#गड्ढे का खतरा
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टॉन्सिल स्टोन्स: कारण, लक्षण और इलाज की पूरी जानकारी
परिचय
टॉन्सिल स्टोन्स, जिन्हें टॉन्सिलोलिथ्स (Tonsilloliths) भी कहा जाता है, गले में स्थित टॉन्सिल्स के अंदर छोटे-छोटे सफेद या पीले रंग के कण होते हैं। ये कण गले में असुविधा और बदबू का कारण बन सकते हैं। टॉन्सिल स्टोन्स आमतौर पर हानिरहित होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में ये संक्रमण का कारण भी बन सकते हैं। इस ब्लॉग में हम टॉन्सिल स्टोन्स के कारण, लक्षण और उपचार के तरीकों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
टॉन्सिल स्टोन्स के कारण
टॉन्सिल स्टोन्स का मुख्य कारण टॉन्सिल्स में बैक्टीरिया और खाद्य कणों का जमाव होता है। यह जमाव टॉन्सिल्स की दरारों और गड्ढों में फंस जाता है और धीरे-धीरे कठोर हो जाता है। अन्य कारणों में शामिल हैं:
मुँह की स्वच्छता की कमी: नियमित रूप से दांतों और मुँह की सफाई न करने से खाद्य कण और बैक्टीरिया टॉन्सिल्स में फंस सकते हैं। यदि ये कण और बैक्टीरिया मुँह में लंबे समय तक बने रहते हैं, तो ये टॉन्सिल स्टोन्स में बदल सकते हैं।
साइनस संक्रमण: साइनस के संक्रमण के दौरान नाक से गले में बलगम गिरता है, जो टॉन्सिल स्टोन्स बनने का कारण बन सकता है। यह बलगम टॉन्सिल्स की सतह पर जम जाता है और स्टोन्स का रूप ले सकता है।
आहार: डेयरी उत्पादों का अत्यधिक सेवन भी टॉन्सिल स्टोन्स के गठन को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि ये उत्पाद मुँह में बलगम और खाद्य कणों की मात्रा बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, शर्करा और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन भी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा दे सकता है।
क्रोनिक टॉन्सिलिटिस: बार-बार होने वाला टॉन्सिल का संक्रमण टॉन्सिल्स की सतह को असमान और दरारदार बना सकता है, जिससे टॉन्सिल स्टोन्स का खतरा बढ़ जाता है। टॉन्सिल्स की सतह पर बने ये दरारें और गड्ढे खाद्य कणों और बैक्टीरिया के लिए आदर्श स्थान बन जाते हैं।
टॉन्सिल स्टोन्स के लक्षण
टॉन्सिल स्टोन्स के लक्षण निम्नलिखित हैं:
मुँह से बदबू: टॉन्सिल स्टोन्स की वजह से मुँह से लगातार बदबू आना सबसे सामान्य लक्षण है। टॉन्सिल स्टोन्स में बैक्टीरिया और सड़ने वाले खाद्य कणों का जमाव होने से यह बदबू पैदा होती है।
गले में दर्द: टॉन्सिल स्टोन्स के कारण गले में हल्का या तेज दर्द हो सकता है। यह दर्द आमतौर पर निगलते समय अधिक महसूस होता है।
गले में खराश: गले में कुछ फंसा हुआ महसूस होना। टॉन्सिल स्टोन्स के कारण गले में लगातार खराश रह सकती है, जो असुविधाजनक हो सकती है।
गले में सूजन: टॉन्सिल्स का सूजना और लाल होना। टॉन्सिल स्टोन्स की उपस्थिति से टॉन्सिल्स में सूजन और लालिमा हो सकती है।
सफेद या पीले कण: टॉन्सिल्स की सतह पर छोटे सफेद या पीले कण दिखना। ये कण अक्सर टॉन्सिल स्टोन्स होते हैं और इन्हें मुँह खोलकर टॉर्च की रोशनी में देखा जा सकता है।
निगलने में कठिनाई: टॉन्सिल स्टोन्स के कारण निगलने में परेशानी हो सकती है। बड़े टॉन्सिल स्टोन्स गले में रुकावट पैदा कर सकते हैं, जिससे निगलने में कठिनाई होती है।
टॉन्सिल स्टोन्स का इलाज
टॉन्सिल स्टोन्स के इलाज के कई तरीके हैं, जिनमें घरेलू उपचार, दवाइयाँ और सर्जिकल उपचार शामिल हैं:
घरेलू उपचार:
दवाइयाँ:
सर्जिकल उपचार:
टॉन्सिल स्टोन्स से बचाव के उपाय
टॉन्सिल स्टोन्स से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
मुँह की स्वच्छता बनाए रखें: दांतों और मुँह की नियमित सफाई करके बैक्टीरिया और खाद्य कणों को टॉन्सिल्स में जमा होने से रोका जा सकता है।
खानपान पर ध्यान दें: डेयरी उत्पादों और शर्करा का सेवन कम करें, क्योंकि ये मुँह में बलगम और खाद्य कणों की मात्रा बढ़ा सकते हैं।
नमक पानी से गरारे करें: नियमित रूप से नमक पानी से गरारे करने से गले की सफाई होती है और बैक्टीरिया का जमाव कम होता है।
पर्याप्त पानी पिएं: पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से मुँह और गला हाइड्रेटेड रहता है और खाद्य कणों का जमाव कम होता है।
निष्कर्ष
टॉन्सिल स्टोन्स एक सामान्य लेकिन असुविधाजनक समस्या हो सकती है। सही देखभाल और उपचार से इसे आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। यदि आप टॉन्सिल स्टोन्स के लक्षण अनुभव करते हैं, तो घरेलू उपचारों को आजमाएं और अगर समस्या बनी रहती है तो डॉक्टर से परामर्श लें। मुँह की अच्छी स्वच्छता बनाए रखना और नियमित चेक-अप करवाना टॉन्सिल स्टोन्स से बचने के लिए महत्वपूर्ण है। उचित देखभाल और उपचार से आप टॉन्सिल स्टोन्स की समस्या से निजात पा सकते हैं और अपने मुँह और गले को स्वस्थ रख सकते हैं।
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देखें: गड्ढे वाली सड़क पर पलटा ई-रिक्शा, यूपी के अधिकारी नहीं रुके
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पूरे देश में गड्ढों की समस्या चिंता का विषय बनी हुई है। नई दिल्ली: चूंकि देश भर में हादसों के बावजूद गड्ढों की समस्या अनसुलझी बनी हुई है, उत्तर प्रदेश में एक घटना में यात्रियों की दाढ़ी कट गई थी – इस बार सरकारी अधिकारियों के सामने। सीतापुर में यात्रियों से खचाखच भरा एक ई-रिक्शा पानी में डूबे गड्ढे में पलट गया, जिसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है. घटना उस वक्त हुई जब पुलिस की गाड़ियां…
