#खुद-का-काम
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कानपुर वाले घर में मेरी मां, पापा और छोटी बहन रहती थी. मेरी बहन का नाम सुषमा है. उम्र में वो मुझसे तीन साल छोटी है. वो घर में सबकी लाडली है. ये कहानी जो मैं आप लोगों को आज बताने जा रहा हूं, यह करीबन दो साल पुरानी है.
उस वक्त मेरी बहन ने अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की ��ी. पढ़ाई में हम दोनों भाई-बहन ही अच्छे थे. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी बहन अब जॉब की तलाश में थी.
चूंकि मैं हैदराबाद जैसे बड़े शहर में रह रहा था तो मैंने उससे कहा कि तुम मेरे ही शहर में जॉब ढूंढ लो. मेरी यह बात मेरे माता-पिता को भी ठीक लगी. मेरे शहर में रहने से उनको भी अपनी बेटी की सेफ्टी की चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी.
हैदराबाद में पी.जी. रूम लेकर मैं रह रहा था. मगर अब सुषमा भी साथ में रहने वाली थी तो मैंने एक बीएचके वाला फ्लैट ले लिया. कुछ दिन के बाद बहन भी मेरे साथ मेरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई.
सुषमा के बारे में आपको बता दूं कि वो काफी खुलकर बात करने वालों में से है. उसकी हाइट 5.6 फीट है और मेरी हाइट 6 फीट के लगभग है. मेरी बहन के बदन की बात करूं तो उसकी गांड काफी उठी हुई है. जब वो अपनी कमर को लचकाते हुए चलती है तो किसी भी मर्द को घायल कर सकती है.
मेरी बहन का फीगर 36-30-38 का है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसकी चूचियां भी कितनी बड़ी होंगी. उसकी चूचियां हमेशा उसके कपड़ों से बाहर झांकती रहती थीं. मैंने सुना था कि जवान लड़की की चूत चुदाई होने के बाद उसकी चूचियों का साइज भी बढ़ जाता है.
अपनी बहन की चूचियों को देख कर कई बार मेरे मन में ख्याल आता था कि कहीं यह भी अपनी चूत चुदवा रही होगी. मगर मैं इस बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता था. मेरी बहन खुले विचारों वाली थी तो दोनों तरह की बात हो सकती थी.
जब वो मेरे साथ फ्लैट में रहने लगी तो अभी उसके पास जॉब वगैरह तो थी नहीं. वो अपना ज्यादातर समय फ्लैट पर ही बिताती थी. मैं सुबह ही अपने काम पर निकल जाता था. पूरा दिन फ्लैट पर रह कर वो बोर हो जाती थी.
एक रोज वो कहने लगी कि वो सारा दिन फ्लैट पर रह कर बोर हो चुकी है. उसका मन कहीं बाहर घूमने के लिए कर रहा था. उसने मुझसे कहीं बाहर घूमने चलने के लिए कहा.मैंने कह दिया कि हम लोग मेरी छुट्टी वाले दिन चलेंगे.
फिर वीकेंड पर मैंने अपनी बहन के साथ बाहर घूमने का प्लान किया. अभी तक मेरे मन में मेरी बहन के लिए कोई गलत ख्याल नहीं था. हम लोग पास के ही एक मॉल में घूमने के लिए गये. मेरी बहन उस दिन पूरी तैयार होकर बाहर निकली थी.
उसके कुर्ते में उसकी चूचियां पूरे आकार में दिखाई दे रही थीं. हम लोगों ने साथ में घूमते हुए काफी मस्ती की और फिर घर वापस लौटने लगे. मगर रास्ते में बारिश होने लगी. इससे पहले कि हम लोग बारिश से बचने के लिए कहीं रुकते, हम दोनों ऊपर से लेकर नीचे तक पूरे भीग चुके थे.
बारिश काफी तेज थी इसलिए मैंने सोचा कि बारिश रुक��े का इंतजार करना ही ठीक रहेगा. हम दोनों बाइक रोक कर एक मकान के छज्जे के नीचे खड़े हो गये. सुषमा के बदन पर मेरी नजर गई तो मैं चाह कर भी खुद को उसे ताड़ने से नहीं रोक पाया.
उसकी मोटी चूचियों की वक्षरेखा, जिस पर पानी की बूंदें बहती हुई अंदर जा रही थी, मेरी नजरों से कुछ ही इंच की दूरी पर थी. उसको देख कर मेरे लौड़े में अजीब सी सनसनी होने लगी. मैंने उसकी सलवार की तरफ देखा तो उसकी भीगी हुई गांड और जांघें देख कर मेरे लंड में और ज्यादा हलचल होने लगी.
मैं बहाने से उसको घूरने लग गया था. ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था. फिर कुछ देर के बाद बारिश रुक गयी और हम अपने फ्लैट के लिए निकल गये. उस दिन के बाद से मेरी बहन के लिए मेरा नजरिया बदल गया था.
अपनी बहन की चूचियों को मैं घूरने लगा था. बहन की गांड को ताड़ना अब मेरी आदत बन चुकी थी. मेरी हाइट उससे ज्यादा थी तो जब भी वो मेरे सामने आती थी उसकी चूचियां ऊपर से मुझे दिखाई दे जाती थीं. कई बार हंसी-मजाक में मैं उसको गुदगुदी कर दिया करता था.
इस बहाने से मैं उसकी चूचियों को छेड़ दिया करता था. कभी उसकी गांड को सहला देता था. यह सब हम दोनों के बीच में अब नॉर्मल सी बात हो गई थी. जब भी वो नहा कर बाहर आती थी तो वह तौलिया में होती थी. ऐसे मौके पर मैं जानबूझकर उसके आस-पास मंडराने लगता था.
जब मैं उसके साथ छेड़खानी करता था तो वो मेरी हर हरकत को नोटिस किया करती थी. उसको मेरी हरकतें पसंद आती थीं. इस बात का पता मुझे भी था. जब भी मैं उसको छेड़ता था तो वो मेरी हरकतों को हंसी में टाल दिया करती थी.
वो भी कभी-कभी मुझे यहां-वहां से छूती रहती थी. कई बार तो उसका हाथ मेरे लंड पर भी लग जाता था या फिर यूं समझें कि वो मेरे लंड बहाने से छूने की कोशिश करने लगी थी. अब आग दोनों तरफ शायद बराबर की ही लगी हुई थी.
ऐसे ही मस्ती में दिन कट रहे थे. एक दिन की बात है कि मैं उस दिन ऑफिस से जल्दी आ गया. हम दोनों के पास ही फ्लैट की एक-एक चाबी रहती थी. मैंने बाहर से ही लॉक खोल लिया था.
जब मैं अंदर गया तो उस वक्त सुषमा बाथरूम के अंदर से नहा कर बाहर आ रही थी. मैंने उसे देख लिया था मगर उसकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी थी. उसने अपने बदन पर केवल एक टॉवल लपेटा हुआ था.
Nangi Behan
वो सीधी कबॉर्ड की तरफ जा रही थी. मैं भी उसको जाते हुए देख रहा था. अंदर जाकर उसने अलमारी से एक ब्रा और पैंटी को निकाला. उसने अपना टॉवल उतार कर एक तरफ डाल दिया. बहन के नंगे चूतड़ मेरे सामने थे.
मेरे सामने ही वो ब्रा और पैंटी पहनने लगी. उसका मुंह दूसरी तरफ था इसलिए उसकी नंगी चूत और चूचियां मैं नहीं देख पाया. मगर जल्दी ही उसको किसी के होने का आभास हो गया और वो पीछे मुड़ गई.
जैसे ही उसने मुझे देखा वो जोर से चिल्लाई और मैं भी घबरा कर बाहर ��ॉल में आ गया. कुछ देर के बाद वो कपड़े पहन कर बाहर आई और मुझ पर गुस्सा होते हुए कहने लगी कि भ���या आपको नॉक करके आना चाहिए था.
मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा- अगर मैं नॉक करके आता तो क्या तुम मुझे वैसे ही अंदर आने देती?उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. मैं समझ गया कि उसकी इस खामोशी में उसकी हां छुपी हुई है.
