धन सिंह द्वारा सीवरेज और वॉटर पाइपलाइन की घोषणा
परिचय
हम सभी जानते हैं कि जोधवाड़ा नगर राजस्थान के महत्वपूर्ण नगरों में से एक है। इस नगर में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और इसके साथ ही नगर की आधुनिकीकरण की मांग भी बढ़ रही है। इस आधुनिकीकरण के प्रयासों का हिस्सा बनते हुए, राजवर्धन सिंह ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है और सीवरेज और वॉटर पाइपलाइन की घोषणा की है। इस घोषणा के माध्यम से, जोधवाड़ा की आधुनिक और स्वच्छ जल संरचना को मजबूती दी जाएगी।
योजना का उद्देश्य
राजवर्धन सिंह द्वारा की गई इस घोषणा का मुख्य उद्देश्य जोधवाड़ा नगर के विकास को सुदृढ़ करना है। सीवरेज और वॉटर पाइपलाइन की यह योजना नगर को स्वच्छता और सुरक्षित जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए है। इससे न केवल जनसंख्या को स्वच्छ पानी की उपलब्धता मिलेगी, बल्कि साथ ही नगर की हाइजीन और स्वास्थ्य मानकों को भी बढ़ावा मिलेगा।
योजना की विशेषताएँ
सीवरेज लाइन्स
जोधवाड़ा में नए सीवरेज लाइन्स का निर्माण किया जाएगा। ये लाइन्स मौजूदा अवस्था से कई गुना ताकतवर और संवेदनशील होंगे, जिससे कि शहर में स्वच्छता का स्तर ऊंचा होगा। सीवरेज सिस्टम को मॉडर्न तकनीकी परिप्रेक्ष्य में डिजाइन किया गया है ताकि इसकी देखरेख और रख-रखाव आसानी से किया जा सके।
वॉटर पाइपलाइन्स
वॉटर पाइपलाइन्स की योजना द्वारा जोधवाड़ा में जल संयंत्रों से लेकर नगर के विभिन्न इलाकों तक पानी का प्रदान सुनिश्चित किया जाएगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि नगर की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके, राजवर्धन सिंह ने प्रौद्योगिकी और स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखा है।
सामाजिक प्रभाव
इस योजना के माध्यम से, जोधवाड़ा के नागरिकों को सामूहिक रूप से लाभ होगा। सीवरेज और वॉटर पाइपलाइन्स के संचालन से न केवल पर्यावरण को हानि कम होगी, बल्कि स्थानीय समुदाय को भी बड़े पैमाने पर समृद्धि मिलेगी। यह योजना नगर के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और नगर के लोगों को एक बेहतर जीवन गु��वत्ता प्रदान करेगी।
समाप्ति
राजवर्धन सिंह द्वारा इस स्वच्छता और जल संरचना के प्रोजेक्ट की घोषणा नगर के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रकल्प से जोधवाड़ा नगर को विशेष रूप से लाभ होगा और यह उसके समृद्धिकरण के प्रति एक प्रेरणास्पद संकेत है।
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#राम_रंग_होरी_हो
🌈भक्त प्रह्लाद की बार बार जीवन रक्षा करके भगवान ने हम जीवों को यह संदेश दिया कि केवल परम पिता ही हमारा रक्षक है। होलिका को जो वरदान प्राप्त था उसके हिसाब से तो भक्त प्रह्लाद को ही जल जाना था। परंतु भक्त प्रह्लाद की रक्षा भगवान ने की। इस��� बात का प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नंबर 10 सूक्त 161 मंत्र 2 और ऋग्वेद मण्डल नंबर 9 सूक्त 80 मंत्र 2 में है। आइए जानते हैं भगवान की महिमा साधना टीवी चैनल पर शाम 07:30 बजे।
Sant Rampal Ji Maharaj
🌈समर्थ का शरणा गहो, रंग होरी हो।
कदै न हो अकाज, राम रंग होरी हो।।
सम्पूर्ण सांसारिक लाभ व मोक्ष पाने के लिए पूर्ण परमात्मा की शरण में जाना चाहिए। राम नाम की होली खेलनी चाहिए अर्थात सतभक्ति करनी चाहिए, जिससे परमात्मा की प्राप्ति हो सके। वही सतभक्ति मार्ग जानने के लिए पढ़ें पुस्तक "हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण"।
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( #Muktibodh_part177 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part178
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 341-342
◆ ‘‘कबीर परमेश्वर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 958-975 का सरलार्थ :- जिंदा रूप में परमेश्वर कबीर जी ने तर्क-वितर्क करके यथार्थ अध्यात्म ज्ञान समझाया। प्रश्न किया कि जो शालिगराम (मूर्तियाँ) लिए हुए हो, ये किस लोक से आए हैं? अड़सठ तीर्थ के स्नान व भ्रमण से किस लोक में साधक जाएगा? यह तत्काल बता। राम तथा कृष्ण कौन-से लोक में रहते हैं?