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महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल
नीलगाय, हिरन फटकेंगे नहीं पास फसल सुरक्षा के साथ सेफ एक्स्ट्रा इनकम जानिए मॉडर्न बिजूका संग कई फलदार तरीके
चीज अगर कीमती हो तो फिर उसकी सुरक्षा भी सर्वोपरि है। जीवन की सभी सुख सुविधाओं के उद्भव केंद्रबिंदु अनाज, फल, फसल जैसे बेशकीमती प्राकृतिक उपहार की रक्षा, उससे भी ज्यादा अहम होनी चाहिए। भारत में खेती किसानी की रक्षा के मामले में स्थिति जरा उलट है।
देश मे खेतों की नीलगाय, हिरन, जंगली शूकर, आवारा मवेशियों से सुरक्षा के लिए इन दिनों कंटीले तारों की फेंसिंग का चलन देखा जा रहा है। यह तरीका बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही खेत की सुरक्षा युक्ति के मुकाबले जरा महंगा है।
तार की बाउंड्री के अलावा और किस तरह फसल की जानवरों से रक्षा की जा सकती है, किस तरीके की सुरक्षा के क्या अल्प एवं दीर्घ कालिक लाभ हैं, कंटीले तार की फेंसिंग के क्या लाभ, हानि खतरे हैं, जानिये मेरीखेती के साथ।
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तार फेंसिंग लाभ, हानि, खतरे
शुरुआत करते हैं खेत के चारों ओर कटीले तारों को लगाने के मौजूदा प्रचलित तरीके से। इस तरीके से खेत की सुरक्षा में तारों की फेंसिंग के लिए सीमेंट के पिलर आदि से लेकर तारों की क्वालिटी के आधार पर सुरक्षा की लागत तय होती है। पिलर के लिए गड्ढे खोदने पर भी मजदूरी आदि पर व्यय करना पड़ता है।
तार चोरी का खतरा
तार फेंसिंग की एक टेंशन ये भी है कि, इस तरह की खेत की सुरक्षा में महंगी क्वालिटी के तारों के चोरी होने का डर रहता है। भारत में खेत से तारों के चोरी होने के कई मामले आए दिन प्रकाश में आते रहते हैं। कटीले तारों के मौसमी प्रभाव से खराब होने का भी खतरा रहता है। कटीले तारों से खेतों की सुरक्षा कई बार किसानों के लिए फायदे के बजाए नुकसान का सौदा साबित हुई है।
नीलगाय जैसे बलशाली एवं कुलाचें मारने में माहिर हिरणों के झुंड के सामने, तार फेंसिंग भी फेल हो जाती है। बलशाली नीलगाय के झुंड जहां तार फेंसिंग को धराशाई कर फसल चौपट कर देते हैं, वहीं हिरन झुंड छलांग मार खेत की फसल चट कर खेत से पलक झपकते ओझल हो जाते हैं।
तार की फेंसिंग में फंसने या फिर इसमें चूकवश प्रवाहित करंट की चपेट में आने से जन एवं पशुधन की हानि के कारण मामले थाना, कोर्ट, कचहरी से लेकर जेल की सैर तक जाते देखे गए हैं।
प्राकृतिक विकल्प श्रेष्ठ विचार
हालांकि प्राकृतिक तरीका एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, लेकिन इसमें नुकसान के बजाए फायदे ही फायदे हैं। इस तरीके से खेत की बाड़, बागड़ या फेंसिंग के लिए तार जैसे कृत्रिम विकल्पों के बजाए प्रकृति प्रदत्त पौधों आधारित विकल्पों से खेत और फसल की सुरक्षा का प्रबंध किया जाता है।
कुछ पेड़, पौधे हैं जिन्हें खेत की सीमा पर लगाकर अतिरिक्त कृषि आमदनी से भरपूर बाड़ सुरक्षा तैयार की जा सकती है। इसमें किसी एक पेड़, पौधे, वृक्ष या फिर इनके मिश्रित प्रयोग से वर्ष भर के लिए मिश्रित कृषि जनित आय का भी कुशल प्रबंध किया जा सकता है।
तो शुरुआत करते हैं बिसरा दिए गए उन ठेठ देसी तरीकों से, जिनमें आधुनिक तकनीक का तड़का ल��ाकर और भी ज्यादा श्रेष्ठ नतीजे हासिल किए जा सकते हैं।
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मॉडर्न बिजूका (Scarecrow)
घर की छत पर बुरी नजर से बचाने टंगी काली मटकी या लटके पुराने जूते की ही तरह खेती किसानी की सुरक्षा का पीढ़ी दर पीढ़ी आजमाया जाने वाला खास टोटका है, बिजूका।
भारत का शायद ही ऐसा कोई खेत हो जहां बिजूका के हिस्से जमीन न छोड़ी जाती हो। मवेशी से फसल सुरक्षा के लिए इस युक्ति में खेत के चारों ओर सुरक्षा दायरा बनाने के बजाए महज बांस और मिट्टी की मटकी और पुराने कपड़ों से इंसान की मौजूदगी के लिए बिजूका जैसे भ्रम का ताना-बाना बुना जाता है।
ऐसी प्रयोगजनित मान्यता है कि हवा में बिजूका की मटकी अपने आप हिलती-डुलती है और कपड़े लहराते हैं, तो जानवरों को खेत में इंसान के होने का आभास होता है और वे दूसरे खेत की राह पकड़ लेते हैं। घासपूस और कपड़ों का बनाया गया पुतला जिसे बिजूका कहा जाता है, दिन रात बगैर थके, मुस्कुराते हुए किसान के गाढ़े पसीेने की कमाई की रक्षा में रत रहता है।
हालांकि बिजूका को अब तकनीक की सुलभता के कारण आधुनिक स्वरूप भी दिया जा सकता है। अब बिजूका को बाजार में सस्ती कीमत पर मिलने वाले एफएम या मैमोरी की सहायता से चलने वाले लाउड स्पीकर के जरिए मॉडर्न बनाया जा सकता है। लाउड स्पीकर के जरिए ऐसे जानवरों की रिकॉर्डेड आवाज जिनसे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर डरते हैं, पैदा कर भ्रम में इंसान की मौजूदगी का और गहरा एवं असरकारक प्रभाव निर्मित क��या जा सकता है। आप भी आजमा के देखिये। बस इसके लिए आपको जानवरों की डरावनी आवाज वाली ऑडियो लाइब्रेरी का जुगाड़ करना होगा।
नीलगाय समस्या का हर्बल इलाज
