Tumgik
#छोटी बिल्ली
snehagoogle · 3 months
Text
After all life itself
After all life itself is precious Actually, life itself is precious. But the living beings which can execute thoughts are very precious in the entire biological environment. Like animals and humans. Even a small plant can think. Even ants and beetles can dream big. But it is impossible for them to execute their thoughts. Because they cannot easily execute their plans by gaining speed or flying in the air like a mouse, cat or Elisa Carson, leaving the world, even if they can lift three times more weight than their own. How is the thought executed?
Individuals who take those ideas and thoughts, no matter how lofty, and turn them into accomplishments. That balance between thinking about a problem, talking about doing something about it and maybe, just maybe, even building a plan. It takes a whole new level of engagement to turn that plan into thought execution.21 Jan 2018
39 Types of Thought Processes
Indeed
https://www.indeed.com › ... › Career development
10 Mar 2023 — Thought is a group of mental processes that helps people form associations among various elements and understand the workings of the world.
Execution of Thoughts
Speakingtree.in
https://www.speakingtree.in › Blogs
5 May 2013
As a normal human being , we can not have control over our thoughts.Lots of thoughts come to our mind within a day & as per the situation we handle them, but some destrucive or negative thoughts also rule over our mindset which are not in our control.Philosophy says that positive thinking can remove our negative thoughts,but in actual fear of that unwanted thoughts temporary hide till flow of positivity thoughts is there.
After come across the motivational books one can try to come out and try to change his/her schedule of life, again we make planning for change , but our old habbit and way of thinking become obstacle to execute it.
So what to do to change the habbit, how to execute the planning which we make for success..how to face the unwanted changes?
Translate Hindi
वैसे जीवन मात्र ही अनमोल ही है
मगर जो जीव सोच को अंजाम दे सकता है वो जीव ही सारे जैविक माहौल में काफी अनमोल होता है
जैसे पशुएं और इंसान
सोचते तो है एक छोटी सी पौधा भी
यहाँ तक की चींटियों से लेकर बीटल तक भी आसमानी ख्वाब देख सकता है
मगर सोच को अंजाम देना उनके लिए असंभव है
क्योंके गति प्राप्त होने से या हवा में उड़ने से ही चुहें बिल्ली या एलिसा कार्सन जैसे दुनिया को त्याग देकर आसानी से परिकल्पना को अंजाम नहीं दे सकता चाहे अपने वजन से भी तीन गुना ज्यादा भार ही क्यों न उठा सकता हो
सोच को अंजाम कैसे दिया जाता है
ऐसे व्यक्ति जो उन विचारों और सोच को, चाहे वे कितने भी ऊंचे क्यों न हों, लेते हैं और उन्हें उपलब्धियों में बदल देते हैं। किसी समस्या के बारे में सोचने, उसके बारे में कुछ करने के बारे में बात करने और शायद, बस शायद, एक योजना बनाने के बीच का वह संतुलन। उस योजना को विचार निष्पादन में बदलने के लिए जुड़ाव के एक नए स्तर की आवश्यकता होती है।21 जनवरी 2018
विचार प्रक्रियाओं के 39 प्रकार
वास्तव में
https://www.indeed.com › ... › कैरियर विकास
10 मार्च 2023 — विचार मानसिक प्रक्रियाओं का एक समूह है जो लोगों को विभिन्न तत्वों के बीच संबंध बनाने और दुनिया के कामकाज को समझने में मदद करता है।
विचारों का क्रियान्वयन
Speakingtree.in
https://www.speakingtree.in › Blogs
5 मई 2013
एक सामान्य मनुष्य के रूप में, हम अपने विचारों पर नियंत्रण नहीं रख सकते। दिन भर में हमारे मन में बहुत सारे विचार आते हैं और परिस्थिति के अनुसार हम उन्हें संभाल लेते हैं, लेकिन कुछ विनाशकारी या नकारात्मक विचार भी हमारी मानसिकता पर हावी हो जाते हैं जो हमारे नियंत्रण में नहीं होते। दर्शनशास्त्र कहता है कि सकारात्मक सोच हमारे नकारात्मक विचारों को दूर कर सकती है, लेकिन वास्तव में अवांछित विचारों के डर से वे अस्थायी रूप से छिप जाते हैं जब तक कि सकारात्मक विचारों का प्रवाह न हो जाए।
प्रेरक पुस्तकों को पढ़ने के बाद कोई व्यक्ति बाहर आकर अपने जीवन के कार्यक्रम को बदलने की कोशिश कर सकता है, फिर से हम बदलाव की योजना बनाते हैं, लेकिन हमारी पुरानी आदतें और सोचने का तरीका इसे क्रियान्वित करने में बाधा बन जाता है।
तो आदत बदलने के लिए क्या करें, सफलता के लिए जो योजना हम बनाते हैं उसे कैसे क्रियान्वित करें.. अवांछित परिवर्तनों का सामना कैसे करें?
0 notes
knowledgeworld07 · 8 months
Text
छोटे बच्चों की कहानी श्रद्धा और कैटी की दोस्ती Moral Stories In Hindi 
छोटे बच्चों की कहानी श्रद्धा और कैटी छोटे बच्चों की कहानी, छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां, Bacchon Ke Liye Kahaniyan, Moral Stories In Hindi ! एक बार एक छोटे से गाँव में श्रद्धा नाम की एक छोटी लड़की रहती थी। श्रद्धा अपने दयालु हृदय और जानवरों, विशेषकर बिल्लियों के प्रति अपने प्यार के लिए जानी जाती थीं। वह हमेशा अपनी खुद की एक पालतू बिल्ली रखना चाहती थी, लेकिन उसका परिवार एक का खर्च नहीं उठा सकता…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
technicalbtc-blog · 2 years
Link
0 notes
dirtykittenjohn · 4 years
Link
0 notes
nmcktkailashee1975 · 4 years
Text
बदलाव BADLAV(परिवर्तन)
विकिपीडिया में यह मेरा पहला लेख है जिसका शीर्षक मैंने रखा है "बदलाव"
दोस्तों जीवन में बदलाव का डर कैसा और कितना होता है तथा
जो लोग बदलाव को स्वीकार नही करते वह लोग कैसे होते हैं??????
जो लोग बदलाव को खुले दिल से स्वीकार कर लेते हैं वह लोग कैसे होते हैं??????
जीवन मे बदलाव क्यों ज़रूरी ??????
परिवर्तन के सिद्धांत तथा निष्कर्ष.........!!!!!!
अपने इस लेख के माध्यम से हम परिवर्तन/बदलावव के विषय मे यही सब समझने का प्रयास करेंगे, अगर मेरा प्रयास सही लगे तो मुभे अवश्य प्रोत्साहित करियेगा ।
जीवन जब से प्रारंभ होता है या यूं भी कह सकते हैं कि जब से चराचर सृष्टि का प्रारंभ हुआ है तब से लेकर अनंतकाल तक परिवर्तन असम्भावी रहा है, सायद इसलिए ही ऐसा कहा गया है कि "परिवर्तन संसार का नियम है" लेकिन मनुष्य अक्सर बदलाव से भागता रहता है ,बदलाव को लेकर इसके मन मे हमेशा आक्रोश भरा रहता है । जब देखो तब परिवर्तन को लेकर कुछ लोगों को बड़ी शिकायतें रहती हैं और ऐसे लोग बदलाव को कभी नही स्वीकार करते हैं। ऐसे व्यक्ति को हमेशा शिकायत होती है बदलाव को लेकर ,शिकायतों के पुलिंदे लिए घूमता रहता है । कहीं कहेगा ये बदल गया कहीं वो बदल गया ,कभी जमाना बदल गया कभी लोग बदल गए कभी सफर बदल गया तो कभी हमसफ़र बदल गया और बदलाव का यही रोना रोते-रोते मनुष्य जीवन को ही अलविदा कह जाता है । वहीं कुछ लोग होते हैं जो परिवर्तन की हवा को खुले दिल से स्वीकार करते हैं और जीवन के कुछ नए आयाम स्थापित करते हैं । इतिहास हमेशा ऐसे ही लोगों का गुणगान करता है ।
बदलाव से डर
अक्सर देखने मे आता है कि ज्यादातर लोग बदलाव को लेकर डरते रहते हैं लेकिन क्यों ? इसका ज़बाब पाना थोड़ा कठिन था परन्तु मैंने हर कोण से जब समझने का प्रयास किया तो पता चला कि ऐसे लोगों की अपनी ही एक दुनिया होती है जिसमे वे खुस रहते हैं और उनकी वो दुनिया सदा वैसी ही बनी रहे इस बात के लिए हर सम्भव-असम्भव प्रयास करते रहते हैं।
परन्तु जब और करीब से समझने का प्रयास किया तो कुछ और भी गहरे तथ्य निकल कर सामने आए।
बदलाव के डर से जीवन जीने वाले लोग परम्परावादी,रूढ़िवादी,रटी-रटाई जीवन शैली वाले, सदा बने-बनाये रास्तों पर चलने वाले,जीवन मे सफलता की अधिकतम उंचाईयों को पा लेने वाले, सदा सुरक्षित मार्ग अपनाने वाले तथा संकुचित मानसिकता वाले लोग होते हैं क्यों कि इनके अन्दर नई व्यवस्था या बदलाव को स्वीकार करने का साहस नही होता।
ये सदा भागते रहते हैं ,अपने डर को छुपाने के यदा-कदा प्रयास भी करते हैं लेकिन अधिकांश समय में ये लोग सुरक्षात्मक होते हैं । आईये उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं:-
जैसे परंपरावादी लोग हमेशा अपनी जड़वत परम्परा को ही सही ठहराते हैं चाहे वह परम्प���ा कितनी ही सड़ी हुई क्यों न हो और ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्यों कि इसमें उनके अपने निहित स्वार्थ सिद्ध होते हैं।
ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि जीवन मे बस एक ही परम्परा सही है और वो है सदा आंगें बढ़ने की ,बांकी की सभी परम्पराएं तत्कालीन व्यवस्था होती हैं, जो जिस काम के लिए बनाई जाती हैं । उस काम के पूरा होते ही उसका महत्व भी समाप्त हो जाता है । इस बात को एक कहानी के माध्यम से और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ ।
एक परिवार था जो पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण क्रिया कर रहा था । अपने पितरों के लिए उस परिवार ने चावल की खीर बनाई थी जिसे घर की पालतू बिल्ली बार-बार जूंठा कर जा रही थी । इस बात से परेशान होकर घर के कुछ लोगो ने उस बिल्ली को किसी पात्र से ढक दिया और अपने कार्य को पूरा किया । आने वाले समय मे जब उस परिवार के उन सदस्यों ने पितृपक्ष में श्राद्ध का कर्म प्रारम्भ किया जो उस वक्त छोटे थे ।
जैसे ही श्राद्ध कर्म प्रारम्भ किया गया तभी किसी ने कहा दादा आप कुछ भूल रहे हैं .......!
दूसरे ने पूंछा क्या??????