जिनको आप शालिगराम कहते हो, ये तो जड़ (निर्जीव) हैं। इनके सामने घंटा बजाने का कोई लाभ नहीं। ये न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं। ये तो पत्थर या अन्य धातु से बने हैं। हे धर्मदास! कहाँ भटक रहे हो? (निजपद निहका��ी) सतलोक को (चीन्ह) पहचान। जिस परमेश्वर की शक्ति से प्रत्येक जीव बोलता है, हे धर्मदास! उसको नहीं जाना। चिदानंद परमेश्वर को पहचान। इन पत्थर व धातु को पटक दे। परमेश्वर कबीर जी जिंदा बाबा ने कहा कि हे धर्मदास! राम-कृष्ण तो करोड़ों जन्म लेकर मर लिए। (धनी) मालिक सदा से एक ही है। वह कभी नहीं मरता। आप विवेक से काम लो। ये आपके पत्थर व पीतल धातु के भगवानों को दरिया में छोड़कर देखो, डूब जाएँगे तो ये आपकी क्या मदद करेंगे? इनको मूर्तिकार ने काट-पीट, कूटकर इनकी छाती पर पैर रखकर (तरासा) काटकर रूप दिया।
इनका रचनहार तो कारीगर है। ये जगत के उत्पत्तिकर्ता व दुःख हरता कैसे हैं? ऐसी पूजा कौन करे? जिस परमेश्वर ने माता के गर्भ में रक्षा की, खान-पान दिया, सुरक्षित जन्म दिया,
उसकी भक्ति कर। यह पत्थर-पीतल तथा तीर्थ के जल की पूजा की (बोदी) कमजोर आशा त्याग दे। जिंदा बाबा ने कहा कि जो पूर्ण परमात्मा सब सृष्टि की रचना करके इससे भिन्न रहता है। अपनी शक्ति से सब ब्रह्माण्डों को चला व संभाल रहा है, उसका विचार कर।
उसका शरीर श्वांस से नहीं चलता। वह सबसे ऊपर के लोक में रहता है। आपकी समझ में नहीं आता है। उसकी शक्ति सर्वव्यापक है। उसका आश्रम (स्थाई स्थान) अधर-अधार यानि सबसे ऊपर है। वह अजर-अमर अविनाशी है।
धर्मदास जी ने कहा :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 :-
बोलत है धर्मदास, सुनौं जिंदे मम बाणी।
कौन तुम्हारी जाति, कहांसैं आये प्राणी।।976।।
ये अचरज की बात, कही तैं मोसैं लीला।
नामा के पीया दूध, पत्थरसैं करी करीला।।977।।
नरसीला नित नाच, पत्थर के आगै रहते।
जाकी हूंडी झालि, सांवल जो शाह कहंते।।978।।
पत्थर सेयै रैंदास, दूध जिन बेगि पिलाया।
सुनौ जिंद जगदीश, कहां तुम ज्ञान सुनाया।।979।।
परमेश्वर प्रवानि, पत्थर नहीं कहिये जिंदा।
नामा की छांनि छिवाई, दइ देखो सर संधा।।980।।
दोहा-सिरगुण सेवा सार है, निरगुण सें नहीं नेह।
सुन जिंदे जगदीश तूं, हम शिक्षा क्या देह।।981।।
‘‘धर्मदास वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 का सरलार्थ :- धर्मदास जी कुछ नाराज होकर परमेश्वर से बोले कि हे (प्राणी) जीव! तेरी जाति क्या है? कहाँ से आया है? आपने मेरे से
बड़ी (अचरज) हैरान कर देने वाली बातें ��ही हैं, सुनो! नामदेव ने पत्थर के देव को दूध पिलाया। नरसी भक्त नित्य पत्थर के सामने नृत्य किया करता यानि पत्थर की मूर्ति की पूजा करता था। उसकी (हूंडी झाली) ड्रॉफ्ट कैश किया। वहाँ पर सांवल शाह कहलाया।
रविदास ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाया। हे जिन्दा! तू यह क्या शिक्षा दे रहा है कि पत्थर की पूजा त्याग दो। ये मूर्ति परमेश्वर समान हैं। इनको पत्थर न कहो। नामदेव की छान
(झोंपड़ी की छत) छवाई (डाली)। देख ले परमेश्वर की लीला। हम तो सर्गुण (पत्थर की मूर्ति जो साक्षात आकार है) की पूजा सही मानते हैं। निर्गुण से हमारा लगाव नहीं है। हे जिन्दा! मुझे क्या शिक्षा दे रहा है?