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से, बगैर कृत्रिम रासायनिक पदार्थों की मदद लिए प्राकृतिक तरीके से तैयार हर्बल घोल नीलगाय को भगाने का कारगर उपाय बताया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों ने खेत से नीलगायों के झुंड को दूर रखने घरेलू और परंपरागत हर्बल नुस्ख़ों पर प्रकाश डाला है।
काफी कम लागत में तैयार हर्बल घोल खेत में उपलब्ध संसाधनों से ही अल्प समय में रेडी हो जाता है। गोमूत्र, मट्ठा और लालमिर्च के अलावा नीलगाय के मल, गधे की लीद इत्यादि के मिश्रण से तैयार हर्बल घोल की गंध से नीलगाय और दूसरे जानवर दूर रहते हैं। इस हर्बल घोल का खेत की परिधि के आसपास छिड़काव करने से जानवरों से खेत की सुरक्षा संभव है। इस तरीके से कम से कम 20 दिन तक खेत की नीलगायों के झुंड से सुरक्षा होने के अपने-अपने दावे हैं। रामदाने की खुशबू से भी नीलगाय दूर रहती है।
कृषि विज्ञान केंंद्र या कृषि समस्या समाधान संबंधी कॉल सेंटर से भी हर्बल घोल बनाने की विधि के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है।
खेत की मेढ़ के किनारे या आसपास करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस आदि लगाकर भी नीलगाय से फसल सुरक्षा की जा सकती है।
बांस का जंजाल
बांस के पौधे, खेत की मेढ़ किनारे नियोजित तरीके से कतार में रोपकर, खेत की जानवरों से सुरक्षा का अच्छा खाका तैयार किया जा सकता है। किसी भी तरह की मिट्टी पर विकसित होने मेें सक्षम बांस, हर हाल में भविष्य के लिए मुनाफे भरा निर्णय है।
बांस के पौधे सामान्यतः तीन से चार साल में परिपक़्व हो जाते हैं। इससे किसान मित्र कृषि आय का अतिरिक्त जरिया भुना सकते हैं। खेत की मेढ़ पर बैंबू कल्टीवेशन (Bamboo Cultivation), यानी बांस की पैदावार कर किसान को 40 सालों तक कमाई सुनिश्चित है। किसानों की आय में वृद्धि करने भारत सरकार ने बांस की खेती के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) की शुरुआत की है। इसमें किसानों के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान किया गया है।
बांस के फायदों और सुनिश्चित लाभ के बारे में विस्तार से जानने के लिए शीर्षक को क्लिक करें: जानिये खेत में कैसे और कहां लगाएं बांस ताकि हो भरपूर कमाई
बेर से फेंसिंग
हरी, पीली, लाल, नारंगी, रंग-बिरंगी, खट्टी-मीठी बेर के पौधों को खेत की सीमा पर चारों ओर नियोजित कतार में लगाकर खेत की प्राकृतिक रूप से सुरक्षा की जा सकती है। आम तौर पर जंगली समझा जाने वाला यह फलदार पौधा, ज्यादा देखभाल के अभाव में भी अपना विस्तार करने में सक्षम है।
बारिश में यह खास तौर पर तेजी से बढ़ता है। नर्सरी में तैयार उच्च किस्म के बेर के पौधे कम समय में कृषि आय प्रदान करने में सक्षम होते हैं। नर्सरी में तैयार पौधों पर अपने आप पनपने वाले पेड़ों की तुलना में अधिक मात्रा में बेर के फलों की पैदावार होती है। इनके कंटीले तनों के कारण खेत की भरपूर सुरक्षा होती है, क्योंकि जानवरों को इसमें प्रवेश करने में दिक्कत होती है।
मार्च अप्रेल में कच्चे फल बेचकर किसान जहां मौसमी कमाई कर सकता है, वहीं सूखे बेर के लिए चूरन, बोरकुट, गटागट जैसे उत्पादों के लिए निर्माताओं के बीच तगड़ी डिमांड रहती है।
करौंदा के पेड़
करौंदा भी बेर की ही तरह कंटीले पौधों की एक फलदार प्रजाति है। मौसमी फल का यह पौधा भी कृ़षि आय में वृद्धि के साथ ही खेत की सुरक्षा में कारगर प्रबंध हो सकता है। खेत की मेढ़ के पास नियोजित तरीके से करौंदा की बागड़ से जहां खेत की सुरक्षा हो सकती है, वहीं मौसम में फल से एक्स्ट्रा फार्म इनकम भी सुनिश्चित हो जाती है।
कांटा युक्त करौंदा का पौधा, झाडिय़ों के स्वरूप में अपना विस्तार करता है। गर्म जलवायु तथा सूखा माहौल सहने में सक्षम करौंदा विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहता है। खास तौर पर किसी भी तरह की मिट्टी में करौंदा ग्रोथ करने लगता है।
विदेशी प्रजातियों की बात करें तो लागत और संसाधन की उपलब्धता के आधार पर जैपनीज़ होली, जहरीली बेल के अलावा गैर जहरीली इंगलिश आइवी बेल, अमेरिकन होली, फर्न्स, क्लीमेंटिस, सीडर्स ट्री लगाकर भी खेत की सुरक्षा का प्रबंध किया जा सकता है। हालांकि इन पौधों से अतिरिक्त कमाई के अवसर कम हैं, लेकिन पर्यावरण सुरक्षा की सौ फीसदी गारंटी जरूर है।
Source महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल
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पटना जा रही बस में हाईवा ने सामने से मारा टक्कर, कई यात्री घायल
पटना जा रही बस में हाईवा ने सामने से मारा टक्कर, कई यात्री घायल
Sheikhpura: सिकन्दरा-शेखपुरा मुख्य सड़क पर चिंतामनचक गांव के पास पटना जा रही यात्रियों से भरी बस में तेज रफ्तार हाईवा ने सामने से टक्कर मार दिया। टक्कर के बाद ट्रक भागने में सफल रहा, परंतु बस वहीं गड्ढे में पलट गई। टक्कर इतना जबरदस्त था कि बस का अगला हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। इस भीषण दुर्घटना में कई यात्रियों को चोट लगी, परंतु किसी की जान पर खतरा नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि आमने-सामने…
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कोटद्वार उत्तराखंड के ग्रामीण आक्रोशित, अवैध नहरबंदी ने ली एक और जान
कोटद्वार उत्तराखंड के ग्रामीण आक्रोशित, अवैध नहरबंदी ने ली एक और जान