उत्तर आया कि आपको शायद याद नही है कि हमारे कुल की परंपरा है कि जब तक बिल्ली को ढका नही जाएगा तब तक श्राद्ध कर्म पूरा नही होगा ,आख़िरकार कहीं से बिल्ली को खोज़ निकाला गया किन्तु संयोगवश बिल्ली नही बिल्ली का बच्चा मिला । जिसे उस परिवार ने एक टोकने से ढक दिया और अपने पुर्वजों के कल्याण व अपने कुल की सुख-शांति के लिए श्राद्ध कर्म पूरा किया । अब यहाँ दुखद घटना यह हुई कि उस बिल्ली के बच्चे को बाहर निकालना भूल गए और वह मर गया जिसे बाद में फेंका गया ।
वक्त आंगें बढ़ा और अब समय आया तीसरी पीढ़ी का ।जब इन्होंने पितृऋण को मिटाने के लिए श्राध्द कर्म प्रारम्भ किया तो किसी ने कहा कि हमारे कुल की परंपरा है कि जब तक बिल्ली के बच्चे को मार कर ढंका नही जायेगा तब तक श्राध्द कर्म पूरा नही होगा और अंततोगत्वा एक बिल्ली के बच्चे को मार कर पहले ढका गया तब कहीं जाकर इस कुल की परम्परापूरी हुई ।
कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि जो इस तरह के परंपरावादी लोग होते हैं वो बदलाव से बहुत डरते हैं,कारण की उनके अन्दर एक अनचाहा डर समाया रहता है और कितनी ही भ्रांतियां उनके मन-मष्तिष्क में समाई रहती हैं ।वह परिवार चाहता तो एक जीव हत्या करने से वेहतर उस व्यवस्था को समाप्त करने पर जोर देता लेकिन ऐसा करने के लिए बहुत साहस तथा दृढ़ता की आवश्यकता होती है जो परंपरावादी लोगों के पास कदाचित नही होता ।
अब आते हैं रूढ़िवादी लोगों पर । यह लोग भी किसी भी प्रकार के परिवर्तन से भागते फ़िरते हैं ।इनको हमेशा यही लगता है कि जो जैसा चल रहा है ठीक है ,कुछ अलग करने से कहीं कोई समस्या न पैदा हो जाए ।ऐसे लोग हमेशा "हटाओ न" ऐसा बोल कर विषय को टाल देते हैं। कहने के लिए ऐसे लोग स्वयं को बहुत पढ़ा-लिखा बोलते हैं लेकिन किसी भी बदलाव से ऐसे भागते हैं जैसे चोर पुलिस से भागता है।ऐसे लोगों से पास ख़ुद के विवेक का पूरी तरह अभाव होता है ।
उदाहरण के लिए आप कभी कुछ इसीतरह के पढ़े-लिखे लोगों को लेकर कहीं जाना। आप देखोगे की ये लोग आप के पीछे-पीछे चलते रहेंगे और वही करेंगे जैसा आप करोगे । इनका विवेक शून्य की कगार पर होता है या यूं भी कह सकते हैं कि ऐसे लोग विवेकशून्य होते हैं।आपने किसी तरफ देख कर सिर हिलाया तो ये लोग भी अपना सिर हिला देंगे ,सिर्फ इस बात के डर से की कहीं कुछ बुरा न हो जाये ।
ऐसे लोग ऐसा नही है कि कम पढ़े-लिखे होते हैं।यह लोग बड़े-बड़े पदों पर भी बैठे होते हैं लेकिन इनकी सोच ऐसी होती है जिसके बारे में आप जान कर हैरान हो जाएंगे।
जैसे कि फ़िल्म निर्माताओं के मन काजोल को लेकर एक मान्यता है कि अगर फ़िल्म निर्माण के समय काजोल सेट पर अगर गिर जाती है तो फिर फ़िल्म हिट होगी ही होगी ।
इस तरह आमिर ख़ान के लिए कहा जाता है यदि आमिर खान किसी के हाँथ में थूंक दे तो उसकी किस्मत चमक जाती है।
इन सब बातों से आप समझ सकते हैं कि इस तरह के रूढ़िवादी लोग किस हद तक अपनी सोच से जकड़े हुए होते हैं और किसी भी प्रकार के नए परिवर्तन से भागते रहते हैं ।
अब बात करते हैं रटी-रटाई जीवनी शैली जीने वाले लोगों की ।यह लोग तो भगवान की बनाई इस श्रष्टि में अत्यंत ही कठिन प्रजाति के मनुष्य होते हैं ।मैंने ऐसा इसलिए कहा क्यों कि इनको अपनी दैनिक दिनचर्या में किसी भी प्रकार का छोटा सा बदलाव भी अस्वीकार होता है । ऐसे लोगों की ज़िंदगी किसी स्थिर उपकरण से ज्यादा नही कही जा सकती । सुबह उठने से लेकर सोने तक सब कुछ सुनिश्चित होता है और पूरी जिंदगी यह लोग इसी प्रकार बिता देते हैं ।ऐसे लोगों को आप अत्यंत ही जटिल प्राणी की श्रेणी में रख सकते हैं । यह लोग इतने जटिल होते हैं कि यदि कभी गलती से भी इनके जीवन मे कोई परिवर्तन कर दिया जाए तो सारी दुनिया सर पर उठाने में इन्हें न तो तनिक संकोच लगता न लज्जा आती और न ही समय लगता । परिवर्तन से यह लोग स्वयं जितना भागते हैं अपने इस अड़ियल स्वाभव के कारण दूसरों के मन मे भी इतना डर पैदा कर देते हैं कि सामने वाला चाह कर भी कुछ बदलाव नही कर सकता । ऐसे लोग हर बदलाव को बगावत की तरह देखते हैं और उस बदलाव को ठीक उसी तरह कुचल देते हैं जैसे कोई कठोर शासक किसी बगावत को कुचल देता है ।आपके आप-पास भी न जाने कितने ऐसे लोग होंगे जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह जानते होंगे । हो सकता आप मे से कितनो का अनुभव ऐसा भी रहा हो कि कुछ ऐसे ही हालातों के चलते आप अपनी ज़िंदगी मे चाह कर भी कुछ विशेष न कर पाएं हो ।
अब अगला क्रम उन लोगों का है जो सदा बने बनाये रास्ते पर ही चलना पसन्द करते हैं । ऐसे लोगों को ही अनाड़ी या कपूत कहा गया है यथा:-
लीक पे चले अनाड़ी, लीक पे चले कपूत ।
बिना लीक के तीन चले हैं ,शायर, सिंह, सपूत ।।
शेर कभी भी जंगल में बने हुए रास्तों पर नही चलता ,वह अपना रास्ता ख़ुद बनाता है । ठीक इसीप्रकार शायर हमेशा अपनी पंक्तियों की रचना स्वयं करता है तभी लोग इसकी शायरी को पसन्द करते हैं और सपूत। भी वही है जो संसार में कुछ ऐसा कर जाए जो सदियों तक दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हो ,कुछ श्रवण कुमार के जैसा ।
लेकिन यह सब करना बहुत ही जोखिम भरा होता है इसलिए ज्यादातर लोग बने-बनाए रास्ते पर ही चलना पसन्द करते हैं क्यों कि उस रास्ते को बदलना उनके बस ने ही नही होता ।
संसार मे तीन तरह के लोग होते हैं एक वह जो बिना किये ही हार मान लेता है ,दूसरा वह जो थोड़ा करके हार मान लेता है और तीसरा तब तक हार नही मानता जब तक जो ठाना है उसे पूरा नही कर लेता । ऐसे लोग जो बने-बनाये रास्ते पर चलते हैं वो लोग पहले वाली श्रेणी में आते हैं । कुछ लोग दूसरे वाली श्रेणी के होते हैं । इस प्रकार यह लोग जीवन को बस यूं ही जी लेते हैं ।
जीवन मे सफलता की अधिकतम उंचाईयों को पा लेने वाले लोग भी अक्सर बदलाव से डरते रहते हैं ।इनके डरने का सबसे बड़ा कारण इनकी सफलता ही होती है ।ऐसे सफल लोगों को हमेशा ही यह डर सताता रहता है कि कहीं कोई बदलाव उनसे वो सब न छीन ले जो उन्हें मिला हुआ है और इसी बात के चलते यह लोग हर हाल में परिवर्तन को रोके रखना चाहते हैं जहाँ तक भी सम्भव होता है । अब इस परिस्थिति में चाहे जो भी हो लेकिन फिर भी इन्हें बदलाव स्वीकार नही होता है ।कहने को तो ये लोग सफल व्यक्तियों की श्रेणी में सुमार होते हैं लेकिन अन्दर से बहुत डरे हुए होते हैं ।
जैसे कि बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग जो नए उभरते हुए कलाकारों के साथ यह कह कर भेदभाव करते हैं कि वह तो ���ाहरी है । ये बाहरी और भीतरी का मुखौटा उनके अन्दर के डर को छुपाने के लिए बनाया गया है । कहने को ये लोग सफल हो सकते हैं ,सितारो की संज्ञा दी जाती है फिर भी इनकी सोच और जिंदगी में इतना गहरा अँधेरा होता है कि किसी अन्य उभरते हुए कलाकार की एक छोटी सी उपस्थिति इनके पसीने छुड़ा देती है ।इनको हमेशा यही डर सताता रहता है कि कहीं इसकी वजह से हमारा स्टारडम न खत्म हो जाये और इस डर की वजह से ये लोग उस हद तक चले जाते हैं जहाँ पर भले ही कोई उभरता हुआ दूसरा कलाकार अपनी जान ही क्यों न दे दे ।
इसी कड़ी में अगला नम्बर उन लोगों का आता है जो हमेशा ही सुरक्षित मार्ग अपना कर चलना पसंद करते हैं ।ऐसे लोग हर तरह के अनुसंधान(एक्सपेरिमेंट)से दूर रहते हैं और ऐसे लोगों का सदा यही प्रयास रहता है कि ये लोग वही काम करें जिसमे सफलता के साथ सुरक्षा निश्चित हो । अगर इन्हें कोई कपड़ा भी खरीदना होता है तो पहले उस व्यक्ति से राय लेते हैं जिसने उस कपड़े का उपयोग पहले कर लिया हो । उसी श्रेणी में वो भी आते हैं जो देखा-देखी काम करते हैं । आप ने कोई दुकान खोली, संयोग से दुकान चल पड़ी तो पीछे से कई लोग आकर ठीक उसी प्रकार दुकान खोलकर बैठ जायेंगे जैसे कि आपने खोली है । ये सब वही लोग हैं जो सुरक्षित मार्ग अपना कर चलते हैं । पहले-पहल तो इनकी औकात इतनी नही थी कि स्वयं साहस करके दुकान खोल कर चलायें लेकिन जब आपके दुकान खोल लेने पर यह सुनिश्चित हो गया कि इस प्रकार की दुकान चल रही है और अब इसे खोलने में कोई रिस्क नही है तो फ़टाफ़ट उन्होंने भी दुकान खोल ली । ऐसे सुरक्षित मार्ग अपना कर चलने वाले लोगों की संख्या कम नही है । अगर नज़र घुमा कर देखा जाए तो ऐसे लोगों की भरमार मिल जाएगी । परिवर्तन ऐसे लोगों के लिए किसी अभिशाप से कम नही होता ।
अब बात करतें हैं संकुचित मानसिकता वाले लोगों की, क्यों कि इन लोगों के अन्दर परिवर्तन का डर इस क़दर होता है कि ये लोग दूसरे की जान तक लेने में संकोच नही करते । संसार मे जितने भी आतंकवादी संगठन है अथवा आतंक का समर्थन करने वाले लोग हैं वो सब इसी श्रेणी में आते हैं ।कारण की इन्हें बदलाव बिल्कुल भी स्वीकार नही और उसे कुचलने के लिए ये लोग हथियार का सहारा लेते हैं । जो इनके जैसे जिंदगी नही जीता उसे ये लोग काफ़िर कह कर गोलियों से भून कर मार देना पसन्द करते हैं ।जो लोग ऑनर किलिंग करते हैं वो लोग भी कुछ इसी प्रकार की मानसिकता वाले लोग होते हैं । इन्हें भी बदलाव स्वीकार नही होता भले ही इसके लिए इन्हें अपने ही बच्चों की हत्या क्यों न करनी पड़े । अगर सरल भाषा में कहें तो यह लोग झूठ तथा दिखावे की दुनियां में जीते हैं और यदि कोई उनकी इस दुनिया को बदलने की कोशिश भी करता है तो यह लोग उसे मौत के घाट उतार देते हैं । ऐसे लोगों के लिए परिवर्तन या बदलाव वो तवाही है जिससे सब कुछ नष्ट हो जाता है ।
यहाँ तक मैने उन लोगों पर चर्चा की जो बदलाव से भागते हैं या यूं कहें कि जिन्हें परिवर्तन स्वीकार नही ।अब आगे मैं उन लोगों पर बात करूँगा जो खुले दिल से परिवर्तन या बदलाव को स्वीकार करते हैं ।
बदलाव का सच
विषय जितना ज्वलंत तथा ��ोमांचक होता है विश्लेषक को भी उतना ही मज़ा आता है ।बदलाव के सच मे हम बात करेंगें देश मे उस राजनीतिक बदलाव की जिसे जनता ने तो स्वीकार किया लेकिन पूर्ववर्ती सत्ताधारी पार्टियों ने नही । सायद यह उनके लिए भी कल्पनातीत ही रहा होगा कि कभी देश की लोकसभा में मात्र 2 दो सीटों पर सिमट कर रहने वाली पार्टी अचानक 200का आंकड़ा भी पार कर जाती है ।
