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SC Judgement on Farm Laws: कृषि कानून स्थगित, जानें कौन हैं सुप्रीम कोर्ट कमिटी के सदस्य
SC Judgement on Farm Laws: कृषि कानून स्थगित, जानें कौन हैं सुप्रीम कोर्ट कमिटी के सदस्य
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस मुद्दे का समाधान के लिए चार सदस्यीय कमिटी बना दिया है। इस कमिटी में भूपिंदर सिंह मान (अध्यक्ष बेकीयू), डॉ प्रमोद कुमार जोशी (अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान), अशोक गुलाटी (कृषि अर्थशास्त्री) और अनिल घनवट (शिवकेरी संगठन, महाराष्ट्र) होंगे। भूपिंदर सिंह मान भूपिंदर सिंह मान भारतीय किसान यूनियन (BKU) के अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद हैं। किसान…
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गोमती रिवर फ्रंट: 1500 करोड़ का घपला, सरकारी पैसे पर विदेश की सैर... गिरफ्त में कब आएंगे रसूखदार? Divya Sandesh
#Divyasandesh
गोमती रिवर फ्रंट: 1500 करोड़ का घपला, सरकारी पैसे पर विदेश की सैर... गिरफ्त में कब आएंगे रसूखदार?
लखनऊ गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की जांच की आंच कब बड़ों तक पहुंचेगी? …चार साल बाद भी यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। रिवर फ्रंट को लेकर हुई तीन सदस्यीय जांच कमिटी की रिपोर्ट (जिसके आधार पर गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी) में तत्कालीन सिंचाई मंत्री से लेकर तत्कालीन मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सिंचाई व प्रमुख सचिव वित्त की भूमिका पर कई सवाल उठाए गए थे।
लेकिन चार साल बाद भी घोटाले की जांच की सुई सिर्फ नामजद इंजिनियरों के आसपास घूम रही है। हालांकि, कमिटी की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कैसे 1500 करोड़ से ज्यादा के इस प्रॉजेक्ट में जिम्मेदारों ने भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के सामने आंख-कान बंद कर लिए। रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि रिवर फ्रंट के निर्माण में हुई गड़बड़ियों में उच्च स्तरीय अनुश्रवण समिति (टास्क फोर्स) में शामिल अफसर और काम से जुड़े अभियंता पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।
टास्क फोर्स बनी, नहीं जताई कोई आपत्तिरिवर फ्रंट के निर्माण की योजना को मंजूरी मिलते ही इसके आकार को देखते हुए 25 मार्च 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें मुख्य सचिव के अलावा तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल, तत्कालीन सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता, विभागाध्यक्ष और मुख्य अभियंता शामिल थे। इस समिति ने प्रॉजेक्ट को लेकर 23 मीटिंग कीं।
दीपक सिंघल ने निर्माण ��्थल के 20 से 25 दौरे किए लेकिन इन्हें कोई गड़बड़ी और अनियमितता नहीं मिली। योजना से जुड़े हर काम का बजट छह से आठ गुना बढ़ गया, नियमों के विरुद्ध टेंडर होते रहे, मनाही के बाद भी एक काम के बजट का इस्तेमाल दूसरे काम में होता रहा लेकिन जिम्मेदारों ने आंखें मूंदे रखीं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह समझ के परे है कि इतनी बड़ी परियोजना में कोई चेक्स ऐंड बैलेंसेज का सिस्टम नहीं दिख रहा है, ताकि नियमों के विरुद्ध कहीं भी अनुमोदित बजट के ऊपर खर्च न हो सके और उसकी रोकथाम हो पाए।
तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त और बाद में मुख्य सचिव रहे राहुल भटनागर की भूमिका पर भी सवाल उठे थे। दरअसल पहले इस प्रॉजेक्ट के लिए सिंचाई विभाग ने 747.49 करोड़ और फिर 1990.24 करोड़ का पुनरीक्षित बजट भेजा था। जिसे वित्त व्यय समिति ने परीक्षण के बाद घटाकर 1513.51 करोड़ कर दिया। इसे 25 जुलाई 2016 को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक अनुमोदित बजट से आठ से दस गुना बढ़ाकर खर्च होता रहा और परियोजना का 40 प्रतिशत से अधिक काम हुआ ही नहीं। अनुमोदित बजट से अधिक खर्च के लिए बिना परमिशन खर्च होता रहा। लेकिन टास्क फोर्स और वित्त व्यय समिति ने इसको लेकर कोई आपत्ति नहीं की न ही इस ओर ध्यान दिया।
टास्क फोर्स के आदेश पर हुआ अधिक खर्चजांच के दौरान जिन अभियंताओं के बयान लिए गए उनमें से कुछ ने कहा था कि सीमा को पार करके अधिक व्यय और भुगतान इसलिए किया गया क्योंकि काम को जल्द खत्म करने के लिए अनुश्रवण समिति से निर्देश मिलता रहता था। सीएम के ड्रीम प्रॉजेक्ट और कार्य जल्द खत्म करने की आड़ में कई कामों को तो बिल्कुल छोड़ दिया गया जबकि ये परियोजना में मंजूर थे, वहीं कुछ कामों में प्रगति धीमी रखी और छोड़े हुए कामों का बजट दूसरे कामों में लगा दिया। इसके लिए कोई अनुमति या अनुमोदन नहीं लिया गया।
सरकारी पैसों पर विदेश यात्राएं की गईंचैनलाइजेशन व रबर डैम की तकनीक के बारे में जानकारी के लिए तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव, मुख्य सचिव आलोक रंजन, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल और वरिष्ठ विभागीय अभियंताओं ने तकनीक में माहिर देशों चीन, जापान, हंगरी, जर्मनी, मलयेशिया, सिंगापुर, साउथ कोरिया और ऑस्ट्रिया की यात्राएं कीं। इसका जिक्र डेट ऐंड इवेंट्स में आया था।