ودوار विद्युत जिले की नदियों में अनियमित नहरीकरण से लोगों की जान को खतरा है। ताजा मामला सुखराव नदी का है, जहां नहरीकरण से बने गहरे गड्ढे में एक युवक की डूबने से मौत हो गई। कोटद्वार भाबर की नदियों में खनन के कारण गहरे गड्ढे बन गए हैं, जो अब लगातार बच्चों की मौत का कारण बन रहे हैं। बुधवार दोपहर को जब इस तरह की एक और दुर्घटना हुई, तो स्थानीय लोग भड़क गए और यहां तक कि नदी के किनारे खनिकों पर पथराव…
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डिहाइड्रेशन हो सकती है जानलेवा! जानें लक्षण और गर्मियों में इससे बचने के उपाय Divya Sandesh
#Divyasandesh
डिहाइड्रेशन हो सकती है जानलेवा! जानें लक्षण और गर्मियों में इससे बचने के उपाय
नई दिल्ली। हमारा लगभग 70 प्रतिशत शरीर पानी से बना हुआ है। ऐसे में पानी हमारे लिए एक मूलभूत जरूरत ही नहीं बल्कि अपने शरीर को क्रियाशील रखने का तरीका भी है। गर्मी के मौसम में अक्सर ऐसा होता है, जब हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इस कमी को ही मेडिकल की भाषा में डिहाइड्रेशन कहते हैं। जैसे जैसे गर्मी और बढ़ेगी, लोगों में डिहाइड्रेशन की समस्या भी सामने आने लगेगी। वैसे घबराने की बात नहीं है क्योंकि गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन की समस्या कोई नई बात नहीं है। हां, इस पर ध्यान न दिया जाए और कारगर उपाय न किए जाएं तो यह खतरनाक साबित हो सकती है।
अगर आपके कान में चला जाए पानी तो इन आसान टिप्स से निकाले बहार
डिहाइड्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी
डिहाइड्रेशन, शरीर में पानी की कमी का परिणाम होता है। यह स्थिति तब पैदा होती है, जब शरीर से निकलने वाले पानी (पसीना, मल या मूत्र के रूप में) की मात्रा दिनभर में ली जाने वाली पानी की मात्रा से अधिक हो जाती है। शरीर के तापमान को सामान्य रखने के लिए शरीर में पानी की जरूरत होती है। अब यदि आप कम पानी पीते हैं तो डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है।
डिहाइड्रेशन के क्या हैं लक्षण
डिहाइड्रेशन होने और समय पर इसकी पूर्ति न की जाए या हीट स्ट्रोक आ जाए तो इस कारण व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। लेकिन पता समय से चल जाता है कि आपको डिहाइड्रेशन होने लगा है या नहीं। बस अपने शरीर के कुछ लक्षण पर ध्यान देने की जरूरत होती है।
-यह खतरनाक स्तर पर आ जाए तो व्यक्ति को अचानक चक्कर आने लगते हैं। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता है। सिरदर्द की समस्या शुरू हो जाती है।
1. हल्के से मध्यम निर्जलीकरण के लक्षण
प्यास का लगना
-मुंह सूखना व चिपचिपा महसूस होना -पेशाब कम आना -गाढ़े पीले रंग का पेशाब आना -सूखी और ठंडी त्वचा -सिरदर्द होना मांसपेशियों में ऐठन
2. गंभीर निर्जलीकरण के लक्षण
पेशाब का बिल्कुल न आना या बहुत अधिक गहरे पीले रंग का आना -सूखी और सिकुड़ी हुई त्वचा का दिखाई देना -चिड़चिड़ापन या भ्रम की स्थिति पैदा होना -चक्कर आना या आंखों के सामने अंधेरा छाना -धड़��न और सांस का तेज होना -आंखों के नीचे गड्ढे नजर आना -बेहोश हो जाना
यह जांचने का एक आम तरीका यह भी है कि यह ध्यान दें कि पिछले कितने समय से आप पेशाब के लिए नहीं गए हैं। आमतौर पर 4 घंटे के भीतर आपको टॉयलेट जाना चाहिए। पेशाब का न आना भी शरीर में डिहाइड्रेशन बताता है।
गर्मियों में इससे बचने के उपाय क्या हैं
-तरल पदार्थों के सेवन जैसे पानी, सूप, ताजा रस और ताजा नारियल पानी आदि से स्वयं को रिहाइड्रेट कर सकते हैं। इसके अलावा ताजे फल और सलाद भी अपने रोजाना के आहार में शामिल करें।
-महिलाओं को रोजाना करीब 2.5 लीटर और पुरुषों को 3 लीटर पानी कम-से-कम पीना चाहिए यानी तीन से चार सामान्य बोतल जिसका इस्तेमाल आजकल किया जाता है, पीना चाहिए।
-डिहाइड्रेशन से पीड़ित व्यक्ति को नींबू पानी, नारियल पानी या छाछ जैसी चीजों का सेवन करने को दे सकते हैं। अगर आप कठिन एक्सरसाइज या वर्कआउट करते हैं तो इसके दौरान हर 15-20 मिनट पर आपको थोड़ा बहुत तरल पदार्थ सेवन करने की जरूरत होती है।
-तमाम उपाय कर लें और तब भी डिहाइड्रेशन हो जाए तो सबसे पहले तो शरीर को पूरा आराम दें। गहरी सांस लें। किसी ठंडी जगह या पेड़ के नीचे यानी किसी शेड में आराम करें।
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*जिला परिषद के सामने क्षतिग्रस्त पुलिया राहगीरों की जान माल के लिए बन रही घातक* *कई बार मिट्टी डालकर नगरपालिका व प्रशासन अपनी तरफ से कर लेता हैं इतिश्री..!* तस्लीम बेनकाब मुजफ्फरनगर। जिला परिषद के सामने गुप्ता हौजरी के पास चर्च वाली पुलिया काफी समय से क्षतिग्रस्त है और उस में गड्ढे पड़ गए हैं जिस कारण आए दिन छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं लेकिन ऐसा लगता है कि शायद नगर पालिका या प्रशासन किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहा है! मोटरसा��किल स्कूटी सवार सभी यहा से गुजरते हैं और कोई ना कोई छोटी बड़ी घटना अक्षर किसी ना किसी के साथ होती रहती है लेकिन जिसके साथ होती है वह मन ही मन में जिला प्रशासन व नगर पालिका को कोसता चला जाता है! इस और कई बार नगर पालिका का ध्यान आकर्षित कराया गया लेकिन मिट्टी डालकर नगरपालिका अपनी तरफ से इतिश्री कर लेती है तथा 2 दिन में ही वह मिट्टी फिर निकल कर बाहर आ जाती है और फिर गड्ढे अपने उसी विकराल रूप में आ जाते हैं तथा संभंधित अधिकारियों को इस ओर गंभीरतापूर्वक ध्यान देने की जरूरत है केई बार रिक्शावाले तथा महिलाओं के पैरों तक मोच तक आ गई है! तथा ई रिक्शा व रहड़े वाले यहा पलटते रहते हैं,इससे जानमाल का गंभीर खतरा हमेशा बना हुआ है बेहतर हो कि नगर पालिका व प्रशासन इस ओर ध्यान देकर इन गड्ढों को अविलंब ठीक करवाएं ताकि जान-माल की क्षति से आम नागरिकों को ���चाया जा सके..। https://www.instagram.com/p/CH6bUhapLeB/?igshid=1kti4ny14wqyc