"मेरा देश बदल रहा है" का नारा देश को मिला इसी परिवर्तन की आंधी के चलते। जिस आंधी ने न जाने कितनों को अंधा बना दिया और जिन्हें चकाचौंध दिखाई पड़ी उन्होंने काला चश्मा लगा लिया । यह परिवर्तन का समय था जिसे पूरी दुनिया ने देखा कि किस प्रकार कभी रेलवे स्टेशन पर चाय वेचने वाला एक अति साधारण सा व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बन जाता है । समूची दिग्गज मण्डली औंधे मुंह गिर चुकी थी क्यों कि देश की जनता ने उस आंधी को पहचान लिया था जो बदलाव के लिए चल पड़ी थी ।
संसार में समय समय पर अनेक प्रकार से बदलाव होते रहते हैं जिनमे आर्थिक परिवर्तन,प्राकृतिक परिवर्तन, धार्मिक परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन व राजनैतिक परिवर्तन सामिल है । इनमे से कई बदलाव क्रांतिकारी साबित हो जाते है इतिहास उन्हें ही क्रांतिकारी बदलाव/क्रांतिकारी आंदोलन/क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में याद रखता है।
बदलाव के सच मे यह जानना और समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बदलाव सारभूत है ,सारभौमिक है और सर्वकालिक है ।अक्सर हम दूसरों के बारे में कहते रहते हैं कि वो ऐसा है वो वैसा है उसे तो बदलाव स्वीकार ही नही ।मैने भी बदलाव को न स्वीकार करने बाले लोगों के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा लेकिन यह कहना नही भूल सकता कि हर वो व्यक्ति जो बदलाव की बात सिर्फ दूसरों के लिए करता है वो स्वयं से धोखा करता है ।
जब आप स्वयं बदलाव को नही स्वीकार कर पाते तो दूसरों से अपेक्षा कैसे कर सकते हैं ।बदलाव को स्वीकार करने के लिए बदलाव के सच को समझना जरूरी होता है ,जिसके लिए हम कभी कोशिश भी नही करते ।
बदलाव का सच हमसे सुरु होकर हम ही में खत्म हो जाता है ।
उदाहरण में समझिये:-
सुशांत सिंह नामक एक व्यक्ति जो कुछ नया करना चाह रहा है लेकिन बदलाव को न स्वीकार करने वाले लोग उसे रोकते हैं और फिर वह व्यक्ति या तो हार मान कर चुप हो जाता है या फिर आत्म हत्या कर लेता है । अब आप विचार करिये की क्या इस सुशांत सिंह नामक व्यक्ति ने कभी बदलाव के सच को समझने का प्रयास किया है ?? जी बिल्कुल भी नही । कारण की अगर उसने बदलाव के सच को समझने की कोशिश की होती तो उसे पता होता कि जब वह कुछ नया, कुछ विशेष, कुछ अद्भुत, कुछ अधिक करने वाला है, जिसके परिणाम स्वरूप उन लोगों का चिंतित होने स्वाभाविक होगा जो पहले से ही प्रतिष्ठित होकर बैठे हुए हैं और फिर वो लोग तुम्हारी प्रतिष्ठा को यूँ सहज में ही तो स्वीकार नही होने देंगे तो क्या इस बदलाव के सच को सुशांत सिंह नामक इस व्यक्ति ने महसूस किया ??? और यदि नही किया तो क्यों नही किया ???? सुशांत सिंह नामक इस व्यक्ति को पता होना चाहिए कि जब तुम ऊपर की ओर उठोगे तो ऊपर बैठे लोग तुम्हे नीचे गिराने का भरसक प्रयास करेंगे और ये वही लोग होंगे जो अभी तुम्हे बहुत ज्यादा पसन्द करते हैं क्यों कि तुम अभी ज़मीन पर हो ,लेकिन जैसे ही तुम ऊपर उठने लगोगे अचानक इन सभी के अन्दर एक बदलाव आएगा तुमसे बदला लेने का तो क्या तुम इस बदलाव को स्वीकार करते हो अगर नही तो फिर भागने या मरने के लिए तैयार हो जाओ और यदि स्वीकार करते हो तो शान्त हो कर बदलाव के सच को करीब से महसूस करो । जब तुम बदलाव के सच को समझ लोगे तब तुम उसे महसूस कर पाओगे और जैसे ही तुमने बदलाव के सच को महसूस करना प्रारम्भ कर दिया इसका तात्पर्य है कि तुमने बदलाव को स्वीकार कर लिया ।
बदलाव को स्वीकार करते ही तुम सभी समस्याओं से बाहर आ जाओगे ,तुम्हारे अन्दर किसी प्रकार का कोई तनाव नही होगा । तुम्हे सब कुछ सहज यानी कि नॉर्मल ही लगेगा । जब तुम ऐसा कर पाओगे तो जो लोग तुम्हें खदेड़ना चाह रहे हैं वो स्वयं भाग खड़े होंगे ।इस प्रकार तुम जिन्दगी की जंग फ़तह कर पाओगे ।
बदलाव के सच मे हमेशा याद रखो की जब आप बदल रहे होंगे अर्थात आंगें बढ़ रहे होंगें तब आपका यह परिवर्तन दूसरों को स्वीकार नही होगा यह आपको स्वीकार करना होगा और बदलाव के सच की यही स्वीकारोक्ति आपको सफलता पूर्वक मंज़िल तक पहुँचाएगी । कोई व्यक्ति या समूह या सम्प्रदाय या वर्गविशेष आपको स्वीकार नही कर रहा है तो कृपया स्वयं को उसके स्वीकार कराने के पीछे मत भागिए उल्टे ख़ुद में यह स्वीकार कर लीजिए कि आप उन्हें स्वीकार नही हैं और जब नही हैं तो नही हैं फिर उसमें चिंता किस बात की ।जरूरी तो नही की आपको हर तरफ स्वीकारा ही जाए लेकिन आप को यह जरूर स्वीकार करना होगा और उन लोगों के पीछे भागना बन्द करना होगा जो आपको स्वीकार नही कर रहें । कारण की यदि समय रहते आपने इस बदलाव को स्वीकार नही किया तो जिन्दगी की जंग हारने में वक़्त नही लगेगा । वहीँ अगर आपने इस बदलाव को कि आप जिन्हें कल स्वीकार थे आज उन्हें स्वीकार नही है को स्वीकार कर लिया तो फिर ज़िन्दगी की जंग को चुटकियों में फ़तह कर लेंगे ।
बदलाव/परिवर्तन क्यों ज़रूरी???
जीवन के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में जीवन की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। जीवन गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो हम चाहें या न चाहें फिर भी परिवर्तन को स्वीकार करने के अतिरिक्त हमारे पास कोई विकल्प भी तो नही है ।येन केन प्रकारेण बदलाव को स्वीकार करना ही होता है । बस अन्तर इतना है कि कोई सहज रूप में ही स्वीकार कर लेता है तो कोई विरोध करते-करते स्वीकार कर लेता है लेकिन परिणामतः स्वीकार करना ही पड़ता है । यदि पूरी ईमानदारी से बात की जाए तो बदलाव को स्वीकार कर लेने में ही भलाई होती है क्यों कि "परिवर्तन ही जीवन मे ऊर्जा का मुख्य स्रोत है"। कल्पना कीजिए किन्ही कारणों से प्रकृति में कुछ घण्टो के लिए बदलाव रुक जाए तो क्या होगा ?? कुछ समय के लिए जीवन मे ठहराव आ जाये तो क्या होगा?? परिवर्तन है तो गति है और गति है तो सृष्टि है और सृष्टि है तो जीवन है ,इसलिए जीवन को बनाए रखने के लिए बदलाव ज़रूरी है । यह एक सतत विकास की प्रक्रिया है ,इसीकारण परिवर्तन ज़रूरी है ।
आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा जीवन के विभिन्न पहलुओं ने अपने तरीके से इन विकासों को समाहित किया है तथा उनका उत्तर दिया है, जो कि जीवन के परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द। कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। जीवन मे कुछ परिवर्तन स्पष्ट हैं एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं। जब कि कई बार इन परिवर्तनों को हमारी इच्छा के विरुद्ध हम पर थोपा गया है। कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं। व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव मस्तिष्क इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परन्तु शनैः उन्हें स्वीकार कर लेता है।
निष्कर्ष......!!!!!!
अन्त में बस इतना ही कि परिवर्तन का एक ही अटल सिद्धांत है गतिशीलता ।
जब हम गतिशीलता पर पहुंचे तो पता चला कि अब तक हमने जितनी भी बातें की वह सब भी गतिशीलता का ही एक हिस्सा मात्र हैं । सरल शब्दो मे कहा जाए तो गतिशीलता का ही दूसरा नाम परिवर्तन या बदलाव है ।
यदि इसी बात को दूसरे तरीक़े से कहा जाए तो संसार मे परिवर्तन या बदलाव जैसा तो कुछ है ही नही बस हमने एक भ्रम पाल के रखा हुआ और लगातार अपने ही बुने मकड़जाल से बाहर आने की कोशिश करते हुए हमें लगता है कि बदलाव या परिवर्तन हो रहा है जिसे कुछ लोग खुले दिल से स्वीकार कर रहे हैं तो कुछ लोग विरोध करते हुए शनैःशनैः स्वीकार कर रहे हैं।
अगर इस ब्राम्हण की ओर ध्यान से देखा जाए तो यहाँ सब कुछ क्रमबद्ध दिखाई पड़ता है और जो क्रम में चल रहा है उसे आप गतिशील तो कह सकते हैं बदला हुआ नही । बदला हुआ तो उसे कहा जायेगा जो क्रम से अलग हो अर्थात बिना क्रम के ,जो कि इस संसार मे कुछ भी नही ।
चाहे ऋतुएँ हो सब क्रमशः चलती रहती सतत व अवाध रूप से ,दिन-रात का क्रम भी क्रमशः ही है, जनवरी से लेकर दिसम्बर तक यहां भी सब कुछ क्रमशः ही है ,जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन मे भी सब कुछ क्रमश ही है ,गणितीय गणना भी क्रमशः ही है ,चारों प्रकार की सृष्टि श्वेदज/उद्भिज/अंडज/जरायुज ये भी क्रमबार ही है । ऐसा कुछ भी तो नही जो क्रमशः न हो, फिर किसे बदला हुआ कहा जाए ??? किसे कहा जाए कि इसमें परिवर्तन हो गया ।अगर संसार मे किसी चीज़ का निर्माण होता है ,चाहे ईश्वर के द्वारा या मनुष्य के द्वारा एक तय समय सीमा के बाद उसे भी नष्ट होना ही पड़ता है इसलिए इस प्रक्रिया को भी क्रमशः ही कहा जायेगा । इसे बदलाव या परिवर्तन नही कहा जा सकता ।
बदला हुआ या परिवर्तित तो वो कहा जायेगा जिसने अपने क्रम को तोड़ दिया हो जैसे कि अगर सर्दी के बाद गर्मी न आकर वर्षा ऋतु आ जाये तब अवश्य कहा जा सकता है कि प्रकृति में परिवर्तन हो गया है । प्रकृति बदल गई है । इसीप्रकार सूर्य कभी दिशा बदल दे अर्थात पूर्व की जगह किसी अन्य दिशा से उदित होने लगे तब कहा जाए कि सूर्य की दिशा में परिवर्तन हो गया है । किन्तु आज तक तो सम्पूर्ण जीवन-जगत में ऐसा कुछ नही दृष्टिगत हुआ जो क्रमशः न हो । इसलिए सम्पूर्ण ब्राम्हण को गतिशील कहना अधिक उचित होगा वरन बदलाब या परिवर्तन के ।
लेख के अंत निवेदन के साथ की यह सम्पूर्ण विचार मेरे अपने व्यक्तिगत हैं ज़रूरी नही की आप मेरे विचारों से सहमत हों । फिर भी लेख के प्रति अपने उद्गार अवश्य रखियेगा ।
आप सभी का शुभेच्छु
स्वामी प्रपन्नाचार्य
10 notes · View notes
swamiji1975 · 4 years
Text
बदलाव BADLAV(परिवर्तन)
विकिपीडिया में यह मेरा पहला लेख है जिसका शीर्षक मैंने रखा है "बदलाव"
दोस्तों जीवन में बदलाव का डर कैसा और कितना होता ���ै तथा
जो लोग बदलाव को स्वीकार नही करते वह लोग कैसे होते हैं??????
