#चीन की नीति
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ट्रंप से तो चीन की मुश्किले हैं!
डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं, जिसमें कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ की जा रही हैं। फ्लोरिडा के सीनेटर मार्को रूबियो को विदेश मंत्री और माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है। दोनों ही अधिकारी चीन के प्रति आक्रामक नीति के समर्थक हैं, लेकिन भारत के साथ सहयोग को मजबूत करना चाहते हैं। पीटर हेगसेथ को रक्षामंत्री बनाया गया है, जो युद्ध के प्रति आक्रामक रुख रखते हैं।
ट्रम्प के करीबी एलन मस्क को संघीय नौकरशाही में सुधार लाने के लिए डीओजीई (डोज़) विभाग का सह-प्रमुख नियुक्त किया गया है। ट्रंप प्रशासन का झुकाव अमेरिका के लिए एकाधिकारवादी नीतियाँ अप��ाने और विश्व व्यापार संगठन को अनदेखा करने की ओर है, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों के सकारात्मक होने की उम्मीद की जा रही है।
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शेयरों में सार्वभौमिक झटका: सेंसेक्स 821 अंक गिरकर 78675 पर: छोटे, मिडकैप में घबराहट भरी बिकवाली
मुंबई: संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के सत्ता में आने से पहले, ट्रम्प द्वारा नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में माइक वाल्ट्ज का चयन यह संकेत दे रहा था कि चीन के खिलाफ ट्रम्प की नीति जारी रहेगी और टैरिफ युद्ध भी शुरू हो जाएगा। भारतीय शेयर बाजारों में भी आज सेंसेक्स, निफ्टी में गिरावट देखी गई और शेयरों में चौतरफा बिकवाली देखने को मिली। इस डर से कि ट्रम्प भारत पर भी कठोर…
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वर्तमान में चीन भारत और फिलिपींस की दोस्ती से चढ़ रहा है! भारत हमेशा 'जियो और जीने दो' की नीति में विश्वास करता रहा है। हम सिर्फ अपना फायदा नहीं देखते हैं बल्कि दूसरों के हितों का भी सम्मान करते हैं। ऐसे में किसी तीसरे को मिर्ची लगे तो लगे। भारत ने अब
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अनिल अंबानी की दिवालिया कंपनी रिलायंस कैपिटल का क्या है मसला? अब कर्जदाताओं ने लगाया यह आरोप
नई दिल्ली: कर्ज में डूबी लिमिटेड (आरसीएपी) का मसला फंसता जा रहा है। इसके कर्जदाताओं ने की कंपनी आईआईएचएल पर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि आईआईएचएल देरी करने की रणनीति अपना रही है। इसके चलते समाधान योजना को लागू करने में भी विलम्ब हो रहा है। मॉरीशस स्थित (आईआईएचएल) रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण के लिए सफल बोलीदाता के रूप में उभरी थी। के नेतृत्व में रिलायंस कैपिटल ने कभी एचडीएफसी को पीछे छोड़ दिया था। अर्श से फर्श पर आई यह कंपनी फाइनेंशियल वर्ल्ड का चमकता सितारा मानी जाती थी। एनसीएलटी की मुंबई पीठ ने 27 फरवरी, 2024 को कर्ज में डूबी वित्तीय कंपनी के लिए आईआईएचएल की 9,861 करोड़ रुपये की समाधान योजना को मंजूरी दे दी थी। आईआईएचएल ने मंजूरी बाद में ली सूत्रों के अनुसार, कर्जदाताओं ने दावा किया कि आईआईएचएल ने औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) से मंजूरी लेने का कदम बाद में उठाया है। उन्होंने कहा कि यह 27 फरवरी, 2024 को समाधान योजना को मंजूरी देते समय एनसीएलटी की तय शर्तों का हिस्सा भी नहीं था। इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए आईआईएचएल को भेजे गए सवालों का फिलहाल कोई जवाब नहीं आया है। डीआईपीपी की मंजूरी क्यों है जरूरी? सूत्रों के अनुसार, आईआईएचएल के डीआईपीपी के पास आवेदन जमा किए हुए 90 दिन बीत चुके हैं। लेकिन, मंजूरी अभी भी लंबित है। डीआईपीपी की मंजूरी इसलिए जरूरी है, क्योंकि आईआईएचएल के कुछ शेयरधारक हांगकांग के निवासी हैं, जो चीन नियंत्रित एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है।प्रेस नोट तीन के अनुसार, अगर भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले किसी देश (चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान) की कोई इकाई, नागरिक या स्थायी निवासी भारत में निवेश करता है तो उसे सरकार से इसके लिए मंजूरी लेनी होगी। http://dlvr.it/TCfcb6
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अगले साल दुगने हो जाएंगे चीन के परमाणु हथियार, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने परमाणु नीति को दी मंजूरी
China Nuclear Weapons: अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ संभावित परमाणु टकराव की तैयारी के लिए अमेरिकी परमाणु रणनीति को मंजूरी दी है। व्हाइट हाउस ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि प्रेसीडेंट ने इस साल की शुरुआत में योजना को मंजूरी दी थी। व्हाइट हाउस प्रवक्ता सीन सेवेट ने कहा कि इस साल की शुरुआत में जारी की गई ये गाइडेंस किसी एक इकाई, देश या खतरे की प्रतिक्रिया नहीं…
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FOR USA AND FIJI CITIZENS - TURKEY Official Turkey ETA Visa Online - Immigration Application Process Online
आधिकारिक तुर्की वीज़ा आवेदन ऑनलाइन तुर्की सरकार आप्रवासन केंद्र
Address : A-1, 309, Safdarjung Enclave, Block A 1, Nauroji Nagar, Safdarjung Enclave South West Delhi - 110029
Phone : +91 11 4171 7136
Email : [email protected]
Website : https://www.visa-turkey.org/hi/visa/
Business Hours : 24/7/365
Owner / Official Contact Name : James Charleton Bolton