लेकिन जब जांच कमिटी ने इन यात्राओं से जुड़े नोट और कार्यवृत्त विभागीय अफसरों से मांगे थे तो उन्होंने उपलब्ध नहीं करवाए। इस संबंध में कई बार उनको रिमांइडर भी दिए गए। इन यात्राओं पर सरकारी धन ही खर्च हुआ लेकिन इन आरोपों को ��ेकर भी बड़े जांच के दायरे में नहीं आए।
जिम्मेदारों ने इन चूकों पर नहीं दिया ध्यान- मॉडल स्टडी का काम नहीं कराया – काम की गुणवत्ता की जांच के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंसी का चयन नहीं किया – रिस्क मिटिगेशन एंड रिस्क एनालिसिस का काम विशेषज्ञ तकनीकी संस्थान से नहीं कराया – डायाफ्राम वॉल, सीट पाइलिंग, जियो ग्रिड, जियो टेक्सटाइल, स्वॉइल स्टेब्लाइजेशन और इरोजन कंट्रोल मैट तकनीक का इस्तेमाल हुआ लेकिन इसे कराने से पहले किसी उच्च स्तरीय तकनीकी संस्थान से वेट नहीं करवाया गया जबकि ऐसे काम में तकनीक और लागत में काफी अंतर होता है। – रबर डैम के निर्माण से पहले टेक्निकल सर्वे नहीं करवाया कि इसकी जरूरत है या नहीं – काम के परीक्षण के लिए टेक्निकल ऑडिट कमिटी (टीएसी) नहीं बनाई
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नेकपा : नयाँ केन्द्रीय सदस्यका लागि नीति–मापदण्ड बनाइने काठमाडौँ, ५ जेठ : नेपाल कम्युनिष्ट पार्टीले केन्द्रीय कार्यालयको टुङ्गो एक दुई दिनमै लगाउने भएको छ । तत्कालीन नेकपा(एमाले) र नेकपा(माओवादी केन्द्र)का केन्द्रीय कार्यालयहरु शुक्रबार अवलोकन भइसकेको छ । धूम्रबाराहीमा केन्द्रीय कार्यालय र पेरिसडाँडामा जनसङ्गठनका कार्यालय गर्न सकिने नेकपाका केन्द्रीय सदस्य कृष्णगोपाल श्रेष्ठले बताउनुभयो। चार सय ४१ सदस्यीय केन्द्रीय समितिका सदस्यमा नयाँलाई मनोनयन गर्न भने नीति र मापदण्ड बनाइने तथा त्यसको टुङ्गो एक दुई हप्तामा हुने जनाइएको छ । पैँतालीस सदस्यीय स्थायी कमिटी हुने नेकपामा पोलिटब्यूरो भने रहने छैन । नौ सदस्यीय सचिवालय भने गठन भइसकेको छ । यसैबीच नेकपा संसदीय दलको बैठक अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलन केन्द्रमा आज बिहान ११ बजे बस्ने जानकारी सांसद तथा पार्टी कार्यालय सचिव श्रेष्ठले दिनुभयो । रासस
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लोढ़ा समिति के विवादास्पद सुधारवादी कदमों का आकलन करने बीसीसीआई ने बनावी कमिटी बीसीसीआई के वरिष्ठ पदाधिकारी राजीव शुक्ला और पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली को बोर्ड की ७ सदस्यीय कमिटी में शामिल किया गया हैं । यह कमिटी लोढ़ा समिती के कुछ विवादास्पद सुधारवादी कदमों का आकलन करेगी । कोर्ट के कुछ कदमों का राज्य इकाइयों ने विरोध किया हैं । पैनल के अन्य सदस्य टीसी मैथ्यू ए भट्टाचार्य, जय शाह, अनिरुद्ध चौधरी और बीसीसीआई के कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी होंगे । समिति को अधिकार दिया गया हैं कि वह बीसीसीआई की आम सभा के विचार के लिए उपरोक्त आदेश के संदर्भ में कुछ गंभीर मुद्दो की पहचान करें । जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट को भी सौंपा जा सके । सोमवार को मुंबई में बीसीसीआई की आम सभा की विशेष बैठक में समिति के गठन का फैसला किया गया था । बीसीसीआई ने बयान में कहा कि इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख १४ जुलाई २०१७ तय की गई हैं । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए समिति से आग्रह किया जाता हैं कि अपनी बैठक के लिए जल्द कोई तारीख तय करें, जिससे कि उपरोक्त कार्य का अत्यंत आवश्यकता के तहत किया जाना सुनिश्चित हो और इसकी लिखित रिपोर्ट १० जुलाई २०१७ से पहले बांटी जा सके, जिससे कि आम सभा इस पर विचार कर सके और उपरोक्त सुनवाई से पहले इसे अंतिम रुप दे सके । बोर्ड ने कहा कि बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना को समिति की बैठक के बीच होने वाली चर्चा से नियमित तौर पर अवगत कराया जाएगा और अंत में इस रिपोर्ट को उन्हंे सौंपा जाएगा, जिससे कि वह इसे आम सभा के समक्ष रख सकें । बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना निजी कारणों से एसजीएम मे भी हिस्सा नहीं ले पाए थे । लोढ़ा समिति के सुधारवादी कदमों को लागू करने में जिन चार विवादास्पद सिफारिशों के कारण विलंब हो रहा हैं, उसमें एक राज्य का एक वोट, पदाधिकारियों का कार्यकाल के बाद ब्रेक पर जाना और राष्ट्रीय चयन पैनल में सदस्यों की संख्या शामिल हैं ।
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विनोद राय के नेतृत्व में BCCI की प्रशासनिक समिति गठित
सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के लिए चार सदस्यीय प्रशासनिक समिति का गठन कर दिया है। पूर्व नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) विनोद राय को इस प्रशासनिक समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कमिटी के सदस्य के रूप में खेल मंत्रालय के सचिव को शामिल करने की केंद्र की मांग को खारिज कर दिया है। http://dlvr.it/NF5c8v
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गोमती रिवर फ्रंट: 1500 करोड़ का घपला, सरकारी पैसे पर विदेश की सैर... गिरफ्त में में कब आएंगे रसूखदार? Divya Sandesh
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गोमती रिवर फ्रंट: 1500 करोड़ का घपला, सरकारी पैसे पर विदेश की सैर... गिरफ्त में में कब आएंगे रसूखदार?