जो लोग बदलाव को खुले दिल से स्वीकार कर लेते हैं वह लोग कैसे होते हैं??????
जीवन मे बदलाव क्यों ज़रूरी ??????
परिवर्तन के सिद्धांत तथा निष्कर्ष.........!!!!!!
अपने इस लेख के माध्यम से हम परिवर्तन/बदलावव के विषय मे यही सब समझने का प्रयास करेंगे, अगर मेरा प्रयास सही लगे तो मुभे अवश्य प्रोत्साहित करियेगा ।
जीवन जब से प्रारंभ होता है या यूं भी कह सकते हैं कि जब से चराचर सृष्टि का प्रारंभ हुआ है तब से लेकर अनंतकाल तक परिवर्तन असम्भावी रहा है, सायद इसलिए ही ऐसा कहा गया है कि "परिवर्तन संसार का नियम है" लेकिन मनुष्य अक्सर बदलाव से भागता रहता है ,बदलाव को लेकर इसके मन मे हमेशा आक्रोश भरा रहता है । जब देखो तब परिवर्तन को लेकर कुछ लोगों को बड़ी शिकायतें रहती हैं और ऐसे लोग बदलाव को कभी नही स्वीकार करते हैं। ऐसे व्यक्ति को हमेशा शिकायत होती है बदलाव को लेकर ,शिकायतों के पुलिंदे लिए घूमता रहता है । कहीं कहेगा ये बदल गया कहीं वो बदल गया ,कभी जमाना बदल गया कभी लोग बदल गए कभी सफर बदल गया तो कभी हमसफ़र बदल गया और बदलाव का यही रोना रोते-रोते मनुष्य जीवन को ही अलविदा कह जाता है । वहीं कुछ लोग होते हैं जो परिवर्तन की हवा को खुले दिल से स्वीकार करते हैं और जीवन के कुछ नए आयाम स्थापित करते हैं । इतिहास हमेशा ऐसे ही लोगों का गुणगान करता है ।
बदलाव से डर
अक्सर देखने मे आता है कि ज्यादातर लोग बदलाव को लेकर डरते रहते हैं लेकिन क्यों ? इसका ज़बाब पाना थोड़ा कठिन था परन्तु मैंने हर कोण से जब समझने का प्रयास किया तो पता चला कि ऐसे लोगों की अपनी ही एक दुनिया होती है जिसमे वे खुस रहते हैं और उनकी वो दुनिया सदा वैसी ही बनी रहे इस बात के लिए हर सम्भव-असम्भव प्रयास करते रहते हैं।
परन्तु जब और करीब से समझने का प्रयास किया तो कुछ और भी गहरे तथ्य निकल कर सामने आए।
बदलाव के डर से जीवन जीने वाले लोग परम्परावादी,रूढ़िवादी,रटी-रटाई जीवन शैली वाले, सदा बने-बनाये रास्तों पर चलने वाले,जीवन मे सफलता की अधिकतम उंचाईयों को पा लेने वाले, सदा सुरक्षित मार्ग अपनाने वाले तथा संकुचित मानसिकता वाले लोग होते हैं क्यों कि इनके अन्दर नई व्यवस्था या बदलाव को स्वीकार करने का साहस नही होता।
ये सदा भागते रहते हैं ,अपने डर को छुपाने के यदा-कदा प्रयास भी करते हैं लेकिन अधिकांश समय में ये लोग सुरक्षात्मक होते हैं । आईये उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं:-
जैसे परंपरावादी लोग हमेशा अपनी जड़वत परम्परा को ही सही ठहराते हैं चाहे वह परम्परा कितनी ही सड़ी हुई क्यों न हो और ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्यों कि इसमें उनके अपने निहित स्वार्थ सिद्ध होते हैं।
ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि जीवन मे बस एक ही परम्परा सही है और वो है सदा आंगें बढ़ने की ,बांकी की सभी परम्पराएं तत्कालीन व्यवस्था होती हैं, जो जिस काम के लिए बनाई जाती हैं । उस काम के पूरा होते ही उसका महत्व भी समाप्त हो जाता है । इस बात को एक कहानी के माध्यम से और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ ।
एक परिवार था जो पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण क्रिया कर रहा था । अपने पितरों के लिए उस परिवार ने चावल की खीर बनाई थी जिसे घर की पालतू बिल्ली बार-बार जूंठा कर जा रही थी । इस बात से परेशान होकर घर के कुछ लोगो ने उस बिल्ली को किसी पात्र से ढक दिया और अपने कार्य को पूरा किया । आने वाले समय मे जब उस परिवार के उन सदस्यों ने पितृपक्ष में श्राद्ध का कर्म प्रारम्भ किया जो उस वक्त छोटे थे ।
जैसे ही श्राद्ध कर्म प्रारम्भ किया गया तभी किसी ने कहा दादा आप कुछ भूल रहे हैं .......!
दूसरे ने पूंछा क्या??????
उत्तर आया कि आपको शायद याद नही है कि हमारे ��ुल की परंपरा है कि जब तक बिल्ली को ढका नही जाएगा तब तक श्राद्ध कर्म पूरा नही होगा ,आख़िरकार कहीं से बिल्ली को खोज़ निकाला गया किन्तु संयोगवश बिल्ली नही बिल्ली का बच्चा मिला । जिसे उस परिवार ने एक टोकने से ढक दिया और अपने पुर्वजों के कल्याण व अपने कुल की सुख-शांति के लिए श्राद्ध कर्म पूरा किया । अब यहाँ दुखद घटना यह हुई कि उस बिल्ली के बच्चे को बाहर निकालना भूल गए और वह मर गया जिसे बाद में फेंका गया ।
वक्त आंगें बढ़ा और अब समय आया तीसरी पीढ़ी का ।जब इन्होंने पितृऋण को मिटाने के लिए श्राध्द कर्म प्रारम्भ किया तो किसी ने कहा कि हमारे कुल की परंपरा है कि जब तक बिल्ली के बच्चे को मार कर ढंका नही जायेगा तब तक श्राध्द कर्म पूरा नही होगा और अंततोगत्वा एक बिल्ली के बच्चे को मार कर पहले ढका गया तब कहीं जाकर इस कुल की परम्परापूरी हुई ।
कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि जो इस तरह के परंपरावादी लोग होते हैं वो बदलाव से बहुत डरते हैं,कारण की उनके अन्दर एक अनचाहा डर समाया रहता है और कितनी ही भ्रांतियां उनके मन-मष्तिष्क में समाई रहती हैं ।वह परिवार चाहता तो एक जीव हत्या करने से वेहतर उस व्यवस्था को समाप्त करने पर जोर देता लेकिन ऐसा करने के लिए बहुत साहस तथा दृढ़ता की आवश्यकता होती है जो परंपरावादी लोगों के पास कदाचित नही होता ।
अब आते हैं रूढ़िवादी लोगों पर । यह लोग भी किसी भी प्रकार के परिवर्तन से भागते फ़िरते हैं ।इनको हमेशा यही लगता है कि जो जैसा चल रहा है ठीक है ,कुछ अलग करने से कहीं कोई समस्या न पैदा हो जाए ।ऐसे लोग हमेशा "हटाओ न" ऐसा बोल कर विषय को टाल देते हैं। कहने के लिए ऐसे लोग स्वयं को बहुत पढ़ा-लिखा बोलते हैं लेकिन किसी भी बदलाव से ऐसे भागते हैं जैसे चोर पुलिस से भागता है।ऐसे लोगों से पास ख़ुद के विवेक का पूरी तरह अभाव होता है ।
उदाहरण के लिए आप कभी कुछ इसीतरह के पढ़े-लिखे लोगों को लेकर कहीं जाना। आप देखोगे की ये लोग आप के पीछे-पीछे चलते रहेंगे और वही करेंगे जैसा आप करोगे । इनका विवेक शून्य की कगार पर होता है या यूं भी कह सकते हैं कि ऐसे लोग विवेकशून्य होते हैं।आपने किसी तरफ देख कर सिर हिलाया तो ये लोग भी अपना सिर हिला देंगे ,सिर्फ इस बात के डर से की कहीं कुछ बुरा न हो जाये ।
ऐसे लोग ऐसा नही है कि कम पढ़े-लिखे होते हैं।यह लोग बड़े-बड़े पदों पर भी बैठे होते हैं लेकिन इनकी सोच ऐसी होती है जिसके बारे में आप जान कर हैरान हो जाएंगे।
जैसे कि फ़िल्म निर्माताओं के मन काजोल को लेकर एक मान्यता है कि अगर फ़िल्म निर्माण के समय काजोल सेट पर अगर गिर जाती है तो फिर फ़िल्म हिट होगी ही होगी ।
इस तरह आमिर ख़ान के लिए कहा जाता है यदि आमिर खान किसी के हाँथ में थूंक दे तो उसकी किस्मत चमक जाती है।
इन सब बातों से आप समझ सकते हैं कि इस तरह के रूढ़िवादी लोग किस हद तक अपनी सोच से जकड़े हुए होते हैं और किसी भी प्रकार के नए परिवर्तन से भागते रहते हैं ।
अब बात करते हैं रटी-रटाई जीवनी शैली जीने वाले लोगों की ।यह लोग तो भगवान की बनाई इस श्रष्टि में अत्यंत ही कठिन प्रजाति के मनुष्य होते हैं ।मैंने ऐसा इसलिए कहा क्यों कि इनको अपनी दैनिक दिनचर्या में किसी भी प्रकार का छोटा सा बदलाव भी अस्वीकार होता है । ऐसे लोगों की ज़िंदगी किसी स्थिर उपकरण से ज्यादा नही कही जा सकती । सुबह उठने से लेकर सोने तक सब कुछ सुनिश्चित होता है और पूरी जिंदगी यह लोग इसी प्रकार बिता देते हैं ।ऐसे लोगों को आप अत्यंत ही जटिल प्राणी की श्रेणी में रख सकते हैं । यह लोग इतने जटिल होते हैं कि यदि कभी गलती से भी इनके जीवन मे कोई परिवर्तन कर दिया जाए तो सारी दुनिया सर पर उठाने में इन्हें न तो तनिक संकोच लगता न लज्जा आती और न ही समय लगता । परिवर्तन से यह लोग स्वयं जितना भागते हैं अपने इस अड़ियल स्वाभव के कारण दूसरों के मन मे भी इतना डर पैदा कर देते हैं कि सामने वाला चाह कर भी कुछ बदलाव नही कर सकता । ऐसे लोग हर बदलाव को बगावत की तरह देखते हैं और उस बदलाव को ठीक उसी तरह कुचल देते हैं जैसे कोई कठोर शासक किसी बगावत को कुचल देता है ।आपके आप-पास भी न जाने कितने ऐसे लोग होंगे जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह जानते होंगे । हो सकता आप मे से कितनो का अनुभव ऐसा भी रहा हो कि कुछ ऐसे ही हालातों के चलते आप अपनी ज़िंदगी मे चाह कर भी कुछ विशेष न कर पाएं हो ।
अब अगला क्रम उन लोगों का है जो सदा बने बनाये रास्ते पर ही चलना पसन्द करते हैं । ऐसे लोगों को ही अनाड़ी या कपूत कहा गया है यथा:-
लीक पे चले अनाड़ी, लीक पे चले कपूत ।
बिना लीक के तीन चले हैं ,शायर, सिंह, सपूत ।।
शेर कभी भी जंगल में बने हुए रास्तों पर नही चलता ,वह अपना रास्ता ख़ुद बनाता है । ठीक इसीप्रकार शायर हमेशा अपनी पंक्तियों की रचना स्वयं करता है तभी लोग इसकी शायरी को पसन्द करते हैं और सपूत। भी वही है जो संसार में कुछ ऐसा कर जाए जो सदियों तक दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हो ,कुछ श्रवण कुमार के जैसा ।