Description : पर्यटन या व्यवसाय के लिए तुर्की जाने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को वीज़ा की आवश्यक शर्तें पूरी करनी चाहिए, जिसके लिए इस वेबसाइट से वैध तुर्की वीज़ा प्राप्त करना आवश्यक है। योग्य आगंतुक अब आसानी से इलेक्ट्रॉनिक वीज़ा के लिए अनुरोध कर सकते हैं, जो तुर्की में प्रवेश करने का सबसे सरल तरीका है। दूतावास में लंबी कतारों के बारे में भूल जाइए। तुर्की सरकार का ऑनलाइन ईवीज़ा ढांचा लैपटॉप या मोबाइल फोन से 100 प्रतिशत वेब पर उपलब्ध है। यात्री इलेक्ट्रॉनिक आवेदन आवेदन पत्र भरते हैं और लगभग 24 घंटे में, कभी-कभी 4 घंटे से भी कम समय में, ईमेल द्वारा स्वीकृत वीज़ा प्राप्त कर लेते हैं। इस वेबसाइट पर दो मिनट के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने और व्यक्तिगत और पासपोर्ट विवरण प्रदान करने के बाद तुर्की के लिए एकल और एकाधिक विज़िट वीज़ा उपलब्ध हैं। तो, वास्तव में टर्की eVisa क्या है। तुर्की के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीज़ा (eVisa) तुर्की गणराज्य में प्रवेश करने या यात्रा की अनुमति देने का एक प्राधिकरण है। कई देशों के निवासी उपयोग में आसान ऑनलाइन आवेदन संरचना के माध्यम से अपना तुर्की ईवीज़ा प्राप्त कर सकते हैं। eVisa पहले तुर्की दूतावास में दिए गए पासपोर्ट स्टिकर और पासपोर्ट स्टाम्प वीज़ा की जगह लेता है। तुर्की के लिए eVisa के कारण, आपको अपना आवेदन पूरा करने के लिए बस फ़ोन या लैपटॉप से वेब एक्सेस की आवश्यकता है। इंटरनेट आधारित तुर्की वीज़ा आवेदन को संसाधित करने के लिए केवल 24 घंटे की आवश्यकता होती है। स्वीकृत होने पर, eVisa सीधे आपको ईमेल द्वारा भेजा जाता है। हवाई अड्डों या समुद्री बंदरगाहों पर आव्रजन नियंत्रण अधिकारी अपनी प्रवासन नीति में तुर्की ईवीसा की वैधता की पुष्टि करते हैं। ईमेल द्वारा आपको भेजा गया eVisa अपने साथ रखें या इससे भी बेहतर, यदि आपका फोन बैटर खत्म हो जाए तो उसका प्रिंट आउट ले लें। निम्नलिखित राष्ट्र और जातियाँ तुर्की वीज़ा के लिए योग्य हैं वेब पर, एंटीगुआ और बारबुडा आर्मेनिया ऑस्ट्रेलिया बहामास बारबाडोस बरमूडा कनाडा चीन डोमिनिका डोमिनिकन गणराज्य ग्रेनेडा हैती हांगकांग बीएनओ जमैका कुवैत मालदीव मॉरीशस ओमान सेंट लूसिया सेंट ��िंसेंट और ग्रेनेडाइंस सऊदी अरब दक्षिण अफ्रीका ताइवान अमेरिका के बेडौइन एमिरेट्स यूएस में शामिल हो गए Anybody wishing to visit Turkey for Tourism or Business to the should meet the Visa prerequisites, which require having a having a legitimate Turkey visa from this website. Qualified visitor can now easily request for an an electronic visa, which is the simplest way to enter Turkey. Forget about the long queues at Embassy. Online Government of Turkey eVisa framework is 100 percent on the web from laptop or mobile phone. Travelers complete an electronic application application form and get the approved visa by email in about 24 hours, sometimes even less than 4 hours. Single and multiple visit visas for Turkey are accessible after you fill an online form on this website for two minutes and provide personal and passport details. So, what exactly is the Turkey eVisa. The electronic visa for Turkey (eVisa) is an authority to enter or permits visit into the Republic of Turkey. Residents of many nations can obtain their Turkish eVisa through a simple to utilize online application structure. The eVisa replaces the passport sticker and passport stamp visa previously given at Turkish Embassy. Because of the eVisa for Turkey, you just need a web access from phone or laptop to complete your application. The internet based Turkey visa application just requires 24 hours to process. When approve, the eVisa is sent straightforwardly to you by email. Immigration control officials at airports or sea ports ports confirm the legitimacy of the Turkish eVisa in their migration policy. Carry the eVisa sent to you by email or better still, take a print out just in case your phone batter dies. Following nations and ethnicities are qualified for Turkish Visa On the web, Antigua and Barbuda Armenia Australia Bahamas Barbados Bermuda Canada China Dominica Dominican Republic Grenada Haiti Hong Kong BNO Jamaica Kuwait Maldives Mauritius Oman St. Lucia St. Vincent and the Grenadines Saudi Arabia South Africa Taiwan Joined Bedouin Emirates US of America
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चीन सीमा के बीच नीति घाटी पर शुरू हो गई आवाजाही, BRO ने तैयार कर दिया टूटा वैली ब्रिज
Delhi: Uttarakhand Chamoli Niti Valley Bridge: उत्तराखंड के सीमांत जिला चमोली में गिर्थ��� नदी पर बीआरओ ने वैली ब्रिज तैयार कर दिया है। इस पुल से वाहनों की आवाजाही भी शुरू करा दी गई है। पिछले महीने 16 अप्रैल को नदी पर बना पुल टूट गया था। सामरिक दृष्टि से यह पुल अति महत्वपूर्ण है। यह पुल कुरकुटी-गमशाली-नीति सड़क और नीतिपास सड़क को जोड़ता है। http://dlvr.it/Sq4d97
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गुलाम कश्मीर पर निर्णायक फैसले का समय, विदेश मंत्री जयशंकर के बयान के बड़े मायनेगुलाम कश्मीर को खाली कराना ही जब हमारी एकमात्र घ��षित नीति है तो अब भारत की ओर से इस मामले में औपचारिक कूटनीतिक बयान शुरू हो जाने चाहिए। चीन ने 46 अरब डालर के खर्च से काराकोरम से ग्वादर तक सीपैक बनाने सहित पाकिस्तान में बड़े निवेश किए हैं।
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तीसरा व��श्वयुद्ध कैसे होगा ?