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विकास खण्ड बभनजोत क्षेत्र का खोडारे गौराचौकी मार्ग है । सबना चौराहा,रसूलपुर,गिन्नी नगर और निपनियां आदि जगहों पर यही हाल है । गौराचौकी के भावपुर का तो अंदाजा लगा ही सकते हैं । पूरे सड़क में जगह जगह गड्ढे हैं । जहां जहां गड्ढो में मिट्टी डाल दी गयी थी अब वह मिट्टी पूरे सड़क पर फैल गयी है । जब तक सड़क सूखेगी नही तबतक आने जाने वालों के सामने खतरा बना रहेगा । https://www.instagram.com/p/B8-0LA6g2S8/?igshid=1y03h92t2uh5z
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मानसून में बाइक राइडिंग का लुत्फ उठाने के दौरान इन बातों का खासतौर से रखें ख्याल
चैतन्य भारत न्यूज बारिश के मौसम में बाइक से सफर करना ज्यादातर लोगों को पसंद है। इस मौसम में आस-पास की हरियाली और ठंडी हवाएं बहुत ही खूबसूरत अहसास देती है, जिससे सफर और भी रोमांचक हो जाता है। बड़े शहरों में मानसून के आते ही अक्सर लोग बाइक राइडिंग का प्लान बनाते हैं। वैसे भी इस मौसम में दोस्तों के साथ लॉन्ग ड्राइव पर जाने का मजा और भी दोगुना हो जाता है। अगर आप अपने दोस्तों के साथ राइडिंग पर जाने का प्लान बना रहे हैं तो इससे पहले आपको इन खास बातों का ख्याल रखना होगा। ���ेलमेट
बारिश के मौसम में दोस्तों के साथ बाइक राइड पर जाने से पहले अपने हेलमेट में कुछ बदलाव कर लें। सबसे पहले इसमें एंटी फॉग कोटिंग करा लें। इससे आपके हेलमेट के ग्लास पर ओस नहीं जमेगी और बाइक चलाने में आसानी होगी। टायर्स की जांच
राइडिंग से पहले टायर्स को अच्छी तरह से चेक कर लें। दरअसल बारिश के मौसम गीली सड़कों पर सबसे ज्यादा नुकसान टायर को ही होता है। बारिश में सड़कों पर बाइक फिसलने का भी खतरा रहता है। ऐसे में राइडिंग पर निकलने से पहले टायर्स की हालत की जांच करा लें। सेफ्टी आउटफिट
गीली सड़क पर बाइक फिसलना आम बात है। ऐसे में आप सेफ्टी आउटफिट पहनकर ही बाइक चलाए। बाइक राइडिंग के दौरान दूसरे वाहनों से उचित दूरी बना कर रखें। इसके अलावा अचानक ब्रेक लगाने से बचें। सड़क पर रखें नजर
बाइक चलाते समय पूरा ध्यान सड़क पर ही रखना चाहिए। क्योंकि बारिश के दौरान सड़कों पर गड्ढे हो जाते हैं, ऐसे में आप दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं। इसलिए राइडिंग के दौरान सड़क से नजरें ना हटाएं। ये भी पढ़े... बारिश में इन 5 जगहों पर जरूर जाएं घूमने, होगा जन्नत का अहसास रेलवे दे रहा है सबसे कम बजट में केरल की प्राकृतिक खूबसूरती निहारने का मौका बारिश में दुर्घटना होने से पहले सिक्के से जांचे टायर की सेहत Read the full article
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बरसात के दिनों में बीमारियों से लड़ने को जागरूक होंगे परिषदीय स्कूली बच्चे, भागेंगे संक्रामक रोग, 38 जिलों में चलेगा संचारी रोग नियंत्रण अभियान
बरसात के दिनों में बीमारियों से लड़ने को जागरूक होंगे परिषदीय स्कूली बच्चे, भागेंगे संक्रामक रोग, 38 जिलों में चलेगा संचारी रोग नियंत्रण अभियान
हरदोई : बरसात में संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। खासकर बच्चों में बीमारियां बढ़ जाती हैं। बीमारियों से बचाव और उन पर नियंत्रण के लिए अब विद्यालय के बच्चों को भी न केवल जागरूक किया जाएगा, बल्क�� उनके माध्यम से समाज तक जागरूकता पहुंचाई जाएगी। जुलाई में संचारी रोग नियंत्रण अभियान चलाया जाएगा। रोग नियंत्रण के लिए बेसिक शिक्षा विभाग की तरफ से उठाए गए कदम में हरदोई समेत प्रदेश के 38 जिलों में दो जुलाई से 31 जुलाई तक विशेष अभियान चलेगा। ��िद्यालय के अध्यापकों को यूनीसेफ के विशेष प्रशिक्षकों द्वारा स्वास्थ्य का प्रशिक्षण दिया जाएगा और फिर विद्यालयों में सप्ताह के अलग-अलग दिन कार्यक्रम होंगे। सोमवार को कक्षा-कक्षों की सफाई तो मंगलवार व बुधवार को स्कूल परिसर की सफाई, गुरुवार को पानी के गड्ढे भरे जाएंगे तो शुक्रवार व शनिवार को विद्यालयों में रखी अलमारी, फर्नीचर आदि की सफाई होगी। इन सभी के साथ ही अलग-अलग दिनों पर विद्यालय स्तर से लेकर न्याय पंचायत और विकास खंड स्तर पर जागरूकता रैली, डोर-टू-डोर विजिट, विद्यालय प्रबंध समिति की बैठक में स्वास्थ्य पर चर्चा, मां समूह बैठक में महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाएगा। इसके साथ ही विद्यालयों में निबंध प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक आदि के माध्यम से बच्चों को न केवल विद्यालयों बल्कि अपने घरों को साफ सुथरा रखकर संचारी रोगों से बचाव की जानकारी दी जाएगी। दो जुलाई से 31 जुलाई तक रोजाना प्रार्थना सभा में बच्चों से स्वास्थ्य जागरूकता की प्रतिज्ञा कराई जाएगी। प्रभारी बीएसए आरपी त्रिपाठी ने बताया कि विद्यालयों में संदेश भेजा जा रहा है।