लेकिन यह सब करना बहुत ही जोखिम भरा होता है इसलिए ज्यादातर लोग बने-बनाए रास्ते पर ही चलना पसन्द करते हैं क्यों कि उस रास्ते को बदलना उनके बस ने ही नही होता ।
संसार मे तीन तरह के लोग होते हैं एक वह जो बिना किये ही हार मान लेता है ,दूसरा वह जो थोड़ा करके हार मान लेता है और तीसरा तब तक हार नही मानता जब तक जो ठाना है उसे पूरा नही कर लेता । ऐसे लोग जो बने-बनाये रास्ते पर चलते हैं वो लोग पहले वाली श्रेणी में आते हैं । कुछ लोग दूसरे वाली श्रेणी के होते हैं । इस प्रकार यह लोग जीवन को बस यूं ही जी लेते हैं ।
जीवन मे सफलता की अधिकतम उंचाईयों को पा लेने वाले लोग भी अक्सर बदलाव से डरते रहते हैं ।इनके डरने का सबसे बड़ा कारण इनकी सफलता ही होती है ।ऐसे सफल लोगों को हमेशा ही यह डर सताता रहता है कि कहीं कोई बदलाव उनसे वो सब न छीन ले जो उन्हें मिला हुआ है और इसी बात के चलते यह लोग हर हाल में परिवर्तन को रोके रखना चाहते हैं जहाँ तक भी सम्भव होता है । अब इस परिस्थिति में चाहे जो भी हो लेकिन फिर भी इन्हें बदलाव स्वीकार नही होता है ।कहने को तो ये लोग सफल व्यक्तियों की श्रेणी में सुमार होते हैं लेकिन अन्दर से बहुत डरे हुए होते हैं ।
जैसे कि बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग जो नए उभरते हुए कलाकारों के साथ यह कह कर भेदभाव करते हैं कि वह तो बाहरी है । ये बाहरी और भीतरी का मुखौटा उनके अन्दर के डर को छुपाने के लिए बनाया गया है । कहने को ये लोग सफल हो सकते हैं ,सितारो की संज्ञा दी जाती है फिर भी इनकी सोच और जिंदगी में इतना गहरा अँधेरा होता है कि किसी अन्य उभरते हुए कलाकार की एक छोटी सी उपस्थिति इनके पसीने छुड़ा देती है ।इनको हमेशा यही डर सताता रहता है कि कहीं इसकी वजह से हमारा स्टारडम न खत्म हो जाये और इस डर की वजह से ये लोग उस हद तक चले जाते हैं जहाँ पर भले ही कोई उभरता हुआ दूसरा कलाकार अपनी जान ही क्यों न दे दे ।
इसी कड़ी में अगला नम्बर उन लोगों का आता है जो हमेशा ही सुरक्षित मार्ग अपना कर चलना पसंद करते हैं ।ऐसे लोग हर तरह के अनुसंधान(एक्सपेरिमेंट)से दूर रहते हैं और ऐसे लोगों का सदा यही प्रयास रहता है कि ये लोग वही काम करें जिसमे सफलता के साथ सुरक्षा निश्चित हो । अगर इन्हें कोई कपड़ा भी खरीदना होता है तो पहले उस व्यक्ति से राय लेते हैं जिसने उस कपड़े का उपयोग पहले कर लिया हो । उसी श्रेणी में वो भी आते हैं जो देखा-देखी काम करते हैं । आप ने कोई दुकान खोली, संयोग से दुकान चल पड़ी तो पीछे से कई लोग आकर ठीक उसी प्रकार दुकान खोलकर बैठ जायेंगे जैसे कि आपने खोली है । ये सब वही लोग हैं जो सुरक्षित मार्ग अपना कर चलते हैं । पहले-पहल तो इनकी औकात इतनी नही थी कि स्वयं साहस करके दुकान खोल कर चलायें लेकिन जब आपके दुकान खोल लेने पर यह सुनिश्चित हो गया कि इस प्रकार की दुकान चल रही है और अब इसे खोलने में कोई रिस्क नही है तो फ़टाफ़ट उन्होंने भी दुकान खोल ली । ऐसे सुरक्षित मार्ग अपना कर चलने वाले लोगों की संख्या कम नही है । अगर नज़र घुमा कर देखा जाए तो ऐसे लोगों की भरमार मिल जाएगी । परिवर्तन ऐसे लोगों के लिए किसी अभिशाप से कम नही होता ।
अब बात करतें हैं संकुचित मानसिकता वाले लोगों की, क्यों कि इन लोगों के अन्दर परिवर्तन का डर इस क़दर होता है कि ये लोग दूसरे की जान तक लेने में संकोच नही करते । संसार मे जितने भी आतंकवादी संगठन है अथवा आतंक का समर्थन करने वाले लोग हैं वो सब इसी श्रेणी में आते हैं ।कारण की इन्हें बदलाव बिल्कुल भी स्वीकार नही और उसे कुचलने के लिए ये लोग हथियार का सहारा लेते हैं । जो इनके जैसे जिंदगी नही जीता उसे ये लोग काफ़िर कह कर गोलियों से भून कर मार देना पसन्द करते हैं ।जो लोग ऑनर किलिंग करते हैं वो लोग भी कुछ इसी प्रकार की मानसिकता वाले लोग होते हैं । इन्हें भी बदलाव स्वीकार नही होता भले ही इसके लिए इन्हें अपने ही बच्चों की हत्या क्यों न करनी पड़े । अगर सरल भाषा में कहें तो यह लोग झूठ तथा दिखावे की दुनियां में जीते हैं और यदि कोई उनकी इस दुनिया को बदलने की कोशिश भी करता है तो यह लोग उसे मौत के घाट उतार देते हैं । ऐसे लोगों के लिए परिवर्तन या बदलाव वो तवाही है जिससे सब कुछ नष्ट हो जाता है ।
यहाँ तक मैने उन लोगों पर चर्चा की जो बदलाव से भागते हैं या यूं कहें कि जिन्हें परिवर्तन स्वीकार नही ।अब आगे मैं उन लोगों पर बात करूँगा जो खुले दिल से परिवर्तन या बदलाव को स्वीकार करते हैं ।
बदलाव का सच
विषय जितना ज्वलंत तथा रोमांचक होता है विश्लेषक को भी उतना ही मज़ा आता है ।बदलाव के सच मे हम बात करेंगें देश मे उस राजनीतिक बदलाव की जिसे जनता ने तो स्वीकार किया लेकिन पूर्ववर्ती सत्ताधारी पार्टियों ने नही । सायद यह उनके लिए भी कल्पनातीत ही रहा होगा कि कभी देश की लोकसभा में मात्र 2 दो सीटों पर सिमट कर रहने वाली पार्टी अचानक 200का आंकड़ा भी पार कर जाती है ।
"मेरा देश बदल रहा है" का नारा देश को मिला इसी परिवर्तन की आंधी के चलते। जिस आंधी ने न जाने कितनों को अंधा बना दिया और जिन्हें चकाचौंध दिखाई पड़ी उन्होंने काला चश्मा लगा लिया । यह परिवर्तन का समय था जिसे पूरी दुनिया ने देखा कि किस प्रकार कभी रेलवे स्टेशन पर चाय वेचने वाला एक अति साधारण सा व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बन जाता है । समूची दिग्गज मण्डली औंधे मुंह गिर चुकी थी क्यों कि देश की जनता ने उस आंधी को पहचान लिया था जो बदलाव के लिए चल पड़ी थी ।
संसार में समय समय पर अनेक प्रकार से बदलाव होते रहते हैं जिनमे आर्थिक परिवर्तन,प्राकृतिक परिवर्तन, धार्मिक परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन व राजनैतिक परिवर्तन सामिल है । इनमे से कई बदलाव क्रांतिकारी साबित हो जाते है इतिहास उन्हें ही क्रांतिकारी बदलाव/क्रांतिकारी आंदोलन/क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में याद रखता है।
बदलाव के सच मे यह जानना और समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बदलाव सारभूत है ,सारभौमिक है और सर्वकालिक है ।अक्सर हम दूसरों के बारे में कहते रहते हैं कि वो ऐसा है वो वैसा है उसे तो बदलाव स्वीकार ही नही ।मैने भी बदला�� को न स्वीकार करने बाले लोगों के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा लेकिन यह कहना नही भूल सकता कि हर वो व्यक्ति जो बदलाव की बात सिर्फ दूसरों के लिए करता है वो स्वयं से धोखा करता है ।
जब आप स्वयं बदलाव को नही स्वीकार कर पाते तो दूसरों से अपेक्षा कैसे कर सकते हैं ।बदलाव को स्वीकार करने के लिए बदलाव के सच को समझना जरूरी होता है ,जिसके लिए हम कभी कोशिश भी नही करते ।
बदलाव का सच हमसे सुरु होकर हम ही में खत्म हो जाता है ।
उदाहरण में समझिये:-
सुशांत सिंह नामक एक व्यक्ति जो कुछ नया करना चाह रहा है लेकिन बदलाव को न स्वीकार करने वाले लोग उसे रोकते हैं और फिर वह व्यक्ति या तो हार मान कर चुप हो जाता है या फिर आत्म हत्या कर लेता है । अब आप विचार करिये की क्या इस सुशांत सिंह नामक व्यक्ति ने कभी बदलाव के सच को समझने का प्रयास किया है ?? जी बिल्कुल भी नही । कारण की अगर उसने बदलाव के सच को समझने की कोशिश की होती तो उसे पता होता कि जब वह कुछ नया, कुछ विशेष, कुछ अद्भुत, कुछ अधिक करने वाला है, जिसके परिणाम स्वरूप उन लोगों का चिंतित होने स्वाभाविक होगा जो पहले से ही प्रतिष्ठित होकर बैठे हुए हैं और फिर वो लोग तुम्हारी प्रतिष्ठा को यूँ सहज में ही तो स्वीकार नही होने देंगे तो क्या इस बदलाव के सच को सुशांत सिंह नामक इस व्यक्ति ने महसूस किया ??? और यदि नही किया तो क्यों नही किया ???? सुशांत सिंह नामक इस व्यक्ति को पता होना चाहिए कि जब तुम ऊपर की ओर उठोगे तो ऊपर बैठे लोग तुम्हे नीचे गिराने का भरसक प्रयास करेंगे और ये वही लोग होंगे जो अभी तुम्हे बहुत ज्यादा पसन्द करते हैं क्यों कि तुम अभी ज़मीन पर हो ,लेकिन जैसे ही तुम ऊपर उठने लगोगे अचानक इन सभी के अन्दर एक बदलाव आएगा तुमसे बदला लेने का तो क्या तुम इस बदलाव को स्वीकार करते हो अगर नही तो फिर भागने या मरने के लिए तैयार हो जाओ और यदि स्वीकार करते हो तो शान्त हो कर बदलाव के सच को करीब से महसूस करो । जब तुम बदलाव के सच को समझ लोगे तब तुम उसे महसूस कर पाओगे और जैसे ही तुमने बदलाव के सच को महसूस करना प्रारम्भ कर दिया इसका तात्पर्य है कि तुमने बदलाव को स्वीकार कर लिया ।
"" जो आज तुम्हे स्वीकार कर रहे हैं कोई ज़रूरी नही कल भी वो लोग तुम्हे स्वीकार करेंगे ही ,तो क्या भविष्य में होने वाली इस स्वाभाविक प्रक्रिया के लिए तुम तैयार हो""?????????