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 :-
बौलै जिंद कबीर, सुनौ बाणी धर्मदासा।
हम खालिक हम खलक, सकल हमरा प्रकाशा।।982।।
हमहीं से चंद्र अरू सूर, हमही से पानी और पवना।
हमही से धरणि आकाश, रहैं हम चौदह भवना।।983।।
हम रचे सब पाषान नदी यह सब खेल हमारा।
अचराचर चहुं खानि, बनी बिधि अठारा भारा।।984।।
हमही सृष्टि संजोग, बिजोग किया बोह भांती।
हमही आदि अनादि, हमैं अबिगत कै नाती।।985।।
हमही माया मूल, हमही हैं ब्रह्म उजागर।
हमही अधरि बसंत, हमहि हैं सुखकै सागर।।986।।
हमही से ब्रह्मा बिष्णु, ईश है कला हमारी।
हमही पद प्रवानि, कलप कोटि जुग तारी।।987।।
दोहा-हम साहिब सत्यपुरूष हैं, यह सब रूप हमार।
जिंद कहै धर्मदाससैं, शब्द सत्य घनसार।।988।।
‘‘परमेश्वर कबीर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 का सरलार्थ :- हे धर्मदास! आपने जो भक्त बताए हैं, वे पूर्व जन्म के परमेश्वर के परम भक्त थे। सत्य साधना किया करते थे जिससे उनमें भक्ति-शक्ति जमा थी। किसी कारण से वे पार नहीं हो सके। उनको तुरंत मानव जन्म मिला। जहाँ उनका जन्म हुआ, उस क्षेत्रा में जो लोकवेद प्रचलित था, वे उसी के आधार से
साधना करने लगे। जब उनके ऊपर कोई आपत्ति आई तो उनकी इज्जत रखने व भक्ति तथा भगवान में आस्था मानव की बनाए रखने के लिए मैंने वह लीला की थी। मैं समर्थ परमेश्वर हूँ। यह सब सृष्टि मेरी रचना है। हम (खालिक) संसार के मालिक हैं। (खलक) संसार हमसे ही उत्पन्न है। हमने यानि मैंने अपनी शक्ति से चाँद, सूर्य, तारे, सब ग्रह तथा ब्रह्माण्ड उत्पन्न किए हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की आत्मा की उत्पत्ति मैंने की है। हे धर्मदास! मैं सतपुरूष हूँ। यह सब मेरी आत्माएँ हैं जो जीव रूप में रह रहे हैं। यह सत्य वचन है।
धर्मदास जी ने अपनी शंका बताई। कहा कि :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 989-994 :-
बोलत हैं धर्मदास, सुनौं सरबंगी ��ेवा। देखत पिण्ड अरू प्राण, कहौ तुम अलख अभेवा।।989।।
नाद बिंद की देह, शरीर है प्राण तुम्हारै। तुम बोलत बड़ बात, नहीं आवत दिल म्हारै।।990।।
खान पान अस्थान, देह में बोलत दीशं। कैसे अलख स्वरूप, भेद कहियो जगदीशं।।991।।
कैसैं रचे चंद अरू सूर, नदी गिरिबर पाषानां।
कैसैं पानी पवन, धरनि पृथ्वी असमानां।।992।।
कैसैं सष्टि संजोग, बिजोग करैं किस भांती।
कौन कला करतार, कौन बिधि अबिगत नांती।। 993।।
दोहा-कैसैं घटि घटि रम रहे, किस बिधि रहौ नियार।
कैसैं धरती पर चलौ, कैसैं अधर अधार।।994।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। ��ंत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवताओं की पूजा यानि अस्थियाँ उठाकर गंगा में जल प्रवाह करना, तेरहवीं करना, महीना करना, वर्षी करना, श्राद्ध करना, पिंड भरवाना, गरुड़ पुराण का पाठ मृत्यु के पश्चात् करना आदि-आदि यह शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण शुरू हुआ जो वर्तमान सन् 2013 तक चल रहा है। जो सत्ययुग के एक लाख वर्ष बीत जाने के बाद से प्रारंभ हुआ था। जिस शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करने वालों को कोई लाभ नहीं
