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chaitanyabharatnews · 5 years
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केले से बनाया सेनेटरी पैड, 122 बार धोकर दो साल तक कर सकते हैं इस्तेमाल
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चैतन्य भारत न्यूज आईआईटी दिल्ली के दो छात्र अर्चित अग्रवाल और हेरी सहरावत ने केले के फाइबर से सेनेटरी पैड बनाने की अनोखी तकनीक तैयार की है। इस पैड को 122 बार धोकर दो साल तक प्रयोग किया जा सकता है। खास बात यह है कि, बार-बार प्रयोग के बाद भी इससे किसी प्रकार के इंफेक्शन का खतरा नहीं है। यह एक सेनेटरी पैड सौ रुपए में उपलब्ध होगा।   (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
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जानकारी के मुताबिक, इस पैड में जो कपड़ा लगाया गया है, उसमें क्वाड्रेंट ट्रूलॉक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। जिससे महावारी के दौरान यह पैड 100 एमएल ब्लड सोख सकता है। बीटेक छात्रों के इस स्टार्टअप का नाम 'सांफे' है। आईआईटी के डिजाइन विभाग के सहायक प्रोफेसर श्रीनिवास वेंकटरमन ने छात्रों की इस तकनीक की तारीफ की। उन्होंने कहा कि, महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता में यह तकनीक बेहद असरदार साबित होगी। उन्होंने बताया कि, इस तकनीक को तैयार करने में करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च आया है। इसका पेटेंट करा लिया गया है।
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ऐसे तैयार किया गया पैड  अर्चित और हैरी ने बताया कि, चार परतों से तैयार इस सेनेटरी पैड को बनाने में पॉलिएस्टर पिलिंग, केले का फाइबर और कॉटन पॉलियूरेथेन लेमिनेट का प्रयोग किया गया है। केले के जिस डंठल को यूं ही फेंक देते हैं उसी के अंदर से फाइबर को निकालकर मशीन में सुखाया गया। जिसके ऊपर  पॉलिएस्टर पिलिंग (एक प्रकार का कपड़ा) का प्रयोग किया गया, जो गीलेपन को सोखता है। जबकि लीकेज को रोकने के लिए कॉटन पॉलियूरेथेन लेमिनट (अस्पताल में प्रयोग होने वाला एक कैमिकल) का प्रयोग किया गया। उन्होंने बताया कि अन्य पैड में प्लास्टिक और सिंथेटिक इस्तेमाल होता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।
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दो साल चलेगा एक पैड यह सेनेटरी पैड ऑनलाइन के अलावा बाजार में भी आसानी से मिल जाएगा। एक पैकेट में दो पैड होंगे, जो 199 रुपए में मिलेंगे। एक रात के लिए है और दूसरा दिन के लिए। रात वाला पैड आठ से दस घंटे तक चलेगा और सुबह वाला छह से आठ घंटे तक चलेगा। महिलाएं इस पैड को ठंडे पानी में धोकर दो साल तक प्रयोग कर सकती हैं।
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पर्यावरण को नही होगा नुकसान अर्चित के मुताबिक, अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' से आम महिलाएं सेनेटरी पैड के प्रयोग के प्रति जागरूक तो हुईं, लेकिन पर्यावरण को पहुंचने वाले नुकसान का हल नहीं मिला। दरअसल सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में 50-60 साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है। मासिक धर्म के समय इस्तेमाल किए जाने वाले इन नैपकीन से कूड़ेदान, खुले स्थान, नाली, सीवर ब्लॉक होने के साथ मिट्टी को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे सेनेटरी पैड को जलाने से हानिकारक धुआं भी निकलता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। यह भी पढ़े...  महिलाओं नहीं बल्कि पहली बार पुरुषों के लिए बने थे सैनिटरी पैड्स, जानिए क्यों   Read the full article
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