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#जब बैकुंठ एकादशी 2020 है
chaitanyabharatnews · 4 years
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खरमास 2020 : जरूर करें ये विशेष उपाय,दूर होंगे सभी कष्ट
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चैतन्य भारत न्यूज हिन्दू धर्म में खरमास का बड़ा महत्व है। खरमास में कई तरह के शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। इस माह में शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। सूर्यदेव जब धनु राशि में आते हैं तब खरमास लगता है। खरमास का अंत मकर संक्रांति पर होता है। यह मास आध्यात्मिक रूप से विशेष महत्व रखता है। इस मास में जप-तप व दान करने का फल जन्मों जन्मों तक मिलता है। इस माह में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में- खरमास में पड़ने वाली एकादशी का व्रत करना चाहिए। इससे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रती को बैकुंठ धाम मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु जी की विशेष पूजा करनी चाहिए। खरमास में जो व्यक्ति तुलसी की पूजा करता है उसे जीवन में धन-ऐश्वर्य प्राप्त होता है। खरमास में नित्य तुलसी की पूजा करना चाहिए। शाम को तुलसी के पौधे पर घी का दीपक जलाना चाहिए। तुलसी माता की पूजा करते समय ओम नम: भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। खरमास में माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि पाने के लिए शुक्रवार के दिन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसका पाठ करने या सुनने से धन-धान्य की कमी नहीं होती और लक्ष्मी माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। खरमास में नित्य सुबह स्नान-ध्यान करने के पश्चात् पीपल की पूजा करना चाहिए। हर रोज सुबह पीपल के वृक्ष को जल दें और पूजा पाठ करें और सायंकाल के समय दीपक जलाएं। खरमास में यह उपाय आपकी कर्ज की समस्या को दूर कर देगा। खरमास में गोवर्धनधरवन्देगोपालं गोपरूपिणम् गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् मंत्र का जप करना चाहिए। मान्यता है कि पीले वस्त्र धारण करके इस मंत्र का जप करना अधिक लाभदायी माना जाता है। इसके साथ ही दान-पुण्य करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। खरमास में दान व हवन करना अधिक पुण्यदायी माना गया है। ये भी पढ़े... शुरू हुआ खरमास, जानें इस दौरान क्या करें और क्या न करें साल के आखिरी महीने में आने वाले हैं ये प्रमुख तीज त्योहार, यहां देखें पूरी लिस्ट   Read the full article
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spgcimap-blog · 4 years
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पुराण- कथा, धर्म- संहिता, ज्योतिष में  देवशयनी (हरिशयनी) एकादशी (पद्मा एकादशी) तथ्य व महात्म्य ----------------------------------------------------        【इस वर्ष दिनांक 01, जुलाई, 2020 आषाढ़ शुक्ल एकादशी बुधवार को जगन्नाथ- पुरी में जगत प्रसिद्ध "बाहूडा रथयात्रा" तथा समग्र भारत में "देवशयनी (पद्मा) एकादशी" मनाया जाता है। इस देवशयनी/ हरिशयनी- पद्मा एकादशी- तिथि से अगले 148 दिन अर्थात दिनांक 25 नवंबर 2020 बुधवार कार्त्तिक शुक्ल "देवोत्थापनी/ देवोप्रबोधिनी एकादशी" तक श्रीहरि भगवान चतुर्मासी- योगनिद्रा में रहेंगे और स्वाभाविक रूप में इस अवधि के अंदर समस्त प्रकार शुभ कार्यों पर निषेध/ पाबन्दी लागू होंगे।।】    देवशयनी- पद्मा एकादशी    --------------------------------        प्रसंग क्रम में धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रश्न पूछा था - "हे केशव ! आषाढ़ी शुक्ल एकादशी का क्या नाम है ? इस व्रत के करने की विधि क्या है और इस अवसर में किस देवता का पूजन किया जाता है ?"       श्रीकृष्ण कहने लगे कि- "हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था, वही मैं तुमसे सुनाता हूं :--        "ब्रह्मा जी ने नारद जी को कहा था कि-- कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए, समस्त पाप नष्ट करने में सक्षम तथा सब व्रतों में अधिक उत्तम आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही 'देवशयनी (पद्मा) एकादशी व्रत' के नाम में प्रख्यात।।"         फिर धर्मराज के आग्रह से श्रीकृष्ण जी ने ब्रह्म जी तथा नारद जी के विच के इस बारे में कथोपकथन को विस्तार से जब सुनाई तो बातावरण में भगवत- आनन्दकन्द- मकरन्द की स्रोत प्रवाहित हुई थी।। देवशयनी- पद्मा एकादशी व्रत- तत्व--------------------------------------         आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही देवशयनी- पद्मा एकादशी नाम में प्रसिद्ध। इसी दिन से जगत के पालनहार भगव��न विष्णु जी 'पाताल लोक' (भिन्न कथन में 'क्षीर सागर') में योगनिद्रा के लिए चले जाते हैं।इस वर्षा ऋतू के बाद धरती पर किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। माना जाता है कि इस 'हरिशयनी' के दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव- जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए साधु- संत, तपस्वी, मठाधीश इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं।।         देवशयनी एकादशी की साधारण पूजा विधि ये है की--       जो लोग देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल को साफ करने के बाद शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर यथाविधि बैठाएं और उनकी पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें।भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। एकादशी की रात्र में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को भी शयन कराना चाहिए।।      