तीसरा विश्वयुद्ध कैसे होगा और इसमें भारत और मोदी की क्या भूमिका होगी और ये मोदी देश को जलता छोड़कर बार-बार विदेश में काहे को भागता दोड रहा है, जैसे सवालों का जवाब देता सेव करके रखने योग्य वो लेख जो जिसने नहीं पढ़ा उसने 'कल क्या होने वाला है' को आज ही जानने का अवसर खो देगा।
दी ग्रेट गेम…
अगर आप इतिहास को गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि वर्तमान में विश्व की महाशक्तियों में एक उसी प्रकार की आपाधापी और लेनदेन का खेल चल रहा है जैसा कि 15वीं-16वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों में उपनिवेशीकरण को लेकर विश्व की बंदरबांट को लेकर चला था। उपनिवेशीकरण ने औद्यौगिक क्रांति को सफल बनाकर पश्चिम को आर्थिक रूप से तो शक्तिशाली बना दिया परंतु औद्योगिक क्रांति और पूँजीवाद के फलस्वरूप 'बाजार और मांग' की आवश्यकता ने एक ऐसे भस्मासुर को जन्म दिया जिसके कारण पृथ्वी के असीम संसाधन भी कम पड़ने लगे हैं। इस भस्मासुर का नाम है 'उपभोक्तावाद' और ये एक ऐसा असुर ��ी है जिसकी भूख अगर शांत ना की जाये तो यह मानव सभ्यता को ही निगल लेगा और सबसे बुरी बात ये है कि इसके उदर में जितना भोजन डाला जाता है, इसकी भूख उतनी ही बढती जाती है जिसके कारण पृथ्वी के संसाधन चुकते जा रहे हैं और पृथ्वी एक गंभीर 'पारिस्थितिक संकट' से गुजर रही है जिसका नाम है 'वहन क्षमता में कमी' जिसे सरल शब्दों में कहूँ तो अपने अपने क्षेत्र (देशों) में जनसंख्या को जिंदा बनाये रखने के लिये आवश्यक संसाधनों की क्षमता में कमी।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार रूस के पास 'साइबेरिया' के रूप में अगले 150 सालों के लिये पर्याप्त खनिज संसाधन है और साथ ही उसने अंटार्कटिका पर अपना दावा ठोक दिया है जिसमें भारी मात्रा में खनिज संसाधन दबे हुए हैं।
इसी तरह अमेरिका ने भी अगले 150-200 साल के लिये खनिजों और तेल का तो बंदोबस्त किया हुआ है और फिलहाल वह 'दूसरों के माल' पर डाका डालकर एश कर रहा है।
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति चीन ने भी तनिक बदले हुये रूप में यह पॉलिसी बना रखी है कि वह भारत जैसे बेवकूफ और कई भ्रष्ट देशों से भारी मात्रा में अयस्क खरीदकर खनिजों के सुरक्षित भंडार बना रहा है।
अब रहा 'भोजन' जिसके लिये अमेरिका बिल्कुल चिंतित नहीं क्योंकि उसके पास पर्याप्त से भी कई गुना भूमि व कृषि संसाधन हैं और ऑस्ट्रेलिया व कनाडा के रूप में विश्वस्त मित्र हैं, और सच कहा जाये तो ये अमेरिका की परछांई हैं जिनके द्वारा अपार मात्रा में दूध, मछली व मांस की आपूर्ति की गारंटी है।
दूसरी तरफ रूस के लिये भोजन व गर्म पानी के बंदरगाह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है इसी कारण रूस यूक्रेन जिसे यूरोप का 'अन्न भंडार' कहा जाता है, को किसी भी हालात में अपने शिकंजे में बनाये रखना चाहता है और "क्रीमिया विवाद" की जड़ यही है।
चीन के सामने भी भोजन के लिये कृषिभूमि की कमी व समुद्र में कमजोरी मुख्य संकट है जिसके लिये उसने अजीब हल निकाला है। उसने एक ओर तो हिंद महासागर में "पर्ल स्ट्रिंग" का निर्माण शुरू किया है और दूसरी ओर अफ्रीका में हजारों एकड़ जमीन को लीज पर लेना शुरू किया है ताकि वहां वह व्यापारिक फसलों को उगा सके और खुद अपनी भूमि पर खाद्यान्न फसलों को।
विशेषज्ञों की मानें तो पृथ्वी के संसाधन अब चुक रहे हैं जिसमें फिलहाल दो चीजें सबसे मुख्य हैं: पैट्रोल और पानी।
वर्तमान जंग पैट्रोल की है और भविष्य का संघर्�� पानी को लेकर होगा और इसमें दो धड़े होंगे चीन v/s अमेरिका। अब इसमें शेष विश्व और भारत की क्या स्थिति है?
विश्व राजनीति की शतरंज में महाशक्तियां अपने…
क्या क्या मोहरे चल रहीं हैं?
भारत की स्थिति क्या है?
क्यों मोदी ताबड़तोड़ विदेश दौरे कर रहे हैं?
संसाधनों की इस होड़ में हम कहाँ हैं?
आपको बुरा लगेगा पर सत्य ये है कि कहीं नहीं।
क्यों?