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#GodMorningThursday
व्रत करने से आध्यात्मिक कुछ भी लाभ नहीं है।
गरीब, प्रथम अन्न जल संयम राखै, योग युक्त सब सतगुरू भाखै।
📲अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel पर विजिट करें।
Watch sadhna TV 7:30pmDaily 📺
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🚩🚩🚩*व्रत पर्व विवरण - गणेश चतुर्थी, शिवा चतुर्थी, मंगलवारी चतुर्थी* 🚩🚩🚩
⛅विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है ।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🌹मंगलवारी चतुर्थी - 19 सितम्बर 2023🌹
🔸 पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर 01:43 तक
Also read :Budh Gochar 2022: बुध का धनु राशि में प्रवेश इन राशियों को देगा अपार धन लाभ
🌹जैसे सूर्य ग्रहण को दस लाख गुना फल होता है, वैसे ही मंगलवारी चतुर्थी को होता है । बहुत मुश्किल से ऐसा योग आता है । मत्स्य पुराण, नारद पुराण आदि शास्त्र में इसकी भारी महिमा है ।
🌹इस दिन अगर कोई जप, दान, ध्यान, संयम करता है तो वह दस लाख गुना प्रभावशाली होता है, ऐसा वेदव्यास जी ने कहा है ।
🔹 कर्जे से छुटकारा के लिए🔹
🔹मंगलवार चतुर्थी को सब काम छोड़ कर जप-ध्यान करना । जप, ध्यान, तप सूर्य-ग्रहण जितना फलदायी है । बिना नमक का भोजन करें, मंगल देव का मानसिक आह्वान करें । चन्द्रमा में गणपति की भावना करके अर्घ्य दें । कितना भी कर्जदार हो... काम धंधे से बेरोजगार हो... रोजी रोटी तो मिलेगी और कर्जे से छुटकारा मिलेगा ।
🌹विघ्न निवारण हेतु🌹
🌹गणेश चतुर्थी के दिन 'ॐ गं गणपतये नमः ।' का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।
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परिवर्तन: प्रकृति का शाश्वत नियम
हम सभी जानते हैं, परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। जिस तरह प्रकृति स्वयं परिवर्तनशील है, अपने आप में सतत बदलाव करती रहती है । यह समय-समय पर अपने रुप में परिवर्तन करती रहती है, जैसे कभी पतजड़ का मौसम तो, कभी ग्रीष्म ऋतु का समय आता है, तो आगे चलकर वर्षा का, इसी प्रकार ठंड का, मौसम के आने-जाने से भी हमें कुछ संदेश प्राप्त होता है, वैसे ही प्रकृति का सौन्दर्य से क्योंकि ग्रीष्म ऋतु आने पर हरे वृक्षों का झुलसना भी हम देखते हैं, यह हरियाली हमें जितना लुभायमान करती है, उतना ही प्राकृतिक आपदाएं हमारी भ्रांतियाँ तोड़ने का संकेत देती हैं । जैसे हम यह बात सभी जानते हैं, किन्तु मानते नहीं कि प्रकृति परिवर्तनशील है । वैसे ही जीवन में सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-परायज, यश-अपयश आदि अनित्य हैं । किन्तु हम मानते नहीं, हम परिस्थतिवश उसमें डूब जाते हैं, कि शेष कुछ दिखाई देता नहीं ।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इसे समझने के लिए हमें समझना होगा कि जब प्रकृति में सब कुछ बदलता रहता है और कोई भी चीज़ स्थिर नहीं रहती, क्योंकि प्रकृति के नियम सार्वभौमिक होते हैं, अर्थात ये सभी जगह एक जैसे लागू होते हैं। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति में परिवर्तन के कारण ही नया जन्म होता है, परिवर्तन के ज़रिए ही पुराना नष्ट होकर फिर से नया बनता है। परिवर्तन से ही नई वस्तुओं एवं परिस्थितियों का उदय होता है, इसलिए परिवर्तन को अवसर के रूप में देखा जा सकता है । अतः परिवर्तन के बारे में सोचने के लिए, जिज्ञासु और उत्सुक बनें । अपने मन से सवाल पूछें, कि 'मैं इसकी जगह क्या ले सकता हूं?' या 'इसे बदलने के लिए मुझे क्या करना होगा?'.बदलाव के लिए तैयार न होने पर बदलाव चिंता की तरह लगता है, आपके भय का कारण भी बनता है । अपने पुरुषार्थ से बदलाव को अवसर में बदलने की कोशिश करें, परिवर्तन के साथ जीना सीखें और इस तथ्य को स्वीकार करें कि यह हमारे नियंत्रण से परे है । आखिर आप अपने आपको प्रकृति से अलग क्यों मानते हैं, आप भी प्रकृति का अभिन्न अंग हैं और तो और प्रकृति का हर अवयव आपके शरीर में निहित है । यह क्यों है ? क्योंकि प्राणी प्रकृति से तारतम्य बैठा सके, किन्तु मनुष्य है कि समझना ही नहीं चाहता, आखिर क्यों ? आइए समझते हैं !
मित्रो ! पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु एवं आकाश जैसे पंचतत्वों से बना शरीर प्रभु की देन है, जन्म, मृत्यु, बाल्यकाल, शैशव काल, युवावस्था, प्रौड एवं फिर वृद्धा अवस्था उसके उपरांत मृत्यु तय है, यह सब आपके शरीर में परिवर्तन को दर्शाते हैं, वैसे ही आप प्रकृति में बदलाव देखते हैं, वैसे ही बदलाव समय के साथ समाज में भी देखते हैं, गहराई से देखेंगे तो समझ में आएगा, कुछ भी नित्य नहीं, सब परिवर्तनशील है,अर्थात परिवर्तनशील हैं तो आप इसे समझने में कैसे चूक जाते हैं, कि आपके जीवन में आने वाले सुख-दुख, यश और अपयश, लाभ-हानि, उन्नति-अवनति सबकुछ तो परिवर्तनशील है, आप उनको नित्य मानकर क्यों भयाक्रांता हुए जाते हैं । इस सबकुछ में नित्य है, आपकी आत्मिक शांति, सहजता, आत्मिक उन्नति, और इन सबके लिए आपको आध्यात्मिक शक्ति,आध्यात्मिक ऊर्जा की महती आवश्यकता होगी, वही आपको बंधनों से मुक्त भी कर सकेगी और आपको दिशा भी दे सकेगी, आपकी हजारों उलझनों को सुलझाना भी सहज कर देगी । इन परिवर्तनों को आप अपने मन, विचारों, स्वभाव, अवस्था, व्यवस्था आदि में सतत देखे गए बदलावों से भी समझ सकते हैं । उसके लिए आपको अपने जीवन को महीनता से देखना होगा, पारदर्शी बनकर देखना होगा, समझना होता कि जैसे आप दूसरे को देखते हैं उसमें जैसे आप गुण-दोष आदि देखते हैं, वैसे ही तटस्थ होकर अपने आप में देखने होंगे । जीवन में समय समय पर आने वाली व्याधियों, सुख-दुख, यश-अपयश, वाद-विवाद आदि को भी समदर्शी होकर देखना होगा । जैसे-जैसे यह सब आपका स्वभाव बनने लगेगा, वैसे-वैसे आपकी जिंदगी आसान होने लगेगी । आप बंधन मुक्त होकर, अपनी स्वाभाविक अवस्था में अपने जीवन के हेतु को समझने लगोगे और उसी अनुरूप व्यवहार स्वतः ही आपका हो जाएगा । इसलिए प्रकृति के परिवर्तन रूपी दर्शन को जल्द से जल्द समझने का प्रयास करें ।
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वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) के लाभ : भारतीय कृषि में भूमिका और रणनीतियाँ
प्रिय पाठकों, बलवान कृषि के ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!