अब मैंने थोड़ी हिम्मत की और उसके करीब आकर उसको अपनी बांहों में भर लिया. वो मेरी तरफ हैरानी से देख रही थी. मैंने उसकी आंखों में देखा और देखते ही देखते हम दोनों के होंठ आपस में मिल गये. मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया.
पहले तो मेरी बहन दिखावटी विरोध करती रही. फिर कुछ पल के बाद ही उसने विरोध करना बंद कर दिया. शायद उसको भी इस बात का अंदाजा था कि आज नहीं तो कल ये सब होने ही वाला है. इसलिए अब वो मेरा पूरा साथ दे रही थी.
दस मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के होंठों को पीते रहे. उसके बाद मैंने उसके कपड़ों उतारना शुरू कर दिया. उसका टॉप उतारा और उसको ब्रा में कर दिया. फिर मैंने उसकी जीन्स को खोला और उसकी जांघों को भी नंगी कर दिया.
अब मैंने उसकी ब्रा को खोलते हुए उसकी चूचियों को नंगी कर दिया. उसकी मोटी चूचियां मेरे सामने नंगी हो चुकी थीं. उसकी चूचियों को मैंने अपने हाथों में भर लिया.
उसके नर्म-नर्म गोले अपने हाथ में भर कर मैंने उनको दबा दिया. अब एक हाथ से उसकी एक चूची को दबाते हुए मैं दूसरे हाथ को नीचे ले गया. उसकी पैंटी के अंदर एक उंगली डाल कर मैंने उसकी चूत को कुरेद दिया.
बहन की चूत पानी छोड़ कर गीली हो रही थी. मैंने उसकी चूत को कुरेदना जारी रखा. उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया था. मेरा लंड भी पूरा तना हुआ था. वो अब मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही पकड़ कर सहला रही थी.
मैं भी उत्तेजित हो चुका था और मैंने अपनी पैंट को खोल दिया. पैंट नीचे गिर गयी. सुषमा ने मेरी पैन्ट को मेरी टांगों में से निकलवा दिया. वो अब खुद ही आगे बढ़ रही थी. उसने मेरे अंडरवियर को भी निकाल दिया.
मेरे लंड को पकड़ कर वो उसकी मुठ मारने लगी. मैं तो पागल ही हो उठा. मैं उसकी चूचियों को जोर से भींचने लगा. फिर मैंने झुक कर उसकी चूचियों को मुंह में भर लिया और उसके निप्पलों को काटने लगा.
इतने में ही मेरी बहन ने अपनी पैन्टी को खुद ही नीचे कर लिया. उसकी चूत अब नंगी हो गई थी. मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था. उसके निप्पलों को काट रहा था. बीच-बीच में चूचियों के निप्पलों को दो उंगलियों के बीच में लेकर दबा रहा था.
सुषमा अब काफी उत्तेजित हो गई थी. अचानक ही वो मेरे घुटनों के बीच में बैठ गई और अपने घुटनों के बल होकर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया. मेरी बहन मस्ती से मेरे 8 इंची लंड को चूसने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे उसको मेरा लंड बहुत पसंद है.
वो जोर से मेरे लंड को चूसती रही और मेरे मुंह से अब उत्तेजना के मारे जोर की आवाजें सिसकारियों के रूप में बाहर आने लगीं. आह्ह … सुषमा, मेरी बहन, मेरे लंड को इतना क्यों तड़पा रही हो!मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर अ��दर दबाना और घुसाना शुरू कर दिया.
दो-तीन मिनट तक लंड को चुसवाने के बाद मैं स्खलन के करीब पहुंच गया. मैंने बहन के मुंह में लंड को पूरा घुसेड़ दिया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी बहन के मुंह में जाकर गिरने लगी.
मेरी बहन मेरा सारा माल पी गयी. मैंने उसको बेड पर लिटा लिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा. वो तड़पने लगी. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी. मगर उसकी चूत की चुदाई शायद पहले भी हो चुकी थी. चूत भले ही टाइट थी लेकिन कुंवारी चूत की बात ही अलग होती है. मुझे इस बात का अन्दाजा हो गया था.
मैं उसकी चूत को चाटने लगा. उसकी चूत का सारा रस मैंने चाट लिया.जब उससे बर्दाश्त न हुआ तो वो कहने लगी- भैया, अब चोद दो मुझे… आह्ह … अब और नहीं रुका जा रहा मुझसे.मैंने उसकी चूत में अन्दर तक जीभ घुसेड़ दी और वो मेरे मुंह को अपनी चूत पर जोर से दबाने लगी.
फिर मैंने मुंह हटा लिया. अब उसकी टांगों को मैंने बेड पर एक दूसरे की विपरीत दिशा में फैला दिया. बहन की चूत पर अपने लंड को रख दिया और रगड़ने लगा. मेरा लंड फिर से तनाव में आ गया. देखते ही देखते मेरा पूरा लंड तन गया.
मैंने अपने तने हुए लंड के सुपाड़े को चूत पर रखा और एक झटका दिया. पहले ही झटके में लंड को आधे से ज्यादा उसकी चूत में घुसा दिया. वो दर्द से चिल्ला उठी- उम्म्ह… अहह… हय… याह…मगर मैं अब रुकने वाला नहीं था. मैंने लगातार उसकी चूत में झटके देना शुरू कर दिया. बहन की चूत की चुदाई शुरू हो गई.
सुषमा की चूत में अब मेरा पूरा लंड जा रहा था. वो भी अब मजे से मेरे लंड को अंदर तक लेने लगी थी. मैं पूरे लंड को बाहर निकाल कर फिर से पूरा लंड अंदर तक डाल रहा था. दोनों को ही चुदाई का पूरा आनंद मिल रहा था.
अब मैंने उसको बेड पर घोड़ी बना दिया और पीछे से उसकी चूत में लंड को पेलने लगा. उसकी चूत में लंड घुसने की गच-गच आवाज होने लगी. मेरे लंड से भी कामरस निकल रहा था और उसकी चूत भी पानी छोड़ रही थी इसलिए चूत से पच-पच की आवाज हो रही थी.
फिर मैंने उसको सीधी किया और उसके मुंह में लंड दे दिया. मेरे लंड पर उसकी चूत का रस लगा हुआ था. वो फूल चुके लंड को चूसने-चाटने लगी. उसकी लार मेरे लंड पर ऊपर से नीचे तक लग गई.
अब दोबारा से मैंने उसकी टांगों को फैलाया और उसकी चूत में जोर से अपने लंड के धक्के लगाने लगा. पांच मिनट तक इसी पोजीशन में मैंने उसकी चूत को चोदा और वो झड़ गई. अब मेरा वीर्य भी दोबारा से निकलने के कगार पर पहुंच गया था.
मैंने उसकी चूत में तेजी के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया. उसकी चूत मेरे लंड को पूरा का पूरा अंदर ले रही थी. फिर मैंने दो-तीन धक्के पूरी ताकत के साथ लगाये और मैं अपनी बहन की चूत में ही झड़ने लगा. उसकी चूत को मैंने अपने वीर्य से भर दिया.
हम दोनों थक कर शांत हो गये. उस दिन हम दोनों नंगे ही पड़े रहे. शाम को उठे और फिर खाना खाया. उसके बाद रात में एक बार फिर से मैंने अपनी बहन की चूत को जम कर चोदा. उसने भी मेरे लंड को चूत में लेकर पूरा मजा लिया और फिर हम सो गये.
उस दिन के बाद से हम भाई-बहन में अक्सर ही चुदाई होने लगी. अब उसको मेरे साथ रहते हुए ��ाफी समय हो गया है लेकिन हम दोनों अभी भी चुदाई करते हैं. मुझे तो आज भी ये सोच कर विश्वास नहीं होता है कि मैं इतने दिनों से अपनी बहन की चूत की चुदाई कर रहा हूं.