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अंतरिक्ष से दिखी ऐमजॉन वर्षावनों के बीच बहती 'सोने की नदी', पीछे छिपा है काला सच Divya Sandesh
#Divyasandesh
अंतरिक्ष से दिखी ऐमजॉन वर्षावनों के बीच बहती 'सोने की नदी', पीछे छिपा है काला सच
स्पेस से ली गईं धरती की तस्वीरें अमूमन मंत्रमुग्ध करने वाली होती ही हैं लेकिन एक ताजा तस्वीर इससे कहीं ज्यादा है। इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन से ली गई इस तस्वीर में दिख रही है ‘सोने की नदी’। दरअसल, पेरू के ऐमजॉन क्षेत्र में मानो सोना बहता है और इसकी तस्वीरें अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के एक्सपीडिशन 64 में शामिल एक ऐस्ट्रोनॉट ने ली हैं। सूरज की रोशनी में इनामबारी नदी में सोना से भरे गड्ढे चमक उठते हैं और ये शानदार तस्वीर कैमरे में कैद हो जाती है। हालांकि, इस तस्वीर ने एक बार फिर पेरू में चल रहे एक काले धंधे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है।River of Gold in Peru: अंतरिक्ष से पेरू के Amazon Rainforest की तस्वीर ली गई। इसमें यहां बहती सोने की नदी देखी गई। हालांकि, इस नदी से जुड़ा है एक बड़ा काला धंधा।स्पेस से ली गईं धरती की तस्वीरें अमूमन मंत्रमुग्ध करने वाली होती ही हैं लेकिन एक ताजा तस्वीर इससे कहीं ज्यादा है। इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन से ली गई इस तस्वीर में दिख रही है ‘सोने की नदी’। दरअसल, पेरू के ऐमजॉन क्षेत्र में मानो सोना बहता है और इसकी तस्वीरें अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के एक्सपीडिशन 64 में शामिल एक ऐस्ट्रोनॉट ने ली हैं। सूरज की रोशनी में इनामबारी नदी में सोना से भरे गड्ढे चमक उठते हैं और ये शानदार तस्वीर कैमरे में कैद हो जाती है। हालांकि, इस तस्वीर ने एक बार फिर पेरू में चल रहे एक काले धंधे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है।सामने आई ‘असली’ तस्वीरआमतौर पर ISS से देखे जाने पर सोने का यह नजारा छिपा रहता है। या तो यहां बादल होते हैं या सूरज की रोशनी पर्याप्त नहीं होती। हालांकि, पिछले साल 24 दिसंबर क�� ली गईं ये तस्वीरें एकदम साफ दिखती हैं। ऐमजॉन वर्षावनों के गीले मौसम में सोने से भरे इन गड्ढों की झलक दिख रही है। पूरे इलाके में पानी से भरे ये गड्ढे मौजूद है। जंगल से निकले इन रास्तों में मिट्टी से भरे गड्ढे हैं जिनमें सोने का खनन स्वतंत्र मजदूर करते हैं जिन्हें Garimperos कहा जाता है। (फोटो: Cristobal Bouroncle/Pool via REUTERS)गैर-कानूनी खननसूख चुकीं नदियों के तले में जमा सोने की खुदाई के लिए पेड़ काटे जाते हैं और फिर खनन किया जाता है। पेरू दुनिया में सोने का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसका दक्षिण-पूर्वी विभाग मादरे डे डियोस दुनिया की सबसे बड़ी सोने के स्वतंत्र खनन की इंडस्ट्री इस क्षेत्र में चलाता है। यहां लगभग हर परिवार के सदस्य ऐमजॉन नदी के किनारे गड्ढे खोदकर सोने की तलाश करते हैं। इस क्षेत्र में अवैध रूप से 30,000 से अधिक सोने के खनिक काम करते हैं। जो यहां के सरकारी नियमों के खिलाफ है। (फोटो: NASA)जंगलों की अंधाधुंध कटाई का शिकारहालांकि, यहां खनन की वजह से जंगल की अंधाधुंध कटाई होती है। यही नहीं, सोने के खनन के दौरान पारे (Mercury) से होने वाले प्रदूषण का खतरा भी बढ़ता है। स्पेस से ली गई तस्वीर में दिख रहा नूइवा अरिकीपा का शहर पेरू और ब्राजील को जोड़ने वाली सड़क के बीच आता है। इस रास्ते को दोनों देशों के बीच व्यापार को बेहतर करने के लिए बनाया गया था। हालांकि, आरोप है कि इसके जरिए सतह पर खनन बढ़ गया है और पेड़ों की कटाई भी तेज हुई है। ऐसा करने से न केवल नदी की प्रवाह बाधित हुई है, बल्कि यहां के निवासियों के लिए भी संकट बढ़ गया है। पहले पेड़ों के कारण ऐमजॉन की बाढ़ में मिट्टी का कटाव कम होता था, अब तो यह नदी जिधर चाहती है उधर अपना रास्ता बना लेती है। Reuters/Ricardo Moraes
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जिले में डेढ़ साल के अंदर करीब 285 कराेड़ रुपए खर्च करके मुख्य रूप से तीन काम किए गए। 230 कराेड़ की लागत से बाइपास का निर्माण हुअा। 14 कराेड़ की लागत से विक्रमशिला सेतु की मरम्मत हुई। 41 कराेड़ रुपए खर्च कर सबाैर से रामजानीपुर के बीच में 31 किलाेमीटर लंबे एनएच का मजबूतीकरण किया गया। लेकिन निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी से स्थिति यह है कि एक से डेढ़ साल में ही सब टूट गए। अब उनकी मरम्मत शुरू की गई है। हालत यह है कि इन तीनाें याेजना पर 300 कराेड़ खर्च करने के बाद भी लाेगाें काे राहत नहीं मिल रही है। खराब सड़क से भारी वाहन फंसकर खराब हाे रहे हैं। नतीजा, भीषण जाम लग रहा है। आखिर इतनी जल्दी सड़क क्याें टूटी, इस सवाल के जवाब में इंजीनियर के पास वही पुराना बहाना है-ओवरलाेड से सड़क टूटी है। हालांकि उसकी मरम्मत की जा रही है। अब बीच-बीच में हाे रही बारिश की वजह से म���म्मत भी रुक-रुककर हाे रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब बनने के डेढ़ साल के अंदर सड़क टूट गई ताे अब मरम्मत के बाद कितने दिनाें तक चलेगी?