देवशयनी एकादशी कथा      -------------------------------          पुराणों में इस देवशयनी एकादशी के बारे में एकाधिक कथा उपलब्ध। उससे एक रोचक कहानी ये है कि-- शंखचूर (शंखचूड़) नामक असुर से भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध चला। आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूड़ का वध कर दिया और क्षीर सागर में सोने चले गये। शंखचूड़ जैसे दुरात्मा से मुक्ति दिलाने के कारण देवताओं ने भगवान विष्णु की विशेष पूजा- अर्चना की। 'देवशयनी' और 'देवउत्थापनी'-- ये दोनों 'एकादशी' इसकी विशेष स्मारकी मान्यता प्राप्त।।         एक अन्य कथा के अनुसार वामन अवतार में भगवान विष्णु ने दानवेन्द्र राजा बलि से तीन पग में तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इसलिए राजा बलि को पाताललोक वापस जाना पड़ा। लेकिन महादानी बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे। भगवान ने बलि से जब वरदान मांगने के लिए कहा, तो बलि ने भगवान से कहा कि-- "आप सदैव पाताल में ही मेरे पास निवास करें।।"         भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे। इससे बैकुंठवासिनी लक्ष्मी माँ दुःखी हो गयी। भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने के लिए गरीब स्त्री का वेष बनाकर पाताल लोक पहुंची। लक्ष्मी माँ की दीन- हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया।।       बहन बनने के बाद लक्ष्मी जी भाई बलि को अपनी दुःख कहकर जब विष्णु की मांग की, तो महादानी बलि ने भाई की कर्त्तव्य निभाने के लिए वचन दिया। किन्तु विष्णु जी तो बलि के साथ रहने के लिए 'वचन' दे चुके थे, तो लक्ष्मी जी को प्रदत्त बलि के इस 'वचन' कैसे फलित होगा ! देवकूट सफल हुई। और दो तरफ वचन को फलित कर, उस समय से सिर्फ वर्षाऋतु की चतुर्मासी अवधि काल ही (आषाढ़ी देवशयनी एकादशी से कर्त्तिकी देवउत्थापनी एकादशी तक) विष्णु भगवान ने पाताली होकर विष्णु भक्त राजा बलि के साथ रहने लगे।।   (संग्राहक, संकलक, सम्पादक, विनीत परिभाषक : महाप्रभुआश्रित प्रफुल्ल कुमार दाश।।)     जय जगन्नाथ।। ॐ शांतिः।।
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everynewsnow · 4 years
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बैकुंठ एकादसी 2020: आज इस व्रत कथा को पढ़ने या सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है
बैकुंठ एकादसी 2020: आज इस व्रत कथा को पढ़ने या सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है
आज 25 दिसंबर 2020 को बैकुंठ एकादशी है … मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को बैकुंठ एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से भी जानते हैं। वहीं इस साल यानि 2020 में बैकुंठ एकादशी 25 दिसंबर 2020 को यानि आज ही है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि बैकुंठ एकादशी के दिन विधि-विधान से व्रत करने वाले और विधि विधान पूर्वक…
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chaitanyabharatnews · 4 years
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खरमास 2020 : जरूर करें ये विशेष उपाय,दूर होंगे सभी कष्ट
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चैतन्य भारत न्यूज हिन्दू धर्म में खरमास का बड़ा महत्व है। खरमास में कई तरह के शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। इस माह में शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। सूर्यदेव जब धनु राशि में आते हैं तब खरमास लगता है। खरमास का अंत मकर संक्रांति पर होता है। यह मास आध्यात्मिक रूप से विशेष महत्व रखता है। इस मास में जप-तप व दान करने का फल जन्मों जन्मों तक मिलता है। इस माह में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में- खरमास में पड़ने वाली एकादशी का व्रत करना चाहिए। इससे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रती को बैकुंठ धाम मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु जी की विशेष पूजा करनी चाहिए। खरमास में जो व्यक्ति तुलसी की पूजा करता है उसे जीवन में धन-ऐश्वर्य प्राप्त होता है। खरमास में नित्य तुलसी की पूजा करना चाहिए। शाम को तुलसी के पौधे पर घी का दीपक जलाना चाहिए। तुलसी माता की पूजा करते समय ओम नम: भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। खरमास में माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि पाने के लिए शुक्रवार के दिन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसका पाठ करने या सुनने से धन-धान्य की कमी नहीं होती और लक्ष्मी माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। खरमास में नित्य सुबह स्नान-ध्यान करने के पश्चात् पीपल की पूजा करना चाहिए। हर रोज सुबह पीपल के वृक्ष को जल दें और पूजा पाठ करें और सायंकाल के समय दीपक जलाएं। खरमास में यह उपाय आपकी कर्ज की समस्या को दूर कर देगा। खरमास में गोवर्धनधरवन्देगोपालं गोपरूपिणम् गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् मंत्र का जप करना चाहिए। मान्यता है कि पीले वस्त्र धारण करके इस मंत्र का जप करना अधिक लाभदायी माना जाता है। इसके साथ ही दान-पुण्य करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। खरमास में दान व हवन करना अधिक पुण्यदायी माना गया है। ये भी पढ़े... शुरू हुआ खरमास, जानें इस दौरान क्या करें और क्या न करें साल के आखिरी महीने में आने वाले हैं ये प्रमुख तीज त्योहार, यहां देखें पूरी लिस्ट   Read the full article
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