बदलाव को स्वीकार करते ही तुम सभी समस्याओं से बाहर आ जाओगे ,तुम्हारे अन्दर किसी प्रकार का कोई तनाव नही होगा । तुम्हे सब कुछ सहज यानी कि नॉर्मल ही लगेगा । जब तुम ऐसा कर पाओगे तो जो लोग तुम्हें खदेड़ना चाह रहे हैं वो स्वयं भाग खड़े होंगे ।इस प्रकार तुम जिन्दगी की जंग फ़तह कर पाओगे ।
बदलाव के सच मे हमेशा याद रखो की जब आप बदल रहे होंगे अर्थात आंगें बढ़ रहे होंगें तब आपका यह परिवर्तन दूसरों को स्वीकार नही होगा यह आपको स्वीकार करना होगा और बदलाव के सच की यही स्वीकारोक्ति आपको सफलता पूर्वक मंज़िल तक पहुँचाएगी । कोई व्यक्ति या समूह या सम्प्रदाय या वर्गविशेष आपको स्वीकार नही कर रहा है तो कृपया स्वयं को उसके स्वीकार कराने के पीछे मत भागिए उल्टे ख़ुद में यह स्वीकार कर लीजिए कि आप उन्हें स्वीकार नही हैं और जब नही हैं तो नही हैं फिर उसमें चिंता किस बात की ।जरूरी तो नही की आपको हर तरफ स्वीकारा ही जाए लेकिन आप को यह जरूर स्वीकार करना होगा और उन लोगों के पीछे भागना बन्द करना होगा जो आपको स्वीकार नही कर रहें । कारण की यदि समय रहते आपने इस बदलाव को स्वीकार नही किया तो जिन्दगी की जंग हारने में वक़्त नही लगेगा । वहीँ अगर आपने इस बदलाव को कि आप जिन्हें कल स्वीकार थे आज उन्हें स्वीकार नही है को स्वीकार कर लिया तो फिर ज़िन्दगी की जंग को चुटकियों में फ़तह कर लेंगे ।
बदलाव/परिवर्तन क्यों ज़रूरी???
जीवन के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में जीवन की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। जीवन गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो हम चाहें या न चाहें फिर भी परिवर्तन को स्वीकार करने के अतिरिक्त हमारे पास कोई विकल्प भी तो नही है ।येन केन प्रकारेण बदलाव को स्वीकार करना ही होता है । बस अन्तर इतना है कि कोई सहज रूप में ही स्वीकार कर लेता है तो कोई विरोध करते-करते स्वीकार कर लेता है लेकिन परिणामतः स्वीकार करना ही पड़ता है । यदि पूरी ईमानदारी से बात की जाए तो बदलाव को स्वीकार कर लेने में ही भलाई होती है क्यों कि "परिवर्तन ही जीवन मे ऊर्जा का मुख्य स्रोत है"। कल्पना कीजिए किन्ही कारणों से प्रकृति में कुछ घण्टो के लिए बदलाव रुक जाए तो क्या होगा ?? कुछ समय के लिए जीवन मे ठहराव आ जाये तो क्या होगा?? परिवर्तन है तो गति है और गति है तो सृष्टि है और सृष्टि है तो जीवन है ,इसलिए जीवन को बनाए रखने के लिए बदलाव ज़रूरी है । यह एक सतत विकास की प्रक्रिया है ,इसीकारण परिवर्तन ज़रूरी है ।
आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा जीवन के विभिन्न पहलुओं ने अपने तरीके से इन विकासों को समाहित किया है तथा उनका उत्तर दिया है, जो कि जीवन के परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द। कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। जीवन मे कुछ परिवर्तन स्पष्ट हैं एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं। जब कि कई बार इन परिवर्तनों को हमारी इच्छा के विरुद्ध हम पर थोपा गया है। कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं। व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव मस्तिष्क इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परन्तु शनैः उन्हें स्वीकार कर लेता है।
निष्कर्ष......!!!!!!
अन्त में बस इतना ही कि परिवर्तन का एक ही अटल सिद्धांत है गतिशीलता ।
जब हम गतिशीलता पर पहुंचे तो पता चला कि अब तक हमने जितनी भी बातें की वह सब भी गतिशीलता का ही एक हिस्सा मात्र हैं । सरल शब्दो मे कहा जाए तो गतिशीलता का ही दूसरा नाम परिवर्तन या बदलाव है ।
यदि इसी बात को दूसरे तरीक़े से कहा जाए तो संसार मे परिवर्तन या बदलाव जैसा तो कुछ है ही नही बस हमने एक भ्रम पाल के रखा हुआ और लगा��ार अपने ही बुने मकड़जाल से बाहर आने की कोशिश करते हुए हमें लगता है कि बदलाव या परिवर्तन हो रहा है जिसे कुछ लोग खुले दिल से स्वीकार कर रहे हैं तो कुछ लोग विरोध करते हुए शनैःशनैः स्वीकार कर रहे हैं।
अगर इस ब्राम्हण की ओर ध्यान से देखा जाए तो यहाँ सब कुछ क्रमबद्ध दिखाई पड़ता है और जो क्रम में चल रहा है उसे आप गतिशील तो कह सकते हैं बदला हुआ नही । बदला हुआ तो उसे कहा जायेगा जो क्रम से अलग हो अर्थात बिना क्रम के ,जो कि इस संसार मे कुछ भी नही ।
चाहे ऋतुएँ हो सब क्रमशः चलती रहती सतत व अवाध रूप से ,दिन-रात का क्रम भी क्रमशः ही है, जनवरी से लेकर दिसम्बर तक यहां भी सब कुछ क्रमशः ही है ,जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन मे भी सब कुछ क्रमश ही है ,गणितीय गणना ���ी क्रमशः ही है ,चारों प्रकार की सृष्टि श्वेदज/उद्भिज/अंडज/जरायुज ये भी क्रमबार ही है । ऐसा कुछ भी तो नही जो क्रमशः न हो, फिर किसे बदला हुआ कहा जाए ??? किसे कहा जाए कि इसमें परिवर्तन हो गया ।अगर संसार मे किसी चीज़ का निर्माण होता है ,चाहे ईश्वर के द्वारा या मनुष्य के द्वारा एक तय समय सीमा के बाद उसे भी नष्ट होना ही पड़ता है इसलिए इस प्रक्रिया को भी क्रमशः ही कहा जायेगा । इसे बदलाव या परिवर्तन नही कहा जा सकता ।
बदला हुआ या परिवर्तित तो वो कहा जायेगा जिसने अपने क्रम को तोड़ दिया हो जैसे कि अगर सर्दी के बाद गर्मी न आकर वर्षा ऋतु आ जाये तब अवश्य कहा जा सकता है कि प्रकृति में परिवर्तन हो गया है । प्रकृति बदल गई है । इसीप्रकार सूर्य कभी दिशा बदल दे अर्थात पूर्व की जगह किसी अन्य दिशा से उदित होने लगे तब कहा जाए कि सूर्य की दिशा में परिवर्तन हो गया है । किन्तु आज तक तो सम्पूर्ण जीवन-जगत में ऐसा कुछ नही दृष्टिगत हुआ जो क्रमशः न हो । इसलिए सम्पूर्ण ब्राम्हण को गतिशील कहना अधिक उचित होगा वरन बदलाब या परिवर्तन के ।
लेख के अंत निवेदन के साथ की यह सम्पूर्ण विचार मेरे अपने व्यक्तिगत हैं ज़रूरी नही की आप मेरे विचारों से सहमत हों । फिर भी लेख के प्रति अपने उद्गार अवश्य रखियेगा ।
आप सभी का शुभेच्छु
स्वामी प्रपन्नाचार्य
3 notes · View notes
rbbox · 2 years
Video
youtube
most dangerous animals in Asia
What is the difference between a domestic cat and a lion? It kills as many humans as every year. If you weren't expecting that answer, gear up. We are interested in knowing about the deadliest animals in Asia. These creatures come in all shapes and sizes. Who knew something as small as a rock could wipe out a group of adults? We are ranking the most dangerous animals by how many human attacks or deaths they cause per year. We want to know what characteristics make the animal so dangerous: is it poisonous venom? a sharp sting? Or piercing? Here are the 10 deadliest animals in Asia.