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लखनऊ, 23.07.2024 । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में स्वामी योगानंद बालिका इंटर कॉलेज, एल.डी.ए कॉलोनी मोहन रोड, बिहारीपुर, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला आयोजित की गई जिसमे 112 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी ज़िम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना ।
कार्यशाला का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तथा स्वामी योगानंद बालिका इंटर कॉलेज की शिक्षिकाओं श्रीमती मीरा दीक्षित, श्रीमती संगीता राय, श्रीमती किरन बाजपेयी एवं रेड ब्रिगेड से प्रशिक्षिकाओं ने दीप प्रज्वलित कि��ा ।
स्वामी योगानंद बालिका इंटर कॉलेज की शिक्षिका श्रीमती मीरा दीक्षित ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “आज हम यहां एक साथ कुछ नई बातें सीखने के लिए एकत्रित हुए हैं, जो हमारे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करेंगी । हमारे बच्चे अत्यंत ऊर्जा से भरे हुए हैं और उनके मन बहुत जागरूक हैं । जो कुछ भी उन्हें सिखाया जाता है, वे उसे बहुत अच्छी तरह से समझ जाते हैं । हम सभी को इस बात का एहसास होना चाहिए कि हमें मिलने वाली हर चीज की एक कीमत होती है । किसी भी चीज को फॉर ग्रांटेड नहीं लेना चाहिए । हर चीज का एक उद्देश्य होता है और जब हम सभी मिलकर एक साथ काम करेंगे तभी हम अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकेंगे । जैसे दो हाथ मिलते हैं तभी ताली बजती है, वैसे ही हम सब मिलकर उत्साह के साथ काम करेंगे तो हमारा मिशन सफल होगा । हमारा उद्देश्य है कि हम अपने बच्चों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाएं । बालिकाओं के सशक्तिकरण का यह कदम हमारे समाज को और भी मजबूत बनाएगा । आइए हम सब मिलकर इस दिशा में प्रयास करें और अपने बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाएं ।“
आत्मरक्षा प्रशिक्षण में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से कुशल प्रशिक्षिकाओं ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |
कार्यशाला के समापन के बाद, छात्राओं ने अपने विचार साझा करते हुए बताया कि, "हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस कार्यशाला से हमने जो आत्मरक्षा के गुर सीखे है उसे हम अपने जीवन में किसी भी परेशानी में पड़ने पर प्रयोग करेंगे | हमारा ऐसा मानना है कि हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए, चाहे हम कहीं भी जा रहे हों और खुद को सुरक्षित रखने के उपाय करने चाहिए । यह जरूरी है कि हम हर समय अलर्ट रहें और खुद को सुरक्षित रखने के लिए आत्मरक्षा के गुरों का सही उपयोग करें |"
कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र वितरित किये गये ।
कार्यशाला में स्वामी योगानंद बालिका इंटर कॉलेज की शिक्षिकाओं श्रीमती मधुबाला, श्रीमती मीरा दीक्षित, श्रीमती संगीता राय, श्रीमती किरन बाजपेयी, छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से प्रशिक्षिकाओं तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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बदलाव
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हम iOS यूज़र के लिए पोस्ट के मीटबॉल मेनू के ज़रिए "पिछला रीब्लॉग देखें" विकल्प पेश कर रहे हैं.
Android पर कुछ गतिविधि आइटम के रंग-रूप को अपडेट किया गया है.
अब साइट के डेस्कटॉप वर्शन पर पोस्ट एडिटर में जब पोस्ट वाकई लंबा हो जाता है, तो एडिटर का हेडर, व्यू के सबसे ऊपर बना रहता है. अब तैरते हुए अवतार को भी हेडर में भेज दिया गया है ताकि वो पोस्ट पब्लिश होने के बाद जैसी दिखेगी उसके साथ बेहतर ढंग से मैच हो जाए.
वेब पर पोस्ट एडिटर में ही हमने टेक्स्ट को पीले रंग का करने का विकल्प हटा दिया है. हम भविष्य में पहुँच को सुधारने के लिए रंगीन टेक्स्ट विकल्पों के कंट्रास्ट को सुधारने की उम्मीद कर रहे हैं.
वेब पर ही, किसी ब्लॉग को खोजते समय अब आपको पूरे Tumblr में खोजने का विकल्प भी दिखाई देगा.
🛠 सुधार
वेब पर पोस्ट एडिटर में ALT टेक्स्ट इंडिकेटर के साथ समस्या ठीक कर दी जिसकी वजह से वर्णन डिसप्ले होने के बजाय लाइटबॉक्स खुल जाता था. अब ये इमेज वर्णन को सही तरीके से खोलता है.
अब अगर आप खुद पहले से ही ऐड-फ़्री के लिए सब्सक्राइब्ड हैं, तो आपको किसी दूसरे व्यक्ति को ऐड-फ़्री गिफ़्ट करने का प्रॉम्प्ट नहीं मिलेगा, उसे हटा दिया गया है.
Android पर वो परेशानी दूर कर दी जिसकी वजह से एडिटर में रंगीन टेक्स्ट अंडरलाइन हो रहा था.
Android पर ही, अब गतिविधि में प्रासंगिक होने पर अनाम अवतार अंग्रेज़ी के अलावा दूसरी भाषाओं में सही ढंग से डिसप्ले होंगे.
iOS पर, वो गड़बड़ी ठीक कर दी जिसकी वजह से कभी-कभी फ़ीड में ब्लॉग अवतार खाली दिखाई देते थे.
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पोल और पोल विकल्पों में जहाँ लोगों ने उन्हें खाली करने का तरीका ढूँढ लिया है, वहाँ अब हमने कुछ डिफ़ॉल्ट प्लेसहोल्डर टेक्स्ट जोड़ दिए है. मज़ा किरकिरा करने का अफ़सोस है!
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हम iOS ऐप में उस परेशानी के बारे में जानते हैं जिसकी वजह से हेडर में TumblrMart आइकन पर टैप करने पर डैशबोर्ड फ़ीड ज़ूम होकर ऊपर-नीचे हो सकता है. हम ऐप के अगले वर्शन में इसका सुधार शामिल करने पर काम कर रहे हैं!
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पहली अप्रैल की उल्टी गिनती जारी है.
कोई समस्या हो रही है? एक सहायता अनुरोध दर्ज करें और हम इस बारे में जितनी जल्दी हो सके आपसे संपर्क करेंगे!
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #3. १७th नवंबर २०२३. शुक्रवार.]