14 कराेड़ से मरम्मत के बाद भी डेढ़ साल में ही हो गया जर्जर
विक्रमशिला सेतु के बनने के बाद पहली बार 17 साल के बाद पहली बार इसकी मरम्मत की गई। पुल की मरम्मत के डेढ़ साल बाद ही हालत खस्ताहाल होने लगी है। बिहार राज्य पुल निर्माण निगम ने 14 करोड़ रुपए मरम्मत में लगाए, लेकिन महज एक साल में ही सड़क की सतह उखड़ने लगी है। लोहे के रॉड नजर आने लगे हैं। जगह-जगह गड्ढे बनने लगे हैं। सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि भागलपुर से नवगछिया की तरफ जाने में पुल के पाेल नंबर 80 से 83 के बीच बाएं तरफ की सड़क धंस गई है। इससे हादसे का खतरा बढ़ गया है। वहां गाड़ी पहुंचने पर दूसरी लाइन में जाती है। इससे जाम की स्थिति बन रही है। बता दें कि 2017 में जर्जर पुल की मरम्मत के लिए पुल निर्माण निगम ने मुंबई की कंपनी रोहड़ा रिबिल्ड स्ट्रक्चर को जिम्मा सौंपा था। 14 करोड़ की लागत से इस पुल की मरम्मत 28 जनवरी 2017 को शुरू हुई। पहले फेज में खराब एक्सपेंशन ज्वॉइंट बदले गए और फिर 2018 में बियरिंग बदलने के साथ ठेका एजेंसी ने सरफेस भी बनाए। लेकिन अब इसकी हालत बेहद खराब हाे गई है।
41 कराेड़ रुपए खर्च हुए, फिर भी सबाैर-कहलगांव एनएच गड्ढ़े में
सबाैर से रामजानीपुर के बीच 41 कराेड़ की लागत से 31 किलाेमीटर लंबे एनएच के मजबूतीकरण का ठेका पलक इंफ्रा काे दिया गया। लेकिन अब तक इस एनएच की स्थिति नहीं सुधर सकी है। शंकरपुर घाेघा से काैआपुल तक करीब आठ किलाेमीटर लंबी सड़क पूरी तरह से ध्वस्त हाे गई है। वहां सड़क की जगह केवल गड्ढे बचे हैं। हल्की बारिश में ही उन गड्ढाें में पानी भर जाता है और तालाब सी स्थिति बन जाती है। इसके साथ ही इंजीनियरिंग काॅलेज से काैआपुल के बीच की भी हालत खराब है। जर्जर एनएच की वजह से वहां जाम की स्थिति बन रही है। हालांकि इस मामले काे डीएम ने गंभीरता से लिया। डीएम और कहलगांव के एसडीओने एनएच के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर काे पत्र भी भेजा। इसके जवाब में एनएच के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ने कहा है कि पिछले वर्ष बाढ़ व पथ परत की चाैड़ाई 5.50 मीटर हाेने के बाद भी क्षमता से ज्यादा भारी वाहनाें के चलने से सड़क की ऐसी स्थिति है। इसमें कहा गया है कि घाेघा से काैआपुल के बीच एनएच की मरम्मत का निर्देश ठेकेदार काे दिया गया है। जबकि इंजीनियरिंग काॅलेज से काैआपुल के बीच पथ परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय की ओर से चेंज ऑफ स्काेप के तहत प्राक्कलन की स्वीकृति मिली है। इसके लिए भी मरम्मत का निर्देश दिया गया है।
बनने के साथ टूटने लगा था अब ताे पूरी तरह से जर्जर
230 कराेड़ की लागत से बाइपास का निर्माण पिछले साल पूरा हुआ। उदयपुर की कंपनी जीआर इंफ्रा काे ठेका मिला था। इसके साथ ही बाइपास चालू हाे गया। लेकिन ��ुछ दिनाें के बाद ही बाइपास टूटने लगा। अगर निर्माण के वक्त विभाग के पदाधिकारी सही ढंग से निगरानी करते ताे बाइपास की ऐसी स्थिति नहीं हाेती। अब इसकी हालत बेहद खराब है। लाॅकडाउन की अवधि में इसकी मरम्मत शुरू की जानी थी। लेकिन उस वक्त शुरू नहीं की। अब इसकी मरम्मत की जा रही है। लेकिन वह भी धीमी गति से हाे रही है। अब इसकी हालत ऐसी है कि हल्की बारिश में ही बाइपास कच्ची सड़क सी दिखने लगी है। इस पर भारी वाहन चलते हैं। ऐसे में गड्ढाें की वजह से अक्सर ट्रक खराब हाे रहे हैं और जाम की स्थिति बनी रहती है। बाइपास जाम हाेने से रात में कई ट्रक फिर से शहर हाेकर गुजरने लगे हैं। जबकि शहर काे जाम से राहत मिले, इसके लिए ही बाइपास का निर्माण किया गया। लेकिन निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी से इसकी हालत बदतर हाे गई। एनएच के इंजीनियर केवल बहाना बना रहे हैं कि ओवरलाेड की वजह से बाइपास टूटा।
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Repair patchwork on the highway of corruption
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earthquake risk in north india: दिल्ली से बिहार के बीच बड़े भूकंप का खतरा? रिक्टर स्केल पर 8.5 हो सकती है तीव्रता - iit kanpur alarming study risk of disastrous earthquake between delhi and bihar
earthquake risk in north india: दिल्ली से बिहार के बीच बड़े भूकंप का खतरा? रिक्टर स्केल पर 8.5 हो सकती है तीव्रता – iit kanpur alarming study risk of disastrous earthquake between delhi and bihar
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रामनगर में गड्ढे खोदकर सतहों का अध्ययन हाइलाइट्स