घरेलू बिल्ली और शेर में क्या अंतर है? यह हर साल जितने इंसानों को मारता है। यदि आप उस उत्तर की अपेक्षा नहीं कर रहे थे, तो कमर कस लें। हम एशिया के सबसे घातक जानवरों के बारे में जानने में रुचि रखते हैं। ये जीव सभी आकार और आकारों में आते हैं। कौन जानता था कि चट्टान जैसी छोटी कोई चीज वयस्कों के समूह को मिटा सकती है? हम सबसे खतरनाक जानवरों की रैंकिंग इस आधार पर कर रहे हैं कि वे प्रति वर्ष कितने मानव हमलों या मौतों का कारण बनते हैं। हम जानना चाहते हैं कि कौन सी विशेषताएं जानवर को इतना खतरनाक बनाती हैं: क्या यह जहरीला जहर है? एक तेज डंक? या नुकीले भेदी? यहाँ एशिया के  10  सबसे घातक जानवर हैं।
0 notes
sareideas · 2 years
Text
कान्स 2022: शो अप, ब्रोकर, क्लोज़ | त्यौहार और पुरस्कार
कान्स 2022: शो अप, ब्रोकर, क्लोज़ | त्यौहार और पुरस्कार
शो के लिए लीड-अप छोटी-छोटी परेशानियों का एक स्थिर संचय है। लिजी के जमींदार (होंग चाऊ), एक साथी कलाकार जिसके लिए उपलब्धियां सहजता से बढ़ती दिखाई देती हैं (उसके पास एक साथ दो शो हैं), लिजी के वॉटर हीटर को ठीक करने में धीमा रहा है, लिजी को स्नान करने के लिए जगह के बिना छोड़ रहा है। लिज़ी की बिल्ली एक कबूतर पर हमला करती है जिसे पशु चिकित्सक के पास ले जाने और स्वास्थ्य के लिए वापस लाने की आवश्यकता…
View On WordPress
0 notes
parichaytimes · 2 years
Text
मिलिए सॉक्स, डिज्नी के 'लाइटियर' के ब्रेकआउट स्टार - और अगला हॉट टॉय
मिलिए सॉक्स, डिज्नी के ‘लाइटियर’ के ब्रेकआउट स्टार – और अगला हॉट टॉय
डिज्नी बुधवार को लास वेगास में सिनेमाकॉन में अपनी नई पिक्सर फिल्म “लाइटियर” के पहले 30 मिनट प्रदर्शित किए गए, लेकिन उपस्थित लोगों के बीच सबसे बड़ी चर्चा “टॉय स्टोरी” मूल कहानी के केंद्र में शीर्षक चरित्र के लिए नहीं थी। वह भेद सॉक्स नाम की एक छोटी रोबोटिक बिल्ली के पास गया। अदरक और सफेद यांत्रिक बिल्ली के समान एक व्यक्तिगत साथी है जिसे एक मिशन के विफल होने के बाद बज़ लाइटियर को उपहार के रूप में…
View On WordPress
0 notes
insolubleworld · 3 years
Text
नन्हा बिल्ली का बच्चा गलती से दुबई की राजकुमारी के बाघ के पिंजरे में आ गया। वायरल वीडियो में दिखाया गया है कि आगे क्या हुआ
नन्हा बिल्ली का बच्चा गलती से दुबई की राजकुमारी के बाघ के पिंजरे में आ गया। वायरल वीडियो में दिखाया गया है कि आगे क्या हुआ
क्लिप में सफेद बाघों में से एक को अपने मुंह में एक छोटी बिल्ली का बच्चा लिए हुए और पिंजरे के बीच में गिराते हुए दिखाया गया है क्योंकि अन्य दो बाघ उसे घेर लेते हैं। एक नन्हा बिल्ली का बच्चा तीन बाघों के साथ पिंजरे में फंस गया। एक चौंकाने वाली घटना में, तीन बाघों के साथ गलती से पिंजरे के अंदर फंस जाने के बाद एक छोटी बिल्ली का बच्चा खुद को एक चिपचिपे स्थान पर पाया। दुबई की राजकुमारी शेखा लतीफा…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
realtimesmedia · 3 years
Text
गिलहरी को परेशान कर रही थी बिल्ली, तो मज़ा चखाने के लिए बिल्ली की पीठ पर चढ़ गई गिलहरी और फिर - देखें Video
गिलहरी को परेशान कर रही थी बिल्ली, तो मज़ा चखाने के लिए बिल्ली की पीठ पर चढ़ गई गिलहरी और फिर – देखें Video
गिलहरी को परेशान कर रही थी बिल्ली, तो मज़ा चखाने के लिए बिल्ली की पीठ पर चढ़ गई गिलहरी गिलहरी (squirrel) देखने में काफी क्यूट और कद में काफी छोटी ��ोती हैं. कई बार हम उन्हें पकड़ना चाहते हैं, लेकिन वो इतनी तेज भागती हैं कि हमारे लिए उन्हें पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है. वो किसी को परेशान नहीं करती, बस अपनी ही धुन में मगन रहती हैं. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक बिल्ली एक…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
tezlivenews · 3 years
Text
गिलहरी को परेशान कर रही थी बिल्ली, तो मज़ा चखाने के लिए बिल्ली की पीठ पर चढ़ गई गिलहरी और फिर - देखें Video
गिलहरी को परेशान कर रही थी बिल्ली, तो मज़ा चखाने के लिए बिल्ली की पीठ पर चढ़ गई गिलहरी और फिर – देखें Video
गिलहरी को परेशान कर रही थी बिल्ली, तो मज़ा चखाने के लिए बिल्ली की पीठ पर चढ़ गई गिलहरी गिलहरी (squirrel) देखने में काफी क्यूट और कद में काफी छोटी होती हैं. कई बार हम उन्हें पकड़ना चाहते हैं, लेकिन वो इतनी तेज भागती हैं कि हमारे लिए उन्हें पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है. वो किसी को परेशान नहीं करती, बस अपनी ही धुन में मगन रहती हैं. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक बिल्ली एक…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
bishnoibeerma · 3 years
Photo
Tumblr media
छोटा-सा खरगोश है, उछल-उछलकर चलता है यह अद्भुत इसमें जोश है।  रंग सफेद रुई या हिम-सा कोमल इसके बाल हैं उषा-किरण सी कुछ चमकीली आंखें इसकी लाल हैं। कान कुछ बड़े, पूंछ है छोटी बिजली जैसी चाल है दौड़ लगाने में यह अक्सर करता बहुत कमाल है। इसको छू लें तो लगता है छू ली क्या नवनीत है कुत्ते-बिल्ली से हर पल ही रहता यह भयभीत है। जीव जंगली और पालतू भी होता खरगोश है, छोटे कोमल तिनके खाता रहता यह खामोश है। #bishnoibeerma #jambhsar #wild #anime #animals #rabbit (at Rajasthan) https://www.instagram.com/p/CPN0b_Gl9Ax/?utm_medium=tumblr
0 notes
abhay121996-blog · 3 years
Text
बिल्ली का प्यार देखिए... रोती हुई छोटी बच्ची को छुड़ाने के लिए अपने ही मालिक पर कर दिया अटैक Divya Sandesh
#Divyasandesh
बिल्ली का प्यार देखिए... रोती हुई छोटी बच्ची को छुड़ाने के लिए अपने ही मालिक पर कर दिया अटैक
मनीला फिलीपींस में एक बिल्ली ने मासूम बच्ची को छुड़ाने के लिए अपने ही मालिक के ऊपर हमला कर दिया। इस हैरतअंगेज घटना को बच्ची की मां ने कैमरे में कैद कर लिया, जो अब वायरल हो रहा है। दरअसल, लगभग 8 महीने की बच्ची अपने पिता की गोद से बाहर निकलने के लिए रो रही थी। वहीं, पिता की कोशिश थी कि उसकी बच्ची गोद में ही सो जाए। इस दौरान पूरे मामले को देख रही पालतू बिल्ली ने अपने ही मालिक की बांह पर काट लिया।
पिता की गोद से निकलना चाहती थी बच्ची यह घटना फिलीपींस से दवाओ सिटी की बताई जा रही है। घटना के समय सीसिलिया नाम की एक साल की यह बिल्ली अपने मालिक के पास ही थी। घटना के समय पिता एंजेलो बेटी डेमर्कस को चुप कराकर सुलाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उनकी बेटी पिता के बाहों से निकलकर दूर जाना चाहती थी। बिल्ली को बच्ची का इस तरह से रोना रास नहीं आया और उसने हमला कर दिया।
बिल्ली ने पहले बच्ची को निकालने की कोशिश की बिल्ली ने अपने मालिक को काटने से पहले उनके हाथों से बच्ची को बाहर निकालने की भी कोशिश की। उस समय तो मालिक को बिल्ली की कोशिश का पता भी नहीं चला। जब उसने देखा कि मालिक बच्ची को छोड़ने वाले नहीं हैं तो उसने उनके हाथों पर अपने दांत चुभो दिए। जिसके बाद दर्द से बिलबिलाते हुए मालिक ने बच्ची को छोड़ दिया। उन्होंने बताया कि हमें बिलकुल भी अहसास नहीं था कि बच्ची का रोना हमारी बिल्ली को परेशान कर देगा। वह उसकी रक्षा करने की कोशिश कर रही थी।
जबरदस्ती सुलाने की कोशिश कर रहे थे पिता बच्ची की मां डेवानी कैटापांग ने कहा कि वह समय उसके सोने का था, लेकिन वह खेलना चाहती थी। जब मेरे पति ने उसे नहीं छोड़ा तो वह रोने लगी। यही बात हमारी पालतू बिल्ली को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा कि हमारी बच्ची और अधिक खेलना चाहती थी लेकिन वह पहले ही काफी समय खेल चुकी थी। उसके पिता ने सुलाने के लिए उसे पकड़ लिया जिसके बाद बच्ची ने रोना शुरू कर दिया।
संवेदनशील होती हैं बिल्लियां, पर बच्चों के साथ न छोड़े Cats.org.uk के अनुसार, बिल्लियां छोटे बच्चों की सुरक्षा को लेकर काफी संवेदनशील होती हैं। अगर बच्चों के ऊपर कोई संकट उन्हें दिखता है तो वह अपने हावभाव से दूसरों को बताने की कोशिश करती हैं। बिल्लियों को ट्रेनिंग देने वाली इस चैरिटी ने कहा कि कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जब बिल्लियों ने बच्चों की जिंदगी को बचाया है। हालांकि, इस साइट पर बच्चों को बिल्लियों के साथ अकेले न छोड़ने की चेतावनी भी दी गई है।
0 notes
Text
संपादित:सीमा शर्मा
सामान्य आचरण व्यवहार के लिए भाषा शब्दो एवं वाक्य में ,बोली शब्दो एवं वाक्यो का विशेष उच्चारण या   सांकेतिक भाषा का आमजन प्रयोग करते है। भाषा का उपयोग आपसी संवाद, प्रश्नोत्तरी, वक़्ता, उद्देशयित तक संदाय करने के लिए, स्वयं के विचार रखने के लिए , विचारधारा का समुचित प्रचार करने के लिए , भाषा का आधुनिक भाषाशैली में अधिकाधिक प्रयोगात्मक उपयोग स्तर उत्थान के लिए अवश्यम्भावी है। जैसे लिखकर के किसी साहित्यिक रत्न में पिरोना अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। आधुनिक समय में कई सोशल मीडिया साइट पर या मंच पर भाषा का सामान्य स्तर या यूं कहें सभ्यता का स्तर गिरता जा रहा हैं, आवश्यक यह है, की पाठक स्वयं आत्मविलोकन करके अपने अच्छे बुरे पर विचार करे।
जो बात चित्त को प्रसन्न करने वाली न भी हो तो उसे मुहावरे या लोकोक्ति के माध्यम से कहने से भी उद्देश्य की पूर्ति होती है,   कटाक्षपूर्ण या व्यंग्यात्मक शैली में भी इनका प्रयोग उचित है।
मुहावरे(मूलतः अरबी परंतु हिंदी में प्रयोग समुचित, वाक्यांश)
उदाहरण :-  
               १.औंधी खोपड़ी का होना
अर्थ:- मूर्ख होना
प्रयोग:- औंधी खोपड़ी के व्यक्तियों को समझाना समय व्यर्थ करना हैं।
                 २.      अंधे की लकड़ी
अर्थ:- एक मात्र आश्रय
प्रयोग:-  प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपभोग करने के पश्चात मनुष्य के पास  केवल जीर्णोद्धार ही अंधे की लकड़ी प्रमाणित होगी।
                 ३. अपना राग अलापना
अर्थ:- अपनी ही बात कहना
प्रयोग:- आजकल के राजनीतिज्ञ जनता की बात नही सुनते केवल अपनी ही राग अलापते रहते है।
                  ४. अंधे को दीया दिखाना
अर्थ:- व्यर्थ के काम करना
प्रयोग:- आलसी को काम के अनुभव देना अंधे को दिया दिखाना हैं।
                 ५. अंग अंग ढीला होना
अर्थ:-थक जाना
प्रयोग:- जेठ की गर्मी और ऊपर से पानी की कमी ने खेती किसानी करने वालो का अंग अंग ढीला कर दिया हैं।
                 ५. आस्तीन का सांप
अर्थ:- मित्रता के आड़ में छल