शुरुआत और अंत।
"जो आज है कल शायद न हो, ये वक्त गुजर जाएगा।"
ये बात दुःख में सुनो तो अच्छी लगती है जैसे जलते घाव पर ठंडा मरहम और खुशी में चुभती है जैसे किसी अपने के लिए मफलर बनाते वक्त सुई चुभ जाती है वैसे, मगर फिर भी हम खुशी खुशी उसे बनाते रहते हैं, बिल्कुल इन दो बातो जैसे ही है वक्त और हालात।
सुख हो या दुःख आज होगा कल शायद न हो, क्यों की जो शुरू होता है उसका अंत निश्चित है।
धैर्य से मुश्किल से मुश्किल काम भी पूर्ण हो जाते है।
धीरज के साथ बढ़ते जा रही, चाहे दुःख हो या सुख वो वक्त का साथी है; वे उसक��� साथ गुजर जाएगा।
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आवाज़-ए-दोस्त
कर्बला से सबक – 5
एक मआशरे में किसी से जाने-अनजाने में गलती का हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। दिक्कत वह खड़ी हो जाती है जब गलती जान बूझकर की जाये और गलत को भी सही साबित करने की कोशिश की जाये। ये गलती क��सी से इन्फरादी भी हो सकती है और इज्तिमाई भी और हाकिम और महकूम सब इसमें बराबर शामिल हो सकते है।
हमारे रब ने जो ज़िन्दगी गुज़ारने का तरीका हमे बताया है, उसमे हर ईमान वाले पर ये फर्ज़ है कि, वो अपने दायरे और इख़्तियार में, सही बात को फ़ैलाने के लिये “अम्र बिल मार्रूफ़” यानी भलाई का हुक्म करे और गलती को दुरूस्त करने के लिये, “नह्य अनिल मुन्कर” यानी बुराई से रोके। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया,
“तुम सब से बेहतर उम्मत हो जो लोगो के लिये भेजी गयी हो कि नेक काम करने का कहते हो और बुरे कामो से मना करते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो.” (सूर: आले इमरान : आयत 110)
तारीख गवाह है कि, इस्लाम के सुनहरी दौर में अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली ने अपनी ही ज़िरह को हासिल करने के लिये तानाशाही का तर्ज़ नहीं बल्कि दारुल क़ज़ा में खुद को पेश किया और मुस्तनद गवाह ना होने के सबब क़ाज़ी शुरअ के, अपने खिलाफ फैसले को कबूल किया।
मगर बनू उमय्या के दौर में लोगो के ज़मीर पर नकेल दाल दी गयी। भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकने के हक को छीन लिया गया। अब दौर वो था कि, ज़ुबान खोलो तो बादशाह की तारीफ़ में, वर्ना खामोश रहो।
आज भी तानाशाह हुकूमत अपनी गलती को ज़ाहिर ना होने देने के लिये, आज़ादी ए इज़हारे राय (freedom of speech) पर पाबन्दी लगा कर रखती है। मगर अपने नाना हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की आगोश के रोशन चिराग सय्यदना इमाम हुसैन ने गलत को गलत कहने से परहेज़ नहीं किया और यज़ीद को बेअत देने से इन्कार कर दिया।
जब भी कभी ज़मीर के सोदे की बात हो
डट जाओ तुम हुसैन के इंकार की तरह।
“अम्र बिल मार्रूफ़” और “नह्य अनिल मुन्कर” के फर्ज़ को अदा करने के लिये, आज़ादी ए इज़हारे राय एक ज़िन्दा ज़मीर की ज़रुरत है. ये अहम सबक हमें वाकिया ए कर्बला से मिलता है।
https://youtu.be/wZK7l13WQlk?si=fbxhCPC8EwdcyXFC
(वक्त 2 मिनट 23 सेकंड)
वस्सलाम
आवाज़-ए-दोस्त
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शकुन शास्त्र के 12 सूत्र
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घर में हर छोटी वस्तु का अपना महत्व होता है। कभी-कभी बेकार समझी जाने वाली वस्तु भी घर में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देती है। गृहस्थी में रोजाना काम में आने वाली चीजों से भी शकुन-अपशकुन जुड़े होते हैं, जो जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ लाते हैं। शकुन शुभ फल देते हैं, वहीं अपशकुन इंसान को आने वाले संकटों से सावधान करते हैं। हम आपको घर से जुड़ी वस्तुओं के शकुनों के बारे में बता रहे हैं।
https://www.jyotishgher.in
1-दूध का शकुन
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सुबह-सुबह दूध को देखना शुभ कहा जाता है। दूध का उबलकर गिरना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति, संपत्��ि, मान व वैभव की उन्नति होती है। दूध का बिखर जाना अपशकुन मानते हैं, जो किसी दुर्घटना का संकेत है। दूध को जान-बूझकर छलकाना अपशकुन माना जाता है , जो घर में कलह का कारण है।
2-दर्पण का शकुन
हर घर में दर्पण का बहुत महत्व है। दर्पण से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नव विवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। तात्पर्य यह है कि दर्पण का टूटना हर दृष्टिकोण से अशुभ ही होता है। इसके लिए यदि दर्पण टूट जाए तो इसके टूटे हुए टुकड़ों को इकटठा करके बहते जल में डाल देने से संकट टल जाते हैं।
3-पैसे का शकुन
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आज के इस युग में पैसे को भगवान माना जाता है। जेब को खाली रखना अपशकुन मानते हैं। कहा जाता है कि पैसे को अपने कपड़ों की हर जेब में रखना चाहिए। कभी भी पर्स खाली नहीं रखना चाहिए।
4-चाकू का शकुन
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चाकू एक ऐसी वस्तु है, जिसके बिना किसी भी घर में काम नहीं चल सकता। इसकी जरूरत हर छोटे-छोटे कार्य में पड़ती है। इससे जुड़े भी अनेक शकुन-अपशकुन होते हैं। डाइनिंग टेबल पर छुरी-कांटे का क्रास करके रखना अशुभ मानते हैं, इसके कारण घर के सदस्यों में झगड़ा हो जाता है। मेज से चाकू का नीचे गिरना भी अशुभ होता है। नवजात शिशु के तकिए के नीचे चाकू रखना शुभ होता है तथा छोटे बच्चे के गले में छोटा सा चाकू डालना भी अच्छा होता है। इससे बच्चों की बुरी आत्माओं से रक्षा होती है व नींद में बच्चे रोते भी नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति आपको चाकू भेंट करे तो इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए एक सिक्का अवश्य दें।
5-झाडू का शकुन
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घर के एक कोने में पड़े हुए झाडू को घर की लक्ष्मी मानते हैं, क्योंकि यह दरिद्रता को घर से बाहर निकालता है। इससे भी कई शकुन व अपशकुन जुड़े हैं। दीपावली के त्यौहार पर नया झाडू घर में लाना ��क्ष्मी जी के आगमन का शुभ शकुन है। नए घर में गृह प्रवेश से पूर्व नए झाडू का घर में लाना शुभ होता है। झाडू के ऊपर पांव रखना गलत समझा जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रहा है। कोई छोटा बच्चा अचानक घर में झाडू लगाने लगे तो समझ लीजिए कि घर में कोई अवांछित मेहमान के आने का संकेत है। सूर्यास्त के बाद घर में झाडू लगाना अपशकुन होता है, क्योंकि यह व्यक्ति के दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
6-बाल्टी का शकुन
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सुबह के समय यदि पानी या दूध से भरी बाल्टी दिखाई दे तो शुभ होता है। इससे मन में सोचे कार्य पूरे होते हैं। खाली बाल्टी देखना अपशकुन समझा जाता है, जो बने-बनाए कार्यों को बिगाड़ देता है। रात को खाली बाल्टी को प्रायः उल्टा करके रखना चाहिए एवं घर में एक बाल्टी को अवश्य भरकर रखें, ताकि सुबह उठकर घर के सदस्य उसे देख सकें।
7-लोहे का शकुन
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घर में लोहे का होना शुभ कहा जाता है। लोहे में एक शक्ति होती है, जो बुरी आत्माओं को घर से भगा देती है। पुराने व जंग लगे लोहे को घर में रखना अशुभ है। घर में लोहे का सामान साफ करके रखें।
8-हेयरपिन का शकुन
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हेयरपिन एक बहुत ही मामूली सी चीज है, परंतु इसका प्रभाव बड़ा आश्चर्यजनक होता है। यदि किसी व्यक्ति को राह में कोई हेयरपिन पड़ा मिल जाये तो समझो कि उसे कोई नया मित्र मिलने वाला है। वहीं यदि हेयर पिन खो जाये तो व्यक्ति के नए दुश्मन पैदा होने वाले हैं। हेयरपिन को घर में कहीं लटका दिया जाए तो यह अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
9-काले वस्त्र का शकुन
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काले वस्त्र बहुत अशुभ माने जाते हैं। किसी व्यक्ति के घर से बाहर जाते समय यदि कोई आदमी काले वस्त्र पहने हुए दिखाई दे तो अपशकुन माना जाता है, जिसके बुरे प्रभाव से जाने वाले व्यक्ति की दुर्घटना हो सकती है। अतः ऐसे व्यक्ति को अपना जाना कुछ मिनट के लिए स्थगित कर देना चाहिए।
10-रुई का शकुन
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रूई का कोई टुकड़ा किसी व्यक्ति के कपड़ों पर चिपका मिले तो यह शुभ शकुन है। यह किसी शुभ समाचार आने का संकेत है या किसी प्रिय व्यक्ति के आने का संकेत है। कहा जाता है कि रूई का यह टुकड़ा व्यक्ति को किसी एक अक्षर के रूप में नजर आता है व यह अक्षर उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जहां से उस व्यक्ति के लिए शुभ संदेश या पत्र आ रहा है।
11-चाबियों का शकुन
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चाबियों का गुच्छा गृहिणी की संपूर्णता का प्रतीक है। यदि गृहिणी के पास चाबियों का कोई ऐसा गुच्छा है, जिस पर बार-बार साफ करने के बाद भी जंग चढ़ जाए तो यह एक अच्छा शकुन है। इसके फलस्वरूप घर का कोई रिश्तेदार अपनी जायदाद में से आपको कुछ देना चाहता है या आपके नाम से कुछ धन छोड़कर जाना चाहता है। चाबियों को बच्चे के तकिए के नीचे रखना भी अच्छा होता है, इससे बुरे स्वप्नों एवंबुंरी आत्माओं से बच्चे का बचाव होता है।
12-बटन ��ा शकुन
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कभी-कभी कमीज़, कोट या अन्य कोई कपड़े का बटन गलत लग जाए तो अपशकुन होता है, जिसके अनुसार सीधे काम भी उल्टे पड़ जाएंगे। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कपड़े को उतारकर सही बटन लगाने के बाद पहनें। यदि रास्ते चलते आपको कोई बटन पड़ा मिल जाए तो यह आपको किसी नए मित्र से मिलवाएगा।
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अटखेलियाँ!