लखनऊ गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की जांच की आंच कब बड़ों तक पहुंचेगी? …चार साल बाद भी यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। रिवर फ्रंट को लेकर हुई तीन सदस्यीय जांच कमिटी की रिपोर्ट (जिसके आधार पर गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी) में तत्कालीन सिंचाई मंत्री से लेकर तत्कालीन मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सिंचाई व प्रमुख सचिव वित्त की भूमिका पर कई सवाल उठाए गए थे।
लेकिन चार साल बाद भी घोटाले की जांच की सुई सिर्फ नामजद इंजिनियरों के आसपास घूम रही है। हालांकि, कमिटी की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कैसे 1500 करोड़ से ज्यादा के इस प्रॉजेक्ट में जिम्मेदारों ने भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के सामने आंख-कान बंद कर लिए। रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि रिवर फ्रंट के निर्माण में हुई गड़बड़ियों में उच्च स्तरीय अनुश्रवण समिति (टास्क फोर्स) में शामिल अफसर और काम से जुड़े अभियंता पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।
टास्क फोर्स बनी, नहीं जताई कोई आपत्तिरिवर फ्रंट के निर्माण की योजना को मंजूरी मिलते ही इसके आकार को देखते हुए 25 मार्च 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें मुख्य सचिव के अलावा तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल, तत्कालीन सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता, विभागाध्यक्ष और मुख्य अभियंता शामिल थे। इस समिति ने प्रॉजेक्ट को लेकर 23 मीटिंग कीं।
दीपक सिंघल ने निर्माण स्थल के 20 से 25 दौरे किए लेकिन इन्हें कोई गड़बड़ी और अनियमितता नहीं मिली। योजना से जुड़े हर काम का बजट छह से आठ गुना बढ़ गया, नियमों के विरुद्ध टेंडर होते रहे, मनाही के बाद भी एक काम के बजट का इस्तेमाल दूसरे काम में होता रहा लेकिन जिम्मेदारों ने आंखें मूंदे रखीं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह समझ के परे है कि इतनी बड़ी परियोजना में कोई चेक्स ऐंड बैलेंसेज का सिस्टम नहीं दिख रहा है, ताकि नियमों के विरुद्ध कहीं भी अनुमोदित बजट के ऊपर खर्च न हो सके और उसकी रोकथाम हो पाए।
तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त और बाद में मुख्य सचिव रहे राहुल भटनागर की भूमिका पर भी सवाल उठे थे। दरअसल पहले इस प्रॉजेक्ट के लिए सिंचाई विभाग ने 747.49 करोड़ और फिर 1990.24 करोड़ का पुनरीक्षित बजट भेजा था। जिसे वित्त व्यय समिति ने परीक्षण के बाद घटाकर 1513.51 करोड़ कर दिया। इसे 25 जुलाई 2016 को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक अनुमोदित बजट से आठ से दस गुना बढ़ाकर खर्च होता रहा और परियोजना का 40 प्रतिशत से अधिक काम हुआ ही नहीं। अनुमोदित बजट से अधिक खर्च के लिए बिना परमिशन खर्च होता रहा। लेकिन टास्क फोर्स और वित्त व्यय समिति ने इसको लेकर कोई आपत्ति नहीं की न ही इस ओर ध्यान दिया।
टास्क फोर्स के आदेश पर हुआ अधिक खर्चजांच के दौरान जिन अभियंताओं के बयान लिए गए उनमें से कुछ ने कहा था कि सीमा को पार करके अधिक व्यय और भुगतान इसलिए किया गया क्योंकि काम को जल्द खत्म करने के लिए अनुश्रवण समिति से निर्देश मिलता रहता था। सीएम के ड्रीम प्रॉजेक्ट और कार्य जल्द खत्म करने की आड़ में कई कामों को तो बिल्कुल छोड़ दिया गया जबकि ये परियोजना में मंजूर थे, वहीं कुछ कामों में प्रगति धीमी रखी और छोड़े हुए कामों का बजट दूसरे कामों में लगा दिया। इसके लिए कोई अनुमति या अनुमोदन नहीं लिया गया।
सरकारी पैसों पर विदेश यात्राएं की गईंचैनलाइजेशन व रबर डैम की तकनीक के बारे में जानकारी के लिए तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव, मुख्य सचिव आलोक रंजन, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल और वरिष्ठ विभागीय अभियंताओं ने तकनीक में माहिर देशों चीन, जापान, हंगरी, जर्मनी, मलयेशिया, सिंगापुर, साउथ कोरिया और ऑस्ट्रिया की यात्राएं कीं। इसका जिक्र डेट ऐंड इवेंट्स में आया था।
लेकिन जब जांच कमिटी ने इन यात्राओं से जुड़े नोट और कार्यवृत्त विभागीय अफसरों से मांगे थे तो उन्होंने उपलब्ध नहीं करवाए। इस संबंध में कई बार उनको रिमांइडर भी दिए गए। इन यात्राओं पर सरकारी धन ही खर्च हुआ लेकिन इन आरोपों को लेकर भी बड़े जांच के दायरे में नहीं आए।