क्योंकि आजादी के बाद के 15 साल हमने नेहरू की बेवकूफाना आदर्शवादी विदेशनीति की भेंट चढ़ा दिये और तिब्बत जैसे कीमती संसाधन को खो दिया। वरना आज चारों ओर से भारत से घिरा नेपाल भारत का हिस्सा बन चुका होता और हिमालय के पूरे संसाधनों पर हमारा कब्जा होता। इसके बाद से शास्त्री जी के लघु शासनकाल को छोड़कर शेष समय सरकारें विशेषतः गांधी खानदान बिना भविष्य की ओर देखे सिर्फ "प्रशासन के लिये शासन" करते रहे जिसमें जनता सिर्फ चुनिंदा लोगों के लिये वोटों की संख्या और उनकी विलासिता के लिये 'उत्पादक' मात्र थी।
दूसरी ओर विशाल और बढती हुई जनसंख्या, जिसके लिये इतने संसाधन जुटाना असंभव भी है, खासतौर पर जब देश में बहुसंख्यकों के प्रति शत्रु मानसिकता रखने वाली 20 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या व एक छोटा पर बहुत प्रभावी कुटिल बिका हुआ देशद्रोही बुद्धिजीवी वर्ग हो जो राष्ट्रहित की प्रत्येक नीति में रोड़े अटकाता हो।
भारत की स्थिति, तो कुल मिलाकर भारत इस समय अभूतपूर्व खतरे का सामना कर रहा है। दक्षिण में हिंद महासागर की तरफ से भारत सुरक्षित है पर यह स्थिति दिएगो गर्सिया पर काबिज अमेरिका पर निर्भर है।
पश्चिम में पाकिस्तान
पूर्व में बांग्लादेश
उत्तर में स्वयं चीन
'पांचवीं दिशा' का खतरा सबसे भयानक है और भारत के अंदर ही मौजूद है। 20 करोड़ की भारत विरोधी सेना।
कश्मीर में पूरी तरह बढ़त में, केरल में निर्णायक, पूर्वोत्तर, असम व बंगाल में प्रबल स्थिति में, उत्तरप्रदेश और बिहार में वे कांटे की टक्कर देने की स्थिति में है।
शेष भारत में भी वे विभिन्न स्थानों पर परेशानी खड़ा करने की स्थिति में हैं। केरल में तो वे "पॉपुलर फ्रंट" के नाम से वे सैन्य रूप भी ले चुके हैं। ये वामपंथी, ये अरुंधती टाइप के साहित्यकार, भांड टाइप के अभिनेता और महेश भट्ट जैसे एडेलफोगैमस ��ोग, बिंदी गैंग आदि सऊदी पैट्रो डॉलर्स और चीन के हाथों बिके हुये वे लोग हैं जो मोदी का रास्ता रोकने के लिये देशविरोधी घरेलू और विदेशी शक्तियों का 'हरावल दस्ता' है ताकि मोदी की गति कम करके इस 'ग्रेट गेम' में पछाड़ जा सके… Now great game is near to start.
भारत को छोड़कर शेष विश्व इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हो चुका है और अब वो मृतप्रायः ह���। इस्लाम का संकुचन अरब देशों में पैट्रोल के खतम होते ही प्रारम्भ हो जायेगा।
अब मारामारी शुरू होगी पानी के ऊपर और दुर्भाग्य से इसकी शुरूआत भारत से ही होगी क्योंकि चीन ना केवल ब्रह्मपुत्र नदी पर अपनी निर्णायक पकड़ बना चुका है बल्कि यह तक कहा जा रहा है कि हिमालय क्षेत्र के मौसम और ग्लेशियरों को प्रभावित करने की टेक्नोलॉजी विकसित कर चुका है। चीन की तीन कमजोरी हैं…
1- निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था 2- टेक्नोलॉजी 3- हिंद महासागर
पहली कमजोरी से निबटने के लिये चीन ने विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार और ट्रेजरी बॉन्ड खरीद रखे हैं जिसके जरिये वह अमेरिका के डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दो दिन में कौड़ियों के भाव का कर सकता है परंतु भारत के संदर्भ में उसका कदम उल्टा बैठेगा और साथ ही भारत चीन के माल पर किसी भी 'बहाने' से रोक लगाकर उसकी अर्थव्यवस्था को गड्ढे में धकेल सकता है। इसलिये आर्थिक मोर्चे पर तो सभी पक्ष "रैगिंग वाली रेल" बने रहेंगे जिसमें झगड़ा बस इस बात का है कि "इंजन" कौन बनेगा और "पीछे वाला डिब्बा" कौन रहेगा। (मेहरबानी करके रैगिंग की रेल का मतलब ना पूछियेगा)
अब बात टेक्नोलॉजी की जिसमें चीन दिनरात एक किये हुए है पर मिसाइल और न्यूक्लियर टेक्नीक को छोड़कर वह पश्चिम के सामने कहीं नहीं टिकता, विशेषतः सामरिक तकनीक के क्षेत्र में। इसीलिये चीन "पश्चिम की सामरिक तकनीक के गले की नस" अर्थात टेलीकम्यूनिकेशन को बर्बाद करने के लिये "सैटेलाइट किलर मिसाइल्स" का सफल परीक्षण कर चुका है, जिसके जवाब में अमेरिका ने "नैनो सैटेलाइट" लॉन्च किया हैं। यानि इस क्षेत्र में पश्चिम अभी भी भारी बढ़त में है परंतु चीन और पश्चिम दोनों ही जानते हैं कि टैक्नोलॉजी से चीन को रोका तो जा सकता है पर निर्णायक रूप से परास्त नहीं किया जा सकता।