हमने कहा अल्फ़ाज़ काफ़ी नहीं हैं हुज़ूर ज़िन्दगी बिताने के लिए
इनायत होगी ग़र कोई ज़हमत खुद भी उठायें घर चलाने के लिए!
शरीक-ए-हयात शरीक-ए-राह हम-नफ़्स कहते जब वो मुख़ातिब हुए
मिज़ाज में आशिक़ाना अंदाज था जनाब का तब हमें लुभाने के ल���ए!
हमने कहा अल्फ़ाज़ से खेलने से ग़र फ़ुरसत मिले तो खबर ले लेना
कब से डेरा जमाए बैठे हैं ग़ुस्साए कई लेनदार क़र्ज़ा उगाहने के लिए!
जेब ख़ाली है और आमद की सूरत कहीं से नज़र नहीं आती कोई
कहाँ मिलता है अब खुशामद से भी कहीं उधार घर चलाने के लिए!
घर में फाँको की नौबत आ गयी उधर आपकी ये मदमस्त अटखेलियाँ
आप ही तरकीब बता दीजिए कोई हमें इन में तआवुन बिठाने के लिए!
ग़रीब की आबरू शरीफों की आँख में खटकती है ये तो देखा ही होगा
ग़र हया बाक़ी है तो कुछ काम कीजिए घर का चूल्हा जलाने के लिए!
अल्फ़ाज़ पर महारत है आपको ज़ुबान भी तो शहद टपकाना जानती है
हाथ पाँव भी तो थोड़ा चलाना शुरू कीजिए ज़िम्मेदारियाँ बटाने के लिए!
मगर उस बे-हिस के दिल पे कहाँ असर हुआ है किसी भी बात का कभी
कहा नज़रअंदाज़ कर वो जाम में डूब गया कोई और ग़म भुलाने के लिए!
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टिलीलिली / दिनेश कुमार शुक्ल
बंदर चढ़ा है पेड़ पे
करता टिलीलिली
कि ये ले गुल बकावली
कि ले ले गुल बकावली।
मैं रात की पेंदी से
खुरच लाया हूँ सपने
फुटपाथ पर सोये हुए
सब थे मेरे अपने
अपनों की आँख से
मैं उठा लाया हूँ काजल
काजल की बना स्याही
और सपनों की कहानी
लिखता हूँ सुनाता हूँ
वही सबकी कहानी
पी हमने छाछ फूंककर
फिर जीभ क्यों जली।
आयेंगे अभी रात के
वो पीरो पयम्बर
हफ्ता वसूलने को वो
ख्वाबों के सितमगर
सपने न होंगे आँख में
तो क्या वसूलेंगे
गुस्से में बिफर जायेंगे
हो जायेंगे पागल
तब बच के फूट लेंगे
हम पतली कोई गली।
हम अब तक उसी घर में हैं
जो कब का गिर चुका
उस राह गुजरना
तो बुलाना कभी-कभी,
ऐ रात तुझ��ो अपने
अंधेरों की कसम है
हमको भी अपने साथ
सुलाना कभी-कभी
‘दे जिंदगी ले नींद’ - की आवाज लगाता
अत्तार नींद बेचता फिरता गली-गली।
जो सो रहे हैं
रो रहे हैं -
खो रहे हैं लोग,
चुपचाप जो सहते हैं
वो विष बो रहे हैं लोग
कपड़े भी कातिलों के
वही धो रहे हैं लोग
इनकी है आँख बन्द
और है जुबां सिली।
तुमको न ठगे ठग
तो किसे और ठगेगा
तुमने उसे चुना
वो किसे और ठगेगा
ये कैसा शहर है कि
खुद पे तोड़ता कहर
ये कैसा समन्दर कि
लहर तोड़ती लहर
अब चुप भी रहो
कुछ न कहो सो रही है रात
जग जायेगी, टहनी भी अगर
नीम की हिली।
आलू नहीं है प्याज नहीं
राज उन्हीं का
कल जिनका राज था
है राज आज उन्हीं का
राशन खरीदना है और जेब है फटी
घरवाली क्या करे न कहे जो जली कटी,
कश्ती की बात क्या करो
याँ डूबता साहिल
लगती है गरीबी में
ये दुनियाँ सड़ी-गली
लिखता है रिसालों में
वो बातें बड़ी-बड़ी --
चांदी की उसकी खो गई थी
एक तश्तरी
तुम देखते उसने चलाई
किस तरह छड़ी
नौकर की पीठ थी
मगर चट्टान सी कड़ी,
वो तीन सौ की तश्तरी
थी गिफ्ट में मिली।
आते रहे जाते रहे
इस देश में चुनाव
नेता व नेती घूमते
घर-घर व गाँव-गाँव
ये कुछ भी कहें
मुँह से इनके निकले कांव-कांव
कौवों ने सुना जब से
वो नेतों से हैं खफ़ा
नेतों की आँख फोड़ेंगे
उनकी अगर चली।
जैसे प्रगट हों देवता
धरती पे जब कभी
वैसे ही इधर आते हैं
अफसर कभी-कभी
काजू मिठाई चाय का
जब भोग लगाकर
बैठा हुआ था हाकिम
दरबार सजाकर
चौपाल की छत से गिरी
अफ़सर पर छिपकली।
घर जा रहा था हारा थका
खत्म करके काम
सूरज को अँधेरों ने
छुरी मारी सरे शाम,
उसके लहू से लाल ज़मीं
लाल आसमान
क्या अब सुबह न आयेगी
बस रात रहेगी
कुछ दिन बस ह��ें
रोशनी की याद रहेगी ?
यादें भी डूब जायेंगी
क्या अंधकार में
नस्लें भी बदल जायेंगी
क्या अन्धकार में
उल्लू ही रहेंगे वहाँ
उजड़े दयार में ?