भारत में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। लेकिन खेती में पानी की कमी एक गंभीर समस्या है, जो फसलों की उपज और किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। ऐसे में वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) के उपाय न केवल फसलों के लिए आवश्यक जल संसाधन प्रदान करते हैं, बल्कि यह पर्यावरणीय स्थिरता को भी सुनिश्चित करते हैं।
यहां पढ़ें पूरी स्टोरी : वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) के लाभ : भारतीय कृषि में भूमिका और रणनीतियाँ
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Satsang Ishwar TV | 23-07-2024 | Episode: 2458 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
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1🎠कांवड़ से पाप ही प्राप्त होते हैं, पुण्य नहीं
सावन के महीने में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिससे कांवड़ यात्रा में आने जाने में पैरों तले सबसे ज्यादा जीव मरते हैं। जिस वजह से पुण्य के स्थान पर अत्यधिक पाप होते हैं।
2🎠 कांवड़ से पाप हैं, पुण्य कोई नहीं
कांवड़ यात्रा, एक शास्त्र विरुद्ध साधना है और गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता। बल्कि इससे पाप ही होता है। सूक्ष्मवेद में बताया गया है:
गरीब, तीर्थ बाट चलै जो प्राणी। सोतो जन्म-जन्म उरझानी।।
3🎠कांवड़ यात्रा से पाप प्राप्त होते हैं, पुण्य नहीं
कांवड़ यात्रा, एक शास्त्र विरुद्ध साधना है और गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता। बल्कि कांवड़ यात्रा के दौरान आने जाने में पैरों तले जीव मरते हैं जिसका पाप लगता है।
4🎠कांवड़ कोरा पाप है
गंगा तो शिव के लोक में बने जटा कुंडली डैम में है। उसे यहाँ से ले जाने की जरूरत नहीं है। रही बात कांवड़ यात्रा की तो सावन में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिस वजह से कांवड़ के लाने में सबसे ज्यादा जीव मरते हैं। जिसका पाप कांवड़ यात्रियों को लगता है।
5🎠कांवड़ से पाप के अतिरिक्त कुछ नहीं
शिव जी के लोक में बने जटा कुंडली डैम में गंगा शुद्ध रूप में है और वहीं से गंगा पृथ्वी पर आई है उस जल को इधर लेने आने की आवश्यकता नहीं है। रही बात कांवड़ की तो आन उपासना से शिव जी प्रसन्न नहीं हो सकते। क्योंकि सावन में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिससे कांवड़ के लाने में सबसे ज्यादा जीव पैरों के नीचे मरते हैं और इसका पाप कांवड़ियों को लगता है।
6🎠कांवड़ में कोरा पाप हैं
सावन के महीने में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जो कांवड़ यात्रा में आने जाने में पैरों तले कुचले जाने में मर जाते हैं। जिससे जीव हत्या का भयंकर पाप लगता है। इस विषय में सूक्ष्मवेद में परमात्मा ने बताया है:
जा तीर्थ पर कर है दानं। ता पर जीव मरत है अरबानं।।
गोते-गोते पड़ि है भारं। गंगा जमना गए केदारं।।
7🎠कांवड़ यात्रा से पाप होते हैं या पुण्य?