जिम्मेदारों ने इन चूकों पर नहीं दिया ध्यान- मॉडल स्टडी का काम नहीं कराया – काम की गुणवत्ता की जांच के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंसी का चयन नहीं किया – रिस्क मिटिगेशन एंड रिस्क एनालिसिस का काम विशेषज्ञ तकनीकी संस्थान से नहीं कराया – डायाफ्राम वॉल, सीट पाइलिंग, जियो ग्रिड, जियो टेक्सटाइल, स्वॉइल स्टेब्लाइजेशन और इरोजन कंट्रोल मैट तकनीक का इस्तेमाल हुआ लेकिन इसे कराने से पहले किसी उच्च स्तरीय तकनीकी संस्थान से वेट नहीं करवाया गया जबकि ऐसे काम में तकनीक और लागत में काफी अंतर होता है। – रबर डैम के निर्माण से पहले टेक्निकल सर्वे नहीं करवाया कि इसकी जरूरत है या नहीं – काम के परीक्षण के लिए टेक्निकल ऑडिट कमिटी (टीएसी) नहीं बनाई
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BHU में दलित महिला प्रफेसर से उत्पीड़न, आखिर क्या है पूरा मामला, जानिए सबकुछ Divya Sandesh
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BHU में दलित महिला प्रफेसर से उत्पीड़न, आखिर क्या है पूरा मामला, जानिए सबकुछ
अभिषेक जायसवाल, वाराणसी महामना की बगिया में दलित महिला प्रफेसर उत्पीड़न मामले में ने जांच के आदेश दिए है। बीएचयू वीसी ने इस मामले में चार सदस्यीय कमिटी गठित की हैं। विज्ञान संस्थान के बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रफेसर एस कृष्णन कमिटी के अध्यक्ष हैं। यह कमिटी 48 घंटे में मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट वीसी को सौपेंगी।
जांच टीम के गठन के बाद वीसी राकेश भटनागर ने धरने पर बैठी पीड़ित प्रफेसर से मुलाकात कर उन्हें न्याय का आश्वासन दिया। बुधवार की देर रात कुलपति के आश्वासन के बाद तीन दिनों से धरने पर बैठी पत्रकारिता एवं जनसम्प्रेषण विभाग की दलित महिला प्रफेसर शोभना नार्लिकर ने धरना समाप्त कर दिया।
‘तो घेरेंगे कुलसचिव का आवास’ एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में शोभना नार्लिकर ने बताया कि दो दिनों में जांच कमिटी के रिपोर्ट के बाद इस मामले में उचित कदम नहीं उठाएं गए तो फिर से आंदोलन किया जाएगा। इस बात सेंट्रल ऑफिस के बजाय कुलसचिव के आवास के बाहर धरना देंगे।
यह है पूरा मामला प्रफेसर शोभना नार्लिकर ने आरोप लगाया कि 2013 से लगातार विश्वविद्यालय में प्रशासनिक अफसर और विभाग के प्रफेसर दलित होने ���े नाते उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। रेगुलर बेसिक पर काम करने के बाहुजूद उन्हें कार्यालय में लीव विदाउट पे दिखाकर उनकी सीनियॉरिटी को प्रभावित किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से लेकर कई अफसरों को उन्होंने इसकी शिकायत की है। लेकिन कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही हैं।
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माधव नेपाललाई आफूतिर तान्ने ओलीको प्रयास
१६ फागुन, काठमाडौं । सत्तारुढ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी -नेकपा)का वरिष्ठ नेता माधवकुमार नेपाल शुक्रबार बिहानै अध्यक्ष पुष्पकमल दाहाल प्रचण्डनिवास खुमलटार पुगे । त्यहाँ झलनाथ खनाल र वामदेव गौतमसहित चार नेताहरु छलफलमा जुटे ।
लगत्तै पार्टी अध्यक्ष एवं प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओलीले भेट्न माधव नेपाललाई बालुवाटार बोलाए । अपराहृन बालुवाटार पुगेका नेपालसँग ओलीले खुमलटार बैठकबारे बुझ्न खोजे ।
प्रधानमन्त्री र नेता नेपालवीच बालुवाटारमा भएको भेटमा उपप्रधान तथा रक्षामन्त्री ईश्वर पारखेल पनि थिए, जो ९ सदस्यीय सचिवालयमा ओलीलाई साथ दिने एक्ला नेता बनेका छन् ।
अरु ��ेताहरुले उपाध्यक्ष बामदेव गौतमलाई राष्ट्रियसभा सदस्य मनोनित गर्न राष्ट्रपतिसमक्ष सिफारिस गर्ने सचिवालयको निर्णय कार्यान्वयन गर्नुपर्ने मत राखेका छन् ।
ओलीले भने नेता नेपालसँग शुक्रबार भएको भेटमा पनि राष्ट्रियसभामा अर्थमन्त्री डा. युवराज खतिवडालाई दोहोर्याउन चाहेको संकेत गरेका छन् । राष्ट्रियसभा सदस्यमा मन्त्रिपरिषदले गर्ने सिफारिस संवैधानिक विषय भएकाले पार्टीले निर्णय गर्ने नभई सरकारलाई सुझाव मात्र दिन सक्ने तर्क प्रधानमन्त्रीले गरेका छन् ।
यसअघि बुधबार नेकपा सचिवालयले गौतमको नाम सिफारिस गर्ने निर्णय गरेको केही घन्टापछि नै प्रधानमन्त्री ओलीले बरिष्ठ नेता नेपाललाई बालुवाटार बोलाएर निर्णय कार्यान्वयन नगर्ने बताएका थिए ।
मध्यमार्गी समाधान कि पावर शेयरिङको खोजी ?