अब खेल खत्म होता है
आई चला चली।
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✒️🏵️👇🏻 *कम से कम दो बार आवश्य पढ़ें। शब्दों की गहराई समझने की कोशिश करें।* *पैर की मोच* *और* *छोटी सोच ,* *हमें आगे* *बढ़ने नहीं देती ।* *टूटी कलम* *और* *औरो से जलन ,* *खुद का भाग्य* *लिखने नहीं देती ।* *काम का आलस* *और* *पैसो का लालच ,* *हमें महान* *बनने नहीं देता ।* *दुनिया में सब चीज* *मिल जाती है,......* *केवल अपनी गलती* *नहीं मिलती..* *" जितनी भीड़ ,* *बढ़ रही* *ज़माने में........।* *लोग उतनें ही ,* *अकेले होते* *जा रहे हैं......।।* *इस दुनिया के* *लोग भी कितने* *अजीब है * ना ;* *सारे खिलौने* *छोड़ कर* *जज़बातों से* *खेलते हैं........* *याद रखिये* *यदि माता पिता, और सगे भाई बहन से बोलचाल बंद है* *तो ये भी तय मानो कि *भगवान*ने आपको सुनना बंद कर दिया है* *किनारे पर तैरने वाली* *लाश को देखकर* *ये समझ आया........* *बोझ शरीर का नहीं* *साँसों का था.....* *तो फिर घमंड़ शरीर पर कैसा?* *"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए, और* *जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!* *तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,* *संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!* *जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नहीं,* *यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नहीं जायेगा!* *जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....* *जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...* *पैसा इन्सान को ऊपर ले जा सकता है;* *लेकिन इन्सान पैसा ऊपर नहीं ले जा सकता......* *कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है....* *पर रोटी की साईज़ लगभग सब घर में एक जैसी ही होती है।* *शानदार बात* *इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर (पंख) मिले,* *और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले...* *🫵🏻आप सदा ख़ुश, मस्त, व्यस्थ व स्वस्थ रहे,* ♥️💜🏵️👍🏻
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक विटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की राहत के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उसकी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सके। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह उससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए पुलिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़ैज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट ल���या। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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दोस्त की मां
मेरा नाम संतोष है और मैं हरियाणा के पानीपत का रहने वाला हूं। मैं अभी कक्षा बारहवीं का ही छात्र हूं और मेरे पिताजी का प्लाईवुड का काम है। उनका काम बहुत ही अच्छा चलता है। इसलिए उन्होंने मेरा एक बहुत ही बड़े स्कूल में एडमिशन करवाया है। मैंने अपनी दसवीं के बाद यहीं पर पढ़ना शुरू किया। जब मैं कक्षा 11 में आया तो मेरे बहुत दोस्त बने
उस सबसे दोस्त में एक ऐसा लड़का था जिसके साथ मेरा बहुत जमता था, उसका नाम तो नही पता पर हां वो कॉलेज की दोस्तों से काफी अलग था, एक दिन मैं जैसे क्लास रूम में पहुंचा तो मैडम ने मुझे उस लड़के से परिचित करवाई
संतोष ये है सूरज और ये बहुत होनहार और ईमानदार लड़का है, पढ़ने में काफी तेज है, तुम्हारी हर विषय में ये मदद करेगा, उस से मिलकर मुझे पहले भी बहुत खुशी हुआ था, अब हम एक अच्छे दोस्त बन गए थे
वो बहुत बड़े घर से था, पैसा दौलत धन की कोई कमी नही था, भगवान ने उसे सबकुछ दे रखा था, कार बंगलों सब कुछ
कुछ दिन बाद सूरज अपने मम्मी पापा के साथ आया था, साथ में कुछ सिक्योरिटी गार्ड था, हमने देखा तो सपने देखने लगा की लाश मुझे भी सूरज के जैसा पैसा धन दौलत रहता, प��� सूरज के अंडर एक जबरदस्त अच्छाई थी की कभी वो पैसा का घमंड नहीं किया
उसका पापा सरकारी ट्रांसपोर्ट का मालिक था और मम्मी हाउसवाइफ थी, घर में एक बहन थी वो पुणे के हॉस्टल में इंजीनियरिंग कर रही थी, मतलब यूं कहे तो सभी सेटल थे
कुछ दिन बाद सूरज ने कहा की उसकी मम्मी का एनिवर्सरी है और वो कॉलेज के सभी छात्र और छात्राएं को इनवाइट किया और कुछ सर मैम को भी, सब उस दिन बहुत खुश था पर मुझे जाने की हिम्मत नही हुआ
मैं उस दिन जल्दी घर चला गया तबीयत खराब के बहाने से पर मुझे क्या पता था उस दिन मेरे जिंदगी का सबसे अनमोल राते होगा, मैं अपने घर में जाकर लेट गया और थोड़ी देर बाद मम्मी आई तो बोली मेरा राजा बेटा को क्या हुआ, आज नाराज लग रहा है
मैं शुरू से ही अपने मम्मी पापा को प्यार कर रहा था, क्योंकि पापा मम्मी ने कभी भी किसी भी समान खरीदने के लिए मुझे मना नही किए और ना कभी मुझे डांटा, पर उस दिन ऐसा लग रहा था की सूरज के सामने मेरा हैसियत बहुत कम है
मैं शाम को करीब बाजार जाकर हल्का सा नाश्ता किया और सोचने लगा की जाऊं की नही जाऊं, ये सोचते सोचते कब शाम 7 बज गया मुझे पता नही चला, मैं अपने घर लौटा तो देखा दरवाजा पर एक लंबी कार खड़ी चमक रही है
मैने सोचा शायद पापा को कोई कॉन्ट्रैक्ट देने आए होंगे, किसी मालिक का नंबर होगा पर वो मेरा दोस्त सूरज का था, उसके साथ उसकी मॉम रेखा भी आई हुई थी
रेखा उमर 39 साल हरी भरी गदरायी जवानी, एक हाउसवाइफ की तरह मेरे कमरे में ब्लैक साड़ी और लाल ब्लाउज में बड़ा सा काजल और बिंदिया लगाकर मेरे मम्मी से बात कर रही थी, वो अपने बड़े गले वाला ब्लाउज को ऐसे पहनी थी की उनका क्लीवेज साफ चमक रहा था, 36 का छाती, 32 का कमर और 38 का कहर ढाने वाला बम, उफ्फ अब मैं दोस्त को देखूं या उसकी मम्मी को
मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था, मैं उनको देख के ऐसे मदहोश हो गया था मानो वो कोई नशीले पदार्थ हो और मुझे उसका सेवन करना है
मैं खुद पर काबू किया और आंटी को हाई बोला और कहा आपने आने का कष्ट क्यूं किया, सूरज भाई गलत बात है, तुम मेरे कारण अपने मम्मी को परेशान करते हो, वैसे आंटी हैप्पी एनिवर्सरी
आंटी - थैंक्स बेटा पर ऐसे काम नही चलेगा, अपना टैलेंट दिखाना पड़ेगा, मैं भी देखूं की तुम कितना टैलेंटेड हो जैसे तुम्हारे बारे में सूरज कहता रहता है
जरूर जब भी आपको मेरा टैलेंटेड देखना हो आप मुझे एक बार याद कर लेना, मैं हाजिर हो जाऊंगा, आखिर दोस्त किसका हूं, ये बोलकर सब हंस पड़े
रात करीब 9 बज चुकी थी, उधर सूरज के पापा शराब का का कार्यक्रम जोड़ो शोरो से था, हवा की रुख और दोस्त की मम्मी की बदन की खुशबू एक तरफ
थोड़े देर बाद मैने कहा सूरज चलना है या यहीं एनिवर्सरी मनाना है, सूरज ने मेरा मम्मी पापा को कहा पर उन्होंने कहा की मुझे माफ करे, अब तो आप हम एक दोस्त की तरह हो गए हैं तो फिर कभी
थोड़े देर बाद सूरज और उसकी मम्मी आगे बैठ गई, रेखा कार ड्राइवर कर रही थी और सूरज सामने देख रहा था, थोड़े आगे जाने के बाद कार का मैन मिरर को मेरे बॉडी के तरफ करके अपने ही होंटो को कटने लगी
हम 5 मिनिट बाद सूरज के घर पहुंचे जहां सभी इकट्ठा हुए, रेखा ने बड़े ही उल्लास से केक काटी और और अपने पति और बेटे को खिलाई फिर धीरे धीरे सबमें बांट दी
थोड़े देर बाद फिर उसका पापा उस शराब ए जस्न में लग गए, इधर सूरज भी अपने मम्मी से कहा की आज के दिन वो भी शराब पिएगा, तो उसकी मां ने बड़े ही कठोड़ मन से कहा नही, पर सूरज का बार बार जिद करने पर मान गई