जानने के लिए पढ़ें पवित्र पुस्तक "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता वेद पुराण
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart125 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart126
"चौदहवां अध्याय"
शास्त्रानुकूल भक्ति से हुए भक्तों को लाभ "शास्त्रविरूद्ध साधना से छुटकारा"
मैं भक्त हेमचंद दास सोलन (हिमाचल प्रदेश) का रहने वाला हूँ। पहले मैं अपने गाँव में महाकाली मंदिर में पुजारी रहा। 25 वर्ष से वहाँ पुजारी का काम करता था। भजन-कीर्तन और जो भी पूजाऐं मंदिर में होती, सभी किया करता था। पितर पूजा, श्राद्ध निकालना, शिव जी को जल चढ़ाना आदि क्रियाएँ करता था। लेकिन फिर भी हम दुःखी रहते थे। मेरी पत्नी को पैरालाईसिस थी। घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी।
सन् 2005-2006 में संत रामपाल जी महाराज के कुछ लेख अखबारों में आते थे। मैं उन्हें समझ नहीं पाया, परंतु मैं इस तरह के धार्मिक कागजों को संभालकर रख लेता था। कुछ समय पश्चात् जैसे ही रद्दी से वो कागज मिले, मैं उसे पढ़ने बैठ गया और पढ़ते-पढ़ते मेरे दिल में ठेस-सी लगी कि ये ज्ञान कहाँ छिपा हुआ था? फिर मैंने उसमें आश्रम के फोन नं. देखे और पुस्तक मंगवाई। उसमें जब मैंने ज्ञान पढ़ा तो मैं हैरान रह गया, पैरों तले की जमीन खिसक गई क्योंकि मंदिर में पुजारी होने के बावजूद मैंने ऐसा नया ज्ञान कभी भी नहीं सुना था।
मैं पहले मानता रहा कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी से ऊपर कोई है ही नहीं। परमात्मा निराकार है। संत रामपाल जी महाराज की पुस्तकों से ज्ञान हुआ कि परमात्मा साकार है, कबीर जी पूर्ण परमात्मा हैं। परमात्मा ने अंदर एक ऐसी प्रेरणा जगाई कि संत रामपाल जी के पास ही वह अमर मंत्र है जिससे हमारा कल्याण होना है। इसी से हमारा जन्म-मरण का भयंकर रोग कटेगा। उनके ज्ञान से प्रभावित होकर मैंने संत रामपाल जी महाराज से दीक्षा ली। मैंने सभी तरह की शास्त्रविरूद्ध पूजाऐं बंद कर दी। पितर पूजा, श्राद्ध निकालना आदि सब त्याग दिया।
गुरू जी का उपदेश लेने के बाद मुझे सबसे बड़ा तो आध्यात्मिक लाभ हुआ। जन्म-मरण से मुक्ति की सच्ची राह मिली। मेरी भक्तमति को पैरालाइसिस की परेशानी थी। हर जगह बड़े-बड़े डॉक्टरों व नीम-हकीमों के चक्कर लगा चुके थे, परंतु परमात्मा के आशीर्वाद मात्र से मेरी भक्तमति ठीक हो गई। परमात्मा की दया से हमारी आर्थिक स्थिति भी ठीक हो गई। फिर मैंने ये ज्ञान प्रचार करना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि ये ज्ञान तो जन-जन तक पहुँचना चाहिए। लेकिन मेरी बातों पर किसी ने गौर नहीं किया। लोगों ने विरोध किया, कहा कि तुम ये कौन-सा अलग ज्ञान ले आए। ऐसी बातें ना किया करो। परंतु मुझे इस ज्ञान से परमात्मा की दया से कोई डगमग नहीं कर पाया। ऐसा सत्यज्ञान व सत्य भक्ति मार्ग पृथ्वी पर और कहीं नहीं है। मेरी सर्व से प्रार्थना है कि आप भी प्रभु के चरणों में आओ। संत रूप में आए परमेश्वर के संदेश वाहक संत रामपाल जी महाराज को पहचानों। मुफ्त नाम उपदेश प्राप्त करके कृप्या अपना कल्याण करवाएँ।
भक्त हेमचंद दास
मोबाईल नं. 9816781489
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#Godisone
जल थल और आकाश हर जगह परमात्मा लाभ दे सकता है।
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