वरिष्ठ नेता नेपालले अहिलेसम्म सचिवालयको निर्णय कार्यान्वयन गर्न प्रधानमन्त्री ओलीलाई सुझाउँदै आएका छन् ।
पार्टी निर्णय चित्त नबुझेको भए सचिवालयको बैठक बोलाएर नेताहरुलाई ‘कन्भिन्स’ गर्न नेपालले ओलीलाई सुझाव दिएको स्रोतले जनाएको छ । साथै, पार्टी निर्णय कार्यन्वयन गर्दै प्रधानमन्त्रीको सजिलोका लागि अन्य विकल्पमा छलफल गर्न सकिने बताएका छन् ।
नेपालले ओलीलाई भेट्नुअघि चितवन पुगेका नेकपाका अर्का अध्यक्ष पुष्पकमल दाहाल प्रचण्डले पनि ‘बामदेवलाई राष्ट्रियसभा सदस्य बनाएपछि पनि प्रधानमन्त्रीले खतिवडालाई अर्थमन्त्रीमा निरन्तरता दिन सक्ने’ अभिव्यक्ति दिएका थिए ।
यो मध्यमार्गी प्रस्तावमा प्रचण्डलाई सहमत गराउन नेता नेपालको भूमिका रहेको बुझ्न सकिन्छ । नेपाल अहिले नै प्रधानमन्त्रीलाई अप्ठेरोमा पार्ने वा हटाइहाल्ने पक्षमा छैनन् । उनी पछिल्लो समय समस्या समाधान गर्ने कडी बन्न खोजिरहेका छन् ।
पछिल्लो समय उत्पन्न समस्या समाधानका लागि नेपाल सक्रिय रहेको नेपालनिकट स्थायी कमिटी सदस्य बेदुराम भुसाल बताउँछन् । कुनै एक पक्षमा लागेर अर्कोलाई अप्ठ्यारोमा पार्नेभन्दा पनि पार्टीमा संस्थागत परिपाटीमा सबै चल्नुपर्ने पक्षमा माधव नेपाल रहेको भुसालले अनलाइनखबरलाई बताए ।
प्रधानमन्त्री ओलीले नेता नेपालसँग समस्या समाधानको पहलको अपेक्षा गर्नु स्वाभाविक रहेको भुसालको बुझाइ छ ।
प्रधानमन्त्रीका विदेश मामिला सल्लाहकार समेत रहेका नेता राजन भट्टराई पनि नेताहरुबीच उच्चस्तरको समझदारी कायम गर्ने प्रयास भइरहेको बताउँछन् । प्रधानमन्त्री र नेता नेपालबीचको छलफल त्यही प्रयास भएको उनले बताए ।
नेकपाभित्रको गणितका कारण नेपाल समूह निणर्ायक मानिन्छ । विगतमा अध्यक्षद्वय ओली र प्रचण्ड मिल्दा नेता नेपाल कर्नरमा परेका थिए । अहिले नेपालले प्रचण्डलाई साथ दिएपछि पार्टी��ा सबै कमिटीहरुमा प्रधानमन्त्री एवं अध्यक्ष ओली अल्पमतमा पर्दै आएका छन् र, उनको चाहना अनुसार केही भएको छैन ।
प्रचण्ड आफूसँग टाढिएपछि प्रधानमन्त्री ओलीले नेता नेपालसँग छलफल र भेवार्ता बढाएका छन् । यो नेता नेपाललाई आफूतिर तान्ने प्रयास भएको नेताहरुको बुझाइ छ । त्यसका लागि ओली मात्र होइन, उनी पक्षका नेताहरुले निरन्तर सम्वाद गरेका छन् । तर, तत्कालीन एमालेमा हुँदा होस् वा माओवादीसँग एकता गरेर नेकपा गठन भएपछि होस्, निरन्तर पेलेर भित्तामै पुर्याएका कारण दुई नेताबीच विश्वासको वातावरण बनिसकेको छैन ।
प्रचण्डसँग मिलेका बेला नेपाल पक्षलाई निषेधको नीति लिएका कारण प्रधानमन्त्री ओलीसँग अब उधारो सहमति नहुने नेपाल पक्षीय नेताहरुको भनाइ छ । ओलीलाई सघाउने हो भने पावर शेयरिङ हुनुपर्ने र त्यो पनि महाधिवेशनमा होइन, अहिले नै हुनुपर्छ भन्ने जवाफ ओली निकट नेताहरुले पाइसकेका छन् । त्यो भनेको ओलीले नेता नेपाललाई पार्टी अध्यक्ष छाड्नुपर्छ भन्ने हो ।
केपी ओली पक्षका नेताहरुले भने पावर शेयरिङको कुरा ठिकै हो, तर अहिले नै महाधिवेशनबाट निर्वाचित अध्यक्षले छाड्नुपर्छ भन्ने माग तर्कसंगत नभएको बताइरहेका छन् । ‘प्रधानमन्त्री ओलीले अबको महाधिवेशनमा अध्यक्षको दाबेदार नबन्ने भनिसक्नुभएको छ, त्यो बेलासम्म माधव कमरेडले प्रधानमन्त्रीलाई सघाएर उहाँको समर्थन लिन सक्नुहुन्छ’ ओली निकट स्रोतले भन्यो ।
तर, विगतमा आफैंले र अरु नेताहरुले धोका पाएको देखेका नेता नेपाल त्यसमा सहमत छैनन् । नेता नेपालको अर्का अध्यक्ष प्रचण्डसँग पनि पावर शेयरिङमा सहमति भइसकेको छैन ।
नेताहरुका अनुसार प्रचण्ड र नेपालबीच अहिले नै ओलीलाई हटाएर एकजना अध्यक्ष, अर्को प्रधानमन्त्री हुने वा महाधिवेशनसम्म सहकार्य गर्दै पावर शेयरिङ गर्ने विकल्प छ । तर, वरिष्ठ नेता नेपाल अहिले प्रधानमन्त्री ओलीलाई हटाउने र अस्थिरता नित्याउने पक्षमा देखिएका छैनन् ।