थोड़े देर बाद रेखा ने एक बीयर के बोटल में शराब और बीयर दोनो को मिक्सड करके लाई और अपने बेटे को पिला दी, धीरे धीरे अब सब अपने घर की ओर बढ़ने लगे
समय 11 बज चुका था सूरज और उसका पापा दोनो अपने बेडरूम में ढेर हो चुके थे इतना ताकत नही बचा था की खुद को दो स्टेप चला सके, इधर रेखा मुझे किसी भूखे शेरनी की तरह देख रही थी
मेरे पास आई और बोली आज रात तुम मुझे अपना बना सको तो बना लो नही तो मैं समझूंगी की तुम्हारा बदन सिर्फ दिखाने के लायक है
शाम से ही मेरा बुरा हालत था पर अब मुझे पूरा मौका मिला, मैने कहा अच्छा ये बात है, चलो कोई बात नही, तुम भी क्या याद रखेगी की किसी मर्द से मिली थी
मैने आगे बढ़ा और होंठ को अपने होंठ में भरते हुए स्मूच करने लगा और रेखा भी बहुत दिन की प्यासी शेरनी की तरह मेरा कॉक के ऊपर हाथ रख कर मसलने लगी
अब इनबॉक्स में चर्चा होगी
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समाज को बाल श्रम के अभिशाप से मुक्त कराने के लिए हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट प्रतिबद्ध हैं – श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल
12.06.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा "विश्व बाल श्रम निषेध दिवस" के अवसर पर लेबर अड्डा, सेक्टर-सी, निकट पुल���स चौकी अरावली, इंदिरा नगर में, "बाल श्रम के खिलाफ प्रतिज्ञा" कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम में उपस्थित हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, श्रमिकों, ट्रस्ट के कार्यकर्ता, आमजन एवं स्वयंसेवकों ने बाल श्रम को ना कहने और बाल श्रम के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प लिया और बाल श्रम के अभिशाप से देश को मुक्त करने हेतु ईमानदार प्रयास करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया |
श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ने ईश्वर को साक्षी मानते हुए वहां उपस्थित सभी लोगों से प्रतिज्ञा कराई कि,
"मैं बाल श्रम को ना कहने और इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने का संकल्प लेता हूँ ।
बच्चों को खेतों में काम नहीं करने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लेता हूँ ।
मैं प्रत्येक व्यक्ति, विशेषकर युवा, जो समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, को प्रोत्साहित करने और बाल श्रम के दुष्प्रभावों के संबंध में जागरूकता फैलाने का संकल्प लेता हूँ ।
मैं बच्चों को औजार देने के बजाय उन्हें स्कूलों में भेजने का संकल्प लेता हूँ ।
मैं बाल श्रम की सूचना पुलिस थाने या श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के पेंसिल पोर्टल पर देने का संकल्प लेता हूँ ।
मैं बाल श्रम के खतरे को समाप्त करने और बच्चों के लिए एक स्वस्थ एवं प्रगतिशील समाज के निर्माण का संकल्प लेता हूँ ।"
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “समाज को बाल श्रम के अभिशाप से मुक्त कराने के लिए हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट प्रतिबद्ध हैं | बाल श्रम एक गंभीर समस्या है, जो बच्चों के भविष्य को अंधकारमय बनाती है । हमें बच्चों को शिक्षा और सुरक्षित बचपन प्रदान करने के लिए मिलकर काम करना होगा । हर बच्चे का हक है कि वह शिक्षा प्राप्त करे और अपने सपनों को साकार करने का मौका पाए । बाल श्रम को समाप्त करने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करना होगा और समाज के हर वर्ग को इसमें योगदान देना होगा । उन्होंने सभी से अपील की कि वे बाल श्रम को रोकने के लिए जागरूकता फैलाएं और जहां भी इस तरह की गतिविधियों का सामना हो वहां संबंधित अधिकारियों को सूचित करें । यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को एक उज्जवल भविष्य दें और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित न होने दें ।"
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य अपने प्रयासों से न केवल समाज में बल्कि पूरे देश में बदलाव लाना है, जिसके लिए हमें आपके सहयोग की बहुत आवश्यकता है । बाल श्रम उन्मूलन के साथ-साथ अपने समाज और देश के विकास हेतु आप सभी लोग बाल श्रम को ना कहे और इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करने हेतु हमारे साथ जुड़े एवं हमें सहयोग प्रदान करें I
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने 150 से अधिक उपस्थित श्रमिकों को जलपान कराया ।
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बदलाव
🌟नया
वेब पर ब्लेज़ यूज़र इंटरफ़ेस का एक नया डिज़ाइन पेश किया है. यह अपडेट ब्लेज़ की गई पोस्ट की कैम्पेन दृश्यता में सुधार लाता है.
हमने हमारे पुश नोटिफ़िकेशन को अपडेट किया है ताकि असली नोटिफ़िकेशन में पोस्ट के बारे में सामान्य टेक्स्ट का इस्ते��ाल करने के बजाय ज़्यादा संदर्भ प्रदान कर सकें.
🛠 सुधार
हमने वेब पर पोस्ट एडिटर में वो समस्या ठीक कर दी है जो लोगों को ब्लॉग के खोज परिणामों में पोस्ट रीब्लॉग करते समय पोस्ट कंटेंट या टैग में प्रश्नचिन्ह कैरेक्टर (?) का इस्तेमाल न��ीं करने दे रही थी.
वेब पर तेज़ रीब्लॉग मेनू पर आपके सभी दूसरे ब्लॉग दिखाने वाला बटन अजीब ढंग से डिसप्ले हो रहा था. वो अब ठीक हो गया है.
वो बग सुधार दिया जो उपयोगकर्ताओं को राशी बैज खरीदने नहीं दे रहा था.
वो बग सुधार दिया जिसकी वजह से ग्रुप ब्लॉग सदस्य पंक्ति को पॉज़ कर सकते थे. इसे ठीक कर दिया गया है और अब ये सिर्फ़ ग्रुप ब्लॉग एडमिन तक ही सीमित है.
वो परेशानी दूर कर दी जिसके चलते हटाई गईं पोस्ट पंक्ति सूची में तब भी दिखाई दे रही थीं.
Firefox पर, अब जवाब फ़ील्ड क्रमबद्ध वाइटस्पेस (उदा. शब्दों के बीच दुगना स्पेस) दिखाता है, उसे छोटा नहीं करता. इससे खुद जवाबों की दिखावट पर कोई असर नहीं पड़ता, जो पहले से ही क्रमबद्ध वाइटस्पेस दिखा रहे थे.
🚧 जारी
यहाँ बताने के लिए कुछ नहीं है.
🌱 जल्द आने वाले
हमारी पिछली बदलाव पोस्ट में हमने बताया था कि कुछ बैज लॉन्च किए गए हैं. खैर, हमने उन्हें थोड़ा और शानदार बनाने के लिए वापस ले लिया है. जल्द ही 2024 में वो आपको मिल जाएँगे!
कोई समस्या हो रही है? एक सहायता अनुरोध दर्ज करें और हम इस बारे में जितनी जल्दी हो सके आपसे संपर्क करेंगे!
किसी चीज़ के बारे में अपना फ़ीडबैक शेयर करना चाहते हैं? हमारे काम जारी है ब्लॉग पर एक नज़र डालें और समुदाय के लोगों के साथ किसी भी बारे में चर्चा शुरू करें.
Tumblr को सीधे कुछ आर्थिक सहायता भेजना चाहते हैं. TumblrMart में नया सपोर्टर बैज देखें.
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #8. २२th नवंबर २०२३. बुधवार.]
सुबह का सूर्योदय नई उम्मीदों के साथ आता है और शाम का सूर्यास्त ये याद दिला कर जाता है की हौसला रख जो शुरू होता है उसका अंत भी लिखा है।
बस इसी के साथ आज उम्मीदों को हाथ थाम कर कल की प्रतिक्षा कर रही हूं। आज ज्यादा नही लिख रही बस इतना ही की उम्मीद मुझे थामे रखना, में रुकने वाली नही।
बस थोड़ा और चल लेना तू राही,
मंजिल इंतजार में बैठी है कब से भी। -♡.सिमरन.♡
रुकना मत क्यों की, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना।
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‼️Breaking news‼️
"फिर पकड़ा गया BJP का झूठ..... 🤔
"राहुल गांधी जी ने कहा- 'भारत का कमज़ोर होता लोकतंत्र भारत की समस्या है और इसका समाधान भी हम खुद निकालेंगे।'
मोदी सरकार से बड़े बे-आबरू कर के बाहर किए गए रविशंकर प्रसाद जी को इतनी सी बात समझ न आई, निकल पड़े झूठ फैलाने और पकड़े गए।
BJP नेताओं का बस एक ही काम, झूठ बोलो, झूठ बोलो, झूठ बोलो!!