अब तीसरी कमजोरी 'हिंदमहासागर' और उसमे भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का प्रभुत्व जिसके तोड़ के रूप में चीन ने "पर्ल स्ट्रिंग" विकसित की है जिसक��� एक सिरा पाकिस्तान स्थित 'ग्वादर बंदरगाह' है तो दूसरा सिरा 'सेशेल्स' में है। इसके बावजूद भारत अंडमान स्थित नौसैनिक अड्डे से पूरे हिंदमहासागर में चीन पर बढ़त में है और बाकी का काम मोदी ने ताबड़तोड़ विदेश दौरों और सफल कूटनीति से कर दिया। जरा याद कीजिये विदेश दौरों में देशों का क्रम और अब ऑस्ट्रेलिया, जापान, विएतनाम, भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के साथ एक हिंदमहासागरीय संगठन बनाने की कोशिश हो रही है जो चीन की 'पर्ल स्ट्रिंग' का मुंहतोड़ जवाब होगी। हालांकि ऑस्ट्रेलिया की झिझक के कारण इसका सैन्यस्वरूप विकसित नहीं हो पाया है।
इस तरह चीन को घेरने के बावजूद अपनी "हान जातीयता" पर आधारित विशाल जनशक्ति के कारण पश्चिम उसपर निर्णायक विजय हासिल नहीं कर सकता। उसपर विजय पाने का एकमात्र तरीका जमीन के रास्ते से हमला करना ही है, जिसके मात्र तीन रास्ते हैं…
रूस द्वारा मध्य एशिया की ओर से
पाकिस्तान के रास्ते
भारत की ओर से
अब आपको समझ आ गया होगा कि चीन रूस की खुशामद क्यों कर रहा है और क्यूँ अपनी पूर्वनीति के विपरीत सीरिया में रूस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर 'एयर स्ट्राइक' में भाग लेने को तैयार हो गया है। चीन का पूरा पूरा प्रयास रूस के साथ गठबंधन करने का या कम से कम उसे 'न्यूट्रल' रखने का होगा ताकि रूस की ओर से निश्चिंत हो सके।
पाकिस्तान की तरफ के रास्ते को चीन POK में सैन्य जमावड़ा करके और ग्वादर तक अबाध सैन्यसप्लाई की व्यवस्था द्वारा बंद कर चुका है। अगर सियाचिन पाकिस्तान के कब्जे में पहुंच गया तो चीन इस पूरे क्षेत्र को पूरी तरह "लॉक" कर देगा, भारत के संदर्भ में दोनों पक्ष जानते हैं कि समझौता संभव नहीं क्योंकि 'तिब्बत की फांस' दोनों के गले में अड़ी है। भारत को हतोत्साहित करने और सामरिक रूप से निर्णायक महत्वपूर्ण स्थानों को कब्जा करने हेतु ही वह अक्सर सीमा उल्लंघन करता रहता है।
तो कुल मिलाकर 'भारत' ही है जो चीन को रोकने के लिये पश्चिम का 'प्रभावी हथियार' बन सकता है और यही कारण है कि पश्चिमी देशभारत में इतना 'इंट्रेस्ट' दिखा रहे हैं।
पश्चिम की इस विवशता को मोदी ने पकड़ लिया है इसीलिये संघर्ष से पूर्व 'अर्थववस्था और सैन्य टेक्नोलॉजी' की दृष्टि से सक्षम बना देना चाहते हैं इसीलिये उनके दौरों में निरंतर दो बातें परिलक्षित हो रहीं हैं; आर्थिक निवेश और हथियारों की ताबड़तोड़ खरीदी के साथ सैन्य टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण।
इसी तरह कूटनीतिक विदेश दौरों के द्वारा लामबंद करते हुए चीन विरोधी पूर्वी देशों का संगठित करने की कोशिश करते हुए चीन के 'पर्ल स्ट्रिंग' को तोड़ दिया ह��, जिससे चिढकर ही चीन ने नेपाल में ��धेशियों के विरुद्ध माहौल खड़ाकर भारत के नेपाल में बढ़ते प्रभाव को रोका है और इसका असर मोदी पर इंग्लैंड दौरे के दौरान दिखाई दिया।
भारत की तैयारियां…
भारी मात्रा में निवेश को आमंत्रित करना।
आर्थिक मोर्चे पर सुदृढ़ता हासिल करना। (सेनायें भूखे पेट युद्ध नहीं कर सकतीं)
नौसेना का आधुनिकीकरण।
वायुसेना को एशिया में सर्वश्रेष्ठ बनाना और उज़्बेकिस्तान में भारत के सैन्य हवाई ठिकाने को मजबूत बनाना।
अंतरमहाद्वीपीय तथा मल्टीपल वारहैड मिसाइलों का विकास व आणविक शस्त्रागारों का विकास।
बलूचिस्तान व अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को बढ़ाना।
इलैक्ट्रोनिक वार के लिए "काली 5000" जैसी तकनीक का उन्नतीकरण।
अंतरिक्षीय संसाधनों के उपयोग की संभावनाओं के मुद्देनजर "मार्स मिशन" व अन्य "अंतरिक्ष कार्यक्रमों" का संचालन।
पर इतनी तैयारियों के बावजूद अभी भी भारत बहुत पिछड़ा हुआ है और पश्चिमी शक्तियों के ऊपर निर्भर है और उसे निर्भर रहना पड़ेगा। अब कल्पना कीजिये कि भारत में किसी भी मुद्दे पर देशव्यापी दंगे शुरू हो जाते हैं और उसी समय पाकिस्तान भी अघोषित हमला शुरू कर देता है, जिसे समर्थन देते हुये चीन भी अपने दावे के अनुसार अरुणाचल पर कब्जा कर लेता है और लद्दाख में भी घुस जाता है। अब बताइये भारत क्या करेगा?