तर, ओली पक्षीय नेताहरु भने नेता नेपाललाई ओलीले शुरुदेखि नै सम्मानजनक भूमिका दिएको भए अहिलेको अवस्था आ��ने थिएन भन्न थालेका छन् । मन्त्री चयनदेखि प्रदेश कमिटी गठन हुँदै दोस्रो बरियता खोसेर अपमान गर्नेसम्मको तहमा उत्रिएपछि नेपाल ओलीसँग निकै टाढिएका छन् ।
माधव नेपाल तत्काल मध्यमार्गी समाधान निकाल्न सक्रिय भए पनि अहिले नै ओली वा प्रचण्डसँग गाँसिनेभन्दा आफ्नो शक्ति बलियो बनाउ न केन्दि्रत हुने उनी निकटका नेताहरुको विश्लेषण छ ।
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बालुवाटारमा ओली र प्रचण्ड साझा दस्तावेज लेख्दै
२८ मंसिर, काठमाडौं । पार्टी एकता भएको करीव ८ महिनापछि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) का अध्यक्षद्वय केपी शर्मा ओली र पुष्पकमल दाहाल प्रचण्डले संयुक्त रुपमा राजनीतिक दस्तावेज लेख्दैछन् ।
शनिबार शुरु हुने स्थायी कमिटी बैठकमा पार्टी अध्यक्षका तर्फबाट राजनीतिक र महासचिव बिष्णु पौडेलको तर्फबाट संगठनात्मक प्रतिवेदन पेश हुनेछन् ।
पार्टी अध्यक्षका तर्फबाट राष्ट्रिय–अन्तरराष्ट्रिय पछिल्लो राजनीतिक अवस्था र पार्टीको दृष्टिकोण समेटिएको राजनीतिक दस्तावेज दुबैजना अध्यक्षका तर्फबाट संयुक्तरुपमा पेश हुने स्थायी कमिटी सदस्य बिष्णु रिमालले बताए ।
प्रतिवेदन तयार पार्न बालुवाटारमा ओली र प्रचण्ड दुई दिन यता छलफलमा जुटेका छन् । प्रधानमन्त्रीका प्रमुख राजनीतिक सल्लाहकार समेत रहेका रिमालले पार्टी अध्यक्षको प्रतिवेदन एउटै हुने बताए ।
राजनीतिक प्रतिवेदनमा पार्टी एकतापछि अहिलेसम्मको अवस्थाको समीक्षाका साथै ��रकारका कामहरुको बारेमा पनि समिक्षा गरिनेछ । पार्टीको राजनीतिक दस्तावेज तयार पार्नुअघि दुवै अध्यक्षबीच छलफल भएको महासचिव बिष्णु पौडेलले बताए ।
दुवै अध्यक्षबीच समान बिचार रहेकाले पनि राजनीतिक प्रतिवेदन सोही उचाइबाट आउने नेताहरुले बताएका छन् ।
शनिवार सुरु हुने स्थायी कमिटी बैठकमा दुबै अध्यक्षले सम्बोधन गर्ने र राजनीतिक प्रतिवेदन अध्ययनका लागि सदस्यहरुलाई उपलब्ध गराइने स्रोतले जनाएको छ । करिब एक साता चल्ने बैठकले पार्टीको राजनीतिक र सांगठानिक प्रतिवेदन पारित गर्दै पार्टी एकीकरणको बाँकी काम टुंगो लगाउने बताइएको छ ।
बैठकमा पार्टी र सरकार सञ्चालनको कार्यशैलीप्रति स्थायी कमिटी सदस्यहरुको चर्का बिरोध आउने देखिएकाले अध्यक्षद्वय ओली र प्रचण्ड छलफलमा छन् । यो बैठकमा सरकारको समीक्षा हुने भनिएको छ । प्रधानमन्त्रीले यसबीचमा सरकारले गरेका कामहरुको बारेमा जानकारी दिने नेकपाले जनाएको छ । अबको बैठकपछि पार्टीले सरकारको प्रतिरक्षा गर्ने गरी रणनीति बनाइने भएको छ ।
माधव नेपाल पक्षको बेग्लै तयारी
उता ओली र प्रचण्डले संयुक्त रुपमा राजनीतिक प्रतिवेदन तयार पारिरहेको थाहा पाएपछि अर्का नेता माधव कुमार नेपालले पनि स्थायी कमिटीमा कसरी प्रस्तुत हुने भन्ने तयारी थालेका छन् ।
ओली र प्रचण्ड दुबैले लिखित प्रतिवेदन ल्याएको खण्डमा माधव नेपाल पक्षले पनि अर्को लिखित प्रतिवेदन तयार पार्ने गृहकार्य भइरहेको नेपाल निकट स्रोतले बतायो ।
९ सदस्यीय केन्द्रीय सचिवालयका चारजना नेताले सामुहिक रुपमा बैठक बहिस्कार गरेर अध्यक्षद्वय ओली र प्रचण्डलाई चुनौति दिइसकेका छन् । स्थायी कमिटी बैठकमा चार नेताको पछिल्लो कदमको प्रतिबिम्ब प्रकट हुने अनुमान अध्यक्ष र महासचिवले गरेका छन् ।
स्थायी कमिटी बैठकमा पार्टी नेतृत्वको कार्यशैली र यसबीचमा केन्द्रीय सचिवालयले गरेका निर्णयमाथि प्रश्न उठाउने तयारी नेताहरुले गरेका छन् । उनीहरुले पार्टी नेतृत्व सामुहिक छलफल तथा बहसबाट भागिरहेको र कमिटी प्रणाली समाप्त भएको विषयलाई प्रमुखतासाथ उठाउने तयारी गरेका छन् । यसबीचमा सचिवलायले गरेका निर्णय उल्ट्याउन पनि सकिने चेतावनी ती नेताहरुले दिएका छन् ।