‼️In NEWS: National,International, & Social media 📺‼️
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अबकी बार यह पूरब से चलेगा।
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अच्छा या बुरा नही होकर एक वक्त हैं। जो वक्त बेवक्त खाली हो जाता हैं। उस खालीपन के अंदर कई मौसम एक साथ रहा करते हैं।
आज चमकती हुई धूप हैं। सर्द मौसम बहुत पास से गुजर रहा है। धूप निश्चिंत हैं कि अब सर्द मौसम बाधा नहीं बनेंगे, लेकिन बीच बीच में बेमकसद भटकती असंतुष्ट बदली धूप को आशंकित करती हैं। इस आशंका को तब और बल मिलता हैं, जब हवाएं अट्टहास करती पास से गुजर जाती हैं।
शोर करता यह उद्वेलित मालूम पड़ता हैं जैसे बेमतलब का हो।
बेमतलब का होना इसे और जंगली बनाता हैं। उपेक्षा और तिरस्कार से सख्त हो चुका, यह लोगो को दर्द दे कर अपना गुस्सा निकालता है। अपनी पहचान खातिर बार–बार शोर करता अपनी मौजूदगी का अहसास कराता हैं।
लेकिन इन जाड़ों के बाद वाली धूप में तुम्हारा क्या काम?
वेग से गुजरती इन हवाओं को देख धूप थोड़ी देर के लिए ठिठक पड़ती हैं। जानी पहचानी लेकिन पहचान का कोई सिरा नजर नहीं आता। मिलने की खुशबू आ रही , लेकिन कैसे मिले थे याद नही! हवाएं शिकायती और उम्मीद की मिलीजुली नजरों से धूप को ताक रही हैं। जैसे कुछ इशारा करना चाह रही हो। "भूल गए क्या वो तपिश जब मुझे गले लगाएं थे? भूल गए वो शाम जब मेरे आगोश में ताजे हुए थे। या सुकून वाली वो रातें जब तुम मेरे सपनो में सोएं थे? अब मुझे तुम्हारी जरूरत हैं और तुम मुझे निचोड़ रहे हो। सूखा डाल रहे हो। कोई कैसे भूल सकता हैं!"
धूप निःशब्द हैं। थोड़ी देर के लिए सहम जाता हैं। यादें पीछा करती हैं और सुबह ओस बन जाती हैं।
बेउम्मीद मुसाफ़िर बन चुका हवा शुष्क हो चला हैं। धूप का सहारा मिले तो अभी भी बरस सकता हैं, लेकिन इसके आसार नजर नहीं आते। धूप को भी फरवरी का कर्तव्य निभाना हैं। ऐसे कैसे उस आवारगी में वापस मुड़ जाए।
एक दर्द फैल रही हैं हवा के अंदर, एक ऐसा दर्द जिसे दस्तक की कमी खाती हैं। जिधर से गुजरती हैं खामोशी पसरा देती हैं। यह सिर्फ खामोशी नही जादुई खामोशी हैं– जो सर्द हैं रूखा सूखा हैं। सामने पड़ने वाले खुद ब खुद इसमें समा जाते हैं।
यह संक्रमण काल हैं, जिधर ठंडी गर्मी आमने –सामने, नजरे मिलाए एक दूसरे से विदा ले रहे हैं। और अंततः किसी एक को विदा हो जाना हैं। बेदिली से ही सही हर बार इस मौसम में सर्द हवा को ही विदा लेनी पड़ती है। कुछ वक्त गुजार चुकने के बाद भला कौन कही जाना चाहता हैं।
लेकिन कोई आगे बढ़ने के वावजूद भी एकाएक चला तो नही जाता?
ये सर्द हवा भी एकबारगी नही चला जाएगा। जाने कितने प्रेमी जोड़ों को एक दूसरे से वादा करते देख मुस्कुराएगा। ईश्वर से इनके लिए रहम की भीख मांगेगा। फरवरी को मार्च बनाएगा। सुर्ख रंगो में रंगते चला जाएगा। ऐसा जाएगा की पेड़ के सारे पत्ते दूर तक उसका पीछा करेंगे।
सड़क छत खेत तालाब से गुजर कर यह उन गलियों से भी गुजरेगा जिन गलियों में शोर हुआ करता था। अब रात की वीरानगी है।
अतीत को ओढ़े उस जर्जर महल के सूखे रंगो को कुरेदता उसके सीलन को अपने साथ लेता जाएगा।
खंडहर हो चुके उस मकान के गलियारों से भी गुजरेगा और बंद किवाड़ वाली उस कमरे में सपनों को मुस्कुराता छोड़ आगे बढ़ जाएगा।
चलते चलते यह नदी बन जाएगा। समतल पे सरपट दौड़ेगा, खाइयों को भरते थमी थमी चलेगा। सामने पहाड़ आए, किनारे हो लेगा। जंगल को सींचते यात्रा चलता रहेगा।
क्या हैं यह जिंदगी? कभी सब दे देती हैं। कभी एक झटके में सब छीन लेती हैं! लेकिन इस लेन देन में जिंदा रहना जरूरी हैं। इस बात का हवा को पता हैं। रौशनी चौराहे मुहल्ले खेत खलिहान ओझल होने लगे हैं।
यहां से अकेलेपन की यात्रा हैं। वापसी की यात्रा की नियति हमेशा से अकेलेपन की रही हैं। अकेलापन अकेला ही रहता हैं। जिस पल किसी के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह पल प्रायः अकेला गुजरता हैं। कुछ सच्चाईयां भयानक होती हैं। उनके नुकीले दांत होते हैं।
उस जगह से बेदखल हो जाते हैं जहां कुछ वक्त गुजार चुके होते हैं। मन रम जाता हैं। अहंकार अपना घर बना लेता हैं, एक सुंदर महल।
और जब यहां से रवानगी होती है तो सब कुछ बदल जाता हैं।
दिलकश अंदाज की जगह भावशून्यता दिखती हैं। स्वागत करती बांहे अब मजबूरियों में कांप रही होती हैं।
शब्दों में इतनी भी हिम्मत नही कि ढंग से विदा कर सके।
सामने कई रास्ते हैं। जो आगे चल कर एक हो जाते हैं।
वह रास्ता रेगिस्तान को जाता हैं। रेगिस्तान सुना ही था सुना ही रहा।
लोग रास्ते बनाते गए और आंधियां निशान मिटाते गई।
ऐसी पल भर में खो जानें वाली रास्तों में वह होकर भी नही था।
किनारे खड़ा वो पेड़ नजदीक आ रहा हैं।
उमंगों की यात्रा में इसी जगह कुछ वक्त के लिए ठहरा था।
पत्तियां नई–नई सी थी। चिड्डियो की आवाज़ें जैसे महबूब की पुकार हो चले थे।
ढोल बाजे दूर कही गांव में बज रहे थे। शायद कोई दुल्हन धड़कते दिल से अपनी बारात का इंतजार कर रही थी।
अब वो गांव दुल्हन को विदा कर अलसाया सा पड़ा था।
पेड़ भी मौन था।
मुझे पहचानता था मालूम नही। बिना पहचान के कौन कही रुकता हैं।
सामने सपाट आकाश दिख रहा है। मिलों फैली तन्हाईया बांहे फैलाए खड़ी हैं। स्वागत कोई भी करे अच्छा लगता हैं।
शून्य हो चला है समय। समय का शून्य हो जाना वक्त को थाम लेता हैं।
सुख चुकी हवा को लहरे भींगो देने खातिर पास बुला रही हैं।
कभी लहरों के ऊपर हवा तो कभी हवा के ऊपर लहरें। जैसे ईश्वर सबको अपने आगोश में ले लेते हैं वैसे सागर भी हवा को अपने आगोश में लेकर भिगो रही हैं।
हवा को नया बना रही हैं।
हवा का नया जन्म हो रहा हैं।
अबकी बार यह पूरब से चलेगा।
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