भारत के पास ले देकर 11 लाख रेगुलर आर्मी और 32 लाख रिजर्व आर्मी है जबकि चीन की वास्तविक सैन्य संख्या हमारी कल्पना से परे है। और फिलहाल चीन अपने खरीदे हुए भारतीय बुद्धिजीवियों द्वारा और सऊदी फंड से प्रायोजित मुस्लिमों व 'सैक्यूलर राजनेताओं' द्वारा भारत में ही भारत के विरुद्ध 'अप्रत्यक्ष युद्ध' छेड़ चुका है और इसका अगला कदम होगा 'गृह युद्ध' जिसका एक लघुरूप हम पश्चिमी उत्तरप्रदेश में देख चुके है। अगर ये गृहयुद्ध शुरू होता है और यकीन मानिये वो होगा ही 'और यह होगा संसाधनों' के लिये परंतु 'धर्म' के नाम पर होगा। इस स्थिति का फायदा उठाने से पाकिस्तान नहीं चूकेगा और ऐसी स्थिति में अगर चीन भी मैदान में उतरा तो अमेरिका व पश्चिम को भी हस्तक्षेप करना पड़ेगा और यह तीसरे विश्वयुद्ध की शुरूआत होगी।
तो पूरा परिदृश्य क्या हो सकता है: एक तरफ चीन + पाकिस्तान + अरब देश
दूसरी ओर अमेरिका + इजरायल +यूरोप +जापान
रूस संभवतः तटस्थ रहेगा लेकिन अगर वह चीन के साथ कोई गुट बनाता है, चाहे वह आर्थिक गुट (शंघाई सहयोग संगठन) या सैन्य गुट (जिसकी शुरूआत सीरिया में ��िख रही है) तो चीन बहुत भारी पड़े���ा।
इस परिस्थिति में भारत के सामने अमेरिका का सहयोग करने के अलावा कोई चारा नहीं और ना ही पश्चिम के पास भारत जैसी विशाल मानव शक्ति है और यही कारण है कि पश्चिमी शक्तियां आज मोदी की तारीफों के पुल बांध रही हैं, भारी निवेश कर रहीं हैं (बुलेट ट्रेन में जापान की उदार शर्तों के बारे में पढ़िये) और सैन्य तकनीक का हस्तांतरण कर रहीं हैं जबकि इजरायल द्वारा चीन को "अवाक्स राडार" देने से मना कर दिया जाता है।
मोदी की कोशिश है कि इस स्थिति के आने से पूर्व ही भारत को पश्चिम की 'आर्थिक व सैन्य मजबूरी' बना दिया जाये और मोदी की सारी व्याकुलता, बैचैनी और तूफानी विदेश दौरे उसी "महासंघर्ष" की तैयारी के लिये हैं ना कि 'तफ़रीह' के लिये। मोदी की कोशिश चीन से त्रस्त वियतनाम, म्यामांर, मंगोलिया, इंडोनेशिया, जापान आदि देशों के साथ मिलकर आक्रामक तरीके से घेरने की भी है और पहली बार भारत ने चीन को विएतनाम सागर, जिसे चीन दक्षिण चीन सागर कहता है, में दबंगई से अंगूठा दिखाया है। ये है मोदी की विदेश दौरों की कूटनीति का परिणाम। तो मोदी के नादान और अधीर समर्थको, समझ गये ना कि मोदी विदेश दौरे पर दौरे क्यों कर रहे हैं?
तो दोस्तो…
कुछ दिन और गाय माता का दर्द बर्दाश्त कर लो।
कुछ दिन और समान संहिता का इंतजार कर लो।
कुछ दिन और कश्मीरी पंडितों की तकलीफ झेलो।
कुछ दिन और महंगी रोटी पैट्रोल से गुजारा करो।
क्योंकि… पहले, भारत को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना है… दूसरा, भारत को सैन्य महाशक्ति बंन जाने दो… तीसरा, भारत को आंतरिक शत्रुओं से निबटने लायक क्षमता हासिल करने दो…चौथा, तुम खुद अपने आपको गृहयुद्ध की स्थिति में दोहरे आक्रमण का प्रतिरोध करने लायक तैयार कर लो।
क्योंकि… क्योंकि… क्योंकि… You are also an important player of this Great Game.
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चमोली में चीन सीमा को जोड़ने वाला पुल डंपर गुजरने से टूटा
चमोली गोपेश्वर मलारी,जोशीमठ, चमोली गढ़वाल.. नीति घाटी को मलारी बॉर्डर से जोड़ने वाला एकमात्र वैली ब्रिज टूटा भारत-तिब्बत सीमा को जोड़ने वाली मलारी-नीती बॉर्डर सड़क मलारी से 1 किमी0 आगे बुरांस में होत्ती गाड़ नदी के ऊपर बना पुल टूटने से हुई बाधित हो गयी है। नीती घाटी की तरफ से सीमा को जोड़ने वाला सामरिक दृष्टि का यह अति महतत्वपूर्ण सड़क मार्ग है। इस के पुल टूटने से सीमांत नीती घाटी के ऋतु प्रवासी…
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चीन के आलोचक और भारत के दोस्त… जानें कौन हैं अमेरिका के नए एनएसए माइक वॉल्ट्ज
अमेरिका के राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप ने फ्लोरिडा के रिपब्लिकन कांग्रेसमैन माइक वॉल्ट्ज को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की. साथ ही ट्रंप ने ये भी कहा कि माइक वॉल्ट्ज उनके कैबिनेट में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम करेंगे. माइक पहले व्हाइट हाउस और पेंटागन में भी सेवा दे चुके हैं. यह फैसला ट्रंप प्रशासन की सुरक्षा नीति को मजबूत करने की दिशा में…
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दलाई लामा ने चीन पर गुगली फेंकी, बौद्ध धर्म के मंगोलियाई प्रमुख नियुक्त किए | By designating a Mongolian as the leader of Buddhism, the Dalai Lama strikes back at China;
Source: www.hindustantimes.com
धर्मशाला में दलाई लामा द्वारा औपचारिक रूप से राज्याभिषेक किया
ऐसी अपुष्ट रिपोर्टें हैं कि आठ वर्षीय लड़के का दसवें खलखा जेटसन धम्पा रिनपोछे के रूप में पुनर्जन्म हुआ, जिसका फरवरी के अंत में गंडन मठ में एक समारोह में अभिषेक किया गया था, जिसके बाद 8 मार्च को धर्मशाला में दलाई लामा द्वारा औपचारिक रूप से राज्याभिषेक किया गया था।