विशेष गरी प्रदेश कमिटी गठन प्रक्रियामाथि नेकपाभित्र विवाद छ । प्रदेश कमिटीका इन्चार्ज,सहइञ्चार्ज,अध्यक्ष र सचिवको चयनबारे प्रश्न उठाउने तयारी केही नेताहरुको छ । त्यस्तै प्रदेश कमिटी सदस्यहरुको नाम स्थायी कमिटीबाट पारित नभई सार्वजनिक गरिएकोमा पनि उनीहरुले असन्तुष्टि जनाएका छन् ।
स्थायी कमिटी बैठक शनिबार अपरान्ह बस्ने भनेर जानकारी आए पनि अहिलेसम्म कुन कुन एजेण्डामा छलफल हुने भन्ने कार्यसूची प्राप्त नभएको स्थायी कमिटी सदस्य बेदुराम भुसालले बताए । सामान्यतः स्थायी कमिटी बैठकका कार्यसूची सचिवालयले तय गरेर स्थायी कमिटी सदस्यहरुलाई दिनुपर्छ ।
जिल्ला अध्यक्षको मापदण्ड
यसैबीच नेकपाका जिल्ला कमिटी एकीकरणको मोडालिटीबारे सचिवालयले अहिलेसम्म प्रस्ताव तयार नपारेकाले स्थायी कमिटीमै छलफल हुनुपर्ने माग नेताहरुले राख्दैछन् । प्रदेश कमिटी सदस्यहरु जिल्ला अध्यक्ष र सचिव बन्न पाउने कि नपाउने भन्ने बारेमा स्थायी कमिटीले टुंगो लगाइदिनुपर्ने प्रदेश १ का अध्यक्ष देवराज घिमिरले बताए ।
हाल नेकपाका सातै प्रदेश कमिटीमा जिल्लाका सिनियर नेताहरु समेटिएका छन् । अब जिल्ला अध्यक्ष र सचिव केन्द्रले तय गर्ने र अन्य सदस्यहरु प्रदेश कमिटीले टुंगो लगाउने भनिएको छ । तर प्रदेश कमिटीमा परेका नेताहरुलाई जिल्ला अध्यक्ष बनाउने कि नबनाउने भन्ने टुंगो लगाउनुपर्ने उनले बताए ।
पूर्वएमालेमा जिल्ला अध्यक्ष प्रदेश कमिटीको पदेन सदस्य हुने व्यवस्था थियो । तर, पूर्व माओवादीमा निश्चित मापदण्ड छैन । अहिले कतिपय नेताले जिल्ला अध्यक्ष प्रदेश कमिटीमा नपरेका बरिष्ठतम नेताबाट चयन गरी उनीहरुलाई आमन्त्रित सदस्यका रुपमा प्रदेश कमिटी बैठकमा समावेश गराउनुपर्ने प्रस्ताव राखेका छन् ।
तर अर्काथरीले भने प्रदेश कमिटी सदस्यबाटै जिल्लाको नेतृत्व गर्ने व्यक्ति खटाउनुपर्ने प्रस्ताव राखेका छन् । यो विषयमा टुंगो सचिवालय र स्थायी कमिटीबाट लगाइनुपर्ने प्रदेश ३ का सचिव आनन्द पोखरेलले बताए ।
त्यस्तै स्थानीय तहको अध्यक्ष बन्ने व्यक्ति जिल्ला कमिटी सदस्य हुनुपर्ने वा नपर्नेबारे पनि केन्द्रले टुंगो लगाउनुपर्ने भएको छ ।
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बालुवाटारमा ओली र प्रचण्ड साझा दस्तावेज लेख्दै, माधव पक्षको बेग्लै तयारी
२८ मंसिर, काठमाडौं । पार्टी एकता भएको करीव ८ महिनापछि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) का अध्यक्षद्वय केपी शर्मा ओली र पुष्पकमल दाहाल प्रचण्डले संयुक्त रुपमा राजनीतिक दस्तावेज लेख्दैछन् ।
शनिबार शुरु हुने स्थायी कमिटी बैठकमा पार्टी अध्यक्षका तर्फबाट राजनीतिक र महासचिव बिष्णु पौडेलको तर्फबाट संगठनात्मक प्रतिवेदन पेश हुनेछन् ।
पार्टी अध्यक्षका तर्फबाट राष्ट्रिय–अन्तरराष्ट्रिय पछिल्लो राजनीतिक अवस्था र पार्टीको दृष्टिकोण समेटिएको राजनीतिक दस्तावेज दुबैजना अध्यक्षका तर्फबाट संयुक्तरुपमा पेश हुने स्थायी कमिटी सदस्य बिष्णु रिमालले बताए ।
प्रतिवेदन तयार पार्न बालुवाटारमा ओली र प्रचण्ड दुई दिन यता छलफलमा जुटेका छन् । प्रधानमन्त्रीका प्रमुख राजनीतिक सल्लाहकार समेत रहेका रिमालले पार्टी अध्यक्षको प्रतिवेदन एउटै हुने बताए ।
राजनीतिक प्रतिवेदनमा पार्टी एकतापछि अहिलेसम्मको अवस्थाको समीक्षाका साथै सरकारका कामहरुको बारेमा पनि समिक्षा गरिनेछ । पार्टीको राजनीतिक दस्तावेज तयार पार्नुअघि दुवै अध्यक्षबीच छलफल भएको महासचिव बिष्णु पौडेलले बताए ।
दुवै अध्यक्षबीच समान बिचार रहेकाले पनि राजनीतिक प्रतिवेदन सोही उचाइबाट आउने नेताहरुले बताएका छन् ।
शनिवार सुरु हुने स्थायी कमिटी बैठकमा दुबै अध्यक्षले सम्बोधन गर्ने र राजनीतिक प्रतिवेदन अध्ययनका लागि सदस्यहरुलाई उपलब्ध गराइने स्रोतले जनाएको छ । करिब एक साता चल्ने बैठकले पार्टीको राजनीतिक र सांगठानिक प्रतिवेदन पारित गर्दै पार्टी एकीकरणको बाँकी काम टुंगो लगाउने बताइएको छ ।