दिल्ली से बिहार के बीच आ सकता है 8.5 तीव्रता का बड़ा भूकंप
IIT कानपुर के सिविल इंजिनियरिंग विभाग के प्रफेसर ने जताई आशंका
500 साल में गंगा के मैदानी क्षेत्र में कोई बड़ा भूकंप रेकॉर्ड नहीं किया गया
2001 के भुज भूकंप ने 300 किमी दूर अहमदाबाद तक मचाई थी तबाही
कानपुर आईआईटी कानपुर ने एक ताजा अध्ययन के बाद चेतावनी दी है कि दिल्ली से बिहार के…
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केदारपुर वार्ड अंतर्गत मधुर विहार फेज-2 को जाने वाली सड़क खस्ताहाल
केदारपुर वार्ड अंतर्गत मधुर विहार फेज-2 को जाने वाली सड़क खस्ताहाल
देहरादून:नगर निगम देहरादून के केदारपुर वार्ड अंतर्गत मधुर विहार फेज-2 को जाने वाली सड़क विभागीय उदासीनता के चलते खस्ताहाल में है। इस सड़क में जगह-जगह पर गड्ढे बने हुए हैं, जिस कारण दुर्घटना का खतरा बराबर बना रहता है। बारिश में तो इस सड़क से निकलना और भी मुश्किल हो जाता है। बारिश में गड्ढांे के ऊपर आए दिनों दुपहिया वाहन चालक चोटिल हो रहे हैं। जनप्रतिनिधियों द्वारा इस सड़क की सुध न लिए जाने से स्थानीय…
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नियमों की अनदेखी यहां देखिए,तारीख निकलने के बाद भी नहीं हो पाया खदानों का भराव, खदानें दे रही दुर्घटनाओं को दावत,पूर्व विधायक ने उठाए सवाल
नियमों की अनदेखी यहां देखिए,तारीख निकलने के बाद भी नहीं हो पाया खदानों का भराव, खदानें दे रही दुर्घटनाओं को दावत,पूर्व विधायक ने उठाए सवाल
बागेश्वर— कपकोट विधानसभा मे नाकुरी पट्टी के किड़ई गाँव मे 15 जून के बाद भी मलवा निस्तारण व गड्ढे भरान का काम न होने से माईन्स ने तालाब का रूप ले लिया है। लोगों का आरोप है कि जिला प्रशासन व खनन विभाग मौन है।आसपास की आबादी को आने वाले बरसात मे जानमाल का खतरा बना हुआ है।
आशंकित लोगों का कहना है कि लगता है कि पूर्व की भाति जिला प्रशासन हृदय विदारक घटनाए होने के बाद ही जागेगा।
मालूम हो कि…
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विभागीय लापरवाही की सजा भुगत रहे ग्रामीण, सप्ताह भर से नही पीने का पानी
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विभागीय लापरवाही की सजा भुगत रहे ग्रामीण, सप्ताह भर से नही पीने का पानी
मनीष पॉल
रोशनाबाद। पीने के पानी की मुख्य पाइप लाइन टूटने से 6 दिन से ग्रामीण परेशान। पानी को भटक रहे है। हैंड पम्प भी हुए फेल।
जनपद के घाड़ क्षेत्र ��े ग्राम रोशनाबाद में करीब सप्ताह भर पूर्व एक निजी टेलीकॉम कंपनी के कर्मचारियों की लापरवाही की सजा ��्रामीण भुगत रहे है। 40℃ की धधकती गर्मी ओर सप्ताह भर से पीने का पानी न आने से में भी पीने का पानी नसीब नही हो रहा । ग्रामवासियो की अगर माने तो एक सप्ताह हो चुके है। रोशनाबाद बीच चौराहे पर जियो कंपनी की लाइन बिछाने के लिए बहुत गहरा एक गड्ढा खोद दिया गया जिसके चलते पहले से नीचे बिछी पानी की पाइप लाइन इनकी लापरवाही से टूट गई। ओर गाँव मे पहुंचने वाला पानी बंद हो गया। जिस कारण पिछले 7 दिन से ये ग्रामवासी पानी के लिए एक दूसरे के दरवाजे भटक रहे है। जिन लोगो ने पानी के बोरिग अपने घर में करवाये है। ऐसे में वही एक सहारा है, इन तड़पते लोगो के लिए।
ग्रामीणों का कहना है कि कई बार इसकी सूचना जल निगम को ढ़ी गयी है। बावजूद इसके सप्ताह बीतने को है कोई सुध विभाग द्वारा नही ली जा रही है। लेकिन धधकती गर्मी के कारण वो भी अभी इस ओर कोई विशेष ध्यान नही दे रहे। ऐसा लगता है कि शायद उन्हें भी लू लगने का खतरा मंडरा रहा हो।।
समस्या और भी गंभीर तब हो जाती है जब कई हजार लोग इसी मार्ग से गुजर कर सिडकुल में काम करने के लिए जाते है। जिस कारण रोज सुबह व साय घण्टो यहाँ जाम जैसी स्तिथि बन रही है। जल निगम को बार बार शिकायत कर रहे लोगो का मानना है कि शायद जल निगम उनके शिकायत करने से चिढ़ चुका है। जिस कारण इस ओर अब जानबूझकर ध्यान नही दिया जा रहा। जल निगम व जियो कम्पनी की लापरवाही के कारण कल रात्रि में यहां एक वृद्ध महिला भी इस गड्ढे में जा गिरी जिसके बाद पास रह रहे दो युवकों ने उसे बाहर निकाला । काफी देर बाद होश में आयी
अब सवाल खड़ा होता है। कि सामान्य गर्मी में भी लोग बिन पानी के गुजारा नही कर सकते तो आखिर ये ग्रामीण लोग 48℃ में कैसे इस सिस्टम से लड़ रहे है। एक तो धधकती गर्मी की मार ऊपर से बिन पानी तड़पते प्यासे लोग। ये वही ग्रामवासी है जो बिजली विभाग और जल विभाग को अगर थोड़ी भी देरी से बिल चुकाते है। तो उनके बिल पर पेनल्टी लगा दी जाती है। फिर जल निगम पर इस लापरवाही के कारण कौन लगाएगा जुर्माना।
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