14 वें दलाई लामा 87 वर्षीय एक कमजोर व्यक्ति हैं, जो मानते हैं कि वह 113 वर्ष की जैविक उम्र तक जीवित रहेंगे और तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रभावशाली गेलुग्पा स्कूल के प्रमुख के रूप में उनके पुनर्जन्म की घोषणा करने की कोई तत्काल योजना नहीं है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उनसे नफरत करती है और उन्हें "अलगाववादी" कहती है क्योंकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तिब्बती बौद्ध धर्म के चार स्कूलों के उच्च लामाओं के आधिकारिक पुनर्जन्म की शक्ति को निरस्त करते हुए बीजिंग के साथ तिब्बत नीति का चीनकरण किया है। फिर भी इस उन्नत उम्र में, कैंसर से बचने वाले ने बीजिंग को गुगली देने में ��ामयाबी हासिल की और तिब्बती बौद्ध धर्म के तीसरे सबसे वरिष्ठ लामा या आध्यात्��िक नेता और भूमि-बंद राष्ट्र में गेलुग्पा स्कूल के प्रमुख के पुनर्जन्म की घोषणा करके शी जिनपिंग शासन को क्लीन बोल्ड कर दिया। मंगोलिया का। दसवें खलखा जेटसन धम्पा रिनपोछे का 14वें दलाई लामा द्वारा एक समारोह में अभिषेक किया गया था, जिसमें लगभग 600 मंगोलियाई लोग शामिल हुए थे, जो एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए धर्मशाला गए थे, जिसका दलाई लामा और सीपीसी के बीच चल रहे युद्ध और तिब्बती बौद्ध धर्म के अस्तित्व के लिए बड़े प्रभाव हैं।
धर्मशाला में दलाई लामा संस्था
ऐसी अपुष्ट खबरें हैं कि 2015 में अमेरिका में पैदा हुए आठ वर्षीय लड़के का फरवरी के अंत में मंगोलिया के सबसे बड़े गंडन टेगचिनलेन मठ में एक समारोह में दसवें खालका के रूप में अभिषेक किया गया था। समारोह में मठ के उपाध्याय और मंगोलिया के उच्च लामाओं ने भाग लिया। हालांकि, तिब्बती बौद्ध धर्म के विशेषज्ञों का कहना है कि आठ साल के लड़के को 8 मार्च को पुनर्जन्म घोषित किए जाने के बाद ही वैधानिकता मिली, जो कि 14वें दलाई लामा द्वारा 2016 में उलनबटोर की यात्रा के दौरान किए गए अभ्यास की परिणति थी।
दसवां खलखा अगुइदाउ और अचिल्टाई अट्टनमार नाम के जुड़वां लड़कों में से एक है और उलनबटोर में सबसे अमीर व्यापार और राजनीतिक साम्राज्यों में से एक है। धर्मशाला में दलाई लामा संस्था नए मंगोलियाई तिब्बती नेता की वास्तविक पहचान पर चुप्पी साधे हुए है क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें चीनी शासन द्वारा निशाना......
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एससीओ सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति की मौजूदगी का कैसा रहेगा असर, जानें क्या है भारत की चुनौती
नई दिल्ली : चीनी राष्ट्रपति कजाकिस्तान के अस्ताना में 3- 4 जुलाई को होने वाली एससीओ समिट में हिस्सा लेंगे। चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से रविवार को इस बात की पुष्टि भी की गई। इसके साथ शी का कजाकिस्तान और ताजिकिस्तान जाने का भी कार्यक्रम है। हालांकि इस बार भारत की ओर से प्रधानमंत्री एससीओ समिट में हिस्सा नहीं लेंगे। बीते शुक्रवार को ही विदेश मंत्रालय की ओर से ये साफ किया गया था कि अस्ताना में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करेंगे। तो जिनपिंग, शरीफ से होती मुलाकात हालांकि इसके अलावा इस मामले पर कोई और डिटेल नहीं दी गई। देश में नई सरकार बनने के बाद पहले संसद के सत्र चलते ऐसा फैसला लिया गया। इसके साथ ही चीन के साथ संबंधों में असहजता भी एक वजह मानी जा रही है। अगर प्रधानमंत्री अस्ताना जाते हैं, तो उनका सामना शी जिनपिंग के साथ साथ पाकिस्तान के राष्ट्रपति शहबाज शरीफ से भी होता। पिछले साल इस तरह की रिपोर्ट्स सामने आई थी, जिनमें इस बात की आशंका जताई थी कि चीन और रूसी राष्ट्रपति पुतिन समिट में हिस्सा लेने के लिए भारत नहीं आने वाले हैं। भारत की भागीदारी में बदलाव नहीं भारत की ओर से समिट वर्चुअल तरीके से आयोजित की गई थी। चीनी मामलों के जानकार हर्ष वी पंत कहते हैं कि चीन और भारत के संबंधों में असहजता तो है, लेकिन एससीओ को लेकर भारत अपनी भागीदारी में ज्यादा बदलाव नहीं करना ��ाहेगा। वो कहते हैं कि एससीओ भारत के लिए अहम प्लैटफॉर्म बना रहेगा, क्योंकि इसमें आतंकवाद, स्मगलिंग और नार्को टेररिज्म जैसे मुद्दों पर काफी फोकस किया जाता है, जो भारत के लिए भी जरूरी हैं।हालांकि ये जरूर है कि जिस तरह के संबंध भारत और चीन के बीच मौजूदा समय में चल रहे हैं, उसे देखते हुए भारत की प्रधानमंत्री लेवल पर इंगेजमेंट को लेकर असहजता होना लाजिमी है। दोनों देशों के संबंध ऐसे नहीं है कि चीनी राष्ट्रपति द्विपक्षीय मुलाकात की संभावना बने। ऐसे में संभव है कि भारत ने इसको ध्यान में रखकर ही ये फैसला लिया होगा। एससीओ को लेकर भारत की विदेश नीति में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। 