बैठकमा पार्टी र सरकार सञ्चालनको कार्यशैलीप्रति स्थायी कमिटी सदस्यहरुको चर्का बिरोध आउने देखिएकाले अध्यक्षद्वय ओली र प्रचण्ड छलफलमा छन् । यो बैठकमा सरकारको समीक्षा हुने भनिएको छ । प्रधानमन्त्रीले यसबीचमा सरकारले गरेका कामहरुको बारेमा जानकारी दिने नेकपाले जनाएको छ । अबको बैठकपछि पार्टीले सरकारको प्रतिरक्षा गर्ने गरी रणनीति बनाइने भएको छ ।
माधव नेपाल पक्षको बेग्लै तयारी
उता ओली र प्रचण्डले संयुक्त रुपमा राजनीतिक प्रतिवेदन तयार पारिरहेको थाहा पाएपछि अर्का नेता माधव कुमार नेपालले पनि स्थायी कमिटीमा कसरी प्रस्तुत हुने भन्ने तयारी थालेका छन् ।
ओली र प्रचण्ड दुबैले लिखित प्रतिवेदन ल्याएको खण्डमा माधव नेपाल पक्षले पनि अर्को लिखित प्रतिवेदन तयार पार्ने गृहकार्य भइरहेको नेपाल निकट स्रोतले बतायो ।
९ सदस्यीय केन्द्रीय सचिवालयका चारजना नेताले सामुहिक रुपमा बैठक बहिस्कार गरेर अध्यक्षद्वय ओली र प्रचण्डलाई चुनौति दिइसकेका छन् । स्थायी कमिटी बैठकमा चार नेताको पछिल्लो कदमको प्रतिबिम्ब प्रकट हुने अनुमान अध्यक्ष र महासचिवले गरेका छन् ।
स्थायी कमिटी बैठकमा पार्टी नेतृत्वको कार्यशैली र यसबीचमा केन्द्रीय सचिवालयले गरेका निर्णयमाथि प्रश्न उठाउने तयारी नेताहरुले गरेका छन् । उनीहरुले पार्टी नेतृत्व सामुहिक छलफल तथा बहसबाट भागिरहेको र कमिटी प्रणाली समाप्त भएको विषयलाई प्रमुखतासाथ उठाउने तयारी गरेका छन् । यसबीचमा सचिवलायले गरेका निर्णय उल्ट्याउन पनि सकिने चेतावनी ती नेताहरुले दिएका छन् ।
विशेष गरी प्रदेश कमिटी गठन प्रक्रियामाथि नेकपाभित्र विवाद छ । प्रदेश कमिटीका इन्चार्ज,सहइञ्चार्ज,अध्यक्ष र सचिवको चयनबारे प्रश्न उठाउने तयारी केही नेताहरुको छ । त्यस्तै प्रदेश कमिटी सदस्यहरुको नाम स्थायी कमिटीबाट पारित नभई सार्वजनिक गरिएकोमा पनि उनीहरुले असन्तुष्टि जनाएका छन् ।
स्थायी कमिटी बैठक शनिबार अपरान्ह बस्ने भनेर जानकारी आए पनि अहिलेसम्म कुन कुन एजेण्डामा छलफल हुने भन्ने कार्यसूची प्राप्त नभएको स्थायी कमिटी सदस्य बेदुराम भुसालले बताए । सामान्यतः स्थायी कमिटी बैठकका कार्यसूची सचिवालयले तय गरेर स्थायी कमिटी सदस्यहरुलाई दिनुपर्छ ।
जिल्ला अध्यक्षको मापदण्ड
यसैबीच नेकपाका जिल्ला कमिटी एकीकरणको मोडालिटीबारे सचिवालयले अहिलेसम्म प्रस्ताव तयार नपारेकाले स्थायी कमिटीमै छलफल हुनुपर्ने माग नेताहरुले राख्दैछन् । प्रदेश कमिटी सदस्यहरु जिल्ला अध्यक्ष र सचिव बन्न पाउने कि नपाउने भन्ने बारेमा स्थायी कमिटीले टुंगो लगाइदिनुपर्ने प्रदेश १ का अध्यक्ष देवराज घिमिरले बताए ।
हाल नेकपाका सातै प्रदेश कमिटीमा जिल्लाका सिनियर नेताहरु समेटिएका छन् । अब जिल्ला अध्यक्ष र सचिव केन्द्रले तय गर्ने र अन्य सदस्यहरु प्रदेश कमिटीले टुंगो लगाउने भनिएको छ । तर प्रदेश कमिटीमा परेका नेताहरुलाई जिल्ला अध्यक्ष बनाउने कि नबनाउने भन्ने टुंगो लगाउनुपर्ने उनले बताए ।
पूर्वएमालेमा जिल्ला अध्यक्ष प्रदेश कमिटीको पदेन सदस्य हुने व्यवस्था थियो । तर, पूर्व माओवादीमा निश्चित मापदण्ड छैन । अहिले कतिपय नेताले जिल्ला अध्यक्ष प्रदेश कमिटीमा नपरेका बरिष्ठतम नेताबाट चयन गरी उनीहरुलाई आमन्त्रित सदस्यका रुपमा प्रदेश कमिटी बैठकमा समावेश गराउनुपर्ने प्रस्ताव राखेका छन् ।
तर अर्काथरीले भने प्रदेश कमिटी सदस्यबाटै जिल्लाको नेतृत्व गर्ने व्यक्ति खटाउनुपर्ने प्रस्ताव राखेका छन् । यो विषयमा टुंगो सचिवालय र स्थायी कमिटीबाट लगाइनुपर्ने प्रदेश ३ का सचिव आनन्द पोखरेलले बताए ।
त्यस्तै स्थानीय तहको अध्यक्ष बन्ने व्यक्ति जिल्ला कमिटी सदस्य हुनुपर्ने वा नपर्नेबारे पनि केन्द्रले टुंगो लगाउनुपर्ने भएको छ ।
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