प्रयोग:- भ्रष्टाचार करने वाले आधुनिक युग में राष्ट्र के लिए आस्तीन के सांप हैं।
                ६.उन्नीस बीस का अंतर
अर्थ:- बहुत कम अंतर
प्रयोग:- उन्नीस बीस का अंतर बता कर बहुत से लोग असली सामान के बदले नकली क्रय कर देते है।
                 ७. खाला जी का घर
अर्थ:- आसान काम
प्रयोग:- कानून का सख्ती से पालन आपराधिक मानसिकता के असर को खाला जी का घर बनने से रोकता हैं।
                ८. घड़ो पानी भर जाना
अर्थ:- अत्यंत लज्जित हो जाना
प्रयोग:- चोरी करते रंगे हाथ पकड़े जाने पर उसे घड़ो पानी भर गए।
               ९. कलेजे पर सांप लोटना
अर्थ:-ईर्ष्या से दुखी 
प्रयोग:- विजेता के घोषित होते ही निश्चय ही कइयों के कलेजे पर सांप लोटने लगेगा।
               १०. कोल्हू का बैल
अर्थ:- दिन रात काम करना
प्रयोग:- घड़ी के कांटे कोल्हू के बैल की तरह समयचक्र पूरा करते रहते है।
               ११.चोली दामन का साथ
अर्थ:- दृढ़ संबद्धता
प्रयोग:- अंधेरे और रात का चोली दामन का साथ है।
               १२. नौ दो ग्यारह होना
अर्थ :- भागना
प्रयोग:-हेडमास्टर की कड़क स्वर से शोर करते बच्चे नौ दो ग्यारह हो गए।
               १३. बहती गंगा में हाथ धोना
अर्थ:- मौके का लाभ 
प्रयोग:-  सामयिक प्रसंग में उपस्थिति दिखा कर प्रबुद्धजन बहती गंगा में हाथ धो लेते है।
              १४.राई का पर्वत बनाना
अर्थ:- छोटी सी बात को बढ़ा कर कहना
प्रयोग:- बातूनी लोग राई का पर्वत बनाने में माहिर होते है।
              १५.घी के दिये जलाना
अर्थ:- खुशी मनाना
प्रयोग:- गांव में पहली बार चिकित्सालय के खुलने पर ग्रामीणों ने घी के दिये जलाये।
               १६. दौड़ धूप करना
अर्थ:- बहुत प्रयत्न करना
प्रयोग:- धुन होकर जीवन भर दौड़ धूप करने के बाद  आज अब आराम करने की बारी आई है।
               १७. भीगी बिल्ली बनना
अर्थ:-  भय में आना
प्रयोग:- सच सामने आने पर आरोपी भीगी बिल्ली बन गया।
               १८. पत्थर का कलेजा होना
अर्थ:- कठोर हृदय
प्रयोग:- पत्थर का कलेजा कर के कई अभिभावक छात्रों  को पैतृक स्थान  से  उच्च अध्धयन करने  विदेश भेजते है।
              १९. दांत खट्टे करना
अर्थ:- बुरी तरह से परास्त करना
प्रयोग:-  एक छोटी चींटी भी हाथी के सूंड में घुस कर हाथी के दांत खट्टे कर सकती है।
             २०. इति श्री करना
अर्थ:- सम्पति
प्रयोग:- पाठ्यक्रम पूरा होते ही शिक्षक महोदय ने छात्रों को पढ़ाने से इति श्री कर ली।
                                     ◆◆◆लोकोक्ति◆◆◆
यह पूर्ण वाक्य कहलाते है, उक्तियां जो जन प्रसिद्ध है। यह स्वतंत्र वाक्य है।
उदाहरण:-
             १. आंखों का अंधा नाम नयन सुख
अर्थ:- नाम के प्रतिकूल 
प्रयोग:- हमारे कॉलोनी के एक व्यक्ति का नाम यो तो सखाराम है पर है पर उसके किसी से बनती नहीं, ठीक ही है आँखों का अंधा नाम नयनसुख।
             २. चोर-चोर मौसरे भाई
अर्थ:- दो  लोगो मे एक समान अवगुण होना
प्रयोग:- अधिवक्ता ने पकड़े गए दोनो आरोपियों को अपराधी प्रमाणित करने के लिए उन दोनों को चोर-चोर मौसेरे भाई की संज्ञा दी।
             ३. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत
अर्थ:- सही समय मे कार्य ना करना और नुकसान के ऊपर बाद में पछताना
प्रयोग:-  सही समय मे समस्या का समाधान ना करना आज हेडमास्टर को भारी पड़ा तब प्रधानाध्यापक ने कहा अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत।
             ४.उल्टे बांस बरेली को
अर्थ:- अपरंपरागत कार्य
प्रयोग:-  पहले ही गिरती स्थिति में स्थानीय  वस्तुओ को बढ़ावा न देते हुवे विदेशी वस्तुओ के संचार, उल्टे बांस बरेली को चरितार्थ करती है।
             ५. दिया तले अंधेरा
अर्थ:- किसी ऐसी वस्तु जिस के पास अन्य चीज़ों की जानकारी है परंतु वह स्वयं के स्तिथि के साथ अनभिज्ञ है
प्रयोग:- मास्टरजी के पुत्र के  उन्ही के विषय के परीक्षा  में असफल रहने पर मास्टरजी ने कहा उन्होंने दिया तले अंधेरा को चरितार्थ कर दिया।
              ६. ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी
अर्थ:- काम ना करने का बहाना
प्रयोग:-  एन समय में कामगार ने कुछ अपरिहार्य शर्त रख दिये तो ठेकेदार ने कहा ये तो ऐसा है ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी।
               ७.हाथ सुमिरनी बगल कतरनी
अर्थ:- छलपूर्ण व्यवहार करना
प्रयोग:- साथ सफर करने के बहाने से भेष बनाये डाकू ने लूटने की योजना जाहिर कर लोगो को लूट लिया। सही ही है हाथ सुमिरनी बगल कतरनी।
               ८.हंसा थे सो उड़ गए, कागा भये दीवान
अर्थ:- किसी अच्छे व्यक्ति के स्थान पर दुर्जन को अधिकार मिलना
प्रयोग:-  लाभप्रद पदों पर अशिक्षितों की नियुक्ति और  शिक्षितो का बेकार रहना, हंस थे सो उड़ गए, कागा भये दीवान को चरितार्थ करती है।
              ९.सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है
अर्थ:-  कोई कमी ना होने पर बाकी सभी को भी उसी स्तर का समझना
प्रयोग:- मंदी काल में कई के पास सामान्य खर्चे चलाने के लिए धन नहीं है और तरह तरह के  महंगे विज्ञापन देख  कर के मन से निकलता है सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता हैं।
             १०. हर्रा लगे न फ़िटकरी रंग चोखा आये
अर्थ:- मुफ्त में काम होना
प्रयोग:- कामगारों को एक काम के लिए बुला के सेठ जी अपने अधिकाधिक काम करा लेते है यह देख के मुनीमजी ने कहा हर्रा लगे ना फ़िटकरी रंग चोखा आये।
              ११. आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी रहे न पूरी पावै
अर्थ:- लालच के कारण हाथ आयी वस्तु गवाना
प्रयोग:- शेर ने पहले खरगोश को पकड़ा फिर दूर से हिरण को देख कर खरगोश को छोड़ दिया, हिरण पहले ही सतर्क हो कर कुलांचे भरता चला गया और खरगोश चपलता से वहां 
छुप गया। ठीक ही है ,आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी रहे न पूरी पावै।
               १२.कोउ नृप होइ हमे का हानि
अर्थ:- ऊंचे पद पर कोई भी आसीन हो 
प्रयोग:-  राजनीतिज्ञों से अविश्वास के कारण अब तो आम जनता कहने लगी है कोउ नृप होइ हमे का हानि।
              १३.आम के आम गुठलियों के दाम
अर्थ:- दोहरा लाभ
प्रयोग:- गाय पालन करने से  दूध समेत गोधन भी सुलभ होता है, इसे कहते है आम के आम गुठलियों के............और पढ़े। Read More.........https://homemakerwithpen.blogspot.com/2020/07/Hindi.html
0 notes
shaileshg · 4 years
Link
Tumblr media
(अनिरुद्ध शर्मा) देश में पहली बार नेशनल हाइवे- 44 के 16 किमी के क्षेत्र में बनाए गए 9 एनिमल अंडरपास से 10 महीने में 89 बार बाघ के गुजरने की घटना दर्ज हुई। 18 किस्म के 5,450 जंगली जानवर इस अंडरपास से गुजरे। पेच टाइगर रिजर्व में बनाए गए दुनिया के सबसे लंबे इस एनिमल क्रॉसिंग स्ट्रक्चर से वन्यजीव व वाहनों के टकराने की हजारों घटनाएं भी टल गईं।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा एनिमल अंडरपास के जंगली जानवरों द्वारा किए जा रहे इस्तेमाल पर रिपोर्ट में यह बातें सामने आई हैं। रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉ. बिलाल हबीब ने कहा कि श्रीनगर से कन्याकुमारी को जोड़ने वाले एनएच-44 को जब दो लेन से चार लेन में अपग्रेड करने की बात हुई, तो इस प्रोजेक्ट को मंजूरी ही इस शर्त पर मिली कि सघन जंगली इलाकों में जानवरों को गुजरने के लिए एनिमल क्रॉसिंग स्ट्रक्चर बनाए जाएं।
महाराष्ट्र में एनएच-44 पर 255 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करके जानवरों को गुजरने के लिए 4 छोटे पुल व 5 एनिमल अंडरपास बनाए गए। केवल जानवरों के लिए समर्पित इस तरह का यह दुनिया का सबसे लंबा ढांचा है। इन ढांचों में जानवरों के आवागमन की निगरानी ���े लिए 78 कैमरे भी लगाए गए ताकि पता लगे कि जानवरों ने इनका कितना इस्तेमाल किया।
भविष्य के क्रॉसिंग स्ट्रक्चर कैसे डिजाइन किए जाएं या मौजूदा ढांचे में क्या सुधार जरूरी है, जिससे उनका इस्तेमाल बढ़े। मार्च से दिसंबर-2019 के दौरान सभी 9 ढांचों में लगे कैमरों से 1,26,532 चित्र लिए गए। सभी ढांचों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा चीतल ने 3,165 बार और जंगली सूअर ने 677 बार किया।
खरगोश, बिल्ली जैसे छोटे जानवरों को भी यहां से गुजरते हुए देखा गया। अधिकांश जानवरों ने रात में इन ढांचों का इस्तेमाल किया। बाघों के गुजरने के 89 मामले दर्ज हुए जिनकी पहचान 11 बाघों के रूप में हुई। इनमें से केवल एक बाघ केवल एक बार गुजरता दिखा जबकि बाकी 10 बाघों ने इन पुलों का बार-बार इस्तेमाल किया।
यह भी देखा गया जिन पुलों के नीचे से मानवीय आवागमन ज्यादा था, वहां जंगली जानवरों का गुजरना सबसे कम रहा। रिपोर्ट में पाया गया कि भालू छोटे अंडरपास में नहीं घुसता जबकि बाघ वहां से गुजर जाते हैं। मादा बाघ शावकों के साथ होती है, तो वह भी छोटे अंडरपास में नहीं घुसती। जिन अंडरपास व पुलों का बाघ ने इस्तेमाल किया, वहां से चीतल नहीं गुजरे।
एनिमल क्रॉसिंग स्ट्रक्चर से वन्यजीव व वाहनों के टकराव की हजारों घटनाएं टलीं
डॉ. हबीब ने कहा कि यदि यह ढांचा न होता तो जानवर सड़क पर वाहनों की आवाजाही के बीच से ही गुजरते और हर बार हादसों की संभावना बनी रहती। लेकिन इन ढांचों के बनने से हजारों हादसे टल गए। मिसाल के लिए जंगली भैंसा इस दौरान करीब 50 बार गुजरा जो 400 से 500 किलोग्राम वजन का होता हैै।
मान लीजिए किसी छोटी कार से उसकी टक्कर हो जाती तो गाड़ी का पलटना तय है। इससे जानवर तो जख्मी होता, साथ ही मानव जीवन व गाड़ी को भी बड़ा नुकसान होता। अगले 5-6 वर्षों में देश में करीब 50 हजार किमी लंबी नई सड़कें और पुरानी सड़कों का अपग्रेडेशन होना है। इसमें से करीब 20 हजार किमी हिस्सा देश के टाइगर रिजर्व से गुजरता है। उस लिहाज से यह रिपोर्ट भविष्य की सड़क योजना और वन्य जीव संरक्षण के मद्देनजर बहुत अहम है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Tumblr media
पेच टाइगर रिजर्व में बनाए गए दुनिया के सबसे लंबे इस एनिमल क्रॉसिंग स्ट्रक्चर से वन्यजीव व वाहनों के टकराने की हजारों घटनाएं भी टल गईं।
from Dainik Bhaskar /national/news/five-and-a-half-thousand-wild-animals-passed-through-the-countrys-first-16-km-long-animal-underpass-in-10-months-89-tigers-passed-by-78-cameras-monitored-127707986.html via IFTTT
0 notes