2001 में हुआ था गठन पिछले साल एससीओ समिट भारत के पास थी। इस बार समिट में क्षेत्रीय सुरक्षा के अलावा कनेक्टिविटी और व्यापार को आगे बढ़ाने को लेकर फोकस किया जाएगा। बात साझे ज्वाइंट इनवेस्टमेंट फंड को लेकर भी हो रही है। 2001 में बना शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन एक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा ग्रुप है। कौन-कौन है संगठन का सदस्य मौजूदा समय में चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान,ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान इसके सदस्य हैं। ईरान 2023 में इसका हिस्सा बना। भारत का एससीओ के साथ संबंध साल 2005 में शुरू हुआ लेकिन साल 2017 में वो इसका पूर्ण मेम्बर बन गया था। भारत ने पहली बार साल 2015 में उफा समिट में पूर्ण सदस्यता के लिए कोशिश की थी दो स्तर पर रणनीति बनानी होगी जानकार कहते हैं कि भारत के लिए चीन एक रणनीतिक समस्या है, सामरिक चुनौती है, ऐसे में भारत अपनी विदेश नीति के जरिए इस समस्या को कई स्तरों पर सुलझाने की कोशिश करेगा । एक ओर भारत को एससीओ और ब्रिक्स जैसे मंचों पर मौजूद रहना पड़ेगा और इसके साथ ही ची न को ये स्पष्ट करना होगा कि उसके दबाव में हम किसी नीति को नहीं अपनाएंगे। इसीलिए अगर चीनी विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री के बीच मुलाकात होती है तो भारत अपना पक्ष उठाएगा ही। खासकर जयशंकर ने साल 2020 के बाद इस तरह की बैठकें की हैं और संभव है कि इस बार भी दोनों देशों के विदेश मंत्री एक दूसरे से मुखातिब हों http://dlvr.it/T925hn
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भारत के दर्रे
भारत के दर्रे
दर्रे पर्वतो व पहाड़ियों के बीच एक संपर्क मार्ग है। यह विभिन्न उद्देश्यों के लिए देश के विभिन्न हिस्सों और पड़ोसी देशों के साथ भी जुड़ने का एक प्रवेश द्वार है। भारत का भूगोल :भारत का परिचय (Introduction to India) भारत के पर्वत व पहाड़िया (Indian Mountains and Hills) भारत के महत्त्वपूर्ण दर्रो की सूची- उत्तर भारत के दर्रे जम्मू - कश्मीर के दर्रे बुर्ज��ला दर्रा - यह दर्रा श्रीनगर को लेह से जोड़ता है। जोजिला दर्रा - यह दर्रा भी श्रीनगर को लेह से जोड़ता है। बनिहाल दर्रा - यह दर्रा बनिहाल को क़ाज़ीगुंड से जोड़ता है। -प्रसिद्ध जवाहर सुरंग इसी दर्रे से गुजरती है। -यह पीर पंजाल श्रेणी में स्थित है। लद्दाख के दर्रे थांगला दर्रा - यह दर्रा लद्दाख में स्थित है । चांगला दर्रा - यह दर्रा भी लद्दाख को तिब्बत से जोड़ता है। काराकोरम दर्रा - भारत का सबसे ऊँचा दर्रा। हिमाचल प्रदेश के दर्रे बारालाचा-ला दर्रा - यह दर्रा भी मंडी को लेह से जोड़ता है। शिपकिला दर्रा - यह दर्रा भी शिमला को तिब्बत से जोड़ता है। रोहतांग दर्रा - यह दर्रा कुल्लू , स्पीति और लाहुल को आपस में जोड़ता है। उत्तराखंड के दर्रे नीति-ला दर्रा - यह दर्रा ��ी भारत को तिब्बत से जोड़ता है। माना-ला दर्रा - यह दर्रा भी शिमला को तिब्बत से जोड़ता है। लिपुलेख दर्रा - कैलाश मानसरोवर का रास्ता इसी दर्रे से होकर गुजरता है। उत्तर-पूर्वी भारत के दर्रे सिक्किम के दर्रे जेलेप- ला दर्रा - यह दर्रा भारत को ल्हासा (तिब्बत की राजधानी ) से जोड़ता है। नाथुला दर्रा - यह भारत और चीन के बीच व्यापारिक सीमा चौकियों में से एक है। यह दर्रा भारत को चीन से जोड़ता है। अरुणाचल प्रदेश के दर्रे दिफू दर्रा - दिफू दर्रा भारत, चीन और म्यांमार की विवादित क्षेत्र में स्थित दर्रा है। यह मैकमोहन रेखा पर स्थित है। बोमडिला दर्रा - यह दर्रा भारत (अरुणाचल प्रदेश ) को ल्हासा (तिब्बत की राजधानी ) से जोड़ता है। बुमला दर्रा चांगयाप दर्रा मणिपुर का दर्रे तुफु दर्रा - यह दर्रा भारत को म्यांमार से जोड़ता है। प्रायद्वीप / दक्षिण भारत के दर्रे दक्षिण भारत के सभी दर्रे पश्चिमी घाट में स्थित है। महाराष्ट्र के दर्रे थालघाट दर्रा - यह दर्रा भी मुंबई को नासिक से जोड़ता है। भोरघाट दर्रा - यह दर्रा भी मुंबई को पुणे से जोड़ता है। केरल के दर्रे पालघाट दर्रा - यह दर्रा नीलगिरि और अन्नामलाई के बीच स्थित है । सनकोटा दर्रा - यह दर्रा अन्नामलाई व कार्डमम के बीच स्थित है । Read the full article
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Financetime.in सुनेंगे अगर राहुल गांधी के पास चीन पर बेहतर ज्ञान है
विदेश मंत्री ने विदेश नीति पर अपनी टिप्पणी के लिए राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा। नयी दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आज राहुल गांधी पर पलटवार किया, जिन्होंने हाल ही में सुझाव दिया था कि उन्हें विदेश नीति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है और “और सीखने की जरूरत है”। उन्होंने सरकार की “रक्षात्मक” चीन नीति के रूप में वर्णित अपनी लगातार आलोचना पर कांग्रेस के नेता पर भी निशाना साधा। “अगर मुझे…
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